Sunday 24 June 2012

Soorah Haj 2nd Part

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



फतवा 

देवबंद के ओलिमा ने एक बार फिर इंसानी हुकूक को लेकर, ज़िदा दिल जीने वाले फ़िल्मी बन्दों सेहरिश और जहाँगीर पर फतवा जड़ दिया है. उनकी निजी आज़ादी इस्लाम को रास नहीं आती इस लिए इन दोनों को इस्लाम से और इसकी बिरादरी ख़ारिज कर दिया गया. ओलिमा के इन फतवों की कोई कद्र व कीमत नहीं होती तब तक कि मुलजिम इन फतवों की परवाह करने लगे. अफ़सोस हुवा ये देखकर कि जहाँगीर इन कठ मुल्लों की परवाह करते हुए सफाई देने लगे कि वह पक्के मुसलमान हैं. वह और उनकी महबूबा कहाँ तक सफाई देते रहेंगे कि वह इस्लाम के पाबंद हैं. उनकी एक्टिंग ही हराम करार दी जा सकती है, कैमरे के सामने जाकर तस्वीर खिचाना भी हराम, बे बुरका रहना हराम, गैर मुस्लिम से शादी करना हराम. मियाँ जहाँगीर सच तो ये है की आप इनकी परवाह किए बगैर अपने धुन में लगे रहिए. इन हराम खोरों की बातों में आकर गुमराह मत होइए. इन से कहिए कि ठीक है मुल्ला जी! हम आप के यहाँ आपकी बेटी का हाथ मांगने नहीं आएँगे. वैसे भी इनकी बहन बेटियों को कोई ढंग का रिश्ता नहीं मिलता है. यह किराए के टट्टू अपने साथ साथ अपनी नस्लों के दुश्मन होते हैं.
हाथी गुज़र जाता है कुत्ते भौंकते रहते हैं. पिद्दी भर एक मुम्बैया तंजीम "जामा कादिर्या अशरफिया " दुन्या की ताक़ते-अव्वल अमरीका को आगाह कर रही है कि अगर ११-९ को क़ुरआनी नुस्खे जलाए गए तो इसके अंजाम बुरे होंगे. इस्लामी दुन्या ऐसी गुमराहियों पर है कि हर मुसलमान कायदे-आज़म बना हुवा है. मुस्लिम अवाम को चाहिए कि इन काठ मुल्लों को ठेंगा दिखलाते हुए अपनी मंजिल की तरफ गामज़न रहें.
चलिए  देखें  मुहम्मदी अल्लाह की दाँव पेच - - - 


" निज़ामे-हयात के तहत अल्लाह अपने लिए जिन मासूम जानवरों की कुर्बानी चाहता है, उसकी नफासत को जताता है और कुर्बानी के तौर तरीकों का बयान करता है . खाना ए काबा को इब्राहीम ने बनाया इसका खुलासा करते हए उनके एह्कमात बाबत हज के बतलाता है. फिर हस्बे- आदत यहूदी नबियों के नाम गिनता है - - - नूह, आद , समूद से मूसा तक."
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२६-४४) 

''सो मेरा अज़ाब कैसा हुवा, कितनी बस्तियां है जिनको हम ने हलाक किया जिनकी यह हालत थी कि वह नाफ़रमानी करती थीं, सो वह अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं और बहुत से बेकार कुवें ''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-४५)
जुमला गौर तलब है कि ''सो वह अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं" छतों पर कौन गिरी पड़ी हैं? बस्तियां? या उसके मकानात? या फिर मकानों की दीवारे? कौन सी चीज़ छतों पर गिरी कि जिसके बोझ से वह गिरीं ? कि जिससे बस्ती के लोग हालाक हुए? क़ुरआनी अल्लाह क्या अफीमची है? मूतरज्जिम यहाँ पर इस तरह अल्लाह की बात की रफू गरी करता है कि " गोया पहले छतें गिरीं, फिर छत पर दीवारें. अल्लाह अपने बन्दों पर अज़ाब नाजिल करता है, इसके लिए पहले वह लोगों को गुराह करता है? 

''और ये लोग अज़ाब का तकाज़ा करते हैं हालाँकि अल्लाह अपना वादा खिलाफ न करेगा और आप के रब के पास एक दिन एक हज़ार साल के बराबर है तुम लोगों के शुमार के मुवाफ़िक़ और बहुत सी बस्तियां हैं कि जिनको हम ने मोहलत दी थीं और वह ना फ़रमानी करती थीं फिर मैं ने उनको पकड़ लिया और मेरी तरफ ही लौटना होगा और कह दीजिए कि ऐ लोगो ! मैं तो तुम्हारे लिए आशकारा डराने वाला हूँ."
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-४७-४८)
मुसलमानों! 
क्या तुम ऐसे मूजी अल्लाह के डर से मुसलमान बने बैठे हो? जो तुमको एक शर्री बन्दे मुहम्मद को तस्लीम करने पर मजबूर करता है? यह तुम्हारा अकीदा बन चुका है तो इसे तोड़ दो और अपनी अक्ल पर यकीन करो. मुहम्मद बार बार तुम्हें कुदरती आफतों से डरा रहे जो दस पांच साल के वक्फे में बाद, अकाल, बीमारी या जंगो की सूरत में आती ही है, मगर कोई नागहानी आ ही नहीं रही? तो मकर का एक रास्ता उनको सूझता है कि तुम तो चौबीस घंटों का दिन जोड़ते हो, जब कि अल्लाह का एक दिन एक हज़ार साल का होता है तुम अगर ५० साल भी जिए तो अल्लाह महेज़ ८ घंटे, उसकी नींद भी पूरी नहीं हुई और लोग जल्दी मचा रहे हैं कि वादा कब पूरा होगा? अल्लाह का खूब सूरत वादा क़यामत का, जो बन्दों को भुगतना है. मुहम्मद का मकरूह हथकंडा और मुसलामानों की ज़ंग आलूद ज़ेहन, सब यकजा हैं. 

"जो शख्स इस क़दर तकलीफ पहुँचावे जिस क़दर उसको दी गई थी, फिर उस शख्स पर ज्यादती की जाय तो अल्लाह उस शख्स की ज़रूर मदद करेगा. बेशक अल्लाह कसीरुल अफो ,कसीरुल मग्फ़िरत है.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-६०)
इन्तेकाम का कायल मुहम्मदी अल्लाह खुद को मुन्ताकिम के साथ बतलाता है. मुहम्मद ने अपनी जिंदगी में अपने पुराने दुश्मनों से गिन गिन कर बदला लिया है, इस्लामी तवारीख देखें. 

''ऐ लोगो एक अजीब बात बयान की जाती है, इसे कान लगा कर सुनो. इसमें कोई शुबहा नहीं जिन की तुम अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हो, वह एक मक्खी तो पैदा नहीं कर सकते गो सब के सब जमा हो जाएँ और पैदा करना तो बड़ी बात है, इन से मक्खी कुछ छीन ले जाय तो इस से ये छुड़ा नहीं सकते .''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-८२-८३)
बे शक मिटटी के बुत भला कम भी क्या कर सकते हैं? मगर मुहम्मदी अल्लाह क्या पेड़ों में हमारे लिए बने बनाए फर्नीचर पैदा का सकता है? दोनों ही मिथ्य हैं। 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 10 June 2012

Soorah haj 22 (1-25)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह हज २२-१७ वाँ पारा 


''ऐ लोगो अपने रब से डरो यकीनन क़यामत का ज़लज़ला बहुत भारी चीज़ होगी.'' 
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१)
एक बार फिर आप को दावते-फ़िक्र दे रहा हूँ कि गौर करिए कि आपका अल्लाह कैसा होना चाहिए? बहुत ज़ालिम, बड़ा गुस्सैल, शेर की तरह कि ज़रा सी हरकत पर अप पर चढ़ बैठे? या आपके चचा और मामा की तरह आप को चाहने वाला, आपकी गलतियों को दरगुज़र करने वाला, कम से कम सज़ा देने वाले को तो आप पसंद नहीं ही करेगे. यह आप पर मुनहसर है कि आप जैसा अल्लाह चाहें अख्तियार करें. 
जी हाँ! यही तो इंसान का ज़ाती मुआमला हो जाता है कि वह अपने को किस पसंद दीदा दोस्त के हवाले करता है. दोस्त कोई ज़ात पाक भी हो सकता है, दोस्त कोई खयाले-नादिर भी हो सकता है. दोस्त आपकी महबूबा भी हो सकती है और आप का हुनर भी. दोस्त आप की पूजा भी हो सकती है और आपकी इबादते-लाहूत भी. दोस्त कैसा भी हो सकता है मगर क़ुरआनी अल्लाह को दोस्त बनाना किसी साजिश का शिकार हो जाना है.
ज़लज़ले और आताश फिशां निज़ाम कुदरत के तहत मुक़र्रर है जो किसी काफ़िर या मुस्लिम आबादी को देख कर नहीं आते न उनका उस टुकाची अल्लाह से कोई सरोकार है जो मुहम्मद ने गढ़े हैं. खुलकर ऐसे अल्लाह से बगावत कीजिए जो कौम को जुमूद में किए हुए है. 

''जिस रोज़ तुम इसको देखोगे, तमाम दूध पिलाने वालियाँ अपने बच्चों को दूध पिलाना भूल जाएँगी और तमाम हमल वालियाँ अपना हमल डाल देंगी और तुझको लोग नशे के आलम में दिखाई देंगे.हालांकि वह नशे में न होंगे मगर अल्लाह का अज़ाब है सख्त.'' 
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२-३)
कबीलाई बन्दे मुहम्मद तमाज़त और मेयार को ताक पर रख कर गुफ्तुगू कर रहे हैं. क़यामत का बद तरीन नज़ारा वह किस घटिया हरबे को इस्तेमाल कर, कर रहे है कि जिसमे औरत ज़ात रुसवा हो रही है. और मर्द शराब के नशे में बद मस्त अपनी औरतों की रुस्वाइयाँ देख रहे होगे. 

''हमने तुमको मिटटी से बनाया फिर. नुत्फे से, फिर खून के लोथड़े से फिर खून की बोटी से कि पूरी होती है और अधूरी भी , ताकि हम तुम्हारे सामने ज़ाहिर कर दें . हम गर्भ में जिसको चाहते हैं एक मुद्दत ए मुअय्यना तक ठहराए रखते हैं, फिर तुम को बच्चा बना कर हम बाहर लाते हैं. फिर ताकि तुम अपनी भरी जवानी तक पहुँच जाओ और बी अजे तुम में वह भी हैं जो निकम्मी उम्र तक पहुंचे जाते हैं. - - - और क़यामत आने वाली है , इसमें ज़रा शुबहा नहीं और अल्लाह कब्र वालों को दोबारह पैदा करेगा.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-५-७)
एक बार फिर मुहम्मदी अल्लाह अपने हुनर और हिकमत को दोहराता है कि उसने जो कुछ इंसानी वजूद की शुरूआत अपनी आँखों से मुश्तअमल होते हुए देखा है. यानी मुहम्मद अपना ज़ाती मुशाहिदा बयान करते हैं जो मेडिकल साइंस में जेहालत कही जायगी. इन्हीं पुर जेहल बातों को ओलिमा कुराने-हकीम की बातें कहते हैं. पुनर जन्म की फिलासफी एक कशिश तो रखती है मगर ये सदियों कब्र में पड़े रहना और उसके बाद उठाए जाना बड़ा बोरियत वाला अफसाना है. क्या मजाक है अल्लाह अपने कारनामों का यकीन ज़ोरदार तरीके से दिलाता है.
 
''जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जरी होंगी। हमेशा हमेशा इनमें रहें. ये बड़ी कामयाबी है, अल्लाह तअला जो इरादः करता है, कर गुज़रता है '' 
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१४)
मुसलामानों!
 अल्लाह तआला कोई इंसानी ज़ेहन का नहीं है, वह अगर कुछ है तो इन बातों से बाला तर होगा. वह बज़ाहिर लगता है बहुत बारीक, मगर है बहुत साफ.. हर जगह नज़र आता है मगर बिना किसी रंग रूप का . उसकी कोई जुबान नहीं है न उसका कोई कलाम. जुबान होती तो बोलता ही रहता , सिर्फ चौदह सौ साल पहले मुहम्मद से बात करने के बाद उसके मुँह को लकवा नहीं मार गया होता कि उनके बाद उसकी बोलती बंद है. बार बार मुहम्मद तुम से नहरों वाली जन्नत की बात करते हैं जो कि तुमको अगर मिल जाय तो घर घर न रह जाय बल्कि खेत और ताल बन जाय. 

'' जो शख्स इस बात का ख़याल रखता है कि अल्लाह तअला उसकी  आखरत में मदद न करेगा तो उसको चाहिए कि एक रस्सी आसमान तक तान ले और मौकूफ करा दे गौर करना चाहिए कि तदबीर उसकी न गवारी की चीज़ को मौकूफ कर सकती है और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१५-१६)
दिमाद मुहम्मद का, कलाम अल्लाह का, समझ बंदए-मुस्लिम का - - - बड़ा मुश्किल मुक़ाम है कि ऐसी आयतें कुरआन की क्या कहना चाहती हैं? आम मुस्लमान में जब कोई इस किस्म की बाते करता है तो सुनने वाले उसे कठमुल्ला कह कर मुस्कुराते है. मगर अगर उनको बतलाया जाय कि क़ुरआनी अल्लाह ही कठमुल्ला है, ये उसकी बातें हैं, तो कुछ देर के लिए कशमकश में पड़ जाता है? मगर मुसलमान ही बना रहना पसंद करता है , कुछ बगावत के साथ. भारतीय माहौल में वह जाय तो कहाँ जाय? मोमिन का रास्ता उसे टेढ़ा नज़र आता है, जो कि है बहुत सीधा.सितम ये कि बे शऊर अल्लाह कहता है'' और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,'' 

''और अल्लाह तअला उन लोगों को कि ईमान लाए और नेक काम किए ऐसे बागों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरें जरी होंगी. इनको वहाँ पर सोने के कंगन और मोती पहनाई जाएँगे और पोषक वहाँ रेशम की होगी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-23)
मुहम्मद को इतनी भी अक्ल नहीं है कि जहाँ सोने के घर द्वार हैं वहाँ सोने के कंगन पहना रहे हैं? वैसे भी सोने का जब तक ख़रीदार न हो उसकी कोई क़द्र व् कीमत नहीं. सोने और रेशम को मर्दों पर हराम करके दुन्या में तो कहीं का न छोड़ा, जहाँ इनकी जीनत थी. महरूम और मकरूज़ कौम. 

''बेशक जो लोग काफ़िर हुए अल्लाह के रस्ते से और मस्जिदे हराम (काबा ) से रोकते हैं जिसको हमने तमाम आदमियों के लिए मुक़र्रर किया है, कि इस में सब बराबर हैं। इसमें रहने वाले भी और बहार से आने वाले भी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२५)
कुरआन की यह आयत बहुत ही तवाज्जेह तलब है - - - आज काबे में कोई गैर मुस्लिम दाख़िल नहीं हो सकता है। काबा ही क्या शहर मक्का में भी मुसलामानों के अलावा किसी और के दाखिले पर पाबन्दी है। आज की हकीकत ये है जब कि ये आयतें उस वक्त कि हैं जब मुसलामानों पर काबे में दाखिले पर पाबन्दी थी. इसी कुरआन में आगे आप देखेंगे कि अल्लाह कैसे अपनी बातों से फिरता है. इनके ही जवाब में आज़ाद भारत में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ मुसलामानों के दाखिले पर पाबन्दी है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 3 June 2012

Soorah Ambiya 21

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अंबिया -२१

Part-III

पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद, मैंने जबसे होश सभाला है, देखा किए कि राजनीति के मंच पर हमेशा एक मदारी पांव पसारे बैठा रहा. कुछ अक्ल से पैदल और चमत्कार पसंद नेता उनको बढ़ावा देते हैं. मीडिया को भी थाली में खुराक के साथ साथ कुछ चटनी आचार चाहिए होता है, कुछ दिन के लिए वह मदारी समाचारों में छा जाते हैं, फिर पिचके हुए गुब्बारे की तरह फुर्र हो जाते हैं. धीरेन्द्र ब्रहमचारी, आशाराम बापू , स्वामी नित्यानन्द अभी अभी वर्तमान के मदारी निवर्तमान हो चुके हैं, मगर कुछ ज़्यादः ही समय ले रहे है निकम्मे, हास्य स्पद और बड बोले, रंग से स्वामी, रूप से बाबा, बने रामदेव. मामूली सी पेट की धौकनी की प्रेक्टिस कर के वह रातो रात योग गुरू बन गए. रामदेव देखते ही देखते सर्व रोग साधक भी बन गए और आयुर्वेद संस्था के मालिक भी. परदे के पीछे बैठे किन हाथों में इस कठ पुतली की डोर है, अभी समझ में नहीं आता. कौन गुरू घंटाल है जो इन्हें हाई लाईट कर रहा है ? ये तो आने वाला समय ही बतलाएगा. उनकी योग की दूकान और फार्मेसी की फैक्ट्री चल निकली है. जहां तक मीडिया पर समाज की ज़िम्मेदारी है, उसके तईं वह कभी कभी दिशा हीन हो जाती है. मीडिया जिसे मानव समाज का आखिरी हथियार माना गया है, वहीँ वह ऐसे लोगों को सम्मानित करके समाज के लिए ज़हर भी बो देती है. ये लोक तंत्र की विडम्बना है कि सब को पूरी आज़ादी है ,कोई कुछ भी करे.
भजन मण्डली का ढोलकिया, निर्मूल्य एवं अज्ञात अतीत का मालिक, आज हर विषय पर अपनी राय दे देता है, चाहे क्रिकेट हो, राजनीती हो, भरष्टाचार हो अथवा सेक्स स्कैनडिल. बीमारियों को तो चुटकी में भगा देने का दावा करने वाले बाबा के पास कैसर, एड्स जैसे रोग का शर्तिया योग है. ''हर मर्ज़ की दवा है सल्ले अला मुहम्मद'' अर्थात कपाल भात और आलोम बिलोम. कोई इस ढोंगी से नहीं पूछता कि बाबा आप के मुँह पर लकवा मार गया है, आप कुरूप, मुँह टिढ़े और काने हो गए हो? अपना इलाज क्यूँ नहीं करते?
अब तो रामदेव गड बोले मुंगेरी लाल के सपने भी देखने लगे हैं आगामी चुनाव में वह हर जगह से चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं. मर्यादा पुरुष बन कर सब को चकित कर देंगे. वह राष्ट्र पति क्या राष्ट्र पिता भी बन्ने का सपना देखने लगे. काला धन, भ्रष्टाचार, नक्सली समस्या, गरीबी रेखा समापन और पडोसी देश चीन की तरह अपराधियों को गोली मार देने की बात करते हैं. रामदेव को नहीं मालूम कि अगर चीनी लगाम भारत आयातित करता है तो सबसे पहले रामदेव ऐसे लोग जपे जाएँगे जो अपने पाखण्ड से लोगों के लाखों वर्किंग आवर्स बर्बाद करते हैं और कोई रचनात्मक काम किए बगैर मुफ्त की रोटियाँ तोड़ते हैं.

आये चलें अतीत के बाबा मुहम्मद देव की तरफ - - -

'और बअज़े शैतान ऐसे थे कि उनके(सुलेमान) लिए गोता लगाते थे और वह और काम भी इसके अलावा किया करते थे और उनको संभालने वाले थे और अय्यूब, जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि हमें तकलीफ पहुँच रही है और आप सब मेहरबानों से ज़्यादः मेहरबान हैं, हमने दुआ कुबूल की और उनकी जो तकलीफ थी, उसको दूर किया. और हमने उनको उनका कुनबह अता फ़रमाया और उनके साथ उनके बराबर और भी अपनी रहमते-खास्सा के सबब से और इबादत करने वालों के लिए यादगार रहने के सबब. और इस्माईल और इदरीस और ज़ुल्कुफ्ल सब साबित क़दम रहने वाले लोगों में से थे.और उनको हमने अपनी रहमत में दाखिल कर लिया, बे शक ये कमाल सलाहियत वालों में थे. और मछली वाले जब कि वह अपनी कौम से ख़फा होकर चल दिए और उन्हों ने यह समझा कि हम उन पर कोई वारिद गीर न करंगे, बस उन्हों ने अँधेरे में पुकारा कि आप के सिवा कोई माबूद नहीं है, आप पाक हैं, मैं बेशक कसूर  वार  हूँ.. सो हमने उनकी दुआ कुबूल की और उनको इस घुटन से नजात दी.. और ज़कारिया, जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि ऐ मेरे रब! मुझको लावारिस मत रखियो, और सब वारिसों से बेहतर आप हैं, सो हमने उनकी दुआ कुबूल की और उनको याह्या अता फ़रमाया.और उनकी खातिर उनकी से बीवी को क़ाबिल कर दिया. ये सब नेक कामों में दौड़ते थे और उम्मीद ओ बीम के साथ हमारी इबादत करते थे.और हमारे सामने दब कर रहते थे.''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (८१-९०)
मुहम्मद कहतेहैं कि यहूदी बादशाह सुलेमान शैतान पालता था, जो उसके लिए नदियों में गोते लगा कर मोतियाँ और खुराक के सामान मुहय्या करता था, और भी शैतानी काम करता रहा होगा. आगे आएगा कि वह पलक झपकते ही महारानी शीबा का तख़्त बमय शीबा के उठा लाया था. वह सुलेमान अलैहिस्सलाम के तख़्त कंधे पर लाद कर उड़ता था, बच्चों की तरह आम मुसलमान इन बातों का यकीन करते हैं, कुरआन की बात जो हुई, तो यकीन करना ही पड़ेगा, वर्ना गुनाहगार हो जाएँगे और गुनाहगारों के लिए अल्लाह की दोज़ख धरी हुई है. यह मजबूरियाँ है मुसलामानों की. उन यहूदी नबियों को जिन जिन का नाम मुहम्मद ने सुन रखा था, कुरान में उनकी अंट-शंट गाथा बना कर बार बार गाये हैं .
योब (अय्यूब) की तौरेती कहानी ये है कि वह अपने समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति था, औलादों से और धन दौलत में बहुत ही सम्पन्न था । उस पर बुरा वक्त ऐसा आया कि सब समाप्त हो गया, इसके बावजूद उसने ईश भक्ति नहीं त्यागी. वह चर्म रोग से इस तरह पीड़ित हुवा कि शरीर पर कपडे भी गड़ने लगे और वह एक कोठरी में बंद होकर नंगा भभूत धारी बन कर रहने लगा, इस हालत में भी उसको ईश्वर से कोई शिकायत न रही, और उसकी भक्ति बनी रही. उसके पुराने दोस्त आते, उसको देखते तो दुखी होकर अपने कपडे फाड़ लेते.
इस्माईल लौड़ी जादे थे ,अब्राहम इनको इनके माँ के साथ सेहरा बियाबान में छोड़ गए थे इनकी माँ हैगर ने इनको पला पोसा. ये मात्र शिकारी थे और बड़ी परेशानी में जीवन बिताया . इन्हीं के वंशज मियां मुहम्मद हैं, यहूदियों की इस्माईल्यों से पुराना सौतेला बैर है.
इदरीस और ज़ुल्कुफ्ल सब साबित क़दम रहने वाले लोगों में से थे. बस अल्लाह को इतना ही मालूम है दुन्या में लाखो साबित क़दम लोग हुए अल्लाह को पता नहीं. और मछली वाले जब कि वह अपनी कौम से ख़फा होकर चल दिए जिनका नाम मुहम्मद भूल गए और मुखातिब मछवारे कि संज्ञा से किया है (यूनुस=योंस नाम था) मशहूर हुवा कि वह तीन दिन मगर मछ के पेट में रहे, निकलने के बाद इस बात का एलान किया तो लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया, कुहा के बस्ती छोड़ कर चले गए थे. योंस का हथकंडा मुहम्मद जैसा ही था मगर उनके साथ लाखैरे सहाबा-ए-कराम न थे, जेहाद का उत्पात न सूझा था कि माले-गनीमत की बरकत होती. फ्लाप हो गए .
ज़कारिया (ज़खारिया)और याहिया (योहन) का बयान मैं पिछली किस्तों में कर चुका हूँ.
मुहम्मद फरमाते हैं कि उपरोक्त हस्तियाँ मेरी इबादत करते - - -
''और हमारे सामने दब कर रहते थे.'' दिल की बात मुंह से निकल गई और जेहालत को तख़्त और ताज भी मिल गया.
 
''और उनका भी जिन्हों ने अपने नामूस को बचाया, फिर हमने उन में अपनी रूह फूँक दी, फिर हमने उनको और उनके फरजंद को जहाँ वालों के लिए निशानी बना दी - - - और हमने जिन बस्तियों को फ़ना कर दीं हैं उनके लिए ये मुमकिन नहीं है फिर लौट कर आवें. यहाँ तक कि जब याजूज माजूज खोल दिए जाएंगे  तो(?) और वह हर बुलंदी से निकलते होंगे. और सच्चा वादा आ पहुँचा होगा तो बस एकदम से ये होगा कि मुनकिर की निगाहें फटी की फटी रह जाएँगी कि हाय कमबख्ती हमारी कि हम ही ग़लती पर थे, बल्कि वक़ेआ ये है कि हम ही कुसूरवार थे. बिला शुबहा तुम और जिनको तुम खुदा को छोड़ कर पूज रहे हो, सब जहन्नम में झोंके जाओगे. (इसके बाद फिर दोज़खियो को तरह तरह के अज़ाब और जन्नातियों को मजहका खेज़ मज़े का हल है जो बारबार बयान होता है)
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (९१-१०३)
मुहम्मद का इशारा मरियम कि तरफ है. ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह खुदा के बेटे है तब मुहम्मद कहते हैं कि यह अल्लाह की शान के खिलाफ है , न वह किसी का बाप है न उसकी कोई औलाद है. यहं पर अल्लाह कहता है कि फिर हमने उन में अपनी रूह फूँक दी तब तो ईसा ज़रूर अल्लाह के बेटे हुए. जिस्मानी बेटे से रूहानी बेटा ज्यादह मुअत्बर हुवा. यही बात जब ईसाई कहते हैं तो मुहम्मद का तसव्वुर फैज़ अहमद फैज़ के शेर का हो जाता है - - -

आ मिटा दें ये ताक़द्दुस ये जुमूद,
फिर हो किसी ईसा का वुरूद,
तू भी मजलूम है मरियम की तरह,
मैं भी तनहा हूँ खुदा के मानिद.

यहाँ अल्लाह मरियम के अन्दर अपनी रूह फूंकता है ,इसके पहले फ़रिश्ते जिब्रील से उसकी रूह फुन्क्वाया थे, ईसा को रूहिल क़ुद्स कहा जाता है, जब कि यहाँ पर रूहुल्लाह हो गए.
कहते हैं कि 'दारोग आमोज रा याद दाश्त नदारद. झूटों की याद दाश्त कमज़ोर होती है.
 
''और हम उस रोज़ आसमान को इस तरह लपेट देंगे जिस तरह लिखे हुए मज़मून का कागज़ को लपेट दिया जाता है, हमने जिस तरह अव्वल बार पैदा करने के वक़्त इब्तेदा की थी, इसी तरह इसको दोबारा करेंगे ये हमारे जिम्मे वादा है और हम ज़रूर इस को करेंगे. और हम ज़ुबूर में ज़िक्र के बाद लिख चुके हैं कि इस ज़मीन के मालिक मेरे नेक बन्दे होंगे. (इसके बाद मुहम्मद अंट-शंट बका है जिसमें मुतराज्जिम ने ब्रेकेट लगा लगा कर थक गए होंगे कि कई बात बना दें, कुछ नमूने पेश हैं - - -"
''और हम ने 
(1) आप को और किसी बात के लिए नहीं भेजा, मगर दुन्या जहान के लोगों
 (2) पर मेहरबानी करने के लिए . आप बतोर(3) 
फरमा दीजिए कि मेरे पास तो सिर्फ वह्यी आती है कि तुम्हारा माबूद
 (4 )सिर्फ एक ही है सो अब भी तुम 
(5) फिर 
(6) ये लोग अगर सर्ताबी करेंगे तो 
(7) आप फरमा दीजिए कि मैं तुम को निहायत साफ़ इत्तेला कर चुका हूँ और मैं ये जानता नहीं कि जिस सज़ा का तुम से वादा हुवा है, आया क़रीब है या दूर दराज़ है 
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (१०४--११२)
१-(ऐसे मज़ामीन नाफ़े देकर)
२-(यानि मुकल्लाफीन)
३-( खुलासा के मुक़र्रर)
४-(हकीकी )
५-(मानते हो या नहीं यानी अब तो मन लो)
६-(भी)
७- (बतौर तमाम हुज्जत के)
८- (अलबत्ता वक़ूअ ज़रूर होगा).
दोबारा समझा रहा हूँ की ओलिमा ने अनुवाद में मुहम्मद की कितनी मदद की है. पहले आप आयतों को पढ़ें, मतलब कुछ न निकले तो अनुवादित सब्दावली का सहारा लें , इस तरह कोई न कोई बात बन जायगी.भले वह हास्य स्पद हो.
मुहम्मद की चिंतन शक्ति एक लाल बुझक्कड़ से भी कम है, ब्रह्माण्ड को नज़र उठा कर देखते हैं तो वह उनको कागज़ का एक पन्ना नज़र आता है और वह आसानी के साथ उसे लपेट देते हैं। मुसलमान उनकी इस लपेटन में दुबका बैठा हुवा है. मुहम्मदी अल्लाह कयामत बरपा करने का अपना वादा कुरआन में इस तरह दोहराता है जैसे कोई खूब सूरत वादा किसी प्रेमी ने अपने प्रियशी से किया हो. मुसलमान उसके वादे को पूरा होने के लिए डेढ़ हज़ार सालों से दिल थामे बैठा है.
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (१०४--११२)

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान