Monday 30 November 2015

Soorah Infaal 8 Qist 5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है। 

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह इंफाल - ८
(पाँचवीं किस्त)

अपने पाठकों को एक बार फिर मैं यकीन दिला दूं कि मैं उसी तबके का जगा हुआ फर्द हूँ जिसके आप हैं. मुझको आप पर तरस के साथ साथ हँसी भी आती है, जब आप हमें झूठा लिखते हैं, जिसका मतलब है आप खुद तस्लीम कर रहे हैं कि आपका अल्लाह और उसका रसूल झूठ है, क्यूँकि मैं तो मशहूर आलिम मौलाना शौकत अली थानवी के क़ुरआनी तर्जुमे को और इमाम बुखारी की हदीस को ही नक्ल करता हूँ और अपने मशविरे में आस्था नहीं अक्ले-सलीम रखता हूँ. मैं मुसलामानों का सच्चा हमदर्द हूँ. दीगर धर्मों में इस्लाम से बद तर बाते हैं, हुआ करें, उनमें इस्लाह-ए- मुआशरा हो रहा है, इसकी ज़रुरत मुसलामानों को खास कर है। अगर आप अकीदे की फ़र्सूदा राह तर्क करके इंसानियत की ठोस सड़क पर आ जाएँ तो, दूसरे भी आप की पैरवी में आप के पीछे और आपके साथ होंगे।
 
चलिए अब अल्लाह की राह पर जहाँ वह मुसलमानों को पहाड़े पढ़ा रहा है 2x2 =५
देखिए कि इंसानी सरों को उनके तनों से जुदा करने के क्या क्या फ़ायदे हैं - - -
 
''बिला शुबहा बद तरीन खलायाक अल्लाह तअला के नज़दीक ये काफ़िर लोग हैं, तो ईमान न लाएंगे''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ५५)
और खूब तरीन मोमिन हो जाएँ अगर ईमान लाकर तुम्हारे साथ तुम्हारे गढ़े हुए अल्लाह की राह पर खून खराबा के लिए चल पड़ें. जेहालत की राह पर अपनी नस्लों को छोड़ कर मुहम्मदुर रसूलिल्लाह कहते हुए इस से बेहोशी के आलम में रुखसत हो जाएँ.

''और काफ़िर लोग अपने को ख़याल न करें कि वह बच गए. यकीनन वह लोग आजिज़ नहीं कर सकते.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ५९)
कूवत वाला अल्लाह, मेराकी शौहर की बीवी की तरह आजिज़ भी होता है ?
क्या क्या खसलतें मुहम्मद ने अपने अल्लाह में पैदा कर रखी है.
वह कमज़ोर, बीमार और चिडचिड़े बन्दों की तरह आजिजो-बेज़ार भी होता है , वह अय्यारो-मक्कार की तरह चालों पर चालें चलने वाला भी है,
वह कल्बे सियाह की तरह मुन्तकिम भी है, वह चुगल खोर भी है,
अपने नबी की बीवियों की बातें इधर की उधर, नबी के कान में भर के मियाँ बीवी में निफाक भी डालता है.
कभी झूट और कभी वादा खिलाफी भी करता है.
आगे आगे देखते जाइए मुहम्मदी अल्लाह की खसलतें.
यह किरदार खुद मुहम्मद के किरदार की आइना दार हैं तरीख इस्लाम इसकी गवाह है,
जिसकी उलटी तस्वीर यह इस्लामी मुसन्नाफीन और उलिमा आप को दिखला कर गुमराह किए हुए हैं.
आप इनकी तहरीरों पर भरोसा करके पामाल हुए जा रहे हैं तब भी आप को होश नहीं आ रहा. लिल्लाह अपनी नस्लों पर रहम खइए।
 
''वह वही है जिसने आप को अपनी इमदाद से और मुसलामानों से कूवत दी और इनके दिलों में इत्तेफाक पैदा कर दिया. अगर आप दुन्या भर की दौलत खर्च करते तो इन के कुलूब में इत्तेफाक पैदा न कर पाते. लेकिन अल्लाह ने ही इन के दिलों में इत्तेफाक पैदा कर दिया. बेशक वह ज़बरदस्त है और हिकमत वाला है.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (६३)
इंसान अपनी फितरत में लालची होता है और अगर पेट की रोटी किसी अमल से जुड़ जाए तो वह अमल जायज़ लगने लगता है, जब कोई पैगंबर बन कर इसकी ताईद करे तो फिर इस अमल में सवाब भी नज़र आने लगता है. यही पेट की रोटी भुखमरे अरबी मुसलामानों में इत्तेहाद और इत्तेफाक पैदा करती है जिसे अल्लाह की इनायत मनवाया जा रहा है। मुहम्मद अपनी ज़ेहानते-बेजा की पकड़ को अल्लाह की हिकमत क़रार दे रहे हैं. जंगी तय्यारियों से इंसानी सरों को तन से जुदा करने की साज़िश को अपने अल्लाह की मर्ज़ी बतला रहे हैं.
''ऐ पैगम्बर! आप मोमनीन को जेहाद की तरगीब दीजिए. अगर तुम में से बीस आदमी साबित क़दम होंगे तो दो सौ पर ग़ालिब आ जाएँगे और अगर तुम में सौ होंगे तो एक हज़ार पर ग़ालिब आ जाएंगे.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (६४)
मुहम्मदी अल्लाह अपने रसूल को गणित पढ़ा रहा है, मुसलमान कौम उसका हाफिज़ा करके अपने बिरादरी को अपाहिज बना रही और इन इंसानी खून खराबे की आयातों से अपनी आकबत सजा और संवार रही है, अपने मुर्दों को बख्शुवा रही है, इतना ही नहीं इनके हवाले अपने बच्चों को भी कर रही है. इसी यकीन को लेकर क़ुदरत की बख्शी हुई इस हसीन नेमत को खुद सोज़ बमों के हवाले कर रही है. क्या एक दिन ऐसा भी आ सकता है की मुसलमान इस दुन्या से नापैद हो जाएं जैसा कि खुद रसूल ने एहसासे जुर्म के तहत अपनी हदीसों में पेशीन गोई भी की है.
मुहम्मद अल्लाह के कलाम के मार्फ़त अपने जाल में आए हुए मुसलामानों को इस इतरह उकसाते हैं - - -
''तुम में हिम्मत की कमी है इस लिए अल्लाह ने तख्फीफ (कमी) कर दी है,
सो अगर तुम में के सौ आदमी साबित क़दम रहने वाले होंगे तो वह दो सौ पर ग़ालिब होंगे.
नबी के लायक नहीं की यह इनके कैदी रहें,
जब कि वह ज़मीन पर अच्छी तरह खून रेज़ी न कर लें.
सो तुम दुन्या का माल ओ असबाब चाहते हो और अल्लाह आख़िरत को चाहता है
और अल्लाह तअल बड़े ज़बरदस्त हैं और बड़े हिकमत वाले हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (६७)
इसके पहले अल्लाह एक मुसलमान को दस काफिरों पर भारी पड़ने का वादा करता है मगर उसका तखमीना बनियों के हिसाब की तरह कुछ गलत लगा तो अपने रियायत में बखील हो रहा है.
अब वह दो काफिरों पर एक मुसलमान को मुकाबिले में बराबर ठहरता है।
अल्लाह नहीं मल्लाह है नाव खेते खेते हौसले पस्त हो रहे हैं.
इधर संग दिल मुहम्मद को क़ैदी पालना पसंद नहीं,
चाहते है इस ज़मीन पर खूब अच्छी तरह खून रेज़ी हो जाए ,
काफ़िर मरें चाहे मुस्लिम उनकी बला से मरेगे तो इंसान ही जिन के वह दुश्मन हैं,
तबई दुश्मन, फ़ितरी दुश्मन, जो बचें वह गुलाम बचें ज़ेहनी गुलाम और लौंडियाँ.
और वह उनके परवर दिगार बन कर मुस्कुराएँ.
मुहम्मद पुर अमन तो किसी को रहने ही नहीं देना चाहते थे, चाहे वह मुसलमान हो चुके सीधे, टेढ़े लोग हों, चाहे मासूम और ज़हीन काफ़िर.
दुन्या के तमाम मुसलामानों के सामने यह फरेबी क़ुरआन के रसूली फ़रमान मौजूद हैं मगर ज़बाने गैर में जोकि वास्ते तिलावत है.
इस्लाम के मुज्रिमाने-दीन डेढ़ हज़ार साल से इस क़दर झूट का प्रचार कर रहे हैं कि झूट सच ही नहीं बल्कि पवित्र भी हो चुका है, मगर यह पवित्रता बहर सूरत अंगार पर बिछी हुई राख की परत की तरह है.
अगर मुसलामानों ने आँखें न खोलीं तो वह इसी अंगार में एक रोज़ भस्म हो जाएँगे, उनको अल्लाह की दोज़ख भी नसीब न होगी.
 
ऊपर की इन आयातों में मुहम्मदी अल्लाह नव मुस्लिम बने लोगों को जेहाद के लिए वर्गलाता है, इनके लिए कोई हद, कोई मंजिल नहीं, बस लड़ते जाओ,
मरो, मारो वास्ते सवाब. 
सवाब ?
एक पुर फरेब तसव्वुर, एक कल्पना, एक मफरूज़ा जन्नत, ख्यालों में बसी हूरें और लामतनाही ऐश की ज़िन्दगी जहाँ शराब और शबाब मुफ्त, बीमारी आज़ारी का नमो निशान नहीं.
कौन बेवकूफ इन बातों का यकीन करके इस दुन्या की अजाबी ज़िन्दगी से नजात न चाहेगा?
हर बेवकूफ इस ख्वाब में मुब्तिला है.
मुहम्मद कहते हैं कि पहला हल तो यहीं दुन्या में धरा हुवा है जंग जीते तो ज़न, ज़र, ज़मीन तुम्हारे क़दमों में, हारे,
तो शहीद हुए इस से वहाँ लाख गुना रक्खा है.
अजीब बात है कि खुद मुहम्मद ठाठ बाट की शाही ज़िन्दगी जीना पसंद नहीं करते थे, न महेल, न रानियाँ, पट रानियाँ, न सामाने ऐश.
मरने के बाद विरासत में उनके खाते में बाँटने लायक कुछ खास न था.
वह ऐसे भी नहीं थे कि अवामी फलाह की अहमियत की समझ रखते हों,
कोई शाह राह बनवाई हो,
कुएँ खुदवाए हों,
मुसाफ़िर खाने तामीर कराए हों,
तालीमी इदारे क़ायम किया हो.
यह काम अगर उनकी तहरीक होती तो आज मुसलामानों की सूरत ही कुछ और होती.
मुहम्मद काफिरों, मुशरिकों, यहूदियों, ईसाइयों, आतिश परस्तों और मुल्हिदों के दुश्मन थे, तो मुसलमानों के भी दोस्त न थे.
मामूली इख्तेलाफ़ पर एक लम्हा में वह अपने साथी मुस्लमान को मस्जिद के अन्दर इशारों इशारों में काफ़िर कह देते.
उनके अल्लाह की राह में फिराख दिली से खर्च न करने वाले को जहन्नुमी करार दे देते.
उनकी इस खसलात का असर पूरी कौम पर रोज़े अव्वल से लेकर आज तक है.
उनके मरते ही आपस में मुसलमान ऐसे लड़ मरे की काफिरों को बदला लेने की ज़रुरत ही न पड़ी.
गोकि जेहाद इस्लाम का कोई रुक्न नहीं मगर जेहाद कुरान का फरमान- ए-अज़ीम है जो कि मुसलामानों के घुट्टी में बसा हुवा है. कुरान मुहम्मद की वाणी है जिसमे उन्हों ने उम्मियत की हर अदा से चाल घात के उन पहलुओं को छुआ है जो इंसान को मुतास्सिर कर सकें.
अपनी बातों से मुहम्मद ने ईसा, मूसा बनने की कोशिश की है, बल्कि उनसे भी आगे बढ़ जाने की.
इसके लिए उन्हों ने किसी के साथ समझौता नहीं किया, चाहे सदाक़त हो, चाहे शराफत, चाहे उनके चचा और दादा हों, यहाँ तक की चाहे उनका ज़मीर हो.
अपनी तालीमी खामियों को जानते हुए, अपने खोखले कलाम को मानते हुए, वह अड़े रहे कि खुद को अल्लाह का रसूल तस्लीम कराना है.
मुहम्मद का अनोखा फार्मूला था लूट मार के माल को ''माले गनीमत'' क़रार देना.यानि इज्तेमाई डकैती को ज़रीया मुआश बनाना. बेकारों को रोज़ी मिल गई थी । बाकी दुन्य पर मुसलमान ग़ालिब हो गए थे. आज बाकी दुन्य मिल कर मुसलामानों की घेरा बंदी कर रही है,
तो कोई हैरत की बात नहीं.

मुसलामानों को चाहिए कि वह अपने गरेबान में मुँह डाल कर देखें और तर्क इस्लाम करके मजहबे इंसानियत अपनाएं जो इंसान का असली रंग रूप है। सारे धर्म नकली रंग ओ रोगन में रंगे हुए हैं सिर्फ और सिर्फ इंसानियत ही इंसान का असली धर्म है जो उसके अन्दर खुद से फूटता रहता है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 27 November 2015

Soorah Infaal 8 qist 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इंफाल 8 
(चौथी किस्त)

'' और जब उन लोगों ने कहा ऐ अल्लाह ! अगर यह आप की तरफ से वाकई है तो हम पर आसमान से पत्थर बरसाए या हम पर कोई दर्द नाक अज़ाब नाज़िल कर दीजिए.''
काफ़िरों का बहुत ही जायज़ एहतेजाज था, और मुहम्मद के लिए यह एक चुनौती थी.
''और तुम उन कुफ्फारो से इस हद तक लड़ो की उन्हें फ़सादे अक़ीदत न रहे और दीन अल्लाह का ही क़ायम हो जाए, फिर अगर वह बअज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके अअमाल को खूब देखते हैं.''
ऐसी जिहादी आयतों से कुरआन भरा हुवा है, जिस पर तालिबान जैसे पागल अमल कर रहे है और कुत्तों की मौत मारे जा रहे है.
''और जान लो जो शै बतौर गनीमत तुम को हासिल हो तो कुल का पाँचवां हिस्सा अल्लाह और उसके रसूल का है और आप के क़राबत दारों का है और यतीमो का है और गरीबों का है और मुसाफिरों का है, अगर तुम अल्लाह पर यक़ीन रखते हो तो.''
सूरह इंफाल ८ नौवाँ परा आयत ( ३२ - ३९ - ४१)
मैं एक बार फिर अपने पाठकों को बतला दूं कि जंग में लूटे हुए माल को मुहम्मद ने माले गनीमत नाम दिया और इसको ज़रीया मुआश का एक साधन करार दिया.
यह बात पहले लूट मार और डकैती जैसे बुरे नाम से जानी जाती थी जिसको उन्होंने वाहियों के नाटक से अपने ऊपर जायज़ कराया. माले गनीमत के बटवारे का कानून भी अल्लाह बतलाता है ,
वह अपना पांचवां हिस्सा आसमान से उतर कर ले जाता है, उसके बाद यतीमों, गरीबों और मुसफिरून का हिसा कायम करके रसूल अपने यहाँ रखवाते, 
कहीं कोई इदारह ए फलाह ओ बहबूद उनकी ज़िन्दगी में इनके लिए कायम नहीं हुवा. 
खुद अपने मुसाहिबों में तकसीम करके अपनी शान बघारते, 
जो बुनयादी फायदे होते उससे कुरैशियो कि जड़ें मज़बूत होती रहतीं. 
उनकी मौत के बाद ही उनकी सींची हुई बाग़ कुरैशियों के लिए लहलहा उट्ठी, अली हसन, हुसैन और यजीद इस्लामी शहजादे बन कर उभरे. कुछ रद्दे-अमल में क़त्ल हुए और कुछ आज तक फल फूल रहे हैं.
हमें गम है कि हम न अरब हैं, हम न कुरैश हैं और हम न अल्वी न यजीदी हैं, हम भारतीय हैं, हम भला इस्लाम कि ज़द में आकर क्यों इसके शिकार बने हुए है?

''इस ने अपनी हिकमत अमली से कभी दुश्मनों को मोमिनों कि लश्कर को कसीर दिखला कर और कभी मोमिनों की हौसलों को बढाने के लिए काफिरों कि फ़ौज को मुख़्तसर दिखलाया .''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ४३)
मुहम्मद को अपने अल्लाह से दगाबाजी का काम कराने से भी कोई परहेज़ नहीं करते. 
नादान भोले भाले मुसलमान तो इसकी गहराई में जाते ही नहीं, मगर यह तालीम याफ़्ता मुसलमान इस बात को नज़र अंदाज़ करके कौम को पस्ती में डाले हुए हैं. अगर यह आगे आएँ तो वह इनके पीछे चलने की हिम्मत कर सकते है.
''काफ़िरों को हिम्मत बंधाने वाला शैतान , मुसलमानों के लिए मदद आता देख कर, सर पर पाँव रखकर भागता है, यह कहते हुए कि मैं तो अल्लाह से डरता हूँ.
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( 48 )
यह है मुसलामानों तुम्हारा क़ुरआन और तुम्हारा दीन जो कि बच्चों को दिल बहलाने के लिए किसी कार्टून फिल्म के किरदार की तरह है. 
क्या इसी पर तुम्हारा ईमान है? 
क्या तुम इस पर कभी शर्मिंदा नहीं होते? 
या तुम को यह सब कुछ बतलाया ही नहीं जाता, 
तुमसे क्यूँ यह बातें छिपाई जाती हैं? 
या फिर तुम हिन्दुओं के देवी देवताओं की पौराणिक कथाओं को जानते हुए इन बातों को उन से बेहतर मानते हो? 
ज़रा सोचो मुहम्मद ने किस समझदार शैतान को तुमको बहकाने के लिए गढ़ा है कि तुम सदियों से उसकी गुमराही में भटकते रहोगे .आँखें खोलो.
उम्मी मुहम्मद गधी मख़लूक़ को समझाते हैं - - - चूँकि शैतान भी अल्लाह से डरता है, इस लिए तुमको भी अल्लाह से डरना चाहिए. और यह मख़लूक़ इस बात को समझ ही नहीं पाती कि बेवकूफ मुहम्मद उससे शैतान की पैरवी करा रहे है. 

''देखें जब यह फ़रिश्ते काफिरों की जान कब्ज़ करने जाते हैं और आग की सजा झेलना, ये इसकी वजेह से है कि तुम ने अपने हाथों समेटे हैं कि अल्लाह बन्दों पे ज़ुल्म नहीं करता.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ५०-५१)
वाह ! कितने रहम दिल हैं अल्लाह मियाँ. 
खुद ज़ुल्म करते हैं और अपने फरिश्तों से कराते है 

कि इस्लाम कुबूल करने के बाद मुसलमान हर वक़्त डरा सहमा रहता है अपने अल्लाह से.
क्यूँ ? क्या उसका जुर्म यह है कि वह उसकी धरती पर पैदा हो गया? 
मगर वह अपनी मर्ज़ी से कहाँ इस दुन्या में आया? 
वह तो अपने माँ बाप के उमंग और आरज़ू का नतीजा है. 
उसके बाद भी मेहनत और मशक्कत से दो वक़्त की रोज़ी रोटी कमाता है, 
उसके लिए मुहम्मदी अल्लाह को टेक्स दे? 
उस से डरे उसके सामने मत्था टेके, 
गिड़गिडाए ? 
भला क्यूं? 
अपने वजूद को दोज़ख के न बुझने वाले अंगारों के हवाले करने का यकीन क्यूं करें?

'' बिला शुबहा अल्लाह तअला बड़ी क़ूवत वाले हैं''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ५२)

जो ''कुन'' कह कर इतनी बड़ी कायनात की तखलीक करदे उसकी कूवत का यकीन एक अदना बन्दा से क्यूँ करा रहा है ? 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 24 November 2015

सूरह इंफाल - ८ (तीसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इंफाल - ८
(तीसरी किस्त)

गवाही 
राम चन्द्र परम हंस ने अदालत में हलफ़ उठा कर गवाही दी थी कि '' मैं ने अपनी आँखों से देखा कि गर्भ गृह से राम लला प्रगत हुए, वहाँ जहाँ बाबरी ढाँचा खड़ा था. अदालत ने उनकी गवाही झूटी मानी, राम चन्द्र परम हँस की जग हँसाई हुई,
मुस्लमान खुल कर हँसे
तो हिदू भी मुस्कुराए बिना रह न सके.
अब ऐसे हिदुओं की बात अलग है जो 'क़सम गीता की खाते फिरते हैं हाथों को तोड़ने के लिए'
जो नादन ही नहीं बे वकूफ भी होते हैं.
राम चन्द्र परम हँस को शर्म नहीं आई, हो सकता है उनकी गवाही सही रही हो गवाही की हद तक. उन्हों ने अपने चेलों से कह दिया हो कि राम लला की मूर्ती चने भरी हांड़ी के ऊपर रख उसमे पानी भर देना और मूर्ती हांड़ी समेत मिटटी में गाड़ देना, चना अंकुरित होकर राम लाला को प्रगट कर देगा. इस परिक्रिया भर की मैं शपत लेलूँगा जो बहर हल झूट तो न होगा.
मुसलमान बाबरी मस्जिद में साढ़े तीन सौ साल से मुश्तकिल तौर पर अलल एलान झूटी गवाही दिन में पांच बार देता चला आया है तो उस पर कोई इलज़ाम, कोई मुक़दमा नहीं? वह गवाही है इस्लामी अज़ान. अज़ान का एक जुमला मुलाहिजा हो - - -
''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह''
अर्थात '' मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के दूत हैं''
अल्लाह को किसने देखा है कि वह मुहम्मद को अपना रसूल बना रहा है और किसने सुना है? कौन है और कितने हैं चौदह सौ सालों के उम्र वाले आज जो जिंदा हैं इस वाकेए के गवाह जो चिल्ला चिल्ला कर गवाही दे रहे हैं
''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह''
दुन्या की हज़ारों मस्जिदों में लाखों मुहम्मद के झूठे गवाह, झूठे राम चन्द्र परम हँस से भी गए गुज़रे हैं.
मुसलामानों!
गौर करो क्या तुम को इस से बढ़ कर तुम्हारी नादानी का सुबूत चाहिए? तुम तो इन गलीज़ ओलिमा के जारीए ठगे जा रहे हो. अपनी आँखें खोलो .
देखिए मुहम्मदी अल्लाह इंसानी खून का कितना प्यासा दिखाई देता है, मुसलामानों को प्रशिक्षित कर रह है क़त्ल और गारत गरी के लिए - - - 

'' ऐ ईमान वालो! जब तुम काफिरों के मुकाबिले में रू बरू हो जाओ तो इन को पीठ मत दिखलाना और जो शख्स इस वक़्त पीठ दिखलाएगा, अल्लाह के गज़ब में आ जाएगा और इसका ठिकाना दोज़ख होगा और वह बुरी जगह है. सो तुम ने इन को क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ने इनको क़त्ल किया और आप ने नहीं फेंकी (?) , जिस वक़्त आप ने फेंकी थी, मगर अल्लाह ने फेंकी और ताकि मुसलामानों को अपनी तरफ से उनकी मेहनत का खूब एवज़ दे. अल्लाह तअला खूब सुनने वाले हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१५-१६-१७)
मज़ाहिब ज़्यादः तर इंसानी खून के प्यासे नज़र आते हैं ख़ास कर इस्लाम और यहूदी मज़हब. इसी पर उनकी इमारतें खड़ी हुई हैं धर्म ओ मज़हब को भोले भाले लोग इनके दुष प्रचार से इनको पवित्र समझते हैं और इनके जाल में आ जाते हैं. तमाम धार्मिक आस्थाओं का योग मेरी नज़र में एक इंसानी ज़िन्दगी से कमतर होता है. गढ़ा हुवा अल्लाह मुहम्मद की क़ातिल फ़ितरत का खुलकर मज़हिरा करता है. आज की जगी हुई दुनिया में अगर मुसलामानों के समझ में यह बात नहीं आती तो वह अपनी कब्र अपने हाथ से तैयार कर रहे हैं. कुरआन में अल्लाह फेंकता है यह कोई अरबी इस्तेलाह रही होगी मगर आप हिदी में इसे बजा तौर पर समझ लें कि अल्लाह जो फेंकता है वह दाना फेंकने की तरह है, बण्डल छोड़ने की तरह है और कहीं कहीं ज़ीट छोड़ने की तरह.

''और तुम उन लोगों की तरह न होना जो दावे करते हैं कि हमने हैं सुन लिया हालाँकि वह सुनते सुनाते कुछ भी नहीं. बेशक बद तरीन खलायक अल्लाह के नज़दीक वह लोग है जो बहरे हैं, गूंगे हैं जोकि ज़रा भी नहीं समझते.
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (२२)
अल्लाह बने हुए मुहम्मद मस्जिद में तक़रीर कर रहे हैं छल कपट की जिस को लोग खूब समझ रहे हैं और बेज़ार होकर इधर उधर देख रहे हैं गोया उनको एहसास दिला सकें कि वह खूब उनका असली मकसद समझते हैं. मुहम्मद अपने जंबूरे अल्लाह का सहारा बार लेते हैं मगर वह पानी का हुबाब साबित हो रहा है. वह इस्लाम पर ईमान लाए लोगों को बद तरीन मख्लूक़ तक भी कह रहे है, कोई तो मसलेहत होगी कि लोग सर झुका कर महफ़िल में उनकी यह गाली भी बर्दाश्त कर रहे हैं. इन बहरे और गूंगे लोगों पर अल्लाह की कोई हिकमत काम नहीं करती जो दोज़ख में काफिरों की खालें अंगारों से जल जाने के बाद बदलता रहता है.

''अल्लाह तअला इन में कोई खूबी देखे तो इन को सुनने की तौफ़ीक़ दे और अगर इनको सुना दे तो ज़रूर रू गरदनी करेगे बे रुखी करते हुए.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (२३)
दुन्या के मासूम लोग मानते हैं कि कुरआन अल्लाह का कलाम है, ईश वाणी है. क्या ईश्वर भी इंसानों की तरह ही चाल घात और मकर ओ फरेब का दिल ओ दिमाग रखता होगा? जैसा कि कुरआनी आयतें अपने अन्दर छुपाए हुए हैं. इसी लिए मुहम्मद ने इसे रटने और पाठ करने के लिए पुन्य कार्य यानी सवाब करार दे दिया है और कह दिया है कि इसकी गहराई में मत जाओ कि इसको अल्लाह ही बेहतर जानता है. मुहम्मद की खूबी वाले लोग उन्हीं को मानते हैं जो डरपोंक हों चापलूस हो और बिला शर्त उनको समर्पित हों. वह ज़हीन लोगों से डरते हैं कि वह ख़तरनाक होते हैं. कुंद ज़हनों पर ही उनका अल्लाह राज़ी है कि मुहम्मद उनका शोषण कर सकते हैं. आज तालिबान जैसे संगठन ठीक मुहम्मद के नक्शे क़दम पर चलते हैं.

'' ऐ ईमान वालो! तुम अल्लाह और रसूल के कहने को बजा लाया करो जब कि रसूल तुम को तुम्हारी ज़िन्दगी बख्श चीजों की तरफ बुलाते हैं और जान रखो अल्लाह आड़ बन जाया करता है आदमी के और उसके क़ल्ब के दरमियान और बिला शुबहा तुम सब को अल्लाह के पास जाना ही है.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( २४ )
जादूई खसलत के मालिक मुहम्मद इंसानी ज़ेहन पर इस कद्र क़ाबू पाने में आखिर कार कामयाब हो ही गए जितना कि कोई ज़ालिम आमिर किसी कौम पर फ़तह पाकर उसे गुलाम बना कर भी नहीं पा सकती. आज दुन्या की बड़ी आबादी उसकी दरोग की आवाज़ को सर आँख पर ढो रही है और उसके कल्पित अल्लाह को खुद अपने और अपने दिल ओ दिमाग के बीच हायल किए हुए है.

''ऐ ईमान वालो! अगर तुम अल्लाह से डरते रहोगे तो, वह तुम को एक फैसले की चीज़ देगा और तुम से तुम्हारे गुनाह दूर क़र देगा और तुम को बख्श देगा और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( २९ )
अल्लाह के एजेंट बने मुहम्मद उसकी बख्शी हुई रियायतें बतला रहे हैं. पहले उसके बन्दों को समझा दिया कि उनका जीना ही गुनाह है, वह पैदा ही जहन्नम में झोंके जाने के लिए हुए हैं, इलाज सिर्फ़ यह है कि मुसलमान होकर मुहम्मद और उनके कुरैशियों को टेक्स दें और उनके लिए जेहाद करके दूसरों को लूटें मारें जब तक कि वह भी उनके साथ जेहादी न बन जाएँ.
ना करदा गुनाहों के लिए बख्शाइश का अनूठा फार्मूला जो मुसलमानों को धरातल की तरफ खींचता रहेगा.

''और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो कहते हैं; हमने सुन लिया और अगर हम इरादा करें तो इसके बराबर हम भी कह लाएं, यह तो कुछ भी नहीं सिर्फ बे सनद बातें हैं जो पहलों से मन्कूल चली आ रही हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ३१)
अल्लाह बने मुहम्मद झूट बोलते हैं कि क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम है क्यूं कि यह खुद इस्लामी अल्लाह हैं और क़ुरआन इन का फूहड़ कलाम है. अरब में तौरेत की पुरानी कहानियाँ सीना दर सीना सदियों से चली आ रही थीं जैसे भारत में पौराणिक कथाएँ. जब मुहम्मद उसे अल्लाह का कलाम गढ़ कर अवाम को सुनाते तो खुद मुसलमान हुए लोगों में ऊब कर कुछ लोग कह देते की ऐसी बे सनद बातें तो हम भी कर सकते हैं जो पहले से मशहूर हैं इनमें नया क्या है? तलवार की काट और हराम खोर ओलिमा की ठाठ, आज मुसलमानों की ज़ुबान पर क़ुफ्ल जड़े हुए है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 20 November 2015

Soorah infaal 8 dusri qist

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*********
सूरह इंफाल ८

(किस्त-२)

मुहम्मद के कथन को हदीस कहा जाता है और हदीसें मुस्लिम बच्चों को ग्रेजुएशन कोर्स की तरह पढाई जाती है, कई लोग हदीसी ज़िन्दगी जीने की हर लम्हा कोशिश करते हैं. कई दीवाने अरबी, फारसी लिपि में लिखी इबारत 'मुहम्मद' की तरह ही बैठते हैं. अपने नबी की पैरवी में सऊदी अरब के शेख चार बीवियों की पाबन्दी के तहत पुरानी को तलाक़ देकर नई कम उम्र लाकर बीवियाँ रिन्यू किया करते हैं. हदीसो में एक से एक गलीज़ बातें हैं. उम्मी यानी निरक्षर गँवार विरोधाभास को तो समझते ही नहीं थे. हज़रात की दो हदीसें मुलाहिजा हों.
१- एक शख्स अपनी तहबंद ज़मीन पर लाथेर कर चलता था . अल्लाह तअला ने इसे ज़मीन में धंसा दिया. क़यामत तक ज़मीन में वह यूं ही में धंसता ही रहेगा.
''बुखारी (१४०२)"
२-फ़रमाते हैं एक रोज़ मैं सो रहा था कि मेरे सामने कुछ लोग पेश किए गए जिनमें से कुछ लोग तो सीने तक ही कुरता पहने थे, और बअज़ इस से भी कम. इन्हीं लोगों में मैं ने उमर इब्ने अल्खेताब को देखा जो अपना कुरता ज़मीन पर घसीटते हुए चल रहे थे. लोगों ने इसकी तअबीर जब पूछी तो बतलाया यह कुरताए दीन है.''
(बुखारी २२)
कबीर कहते हैं- - -
साँच बराबर तप नहीं झूट बराबर पाप, 
जाके हृदय सांच है ताके हृदय आप। 
मुहम्मद के कथन में झूट का अंश देखिए - - -
१- उनको कैसे मालूम हुआ कि अल्लाह तअला तहबन्द ज़मीन पर लथेड कर चलने वाले को ज़मीन में मुसलसल धन्सता रहता है?
२-उम्मी सो रहे थे और इनके सामने कुछ लोग पेश किए गए? भला बक़लम खुद का रूतबा तो देखिए. माँ बदौलत नींद के आलम में शहेंशाह हुवा करते थे. जनाब सपनों में पूरा पूरा ड्रामा देखते हैं.३- कुछ लोग सीने तक कुरता पहने थे? गोया फुल आस्तीन ब्लाउज? कुछ इससे भी कम? यानी आस्तीन दार चोली? मगर ऐसे लिबासों को कुरता कहने की क्या ज़रुरत थी आप? झूट इस लिए कि आगे कुरते की सिफ़त जो बयान करना था. ज़मीन पर कुरता गोगर गलीज़ को बुहारता चले तो दीन है. लंबी तुंगी हो तो वह ज़मीन में धंसने का अनोखा अज़ाब .ऐसी हदीसों में अक्सर मुसलमान लिपटे हुए लंबे लंबे कुरते और घुटनों के ऊपर पायजामा पहन कर कार्टून बने देखे जा सकते हैं. 
कुरते और तहबन्द वालों का मुहम्मदी अल्लाह इंसानों की तरह गुफ्तुगू भी करता है - - - 
''जो कि नमाज़ की पाबन्दी करते हैं और हम ने जो कुछ उनको दिया उस में ही खर्च करते है.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (३)

मुहम्मद जंग में लूटे हुए माल का पांचवां हिस्सा अल्लाह के नाम का निकाल के खुद रख लेते और पांचवां हिस्सा अल्लाह के रसूल का लेके खुद रख लेते बाकी ३/५ हजारों लुटेरों में बंटता जोकि बहुत कम होता। बुरा वक्त था भरण-पोषण की मजबूरी के कारन लड़कियां पैदा होते ही दफ़्न करदी जाती थीं. ऐसे में बेकारी की कल्पना की जा सकती है. लूट मार का समय पूरी दुन्या में था मगर लुटेरे डाकू, चोर, बदमाश कहे जाते थे, मुसलमान नहीं. लूट के माल को माल को माले गनीमत का नाम देकर मुहम्मद ने इसे न्याय संगत कर दिया और स्वयंभू अल्लाह बन बैठे, बन्दों को इसमें से जो कुछ वह हाथ उठा कर दे देते, उसी में वह गुज़ारा करे.जिसने नमाज़ की पाबंदी दिलो जन से कर ली वह कुछ और कर भी नहीं सकता, खर्च कहाँ से करेगा? या फिर नमाज़ की आड़ में कुछ गलत कम करे.
''जैसा कि आप के रब ने आप के घर से मसलेहत (भलाई) के तहत बदर (जंगे बदर) के लिए रवाना किया और मुसलामानों की एक जमाअत इसे गराँ समझती थी, वह इस मसलेहत में बअद इसके कि इसका ज़हूर हो गया था, आप से इस तरह झगड़ते रहे थे कि गोया इन को कोई मौत की तरफ हाँके जा रहा हो और वह देख रहे हों ''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (६)
और बनू नुजैर पर, मुसलामानों का (यहूदियों पर) पहला हमला धोका धडी से कामयाब हुआ तफ़सील आगे होगी. दूसरा हमला मक्का के कुरैश्यों पर था. दिग्गज कुरैश सरदार इसमें शामिल थे. कुरैशों में ज़रुरत से ज्यादह आत्म विशवास था और मुसलमानों में अंध विशवास लालच. मुहम्मद ने यकीन दिला दिया था कि ३००० फ़रिश्ते मुसलमानों के साथ जंग में शरीक करने का वादा अल्लाह ने कर लिया है, लालच थी माले गनीमत की. बहर हल मुसलमान जंग जीत गए मगर गनीमत पर रसूल की बद नियाती पर लोग बद गुमान हो गए। जान भी गँवाई और जो बचे उनको कोई खास फायदा भी न हुआ. इस से बेहतर होता कि घर पर ही जो कर रहे थे, करते रहते.. दूसरी जँग जँग-ए-उहद के लिए मुहम्मद एक बार फिर लोगों को ललचा रहे हैं, फुसला रहे हैं, झूट और मक्र का सहारा ले रहे हैं. इस बार ५००० फ़रिशतों के शरीक होने का अल्लाह के वादे का यक़ीन दिला रहे हैं.और दर पर्दा धमका भी रहे हैं - - -
''बिला शुबहा अल्लाह तअला ज़बरदस्त हिकमत वाले हैं''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ पारा आयत (१०)
अफ़सोस कि मुसलमान अल्लाह की इस हिकमत पर आज भी ईमान रखते हैं कि उनके उनके अल्लाह जेहादों में फरिश्तों की मदद भेजता है और अपने पैगम्बर की ऐसी दरोग़ आमोज़ी पर भी.
''जब अल्लाह तुम पर ऊंघ तारी कर रहा था, अपनी तरफ़ से चैन देने के लिए और इस के क़ब्ल आसमान से बारिश बरसा रहा था कि इस के ज़रीए तुम को पाक करदे और तुम को शैतानी वस्वुसे से दफ़ा कर दे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत कर दे और तुम्हारे पाँव जमा दे
.''सूरह -इंफाल ८ नौवाँ परा आयत (११)
अरबी, इस्लामी और क़ुरआन की जुग्राफियाई अलामतें ही हमारी सामाजिक मान्यताओं से भिन्न हैं. ऊँघना अल्लाह की रहमत और चैन है, बरसात की गन्दी छींटों से आप पाक हो जाते हैं, शैतानी बहकावे का इलाज हो जाता है और पाँव जम जाते हैं? खैर अरब में ऐसा होता होगा मगर भारत के मुसलमान इस उलटी धार में क्यूं बह रहे हैं, वाजेह हो सकती है कि अल्लाह जेहाद के लिए बहका रहा है,और वह अंदर ही अंदर तालिबानी हो रहे हों ,

''मैं अभी कुफ्फार के दिलों में रोब डाल देता हूँ सो तुम गर्दनों पर मारो और पूरा पूरा मारो.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ पारा आयत (१२)
कुन फया कून का फार्मूला क्या भूल रहा है ? अल्लाह तअला ! क्या तेरी शान है. मुनकिर नकीर को क्या छुट्टी पर भेज दिया है? बे ईमान मुस्लिम ओलिमा टिकिया चोर नेता ढोल पीटते फिरते है कि क़ुरआन अमन अमान सिखलाता है, इस्लाम शांति और सद भाव का मज़हब है, अक्सरियत उनके हाँ में हाँ मिलाती है क्यूंकि उसके यहाँ खुद रामायण और महा भारत युद्धों से भरी हुई हैं. सच तो यह है की हिदुस्तानी धर्मों और पश्चिम से आए हुए यहूदी, ईसाई और इस्लाम मजहबों का मतलब ही अन्याय और अधर्म है.
''जो अल्लाह और रसूल की मुखालिफत करता है, अल्लाह तअला सख्त सजा देते हैं, सो यह चक्खो. जालिमो के लिए सख्त अजाब है.''
सूरह -इंफाल ८ नौवाँ परा आयत (१३-१४)
किर्दगार ए कायनात, खुदाए बरतर?, दरोग आमेज़ मुहम्मद की दीवानी के कचेहरी में वकील की नौकरी करली है. वह मुहम्मद की हर ऊट पटाँग बातों की पैरवी कर रहा है।



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 16 November 2015

सूरह इंफाल - ८ पहली किस्त

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इंफाल - ८
पहली किस्त 
निंगलो या उगलो

अभी कल की बात है कि रूस में वहां के बशिदे बदलाव चाहते थे, वह अपनी रियासतों को अपना मुल्क बनाना चाहते थे, उन्होंने इसकी आवाज़ बुलंद की. सदर रूस ने उन्हें इस तरह आगाह किया कि अलग होने से पहले एक हज़ार बार सोचो फिर हमें बतलाओ कि क्या इसका नतीजा तुम्हारे हक में होगा? जनता ने एक हज़ार बार सोचने के बाद अपनी मांग दोहराई. बिना किसी खून खराबे के सात आठ राज्यों को रूस ने आजाद कर दिया. 
भारत की तरह रियासतों को अपना अभिन्न नहीं बतलाया.
इसी तरह कैनाडा में फ्रंस्सिसी लाबी ने कैनाडा से बाहर होकर अपना मुल्क चाहते हैं, उनकी आवाज़ पर कैनाडा में तीन बार राय शुमारी हुई मगर बहुत मामूली अंतर से वह तीनो बार हारे. वहां के सभी समाज ने इस पर एक क़तरा भी खून न बहने दिया. राय आमा को सर आँखों पर रख कर अपने अपने कामों पर लग गए.
सदियों पहले गीता में कहा गया है कि परिवर्तन प्रक्रति का नियम है. किसी मुफक्किर की राय है कि हर हिस्सा ए ज़मीन में कोई बादशाहत या कोई निज़ाम पचास साल से ज्यादह नहीं पसंद किया जाता.
फिराक कहता है
निज़ामे दहर बदले, आसमाँ बदले, ज़मीं बदले,
कोई बैठा रहे कब तक हयात-बेअसर लेके.
तुलसी दास जी कहते हैं
रघु कुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई.
भारत ने राष्ट्र मंडल में वचन दिय हुवा है कि कश्मीर में राय शुमारी करा के कश्मीर को कश्मीरियों के हवाले कर देंगे, फिर चाहे वह हिंदुस्तान के साथ रहे, या पाकिस्तान के साथ, अथवा आज़ाद हकर अपना मुल्क बनाएँ.
यह बात किसी फ़र्द का वादा नहीं, बल्कि कौम की कौम को दी हुई ज़बान है जो अलिमी पंचायत में लिखित दी गई है.
आज हिदुस्ताम चरित्र के मामले में दुन्या के आखरी पायदान या उससे कुछ ऊपर है. इसकी वजह यह है कि हम परले दर्जे के बे ईमान लोग हैं.
अब मैं आता हूँ कश्मीर पर कि
ऐ कश्मीरियों तुम्हारे लिए यह हुस्न इत्तेफ़ाक है कि तुम २/३हिदुस्तान के होकर रह रहे हो, तुम हिदुस्तानी होकर एक बड़े मुल्क के बाशिंदे हो, वह भी कश्मीरी होते हुए. हिदुस्तान से अलग होकर क्या रहोगे? नेपाल, भूटान या श्री लंका जैसे छोटे से देश में? गुमनाम होकर रह जाओगे, तुम्हारे हाथ महरूमियों के सिवा कुछ न आएगा. वैसे अलग होकर तुम खाओगे क्या? सेब औए ज़ाफ़रान से अपने पेट भरोगे? क्या तुम मुल्लाओं का शिकार होकर इस्लामी जिहालातों के गोद में जाना चाहते हो ? अलकायदा और तालिबान तुम्हारा शिकार कर लेंगे .
अभी एक बड़े मुल्क के बशिदे होकर तमाम सहूलते तुम्हें मयस्सर हैं खास कर तालीम के मैदान में, इन तमाम मवाके गँवा बैठोगे. वैसे अभी तक तुम कुछ बन नहीं पाए हो. मैं कश्मीर घूमा हूँ कोई किरदार अवाम में नहीं है. पक्के बे इमान, ठग और लड़ाका कौम हो  आजाद होने के बाद भी तुम आपस में लड़ मरोगे. 

अब देखिए कि अल्लाह बने मुहम्मद अपनी झोली भरने के लिए लोगों को कैसे जेहाद के लिए वरगला रहे हैं - -
फ़तह जेहाद में लूटे हुए माल के बटवारे में मुसलामानों में खीचा तानी है. इसे मुहम्मद ने माले गनीमत का नाम दिया है जो मुसलामानों के लिए फतेह का तबर्रुक अर्थात विजय का प्रसाद बन गया है. सारी सृष्टि के व्यवस्था को छोड़ कर ईश्वर इस पिद्दी भर मुआमले को निपटने के लिए फ़रिश्ते जिब्रील को पकड़ता है और बदमाश लुटेर्रों को शान्त करने के लिए मुहम्मद के पास भेजता है. यह फ़तह बदर के बाद के हालात हैं, लूट के माल पर खुद मुहम्मद की नियत खराब हो जाती है। वह अल्लाह और उसके रसूल के नाम पर खुद सारा माल हड़पना चाहते हैं.
''यह लोग आप से गनीमातों का हुक्म दरयाफ्त करते हैं, आप फ़रमा दीजिए कि गनीमतें अल्लाह की हैं और रसूल की हैं. सो तुम अल्लाह से डरो और बाहमी तअल्लुकात की इस्लाह करो. अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो। अगर तुम ईमान वाले हो.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१)
अज़ीम कुरैश सरदार अबू जेहल (जेहालत की औलाद - - ये नाम मुहम्मद का दिया हुवा हैइसको इस्लाम ने इस क़दर दोहराया कि इसका असली नाम ही ना पैद हो गया. ये मुहम्मद के सगे चाचा थे) को दो अंसारी नौ उम्र लड़कों ने मैदाने जंग में एलाने जंग होने से पहले ही उसकी बे खयाली में कत्ल कर दिया। जंग ख़त्म हुई, मुहम्मद को पता चला कि उनका दुश्मन नंबर १ अबू जेहल मारा गया. पास गए, पहचाना, दाढ़ी पकड़ कर ताने तिश्ने दिए, लोगों ने कहा हुज़ूर यह मुर्दा लाश है इसे क्या सुना रहे हैं? जवाब था तुम्हें नहीं मालूम ये खूब सुन रहा है.
एलान हुआ कि इसको किसने मारा, 
दोनों अंसारी लड़के बहादरी और इनाम की लालच लिए हाज़िर हुए, नीयतें दोनों की खराब हो चुई थीं, दोनों दावे दार थे। माले गनीमत झगडे में पड़ गया, दोनों की तलवारें मंगाई गईं, दोनों तलवारों में खून ताज़ा लगा हुवा था। मुआमला यूं तै हुआ कि एक को अबू जेहल का घोडा दे दिया गया दूसरे को घोड़े की काठी. 
बे शक काठी पाने वाले ने मुहम्मद को ज़रूर कोसा होगाकि उसके साथ ना इंसाफी हुई. इस वाकेए के पसे मंज़र में आप माले गनीमत का लुटेरों में बटवारा समझ गए होगे कि जेहादियों को यूं टरकाया और अबू जेहल की तमाम जायदाद अल्लाह और उसके रसूल की हुई. मुहम्मद लूट का सारा का सारा माल घोट जाने के बाद अपने बन्दों को समझाते और फुसलाते हैं असली माल तो क़ुरआनी आयतें हैं, 
सच्चे मुसलमान की दौलत उनका ईमान है - - -
''बस ईमान वाले तो ऐसे होते हैं कि जब अल्लाह तअला का ज़िक्र आता हैतो उनके कुलूब डर जाते हैं और जब अल्लाह की आयतें उनको पढ़ कर सुनाई जाती हैं तो वह उनके ईमान को ज़राज़्यादा कर देती हैं और वह लोग अपने रब पर तवक्कुल करते हैं.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (२)
मुहम्मद इस्लामी ईमान के बे ईमान धागे को अपने उँगलियों में बांध कर समाज के बेवकूफों और मजबूरों को कठ पुतलियों की तरह नचा रहे हैं। वह अपनी क़ुरआनी तुकबंदी को क़ल्बी सुकून के लिए सुनना चाहते हैं न कि जेहनी तश्नगी की खातिर. सब्र और संतोष का पाठ उम्मत को और मालो मता अपने हक में कर के आँख मेंधूल झोंक रहे है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 13 November 2015

Soorh Eraaf 7 Part 5 ( 156-196)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलएराफ़ ७ -
पांचवीं किस्त


चलिए क़ुरआन की अदभुत दुन्या की सैर करें. - - -

'आप कह दीजिए - - - 
लोगो!
मैं तुम सब की तरफ उस अल्लाह का भेजा हुवा हूँ, जिसकी बादशाही है, तमाम आसमानों और ज़मीन पर है - - -
 अल्लाह पर ईमान लाओ और नबी उम्मी पर जो अल्लाह और उसके एह्कम पर ईमान रखते हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५८)
लोगों को अल्लाह का इल्म भली भांत था जिसे वह मानते थे मगर जनाब उसकी तरफ से नकली दूत बन कर सवार हो, वह भी उम्मी. 
तायफ़ के हुक्मरां ने ठीक ही कहा थ कि क्या अल्लाह को मक्का में कोई पढ़ा लिखा ढंग का आदमी नहीं मिला था जिसे अपना रसूल बनाता और रुसवा करके उसके दरबार से निकले. अल्लाह ने तुम्हारी कोई खबर न ली. जाहिलों को लूट मार का सबक सिखला कर कामयाब हुए तो किया हुए.


'' - - - और इन लोगों को जो ज्यादती करते थे एक सख्त अज़ाब में पकड़ लिया, बवाजेह इसके कि वह बे हुकमी किया करते थे, यानी जब उनको जिस काम से मना किया जाता थ तो उस में वह हद से निकल गए तो हम ने उन को कह दिया की तुम बन्दर ज़लील बन जाओ.''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१६६)
ऐ अल्लाह के बन्दों !
ऐ भोले भाले मुसलमानों !
अगर तुम इस पैगम्बरी जेहालत से बागी होकर, इल्म जदीद की तरफ रागिब हो जाओ तो बेहतर होगा कि यह तुम को ज़लील बन्दर बना दे. तुम्हारे लिए दावते फ़िक्र यह है कि समझो, अपने फेल से सिर्फ इंसान ही ज़लील और अज़ीम होता है, बाक़ी तमाम मखलूक अपनी फितरत और अपनी खसलत के एतबार से हुआ करती हुआ करती हैं. इंसान को इंसानियत की राह से हटा कर दुश्मने इंसानियात बनाने वाला खुद ज़लील बंदर हो सकता है.


''और जब आप के रब ने बतला दिया कि वह उन पर क़यामत तक ऐसे शख्स को ज़रूर मुसल्लत करता रहेगा जो उनको सज़ा ए शदीद की तकलीफ पहुंचता रहेगा. बिला शुबहा आप का रब वाकई जल्द ही सज़ा दे देता है और बिला शुबहा वह बड़ी मग़फ़िरत और बड़ी रहमत वाला है.''
सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (१६७)
मुहम्मदी अल्लाह के परदे में खुद अल्लाहहै. वह लोगों को आगाह कर रहे हैं कि इस्लाम कुबूल करो वर्ना मैं तुमको सख्त सजा दूंगा. तलवार के जोर पर पैगम्बर बन जाने के बाद उन्हों ऐसा किया भी.

'' हमने दुनया में इसकी मुतफ़र्रिक जमाअतें कर दीं. बअज़े उनमें नेक और बअज़े और तरह के थे और हम उन को खुश हालियों और बद हालियों से आजमाते रहे कि शायद बअज़ आ जाएँगे. फिर उस के बाद ऐसे लोग उसके जानशीन रहे कि किताब को उन से हासिल किया. इस दुन्याए अदना का माल ओ मता हासिल कर लेते है और कहते हैं हमारी ज़रूर मग्फेरत हो जाएगी, हालांकि उनके पास ऐसा ही माल ओ माता आने लगे तो इस को ले लेते हैं. क्या उन से किताब का अहेद नहीं लिया गया कि अल्लाह की तरफ बजुज़ हक बात के और किसी बात की निस्बत न करें और उन्हों ने इस में जो कुछ था इसे पढ़ लिया और आखीर वाला घर इन लोगों के लिए बेहतर है जो परहेज़ रखते हैं, तो फिर क्या नहीं समझते. और जो लोग किताब के पाबन्द हैं और नमाज़ की पाबन्दी करते हैं, हम ऐसे लोगों का को जो अपनी इस्लाह खुद करें तो सवाब जाया न करेंगे. और जब पहाड़ को उठा कर छत की तरह इन के ऊपर कर दिया और इन को यकीन हो गया की अब उन पर गिरा , कुबूल करो जो किताब हमने उन को दी है और याद रखो जो एहकाम इस में हैं, जिस से तवक्को है कि तुम मुत्तकी बन जाओ,''
सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (१७१-१६८
एक थे हादी बाबा, मैं जब भी क़ुरआन का तर्जुमा पढता हूँ तो ऐसी आयतों पर उनकी तस्वीर मेरे आँखों में तैर जाती है. वह सीधे सादे थे, क़लम किताब से उनको कभी वास्ता न रहा, खेत खलियान और मवेश्यों की देख भाल में उनकी ज़िन्दगी की कायनात महदूद थी. इन में कुछ ज़ेहनी खलल था. रात को हम लोग इनको लेकर कुछ मशगला किया करते, इनके ऊपर बाबा आया करते थे, जैसे कि लोगों पर शैतान, भूत और जिन्नात आते हैं. बस इन्हें पानी पर चढाने भर कि देर होती कि हादी बाबा हो जाते शुरू. उनके मुंह में जो भी आता बकते रहते मगर गाली गलौज नहीं, न ही किसी को बुरा भला. उनकी धारा प्रवाह बक बक उस वक़्त तक ख़त्म न होती जब तक हम लोग उनको वापस पानी से उतार न लेते. इसी तरह पनयाने पर वह लम्बी लम्बी दौड़ भी लगा कर वापस आते. भरम था कि थकते नहीं. इसी भरम ने हादी बाबा की जान ले ली.
क़ुरआन में मुहम्मद की वज्दानी कैफियत में बकी गई बक बक हादी बाबा की बक बक जैसी ही होती है. जिन आयातों को मैं ने हाथ नहीं लगाया वह कुछ ऊपर जैसी ही होंगी. क़ुरआन की यह बक बक सियासत के दांव पेंच में आकर इबादत बन गईं हैं.

''क्या उनके पाँव हैं जिन से वह चलते हैं? या उनकी आँखें हैं जिन से वह देखते है? या उनके कान हैं जन से वह सुनते हों? आप कह दीजिए कि तुम अपने सब शुरका (सम्लितों) को बुला लो फिर मेरी ज़रर रेसनी (नुकसान पहुंचाने) की तदबीर करो, फिर मुझको ज़रा मोहलत मत दो. यकीनन मेरा मदद गार अल्लाह है जिस ने यह किताब नाज़िल फ़रमाई है. वह नेक बन्दों कि मदद करता है.''
सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (195-९६)
यह जुमले मुहम्मद के निजी दावे हैं तो अल्लाह का कलम कैसे हो सकत है? 

खैर अभी तो अरबी बोलने वाले अल्लाह का ही पता नहीं। वैसे मुहम्मद का ये दावा खोखला है। अगर इनकी बातों में दम है तो रातों रात मक्का से मदीना चोरों कि तरह अपने साथी अबू बकर के साथ क्यूं भागे, गारे हरा में दिन भर डर के मारे क्यूं दुबके पड़े रहे? जंगे उहद में सिकश्ते फ़ाश के बाद नाम पुकारने पर पिछली कतार में खामोश बे ईमान फौजी सिपाही बने खड़े रहे. कहीं पर अल्लाह की मदद इनको मयस्सर क्यूं न थी?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 10 November 2015

S00rah eraaf 7 Part4 (८५-१५७)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
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नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह अलएराफ़ ७
चौथी किस्त 

धर्मो की स्थापना बहुधा दो अवस्थाओं में होती है, या तो इसका नियुकता इसकी अलामतों और इसके अंजामों से बे खबर स्वर्ग सिधार जाए, या फिर संसार बाद में उसके महत्त्व को समझ कर उसको यादगार बना सके.
दूसरे वह जो अपनी ज़िन्दगी में ही अपने को पैगम्बर या भगवान आदि स्थापित करने के लिए पापड़ बेलते हैं. इसकी दो मिसालें हैं, गांधी जी, जो कहते थे कि लोग मुझे महात्मा क्यूँ कहते हैं?
दूसरे मुहम्मद जो मुहम्मदुर रसूल अल्लाह ''यानी मुहम्मद अल्लाह के दूत'' हैं, कहलाते थे. मुहम्मदुर रसूल अल्लाह कहला कर ही लोगों को वह मुसलमान बनाते थे. मुहम्मदुर रसूल अल्लाह न कहने वाले पर जज्या का जुर्माना वसूलते थे या फिर उसका सर कलम करते थे.

अब देखिए क़ुरआन में मुहम्मद का गढ़ा हुआ अल्लाह क्या कहता है - - -

''और ज़मीन में बाद इसके कि कुछ दुरुस्ती कर दी गई , फसाद मत फैलाओ. ये तुम्हारे लिए नाफे है.''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (८५)
मज़हबी फसाद फ़ैलाने वाला मुहम्मदी अल्लाह बन्दों से कह रहा है कि फसाद मत फैलाओ, है न . 
"जबरा मारे रोवे न देय."
नवें पारे में अल्लाह शोएब का बाब खोलता है. बागी शोएब को बस्ती वाले अपने आबाई मज़हब पर वापस आने के लिए ज़ोर डालते हैं और शोएब इन लोगों से अल्लाह की पनाह में आने की दावत देते हैं(जैसे मुहम्मद की आप बीती है)
बस्ती के काफिरों के सरदार सरकशी करते हैं तो एक ज़लज़ला आ जाता है और सब अपने अपने घरों में औंधे मुंह गिर पड़ते हैं. पैगम्बर शोएब नाराज़ होकर बस्ती से मुंह मोड़ कर चले जाते हैं कि काफिरों के लिए मैं क्यूं रंज करूं. फिर अल्लाह ने वहां किसी नबी को नहीं भेजा. सब तकज़ीब करने वाले मुहताजी और बदहाली में पड़ गए और ढीले हो गए. मुहम्मद क़ुरान में इस किस्म की कई कहानियां मक्का के कबीलाई सरदारों के लिए गढ़े हुए हैं.

''हाँ! तो क्या अल्लाह की इस पकड़ से बे फ़िक्र हो गए? अल्लाह की पकड़ बजुज़ इसके जिसकी शामत आ गई हो कोई बे फ़िक्र नहीं सकता और इन रहने वालों के बाद ज़मीन पर, बजाए इन के ज़मीन पर रहते हैं, क्या इन को ये बात नहीं बतलाई कि अगर हम चाहते तो इनको इनके जरायम के सबब हलाक कर डालते और हम इन के दिलों पर बंद लगाए हुए हैं, इस से वह सुनते नहीं.''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (८८-१००)
इन १३ आयातों में ऐसी ही बहकी बहकी बातें हैं जिसे मुहम्मद ने न जाने नशे (जब कि शराब हलाल थी) में,वज्द या दीवानगी के आलम में बकी है. हराम जादे ओलिमा ने इनमें ब्रेकेट लगा लगा कर अपने हिसाब से मानी और मतलब भरा है. मुहम्मद ने ऐसे बेवकूफ अल्लाह का खाका पेश कर के उस नामालूम हस्ती कि मिटटी पिलीद की है.
*अल्लाह, फिरौन और मूसा की कहानी एक बार फिर दोहराता है.
( इन्हीं बातों के अलावा कुरआन में कुछ है भी नहीं.)
जो कि किसी तौरेत के जानकार के मशविरे से मुहम्मद ने गढ़ी है. कभी कभी जानकारी देने वाले मुहम्मद को चूतिया बना देते है (और नाज़िल शुदा आयत मौक़ूफ(रद्द ) हो जाया करती है. मुहम्मद अपनी तमाम सीमा पार करते हुए अल्लाह से कलाम कराते हैं कि मूसा और फिरौन के जादू गरों में जब मुकाबला होता है तो फिरौन के हारे हुए जादूगर इस्लाम कुबूल कर लेते हैं.
खुराफाती आयातों में पकड़ने की ज़लील तरीन बात यही है कि फिरौन के दरबार में यहूदी मूसा का मुकाबिला और हज़ारों साल बाद पैदा होने वाले मुहम्मद की दीवानगी की फतह.
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१०२-१५६)
''जो लोग ऐसे रसूल उम्मी की पैरवी करते हैं जिन को कि वह अपने पास तौरेत, इंजील में लिखा पाते हैं कि वह उनको नेक बातों का हुक्म फ़रमाते हैं और बुरी बातों से मना फ़रमाते हैं और पाकीज़ा चीजों को हलाल फ़रमाते हैं और गन्दी चीजों को उन पर हराम फ़रमाते हैं - - - 
सो जो लोग उन पर ईमान लाते हैं और उनकी हिमायत करते हैं और उनकी मदद करते हैं और उस नूर की पैरवी करते हैं जो उनके साथ भेजा गया है, ऐसे लोग पूरी फलाह पाने वाले हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५७)
मुहम्मद खुद बतला रहे हैं कि जो लोग ऐसे अनपढ़ पैगम्बर कि बात मानते है जो बातें बतला न रहा हो बल्कि ''फ़रमा '' रहा हो। जो अपने जैसे अनपढ़ों को समझा रहा है कि उसका ज़िक्र तौरेत आर इंजील में है और उसके ज़ालिम जेहादी तलवार से समझा रहे हों कि पैगाबर सच बोल रहा है और अय्यार ओलिमा क़तार दर क़तार इसकी सदाक़त की तस्दीक कर रहे हों तो आज कौन उसको झुटला सकता है। हालाँकि झूट उनके सामने खुला रखा हुवा है।
कितना बड़ा सानेहा है कि झूट पर ईमान लाया जाए.
*मुहम्मदी अल्लाह नबियों के किस्से कहानियों में फंसे हुए लोगों को बतलाता है कि उसने क़दीम क़बीलों पर कैसे कैसे ज़ुल्म ढाए.
मुहम्मद जैसा ज़ालिम पैगम्बर बना मुखिया अगर नाकाम होता तो बद दुआ देने की धमकी देता. खुद मुहम्मद ने कई बार इसका सहारा लिया.. कहते है - - - 

''शोएब अलैहिस सलाम की उम्मत पर तीन मर्तबा अल्लाह ने कहर ढाया''
गोया मुहम्मद धमकाते हैं सुधर जाओ वर्ना तुम्हारा भी यही हाल होगा। चालाक. मुहम्मद ने जिस तरह खुद को अल्लाह का रसूल बना लिया था उसी तरह पहले अपने क़बीले को अपनी उम्मत बनाया और कामयाब होने के बाद पूरे अरब को अपनी उम्मत बना लिया. उनके बाद माले गनीमत के घिनाओने हरबे से दुन्या के तमाम आबादी का एक हिस्सा उम्मते मोहम्मदी बन गई जो झूटे पैगम्बर के झूट के चलते आज रुस्वाए ज़माना है.
*सूरह बहुत देर तक मुहम्मद साख्ता पैगम्बर शोएब के कन्धों पर चलती है. जिसमें न तो उनकी जीवनी है न ही उनकी जीवन की कोई घटना. बस मुहम्मद ने जिस किसी का नाम समाजी पसे मंज़र में सुन रखा था, उसको लेकर कहानी गढ़ दी. उनकी तवारीख जानना हो तो अंग्रेजी हिस्टिरी को खंगालना पड़ेगा. मगर मुसलामानों को तो क़ुरानी तवारीख ही काफी है जिसकी गवाही अल्लाह दे रहा है.तमाम क़ुरआन की कहानियां, वाकेआत, मुअज्ज़े मुहम्मद की वक्फा ए पयंबरी की कोशिशों के हिसाब से गढ़े हुए हैं. खुद क़ुरआन हदीस, तारीख ए इस्लाम को गहराई से मुतलेआ किया जाए तो यह नतीजा सामने आ जाता है.
आखीर में मूसा के मार्फ़त क़ुरआन चलता है. मुहम्मद पर लगा इलज़ाम बतलाता है कि मुहम्मद के पास कोई यहूदी मुखबिर था जो यहूदयत और मूसा की टूटी फूटी मालूमात उन्हें देता था वह जगह जगह क़ुरआन में इसे जड़ देते थे और अल्लाह को इसका गवाह अना देते.
* मेरी तहरीर में तौरेत और यहूदयत का बार बार हवाला शायद कुछ लोगों को खटक रहा हो, मालूम होना चाहिए कि अगर क़ुरआन से इसे ख़ारिज कर दिया जाए तो क़ुरआन की बुन्याद खिसक जाए. क़ुरआन खुद तस्लीम करता है, इस्लाम को दीन ए इब्राहिमी कह के, जब कि अब्राहम ही यहूदयों के आबा ओ अजदाद की पहली कड़ी हैं. यहूदी इस्माइलियों को (जिस में मुहम्मद हैं) इस लिए अपने से कम तर मानते हैं कि वह अब्राहम की मिसरी लौंडी हाजरा की औलाद हैं, जिसे सारा के कहने पर अपनी रखैल तो बना लिया था मगर बाद में बीवी सारा के कहने ही उसे पर घर से निकल दिया था.यह दुन्या के तमाम मुसलमानों के साथ गायबाना सानेहा है कि इन की जड़ें जुगराफियाई एतबार से अपने ही चमनों से कटी हुई हैं. वह न इधर के रहे न उधर के. मियाम्नार ने जो की बुद्धिष्ट हैं, अपने यहाँ से मुसलामानों को निकाल बाहर किया है क्यूँ कि वह बर्मी होते हुए भी कौमी धारे में शामिल न रह कर अलग थलग कनारे गढ़े में रुके हुए पानी की तरह थे जो कि तअफ्फुन पैदा कर रहे थे. तरक्की पज़ीर बर्मियों में धर्म दाल में नमक की तरह बचा है और मुसलामानों में इस्लाम दाल की जगह नमक की तरह है, वह कहीं भी क्यों न हों.वह पहले मुसलमान होते हैं उसके बाद बर्मी, हिदुस्तानी या चीनी. यही वजह है कि इन को हर गैर मुस्लिम मुल्क में शक की निगाह से देखा जाता है जो हक बजानिब है. 




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 6 November 2015

Soorah Eraf 7 Part 3 (41-81)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलएराफ़ ७
तीसरी किस्त



इबादत के लिए रुक़ूअ सुजूद , अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती,
गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा.
वह तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो,
आने वाले बन्दों के लिए,
यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए.
इनसे नफरत करना गुनाह है,
इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.क़ुरआनी अल्लाह है या कि बद तरीन बन्दा, देखिए कि क्या कहता है - - - 

''और इन के लिए दोज़ख का बिछौना होगा और उसके ऊपर ओढना होगा और हम ऐसे जालिमों को ऐसी सज़ा देते हैं." 
सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (४१)
वाह अल्लाह मियाँ ! ज़ुल्म खुद करते हो और मजलूम को ज़ालिम कहते हो?

''सब दीनी कामों में मसरूफ है, अल्लाह भारी भारी बादलों को हवाओं के हवाले करता है जो इन्हीं लुड्खाती हुई खुश्क बस्तियों तक ले जाती हैं''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (४२)
हवाओं और बादलों का दीनी काम मुलाहिजा हो.
जब यही हवाएं और बादल तूफ़ान और तबाही की शक्ल अख्तियार कर लेते है तो इन को कैसा काम कहा जाए? 
मुहम्मद फितरत के राज़ से गाफ़िल और हवा में तीर चलाने में माहिर, मोलवियों को निशाना दिया है कि नादान मुसलामानों का शिकार करो.
* मुहम्मदी अल्लाह अपने लाल बुझक्कड़ी दिमाग की परवाज़ भरते हुए औलादे नूह, आद, हूद, सालेह वागैरा की इबरत नाक कहानी छेड़ देता हैजो कि पैगम्बर के हक में हो और साथ साथ इस किस्म की बातें - - -
''गरज कि उन्हों ने उस ऊट्नी को मार डाला और अपने परवर दिगार के हुक्म से सरकशी की और कहने लगे कि
ऐ सालेह ! जैसा कि आप हम को धमकी देते थे इसको मंगवाएं अगर पैगम्बर हों. पस आ पकड़ा इनको ज़लज़ले ने, 
सो अपने घरों में औंधे के औंधे पड़े रह गए. उस वक़्त वह उन से मुंह मोड़ कर चले कि ऐ मेरी कौम !
मैं ने तो तुम को अपने परवर दिगार का हुक्म पहुँचा दिया था.''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (८८-८९)
गौर तलब है कि कैसा चरवाहा नुमा अल्लाह रहा होगा जिसने किसी ऊंटनी को आवारह बना कर छोड़ दिया होगा और इंसानों को इसे पकड़ने से मना कर दिया होगा. मगर उस ज़माने के गिद्ध नुमा इंसानों ने उसे दबोच कर खा लिया होगा. 
इस किस्से के पसे मंज़र में कोई पौराणिक कथा या वाकआ होग़ जो मुहम्मद के कानों में पड़ा होगा और वह कुरआनी आयत बन गया.
कुरआन ऐ हकीम यानी हिकमत वाला कुरआन. 
मुसलमान आँख खोल कर अल्लाह की हिकमत को देखें.अल्लाह की छोड़ी हुई ऊंटनी को कौम के सरकश लोग मार डालते हैं और मुन्ताकिम मुहम्मदी अल्लाह खित्ते में ज़लज़ला बरपा कर देता है जिसके अज़ाब से सारी कौम तबाह हो जाती है 
जिसमें साहिबे ईमान भी होते है और बे इमान भी.
मुहम्मद की कुरआनी चूल कहीं से भी तो फिट बैठे.
''और हम ने लूत को भेजा जब उन्हों ने अपने कौम से फरमाया क्या तुम ऐसा फहश काम करते हो कि जिसको तुम से पहले किसी ने दुन्या जहान वालों ने न किया हो? तुम मर्दों के साथ शहवत रानी करते हो, औरतों को छोड़ कर, बल्कि तुम हद से ही गुज़र गए हो''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (८१)
बाबा इब्राहिम के भतीजे लूत (लोट) के इतिहास में मुहम्मद को सिर्फ यही गलत वाकेआ मालूम है जब कि इंजील कहती है कि लूत एक ऐसी बस्ती में रात भर के लिए मेहमान हुए थे जहां लोग समलैंगिक थे और लूत को भी शिकार बनाने के लिए बज़िद थे. मुहम्मद ने चरवाहे की उम्मत भी गढ़ दी और उम्मत को समलैंगिक करार दे दिया.
मुसलामानों! इस तरह से तारीखी वाकेआत को एक अनपढ़ ने तोड़ मरोड़ कर अपनी पैगम्बरी के लिए कुरआन को गढ़ा है।




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 2 November 2015

Soorah eraaf 7 Part 2 ( २०-४० )

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलएराफ़ ७
दूसरी किस्त 

मैं एक नास्तिक हूँ . दर असल नास्तिकता संसार का सब से बड़ा धर्म होता है और धर्म की बात ये है कि यह बहुत ही कठोर होता है, 
क्यूंकि यह उरियाँ सदाक़त अर्थात नग्न सत्य होता है.

आम तौर पर नग्नता सब को बुरी लगती है मगर परिधान बहर हाल दिखावा है, असत्य है. अगर परिधान सर्दी गर्मी से बचने के लिए हो तो ठीक है अन्यथा झूट को छुपाने के सिवा कुछ भी नहीं.. 
श्रृंगार कुछ भी हो बहर हाल वास्तविकता की पर्दा पोशी मात्र है. 
शरीर की हद तक - - इसके विरोध में आपत्तियाँ गवारा हैं 
मगर विचारों का श्रृगार बहर सूरत अधर्म है।
यह तथा कथित धर्म एवं मज़हब विचारों की सच्ची उड़ान में टोटका के रूप में बाधा बन जाते हैं और मानव को मानवीय मंजिल तक पहुँचने ही नहीं देते,
कुरआन इस वैचारिक परवाज़ को शैतानी वुस्वुसा कहता है। 
अगर मुहम्मद के गढे अल्लाह पर विचार उसकी कारगुजारी के बाबत की जाए तो उस वक़्त यह बात पाप हो जाती है, 
इस स्टेज तक विचार के परवाज़ को शैतान का अमल गुमराह करना और गुमराह होना बतलाया जाता है और इस के बाद पराश्चित करनी पड़ती है. 
इसके लिए किसी मोलवी, मुल्ला के पास जाना पड़ता है जिनके हाथों में मुसलामानों की लगाम है. 
जहाँ विचार की सीमा को लांघने पर ही पाबंदी हो वहां किसी विषय में शिखर छूना संभव ही नहीं. परिणाम स्वरूप कोई मुसलमान आज तक डेढ़ हज़ार साल होने को है, किसी नए ईजाद का आविष्कार नहीं किया.
ईमान दार बुद्धिजीवी तक नहीं हो पाते। जब आप अपने लिए या अपने परिवार, अपने वर्ग, अपने कौम या यहाँ तक कि अपने देश के लिए ही क्यों न हो असत्य को श्रृंगारित करते हैं, 
तो ये पाप जैसा है.
मैं इस्लाम की ज़्यादः हिस्सा बातों का विरोध करता हूँ, इसका मतलब यह नहीं कि बाक़ी धर्मों में बुराइयाँ नहीं. एक हिदू मित्र की बात मुझे साल गई कि
'' आप मुसलामानों के लिए जो कर रहे हैं, सराहनीय है परन्तु अपने सीमा में ही रहें , हमारे यहाँ समाज सुधारक बहुतेरे हो चुके है.''
ठीक ही कहा उन्हों ने. वह हिन्दू है, अगर जबरन मुझे भी मुसलमान समझें तो आश्चर्य की बात नहीं क्यूंकि वह सिर्फ हिन्दू हैं. 
मैं सीमित हो गया क्यूंकि मुसलमानों में पैदा होना मेरी बे बसी थी, एक तरह से अच्छा ही हुआ कि मुसलामानों की अनचाही सेवा कर रहा हूँ। वह कुछ फ़ायदा उठा सके तो हमारे दूसरे मानव भाई भी लाभान्वित होंगे.
आइए चलें कुरआनी आयतों में जो मानव जाति के लिए अभिशोप बनी हुई हैं - - - 

अल्लाह बार बार आदम की औलादों को तालीम देता है कि- - - 
हमने तुम्हारे लिए ज़मीन पर तन ढकने के लिए लिबास पैदा किया, शैतान के बहकाने में कभी मत आना जिसने तुम्हारे दादी दादा को बहका कर उरियाँ कर दिया था। उस वक़्त के आदम के नाती पोतों को मुहम्मद अपनी रिसालत पर ईमान लाने का प्रचार करते हैं जब न करघा न रूई सिवाए जन्नत के पत्तों के। 
कहते हैं कि
''ऐ आदम की औलादों! तुम मस्जिद की हर हाज़री के वक़्त अपना लिबास पहेन कर जाया करो'' 

क्या ज़मीन पर आते ही आदम की औलादों ने कपडा बुनना, सीना पिरोना शुरू कर दिया था.
फरमाते हैं - - -
'' ऐ औलादे आदम ! अगर तुम्हारे पास पैगम्बर आवें जो तुम में से ही होंगे, जो मेरे ही एह्काम तुम से बयान करेंगे, सो जो शख्स परहेज़ और दोस्ती करे सो इन लोगों पर कुछ अंदेशा नहीं. हम इसी तरह तमाम आयात को समझदारों के लिए साफ़ साफ़ बयान करते हैं.''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (२५-३९)
सो मुहम्मद आदम के औलादों के अव्वलीन मोलवी बन्ने में कोई शरम महसूस नहीं करते, न ही मुसलामानों को घास चराने में. वह आदम की औलाद हबील काबील को समझाते हैं कि हमारी इन मकर आलूद आयातों को झुटलाओगे तो जहन्नम रसीदा हो जाओगे. 
बच्चों का अंध विशवास जवान होते होते टूट जाता है मगर जवान जब आस्था का घुट पी लेता है तो उसका अंध विशवास तभी टूटता है जब सदाक़त मौत बन कर सामने कड़ी होती है.
''अल्लाह की आयातों को झुटलाने वाले लोग कभी भी जन्नत में न जावेंगे जब तक कि ऊँट सूई के नाके से न निकल जाए.''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (४०)
''ऊँट सूई के नाके से निकल सकता है मगर दौलत मंद जन्नत में कभी दाखिल नहीं हो सकता''
ईसा की नकल में मुहम्मद की कितनी फूहड़ मिसाल है जहाँ अक्ल का कोई नामो निशान नहीं है. शर्म तुम को मगर नहीं आती. 
मुसलमानों तुम ही अपने अन्दर थोड़ी गैरत लाओ.ईसा कहता है - - -
''ऐ अंधे दीनी रहनुमाओं! तुम ढोंगी हो, मच्छर को तो छान कर पीते हो और ऊँट को निगल जाते हो.'' 
मुवाज़ना करें मुस्लिम अपने कठमुल्ल्ले सललललाहो अलैहे वसल्लम को शराब में तुन रहने वाले ईसा से. 
तौरेत की भोंडी पैरवी करते हुए मुहम्मदी अल्लाह बतलाता है कि उसने दुन्या छ दिन में बनाई और सातवें रोज़ आसमान पर जा बैठा. दूसरी तरफ वह कहता है कि वह बड़े से बड़े काम के लिए 'कुन' भर कहता है और काम हो जाता है, छ दिन दुन्या में झक मरने की क्या ज़रुरत थी या तो यह 'कुन फयकून' मुहम्मद की गढ़ंत. है ये अकली तज़ाद है.

''अल्लाह ने फरमाया यहाँ से ज़लील ख्वार हो कर निकल. जो इन में से तेरा कहना मानेगा, मैं ज़रूर तुम सब को जहन्नम में भर दूंगा और 
ऐ आदम ! तुम और तुम्हारी बीवी जन्नत में रहो, फिर जिस जगह से चाहो दोनों आदमी खाओ और उस दरख्त के पास मत जाओ कभी कि उन लोगों में शुमार हो जाओगे कि जिंससे ना मुनासिब काम हो जाया करता है."
सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (१८-१९)
सृष्ट का रचैता अपने बनाए पहले आदमी से इस तरह बातें करता है, जब तक यह बाते यकीन और इबादत बनी रहेगी आदमी आदमी ही रहेगा, इंसान कभी नहीं बन सकता. 
यहूदी और ईसाई की अक्सरियत जाग चुकी है जो कि मुसलमान जैसी ही थी मगर मुसलमान इन बातों की अफीम पिए अभी भी ख़्वाबों कि जन्नत में सो रहा है जिसे कि मुहम्मद ने कस के घोट रखा है.

''फिर शैतान ने उन दोनों के दिलों में वुस्वुसा डाल दिया ताकि परदे का बदन जो एक दूसरे से पोशीदा था, दोनों के रूबरू बे पर्दा कर दे और कहने लगा तुम्हारे रब ने तुम दोनों को इस दरख़्त से और किसी सबब से मना नहीं फ़रमाया, मगर महेज़ इस वजेह से कि तुम दोनों कहीं फ़रिश्ते न हो जाओ या कहीं हमेशा जिंदा रहने वालों में न हो जाओ और इन दोनों के रूबरू क़सम खाई कि यकीन जानिए कि मैं आप दोनों का खैर ख्वाह हूँ. सो इन दोनों को फ़रेब के नीचे ले आया. पस जब इन दोनों ने दरख़्त को चखा तो दोनों का परदे का बदन एकदूसरे के सामने बे पर्दा हो गए, दोनों अपने ऊपर जन्नत के पत्ते जोड़ जोड़ कर रखने लगे और इनके रब ने इन को पुकारा ; - क्या तुम दोनों को इस दरख़्त से मुमानेअत न थी.' ' - - - हक ताला ने फ़रमाया नीचे इसी हालत में उतर जाओ कि तुम बाहम बअज़े दूसरे बाहम बअजों के दुश्मन रहोगेऔर तुम्हारे वास्ते वहां ज़मीन में रहने की जगह है और नफ़ा हासिल करना एक वक्त तक - - -''
सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (२०-२४) 

मुहम्मद ज़ेहनी मेयार मुलाहिजा हो. पढ़ें समझें और अपना सर पीटें.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान