Thursday 30 April 2020

खेद है कि यह वेद है (51)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (51)

हे अग्नि ! 
समस्त देव तुम्हीं में प्रविष्ट हैं, 
इस लिए हम यज्ञों में तुम से समस्त उत्तम धन प्राप्त करें .
तृतीय मंडल सूक्त 11(9)
यह कैसा वेद है जो हर ऋचाओं में अग्नि और इंद्र आदि देवों के आगे कटोरा लिए खड़ा रहता है. कभी अन्न मांगता है तो कभी धन. क्या वेद ज्ञान ने लाखों लोगों को निठल्ला नहीं बनाता है? धर्म को तो चाहिए इंसान को मेहनत मशक्कत और गैरत की शिक्षा दे, वेद तो मानव को मुफ्त खोर बनता है.
कौन सा चश्मा लगा कर वह पढ़ते है जो मुझे राय देते हैं कि इसे समझ पाना मुश्किल है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 29 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (60)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (60)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
> उन्हें विश्वास है कि इन्द्रियों की तुष्टि ही मानव सभ्यता की मूल आवश्यकता है. 
>>इस प्रकार मरण काल तक उनको अपार चिंता होती रहती है. 
वह लाखों इच्छाओं के जाल में बंध कर 
तथा काम और क्रोध में लीन होकर इन्द्रीय तृप्ति के लिए 
अवैध ढ़ंग से धन संग्रह करते हैं. 
>>>इस प्रकार अनेक चिंताओं से उद्विग्न होकर तथा मोहजाल बंध कर वे इन्द्रीय भोग में अत्याधिक आसक्त हो जाते हैं और नरक में गिरते हैं.
>>>> जो लोग ईर्ष्यालु तथा क्रूर हैं और नराधम हैं, 
उन्हें मैं निरंतर विभिन्न असुरी योनियों में, भवसागर में डालता रहता हूँ. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -16   श्लोक -11-12-16 -19   
*इन्द्रियों की तुष्टि ही मानव सभ्यता को गति देती है. 
यह आरायशी पहलू अगर मानव सभ्यता में न होता तो यह गतिहीन होकर गर्त में समा जाती. मरते दम तक इसकी चिंता मनुष्य को सालती रहती कि उसने अपने हद तक और चेष्टा तक काम कर दिया है, 
बिजली को क़ैद कर लिया है, प्रवाह के साधन, 
हे पीढियो ! 
तुम्हारा आविष्कार होगा, उस के बाद का काम तुम्हारे बच्चे करेंगे, 
काम और क्रोध तथा कथित भगवान् की ही पैदा की हुई इंसानी खसलत है, 
कौन दोषी है इसका ? 
यह क्षणिक खुजली है, शरीर को खुजला कर अपने लक्ष में लग जाओ. 
नरक यह धरती उस वक़्त से बनना शुरू हुई जब धर्मों का ज़हरीला आविष्कार हुवा.
>>>>हे अहमक़ भगवन ! तू मानव को ईर्ष्यालु, क्रूर और नराधम ही क्यों बनाता है ? 
क्या तू भी योनियों की क्रीडा का रसिया है ? 
(यह गोपियों के राजा किशन हैं, हो भी सकते हैं) 
निरंतर विभिन्न असुरी योनियों के भवसागर में विरोधियों को डाल कर निकलता है ? तेरा खेल तू ही जाने, या यह पंडे, जनता तो मूरख है.
और क़ुरआन कहता है - - - 
>आदमी पर अल्लाह की मार. वह कैसा है,
अल्लाह ने उसे कैसी चीज़ से पैदा किया,
नुत्फे से इसकी सूरत बनाई, फिर इसको अंदाज़े से बनाया.``
फिर इसको मौत दी,
फिर इसे जब चाहेगा दोबारह जिंदा कर देगा.
सूरह अबस ८० - पारा ३० आयत(१४-२२)  
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 28 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (59)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (59)

> भगवान् ने कहा ---
हे भरतपुत्र ! 
निर्भयता, आत्म शुद्धि,आध्यात्मिक, ज्ञान का अनुशीलन, दान, आत्म संयम, यज्ञ परायणता, वेदाध्ययन, तपस्या, सरलता, अहिंसा, सत्यता, क्रोध विहीनता, त्याग, शांति, छिद्रान्वेषण (ऐब निकालना) में अरुचि, समस्त जीवों पर करुणा, लोभ विहीनता, भद्रता, लज्जा, संकल्प, तेज, क्षमा, धैर्य, पवित्रता, ईर्ष्या एवं सम्मान की अभिलाषा से मुक्ति -- 
ब यह सारे दिव्य गुण हैं, जो दैवी प्रकृति से संपन्न देव तुल्य पुरुषों में पाए जाते हैं.
>हे पृथापुत्र !
दंभ, दर्प, अभिमान, क्रोध, कठोर्ता तथा अज्ञान -- 
यह सब असुरी स्वभाव वाले गुण हैं.     
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -  16 श्लोक - 1-2-3-4   
*गीता की अच्छी बातें जिनको कम व् बेश स्वीकार किया जा सकता है.
मगर क्या पिछले अध्यायों की घृणित जिहादी बातें इन शुभों के साथ होना चाहिए ?
और क़ुरआन कहता है - - - 
>सूरह फातेहा (१) 

सब अल्लाह के ही लायक हैं जो मुरब्बी हें हर हर आलम के। (१) 
जो बड़े मेहरबान हैं , निहायत रहेम वाले हैं। (२) 
जो मालिक हैं रोज़ जज़ा के। (३) 
हम सब ही आप की इबादत करते हैं, और आप से ही दरखास्त मदद की करते हैं। (४) 
बतला दीजिए हम को रास्ता सीधा । (५) 
रास्ता उन लोगों का जिन पर आप ने इनआम फ़रमाया न कि रास्ता उन लोगों का जिन पर आप का गज़ब किया गया । (६) 
और न उन लोगों का जो रस्ते में गुम हो गए। (७) 
>क़ुरआन में भी बहुत सी बातें जन साधारण के लिए ठीक ही हैं. 
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 27 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (58)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (58)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>वह मेरा परम धाम न तो सूर्य और चंद्रमा के द्वारा प्रकाशित होता है 
और न अग्नि या बिजली से. 
जो लोग वहां पहुँच जाते हैं, वे इस भौतिक जगत में फिर से लौट कर नहीं आते हैं.  
मैं समस्त जीवों के शरीरों में पाचन अग्नि हूँ 
और मैं श्वास प्रश्वास में रहकर चार प्रकार के अन्नों को पचता हूँ.
जो कोई भी शंशय रहित होकर पुरोशोत्तम भगवन के रूप में जाब्ता है,
 वह सब कुछ जानने वाला है. 
अतएव हे भारत पुत्र !
वह व्यक्ति मेरी पूर्ण भक्ति में रत होता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -15   श्लोक -6 +14 +19  
*जो भाषण और वाणी आजके आधुनिक युग में चाल घात समझी जाती  हैं वही बातें आज भी ईश वानी का दर्जा रखती हैं. 
सोए हुए जन मानस ! 
तुमको कैसे जगाया जाए ? 
तुमको हजारो साल से यह धर्मों के धंधे बाज़ ठगते रहे हैं, 
और कब तक तुम  अपनी पीढ़ियों को इन से ठगाते रहोगे ? 
भले ही तुम उस जाति अथवा वर्ग के हो, 
यह लाभ तुम्हारे लिए भी आज के युग में हराम हो गया है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>"और हमने आपको इस लिए भेजा है कि खुश खबरी सुनाएँ और डराएँ. आप कह दीजिए कि मैं तुम से इस पर कोई मावज़ा नहीं मांगता, हाँ जो शख्स यूँ चाहे कि अपने रब तक रास्ता अख्तियार करे."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (५७)
डरना, धमकाना, जहन्नम की बुरी बुरी सूरतें दिखलाना और इन्तेकाम की का दर्स देना, मुहम्मदी अल्लाह की खुश खबरी हुई. जो अल्लाह जजिया लेता हो, खैरात और ज़कात मांगता हो, वह भी तलवार की ज़ोर पर, वह खुश खबरी क्या दे सकता है?
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 26 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (57)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (57)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>हे भारत पुत्र ! 
सतो गुण मनुष्य को सुख से बांधता है,
रजो गुण सकाम कर्म से बांधता है 
और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढक कर उसे पागलपन में बाधता है.
>>तपो गुण से वास्तविक ज्ञान उत्पन्न होता है,रजो गुण से लोभ उत्पन्न होता है और तमो गुण से अज्ञान, प्रमाद और मोह उत्पन्न होता है.
>>>सतो गुणी व्यक्ति क्र्मशः ऊपर उच्च लोकों को जाते हैं, 
रजोगुणी इसी पृथ्वी पर रह जाते हैं 
और जो अत्यंत गर्हित तमो गुण में स्थित हैं, 
वे नीचे नरक लोक में जाते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -14   श्लोक - 8+17 + 18  
*हर आदमी में सभी गुण स्वाभाविक होते हैं , 
कब किसका प्रयोजन हो जाए. 
उम्र भी इन गुणों को निर्धारित करती है. 
इंसान किसी पल फ़रिश्ता होता है तो अगले क्षण शैतान. 
परिस्थितियाँ गुणों को दास बना देती है.
धर्म ज्ञान अधकचरा ज्ञान होता है, 
इसमें कहीं न कहीं उनका हित निहित होता है. 
इंसानियत इन से मुक्ति चाहती है.
प्रस्तुत पुस्तक का एक पाठ है 
" तात्पर्य" 
इसका अध्यन ध्यान पूर्वक करिए तो समझ में आएगा कि " तात्पर्य" का  तात्पर्य क्या है ? अगर धर्म के धंधे बाजों को अपनी कमाई का 50% इनको दो तो यह तुम्हें स्वर्ग लोक में पहुंचा देंगे, इस से कम दो तो इसी लोक में पड़ा रहने देगे और अगर इन लुटेरों को कुछ न दो तो नरक निश्चित है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>"और जिस रोज़ आसमान बदली पर से फट जाएगा, और फ़रिश्ते बकसरत उतारे जाएँगे उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत रहमान की होगी. और वह काफ़िर पर सख्त दिन होगा, उस रोज़ ज़ालिम अपने हाथ काट काट  खाएँगे. और कहेंगे क्या खूब होता रसूल के साथ हो लेते."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (२६-२७)

अल्लाह का इल्म मुलाहिजा हो, उसकी समझ से बादलों के ठीक बाद आसमान की छत छाई हुई है जो फट कर फरिश्तों को उतारने लगेगी.  
इस अल्लाह को हवाई सफ़र कराने की ज़रुरत है, 
कह रहे हैं कि "उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत रहमान की होगी" जैसे कि आज कल दुन्या में उसका बस नहीं चल पा रहा है. 
अल्लाह ने काफिरों को ज़मीन पर छोड़ रक्खा है कि हैसियत वाले बने रहो कि जल्द ही आसमान में दरवाज़ा खुलेगा और फरिश्तों की फ़ौज आकर फटीचर मुसलामानों का साथ देगी. 
काफ़िर लोग हैरत ज़दः  होकर अपने ही हाथ काट लेंगे और पछताएँगे कि कि काश मुहम्मद को अपनी खुश हाली को लुटा देते. 
चौदः  सौ सालों से मुसलमान फटीचर का फटीचर है और काफिरों की गुलामी कर रहा है, यह सिलसिला तब तक क़ायम रहेगा जब तक मुसलमान इन क़ुरआनी आयतों से बगावत नहीं कर देते.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 25 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (56)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (56)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>हे भरत पुत्र ! 
ब्रह्म नामक समग्र भौतिक वस्तु जन्म का स्रोत है.
और मैं इसी ब्रह्म को गर्भस्त करता हूँ, 
जिसमें समस्त जीवों का जन्म संभव होता है.
>>हे कुंती पुत्र ! 
तुम यह समझ लो कि समस्त प्रकार के जीव-योनियाँ 
इस भौतिक प्रकृति में जन्म द्वारा संभव हैं 
और मैं उसका बीज-प्रदाता हूँ. 
>>>भौतिक प्रकृति तीन गुणों से युक्त है. 
सतो, रजो, तथा तमो गुण. 
हे महाबाहू अर्जुन ! 
जब शाश्वत जीव प्रकृति के संसर्ग में आता है, 
तो वह इन गुणों से बंध जाता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -14   श्लोक -3+4 +5   
*एक बार मैंने ज़बान ए आम में इसी गीता शब्दों को कहा कि 
ब्रह्माण्ड =ब्रह्मा का अंडा, 
तो पाठकों ने ठहाका लगाया था और मेरे इल्म को छदम बतलाया था. 
विडंबना यही है कि जनता धर्म ग्रंथों को हाथ भी नहीं लगाती 
और अपने धर्म की कमियों को खुद नहीं जानती. 
वह ग्रंथों के साथ एक पल भी रहना दिमागी मशक्क़त समझती है 
और पंडो की बातों पर घंटों झूमती रहती है. 
अब लो यह भगवान् इसी ब्रह्मा के अंडे को गर्भाधान करते है. 
जब स्वयं भगवान् सम्भोग में लिप्त पाए जाते हैं, यह उनकी ही स्वीकृति है, 
तो मानव जाति को क्यों इस कृति से दूर रखना चाहते हैं. 
बेशक प्रकृति ही इन बीजों का श्रोत है वरना तमाम योनियाँ इसे पाने के लिए इतनी बेचैन क्यों हुवा करती हैं ? 
खुद प्रकृति अपने बीज रोपण में क्यों संलग्न रहती है ? 
यही दोनों अलग अलग मानव अंग हैं जो मिलने के लिए हर समय उत्साहित रहते हैं. क्योकि इसी मिलन के रहस्य में जीवों का स्तित्व सुरक्षित है.
धर्म ग्रन्थ हमेशा विरोधाभाषी उपदेशों से परिपूर्ण हुवा करते हैं. 
पिछले अध्याय में भगवान ब्रह्मचर्य का पाठ पढाते हैं और यहाँ प्रक्रति का गुण ठहराते  हैं. 
सतो, रजो, तथा तमो गुणों का कहीं पर वर्गी करण करके अच्छा और बुरा करार देते है तो कहीं इसे संयुक्त कर के जीव स्वभाव बतलाते हैं. 
और क़ुरआन कहता है - - - 
>"बड़ी आली शान ज़ात है जिसने ये फैसले की किताब अपने बंद-ए-खास पर नाज़िल फरमाई ताकि तमाम दुन्या जहाँ को डराने वाला हो"
सूरह फुरकान-२५-१८वाँ पारा आयत (१)

गौर तलब है अल्लाह खुद अपने मुँह से अपने आप को आली शान कह रहा है. जिसकी शान को बन्दे शबो-रोज़ अपनी आँखों से खुद देखते हों, उसको ज़रुरत पड़ गई बतलाने और जतलाने की? कि मैं आलिशान हूँ. मुहम्मद को बतलाना है कि वह बन्दा-ए-खास हैं. जिनको उनके अल्लाह ने काम पर लगा रक्खा है कि बन्दों को झूटी दोज़ख से डराया करो कि यही चाल है कि तुझको लोग पैगम्बर मानें. 
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 24 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा.(55)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा.(55)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>जो व्यक्ति प्रकृति जीव तथा प्रकृति के गुणों को अंतः क्रिया से संबंधित इस विचार धारा को समझ लेता है, उसे मुक्ति की प्राप्ति सुनिश्चित है. 
उसकी वर्तमान स्थिति चाहे जैसी हो, 
यहाँ पर उसका पुनर जन्म नहीं होगा. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -13   श्लोक -24  
*अधूरा सत्य . यहाँ तक तो ठीक है कि जो व्यक्ति प्रकृति जीव तथा प्रकृति के गुणों को अंतः क्रिया से संबंधित इस विचार धारा को समझ लेता है, उसे मुक्ति की प्राप्ति सुनिश्चित है. उसकी वर्तमान स्थिति चाहे जैसी हो, 
इंसान इतना समझदार हो जाए तो ज़िन्दगी की तमाम हकीक़तें अफसाना ही तो होती हैं, जो जीवन में घटता है, हम उसके गवाह मात्र हो जाएँ तो समझदारी है, 
ग़ैर ज़रूरी अशांति से मुक्त हो सकते हैं. 
मगर यह पुनरजन्म अजीब मंतिक है जिसे हिन्दू धर्म गढे हुए है. 
पुनरजन्म पंडो का कथा श्रोत है. 
न पुनरजन्म होता हैं न पूर्व जन्म. 
बेटा इंसान का पुनरजन्म हैं तो बाप उसका पूर्व जन्म. 
हर जानदार का यही सच है, बाक़ी सब झूट और मिथ्य.  
और क़ुरआन कहता है - - - 
>ऐसे कुरान से जो मुँह फेरेगा वह रहे रास्त पा जायगा और उसकी ये दुन्या संवर जायगी. वह मरने के बाद अबदी नींद सो सकेगा कि उसने अपनी नस्लों को इस इस्लामी क़ैद खाने से रिहा करा लिया.
रूरह ताहा २० _ आयत (१०१-११२)
इंसान को और इस दुन्या की तमाम मख्लूक़ को ज़िन्दगी सिर्फ एक मिलती है, सभी अपने अपने बीज इस धरती पर बोकर चले जाते हैं और उनका अगला जनम होता है उनकी नसले और पूर्व जन्म हैं उनके बुज़ुर्ग. साफ़ साफ़ जो आप को दिखाई देता है, वही सच है, बाकी सब किज़्ब और मिथ्य है. कुदरत जिसके हम सभी बन्दे है, आइना की तरह साफ़ सुथरी है, जिसमे कोई भी अपनी शक्ल देख सकता है. इस आईने पर मुहम्मद ने गलाज़त पोत दिया है, आप मुतमईन होकर अपनी ज़िन्दगी को साकार करिए, इस अज्म के साथ कि इंसान का ईमान ए हाक़ीकी ही सच्चा ईमन है, इस्लाम नहीं. इस कुदरत की दुन्या में आए हैं तो मोमिन बन कर ज़िन्दगी गुज़ारिए,आकबत की सुबुक दोशी के साथ.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 23 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (54)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (54)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
> प्रक्रति तथा जीवों को अनादि समझना चाहिए. 
उनके विकार तथा गुण प्रकृतिजन्य हैं.
>>इस प्रकार जीव प्रकृति के तीनों गुणों का भोग करता हुवा 
प्रकृति में ही जीवन बिताता है. 
यह उस प्रकृति के साथ उसकी संगति के कारण है. 
इस तरह उसे उत्तम तथा अधम योनियाँ मिलती रहती हैं.

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -13   श्लोक - 20 -22 
*कभी कभी मन तरंग वास्तविकता को स्वीकार ही कर लेता है, 
हज़ार उसका मन पक्ष पाती हो. 
गीता के  यह श्लोक पूरी गीता की कृष्ण भक्ति को कूड़े दान में फेंकता है, 
भले ही गीता पक्ष  कोई " तात्पर्य " परस्तुत करता हो.  
श्लोक के इसी विन्दु को विज्ञान मानता है जो परम सत्य है. 
हम सभी जीवधारी इस "प्रकृतिजन्य" पर आधारित हैं. 
धर्मो और धर्म ग्रंथों ने केवल मानव को फिसलन में डाल दिया है. 
या यह कहा जा सकता है कि मानव स्वभाव ही फिसलन को पसंद करता है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
"हमने कुरान को आप पर इस लिए नहीं उतरा कि आप तकलीफ उठाएं बल्कि ऐसे शख्स के नसीहत के लए उतारा है कि जो अल्लाह से डरता हो" 
सूरह ताहा २० आयत २-३ 
ऐ अल्लाह ! तू अगर वाकई है तो सच बोल तुझे इंसान को डराना भला क्यूं अचछा लगता है ?क्या मज़ा मज़ा आता है कि तेरे नाम से लोग थरथरएं ? गर बन्दे सालेह अमल और इंसानी क़द्रों का पालन करें जिससे कि इंसानियत का हक अदा होता हो तो तेरा क्या नुकसान है? तू इनके लिए दोज्खें तैयार किए बैठा है, तू सबका अल्लाह है या कोई दूसरी शय ? 
तेरा रसूल लोगों पर ज़ुल्म ढाने पर आमादा रहता है. तुम दोनों मिलकर इंसानियत को बेचैन किए हुए हो. 
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 22 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (53)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (53)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>मुझ भगवान् में अपने चित्त को स्थिर करो
और अपनी सारी  बुद्धि मुझ में लगाओ.
इस प्रकार तुम निःसंदेह मुझ में वास करोगे.

>>हे अर्जुन ! हे धनञ्जय !!
 यदि तुम अपने चित को अविचल भाव से मुझ पर स्थिर नहीं कर सकते 
तो तुम भक्ति योग की विधि-विधानों का पालन करो.
इस प्रकार तुम मुझे प्राप्त करने की चाह पैदा करो. 

>>> यदि तुम यह अभ्यास नहीं कर सकते तो 
घ्यान के अनुशीलन में लग जाओ. 
लेकिन ज्ञान से श्रेष्ट ध्यान है
और ध्यान से भी श्रेष्ट कर्म फलों का परित्याग, 
क्योकि ऐसे त्याग से मनुष्य को मन शान्ति प्राप्त हो सकती है.

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 12  श्लोक -8 -9 -12  
*धार्मिकता मानव मस्तिष्क की दासता चाहती है. 
उसे तरह तरह के प्रलोभन देकर मनाया जाए 
और अगर इस पर भी न पसीजे तो इसे डरा धमका कर 
जैसा कि भगवान् अपने विकराल रूप अर्जुन को दिखलाता है 
कि डर के मारे अर्जुन की हवा निकल जाती है.  
गीता सार को जो प्रसारित और प्रचारित किया जाता है
 वह अलग अलग श्लोकों में वर्णित टुकड़ों का समूह समूह है 
जो अलग अलग संदर्भित है. 
हर टुकड़ा युद्ध को प्रेरित करने के लिए है 
मगर उसे संयुक्त करके कुछ और ही अर्थ विकसित किया गया है.  
आखिर भगवान् अपनी भक्ति के लिए क्यों बेचैन है ? 
कहते हैं कर्म करके फल को भूल जाओ. 
भला क्यों ? 
फल के लिए ही तो मानव कोई काम करता है. 
फल भक्त भूल जाए ताकि इसे भगवान् आसानी से हड़प ले. 
हम बैल हैं ? कि दिन भर हल जोतें और सानी पानी देकर मालिक फसल को भोगे ? यह गीता का घिनावना कार्य क्रम है जिसके असर में मनुवाद ठोस हुवा है 
और मानवता जरजर.
पडोसी चीन में धर्म को अधर्म क़रार दे दिया गया, 
वह भारत से कई गुणा आगे निकल गया है. 
यहाँ आज भी इनके बनाए हुए शूद्र और आदिवासी अथवा मूल निवासी ग़रीबी रेखा से निकल ही नहीं पा रहे. 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>मुहम्मदी अल्लाह के दाँव पेंच इस सूरह में मुलाहिज़ा हो - - -
"जो लोग काफ़िर हुए और अल्लाह के रस्ते से रोका, अल्लाह ने इनके अमल को क़ालअदम (निष्क्रीय) कर दिए. और जो ईमान लाए, जो मुहम्मद पर नाज़िल किया गया है, अल्लाह तअला इनके गुनाह इनके ऊपर से उतार देगा और इनकी हालत दुरुस्त रक्खेगा."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१-२)

मुहम्मद की पयंबरी भोले भाले इंसानों को ब्लेक मेल कर रही है जो इस बात को मानने के लिए मजबूर कर  रही है कि जो गैर फ़ितरी है. क़ुदरत का क़ानून है कि नेकी और बदी का सिला अमल के हिसाब से तय है,ये  इसके उल्टा बतला रही है कि अल्लाह आपकी नेकियों को आपके खाते से तल्फ़ कर देगा. कैसी बईमान मुहम्मदी अल्लाह की खुदाई है? किस कद्र ये पयंबरी झूट बोलने  पर आमादः है.
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 21 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (52)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (52)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>अतः उठ्ठो ! लड़ने के लिए तैयार हो ओ और यश अर्जित करो. अपने शत्रुओं को जित कर संपन्न राज्य का भोग करो.यह सब मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं और हे सव्यसाची ! तुम तो युद्ध में केवल निमित्त मात्र हो.
द्रोंण, भीष्म,  जयद्रथ, कर्ण और अन्य महँ योद्धा पहले ही मरे जा चुके हैं, अतः तुम उनका वध करो और तनिक भी विचलित न हो ओ. तुम केवल युद्ध करो. युद्ध में तुम अपने शत्रुओं को परास्त करो.  

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -11   श्लोक -33-  34 
*कृष्ण अपना भयानक रूप दिखला कर अर्जुन को फिर युद्ध के लिए वरग़लाते हैं. 
पिछले अध्यायों में ब्रह्मचर्य का उपदेश देते हैं और अब भोग विलास का मश्विरह. 
कहते हैं काम तो मैंने सब का पहले ही तमाम कर दिया है, 
तुम केवल नाम के लिए उनकी हत्या करो. 
अगर बंदा ऐसा करे तो ब्लेक मेलिंग और भगवान् करे तो गीता ?
और क़ुरआन कहता है - - - 
>''और इनमें (जेहाद से गुरेज़ करने वालों) से अगर कोई मर जाए तो उस पर कभी नमाज़ मत पढ़ें, न उसके कब्र पर कभी खड़े होएँ क्यूं कि उसने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और यह हालाते कुफ्र में मरे. हैं''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (८४)
इब्नुल वक़्त (समय के संतान) ओलिमा और नेता यह कहते हुए नहीं थकते कि इस्लाम मेल मोहब्बत, अख्वत और सद भाव सिखलता है, आप देख रहे हैं कि इस्लाम जिन्दा तो जिन्दा मुर्दे से भी नफरत सिखलाता है. कम लोगों को मालूम है कि चौथे खलीफा उस्मान गनी मरने के बाद इसी नफ़रत के शिकार हो गए थे, उनकी लाश तीन दिनों तक सडती रही, बाद में यहूदियों ने अज़ राहे इंसानियत उसको अपने कब्रिस्तान में दफ़न किया। 
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 20 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (51)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (51)

अर्जुन हैरान है भगवान् के भगवत को देख कर - - -
>धृष्टराष्ट्र के सारे पुत्र, अपने समस्त सहायक राजाओं सहित 
तथा भीष्म, द्रोण, कर्ण एवं हमारे प्रमुख योद्धा भी आपके विकराल मुंह में प्रवेश कर रहे हैं. उनमें तो कुछ के शिरों को तो मैं आपके दातों में चूर्णित हुवा देख रहा हूँ.

>>जिस प्रकार नदियों की अनेक तरंगें समुद्र में प्रवेश करती हैं, 
उसी प्रकार यह समस्त महान योद्धा आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं.

>>>हे विष्णु ! मैं देखता हूँ कि आप अपने प्रज्वलित मुखों से सभी दिशाओं के लोगों को निंगले जा रहे हैं.
आप सारे ब्रह्माण्ड को अपने तेज से आपूरित करके अपनी विकराल झुलसाती किरणों सहित प्रकट हो रहे हैं.

*भगवान् ने कहा ---समस्त जगतों को विनष्ट करने वाला काल मैं हूँ 
और मैं यहाँ समस्त लोगों का विनाश करने के लिए आया हूँ. 
तुम्हारे (पांडवों के) सिवा दोनों पक्षो के सारे योद्धा मारे जाएँगे. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 11  श्लोक - 26-27 -29 -30 -32 
*हिन्दुओ !
 क्या तुम्हारा भगवान् इतना अन्न्याई और पक्ष पाती हुवा करता है? 
गीता ने सारे अवगुण उसमें भर दिए हैं. 
यह तो जिहादियों से भी सौ गुणा जल्लाद है. 
जिहादी सर पे तलवार लेकर खड़ा हो जाता है कि 
"कालिमा पढ़ कर मुसलमान हो जाओ, 
या हमें अपने जीने का हक (जज़िया) अदा करो 
या आखिर शर्त है कि मुझ से मुक़ाबिला करो." 
दो सूरतों में जीवित रहने का हक जिहादी १००% देता है और 
तीसरी में 50%. वह भी अपनी जान की बाज़ी लगा कर. 
यहाँ तो भगवान् अपने और पराय सभी निंगलते जा रहे हैं ?
भीष्म, द्रोण, कर्ण जैसे निर्दोष को भी. 
वह तो भेड़िया नज़र आता है, 
उसके  दातों में यह महान चूर्णित हो रहे हैं. 
मैं तुम्हारी आस्था को चोट नहीं पहुँचाना नहीं चाहता, 
बल्कि तुम्हारी ऐसी आस्था का संहार करना चाहता हूँ. 
मैं चाहता हूँ तुम्हारी पीढियां इन मिथक को धिक्कारें और जीवन तरंग को समझे. जीवन तरंग लौकिक और वैज्ञानिक विचारों में अंगडाई लेती है, 
इन ढोंगियों की रचना तुम्हें सुलाती हैं या फिर कपट सिखलाती हैं.
और क़ुरआन कहता है - - - 
>"ये लोग हैं जिनको अल्लाह तअला ने अपनी रहमत से दूर कर दिया, फिर इनको बहरा कर दिया और फिर इनकी आँखों को अँधा कर दिया तो क्या ये लोग कुरआन में गौर नहीं करते या दिलों में कुफल लग रहे हैं. जो लोग पुश्त फेर कर हट गए बाद इसके कि सीधा रास्ता इनको मालूम हो गया , शैतान ने इनको चक़मा दे दिया और इनको दूर दूर की सुझाई है."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (२३-२५)

जब अल्लाह तअला ने उन लोगों को कानों से बहरा और आँखों से अँधा कर दिया और दिलों में क़ुफ्ल डाल दिया तो ये कुरआन की गुमराहियों को कैसे समझ सकते हैं? वैसे मुक़दमा तो उस अल्लाह पर कायम होना चाहिए कि जो अपने मातहतों को अँधा और बहरा करता है और दिलों पर क़ुफ्ल जड़ देता है मगर मुहम्मदी अल्लाह ठहरा जो गलत काम करने का आदी.. शैतान मुहम्मद बनी ए   नव इंसान को चकमा दे गया. की कौम पुश्त दर पुश्त गारों में गर्क़ है.
***

*****
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 19 April 2020

खेद है कि यह वेद है (50)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (50)

हे यज्ञकर्ताओं में श्रेष्ट अग्नि ! यज्ञ में देवों की कामना करने वाले यजमानों के कल्याण के लिए देवों की पूजा करो. होता एवं यजमानों को प्रसन्नता देने वाले, तुम अग्नि शत्रुओं को पराजित करके करके सुशोभित होते हो. 
तृतीय मंडल सूक्त 10(7)
इन मुर्खता पूर्ण मन्त्रों का अर्थ निकलना व्यर्थ है. 
एक लालची नव जवान सिद्ध बाबा के दरबार में गया जिनके बारे में नव जवान ने सुन रख्का था कि उनके पास पारस ज्ञान है. नव जवान ने बाबा की सेवा में अपने आप को होम दिया. छः महीने बाद बाबा ने पूछा - 
कौन हो ? कहाँ से आए हो ? मुझ से क्या चाहते हो ? 
नव जवान की लाट्री लग गई. वह बाबा के पैर पकड़ कर बोला
 बाबा ! मुझे परस ज्ञान देदें. 
बाबा ने हंस कर कहा, बस इतनी सी बात ? 
बाबा ने विसतर से नव जवान को परस गढ़ने का तरीका बतलाया, 
जिसे किसी धातु में स्पर्श मात्र से धातु सोना बन जाती है. 
बाबा ने कहा अब तुम जा सकते हो. 
नव जवान का दिल ख़ुशी से बल्लियों उछल गया. 
जाते हुए उसे बाबा ने रोका कि ज़रूरी बात सुनता जा. 
खबरदार ! 
पारस गढ़ने के दरमियान बन्दर का ख्याल मन में नहीं लाना. 
वह तमाम उम्र पारस बनता रहा और बन्दर की कल्पना को भूलने की कोशिश करता रहा.
इसी तरह कुछ मित्रों ने मुझे राय दिया है कि वेद की व्याख्या करते समय, 
सत्य को बीच में न लाना. 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
हे अग्नि ! 
समस्त देव तुम्हीं में प्रविष्ट हैं, 
इस लिए हम यज्ञों में तुम से समस्त उत्तम धन प्राप्त करें .
तृतीय मंडल सूक्त 11(9)
यह कैसा वेद है जो हर ऋचाओं में अग्नि और इंद्र आदि देवों के आगे कटोरा लिए खड़ा रहता है. कभी अन्न मांगता है तो कभी धन. क्या वेद ज्ञान ने लाखों लोगों को निठल्ला नहीं बनाता है? धर्म को तो चाहिए इंसान को मेहनत मशक्कत और गैरत की शिक्षा दे, वेद तो मानव को मुफ्त खोर बनता है.
कौन सा चश्मा लगा कर वह पढ़ते है जो मुझे राय देते हैं कि इसे समझ पाना मुश्किल है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 18 April 2020

खेद है कि यह वेद है (49)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (49)

हे ऋत्वजो !
पवित्र प्रकाश वाले, लकड़ियों पर सोने वाले 
एवं शोभन यज्ञ युक्त अग्नि में हवन करो 
एवं यज्ञ कर्म में व्याप्त, देवों के दूत, शीघ्रा गामी, 
पुरातन स्तुति योग्य एवं दीप्त संपन्न अदनी की शीघ्र पूजा करो .   
तृतीय मंडल सूक्त  9 (8) 
विद्योत्मा से हारे हुए पंडितों ने मूरख कालिदास को पकड़ा 
और उसे यकीन दिलाया कि तेरी शादी राजकुमारी से करा दें, तो कैसा रहेगा. कालिदास के मुंह में पानी आ गया, 
बोला पंडितो ! तुम्हारी जय. 
पंडितों ने शर्त रखी कि तुम उसके सामने मुंह न खोलना, 
इशारा चाहे जैसा कर देना. 
विद्योत्मा ज्ञान का सागर थी, मुकाबिले में महा मूरख कालिदास था. 
विद्योत्मा ने इशारे में ही कालिदास से मुकाबला शुरू किया, 
उसने एक उँगली उठा कर "एक परमात्मा के स्तित्व स्वीकारने का सवाल किया"
मूरख समझा विद्योत्मा मेरी एक आँख फोड़ने की धमकी दे रही है. 
जवाब में उसने अपनी दो उँगलियां विद्योत्मा को आँखों के सामने कर दिया. 
गोया "मैं तुम्हारी दोनों आँखें फोड़ दूंगा." 
शाश्त्रार्थ समाप्त हुवा. पंडितों ने विद्योत्मा को कायल कर दिया कि परमात्मा के साथ आत्मा का भी स्तित्व होता है.
वेद के अधिकतर मन्त्र कालिदास के संकेत हैं 
जिसमे चतुराई माने और मतलब भर करती है.
वेद मन्त्र तब तक कूड़ेदान के हवाले नहीं होंगे, 
जब तक कि भारत के अवाम महा मुरख कालिदास से महा कवि कालिदास 
नहीं बन जाते. तब तक विद्योत्मा ठगाती रहेगी, पांडित्व ठगता रहेगा.  
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 17 April 2020

खेद है कि यह वेद है (48)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (48)

हे बनस्पति निर्मित यूप ! 
यज्ञं में देवों की अभिलाषा करते हुए 
अध्वर्यु आदि देव संबंधी घी में तुम्हें भिगोते हैं. 
तुम चाहे ऊंचे खड़े रहो अथवा इस धरती माता की गोद में निवास करो, 
पर तुम हमें धन प्रदान करो.  
तृतीय मंडल सूक्त  8 (1) 
धन लोभी पुजारी के पैरोकार हिन्दू समाज भी धन के लिए तमाम मानव मूल्यों को रौंदता हुवा अपने लक्ष को पता है. इनके मंदिरों के पास इतना धन है कि देश की अर्थ व्योस्था इनके आगे हाथ जोड़े खडी रहती है. यह पापी असहाय मानुस को अपना हिस्सा और अपना हक मांगने पर इन्हें नक्सली और माओ वादी कह कर गोलियों से भून देते हैं.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 16 April 2020

खेद है कि यह वेद है (47)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (47)

हे नित्य गमनशील अग्नि !
जिन उषाओं से अन्न द्वारा विधि पूर्वक यज्ञं किया जाता है, 
शोभन स्तुत्याँ बोली जाती हैं 
एवं जो पक्षियों एवं मानवों के विविध शब्दों से पहचानी जाती हैं, 
वे उषाएँ तुम्हारे लिए संपत्ति शालनी बन कर प्रकाशित होती हैं.
हे अग्नि ! तुम अपनी विस्तीर्ण ज्वाला की विशालता से 
यजमान द्वारा किया हुवा सारा पाप समाप्त करो.
तृतीय मंडल सूक्त 7(10) 
इस तरह वेद मन्त्र से यजमान के सारे पाप धुल जाते हैं 
और दूसरे दिन से वह फिर पाप कर्म की शुरुआत कर देता है, 
इस तरह हिन्दू धर्म का कारोबार चलता रहता है. 
समस्त मानव कल्याण का उद्घोष वेदों में ढूँढा जाए तो कहीं नहीं मिलेगा. 
आज भी यज्ञं हिन्दू समाज में प्रचलित है, 
अब तो सरकारी स्तर पर इसका चलन हो रहा है.
फिर मनु विधान की आमद आमद है 
या किसी खुनी इन्कलाब का इंतज़ार किया जाए. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 15 April 2020

खेद है कि यह वेद है (46)


खेद  है  कि  यह  वेद  है   (46)

महान एवं यजमानों द्वारा चाहे गए, 
अग्नि धरती और आकाश के बीच अपने उत्तम स्थान पर स्थिति होते हैं. 
चलने वाली सूर्य रुपी एक ही पति की पत्नियाँ, 
जरा रहित, दूसरों द्वारा अहिंसित एवं जल रूपी दूध लेने वाले, 
धरती एवं आकाश, उस शीघ्र गामी अग्नि की गाएँ हैं.  
तृतीय मंडल सूक्त 6(4) 
कोई तत्व, कोई पैगाम, कोई सार, कोई आसार नज़र आते हैं इन मन्त्रों में ?  
आज इक्कीसवीं सदी में क़ुरआन के साथ साथ इन वेदों पर भी बैन लगना चाहिए जो जिहालत की  बातें करते हैं. 
मेरे परमर्श दाता वेद को समझने के लिए कई मशविरे देते हैं 
जैसे मुल्ला कहते हैं क़ुरआन पढने से पहले नहा धोकर और वजू करके पाक होना चाहिए .
मतलब ये है कि मन को इन्हें स्वीकारने के लिए तैयार करना चाहिए.
यह किताबें कोई प्रेमिकाए नहीं जिनके मिलन से पहले कल्पनाएँ करनी पड़ती है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 14 April 2020

खेद है कि यह वेद है (45)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (45)

उषा को जानते हुए जो मेघावी अग्नि कांतदर्शियों के मार्ग पर जाते हुए जगे थे, 
वही परम तेजस्वी अग्नि देवों को चाहने वाले लोगों द्वारा प्रज्वलित होकर अज्ञान के जाने के द्वार खोलते हैं.
तृतीय मंडल सूक्त 5 (1)
अग्नि की हमारी बस इतनी सी पहचान है कि यह हिन्दुओं को मालामाल करती है और मुसलमानों को दोज़ख़ में तडपा तडपा कर भूनती है. 
पंडित इस अग्नि महिमा को गाकर हलुवा पूरी उड़ाते हैं 
और मुल्ले इसके तुफैल में मुर्ग मुसल्लम डकारते हैं. 
यह दोनों जीव अग्नि के और कोई रूप जानते भी नहीं.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 13 April 2020

खेद है कि यह वेद है (44)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (44)

हे अत्यधिक प्रज्वलित अग्नि ! 
तुम उत्तम मन से जागो. 
तुम अपने इधर उधर फैलने वाले तेज के द्वारा हमें धन देने की कृपा करो. 
हे अतिशय द्योतमान अग्नि ! 
देवों को हमारे यज्ञं में लाओ. 
तुम देवों के मित्र हो. 
अनुकूलता पूर्वक देवों का यज्ञं करो. 
तृतीय मंडल सूक्त 4  (1 )
प्राचीन काल में ईरानी अग्नि पूजा करते थे. ज़रतुष्ट ईरानी पैग़म्बर हुवा करता था जिसके मानने वाले इस्लामी गलबा और हमलों से परेशान होकर भारत आ गए जो आज पारसी कहे जाते हैं. ईरान का पुराना नं फारस था, उसी रिआयत से फारसी हुए, फिर पारसी हो गए. पारसी आज भी अग्नि पूजा करते हैं. आर्यन भी ईरान के मूल निवासी हैं, दोनों अपने पूर्वजों की पैरवी में अग्नि पूजक हैं.
बेचारी अग्नि इस बात से बेखबर है कि वह पूज्य है या पापन??
जब तक हम पूरबी लोग अपनी सोच नहीं बदलते पश्चिम के बराबर नहीं हो सकते, भले ही स्वयंभू जगत गुरु बने रहें.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 12 April 2020

खेद है कि यह वेद है (43)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (43)

मेघावी स्तोता सन्मार्ग मार्ग प्राप्त क्कारने के लिए परम बल शाली, 
वैश्यानर अग्नि के प्रति यज्ञों में सुन्दर स्तोत्र पढ़ते है. 
मरण रहित अग्नि हव्य के द्वारा देवों की सेवा करते हैं. 
इसी कारण कोई भी सनातन धर्म रूपी यज्ञों को दूषित नहीं करता.
तृतीय मंडल सूक्त 3 (2)
सुन्दर स्तोत्र वेद में किसी जगह नज़र नहीं आते. 
हाँ ! छल कपट से ज़रूर पूरा  ऋग वेद पटा हुवा है. 
अग्नि हव्य को किस तरह लेकर जाती है कि देवों को खिला सके. 
कहाँ बसते हैं ये देव गण ?
यही लुटेरे बाह्मन हिन्दुओं के देव बने बैठे हैं.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 11 April 2020

खेद है कि यह वेद है (42)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (42)

अग्नि ने उत्पन्न होते ही धरती और आकाश को प्रकाशित किया 
एवं अपने माता पिता के प्रशंशनीय पुत्र बने. 
हव्य वहन करने वाले, यजमान को अन्न देने वाले, 
अघृष्य एवं प्रभायुक्त अग्नि इस प्रकार पूज्य हैं, 
जैसे मनुष्य अतिथि की पूजा करते हैं. 
तृतीय मंडल सूक्त 2 (2)
अन्धविश्वाशी हिन्दू हर उस वस्तु को पूजता है, जिससे वह डरता है, 
या फिर जिससे उसकी लालच जुडी हुई होती है. 
पहले सबसे ज्यादा खतरनाक वस्तु आग हुवा करती थी, 
इस से सबसे ज्यादा डर हुवा करता था लिहाज़ा उन्हों ने इसे बड़ा देव मान लिया 
और इसके माता पिता भी पैदा कर दिया.
पुजारी यजमान को जताता है कि अग्नि उसके लिए हव्य और अन्न मुहया करती  है, इस लिए इसकी सेवा अथिति की तरह किया जाए. 
अग्नि तो हवन कुंड में होती है, सेवा पंडित जी अपनी करा रहे है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 8 April 2020

खेद है कि यह वेद है (41)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (41)

*हे वायु ! तुम्हारे पास जो हजारों रथ हैं, 
उनके द्वारा नियुत गणों के साथ सोमरस पीने के लिए आओ.
*हे वायु नियुतों सहित आओ. 
यह दीप्तमान सोम तुम्हारे लिए है. 
तुम सोमरस निचोड़ने यजमान के घर जाते हो. 
* हे नेता इंद्र और वायु आज नियुतों के साथ गव्य (पंचामृति) मिले सोम पीने के लिए आओ.
द्वतीय मंडल सूक्त 41 (1) (2) (3)

* हजारो रथ पर सवार अकेले इंद्र देव कैसे आ सकते हैं ? वह भी  एक जाम पीने के लिए ?? पुजारी देव को परम्परा याद दिलाता है कि 
"तुम सोमरस निचोड़ने यजमान के घर जाते हो."
हमारा मक़सद किसी धार्मिक आस्था वान को ठेस पहुचना नहीं है. 
उनको जगाना है कि इन मिथ्य परम्पराओं को समझें और जागें. 
यह रूकावट बनी हुई हैं इंसान के लिए कि वह वक़्त के साथ क़दम मिला कर चले. 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 6 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (50)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (50

अर्जुन चकित होकर कहता है - - -
>आप आदि हैं मध्य तथा अंत से रहित हैं. 
आपका यश अनंत है. 
आपकी असंख्य भुजाएं हैं 
और सूर्य तथा चंद्रमा आपकी आँखें हैं. 
मैं आपके मुख से प्रज्वलित अग्नि निकलते और आपके तेज से इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड को जलते हुए देख रहा हूँ.

>>यद्यपि आप एक हैं, 
किन्तु आप आकाश तथा सारे लोकों एवं उनके बीच के समस्त अवकाश में व्याप्त हैं. 
हे महा पुरुष ! 
आपके इस अद्भुत तथा भयानक रूप को देख कर सारे  लोक भयभीत हैं. 

>>>हे महाबाहू ! 
आपके इस अनेक मुख, नेत्र,बाहू, जंघा, पेट 
तथा भयानक दाँतों वाले विराट रूप को देख कर देव गण सहित 
सभी लोक अत्यंत विचलित हैं और उन्हीं की तरह मैं भी. 

>>>>हे सर्व व्यापी विष्णु ! 
नाना ज्योतिर्मय रंगों से युक्त आपको आकाश का स्पर्श करते, 
मुंह फैलाए तथा बड़ी बड़ी चमकती आँखें निकाले देख कर 
भय से मेरा मन विचलित है. 
मैं न धैर्य धारण कर पा रहा हूँ न मानसिक संतुलन ही पा रहा हँ.

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 11  श्लोक -19-20-23 -24  
*भगवान् कृष्ण के ऐसे फूहड़ रूप, क्या किसी सभ्य पुरुष को नागवार नहीं होगा ?
ऐसी बेहूदा चित्रण. गंभीर हिन्दुओं के लिए यह सोचने का विषय है. 
हमने एक छोटा सा जीवन जीने के लिए पाया है या इन आडंबरों को ढोने केलिए ?
पाई है हमने जहाँ में गुल के मानिंद ज़िन्दगी,
रंग बन कर आए हैं, बू बन के उड़ जाएँगे हम. 
और क़ुरआन कहता है - - - 
>''और अगर आप को तअज्जुब हो तो उनका ये कौल तअज्जुब के लायक है 
कि जब हम खाक हो गए, क्या हम फिर अज़ सरे नव पैदा होंगे. 
ये वह लोग हैं कि जिन्हों ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया 
और ऐसे लोगों की गर्दनों में तौक़ डाले जाएँगे 
और ऐसे लोग दोज़खी हैं.वह इस में हमेशा रहेंगे.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (५)
यहूदियत से उधार लिया गया ये अन्ध विश्वास मुहम्मद ने मुसलामानों के दिमाग़ में भर दिया है कि रोज़े महशर वह उठाया जाएगा, फिर उसका हिसाब होगा और आमालों की बुन्याद पर उसको जन्नत या दोज़ख की नई ज़िन्दगी मिलेगी. 
आमाले नेक क्या हैं ? 
नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, और अल्लाह एक है का अक़ीदा जो कि दर अस्ल नेक अमल हैं ही नहीं, बल्कि ये ऐसी बे अमली है जिससे इस दुन्या को कोई फ़ायदा पहुँचता ही नहीं, आलावा नुकसान के.
हक तो ये है कि इस ज़मीन की हर शय की तरह इंसान भी एक दिन हमेशा के लिए खाक नशीन हो जाता है बाकी बचती है उस की नस्लें जिन के लिए वह बेदारी, खुश हाली का आने आने वाला कल । वह जन्नत नुमा इस धरती को अपनी नस्लों के वास्ते छोड़ कर रुखसत हो जाता है 
या तालिबानियों के वास्ते .
***


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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 5 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (49)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (49)

अध्याय ग्यारा में भगवन कृष्ण के विराट और विचित्र रूप का चित्रण है 
जिसमे कहानी कार ने अलौकिकता की हदें पार करदी हैं.  
उस धूर्त ने भविष्य की कल्पना भी नहीं की कि एक युग ऐसा भी आएगा कि जनता उसकी तरह ही शिक्षित हो जाएगी, तब उस पर धिक्कार की वर्षा होगी. 
 दुःख इस बात का है कि प्रजा शिक्षित तो हो चुकी है मगर राजा अलौकिकता को पचाए हुए है. 
आज भी इन कपोल कल्पित कथाओं को हाथों में लेकर इनकी शपत ली जाती है. अदालत एलानिया अंधी होती है , संविधान पर चलती है जो राजा का होता है.

अर्जुन पूछते हैं - - - 
हे पुरोशोत्तम ! 
हे परमेश्वर !! 
यद्यपि आप को मैं अपने समक्ष आपके द्वारा वर्णित आपके वास्तविक रूप में देख रहा हूँ, किन्तु मै यह देखने का इच्छुक हूँ कि आप इस दृश्य जगत में किस प्रकार प्रविष्ट हुए हैं. मैं आपके उसी रूप का दर्शन करना चाहता हूँ. 
** हे प्रभु ! 
हे योगेश्वर !! 
यदि आप सोचते हैं कि मैं आपके विश्व रूप को देखने में समर्थ हो सकता हूँ, तो कृपा करके मुझे अपना असीम विश्व रूप दिखलाइए.
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>किन्तु तुम मुझे अपनी इन आँखों से नहीं देख सकते. 
अतः मैं तुम्हें दिव्य आँखे दे रहा हूँ. अब मेरे योग ऐश्वर्य को देखो.
>>अर्जुन ने उस विश्व रूप में असंख्य मुख असंख्य नेत्र तथा असंख्य आश्चर्यमय दृश्य देखे. ये रूप अनेक  दैवी आभुश्नों से आलंकृत था और अनेक दैवी हथियार उठाए हुए था. यह दैवी मालाएँ तथा वस्त्र धारण किए था 
और उस पर अनेक दिव्य सुगन्धियाँलगी थीं. सब कुछ आश्चर्य मय, तेज मय, असीम तथा सर्वत्र व्याप्त था.
>>>यदि आकाश में हजारों सूर्य एक साथ उदय हों, 
तो उनका प्रकाश शायद परम पुरुष के इस विश्व रूप तेज की समता कर सके. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -11  - श्लोक -3 +4 + 10 11 +12+++++
>मैंने अपनी इन दिव्य आँखों से देखा कि भगवान् के शरीर पर रखे बड़े बड़े हौदों के आकार में रख्खी थालियों में सजे स्वादिष्ट व्यंजन, हजारों तोंद्यल बरहमन जनेऊ चढ़ाए अपने उदर में टून्स ठूंस कर भर रहे थे. वहीँ दूसरी ओर वंचित, दलित और शोषित प्रजा कीमती और सुगन्धित पकवान को देख देख कर और सूंघ सूंघ कर ही आनंदित हो रही थी और तालियाँ बजा रही थी.
और क़ुरआन कहता है - - - 
>''वह ऐसा है कि उसने ज़मीन को फैलाया और उसमे पहाड़ और नहरें पैदा कीं और उसमे हर किस्म के फलों से दो दो किस्में पैदा किए. रात से दिन को छिपा देता है. इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है. और ज़मीन में पास पास मुख्तलिफ़ टुकड़े हैं और अंगूरों के बाग़ है और खेतयाँ हैं और खजूरें हैं जिनमें तो बअजे ऐसे है कि एक तना से जाकर ऊपर दो तने हो जाते हैं और बअज़े में दो तने नहीं होते, सब को एक ही तरह का पानी दिया जाता है और हम एक को दूसरे फलों पर फौकियत देते हैं इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (३-४)

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 4 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (48)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (48)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>यही नहीं , हे अर्जुन ! मैं समस्त सृष्टि का जनक बीज हूँ. 
ऐसा चर अचर कोई भी प्राणी नहीं जो मेरे बिना जीवित रह सके.
**तुम जान लो कि सारा ऐश्वर्य, सौन्दर्य तथा तेजस्वी सृष्टियाँ 
मेरे तेज के एक स्फुलिंग मात्र से उद्भूत हैं.
***किन्तु हे अर्जुन ! 
इस सारे विषद ज्ञान की आवश्यकता क्या है ? 
मैं तो अपने एक अंश मात्र से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में
 व्याप्त होकर इसको धारण करता हूँ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -10  श्लोक - 39 +41+42 
> गीता ज्ञान नहीं, अज्ञान है. इसके नायक की लफ्फाजी में कोई ज्ञान की बात है ? कोई विज्ञान का विन्दु है ? चतुर भृगु अक्षर ज्ञान और काव्य विधा में निपुण, जनता को धर्म का बंधक बनाता है. 
शिक्षा का दुरुपयोग करता है. 
उस समय शिक्षित होना ही बड़ी बात हुवा करती थी जब गीता की संरचना हुई. 
अशिक्षि त समाज में शिक्षित की बात ही मुसतनद मानी जाती थी. 
गीता रच कर रचैता ने मनुवाद को अंतिम रूप दिया है.  
जब इन्ही बातों को हवा की निरंकार मूर्ति अर्थात अल्लाह क़ुरान में बयान करता है तो गीता भक्तों के तन मन में आग लग जाती है, 
ऐसे ही मुसलमान गीता श्लोकों को कुफ्र कहता है. 
अस्ल में दोनों ही धर्म के धंधे हैं, दोनों मानव समाज को ज़हर परोसते हैं. 
और क़ुरआन कहता है - - - 
>उम्मी (निरक्षर) मुहम्मद सदियों पहले अंध वैश्वासिक युग में हुए. 
उन्होंने इर्तेक़ा (रचना क्रिया) के पैरों में ज़ंजीर डाल कर युग को और भी सदियों पीछे ढकेल दिया. इस्लाम से पहले अरब योरोप से आगे था, खुद इसे योरोपियन दानिश्वर तस्लीम करते हैं और अनजाने में मुस्लिम आलिम भी मगर मुहम्मद ने सिर्फ अरब का ही नहीं दुन्या के कई टुकड़ों का सर्व नाश कर दिया.
युग का अँधेरा दूर हो गया है, धरती के कई हिस्सों पर रातें भी दिन की तरह रौशन हो गई मगर मुहम्मद का नाज़िला (प्रकोपित) अंधकार मय इस्लाम अपनी मैजिक आई लिए मुसलमानों को सदियों पुराने तमाशे दिखा रहाहै.
 
आइए अब अन्धकार युग के मैजिक आई कि तरफ़ चलें . . . 
''और हम ही हवाओं को भेजते हैं जो कि बादलों को पानी से भर देती हैं फिर हम ही आसमान से पानी बरसते हैं फिर तुम को पीने को देते हैं और तुम जमा करके न रख सकते थे और हम ही ज़िन्दा करते मारते हैं और हम ही रह जाएँगे.
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (२१-२३)
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 3 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (47)



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (47)

>अर्जुन ने कहा - - - 

हे कृष्ण ! 

आपने मुझ से जो कुछ कहा है, 

उसे मैं पूर्णतया सत्य मानता हूँ . 

हे प्रभु ! 

न तो देव गण न असुर गणही आपके स्वरूप को समझ सकते हैं.

** हे परमपुरुष ! 

हे सब के उदगम हे समस्त प्राणियों के स्वामी !

हे देवों के देव  हे ब्रह्माण्ड के प्रभु !

हे ब्रह्माण्ड के प्रभु !

निःसंदेह एक मात्र आप ही अपने को अपनी अंतरंगाशक्ति से जानने वाले हैं. 

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -  10 - श्लोक -14 15 

>एक मात्र प्राणी अर्जुन ही भगवान के हत्थे चढ़ा कि उसको भगवान् चट गए. अर्जुन ने सारथी इस लिए उनको बनाया था कि शायद कुछ युद्ध कौशल उनमे हो, एक भी दांव पेच उसे न बतला सके, सिवाय अपनी महिमा बखान करने के. अपने भगवनत्व का घड़ा सारा का सारा अर्जुन के सर उंडेल दिया. उसने तंग आकर कृष्ण जी को ताड के झाड पर चढ़ा दिया. 

महाराज ! मेरा पिंड छोड़ो, 

"निःसंदेह एक मात्र आप ही अपने को अपनी अंतरंगाशक्ति से जानने वाले हैं." 

और क़ुरआन कहता है - - - 

>''और अगर आप के रब को मंज़ूर होता तो सब आदमियों को एक ही तरीका का बना देते और वह हमेशा इख्तेलाफ़ करते रहेंगे. मगर जिस पर आप के रब की रहमत हो.और इसने लोगों को इसी वास्ते पैदा किया है और आप के रब की बात पूरी होगी कि मैं जहन्नम को जिन्नात और इन्सान दोनों से भर दूंगा.

सूरह हूद -११, १२-वाँ परा आयत (११६-११९)

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 2 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (46)

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शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (46)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>मेरे शुभ भक्तों के विचार मुझ में वास करते हैं. 
उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं 
और वह एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते हैं 
तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परम संतोष 
तथा आनंद का अनुभव करते हैं.
** जो प्रेम पूर्वक मेरी सेवा करने में परंपर लगे रहते हैं, 
उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ. 
जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -  10  श्लोक - 9 +10 
>गीता के भगवान् कैसी सेवा चाहते हैं ? 
भक्त गण उनकी चम्पी  किया करें ? 
हाथ पाँव दबाते रहा करें ? 
मगर वह मिलेंगे कहाँ ? 
वह भी तो हमारी तरह ही क्षण भंगुर थे. 
मगर हाँ ! वह सदा जीवित रहते है, 
इन धर्म के अड्डों पर. 
इन अड्डों की सेवा रोकड़ा या सोने चाँदी के आभूषण भेंट देकर करें. इनके आश्रम में अपने पुत्र और पुत्रियाँ भी इनके सेवा में दे सकते हैं.  
यह इस दावे के साथ उनका शोषण करते हैं कि 
"कृष्ण भी गोपियों से रास लीला रचाते थे." 
धूर्त बाबा राम रहीम की चर्चित तस्वीरें सामने आ चुकी हैं. 
अफ़सोस कि हिदू समाज कितना संज्ञा शून्य है.
और क़ुरआन कहता है - - - 
>" आप फरमा दीजिए क्या मैं तुम को ऐसी चीज़ बतला दूँ जो बेहतर हों उन चीजों से, ऐसे लोगों के लिए जो डरते हैं, उनके मालिक के पास ऐसे ऐसे बाग हैं जिन के नीचे नहरें बह रही हैं, हमेशा हमेशा के लिए रहेंगे, और ऐसी बीवियां हैं जो साफ सुथरी की हुई हैं और खुश नूदी है अल्लाह की तरफ से बन्दों को."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (15)

देखिए कि इस क़ौम की अक़्ल को दीमक खा गई। अल्लाह रब्बे कायनात बंदे मुहम्मद को आप जनाब कर के बात कर रहा है, इस क़ौम के कानों पर जूँ तक नहीं रेगती. अल्लाह की पहेली है बूझें? अगर नहीं बूझ पाएँ तो किसी मुल्ला की दिली आरजू पूछें कि वह नमाजें क्यूँ पढता है? ये साफ सुथरी की हुई बीवियां कैसी होंगी, ये पता नहीं, अल्लाह जाने, जिन्से लतीफ़ होगा भी या नहीं? औरतों के लिए कोई जन्नती इनाम नहीं फिर भी यह नक़िसुल अक्ल कुछ ज़्यादह ही सूम सलात वालियाँ होती हैं। अल्लाह की बातों में कहीं कोई दम दरूद है? कोई निदा, कोई इल्हाम जैसी बात है? दीन के कलम कारों ने अपनी कला करी से इस रेत के महेल को सजा रक्खा है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 1 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (45)



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (45)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>बुद्धि, ज्ञान, संशय तथा मोह से मुक्ति, क्षमा भाव, सत्यता, इन्द्रिय निग्रह, मन निग्रह, सुख तथा दुःख, जन्म, मृतु, भय, अभय, अहिंसा, समता, तुष्टि, तप, दान, यश तथा अपयश -- जीवों के यह विभिन्न गुण मेरे ही द्वारा उत्पन्न हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -10  श्लोक -4+5 
>यह सभी सकामकता और धनात्मक योग और गुण आप द्वरा संचालित हैं, तो 
हे भगवन ! 
ऋणातमकता कौन सृजित करता है ? 
कुबुद्धि, अज्ञान, झूट जैसे अवगुण का निर्माण कोई शैतान करता है ? उसके आगे आप बेबस हैं ?
तमाम अवगुण संसार में प्रचलित ही क्यों हुए , आपके होते हुए ? 
अगर इसका संचालन आप  द्वारा ही है तो आप में और पिशाच में फर्क है. आपको क्यों पूजा जाए ? 
क्यूँ न हम उसकी पूजा करें?  
और क़ुरआन कहता है - - - 
>'' बिला शुबहा अल्लाह तअला बड़ी क़ूवत वाले हैं''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ५२)
जो ''कुन'' कह कर इतनी बड़ी कायनात की तखलीक करदे उसकी कूवत का यकीन एक अदना बन्दा से क्यूँ करा रहा है ? 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान