Sunday 28 April 2013

सूरह सफ्फ़ात -३७ (२)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह सफ्फ़ात -३७
(दूसरी क़िस्त) 

"और इन से एक कहने वाला कहेगा कि मेरा एक साथी था. कहा करता था कि क्या तू  बअस ( अल्लाह की और से नियुक्तियाँ)  के मुअतकिदीन (आस्थावान) में से है? क्या जब हम मर जाएगे तो, मिट्टियाँ और हड्डियाँ हो जाएगे? तो क्या हम जज़ा, सज़ा दिए जाएँगे? इरशाद होगा कि क्या तुम झाँक कर देखना चाहोगे, तो वह शख्स झाँकेगा तो वह उसको बीच जहन्नम में देखेगा. कहेगा अल्लाह की क़सम, तू मुझे तबाह ही करने वाला था"
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(५१-५६)

कुरआन की ये बेहूदा कसरत मुसलमानों को क्या दे सकती हैं जिसके लिए ये मारने मरने के लिए तैयार रहते हैं.

"हमने उस दरख़्त को ज़ालिमों के लिए मूजिबे इम्तेहान बनाया. वह एक दरख़्त है ज़कूम, जो दोज़ख के गढ़ों में से निकलता है. इसके फल ऐसे हैं जैसे साँप के फन, तो दोज़खी इस को खाएँगे. और इसी से अपना पेट भरेंगे. फिर इन्हें खौलता हुवा पानी, पीप मिला कर पिलाया जायगा."
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(६३-६७)
ऐसे अल्लाह को झाड़ू मारो जो अपने ही बन्दों को साथ ऐसा सुलूक करता है.

"बेशक यूनुस भी पैगम्बरों में से थे. जब वह भाग कर भरी हुई कश्ती के पास पहुँचे तो वह शरीके क़ुरा न हुए, तो यहीं वह मुलजिम में ठहरे. फिर इन्हें मछली ने साबित निगल लिया और ये अपने आपको मलामत कर रहे थे. गर वह तस्बीह करने वाले न होते तो क़यामत तक मछली के पेट में पड़े रहते. और हम ने उन पर एक बेलदार दरख़्त भी उगा दिया और हम ने उनको एक लाख से भी ज़्यादः आदमियों पर पैगम्बर बना कर भेजा"
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१३९-१४७) 

यूनुस की कहानी भी तौरेत से ली गई है. वहाँ इनको तीन दिनों तक मगर मछ के पेट से जिंदा निकला जाता है. यहाँ मछली के पेट में क़यामत तक रहने की बात है, मुहम्मद उनके जिस्म पर बेलदार झाड़ उगा देते हैं, ये कमाल की पुडिया है. मज़हबी किताबों में सभी कुछ कल्पित होता है.

"और हाँ! हमने फरिशों को क्या औरत बनाया है? और वह देख रहे थे, खूब सुन रहे थे कि वह अपनी सुखन तराशी से कहते हैं कि अल्लाह साहिबे औलाद है और वह यकीनन झूठे है.क्या अल्लाह ने बेटों के मुकाबिले में बेटियाँ ज़्यादः पसंद कीं? तुम को क्या हो गया, तुम कैसा हुक्म लगाते हो?"
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१५४)

ईसाइयों पर इलज़ाम है कि वह फरिश्तों को जिन्सियात से मुबर्रा, अल्लाह की मखलूक मानते है, मुहम्मद इसे औरत होना समझते हैं. वह कहते हैं कि कोई मौजूद था, देख और सुन रहा था कि औरत साबित करे. जैसे इनको सब के सामने अल्लाह ने पैगम्बर मुक़र्रर किया हो, जैसा कि अजानों में एलान होता है ''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह"
मुसलमान कहते हैं कि उनके नबी को लडकियां पसँद थीं. यहाँ अल्लाह की तरफ़ इशारा बतला रहा है कि मुहम्मद लड़का पसँद करते थे जिस से वह महरूम रहे.

"और उन लोगों ने अल्लाह में और जिन्नात में रिश्ते दारियां क़रार दिए है. और जिन्नात हैं, खुद उनका अक़ीदा है कि वह गिरफ्तार होंगे. अल्लाह इन बातों से पाक है.जो ये बयान करते हैं.
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१६०)

मुहम्मद की ये बेहूदः बकवास कोई सम्त नहीं देती कि अपने मज़हब को मानते हैं या जिन्नातों के अक़ीदे को. कौन कहता है कि जिन्नात अल्लाह के रिश्तेदार हैं.

"और हमारे खास बन्दे यानी पैगम्बरों के लिए पहले ही ये मुक़र्रर हो चूका है कि बेशक वही ग़ालिब किए जाएँगे. और हमारा ही लश्कर ग़ालिब रहता है, तो आप थोड़े ज़माने तक सब्र करें."
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१७३-७४)

डंडे लाठी और तलवार के ज़ोर पर कुछ दिनों के लिए ग़ालिब ज़रूर हो गए थे मगर उसके बाद इतिहास बतलाता है कि हर जगह मगलूब हो. अपना मुल्क रखते हुए भी दूसरे मुल्कों के रहम करम पर हो.

कलाम ए दीग्राँ 
'दुन्या का खुश तरीन इंसान वह है जो किसी का ऋणी न हो"
'महा भारत'
(हिदू धर्म)
इसे कहते हैं कलामे पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 21 April 2013

सूरह सफ्फ़ात -३७ (1ST )

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा  २३
(पहली क़िस्त) 

मुसलामानों को क़समें खाने की कुछ ज़्यादः ही आदत है जो कि इसे विरासत में इस्लाम से मिली है. मुहम्मदी अल्लाह भी क़स्में खाने में पेश पेश है और इसकी क़समें अजीबो गरीब है. उसके बन्दे उसकी क़सम खाते हैं, तो अल्लाह जवाब में इनकी क़समें खाता है, मजबूर है कि उससे बड़ा कोई है नहीं कि जिसकी क़समें खा कर वह अपने बन्दों को यकीन दिला सके, उसके कोई माँ बाप नहीं कि जिनको क़ुरबान कर सके. इस लिए वह अपने मखलूक और तख्लीक़ की क़समें खाता है. क़समें झूट के तराजू में पासांग (पसंघा) का कम करती हैं वर्ना ना का मतलब ना और हाँ का मतलब हाँ ही इंसान की कसमें होनी चाहिए. अल्लाह हर चीज़ का खालिक है, सब चीज़ें उसकी तखलीक है, जैसे कुम्हार की तखलीक माती के बने हांड़ी,कूंडे वगैरा हैं, अब ऐसे में कोई कुम्हार अगर अपनी हांड़ी और कूंडे की क़समें खाए तो कैसा लगेगा? और वह टूट जाएँ तो मुज़ाय्का  नहीं, कौन  इसकी सज़ा देने वाला है.
कुरआन माटी की हांड़ी से ज़्यादः है भी कुछ नहीं.
अब देखिए कि इस सूरह में मुहम्मद अल्लाह का रूप धारण करके क्या कहते हैं.

"क़सम है उन फरिश्तों की जो सफ़ बांधे खड़े रहते हैं. फिर उन फरितों की जो बंदिश करने वाले हैं. फिर उन फरिश्तों की जो ज़िक्र की तिलावत करने वाले हैं. कि तुम्हारा माबूद (साध्य) एक है. वह परवर दिगार है, आसमानों और ज़मीन का. और जो कुछ उसके दरमियान है.
और परवर दिगार का है,  तुलूअ करने वाले मवाके का,
हमीं ने रौनक दी है उस तरफ वाले आसमान को, एक अजीब आराइश के साथ और हिफाज़त भी की है, हर शरीर शैतान से.
 और शयातीन आलमे-बाला की तरफ कान भी नहीं लगा सकते और हर तरफ मार धक्याय जाते हैं और उनके लिए दायमी अज़ाब होगा.
मगर जो शैतान कुछ खबर ले ही भागते हैं तो एक दहकता हुवा शोला उन्हें उनके पीछे लग लेता है."
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१-१०)

क़ुरआन में कसमों का सिसिला शुरू हो गया है जो हैरत तक पहुँचेगा. अल्लाह उन फरिश्तों की क़समें खा रहा है जो नमाज़ियों की तरह सफ़ बांधे खड़े रहते हैं. या फिर उन फरिश्तों की की क़समें जो बंदिश करने में लगे हैं. मुहम्मदी अल्लाह ये नहीं बतलाता कि किन उमूर की बंदिश करते हैं, जब कि अल्लाह खुद हर काम को इशारों पर करने की तनहा कूवत रखता है.
अल्लाह उन मुकामों की क़सम भी खाता है जहाँ से उसके मुताबिक सूरज, चाँद सितारे निकलते हैं.
इन मुकामों को रौनक देने के एलान के साथ साथ, वह इनको महफूज़ रखने का दावा भी करता है. शैतान को ही अपने बाद कुदरत देने वाला अल्लाह इस से और इसके परिवार वालों से अपनी तख्लीकें बचाता भी रहता है.
ये आयतें आसमान पर तारे टूटते रहने के मंज़र को देख कर मुहम्मद ने गढ़ी है. इतने हिफाजती इंतेज़ाम होने के बाद भी शैतान अल्लाह की प्लानिग की ख़बरें उड़ा ही लेता है जिसके पीछे एक दहकता हुवा शोला लग जाता है फिर भी शैतान बच निकलने में कामयाब हो जाता है, आगे पारों में है कि वह ख़बरें शैतान जादू गरों को दे देता है.
     
"तो आप उन लोगों से पूछिए कि वह लोग बनावट में ज़्यादः सख्त हैं या हमारी पैदा की हुई ये चीजें? हमने इन लोगों को चिपकती हुई मिटटी से पैदा किया है बल्कि आप तअज्जुब करते हैं और ये लोग तमस्खुर करते हैं. और वह लोग ऐसे थे कि जब उन से कहा जाता था कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद ए बर  हक़  नहीं, तो तकब्बुर किया करते थे और कहा करते थे कि क्या हम अपने मबूदों को एक शायरे दीवाना की वजेह से छोड़ दें.
जो लोग खास किए हुए बन्दे हैं उनके लिए गिज़ाएँ और मेवे हैं और वह लोग बड़ी इज्ज़त से आराम के साथ बागों में तख्तों पर आमने सामने बैठे होंगे. इनके पास ऐसा जामे शाराब लाया जायगा जो बहती हुई शराब से भरा जायगा . सफेद होगी, पीने वालों को लज़ीज़ होगी . न इसमें दर्दे सर न अक़लों में फ़ितूर  आयगा.  और इनके पास नीची निगाह वाली बड़ी बड़ी आँखों वाली होंगी, गोया वह बैज़े हो जो छुपे हुए रखे हों."
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा  २३ आयत(११-४९)

अल्लाह बन्दों को चैलेज करता है कि वह उनसे बड़ा कारीगर है. बन्दे जवाब दें तो दे सकते है कि तूने ज़र्रात बनाए, हमने उनसे आइटम बम बनाया. जिससे सारी दुन्या को तवानाई मिलती है, तू क्या ऐसा कर सकता है? तूने दरख़्त बनाया हमने उनसे फर्नीचर बनाया, क्या तू ऐसा कर सकता है. हम इंसान आज हवा में उड़ रहे हैं जिसको ज़माना देखता है, तू, तेरे फ़रिश्ते, तेरे पैगम्बर कभी उड़ते हुए देखे गए हैं?
मेरी लड़ाई अल्लाह से नहीं है, वह है तो हुवा करे, जब कभी सामने आएगा देख लेंगे, मेरी लड़ाई उन लोगों से है जो अल्लाह के नाम का धंधा करते हैं.
एक और नया शोशा की हमने " इन लोगों को चिपकती हुई मिटटी से पैदा किया है" ऐसी बातों पर कौन  न हँसेगा?
मैं बर बर कहता आया हूँ कि मुहम्मद टूटी फूटी शायरी करते थे जिसका सुबूत ये कुरआन है, इसे बज़ोर तलवार अल्लाह का कलाम मनवा लिया गया.
जन्नती शराबी होंगे देखिए कि शायरे दीवाना को न शराब की तारीफ़ आती है, न पीने पिलाने का सलीका, बहती हुई नदियों से भरी जाएगी, दूध की तरह सफेद होगी.
अय्याशी के लिए बड़ी बड़ी आँखों वाली मगर निगाह नीची किए होंगी? तब क्या लुत्फ़ आएगा. (हूरें) होंगी जैसे चूजों की तरह जो अंडे से बहार निकलते हैं.
कई परिदों के चूजे तो घिनावने होते है.
अक्ल का बौड़म अल्लाह का रसूल.\

कलामे दीगराँ - - -
"नफ्स परस्त शख्स के अन्दर बियाबान में भी खुराफ़ात पैदा हो जाएँगी. घर में रहते हुए नफ्स पर काबू रखना एक जेहाद है. जो लोग भले काम करते हैं और अपने नफ्स पर क़ाबू रखते हैं उनके लिए घर ही इबादत गाह है."
'पदम् श्री खंड'
(हिन्दू धर्म) 
इसे कहते हैं कलामे पाक


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 14 April 2013

सूरह यासीन -३६ पारा - २३ (दूसरी क़िस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह यासीन -३६ परा - २२  
(दूसरी क़िस्त)

"हम ने एक कश्ती पर लोगों को सवार किया और वह पानी को चीरती हुई रवाँ हो गई. हम चाहते तो इसे पानी में ग़र्क़ कर देते और वह सब के सब मर जाते, मगर जब वह मंजिल पर बा हिफाज़त आ जाते हैं तो तब भी हमारी कुदरत के कायल नहीं होते."
सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (४३)
ये इस्लाम की कागज़ की कश्ती है जिस पर मुसलमान सवार हुए हैं, हर वक़्त खौफे-खुदा में मुब्तिला रहते है.

"और जब कहा जाता है कि अल्लाह ने तुम को जो कुछ दिया है उसमें से कुछ खर्च क्यूं नहीं करते, तो कुफ्फर मुसलामानों से कहते हैं कि क्या हम ऐसे लोगों को खाने को दें जनको कि अगर अल्लाह चाहे तो बेहतर खाना देदे."
सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (४७)

कुफ्फार का बेहतर जवाब था उस वक़्त के उभरते इस्लामी गुंडों को.
आज भी ये मज़हबी ऊधम के लिए चंदा उन्हीं से वसूलते हैं जिनकी रातें गारत करते है.

"ये लोग कहते हैं कि ये वादा कब पूरा होगा (अल्लाह के क़यामत का वादा) अगर तुम सच्चे हो? ये लोग बस एक आवाज़ सख्त  के मुन्तज़िर हैं, जो इन को आलेगी और ये सब बाहम लड़ते रहे होंगे. सो न वासीअत करने की फ़ुर्सत होगी न अपने घर वालों के पास लौट कर वापस जा सकेगे. और तब सूर फूँका जायगा और व सब क़ब्रों से निकल कर अपने रब की तरफ जल्दी जल्दी चलने लगेंगे. कहेगे कि हाय हमारी कम बख्ती! हम को हमारी क़ब्रों से किसी ने उठाया , ये वही है जिसका रहमान ने वडा किया था और पैगम्बर सच कहते थे."
सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (४९-५२)
कई बार कुरआन में ये बात आती है लोग पूछते हैं कि "ये वादा कब पूरा होगा".
इसकी सच्चाई ये है कि लोग उस वक़्त मुहम्मद की चिढ बनाए हुए थे मियाँ  'क़यामत कब आएगी? वो वादा कब पूरा होगा?- - - "
ये सुनने के लिए कि देखें, इस बार दीवाने ने क़यामत का खाका क्या तैयार किया है.
अफ़सोस कि पागल दीवाने की वह बड़ बड़ आज मुसलामानों की किस्मत बन चुकी है.

"फिर उस दिन किसी पर ज़रा ज़ुल्म न होगा, तुमको बस उन्हीं कामों का बदला मिलेगा जो तुमने किए थे. अहले जन्नत बे शक उस दिन अपने मश्गलों में खुश दिल होंगे. वह और उनकी बीवियाँ  सायों में, मसह्रियों पर तकिया लगाए बैठे होंगे. इनके लिए वहाँ पर मेवे होंगे और जो कुछ माँगेंगे मिलेगा. और इनको परवर दिगार मेहरबान की तरफ़ से सलाम फ़रमाएगा."
सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (५३-५८)

लअनत भेजिए उस जन्नत पर जिसमें आदमी हाथों पर हाथ धरे मसेह्रियों पर बैठा रहे. उस तवील ज़िन्दगी को जीने का न कोई मकसद हो न उसकी मंजिल.

"सो क्या तुम नहीं समझते ये जहन्नम है जिसका तुमसे वादा किया जाया करता था, आज अपने कुफ़्र के बदले इसमें दाखिल हो जाओ. आज हम उनके मुँह पर मोहर लगा देंगे, आज उनके हाथ हम से कलाम करेंगे और उनके पाँव शहादत देंगे, जो कुछ लोग करते थे और अगर हम चाहते तो उनकी आँखों को हम मालिया मेट कर देते तो वह रस्ते की तरफ़ दौड़ते फिरते सो उनको कहाँ नज़र आता."
सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (५३-५८)

हाथ और पाँव कलाम करेंगे और गवाही देंगे, इसकी ज़रुरत क्या होगी जब अल्लाह ने मुँह दे रक्खा है? अल्लाह अगर चाहता तो " उनकी आँखों को हम मालिया मेट कर देते तो वह रस्ते की तरफ़ दौड़ते फिरते सो उनको कहाँ नज़र आता." सजा यहीं तक होती तो बेहतर होता.

"और हम जिसको उम्र ज्यादह दे देते हैं उसको तबई हालत में उल्टा कर देते हैं, सो क्या लोग नहीं समझते."
सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (६८)

मुहम्मद आयतें चोकरने से पहले अगर सोच लिया करते तो कुरआन बहुत मुख़्तसर हो जाता और उनकी उम्मत के लिए बात बात पर रुसवा न होना पड़ता.
कह रहे हैं कि उम्र दराजी अल्लाह अज़ाबियों को देता है जब कि लोग उससे उम्र दराज़ करने की दुआ मांगते हैं. उलटी सीधी बातों का यह कुरआन.

"और हम ने आप को शायरी का इल्म नहीं दिया है और आपके लिए शायाने शान भी नहीं है. वह तो महेज़ नसीहत है. और आसमानी किताब है जो एहकाम को ज़ाहिर करने वाली है, ताकि ऐसे लोगों को डरावे जो जिंदा होऔर ताकि काफिरों पर हुज्जत साबित हो जाए."
सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (६९-७०)

शायर तो तुम थे ही ये उस वक़्त का इतिहास बतलाता है, शायर नहीं बल्कि मुत-शायर (अधूरे शायर) पूरी कि पूरी कुरआन गवाह है इस बात की. तुम्हारी तलवार ने तुम्हारी मुत-शायरी को कुरआन बना दिया.

"क्या आदमी को मालूम नहीं कि हम ने उसको नुत्फे से पैदा किया तो वह एलानिया एतराज़ पैदा करने लगा और उसने हमारी शान में एक अजीब मज़मून बयान किया और अपने असल को भूल गया . कहता है हड्डियों को जब वह बोसीदा हो गईं, कौन ज़िन्दा करेगा? जवाब दे दीजिए कि उनको जिंदा करेगा, जिसने अव्वल बार में इसको पैदा किया हैऔर वह सब तरह का पैदा करना जनता है."
सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (७८-७९)

कौन कमबख्त आदमी कहता है कि वह अपने बाप के नुत्फे से नहीं, अलबत्ता तुम जैसे बने रसूल ज़रूर इस से परे दिखलाई देते हो. अजीब मज़मून तुम्हारा सुर्रा है कि इंसान क़ब्रों से उठ पडेगा
.
''जब वह किसी चीज़ को पैदा करना चाहता है तो उसका मामूल तो ये है कि उस चीज़ को कह देता है,'' हो जा'', वह हो जाती है."
सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (८३)
बस कि मुसलमान पैदा करने में नाकाम हो रहा है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 7 April 2013

सूरह यासीन -३ 6 (१)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह यासीन -३६ परा - २२  

(पहली क़िस्त)

कुरआन की ये चर्चित सूरह है. इस की चर्चा ये है कि ये बहुत ही बा बरकत आयतों से भरपूर है. मुसलमान इसे कागज़ पर मुल्ला से लिखवा के पानी में घोल कर पीते हैं. इस की अब्जद लिखवा कर गले में तावीज़ बना कर पहनते हैं. इस  के तुगरा दीवार पर लगा कर घरों को आवेज़ां  करते हैं.
मैं एक हार्ट स्पेशलिस्ट के पास खुद को दिखलाने गया, उन्हों ने मुझे नाम से मुस्लिम जान कर दीवार पर सजी सूरह यासीन को बुदबुदाने के बाद मेरा मुआएना किया. वह मुस्लिम अवाम का जज़्बाती इस्तेसाल करते हैं. ऐसे ही एक हिन्दू डाक्टर के पास गया तो मुझे देखने से पहले हाथों को जोड़ कर  ॐ नमस् शिवाय का जाप किया. ये हिदू और मुसलमान दोनें डाक्टर पक्के ठग हैं. अवाम बेदार नहीं हुई कि समझे कि मेडिकल साइंस का आस्थाओं से क्या वास्ता है.

"यासीन"
मोह्मिल (अर्थ हीन) लफ्ज़ है, अल्लाह का रस्मी छू मंतर समझें.
"क़सम है कुरआन ए बा हिकमत की! कि बेशक आप मिन जुमला पैगम्बर के हैं."
सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (२-३)

उम्मी मुहम्मद जब कोई नया लफ्ज़ या लफ्ज़ी तरकीब को सुनते है तो उसे दोहराया करते हैं, जैसे कि अक्सर जाहिलों में होता है कि वह लफ्ज़ बोलने के लिए बोलते हैं. यहाँ मुहम्मद ने "मिन जुमला" को जाना है जो कि कुरआन में कई बार दोहराने के लिए इसे बोले हैं. 'मिन जुमला' कारो बारी अल्फाज़ हैं जिसके मतलब होते हैं 'टोटली' यानी 'कुल जोड़'. तर्जुमान इसमें मंतिक भिड़ाते रहते हैं.
मुहम्मद मुतलक जाहिल थे और ये है जिहालत की अलामत. कहते हैं 

"आप मिन जुमला पैगम्बर के हैं."
इसी ज़माने की एक हदीस है कि इस उम्मी ने कहा
" काफिरों की औरतें और बच्चे मिन जुमला काफ़िर होते है, शब खून  में अगर ये मारे जाएँ तो कोई अज़ाब नहीं.
यहाँ से अल्लाह को कसमें खाने का दौरा पड़ेगा तो आप देखेंगे कि वह किन किन चीजों की कसमें खाता है. वह कसमों की किस्में भी बतलाएगा, जिससे मुसलमान फैज़याब हुवा करते हैं. वह कुरआन ए बा हिक्मत की क़सम खा रहा है जिसमें कोई हिकमत ही नहीं है. खुद अपनी तारीफ कर रहा है?
कितने भोले भाले जीव हैं ये मुसलमान कि मुआमले को कुछ समझते ही नहीं.

"सीधे रस्ते पर हैं, ये कुराने-अल्लाह ज़बरदस्त की तरफ़  से नाज़िल किया गया है. कि आप ऐसे लोगों को डराएँ कि जिनके बाप दादे नहीं डराए गए थे सो इससे ये बेख़बर  हैं."
सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (४-६)

जो डरे वह बुजदिल होता है.खुद डर का शिकार होता है. अल्लाह अगर है तो वह डराने का मतलब भी न जनता होगा, और अगर जानते हुए बन्दों को डराता है तो वह अल्लाह नहीं शैतान है.

"इनमें से अक्सर लोगों पर ये बात साबित हो गई है कि वह ईमान नहीं लाएँगे. हमने इनकी गर्दनों में तौक़ डाल  दी है, फिर वह ठोडियों तक हैं, जिससे इनके सर उलर  रहे हैं."
सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (७-८)

माज़ूर और मायूस अल्लाह थक हार कर बैठ गया कि कुफ्फार ईमान लाने वाले नहीं. तौक़ (एक जेवर) उनकी गर्दनों में क्या इनाम के तौर पर डाल दी है?
उम्मी का तखय्युल मुलाहिज़ा हो, जब ठोडियाँ जुंबिश न कर सकें तो सर कैसे उलरेन्गे?
दीवाना जो मुँह में आता है, बक देता है.

"और हमने एक आड़ इनके सामने कर दी और एक इनके पीछे कर दी, जिससे हम ने इनको घेर दिया, सो वह नहीं देख सकते. इनके हक़ में आप का डराना न डराना दोनों बराबर है सो वह ईमान न ला सकेगे. पस आप तो सिर्फ़ ऐसे शख्स को डरा सकते हैं जो नसीहत पर चले और अल्लाह को बिन देखे डरे."
सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (९-११)

एक महिला प्रवचन दे रही थीं, कह रही थीं कि पुस्तक पर पहले आस्था क़ायम करो, फिर उसको खोलो.
मुझसे रहा न गया उनको टोका कि पुस्तक में चाहे कोकशास्त्र ही क्यूं न हो. वह एकदम से सटपटा गईं और मुँह जिलाने वाली बातें करने लगीं.
यहाँ पर मुहम्मदी अल्लाह आगे पीछे आड़ लगा रहा है कि सोचने समझने का मौक़ा ही नहीं रह जाता कि उसके क़ुरआन  में कोकशास्त्र है या इससे घटिया बातें भी, बस डर के उसको तस्लीम कर ले.

"बेशक हम मुर्दों को जिंदा कर देंगे और हम लिखे जाते हैं वह आमाल भी जिन को लोग आगे भेजते जाते हैं और उनके वह आमाल भी जो पीछे छोड़ जाते हैं और हम ने हर चीज़ को एक वाज़ह किताब में दर्ज कर दिया है,"
सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (१२)

मुहम्मद का मुशी बना अल्लाह दुन्या के अरबों खरबों इंसानों का बही खाता रखता है, ज़रा उम्मी की भाषा पर गौर करें - - -
"जिन को लोग आगे भेजते जाते हैं और उनके वह आमाल भी जो पीछे छोड़ जाते हैं "
अल्लाह के सहायक ओलिमा, ऐसी बातों की रफ़ू गरी करते हैं.

"और एक निशानी इन लोगों के लिए मुर्दा ज़मीन है, हमने इसको जिंदा किया और इससे गल्ले निकाले, सो इनमें से लोग खाते हैं."
सूरह यासीन -३६ पारा - २३  आयत (३३)

बार बार मुहम्मद ज़मीन को मरे हुए इंसानी जिस्म की तरह मुर्दा बतलाते हैं, मुसलमान इसे ठीक मान बैठे हैं, मगर ज़मीन कभी भी मुर्दा नहीं होती, पानी के बिना वह उबरती नहीं, बस. मश हूर शायर रहीम खान खाना कहते हैं - -

रहिमन पानी राखियो, पानी बिन सब सून.
पानी गए  न ऊबरे, मोती मानस चून.

मुहम्मद रहीम के फिकरी गर्द को भी नहीं पा सकते. जमीन को मुर्दा कहते हैं. फिर पानी पा जाने के बाद उसे ज़िदा पाते हैं मगर इसी तरह इंसानी जिस्म मुर्दा हो जाने के बाद कभी ज़िदा नहीं हो सकता.
वह इस जाहिलाना मन्तिक़ को मुसलामानों में फैलाए हुए हैं.

"सो इनके लिए एक निशानी रात है जिस पर से हम दिन को उतार लेते हैं सो  यकायक वह लोग अँधेरे में रह जाते है और एक आफ़ताब अपने ठिकाने की तरफ़ चलता रहता है. ये अंदाज़ा बांधता है उसका जो ज़बर दस्त इल्म वाला है, न आफ़ताब को मजाल है कि चाँद को जा पकडे, और न रात दिन के पहले आ सकती है और दोनों एक एक दायरे में तैरते रहते हैं."
सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (३७-४०)

ऐ उम्मी ! अपनी ज़बान में सालीक़ा और समझ पैदा कर. ये दिन यकायक नहीं उतरता, इस बीच शाम भी होती है, यकायक लोग अँधेरे में कब होते हैं.
मुसलमानों को तू चूतिया बनाए हुए है जिनको देख कर ज़माना खुश हो रहा है कि ये अल्लाह की मखलूक यूँ ही बने रहें ताकि हमें सस्ते दामों में ग़ुलाम मयस्सर होते रहें.
और ऐ उम्मी! ये आफताब चलता नहीं, अपनी खला में क़ायम है और इसके पास कोई इंसानी दिलो दिमाग नहीं है कि वह किसी ज़बरदस्त को जानने की जुस्तुजू रखता हो.
और ऐ जहिले मुतलक! ये आफताब और ये माहताब कोई लुका छिपी का खेल नहीं खेल रहे. चाँद ज़मीन की गर्दिश करता है, ज़मीन इसे अपने साथ लिए सूरज की गर्दिश में है.
और ऐ मजलूम मुसलमानों! तुम जागो कि तुम पर जगे हुए ज़माने की गर्दिश है.
कलामे दीगराँ  - - -
"ऐ खुदा ! हमारी ज़िन्दगी को तालीम ए बद देने वाले आलिम बिगड़ते हैं, जो बद जातों को अज़ीम समझते हैं, जो मर्द और औरत के असासे और विरासत को लूटते हैं और तेरे नेक बन्दों को राहे रास्त से बहकते हैं"
"ज़र्थुर्ष्ट"
इसे कहते हैं कलामे पाक -
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान