Wednesday 30 March 2011

सूरह सफ़ ६१- पारा -२८

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी ''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है, हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं, और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह सफ़ ६१- पारा -२८

मुहम्मद उम्मी थे अर्थात निक्षर. तबीयतन शायर थे, मगर खुद को इस मैदान में छुपाते रहते, मंसूबा था,

"जो शाइरी करूंगा वह अल्लाह का कलाम क़ुरआन होगा."

इस बात की गवाही में क़ुरआन में मिलनें वाली तथा कथित काफिरों के मुहम्मद पर किए गए व्यंग

'' शायर है ना'' है.

शाइरी में होनें वाली कमियों को, चाहे वह विचारों की हों, चाहे व्याकरण की, मुहम्मद अल्लाह के सर थोपते हैं.

अर्थ हीन और विरोद्दाभाशी मुहम्मद की कही गई बातें

''मुश्तबाहुल मुराद '' आयतें बन जाती हैं जिसका मतलब अल्लाह बेहतर जानता है.

(सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयत 6+7)

यह तो रहा क़ुरआन के लिए गारे हेरा में बैठ कर मुहम्मद का सोंचा गया पहला पद्य आधारित मिशन ''क़ुरआन''.

दूसरा मिशन मुहम्मद का था गद्य आधारित .

इसे वह होश हवास में बोलते थे, खुद को पैगम्बराना दर्जा देते हुए, हांलाकि यह उनकी जेहालत की बातें होतीं जिसे कठबैठी या कठ मुल्लई कहा जाय तो ठीक हो गा .

यही मुहम्मदी ''हदीसें'' कही जाती हैं.

क़ुरआन और हदीसों की बहुत सी बातें यकसाँ हैं, ज़ाहिर है एह ही शख्स के विचार हैं, ओलिमा-ए-दीन इसे मुसलामानों को इस तरह समझाते हैं कि अल्लाह ने क़ुरआन में कहा है जिस को हुज़ूर (मुहम्मद) ने हदीस फलाँ फलाँ में भी बयान फरमाया है.

अहले हदीस का भी एक बड़ा हल्का है जो मुहम्मद कि जेहालत पर कुर्बान होते हैं. शिया कहे जाने वाले मुस्लिम इससे चिढ्हते हैं क्यूँकि अक्सर हदीसें अली मौला एंड कम्पनी का पोल खोलती है.

मुसलमानों! जागो क्या तुम को मालूम है कि तुम पामाल हो रहे हो ? कभी सोचा है कि इसकी वजह क्या हो सकती है ? इस की वजह है तुम्हें घुट्टी मे पिलाया गया इसलाम और तुम्हारे वजूद पर छाए हुए शैतानी आलिमाने इसलाम.

कुरान तुम्हारा पैदाइशी दुश्मन है जो कहता है

"अल्लाह की राह में क़त्ताल करो."

इसके रद्दे अमल में सारी मुहज्ज़ब दुन्या तुमको क़त्ल करके ज़मीन को पाक कर देगी. अभी वक़्त है तरके इसलाम करके ईमान को पकडो, मुस्लिम से मोमिन हो जाओ बहुत आसान है ये काम, बस तुम्हारे पक्के इरादे कि ज़रुरत है.

देखिए कि क़ुरआनी मक्र कैसी कैसी बातें करता है - - -


"सब चीजें अल्लाह की पाकी बयान करती हैं, जो कुछ कि आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है. वही ज़बरदस्त है, हिकमत वाला है. ऐ ईमान वालो ! ऐसी बात क्यूँ कहते हो जो करते नहीं? अल्लाह के नज़दीक ये बात बड़ी नाराज़ी की बात है कि ऐसी बात कहो और करो नहीं."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१-३)

और खुद साख्ता रसूल की नापाकी भी बयान करता है, कि उनकी करनी और कथनी में बड़ा फर्क है. जो मोमिन को गुमराह करके मुस्लिम बनाते हैं.


"जब मूसा ने अपनी कौम से फ़रमाया कि ऐ मेरी कौम मुझको क्यूँ ईज़ा पहुंचाते हो , हालांकि तुम को मालूम है कि मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ . फिर जब वह लोग टेढ़े हो रहे तो अल्लाह तअला ने इन्हें और टेढ़ा कर दिया."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (५)

मूसा एक ज़ालिम तरीन इंसान था, तौरेत उठा कर इसकी जन्गी दस्ताने पढ़ें.

अल्लाह टेढ़ा तो नहीं होता मगर हाँ मुहम्मदी अल्लाह पैदायशी टेढ़ा है. कहते हैं, "हालांकि तुम को मालूम है कि मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ" सभी शरीफ और शैतान अल्लाह के भेजे हुए ज़मीन पर आते हैं. मुहम्मद के सच में भी झूट की आमेज़िश है.


"जब ईसा बिन मरियम ने बनी इस्राईल से फ़रमाया कि ऐ बनी इस्राईल! मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ कि मुझ से पहले जो तौरेत आ चुकी है, मैं इसकी तस्दीक करने वाला हूँ और मेरे बाद जो रसूल आने वाले हैं, जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ, फिर जब वह उनके पास खुली दलीलें ले तो वह लोग कहने लगे सरीह जादू है."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (६)

न ईसा पर इंजील नाज़िल हुई और न मूसा पर तौरेत. तौरेत यहूदियों का खानदानी इतिहास है, ये आसमान से नहीं उतरी और न इंजील आसमान से टपकी.

इंजील भी ईसा के साथ रहने वाले हवारियो (धोबियों) का दिया हुवा बयान है जो ईसा के खास हुवा करते थे.

इंसानी जन्गों ने मूसा, ईसा और मुहम्मद को पैगामबर बनाए हुए है.


मुसलमानों ! तुमको कुरआन सफेद झूट में मुब्तिला किए हुए है कि इंजील में कोई इबारत ऐसी दर्ज हो कि "जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ "

झूठे ओलिमा तुमको अंधरे में रख कर अपनी हलुवा पूरी अख्ज़ कर रहे है. मुहम्मद मूसा और ईसा के मार्फ़त लोगों से झूटी बयान बाजियां कर रहे हैं कि जैसे उनके परवानो ने उनको माना, उसी तरह तुम मुझको मान लो.

"उस शख्स से ज्यादह ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट बाँधे, हाँलाकि वह इस्लाम की तरफ बुलाया जाता है."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (७)

ये क़ुरआनी तकिया कलाम है,

अल्लाह की जेहालत को न मानना ज़ुल्म है

और बेकुसूर लोगों पर जंग थोपना सवाब है.


"ये लोग चाहते हैं कि अल्लाह के नूर को अपने मुँह से फूंक मार कर बुझा दें हाँला कि अल्लाह अपने नूर को कमाल तक पहुँचा कर रहेगा. गो काफ़िर लोग कितना ही नाखुश हों "
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (८)

मुहम्मद की कठ मुललई पर सिर्फ़ हँस सकते हो. मुसलमानों! इस अल्लाह की हक़ीक़त ऐसी ही है कि तुम जागो और इसे एक फूँक मार कर बुझा दो,

एक हौसले के साथ उट्ठो और इस अल्लाह की ज़ालिम सूरत पर एक फूँक मारो,

बस कि सदाक़त की फूँक,

ईमान की फूँक,

ऐसी हो कि इसकी धुवाँ भरी रौशनी पर उमड़ पड़े

कि तुम्हारे भीतर का इस्लामी धुवाँ मिट जाए

और तुम अपने आप में खुद रौशन हो जाओ.

"आप्पो दीपो भवः" (अपनी रौशनी में रौशन हो जाओ)


"वह अल्लाह ऐसा है जिसने अपने रसूल को सच्चा दीन देकर भेजा है, ताकि इसको तमाम दीनों पर ग़ालिब कर दे, गोकि मुशरिक कितने भी नाखुश हों."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (९)

अगर तमाम दीन अल्लाह के भेजे हुए हैं तो किसी एक को ग़ालिब करने का क्या जवाज़ है? अल्लाह न हुवा कोई पहेलवान हुवा जो अपने शागिदों में किसी को अज़ीज़ और किसी को गलीज़ समझता है. ऐसा अल्लाह खुद गलाज़त का शिकार है.


"ऐ ईमान वालो ! क्या मैं तुमको ऐसी सौदागरी बतलाऊँ कि दूर तक अज़ाब से बचा सके, कि तुम लोग अल्लाह पर और इसके रसूल पर ईमान लाओ और अल्लाह की राह में अपने माल और अपनी जान से जेहाद करो ये तुम्हारे लिए बहुत बेहतर है, अगर तुम कुछ समझ रखते हो."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१०-११) जंगी प्यास से बुझी हुई ये आयतें क्या किसी पाक परवर दिगार की हो सकती हैं?

ये वहशी मुहम्मद की आवाज़ है.


"जैसा कि ईसा इब्ने मरियम ने हवारीन से फ़रमाया कि अल्लाह के वास्ते मेरा कौन मददगार होता है ? हवारीन बोले हम अल्लाह मददगार होते हालांकि सो बनी इस्राईल में कुछ लोग ईमान लाए , कुछ लोग मुनकिर रहे सो हमने ईमान वालों के दुश्मनों के मुकाबिले ताईद की सो वह ग़ालिब रहे."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१४)

मुहम्मद मक्का के काफिरों को हवारीन बना रहे हैं. मुहम्मद अपनी एडी की गलाज़ात उस अज़ीम हस्ती ईसा की एडी में लगाने की कोशिश कर रहे हैं. उस कलन्दर का जँग से क्या वास्ता. उसका तो कौल है - - -

"अपनी तलवार मियान में रख ले, क्यूँ कि जो तलवार चलाते हैं, वह सब तलवार से ही ख़त्म किए जाते हैं."


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 28 March 2011

सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी ''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है, हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं, और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८

जिस तरह आप कभी कभी खुदाए बरतर की ज़ात में ग़र्क़ होकर कुछ जानने की कोशिश करते हैं, इसी तरह कभी मुहम्मद की ज़ात में ग़र्क़ होकर कुछ तलाश करने की कोशिश करें. अभी तक बहैसियत मुसलमान होने के उनकी ज़ात में जो पाया है, वह सब दूसरों के मार्फ़त है. जबकि इनके कुरआन और इनकी हदीस में ही सब कुछ अयाँ है. आपके लिए मुहम्मद की पैरवी कल भी ज़हर थी और आज भी ज़हर है. इंसानियत की अदालत में आज सदियों बाद भी इन पर मुक़दमा चलाया जा सकता है, जिसमे बहेस मुबाहिए के लिए मुहज्ज़ब समाज के दानिशवरों को दावत दी जाय. इनका फैसला यही होगा की इस्लाम और कुरआन पर यकीन रखना काबिले जुर्म अमल होगा. आज न सही एक दिन ज़रूर ऐसा वक़्त आएगा कि मज़हबी ज़हन रखने वाले तमाम मजहबों के अनुनाइयों सज़ा भुगतना होगा जिसमे पेश पेश होंगे मुसलमान. धर्मो मज़हब द्वारा निर्मित खुदा और भगवान दुर्गन्ध भरे झूट हैं, इसके विरोध में सच्चाई सुबूत लिए खड़ी है. मानव समाज अभी पूर्णतया बालिग़ नहीं हुवा है, अर्ध विकसित है, इसी लिए झूट का बोल बाला है और सत्य का मुँह काला है. जब तक ये उलटी बयार बहती रहेगी, मानव समाज सच्ची खुशियों से बंचित रहेगा.

चलिए अल्लाह के मिथ्य देखें - - -


"ऐ ईमान वालो ! तुम मेरे दुश्मनों और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाओ कि इनकी दोस्ती का इज़हार करने लगो, हालाँकि तुम्हारे पास जो दीन ए हक़ आ चुका है, वह इसके मुनकिर है. रसूल को और तुमको इस बिना पर कि तुम अपने परवर दिगार पर ईमान ले आए, शहर बदर कर चुके हैं. अगर तुम मेरे रस्ते पर जेहाद करने की ग़रज़ से , मेरी रज़ामंदी ढूँढने की ग़रज़ से निकले हो. तुम इनसे चुपके चुपके बातें करते हो , हालाँकि मुझको हर चीज़ का इल्म है. तुम जो कुछ छिपा कर करते हो और जो ज़ाहिर करते हो. और तुम में से जो ऐसा करेगा, वह राहे रास्त से भटकेगा." सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१) मुहम्मद के साथ मक्का से मदीना हिजरत करके आए हुए लोगों को अपने खूनी रिश्तों से दूर रहने की सलाह अल्लाह के नबी बने मुहम्मद दे रहे हैं, मुसलमानों का इनसे मेल जोल मुहम्मदी अल्लाह को पसंद नहीं. हर चुगल खोर की इत्तेला अल्लाह की आवाज़ का कम करती है. कुरआन अपने ज़हरीले अमल जेहाद को एक बार फिर हवा दे रहा है .
कुरआन खूनी रिश्तों को दर किनार करते हुए कहता है - - -


"अपने अजीजों से बे तअल्लुक़ ही नहीं, बल्कि उनके दुश्मन बन जाओ, और ऐसे दुश्मन कि उनको जेहाद करके क़त्ल कर दो." इंसानियत के खिलाफ इस्लामी ज़हर को समझें. जिसे आप पिए हुए हैं.

मुहम्मद और इस्लामी काफिरों का एक समझौता हुवा था कि अगर कुरैश में से कोई मुसलमान होकर मदीना चला जाए तो उसको मदीने के मुसलमान पनाह न दें, इसी तरह मदीने से कोई मुसलमान मुर्तिद होकर मक्का में पनाह चाहे तो उसे मक्का पनाह न दें. इस मुआह्दे के बाद एक कुरैश खातून जब मुसलमान होकर मदीना आती हैं तो मुहम्मदी अल्लाह फिर एक बार मुआहदा शिकनी करके उसे पनाह देदेता है. मुहम्मद फिर एक बार वह्यी का खेल खेलते हैं, अल्लाह कहता है कि अगर उसके शौहर ने उसका महर अदा किया हो तो वह उसे अपने शौहर को वापस करके मदीने में रह सकती है. यह हुवा करती थी मुहम्मदी अल्लाह की ज़बान और पैमान.
"जो मुसलमान अपने बाल बच्चों को छोड़ कर मदीने आए हैं, अपनी काफ़िर बीवियों से तअल्लुक़ ख़त्म कर लें और मुसलमान बीवियाँ जो मक्का में फँसी हुई है, इनके शौहर का हर्ज खर्च देकर कुफ्फर इनको अपनी मिलकियत में लेलें और इसी तरह मुसलमान इनकी बीवियों का हर्जाना अदा करदें. सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१०) गौर तलब है की मुहम्मद की नज़र में क्या क़द्र ओ क़ीमत थी औरतों की ? मवेशियों की तरह उनकी ख़रीद फ़रोख्त करने की सलाह देते है सल्ललाहो अलैहे वसल्लम. कितना मजलूम और बेबस कर दिया था इंसानियत को, पैगम्बर बने मुहम्मद ने. माज़ी में इंसान मजबूर और बेबस था ही, कोई इस्लाम ही जाबिर नहीं था, मगर वह माज़ी आज भी ईमान के नाम पर ज़िन्दा है. अरब में आज भी औरतों के दिन नहीं बहुरे हैं, सात परदे के अन्दर हरमों में मुक़य्यद यह खुदा की मखलूक पड़ी हुई है.
झूठे और शैतान ओलिमा कहते हैं कि इस्लाम औरतों को बराबर के हुकूक देता है.

मुसलमान औरतें जो मक्का से आती हैं उनकी खासी छानबीन हुवा करती थी, कहीं वह काफ़िरों से हामला होकर तो मदीने में दाखिल नहीं हो रही? क्या होने वाला बच्चा भी काफ़िर ही पैदा होगा? ईमान लाई माँ की तरबियत क्या उसे काफ़िर बना देगी? मुहम्मद को इतनी भी अक्ल नहीं थी.


ये औरतें बोहतान की औलादें साथ में लेकर न आएंगी जिनको कि अपने हाथों और पाँव के दरमियान बना लें - - - सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१२)
औरतों की शान में मुहम्मद यूं कहते हैं - - -



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 25 March 2011

सूरह हश्र -५९ पारा २८

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह हश्र -५९ पारा २८

मदीने से चार मील के फासले पर यहूदियों का एक खुश हल क़बीला, नुज़ैर रहता था, जिसने मुहम्मद से समझौता कर रखा था कि मुसलामानों का मुक़ाबिला अगर काफ़िरों से हुवा तो वह मुसलामानों का साथ देंगे और दोनों आपस में दोस्त बन कर रहेंगे. इस सिलसिले में एक रोज़ यहूदियों ने मुहम्मद की, खैर शुगली के जज़्बे के तहत दावत की. उस बस्ती में मुहम्मद पहली बार दाखिल हुए,बस्ती की खुशहाली देख कर मुहम्मद की आँखें खैरा हो गईं. उनके मन्तिकी ज़ेहन ने उसी वक़्त मंसूबा बंदी शुरू कर दी. अचानक ही बगैर खाए पिए उलटे पैर मदीना वापस हो गए और मदीना पहुँच कर यहूदियों पर इल्ज़ाम लगा दिया कि वह मूसाई काफ़िरों से मिल कर मेरा काम तमाम करना चाहते थे. वह एक पत्थर को छत के ऊपर से गिरा कर मुझे मार डालना चाहते थे. इस बात का सुबूत तो उनके पास कुछ भी न था मगर सब से बड़ा सुबूत उनका हथियार अल्लाह की वह्यी थी कि ऐन वक़्त पर उन पर नाज़िल हुई.
इस इलज़ाम तराशी को आड़ बना कर मुहम्मद ने बनी नुज़ैर कबीले पर अपने लुटेरों को लेकर यलगार कर दिया. मुहम्मद के लुटेरों ने वहाँ ऐसी तबाही मचाई कि जान कर कलेजा मुंह में आता है. बस्ती के बाशिंदे इस अचानक हमले के लिए तैयार न थे, उन्हों ने बचाव के लिए अपने किले में पनाह ले लिया और यही पनाह गाह उनको तबाह गाह बन गई. खाली बस्ती को पाकर कल्लाश भूके नंगे मुहम्मदी लुटेरों ने बस्ती का तिनका तिनका चुन लिया. उसके बाद इनकी तैयार फसलें जला दीं, यहाँ पर भी बअज न आए उनकी बागों के पेड़ों को जड़ से काट डाला. फिर उन्हों ने किला में बंद यहूदियों को बाहर निकला और उनके अपने हाथों से बस्ती में एक एक घर को आग के हवाले कराया.
तसव्वुर कर सकते हैं कि उन लोगो पर उस वक़्त क्या बीती होगी. इसकी मज़म्मत खुद मुसलमान के संजीदा अफराद ने की तो वही वहियों का हथियार मुहम्मद ने इस्तेमाल किया. इक मुझे अल्लाह का हुक्म हुवा था. यहूदी यूँ ही मुस्लिम कुश नहीं बने, इनके साथ मुहम्मदी जेहादियों ने बड़े मज़ालिम किए है.

मुहम्मद की पहली जंगी वहशत का नमूना पेश है जिसमे उनकी खुद गरजी, और फरेब के साथ साथ उनका टुच्चा पन भी ज़ाहिर होता है - - -


"वह ही है जिसने कुफ्फार अहले-किताब को उनके घरों से पहली बार इकठ्ठा करके निकाला. तुम्हारा गुमान भी न था कि वह अपने घरों से निकलेंगे और उन्हों ने ये गुमान कर रखा था कि इनके क़िले इनको अल्लाह से बचा लेंगे. सो इन पर अल्लाह ऐसी जगह से पहुँचा कि इनको गुमान भी न था, इनके दिलों में रोब डाल दिया था कि अपने घरों को खुद अपने हाथों से उजाड़ रहे थे,
सो ए दानिश मंदों! इबरत हासिल करो"
सूरह हश्र -५९ पारा २८ आयत (२)
"इन हाजत मंद मुहाजिरीन का हक है जो अपने घरों और अपने मालों से जुदा कर दिए गए. वह अल्लाह तअला के फज़ल और रज़ा मंदी के तालिब हैं और वह अल्लाह और उसके रसूल की मदद करते हैं.और यही लोग सच्चे हैं और इन लोगों का दारुस्सलाम में इन के क़ब्ल से क़रार पकडे हुए हैं. जो इनके पास हिजरत करके आता है, उससे ये लोग मुहब्बत करते हैं और मुहाजरीन को जो कुछ मिलता है, इससे ये अपने दिलों में कोई रश्क नहीं कर पाते और अपने से मुक़द्दम रखते हैं. अगरचे इन पर फाकः ही हो.और जो शख्स अपनी तबीयत की बुखल से महफूज़ रखा जावे, ऐसे ही लोग फलाह पाने वाले हैं.

सूरह हश्र -५९ पारा २८ आयत (7-9)" जो खजूर के दरख़्त तुम ने काट डाले या उनको जड़ों पर खड़ा रहने दिया सो अल्लाह के हुक्म के मुवाकिफ हैं ताकि काफ़िरों को ज़लील करे"
"जो कुछ अल्लाह ने अपने रसूल को दिलवाया सो तुमने उन पर न घोड़े दौडाए न ऊँट, लेकिन अल्लाह अपने रसूल को जिस पर चाहे मुसल्लत कर देता है और अल्लाह को हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत है कि जो अपने रसूल को दूसरी बस्तियों के लोगों से दिलवाए . . . रसूल जो कुछ तुम्हें दें, ले लिया करो. और जिसको र०क दें रुक जाया करो, अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है."
"अगर हम इस कुरआन को पहाड़ नाज़िल करते तो तू इसको देखता कि अल्लाह के खौफ से डर जाता और फट जाता और इन मज़ामीन अजीब्या को हम लोगों के लिए बयान करते हैं ताकि वह सोचें."सूरह हश्र -५९ पारा २८ आयत (8-२१ )बस्ती बनी नुज़ैर की लूट पाट में मुहम्मद को पहली बार माली फ़ायदा हुवा है. माले-गनीमत को लेकर मदीने के लुटेरे मुहम्मद से काफी नाराज़ है कि उनको नज़र अंदाज़ किया जा रहा है. मुहम्मद उन्हें तअने दे रहे हैं कि"तुमने उन पर न घोड़े दौडाए न ऊँट, लेकिन अल्लाह अपने रसूल को जिस पर चाहे मुसल्लत कर देता है " जो कुछ मिल रहा है, रख लो. रसूल के अल्लाह पर एक नज़र डालें, वह भी रसूल की तरह ही मौक़ा परस्त है "सो इन पर अल्लाह ऐसी जगह से पहुँचा कि इनको गुमान भी न था, इनके दिलों में रोब डाल दिया था कि अपने घरों को खुद अपने हाथों से उजाड़ रहे थे," मुहम्मद अपनी छल कपट से अल्लाह बन बैठे थे मगर मॉल-गनीमत के लालची सब कुछ समझते हुए भी खामोश रहते. अल्लाह को मानो चाहे मुहम्मद को मिलना चाहिए माल.
मुहम्मद ने अल्लाह की वहियाँ उतारते हुए और मुहाजिरों की हक अदाई का सहारा लेते हुए लूटे हुए तमाम मॉल को अपने हक में कर लिया. इतिहास कार कहते हैं कि उन्हों ने इस लड़ाई में मिले मॉल को अपने घरो के लिए रख लिया था और अपनी नौ बीवियों के नाम बनी नुज़ैर की तमाम जायदाद वक्फ़ कर दिया था. हरामी ओलिमा लिखते हैं कि ''सल्लल्हो अलैहे वासलं ने जब रेहलत की तो उनके खाते में कुल छ दरहम मिले. वहीँ दूसरी तरफ़ कहते हैं कि रसूल की बीवियाँ धन दौलत की आमद से ऐसी बेनयाज़ होतीं कि पलरों में अशर्फियाँ आतीं मगर उनको कोई खबर न होती कि वह सब गरीबों में तकसीम हो जातीं.
खुद साख्ता पैगम्बर मुहम्मद के ज़माने में इनकी क़ुरआनी बरकतों से मुतास्सिर होकर जो ईमान लाए वह अक़ली मैदान में निरा गधे थे, इन में जो शामिल नहीं, वह सियासत दान थे, चापलूस थे, मसलेहत पसंद गुडे या फिर गदागर थे. बाद में तो तलवार के साए में सारा अरब इस्लाम का बे ईमान, ईमान वाला बन गया था. इस से इनका फायदा भी हुवा मगर सिर्फ माली फायदा. माले-गनीमत ने अरब को मालदार बना दिया. उनकी ये खुश हाली बहुत दिनों तक कायम न रही, हराम की कमाई हराम में गँवाई. मगर हाँ तेल की दौलत ने इन्हें गधा से घोडा ज़रूर बना दिया है. अफ़सोस गैर अरब के मुसलमानों पर है कि जो जेहादी असर के तहत या किसी और वजेह से क़ुरआनी अल्लाह और उसके रसूल पे ईमान लाए, वह गधे बाक़ी बचे न घोड़े बन पाए, सिर्फ़ खच्चर बन कर रह गए हैं जो गैर फितरी और गैर इंसानी निज़ामे मुस्तफा को ढो रहे हैं. तालीमी दुन्या में इनकी नस्ल अफज़ाई कभी भी नहीं हो सकती.






 'मोमिन' निसारूल-ईमान

Thursday 24 March 2011

सूरह मुजादला ५८ पारा २८

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह मुजादला ५८ पारा २८
इस्लामी इन्केलाब
आज कल इस्लामी दुन्या में तब्दीली की एक लहर आई हुई है. पुरानी बादशाहत, ख़िलाफ़त और सुल्तानी से मुसलामानों का दिल ऊब गया है. मिस्र में हुस्नी मुबारक को बहुत दिनों झेलने के बाद उन्हें गद्दी से अवाम ने हटा दिया है. हटा तो दिया इन्केलाब बरपा करके मगर अब ले आएं किसको? कोई जम्हूरी तहरीक तो वहाँ है, तो आईन मुरत्तब कर रहे हैं कि देखिए क्या करेंगे. फिलहाल उन्हों ने अपने ऐवान से सदर हुस्नी मुबारक की तस्वीर हटा कर उस खाली जगह पर "अल्लाह" की तस्वीर लगा दी गई है. मुसलमानों का मुल्क है, ज़ाहिर है मुहम्मदी अल्लाह का इक्तेदार और निजाम आने वाला है. हर इस्लामी मुल्क में अवाम लाशूरी तौर पर इस्लाम से बेज़ार है, मगर मुट्ठी भर इस्लामी जादूगर कामयाब हो जाते है, अवाम फिर उन्हें एक अरसे तक झेलने के लिए मजबूर हो जाती है. ये कोई गैर इस्लामी समाज नहीं है कि लोगों में पुर मानी इन्केलाब आने के कोई आसार हों, अवाम को नए सिरे से गुमराह किया जायगा नमाज़ रोज़ा हज और ज़कात जैसे अरकान में बंधक बना, कर अफीमी नशे में उनको फिर से धकेला जाएगा. फिर नए सिरे से ओलिमा के चहीते और सददाम ओ गद्दाफी की औलादें ऐश करने के लिए पैदा हो जाएंगी.

मदीना में मक्का के कुछ नव मुस्लिम, अपने कबीलाई खू में मुकामी लोगों के साथ साथ रह रहे हैं. रसूल के लिए दोनों को एक साथ संभालना ज़रा मुस्श्किल हो रहा है. कबीलाई पंचायतें होती रहती हैं. मुहम्मद की छुपी तौर पर मुखालिफत और बगावत होती रहती है, मुख्बिर मुहम्मद को हालात से आगाह किए रहते हैं. उनकी ख़बरें जो मुहम्मद के लिए वह्यी के काम आती हैं, लोग मुहम्मद के इस चाल को समझने लगे है, जिसका अंदाज़ा मुहम्मद को भी हो चुका है, मगर उनकी दबीज़ खाल पर ज़्यादा असर नहीं होता है, फिर भी शीराज़ा बिखरने का डर तो लगा ही रहता है. वह मुनाफिकों को तम्बीह करते रहते हैं मगर एहतियात के साथ. लीजिए क़ुरआनी नाटक पेश है- - -


"बेशक अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली जो अपने शौहर के मुआमले में झगडती थी और अल्लाह तअला से शिकायत करती थी और अल्लाह तअला तुम दोनों की गुफ्तुगू सुन रहा था, अल्लाह सब कुछ सुनने वाला है." (१)
सबसे पहले जुमले में अल्लाह की गोयाई लग्ज़िशें देखें, ज़मीर गायब और ज़मीर हाज़िर बयक वक़्त.
किसी गाँव कें मियाँ बीवी का झगडा इतना तूल, पकड़ गया था कि सारे गावँ में इसकी चर्चा थी और मुहम्मद तक भी ये बात पहुँची, फिर मक्र करते हुए कहते हौं,"बेशक अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली " मोहम्मदी पैगम्बरी बगैर झूट बोले एक क़दम भी नहीं चल सकती.
"तुम में से जो लोग अपनी बीवियों से इज़हार करते हैं और कह देते हैं तू मेरी माँ जैसी है और वह उनकी माँ नहीं हो गई. इनकी माँ तो वही है जिसने इनको जना. वह लोग बिला शुबहा एक नामाक़ूल और झूट बात करते हैं." (२-३)
दौर एत्दल में जिसे इस्लामी आलिम 'दौरे-जेहालत' कहा करते हैं, ज़ेहार करना, तलाक की तरह था. जिसके लिए कोई शौहर अपनी बीवी से कहे "तेरी पीठ मेरी माँ की तरह हुई या बहिन की तरह हुई" तो तलाक़ हो जाया करता था, आज भी लोग तैश में आ कर कह देते हैं तुम्हें हाथ लगाएँ तो अपनी - - -
कहते हैं कि कुरआन अल्लाह का कलाम है मगर फटीचर अल्लाह को अल्फाज़ नहीं सूझते कि उसके कलाम में सलीक़ा आए. हम बिस्तर होना, मिलन होना जैसे अलफ़ाज़ के लिए इज़हार करना कह रहे है. इसी तरह पिछली सूरह में कहते हैं कि "नब तुम औरत के रहम में मनी डालते हो" कहीं पर "दर्याए शीरीं और दर्याए शोर का मिलन खानदान बढ़ने के लिए" मुबाश्रत जैसे अल्फाज़ भी उम्मी को मयस्सर नहीं.
किसी परिवार में ये मियाँ बीवी का झगड़ा जग जाहिर था जिसकी खबर कुरानी अल्लाह को कोई दूसरा अल्लाह देता है .दोनों अल्लाहों के एजेट मुहम्मद को इस माजरे का इल्म होता है ,वह तलाक और हलाला का हल ढूँढ़ते है..
''और जो लोग अपनी बीवियों से "ज़ेहार" (तलाक़) करते हैं, फिर अपनी कही हुई बात की तलाफ़ी करना चाहते हैं तो इस के ज़िम्मे एक गुलाम या लौंडी को आज़ाद कराना है. या दो महीने रोज़ा या साथ मिसकीनों को खाना, क़ब्ल इसके कि दोनों जब इख्तेलात करें, इस से तुमको नसीहत की जाती है."
सूरह मुजादला ५८ पारा २८ पारा (१-४)
एक पैगम्बर पहले इस बात का जवाब दे कि उसने लौंडी और गुलाम का सिलसिला क्यूं कायम रहने दिया.
ज़ैद बिन हरसा को जैसे औलाद बना कर अंजाम तक पहुँचाया था कि मुँह बोली औलाद के बीवी के साथ ज़िना कारी जायज़ है, उसी तरह यहाँ पर बद फेली को हलाल कर रहे हैं.
" कोई सरगोशी तीन की ऐसी नहीं होती जिसमें चौथा अल्लाह न हो, न पाँच की होती है जिसमें छटां अल्लाह न हो. और न इससे कम की होती है, न इससे ज्यादह की - - -"
सूरह मुजादला ५८ पारा २८ पारा (७)
मुहम्मद मुसलमान हुए बागियों पर पाबन्दियाँ लगा रहे हैं. आयतों में अपनी हिमाक़तें बयान करते हैं. उनके खिलाफ़ जो सर गोशी करते हैं, उनको अल्लाह का खौफ नाज़िल कराते हैं.गौर तलब है कि अल्लाह दो लोगों की सरगोशी नहीं सुन सकता तीन होंगे तो वह, शैतान वन कर उनकी बातें सुन लेगा? अगर पाँच लोग आपस में काना फूसी करेगे तो भी उनमें उसके कान गड जाएँगे मगर "इससे कम की होती है, न इससे ज्यादह की" तो उसे कोई एतराज़ नहीं. मुहम्मद ने दो गिनती ही क्यूँ चुनी हैं? क्या ये बात कोई शिर्क नहीं है? जिसके खिलाफ ज़हर अफ़्शाई किया करते हैं.
"क्या आपने उन लोगों पर नज़र नहीं फ़रमाई जिनको सरगोशी से मना कर दिया गया था, फिर वह वही कम करते हैं और गुनाह और ज़्यादती और रसूल की नाफरमानी की सरगोशी करते हैं"
सूरह मुजादला ५८ पारा २८ पारा (७)
इन आयातों से आप समझ सकते हैं कि उस वक़्त के लोगों का रवय्या किया हुवा करता था, ऐसी आयतों पर जो मुहम्मद से बेज़ार हुवा करते थे. मुसलमानों!आप इनको सुन कर क्यूँ खामोश हैं? आपको शर्म क्यूँ नहीं आती? या बुजदिली की चादर ओढ़े हुवे हैं?.
"ऐ ईमान वालो अगर तुम रसूल से सरगोशी करो तो , इससे पहले कुछ खैरात कर दिया करो, अगर तुम इसके काबिल नहीं हो तो अल्लाह गफूररुर रहीम है. जिनको सरगोशी से मना कर दिया गया था,फिर वह वही कम करते हैं और गुनाह और ज्यादती और रसूल की ना फ़रमानी की."
"क्या आप ने ऐसे लोगों पर नज़र नहीं फ़रमाई जो ऐसे लोगों से दोस्ती रखते हैं जिन पर अल्लाह ने गज़ब किया है. ये लोग न पूरे तुम में हैं और न इन्हीं में हैं और झूट बात पर कसमें खा जाते हैं. उन्हों ने क़समों को सिपर बना रक्खा है, फिर अल्लाह की राह से रोकते रहते हैं. ये बड़े झूठे लोग हैं .इन पर शैतान ने तसल्लुत कर लिया है. खूब समझ लो शैतान का गिरोह ज़रूर बर्बाद होने वाला है."
" ये लोग अल्लाह और उसके रसूल की मुखालिफ़त करते हैं, ये सख्त ज़लील लोगों में हैं.अल्लाह ने ये बात लिख दी है कि मैं और मेरे पैगम्बर ग़ालिब रहेंगे."
"आप इनको न देखेंगे कि ये ऐसे शख्सों से दोस्ती रखते हैं जो अल्लाह और उसके रसूल के बार खिलाफ हैं, गो ये उनके बाप या बेटे या भाई या कुहना ही क्यूं न हो. .उन लोगों के दिलों में अल्लाह ने ईमान सब्त कर दिया है.- - - अल्लाह तअला उन से राज़ी होगा न वह अल्लाह से राज़ी होंगे. ये लोग अल्लाह का गिरोह हैं, खूब सुन लो कि अल्लाह का गिरोह ही फ़लाह पाने वाला है."
सूरह मुजादला ५८ पारा २८ पारा (१२-२२)(१२-२२)
सूरह से मालूम होता है कि हालात ए पैगम्बरी बहुत पेचीदा चल रहे है, रसूल की ये लअन तअन कुफ्फार ओ मुशरिकीन पर ही नहीं, बल्कि महफ़िल में इनके बीच बैठे सभी मुसलामानों पर है.. वह मुनाफ़िक़ हुए जा रहे हैं और मुर्तिद होने की दर पर हैं. वह रसूल की सखतियाँ और मक्र बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं मुहम्मद को ये बात गवारा नहीं कि ईमान लाने के बाद लोग अपने भाई, बाप, रिश्तेदार या दोस्त ओ अहबाब से मिलें जो कि अभी तक उनपर ईमान नहीं लाए. एक तरफ़ झूटी कसमें औए वह भी भरमार उनका अल्लाह कुरान में खाता है, दूसरी तरफ़ बन्दों को क़सम खाने पर तअने देता है. मुहम्मदी अल्लाह की पोल किस आसानी से कुरआन में खुलती है मगर नादान मुसलमानों की आँखें किसी सूरत से नहीं खुलतीं. अल्लाह बन्दों के खिलाफ अपना गिरोह बनाता है और अपनी कामयाबी पर यकीन रखता है. ऐसा कमज़ोर इंसानों जैसा अल्लाह.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 19 March 2011

सूरह जदीद - ५७ पारा - २७

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह जदीद - ५७ पारा - २७



सूरह जदीद के बारे में मेरा इन्केशाफ़ और खुलासा ये है कि इसका रचैता मुहम्मदी अल्लाह नहीं है, बल्कि इसका बानी कोई यहूदी या ईसाई है जो अपने पोशीदा अक़ीदे का लिहाज़ रखते हुए मुहम्मद का मददगार है. इस सूरह में मुहम्मद की बडबड नहीं है. ये सूरह तौरेत के खालिस नज़रिए पर आधारित है क्यूँकि इसमें क़यामत ऐन यहूदियत के मुताबिक है. मज़मून कहीं पर बहका नहीं है, बातों को पूरा करते हुए आगे बढ़ता है. इसमें तर्जुमान को कम से कम बैसाखी लगानी पड़ी है और सूरह में बहुत कम ब्रेकेट नज़र आते है. तूल कलामी और अल्लाह की झक तो कहीं है ही नहीं. तहरीर ज़बान और कवायद के जाब्ते में है जो खुद बयान करती है कि ये उम्मी मुहम्मद की बकवास नहीं है. इसके पहले भी इसी नौअय्यत की एक सूरह गुज़र चुकी है.
इसका मतलब ये भी नहीं है कि इन बातों में कोई सच्चाई हो.

बदली हुई पैगम्बरी कहती है,

"अल्लाह की पाकी बयान करते हैं, सब जो कुछ कि आसमानों और ज़मीन में है और वह ज़बरदस्त हिकमत वाला है. उसी की सल्तनत है आसमानों ज़मीन की. वही हयात देता है वही मौत भी देता है. और वही हर चीज़ पर कादिर है. वही पहले है, वही पीछे, वही ज़ाहिर है, वही मुख्फी. और वह हर चीज़ को खूब जानने वाला है. वह ऐसा है कि उसने आसमानों और ज़मीन को छ दिनों में पैदा किया , फिर तख़्त पर कायम हुवा. वह सब कुछ जानता है जो चीजें ज़मीन के अन्दर दखिल होती हैं और जो चीज़ इस में से निकलती हैं. और जो चीजें आसमान से उतरती हैं. और जो चीजें इसमें चढ़ती है. और तुम्हारे साथ साथ रहता है, ख्वाह तुम कहीं भी हो और तुम्हारे सब आमाल भी देखता है."सूरह जदीद - ५७-पारा - २७ आयत (१-४)इन आयातों में एक बात भी क़ाबिले एतराज़ नहीं. मज़हबी किताबों में जैसे मज़ामीन हुवा करते हैं, वैसे ही हैं. न कोई हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत, न किसी नामाकूल किस्म की क़समें. तौरेत और बाइबिल की सोशनी में आयतें है.

"कोई शख्स है कि जो अल्लाह तअला को क़र्ज़ के तौर पर दे, फिर अल्लाह इस शख्स के लिए बढ़ाता चला जाय और इस के लिए उज्र पसन्दीदा है. जिस रोज़ मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें मुसलामानों से कहेंगे अरे मुस्लिम भाइयो! हमें भी पार कराओ, हम तो पीछे रहे जा रहे हैं, आख़िर दुन्या में हम तुम मिल जुल कर रहा करते थे, दुन्या में हम तुम्हारे साथ न थे? जवाब होगा हाँ थे तो, तुमने अपने आप को गुमराही में फँसा रखा था. तुम मुन्तज़िर रहा करते थे, तुम शक रखते थे और तुम को तुम्हारी बेजा तमन्नाओं ने धोके में डाल रख्खा था तुम सब का ठिकाना दोज़ख है. पीछे रह गए हो तो पीछे से रौशनी भी तलाश करो. फिर इन फरीकैन के दरमियान में एक दीवार क़ायम कर दी जाएगी. इस में एक दरवाज़ा होगा, जिसकी अन्दुरूनी जानिब से रहमत होगी और बैरूनी जानिब से अज़ाब."सूरह जदीद - ५७-पारा २७ आयत (११-१३)
मुनाफ़िक़ लफ्ज़ का मतलब है दोगला जो बज़ाहिर कुछ हो और बबातिन कुछ. जैसे कि आज के वक़्त में मुनाफ़िक़ हर पार्टी और हर जमाअत में कसरत से पे जाते हैं. ये बदतर और दगाबाज़ दोस्त होते है जो मतलब गांठा करते है..देखिए कि अल्लाह बन्दों से क्या तलब कर रहा है, कोई इशारा है? नमाज़, रोज़ा, ज़कात और जेहाद कुछ भी नहीं, गालिबन अपने बन्दों से नेक काम तलब कर रहा है. उसके पास नेकियाँ जमा करो, वह मय सूद ब्याज के देगा. इस तरह के झूट कडुवी सच्चाई से बेहतर है.
मेरा मुशाहिदा है कि इसी दुन्या में इंसान की नेकियों का बदला मिल जाता है, मगर कोई मज़हब इस के लिए कहता है तो इंसानों के हक में है कि इंसान नकियाँ करे.
"पीछे रह गए हो तो पीछे से रौशनी भी तलाश करो"क्या बलागत है इस जुमले में. इसे कहते है वह्यी औए ईश वानी. वक़्त के साथ न बदलने वालों के लिए ये उस मुफक्किर की सोलह आने ठीक राय है जो आज मुसलामानों के लिए मशाले राह है. उनको बदलना ही होगा और इतना बदलना होगा की कुरान कि खुल कर मुखालिफत करे.
इस आयत में कुफ्फारों पर लअन तअन नहीं की गई है और न ईसाइयों पर दिल शिकन जुमले, बल्कि दोहरा सवाब, पहला ईसाइयत का दूसरा, इस्लाम का. जन्नत और दोज़ख में भी एत्दल है कि दोनों फ़रीक आपस में बज़रिए " इस में एक दरवाज़ा होगा" तअल्लुक़से एक डूसरे की हवा पहचानेंगे''

"ये दोजखी जन्नातियों को पुकारेंगे, क्या हम तुम्हारे साथ न थे? जन्नती कहेंगे, हाँ थे तो सहीह लेकिन तुम को गुमराहियों ने फँसा रख्खा था कि तुम पर अल्लाह का हुक्म आ पहुँचा और तुम को धोका देने वाले अल्लाह के साथ धोके में डाल रख्खा था, गरज़ आज तुम से न कोई मावज़ा लिया जायगा और न काफिरों से, तुम सब का ठिकाना दोज़ख है. वही तुम्हारा रफ़ीक है, और वह वाकई बुरा ठिकाना है."कोई मुसीबत न दुन्या में आती है और न तुम्हारी जानों में मगर वह एक ख़ास किताब में लिखी है. क़ब्ल इसके कि हम उन जानों को पैदा करें, ये अल्लाह के नज़दीक आसान काम है, ताकि जो चीज़ तुम से जाती रहे, तुम इस पर रन्ज न करो और ताकि जो चीज़ तुमको अता फ़रमाई है, इस पर तुम इतराओ नहीं. अल्लाह तअला किसी इतराने वाले शेखी बाज़ को पसन्द नहीं करता."सूरह जदीद - ५७-पारा२७ आयत (१४-२३)काबिले कद्र बात मुफक्किर कहता है "जो चीज़ तुम से जाती रहे, तुम इस पर रन्ज न करो और ताकि जो चीज़ तुमको अता फ़रमाई है, इस पर तुम इतराओ नहीं." ये ज़िन्दगी का सूफियाना फ़लसफ़ा है

"वक़्त है अहले ईमान अपना दिल बदलें. ऐसा न हो कि अहले किताब की तरह माहौल ज़दा और सख्त दिल होकर काफ़िर जैसे हो जाएं. अल्लाह खुश्क ज़मीन को दोबारा जानदार बना देता है ये एक नजीर है ताकि तुम समझो. सदक़ा देने वाले मर्द और औरत को अल्लाह पसंद करता है. जो लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं, ऐसे लोग अपने रब की नज़र में सिद्दीक और शहीद हैं. दिखावा लाह्व लअब है. औलाद ओ अमवाल पर फख्र बेजा है मगफिरत और जन्नत की तरफ दौड़ो जिसकी वोसअत ज़मीन ओ आसमान के बराबर है, उन लोगों के लिए तैयार की गई है जो अल्लाह और इसके रसूल पर ईमान रखते हैं.अल्लाह बड़ा फजल वाला है."सूरह जदीद - ५७-पार - २७ आयत (१६-२१)क्या ये दानाई और बीनाई उम्मी रसूल के बस की है. इसी लिए इस सूरह को जदीद कहा गया है
मगर ऐ मुसलमानों क्या अल्लाह भी क़दीम और जदीद हुवा करता है? अल्लाह को तुम आयाते-कुरानी में नहीं पाओगे. अल्लाह तो सब को मुफ्त मयस्सर है, हर वावत तुम्हारे सामने रहता है. सच्चा ज़मीर ही अल्लाह तक पहुंचाता है.



मुझ तक अल्लाह यार है मेरा, मेरे संग संग रहता है,
तुम तक अल्लाह एक पहेली, बूझे और बुझाए हो.


"जो ऐसे हैं खुद भी बुख्ल करते हैं और दूसरों को भी बुख्ल की तअलीम करते हैं और जो मुँह मोड़ेगा तो अल्लाह भी बे नयाज़ है और लायके हमद है. हम ने इस्लाह ए आखरत के लिए पैगम्बर को खुले खुले पैगाम देकर भेजा है. हमने उन के साथ किताब को और इन्साफ करने वाले को नाज़िल फ़रमाया ताकि लोग एतदाल पर क़ायम रहें,
हम ने नूह और इब्राहीम को पैगम्बर बना कर भेजा और हम ने उनकी औलादों में पैगम्बरी और किताब जारी रख्खी सो उन लोगों में बअजे तो हिदायत याफता हुए और बहुत से इनमें नाफ़रमान थे.फिर और रसूलों को एक के बाद दीगरे को भेजते रहे.
और इसके बाद ईसा बिन मरियम को भेजा और हम ने इनको इंजील दी और जिन लोगों ने इनकी पैरवी की, हमने उनके दिलों में शिफक़त और तरह्हुम पैदा की. उन्हों ने रह्बानियत को खुद ईजाद कर लिया . हमने इसको इन पर वाजिब न किया था.
ए ईसा पर ईमान रखने वालो! तुम अल्लाह से डरो और इन पर ईमान लाओ. अल्लाह तअला तुमको अपनी रहमत से दो हिस्से देगा और तुमको ऐसा नूर इनायत करेगा कि यूं इसको लिए हुए चलते फिरते होगे और तुमको बख्श देगा. अल्लाह गफूरुर रहीम है.
सूरह जदीद - ५७-पार - २७ आयत (२४-२८)मैंने मज़कूरा बाला सूरह को सिर्फ इस नज़रिए से देखा, समझा और पेश किया है कि कुरआन सिर्फ उम्मी मुहम्मद ही नहीं, बल्कि इसमें दूसरों के ख़यालों की मिलावट भी है, इसके लिए मैं उस सलीक़े मंद और दूर अंदेश दानिश वर का शुक्र गुज़ार हूँ जिसने कुरआन की हकीकत से हमें रूशिनाश कराया. अच्छा इंसान रहा होगा जो हालात का शिकार होकर मुसलमान हो गया होगा, मगर उसने मुनाफिकात को ओढ़ कर इंसानियत का हक अदा किया


जीम 'मोमिन' नइसारुल-ईमान

Thursday 17 March 2011

सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा -२७

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा -२७ (2)
आज क़ुरआनी बातों से क्या एक दस साल के लड़के को भी बहलाया जा सकता है? मगर मुसलमानों का सानेहा है कि एक जवान से लेकर बूढ़े तक इसकी आयतों पर ईमान रखते हैं. वह झूट को झूट और सच को सच मान कर अपना ईमान कमज़ोर नहीं करना चाहते, वह कभी कभी माहौल और समाज को निभाने के लिए मुसलमान बने रहते है. वह इन्हीं हालत में ज़िन्दगी बसर कर देना चाहते है. ये समझौत इनकी खुद गरजी है , वह अपने नस्लों के साथ गुनाह कर रहे है, इतना भी नहीं समझ पाते. इनमें बस ज़रा सा सदाक़त की चिंगारी लगाने की ज़रुरत है. फिर झूट के बने इस फूस के महल में ऐसी आग लगेगी कि अल्लाह का जहन्नुम जल कर ख़ाक हो जाएगा.
पेश है मुसलामानों की जिहालत और बुजदिली - - -
अल्लाह कहता है,"फिर जमा होने के बाद तुमको, ए गुमराहो! झुटलाने वालो!
दरख़्त ज़कूम से खाना होगा,
फिर इससे पेट को भरना होगा,
फिर इस पर खौलता हुवा पानी,
पीना भी प्यासे होंटों का सा, (ऐसे जुमलों की इस्लाह ओलिमा करते हैं)
इन लोगों की क़यामत के रोज़ दावत होगी.
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (५१-५६)
मुहम्मद अपने ईजाद किए हुए मज़हब को, जेहने इंसानी men अपने आला फ़ेल, का एक नमूना बना कर पेश करने की बजाए, इंसान को अपने ज़ेहन के फितूर से डराते हैं वह भी निहायत भद्दे तरीके से.


( ज़कूम दोज़ख का एक खारदार और बद ज़ायक़ा पेड़ मुहम्मदी अल्लाह खाने को देगा मैदाने हश्र में.)

अच्छा बताओ, जो औरतों के रहम में मनी पहुँचाते हो, ( लाहौल वला कूवत )
इनको तुम आदमी बनाते हो या हम.?

(एक मज़हबी किताब में इससे ज्यादह फूहड़ पन क्या हो सकता है. नमाज़ में इस बात को सोंच कर देखें)सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ -पारा आयत (५८-५९)
अच्छा बताओ जो कुछ तुम बोते हो, उसे तुम उगाते हो या हम? ( जब बोया हुवा क़हत की वजेह से उगता ही नहीं तो अकाल पद जाता है, कौन ज़िम्मेदार है ? ए कठ मुल्लाह )
अच्छा फिर तुम ये बताओ कि जिस पानी को तुम पीते हो ,
उसको बादल से तुम बरसाते हो या की हम?अगर हम चाहें तो इसे कडुवा कर डालें, तो फिर तुम शुक्र अदा क्यूं नहीं करते"
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (६८-६९)क्या इन बेहूदगियों में कोई जान है?
इसके जवाब में ऐसी ही बेहूदगी पेश करके मुहम्मद के भूत को शर्मसार किया जा सकता है.

अच्छा फिर बताओ कि जिस आग को तुम सुलगते हो इसके दरख़्त को तुम ने पैदा किया या हम ने?सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (७०-७२)मुहम्मदी अल्लाह बतला कि बन्दे उसकी लकड़ी से खूब सूरत फर्नीचर बनाते हैं, क्या यह तेरे बस का है कि पेड़ में फर्नीचर फलें ?


"सो आप अज़ीम परवर दिगार के नाम की तस्बीह कीजिए."सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (८४)सो परवर दिगार के बख्शे हुए दिमाग का मुसबत इस्तेमाल करो.

सो मैं क़सम खता हूँ सितारों की छिपने की,
और अगर तुम गौर करो तो ये एक बड़ी क़सम है की एक एक मुकर्रम कुरान है.
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (७५-७६)हम इस गौर करने पर अपना दिमाग नहीं खपाते, हम तो ये जानते हैं कि हमारे मुँह से निकली हुई हाँ और ना ही हमारी क़सम हैं. हमें किसी ज़ोरदार क़सम की कोई अहमियत नहीं है.सो क्या तुम कुरआन को सरसरी बात समझते हो और तकज़ीब को अपनी गिज़ा?
सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७ -आयत (८१-८२)
मुहम्मदी अल्लाह! तेरी सरसरी में कोई बरतत्री नहीं है, बल्कि झूट, बोग्ज़ और नफ़रत खुद तेरी गिज़ा है,

और जो शख्स दाहिने वालों में से होगा तो उससे कहा जाएगा तेरे लिए अमन अमान है कि तू दाहिने वालों में से है
और जो शख्स झुटलाने वालों, गुमराहों में होगा खौलते हुए पानी से इसकी दावत होगीऔर दोज़ख में दाखिल होना होगा. बे शक ये तह्कीकी और यक़ीनी है.
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (९०-९५)

ऐ इस्लामी! अल्लाह तू इंसानियत का सब से बड़ा और बद तरीन मुजरिम है, जितना इंसानी लहू तूने पिया है, उतना किसी दूसरी तहरीक ने नहीं. एक दिन इंसान की अदालत में तू पेश होगा फिर तेरा नाम लेवा कोई न होगा और सब तेरे नाम थूकेंगे.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७ (1)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७ (1)


वक़ेआ का मतलब है जो बात वाक़े (घटित ) हुई हो और वाक़ई (वास्तविक)हुई हो. इस कसौटी पर अल्लाह की एक बात भी सहीह नहीं उतरती. यहाँ वक़ेआ से मुराद क़यामत से है जोकि कोरी कल्पना है. वैसे पूरा का पूरा क़ुरआन ही क़यामत पर तकिया किए हुए है. सूरह में क़यामत का एक स्टेज बनाया गया है जिसके तीन बाज़ू हैं पहला दाहिना बाज़ू और दूसरा बायाँ बाज़ू तीसरा आला दर्जा (?). दाएँ तरफ़ वाले माशा अल्लह, सब जन्नती होने वाले होते हैं और बाएँ जानिब वाले कम्बख्त दोज़खी.
मजमें की तादाद मक्का की आबादी का कोई जुजवी हिस्सा लगती है जब कि क़यामत के रोज़ जब तमाम दुन्या की आबादी उठ खड़ी होगी तो ज़मीन पर इंसान के लिए खड़े होने की जगह नहीं होगी..
बाएँ बाजू वाले की ख़ातिर अल्लाह खौलते हुए पानी से करता है. इसके पहले अल्लाह ने जिस क़यामती इजलास का नक्शा पेश किया था, उसमें नामाए आमाल दाएँ और बाएँ हाथों में बज़रीया फ़रिश्ता बटवाता है. ये क़यामत का बदला हुवा प्रोगराम है.
याद रहे कि अल्लाह किसी भी बाएँ पहलू को पसंद नहीं करता इसकी पैरवी में मुसलमान अपने ही जिस्म के बाएँ हिस्से को सौतेला समझते हैं अपने ही बाएँ हाथ को नज़र अन्दाज़ करते हैं यहाँ तक हाथ तो हाथ पैर को भी, मुल्ला जी कहते हैं मस्जिद में दाखिल हों तो पहला क़दम दाहिना हो.
अल्लाह को इस बात की खबर नहीं कि जिस्म की गाड़ी का इंजन दिल, बाएँ जानिब होता है. मुहम्मदी अल्लाह कानूने फितरत की कोई बारीकी नहीं जानता .


क़ुरआनी खुराफ़ातें पेश हैं - - -

"जब क़यामत वाके होगी,
जिसके वाके होने में कोई खिलाफ नहीं है, तो पस्त कर देगी, बुलंद कर देगी,
(बुलंद कर देगी या पस्त ?)जब ज़मीं पर सख्त ज़लज़ला आएगा और ये पहाड़ रेज़ा रेज़ा हो जाएगे. "सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७ आयत (१-५)जिन मुखालिफों और मुन्किरों के बीच मुहम्मद अपने क़ुरआनी तबलीग में लगे हुए है, वहीँ कहते हैं "जिसके वाके होने में कोई खिलाफ नहीं है,"इन्हीं आयतों को लेकर मुसलमान हर कुदरती नागहानी पर कहने लगते हैं, क़यामत के आसार हैं, जब कि इंसानियत दोस्त इसका मुकाबिला करके इंसानों को बचने में लग जाते हैं."और तुम तीन किस्म के हो जाओगे,
सो जो दाहिने वाले हैं, वह दाहिने वाले कितने अच्छे होगे,
जो बाएँ वाले हैं वह कितने बुरे लोग हैं,
जो आला दर्जे के हैं वह तो आला दर्जे के ही होंगे."
सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७ आयत (६-१०)औघड़ मुहम्मद एक हदीस में कहते हैं कि हर इंसान की तक़दीर माँ के पेट में ही लिख दी जाती है, फिर नेक अमल और बद अमल का नुकसान या फायदा? मुस्लिम ओ काफ़िर का हेर फेर क्यूं? तबदीली ए मज़हब का फायदा? कि अगर तकदीर कुछ पहले ही दर्ज है?
क्या मुसलामानों की समझ में ये बात नहीं आती ?
"ये लोग आराम से बागों में होंगे,
( बाग़ भी कोई रहने की जगह होती है?)इनका एक बड़ा गिरोह तो अगले लोगों में होगा, और थोड़े से लोग पिछले लोगों में होंगे,
(ऐसा क्यूं ? कोई खास वजह? इन सवालों के जवाब कठ मुल्ले तैयार कर सकते है.)सोने के तारों से बने तख्तों पर तकिया लगाए आमने सामने बैठे होंगे,
(सोने के तारों से बने तख़्त ? रसूल भूल जाते है कि उनकी बातों में झोल आ गया, जिसे मुतरज्जिम रफ़ू करता है, ब्रेकेट लगा के कि अल्लाह का मतलब है सोने के तारों से बने तकिए जो तख्तों पर होंगे.)उनके पास ऐसे लड़के, जो हमेशा लड़के ही रहेंगे, ये चीजें लेकर हमेशा आमद ओ रफत करेगे, ( यहाँ के परहेज़गार नमाज़ी वहां लड़के (लौंडे)बाज़ हो जावेंग? क्या इसी लिए होती है नमाज़ों की कसरत.)
आबखोरे और आफ़ताबे और ऐसा जाम जो बहती हुई शराब से भरा जाएगा,
( मुसलमानों! अगर जाम ओ सुबू चाहत है तो इसी दुन्या में हाज़िर है बस कि मोमिन हो जाओ.)


बे खटके हो हयात कि जीना सवाब है,
बच्चों का हक़ अदा हो तो पीना सवाब है।


न इससे इनको सुरूर होगा न अक्ल में फितूर आएगा,
(जिस जाम से सुरूर न हो वह जाम नहीं सरबत है.)और मेवे जिनको पसंद करेंगे, और परिंदों का गोश्त जो इनको मरगूब होगा,
(सब कुछ इसी दुन्या में मयस्सर है, बस तुम को बा ज़मीर मोमिन बनना है.)और गोरी गोरी, बड़ी बड़ी आँखों वाली औरतें होंगी जैसे पोशीदा रख्खे हुए मोती, ये उनके ईमान के बदले में मिलेगा,
(अय्याश पैगम्बर की अय्याश उम्मत !
अगर तुमको इन आयातों का यकीन है तो उसके पीछे तुम्हारी नीयतें वाबस्ता हैं. कुछ शर्म ओ हया तुम में बाक़ी है तो मोमिन की बातों पर आओ.)
और न वहाँ कोई बक बक सुनेंगे न कोई बेहूदा बात,
( खुद कुरान मुजस्सम बकबक है और बेहूदा भी, बेहूदगी देखने के लिए कहीं बाहर जाने की ज़रुरत नहीं.)बस सलाम ही सलाम की आवाज़ आएगी,
( आजिज़ हो जाओगे ऐसी जन्नत से जहाँ लोग हर वक़्त कहते रहेगे "अल्लाह तुमको सलामत रख्खे". ये सलाम तुम्हारी चिढ बन जाएगी,ये जज़बए खैर नहीं बल्कि जज़बए बद नियती है.)जो दाहिने वाले हैं, वह दाहिने वाले कितने अच्छे हैं, वह बागों में होंगे जहाँ बे खर (बिना कांटे की ) बेरियाँ होंगी, ( एक इस्लामी हूर चड्ढी और बिकनी पहने इस जन्नत में बेर के पेड़ पर चढ़ी बीरें खा रही थी कि मोलवी साहब ने पूछा क्या हो रहा है?
उसने जवाब दिया मुझे बस दो ही शौक़ है, अच्छा खाने का और अच्छा पहिनने का.)
बिना कांटे की बेरियाँ कब होती हैं? कांटे दार तो उसका पेड़ होता है. क्या बिना कांटे हे पेड़ की बेरियाँ अंगूर जैसी होती हैं?
मुहम्मद अपनी बक बक में दूर का अंदेशा नहीं रखते. काफ़िरों को दूर की गुमराही का तअना ज़रूर देते हैं.
और तह बतह केले होगे, और लम्बा लम्बा साया होगा, और चलता हुवा पानी होगा, और कसरत से मेवे होंगे,
(बागों में इनके सिवा और क्या होगा? कोई नई बात भी है?तह बतह केले की तरह.)वह न ख़त्म होंगे और न कोई रोक टोक होगी,
(पेटुओं की भूख जग रही होगी इस माले मुफ्त पर.)और ऊंचे ऊंचे फर्श होगे,
( वहां ऊंचे ऊंचे फर्श की क्या ज़रुरत होगी? क्या जन्नत में भी बाढ़ वगैरा आती है?)हम ने औरतों को खास तौर पर बनाया है, यानी हम ने उनको ऐसा बनाया है कि जैसे कुँवारियाँ हों, महबूबा हैं हम उम्र में."(मुसलामानों सुन लो वहाँ तुम्हारे लिए ऐसी हम उम्र औरतें बनाई जाएंगी? शर्त ये है कि तुम जवानी में ही उठ जाओ, क्यूंकि वह हम उम्र होगी. बूढ़े खूसट होकर मरे तो तुम्हारी हूरें पोपली बुढिया होंगी)बकौल मुहम्मद दुन्या की ज्यादह हिस्सा औरतें जहन्नमी होंगी, जहाँ तुम्हारी माँ, बहेन और बेटियाँ हैं, जिनको तुम जान से भी ज़्यादः अज़ीज़ समझते हो. इस लिए अल्लाह तुम्हारे अय्याशी के लिए सदा बहार कुंवारियां पेश करता है.सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७ आयत (११-३७)मुहम्मदी अल्लाह क़यामत बरपा करने का नज़ारा क़यामत आने से पहले ही मुसलामानों को दिखला रहा है, क्या ये बात सहीह लगती है?
कुरआन की बहुत सी बातें आज नए ज़माने ने झूट साबित कर दिया है फिर भी इन पर यकीन रखना मुसलामानों का ईमान है. इन्ही झूट और गुनहगारी को वास्ते इबादत नमाज़ों में दोहराते हैं. इन्हें पढ़ कर सलाम फेरते हैं और एक झूठे पर दरूद ओ सलाम भेजते हैं.
कुछ तो चेतो, कुछ तो जागो!!


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 15 March 2011

सूरह रहमान ५५ -पारा २७ (2)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह रहमान ५५ -पारा २७ (2)



सूरह रहमान को मेरी नानी बड़े ही दिलकश लहेन में पढ़ती थीं उनकी नकल में मैं भी इसे गाता था. उनके हाफिज़ जी ने उनको बतलाया था कि इस सूरह में अल्लाह ने अपनी बख्शी हुई नेमतों का ज़िक्र किया है .सूरह को अगर अरबी गीत कहीं तो उसका मुखड़ा यूँ था,
"फबेअय्या आलाय रबबोकमा तोकज्ज़ेबान " यानी
"सो जिन्न ओ इंसान तुम अपने रब के कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे"जब तक मेरा शऊर बेदार नहीं हुवा था मैं अल्लाह की नेमतो का मुतमन्नी रहा कि उसने हमें अच्छे और लज़ीज़ खाने का वादा किया होगा, बेहतरीन कपड़ों का, शानदार मकानों का और दर्जनों ऐशों का ख़याल दिल में आता बल्कि हर सहूलत का तसव्वुर ज़ेहन में आता कि अल्लाह के पास क्या कमी होगी जो हमें न नसीब होगा ? इसी लालच में मैंने नमाज़ें पढना शुरू कर दिया था.
जब मैंने दुन्या देखी और उसके बाद क़ुरआनी कीड़ा बन्ने की नौबत आई तो पाया की अल्लाह की बातों में मैं भी आ गया.
इस सूरह पर मेरा यही तबसरा है मगर आपसे गुज़ारिश है कि सूरह का पूरा तर्जुमा ज़रूर पढ़ें.
जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत३२}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी ने इंसान को जो ठीकरे की तरह बजती हैसे पैदा किया.{नेमत३३}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""वह मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत३४}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत३५}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत३६}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, {नेमत३७}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत३८}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी ने इंसान को जो ठीकरे की तरह बजती हैसे पैदा किया. {नेमत३९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""वह मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत४०}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत४१}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत४२}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, {नेमत४३}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत४४}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी से सब आसमान और ज़मीन वाले मांगते हैं, वह हर वक़्त किसी न किसी कम में रहता है, {नेमत४५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"" ऐ जिन ओ इंसान! हम तुम्हारे लिए खली हुए जा रहे हैं, {नेमत४६}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"ऐ गिरोह जिन ओ इन्स! अगर तुम को ये कुदरत है कि आसमान ओ ज़मीन के हुदूद से कहीं बाहर निकल जाओ तो निकलो, बदूं जोर के नहीं निकल सकते. {नेमत४७}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""तुम पर आग का शोला और धुवां छोड़ा जाएगा, फिर तुम हटा न सकोगे, {नेमत४८}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""गरज जब आसमान फट जाएगा और ऐसा सुर्ख हो जाएगा जैसे नारी, {नेमत४९}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""तो उस दिन किसी इंसान या जिन से इसके जुर्म के मुता अल्लिक न पुछा जाएगा' {नेमत५०}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""मुजरिम लोग अपने हुलया से पहचाने जाएगे, , सो सर के बाल और पाँव पकडे जाएँगे, {नेमत५१}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""ये है वह जहन्नम मुजरिम लोग जिसको झुट्लाते थे. वह लोग दोज़ख के इर्द गिर्द खौलते हुए पानी के दरमियान दौरा कर रहे होंगे, {नेमत५२}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""और जो शख्स अपने रब के सामने खड़े होने से डरता रहता हईसके लिए दो बाग़ होंगे, {नेमत५३}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""दोनों बाग़ कसीर शाख वाले होंगे, इन दोनों बागों में दो चश्में होंगे कि बहते चले जाएँगे, {नेमत५४}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""दोनों बागों में हर मेवे की दो किस्में होंगी, {नेमत५५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"" वह लोग तकिया लगे अपने फर्शों पर बैठे होंगे, जिनके अस्तर दबीज़ रेशम की होंगी और दोनों बागों का फल बहुत नज़दीक होगा, नेमत५६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इनमें नीची निगाहों वालियां होंगी कि इन लोगों से पहले इन पर न किसी आदमी ने तसर्रुफ़ किया होगौर न किसी जिन्न ने,सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"{नेमत५७}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?" गोया वह याकूत और मिरजान हैं, {नेमत५८}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""भला गायत और इता अत का बदला और कुछ हो सकता है? {नेमत५९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"और इन बागों से कम दर्जा कम दर्जा में दो बैग और होंगे, {नेमत६०}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""वह दोनों बाघ गहरे और सब्ज़ होंगे, {नेमत६१}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"उन दोनों बागों में दो चश्में होंगे जोश मारते हुए, {नेमत६२}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""उन दोनों बागों में मेवे खजूर और अनार होंगे, {नेमत६३}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इन में खूब सीरत खूब सूरत औरतें होंगी, {नेमत६४}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"वह औरतें गोरे रंगत की होंगी, खेमों में महफूज़ होंगी, {नेमत६५}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इन लोगों से पहले इन पर न किसी आदमी ने तसर्रुफ़ किया होगा न किसी जिन्न ने, {नेमत६६}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""वह लोग सब्ज़ और मुसज्जिर और अजीब खूब सूरत कपड़ों में तकिया लगे बैठे होंगे, {नेमत६७}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""बड़ा बरकत वाला नाम है आपके रब का जो अज़मत वाला और एहसान वाला है. {नेमत६८}
सूरह रहमान ५५-पारा २७- आयत (१४-७८ )मुसलमानों! तुम्हारे लिए मुहम्मदी अल्लाह का यही वरदान है जो सूरह रहमान में है. हिम्मत करके इस अनचाहे वरदान को कुबूल करने से इंकार कर दो, क्यूँक तुम्हारी नस्लें इस बात की मुन्तज़िर हैं कि उनको इस वहशी अल्लाह से नजात मिले.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 14 March 2011

सूरह रहमान ५५ -पारा २७ (1)

मेरी तहरीर में - - -


क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह रहमान ५५ -पारा २७ (1)



मैं इस्लाम का आम जानकर हूँ , इसका आलिम फ़ाज़िल नहीं. इस की गहराइयों में जाकर देखा तो इसका मुनकिर हो गया, सिने बलूगत में आकर जब इस पर नज़रे सानी किया तो जाना कि इसमें तो कोई गहराई ही नहीं है. लिहाज़ा इसके अम्बारी लिटरेचर से सर को बोझिल करना मुनासिब नहीं समझा. जिन पर नज़र गई तो पाया कि कलिमा ए हक के नाहक जवाज़ थे. हो सकता है कि कहीं पर मेरी अधूरी जानकारी दर पेश आ जाए मगर मेरी तहरीक में इसकी कोई अहमियत नहीं है, क्यूँ कि इनकी बहसें बाहमी इख्तेलाफ़ और तजाऊज़ ओ जुमूद के दरमियान हैं. टोपी लगा कर नमाज़ पढ़ी जाए, बगैर टोपी पहने भी नमाज़ जायज़ है, ये इनके मौज़ू हुवा करते हैं. मेरा सवाल है नमाज़ पढ़ते ही क्यूँ हो? मेरा मिशन है मुसलामानों को इस्लामी नज़र बंदी से नजात दिलाना
सूरह रहमान को मेरी नानी बड़े ही दिलकश लहेन में पढ़ती थीं उनकी नकल में मैं भी इसे गाता था. उनके हाफिज़ जी ने उनको बतलाया था कि इस सूरह में अल्लाह ने अपनी बख्शी हुई नेमतों का ज़िक्र किया है .सूरह को अगर अरबी गीत कहीं तो उसका मुखड़ा यूँ था,
"फबेअय्या आलाय रबबोकमा तोकज्ज़ेबान " यानी
"सो जिन्न ओ इंसान तुम अपने रब के कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे"जब तक मेरा शऊर बेदार नहीं हुवा था मैं अल्लाह की नेमतो का मुतमन्नी रहा कि उसने हमें अच्छे और लज़ीज़ खाने का वादा किया होगा, बेहतरीन कपड़ों का, शानदार मकानों का और दर्जनों ऐशों का ख़याल दिल में आता बल्कि हर सहूलत का तसव्वुर ज़ेहन में आता कि अल्लाह के पास क्या कमी होगी जो हमें न नसीब होगा ? इसी लालच में मैंने नमाज़ें पढना शुरू कर दिया था.
जब मैंने दुन्या देखी और उसके बाद क़ुरआनी कीड़ा बन्ने की नौबत आई तो पाया की अल्लाह की बातों में, मैं भी आ गया.
इस सूरह पर मेरा यही तबसरा है मगर आपसे गुज़ारिश है कि सूरह का पूरा तर्जुमा ज़रूर पढ़ें."रहमान ने, (१)
क़ुरआन की तालीम दी, (२)
इसने इंसान को पैदा किया, (३)
इसको गोयाई सिखलाई, (४)
सूरज और चाँद हिसाब के साथ हैं, (५)
और बे तने के दरख़्त और तने दार दरख़्त मती(क़ैदी) है, (६)
और इसी ने आसमान को ऊँचा किया और इसी ने तराज़ू रख दी, (७)
ताकि तुम तौलने में कमी बेश न करो, (८)
और इन्साफ़ और हक़ के साथ वज़न को ठीक रक्खो और तौल को घटाओ मत. (९)
इसी ने खिल्क़त के वास्ते ज़मीन को रख दिया, (१०)
कि इसमें मेवे हैं और खजूर के दरख़्त हैं जिन पर गिलाफ़ होता है, (११)
और ग़ल्ला है जिसमें भूसा होता है और गिज़ा की चीज़ है, (१२)
सो जिन्न और इन्स! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे? (१३)
सूरह रहमान - ५५-पारा २७- आयत (१-१३)
{रहमान की १३ नेमतें}

इसी ने इंसान को ऐसी मिटटी से जो ठीकरे की तरह बजती थी, से पैदा किया, जिन्नात को आग से. {नेमत१४}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""वह मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत१५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत१६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत१७}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, {नेमत१८}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत१९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी से सब ज़मीन और आसमान वाले मानते हैं , वह हर वक़्त किसी न किसी कम में रहता है.{नेमत२०}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी ने इंसान को जो ठीकरे की तरह बजती हैसे पैदा किया, {नेमत२१} .सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""वह मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत२२}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत२३}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत२४}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, {नेमत२५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत२६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी ने इंसान को जो ठीकरे की तरह बजती हैसे पैदा किया.{नेमत२७}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""वह मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत२८}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत२९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत३०}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, {नेमत३१}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"मुसलमानों! तुम्हारे लिए मुहम्मदी अल्लाह का यही वरदान है जो सूरह रहमान में है. हिम्मत करके इस अनचाहे वरदान को कुबूल करने से इंकार कर दो, क्यूँक तुम्हारी नस्लें इस बात की मुन्तज़िर हैं कि उनको इस वहशी अल्लाह से नजात मिले.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह क़मर ५४-पारा २७

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह क़मर ५४-पारा २७


मुहम्मद नें जो बातें हदीसों में फ़रमाया है, उन्ही को कुरआन में गाया है.
अल्लाह के रसूल खबर देते हैं कि क़यामत नजदीक आ चुकी है, और चाँद फट चुका है..
मूसा और ईसा की तरह ही मुहम्मद ने भी दो मुअज्ज़े (चमत्कार) दिखलाए, ये बात दीगर है कि जिसको किसी ने देखा न गवाह हुआ, सिवाय अल्लाह के या फिर जिब्रील अलैहस्सलाम के जो मुहम्मद के दाएँ बाएँ हाथ है.
एक मुअज्ज़ा था सैर ए कायनात जिसमे उन्हों ने सातों आसमानों पर कयाम किया, अपने पूर्वज पैगम्बरों से मुलाक़ात किया, यहाँ तक कि अल्लाह से भी गुफ्तुगू की. उनकी बेगान आयशा से हदीस है कि उन्होंने अल्लाह को देखा भी.
दूसरा मुअज्ज़ा है कि मुहम्मद ने उंगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए, जिनमें से एक टुकड़ा मशरिक बईद में गिरा और दूसरा टुकड़ा मगरिब बईद में जा गिरा.(पूरब और पच्छिम के छोरों पर)
इन दोनों का ज़िक्र कुरआन और हदीसों, दोनों में है. इस की इत्तेला जब खलीफ़ा उमार को हुई तो रसूल को आगाह किया कि ऐसी बड़ी बड़ी गप अगर आप छोड़ते रहे तो न आपकी रिसालत बच पाएगी और न मेरी खिलाफत. बस फिर रसूल ने कान पकड़ा, कि मुअज्ज़े अब आगे न होंगे.
उनके मौत के बाद उनके चमचों ने अपनी अपनी गवाही में मुहम्मद के सैकड़ों मुअज्ज़े गढ़ डाले.


मुहम्मद अल्लाह की ज़बान से फरमाते हैं - - -

"क़यामत नजदीक आ चुकी है और चाँद में डराड़ पद चुकी है"सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (१)
मुहम्मद ने चाँद तारों को आसमान के बड़े बड़े कुमकुमे ही माना है जो आसमान की रौनक हैं, उनके हिसाब से बड़ा कुमकुमा फट चुका है(जिस को कि खुद उन्होंने फाड़ा है). इस लिए क़यामत आने के आसार हैं.
चौदह सौ साल गुज़र गए हैं, इंसान चाँद पर क़याम करके वापस आ गया है, ईमान वाले अभी तक क़यामत के इंतज़ार में हैं.
मुसलमानों ! अरबी के झूट आप की अपनी ज़बान में है, इसे सच्चाई के साथ झेलिए.

"और ये लोग अगर कोई मुअज्ज़ा देखते हैं तो टाल देते हैं और कहते हैं ये जादू है जो अभी ख़त्म हो जाएगा, इन लोगों ने झुटला दिया."सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (२)मुहम्मद कहते है ये मुअज्ज़ा मैंने मक्का में कर दिखाया था, बहुत से लोगों ने इसे देखा था मगर जादू कह कर टाल गए. मक्का में जब लोग इन्हें सिड़ी सौदाई कहते थे, तभी की बात है. मगर मक्का में इस झूट की कोई गवाह मुहम्मद को नहीं मिला जिसका नाम लेते.

"और इन लोगों के पास खबरे इतनी पहुँच चुकी हैं कि इनमें इबरत यानी आला दर्जे की दानिश मंदी है, सो खौफ दिलाने वाली चीजें इनको कुछ फ़ायदा ही नहीं देतीं. तो आप इनकी तरफ से कोई ख़याल न कीजिए."सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (४-६)मुहम्मद लाशऊरी तौर पर सच बोल गए कि लोग उनसे ज़्यादः आगाह है कि इन की बातों में आते ही नहीं न इससे डरते ही हैं.

"जिस रोज़ इनको बुलाने वाला फ़रिश्ता एक नागवार चीज़ की तरफ बुलाएगा, इनकी आँखें झुकी हुई होंगी. क़ब्रों से यूँ निकल रहे होंगे जैसे टिड्डी फ़ैल जाती हैं. बुलाने वाले की तरफ दौड़ते चले जा रहे होंगे. काफ़िर कहते होंगे ये बड़ा सख्त दिन है."
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (७-८)मुहम्मद की गढ़ी हुई क़यामत का मंज़र हर बार बदलता रहता है. उनको याद नहीं रहता कि इसके पहले की क़यामत कैसे बरपा की थी. इनको प्राफिट आफ दूम कहा गया है.


"क्या तुम में जो काफ़िर हैं उनमें इन लोगों से कुछ फजीलत है या तुम्हारे लिए आसमानी किताबों में कुछ माफ़ी है. या ये लोग कहते हैं हमारी ऐसी जमाअत है जो ग़ालिब ही रहेगे. अनक़रीब ये जमाअत शिकस्त खाएगी.और पीठ फेर के भागेगी. बल्कि क़यामत इनका वादा है और क़यामत बड़ी सख्त और नागवार चीज़ है. और ये मुजरिमीन बड़ी गलती और बे अक्ली में हैं. जिस रोज़ ये अपने मुँहों के बल जहन्नम में घसीटे जाएंगे तो इन से कहा जायगा कि दोज़ख से लगने का मज़ा चक्खो."सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (४३-४८)
हिमाक़त भरी मुहम्मद बने अल्लाह की बातें .

" हमने हर चीज़ को अंदाज़े से पैदा किया है और हमारा हुक्म यक बारगी ऐसा हो जाएगा जैसे आँख का झपना और हम तुम्हारे हम तरीका लोगों को हलाक कर चुके है. और जो कुछ भी ये लोग करते हैं, सब आमाल नामें में है और हर छोटी बड़ी बात लिखी हुई है. परहेज़ गार लोग बागों में और नहरों में होगे, एक अच्छा मुकाम है कुदरत वाले बादशाह के पास."सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (४९-५४)
जैसे अनाड़ी हर काम को अंदाज़े से ही करता है, मुहम्मद खुद को अल्लाह होने की शहादत देते हैं कि जैसे ना तजरबे कार इंसान अगर है तो अकली गद्दा मारता है. कुदरत तो इतनी हैरत नाक रचना करता है कि दिमाघ काम नहीं करता. इंसान का जिस्म हो कि हैरत नाक रचना है या ज़मीन की गर्दिश कि साल में एक सेकण्ड का फर्क नहीं पड़ता.
किसी जाहिल और अहमक की कुछ उलटी सीधी बातें इस कौम का निज़ाम ए हयात बन चुकी है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 12 March 2011

सूरह नज्म ५३ - पारा २७

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह नज्म ५३ - पारा - २७


ईश निंदा

आज कल मीडिया में शब्द "ईश निंदा" बहुत ही प्रचलित हो रहा है, जो दर अस्ल तालिबान नुमा मुसलामानों को संरक्षण देने का काम करता है. ईश निंदा का मतलब हुवा खुदा या ईश्वर का अपमान करना, जब कि नया दृष्ट कोण रखने वाले बुद्धि जीवी इस्लामी आदेशों की निंदा करते है. कुरान में ९०% आयतें मानवता के विरुद्ध हैं, जिसकी निंदा करना मानव अधिकार ही नहीं, मानव धर्म भी है. कोई उस सृष्टि व्यापी अबूझी महा शक्ति को नहीं अपमानित करता, बल्कि अल्लाह बने मुहम्मद और उनके क़ुरआनी आदेशों का खंडन करता है, जो अमानवीय है.
हमारा नया कल्चर बना हुवा है सभी धर्मो का सम्मान करना, जिसे सेकुलरटी का नाम भी गलत अर्थों में दिया गया है. सेकुलर का अर्थ है धर्म विहीन. सेकुलरटी को भी एक नए धर्म का नाम जैसा बना दिया गया है.
ज़्यादः हिस्सा धर्म दूसरे धर्मों का विरोध करते हैं, जिसके तहत वह अधर्मी, काफ़िर और नास्तिकों को खुल्लम खुल्ला गालियाँ देते हैं. जवाब में अगर नास्तिक के मुँह से कुछ निकल जाए तो वह ईश निंदा हो जाता है, उसको तिजारती मीडिया ललकारने लगती है.
मेरी मांग है कि जागृत मानव को पूरा हक़ होना चाहिए कि वह अचेत लोगों की चेतना को सक्क्रीय करने के लिए इस्लाम निदा, क़ुरआन निंदा और मुहम्मदी अल्लाह की निंदा को ईश निदा न कहा जाए.बल्कि इसे मठा धीशों की या भ्रष्ट अदालतों को दूषित करने वाले न्याय धीशों की ,
"धीश निंदा" कहा जा सकता है.
शुरू है अल्लाह की बे सर पैर की कसमों से - - -

"क़सम है सितारे की जब वह ग्रूब होने लगे, ये तुम्हारे साथ के रहने वाले (मुहम्मद) न राहे-रास्त से भटके, न ग़लत राह हो लिए और न अपनी ख्वाहिशात ए नफ्सियात से बातें बनाते हैं. इनका इरशाद निरी वह्यी है जो इन पर भेजी जाती है. इनको एक फ़रिश्ता तालीम करता है जो बड़ा ताक़तवर है, पैदैशी ताक़त वर."सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (१-६)जिस सितारे की क़सम खुद साख्ता रसूल खाते हैं उसके बारे में अरबियों का अक़ीदा है कि वह जब डूबने लगेगा तो क़यामत आ जाएगी.
भला कोई तारा डूबता और निकलता भी है क्या?
ग़ालिब कहते हैं - - -



थीं बिनातुन नास ए गर्दूं दिन के परदे में निहाँ,
शब को इनके जी में क्या आया कि उरियां हो गईं.



अल्लाह इस जुगराफिया से बे खबर है.
बन्दों को इस से ज़्यादः समझने की ज़रुरत महसूस नहीं हो पाती कि वह समझे कि वादहू ला शरीक की क़सम खाने की क्या ज़रुरत पड गई मुहम्मदी अल्लाह को, जिसके कब्जे में कायनात है. वह तो पलक झपकते ही सब कुछ कर सकता है बिना कस्मी कस्मा के.
मुहम्मद का आई. क्यू. फ़रिश्ते को पैदायशी ताक़त वर कहते है, तुर्रा ये कि इसको अल्लाह का कलाम कहते हैं जो बज़रिए वह्यी (ईश वाणी) उन पर नाजिल होती है.

''फिर वह फ़रिश्ता असली सूरत में नमूदार हुवा,.ऐसी हालत में वह बुलंद कनारे पर था, फिर वह फ़रिश्ता नज़दीक आया फिर और नज़दीक आया, सो दो कमानों के बराबर फ़ासला रह गया बल्कि और भी कम, फिर अल्लाह ने अपने बन्दे पर वह्यी नाज़िल फ़रमाई. जो कुछ नाज़िल फ़रमाई थी, क़ल्ब ने देखी हुई चीज़ में कोई ग़लती नहीं की. तो क्या इनकी देखी हुई चीज़ में निज़ाअ करते हो.?"सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (७-१२)ऐ पढ़े लिखे मुसलमानों!
तुम अपने तालीमी सार्टी फिकेट, डिग्रियाँ और अपनी सनदें फाड़ कर नाली में डाल दो, अगर मुहम्मद की इन वाहियों पर ईमान रखते हो. उनकी बातों में हिमाक़त और जेहालत कूट कूट कर भरी हुई है. या फिर नशे के आलम में बक बकाई हुई बातें.
कुरआन यही है जो तुम्हारे सामने है.
हमारे बुजुर्गो के ज़हनों को कूट कूट कर क़ुरआनी अक़ीदे को भरा गया है, इसे तलवार की ज़ोर पर हमारे पुरखों को पिलाया गया है, जिससे हम कट्टर मुसलमान बन गए. इस कुरआन की असलियत जान कर ही हम नए सिरे से जाग सकते हैं.



*और उन्होंने इस फ़रिश्ते को एक बार और भी देखा है सद्रतुन-मुन्तेहा के पास इसके नजदीक जन्नतुल माविया है. जब इस सद्रतुल माविया को लिपट रही थीं, जो चीज़ लिपट रही थीं, निगाह न तो हटी न तो पड़ती उन्होंने अपने परवर दिगार के बड़े बड़े अजायब देखे."सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (१३-१८)मुसलमानों!
जो इस्लाम आपके हाथ में है वह यहूदी अकीदतों की चोरी का माल है, जिसमें मुहम्मद ने कज अदाई करके इसकी शक्लें बदल दी है. सद्रतुन-मुन्तेहा जन्नत का एक मफरूज़ा दरख़्त है, जैसे ज़कूम को तुम्हारे नबी ने दोज़ख में उगाया था. इस दरख्त में क्या शय लिपट रही थी उसका नाम अल्लाह के रसूल को याद नहीं रहा, जो चीज़ लिपट रही थी इनको ओलिमा ने तौरेत और दीगर पौराणिक किताबों से मालूम कर के तुमको बतलाया है. खुद अल्लाह सद्रतुन-मुन्तेहा और जन्नतुल माविया को अलग अलग बता नहीं सका, इन्हों ने अल्लाह की मदद की.
किस्से मेराज में इस फर्जी पेड़ का ज़िक्र है, उसी रिआयत से मुहम्मद तस्दीक करते हैं कि इसे एक बार और भी देखा है.

"भला तुमने लात, उज्ज़ा और मनात के हाल पर भी गौर किया है?
क्या तुम्हारे लिए तो बेटे हों और अल्लाह के लिए बेटियाँ? इस हालत में ये तो बहुत ही बेढंगी तकसीम है.
ये महेज़ नाम ही नाम है जिनको तुमने और तुन्हारे बाप दादाओं ने ठहराया, अल्लाह ने इनको माबूद होने की कोई दलील भेजी, न हीं. ये लोग सिर्फ बे हासिल ख्याल पर और अपने नफस की ख्वाहिश पर चल रहे हैं. हालांकि इन्हें इनके रब की जानिब से हिदायत आ चुकी है. क्या इंसान को इसकी हर तमन्ना मिल जाती है?"
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (१९-२३)लात, उज्ज़ा और मनात की टहनी से अल्लाह फुदक कर ईसाइयत की डाली पर आ बैठता है. अल्लाह तहज़ीबी इर्तेका को बेढंगी बात कहता है.
फिर लात, उज्ज़ा और मनात के हाल पर आता है कि इसे तो वह भूल ही गया था. अल्लाह ने इन बुतों को कोई दलील न देकर ठीक ही किया कि झूटी पैगम्बरी तो इनके पीछे नहीं गढ़ी हुई है.
काले जादू और सफेद झूट में अगर दीवानगी मिला दी जाए तो बनती हैं क़ुरआनी आयतें.

"तो भला आपने ऐसे शख्स को भी देखा जिसने दीन ए हक़ से रू गरदनी की और थोडा मॉल दिया और बंद कर दिया. क्या इस शख्स के पास इल्म गैब है? कि उसको देख रहा है."सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (३३-३५)कोई वलीद नाम का शख्स था जिसने मुहम्मद के हाथों पर हाथ रख कर बैत की थी और इस्लाम कुबूल किया था. वह अपने घर वापस जा रहा था कि उसे कोई शनासा मिल गया और तहकीक की. वलीद ने जवाब दिया कि तुमने ठीक ही सुना है. मैं डर रहा हूँ कि मरने के बाद कोई खराबी न दर पेश हो. शनासा ने कहा बड़े शर्म की बात है कि तुम ने अपना और अपने बुजुर्गों के दीन को छोड़ कर एक सौदाई की बातों पर यकीन कर लिया वलीद ने कहा मुमकिन है उसकी बातें सच हों और मैं जहन्नम में जा पडूँ?शनासा बोला भाई मैं तुम्हारे वह इम्कानी अज़ाब अपने सर लेने का वादा कर रहा हूँ, बशर्ते तुम मुझे कुछ मॉल देदो.वलीद इस बात पर राज़ी हो गया मागर कुछ मोल भाव के बाद. वलीद ने शनासा से इसकी तहरीर लिखवाई और दो लोगों की गवाही कराई फिर तय शुदा रक़म अदा करके अपने पुराने दीन पर लौट आया ये बात जब मुहम्मद के इल्म में आई तो मनदर्जा बाला आयत नाज़िल हुई.
आप उस वक़्त के इस वाकए से तब के लोगों का ज़ेहनी मेयार को समझ सकते हैं.
कुछ वलीद जैसे गऊदियों ने इस्लाम क़ुबूल किया, फिर माले-गनीमत के लुटेरों ने. इसके बाद जंगी मजलूमों ने इसे कुबूल किया
.कुरआन खोखला पहले भी था और आज भी है.
वलीद जैसे सादा लौह कल भी थे और आज भी हैं.
देखना है तो टेली विज़न पर बाबाओं, बापुओं, स्वामियों और पीरों की सजी हुई महफ़िल देख सकते हैं.
शनासा जैसे होशियार और होश मंद भी हमेशा रहे ही हैं.
ज़रुरत है कौम को चीन जैसे इन्क़लाब की, जो अवाम की ज़ेहनी मरम्मत गोलियों की चन्द आवाज़ से करें, वर्ना हमारा मुल्क इसी कश मकश की हालत में पड़ा रहेगा..




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान