Saturday 30 September 2017

Hindu Dharm Darshan 98



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>जिसने मन को जीत लिया, 
उसके लिए मन सर्व श्रेष्ट मित्र है. 
किन्तु जो ऐसा नहीं कर पाया, 
उसके लिए मन सब से बड़ा शत्रु है.
**जिसने मन को जीत लिया है, 
उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, 
क्योकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है. 
ऐसे पुरुष के लिए सुख दुःख, सर्दी गर्मी, मान अपमान एक सामान हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -6  - श्लोक -6 -7 
>बहुत अच्छा गीता सन्देश है. 
यह विचार इस्लाम के बाग़ी समूह तसव्वुफ़ (सूफ़ी इज़्म) के आस पास है. 
इस श्लोक में इन्द्रीय तृप्ति की बात नहीं है, इसलिए यह तसव्वुफ़ के और अरीब है. हर सूफी शादी शुदा रह कर और बीवियों के बख्शे हुए कष्ट को झेल कर ही सूफी बनता है. 
एक सूफ़ी की बीवी अपने शौहर के इंतज़ार में आग बगूला हो रही थी कि  दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई, 
तो देखा सूफी नहीं ,उसका दोस्त खड़ा है. 
इतने में सूफी भी लकड़ियों का गठ्ठर जिसे शेर पर लादे हुए और एक सांप बांधे हुए था, लेकर आया. 
बीवी जो लकड़ियों का इंतज़ार खाली हांडी हाथों में लिए कर रही थी, 
गुस्से में हांडी को सूफी के सर पर पटख दिया. 
हांडी टूट गई मगर उसका अंवठ सूफी के गर्दन में था. 
दोस्त ने पूंछा यह क्या ? 
सूफी का जवाब था 
"शादी का तौक़" 
शेर और सांप मेरी लकड़ी ढोते हैं और मैं शादी का तौक़. 

उर्दू शायरी इस गीता सन्देश को कुछ इस तरह कहती है - - -
नहंग व् अजदहा व् शेर ए नर मारा तो क्या मारा,
बड़े मूज़ी को मारा, नफ्स ए अम्मारा को गर मारा.
नहंग=घड़ियाल*नफस ए अम्मारा =मन 

नक्क़ारे के शोर में मुंकिर की आवाज़ 
मन को इतना मार मत, मर जाएँ अरमान,
अरमानों के जाल में, मत दे अपनी जान.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>क़ुरान की तो अलाप ही जुदा है.
>"तुम लोगों के वास्ते रोजे की शब अपनी बीवियों से मशगूल रहना हलाल कर दिया गया, 
क्यूँ कि वह तुम्हारे ओढ़ने बिछोने हैं और तुम उनके ओढ़ने बिछौने हो। 
अल्लाह को इस बात की ख़बर थी कि तुम खयानत के गुनाह में अपने आप को मुब्तिला कर रहे थे। खैर अल्लाह ने तुम पर इनायत फ़रमाई और तुम से गुनाह धोया - - -
जिस ज़माने में तुम लोग एत्काफ़ वाले रहो मस्जिदों में ये खुदा वंदी जाब्ते हैं कि उन के नजदीक भी मत जाओ। इसी तरह अल्लाह ताला अपने एह्काम लोगों के वास्ते बयान फरमाया करते हैं इस उम्मीद पर की लोग परहेज़ रक्खें .
" (सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८७)

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 29 September 2017

Quraan ke jhoot aur taureti sadaqat 12

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***************

क़ुरआन के झूट - - - और तौरेती सदाक़त  - - -

क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार आता है, जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है. पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें. मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं, उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं. दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ, इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है. 

योसेफ़ / यूसुफ़ / जोज़फ़ 
Part 2


यूसुफ़ की ताबीर और तदबीर से बादशाह बहुत मुतास्सिर हुवा और यूसुफ़ का मुक़दमा तलब किया जोकि दो सालों से चल रहा था। पूरा मुआमला नए सिरे से पेश किया गया , कुर्ते का दमन पीछे की तरफ का चाक था इस लिए ज़ुलैख़ा को मुजरिम पाया गया जिसे खुद ज़ुलैखा ने तस्लीम कर लिया। यूसुफ़ बाइज़्ज़त बरी हुवा और उसने फ़िरऔन के दिल में अपना मुक़ाम बना लिया। फ़िरऔन ने खुश होकर यूसुफ़ को वज़ीर-खज़ाना मुक़र्रर किया , इसे सारे मिस्र का दौरा कराया और उसे "साफ़नत्त पीयूऊह " के लक़ब से नवाज़ा।  यूसुफ़ की शादी इमाम पोटी फियरऊ की बेटी आसनत से हुई। 
यूसुफ़ की ताबीर के मुताबिक़ सात साल खरे उतरे , इतना गल्ला पैदा हुवा कि जिसकी नाप तौल रखना मुमकिन न था।  उसके बाद मुल्क और आस-पास ऐसा क़हत पड़ा कि लोग दाने दाने को मुहताज हो गए। फ़िरऔन ने यूसुफ़ को पूरा अख्तियार दे रखा था कि वह ग़ल्ले को जिस तरह चाहे रिआया को बाटे या बाहर वालों को बेचे। यूसुफ़ की हिकमत-अमली से बादशाह का खज़ाना लबरेज़ हो गया था।  मुल्क की सारी ज़मीन बादशाह की मिलकियत हो गई थी। 

यूसुफ़ के वतन कनान को भी कहत का सामना करना पड़ा जहाँ यूसुफ़ का परिवार रहता था। 
याक़ूब ने अपने कुछ बेटों को भी अनाज लेने के लिए मिस्र भेजा। यूसुफ़ से बहैसियत वज़ीर जब इन भाइयों से आमना सामना हुवा तो उसने इन सभों को पहचान लिया मगर यूसुफ़ को कोई भी न पहचान सका। उनके वहमो-गुमान में भी न था कि जिस भाई को उन्हों ने अंधे कुवें में डाल  कर मार दिया था , वह इस वक़्त हुक्मरान-मिस्र होगा। यूसुफ़ ने अपने भाइयों पर जासूसी का इलज़ाम लगा कर गिरफ्तार करा लिया और तफ्तीश के बहाने अपने सारे कुनबे की जानकारी ली।
  इस तरह यूसुफ़ को इसके बाप और भाई बिन्यामीन की खैरियत मिली। इसके बाद यूसुफ़ ने समऊन को हथकड़ी लगा कर बाकियों को इस शर्त पर छोड़ा कि अगली बार वह बेन्यामीन को साथ लेकर आएँ। युसूफ ने अनाज की कीमत भी ग़ल्ले के बोरियों में छुपा कर उन्हें वापस कर दिया। 
बेटे कनान आकर पूरी दास्तान बाप याक़ूब को सुनते हैं समऊन को यर्गः माल बनाने और बिन्यामीन को साथ लाने की शर्त को याक़ूब न मानते हुए कहता है - - -
तुम लोग यूसुफ़ को भी इसी तरह की साज़िश करके मार चुके हो , अब उसके भाई को भी मारना चाहते हो ?
बहुत यक़ीन दिलाने के बाद याक़ूब उनकी बात मान जाता है। 
कुछ दिनों बाद बेन्यामिन को साथ लेकर सभी भाई मिस्र आते हैं। यूसुफ़ अपने चहीते भाई बेन्यामिन को देखता है तो देखता ही रह जाता है , भाग कर गोशा-एतन्हाई में चला जाता है और खूब रोता है। इस बार यूसुफ़ सभी भाइयों की दावत करता है और उन्हें ठीक से परखता है कि आया इसके सभी भाई सुधर गए हैं ? इसके बाद वह सारे भेद खोल देता है कि वह कोई और नहीं , तुमहारा भाई यूसुफ़ है। इसकी खबर बादशाह तक पहुंच जाती है कि यूसुफ़ के भाई आए हुए हैं। वह उनको इजाज़त देता है कि सभी अपने खानदान के साथ मिस्र आ कर बस जाएं। वह सभी कनान जाकर माँ बाप को और घर के सभी साज़ व् सामान लेकर मिस्र में आकर आबाद हो जाते हैं। 
इस वक़्त यूसुफ़ के खानदान में कुल ७० नफ़र थे।   
यूसुफ़ की इमान दारी , वफ़ा दारी और हिकमत-ए -अमली से बादशाह इनता खुश था कि उसने मिस्र की निजामत भी यूसुफ़ को सौंप दी।  नतीजतन यूसुफ़ बादशाह को पक्का वफादार और फ़रमा बरदार बन गया। वह उसे अपने बाप का दर्जा देता था। यूसुफ़ ने जिस दूर अंदेशी से अनाज का ज़ख़ीरा बनाया , बादशाह के लिए एक वरदान था। इसके ज़रिए मुल्क और ग़ैर मुल्क की भारी दौलत बादशाह के ख़ज़ाने में आ गई थी। अवाम के पास फूटी कौड़ी भी नहीं बची कि वह ज़िंदा रह सकें। 
यूसुफ़ ने बड़ी बेरहमी के साथ अवाम की ज़मीनें बादशाह के नाम करा लीन और उनको बादशाह का मज़दूर बना लिया। ज़मीन इस शर्त पर लोगों में बाटी गईं कि पैदावार को पाँचवाँ हिस्सा बादशाह का होगा। 
यूसुफ़ का बनाया हुवा यह क़ानून हज़ारों साल से दुन्या में रायज है  
उसने अपने देखे हुए ख्वाब "कि सूरज चाँद और ग्यारह सितारे उसको सजदा कर रहे हैं। " की ताबीर को अपने बाप और भाइयों के सामने फिर दोहराई। 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 28 September 2017

Hindu Dharm Darshan 96




गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
*हे भरतवंशी ! 
जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है 
और अधर्म की प्रधानता होने लगती है , 
तब मैं अवतार लेता हूँ.
* * भगतों का उद्धार करने, दुखों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -7 -8 
>
कहते हैं कि युद्ध के लिए कौरव और पांडु दोनों एक साथ भगवान के पास आए. भगवान शय्या पर सो रहे थे. 
होशियार कौरव शय्या के पैताने बैठे कि भगवान् उठेंगे तो उनकी नज़रें सामने होंगी और हम पर पड़ेंगी, और वरदान मागने का मौक़ा पहले मिलेगा. 
हुवा भी ऐसा, कौरवों ने सैन्य सहायता भगवान् से मांग ली 
औए उन्हें मिल भी गई. 
जब भगवान् ने सर उठा कर देखा तो पीछे पांडु खड़े थे, 
पूछा तुमको क्या चाहिए ? मेरी सेना तो यह झटक ले गए. 
पांडु बोले आप अपने आप को हमें दे दीजिए.
भगवान तुरंत तैयार हो गए , 
पूरे युद्ध काल में मैं तुम्हें पाठ और पट्टी पढ़ाता रहूँगा. 
भगवान की भग्नत्व तो यह थी कि दोनों भाइयो को चेतावनी देते कि पुर अमन ज़िन्दगी गुजारो वरना अपने प्रताप से मैं तुम लोगों में से एक को लंगड़ा कर दूंगा और दूसरे को लूला.  

और क़ुरआन कहता है - - - 
" ऐसे लोग हैं जो अपने भाइयों के निस्बत बैठे बातें बनाते हैं 
कि वह हमारा कहना मानते तो क़त्ल न किए जाते, 
आप कहिए कि अच्छा अपने ऊपर से मौत को हटाओ, 
अगर तुम सच्चे हो." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (170)

"कुल्ले नफ़्सिन ज़ाइक़तुलमौत''
हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है, 
और तुम को तुम्हारी पूरी पूरी पादाश क़यामत के रोज़ ही मिलेगी, 
सो जो शख्स दोज़ख से बचा लिया गया और जन्नत में दाखिल किया गया, 
सो पूरा पूरा कामयाब वह हुवा. 
और दुनयावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं, 
सिर्फ धोके का सौदा है।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (185) 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 27 September 2017

Hindu Dharm Darshan 96



गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -

>यदि कोई जघन्य से जघन्य कर्म करता है, 
किन्तु यदि वह भक्ति में रत रहता है तो 
उसे साधु मानना चाहिए.
क्योंकि वह अपने संकल्प में अडिग रहता है. 
>>वह तुरंत धर्मात्मा बन जाता है और स्थाई शान्ति को प्राप्त होता है. 
हे कुंती पुत्र ! 
निडर होकर घोषणा करदो कि मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -9  श्लोक -30 +31 

*कितनी खोखली बात कही है गीता ने. क्या यह गीता अपराधियों की शरण स्थली नहीं ? बड़े बड़े डाकू भगवान् की इन बातों का सहारा  लेकर गुनाहों से तौबा करते हैं, उसके बाद धर्मात्मा बन कर पूजे जाते हैं. उन की लूट आसान हो जाति है, बिना खून खराबे के माल काटते हैं.

और क़ुरआन कहता है - - - 
मुगीरा नाम का एक कातिल एक कबीले का विशवास पात्र बन कर सोते में पूरे कबीले का खून करके मुहम्मद के पास आता है और इस्लाम कुबूल कर लेता है, इस शर्त के साथ कि उसका लूटा हवा माल उसका होगा . मुहम्मद फ़ौरन राज़ी हो जाते हैं.
*मुगीरा*= इन मुहम्मद का साथी सहाबी की हदीस है कि इन्होंने (मुगीरा इब्ने शोअबा) एक काफिले का भरोसा हासिल कर लिया था फिर गद्दारी और दगा बाज़ी की मिसाल क़ायम करते हुए उस काफिले के तमाम लोगो को सोते में क़त्ल करके मुहम्मद के पनाह में आए थे और वाकेआ को बयान कर दिया था, फिर अपनी शर्त पर मुस्लमान हो गए थे. (बुखारी-११४४)
गीता और क़ुरआन खोटे सिक्के के दो पहलू हैं, इनका चलन जब तलक देश में प्रचलित रहेगा, भारत के बाशिंदों का दुर्भाग्य कायम रहेगा.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 25 September 2017

Quraan ke jhoot aur taureti sadaqat 11

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन के झूट - - - और तौरेती सदाक़त  - - -

क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार आता है, जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है. पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें. मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं, उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं. दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ, इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है. 

योसेफ़ / यूसुफ़ / जोज़फ़ 
Part 1
योसेफ़ अपने भाइयों में सब से छोटा था। राहील की इकलौती औलाद होने के नाते याक़ूब को वह बहुत अज़ीज था, इसी लिए बाक़ी भाई उससे ख़लिश रखते थे, सिवाय बिन्यामीन के। योसेफ़ अपने सभी सौतेले भाइयों बिन्यामीन को सबसे ज़्यादा चाहता था। 
योसेफ़ जब ख़्वाब देखता तो अपने बाप और भाइयों को ज़रूर बतलाता था और ख्वाब की ताबीर भी। एक दिन उसने ख्वाब देखा कि सूरज चाँद और ग्यारह सितारे उसको सजदा कर रहे हैं। उसने अपने ख्वाब को घर वालों को सुनाया और उसकी ताबीर बतलाई , इस पर बाप याक़ूब ने उसे फटकार लगाई , गोया तुम अपने माँ बाप और ग्यारह भाइयों के हुक्मराँ होगे ?
याक़ूब ने योसेफ़ की ख्वाब को अपने ज़ेहन में गाँठ लगा कर बांध लिया था। 
इसके बाद योसेफ़ के सभी भाई योसेफ़ और भी ज्यादा जलने लगे।   
योसेफ़ अपने भाइयों के साथ रेवड़ चराया करता था। एक दिन इसके दो बड़े भाईयो ने इसे मार डालने का मंसूबा बनाया।  वह योसेफ़ को जंगल में ले गए मगर क़त्ल करने की हिम्मत न कर सके और इसके कपड़ों को उत्तर कर इसको एक अंधे कुएँ में डाल दिया और एक बकरे के खून से इसके लिबास को रंगा दिया। घर आकर खून भरे कपडे याक़ूब से सामने रखते हुए बतलाया कि योसेफ़ को भेड़यों ने खा डाला। 
यह खबर सुन कर याक़ूब को ऐसा सदमा लगा कि वह अपने कपडे फाड़ कर टाट लपेट लिया , रो रो अपनी बीनाई खो दी। 

कुएँ में यूसेफ (यूसुफ़) की आहो-फुग़ां सुन कर उधर से गुजरने वाले इस्माईली सौदागरों के कान खड़े हुए। उन्हों ने यूसेफ़ को कुएँ से बाहर निकाला और माल-ए-तिजारत में उसे शामिल कर लिया। वह उसे बाजार-मिस्र में ले जाकर फराउन के दरबारी जेलर पोटीकर के हाथों ३० चाँदी के सिक्कों के बदले बेच दिया। 
यूसुफ़ एक नौजवान , तंदरुस्त और खूबसूरत लड़का था जो जेलर पोटीकर को बहुत अच्छा लगा  उसने उसे औलाद बनाने बनाने का फैसला किया मगर दूसरी तरफ उसकी जोरू ज़ुलैख़ा थी कि उसकी नज़र-बद यूसुफ़ को लग गई। वह यूसुफ़ को देख कर उस पर रीझ गई। 
एक दिन यूसुफ़ और ज़ुलैख़ा घर में तनहा थे कि ज़ुलैख़ा ने यूसुफ़ की तरफ़ पेश क़दमी की। अपने आक़ा के साथ दग़ा बाज़ी , वह ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता था। वह ज़ुलैखा की गिरफ़्त से निकल कर जब भागना चाहा तो ज़ुलेख़ा ने उसका पिछला दमन पकड़ लिया , दमन फट कर उसके हाथ में रह गया, यूसुफ़ ने अमां पाई थी ही कि उसी वक़्त ज़ुलैख़ा का शौहर पोटीकर घर में दाखिल हुवा , इसे देख कर ज़ुलेख़ा ने पाँसा पलटते हुए कहा कि यह इब्रानी लड़का मेरी इज़्ज़त लूटना चाहता था। इसे जेल में दाल दो। 
पोटीकर यूसुफ़ पर बरहम हुवा और वाक़ई यूसुफ़ को जेल में डाल दिया।  
जेल में यूसुफ़ अपने साथियों के साथ भी देखे हुए ख्वाबों की ताबीर बतलाता रहा जो कि अक्सर सहीह निकलतीं।  यूसुफ़ की शोहरत अतराफ़ में होने लगी जोकि बढ़ते बढ़ते दरबार फराउन तक पहुँच गई। इसी दौरान बादशाह ने एक अजीब व् ग़रीब ख्वाब देखा कि दर्याय नील से सात तंदरुस्त गायें निकलीं और सात मरियल गायें निकलीं , तंदरुस्त गायों ने मरियल गायें क खा डाला। 

अगले दिन बादशाह ने दरबार तलब किया और अपने ख्वाब की ताबीर बतलाने का हुक्म दिया।  सब दरबारी परेशान हो गए कि बादशाह के ख्वाब की ताबीर न बतला पाए। किसी ने क़ैदी यूसुफ़ का नाम बतलाया कि वह ख़्वाबों की ताबीर बतलाता है जोकि सहीह साबित होती हैं। बादशाह ने यूसुफ़ को तलब किया और अपने ख्वाब की तफ्सील बतलाई। यूसुफ़ ने बादशाह को आगाह किया कि अगले सात सालों तक फसल अच्छी होगी , फिर उसके बाद सात साल तक क़हत पड़ेगा। यूसुफ़ ने सुझाव भी दिया कि पहले सात खुश हाल सालों में अनाज को बालियों के अंदर महफूज़ रखा जाय ताकि उसके बाद के क़हत के सालों में लोगों की जान बचाई जा सके। इस के  लिए अनाजों के बड़े बड़े गोदाम बनवाए जाएँ। 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 24 September 2017

Hindu Dharm Darshan 95



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>हे पांडु पुत्र ! 
जिसे संन्यास कहते हैं, 
उसे ही तुम योग अर्थात परब्रह्म से युक्त होना जानो 
क्योंकि इन्द्रीय तृप्ति के लिए इच्छा को त्यागे बिना 
कोई कभी योगी नहीं हो सकता. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -6  - श्लोक -2 

>इच्छा को त्यागने की बात तो किसी हद तक सही है, 
खाने पीने की कीमती गिज़ा, कीमती कपड़े, आभूषण, सवारी और ताम झाम के बारे में गीता की राय सहीह है 
मगर हर जगह जो इन्द्रीयतृप्ति की बात होती है तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है. 
इस सुख से न किसी का शोषण होता है न शारीरिक अथवा मानसिक हानि. 
इस मुफ्त में बखशे हुए क़ुदरत के तोहफे से गीता को क्यों बैर है ? 
समझ से बहर है. 
इन्द्रीयतृप्ति की इच्छा समान्यता भरी हुई नाक की तरह एक खुजली है, 
इसे छिनक कर फिर विषय पर आ बैठो. 
इन्द्रीयतृप्तिके बाद ही दिमाग़ और दृष्टि कोण को संतुलन मिलता है. 
इन्द्रीयतृप्ति से खुद को तो आनंद मिलता है, किसी दूसरे को भी आनंद मिलता है. इन्द्रीयतृप्ति सच पूछो तो पुण्य कार्य है, 
परोपकार है. 
एक योगी एक को और हज़ार योगी हजारों बालाओं को इस प्रकृतिक सुख से वंचित कर देते है. 
यह सामाजिक जुर्म है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>क़ुरआन ब्रह्मचर्य को सख्ती के साथ नापसंद करता है. वह इसके लिए चार चार शादियों की छूट देता है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Quraan ke jhoot aur taureti sadaqat 10

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन के झूट - - - और तौरेती सदाक़त  - - -

क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार आता है, जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है. पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें. मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं, उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं. दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ, इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है. 

याक़ूब (जैकब)

 याक़ूब अपने बाप इस्हाक़ के मशविरे को मान कर अपने मामा लाबान के वतन हारान चला जाता है। रस्ते में रात हो जाने पर एक पत्थर को तकिया बना कर सो जाता है। इसके ख्वाब में खुदा आता है और इसे इसके दादा इब्राहाम की तरह ही दुआ देता है कि उसकी पीढयों को दूध और शहद का देश मिले। जब इसकी आँख खुलती है तो वह ख़ुशी में झूम उठता है और उस जगह को जन्नत द्वार नाम देता है। सर के नीचे रखे पत्थर को ज़मीन में गाड़ कर इस जगह को यादगार बनाता है।  
दूसरे दिन सफर तय करने के बाद वह अपनी मंज़िल पर पहुँच जाता है। वह वहां सबसे पहले खेतों में बकरियाँ चरा रही एक दोशीजा को देखता है। याक़ूब अपने मामा लाबान का पता जब इससे पूछता है तो वह अपना नाम राहील बता कर कहती है कि मैं उनकी छोटी बेटी हूँ। यह सुनकर याक़ूब बहुत खुश होता है और आगे बढ़ कर उसका बोसा लेलेता है। दोनों घर जाते हैं , लाबान अपने भान्जे याक़ूब को देख कर बहुत खुश होता है। याक़ूब अपने मामा से अपना मुददुआ बयान करता है कि वह अपने बाप इस्हाक़ के मशविरे पर उसके पास रोज़ी कमाने के लिए यहाँ आया है।  
याक़ूब एक माह तक अपने मामा के साथ खेती बाड़ी में लगा रह कि एक दिन लाबान ने उससे पूछाकि वह कब तक मुफ्त मज़दूती करता रहेगा ? वह अपनी मज़दूरी तय कर ले। 
लाबान की दो बेटियां थीं , बड़ी लीआ और छोटी राहील। राहील खूब सूरत और सुडौल थी जबकि लीआ कमज़ोर। याक़ूब ने राहील को मज़दूरी में मांग लिया तो लाबान ने शर्त लगा दी कि वह सात साल तक इसकी खिदमत में रहे , जिसे याक़ूब मान गया। 
मुद्दत ख़त्म होने के बाद लाबान अपने वादे से फिर गया और राहील के बदले लीआ को याक़ूब के हवाले किया। इस बात पर दोनों में काफी तकरार हुई। 
लाबान की अगली शर्त थी कि वह सात साल तक और उसकी गुलामी में रहे तो राहील उसे मिल जाएगी। याक़ूब एक बार फिर लाबान की शर्त मान गया। 
चौदह सालों की गुलामी काट कर याक़ूब अपने चालबाज़ मामा के फन्दे से रिहा हुआ। वह अपनी दोनों बीवियों और बच्चों को लेकर लाबान का घर छोड़ दिया। 
(बहुत दिल चस्प क़िस्सा है यह तौरेत का। इसी याक़ूब ने बाद में इस्राईल का नाम पाया .
याक़ूब की बारह अव्लादें हुईं।  लीआ से लगातार पांच बेटे हुए लेकिन राहील अभी तक माँ नहीं बन पाई थी , इसकी वजह से वह अपनी बहन से खलिश रखने लगी थी। उसने याक़ूब को राय  दी कि वह उसके लिए उसकी बांदी बिल्हा को रखैल बना ले। याक़ूब राज़ी हो गया। बिल्हा से दो लड़के हुए जिन्हें पाकर राहील खुश रहने लगी। बहन लीआ ने बदले में अपनी नौकरानी जलपा से याक़ूब की शादी करा दी और उसने भी दो लड़कों को जनम दिया। इसके बाद लीआ से दो लड़के और एक लड़की और हुए। 
सबसे बाद में राहील की गोद हरी हुई और उसने एक बेटे को जन्मा जिसका नाम जोसेफ़ (युसूफ) पड़ा . इस तरह याक़ूब को बारह औलाद ए नरीना हुईं जिनके नाम मंदर्जा ज़ेल हैं - - -
१ राबिन 
२ समउन 
३ लेवी 
४ यूदा 
५ ईसराकार 
६ वान 
७ नफ्ताली 
८ लीबा 
९ गाद 
१० बिन्यामीन 
११ आशीर 

१२ यूसुफ़ 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 23 September 2017

Hindu Dharm Darshan 94



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे देवताओं के बीच जन्म लेते है,
जो पितरों को पूजते हैं वे पितरों के पास जाते हैं, 
जो भूत प्रेतों की उपासना करते हैं वे उन्हीं के बीच जन्म लेते हैं, 
और जो मेरी पूजा करते है वे मेरे मेरे साथ ही निवास करते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 9  - श्लोक -25 
>हे कृष्ण भगवान ! तुमको पूजने से तो बेहतर है हम औरों को पूजें, या अपने पितरों को. कम से कम दूसरे आपकी तरह स्वयंभू महिमा मंडित होकर हमारा दिमाग़ तो नहीं खाते रहेंगे.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>''आप फरमा दीजिए तुम तो हमारे हक में दो बेहतरीयों में से एक बेहतरी के हक में ही के मुताज़िर रहते हो और हम तुम्हारे हक में इसके मुन्तजिर रहा करते हैं कि अल्लाह तअला तुम पर कोई अज़ाब नाज़िल करेगा, अपनी तरफ से या हमारे हाथों से.सो तुम इंतज़ार करो, हम तुम्हारे साथ इंतज़ार में हैं.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५२)
यह आयत मुहम्मद की फितरते बद का खुला आइना है, कोई आलिम आए और इसकी रफूगरी करके दिखलाए. ऐसी आयतों को ओलिमा अवाम से ऐसा छिपाते हैं जैसे कोई औरत बद ज़ात अपने नाजायज़ हमल को ढकती फिर रही हो. आयत गवाह है कि मुहम्मद इंसानों पर अपने मिशन के लिए अज़ाब बन जाने पर आमादा थे. इस में साफ़ साफ मुहम्मद खुद को अल्लाह से अलग करके निजी चैलेन्ज कर रहे हैं, क़ुरआन अल्लाह का कलाम को दर गुज़र करते हुए अपने हाथों का मुजाहिरा कर रहे हैं. अवाम की शराफत को ५०% तस्लीम करते हुए अपनी हठ धर्मी पर १००% भरोसा करते हैं. तो ऐसे शर्री कूढ़ मग्ज़ और जेहनी अपाहिज हैं 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Quraan ke jhoot aur taureti sadaqat Q9

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**************

क़ुरआन के झूट - - - और तौरेती सदाक़त  - - -

क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार आता है, जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है. पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें. मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं, उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं. दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ, इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है. 

इस्हाक़ (आइशक़) 
क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 


खुदा एक बार फिर इब्राहीम और उसकी नस्लों पर इन्तेहाई दरजा मेहरबान रहने का वादा किया। उसने उसको अपने दीन पर पाबन्द रहने का हुक्म दिया। खुदा ने इब्राहीम का नाम बदल कर अब्रहाम कर दिया और सारे का नाम बदल कर सारा कर दिया 
खुदा ने बूढी सारा से भी एक औलाद होने की खुश खबरी दी। 
 अब्रहाम को इस्माईल की फ़िक्र ज़्यादा थी , खुदा ने इसके दिल की बात जान लिया और कहा , मैं इस्माईल को भी दुआ देता हूँ कि उसकी नस्ल अफ़ज़ाई होगी मगर सारा के बेटे इस्हाक़ पर मेरी नज़र-ए-करम ज़्यादा होगी। 
खुदा ने अपना वादा पूरा किया , नब्बे साल की उम्र में सारा ने इस्हाक़ को जन्म दिया। आठवें दिन खुदा के निज़ाम के तहत इसका खतना हुवा। 
जब इसका का दूध छुड़ाया गया तो इब्राहीम ने एक बड़ी दावत करके खुशियाँ मनाई।  
एक रात खुदा ने इब्राहीम को ख्वाब में इस्हाक़ की क़ुरबानी का हुक्म दिया। दूसरे दिन इब्राहीम अपने बेटे इस्हाक़ को लेकर , देखे हुए ख्वाब के मुताबिक़ उस पहाड़ी पर चल पड़ा जहाँ पर खुदा ने इसहाक़ की क़ुरबानी मांगी थी। 
तीन दिन के सफर के बाद इब्राहीम उस पहाड़ी पर पहुँचा। उसने यहाँ पर एक बेदी बनाई और उस पर लकड़ी रखी , फिर इस्हाक़ के हाथ-पाँव बांध कर छुरा उठाया ही था कि निदा आई - - -
"बच्चे पर कोई ज़र्ब न आए "
वह रुक गया। उसने देखा कि एक मेमना सामने खड़ा था जिसकी सीगें झाड़ियों में फंसी हुई थीं। मेमने को झाड़ियों से छुड़ा कर उसने उसकी क़ुरबानी दी और इस्हाक़ को घर लाया। 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 21 September 2017

Hindu Dharm Darshan 93



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>बुद्धिमान मनुष्य दुःख के कारणों से भाग नहीं लेता 
जोकि भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग से उत्पन्न होते हैं.
हे कुंती पुत्र ! 
ऐसे भोगों का आदि तथा अंत होता है.
अतः चतुर व्यक्ति उनमे आनंद नहीं लेता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -5  - श्लोक -22 

>भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग से उत्पन्न सुख, दुःख कैसे हो गए ? 
इस सुख से वंचित व्यक्ति दुखी होता है, 
ऐसा भगवान् कहते हैं और कहते हैं 
इस दुःख से पलायन नहीं करना चाहिए. 
सवाल यह है कि ऐसे दुःख अपने लिए पैदा ही क्यों किए जाएं ?
सुख को त्याग कर. 
भगवान् कहते हैं 
"ऐसे भोगों का आदि तथा अंत होता है." 
आदि तथा अंत तो सभी का होता है चाहे वह भोग हो अथवा अभोग. 
व्यक्ति को चतुर होना चाहिए या सरल ? हे भगवन !
*
और क़ुरआन कहता है - - - 
>"बिल यकीन जो लोग कुफ्र करते हैं, 
हरगिज़ उनके काम नहीं आ सकते, 
उनके माल न उनके औलाद, 
अल्लाह तआला के मुकाबले में, ज़र्रा बराबर नहीं 
और ऐसे लोग जहन्नम का सोखता होंगे।"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (१०)

भगवान् और अल्लाह की बातें एक जैसी ही हैं, 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Quraan ke jhoot aur taureti sadaqat Q8

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन के झूट - - - और तौरेती सदाक़त  - - -

क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार आता है, जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है. पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें. मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं, उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं. दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ, इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है

इस्माईल 
इब्राहीम की बीवी सारा ने एक दिन शौहर से कहा कि मैं माँ नहीं बन सकती , इस लिए तुम अपनी मिस्री सेविका को रखैल बना कर रख लो , इस से अवलाद मिल सकती है। इब्राहीम ने सारा की राय मान ली। सारा की मिस्री सेविका का नाम हागार (हाजरा) था।  कुछ रोज़ बाद ही वह हामला हो गई तब मुआमला बिगड़ गया क्योंकि वह इतराने लगी , जिसकी वजह से सारा एहसास कमतरी में मुब्तिला हो गई , नतीजतन सारा और इब्राहीम में कहा सुनी होने लगी।  तंग आकर इब्राहीम ने सारा को अख्तियार दे दिया कि वह जो दिल चाहे करे , गोया सारा हाजरा को तंग करने लगी , इतना कि हाजरा को घर छोड़ना पड़ा। 
हाजरा वीराने में भटकती हुई एक झरने की पास पर पहुँची जो सूर के रास्ते में था , जहाँ इसे एक फरिश्ता मिला जिसने इसकी दिल जोई की।  उसने बतलाया कि तेरी अवलाद की नस्लें इतनी हो जाएँगी कि गिनी न जा सकेंगी।  इसने हाजरा के पेट में पलने वाले बच्चे का नाम इस्माईल रखने को कहा और कहा इसकी शक्ल जंगली गधे जैसी होगी। वह इंसानी बिरादरी का मुखालिफ होगा। फ़रिश्ते के समझाने बुझाने के बाद हाजरा इब्राहीम के पास वापस चली गई। वहाँ इसने अपने बच्चे को जनम दिया  
हाजरा के माँ बन जाने के बाद सारा भी हामला हुई और उसने भी एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम इस्हाक़ पड़ा। 
सारा को हाजरा और इसके बच्चे से फिर जलन होने लगी , इसे दोनों का वजूद अपने घर में गवारा न था। हाजरा को अपने बच्चे के साथ एक बार फिर इब्राहीम का घर छोड़ना पड़ा। 
सारा के दबाव में आकर इब्राहीम ने एक दिन कुछ खाने का सामान और एक मश्क पानी देकर हाजरा और इस्माईल को घर से निकाल दिया। हाजरा चलते चलते  बअर शीबा के वीराने में पहुँच गई और वहां भटकने लगी। खाना और पानी ख़त्म हो गया था , बच्चा भूक और प्यास से बिलखने लगा था। हाजरा से देखा न गया , वह बच्चे से दूर तीर के फ़ासले पर जा बैठी कि इस हालत में अपने बच्चे को मरता नहीं देख सकती थी। 
खुदा ने हाजरा पर रहम खाया , उसने जब आँखें खोली तो देखा सामने एक पानी का सोता बह रहा है। फ़ौरन उसने अपने बच्चे को पानी पिलाया और अपनी मशक भरी।  इस्माईल इसी मैदान में पला बढ़ा और तीर अंदाज़ बना।   

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 8 September 2017

Quraan ke jhoot aur taureti sadaqat Q7

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन के झूट - - - और तौरेती सदाक़त  - - -

क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार आता है, जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है. पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें. मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं, उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं. दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ, इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है. 

नूह 

नूह का दौर आते आते लोगों में बुराइयां ज़्यादा बढ़ गई थीं। काइन की औलादें आदम की औलादें कही जाने लगी थीं और और सेत की औलादें खुदा की। आदमी में बुराइयाँ बढ़ गई थीं।  खुदा बेराह रवी पर चलने वाले आदमियों से रंजीदा हुवा और तमाम मख्लूक़ को फ़ना करने का फैसला किया , मगर खुदा को नूह पसंद था , इस लिए नूह को सात दिनों का मौक़ा दिया कि वह एक कश्ती बना ले। 
खुदा ने कश्ती की तामीर के बारे में अपनी हिदायत दिया कि कश्ती ३०० हाथ लंबी हो , ५० हाथ चौड़ी और तीस हाथ ऊंची हों। कश्ती में पाक साफ़ जानवरों के चार चार जोड़े और नापाक जानवरों के एक एक जोड़े रखे और इनकी खुराक भी। खुदा बहुत दुखी था फिर भी नूह और इसके परिवार को कश्ती में रखने को राज़ी हो गया बाकियों को फ़ना कर देने पर आमादा था। 
चालीस दिनों तक ऐसी बारिश हुई कि जैसे आसमान के फाटक खुल गए हों। इतनी बारिश हुई कि पहाड़ों का कहीं अता पता न रहा। इसके बाद तूफ़ान ख़त्म हुवा। नूह और उसके परिवार से साथ साथ तमाम जीव कश्ती से बाहर निकले। खुदा ने इन्हें धरती पर फूलने फलने की दुआ दी।  नूह  ने एक बेदी (इबादत गाह) बनाई और कुछ परिंदों की भेँट चढ़ा कर खुदा का शुक्र गुज़ार हुवा। खुदा ने इसे पसंद   किया और अहद  किया कि इसके बाद आदमियों के कारन धरती पर किसी  को बददुआ नहीं दूँगा और कभी भी तमाम मख्लूक़ को तबाह नहीं करूँगा।  खुदा ने आदमज़ादों को धरती पर फूलने फलने का आशीर्वाद दिया। 
नूह की तीन औलादें थीं - - - सेम , हाम और यीफियत 
नूह को नशे के आलम में हाम के बेटे कनान ने देख लिया जिसकी वजह से नूह बहुत नाराज़ हुवा और इसे बददुआ दी कि हाम की औलादें अपने दोनों भाइयों की औलादों की ग़ुलामी करेंगी। 
तौरैत बतलाती है कि ख़ुदा आदमियों को फ़ना होने की बद दुवा दी थी और कुरआन कहता है नूह ने ही अपनी उम्मत को बद दुवा दी थी। 
नूह से इब्राहीम तक की नस्लों का शजरा 

१- नूह २-सेम ३-अर्पिशद ४-सीलः ५-यबीर ६- पीलीग ७-रऊ ८-सरोगः ९-नाहोर १०-तेराह (आज़र ) ११-इब्राहीम

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Dharm Darshan 92




गीता और क़ुरआन 
हिदू और मुसलमान 

गीता न ईश वाणी है न आकाश वाणी और न ही कृष्ण भगवान् का उपदेश 
जो कि कुरुक क्षेत्र में कृष्ण ने अर्जुन को दिया. 
गीता की महिमा केवल इतनी है कि पौराणिक युग में भी हमारे विद्वान भाषा, लिपि ही नहीं, विद्या कला और काव्य विधा में कुशल और निपुण थे. 
साक्षरता का परिवेश हुवा करता था जबकि उस समय संसार की बहुत सी भाषाएँ अपनी लिपि भी नहीं पैदा कर पाईं थीं. 
गीता रचैता साक्षर थे न कि ज्ञानी.
गीता साक्षर व्यक्तियों की कृति है और क़ुरान निरक्षर मुहम्मदी अल्लाह का कलाम है, वह अल्लाह जो कल्पित है. 
गीता का शक्ति पुरुष भगवान् भी कल्पित है जो ईश अवतार बन कर करिश्मा साजी करता है 
और अल्लाह जोकि संभावित शक्ति का एक रूप है
जिसे विज्ञान भी अभी तक उस रूप के शशो पंज में है. 
जैसा कि मैंने कहा गीता साक्षर पुरुष का काव्य और क़ुरान निरक्षर मुहम्मद का तराशा हुआ है शायराना बकवास. 
ज्ञान विज्ञान दोनों में नहीं. दोनों में अतिशयोक्तियाँ, मुबालगा आराईयाँ, 
अलौकिक और ग़ैर फ़ितरी बातों से भरी पड़ी हैं. 
गीता में सलीक़ा है और क़ुर आन में फूहड़ पन. 
दोनों किताबें झूट, मक्र (धूर्तता) और बेशर्मी से लैस हैं. 
हिन्द व् पाक का सारा समाजी निजाम इन किताबों को सम्हाले हुए है 
और इस निज़ाम को संभाले हुए हैं मुल्ला व् पंडे. 
यह दोनों हराम खोर सदियों से इंसान को इंसानों से लडवा रहे  है 
और खुद अपनी औलादों के साथ ऐश कर रही हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 4 September 2017

Quraan ke jhoot aur taureti sadaqat Q6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है। पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं। दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका  विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - और तौरेती सदाक़त  

योसेफ़ / यूसुफ़ / जोज़फ़ 
Part 2


यूसुफ़ की ताबीर और तदबीर से बादशाह बहुत मुतास्सिर हुवा और यूसुफ़ का मुक़दमा तलब किया जोकि दो सालों से चल रहा था। पूरा मुआमला नए सिरे से पेश किया गया , कुर्ते का दमन पीछे की तरफ का चाक था इस लिए ज़ुलैख़ा को मुजरिम पाया गया जिसे खुद ज़ुलैखा ने तस्लीम कर लिया। यूसुफ़ बाइज़्ज़त बरी हुवा और उसने फ़िरऔन के दिल में अपना मुक़ाम बना लिया। फ़िरऔन ने खुश होकर यूसुफ़ को वज़ीर-खज़ाना मुक़र्रर किया , इसे सारे मिस्र का दौरा कराया और उसे "साफ़नत्त पीयूऊह " के लक़ब से नवाज़ा।  यूसुफ़ की शादी इमाम पोटी फियरऊ की बेटी आसनत से हुई। 
यूसुफ़ की ताबीर के मुताबिक़ सात साल खरे उतरे , इतना गल्ला पैदा हुवा कि जिसकी नाप तौल रखना मुमकिन न था।  उसके बाद मुल्क और आस-पास ऐसा क़हत पड़ा कि लोग दाने दाने को मुहताज हो गए। फ़िरऔन ने यूसुफ़ को पूरा अख्तियार दे रखा था कि वह ग़ल्ले को जिस तरह चाहे रिआया को बाटे या बाहर वालों को बेचे। यूसुफ़ की हिकमत-अमली से बादशाह का खज़ाना लबरेज़ हो गया था।  मुल्क की सारी ज़मीन बादशाह की मिलकियत हो गई थी। 

यूसुफ़ के वतन कनान को भी कहत का सामना करना पड़ा जहाँ यूसुफ़ का परिवार रहता था। 
याक़ूब ने अपने कुछ बेटों को भी अनाज लेने के लिए मिस्र भेजा। यूसुफ़ से बहैसियत वज़ीर जब इन भाइयों से आमना सामना हुवा तो उसने इन सभों को पहचान लिया मगर यूसुफ़ को कोई भी न पहचान सका। उनके वहमो-गुमान में भी न था कि जिस भाई को उन्हों ने अंधे कुवें में डाल  कर मार दिया था , वह इस वक़्त हुक्मरान-मिस्र होगा। यूसुफ़ ने अपने भाइयों पर जासूसी का इलज़ाम लगा कर गिरफ्तार करा लिया और तफ्तीश के बहाने अपने सारे कुनबे की जानकारी ली।
  इस तरह यूसुफ़ को इसके बाप और भाई बिन्यामीन की खैरियत मिली। इसके बाद यूसुफ़ ने समऊन को हथकड़ी लगा कर बाकियों को इस शर्त पर छोड़ा कि अगली बार वह बेन्यामीन को साथ लेकर आएँ। युसूफ ने अनाज की कीमत भी ग़ल्ले के बोरियों में छुपा कर उन्हें वापस कर दिया। 
बेटे कनान आकर पूरी दास्तान बाप याक़ूब को सुनते हैं समऊन को यर्गः माल बनाने और बिन्यामीन को साथ लाने की शर्त को याक़ूब न मानते हुए कहता है - - -
तुम लोग यूसुफ़ को भी इसी तरह की साज़िश करके मार चुके हो , अब उसके भाई को भी मारना चाहते हो ?
बहुत यक़ीन दिलाने के बाद याक़ूब उनकी बात मान जाता है। 
कुछ दिनों बाद बेन्यामिन को साथ लेकर सभी भाई मिस्र आते हैं। यूसुफ़ अपने चहीते भाई बेन्यामिन को देखता है तो देखता ही रह जाता है , भाग कर गोशा-एतन्हाई में चला जाता है और खूब रोता है। इस बार यूसुफ़ सभी भाइयों की दावत करता है और उन्हें ठीक से परखता है कि आया इसके सभी भाई सुधर गए हैं ? इसके बाद वह सारे भेद खोल देता है कि वह कोई और नहीं , तुमहारा भाई यूसुफ़ है। इसकी खबर बादशाह तक पहुंच जाती है कि यूसुफ़ के भाई आए हुए हैं। वह उनको इजाज़त देता है कि सभी अपने खानदान के साथ मिस्र आ कर बस जाएं। वह सभी कनान जाकर माँ बाप को और घर के सभी साज़ व् सामान लेकर मिस्र में आकर आबाद हो जाते हैं। 
इस वक़्त यूसुफ़ के खानदान में कुल ७० नफ़र थे।   
यूसुफ़ की इमान दारी , वफ़ा दारी और हिकमत-ए -अमली से बादशाह इनता खुश था कि उसने मिस्र की निजामत भी यूसुफ़ को सौंप दी।  नतीजतन यूसुफ़ बादशाह को पक्का वफादार और फ़रमा बरदार बन गया। वह उसे अपने बाप का दर्जा देता था। यूसुफ़ ने जिस दूर अंदेशी से अनाज का ज़ख़ीरा बनाया , बादशाह के लिए एक वरदान था। इसके ज़रिए मुल्क और ग़ैर मुल्क की भारी दौलत बादशाह के ख़ज़ाने में आ गई थी। अवाम के पास फूटी कौड़ी भी नहीं बची कि वह ज़िंदा रह सकें। 
यूसुफ़ ने बड़ी बेरहमी के साथ अवाम की ज़मीनें बादशाह के नाम करा लीन और उनको बादशाह का मज़दूर बना लिया। ज़मीन इस शर्त पर लोगों में बाटी गईं कि पैदावार को पाँचवाँ हिस्सा बादशाह का होगा। 
यूसुफ़ का बनाया हुवा यह क़ानून हज़ारों साल से दुन्या में रायज है  

उसने अपने देखे हुए ख्वाब "कि सूरज चाँद और ग्यारह सितारे उसको सजदा कर रहे हैं। " की ताबीर को अपने बाप और भाइयों के सामने फिर दोहराई। 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 3 September 2017

Dharm Darshan 91



गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -

"हे कुंती पुत्र ! तुम अगर युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे या 
यदि तुम जीत जाओगे तो पृथ्वी के सान्राज को भोग करोगे, 
अतः तुम संकल्प करके खड़े हो जाओ और युद्ध करो .
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 2  श्लोक 37

अल्लाह क़ुरआन में कहता है - - -

"और जो शख्स अल्लाह कि राह में लडेगा वोह ख्वाह जान से मारा जाए या ग़ालिब आ जाए तो इस का उजरे अज़ीम(महा पुण्य) देंगे और तुम्हारे पास क्या औचित्य है कि तुम जेहाद न करो अल्लाह कि राह में।"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (75)
" अल्लाह ताला ने इन लोगों का दर्जा बहुत ज़्यादा बनाया है जो अपने मालों और जानों से जेहाद करते हैं, बनिसबत घर में बैठने वालों के, बड़ा उजरे अज़ीम दिया है, यानी बहुत से दर्जे जो अल्लाह ताला की तरफ़ से मिलेंगे।" 
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (95) 
*
क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 1 September 2017

Quraan ke jhoot aur taureti sadaqat Q5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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क़ुरआन के झूट - - - और तौरेती सदाक़त  - - -

क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार आता है, जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है. पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें. मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं, उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं. दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ, इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है. 

आदम की औलादें 
हव्वा हामला हुई और पहले आदमी को जन्म हुवा नाम रख्खा गया काईन (क़ाबील )फिर इसके बाद इसका छोटा भाई हाबील हुवा।  काबील किसान बना और हाबिल चरवाहा। काईन से ख़ुदा खुश न था क्योंकि  वह अपने छोटे भाई से बैर रखता था।  एक रोज़ काइन ने हाबिल  को मौत के घाट उतार दिया।  काइन से ख़ुदा बहुत नाराज़ हुवा और ज़मीन पर परीशान हाल ज़िन्दगी जीने की बददुआ दे दी।  
तीसरा बेटा जो सेत हुवा जिसे हव्वा ने हाबिल का दूसरा जन्म माना यही आदम  वारिस हुवा। 
काईन अदन के पूरब मुल्क नोद रहने लगा , उसकी कई औलादें हुईं जोकि चारो तरफ़ फैल गईं। उन्होंने मुख़्तलिफ़ पेशे अख़्तियार किए, पेशे के एतबार से इनकी बिरादरी बनीं और नाम बना। हाबिल के बाद भी आदम की कई बेटे और बेटियां हुईं।  आदम ने ९६० साल की उम्र पाई। 
आदम का नस्ली सिलसिला नूह तक 
१ आदम २ सेत ३ ऐनवस  ४ कैनान ५ महलहल ६ यारीद ७ हनूक ८ मतूशला ९ लमयक १० नूह। 
इस्लाम ने आदम हव्वा और इनकी अवलादों की मिट्टी पिलीद कर रखी है , कहता है हव्वा को हर सुब्ह लड़का पैदा होता और हर शाम लड़की और उन दोनों की शादियाँ हो जातीं यानी यह अख़लाक़ी जुर्म रवा था, जिसे सुन कर आज की जवाँ नस्ल गुमराह हो सकती है। 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान