Sunday 24 November 2013

soorah Rahmaan 55 (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह रहमान ५५ -पारा २७  
(1)

मैं इस्लाम का आम जानकर हूँ , 
इसका आलिम  फ़ाज़िल नहीं.
 इस की गहराइयों में जाकर देखा तो इसका मुनकिर हो गया,
 सिने बलूगत में आकर जब इस पर नज़रे सानी किया तो जाना कि इसमें तो कोई गहराई ही नहीं है.
लिहाज़ा इसके अम्बारी लिटरेचर से सर को बोझिल करना मुनासिब नहीं समझा. 
जिन पर नज़र गई तो पाया कि कालिमा ए हक के नाहक जवाज़ थे.
 हो सकता है कि कहीं पर मेरी अधूरी जानकारी दर पेश आ जाए मगर मेरी तहरीक में इसकी कोई अहमियत  नहीं है, क्यूँ कि इनकी बहसें बाहमी इख्तेलाफ़ और तजाऊज़  ओ जुमूद  के दरमियान हैं. टोपी लगा कर नमाज़ पढ़ी जाए,बगैर टोपी पहने भी नमाज़ जायज़ है,  ये इनके मौज़ू हुवा करते हैं. 
मेरा सवाल है नमाज़ पढ़ते ही क्यूँ हो? मेरा मिशन है मुसलामानों को इस्लामी नज़र बंदी से नजात दिलाना
सूरह रहमान को मेरी नानी बड़े ही दिलकश लहेन में पढ़ती थीं उनकी  नकल में मैं भी इसे गाता था. उनके हाफिज़ जी ने उनको बतलाया था कि इस सूरह में अल्लाह ने अपनी बख्शी हुई नेमतों का ज़िक्र  किया है .
सूरह को अगर अरबी गीत कहीं तो उसका मुखड़ा यूँ था,
"फबेअय्या आलाय रबबोकमा तोकज्ज़ेबान "
 यानी
"सो जिन्न ओ इंसान तुम अपने रब के कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे"
जब तक मेरा शऊर बेदार नहीं हुवा था मैं अल्लाह की नेमतो का मुतमन्नी रहा कि उसने हमें अच्छे और लज़ीज़ खाने का वादा किया होगा, बेहतरीन कपड़ों  का, शानदार मकानों का और दर्जनों ऐशों का ख़याल दिल में आता बल्कि हर सहूलत का तसव्वुर ज़ेहन में आता कि अल्लाह के पास क्या कमी होगी जो हमें न नसीब होगा ? इसी लालच में मैंने नमाज़ें पढना शुरू कर दिया था.
जब मैंने दुन्या देखी और उसके बाद क़ुरआनी कीड़ा बन्ने की नौबत आई तो पाया की अल्लाह की बातों में मैं भी आ गया.
इस सूरह पर मेरा यही तबसरा है मगर आपसे गुज़ारिश है कि सूरह का पूरा तर्जुमा ज़रूर पढ़ें.
  "रहमान ने, (१)
क़ुरआन की तालीम दी, (२)
 इसने इंसान को पैदा किया,  (३)
 इसको गोयाई सिखलाई,   (४)
सूरज और चाँद हिसाब के साथ हैं, (५)
और बे तने के दरख़्त और तने दार दरख़्त मती(क़ैदी) है, (६)
 और इसी ने आसमान को ऊँचा किया और इसी ने तराज़ू रख दी, (७)
 ताकि तुम तौलने में कमी बेश न करो, (८)
और इन्साफ़ और हक़ के साथ वज़न को ठीक रक्खो और तौल को घटाओ मत. (९)
इसी ने खिल्क़त के वास्ते ज़मीन को रख दिया, (१०)
 कि इसमें मेवे हैं और खजूर के दरख़्त हैं जिन पर गिलाफ़ होता है, (११)
और ग़ल्ला है जिसमें भूसा होता है और गिज़ा की चीज़ है,  (१२)
सो जिन्न और इन्स! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे? (१३)
सूरह रहमान - ५५-पारा २७- आयत (१-१३)
 {रहमान की १३ नेमतें}

इसी ने इंसान को ऐसी मिटटी से जो ठीकरे की तरह बजती थी, से पैदा किया, जिन्नात को आग से. {नेमत१४}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"वह  मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत१५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत१६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत१७}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं,  {नेमत१८}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत१९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इसी से सब ज़मीन और आसमान वाले मानते हैं , वह हर वक़्त किसी न किसी कम में रहता है.{नेमत२०}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इसी ने इंसान को जो ठीकरे की तरह बजती हैसे पैदा किया, {नेमत२१} .
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"वह  मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत२२}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत२३}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत२४}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?" 
"इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, {नेमत२५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत२६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इसी ने इंसान को जो ठीकरे की तरह बजती हैसे पैदा किया.{नेमत२७}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"वह  मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत२८}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत२९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत३०}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं,  {नेमत३१}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
मुसलमानों!
 तुम्हारे लिए मुहम्मदी अल्लाह का यही वरदान है जो सूरह रहमान में है. हिम्मत करके इस अनचाहे वरदान को कुबूल करने से इंकार कर दो,क्यूँक तुम्हारी नस्लें इस बात की मुन्तज़िर हैं कि  उनको इस वहशी अल्लाह से नजात मिले.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 17 November 2013

Soorah qamar 54

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह क़मर ५४-पारा २७

  मुहम्मद नें जो बातें हदीसों में फ़रमाया है, उन्ही को कुरआन में गाया है.
अल्लाह के रसूल खबर देते हैं कि क़यामत नजदीक आ चुकी है, और चाँद फट चुका है..
मूसा और ईसा की तरह ही मुहम्मद ने भी दो मुअज्ज़े (चमत्कार) दिखलाए, ये बात दीगर है कि जिसको किसी ने देखा न गवाह हुआ, सिवाय अल्लाह के या फिर जिब्रील अलैहस्सलाम के जो मुहम्मद के दाएँ  बाएँ हाथ है.
 एक मुअज्ज़ा था सैर ए कायनात जिसमे उन्हों ने सातों आसमानों पर कयाम किया, अपने पूर्वज पैगम्बरों से मुलाक़ात किया, यहाँ तक कि अल्लाह से भी गुफ्तुगू की. उनकी बीवी आयशा से हदीस है कि उन्होंने  अल्लाह को देखा भी.
दूसरा मुअज्ज़ा है कि मुहम्मद ने उंगली  के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए, जिनमें से एक टुकड़ा मशरिक बईद में गिरा और दूसरा टुकड़ा मगरिब बईद में जा गिरा.(पूरब और पच्छिम के छोरों पर)
इन दोनों का ज़िक्र कुरआन और हदीसों, दोनों में है. इस की इत्तेला जब खलीफ़ा उमर  को हुई तो रसूल को आगाह किया कि ऐसी बड़ी बड़ी गप अगर आप छोड़ते रहे तो न आपकी रिसालत बच पाएगी और न मेरी खिलाफत. बस फिर रसूल ने कान पकड़ा, कि मुअज्ज़े अब आगे न होंगे.
उनके मौत के बाद उनके चमचों ने अपनी अपनी गवाही में मुहम्मद के सैकड़ों मुअज्ज़े गढ़ डाले. 

मुहम्मद अल्लाह की ज़बान से फरमाते हैं - - -
"क़यामत नजदीक आ चुकी है और चाँद में डराड़ पद चुकी है"
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (१)

मुहम्मद ने चाँद तारों को आसमान के बड़े बड़े कुमकुमे ही माना है जो आसमान की रौनक हैं, उनके हिसाब से बड़ा कुमकुमा फट चुका है,) जिस को कि खुद उन्होंने फाड़ा है). इस लिए क़यामत आने के आसार हैं.
चौदह सौ साल गुज़र गए हैं, इंसान चाँद पर क़याम करके वापस आ गया है, ईमान वाले अभी तक क़यामत के इंतज़ार में हैं.
मुसलमानों ! अरबी के झूट आप की अपनी ज़बान में है, इसे सच्चाई के साथ झेलिए - - -

"और ये लोग अगर कोई मुअज्ज़ा देखते हैं तो टाल देते हैं और कहते हैं ये जादू है जो अभी ख़त्म हो जाएगा, इन लोगों ने झुटला दिया."
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (२

मुहम्मद कहते है ये मुअज्ज़ा मैंने मक्का में कर दिखाया था, बहुत से लोगों ने इसे देखा था मगर जादू कह कर टाल गए. मक्का में जब लोग इन्हें सिड़ी सौदाई  कहते थे, तभी की बात है. मगर मक्का में इस झूट की कोई गवाह मुहम्मद को नहीं मिला जिसका नाम लेते. 

"और इन लोगों के पास खबरे इतनी पहुँच चुकी हैं कि इनमें इबरत यानी आला दर्जे की दानिश मंदी है, सो खौफ दिलाने वाली चीजें इनको कुछ फ़ायदा ही नहीं देतीं. तो आप इनकी तरफ से कोई ख़याल न कीजिए."
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (४-६)

मुहम्मद लाशऊरी तौर पर सच बोल गए कि लोग उनसे ज़्यादः आगाह है कि इन की बातों में आते ही नहीं न इससे डरते ही हैं.

"जिस रोज़ इनको बुलाने वाला फ़रिश्ता एक नागवार चीज़ की तरफ बुलाएगा,  इनकी आँखें झुकी हुई होंगी. क़ब्रों से यूँ निकल  रहे होंगे जैसे टिड्डी फ़ैल जाती हैं. बुलाने वाले की तरफ दौड़ते चले जा रहे होंगे. काफ़िर कहते होंगे ये बड़ा सख्त दिन है."
मुहम्मद की गढ़ी हुई क़यामत का मंज़र हर बार बदलता रहता है. उनको याद नहीं नहीं रहता कि इसके पहले की क़यामत कैसे बरपा की थी. इनको प्राफिट  आफ दूम कहा गया है.
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (७-८)

"क्या तुम में जो काफ़िर हैं उनमें इन लोगों से कुछ फजीलत है या तुम्हारे लिए आसमानी किताबों में कुछ माफ़ी है. या ये लोग कहते हैं हमारी ऐसी जमाअत है जो ग़ालिब ही रहेगे. अनक़रीब ये जमाअत शिकस्त खाएगी.और पीठ फेर के भागेगी. बल्कि क़यामत इनका वादा है और क़यामत बड़ी सख्त और नागवार चीज़ है. और ये मुजरिमीन बड़ी गलती और बे अक्ली में हैं. जिस रोज़ ये अपने मुँहों के बल जहन्नम में घसीटे जाएंगे तो इन से कहा जायगा कि दोज़ख से लगने का मज़ा चक्खो."
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (४३-४८)

" हमने हर चीज़ को अंदाज़े से पैदा किया है और हमारा हुक्म यक बारगी ऐसा हो जाएगा जैसे आँख का झपना और हम तुम्हारे हम तरीका लोगों को हलाक कर चुके है. और जो कुछ भी ये लोग करते हैं, सब  आमाल नामें में है और हर छोटी बड़ी बात लिखी हुई है. परहेज़ गार लोग बागों में और नहरों में होगे, एक अच्छा मुकाम है कुदरत वाले बादशाह के पास."
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (४९-५४)

जैसे अनाड़ी हर काम को अंदाज़े से ही करता है, मुहम्मद खुद को अल्लाह होने की शहादत देते हैं कि जैसे ना तजरबे  कार इंसान अगर है तो अकली गद्दा मारता है. कुदरत तो इतनी हैरत  नाक रचना करता है कि दिमाघ काम नहीं करता. इंसान का जिस्म हो कि हैरत नाक रचना है या ज़मीन की गर्दिश कि साल में एक सेकण्ड का फर्क नहीं पड़ता.
किसी जाहिल और अहमक की कुछ उलटी सीधी बातें इस कौम का निज़ाम ए हयात बन चुकी है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 10 November 2013

Soorah Nazm 53 ( All)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नज्म ५३ - पारा २७ 


ईश निदा
आज कल मीडिया में शब्द "ईश निंदा" बहुत ही प्रचलित हो रहा है, जो दर अस्ल तालिबान नुमा मुसलामानों को संरक्षण देने का काम करता है. ईश निंदा का मतलब हुवा खुदा या ईश्वर का अपमान करना, जब कि नया दृष्ट कोण रखने वाले बुद्धि जीवी इस्लामी आदेशों की निंदा करते है. कुरान में ९०% आयतें मानवता के विरुद्धमें हैं, जिसकी निंदा करना मानव अधिकार ही नहीं, मानव धर्म भी है. कोई उस सृष्टि व्यापी अबूझी महा शक्ति को नहीं अपमानित करता, बल्कि अल्लाह बने मुहम्मद और उनके क़ुरआनी आदेशों का खंडन करता है, जो अमानवीय है.
हमारा नया कल्चर बना हुवा है सभी धर्मो का सम्मान करना, जिसे सेकुलरटी का नाम भी गलत अर्थों  में दिया गया है. सेकुलर का अर्थ है धर्म विहीन.  सेकुलरटी को भी एक नए धर्म का नाम जैसा बना दिया गया है.
ज़्यादः हिस्सा धर्म दूसरे धर्मों का विरोध करते हैं, जिसके तहत वह अधर्मी, काफ़िर और नास्तिकों को खुल्लम खुल्ला गालियाँ देते हैं. जवाब में अगर नास्तिक के मुँह से कुछ निकल जाए तो वह ईश निंदा हो जाता है, उसको तिजारती मीडिया ललकारने लगती है.
मेरी मांग है कि जागृत मानव को पूरा हक़ होना चाहिए कि वह अचेत लोगों की चेतना को सक्क्रीय करने के लिए इस्लाम निदा, क़ुरआन निंदा और मुहम्मदी अल्लाह की निंदा को ईश निदा न कहा जाए.बल्कि इसे मठा धीशों की "धीश निंदा" कहा जा सकता है.   
"क़सम है सितारे की जब वह ग्रूब होने लगे, ये तुम्हारे साथ  के रहने वाले (मुहम्मद) न राहे-रास्त से भटके, न ग़लत राह हो लिए और न अपनी ख्वाहिशात ए नफ्सियात से बातें बनाते हैं. इनका इरशाद निरी वह्यी है जो इन पर भेजी जाती है. इनको एक फ़रिश्ता तालीम करता है जो बड़ा ताक़तवर है, पैदैशी ताक़त वर."
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (१-६)

जिस सितारे की क़सम खुद साख्ता रसूल खाते हैं उसके बारे में अरबियों का अक़ीदा है कि वह जब डूबने लगेगा तो क़यामत आ जाएगी.
भला कोई तारा डूबता और निकलता भी है क्या?
ग़ालिब कहते हैं - - -
थीं बिनातुन नास ए गर्दूं दिन के परदे में निहाँ,
शब  को इनके जी में क्या आया कि उरियां हो गईं.
अल्लाह इस जुगराफिया से बे खबर है.
बन्दों को इस से ज़्यादः समझने की ज़रुरत महसूस नहीं हो पाती कि वह समझे कि वादहू ला शरीक की क़सम खाने की क्या ज़रुरत पड गई मुहम्मदी अल्लाह को, जिसके कब्जे में कायनात है. वह तो पलक झपकते ही सब कुछ कर सकता है बिना कस्मी कस्मा के.
मुहम्मद का आई. क्यू. फ़रिश्ते  को पैदायशी ताक़त वर कहते है, तुर्रा ये कि इसको अल्लाह का कलाम कहते हैं जो बज़रिए वह्यी (ईश वाणी)  उन पर नाजिल होती है.

''फिर वह फ़रिश्ता असली सूरत में नमूदार हुवा,.ऐसी हालत में वह बुलंद कनारे पर था, फिर वह फ़रिश्ता नज़दीक आया फिर और नज़दीक आया, सो दो कमानों  के बराबर फ़ासला रह गया बल्कि और भी कम, फिर अल्लाह ने अपने बन्दे पर वह्यी नाज़िल फ़रमाई. जो कुछ नाज़िल फ़रमाई थी, क़ल्ब ने देखी हुई चीज़ में कोई ग़लती नहीं की. तो क्या इनकी देखी हुई चीज़ में निज़ाअ करते हो.?"
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (७-१२)

 ऐ पढ़े लिखे मुसलमानों!
तुम अपने तालीमी सार्टी फिकेट, डिग्रियाँ और अपनी सनदें फाड़ कर नाली में डाल दो, अगर मुहम्मद की इन वाहियों पर ईमान रखते हो. उनकी बातों में हिमाक़त और जेहालत कूट कूट कर भरी हुई है. या फिर नशे के आलम में बक बकाई हुई बातें.
कुरआन यही है जो तुम्हारे सामने है.
 हमारे बुजुर्गो के ज़हनों को कूट कूट कर क़ुरआनी अक़ीदे को भरा गया है, इसे तलवार की ज़ोर पर हमारे पुरखों को पिलाया गया है, जिससे हम कट्टर मुसलमान बन गए.  इस कुरआन की असलियत जान कर ही हम नए सिरे से जाग सकते हैं.

*और उन्होंने इस फ़रिश्ते को एक बार और भी देखा है सद्रतुन-मुन्तेहा के पास इसके नजदीक जन्नतुल माविया है. जब इस सद्रतुल माविया को लिपट रही थीं, जो चीज़ लिपट रही थीं, निगाह न तो हटी न तो पड़ती उन्होंने अपने परवर दिगार के बड़े बड़े अजायब देखे."
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (१३-१८)

मुसलमानों! जो इस्लाम आपके हाथ में है वह यहूदी अकीदतों की चोरी का माल है, जिसमें मुहम्मद ने कज अदाई करके इसकी शक्लें बदल दी है. सद्रतुन-मुन्तेहा जन्नत का एक मफरूज़ा दरख़्त है, जैसे ज़कूम को तुम्हारे नबी ने दोज़ख में उगाया था. इस दरख्त में क्या शय लिपट रही थी उसका  नाम अल्लाह के रसूल को याद नहीं रहा, जो चीज़ लिपट रही थी इनको ओलिमा ने तौरेत और दीगर पौराणिक किताबों से मालूम कर के तुमको बतलाया है. खुद अल्लाह सद्रतुन-मुन्तेहा और जन्नतुल माविया को अलग अलग बता नहीं सका, इन्हों ने अल्लाह की मदद की.
किस्से मेराज में इस फर्जी पेड़ का ज़िक्र है, उसी रिआयत से मुहम्मद तस्दीक करते हैं कि इसे एक बार और भी देखा है.

"भला तुमने लात, उज्ज़ा और मनात के हाल पर भी गौर किया है?
क्या तुम्हारे लिए तो बेटे हों और अल्लाह के लिए बेटियाँ? इस हालत में ये तो बहुत ही बेढंगी तकसीम है.
ये महेज़ नाम ही नाम है जिनको तुमने और तुम्हारे बाप दादाओं ने ठहराया, अल्लाह ने इनको माबूद होने की कोई दलील भेजी,  न हीं. ये लोग सिर्फ बे हासिल ख्याल पर और अपने नफस की ख्वाहिश पर चल रहे हैं. हालांकि इन्हें इनके रब की जानिब से हिदायत आ चुकी है. क्या इंसान को इसकी हर तमन्ना मिल जाती है?"
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (१९-२३)

लात ,उज्ज़ा और मनात की टहनी से अल्लाह फुदक कर ईसाइयत की डाली पर आ बैठता है. अल्लाह तहज़ीबी इर्तेका को बेढंगी बात कहता है.
फिर लात, उज्ज़ा और मनात के हाल पर आता है कि इसे तो वह भूल ही गया था. अल्लाह ने इन बुतों को कोई दलील न देकर ठीक ही किया कि झूटी पैगम्बरी तो इनके पीछे नहीं गढ़ी हुई है.
काले जादू और सफेद झूट में अगर दीवानगी मिला दी जाए तो बनती हैं क़ुरआनी आयतें.

"तो भला आपने ऐसे शख्स को भी देखा जिसने दीन ए हक़ से रू गरदनी की और थोडा मॉल दिया और बंद कर दिया. क्या इस शख्स के पास इल्म गैब है? कि उसको देख रहा है."
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (३३-३५)

कोई वलीद नाम का शख्स था जिसने मुहम्मद के हाथों पर हाथ रख कर बैत की थी और इस्लाम कुबूल किया था. वह अपने घर वापस जा रहा था कि उसे कोई शनासा मिल गया और तहकीक की. वलीद ने जवाब दिया कि तुमने ठीक ही सुना है. मैं डर रहा हूँ कि मरने के बाद कोई खराबी न दर पेश हो. शनासा ने कहा बड़े शर्म की बात है कि तुम ने अपना और अपने बुजुर्गों के दीन को छोड़ कर एक सौदाई की बातों पर यकीन कर लिया वलीद ने कहा मुमकिन है उसकी बातें सच हों और मैं जहन्नम में जा पडूँ?शनासा बोला भाई मैं तुम्हारे वह इम्कानी अज़ाब अपने सर लेने का वादा कर रहा हूँ, बशर्ते तुम मुझे कुछ मॉल देदो.वलीद इस बात पर राज़ी हो गया मागर कुछ मोल भाव के बाद. वलीद ने शनासा से इसकी तहरीर लिखवाई और दो लोगों की गवाही कराई फिर तय शुदा रक़म अदा करके अपने पुराने दीन पर लौट आया ये बात जब मुहम्मद के इल्म में आई तो मनदर्जा  बाला आयत नाज़िल हुई.
आप उस वक़्त के इस वाकए से तब के लोगों का ज़ेहनी मेयार को समझ सकते हैं.
कुछ वलीद जैसे गऊदियों ने इस्लाम क़ुबूल किया, फिर माले-गनीमत के लुटेरों ने. इसके बाद जंगी मजलूमों ने इसे कुबूल किया.
कुरआन खोखला पहले भी था और आज भी है.
वलीद जैसे सादा लौह कल भी थे और आज भी हैं.
देखना है तो टेली विज़न  पर बाबाओं, बापुओं, स्वामियों और पीरों की सजी हुई महफ़िल देख सकते हैं.
शनासा जैसे होशियार और होश मंद भी हमेशा रहे ही हैं.
ज़रुरत है कौम को चीन जैसे इन्क़लाब की, जो अवाम की ज़ेहनी मरम्मत गोलियों की चन्द आवाज़ से करें, वर्ना हमारा मुल्क इसी कश मकश की हालत में पड़ा रहेगा..


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 3 November 2013

Soorah toor 52

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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पूरी दुन्या की तमाम मस्जिदों में नमाज़ से पहले अज़ान होती है. फिर हर नमाज़ी नमाज़ की नियत बांधने के साथ साथ अज़ान को दोहराता है.
अज़ान का एक जुमला होता है - - -
अशहदों अन ला इलाहा इल्लिल्लाह.
(मैं गवाही देता हूँ कि एक अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है)
दूसरा जुमला है - - -
(मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं)
गवाही का मतलब होता है आँखों से देखा और कानों से सुना हो.
कोई बतलाए कि कोई कैसे दावा कर सका है कि एक अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है? इस बात पर यकीन हो सकता है कि इस कायनात को बनाने वाली कोई एक ताक़त है मगर इस बात की गवाही नहीं दी जा सकती
सवाल ये उठता है कि हज़ारों मुआज्ज़िन और लाखों नमाजियों ने ये कब देखा और कब सुना कि अल्लाह मुहम्मद को अपना रसूल (दूत) बना रहा था?
हर इंसान के लिए ये अज़ान आलमी झूट की तरह है जिसे मुसलमान आलमी सच मानते है और अज़ान देते हैं.
राम चंद परम हंस ने अदालत में झूटी गवाही दी कि "मैंने अपनी आँखों से कि गर्भ गृह से राम लला हो पैदा होते हुए देखा."
जिसे अदालत ने झूट करार दिया. इस साधू की गवाही झूटी सही मगर थी गवाही ही.
मुसलामानों की झूटी गवाही तो गवाही ही नहीं है, पहली जिरह में मुक़दमा ख़ारिज होता है कि मुआमला चौदह सौ साल पुराना है और मुल्लाजी की उम्र महेज़ चालीस साल की है, उन्हों ने कब देखा सुना है कि इनके नबी अल्लाह के रसूल बनाए गए? मुसलामानों की पंज वक्ता गवाही उनकी ज़ेहनी पस्ती की अलामत ही कही जाएगी.
जिस तरह मुहम्मदी अल्लाह झूटी गवाही और शहादत को पसंद करता है उसी तरह झूटी क़सम भी उसकी पसंद है.
 देखिए कि उसकी कसमें कौन कौन सी चीज़ों को मुक़द्दस और पवित्र बनाए हुए ही - - -

"क़सम है तूर पहाड़ की और इस किताब की जो कोरे काग़ज़ पर लिखी हुई है, और क़सम है  बैतुल उमूर की और ऊँची छत की और दरियाए शोर की जो पुर है कि बेशक तुम्हारे रब का अज़ाब होकर रहेगा."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (1-7)

* तूर पर्बत अरब में है, तौरेती रिवयात है कि अल्लाह ने मूसा को अपनी एक झलक दिखलाई थी जिसके तहेत तूर अल्लाह की झलक पड़ते ही जल कर सुरमा बन गया जो लोगों में आँख की राशनी बढ़ता है.
*कोई किताब कोरे काग़ज़ पर ही लिखी जाती है, लिखे हुए पर काग़ज़ पर नहीं. है न हिमाकत की बात?
* कहते हैं कि बैतुल उमूर सातवें आसमान पर एक काबा है जिसमें सिर्फ फ़रिश्ते हज करने जाते हैं. उसमें हर साल सत्तर हज़ार(मुहम्मद की पसंद दीदा गिनती) फ़रिश्ते ही हज कर सकते है. बाकी फ़रिश्ते वेटिंग लिस्ट में र्सहते हैं.
* ऊँची छत से मुराद है सातवाँ आसमान . फिल हाल अभी तक साबित नहीं हुवा कि आसमान है भी या नहीं? पहले, दूसरे छटें और सातवें की छत  काल्पनिक झूट है.
*दरिये शोर, अहमक रसूल समंदर को दर्याय शोर ही कहा करते थे,इसे भरा हुवा कहते है गरज ये भी एक हिमाक़त है.
झूठे रसूल अपनी बात सच साबित करने के लिए इन चीजों की कसमें खाते हैं, मुसलमानों को यकीन दिलाते है कि अज़ाब होकर रहेगा. जैसे अल्लाह कोई तौफ़ा देने का वादा कर रहा हो.

"कोई इसे टाल नहीं सकता. जिस रोज़ आसमान थरथराने लगेंगे, और पहाड़ हट जाएँगे, जो लोग झुटलाने वाले हैं, जो मशगला में बेहूदी के साथ लगे रहते हैं , इनकी इस रोज़ कमबख्ती आ जायगी. जिस रोज़  इन्हें आतिशे दोज़ख की तरफ धक्के मार कर लाएँगे, . . ये वही दोज़ख है जिसे तुम झुट्लाते थे, फिर क्या सेहर है या तुमको नज़र नहीं आ रहा."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (८-१५)

"मुत्तकी लोग बिला शुबहा बागों और सामान ए ऐश में होंगे.
खूब खाओ पियो अपने आमालों के साथ.
तकिया लगाए हुए तख्तों पर बराबर बिछाए हुए हैं.
हम उनका गोरी गोरी, बड़ी बड़ी आँखों वालियों से ब्याह कर देंगे.
और हम उनको मेवे और गोश्त , जिस क़िस्म का मरगूब हो रोज़े अफ़जूँ  देते रहेंगे.
वहाँ आपस में जाम ए शराब में छीना झपटी करेंगे, इसमें न बक बक लगेगी.
और न कोई बेहूदा बात होगी.
इनके पास ऐसे लड़के आएँगे, जाएँगे जो ख़ास इन्हीं के लिए होंगे,
गोया वह हिफ़ाज़त में रखे मोती होंगे वह एक डूसरे की तरफ़ मुतवज्जो होकर बात चीत करेंगे.
ये भी कहेगे की हम तो इससे पहले अपने घर में बहुत डरा करते थे, सो अल्लाह ने बड़ा एहसान किया.  
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (१७-२७)

सामान ए ऐश के लिए गोरी गोरी, बड़ी बड़ी आँखों वालियों,
शराब कबाब के दौर चलेंगे, धींगा मुश्ती होगी,
तख्तों पर जन्नती बे खटके बेशर्मी करेंगे.
वहाँ न किसी क़िस्म की हरकत नाज़ेबा न होगी और इज्तेमाई अय्याशी रवा होगी. सभी जन्नती एक डूसरे की नकलों हरकत देख कर मह्जूज़ हुवा करेंगे. 
मन पसंद गोशत और मेवे शराब के साथ बदर्जा स्नैक्स होंगे, जिसे ऐसे लड़के लेकर आएँगे, जाएँगे जो ख़ास इन्हीं जन्नातियों के लिए वक्फ़ होगे वह चाहें तो उनका हाथ खींच कर उन्हें अपने तख्त पर लिटा लें.
सारी हदें पार करते हुए मुहम्मद जन्नातियों को लौड़े बाज़ी की दावत देते है. वहाँ कोई काम न करना पडेगा, न ही नमाज़ रोज़ा न वज़ू की पाकीज़गी की ज़रुरत होगी.
बस कि जिनसे लतीफ़ और जिनसे गलीज़ की जन्नत में हर वक़्त डूबे रहिए.

मुहम्मद का तसव्वर गौर तलब है. कहते है कि जन्नती ये भी कहेंगे - - -
"ये भी कहेगे की हम तो इससे पहले अपने घर में बहुत डरा करते थे, सो अल्लाह ने बड़ा एहसान किया."

शेम! शर्म!! शर्म!!शर्म!!!
ये नापाक बातें किसी नापाक किताब में ही दीन के नाम पर मिलती होंगी. अय्यास मुसव्विर का तसव्वुर मुलाहिजा हो - --
"आप समझाते रहिए क्यूँकि आप बफ़ज्लेही तअला न काहन हैं न मजनूँ हैं, हाँ क्या ये लोग कहते हैं कि ये शायर है? हम इनके वास्ते हादसा ए मौत का इंतज़ार करते हैं."
हाँ क्या वह लोग कहते हैं की कुरआन को इसने खुद गढ़ लिया है, बल्कि तस्दीक नहीं करते तो ये लोग इस तरह का कोई कलाम ले आएँ."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (३०-३३

मुहम्मद काश की काहन या मजनू होते तो बेहतर होता की आज उनकी एक उम्मत न तैयार होती की जो मौत और जीस्त में मुअल्लक है.
मुहम्मद शायर तो कतई नहीं थे मगर मुतशयर (तुक्बन्दक) ज़रूर थे क्यूँकि पूरा कुरआन एक फूहड़ तरीन तुकबंदी है.
हम इनके वास्ते हद्साए मौत का इंतज़ार करते हैं." ये बात अल्लाह कह रहा है जो हुक्म देता है तो पत्ता हिलता है, और इतना मजबूर कि इंसान की मौत का मुताज़िर है कि ये कमबख्त मरे तो हम  इसको दोज़ख का मज़ा चखाएं.

"क्या ये लोग बदून खालिक के खुद ब खुद पैदा हो गए? हैं या ये लोग खुद अपने खालिक हैं? या उन्हों ने आसमान आर ज़मीन को पैदा किया है? बल्कि ये लोग यक़ीन नहीं लाते. क्या इन लोगों के पास तुम्हारे रब के खज़ाने हैं? या ये लोग हाकिम हैं? क्या इनके पास कोई सीढ़ी है? कि इस पर चढ़ कर बातें सुन लिया करते हैं- - - "
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (३८)
ये तमाम बातें तो आप पर ही लागू होती है,
 ऐ अल्लाह के मुजरिम, नकली रसूल ! !

"वह आसमान का कोई टुकड़ा अगर गिरता हुवा देखें तो यूं कहेंगे की ये तो तह बतह जमा हुवा बादल है ."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (४४)
इसका अंदाज़ा खुद मुहम्मद ने ही लगाया होगा क्यूँकि उनकी सोच यही कहती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान