Monday 29 February 2016

SOORAH bANI iSRAEEL 17 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह बनी इस्राईल -१७
(दूसरी किस्त)
नाम से लगता है कि इस सूरह में बनी इस्राईल यानी याक़ूब की बारह औलादों की दास्तान होंगी मगर ऐसा कुछ भी नहीं, वही लोगों से जोड़ तोड़, अल्लाह की क़यामती धमकियाँ ही हैं. गीता की तरह अगर हम कुरआन सार निकलना चाहें तो वो ऐसे होगा - - -
'' अवाम को क़यामत आने के यक़ीन में लाकर, दोज़ख का खौफ़ और जम्मत की लालच पैदा करना, फिर उसके बाद मन मानी तौर पर उनको हाँकना''
क़यामत के उन्वान को लेकर मुहम्मद जितना बोले हैं उतना दुन्या में शायद कोई किसी उन्वान पर बोला हो. इस्लाम को अपना लेने के बाद मुसलमानों मे एक वाहियात इनफ्रादियत आ गई है कि मुहम्मद की इस 'बड़ बड़' को ज़ुबानी रट लेने की, जिसे हफ़िज़ा कहा जाता है. 
लाखों ज़िंदगियाँ इस ग़ैर तामीरी काम में लग कर अपनी फ़ितरी ज़िन्दगी से ना आशना और महरूम रह जाती हैं और दुन्या के लिए कोई रचनात्मक काम नहीं कर पातीं. अरब इस हाफ़िज़े के बेसूद काम को लगभग भूल चुके हैं और तमाम हिंदो-पाक के मुसलमानों में रायज, यह रवायती खुराफात अभी बाक़ी है. वह मुहम्मद को सिर्फ इतना मानते हैं कि उन्हों ने कुफ्र और शिर्क को ख़त्म करके वहदानियत (एक ईश्वर वाद ) का पैगाम दिया. मुहम्मद वहाँ आक़ाए दो जहाँ नहीं हैं. यहाँ के मुस्लमान उनको गुमराह और वहाबी कहते हैं.
तुर्की में इन्केलाब आया, कमाल पाशा ने तमाम कट्टर पंथियों के मुँह में लगाम और नाक में नकेल डाल दीं, जिन्हों ने दीन के हक़ में अपनी जानें कुरबान करना चाहा उनको लुक्माए अजल हो जाने दिया, नतीजतन आज योरोप में अकेला मुस्लिम मुल्क तुर्की है जो योरोप के शाने बशाने चल रहा है. कमाल पाशा ने बड़ा काम ये किया की इस्लाम को अरबी जुबान से निकल कर टर्किश में कर दिया जिसके बेहतरीन नतायज निकले, कसौटी पर चढ़ गया कुरआन. कोई टर्किश हाफ़िज़ ढूंढें से नहीं मिलेगा टर्की में. काश अपने मुल्क भारत में ऐसा हो सके, कौम का आधा इलाज यूँ ही हो जाए.
हमारे मुल्क का बड़ा सानेहा ये मज़हब और धर्म है, इसमें मुदाखलत न हिदू भेड़ें चाहेगी और न इस्लामी भेड़ें, इनके कसाई इनके नजात दिहन्दा बन कर इनको ज़िबह करते रहेंग. हमारे हुक्मरान अवाम की नहीं अवाम की 'ज़ेहनी पस्ती' की हिफ़ाज़त करते हैं. 
मुसलमान को कट्टर मुसलमान और हिन्दू को कट्टर हिन्दू बना कर इनसे इंसानियत का जनाज़ा ढुलवाते हैं.
चलिए देखें कि अल्लाह तअला क्या फरमाता है - - -
''जिस शख्स को अल्लाह तअला ने हराम फ़रमाया है उसको क़त्ल मत करो, हाँ मगर हक़ पर और जो शख्स न हक़ क़त्ल किया जावे तो हम ने इस के वारिस को अख्त्यार दिया है सो इस के क़त्ल के बारे में हद से तजावुज़ न करना चाहिए वह शख्स तरफ़दारी के काबिल है.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (३३)
मुहम्मद ने कुरआन नाजिल करते वक़्त ख्वाबों-ख़याल में ना सोचा होगा कि इंसानी इल्म और अक्ल इर्तेकई मंजिलें तय करती हुई इक्कीसवीं सदी में पहुँच जाएंगी. वह खुद से हजारों साल पहले इब्राहीमी दौर में अपनी उम्मत को ले जाना चाहते थे। पूरे कुरआन में तौरेती निज़ाम की तरह अपनी अलग ही लगाम बनाई. वह भी गैर वाज़ेह. जान के बदले जान पर बना क़ानून है. 
कलाम इलाही से कोई बात साफ नहीं होती जिसे मौलानाओं ने उनके फ़ेवर में कर दिया है. साफ कलाम करने में अल्लाह की क्या मजबूरी हो सकती थी, मगर हाँ उम्मी मुहम्मद की मजबूरी ज़रूर थी। सितम ये कि मुसलमान इसे उनकी ज़ुबान नहीं मानते हैं बल्कि समझते हैं कि अल्लाह ऐसी ही ना समझ में आने वाली भाषा बोलता रहा होगा. 
फ़ख्रिया कहते हैं अल्लाह का कलाम समझ पाना बच्चों का खेल नहीं।
"यतीम के मॉल को मत खाओ, अपने अहद पूरा करो. पूरा पूरा नापो तौलो. ज़मीन पर इतराते हुए मत चल क्यूँकि तू न ज़मीन फाड़ सकता है और न पहाड़ों की लम्बाई को पहुँच सकता है. ये सब काम तेरे रब के नजदीक ना पसंद हैं. यह बातें हिकमत की हैं जो अल्लाह तअला ने वहियों के ज़रीया आप को भेजा है. तो क्या तुम्हारे रब ने तुम को तो बेटों के साथ ख़ास किया है और खुद फ़रिश्तों को बेटियाँ बनाई. बेशक तुम बड़ी बात कहते हो. आप फरमा दीजिए कि अगर उस के साथ और माबूद भी होते, जैसा कि ये लोग कहते हैं, तो इस हालत में उन्हों ने अर्श वाले तक का रास्ता ढूँढ लिया होता - - -
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (३४-४२)
मुहम्मद जिन छोटी छोटी बातों को अल्लाह से कहलाते हैं, पढने वाला समझेगा कि उस वक़्त अरब को इन की तमाज़त ना रही होगी मगर हो सकता है अनपढ़ पैग़म्बर के लिए यह बाते नई रही हों. आज इन्सान कुरआन की बातों के बदले में ज़मीन फाड़ भी रहा है और पहाड़ों की बुलंदियाँ भी उबूर कर रहा है. अगर यह बात आज मुसलमानों के समझ में आती है तो कुरआन की हकीकत क्यूँ नहीं? कोई माबूद तो नहीं, मगर हाँ इन्सान ने अर्श पर सीढ़ियाँ लगा दी हैं, अल्लाह वह क़ुदरत के अनोखे निज़ाम की शक्ल में पा भी रहा है।
''और जब आप कुरआन पढ़ते हैं तो हम आप के और जो ईमान नहीं रखते उनके दरमियान एक पर्दा हायल कर देते हैं और हम उनके दिलों पर हिजाब डाल देते हैं, इस लिए कि वह इसको समझें और उनके कानों में डाट दे देते हैं. जब आप कुरआन में अपने रब का ज़िक्र करते हैं तो लोग नफ़रत करते हुए पुश्त फेरकर चल देते हैं,''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (46)
धन्य हैं वह लोग जो ऐसी कुरआन को नाचीज़ समझते थे और अफ़सोस होता है आज के लोग उसी इबारत की इबादत बना कर दिलो-दिमाग में बसाते हैं. जंगों की मार , माले-ग़नीमत की लूट और बेज़मीर ओलिमा की क़ल्मों की नापाक बरकत है जो मुसलमानों पर आज अज़ाब की शक्ल में तारी है। देखिए कि मुहम्मद का खुदाए बरतर कितने कमतर काम करता है, कहीं इंसानों के कानों में डाट ठोकता है तो कभी उनके आँखों के सामने पर्दा हायल करता है. क्या आपको अपने समझदार बुजुर्गों की तरह ही इन बातों से नफ़रत नहीं होती?
''और कुफ्फर की कोई ऐसी बस्ती नहीं कि जिसको हम क़यामत से पहले हलाक ना करदें.या इसको अज़ाब सख्त ना देदें, ये किताब में लखी हुई है. और हमको खास मुअज्ज़ात के भेजने से मना किया गया है कि पहले लोग इस का मजाक उड़ा चुके हैं''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (५७-५९)
मिट तो सभी जाएँगे, क्या काफ़िर क्या मुस्लिम मगर ऐ नआकबत अंदेश (अपरिणामदर्शी) मुहम्मदी अल्लाह ! तेरी इस कुरआन की वजेह से मुसलमान ज़वाल बहुत पहले होगा और काफ़िरों का वजूद बाद में. तेरा मज़ाक पहले भी उड़ा करता था और आज तो पूरी दुन्या में उड़ रहा है। तूने मुसलमानों को जेहाद की तालीम देकर वह जुर्म किया है कि आने वाले दिनों में कोई तेरा नाम लेवा नहीं रह जाएगा. काश कि इन मुसलमानों की आँखें इस से खुल जाएँ कि वह तर्क इस्लाम करके सिर्फ मोमिन हो जाएँ, जिसकी ज़रुरत और लोगों को भी है। मोमिन यानी फितरी ईमान वाले.
जिन आयात को मैं अपनी तहरीर में नहीं लेता हूँ वह ऐसी होती हैं कि मुहम्मद उसमे अपनी बात को दोहराते रहते हैं। अक्सर अल्लाह अपनी तारीफें और हिकमत दोहराता रहता है। शैतान और आदम की कहानी रूप बदल बदल कर बार बार आती ही रहती है। अल्लाह कहता है - - -
''अल्लाह अपने इल्म से तमाम लोगों को घेरे हुए है. हम ने जो तमाशा आप को दिखलाया था''
गोया अल्लाह को और कोई काम नहीं है इंसानों की घेरा बंदी के सिवा. यह तमाशे मुहम्मद के गढ़े हुए किस्से-मेराज की तरफ है.
''जिस पेड़ की कुरआन में मज़म्मत की गई है. हम तो इनको डराते रहते हैं मगर इनकी सरकशी बढती ही जाती है.''
अल्लाह अजब है अपने बनाए हुए दरख्त की मज़म्मत करता है. उसने बन्दों को क्यूं निडर बनाया कि समझदार है कि बात की माकूलियत को समझता है , उसको डरना नहीं पड़ रहा है. इन्सान उसका बन्दा होते हुए भी उसके साथ सर कशी करता है?
''तुम्हारा रब ऐसा है जो तुम्हारे लिए कश्ती को दरया में ले जाता है कि तुम उस में अपनी खूराक तलाश करो, फिर जब तुमको दरया में कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो सिवाए उसके कोई दूसरा याद नहीं आता कि तुम जिनकी इबादत करते थे। फिर जब खुश्की में आते हो तो उसको भूल जाते हो, डरते नहीं कि वह तुम को ज़मीन में धँसा दे या फिर तेज़ हवा कंकर पत्थर बरसाने लगे. डरते नहीं कि फिर तुम को दरया में ले जाए और कोई तूफ़ान आए और तुम्हारे कुफ़्र के चलते तुम को डुबो दे.''
यह है कुरआन की बेसनद नहीं बल्कि बेसबब बातें जिनको एक झक्की बका करता था कि क़लम की ताक़त से यह आयाते-कुरानी बन गई हैं. वाकई काबिले नफ़रत हैं कुरआन की बातें अह्ल्र मक्का ठीक ही कहते थे.
एक बार फिर क़यामत का खाका पेश करते हुए अल्लाह आमल नामा को उठाता है.
अल्लाह अपने रसूल से कहता है - - -
''अगर हमने आप को साबित क़दम न बनाया होता तो आप उनकी तरफ़ कुछ कुछ झुकने के क़रीब जा पहुचते तो हम आप को हालते-हयात में या बअद मौत दोहरा मज़ा चखाते फिर आपको हमारे मुकाबले में कोई मददगार भी मिलता - - -''
मुहम्मद का जेहनी मकर उलटी चाल भी चलता है. लोगों को डराते डराते खुद भी बड़ी नादानी से अल्लाह का शिकार होने से बच गए.
'' रात ढलने के बाद रात के अँधेरे तक नमाज़ अदा कीजिए , सुब्ह की नमाज़ भी कि फरिश्तों के आने वक़्त होता है और रात के हिस्से में भी तहज्जुद अदा कीजिए, उम्मीद है आपका रब आप को मुकाम ऐ महमूद (आलिमों का गढ़ा हुवा ''तफसीरी चूँ चूँ का मुरब्बा'' के तहत कोई मुकाम) में जगह देगा .''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (६०-८२)
अपने नबी को देखें कि नमाज़ों की भरमार से सराबोर हो रहे है ताकि लोग उनकी पैरवी करें। मुस्लमान इसी इबादत में रह गए मस्जिदों के घेरे में, ईसाई, यहूदी भी इन्ही बंधनों में थे कि बंधन तोड़ कर खलाओं में तैर रहे हैं, मुसलमान उनकी टेकनिक के मोहताज बन कर रह गए हैं। मुहम्मद ने इनके सरों में उस दुन्या का तसव्वुर जो भर दिया है.
मेरे भोले भले मुसलमान भाइयो ! जागो ! इक्कीसवीं सदी की सुब्ह हुए सोलह साल होने को हैं, यह ज़ालिम टोपी और दाढ़ी वाले मुल्ला तुम को इस्लामी अफ़ीम खिला कर सुलाए हुए हैं. सब कुछ यहीं मौजूद ज़िन्दगी में हैं, इसके बाद कुछ भी नहीं है, तुम्हारे बाद रह जाएगी तुम्हारी विरासत, कि अपने नस्लों को क्या दिया है. कम से कम उनको इल्म जदीद तो दो ही, कि तुमको याद करें। इल्म जदीद पा जाने के बाद तो यह सब कुछ हासिल कर लेंगे। मगर हाँ! इन्हें इन ज़हरीले ओलिमा से बचाओ.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 26 February 2016

Soorah bani israeel 17 Qist 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन सूरह बनी इस्राईल -१७
पहली किस्त 


मुहम्मदुर रसूलिल्लाह
(मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं)
मुहम्मद की फितरत का अंदाज़ा क़ुरआनी आयतें निचोड़ कर निकाला जा सकता है कि वह किस कद्र ज़ालिम ही नहीं कितने मूज़ी तअबा शख्स थे। क़ुरआनी आयतें जो खुद मुहम्मद ने वास्ते तिलावत बिल ख़ुसूस महफूज़ कर दीं, इस एलान के साथ कि ये बरकत का सबब होंगी न कि इसे समझा समझा जाए. अगर कोई समझने की कोशिश भी करता है तो उनका अल्लाह उस पर एतराज़ करता है कि 
ऐसी आयतें मुशतबह मुराद (संदिग्ध) हैं जिनका सही मतलब अल्लाह ही जानता है.
 इसके बाद जो अदना(सरल) आयतें हैं और साफ़ साफ़ हैं वह अल्लाह के किरदार को बहुत ही ज़ालिम, जाबिर, बे रहम, मुन्तकिम और चालबाज़ साबित करती है बल्कि अल्लाह इन अलामतों का खुद एलान करता है कि अगर
 ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' (मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं) 
को मानने वाले न हुए तो?
अल्लाह इतना ज़ालिम और इतना क्रूर है कि इंसानी खालें जला जला कर उनको नई करता रहेगा , इंसान चीखता चिल्लाता रहेगा और तड़पता रहेगा मगर उसको मुआफ़ करने का उसके यहाँ कोई जवाज़ नहीं है, कोई कांसेप्ट नहीं है. मज़े की बात ये कि दोबारा उसे मौत भी नहीं है कि मरने के बाद नजात कि सूरत हो सके, 
उफ़! इतना ज़ालिम है मुहमदी अल्लाह? सिर्फ़ इस ज़रा सी बात पर कि उसने इस ज़िन्दगी में ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' क्यूं नहीं कहा. 
हज़ार नेकियाँ करे इन्सान, कुरआन गवाह है कि सब हवा में ख़ाक की तरह उड़ जाएँगी अगर ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' नहीं कहा क्यों कि हर अमल से पहले ईमान शर्त है और ईमान है ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' . 
इस कुरआन का खालिक़ कौन है जिसको मुसलमान सरों पर रखते हैं ? मुसलमान अपनी नादानी और नादारी में यकीन करता है कि उसका अल्लाह . वह जिस दिन बेदार होकर कुरआन को खुद पढ़ेगा तब समझेगा कि इसका खालिक तो दगाबाज़ खुद साख्ता अल्लाह का बना हुवा रसूल मुहम्मद है. उस वक़्त मुसलमानों की दुन्या रौशन हो जाएगी.
मुहम्मद कालीन मशहूर सूफ़ी ओवैस करनी जिसके तसव्वुफ़ के कद्रदान मुहम्मद भी थे, जिसको कि मुहम्मद ने बाद मौत के अपना पैराहन पहुँचाने की वसीअत की थी, मुहम्मद से दूर जंगलों में छिपता रहता कि इस ज़ालिम से मुलाक़ात होगी तो कुफ्र ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' मुँह पर लाना पड़ेगा. 
इस्लामी वक्तों के माइल स्टोन हसन बसरी और राबिया बसरी इस्लामी हाकिमों से छुपे छुपे फिरते थे कि यह ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' को कुफ्र मानते थे. मक्के के आस पास फ़तेह मक्का के बाद इस्लामी गुंडों का राज हो गया था. किसी कि मजाल नहीं थी कि मुहम्मद के खिलाफ मुँह खोल सके . 
मुहम्मद के मरने के बाद ही मक्का वालों ने हुकूमत को टेक्स देना बंद कर दिया कि ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कहना हमें मंज़ूर नहीं 'लाइलाहा इल्लिल्लाह' तक ही सही है. अबुबकर ख़लीफ़ा ने इसे मान लिया मगर उनके बाद ख़लीफ़ा उमर आए और उन्हों ने फिर बिल जब्र ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' पर अवाम को आमादः कर लिया . इसी तरह पुश्तें गुज़रती गईं , सदियाँ गुज़रती गईं, जब्र, ज़ुल्म, ज्यादती और बे ईमानी ईमान बन गया.
आज तक चौदह सौ साल होने को हैं सूफ़ी मसलक ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' को मज़ाक़ ही मानता है, वह अल्लाह को अपनी तौर पर तलाश करता है, पाता है और जानता है किसी स्वयंभू भगवन के अवतार और उसके दलाल बने पैगम्बर के रूप में - - -

''मस्जिदे अक़सा तक जिसके गिर्दा गिर्द हम ने बरकतें कर रखी हैं ले गया ताकि हम उनको अपने कुछ अजायब दिखला दें. बेशक अल्लाह तअला बड़े सुनने और देखने वाले हैं. और हमने मूसा को किताब दी और हमने उसको बनी इस्राईल के लिए हिदायत बनाया कि तुम मेरे सिवा किसी और को करसाज़ मत क़रार दो. ऐ उन लोगो की नस्ल! जिन को हमने नूह के साथ सवार किया था वह बड़े शुक्र गुज़र बन्दे थे. और हमने बनी इस्राईल को किताब में बतला दी थी कि तुम सर ज़मीन पर दोबारा खराबी करोगे और बड़ा ज़ोर चलाओगे. फिर जब उन दो में से पहली की मीयाद आवेगी, हम तुम पर ऐसे बन्दों को मुसल्लत कर देंगे जो बड़े जंगजू होंगे. फिर वह तुम्हारे घरों में घुस पड़ेंगे और ये एक वतीरा है जो हो कर रहेगा.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१-५)
पाठको क्या समझे? तर्जुमा कर अशरफ अली थानवी ने ब्रेकेट की खपच्चियाँ लगा लगा कर बड़ी रफ़ू गरी की मगर जब जेहालत सर पर चढ़ कर बोले तो कौन मुँह खोले? 
अल्लाह कहता है ''हम तुम पर ऐसे बन्दों को मुसल्लत कर देंगे जो बड़े जंगजू होंगे. फिर वह तुम्हारे घरों में घुस पड़ेंगे और ये एक वतीरा है जो हो कर रहेगा.'' 
यानि अल्लाह का भी वतीरा होता है? 
बद किमाश सियासत दानों की तरह, वह खुद जंगजू तालिबान को पैदा किए हुए है, जो मासूम बच्चियों को इल्म के लिए घरों से बाहर तो निकलने नहीं देते और घरों में ऐसी आयतों का सहारा लेकर घुस जाते हैं और मनमानी करते हैं.
मुसलमानों तुम कितने बद नसीब हो कि तुम्हारी आँखें ही नहीं खुलतीं. कितने बेहिस हो? 
कितने डरपोक? कितने बुजदिल? कितने अहमक हो ? 
जागो, अभी तो तुमको तुम में से ही जगा हुवा एक मोमिन जगा रहा है, मुमकिन है कि कल दूसरों के लात घूंसे खा कर तुम्हारी आँखें खुलें।


''फिर उन पर तुम्हारा गलबा कर देंगे और मॉल और बेटों से हम तुम्हारी मदद करेगे और हम तुम्हारी जमाअत को बढ़ा देंगे. अगर अच्छे कम करते रहोगे तो अपने ही नफ़े के लिए अच्छे कम करोगे. और अगर बुरे कम करोगे तो भी अपने लिए, फिर जब पिछली की मीयाद आएगी ताकि तुम्हारे मुँह बिगाड़ दें और जिस तरह वह पहली बार मस्जिद में घुसे थे, यह लोग भी इस में घुस पड़ें और जिन जिन पर इनका ज़ोर चले सब को बर्बाद कर डालें. अजब नहीं कि तुम्हारा रब तुम पर रहेम फरमा दे और अगर वही करोगे तो हम फिर वही करेंगे और हमने जहन्नम को काफिरों का जेल खाना बना रखा है. बिला शुबहा ये कुरआन ऐसे को हिदायत देता है जो बिलकुल सीधा है. और ईमान वालों को जो कि नेक कम करते हैं, ये खुश खबरी देता है कि उसको बहुत बड़ा सवाब है. और जो आखरत पर ईमान नहीं लाते उनके लिए दर्दनाक सजा तैयार है,
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (६-१०)
ये है कुरानी अल्लाह की ज़ेहन्यत और इस्लाम की रूह। ऐसी तसवीर लेकर आप ज़माने के सामने जाकर इस्लाम की तबलीग़ करने लायक़ तो रह नहीं गए कि इसमें कुछ दम नहीं और इसे सब जान चुके है और इससे बुरे इस्लामी एहकाम को भी, लिहाज़ा अब तगलीगिए मुसलमानों के मुहल्लों में ही जा कर उनके नव उम्रों को भड़काते फिरते हैं कि अल्लाह तुम को जैशे मुहम्मद की तरफ़ बुला रहा है. इस तरह एक नया ख़तरा मुसलमानों पर आन खड़ा हवा है. ज़रुरत है निडर होकर मैदान में आने की , इस एलान के साथ कि आप हसन बसरी की तरह सिर्फ़ मोमिन हैं. जाइए आपको जो करना हो कर लीजिए. आप जागिए और लोगों को जगाइए.

''और हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाया, सो रात की निशानी को तो हमने धुंधला बनाया और दिन की निशानी को हमने रौशन बनाया ताकि तुम अपने रब कि रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम बरसों का शुमार और हिसाब मालूम कर लो और हम ने हर चीज़ को खूब तफ़सील के साथ बयान कर दिया है. ''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१२)
मुहम्मद रात को कोई ऐसी शय मानते हैं जो ढक्कन नुमा होती हो और रौशनी को ढक कर उस पर ग़ालिब हो जाती हो और दिन को एक रौशन शय जो आकर सूरज को रौशन कर देता हो,जैसे बल्ब में फिलामेंट. 
हदीसें बतलाती हैं कि वह सूरज को रात में मसरुफे सफ़र जानिबे अल्लाह बराय सजदा रेज़ी होना जानते हैं. 
मुहम्मद कहते हैं ''हमने दिन को रौशन बनाया ताकि तुम अपने रब कि रोज़ी तलाश करो'' बन्दे का रब उसकी तलाश कि हुई कौन सी रोज़ी खाता है? मुतरजजिम लिखता है गोया बन्दों कि रोज़ी. अब रात पायली काम होने लगे, बरसों का शुमार और हिसाब रात और दिन पर कभी मुनहसर नहीं रहे। मुसलमान सच मुच इतना ही पीछे है जितना इसका कुरान इसे अपनी बेहूदा तफसीलो में मुब्तिला किए हुए है।


''हर इंसान को आमल नामे के मुताबिक सज़ा मिलेगी, साथ में अल्लाह ये भी सहेज देता है कि ''और हम सज़ा नहीं देते जब तक किसी रसूल को नहीं भेज लेते।''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१३)
गोया अल्लाह पाबन्द है रसूलों का कि वह आकर मुझे जन्नतियों कि लिस्ट दे. यहाँ पर भी मुहम्मद भोले भालों को चूतिया बनाते हैं कि फ़िलहाल तुम्हारा रसूल तो मैं ही हूँ. असली दीन की अदालत में जिस दिन आलमी मुजरिमों पर मुक़दमा चलेगा, मुहम्मद सब से बड़े जहन्नमी साबित होंगे।

अल्लाह कहता है
''जो शख्स दुन्या की नीयत रखेगा हम उस शख्स को दुन्या में जितना चाहेंगे, जिसके वास्ते चाहेंगे, फ़िलहाल दे देंगे फिर उसके लिए हम जहन्नम तजवीज़ करेंगे और वह उस में बदहाल रांदे दरगाह होकर दाख़िल होगा।और जो शख्स आख़िरत की नीयत रखेगा और इसके लिए जैसी साईं करना चाहिए वैसी ही साईं करेगा बशर्ते ये कि वह शख्स मोमिन भी हो, सो ऐसे लोगों की ये साईं मकबूल होगी।''

यहाँ पर पहली बात तो ये साबित होती है कि मुहम्मदी अल्लाह परले दर्जे का शिकारी है कि शिकार के लिए दाना डालता है, आदमी दाना चुगने लगे और चैन कि साँस ले कि वह इसको दबोच लेता है? दूसरी बात ये कि जैसे मैं पहले बयान करचुका हूँ कि आप लाख नेक इन्सान हों, अल्लाह आपकी नेकियों का कोई वास्ता नहीं अगर आप मोमिन 
''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कहने वाले नहीं।

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१३-२२)

''अल्लाह अपने बालिग़ बच्चों को समझाता है कि माँ बाप के फ़रायज़ याद रखना, उनसे हुस्ने सुलूक से पेश आना, क़राबत दारों के हुक़ूक़ भी याद दिलाता है, फुज़ूल खर्ची को मना करता है मगर बुखालत को भी बुरा भला कहता है, मना करता है कि औलादों को तंग दस्ती के बाईस मार डालना भारी गुनाह है, ज़िना कारी को बे हयाई बतलाता है. साथ साथ अपनी अज़मत को ख़ुद अपने मुँह से बघारना नहीं भूलता. ''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (२३-३२)
जिस तरह बच्चों को एखलाकयात सिखलाया और पढाया जाता है उसी तरह मुहम्मद कुरआन के ज़रीए मुसलामानों को सबक़ देते हैं लगता है उस वक़्त अरब में सब जंगली और वहशी रहे होंगे। ख़ुद दूसरों को नसीहत देने वाले मुहम्मद अपने चचाओं पर कैसा ज़ुल्म ढाया कोई तवारीख़ से पूछे. ज़िना कारी और हराम कारी को बे हयाई गिनवाने वाले मुहम्मद पर दस्यों इलज़ाम हैं कि इसके कितने बड़े मुजरिम वह ख़ुद थे।

हदीस है - - - मुहम्मद फरमाते हैं ''जो शख्स मेरे वास्ते दो चीज़ों का जामिन हो जाय ,पहली दोनों जबड़ों के दरमियान जो ज़ुबान है, दूसरी दोनों पैरों के बीच जो शर्मगाह (लिंग) है तो मैं उस शख्स के वास्ते जन्नत का जामिनदार हो जाऊँगा. (बुखारी २००७)

अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब जोकि इनके मुँह बोले बेटे ज़ैद बिन हारसा की बीवी थी, के साथ मुँह काला करते हुए उसके शौहर ज़ैद बिन हारसा ने हज़रात को पकड़ा तो तूफ़ान खड़ा हुवा, ,जिंदगी भर उसको बिन निकाही बीवी बना के रक्खा और चले हैं बातें करने। आगे कुरआन में ही इस वाकेआ पूरा हाल आने वाला है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 22 February 2016

Soorah Nahl 16 Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल पारा १४
(दूसरी किस्त
सूरतें क्या खाक में होंगी ?
मुहम्मद ने कुरआन में कुदरत की बख्शी हुई नेमतों का जिस बेढंगे पन से बयान किया है, उसका मज़ाक़ ही बनता है न कि कोई असर ज़हनों पर ग़ालिब होता हो. बे शुमार बार कहा होगा 
''मफ़िस समावते वमा फ़िल अरज़े'' 
यानी आसमानों को( अनेक कहा है ) और ज़मीन (को केवल एक कहा है ). जब कि आसमान , कायनात न ख़त्म होने वाला एक है 
और उसमें ज़मीने, बे शुमार हैं. 
वह बतलाते हैं पहाड़ों को ज़मीन पर इस लिए ठोंक दिया कि तुम को लेकर ज़मीन डगमगा न पाए. 
परिंदों के पेट से निकले हुए अंडे को बेजान बतलाते है और अल्लाह की शान कि उस बेजान से जान दार परिन्द निकल देता है. 
ज़मीन पर रस्ते और नहरें भी अल्लाह की तामीर बतलाते हैं. 
कश्ती और लिबासों को भी अल्लाह की दस्त कारी गर्दानते है. 
मुल्लाजी कहते हैं अल्लाह अगर अक्ल ही देता तो दस्तकारी कहाँ से आती? मुहम्मद के अन्दर मुफक्किरी या पयंबरी फ़िक्र तो छू तक नहीं गई थी कि जिसे हिकमत, मन्तिक़ या साइंस कहा जाए. 
ज़मीन कब वजूद में आई? कैसे इरतेकाई सूरतें इसको आज की शक्ल में लाईं, इन को इससे कोई लेना देना नहीं, बस अल्लाह ने इतना कहा
'' कुन'', यानी होजा और ''फयाकून'' हो गई.

तहकीक, गौर ओ फ़िक्र तबीअत पे बोझ थे,
अंदाज़ से जो ज़ेहन में आया उठा लिया.
जब तक मुसलमान इस कबीलाई आसान पसंदी को ढोता रहेगा, वक़्त इसको पीछे करता जाएगा. जब तक मुसलमान मुसलमान रहेगा उसे यह कबीलाई आसान पसंदी ढोना ही पड़ेगा, 
जो कुरआन उसको बतलाता है. मुसलमानों के लिए ज़रूरी हो गया है कि वह इसे अपने सर से उठा कर दूर फेंके और खुल कर मैदान में आए.
देखिए कि ब्रिज नारायण चकबस्त ने दो लाइनों में पूरी मेडिकल साइंस समो दिया है।

ज़िन्दगी क्या है? अनासिर में ज़हूरे तरतीब,
मौत क्या है? इन्ही अजजा का परीशां होना।

कुरआन की सारी हिकमत, हिमाक़त के कूड़े दान में डाल देने की ज़रुरत है अगर ग़ालिब का यह शेर मुहम्मद की फ़िक्र को मयस्सर होता तो शायद कुरानी हिमाक़त का वजूद ही नहोता - - -

देखिए कि मुहम्मदी हिमाक़तें क्या क्या गुल खिलाती हैं । . .
''बखुदा आप से पहले जो उममतें हो गुजरी हैं, उनके पास भी हमने भेजा था (?) सो उनको भी शैतान ने उनके आमल मुस्तहसिन करके दिखलाए, पस वह आज उन का रफ़ीक था और उनके वास्ते दर्द नाक सज़ा है.''
सूरह नह्ल पर१४ आयत (६३)
मुहम्मद का एलान कि कुरआन अल्लाह का कलाम है मगर आदतन उसके मुँह से भी बा खुदा निकलता है। 
'' जो उम्मतें हो गुज़री हैं, उनके पास भी हमने भेजा था (?)'' 
क्या भेजा था? यानी '' गोया मतलब शेर का बर बतने-शायर रह गया'' मूतराज्जिम मुहम्मद का मददगार बन कर ब्रेकेट में (रसूलों को) लिख देता है। यह कुरआन का ख़ासा है. कोई कुछ दिन किसी के काम आए तो बड़ी बात है फिर चाहे वह शैतान ही क्यूँ नहो हो बनिस्बत झूठे और जालसाज़ रसूलों के।
''और हम ने आप पर यह किताब सिर्फ इस लिए नाज़िल की है कि जिन उमूर पर लोग इख्तेलाफ़ कर रहे हैं, आप लोगों पर इसे ज़ाहिर फ़रमा दें और ईमान वालों को हिदायत और रहमत की ग़रज़ से. और तुम्हारे लिए मवेशी भी गौर दरकार हैं, इन के पेट में जो गोबर और खून है, इस के दरमियान में से साफ़ और आसानी से उतरने वाला दूध हम तुम को पीने को देते हैं. और खजूर और अंगूरों के फलों से तुम लोग नशे की चीज़ और उम्दा खाने चीज़ें बनाते हो. बे शक इसमें समझने के लिए काफी दलीलें हैं जो अक्ल रखते हैं.''
सूरह नह्ल पारा १४ आयत (६४-६७)
तब्दीलियाँ कानूने-फितरत है जो वक़्त के हिसाब से खुद बखुद आती रहती हैं. मुहम्मद ने अपना दीन थोपने के लिए ''तबदीली बराए तबदीली'' की है जो कठ मुल्लाई पर आधारित थी. 
खास कर औरतें इस में हाद्सती लुक्मा हुईं. 
क़ब्ले-इस्लाम औरतों को यहाँ तक आज़ादी थी कि शादी के बाद भी वह समाज के लायक़ ओ फ़ायक़ फर्द से, अपने शौहर की रज़ामंदी के बाद, महीने से फ़ारिग होकर, नहा धो के, उसकी ''शर्म गाह'' को तलब कर सकती थीं और तब तक के लिए जब तक कि वह हामला न हो जाएँ . ये रस्म अरब में अलल एलन थी और काबिले-सताइश थी, जैसा की भारत में नियोग की प्रथा हुवा करती थी. मुहम्मद ने अनमोल कल्चर का गला घोंट  दिया, मुसलमानों को सिर्फ यही याद रहने दिया गया कि सललललाहो अलैहेवसल्लम ने बेटियों को जिंदा दफ़नाने को रोका.
कठ मुल्ले ने गोबर, खून और दूध का अपने मंतिक बयानी से कैसा गुड गोबर किया है.

''और आप के रब ने शाहेद की मक्खी के जी में यह बात डाली कि तू पहाड़ में घर बनाए और दरख्तों में और जो लोग इमारते बनाते हैं इनमें, फिर हर किस्म के फलों को चूसती फिर,फिर अपने रब के रास्तों पर चल जो आसन है. उसके पेट में से पीने की एक चीज़ निकलती है, जिस की रंगतें मुख्तलिफ होती हैं कि इन में लोगों के लिए शिफ़ा है. इस में इन लोगों के लिए बड़ी दलील है जो सोचते हैं.''
सूरह नह्ल पर१४ आयत (६८-६९)
मुहम्मद का मुशाहिदा शाहेद की मक्खियों पर कि जिनको इतना भी पता नहीं की मक्खियाँ फलों का नहीं फूलों का रस चूसती हैं। रब का कौन सा रास्ता है जिन पर हैवान मक्खियाँ चलती हैं?या अल्लाह कहाँ मक्खियों के रास्तों पर हज़ारों मील योमिया मंडलाया करता है? मगर तफ़सीर निगार कोई न कोई मंतिक गढ़े होगा.

''और अल्लाह तअला ने तुम को पैदा किया, फिर तुम्हारी जान कब्ज़ करता है और बअज़े तुम में वह हैं जो नाकारा उम्र तक पहंचाए जाते हैं कि एक चीज़ से बा ख़बर होकर फिर बे ख़बर हो जाता है . . . और अल्लाह तअला ने तुम में बअज़ों को बअज़ों पर रिज्क़ में फ़ज़ीलत दी है, वह अपने हिस्से का मॉल गुलामों को इस तरह कभी देने वाले नहीं कि वह सब इस पर बराबर हो जावें. क्या फिर भी खुदाए तअला की नेमत का इंकार करते हो. और अल्लाह तअला ने तुम ही में से तुम्हारे लिए बीवियाँ बनाईं और बीवियों में से तुम्हारे लिए बेटे और पोते पैदा किए और तुम को अच्छी चीज़ें खाने कोदीं, क्या फिर भी बे बुन्याद चीजों पर ईमान रखेंगे . . .
सूरह नह्ल पर१४ आयत (७०-७२)
न मुहम्मद कोई बुन्याद कायम कर पा रहे हैं और न मुखालिफ़ को बे बुन्याद साबित कर पा रहे हैं। बुत परस्त भी बुतों को तवस्सुत मानते थे, न कि अल्लाह. तवस्सुत का रुतबा छीन लिया बड़े तवस्सुत बन कर खुद मुहम्मद ने. मुजरिम बेजान बुत कहाँ ठहरे? मुजरिम तो गुनेह्गर मुहम्मद साबित हो रहे हैं जिन्हों ने आज तक करोरो इंसानी जिंदगियाँ वक़्त से पहले खत्म कर दीं. अफ़सोस कि करोरो जिंदगियां दाँव पर लगी हुई हैं।

''और अल्लाह तअला ने तुम को तुम्हारी माओं के पेट से इस हालत में निकाला कि तुम कुछ भी न जानते थे और इसने तुम को कान दिए और आँख और दिल ताकि तुम शुक्र करो. क्या लोगों ने परिंदों को नहीं देखा कि आसमान के मैदान में तैर रहे हैं, इनको कोई नहीं थामता.बजुज़ अल्लाह के, इस में ईमान वालों के लिए कुछ दलीलें हैं. और अल्लाह तअला ने तुम्हारे लिए जानवरों के खाल के घर बनाए जिन को तुम अपने कूच के दिन हल्का फुल्का पाते हो और उनके उन,बल और रोएँ से घर की चीज़ें बनाईं . . . और मखलूक के साए . . . पहाड़ों की पनाहें . . . ठन्डे कुरते . . . और जंगी कुरते बनाए ताकि तुम फरमा बरदार रहो. फिर भी अगर यह लोग एतराज़ करें तो आप का ज़िम्मा है साफ़ साफ़ पहुंचा देना.
सूरह नह्ल पर१४ आयत (७८-८२)
यह है कुरानी हकीकत किसी पढ़े लिखे गैर मुस्लिम के सामने दावते-इस्लाम के तौर पर ये आयतें पेश करके देखिए तो वह कुछ सवाल उल्टा आप से खुद करेगा . . .
१-अल्लाह ने कान दिए और आँख और दिल - - - सुनने, देखने और एहसास करने के लिए दिए हैं कि शुक्र अदा करने के लिए?
२- और अब हवाई जहाज़, रॉकेट और मिसाइलें कौन थामता है? ईमान वालों के पस अक़ले-सलीम है?
३-अब हम जानवरों की खाल नहीं बुलेट प्रूफ़ जैकेट पहेनते हैं उन,बाल और रोएँ का ज़माना लद गया, हम पोलोथिन युग में जी रहे हैं, तुम भी छोड़ो, इस बाल की खाल में जीना और मरना. जो कुछ है बस इसीदुन्या में और इसी जिंदगी में है.
४-हम बड़े बड़े टावर बना रहे हैं और मुस्लमान अभी भी पहाड़ों में रहने की बैटन को पढ़ रहा है? और पढ़ा रहा है?
५-बड़े बड़े साइंसदानों का शुक्र गुज़र होने के बजाय इन फटीचर सी बातों पर ईमान लाने की बातें कर रहे हो.

६- तुम्हारे इस उम्मी रसूल पर जो बात भी सलीके से नहीं कर पता? तायफ़ के हाकिम ने इस से बात करने के बाद ठीक ही पूछा था '' क्या अल्लाह को मक्का में कोई ढंग का पढ़ा लिखा शख्स नहीं मिला था जो तुम जैसे जाहिल को पैग़म्बरबना दिया।''


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 19 February 2016

Soorah nAHL १६ Q १

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल १६- परा 
पहली किस्त 

''अल्लाह तअला का हुक्म पहुँच चुका है, सो तुम इस में जल्दी मत मचाओ. वह लोगों के शिर्क से पाक और बरतर है. वह फरिश्तों को वह्यी यानी अपना हुक्म भेज कर अपने बन्दों पर जिस पर चाहे नाज़िल फ़रमाते हैं कि ख़बरदार कर दो कि मेरे सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं है सो मुझ से डरते रहो. आसमान को ज़मीन को हिकमत से बनाया. वह उनके शिर्क से पाक है. इन्सान को नुतफ़े से बनाया फिर वह यकायक झगड़ने लगा. उसने चौपाए को बनाया, उनमें तुम्हारे जाड़े का सामान है और बहुत से फ़ायदे हैं और उन में से खाते भी हो. और उनकी वजेह से तुम्हारी रौनक़ भी है जब कि शाम के वक़्त लाते हो और जब कि सुब्ह के वक़्त छोड़ देते हो. और वह तुम्हारे बोझ भी ऐसे शहर को ले जाते हैं जहाँ तुम बगैर जान को मेहनत में डाले हुए नहीं पहुँच सकते थे. वाक़ई तुम्हारा रब बड़ी शफ़क़त वाला और रहमत वाला है. और घोड़े और खच्चर और गधे भी पैदा किए ताकि तुम उस पर सवार हो और ज़ीनत के लिए भी.''
सूरह नह्ल १६-  आयत (१-८)
यह कुर आन की आठ आयतें हैं. मुताराज्जिम ने अल्लाह की मदद के लिए काफी रफुगरी की है मगर मुहम्माग के फटे में पेवंद तो नहीं लगा सकता.
१-अल्लाह तअला का हुक्म पहुँच चुका है . . . तो कहाँ अटका है?
२-सो तुम इस में जल्दी मत मचाओ - - - किसको जल्दी थी, सब तुमको पागल दीवाना समझते थे.
३-वह लोगों के शिर्क से पाक और बरतर है. . .क्या है ये शिर्क? अल्लाह के साथ किसी दुसरे को शरीक करना, न ? फिर तुम क्यूं शरीक हुए फिरते हो.
४- अल्लाह को तुम जैसा फटीचर बन्दा ही मिला था कि तुम पर हुक्मरानी नाज़िल कर दिया.
५-सो मुझ से डरते रहो - - - आख़िर अल्लाह खुद से बन्दों का डरता क्यूं है?
६-अल्लाह इन्सान को कभी नुतफ़े से बनता है, कभी बजने वाली मिटटी से, कभी, उछलते हुए पानी से तो कभी खून के लोथड़े से? तुहारा अल्लाह है या चुगद?
७- इन्सान को अगर अल्लाह नेक नियति से बनता तो झगडे की नौबत ही न आती.
८- अब इंसान को छोड़ा तो चौपाए खाने पर आ गए, उनकी सिफ़तें गिनाते है जिस पर अलिमान दीन किताबों के ढेर लगाए हुए हैं, न उन पर रिसर्च, न उनकी नस्ल अफ़ज़ाइश पर काम, न उनका तहफ़फ़ुज़ बल्कि उनका शिकार और उन पर ज़ुल्म देखे जा सकते हैं।
'' और वह ऐसा है कि उसने दरया को मुसख़ख़िर (प्रवाहित) किया ताकि उस में से ताजः ताजः गोश्त खाओ और उसमें से गहना निकालो जिसको तुम पहेनते हो. और तू कश्तियों को देखता है कि वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो. और उसने ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने न लगे. और उसने नहरें और रास्ते बनाए ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको . . . और जो लोग अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हैं वह किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते और वह ख़ुद ही मख्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, जिंदा नहीं और इस की खबर नहीं कि कब उठाए जाएँगे.
सूरह नह्ल १६-  आयत (१४-२१)
बगैर तर्जुमा निगारों के सजाए यह कुरआन की उरयाँ इबारत है. मुहम्मद बन्दों को कभी तू कहते हैं कभी तुम, ऐसे ही अल्लाह को. कभी ख़ुद अल्लाह बन कर बात करने लगते हैं तो कभी मुहम्मद बन कर अल्लाह की सिफ़तें बयान करते हैं. कहते हैं ''वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो'' 
अगर ओलिमा उनकी रोज़े अव्वल से मदद गार न होते तो कुरआन की हालत ठीक ऐसी ही होती ''कहा उनका वो अपने आप समझें या खुदा समझे.'' कठ मुल्ले नादार मुसलमानों को चौदा सौ सालों से ये बतला कर ठग रहे है कि अल्लाह ने
''ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने न लगे.'' मुहम्मद इंसान के बनाए नहरें और रास्ते को भी अल्लाह की तामीर गर्दान्ते हैं. भूल जाते हैं कि इन्सान रास्ता भूल कर भटक भी जाता है मगर कहते हैं 
'' ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको'' 
मख्लूक़ को मुर्दा कहते हैं, फिर उनको मौत से बे खबर बतलाते हैं. 
''वह ख़ुद ही मख्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, जिंदा नहीं और इस की खबर नहीं कि कब उठाए जाएँगे''
मुसलामानों की अक्ल उनके अकीदे के आगे खड़ी ज़िन्दगी की भीख माँग रही है मगर अंधी अकीदत अंधे कानून से ज़्यादा अंधी होती है उसको तो मौत ही जगा सकती है, मगर मुसलमानों! तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. जागो.
मुहम्मद जब अपना कुरआन लोगों के सामने रखते, लेहाज़न लोग सुन भी लेते, तो बगैर लिहाज़ के कह देते 
 '' क्या रक्खा है इन बातों में ? सब सुने सुनाए क़िस्से हैं जिनकी कोई सनद नहीं'' 
ऐसे लोगों को मुहम्मद मुनकिर (यानी इंकार करने वाला) कहते हैं और उन्हें वह क़यामत के दिन से भयभीत करते हैं. 
एक ख़ाका भी खीचते हैं क़यामत के दिन का कि 
काफ़िरो-मुनकिर को किस तरह अल्लाह जहन्नम रसीदा करता है और ईमान लाने वालों को किस एहतेमाम से जन्नत में दाखिल करता है. काफिरों मुशरिकों के लिए . . . '' 
सो जहन्नम के दवाज़े में दाखिल हो जाओ, इसमें हमेशा हमेशा को रहो, ग़रज़ तकब्बुर करने वालों का बुरा ठिकाना है.'' और मुस्लिमों के लिए ''फ़रिश्ते कहते हैं . . .अस्सलाम अलैकुम! तुम जन्नत में चले जाना अपने आमाल के सबब.''
सूरह नह्ल १६-  आयत (२२-३४)
इतना रोचक प्लाट, और इतनी फूहड़ ड्रामा निगारी.
मुशरिकीन ऐन मुहम्मद का कौल दोहराते हुए पूछते हैं 
''अगर अल्लाह तअला को मंज़ूर होता तो उसके सिवा किसी चीज़ की न हम इबादत करते और न हमारे बाप दादा और न हम बगैर उसके हुक्म के किसी चीज़ को हराम कह सकते'' 
इस पर मुहम्मद कोई माक़ूल जवाब न देकर उनको गुमराह लोग कहते हैं और बातें बनाते हैं कि माज़ी में भी ऐसी ही बातें हुई हैं कि पैगम्बर झुटलाए गए हैं . . . जैसी बातें करने लगे.
सूरह नह्ल १६- आयत (35-३७)
''और लोग बड़े ज़ोर लगा लगा कर अल्लाह कि क़समें खाते हैं कि जो मर जाता है अल्लाह उसको जिंदा न करेगा, क्यों नहीं? इस वादे को तो उस ने अपने ऊपर लाज़िम कर रक्खा है, लेकिन अक्सर लोग यक़ीन नहीं करते. . . . हम जिस चीज़ को चाहते हैं, पस इस से हमारा इतना ही कहना होता है कि तू हो जा, पस वह हो जाती है.''
सूरह नह्ल १६- आयत (३८+४०)
यह सूरह मक्का की है जब मुहम्मद खुद राह चलते लोगों से क़समें खा खा कर और बड़े ज़ोर लगा लगा कर लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाते कि तुम मरने के बाद दोबारा क़यामत के दिन ज़िन्दा किए जाओगे और लोग इनका मज़ाक उड़ा कर आगे बढ़ जाते. मुहम्मद ने अल्लाह को कारसाज़े-कायनात से एक ज़िम्मेदार मुलाज़िम बना दिया है. उनका अल्लाह इतनी आसानी से जिस काम को चाहता है इशारे से कर सकता है तो अपने प्यारे नबी को क्यूँ अज़ाब में मुब्तिला किए हुए है कि लोगों को इस्लाम पर ईमान लाने के लिए जेहाद करने का हुक्म देता है? यह बात तमाम दुन्या के समझ में आती है मगर नहीं आती तो ज़ीशान और आलीशानों के।
''४१ से ५५'' आयत तक मुहम्मद ने अपने दीवान में मोहमिल बका है जिसको ज़िक्र करना भी मुहाल है। उसके बाद कहते हैं
''और ये लोग हमारी दी हुई चीज़ों में से उन का हिस्सा लगते हैं जिन के मुताललिक़ इन को इल्म भी नहीं. क़सम है ख़ुदा की तुम्हारी इन इफतरा परदाज़यों की पूछ ताछ ज़रूर होगी.'"
सूरह नह्ल  १६ आयत (५६)
मुहम्मद ज़मीन पर पूजे जाने वाले बुत लात, मनात, उज़ज़ा वगैरा पर चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे को देख कर ललचा रहे हैं कि एक हवा का बुत बना कर सब का बंटा धार किया जा सकता है और इन चढ़ावों पर उनका क़ब्ज़ा हो सकता है, वह अपने इस मंसूबे में कामयाब भी हैं.एक अल्लाह ए वाहिद का दबदबा भी क़ायम हो गया है और इन्सान तो पैदायशी मुशरिक है, सो वह बना हुवा है. मुस्लमान आज भी पीरों के मज़ारों के पुजारी हैं,मगर हिदू बालाजी और तिरुपति मंदिरों के श्रधालुओं का मज़ाक उड़ाते हुए.
''और अल्लाह के लिए बेटियां तजवीज़ करते हैं सुबहान अल्लाह!और अपने लिए चहीती चीजें.''
सूरह नह्ल १६ आयत (५७)
मुहम्मद भटक कर गालिबन ईसाई अकीदत पर आ गए हैं जो कि खुदा के मासूम फरिश्तों को मर्द और औरत से बाला तर समझते हैं. उनके आकृति में पर, पिश्तान, लिंग आदि होते हैं मगर पवित्र आकर्षण के साथ. मुहम्मद को वह लडकियाँ लगती हैं, वह मानते हैं कि ऐसा ईसाइयों ने खुदा के लिए चुना. और कहते है खुद अपना लिए चाहीती चीज़ यानि बेटा.मूर्ति पूजकों के साथ साथ ये मुहम्मद का ईसाइयों पर भी हमला है.
''और जब इन में से किसी को औरत की ख़बर दी जाए तो सारे दिन उस का चेहरा बे रौनक रहे और वह दिल ही दिल में घुटता रहे, जिस चीज़ की उसको खबर दी गई है । इसकी आर से लोगों से छुपा छुपा फिरे कि क्या इसे ज़िल्लत पर लिए रहे या उसको मिटटी में गाड़ दे. खूब सुन लो उन की ये तजवीज़ बहुत बुरी है.''
सूरह नह्ल १६-  आयत (५८-५९)
मुल्लाओं की उड़ाई हुई झूटी हवा है कि रसूल को बेटियों से ज़्यादः प्यार हुवा करता था. यह आयत कह रही है कि वह बेटी पैदा होने को औरत की पैदा होने की खबर कहते हैं. बेशक उस वक़्त क़बीलाई दस्तूर में अपनी औलाद को मार देना कोई जुर्म न था बेटी हो या बेटा. आज भी भ्रूण हत्या हो रही है. मुहम्मद से पहले अरब में औरतों को इतनी आज़ादी थी कि आज भी जितना मुहज्ज़ब दुन्या को मयस्सर नहीं. इस मौज़ू पर फिर कभी.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 15 February 2016

Soorah hujr 15 Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं
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सूरह हुज्र,१५ पारा१४
(दूसरी किस्त)
 
मैजिक आई 
अल्ताफ हुसैन 'हाली' (हलधर) कहते हैं अँधेरा जितना गहरा होता है, मैजिक आई उतनी ही चका चौंध और मोहक लगती है. 
हाली साहब सर सय्यद के सहायकों में एक थे, रेडियो कालीन युग था जब रेडयो में एक मैजिक आई हुवा करती थी, श्रोता गण उसी पर आँखें गडोए रहते थे. हाली का अँधेरे से अभिप्राय था निरक्षरता. 
कहते हैं कि चम्मच से खाने पर भी मुल्लाओं का कटाक्ष है जब कि यह साइंसटिफिक है, क्यूँकि इंसान की त्वचा बीमारी के कीटाणुओं को आमन्तिरित करती है. 
सर सय्यद को मुल्लाओं ने काफ़िर होने का फ़तवा दे दिया था. पता नहीं मौलाना हाली को बख्शा या नहीं.
कुरआन का सपाट तर्जुमा और उस पर बेबाक तबसरा पहली बार शायद अपने भारतीय माहौल में मैंने किया है. मेरे विश्वास पात्र सरिता मैगज़ीन के संपादक स्वर्गीय विश्व नाथ जी ने कहा इतना तो मैं भी समझता हूँ जो तुम समझते हो मगर इसका फायदा क्या? मुफ्त में अंगार हाथ में ले रहे हो और मेरे लेख की पंक्तियाँ उन्हें अंगार लगीं, सरिता में जगह देने से इंकार कर दिया. 
कुरआन को नग्नावस्था में देखने के बाद कुकर्मियों की रालें टपक पड़ती हैं कि एक अनपढ़, उम्मी का नाम धारण करके अगर इतना बड़ा पैगम्बर बन सकता है तो मैं क्यूँ नहीं? न बड़ा तो मिनी पैगम्बर ही सही. गोया चौदह सौ सालों से मुहम्मद की नकल में जगह जगह मिनी पैगम्बर कुकुर मुत्ते की तरह पैदा हो रहे हैं. 

इसी सिलसिले के ताज़े और कामयाब पैगम्बर मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी हुए हैं. यह मुहम्मद की ही भविष्य वाणी के फल स्वरुप हैं कि ''ईसा एक दिन मेहदी अलैहिस्सलाम बन कर आएँगे और दज्जाल को क़त्ल कर के इस्लाम का राज क़ायम करेंगे .'' 

मिर्ज़ा ने मुहम्मद की बकवास का फ़ायदा उठाया, और बन बैठे'' मेंहदी अलैहिस्सलाम'' क़दियानियों की मस्जिदें तक कायम हो गईं, वह भी पाकिस्तान लाहोर में. उसमें इस्लामी कल्चर के मुवाफिक क़त्ल ओ ग़ारत गरी भी होने लगी. पिछले दिनों ७२ अहमदिए शहीद हुए. उस शहादत की याद आती है जब मुहम्मद का वंश कर्बला में अपने कुकर्मों का परिणाम लिए इस ज़मीन से उठ गया था, वह भी ७२ थे.
उम्मी (निरक्षर) मुहम्मद सदियों पहले अंध वैश्वासिक युग में हुए. उन्होंने इर्तेक़ा (रचना क्रिया) के पैरों में ज़ंजीर डाल कर युग को और भी सदियों पीछे ढकेल दिया. इस्लाम से पहले अरब योरोप से आगे था, खुद इसे योरोपियन दानिश्वर तस्लीम करते हैं और अनजाने में मुस्लिम आलिम भी मगर मुहम्मद ने सिर्फ अरब का ही नहीं दुन्या के कई टुकड़ों का सर्व नाश कर दिया.
युग का अँधेरा दूर हो गया है, धरती के कई हिस्सों पर रातें भी दिन की तरह रौशन हो गई मगर मुहम्मद का नाज़िला (प्रकोपित) अंधकार मय इस्लाम अपनी मैजिक आई लिए मुसलमानों को सदियों पुराने तमाशे दिखा रहाहै.
 
आइए अब अन्धकार युग के मैजिक आई कि तरफ़ चलें . . . 
''और हम ही हवाओं को भेजते हैं जो कि बादलों को पानी से भर देती हैं फिर हम ही आसमान से पानी बरसते हैं फिर तुम को पीने को देते हैं और तुम जमा करके न रख सकते थे और हम ही ज़िन्दा करते मारते हैं और हम ही रह जाएँगे.
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (२१-२३)
कुदरत अपने फ़ितरी अमल पर गामज़न रहते हुए मुहम्मदी अल्लाह की बातों पर हँस रही होगी न रो रही होगी जो उसकी सिफ्तों को अपने नाम कर रहा है और बदले में खुद को पुजवा रहा है. कमज़रफी के साथ खुद सताई कर रहा है.
''बेशक आप का रब हिकमत वाला है और हमने इन्सान को बजती हुई मिटटी से जो कि सड़े हुए गारे की बनी हुई थी पैदा किया. और जिन्न को इस के क़ब्ल आग से कि वह एक गरम हवा हुवा करती थी, पैदा किया."
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (२५-२७)
ये बजती हुई मिटटी भी खूब रही? जिससे इन्सान बनाया गया? आदमी बोलता है, गाता है, तिलावत भी करता है मगर बजता कहाँ है? हाँ कभी कभी बदबू दार हवा छोड़ने से या पेट का हारमोनियम फूलने से रियाह खरिज हो जाने की वजेह बज जाता है. 
ऐसे गंधैले इंसान का मंसूबा जब साफ सुथरे फरिश्तों के सामने अल्लाह रखता है कि मैं इसको वजूद में ला रहा हूँ तो तमाम फ़रिश्ते उसको सजदा करने पर राज़ी हो जाते हैं मगर इब्लीस भड़क उठता है. इस की कहानी जानी पहचानी दूर तक कुरआन में जो बार बार दोहराई जाती है, शुरू हो जाती है . . .
मुहम्मद का एक और शगूफा की जिन्न को गरम हवा से पैदा किया. खुद इनको अल्लाह ने दरोग और मक्र से पैदा किया।
 (आदम के वजूद और इब्ल्लीस की बग़ावत की कहानी उम्मी की ज़ुबानी कई बार दोहराई जाती है)
सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (२८-४४)
''बेशक अल्लाह से डरने वाले बाग़ों और चश्मों में होंगे. तुम उसमें सलामती और अम्न से दाखिल होगे. उनके दिलों में जो कीना था वह हम सब दूर कर देंगे कि सब भाई भाई की तरह रहेंगे तख्तों पर आमने सामने, वहां इनको ज़रा भी तकलीफ़ नहीं होगी. और न वहां से निकाले जाएँगे. आप मेरे बन्दों को इत्तेला दे दीजिए कि मैं बड़ा मगफेरत वाला हूँ और मेरी सजा दर्दनाक सजा है.''
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (४५-५०)
मुहम्मद से डरने वालों की ही खैर है. कल जब वह हयात थे तो उनके साथी हथियार बन्दों से डरना पड़ता था, उनके बाद उनकी खड़ी की गई फौजों से, फिर उन फौजयों की लश्करों और जज़िया से, फिर ओलिमा के फ़तुओं से और अब इस्लामी गुंडों से डरना पड़ रहा है. हम बागों और चश्मों में तो नहीं, हाँ झुग्गी और झोपड़ियों में रहते चले आए हैं और मुहम्मदी अल्लाह ने चाहा तो हमेशा रहेंगे. सब्र,सुकून अम्न और अल्लाह के डर के साथ. अल्लाह ऊपर हमारे दिलों के तमाम कीना, बुग्ज़ दूर कर देगा दुन्या में दूर करके हम सब को नेक इन्सान क्यूं नहीं बना देता? आखिर उसकी भी तो कुछ मजबूरी होगी, मगर ऐ अल्लाह जो भी हो तू है पक्का दोगला. इत्तेला देता है ''मैं बड़ा मगफेरत वाला हूँ ''और अगली साँस में ही कहता है 
''मेरी सज़ा दर्दनाक सज़ा है।'' 
 
''अल्लाह ने इस सूरह में फिर किस्से इब्राहीमी और किस्से लूत बड़ी बेमज़ा तरह से दोहराया है जिसे सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (५१-७६) तक देखा जा सकताहै।
''और हुज्र वालों ने पैगम्बर को झूठा बतलाया और हमने उनको अपनी निशानयाँ दीं सो वह लोग उस से रू गरदनी करते रहे और वह लोग पहाड़ों को तराश तराश कर अपना घर बनाते थे कि अमन में रहें सो उनको सुबह के वक़्त आवाज़ ए सख्त ने आन पकड़ा सो उनका हुनर उनके कुछ काम न आया . . और ज़रूर क़यामत आने वाली है, सो आप खूबी के साथ दरगुज़र कीजिए."
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (८०-८५)
मुहम्मद ने तौरेती वाक़ेए के मुखबिर यहूदी के ज़ुबानी सुना सुनाया किस्सा गढ़ते हुए उस बस्ती को लिया है जिस पर कुदरती आपदा आ गई थी जिसमें बसे लूत बस्ती को तर्क करके पहाड़ों पर अपनी बेटियों के साथ आबाद हो गए थे और उनकी बीवी हादसे का शिकार हो गई थी. उसके आसार आज भी देखे जा सकते हैं कि योरोपियन लूत की नस्लें मुआबियों और अम्मोनियों को उस वाक़ेए पर रिसर्च करने की तैफीक़ हुई है. मुहम्मद उसकी कहानी की गाढ़ी कुरआन की मुसलामानों से तिलावत करा रहे हैं.
''बिला शुबहा आप का रब बड़ा खालिक और बड़ा आलिम है. और हम ने आप को सात आयतें दीं जो मुक़र्रर हैं और कुरआन ए अज़ीम. आप अपनी आँख उठा कर भी इस चीज़ को न देखिए जो कि हम ने उन मुख्तलिफ़ लोगों को बरतने के लिए दे रक्खी है और उन पर ग़म न कीजिए.और मुसलमानों पर शिफक़त रखिए."
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (८६-८८)
अल्लाह अपने प्यारे नबी से वार्ता लाप कर रहा है कि वह बड़ा निर्माण कुशल और ज्ञानी है, कहता है हमने आपको सात आयतें दीं(?) { अब याद नहीं कि सात दीं या सात सौ ? कुछ याद नहीं आ रहा} कि कुराने-अज़ीम समझो. वह अपने बच्चे को समझाता है दूसरों की संपन्नता को आँख उठा कर देखा ही मत करो. ''रूखी सूखी खाए के ठंडा पानी पिव, देख पराई चोपड़ी क्यूं ललचाए जिव.'' इस बात का गम भी न किया करो.( कुरैशियों का आगे भला ज़रूर होगा.) बस मुसलामानों को चूतिया बनाए रहना।
 
''और कह दीजिए कि खुल्लम खुल्ला मैं डराने वाला हूँ जैसा कि हम ने उन लोगों पर नाज़िल किया है जिन्हों ने हिस्से कर रखे थे यानी आसमानी किताबों के मुख्तलिफ़ अजज़ा करार दिए थे, सो तुम्हारे परवर दिगार की क़सम हम उन सब के आमाल की ज़रूर बाज़ पुर्स करेंगे. ये लोग जो हँसते हैं अल्लाह तअला के साथ, दूसरा माबूद क़रार देते हैं, उन से आप के लिए हम काफ़ी हैं. सो उनको अभी मालूम हुवा जाता है. और वाक़ई हमें मालूम है ये लोग जो बातें करते हैं उस से आप तंग दिल हैं."
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (९५-९७)
अल्लाह की राय मुहम्मद को कितनी सटीक है कि कहता है कह दीजिए कि खुल्लम खुल्ला मैं डराने वाला बागड़ बिल्ला हूँ , यह कि इस से वह हजारों साल तक डरते रहेगे. हमने उन मुसलमानों पर दिमागी हिपना टिज्म कायम ओ दायम कर दिया है. यह आसमानी किताबों के मुख्तलिफ़ अजज़ा क्या होते हैं किसी दारोग गो आलिम से पूछना होगा की अल्लाह यहाँ पर बे महेल बहकी बहकी बातें क्यूं करता है? अपने प्यारे नबी को तसल्ली देता है कि वह उनके दुश्मनों से जवाब तलब करेगा कि मेरे रसूल की बातें क्यूं नहीं मानीं? और उल्टा उनका मजाक उड़ाया.
काश कि मुहम्मद तंग दिल न होते, कुशादा दिल और तालीम याफ़्ता भी होते।
  


म 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 12 February 2016

Soorah Hujr Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*********
सूरह हुज्र १५ , पारा-१३


मुहम्मद फेस बुक पर
इंटर नेट की एक और वेब साईट 'फेस बुक' पर पाकिस्तानी कठमुल्लाओं ने पाबन्दी लगाने में कामयाबी हासिल करली है. क्या इस से पाकिस्तानी अवाम का कुछ भला होगा बजाय नुकसान के, या आलमी बिरादरी को कोई फ़र्क पड़ने वाला है? दर अस्ल मुआमला ये था कि किसी इदारे ने शरारतन मुहम्मद डे पर मुहम्मद की तस्वीर लोगों से माँगी थी, मुस्लमान जो कुछ करते इदारे पर करते, बंद कर दिया अपने मुल्क में पूरी साईट को. इंटर नेट पर साईट को मैंने देखा, इसमें तुगरे भेज कर सबसे ज़्यादः मुसलमानों ने ही शिरकत की. हालांकी इस्लामी हिमाक़तों की एक यह भी एक तरह की तस्वीर ही है. तस्वीरों में एक तस्वीर दिल को दहला देने वाली छ सात साला बच्ची आयशा की है जिसको औधा कर मुहम्मद उसके साथ मसरूफे-बलात्कार हैं, जो अपनी गुडिया को दर्द के मारे दबोचे हुए है और उसकी आँखें बाहर निकली जा रही हैं. मुहम्मद वहशी जानवर की तरह उस मासूम से मह्जूज़ हो रहे हैं.
उफ़! क्या मुसलमानों से ये मुहम्मद की मुस्तनद और तारीखी हक़ीक़त देखी नहीं जाती? इसके चलते वह सच्चाई के दर्पन पर पथराव कर देंगे ? दुन्या के साथ चलना छोड़ देंगे. मुहह्म्मद के जरायम की परतें तो अब खुलना शुरू हुई हैं, अंत होने तक मुस्लमान बेयार ओ मदद गार तनहा रह जाएगा, अगर तौबा करके ईमान दार नहीं बन जाता.आइए चलिए हम ले चलते हैं आपको माज़ी में - - -
''आयशा कहती हैं जिस वक़्त मेरा मुहम्मद से निकाह हुवा मैं छ साल की थी. फिर मक्का से मदीना हिजरत करके पहुँचे तो मुझे बुखार आने लगा, मेरे सर के बाल गिर गए लेकिन अच्छी होने के बाद बाल फिर से निकल कर शानों के नीचे तक लटकने लगे. एक दिन मैं झूले में अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी कि यकायक मेरी वाल्दा ने आकर मुझको डांटा. मैं इनके इस डांटने का मतलब नहीं समझ सकी. वह मुझको वहां से पकड़ कर घर लाईं, मैं हांपने लगी, जब मेरी सांसें थमीं तो उन्हों ने मेरा हाथ, मुंह और सर धुलाया. घर के अन्दर कुछ नसारा औरतें बैठी थीं, उन्होंने वाल्दा के हाथों से मुझे ले लिया और वाल्दा मुझे इन के सुपुर्द करके चली गईं. इन औरतों ने मेरी जिस्मानी हालत को दुरुस्त किया. उसके बाद कोई नई बात पेश नहीं आई. मुहम्मद चाश्त के वक़्त मेरे घर आए, उन औरतों ने मुझे उनके हवाले कर दया.
(बुख़ारी-१५३५)
नन्हीं आयशा की यह आप बीती है. छ साल की उम्र में निकाह, आठ साल की उम्र में रुखसती, और इसी उम्र में वह हक़ीक़त जो फेस बुक में मुसव्विर ने तस्वीर खींची है. मुसलमानों! किस बात की मुखालिफ़त ? क्या सच्चाई का सामना नहीं कर सकते? क्या यह सब झूट है? क्या ५२ साला बूढ़े ने बच्ची आयशा को बेटी बना लिया था ? अगर तस्वीर देख्नना गवारा न करो तो तसव्वुर में चले जाओ, अपनी बहेन या बेटी को जो भी इन उमरों की हों, क्या किसी रूहानी अय्यार के हवाले करना पसंद करोगे? अगर नहीं तो अपने ज़मीर का साथ दो कि सदाक़त ही ईमान है न कि इस्लाम. और अगर हाँ मुहम्मद को हक बजानिब समझते हों तो तुम्हारे मुंह पर आक़! थू !!

चलो मक्खियों की तरह भिनभिना कर मुहम्मद की तुकबंदी की तिलावत की जाय और आने वाली नस्लों का आकबत राब किया जाय . । .

''अलरा -ये आयतें हैं एक किताब और कुरआन वाज़ेह की.''
सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (१)
अलरा यह बेमानी लफ्ज़ मुहम्मद का छू मंतर है इसके कोई माने नहीं. मुहम्मद बार बार अपनी किताब को वाज़ेह कहते हैं जिसका मतलब होता है स्पष्ट अथवा असंदिग्ध, जब कि कुरआन पूरी तरह से संदिग्ध और मुज़ब्ज़ब किताब है.खुद आले इमरान में आयत ६ में अपनी आयातों को अल्लाह मुशतबह-उल-मुराद(संदिग्ध) बतलाता है. इसी को हम क़ुरआनी तज़ाद (विरोधाभास) कहते है. इसी के चलते सदियों से विरोधाभाषी फतवे ओलिमा नाज़िल किया करते हैं.


''काफ़िर लोग बार बार तमन्ना करेंगे क्या खूब होता अगर वह लोग मुसलमान होते. आप उनको रहने दीजिए कि वह खा लें और चैन उड़ा लें और ख़याली मंसूबा उन्हें ग़फलत में डाले रखें, उन्हें अभी हक़ीक़त मालूम हुई जाती है ''
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (२-३)
काफ़िर लोग हमेशा खुश हल रहे हैं और मुसलमान बद हल. इस्लामी तालीम मुसलमानों को कभी खुश हाल होने ही न देगी, इनकी खुश हाली तो इनका फरेबी आक़बत है जो उस दुन्या में धरा है. सच पूछिए तो अज़ाब ए मुहम्मदी मुसलमानों का नसीब बन चुका है. चौदह सौ साल पहले अहमक़ अल्लाह ने कहा'' उन्हें अभी हक़ीक़त मालूम हुई जाती है '' उसका अभी, अभी तक नहीं आया ?


''और हमने जितनी बस्तियां हलाक की हैं, इन सब के लिए एक मुअययन नविश्ता है. कोई उम्मत न अपनी मीयाद मुक़रररा से न पहले हुई न और न पीछे रही.''
सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (४-५)
अल्लाह खुद एतरफ कर रहा है कि वह हलाकू है. फिर ऐसे अल्लाह पर सुब्ह ओ शाम लअनत भेजिए किसी ऐसे अल्लाह को तलाशिए जो बाप की तरह मुरब्बी और दयालु हो, नाकि बस्त्तियाँ तबाह करने वाला. उसके सही बन्दे ओसामा बिन लादेन की तरह ही होते हैं जो ? को तबाह करके ? बना सकते हैं.


''और कहा वह शख्स जिस पर कुरआन नाज़िल किया गया तहक़ीक़ तुम मजनूँ हो और अगर तुम सच्चे हो तो हमारे पास फ़रिश्तों को क्यूँ नहीं लाते? हम फ़रिश्तों को सिर्फ़ फ़ैसले के लिए ही नाज़िल किया करते हैं और इस वक़्त उनको मोहलत भी न दी जाती.''
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (६-८)
हदीसों में कई जगह है कि फ़रिश्ते ज़मीन पर आते हैं. पहली बार मुहम्मद को पटख कर फ़रिश्ते ने ही पढाया था''इकरा बिस्म रब्बे कल्लज़ी'' फिर ''शक्कुल सदर'' भी फ़रिश्ते ने किया, मुहम्मद ने आयशा से कह की जिब्रील अलैहिस्सलाम आए हैं तुम को सलाम कर रहे हैं. जंगे बदर में तो हजारों फ़रिश्ते मैदान में शाने बशाने लड़ रहे थे, कई (झूठे) सहबियों ने इसकी गवाही भी दी. अब लोगों के तकाजे पर मंतिक गढ़ रहे हो कि रोज़े हश्र वह नाज़िल होंगे तो कभी कहते हो कि उनके आने पर भूचाल ही आ जाएगा।


''हम ने कुरआन नाज़िल किया, हम इसकी मुहाफ़िज़ हैं. और हम ने आप के क़ब्ल भी अगले लोगों के गिरोहों में भेजा था और कोई उनके पास ऐसा नहीं आया जिसके साथ उन्हों ने मज़ाक न किया हो. इसी तरह ये हम उन मुज्रिमीन के दिलों में डाल देते हैं. ये लोग इस पर ईमान नहीं लाते और ये दस्तूर से होता आया है. अगर उनके लिए आसमान में कोई दरवाज़ा खोल दें फिर ये दिन के वक़्त इस में चढ़ जाएँ, कह देंगे कि हमारी नज़र बंदी कर दी गई है, बल्कि हम लोगों पर तो एकदम जादू कर रखा है.
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (९-१५)
अल्लाह कहता है कि वह खुद लोगों के दिलों में (शर) डाल देता है कि (स्वयंभू ) पैगम्बरों का मज़ाक़ उड़ाया करें. मुहम्मद इस बात को इस लिए अल्लाह से कहला रहे हैं कि बगेर उसके हुक्म के कुछ नहीं होता. यह उनका पहला कथन है. अब लोगों को मुजरिम भी अल्लाह को बना रहा है, जुर्म खुद कर रहा है ? भला क्यों? अल्लाह के पास कोई ईमान और इन्साफ़ का तराज़ू है? कहता है कि ऐसा उसका दस्तूर है? जबरा मारे रोवै न देय. ऐसे अल्लाह पर सौ बार लअनत. मुहम्मद आसमान में दरवाज़ा खोल रहे हैं गोया पानी में छेद कर रहे हैं.
मुसलमानों! दर असल तुम्हारी नज़र बंदी कर दी गई है आँखें खोलो, वर्ना - - तुम्हारी दास्ताँ रह जाएगी बस दस्तानों में.

''बेशक हमने आसमान में बड़े बड़े सितारे पैदा किए और देखने वालों के लिए इसको आरास्ता किया और इसको शैतान मरदूद से महफूज़ फ़रमाया, हाँ! कोई बात चोरी छुपे अगर सुन भागे तो इसके पीछे एक रौशन शोला हो लेता है.''
सूरह हुज्र, पारा१४ आयत (१६-१८)
रात को तारे टूटते हैं, ये उसका साजिशी मुशाहिदा है, उम्मी मुहम्मद ने शगूफ़ा तराशा है कि अल्लाह जो आसमान पर रहता है, वहां से ख़ारिज और मातूब किया गया शैतान उसके राजों के ताक में लगा रहता है कि कोई राज़ ए खुदा वंदी हाथ लगे तो मैं उस से बन्दों को भड़का सकूँ, जिसकी निगरानी पर फ़रिश्ते तैनात रहते हैं, शैतान को देखते ही रौशन शोले की मिसाईल दाग देते हैं. जो उसे दूर ताक खदेड़ आतीहै.
मुसलमानों कब तक तुम्हारे अन्दर बलूगत आएगी? कब मोमिन के ईमान पर ईमान लओगे?




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 8 February 2016

Soorah Ibraheem Qit2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (१८)
दूसरी  किस्त 
अल्लाह के साथ बन्दा कभी कुफ्र कर ही नहीं सकता जब तक अल्लाह खुद न चाहे, ऐसा मैं नहीं खुद मुहम्मदी अल्लाह का कहना है. 
दूर दराज़ की गुमराही और आस पास कि गुमराही में क्या फ़र्क़ है ये कोई अरबी नुकता होगा जिसे मुहम्मद बार बार दोहराते हैं, इसमें कोई दूर की कौड़ी जैसी बात नहीं. 
कोई नेक अमल हवा में नहीं उड़ता बल्कि नमाज़ें ज़रूर हवा में उड़ जाती हैं या ताकों में मकड़ी के जाले की तरह फँसी रहती हैं.
'' और जब तमाम मुक़दमात फ़ैसल हो चुके होंगे तो शैतान कहेगा कि अल्लाह ने तुम से सच वादे किए थे, सो वह वादे हम ने तुम से उस से ख़िलाफ़ किए थे और मेरे तुम पर और कोई ज़ोर तो चलता नहीं था बजुज़ इसके कि हम ने तुम को बुलाया था, सो तुम ने मेरा कहना मान लिया, तो तुम मुझ पर मलामत मत करो, न मैं तुम्हारा मदद गार हूँ और न तुम मेरे मदद गार हो. मैं खुद इस से बेज़ार हूँ कि तुम इससे क़ब्ल मुझ को शरीक क़रार देते थे. यक़ीनन ज़ालिमों के लिए दर्द नाकअज़ाब है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (22)
मुहम्मद जब कलाम इलाही बडबडाने में तूलानी या वजदानी कैफ़ियत में आ जाते हैं तो राह से भटक जाते हैं, इस सूरत में अगर कोई उनसे वज़ाहत चाहे तो जवाज़ होता है कि 
'' वह आयतें हैं जो मुशतबह-उल-मुराद हैं, इनका बेहतर मतलब बजुज़ अल्लाह तअला कोई नहीं जानता.'' 
सूरह आले इमरान आयत(७)में भी कुछ ऐसी ही कैफ़ियत है. अल्लाह के रसूल की, शैतान के साथ शैतानी कर रहे हैं.
''क्या आप को मालूम है कि अल्लाह ने कैसी मिसालें बयान फ़रमाई है . . . कलमा ए तय्यबा वह कि मुशाबह एक पाकीज़ा दरख़्त के जिसकी जड़ें खूब गडी हुई हों और इसकी शाखें उचाई में जारी हों और परवर दिगार के हुक्म से हर फ़स्ल में अच्छा फल देता हो. . . . और गन्दा कलमा की मिसाल ऐसी है जैसे एक ख़राब दरख़्त की हो जो ज़मीन के ऊपर ही ऊपर से उखाड़ लिया जाए, उसको कोई सबात न हो.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (२४-२५)
मुहम्मदी अल्लाह की मिसालें हमेशा ही बेजान और फुसफुसी होती हैं. खैर. मुहम्मद अपने कलमा ए तय्यबा की बात करते हैं, यह वह कलमा है जो अनजाने में ज़हरे हलाहल बन कर दुन्या पर नाज़िल हुवा. देखिए कि इसका असर कब तलक दुन्या पर क़ायम रहता है.
''तमाम हम्दो सना अल्लाह के लिए है जिसने बुढ़ापे में हमें इस्माईल और इशाक (इसहाक) अता फरमाए ऐ मेरे रब मुझको भी नमाज़ों का एहतमाम करने वाला बनाए रखियो मेरी औलादों में से भी बअज़ों को.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४०)
इर्तेकई हालात का शिकार, इंसानी तहज़ीब में ढलता हुवा इब्राहीम उस वक़्त अर्वाह ए आसमानी में ज़ात मुक़द्दस के लिए चंद पत्थर इकठ्ठा किए थे जो ज़मीन और उसके क़द से ज़रा ऊँचे हो जाएँ और उसी बेदी के सामने अपने सर को झुकाया था, उसके मन में बअज़ों के लिए बुग्ज़ न बअज़ों के लिए हुब थी. न ही मुहम्मदी इस्लाम का कुफ्र.
'' ऐ मेरे रब मेरी मग्फेरत कर दीजो, और मेरे माँ बाप की भी और कुल मोमनीन की हिसाब क़ायम होने के दिन . . . ''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४१)
इसी कुरआन में मुहम्मदी अल्लाह इस आयत के ख़िलाफ़ कहता है कि उन लोगों के लिए मग्फेरात की दुआ न करो जो काफ़िर का अक़ीदा लेकर मरे हों, ख्वाह वह तुम्हारे कितने ही क़रीबी अज़ीज़ ही क्यूं न हों. यहाँ पर इब्राहीम काफ़िर बाप आज़र के लिए अल्लाह के हुक्म से दुआ मांग रहा है? कोई आलिम इनबातों का जवाब नहीं देता।
'' पस कि अल्लाह तअला को अपने रसूल की वअदा खिलाफ़ी करने वाला न समझना. बे शक अल्लाह तअला बड़ा ज़बरदस्त और पूरा बदला लेने वाला है और सब के सब ज़बदस्त अल्लाह के सामने पेश होने वाले हैं.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४७)
इस आयत के लिए जोश मलीहाबादी कि रुबाई काफी होगी.कहते हैं - - -

गर मुन्ताकिम है तो झूटा है खुदा,
जिसमें सोना न हो वह गोटा है खुदा,
शब्बीर हसन खाँ नहीं लेते बदला,
शब्बीर हसन खाँ से भी छोटा है खुदा। 

''जिस रोज़ दूसरी ज़मीन बदल दी जाएगी, इस ज़मीन के अलावा आसमान भी, और सब के सब एक ज़बर दस्त अल्लाह के सामने पेश होंगे और तू मुजरिम को ज़ंजीरों में जकड़े हुए देखेगा, और उनके कुरते क़तरान के होंगे और आग उनके चेहरों पर लिपटी होगी ताकि अल्लाह हर शख्स को इसके किए की सज़ा दे यक़ीनन अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४९-५१)
ज़मीन बदल जाएगी, आसमान बदल जाएगा मगर इंसान न बदलेगा, क़तरान का कुरता पहने मुंह पर आग की लपटें लिए ज़बर दस्त अल्लाह के आगे अपने करतब दिखलाता रहेगा. आज ऐसा दौर आ गया है कि बच्चे भी ऐसी कहानियों से बोर होते हैं. मुसलमान इन पर यकीन रखते हैं?
मुसलमानों! 
दुन्या की हर शय फ़ानी है और यह दुन्या भी. साइंस दान कहते है कि यह धरती सूरज का ही एक हिस्सा है और एक दिन अपने कुल में जाकर समां जाएगी मगर अभी उस वक़्त को आने में अरबों बरसों का फासला है. अभी से उस की फ़िक्र में मुब्तिला होने की ज़रुरत नहीं. साइंस दान यह भी कहते हैं कि तब तक नसले-इंसानी दूसरे सय्यारों तक पहुँच कर बस जाएगी. साइंस कि बातें भी अर्द्ध-सत्य होती हैं, वह खुद इस बात को कहते है मगर इन अल्लाह के एजेंटों की बातें १०१% झूट होती हैं, इन पर क़तई और यक़ीननयक़ीन न करना.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 5 February 2016

Soorah Ibrahim Qist 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इब्राहीम १४

(पहली किस्त)

क थे बाबा इब्राहीम. 
यहूदियों, ईसाइयों, मुसलमानों 
(और शायद ब्रह्मा आविष्कारक आर्यन के भी) 
मुश्तरका मूरिसे आला (मूल पुरुष) अब्राम, अब्राहम, इब्राहीम, ब्राहम. (और शायद ब्रह्म भी)
बहुत पुराना ज़माना था, अभी लौह युग भी नहीं आया था, हम उनका बाइबिल प्रचलित नाम अब्राहम लिखते हैं कि वह पथर कटे कबीले के गरीब बाप तेराह के बेटे थे, बाप तेरह बार कहता कि 
बेटा! हिजरत करो,
हिजरत में बरकत है, 
हो सकता है तुम को एक दिन दूध और शहेद वाला देश रहने को मिले. 
आखिर एक दिन बाप तेराह की बात लग ही गई, 
अब्राहम ने सामान ए सफ़र बांधा, 
जोरू सारा को और भतीजे लूत को साथ किया और तरके-वतन (खल्देइया) किया.
ख़ाके ग़रीबुल वतनी छानते हुए फिरअना (बादशाह) के दर पर पहुँचे, माहौल का जायज़ा लिया. सारा हसीन थी, बादशाह ने दर पर आए मुसाफ़िरों को तलब किया, तीनों उसकी खिदमत में पेश हुए, अब्राहम ने सारा को अपनी बहेन बतला कर ग़रीबुल वतनी से नजात पाने का हल तय किया, वह उसकी चचा ज़ाद बहेन थी भी, 
बादशाह ने सारा को मन्ज़ूर ए नज़र बना कर अपने हरम में शामिल कर लिया.
एक मुद्दत के बाद जब यह राज़ खुला तो बादशाह ने अब्राहम की ख़बर ली मगर सारा की रिआयत से उसको कुछ माल मता देकर महल से बहार किया. उस माल मता से अब्राहम और लूत ने भेड़ पालन शुरू किया जिससे वह मालदार हो गए. सारा को कोई औलाद न थी, उसने बच्चे की चाहत में अब्राहम की शादी अपनी मिसरी खादिमा हाजरा से करा दी, जिससे इस्माईल पैदा हुआ, मगर इसके बाद ख़ुद सारा हामला हुई और उससे इस्हाक़ पैदा हुआ.
इसके बाद सारा और हाजरा में ऐसी महा भारत हुई कि अब्राहम को सारा की बात माननी पड़ी कि वह हाजरा को उसके बच्चे इस्माइल के साथ बहुत दूर सेहरा बिया बान में छोड़ आया.
अब्राहम को उसके इलोही ने ख्वाब में दिखलाया कि इस्हाक़ की कुर्बानी दे और वह बच्चे इस्हाक़ को लेकर पहाड़ियों पर चला गया और आँख पर पट्टी बाँध कर हलाल कर डाला मगर जब पट्टी आँख से उतारता है तो बच्चे की जगह मेंढा होता है और इस्हाक़ सही सलामत सामने खड़ा होता है.
मैं अब इस्लामी अक़ीदत से अबराम को '' हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम'' लिखूंगा जिनका सहारा लेकर मुहम्मद अपने दीन को दीने-इब्राहीमी कहते हैं.
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीन जुर्म ख़ास - - - 
पहला जुर्म और यह झूट कि उन्होंने अपनी बीवी सारा को बादशाह के सामने अपनी बहेन बतलाया और उसको बादशाह की खातिर हरम के हवाले किया.
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का दूसरा जुर्म कि अपनी बीवी हाजरा और बच्चे इस्माईल को दूर बिया बान सेहरा में मर जाने के छोड़ आए.
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीसरा जुर्म झूट का कि उन्हों ने अपने बेटे इस्हाक़ को हलाल किया था, दर असल उन्हों ने हलाल तो किया था मेंढे को ही मगर झूट की ऐसी बुन्याद डाली की सदियों तक उस पर ख़ूनी जुर्म का अमल होता रहा. 
खुद मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब मनौती की बुन्याद पर मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला को क़ुर्बान करने जा रहे थे मगर चाचाओं के आड़े आने पर सौ ऊँटों की कुर्बानी देकर अब्दुल्ला की जान बची. 
सोचिए कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के एक झूट पर हजारों सालों में कितनी जानें चली गई होंगी. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम झूट बोले, इस्हाक़ का मेंढा बन जाना गैर फितरी बात है, अगर अल्लाह मियाँ भी रूप धारण करके, आकर गवाही दें तो मेडिकल साइंस इस बात को नहीं मानेगी. अकीदा जलते तवे पर पैजामें जलाता रहे.ऐसे अरबी झूठे और मुजरिम पुरुषों पर हम नमाज़ों के बाद दरूद ओ सलाम भेजते हैं- - -
 अल्ला हुम्मा सल्ले . . . 
अर्थात 
'' ऐ अल्लाह मुहम्मद और उनकी औलादों पर रहमत भेज जिस तरह तूने रहमत भेजी थी इब्राहीम और उनकी औलादों पर.बे शक तू तारीफ़ किया गया है,तू बुज़ुर्ग है.
''मुसलमानों ! अपने बाप दादाओं के बारे में सोचो जिनको तुमने अपनी आँखों से देखा है कि किन किन मुसीबतों का सामना करके तुमको बड़ा किया है और उन बुजुगों को भो ज़ेहन में लाओ जिनका खूने-अक़दस तुम्हारे रगों में दौड़ रहा है और जिनको तुमने देखा भी नहीं, हजारों साल पहले या फिर लाखों साल पहले कैसी कैसी मुसीबतों का सामना करते हुए तूफानों से, सैलाबों से, दरिंदों से पहाड़ी खोह और जंगलों में रह कर तुमको बचाते हुए आज तक जिंदा रक्खा है क्या तुम उनको फरामोश करके मुहम्मद की गुमराहियों में पड़ गए हो? अब्राहम की यहूदी नस्लों के लिए और अरबी कुरैशियों के लिए दिन में पाँच बार दरूद ओ सलाम भेजते हो? शर्म से डूब मरो। 
आइए नई फ़िक्र पैदा करने के लिए पढ़ते हैं झूट की बुनियादें . . .
'' और जब इब्राहीम ने कहा ऐ मेरे रब! इस शहर (मक्का) को अम्न वाला शहर बना दीजिए और मेरे फ़रज़न्दों को बुतों की हिफ़ाज़त से बचाए रखियो. ऐ मेरे परवर दिगार बुतों ने बहुतेरे आदमियों को गुमराह कर रखा है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (३)
उस वक़्त जब यह दुआ मंगवा रहे हैं उम्मी मुहम्मद अपने पुरखे इब्राहीम से, न काबा था, न शहर मक्का था, न इन नामों निशान की कोई चिड़िया. गैर इंसानी आबादी वाला मुसलसल रेगिस्तान था, बस ज़रा सा पानी का एक चश्मा हुवा करता था. मजबूरी में इस्माईल की माँ हाजरा यहाँ बस कर इसको आबाद किया था तब, मुसाफ़िर रुक कर यहाँ पानी लेते और उसकी कुछ मदद करते. दो बार इस्माईल के जवानी में इब्राहीम यहाँ आया भी मगर मुलाक़ात नहीं हुई कि वह बद हाल दोनों बार तलाशए मुआश में शिकार पर गया था.मुहम्मद यहाँ पर बुतों को खुद बा असर पाते हैं जो इंसान को उनके या उनके अल्लाह के खिलाफ गुमराह करते रहते हैं. इसके बर अक्स पहले कह चुके हैं कि ये बे असर बुत किसी को कोई नफ़ा यानुक़सान नहीं पहुंचा सकते.
''हमने तमाम पैगम्बरों को उन ही के कौम के जुबान में पैगम्बर बना कर भेजा ताकि उन से बयान करें. फिर जिसको चाहे अल्लाह गुमराह करता है,जिसको चाहे हिदायत करता है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४)
ऐ मुहम्मदी अल्लाह! 
तूने तो यही सोचा था कि ज़ुबान के हिसाब अरबी कौम का पैग़म्बर अरबों के लिए भेजा है मगर मुहम्मद का जेहादी फार्मूला उससे हासिल माले ग़नीमत इतना कामयाब होगा कि यह आलमी बन जाएगा. अरब इसका फ़ायदा ईरान, अफ़गान, भारत, पूर्वी एशिया,अफ्रीका, योरोप में स्पेन और तुर्की से उठाएगा. मगर तूने यह भी नहीं सोचा कि यह निज़ाम कितना ख़ूनी होगा? वाक़ई तू शैतान ए अज़ीम है जिसको चाहे गुमराह करे, जैसे हमारे भोले भाले ,मासूम दिल मुसलमान, तेरी चालों को समझ ही नहीं पाते।
''और कुफ्फ़ार ने रसूल से कहा कि हम तो अपनी सर ज़मीन से निकल देंगे, या तुम हमारे मज़हब में फिर आओ, पस उन पर उन के रब ने वहिय नाज़िल की कि हम उन ज़ालिमों को ज़रूर हलाक़ कर देंगे और उनके बाद तुम को उस सर ज़मीन पर आबाद रखेंगे. ये हर उस शख्स के लिए है जो मेरे रूबरू खड़े रहने से डरे और मेरी वईद से डरे. और कुफ्फार फैसला चाहने लगे, जितने ज़िद्दी थे वह सब नामुराद हुए. इसके आगे दोज़ख है और इसको ऐसा पानी पीने को दिया जाएगा जो पीप होगा, जिसे घूँट घूँट पिएगा और कोई सूरत न होगी और हर तरफ उसके मौत की आमद होगी, वह किसी तरह से मरेगा नहीं और उसे सख्त अज़ाब का सामना होगा.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (१३-१७)
मुसलामानों! 
देखो कि कितनी सख्त और घिनावनी सज़ाएँ तुम्हारे अल्लाह ने मरने के बाद भी तुम्हारे लिए तैयार कर रक्खी है, यहाँ तो दुन्या भर के अज़ाब थे ही. वहां फिर मौत भी नहीं है कि इन से नजात मिल सके. एक ही रास्ता है कि हिम्मत करके ऐसे अल्लाह को एक लात जम कर लगाओ कि फिर तुम्हारे आगे यह मुँह खोलने लायक भी न रहे.यह खुद तुम्हारा पिया हुवा ''मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' का ज़हर है जो तुम्हारी खूब सूरत ज़िन्दगी को घुलाए हुए है. सर ज़मीनों को ''मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' का नाटक है जो अपने जादू से लोगों को पागल किए हुए है. अब बस बहुत हो चुका. आप इक्कीसवीं सदी में पहुँच चुके हैं. आँखें खोलिए. ये पाक कुरान नहीं, नापाक नजसत है जो आप सर रखे हुए हैं।
''जो लोग अपने परवर दिगार के साथ कुफ्र करते हैं उनकी हालत बएतबार अमल के ये है कि जैसे कुछ राख हो जिस को तेज़ आँधी के दिन में तेज़ी के साथ उड़ा ले जाए. इन लोगों ने अमल किए थे, इस का कोई हिस्सा इनको हासिल नहीं होगा. ये भी बड़ी दूर दराज़ की गुमराही है.''

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान