Thursday 30 October 2014

Ishaq

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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इस्हाक़ (आइशक़) 

क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  
झलकियाँ - - -

खुदा एक बार फिर इब्राहीम और उसकी नस्लों पर इन्तेहाई दरजा मेहरबान रहने का वादा किया। उसने उसको अपने दीन पर पाबन्द रहने का हुक्म दिया। खुदा ने इब्राहीम का नाम बदल कर अब्रहाम कर दिया और सारे का नाम बदल कर सारा कर दिया 
खुदा ने बूढी सारा से भी एक औलाद होने की खुश खबरी दी। 
 अब्रहाम को इस्माईल की फ़िक्र ज़्यादा थी , खुदा ने इसके दिल की बात जान लिया और कहा , 
मैं इस्माईल को भी दुआ देता हूँ कि उसकी नस्ल अफ़ज़ाई होगी मगर सारा के बेटे इस्हाक़ पर मेरी नज़र-ए-करम ज़्यादा होगी। 
खुदा ने अपना वादा पूरा किया , नब्बे साल की उम्र में सारा ने इस्हाक़ को जन्म दिया। आठवें दिन खुदा के निज़ाम के तहत इसका खतना हुवा। 
जब इसका का दूध छुड़ाया गया तो इब्राहीम ने एक बड़ी दावत करके खुशियाँ मनाई।  
एक रात खुदा ने इब्राहीम को ख्वाब में इस्हाक़ की क़ुरबानी का हुक्म दिया। दूसरे दिन इब्राहीम अपने बेटे इस्हाक़ को लेकर , देखे हुए ख्वाब के मुताबिक़ उस पहाड़ी पर चल पड़ा जहाँ पर खुदा ने इसहाक़ की क़ुरबानी मांगी थी। 
तीन दिन के सफर के बाद इब्राहीम उस पहाड़ी पर पहुँचा। उसने यहाँ पर एक बेदी बनाई और उस पर लकड़ी रखी , फिर इस्हाक़ के हाथ-पाँव बांध कर छुरा उठाया ही था कि निदा आई - - -
"बच्चे पर कोई ज़र्ब न आए "
वह रुक गया। उसने देखा कि एक मेमना सामने खड़ा था जिसकी सीगें झाड़ियों में फंसी हुई थीं। मेमने को झाड़ियों से छुड़ा कर उसने उसकी क़ुरबानी दी और इस्हाक़ को घर लाया। 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 26 October 2014

ISMAEEL

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 

क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  
झलकियाँ - - -

झलकी नंबर  ७ 

इस्माईल 


इब्राहीम की बीवी सारा ने एक दिन शौहर से कहा कि मैं माँ नहीं बन सकती , इस लिए तुम अपनी मिस्री सेविका को रखैल बना कर रख लो , इस से अवलाद मिल सकती है। इब्राहीम ने सारा की राय मान ली। सारा की मिस्री सेविका का नाम हागार (हाजरा) था।  कुछ रोज़ बाद ही वह हामला हो गई तब मुआमला बिगड़ गया क्योंकि वह इतराने लगी , जिसकी वजह से सारा एहसास कमतरी में मुब्तिला हो गई , नतीजतन सारा और इब्राहीम में कहा सुनी होने लगी।  तंग आकर इब्राहीम ने सारा को अख्तियार दे दिया कि वह जो दिल चाहे करे , गोया सारा हाजरा को तंग करने लगी , इतना कि हाजरा को घर छोड़ना पड़ा। 
हाजरा वीराने में भटकती हुई एक झरने की पास पर पहुँची जो सूर के रास्ते में था , जहाँ इसे एक फरिश्ता मिला जिसने इसकी दिल जोई की।  उसने बतलाया कि तेरी अवलाद की नस्लें इतनी हो जाएँगी कि गिनी न जा सकेंगी।  इसने हाजरा के पेट में पलने वाले बच्चे का नाम इस्माईल रखने को कहा और कहा इसकी शक्ल जंगली गधे जैसी होगी। वह इंसानी बिरादरी का मुखालिफ होगा। फ़रिश्ते के समझाने बुझाने के बाद हाजरा इब्राहीम के पास वापस चली गई। वहाँ इसने अपने बच्चे को जनम दिया  
हाजरा के माँ बन जाने के बाद सारा भी हामला हुई और उसने भी एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम इस्हाक़ पड़ा। 
सारा को हाजरा और इसके बच्चे से फिर जलन होने लगी , इसे दोनों का वजूद अपने घर में गवारा न था। हाजरा को अपने बच्चे के साथ एक बार फिर इब्राहीम का घर छोड़ना पड़ा। 
सारा के दबाव में आकर इब्राहीम ने एक दिन कुछ खाने का सामान और एक मश्क पानी देकर हाजरा और इस्माईल को घर से निकाल दिया। हाजरा चलते चलते  बअर शीबा के वीराने में पहुँच गई और वहां भटकने लगी। खाना और पानी ख़त्म हो गया था , बच्चा भूक और प्यास से बिलखने लगा था। हाजरा से देखा न गया , वह बच्चे से दूर तीर के फ़ासले पर जा बैठी कि इस हालत में अपने बच्चे को मरता नहीं देख सकती थी। 
खुदा ने हाजरा पर रहम खाया , उसने जब आँखें खोली तो देखा सामने एक पानी का सोता बह रहा है। फ़ौरन उसने अपने बच्चे को पानी पिलाया और अपनी मशक भरी।  इस्माईल इसी मैदान में पला बढ़ा और तीर अंदाज़ बना।   

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 19 October 2014

Loot

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  

झलकियाँ - - -

झलकी नंबर 6

लूत (लोट)
ख़ुदा सोदेम और गोमेरा , दोनों बस्तियों के ख़िलाफ़ लोगों की दुहाइयाँ सुनी , कि यहाँ के लोग बड़े पापी और बद फ़ेल हुए जा रहे हैं। सोदेम में ही लूत परदेसियों की तरह रहता था।  ख़ुदा ने आदमियों की शक्ल में अपने फ़रिश्तों को सोदेम भेजा।  वह वहाँ लूत के घर में ही मेहमान बन कर वह ठहरे। नए मेहमानों को देख कर लोगों ने लूत का घर घेर लिया और मेहमानों को घर से बाहर निकालने का शोर करने लगे ताकि वह उनके साथ बद फेली कर सकें. लूत ने उन लोगों से बड़ी मिन्नत समाजत की कि वह घर आए मेहमान से यह नाज़ेबा सुलूक न करे।  उसने अपनी बेटियों को पेश करते हुए कहा , चाहो तो इनके साथ मुबाश्रत कर लो मगर हमारे मेहमानों को बख़्श दो , इस पर भी वहाँ के बाशिंदे न माने और बज़िद रहे।  कहने लगे तू पदेशी होकर भी हद से गुज़र रहा है , हम तेरे साथ तेरे मेहमानों का भी बुरा हशर करेंगे। 
तकरार होती रही कि फरिश्तों ने लूत का हाथ पकड़ कर उसे दरवाज़े के अंदर कर लिया और अंदर से कुण्डी लगा ली।  फरिश्तों ने बाहर खड़ी भीड़ को अँधा कर दिया। लूत और उसके कुनबे को सुब्ह होते ही बस्ती से बाहर निकाल लाए। 
इसके बाद ख़ुदा ने दोनों बस्तियों पर तेज़ाब और आग की बारिश कर के तबाह कर दिया। 
भागते वक़्त लूत की बीवी ने पलट कर बस्ती की तरफ़ देखा ही था कि वह नमक का खम्बा बन गई। लूत अपनी दोनों बेटियों को लेकर दूर पहाड़ों पर रहने लगा।  
 *पहाड़ियों पर दूर दूर तक न आदम न आदम ज़ाद , बस यही तीन बन्दे अकेले रहते थे। लूत की दोनों बेटियाँ फ़िक्र मंद रहने लगीं कि दस्तूर ज़माना के हिसाब से कौन यहाँ आएगा जो हम से शादी करेगा ? 
दोनों ने आपस में तय किया कि बूढ़े बाप को शराब पिला कर इतना नशे में कर दें कि इसको कोई होश न रह जाय , फिर दोनों बारी बारी रात को इसके पास सोएँ ताकि औलाद हासिल कर सकें और दोनों ने ऐसा ही किया। इस तरह दोनों को एक एक बेटे मिले। बड़ी बेटी के बेटे का  नाम मुआब पड़ा और छोटी के बेटे का नाम बैन अम्मी हुवा जो कि बाद में अपनी नस्लों के मूल पुरुष बने। दोनों की नस्लें मुआबियों और अमोनियों के नाम से मशहूर हुए। 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 12 October 2014

Ibraheem

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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झलकी नंबर 5
इब्राहीम

बुत परस्तों में से ख़ुदा ने इब्राहीम को चुना और इन्हें सिर्फ एक पूज्य को मानने हुक्म दिया , इन पर कृपा दृष्टि रखने का वादा किया।  इब्राहीम के बाप तेराह (आज़र बुत तराश ) ने अपने बेटे इब्राहीम को खुल्दिया (दमिश्क़) से पर देश जाने का मशविरह दिया करता था।  एक दिन इब्राहीम बाप की बात मानता हुवा अपनी पत्नी सारा और भतीजे लूत को लेकर वतन से बाहर प्रवास कर गया। 
वह इस सफ़र में परेशान हुवा , यहाँ तक की फ़ाक़ों की नौबत आ गई , तब इसने मिस्र की राह पकड़ी।  इसकी बीवी सारा ख़ूब सूरत थी जिसका इसे ख़तरा महसूस हुवा।  ग़रज़ इसने अपनी बीवी को अपनी बहन बना कर मिस्र के बादशाह की ख़िदमत में हाज़िर हुवा।  फ़राउन (बादशाह ) को सारा पसंद आ गई।  उसको बादशाह ने अपने हरम में ले लिया , मगर इस अमल से वह गुनहगार हुवा।  ख़ुदा ने इस अज़ाब नाज़िल कर दिया। फ़राउन ने इब्राहीम को खूब खरी खोटी सुनाई और सारा को माल असबाब देकर अपने हरम से रुखसत किया। 
मिस्र से बाहर निकल कर इब्राहिम एक गांव में अपनी बीवी और भतीजे के साथ बस गया और पशु पालन का व्योसाय अख्तियार किया।  इस व्योसाय में वह फला फूला। 
वह समय भी आ गया कि जब इब्राहीम और लूत में अनबन हो गई। दोनों में अलगाव इस तरह हुवा कि दोनों मौजूद जगह को छोड़ कर भिन्न दिशाओं में दूर दूर जाकर बसें।  माल इस तरह बटा कि सफ़ेद भेड़ें एक ने ले लीं और काली दूसरे ने ले लीं। 
थोड़े दिन बीते कि इब्राहीम को पता चला कि उसके भतीजे लूत को राजा ने क़ैद कर लिया है।  वह अपने ३१८ साथियों के साथ लूत को आज़ाद कराने के लिए चल पड़ा। उसने राजा पर धावा बोल कर लूत को रिहा कराया। 
ख़ुदा इब्राहीम पर बहुत मेहरबान था।  इसको आने वाली नस्लों का मूरिसे-आला (मूल-पुरुष )बनाने का वादा किया। 
मगर इब्राहीम तो निःसंतान था , उसने खुदा से फ़रियाद किया कि " मैं तो निःसंतान हूँ , मूरिसे-आला कैसे बन सकता हूँ ? मेरा वारिस दमिश्क़ का कोई रिश्ते दार ही बन सकता है या फिर मेरे नौकर-चाकर।"
  खुदा ने इसको हुक्म दिया कि आसमान पर तारे गिन , जितने तारे हैं , उतने ही तेरी नस्लों में अफ़राद होंगे। फिर खुदा ने इब्राहीम की नस्लों को फरात नदी के आस-पास बड़ी ज़मीन देने का वादा किया। 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 9 October 2014

Nooh

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  


झलकियाँ - - -

झलकी नंबर 3 


आदम की औलादें 
हव्वा हामला हुई और पहले आदमी को जन्म हुवा नाम रख्खा गया काईन (क़ाबील )फिर इसके बाद इसका छोटा भाई हाबील हुवा।  काबील किसान बना और हाबिल चरवाहा। काईन से ख़ुदा खुश न था क्योंकि  वह अपने छोटे भाई से बैर रखता था।  एक रोज़ काइन ने हाबिल  को मौत के घाट उतार दिया।  काइन से ख़ुदा बहुत नाराज़ हुवा और ज़मीन पर परीशान हाल ज़िन्दगी जीने की बददुआ दे दी।  
तीसरा बेटा जो सेत हुवा जिसे हव्वा ने हाबिल का दूसरा जन्म माना यही आदम  वारिस हुवा। 
काईन अदन के पूरब मुल्क नोद रहने लगा , उसकी कई औलादें हुईं जोकि चारो तरफ़ फैल गईं। उन्होंने मुख़्तलिफ़ पेशे अख़्तियार किए, पेशे के एतबार से इनकी बिरादरी बनीं और नाम बना। हाबिल के बाद भी आदम की कई बेटे और बेटियां हुईं।  आदम ने ९६० साल की उम्र पाई। 
आदम का नस्ली सिलसिला नूह तक 
१ आदम २ सेत ३ ऐनवस  ४ कैनान ५ महलहल ६ यारीद ७ हनूक ८ मतूशला ९ लमयक १० नूह। 
इस्लाम ने आदम हव्वा और इनकी अवलादों की मिट्टी पिलीद कर रखी है , कहता है हव्वा को हर सुब्ह लड़का पैदा होता और हर शाम लड़की और उन दोनों की शादियाँ हो जातीं यानी यह अख़लाक़ी जुर्म रवा था, जिसे सुन कर आज की जवाँ नस्ल गुमराह हो सकती है। 
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झलकी नंबर 4

नूह 
नूह का दौर आते आते लोगों में बुराइयां ज़्यादा बढ़ गई थीं। काइन की औलादें आदम की औलादें कही जाने लगी थीं और और सेत की औलादें खुदा की। आदमी में बुराइयाँ बढ़ गई थीं।  खुदा बेराह रवी पर चलने वाले आदमियों से रंजीदा हुवा और तमाम मख्लूक़ को फ़ना करने का फैसला किया , मगर खुदा को नूह पसंद था , इस लिए नूह को सात दिनों का मौक़ा दिया कि वह एक कश्ती बना ले। 
खुदा ने कश्ती की तामीर के बारे में अपनी हिदायत दिया कि कश्ती ३०० हाथ लंबी हो , ५० हाथ चौड़ी और तीस हाथ ऊंची हों। कश्ती में पाक साफ़ जानवरों के चार चार जोड़े और नापाक जानवरों के एक एक जोड़े रखे और इनकी खुराक भी। खुदा बहुत दुखी था फिर भी नूह और इसके परिवार को कश्ती में रखने को राज़ी हो गया बाकियों को फ़ना कर देने पर आमादा था। 
चालीस दिनों तक ऐसी बारिश हुई कि जैसे आसमान के फाटक खुल गए हों। इतनी बारिश हुई कि पहाड़ों का कहीं अता पता न रहा। इसके बाद तूफ़ान ख़त्म हुवा। नूह और उसके परिवार से साथ साथ तमाम जीव कश्ती से बाहर निकले। खुदा ने इन्हें धरती पर फूलने फलने की दुआ दी।  नूह  ने एक बेदी (इबादत गाह) बनाई और कुछ परिंदों की भेँट चढ़ा कर खुदा का शुक्र गुज़ार हुवा। खुदा ने इसे पसंद   किया और अहद  किया कि इसके बाद आदमियों के कारन धरती पर किसी  को बददुआ नहीं दूँगा और कभी भी तमाम मख्लूक़ को तबाह नहीं करूँगा।  खुदा ने आदमज़ादों को धरती पर फूलने फलने का आशीर्वाद दिया। 
नूह की तीन औलादें थीं - - - सेम , हाम और यीफियत 
नूह को नशे के आलम में हाम के बेटे कनान ने देख लिया जिसकी वजह से नूह बहुत नाराज़ हुवा और इसे बददुआ दी कि हाम की औलादें अपने दोनों भाइयों की औलादों की ग़ुलामी करेंगी। 
तौरैत बतलाती है कि ख़ुदा आदमियों को फ़ना होने की बद दुवा दी थी और कुरआन कहता है नूह ने ही अपनी उम्मत को बद दुवा दी थी। 
नूह से इब्राहीम तक की नस्लों का शजरा 
१- नूह २-सेम ३-अर्पिशद ४-सीलः ५-यबीर ६- पीलीग ७-रऊ ८-सरोगः ९-नाहोर १०-तेराह (आज़र ) ११-इब्राहीम।   

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 5 October 2014

Aadam

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी कक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  
झलकियाँ - - -

झलकी नंबर २ 
आदम  
आदम अदन के बाग़ीचे में तनहा रहा करता था जिसको ख़ुदा ने इस तरह बनाया था कि मिटटी का एक पुतला बनाया और इसके नाक में फूँक मार दी , इसके बाद वह जानदार हो गया , 
इसके बाद अदन के शादाब बाग़ में आदम की तन्हाई दूर करने के लिए इसको बेहोश किया और इसकी एक पसली निकाल  कर उस पर गोश्त चढ़ा कर एक औरत बनाया, 
गोया इस तरह ख़ुदा ने उसे पत्नी का सुख दिया।
अदन के बाग़ में तमाम फलों के पेड़ थे जिसमे से कुछ फलों को खाने पर दोनों पर बंदिश लगाई।  
एक रोज़ एक सांप ने औरत यानी हव्वा को बहका कर इसे खिला दिया।  
बस कि सारा मुआमला बिगड़ गया। दोनों सो कर उठे तो इनकी मासूमियत ख़त्म हो चुकी थी और ज़ेहनों में अच्छे बुरे की तमीज़ आ चुकी थी।  
इन्हें पहली बार एहसास हुवा कि वह नंगे हैं , दोनों दौड़ कर गए और अपने जिस्मों को इंजीर के पत्तों से ढका। 
इस वाक़ए से ख़ुदा को ख़दशा हुवा कि बाग़े-अदन में रहकर कहीं यह लोग इस फल को न खा लें जिसको खाने से मेरी तरह अमर न हो जाएं। इस लिए इन दोनों को बाग़े-अदन  निकाल बाहर कर दिया और बाग़े-अदन को आग की लपटों से घेरा-बंदी कर दी। 
ख़ुदा ने कहा जाओ अपने हुक्म उदूली की सज़ा भुगतो और ज़मीन पे अपनी रोज़ी रोटी तलाश करो। 
 सांप को ख़ुदा ने बद दुआ दी कि तू इंसान और हैवान की नज़रों में हमेशा ज़लील रहेगा, पेट के बल चलेगा , कुचला जायगा और ख़ाक फांकेगा।  
ख़ुदा ने औरत ज़ात को भी बद दुआ दिया कि दौरान हमल तेरा दर्द बढ़ा दिया  जायगा।  तू हमेशा मर्दों के मातहत रहेगी। 

आदम दुन्या का पहला इंसान नहीं 
आदम दुन्या का पहला इंसान हो ही नहीं सकता , न इसे साइंस मानती है और न ही  इंसानी इतिहास।  तौरेत ख़ुद इस सच्चाई की अनजाने में गवाह है।  
आदम की पहली औलाद काईन ने अपने भाई को क़त्ल कर दिया था , तब ख़ुदा ने इसे सख्त सज़ा दी। इस पर काईन ने ख़ुदा से अपील की कि 
जो सज़ा तू ने मुझे दिया है वह मेरी क़ूवते-बर्दाश्त से बाहर है।  अब मुझे तेरे सामने मुंह छिपाना पडेगा। 
ख़ुदा ने कहा ऐसा नहीं !
जो काईन को मारेगा उसको सात गुना सज़ा मिलेगी (तौरेत ४१४ - १ )
तब ज़मीन पर दैत्य भी रहते थे , यह दौर ए क़दीम के ताक़त वर और मशहूर बहादर लोग थे। (तौरेत ४-६-१ )
इन दोनों तौरेती आयतों से साबित होता है कि आदम से पहले भी इंसानी आबादी बकस्रत हुवा करती थी। ख़ुदा के कायनात साज़ी से पहले ही दुन्या इंसानी आबादी से भरी हुई थी। 
क़ुरआन में मुहम्मद ने आदम और हव्वा की कहानी अपने ढंग से ही गढ़ी है। अदन की बाघ की जगह जन्नत , साँप की जगह शैतान और फल की जगह गन्दुम वग़ैरा वगैरा। 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान