Sunday 26 May 2013

सूरह अल-ज़ुमर ३९

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
******************

सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३
(1)

"यह नाज़िल की हुई किताब है अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाले की तरफ से "
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (१)
नाज़िल और ग़ालिब यह दोनों अल्फाज़ मकरूह हैं अगर रहमान और रहीम, वह खालिक़ ए कायनात कोई है तो. नाज़िल वह शै होती है जो नाज़ला हो. वबाई हालत में कोई आफ़त नाज़ला होती है.
ग़ालिब वह सूरतें होती हैं जिसका वजूद पर ग़लबा हो,  जो हठ धर्मी और ना इंसाफी का एक पहलू होता है. अल्लाह अगर नाज़ला और ग़लबा में रखता है तो वह ख़ालिक़ हो ही नहीं सकता.
कुदरत तो हर शै को उसके वजूद में आने के लिए मददगार होती है. वजूद का मज़ा लेकर वह उसे फ़ना की तरफ़ माइल कर देती है.
इस्लाम, का अल्लाह और इसका रसूल मखलूक के लिए नाज़ला और ग़लबा ही हैं. इसमें रहकर क़ुदरत  की बख्शी हुई नेमतों से महरूमी है . 

"अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मखलूक में से जिसको चाहता है मुन्तखिब फ़रमाता है. वह पाक है और ऐसा है जो वाहिद है, ज़बरदस्त है."
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (४)

ईसा को खुदा का बेटा कहने वाले ईसाइयों पर वार करते हुए कुरआन में बार बार कहा गया है कि "लम यलिद वलम यूलद" न वह किसी का बाप है और न किसी का बेटा. अब मुहम्मद कह रहे है "अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मखलूक में से जिसको चाहता है मुन्तखिब फ़रमाता है."
कुरान तज़ाद (विरोधाभास) का का अफ़साना है. मुहम्मद खुद इस बात के इमकानात की सूरत पैदा कर रहे हैं 

"और तुम्हारे नफ़े के लिए आठ नर मादा चार पायों को पैदा किये और तुम्हें माँ के पेट में एक कैफियत के बाद दूसरी कैफियत में बनाता है, तीन तारीखों में. ये है अल्लाह तुम्हारा रब, इसी की सल्तनत है.  इसके सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं. सो तुम कहाँ फिरे चले जा रहे हो?"
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (६)

कुरआन के ख़िलाफ़ अब इससे ज़्यादः और क्या सुबूत हो सकता है कि यह किसी अनपढ़,मूरख और कठ मुल्ले की पोथी है.
वह सिर्फ आठ चौपायों की ख़बर रखता है, उसे इस बात की कहाँ ख़बर है कि एक एक चौपायों की सौ सौ इक्साम हो सकती हैं. हमल में इंसान की तीन सूरतें भी उसके जिहालत का सुबूत है, पिछले बाबों में इसका ज़िक्र आ चुका है

"ऐ बन्दों! मुझ से डरो. और जो लोग शैतान की इबादत करने से बचते हैं, अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जे होते हैं, वह मुस्तहक खुश ख़बरी सुनाने के हैं, सो आप मेरे इन बन्दों को खुश ख़बरी सुना दीजिए जो इस कलाम को कान लगा कर सुनते हैं, फिर उसकी अच्छी अच्छी बातों पर चलते हैं, यही हैं जिन को अल्लाह ने हिदायत की. और यही हैं जो अहले अक्ल हैं."
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (१७-१८)

कोई खुदा यह कह सकता है क्या?
दर पर्दा मुहम्मद ही अल्लाह बने हुए हैं ये बात जिस दिन आम मुसलामानों की समझ में आ जाएगी इसी दिन उनको अपने बुजुगों के साथ ज़ुल्म ओ सितम के घाव नज़र आ जाएँगे.
कुरआन में एक बात भी अच्छी नहीं है अगर कोई है तो वह आलमी सच्चियों कि सूरत है.
मुसलामानों कुरआन तुम्हें सिर्फ गुमराह करता है .

"लेकिन जो लोग अपने रब से डरते हैं उनके लिए बाला खाने है. जिन के ऊपर और बाला खाने हैं, जो बने बनाए तय्यार हैं. इसके नीचे नहरें चल रही हैं, ये अल्लाह ने वादा किया है. अल्लाह वादा खिलाफी नहीं करता. क्या तूने इस पर कभी नज़र नहीं की कि अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया फिर इसको ज़मीन के सोतों में दाखिल कर देता है, फिर इसके ज़रीए  से खेतियाँ करता है जिसकी कई क़िस्में हैं, फिर वह खेती बिलकुल ख़ुश्क हो जाती है सो इनको तू ज़र्द देखता है, फिर इसको चूरा चूरा कर देता है. इसमें अहले अक्ल के लिए बड़ी इबरत है.
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (२०-२१)


ए उम्मी! आजकल तेरे बाला खाने से लाख गुना बेहतर इंसानी पाखाने बन गए हैं. हज़ारों खाने वाली सैकड़ों मंज़िल की इमारतें खड़ी होकर तुझे मुँह चिढ़ा रही हैं. तूने मुसलामानों पर हराम कर रखी हैं इंसानी काविशों की बरकतें. तूने तो सिर्फ़ अपने ख़ानदान  कुरैश की बेहतरी तक सोंचा था, अब तो हर एक बिरादरी में एक कठ मुल्ला, मुहम्मद बना बैठा है. उनके ऊपर मौलानाओं की टोली फ़तवा लिए बैठी है, औए इससे भी कोई बाग़ी हुआ तो मफ़िया सरगना सर काटने को तैयार है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 19 May 2013

Soorah Saad 38 (3rd)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*******************************

"एक नसीहत का मज़मून ये तो हो चुका और परहेज़ गारों के लिए अच्छा ठिकाना है. यानी हमेशा रहने के बाग़ात जिनके दरवाज़े इनके लिए खुले होंगे. वह बागों में तकिया लगाए बैठे होंगे. वह वहाँ बहुत से मेवे और पीने की चीज़ (शराब) मंगवाएंगे. और इनके पास नीची निगाह वालियाँ, हम उम्र होंगी.  ये वह है जिनका तुम से रोज़े हिसाब आने का वादा किया जाता है और ये हमारी अता है . ये बात तो हो चुकी."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (५६-५७)

ये बात तो हो चुकी, अब मुसलामानों को चाहिए कि इस बात में कुछ बात ढूंढें. कौन सी नसीहत कहाँ है?
हलक़ तक शराब उतारने के बाद ही कोई ऐसी बहकी बहकी बातें करता है.
"ये एक जमाअत और आई जो तुम्हारे साथ घुस रही हैं, इन पर अल्लाह की मार. ये भी दोज़ख में घुस रहे हैं. वह कहेंगे बल्कि तुम्हारे ऊपर ही अल्लाह की मार. तुम ही तो ये हमारे आगे लाए हो , सो बहुत ही बुरा ठिकाना है, दुआ करेंगे ऐ हमारे परवर दिगार! इसको जो हमारे आगे लाया हो, उसको दूना अज़ाब देना."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (५९-६१)

शराब जंगे खैबर  के बाद हराम हुई. ये आयतें यक़ीनन शराब की नशे की हालत में कही गई हैं. खुद पूरी सूरह गवाह हैं कि ऐसी बातें होश मंदी में नहीं की जाती.
"ये बात, यानी दोज़खियों का आपस में लड़ना झगड़ना बिलकुल सच्ची हैं. आप कह दीजिए कि मैं तो डराने वाला हूँ और बजुज़ अल्लाह वाहिद ओ ग़ालिब  के कोई लायक़े इबादत नहीं है. और वह परवर दिगार है आसमान ओ ज़मीन का और उन चीजों का जो कि उसके दरमियान हैं, ज़बर दस्त बख्शने वाला."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (६४-६६)

आप कह दीजिए कि ये अजीमुश्शान मज़मून है जिस से शायद तुम बे परवाह हो रहे हो. मुझको आलमे बाला की कुछ भी खबर न थी, झगड़ रहे थे."
सूरह साद  - ३८- पारा २३- आयत (६६-६९)
सर फिर, मजनू, दीवाना , पागल था वह अपने ही बनाए हुए अल्लाह का रसूल.जिसकी पैरवी में है  दुन्या कि २०% आबादी. वह अपने पैरों से उलटी तरफ भाग रही है.
यह रहा कुरआन का मज़मून ए नसीहत जिसमे आप नसीहत को तलाश  करें. पूरे कुरआन में, कुरआन की अज़मतों का बखान है. जिसे सुन सुन कर आम मुसलमान इसे अक्दास की मीनार समझता है. असलियत ये है कि कुरआन का ढिंढोरा ज्यादः है और इसमें मसाला कम. कम कहना भी ग़लत होगा कुछ है ही नहीं, बल्कि जो कुछ है वह नफी में है. इसके आलिम अवाम को कुरआन का मतलब समझने से मना करते हैं और इस अमल को गुनाह करार देते हैं कि आम लोग बात को उलटी समझेंगे. दर अस्ल वह खायाफ़ होते हैं कि कहीं अवाम की समझ में इसकी हक़ीक़त न  आ जाए. तर्जुमा पर ज़बान दानी की बहस छेड़ देते हैं जिससे पार पाना सब के बस की बात नहीं, जब कि कुरआन इल्म, ज़बान, किसी फलसफे और किसी मंतिक से कोसों दूर है. इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाना बैसे भी रुसवाई बन जाता है या आगे बढ़ने पर मजहबी गुंडों का शिकार होना तय हो जाता है. मगर कौम को जागना ही पडेगा.


"जो दूर अनदेशी से फैसला नहीं करते हैं, पछतावा उसको पास ही खड़ा मिलता है"
"कानफ़िव्यूशेश"
(चीनी मसलक)
इसे कहते हैं कलामे पाक   


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 12 May 2013

Soorah Saad 38 2nd (41-48)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

************************


सूरह साद - ३८- पारा २३  (2)

"और आप हमारे बन्दे अय्यूब को लीजिए जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि शैतान ने मुझे रंज ओ आज़ार पहुँचाया. अपना पाँव मारो यह नहाने का ठंडा पानी है और पीने का, और हम ने उनको उनका कुनबा अता किया और उनके साथ उनके बराबर और भी अपनी रहमत खास्सा के सबब और अहले अक्ल के याद गार रहने के सबब से और तुम हाथ में एक मुट्ठा सीकों का लो और इस से मरो और क़सम न तोड़ो. बेशक उनको मैं ने साबिर बनाया, अच्छे बन्दे थे कि बहुत रुजू होते थे."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (४१-४२)

उम्मी में इतनी सलाहियत नहीं कि किसी बात को पूरी कर सके. इस खुराफात को दोहराते रहिए और नतीजा खुद अख्ज़ कीजिए.
अय्यूब एक खुदा तरस बन्दा था. वक़्त ने उसे बहुत नवाज़ा था. सात बेटे और तीन बेटियाँ थीं. सब अपने अपने घरों में खुश हल थे. अय्यूब अपने मुल्क का अमीर तरीन इंसान था. उसके पास ७००० भेढं, तीन हज़ारऊँट, एक हज़ार गाय बैल, ५०० गधे और बहुत से नौकर चाकर थे.
एक दिन शैतान ने जाकर खुदा को भड़काया कि तू अय्यूब का माल मेरे हवाले कर दे, फिर देख वह तेरे लिए कितना बाक़ी बचता है? खुदा ने उसकी चुनौती कुबूल करली. शैतान की शैतानी से अय्यूब का कुनबा एक हादसे में ख़त्म हो जाता है, दूसरे दिन तमाम जानवर लुट जाते हैं.
अचानक ये सब देख कर अय्यूब ने कहा जो हुवा सो हुवा नंगे आए थे नंगे जाएँगे. वह बदस्तूर यादे इलाही में ग़र्क़ हो गया.
फिर एक दिन शैतान खुदा के पास आता है और कहता है कि माना अय्यूब तुझे भूला नहीं और न तुझ से बेज़ार हुवा, मगर ज़रा उसको तू जिस्मानी मज़ा चखा तो देख वह कितना खरा उतरता है.
खुदा ने कहा ठीक है, जा मैंने अय्यूब के जिस्म को तेरे हवाले किया, बस कि उसकी जान मत लेना.
शैतान अय्यूब के जिस्म में ऐसे फोड़े निकालता है कि कपडा पहेनना भी उसे दूभर हो जाता. वह नंगा होकर अपने जिस्म पर राख की खाक पहेनने लगा. अय्यूब एक छोटे से कमरे में क़ैद होकर खुदा की इबादत करने लगा. वह अपने जोरू के तआने भी सुनता रहा. वह कहती - - - कि अब ऐसे खुदा को कोसो जिसकी इबादत में लगेरहते हो. वह कहता नादान क्या मालिक से सब अच्छा ही अच्छा पाने की उम्मीद रखती है.
अय्यूब ने इस हालत में नज्में कही हैं, नमूए पेश हैं  - - -

ऐ मालिक! पीढ़ी दर पीढ़ी से तू हमारी पनाह बना चला आ रहा है,
उसके पहले जब परबत भी नहीं बने थे, न ज़मीन थी, न कायनात थी, तब भी इब्तेदा से लेकर इन्तहा तक,
ऐ माबूद तू ही रहा.
बे सबात (क्षण भंगुर) तू ही मिटटी में मिल जाने के लिए कहता है,
और फिर कहता है ऐ इंसानों की औलाद लौट आओ.
क्यूँकि तुझे हज़ारों साल भी बीते हुए कल की तरह लगते है और वह जैसे रात का एक पहर हो.
तू आदमियों को उठा ले जाता है हर सुब्ह होने पर,
देखे हुए ख्व्स्बों की तरह लगते हैं,
या बढ़ी हुई घास की तरह .
वह सुब्ह बढ़ती है और हरी होती है और शाम को कट जाती है और सूख जाती है.
सच मुच तेरे अज़ाब से हम बर्बाद हो गए हैं ,
और जब तूने कहर ढाया तो हम घबरा गए थे,
हमारे गुनाहों को तूने मेरे सामने रखा,
ख़याल कर कि मेरी ज़िन्दगी कितनी मुख़्तसर है,
और तूने इंसानों को कितना फ़ानी बनाया है.    
(२)
"ऐ खुदा मेरे पुख्खों का पूज्य तेरा शुक्र है ,
तू पूजा के लायक है और काबिले तारीफ़ है,
तेरे पाक और अज़मत वाले नामों को सलाम,
ऐ मुक़द्दस और पुर नूर पूज्य ! तेरे आगे सर ख़म करता हूँ,
ऐ आसमानी फरिश्तो और बदलो! तुम भी शुक्र अदा करो.
ऐ खलक की तमाम मखलूक ! उसको सलाम करो,
ऐ सूरज और चाँद खुदा का शुक्र अदा करो,
ऐ बारिश और ओस! खुदा का शुक्र अदा करो.
ऐ अतराफ की हवाओ! उसका शुक्र अदा करो- - -
(तौरेत)

यह है तौरेत में योब (अय्यूब) की सबक आमोज़ कहानी जिसे क़ुरआनी अल्लाह न चुरा पाता है और न चर पाता है.
"और हमारे बन्दे इब्राहीम, इसहाक़ और याकूब जो हाथों वाले और आँखों वाले थे - - - (?)
और इस्माईल और अल लसीअ  और ज़ुलकुफ्ल को भी याद कीजिए.- - -"
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (४५-४८)

जिन का भी नाम सुन रखा था मुहम्मद ने सब को उनका अल्लाह याद करने को कहता है, हैरत की बात ये है कि सभी हाथों और आँखों वाले थे, उस से भी ज्यादः  हैरत का मुक़ाम ये है कि आज और इस युग में भी मुसलमान इन बातों का यक़ीन करते हैं. इस बेहूदा और गुमराही की तबलीग भी करते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 5 May 2013

सूरह साद - ३८- पारा २३ (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

**********


सूरह साद - ३८- पारा २३ (1)

फ़तह मक्का के बाद मुसलामानों में दो बाअमल गिरोह ख़ास कर वजूद में आए जिन का दबदबा पूरे खित्ता ए अरब में क़ायम हो गया. 
पहला था तलवार का क़ला बाज़ 
और दूसरा था क़लम बाज़ी का क़ला बाज़. 
अहले तलवार जैसे भी रहे हों बहर हाल अपनी जान की बाज़ी लगा कर अपनी रोटी हलाल करते मगर इन क़लम के बाज़ी गारों ने आलमे इंसानियत को जो नुकसान पहुँचाया है उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती. अपनी तन आसानी के लिए इन ज़मीर फरोशों ने मुहम्मद की असली तसवीर का नकशा ही उल्टा कर दिया. इन्हों ने कुरआन की लग्वियात को अज़मत का गहवारा बना दिया. यह आपस में झगड़ते हुए मुबालगा आमेज़ी (अतिशोक्तियाँ)में एक दूसरे को पछाड़ते हुए, झूट के पुल बंधते रहे. कुरआन और कुछ असली हदीसों में आज भी मुहम्मद की असली तस्वीर सफेद और सियाह रंगों में देखी जा सकती है. इन्हों ने हक़ीक़त की बुनियाद को खिसका कर झूट की बुन्यादें रखीं और उस पर इमारत खड़ी कर दी. -
कहते हैं कि इतिहास कार किसी हद तक ईमान दार होते हैं मगर इस्लामी इतिहास कारों ने तारीख़ को अपने अक़ीदे में ढाल कर दुन्या को परोसा.
"मुकम्मल तारीख ए इस्लाम" का एक सफ़ा मुलाहिज़ा हो - - -
"हज़रात अब्दुल्ला (मुहम्मद के बाप) के इंतेक़ाल के वक़्त हज़रात आमना हामिला थीं, गोया रसूल अल्लाह सल्ललाह - - शिकम मादरी में ही थे कि यतीम हो गए. आप अपने वालिद के वफ़ात के दो माह बाद १२ रबीउल अव्वल सन १ हिजरी मुताबिक ५७० ईसवी में तवल्लुद (पैदा) हुए. आप के पैदा होते ही एक नूर सा ज़ाहिर हुवा, जिस से सारा मुल्क रौशन हो गया. विलादत के फ़ौरन बाद ही आपने सजदा किया और अपना सर उठा कर फरमाया " अल्लाह होअक्बर वला इलाहा इल्लिल्लाह लसना रसूल लिल्लाह "
जब आप पैदा हुए तो सारी ज़मीन लरज़ गई. दर्याय दजला इस क़दर उमड़ा कि इसका पानी कनारों से उबलने लगा. ज़लज़ले से कसरा के महल के चौदह कँगूरे गिर गए. आतिश परस्तों के आतिश कदे जो हज़ारों बरस से रौशन थे, खुद बख़ुद बुझ गए. आप कुदरती तौर पर मख्तून ( खतना किए हुए) थे और आप के दोनों शाने के दरमियान मोहरे नबूवत मौजूद थी.
रसूल अल्लाह सालअम निहायत तन ओ मंद और तंदुरुस्त पैदा हुए. आप के जिस्म में बढ़ने की कूव्कत आप की उम्र के मुकाबिले में बहुत ज़्यादः थी. जब आप तीन महीने के थे तो खड़े होने लगे और जब सात महीने के हुए तो चलने लगे. एक साल की उम्र में तो आप तीर कमान लिए बच्चों के साथ दौड़े दौड़े फिरने लगे. और ऐसी बातें करने लगे थे कि सुनने वालों को आप की अक़ल पर हैरत होने लगी."

गौर तलब है कि किस क़दर गैर फ़ितरी बातें पूरे यकीन के साथ लिख कर सादा लौह अवाम को पिलाई जा रही हैं. अगर कोई बच्चा पैदा होते ही सजदा में जा कर दुआ गो हो जाता तो समाज उसे उसी दिन से सजदा करने लगता. न कि वह हलीमा दाई की बकरियां चराने पर मजबूर होता. एक साल की उसकी कार गुजारियां देख कर ज़माना उसकी ज़यारत करने आता न कि बरसों वह गुमनामी की हालत में पड़ा रहता. कबीलाई माहौल में पैदा होने वाले बच्चे की तारीखे पैदाइश भी गैर मुस्तनद है. रसूल और इस्लाम पर लाखों किताबें लिखी जा चुकी हैं. और अभी भी लिखी जा रही हैं जो दिन बदिन सच पर झूट की परतें बिछाने का कम करती हैं.  इन्हीं परतों में मुसलामानों की ज़ेहन दबे हुए हैं.

चंगेज़ खान ने ला शुऊरी तौर पर एक भला काम ये किया था जब कि दमिश्क़ की लाइब्रेरी में रखी लाखों इस्लामी किताबों को इकठ्ठा कराके आलिमो से कहा था कि इनको खाओ. ऐसा न करने पर आलिमो को वह सज़ा दी थी कि तारीख उसको भुला न सकती. उसने पूरी लाइब्रेरी आग के हवाले कर दिया था और आलिमों को जहन्नम रसीदा. आज भी इन इल्म फरोशों के लिए ज़रुरत है किसी चंगेज़ खान की.

इस पूरी सूरह में मुहम्मद की ज़ेहनी बे एतदाली देखी जा सकती है. उनके कलाम को नीम पागल की बडबड कहा जा सकता है. इसे क़लम गीर करना जितना मुहाल होगा इस से ज़्यादः पढने वाले को पचा पाना; उस वक़्त के लोगों ने मुहम्मद को जो शायरे दीवाना कहा था, उसके बाद कुछ नहीं कहा जा सकता.

बतौर नमूना कुछ आयतें पेश हैं - - -
"साद"
मुहम्मदी अल्लाह का छू मंतर
"क़सम है कुरआन की जो नसीहत से पुर है बल्कि ये कुफ्फर तअस्सुब (पक्ष पात) और मुखालिफ़त में हैं. इनसे पहले बहुत सी उम्मतों को हम हलाक़ कर चुके हैं, सो इन्हों ने बड़ी हाय पुकार की थी. और वह वक़्त खलासी का न था. और इन कुफ्फर कुरैश ने इस पर तअज्जुब किया कि इनके पास इनमें ही से कोई पैगम्बर डराने वाला आ गया. और कहने लगे ये शख्स साहिर और झूठा है. क्या ये सच्चा हो सकता है? क्या हम सब में से इसी के ऊपर कलाम इलाही नाज़िल होता है, बल्कि ये लोग मेरी वह्यी की तरफ़ से शक में हैं, बल्कि अभी उन्हों ने मेरे एक अज़ाब का मज़ा नहीं चक्खा "
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (१-८)

मुहम्मद की कबीलाई लड़ाई थी जो बद किस्मती से बढ़ते बढ़ते आलिमी बन गई. हम मुसलमानाने आलम एक ही नहीं सारे अज़ाबों का मज़ा सदियों से चखते चले आ रहे हैं. अब तो चखने की बजाए छक रहे हैं.

"और हमारे बन्दे दाऊद को याद कीजिए जो निहायत क़ुदरत और रहमत वाले थे. वह बहुत रुजू करने वाले थे. हमने पहाड़ों को हुक्म दे रखा था कि उनके साथ सुब्ह ओ शाम तस्बीह किया करें. और परिंदों को भी, जमा हो जाते थे. सब उनकी वजेह से मशगूले ज़िक्र (ईश गान) हो जाते थे."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (१९-२०)

दाऊद एक मामूली चरवाहा था और गोफन चलने में माहिर था. एक सेना पति को गोफ्ने की मार से चित करने के बाद वह यहूदी एक लुटेरा डाकू बन गया था. फिलस्तीनियो में लूटमार करता हुवा एक दिन बादशाह बन गया. वह मुहम्मद की तरह ही शायर था. उसकी नज़्मों को ही ज़ुबूर कहते हैं. लम्बी उम्र पाई थी और बुढ़ापे में सर्दियों से परेशान रहता था. इलाज के लिए उसके मातहतों ने उसके लिए मुल्क कि सबसे खूसूरत नव उम्र लड़की से शादी कर करवा दिया था. उसके मरने के बाद उसका लड़का उस लड़की का आशिक बन गया था जिसे दाऊद पुत्र सुलेमान ने धोके से मरवा दिया था. दाऊद आखरी उम्र के पड़ाव में बुत परस्त(मूर्ति पूजक) हो गया था. (तौरेत)
मुहम्मद पहाड़ों और परिंदों से उसके साथ तस्बीह करवा के पहाड़ ऐसा झूट गढ़ रहे हैं.
हमेसा की तरह बेज़ार करने वाला क़िस्सा मुहम्मदी अल्लाह का देखिए- - -
दो अफ़राद दीवार फान्द कर दाऊद के इबादत खाने में घुस आते हैं, उनमें से एक कहता है कि आप डरें मत. हम दोनों भाई भाई हैं. आप हमारा फ़ैसला कर दीजिए. हम लोगों के पास सौ अशर्फियाँ हैं, मेरे पास एक और इसके पास ९९ . ये कहता है ये भी मुझे दे डाल ताकि मेरी सौ पूरी हो जाएँ. दाऊद इसे ज़ुल्म क़रार देता हुवा कहता है, अक्सर साझीदार ज़ुल्म करने लगते हैं.
इसके बाद मुहम्मद तब्लिगे इस्लाम करने लगते है और क़िस्सा अधूरा रह जाता है. "
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (२२-२४)
यूनुस की कहानी के बाद अल्लाह मुहम्मद के कान में फुसकता है कि अब अय्यूब की कहानी गढ़ो- - -
कलामे दीगराँ  - - -
"ए इलाही! इनके अन्दर खौफ़ पैदा कर, कौमे अपने आप को इंसान ही मानें"
"तौरेत"
(यहूदी मसलक )
इसे कहते हैं कलामे पाक 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान