Tuesday 17 August 2010

कुरआन - सूरह मओमेनून २३- परा-१८

मेरी तहरीर में - - -


क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी,


'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,


हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,


तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



(तीसरी किस्त)

खबरदार


मुसलमानों!
अमरीका के फ्लोरिडा चर्च की तरफ़ से एलान है क़ि वह ११-९ को कुरआन को नज़र ए आतिश करेंगे. मुसलामानों के लिए ये वक़्त है खुद से मुहासबा तलबी का, स्व-मनन का, अपने ओलिमा की ज़ेहनी गुलामी छोड़ कर इस बात पर गौर करने का क़ि वह अब अपना फैसला खुद करें, मगर ईमानदारी के साथ. मुसलमानों को चाहिए क़ि कुरआन का मुतालेआ करें, ना क़ि तिलावत. देखें क़ि ज़माना हक बजानिब है या कुरआन? मैं कुछ आयतें आपको पढने का मशविरा दे रहे हैं - - -
सूरह- आयत
बकर - १९०-१९२-२१४-२४४-२४५-
इमरान- १६७- १६८-१७०
निसा ७५-७७
मायदा- ३५
इंफाल १५-१६-१७-३९- ४३- ६४ -६७
तौबः ५- १६- २९ -४१- ४५- ४६ - ४७ -५३ - ८४ - ८६ -
मुहम्मद - २० -२१ -२२
फतह १६-२०-२३
सफ़- १०-११-
यह चंद आयतें बतौर नमूना हैं, पूरा का पूरा कुरआन ज़हर में बुझा हुआ झूट है.
इन आयातों में जेहाद की तलकीन की गई है. देखिए क़ि किस हठ धर्मी के साथ दूसरों को क़त्ल कर देने के एह्कामत हैं. मुसलमान अल्लाह के हुक्म पर जहाँ मौक़ा मिलता है, क़ुरआनी अल्लाह के मुताबिक ज़ुल्म ढाने लगता है.ऐसी कौम को जदीद इंसानी क़द्रें ही अब तक बचाए हुए हैं वगरना माज़ी के आईने को देख कर जवाब देने में अगर हैवानियत पहुंचे तो मुसलामानों का सारी दुन्या से नाम ओ निशान ही ख़त्म हो जाय। स्पेन में आठ सौ साल हुक्मरानी के बाद जब मुसलमान अपने आमालों के भुगतान में आए तो दस लाख मुस्लमान दहकती हुई मसनवी दोज़ख में झोंक दिए गए। अभी कल की बात है क़ि ईराक में दस लाख मुसलमान चीटियों की तरह मसल दिए गए. ऐसा चौदह सौ सालों से चला आ रहा है, जिसकी खबर आलिमान दीन आप को मक्र के रूप में देते हैं क़ि वह सब शहादत के सीगे में दाखिल हो कर जन्नत नशीन हुए. इंसानों को यह सजाएँ क़ुरआनी आयतें दिलवाती हैं. इसकी जिम्मे दारी इस्लाम ख़ोर ओलिमा की हमेशा से रही है. आप लोग सिर्फ शिकारयों के शिकार हैं. क्या आप अपनी नस्लों को क़ुरआनी फरेब में आकर आग में झोंकने का तसव्वुर कर सकते हैं? झूट को पामाल करने के लिए जब तक आप ज़माने के साथ न होंगे, खुद को पायमाल करते रहेंगे। अगर आप थोड़े से भी इंसाफ पसंद हैं तो खुद हाथ बढ़ा कर ऐसी मकरूह इबारत आग में झोंक देंगे.



क़ुरआनी आयतें गुमराहियाँ हैं, आइए देखें क़ि यह इंसानों को किन रास्तों पर ले जा रही हैं- - -
''हमने कौम नूह के बाद दूसरा गिरोह पैदा किया फिर हमने इनमें से ही एक पैगम्बर भेजा कि तुम लोग अल्लाह की इबादत किया करो. इसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं है. तो इनमें से जिन्हों ने कुफ्र किया था और आखिरत को झुटलाया था और हमने इनको दुन्या के ऐश दिए, कहने लगे पस वह तुम्हारी तरह ही एक आदमी है. ये वही खाते हैं जो तुम खाते हो, वाही पीते हैं जो तुम पीते हो, इसके कहने पर चलोगे तो घाटे में रहोगे क्या वह तुम से कहता है कि मर जाओगे तो मिटटी और हड्डियाँ हो जाओगे, तो निकाले जाओगे, बहुत ही बईद है जो तुम से कही जाती है. पैगम्बर ने दुआ किया कि ऐ मेरे रब मेरा बदला ले - - - फिर हमने इन्हें खश ओ खाशाक कर दिया. सो अल्लाह की मर काफिरों पर फिर इनको हालाक होने पर हमने और उम्मत पैदा की.''सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (३१-४२)कुफ्र यानी वहदानियत (एकेश्वरवाद) को नकारना , उसके जगह किसी आसान हस्ती को अपनी आस्था के अनुसार दिल लगाना इतना जुर्म हुवा कि गोया अल्लाह के साथ ज़ुल्म करना हो. बार बार कुरआन इस बात को दोहराता है. काफिरों को ज़ालिम कहता है , अजीब सी बात हुई बन्दा ए नाचीज़, खालिके कायनात पर ज़ुल्म करे, उसको मारे पीटे, ज़ख़्मी करें और जेहनी अज़ीयत पहुँचाएं, यही तो होता है ज़ुल्म. अल्लाह नाचार बन्दों के ज़ुल्म सहता रहे? मुहम्मद का ज़ेहनी दीवालिया पन का एक हरबा ही इसे कहा जायगा . मुसलमानों को इतनी अक्ल नहीं रह गई है कि इस पर गौर करके अपनी राय कायम करें. इनके पण्डे नुमा ओलिमा अपने गोरख धंधे में इन्हें फंसाए हुए है.
माबूद (पूज्य) के नाम पर इंसान हमेशा ठगा गया है और ठगा जाता रहेगा जब तक कि इसके खिलाफ सख्ती से न काम लिया जाएगा. मुहम्मद नूह के बाद किसी गुम नाम पैगम्बर का ज़िक्र कर रहे है. नाम दरों का ज़िक्र बार बार दोहरा चुके हैं

."हमने अपने पैगम्बरों को एक के बाद दीगर भेजे. जब किसी उम्मत के पस उसका रसूल आया तो उन्हों ने उसको झुटलाया. सो हमने एक के बाद एक का नंबर लगा दिया और हम ने इन की कहानियाँ बना दीं.सो अल्लाह की मार उन लोगों पर जो ईमान न लाते थे.''सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (४४)
अल्लाह बने मुहम्मद मुहाविरे का इस्तेमाल भी अल्लाह के मुंह से करते हैं, अल्लाह कहता है "अल्लाह की मार उन लोगों पर जो ईमान न लाते थे.'' लाशूरी तौर पर इस बात का एत्रफ भी करते हैं कि पैगम्बरों के बारे में जो भी वह बतलाते हैं वह बनाई हुई कहानियां हैं. इतना खुला हुवा कुरानी मुआमला मुसलामानों की अक्ल से बईद है .

अल्लाह एक बार फिर मूसा को पकड़ता है उसके बाद ईसा को मरयम के साथ. दोनों को एक बुलंद मुकाम पर लेजा कर पनाह देता है और खाने पिने के लिए मेवे मुहय्या करता है इसके बाद अपनी आयतों की खूबियाँ बयां करता है. जोकि बकवास की हद तक जाती हैं.सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (४५-६६)


"यहाँ तक कि जब हम इन खुश हाल लोगों को अज़ाब में धर पकड़ेंगे तो वह फ़ौरन चिल्ला उठेंगे . अब मत चिल्लाओ , हमारी तरफ़ से तुम्हारी मुतलाक़ मदद न होगी , हमारी आयतें तुमको पढ़ पढ़ कर सुनाई जाया करती थीं तो तुम उलटे पाँव भागते थे, तकब्बुर करते हुए, कुरआन का मशगला बनाते हुए, इसकी शान में बेहूदा बकते थे."सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (६७)
मुसलमानों! देखो कि तुम्हारे परवर दिगार को बात करने का सलीक़ा भी नहीं , मुस्तकबिल में हाल का सीगा पंचता है. बच्चों को बहलाने, फुसलाने औए धमकाने का तरीका अख्तियार करता है, बालिग नव जवान और बूढों तक को समझ नहीं कि इन बैटन से उनकी रूह कांपती है. कोई फर्क न पड़ता इन बैटन से अगर बातें कौम कि पसमांद का बीस न होतीं.
क्या कभी आप ने गौर किया है कि सम्तें (दिशाएँ) कहाँ तक जाती हैं? ये वक़्त कब शुरू हुवा है? अल्लाह ईश्वर है? तो ज़ाहिर है इस के पहले के होंगे. ये क़ुरआनी अल्लाह हमको आदम तक की खबर देता है या फिर उनके बाद के नूह, मूसा, ईसा तक की और हर बात मुहम्मद पर जाकर ख़त्म हो जाती है. यानी करोरों सालों की तारीख को सिर्फ ६००० साल तक की खबर मुहम्मदी अल्लाह को है. आज वक़्त इतना आगे बढ़ चुका है कि दर्जा आठ का तालिब इल्म भी इस मुहम्मदी अल्लाह की खबर ले सकता है, वह इसके आधे फरमानों का मज़ाक बना सकता है. मगर मुसलमान बुजुर्गवार को समझाना बच्चे क्या निव्तन न्यूटन के बस की बात भी नहीं . कभी कभी जी करता है कि जाने दें इस कौम को जहन्नम के ग़ार में मगर क्या करें कि इंसानी दिल हर इन्सान का खैर ख्वाह है.


"और जो लोग आखिरत पर ईमान नहीं रखते, ये हालत है कि उस रस्ते से हटते जाते हैं और अगर हम उन पर मेहरबानी फरमा दें और इन पर जो तकलीफ़ है उसको अगर हम दूर कर भी दें तो भी वह लोग अपनी गुमराहियों में भटकते हुए इसरार करते हैं और हमने उनको गिरफ़्तार भी किया है सो उन लोगों ने न अपने रब के सामने फरोतनी की न आजज़ी अख्तियार की."
सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (७४-७६)अल्लाह की बकवास का एक नमूना ही कही जाएगी ये आयत। जिसका कहीं से कोई मतलब ही नहीं निकलता. आलिमान दीन इसकी खूबी यूँ बयान करते हैं कि कुरआन को समझना हर एक की बस की बात नहीं. यानी इन कमियों में भी उन्हें खूबी नज़र आती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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कुरआन - सूरह मओमेनून २३- परा-१८

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी,

'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

(दूसरी किस्त)
मुसलमानों!
अमरीका के फ्लोरिडा चर्च की तरफ़ से एलान है क़ि वह ११-९ को कुरआन को नज़र ए आतिश करेंगे. मुसलामानों के लिए ये वक़्त है खुद से मुहासबा तलबी का, स्व-मनन का, अपने ओलिमा की ज़ेहनी गुलामी छोड़ कर इस बात पर गौर करने का क़ि वह अब अपना फैसला खुद करें, मगर ईमानदारी के साथ. मुसलमानों को चाहिए क़ि कुरआन का मुतालेआ करें, ना क़ि तिलावत. देखें क़ि ज़माना हक बजानिब है या कुरआन? मैं कुछ आयतें आपको पढने का मशविरा दे रहे हैं - - -
सूरह- आयत
बकर - १९०-१९२-२१४-२४४-२४५-
इमरान- १६७- १६८-१७०
निसा ७५-७७
मायदा- ३५
इंफाल १५-१६-१७-३९- ४३- ६४ -६७
तौबः ५- १६- २९ -४१- ४५- ४६ - ४७ -५३ - ८४ - ८६ -
मुहम्मद - २० -२१ -२२
फतह १६-२०-२३
सफ़- १०-११-
यह चंद आयतें बतौर नमूना हैं, पूरा का पूरा कुरआन ज़हर में बुझा हुआ झूट है.
इन आयातों में जेहाद की तलकीन की गई है. देखिए क़ि किस हठ धर्मी के साथ दूसरों को क़त्ल कर देने के एह्कामत हैं. मुसलमान अल्लाह के हुक्म पर जहाँ मौक़ा मिलता है , क़ुरआनी अल्लाह के मुताबिक ज़ुल्म ढाने लगता है. ऐसी कौम को जदीद इंसानी क़द्रें ही अब तक बचाए हुए हैं वगरना माज़ी के आईने को देख कर जवाब देने में अगर हैवानियत पहुंचे तो मुसलामानों का सारी दुन्या से नाम ओ निशान ही ख़त्म हो जाय. स्पेन में आठ सौ साल हुक्मरानी के बाद जब मुसलमान अपने आमालों के भुगतान में आए तो दस लाख मुस्लमान दहकती हुई मसनवी दोज़ख में झोंक दिए गए. अभी कल की बात है क़ि ईराक में दस लाख मुसलमान चीटियों की तरह मसल दिए गए. ऐसा चौदह सौ सालों से चला आ रहा है, जिसकी खबर आलिमान दीन आप को मक्र के रूप में देते हैं क़ि वह सब शहादत के सीगे में दाखिल हो कर जन्नत नशीन हुए. इंसानों को यह सजाएँ क़ुरआनी आयतें दिलवाती हैं. इसकी जिम्मे दारी इस्लाम ख़ोर ओलिमा की हमेशा से रही है. आप लोग सिर्फ शिकारयों के शिकार हैं.
झूट को पामाल करने के लिए जब तक आप ज़माने के साथ न होंगे , खुद को पायमाल करते रहेंगे. अगर आप थोड़े से भी इंसाफ पसंद हैं तो खुद हाथ बढ़ा कर ऐसी मकरूह इबारत आग में झोंक देंगे.
आइए देखें कि हाद्साती आयतें क्या कहती हैं - - -

"और हमने पानी से बाग़ पैदा किए खजूरों और अंगूरों के. तुम्हारे लिए इसमें बकसरत मेवे भी हैं और इसमें से खाते भी हो और एक दरख्त जो तूरे-सीना में पैदा होता है, जो कि उगता है तेल लिए हुए और खाने वालों को सालन लिए हुए. और तुम्हारे मवेशी गौर करने का मौक़ा है कि हम तुमको इन के पेट में की चीज़ पीने को देते हैं और इनमें से बअज़ को खाते भी हो . इन पर और कश्ती पर लदे घूमते भी हो."
सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (१९-२२ )
रेगिस्तानी अल्लाह को खजूर, अंगूर और जैतून के सिवा, आम, अमरुद और सेब जैसे दरख्तों का पता भी नहीं है. इरशाद हुवा है की मवेशी के पेट से पीने की चीजें भी पैदा कीं . ज़ाहिर है कि इसमें से दो चीजें ही आती हैं. दूध और मूत. दूध तो पिया भी जाता है और कभी कभी मूत भी पिया जाता है. खुद मुहम्मद भी इसके कायल थे कि एक हदीस के मुताबिक मुहम्मद के पास किसी दूर बस्ती से पेट के कुछ मरीज़ आए, तो उन्होंने उनको अपने फॉर्म हॉउस में ये कहके भेज दिया कि वहां पर ऊंटों का दूध और मूत पीकर यह लोग सेहत याब हो जाएँगे. और वह वहां रहकर ठीक भी हो गए, ऐसे ठीक हुए कि फार्म हॉउस के रखवाले को मार कर मुहम्मद के सभी ऊंटों को लेकर फरार हो गए. मुहम्मद के सिपाहियों ने उन्हें जा धरा. ज़ालिम मुहम्मद ने उन्हें ऐसी सजा दी कि सुन कर कलेजा मुंह को आए.
अल्लाह काफिरों को जब दोज़ख की सजाएं तजवीज़ करता है तो मुहम्मद की ज़ेहंयत इस हदीस को लेकर नज़रों के सामने घूम जाती है।
"कश्ती का ज़िक्र मुहम्मद के मुँह पर आए तो कुरआन का तहकीकी मौज़ू ग़ायब हो जाता है और वह बार बार नूह के साथ बह निकलते हैं. कश्ती का नूह से चोली दामन का साथ जो हुवा. कश्ती का नाम मुहम्मद के मुँह पर आए तो जेहन में नूह दौड़ने लगते हैं
सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (१९-२२ )फिर शुरू हो जाती है नूह की कथा . नूह के नाम से मुहम्मद अपनी आप बीती मन गढ़ंत जड़ने लगते हैं. मुलाहिजा हो एक बार फिर नूह के सफीने पर कुरान की सवारी - - -"और हमने नूह को इनकी कौम की तरफ़ पैगम्बर बना कर भेजा सो उन्हों ने कौम से फ़रमाया कि ऐ मेरी कौम! अल्लाह की ही इबादत किया करो, उसके आलावा कोई माबूद बनाने के लायक नहीं है, तो क्या डरते नहीं हो. बस कि उनकी कौम में जो काफ़िर मालदार थे , कहने लगे कि ये शख्स बजुज़ इसके कि तुम्हारी तरह एक आदमी है और कुछ भी नहीं, इसका मतलब ये है कि तुम से बरतर बन कर रहे और अल्लाह को मंज़ूर होता तो किसी फ़रिश्ते को भेजता. हमने ये बात अपने बड़ों में नहीं सुनीं. बस कि ये एक आदमी है जिसको जूनून हो गया है . नूह ने कहा ऐ मेरे रब! मेरा बदला ले वजेह ये है कि उन्हों ने मुझको झुटलाया। पस कि हमने उनके पास हुक्म भेजा कि तुम कश्ती तैयार कर लो हमारी निगरानी में फिर जब हमारा हुक्म आ पहुँचे और ज़मीन से पानी उबलना शुरू हो तो हर किस्म में एक एक नर और एक एक मादा यानी दो अदद इस में दाखिल कर लो और अपने घर वालों को भी इस लिहाज़ के साथ कि जिस पर इस में से हुक्म नाजिल हो चुका हो. और हम से काफिरों के बारे में कोई गुफ्तुगू न करना. वह सब ग़र्क किए जाएँगे. फिर जिस वक़्त तुम और तुम्हारे साथी कश्ती पर बैठ चुको तो कहना शक्र है अल्लाह का जिसने मुझे काफिरों से नजात दी. और यूं कहना कि रब मुझको बरकत से उतारियो. और आप सब उतारने वालों में से सब से अच्छे हैं इसमें बहुत सारी निशानियाँ हैं और हम आजमाते हैं."सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (२३-३०)इस तरह मुहम्मद अपना दिमागी फितूर ज़ाहिर करते हुए अहले मक्का को समझाते हैं बल्कि धमकाते हैं कि वह भी नूह की तरह ही पैगम्बर है और उनकी बद दुआ से सब के सब गरके-आब हो जाओगे. इस तरह अपने मुखालिफ काफिरों से नजात भी चाहते है.
''हमने कौम नूह के बाद दूसरा गिरोह पैदा किया फिर हमने इनमें से ही एक पैगम्बर भेजा कि तुम लोग अल्लाह की इबादत किया करो. इसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं है. तो इनमें से जिन्हों ने कुफ्र किया था और आखिरत को झुटलाया था और हमने इनको दुन्या के ऐश दिए, कहने लगे पस वह तुम्हारी तरह ही एक आदमी है. ये वही खाते हैं जो तुम खाते हो, वाही पीते हैं जो तुम पीते हो, इसके कहने पर चलोगे तो घाटे में रहोगे क्या वह तुम से कहता है कि मर जाओगे तो मिटटी और हड्डियाँ हो जाओगे, तो निकाले जाओगे, बहुत ही बईद है जो तुम से कही जाती है. पैगम्बर ने दुआ किया कि ऐ मेरे रब मेरा बदला ले - - - फिर हमने इन्हें खश ओ खाशाक कर दिया. सो अल्लाह की मर काफिरों पर फिर इनको हालाक होने पर हमने और उम्मत पैदा की।''
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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Prophet of Doom s

क़ुरआन - सूरह मओमेनून २३- परा-१८

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी,

'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।




(पहली किस्त)



मैं एक मिटटी से वापस आ रहा था, साथ में मेरे एक खासे पढ़े लिखे रिश्तेदार भी थे. चलते चलते उन्हों ने एक झाड़ से कुछ पत्तियां नोच लीं, उसमें से कुछ खुद रख लीं और कुछ मुझे थमा दीं. मैं ने सवाल्या निशान से जब उनको देखा तो समझाने लगे कि मिटटी से लौटो तो हमेशा हरी पत्ती के साथ घर में दाखिल हुवा करो. मैंने सबब दरयाफ्त किया कि इस से क्या होता है? तो बोले इस से होता कुछ नहीं है, ये मैं भी जनता हूँ मगर ये एक समाजी दस्तूर है, इसको निभाने में हर्ज क्या है? घर में घुसो तो औरतें हाथ में हरी पत्ती देखकर मुतमईन हो जाती हैं, वर्ना बुरा मानती है. ये है कबीलाई जिंदगी की जेहनी गुलामी का एक नमूना. ये बीमारी नस्ल दर नस्ल हमारे समाज में चली आ रही है. ऐसे बहुतेरे रस्म ओ रिवाज को हमारा समाज सदियों से ढोता चला आ रहा है. तालीम के बाद भी इन मामूली अंध विशवास से लोग उबार नहीं प् रहे.
दूसरी मिसाल इसके बर अक्स मैं अपनी तहरीर कर रहा हूँ कि मेरी शरीक-हयात दुल्हन के रूप में अपने घर से रुखसत होकर मेरे घर नकाब के अन्दर दाखिल हुईं, दूसरे दिन उनको समझा बुझा कर नकाब को अपने घर से रुखसत कर दिया, कि दोबारा उनपर उसकी साया तक नहीं पड़ी. मेरे इस फैसले से नई नवेली दुल्हन को भी फितरी राहत महसूस हुई, मगर वक्ती तौर पर उनको इसकी मुखालफत भी झेलनी पड़ी, बिल आखिर भावजों को इससे हौसला मिला, कि उन्हों ने भी नकाब तर्क कर दिया. इसका देर पा असर ये हुवा कि पैंतीस साल बाद हमारे बड़े खानदान ने नकाब को खैरबाद कर बिया.
इन दो मिसालों से मैं बतलाना चाहता हूँ कि अकेला चना भाड़ तो नहीं फोड़ सकता मगर आवाज़ बुलंद कर सकता है. बड़े से बड़े मिशन की कामयाबी के लिए पहला क़दम तो उठाना ही पड़ेगा. इंसान अपने अन्दर छिपी सलाहियतों से खुद पहचानने से बचता रहता है.


आइए मुहम्मद की उम्मियत की तरफ चलें और उनको रंगे हाथों पकड़ने के बाद मुसलामानों के सामने पेश करें कि तुम्हारी नस्लों का दुश्मन ये रहा - - -


"बिल यकीन उन मुसलामानों ने फलाह पाई जो अपनी नमाज़ों में गिडगिडाने वाले हैं.''सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (१-२)
रोना और हँसना, दोनों ही ज़ेहन को हल्का कर देते हैं, मगर इसकी कोई वजेह और हदें हुवा करती हैं. बिना वजेह ये तजाऊज़ कर जाएँ तो ये बीमारी की अलामत होती है. हँसना तो खैर इस्लाम में हराम की तरह है मगर एक नार्मल इंसान को यह रोने और गिडगिडाने की हरकत अपने आप में बेवकूफी लगेगी. अफ़सोस कि कुरआन का कोई भी मशविरा इंसानों के लिए कारामद नहीं है, कुछ निकलता है तो नुक़सान दह.


"और जो लग्व बातों से दूर रहते हैं, जो अपने को पाक रखते हैं और जो अपनी शरमगाहों की हिफ़ाज़त करने वाले हैं, लेकिन अपनी बीवियों और लौंडियों पर कोई इलज़ाम नहीं. हाँ! जो इसके अलावा तलब गार हो, ऐसे लोग हद से निकलने वाले हैं"सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (३-७)खुद साख्ता रसूल एक हदीस में फ़रमाते हैं कि जो शख्स मेरी ज़बान और तानासुल (लिंग) पर मुझे काबू दिला दे उसके लिए मैं जन्नत की ज़मानत लेता हूँ , और उनका अल्लाह कहता है कि शर्म गाहों की हिफाज़त करो. मुहम्मद खुद अल्लाह की पनाह में नहीं जाते. अल्लाह ने सिर्फ मर्दों को इंसानी दर्जा दिया है इस बात का एहसास बार बार कुरआन कराता है. कुरानी जुमले पर गौर करिए "लेकिन अपनी बीवियों और लौंडियों पर कोई इलज़ाम नहीं" एक मुसलमान चार बीवियाँ बयक वक्त रख सकता है उसके बाद लौड्यों की छूट. इस तरह एक मर्द= चार औरतें +लौडियाँ बे शुमार. इस्लामी ओलिमा, इन्हें इनका अल्लाह गारत करे, ढिंढोरा पीटते फिरते है कि इस्लाम ने औरतों को बराबर का मुकाम दिया है. इन फासिकों के चार टुकड़े कर देने चाहिए कि इस्लाम औरतों को इन्सान ही नहीं मानता. अफ़सोस का मक़ाम ये है कि खुद औरतें ज्यादह इस्लामी खुराफात में पेश पेश रहती हैं .

"हमने इंसान को मिटटी के खुलासे से बनाया, फिर हमने इसको नुत्फे से बनाया, जो कि एक महफूज़ मुकाम में रहा, फिर हमने इस नुत्फे को खून का लोथड़ा बनाया, फिर हमने इस खून के लोथड़े को बोटी बनाई, फिर हमने इस बोटी को हड्डी बनाई, फिर हमने इन हड्डियों पर गोशत चढ़ाया, फिर हमने इसको एक दूसरी ही मखलूक बना दिया, सो कैसी शान है मेरी, जो तमाम हुनरमंदों से बढ़ कर है. फिर तुम बाद इसके ज़रूर मरने वाले हो और फिर क़यामत के रोज़ ज़िन्दा किए जाओगे."
सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (१२-१६)
ये मिटटी का खुलासा क्या होता है? मुफस्सिर और तर्जुमान एक दूसरे की काट करते हुए अल्लाह की मदद अपने अपने मंतिक से करते हैं. अल्लाह की हिकमत देखिए कि आप की तकमील में उसने क्या क्या जतन किए है? खालिक ए कायनात किस छिछोरे पन से अपनी तारीफ़ कर रहा है। ये मुहम्मद के ज़र्फ़ की नककाशी है. सब कुछ अल्लाह कर सकता है कि उसका दावा ही है ये, बस कर नहीं पाता तो अपने इस शाहकार इन्सान को मुसलमान नहीं बना सकता. ऐसी जेहालत की आयत मुहम्मदी अल्लाह वास्ते इबादत पेश का रहा है।




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान



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Sunday 8 August 2010

क़ुरआन - सूरह हज २२

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस)
मुसम्मी '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

 
फतवा


देवबंद के ओलिमा ने एक बार फिर इंसानी हुकूक को लेकर, ज़िदा दिल जीने वाले फ़िल्मी बन्दों सेहरिश और जहाँगीर पर फतवा जड़ दिया है. उनकी निजी आज़ादी इस्लाम को रास नहीं आती इस लिए इन दोनों को इस्लाम से और इसकी बिरादरी ख़ारिज कर दिया गया. ओलिमा के इन फतवों की कोई कद्र व कीमत नहीं होती तब तक कि मुलजिम इन फतवों की परवाह करने लगे. अफ़सोस हुवा ये देखकर कि जहाँगीर इन कठ मुल्लों की परवाह करते हुए सफाई देने लगे कि वह पक्के मुसलमान हैं. वह और उनकी महबूबा कहाँ तक सफाई देते रहेंगे कि वह इस्लाम के पाबंद हैं. उनकी एक्टिंग ही हराम करार दी जा सकती है, कैमरे के सामने जाकर तस्वीर खिचाना भी हराम, बे बुरका रहना हराम, गैर मुस्लिम से शादी करना हराम. मियाँ जहाँगीर सच तो ये है की आप इनकी परवाह किए बगैर अपने धुन में लगे रहिए. इन हराम खोरों की बातों में आकर गुमराह मत होइए. इन से कहिए कि ठीक है मुल्ला जी! हम आप के यहाँ आपकी बेटी का हाथ मांगने नहीं आएँगे. वैसे भी इनकी बहन बेटियों को कोई ढंग का रिश्ता नहीं मिलता है. यह किराए के टट्टू अपने साथ साथ अपनी नस्लों के दुश्मन होते हैं.
हाथी गुज़र जाता है कुत्ते भौंकते रहते हैं. पिद्दी भर एक मुम्बैया तंजीम "जामा कादिर्या अशरफिया " दुन्या की ताक़ते-अव्वल अमरीका को आगाह कर रही है कि अगर ११-९ को क़ुरआनी नुस्खे जलाए गए तो इसके अंजाम बुरे होंगे. इस्लामी दुन्या ऐसी गुमराहियों पर है कि हर मुसलमान कायदे-आज़म बना हुवा है. मुस्लिम अवाम को चाहिए कि इन काठ मुल्लों को ठेंगा दिखलाते हुए अपनी मंजिल की तरफ गामज़न रहें.
" निज़ामे-हयात के तहत अल्लाह अपने लिए जिन मासूम जानवरों की कुर्बानी चाहता है, उसकी नफासत को जताता है और कुर्बानी के तौर तरीकों का बयान करता है . खाना ए काबा को इब्राहीम ने बनाया इसका खुलासा करते हए उनके एह्कमात बाबत हज के बतलाता है. फिर हस्बे- आदत यहूदी नबियों के नाम गिनता है - - - नूह, आद , समूद से मूसा तक."सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२६-४४)

''सो मेरा अज़ाब कैसा हुवा, कितनी बस्तियां है जिनको हम ने हलाक किया जिनकी यह हालत थी कि वह नाफ़रमानी करती थीं, सो वह अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं और बहुत से बेकार कुवें ''सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-४५)
जुमला गौर तलब है कि ''सो वह अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं" छतों पर कौन गिरी पड़ी हैं? बस्तियां? या उसके मकानात? या फिर मकानों की दीवारे? कौन सी चीज़ छतों पर गिरी कि जिसके बोझ से वह गिरीं ? कि जिससे बस्ती के लोग हालाक हुए? क़ुरआनी अल्लाह क्या अफीमची है? मूतरज्जिम यहाँ पर इस तरह अल्लाह की बात की रफू गरी करता है कि " गोया पहले छतें गिरीं, फिर छत पर दीवारें. अल्लाह अपने बन्दों पर अज़ाब नाजिल करता है, इसके लिए पहले वह लोगों को गुराह करता है?

''और ये लोग अज़ाब का तकाज़ा करते हैं हालाँकि अल्लाह अपना वादा खिलाफ न करेगा और आप के रब के पास एक दिन एक हज़ार साल के बराबर है तुम लोगों के शुमार के मुवाफ़िक़ और बहुत सी बस्तियां हैं कि जिनको हम ने मोहलत दी थीं और वह ना फ़रमानी करती थीं फिर मैं ने उनको पकड़ लिया और मेरी तरफ ही लौटना होगा और कह दीजिए कि ऐ लोगो ! मैं तो तुम्हारे लिए आशकारा डराने वाला हूँ."
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-४७-४८)मुसलमानों! क्या तुम ऐसे मूजी अल्लाह के डर से मुसलमान बने बैठे हो? जो तुमको एक शर्री बन्दे मुहम्मद को तस्लीम करने पर मजबूर करता है? यह तुम्हारा अकीदा बन चुका है तो इसे तोड़ दो और अपनी अक्ल पर यकीन करो. मुहम्मद बार बार तुम्हें कुदरती आफतों से डरा रहे जो दस पांच साल के वक्फे में बाद, अकाल, बीमारी या जंगो की सूरत में आती ही है, मगर कोई नागहानी आ ही नहीं रही? तो मकर का एक रास्ता उनको सूझता है कि तुम तो चौबीस घंटों का दिन जोड़ते हो, जब कि अल्लाह का एक दिन एक हज़ार साल का होता है तुम अगर ५० साल भी जिए तो अल्लाह महेज़ ८ घंटे, उसकी नींद भी पूरी नहीं हुई और लोग जल्दी मचा रहे हैं कि वादा कब पूरा होगा? अल्लाह का खूब सूरत वादा क़यामत का, जो बन्दों को भुगतना है. मुहम्मद का मकरूह हथकंडा और मुसलामानों की ज़ंग आलूद ज़ेहन, सब यकजा हैं.

"जो शख्स इस क़दर तकलीफ पहुँचावे जिस क़दर उसको दी गई थी, फिर उस शख्स पर ज्यादती की जाय तो अल्लाह उस शख्स की ज़रूर मदद करेगा. बेशक अल्लाह कसीरुल अफो ,कसीरुल मग्फ़िरत है.''सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-६०)
इन्तेकाम का कायल मुहम्मदी अल्लाह खुद को मुन्ताकिम के साथ बतलाता है. मुहम्मद ने अपनी जिंदगी में अपने पुराने दुश्मनों से गिन गिन कर बदला लिया है, इस्लामी तवारीख देखें.

''ऐ लोगो एक अजीब बात बयान की जाती है, इसे कान लगा कर सुनो. इसमें कोई शुबहा नहीं जिन की तुम अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हो, वह एक मक्खी तो पैदा नहीं कर सकते गो सब के सब जमा हो जाएँ और पैदा करना तो बड़ी बात है, इन से मक्खी कुछ छीन ले जाय तो इस से ये छुड़ा नहीं सकते .''सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-८२-८३)बे शक मिटटी के बुत भला कम भी क्या कर सकते हैं? मगर मुहम्मदी अल्लाह क्या पेड़ों में हमारे लिए बने बनाए फर्नीचर पैदा का सकता है? दोनों ही मिथ्य हैं।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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Friday 6 August 2010

कुरान- सूरह हज २२

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस)
मुसम्मी '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
सफाई


क्या आपने कभी गौर किया है कि सारी दुन्या में मुसलमान पसमान्दा क्यूं हैं? सारी दुन्या को छोड़ें अपने मुल्क भारत में ही देखें कि मुसलमान एक दो नहीं हर मैदान में सब से पीछे हैं. मैं इस वक़्त इस बात का एहसास शिद्दत के साथ कर रहा हूँ . क्यों कि मैं Ved is at your door '' के मुतहर्रिक स्वर्गीय स्वामी चिन्मयानानद के आश्रम के एक कमरे में मुकीम हूँ,जो कि हिमालयन बेल्ट हिमांचल प्रदेश में तपोवन के नाम से मशहूर है. साफ सफ्फफ़, और शादाब, गन्दगी का नाम निशान नहीं, वाकई यह जगह धरती पर एक स्वर्ग जैसी है. ईमान दारी ऐसी कि कमरों में ताले की ज़रुरत नहीं. सिर्फ सौ रुपे में रिहाइश और खुराक बमय चाय या कोफी. ज़रुरत पड़े तो इलाज भी मुफ्त. मैं यहाँ अपने मोमिन के नाम से अजादाना रह रहा हूँ, उनके दीक्ष/ प्रोग्रामो में हिस्सा लेकर अपनी जानकारी में अज़ाफा भी कर रहा हूँ. इनकी शिक्ष\ में कहीं कोई नफरत का पैगाम नहीं है. जदीद तरीन इंसानी क़द्रों के साथ साथ धर्म का ताल मेल भी, आप उनसे खुली बहेस भी कर सकते हैं. मैं ने यहाँ हिन्दू धर्म ग्रंथों का ज़खीरा पाया और जी भर के मुतालिया किया.
इसी तरह मैंने कई मंदिर, गुरु द्वारा, गिरजा देखा बहाइयों का लोटस टेम्पिल देखा, ओशो आश्रम में रहा , इन जगहों में दाखिले पर जज़्बाए एहतराम पैदा होता है , इसके बरक्स मुसलामानों के दरे अक़दस पर दिल बुरा होता है और नफरत के साथ वापसी होती है. चाहे वह ख्वाजा अजमेरी की दरगाह हो या निज़ामुद्दीन का दर ए अक़दस हो, जामा मस्जिद हो या मुंबई का हाजी अली. जाने में कराहियत होती है. आने जाने के रास्तों पर गन्दगी के ढेर के साथ साथ भिखारियों, अपाहिजों और कोढियों की मुसलसल कतारें राह पार करना दूभर कर देती है. मुजाविर (पण्डे) अकीदत मंदों की जेबें ख़ाली करने पर आमादः रहते हैं. मेरी अकीदत मन्द अहलिया निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पहुँचने से पहले ही भैंसे की गोश्त की सडांध, और गंदगी के बाईस उबकाई करने लगीं. बेहूदे फूल फरोश फूलों की डलिया मुँह पर लगा देते है. वह बगैर ज़्यारत किए वापस हुईं . इसी तरह अजमेर की दरगाह में लगे मटकों का पानी पीना गवारा न किया, सारी आस्था वहाँ बसे भिखारियों और हराम खोर मुजविरों के नज़र हो गई.
औरों के और मुसलामानों के ये कौमी ज्यारत गाहें, कौमों के मेयार का आइना दार हैं.. मुसलमान आज भी बेहिस हैं जिसकी वजेह है दीन इस्लाम. दूसरी कौमों ने परिवर्तन के तक़ाज़ों को तस्लीम कर लिया है और वक़्त के साथ साथ क़दम मिला कर चलती हैं. मुसलमान क़ुरआनी झूट को गले में बांधे हुए है. क़ुरआनी और हदीसी असरात ही इनके तमद्दुनी मर्काज़ों पर ग़ालिब है. मुसलमान दिन में पाँच बार मुँह हाथ और पैरों को धोता है जिसे वजू कहते हैं और बार बार तनासुल (लिंग) को धोकर पाक करता है, मगर नहाता है आठवें दिन जुमा जुमा. कपडे साफी हो जाते हैं मगर उसमें पाकी बनी रहती है. नतीजतन उसके कपडे और जिस्म से बदबू आती रहती है. जहाँ जायगा अपनी दीनी बदबू के साथ. मुसलामानों को यह वर्सा मुहम्मद से मिला है. वह भी गन्दगी पसंद थे कई हदीसें इसकी गवाह हैं, अक्सर बकरियों के बाड़े में नमाज़ पढ़ लिया करते.
दूसरी बात ज़कात और खैरात की रुकनी पाबंदी ने कौम को भिखारी ज्यादा बनाया है जिसकी वजेह से मेहनत की कमाई हुई रोटी को कोई दर्जा ही नहीं मिला. सब क़ुरआनी बरकत है, जहां सदाक़त नहीं होती वहां सफाई भी नहीं होती और न कोई मुसबत अलामत पैदा हो पाती है.
आश्रम में कव्वे, कुत्ते कहीं नज़र नहीं आते, इनके लिए कहीं कोई गंदगी छोड़ी ही नहीं जाती. ख़ूबसूरत चौहद्दी में शादाब दरख़्त, उनपर चहचहाते हुए परिंदों के झुण्ड. जो कानों में रस घोलते हैं. ऐसी कोई मिसाल भारत उप महाद्वीप में मुसलामानों की नहीं है. यहाँ जो भी तालीम दी जाती है उसमें क़ुरआनी नफरत इंसानों के हक में नहीं.


सूरह हज २२-१७ वाँ पारा
''ऐ लोगो अपने रब से डरो यकीनन क़यामत का ज़लज़ला बहुत भारी चीज़ होगी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१)एक बार फिर आप को दावते-फ़िक्र दे रहा हूँ कि गौर करिए कि आपका अल्लाह कैसा होना चाहिए? बहुत ज़ालिम, बड़ा गुस्सैल, शेर की तरह कि ज़रा सी हरकत पर अप पर चढ़ बैठे? या आपके चचा और मामा की तरह आप को चाहने वाला, आपकी गलतियों को दरगुज़र करने वाला, कम से कम सज़ा देने वाले को तो आप पसंद नहीं ही करेगे. यह आप पर मुनहसर है कि आप जैसा अल्लाह चाहें अख्तियार करें. जी हाँ! यही तो इंसान का ज़ाती मुआमला हो जाता है कि वह अपने को किस पसंद दीदा दोस्त के हवाले करता है. दोस्त कोई ज़ात पाक भी हो सकता है, दोस्त कोई खयाले- नादिर भी हो सकता है. दोस्त आपकी महबूबा भी हो सकती है और आप का हुनर भी. दोस्त आप की पूजा भी हो सकती है और आपकी इबादते-लाहूत भी. दोस्त कैसा भी हो सकता है मगर क़ुरआनी अल्लाह को दोस्त बनाना किसी साजिश का शिकार हो जाना है.
ज़लज़ले और आताश फिशां निज़ाम कुदरत के तहत मुक़र्रर है जो किसी काफ़िर या मुस्लिम आबादी को देख कर नहीं आते न उनका उस टुकाची अल्लाह से कोई सरोकार है जो मुहम्मद ने गढ़े हैं. खुलकर ऐसे अल्लाह से बगावत कीजिए जो कौम को जुमूद में किए हुए है.

''जिस रोज़ तुम इसको देखोगे, तमाम दूध पिलाने वालियाँ अपने बच्चों को दूध पिलाना भूल जाएँगी और तमाम हमल वालियाँ अपना हमल डाल देंगी और तुझको लोग नशे के आलम में दिखाई देंगे.हालांकि वह नशे में न होंगे मगर अल्लाह का अज़ाब है सख्त.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२-३)कबीलाई बन्दे मुहम्मद तमाज़त और मेयार को ताक पर रख कर गुफ्तुगू कर रहे हैं. क़यामत का बद तरीन नज़ारा वह किस घटिया हरबे को इस्तेमाल कर, कर रहे है कि जिसमे औरत ज़ात रुसवा हो रही है. और मर्द शराब के नशे में बद मस्त अपनी औरतों की rusvaaiyan देख रहे होगे.

''हमने तुमको मिटटी से बनाया फिर. नुत्फे से, फिर खून के लोथड़े से फिर खून की बोटी से कि पूरी होती है और अधूरी भी , ताकि हम तुम्हारे सामने ज़ाहिर कर दें . हम गर्भ में जिसको चाहते हैं एक मुद्दत ए मुअय्यना तक ठहराए रखते हैं, फिर तुम को बच्चा बना कर हम बाहर लाते हैं. फिर ताकि तुम अपनी भरी जवानी तक पहुँच जाओ और बी अजे तुम में वह भी हैं जो निकम्मी उम्र तक पहुंचे जाते हैं. - - - और क़यामत आने वाली है , इसमें ज़रा शुबहा नहीं और अल्लाह कब्र वालों को दोबारह पैदा करेगा.''सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-५-७)एक बार फिर मुहम्मदी अल्लाह अपने हुनर और हिकमत को दोहराता है कि उसने जो कुछ इंसानी वजूद की शुरूआत अपनी आँखों से मुश्तअमल होते हुए देखा है. यानी मुहम्मद अपना ज़ाती मुशाहिदा बयान करते हैं जो मेडिकल साइंस में जेहालत कही जायगी. इन्हीं पुर जेहल बातों को ओलिमा कुराने-हकीम की बातें कहते हैं. पुनर जन्म की फिलासफी एक कशिश तो रखती है मगर ये सदियों कब्र में पड़े रहना और उसके बाद उठाए जाना बड़ा बोरियत वाला अफसाना है. क्या मजाक है अल्लाह अपने कारनामों का यकीन ज़ोरदार तरीके से दिलाता है. 
'' जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जरी होंगी। हमेशा हमेशा इनमें रहें. ये बड़ी कामयाबी है, अल्लाह तअला जो इरादः करता है, कर गुज़रता है ''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१४)मुसलामानों! अल्लाह तआला कोई इंसानी ज़ेहन का नहीं है, वह अगर कुछ है तो इन बातों से बाला तर होगा. वह बज़ाहिर लगता है बहुत बारीक, मगर है बहुत साफ.. हर जगह नज़र आता है मगर बिना किसी रंग रूप का . उसकी कोई जुबान नहीं है न उसका कोई कलाम. जुबान होती तो बोलता ही रहता , सिर्फ चौदह सौ साल पहले मुहम्मद से बात करने के बाद उसके मुँह को लकवा नहीं मर गया होता कि उनके बाद उसकी बोलती बंद है. बार बार मुहम्मद तुम से नहरों वाली जन्नत की बात करते हैं जो कि तुमको अगर मिल जाय तो घर घर न रह जाय बल्कि खेत और ताल बन जाय.


'' जो शख्स इस बात का ख़याल रखता है कि अल्लाह तअला उसकी न्या और आखरत में मदद न करेगा तो उसको चाहिए कि एक रस्सी आसमान तक तान ले और मौकूफ करा दे गौर करना चाहिए कि तदबीर उसकी न गवारी की चीज़ को मौकूफ कर सकती है और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,''सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१५-१६)दिमाद मुहम्मद का, कलाम अल्लाह का, समझ बंदएमुस्लिम का - - - बड़ा मुश्किल मुक़ाम है कि ऐसी आयतें कुरआन की क्या कहना चाहती हैं? आम मुस्लमान में जब कोई इस किस्म की बाते करता है तो सुनने वाले उसे कठमुल्ला कह कर मुस्कुराते है. मगर अगर उनको बतलाया जाय कि क़ुरआनी अल्लाह ही कठमुल्ला है, ये उसकी बातें हैं, तो कुछ देर के लिए कशमकश में पड़ जाता है? मगर मुसलमान ही बना रहना पसंद करता है , कुछ बगावत के साथ. भारतीय माहौल में वह जाय तो कहाँ जाय? मोमिन का रास्ता उसे टेढ़ा नज़र आता है, जो कि है बहुत सीधा.सितम ये कि बे शऊर अल्लाह कहता है'' और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,''

''और अल्लाह तअला उन लोगों को कि ईमान लाए और नेक काम किए ऐसे बागों में दाखिलकरेगा जिनके नीचे नहरें जरी होंगी. इनको वहाँ पर सोने के कंगन और मोती पहनाई जाएँगे और पोषक वहाँ रेशम की होगी.''सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-23)मुहम्मद को इतनी भी अक्ल नहीं है कि जहाँ सोने के घर द्वार हैं वहाँ सोने के कंगन पहना रहे हैं? वैसे भी सोने का जब तक ख़रीदार न हो उसकी कोई क़द्र व् कीमत नहीं. सोने और रेशम को मर्दों पर हराम करके दुन्या में तो कहीं का न छोड़ा, जहाँ इनकी जीनत थी. महरूम और मकरूज़ कौम.

''बेशक जो लोग काफ़िर हुए अल्लाह के रस्ते से और मस्जिदे हराम (काबा ) से रोकते हैं जिसको हमने तमाम आदमियों के लिए मुक़र्रर किया है, कि इस में सब बराबर हैं। इसमें रहने वाले भी और बहार से आने वाले भी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२५)कुरआन की यह आयत बहुत ही तवाज्जेह तलब है - - - आज काबे में कोई गैर मुस्लिम दाख़िल नहीं हो सकता है। काबा ही क्या शहर मक्का में भी मुसलामानों के अलावा किसी और के दाखिले पर पाबन्दी है। आज की हकीकत ये है जब कि ये आयतें उस वक्त कि हैं जब मुसलामानों पर काबे में दाखिले पर पाबन्दी थी. इसी कुरआन में आगे आप देखेंगे कि अल्लाह कैसे अपनी बातों से फिरता है. इनके ही जवाब में आज़ाद भारत में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ मुसलामानों के दाखिले पर पाबन्दी है.

जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान*****************

Tuesday 3 August 2010

quraan- सूरह अंबिया -२१

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस)
मुसम्मी '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


सूरह अंबिया -२१ परा १७The prophets 2
Part-III

पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद, मैंने जबसे होश सभाला है, देखा किए कि राजनीति के मंच पर हमेशा एक मदारी पांव पसारे बैठा रहा. कुछ अक्ल से पैदल और चमत्कार पसंद नेता उनको बढ़ावा देते हैं. मीडिया को भी थाली में खुराक के साथ साथ कुछ चटनी आचार चाहिए होता है, कुछ दिन के लिए वह मदारी समाचारों में छा जाते हैं, फिर पिचके हुए गुब्बारे की तरह फुर्र हो जाते हैं. धीरेन्द्र ब्रहमचारी, आशाराम बापू , स्वामी नित्यानन्द अभी अभी वर्तमान के मदारी निवर्तमान हो चुके हैं, मगर कुछ ज़्यादः ही समय ले रहे है निकम्मे, हास्य स्पद और बड बोले, रंग से स्वामी, रूप से बाबा, बने रामदेव. मामूली सी पेट की धौकनी की प्रेक्टिस कर के वह रातो रात योग गुरू बन गए. रामदेव देखते ही देखते सर्व रोग साधक भी बन गए और आयुर्वेद संस्था के मालिक भी. परदे के पीछे बैठे किन हाथों में इस कठ पुतली की डोर है, अभी समझ में नहीं आता. कौन गुरू घंटाल है जो इन्हें हाई लाईट कर रहा है ? ये तो आने वाला समय ही बतलाएगा. उनकी योग की दूकान और फार्मेसी की फैक्ट्री चल निकली है. जहां तक मीडिया पर समाज की ज़िम्मेदारी है, उसके तईं वह कभी कभी दिशा हीन हो जाती है. मीडिया जिसे मानव समाज का आखिरी हथियार माना गया है, वहीँ वह ऐसे लोगों को सम्मानित करके समाज के लिए ज़हर भी बो देती है. ये लोक तंत्र की विडम्बना है कि सब को पूरी आज़ादी है ,कोई कुछ भी करे.
भजन मण्डली का ढोलकिया, निर्मूल्य एवं अज्ञात अतीत का मालिक, आज हर विषय पर अपनी राय दे देता है, चाहे क्रिकेट हो, राजनीती हो, भरष्टाचार हो अथवा सेक्स स्कैनडिल. बीमारियों को तो चुटकी में भगा देने का दावा करने वाले बाबा के पास कैसर, एड्स जैसे रोग का शर्तिया योग है. ''हर मर्ज़ की दवा है सल्ले अला मुहम्मद'' अर्थात कपाल भात और आलोम बिलोम. कोई इस ढोंगी से नहीं पूछता कि बाबा आप के मुँह पर लकवा मार गया है, आप कुरूप, मुँह टिढ़े और काने हो गए हो? अपना इलाज क्यूँ नहीं करते?
अब तो रामदेव गड बोले मुंगेरी लाल के सपने भी देखने लगे हैं आगामी चुनाव में वह हर जगह से चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं. मर्यादा पुरुष बन कर सब को चकित कर देंगे. वह राष्ट्र पति क्या राष्ट्र पिता भी बन्ने का सपना देखने लगे. काला धन, भ्रष्टाचार, नक्सली समस्या, गरीबी रेखा समापन और पडोसी देश चीन की तरह अपराधियों को गोली मार देने की बात करते हैं. रामदेव को नहीं मालूम कि अगर चीनी लगाम भारत आयातित करता है तो सबसे पहले रामदेव ऐसे लोग जपे जाएँगे जो अपने पाखण्ड से लोगों के लाखों वर्किंग आवर्स बर्बाद करते हैं और कोई रचनात्मक काम किए बगैर मुफ्त की रोटियाँ तोड़ते हैं.
आये चलें अतीत के बाबा मुहम्मद देव की तरफ - - -
'और बअज़े शैतान ऐसे थे कि उनके(सुलेमान) लिए गोता लगाते थे और वह और काम भी इसके अलावा किया करते थे और उनको संभालने वाले थे और अय्यूब, जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि हमें तकलीफ पहुँच रही है और आप सब मेहरबानों से ज़्यादः मेहरबान हैं, हमने दुआ कुबूल की और उनकी जो तकलीफ थी, उसको दूर किया. और हमने उनको उनका कुनबह अता फ़रमाया और उनके साथ उनके बराबर और भी अपनी रहमते-खास्सा के सबब से और इबादत करने वालों के लिए यादगार रहने के सबब. और इस्माईल और इदरीस और ज़ुल्कुफ्ल सब साबित क़दम रहने वाले लोगों में से थे.और उनको हमने अपनी रहमत में दाखिल कर लिया, बे शक ये कमाल सलाहियत वालों में थे. और मछली वाले जब कि वह अपनी कौम से ख़फा होकर चल दिए और उन्हों ने यह समझा कि हम उन पर कोई वारिद गीर न करंगे, बस उन्हों ने अँधेरे में पुकारा कि आप के सिवा कोई माबूद नहीं है, आप पाक हैं, मैं बेशक कसूर vaar हूँ.. सो हमने उनकी दुआ कुबूल की और उनको इस घुटन से नजात दी.. और ज़कारिया, जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि ऐ मेरे रब! मुझको लावारिस मत रखियो, और सब वारिसों से बेहतर आप हैं, सो हमने उनकी दुआ कुबूल की और उनको याह्या अता फ़रमाया.और उनकी खातिर उनकी से बीवी को क़ाबिल कर दिया. ये सब नेक कामों में दौड़ते थे और उम्मीद ओ बीम के साथ हमारी इबादत करते थे.और हमारे सामने दब कर रहते थे.''सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (८१-९०)मुहम्मद कहतेहैं कि यहूदी बादशाह सुलेमान शैतान पालता था, जो उसके लिए नदियों में गोते लगा कर मोतियाँ और खुराक के सामान मुहय्या करता था, और भी शैतानी काम करता रहा होगा. आगे आएगा कि वह पलक झपकते ही महारानी शीबा का तख़्त बमय शीबा के उठा लाया था. वह सुलेमान अलैहिस्सलाम के तख़्त कंधे पर लाद कर उड़ता था, बच्चों की तरह आम मुसलमान इन बातों का यकीन करते हैं, कुरआन की बात जो हुई, तो यकीन करना ही पड़ेगा, वर्ना गुनाहगार हो जाएँगे और गुनाहगारों के लिए अल्लाह की दोज़ख धरी हुई है. यह मजबूरियाँ है मुसलामानों की. उन यहूदी नबियों को जिन जिन का नाम मुहम्मद ने सुन रखा था, कुरान में उनकी अंट-शंट गाथा बना कर बार बार गाये हैं .
योब (अय्यूब) की तौरेती कहानी ये है कि वह अपने समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति था, औलादों से और धन दौलत में बहुत ही सम्पन्न था । उस पर बुरा वक्त ऐसा आया कि सब समाप्त हो गया, इसके बावजूद उसने ईश भक्ति नहीं त्यागी. वह चर्म रोग से इस तरह पीड़ित हुवा कि शरीर पर कपडे भी गड़ने लगे और वह एक कोठरी में बंद होकर नंगा भभूत धारी बन कर रहने लगा, इस हालत में भी उसको ईश्वर से कोई शिकायत न रही, और उसकी भक्ति बनी रही. उसके पुराने दोस्त आते, उसको देखते तो दुखी होकर अपने कपडे फाड़ लेते.
इस्माईल लौड़ी जादे थे ,अब्राहम इनको इनके माँ के साथ सेहरा बियाबान में छोड़ गए थे इनकी माँ हैगर ने इनको पला पोसा. ये मात्र शिकारी थे और बड़ी परेशानी में जीवन बिताया . इन्हीं के वंशज मियां मुहम्मद हैं, यहूदियों की इस्माईल्यों से पुराना सौतेला बैर है.
इदरीस और ज़ुल्कुफ्ल सब साबित क़दम रहने वाले लोगों में से थे. बस अल्लाह को इतना ही मालूम है दुन्या में लाखो साबित क़दम लोग हुए अल्लाह को पता नहीं. और मछली वाले जब कि वह अपनी कौम से ख़फा होकर चल दिए जिनका नाम मुहम्मद भूल गए और मुखातिब मछवारे कि संज्ञा से किया है (यूनुस=योंस नाम था) मशहूर हुवा कि वह तीन दिन मगर मछ के पेट में रहे, निकलने के बाद इस बात का एलान किया तो लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया, कुहा के बस्ती छोड़ कर चले गए थे. योंस का हथकंडा मुहम्मद जैसा ही था मगर उनके साथ लाखैरे सहाबा-ए-कराम न थे, जेहाद का उत्पात न सूझा था कि माले-गनीमत की बरकत होती. फ्लाप हो गए .
ज़कारिया (ज़खारिया)और याहिया (योहन) का बयान मैं पिछली किस्तों में कर चुका हूँ.मुहम्मद फरमाते हैं कि उपरोक्त हस्तियाँ मेरी इबादत करते - - -
''और हमारे सामने दब कर रहते थे.'' दिल की बात मुंह से निकल गई और जेहालत को तख़्त और ताज भी मिल गया. 
''और उनका भी जिन्हों ने अपने नामूस को बचाया, फिर हमने उन में अपनी रूह फूँक दी, फिर हमने उनको और उनके फरजंद को जहाँ वालों के लिए निशानी बना दी - - - और हमने जिन बस्तियों को फ़ना कर दीं हैं उनके लिए ये मुमकिन नहीं है फिर लौट कर आवें. यहाँ तक कि जब याजूज माजूज खोल दी जंगे तो(?) और वह हर बुलंदी से निकलते होंगे. और सच्चा वादा आ पहुँचा होगा तो बस एकदम से ये होगा कि मुनकिर की निगाहें फटी की फटी रह जाएँगी कि हाय कमबख्ती हमारी कि हम ही ग़लती पर थे, बल्कि वक़ेआ ये है कि हम ही कुसूरवार थे. बिला शुबहा तुम और जिनको तुम खुदा को छोड़ कर पूज रहे हो, सब जहन्नम में झोंके जाओगे. (इसके बाद फिर दोज़खियो को तरह तरह के अज़ाब और जन्नातियों को मजहका खेज़ मज़े का हल है जो बारबार बयान होता है)सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (९१-१०३)मुहम्मद का इशारा मरियम कि तरफ है. ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह खुदा के बेटे है तब मुहम्मद कहते हैं कि यह अल्लाह की शान के खिलाफ है , न वह किसी का बाप है न उसकी कोई औलाद है. यहं पर अल्लाह कहता है कि फिर हमने उन में अपनी रूह फूँक दी तब तो ईसा ज़रूर अल्लाह के बेटे हुए. जिस्मानी बेटे से रूहानी बेटा ज्यादह मुअत्बर हुवा. यही बात जब ईसाई कहते हैं तो मुहम्मद का तसव्वुर फैज़ अहमद फैज़ के शेर का हो जाता है - - -

आ मिटा दें ये ताक़द्दुस ये जुमूद,
फिर हो किसी ईसा का वुरूद,
तू भी मजलूम है मरियम की तरह,
मैं भी तनहा हूँ खुदा के मानिद.

यहाँ अल्लाह मरियम के अन्दर अपनी रूह फूंकता है ,इसके पहले फ़रिश्ते जिब्रील से उसकी रूह फुन्क्वाया थे, ईसा को रूहिल क़ुद्स कहा जाता है, जब कि यहाँ पर रूहुल्लाह हो गए.
कहते हैं कि 'दारोग आमोज रा याद दाश्त नदारद. झूटों की याद दाश्त कमज़ोर होती है.
 
''और हम उस रोज़ आसमान को इस तरह लपेट देंगे जिस तरह लिखे हुए मज़मून का कागज़ को लपेट दिया जाता है, हमने जिस तरह अव्वल बार पैदा करने के वक़्त इब्तेदा की थी, इसी तरह इसको दोबारा करेंगे ये हमारे जिम्मे वादा है और हम ज़रूर इस को करेंगे. और हम ज़ुबूर में ज़िक्र के बाद लिख चुके हैं कि इस ज़मीन के मालिक मेरे नेक बन्दे होंगे. (इसके बाद मुहम्मद अंट-शंट बका है जिसमें मुतराज्जिम ने ब्रेकेट लगा लगा कर थक गए होंगे कि कई बात बना दें, कुछ नमूने पेश हैं - - -
''और हम ने (1) आप को और किसी बात के लिए नहीं भेजा, मगर दुन्या जहान के लोगों (2) पर मेहरबानी करने के लिए . आप बतोर(3) फरमा दीजिए कि मेरे पास तो सिर्फ वह्यी आती है कि तुम्हारा माबूद (4 )सिर्फ एक ही है सो अब भी तुम (5) फिर (6) ये लोग अगर सर्ताबी करेंगे तो (7) आप फरमा दीजिए कि मैं तुम को निहायत साफ़ इत्तेला कर चुका हूँ और मैं ये जानता नहीं कि जिस सज़ा का तुम से वादा हुवा है, आया क़रीब है या दूर दराज़ है (8). - - -सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (१०४--११२)१-(ऐसे मज़ामीन नाफ़े देकर)
२-(यानि मुकल्लाफीन)
३-( खुलासा के मुक़र्रर)
४-(हकीकी )
५-(मानते हो या नहीं यानी अब तो मन लो)
६-(भी)
७- (बतौर तमाम हुज्जत के)
८- (अलबत्ता वक़ूअ ज़रूर होगा).
दोबारा समझा रहा हूँ की ओलिमा ने अनुवाद में मुहम्मद की कितनी मदद की है. पहले आप आयतों को पढ़ें, मतलब कुछ न निकले तो अनुवादित सब्दावली का सहारा लें , इस तरह कोई न कोई बात बन जायगी.भले वह हास्य स्पद हो.मुहम्मद की चिंतन शक्ति एक लाल बुझक्कड़ से भी कम है, ब्रह्माण्ड को नज़र उठा कर देखते हैं तो वह उनको कागज़ का एक पन्ना नज़र आता है और वह आसानी के साथ उसे लपेट देते हैं। मुसलमान उनकी इस लपेटन में दुबका बैठा हुवा है. मुहम्मदी अल्लाह कयामत बरपा करने का अपना वादा कुरआन में इस तरह दोहराता है जैसे कोई खूब सूरत वादा किसी प्रेमी ने अपने प्रियशी से किया हो. मुसलमान उसके वादे को पूरा होने के लिए डेढ़ हज़ार सालों से दिल थामे बैठा है.
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (१०४--११२)

जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान
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