मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी ''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है, हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं, और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८
मुहम्मद उम्मी थे अर्थात निक्षर. तबीयतन शायर थे, मगर खुद को इस मैदान में छुपाते रहते, मंसूबा था,
"जो शाइरी करूंगा वह अल्लाह का कलाम क़ुरआन होगा."
इस बात की गवाही में क़ुरआन में मिलनें वाली तथा कथित काफिरों के मुहम्मद पर किए गए व्यंग
'' शायर है ना'' है.
शाइरी में होनें वाली कमियों को, चाहे वह विचारों की हों, चाहे व्याकरण की, मुहम्मद अल्लाह के सर थोपते हैं.
अर्थ हीन और विरोद्दाभाशी मुहम्मद की कही गई बातें
''मुश्तबाहुल मुराद '' आयतें बन जाती हैं जिसका मतलब अल्लाह बेहतर जानता है.
(सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयत 6+7)
यह तो रहा क़ुरआन के लिए गारे हेरा में बैठ कर मुहम्मद का सोंचा गया पहला पद्य आधारित मिशन ''क़ुरआन''.
दूसरा मिशन मुहम्मद का था गद्य आधारित .
इसे वह होश हवास में बोलते थे, खुद को पैगम्बराना दर्जा देते हुए, हांलाकि यह उनकी जेहालत की बातें होतीं जिसे कठबैठी या कठ मुल्लई कहा जाय तो ठीक हो गा .
यही मुहम्मदी ''हदीसें'' कही जाती हैं.
क़ुरआन और हदीसों की बहुत सी बातें यकसाँ हैं, ज़ाहिर है एह ही शख्स के विचार हैं, ओलिमा-ए-दीन इसे मुसलामानों को इस तरह समझाते हैं कि अल्लाह ने क़ुरआन में कहा है जिस को हुज़ूर (मुहम्मद) ने हदीस फलाँ फलाँ में भी बयान फरमाया है.
अहले हदीस का भी एक बड़ा हल्का है जो मुहम्मद कि जेहालत पर कुर्बान होते हैं. शिया कहे जाने वाले मुस्लिम इससे चिढ्हते हैं क्यूँकि अक्सर हदीसें अली मौला एंड कम्पनी का पोल खोलती है.
मुसलमानों! जागो क्या तुम को मालूम है कि तुम पामाल हो रहे हो ? कभी सोचा है कि इसकी वजह क्या हो सकती है ? इस की वजह है तुम्हें घुट्टी मे पिलाया गया इसलाम और तुम्हारे वजूद पर छाए हुए शैतानी आलिमाने इसलाम.
कुरान तुम्हारा पैदाइशी दुश्मन है जो कहता है
"अल्लाह की राह में क़त्ताल करो."
इसके रद्दे अमल में सारी मुहज्ज़ब दुन्या तुमको क़त्ल करके ज़मीन को पाक कर देगी. अभी वक़्त है तरके इसलाम करके ईमान को पकडो, मुस्लिम से मोमिन हो जाओ बहुत आसान है ये काम, बस तुम्हारे पक्के इरादे कि ज़रुरत है.
देखिए कि क़ुरआनी मक्र कैसी कैसी बातें करता है - - -
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१-३)
और खुद साख्ता रसूल की नापाकी भी बयान करता है, कि उनकी करनी और कथनी में बड़ा फर्क है. जो मोमिन को गुमराह करके मुस्लिम बनाते हैं.
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (५)
मूसा एक ज़ालिम तरीन इंसान था, तौरेत उठा कर इसकी जन्गी दस्ताने पढ़ें.
अल्लाह टेढ़ा तो नहीं होता मगर हाँ मुहम्मदी अल्लाह पैदायशी टेढ़ा है. कहते हैं, "हालांकि तुम को मालूम है कि मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ" सभी शरीफ और शैतान अल्लाह के भेजे हुए ज़मीन पर आते हैं. मुहम्मद के सच में भी झूट की आमेज़िश है.
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (६)
न ईसा पर इंजील नाज़िल हुई और न मूसा पर तौरेत. तौरेत यहूदियों का खानदानी इतिहास है, ये आसमान से नहीं उतरी और न इंजील आसमान से टपकी.
इंजील भी ईसा के साथ रहने वाले हवारियो (धोबियों) का दिया हुवा बयान है जो ईसा के खास हुवा करते थे.
इंसानी जन्गों ने मूसा, ईसा और मुहम्मद को पैगामबर बनाए हुए है.
मुसलमानों ! तुमको कुरआन सफेद झूट में मुब्तिला किए हुए है कि इंजील में कोई इबारत ऐसी दर्ज हो कि "जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ "
झूठे ओलिमा तुमको अंधरे में रख कर अपनी हलुवा पूरी अख्ज़ कर रहे है. मुहम्मद मूसा और ईसा के मार्फ़त लोगों से झूटी बयान बाजियां कर रहे हैं कि जैसे उनके परवानो ने उनको माना, उसी तरह तुम मुझको मान लो.
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (७)
ये क़ुरआनी तकिया कलाम है,
अल्लाह की जेहालत को न मानना ज़ुल्म है
और बेकुसूर लोगों पर जंग थोपना सवाब है.
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (८)
मुहम्मद की कठ मुललई पर सिर्फ़ हँस सकते हो. मुसलमानों! इस अल्लाह की हक़ीक़त ऐसी ही है कि तुम जागो और इसे एक फूँक मार कर बुझा दो,
एक हौसले के साथ उट्ठो और इस अल्लाह की ज़ालिम सूरत पर एक फूँक मारो,
बस कि सदाक़त की फूँक,
ईमान की फूँक,
ऐसी हो कि इसकी धुवाँ भरी रौशनी पर उमड़ पड़े
कि तुम्हारे भीतर का इस्लामी धुवाँ मिट जाए
और तुम अपने आप में खुद रौशन हो जाओ.
"आप्पो दीपो भवः" (अपनी रौशनी में रौशन हो जाओ)
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (९)
अगर तमाम दीन अल्लाह के भेजे हुए हैं तो किसी एक को ग़ालिब करने का क्या जवाज़ है? अल्लाह न हुवा कोई पहेलवान हुवा जो अपने शागिदों में किसी को अज़ीज़ और किसी को गलीज़ समझता है. ऐसा अल्लाह खुद गलाज़त का शिकार है.
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१०-११) जंगी प्यास से बुझी हुई ये आयतें क्या किसी पाक परवर दिगार की हो सकती हैं?
ये वहशी मुहम्मद की आवाज़ है.
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१४)
मुहम्मद मक्का के काफिरों को हवारीन बना रहे हैं. मुहम्मद अपनी एडी की गलाज़ात उस अज़ीम हस्ती ईसा की एडी में लगाने की कोशिश कर रहे हैं. उस कलन्दर का जँग से क्या वास्ता. उसका तो कौल है - - -
"अपनी तलवार मियान में रख ले, क्यूँ कि जो तलवार चलाते हैं, वह सब तलवार से ही ख़त्म किए जाते हैं."
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान