Tuesday 29 November 2011

सूरह यूनुस -१० (दूसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


(दूसरी किस्त)  


खुदमुहम्मद ने आज़माइश के तौर पर दो चमत्कारी झूट गढ़े, शक्कुल क़मर यानि चाँद के दो टुकड़े उंगली के इशारे से कर दिए जिसके नतीजे में चाँद का टुकड़ा एक इस छोर गिरा और दूसरा उस छोर पर गिरा,
और मेराज यानि सैर ए आसमानी. यह दोनों करतब उन्होंने ईसा, मूसा की नक़ल में लोगों के ताने पर किए मगर इस का सिवाय मुहम्मदी अल्लाह के कोई गवाह न मिला, खलीफाओं की सख्त फटकार पर फिर कोई इस किस्म का चमत्कार नहीं हुवा.
इस्लामी धर्म गुरुओं ने मुहम्मद के बाद न इन पहले मुअजज़ात को ही सच ठहराया बल्कि उसके बाद तलवार के साए में रह कर मुहम्मद के बारे में कुछ चमत्कारी झूट गढ़ा, वह भी अपने आप में चमत्कार ही कहा जाएगा. पानी का क़हेत पड़ जाना, उसपर रसूल की उगलियों से पानी का झरना बह निकलना, सूरज के डूब जाने के एक घंटे बाद उसे फिर बाहर निकल देना, खाने और पानी में मुहम्मद के थूक देने से उस में कई गुना बरकत हो जाना वगैरा वगैरा - - -
इस तरह मुहम्मद के चमत्कारों एक लंबा अंबार भरा पड़ा है.

जलवे तूर ख्वाबे-मूसा है,
किसने देखा है, किसको देखा है.
या यूँ कहें - - -बुद्धि हाथों पे सरसों उगती रही,
बुद्धू कहते रहे कि चमत्कार है.


अब आइए मुहम्मदी अल्लाह के एहसानों में दब कर जीने का तरीका देखें - - -


"जब इंसान को कोई तकलीफ पहुँचती है तो हम को पुकारने लगता है, लेटे भी, बैठे भी और खड़े भी, फिर जब हम इसकी तकलीफ हटा देते हैं तो फिर अपनी पहली हालत पर आ जाता है. जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तें में दाखिल करेंगे जिसके नीचे नहरें जरी होंगी। हमेशा हमेशा इनमें रहेगे, यह बड़ी कामयाबी है.''

सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (12)


ऐ मुहम्मदी अल्लाह!

तू मुसलामानों को तकलीफ में मुब्तिला ही क्यूँ करता है?

क्या इस लिए कि वह तुझ को पुकारें?

तकलीफ दूर हो जाने के बाद भी क्या तू चाहता है कि वह अल्ला हू अल्ला हू करता रहे?

मुसलामानों!

क़ुदरत ने अपने मख्लूक़ के लिए एक निज़ाम सादिक़ बना कर खुद को इसके इंतेज़ाम से अलग थलग कर रखा है जिसकी वज़ाहत तुलसी दास ने बहुत खूब की है - - -


धरा को प्रमाण यही तुलसी,

जो फरा, सो झरा, जो बरा, सो बुताना.


जिसे फ़ारसी में कुछ यूँ कहा गया है- - -

'' हर कमाले रा ज़वाल.''

मुहम्मद इस निज़ाम ए कुदरत में अपनी क़ुरआनी खिचड़ी उबाल कर दुन्या को गुमराह किए हुए हैं.

जागो मुसलमानों !

बहुत पीछे हो चुके हो!!

और पीछे हो जागो तुम्हारे लिए अल कायदा, तालिबानियों और जैश ए मुहम्मद ने जहन्नम तैयार कर रक्खी है।


"और हमने तुम से पहले बहुत से गिरोहों को हलाक कर दिया, जबकि उन्हों ने ज़ुल्म किया (यानी कुफ़्र और शिर्क) हालाँकि इनके पैगम्बर दलायल लेकर आए. वह ऐसे लोग कब थे कि ईमान ले आते. हम मुजरिम लोगों को ऐसी ही सजा दिया करते हैं, फिर दुन्या में बजाए उनके तुम को आबाद किया कि ज़ाहिरी तौर पर हम देख लें कि तुम कैसा काम करते हो. जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इसमें रहेंगे, ये बड़ी कामयाबी है.''

सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (१३-१४)

इंसानी गिरोह के नादान और इस सदी के मासूम, सीधे सादे मुसलामानों!

क्या तुम्हारा अल्लाह ऐसा ज़ालिम होना चाहिए जो कह रहा है कि उसने इंसानी गिरोहों को हलाक कर दिया है?

सोचिए कि उसने ऐसे इंसानी गिरोह पैदा ही क्यों किया?

उनको ऐसी नाकिस अक्ल ही क्यूं दी?

जो इतना बेवकूफ कि इंसानों के ज़ाहिर को देखना चाहता है, उसका बातिन कैसा भी हो?

जो धमकी दे रहा हो कि ईमान न लाए तो तुहारे मादरे वतन हिंद पर तुम को मिटा कर चीनियों और जापानियों को आबाद कर देगा.जो मुहम्मद की पुर जेहल बातों को दलायल भरी बातें मानता हो?

वह कोई अल्लाह हो सकता है?

सोचो कि तुम अल्लाह के धोखे में किसी फ्रोड की इबादत तो नहीं कर रहे हो. कुरान में बार बार दोहराता है ''जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इसमें रहेंगे, ये बड़ी कामयाबी है.''

अगर सर्द मुल्कों में ऐसे नहरों वाले घर मिल जाएं तो अजाब ही होंगे मगर कुवें के मेंढक मुहम्मद को अरब के सिवा इल्म कि क्या था?


"और जब इनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं जो बिलकुल साफ़ साफ़ हैं, तो यह लोग जिनको हमारे पास आने का बिलकुल खटका नहीं है, कहते है इसके अलावः कोई दूसरा कुरआन लाइए या कम अज़ कम इसमें कुछ तरमीम कर दीजिए. आप कह दीजिए कि मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं इस में अपनी तरफ़ से कुछ तरमीम कर दूं. बस मैं तो इसी की पैरवी करूँगा जो मेरे पास वहिय के ज़रिए भेजा गया है, अगर मैं इसमें अपने रब की ना फ़रमानी करूँगा तो मैं एक बड़े भारी दिन के अज़ाब का अंदेशा रखता हूँ.''

सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (१५)

इस्लाम बुत परस्ती के खिलाफ़ मक़बूल हो रहा था। कुछ संजीदा और साहिबे इल्म लोग भी इसमें शामिल हो रहे थे जिनको कुरआन फ़ितरी तौर पर हज्म नहीं हो रहा था (जैसे कि आज तक इन मक्कार और खुद गरज़ ओलिमा के सिवा इसको समझने के बाद यह किसी को हज्म नहीं होता) लोग कुरआन को इस्लामी तहरीक से जुदा कर देना चाहते थे या फिर इसकी इस्लाह चाहते थे. चालाक मुहम्मद यह बात अच्छी तरह जानते थे कि अल्लाह से वहिय (ईश वाणी) का सिसिला ही उनकी पैगम्बरी की बुन्याद है. वह इससे एक सूत भी पीछे हटने को तैयार न थे. बिल आखीर उनको कहना पड़ा कि कुरआन तिलावत की चीज़ है ना कि समझने समझाने की. कुरआन का झूट ही मुसलामानों के दिलो-दिमाग और वजूद परग़ालिब है. इससे जिस दिन मुसलामानों को नजात मिल जाएगी उस दिन से उसका उद्धार शुरू हो जायगा.



"और यह लोग अल्लाह की तौहीद (एक ईश्वर वाद) को छोड़ कर ऐसी चीज़ों की इबादत करते हैं जो इन लोगों को ज़रर पहुँचा सकें न नफ़ा पहुंचा सकें और कहते हैं कि यह अल्लाह के पास हमारे सिफारशी हैं. आप कह दीजिए कि क्या तुम अल्लाह तअला को ऐसी चीज़ की खबर देते हो जो कि उसे मालूम नहीं?''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (१८)

इस्लाम के मुताबिक़ कुफ़्र वह है जो अल्लाह वाहिद लाशारीक को छोड़ कर किसी और को अल्लाह माने जो उमूमन हिन्दू बुद्ध और जैन वगैरह मानते हैं और शिर्क वह है जो अल्लाह वाहिद लाशारीक के साथ किसी को शरीक करे। इस सिलसिले में बावजूद इस्लाम के सब से ज़्यादः बर्रे सागीर का मुस्लमान शिर्क ज़दा है। कब्र पुज्जे सब से ज्यादह उप महाद्वीप में ही मिलेंगे. यह इंसानी फितरत है जहाँ हर अल्लाह फ़ेल है.मुहम्मद को मालूम था कि इन मिनी अल्लाहों को अगर मिटा दिया जाए तो इस दुन्या में सिर्फ उनका नाम रह जायगा। जिसमे किसी हद तक वह कामयाब रहे मगर झूट केबद तरीन अंजाम के साथ.



"और यह लोग कहते हैं इन पर(मुहम्मद पर) इनकी रब की तरफ़ से कोई मुअज्ज़ा क्यूं नाज़िल नहीं हुवा? सो आप कह दीजिए को ग़ैब की खबर सिर्फ़ अल्लाह को है सो तुम भी मुन्तज़िर रहो, तुम्हारे साथ हम भी मुन्तज़िर हैं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (२०)

मूसा और ईसा के बहुत से मुआज्ज़े(चमत्कार)थे जिनको देख कर लोग क़ायल हो जाया करते थे और उनकी हस्ती को तस्लीम करते थे. मूसा के करिश्मे कि पानी पर लाठी मारके उसे फाड़ देना, लाठी को ज़मीन पर डालकर उसे सांप बना देना, दरयाय नील को अपनी लाठी के लम्स से सुर्ख कर देना, नड सागर को दो हिस्सों में तक़सीम करके बीच से रास्ता बना देना वगैरह वगैरह. इसी तरह ईसा भी चलते फिरते करिश्में दिखलाते थे. बीमार को सेहत मंद कर देना, कोढियों को चंगा करदेना, सूखे दरख़्त को हरा भरा कर देना और बाँझ औरत की गोद भर देना वगैरह वगैरह. लोग मुहम्मद से पूछा करते कि आप बहैसियत पैगम्बर क्या मुअज्ज़े रखते हैं तो जवाब में मुहम्मद बजाय अपने करिश्मे दिखलाने के कुदरत के कारनामें गिनवाने लगते, जैसे रात के पीछे दिन और दिन के पीछे रात के आने का करिश्मा, मेह से पानी बरसने का करिश्मा, ज़मीन के मर जाने और पानी पाकर जी उठने का करिश्मा, अल्लाह को हर बात के इल्म होने का करिश्मा. किस कद्र ढीठ और बेशर्मी का पैकर थे वह. करिश्मा साज़. बाद में रसूल के प्रोपेगंडा बाजों नें रसूली करिश्मों के अम्बार लगा दिए. पानी की कमयाबी अरब में मसला-ए-अज़ीम था, सफ़र में पानी की जहाँ कमी होती लोग प्यास से बिलबिला उठते, बस रसूल की उँगलियों से ठन्डे पानी के चश्में फूट निकलते. लोग सिर्फ प्यास ही न बुझाते, वजू भी करते बल्कि नहाते धोते भी. रसूल हांड़ी में थूक देते, बरकत ऐसी होती की दस लोगों की जगह सैकड़ों अफराद भर पेट खाते और हांड़ी भरी की भरी रहती. इस किस्म के दो सौ चमत्कार मुहम्मद के मदद गार उनके बाद उनके नाम से जोड़ते गए.मुहम्मद जीते जी लोगों के तअनो से शर्मसार हुए तो दो मुअज्ज़े आख़िरकार गढ़ ही डाले जो मूसा और ईसा के मुअज्जों को ताक़ पर रख दें. पहला यह कि उंगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए जिसे ''शक्कुल क़मर'' नाम दिया. दूसरा था पल भर में सातों आसमानॉ की सैर करके वापस आ जाना, इसको नाम दिया ''मेराज''। यह बात अलग है कि इसका कोई गवाह नहीं सिवाय अल्लाह के. अफ़सोस कि मुसलामानों का यह गैर फितरी सच ईमान बन गया है।



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 27 November 2011

सूरह यूनुस -१० (पहली किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह यूनुस -१०
पहली किस्त


आम मुसलमान मुहम्मद कालीन युग में इस्लाम पर ईमान लाने वाले मुसलामानों को जिन्हें सहाबी ए कराम कहा जाता है, पवित्र कल्पनाओं के धागों में पिरो कर उनके नामों की तस्बीह पढ़ा करते हैं, जब कि वह लोग ज़्यादः तर गलत थे, वह मजबूर, लाखैरे, बेकार और खासकर जाहिल लोग हुवा करते थे. क़ुरआन और हदीसें खुद इन बातों के गवाह हैं. अगर अक़ीदत का चश्मा उतार के तलाशे हक़ की ऐनक लगा कर इसका मुतालिआ किया जाए तो सब कुछ कुरआन और हदीसों में ही न अयाँ और निहाँ है . आम मुसलमान मज़हबी नशा फरोशों की दूकानों से और इस्लामी मदारियों से जो पाते है वही जानते हैं, इसी को सच मानते हैं. क़ुरआन में मुहम्मद का ईजाद करदा भारी आसमान वाला अल्लाह अपनी जेहालत, अपनी हठ धर्मी, अपनी अय्यारियाँ, अपनी चालबाजियाँ, अपनी दगाबज़ियाँ, अपने दारोग (मिथ्य), अपने शर और साथ साथ अपनी बेवकूफ़ियाँ खोल खोल कर बयान करता है. मैं तो क़ुरआनी फिल्म का ट्रेलर भर आप के सामने अपनी तहरीरों में पेश कर रहा हूँ. मेरा दावा है कि मुसलामानों को अँधेरे से बाहर निकालने के लिए एक ही इलाज है कि इनको नमाज़ें इनकी मादरी ज़ुबान में तर्जुमें की शक्ल में पढाई जाएँ. मुसलमान हैं तो इन पर लाजिम कर दिया जाए क़ुरआनी तर्जुमा बगैर तफसीर निगारों की राय के इन्हें बिल्जब्र सुनाया जाए. जदीद क़दरों के मुकाबिले में क़ुरआनी दलीलें रुसवा की जाएँ जोकि इनका अंजाम बनता है तब जाकर मुसलमान इंसान बन सकता है।
आइए चलें बे कद्र और अदना तरीन कुरानी आयतों पर - - -

''अलरा''

यह भी अल्लाह की एक आयत है, उसकी कही हुई कोई बात है जिसके मानी बन्दे नहीं जानते। मुहम्मद और मुल्ले कहते हैं इसका मतलब अल्लाह ही बेहतर जानता है. यह वैसे ही है जैसे किसी करतब से पहले मदारी कोई मोहमिल मन्त्र की ललकार भरता है। इसको क़ुरआनी इस्तेलाह में हुरूफे मुक़त्तेआत कहते हैं. मुहम्मद ने मदारियों की नकल में सूरह शुरू करने से पहले अक्सर ऐसा किया है.



''यह पुर हिकमत किताब की आयतें हैं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (१)

पूरे क़ुरआन में इस जुमले को बार बार दोहराया गया है और इस बेढंगी किताब को कुराने-हकीम कहा गया है। मगर इसमें हिकमत के नाम पर एक सूई की ईजाद भी नहीं है, बखान है तो कुदरत के उन कारगुजारियों की जिसको दुन्या रोज़े अव्वल से जानती है। बहुत सी गलत और फूहड़ जानकारियां अल्लाह ने क़ुरआनमें गुमराह कुन ज़रूर पेश की हैं।


''क्या मक्का के लोगों को इस बात से तअज्जुब है कि हम ने उन लोगों में से एक के पास वही भेज दी कि सब लोगों को डराए और जो ईमान लाएँ उन को खुश खबरी सुनाएँ कि उन के रब के पास उन को पूरा मर्तबा मिलेगा. काफ़िर कहते हैं कि वह शख्स बिला शुबहा सरीह जादूगर है''
"बिला शुबहा तुम्हारा रब अल्लाह ही है जिसने आसमानों और ज़मीन को चार को दिनों में पैदा कर दिया और फिर अर्श पर कायम हुवा.''

सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (२-३)फिर इसके बाद अल्लाह को आसमान से उतरने की फुर्सत न रही न ताक़त न ज़रुरत. वह मुहम्मद और मूसा जैसे लोगों को अपना पयम्बर बना बना कर भेजता रहा कि जाओ और हमारी ज़मीन पर मन मानी करो. मेरे नाम पर अपने गढ़े हुए झूटों की बुन्यादे रक्खो और ज़मीन पर फ़साद के बीज बोते रहो. मक्का के लोगों को इस बात पर न कभी तअज्जुब हुवा न यक़ीन कि उनमे से ही जाना बूझा एक अनपढ़ अल्लाह का नबी बन गया है, हाँ! इन के लिए मुहम्मद कुछ दिनों के लिए मशगला ज़रूर बन गए थे बाद में एक बड़ी बद अमनी बन करअज़ाब बने.
मक्का के लोगों ने मुहम्मद को कभी भी जादूगर नहीं कहा न ही इनके कलाम में जादूइ असर की बात की, यह तो खुद मुहम्मद अपनी तारीफ में बार बार यह बात कहते हैं कि क़ुरआनी बातें जादूई असर रखती हैं जो कि उल्टा उनके खिलाफ जाती हैं. तर्जुमानों के लिए बड़ी मुश्किल पैदा होती है, वह इस तरह बात को इस तरह रफू करते हैं ---
''नौज बिल्लाह जादू चूंकि झूट होता है यहाँ अल्लाह के कहने का मतलब हैकि - - -''

इस के बाद वह अपना झूट लिखते हैं.

"मक्का के लोग मुहम्मद को दीवाना समझते थे और इनके कुरआन को दीवानगी. दीवानगी के आलम में अगलों से चली आ रही सुनी सुनाई बातें. यही सच है कुरआन में इस के अलावःअगर कुछ है तो जेहादी लूट मार.''


''जिन लोगों को हमारे पास आने का खटका बिलकुल नहीं और वह दुनयावी ज़िन्दगी पर राज़ी हो गए हैं और जो लोग हमारी आयातों से बिलकुल गाफिल हैं, ऐसे लोगों का ठिकाना उनके आमाल की वजेह से दोज़ख है. जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इन में रहेंगे. यह बड़ी कामयाबी है.''

सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (७-९)दुन्या की बुलंद और बाला तर हस्तियों के आगे अवाम उनकी रूहानियत के कायल हो कर हाथ जोड़े दर्शन के लिए खड़े रहते हैं और मुहम्मद अवाम के आगे बेरूह कुरानी आयतें लिए पैगम्बरी की फेरी लगाते फिरते हैं कि मैं बक़लम खुद पैगम्बर हूँ और वह हर जगह से मारे भगाए जाते हैं. देखिए कि उनके दावत में कोई दम है? कुंद जेहन अकीदत मंद और अय्यार आलिमान ए दीन कहेंगे क़ि'' फिर इस्लाम इतना क्यूँ और कैसे फ़ैल गया ?''
जवाब है '' बाजोर तलवार और बज़रीए ए माले-गनीमत.


''और अगर अल्लाह तअला इन लोगों पर इन के जल्दी मचाने के मुवाफ़िक, जल्दी नुकसान वाक़े कर दिया करता जिस तरह वह फायदे के लिए जल्दी मचाते हैं, तो इसका वादा ए अज़ाब कभी का पूरा हो गया होता - - -
इस लिए हम इन लोगों को जिनको हमारे पास आने का खटका नहीं है , बिना अज़ाब चन्द रोज़ छोड़े रहते हैं क़ि वह अपनी सर कशी में चन्द रोज़ भटकते फिरेंगे."

यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (11)मुसलमान कौम फटीचरों का गिरोह थी जब वजूद में आई इस के हाथ में कुछ न था यह भूखे नंगों की अक्सरीयत थी. इसकी पैदाशी फितरत थी खुश हालों की मुखालफत, गो कि दूसरों को लूट के खुश हाली की चाहत. अंजाम कार दूसरों का बद ख्वाह खुद अपनी कब्र खोदता है, यह कौम हमेशा बद हाल रही और दूसरों के निशाने पर रही.खुद मुसलमानो का खुश हाल हो जाना बड़ी मुसीबत है, हर घडी दीनी हराम खोर दामन फैलाए उसके दर पर खड़े रहते हैं।



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 24 November 2011

सूरह तौबह ९ (छटवीं किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह तौबह ९

छटवीं किस्त


अंडे में इनक़्लाबइंसानी जेहन जग चुका है और बालिग़ हो चुका है. इस सिने बलूगत की हवा शायद ही आज किसी टापू तक न पहुँची हो, वगरना रौशनी तो पहुँच ही चुकी है, यह बात दीगर है कि नसले-इंसानी चूजे की शक्ल बनी हुई अन्डे के भीतर बेचैन कुलबुलाते हुए, अंडे के दरकने का इन्तेज़ार कर रही है. मुल्कों के हुक्मरानों ने हुक्मरानी के लिए सत्ता के नए नए चोले गढ़ लिए हैं. कहीं पर दुन्या पर एकाधिकार के लिए सिकंदारी चोला है तो कहीं पर मसावात का छलावा. धरती के पसमांदा टुकड़े बड़ों के पिछ लग्गू बने हुए है. हमारे मुल्क भारत में तो कहना ही क्या है! कानूनी किताबें, जम्हूरी हुकूक, मज़हबी जूनून, धार्मिक आस्थाएँ , आर्थिक लूट की छूट एक दूसरे को मुँह बिरा रही हैं. ९०% अन्याय का शिकार जनता अन्डे में क़ैद बाहर निकलने को बेकरार है, १०% मुर्गियां इसको सेते रहने का आडम्बर करने से अघा ही नहीं रही हैं. गरीबों की मशक्क़त ज़हीन बनियों के ऐश आराम के काम आ रही है, भूखे नंगे आदि वासियों के पुरखों के लाशों के साथ दफन दौलत बड़ी बड़ी कंपनियों के जेब में भरी जा रही है और अंततः ब्लेक मनी होकर स्विज़र लैंड के हवाले हो रही है. हजारों डमी कंपनियाँ जनता का पैसा बटोर कर चम्पत हो जाती हैं. किसी का कुछ नहीं बिगड़ता. लुटी हुई जनता की आवाज़ हमें गैर कानूनी लग रही हैं और मुट्ठी भर सियासत दानों , पूँजी पतियों, धार्मिक धंधे बाजों और समाज दुश्मनों की बातें विधिवत बन चुकीहैं. कुछ लोगों का मानना है कि आज़ादी हमें नपुंसक संसाधनों से मिली, जिसका नाम अहिंसा है.सच पूछिए तो आज़ादी भारत भूमि को मिली, भारत वासियों को नहीं. कुछ सांडों को आज़ादी मिली है और गऊ माता को नहीं. जनता जनार्दन को इससे बहलाया गया है. इनक़्लाब तो बंदूक की नोक से ही आता है, अब मानना ही पड़ेगा, वर्ना यह सांड फूलते फलते रहेंगे. स्वामी अग्निवेश कहते हैं कि वह चीन गए थे वहां उन्हों ने देखा कि हर बच्चा गुलाब के फूल जैसा सुर्ख और चुस्त है. जहाँ बच्चे ऐसे हो रहे हों वहां जवान ठीक ही होंगे. कहते है चीन में रिश्वत लेने वाले को, रिश्वत देने वाले को और बिचौलिए को एक साथ गोली मारदी जाती है. भारत में गोली किसी को नहीं मारी जाती चाहे वह रिश्वत में भारत को ही लगादे. दलितों, आदि वासियों, पिछड़ों, गरीबों और सर्व हारा से अब सेना निपटेगी. नक्सलाईट का नाम देकर ९०% भारत वासियों का सामना भारतीय फ़ौज करेगी, कहीं ऐसा न हो कि इन १०% लोगों को फ़ौज के सामने जवाब देह होना पड़े कि इन सर्व हारा की हत्याएं हमारे जवानों से क्यूं कराई गईं? और हमारे जवानों का खून इन मजलूमों से क्यूं कराया गया? चौदह सौ साल पहले ऐसे ही धांधली के पोषक मुहम्मद हुए और बरबरियत के क़ुरआनी कानून बनाए जिसका हश्र आज यह है कि करोड़ों इंसान वक्त की धार से पीछे, खाड़ियों, खंदकों, पोखरों और गड्ढों में रुके पानी की तरह सड़ रहे हैं। वह जिन अण्डों में हैं उनके दरकने के आसार भी ख़त्म हो चुके हैं. कोई चमत्कार ही उनको बचा सकता है.

देखिए किउनका अल्लाह क्या क्या कहता है - - -


''और उन देहातियों में बअज़ बअज़ ऐसा है जो कुछ वह खर्च करता है, उसको जुर्माना समझता है और तुम मुसलामानों के लिए गर्दिशों का मुंतज़िर रहता है, बुरा वक्त उन्हीं पर है और वह अल्लाह सुनते और जानते हैं.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (98)

तो ये रही मुहम्मद के देहाती अल्लाह की देहातियों पर पकड़.


"जिन देहातियों और अन्सरियों ने खुद को अल्लाह और उसके रसूल के हवाले बमय लाल और माल हवाले करदिया है उसके लिए जन्नत में महेल हंगे जिनके नीचे नहरन बह रही होंगी."

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१००)

मुहम्मद मक्का से बद हाली में फरार होकर जब अपने साथी अबू बक्र के हमराह मदीने आए और जिस घर में पनाह लिया उस घर को बाद में वहाँ के लोगों ने मस्जिद बनवा दिया, जब कि मुहम्मद ने उसी घर से लगी ज़मीन खरीद कर मस्जिद बनवाई जिसका नाम आज तक मस्जिदे नबवी है. मुहम्मद मक्के से मदीने जब आए तो वहां के लोग बहुत खुश गवारी में थे कि मक्के का बाग़ी आ रहा है, दूसरे यह कि यहूदी और ईसाई के योरो सलम वाले मदीने में बुत परस्तों की मुखालफत करने वाला एक बुत परस्त कुरैश उनका हम नवा बन कर पैदा हुवा है. तीसरी बात ये कि मक्का हमेशा शर पसंद रहा है, मदीननियों ने ख्याल किया कि दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त बनेगा. इन्हीं तमाम जज़्बात को मद्दे नज़र रखतेहुए लोगों ने उस घर को भी मस्जिद बना दिया था जिस में मुहम्मद ने पहली बार क़दम रखा था, कामयाबी मिलने के बाद मुहम्मद का इस्लाम शैतानी शक्ल अख्तियार करने लगा तो यहाँ के मुसलमानों ने मुहम्मद का साथ उनके अल्लाह के मनमानी फरमान में उसकी बात की मुखालिफत की. बस मुहम्मद ने इनको कुफ्र का लक़ब दे दिया और मस्जिद को नाम दिया '' मस्जिदे ज़र्रार'' यानी ज़रर पहुँचाने वाली मस्जिद. मुहम्मद और नुकसान उठाएं? ना मुमकिन.

सूरात्तुत तौबा ९ -१०वाँ परा आयत (१०१-११०)

मुहम्मद क़ीमती इंसानी ज़िन्दगी को अपने मुफ़ाद के लिए जेहाद के नज़र यूँ करते हैं - - -

''बिला शुबहा अल्लाह तअला ने मुसलमानों से उनके जानों और उनके मालों को इस बात के एवज़वाज़ ख़रीद लिया है कि उनको जन्नत मिलेगी, वह लोग अल्लाह की राह में लड़ते हैं , क़त्ल करते हैं, क़त्ल किए जाते हैं, इस पर सच्चा वादा है तौरेत में, इन्जील में, और कुरआन में और अल्लाह से ज्यादा अपना वादा कौन पूरा करने वाला है? तो तुम लोग अपने बयनामे पर जिसका तुम ने अल्लाह के साथ मुआमला ठहराया है ,ख़ुशी मनाओ.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१११)

यही कुरानी आयतें तालिबानी ज़ेहनों को आत्म घाती हमलों पर आमादः करती हैं और मुसलामानों को इस तरक्क्की याफ़्ता दुन्या के सामने ज़लील करती हैं. इनपर तमाम दुन्या केशरीफ़ और समझदार कयादत को एक राय होकर पाबंदी आयद करना चाहिए.


''पैगम्बर और दूसरे मुसलामानों को जायज़ नहीं कि मुशरिकीन की मगफेरत की दुआ मांगे, चाहे वह रिश्तेदार ही क्यूं न हो, इस अम्र के ज़ाहिर हो जाने के बाद कि वह दोजखी है.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (११२-१३)

मुहम्मद की क़ल्ब सियाही इन बातों से देखी जा सकती है मगर उनका दोहरा मेयार भी याद रहे कि जब अपने मोहसिन चचा अबू तालिब तालिब की अयादत में गए तो उनसे पहले अपने हक में कालिमा मुहम्मदुर रसूलल्लाह पढ़ लेने की बात की, वह नहीं माने तो उठते उठते कहा खैर, मैं आपकी मगफिरत की दुआ करूंगा. मगर ठहरिए, लोगों की याद दहानी पर मुहम्मद इसे अपनी भूल मानने लगे हैं और ऐसी भूल स्य्य्दना इब्राहीम अलैहिस सलाम से भी हुई,


गढ़ी हुई आयत मुलाहिज़ा हो - - -

''और इब्राहीम ने दुआए मगफिरत अपने बाप के लिए माँगा और वह srif वादा के सबब था जो इन्हों ने इस से वादा लिया था, फिर जब उन पर यह बात ज़ाहिर हो गई की वह खुदा का दुश्मन है तो वह उस से महज़ बे ताल्लुक हो गए."

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (११४)

पिछले बाब में मैं लिख चुका हूँ, फिर दोहरा रहा हूँ कि बाबा इब्राहीम इंसानी तवारीख के पहले नामवर इंसान हैं जिनका ज़िक्र आलमी इतिहास में सब को मान्य है.पाषाण युग था वह पत्थर तराश के बेटे थे, बाप के साथ संग तराशी में बमुश्किल गुज़रा होता था. बाबा इब्राहीम की वजेह से उनके बाप नाम भी जिंदा-ए-जावेद हो गया. यहूदी तौरेत उनको तेराह बतलाती है अरबी आजार कहते हैं. उन्हों ने अपने बेटे अब्राहाम और भतीजे लूत को ग़ुरबत से नजात पाने के लिए ठेल ढकेल के परदेस भेजा यह सपना दिखला कर कि तुम को दूध और शहद की नादियों वाला देश मिलेगा. इब्राहीम, लूट न पैगम्बर थे और न आजार काफ़िर. वह लोग पाषाण युग के अविकसित सभ्यता के पथिक मात्र थे. कुरान में जो आप पढ़ रहे है वहझूटी पैगम्बरी के गढ़े हुए मकर हैं. बे ज़मीर पैगम्बरी तमाम हदें पार करती हुई अल्लाह यानी खुदाए बरतर को यूं रुसवा करती है - - -

''और अल्लाह तआला ऐसा नहीं करता कि किसी क़ौम को हिदायत किए पीछे गुमराह करदे जब तक कि उन चीज़ों को साफ़ साफ़ न बतला दे जिन से व बचते रहें.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (११५)

देहातियों की तादाद बहुत बढ़ गई है, मुहम्मद को एक राह सूझी है कि इनके बड़े बड़े इलाक़ाई गिरोह बना दिए जाएँ उनमें से चुने हुए नव जवानों की टुकडियाँ बना दी जाएँ जो अतराफ़ की काफिरों की बस्तियों पर हमला करके अपने कबीले को माले-गनीमत से खुद कफ़ील बनाएँ.

''ए ईमान वालो! इन कुफ्फ़रो से लड़ो जो तुम्हारे आस पास रहते हैं और इनको तुम्हारे अन्दर सख्ती पाना चाहिए.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१२२-२३)

मुहम्मद की इस नुज़ूली क़लाबाज़ी में लोग उनकी नबूवत की दावत पर दाखिल होते हैं और उसे परख कर ख़ारिज हो जाते हैं. साथ साथ अल्लाह भी क़ला बाज़ियां खाता रहता है - - -


''और क्या उनको नहीं दिखाई देता कि यह लोग हर साल में एक बार या दो बार किसी न किसी आफ़त में फंसे रहते हैं, फिर भी बअज़ नहीं आते और न कुछ समझते हैं और जब कोई सूरह नाज़िल की जाती है तो एक दूसरे का मुंह देखने लगते हैं कि तुम को कोई देखता तो नहीं , फिर चल देते हैं, अल्लाह तअला ने इनका दिल फेर दिया है इस वजेह से कि वह महेज़ बे समझ लोग हैं. तुम्हारे पास एक ऐसे पैगम्बर तशरीफ़ लाए हैं जो तुम्हारे जिन्स से हैं जिनको तुम्हारी मुज़िररत की बातें निहायत गराँ गुज़रती हैं जो तुम्हारे मुन्फेअत के बड़े खाहिश मंद रहते हैं. ईमान दारों के साथ निहायत शफीक़ और मेहरबान है. फिर अगर यह रू गरदनी करें तो आप कह दीजिए मेरे लिए अल्लाह तअलाकाफ़ी है और वह बड़े भारी अर्श का मालिक है.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१२६-१२९)

कुदरती आफतों को भी मुहम्मद भुनाना नहीं भूलते, लोग इनकी फित्तीनी आयतों से नालां होकर दूर भागने लगे हैं, अब इन को वह काफ़िर भी नहीं कहते महेज़ बे समझ लोग कहते हैं.उनके लिए ज़बरदस्ती शफीक़ और मेहरबान बने रहते हैं. रू गर्दानी करने वालों को आगाह करते हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ता है क्यूँ कि उनके साथ उनका तलाश किया हुवा अल्लाह जो है जिसके सिवा कोई मअबूद नहीं और वह बहुत भारी आसमान का मालिक जो है एक टुकड़ा मुहम्मद के नाम करदेगा. खुद को जिन्स ए इंसानी या लोगों का हम जिन्स बतला कर मुहम्मद जिन्स के बारे में महज़ जेहालत की बातें करते हैं, जिसे हर बार मुतराज्जिम मुश्किल में पड कर ब्रेकेट लगा कर मुहम्मद की रफ्फु गरी करता है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 19 November 2011

''सूरात्तुत तौबा ९ (पाँचवीं किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



बुजदिलान इस्लाम, इस्लाम की सड़ी गली लाश को नोच नोच कर खाने वाले यह गिद्ध सच्चाई से इस कद्र हरासां हैं कि बौखलाहट में सरकार से सिफारिश कर रहे हैं कि तसलीमा नसरीन को मुल्क बदर किया जाए. यह हराम ख़ोर जिनकी गिज़ा ईमान दारी है, जिसे खाकर पी कर और अपनी गलाज़त में मिला कर यह फारिग हो जाते हैं. यह समझते हैं कि तसलीमा नसरीन को हिदोस्तान से निकलवा हर बेफिक्र हो जाएँगे कि इन्हों ने सच्चाई को दफ़्न कर दिया. कोई भी इनमें मर्द नहीं कि तसलीमा नसरीन की किसी बातका का दलील के साथ जवाब दे सके.

इनका कुरान कहता है - - -


"काफिरों को जहाँ पाओ मारो, बाँधो, मत छोड़ो जब तक कि इस्लाम को न अपनाएं."

"औरतें तुम्हारी खेतियाँ है, इनमे जहाँ से चाहो जाओ."

"इनको समझाओ बुझाओ, लतियाओ जुतियाओ फिर भी न मानें तो इनको अंधरी कोठरी में बंद कट दो, हत्ता कि वह मर जाएँ."

"काफ़िर की औरतें बच्चे मिन जुमला काफ़िर होते हैं, यह अगर शब् खून में मारे जाएँ तो कोई गुनाह नहीं."

इन जैसे सैकड़ों इंसानियत दुश्मन पैगाम इन जहानामी ओलिमा को इनका अल्लाह देता है.


अब चलिए कुआनी खुराफातों में - - - -


सूरह तौबह --९


(पांचवीं किस्त)



"मुनाफ़िक़ वह लोग हुवा करते थे जो मुहम्मदी तहरीक में अपनी अक्ल का दख्ल भी रखते थे, आँख बंद कर के मुहम्मद की हाँ में हाँ नहीं मिलाया करते थे, मुहम्मद की जिहालत और ला इल्मी पर मुस्कुरा दिया करते थे और उनको टोक कर बात की इस्लाह कर दिया करते थे. बस ऐसे मुसलमान हुए लोगों से बजाए इसके कि खुदसर मुहम्मद उनके मशविरों का कुछ फ़ायदा उठाएँ, सीधे उनको जहन्नमी कह दिया करते थे. काफ़िर तो खुले मुखालिफ थे ही, उनसे जेहाद का एलान था मगर यह मुनाफ़िक़ जो छिपे हुए दुश्मन थे वह हमेशा मुहम्मद के लिए सर दर्द रहे. यह अक्सर समझदार, तालीम याफ्ता और साफिबे हैसियत हुवा करते थे. होशियार मुहम्मद को डर लगा रहता कि कही इन में से कोई इन से आगे न हो जाए और इनकी पयंबरी झटक न ले, इस लिए क़ुरआन में इन को कोसते काटते ही इन की कटी.

मुहम्मद का क़ुरआनी अंदाज़-ए-बयान एक यह भी है कि उनकी बात न मानने वाला सब से बड़ा ज़ालिम होता है, अक्सर क़ुरआन में यह जुमला आता है

'' उससे बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट बांधता हो?''

किसी बात को न मानना ज़ुल्म कहाँ ठहरा बात को ज़बरदस्ती मनवाना ज़रूर ज़ुल्म है। जैसा कि इस्लाम जेहादी तशद्दुद से खुद को मनवाता है."

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (६५-६९)

''क्या इन लोगों को इसकी खबर नहीं पहुँची जो इन लोगों से पहले हुए जैसे कौम नूह, कौम आद, कौम समूद और कौम इब्राहीम और अहले मुदीन और उलटी हुई बस्तियाँ कि इन के पास इनके पयम्बर साफ़ निशानियाँ लेकर आए, सो अल्लाह तअला ने इन पर ज़ुल्म नहीं किया लेकिन वह खुद अपनी जानों पर ज़ुल्म करते थे.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (७०)

इन उलटी हुई बस्तियों की कहानियां तौरेत में ऐसी हुआ करती हैं कि ज़ालिम और जाबिर मूसा जब मिस्र से यहूदियों को लेकर एक फरेब के साथ मिस्रियों को लूट कर फरार हुवा तो बियाबान जंगल में पनाह गुज़ीन हुवा जहाँ मन्ना और बटेरों पर बीस साल तक गुज़ारा किया. बीस साल बाद जब नई नस्ल की फ़ौज तैयार करली तो इर्द गिर्द के मुकामी बाशिंदों पर जो कि उमूमन फ़िलिस्ती हुआ करते थे, हमला शुरू कर दिया. मूसा का तरीका होता कि बस्ती में जवान मर्द औरत ही नहीं बूढ़े और बच्चे भी तहे-तेग कर दिए जाते थे, हत्ता कि कोई जानवर भी जिंदा न बचता था. उसके बाद बस्ती को आग से तबाह करके उस पर दो यहूदी सिपाहियों का पहरा हमेशा हमेशा के लिए बिठा दिया जाता था कि बस्ती दोबारा आबाद न होने पाए..यह बातें तौरेत में (old testament ) में रोज़े रौशन की तरह देखी जा सकती हैं. उम्मी मुहम्मद अपने गढ़े हुए पयम्बरों की यही निशानियाँ क़ुरआन में बार बार गिनवा रहे हैं. इन्हीं बस्तियों में कौम नूह, कौम आद, कौम समूद और कौम इब्राहीम की नस्लें भी बसा करती थीं.मुहम्मद ने बनी नुज़ैर की बस्ती को मूसा की तर्ज़ पर ही बर्बाद करने की कोशश की थी जिस पर खुद उनके खिलाफ उनके खेमे से ही आवाज़ बुलंद हुई और उनको अल्लाह की वही के नुजूल का सहारा लेना पड़ा. कि बनी नुज़ैर के बागात को जड़ से कटवा देना और उनके घरों में आग खुद उनके हाथों से लगवाना अल्लाह का हुक्म था.


''ए नबी! कुफ्फर और मुनाफिकीन से जेहाद कीजिए और उन पर सख्ती कीजिए, उनका ठिकाना दोज़ख है और वह बुरी जगह है. वह लोग कसमें खा जाते हैं कि हम ने नहीं कही हाँला की उन्हों ने कुफ्र की बात कही थी और अपने इस्लाम के बाद काफ़िर हो गए.- - -सो अगर तौबा करले तो बेहतर होगा और अगर रू गरदनी की तो अल्लाह तअला उनको दुन्या और आखरत में दर्द नाक सजा देगा और इनका दुन्या में कौई यार होगा न मददगार.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (७२-७४)

मुहम्मद का अल्लाह डरा रहा है, धमका रहा है, फुसला रहा है और बहला रहा है हालाँकि वह चाहे तो दम भर में लोगों के दिलों को मोम करके अपने इस्लाम कि बाती जला दे मगर मुहम्मद के साथ रिआयत है कि उनकी पैगम्बरी का सवाल है और कुरैशियों की रोज़ी रोटी का।
शर्री मुहम्मद के सर में शर अल्लाह के नाम पर जेहाद बन कर समा गया था. आगे क़ुरआनी आयतें इन्हीं शर्री बहसों को लिए हुए चलती हैं, जेहाद मस्जिद में बैठे हुए समझदार मुनाफ़िक़ से, जेहाद पड़ोस में रहने वाले ग़ैरत मंद मुनकिर से, जेहाद, मोहल्ले में रहने वाले ज़हीन काफ़िर से, जेहाद बस्ती के क़दीमी बाशिंदे मुशरिक से, जेहाद साहबे किताब ईसाइयों से, जेहाद साहिबे ईमान और साहिबे रसूल मूसाइयों से। इतना ही नहीं जो मुसलमान गलती से इस्लाम कुबूल कर चुका है उसकी मुसीबत दोगुनी हो गई थी. अपनी मेहनत और मशक्क़त से अगर उसने अपनी कुछ हैसियत बनाई है तो वह भी मुहम्मद की आँखों में चुभती है, वस चाहते हैं कि वह अपना माल अल्लाह के हवाले करे और गायबाना अल्लाह बने बैठे हैं जनाब खुद.मुहम्मद कुरआन में मुसलमानों को समझाते हैं कि बद अह्द लोग अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह अगर उन्हें माल ओ मतअ से नवाज़े तो बदले में वह अल्लाह के नाम पर खूब खर्च करेंगे और जब भोंदू अल्लाह उनके झाँसे में आ जाता है और उनको माल,टाल से भर देता है तो वह अल्लाह को ठेंगा दिखला देते हैं. मुहम्मद कहते हैं हालाँकि अल्लाह गैब दान है और ऐसे लोग ही जहन्नम रसीदा होंगे.

२५ साल तक बकरियाँ चराने वाला और उसके बाद जोरू माता की गुलामी में रह कर मुफ्त रोटी तोड़ने वाला कठ मुल्ला मुसलामानों को ऐसी तिकड़म भरी कुरआन के सिवा और क्या दे सकता है?

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (७५ -८१)

''और इनमें (जेहाद से गुरेज़ करने वालों) से अगर कोई मर जाए तो उस पर कभी नमाज़ मत पढ़ें, न उसके कब्र पर कभी खड़े होएँ क्यूं कि उसने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और यह हालाते कुफ्र में मरे. हैं''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (८४)

इब्नुल वक़्त (समय के संतान) ओलिमा और नेता यह कहते हुए नहीं थकते कि इस्लाम मेल मोहब्बत, अख्वत और सद भाव सिखलता है, आप देख रहे हैं कि इस्लाम जिन्दा तो जिन्दा मुर्दे से भी नफरत सिखलाता है. कम लोगों को मालूम है कि चौथे खलीफा उस्मान गनी मरने के बाद इसी नफ़रत के शिकार हो गए थे, उनकी लाश तीन दिनों तक सडती रही, बाद में यहूदियों ने अज़ राहे इंसानियत उसको अपने कब्रिस्तान में दफ़न किया।

'' और जब कोई टुकड़ा कुरआन का नाजिल किया जाता है कि तुम अल्लाह पर ईमान लाओ और इस के रसूल के हमराह होकर जेहाद करो तो इनमें से मकदूर वाले आप से रुखसतमाँगते हैं और कहते हैं हमको इजाज़त दीजिए कि हम भी यहाँ ठहेरने वालों के साथ हो जाएँ.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (८६)

सूरह तौबह में अल्लाह ने इंसानी खून ख़राबे से तौबः किया है तभी तो अपने नाम से सूरह को शुरू करने की इजाज़त नहीं दी. मुहम्मद कहते हैं

'' और जब कोई टुकड़ा कुरआन का नाज़िल किया जाता है कि - - - ''

बाकी सब कुरआन तो मुहम्मद की बकवास है. मुसलमानों को कैसे समझाया जाए कि कुरआन उनको गुमराह किए हुए है.मुहम्मद अपनी जुबान को उस खुदाए बरतर के कन्धों पर रख कर कैसी ओछी ओछी बातें कर राहे हैं- - -

''वह लोग खाना नशीन औरतों के साथ रहने पर राज़ी हो गए. इनके दिलों पर मोहर लग गई जिसको वह समझते ही नहीं.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (८७)

समझने तो नहीं देते ये माहिरे कुरआन मुल्ला और मोलवी जो इसको वास्ते तिलावत ही महफूज़ किए हुए हैं, समझने समझाने को मना करते है.

.मुहम्मद की जेहादी तिजारत और उसके फायदों की शोहरत देहातों में दूर दूर तक फ़ैल गई है. बेरोज़गार नवजवान में उनकी लूट में मिलने वाले माले ग़नीमत की बरकतें गाँव के फिजा को महका रही हैं, गंवार रालें टपकते हुए जूक दर जूक मदीने भागे चले आ राहे हैं.मुहम्मद को यह घाटे का सौदा गवारा नहीं हाँला कि देहाती पत्थर के बुतों को तर्क करके हवाई बुत अल्लाह वाहिद को पूजने पर राज़ी हैं मगर मुहम्मद को इन खाली हाथ आने वाले मुसलामानों की कोई ज़रुरत नहीं.

मुहम्मद को जेहाद के लिए पहले माल चाहिए बाद में जान, अगर बच गए तो अल्लाह का मुक़द्दमा कि उसको देखना बाकी रह जायगा कि जेहादी ने दिल से जेहाद किया या बे दिली से. इन देहातियों को तो फ़ौज में भारती चाहिए वह भी गुज़ारा भत्ता एडवांस में.


कहाँ तो अल्लाह ने एक नबीना से बे इल्तेफाती पर मुहम्मद को फटकार लगाई थी और आज जुज़ामियों को बाहर से ही कहला देते हैं कि वापस जाओ कि समझो तुमसे बैत (हाथ पर हाथ देकर दीक्षा लेना)कर लिया. यह पैगम्बर थे या छुवा छूतकी बीमारी।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 14 November 2011

ईमान के सौदागरों को जवाब

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी ''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है, हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं, और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं।








ईमान के सौदागरों को जवाब

ऊपर उर्दू अख़बार की कापी पेस्ट चस्पाँ है जिससे मेरे मज़ामीन के ख़िलाफ़ मुस्लिम अवाम को इस्लाम के नाम पर उकसाया गया है. उन हराम खोरों और ईमान फरोशों को उर्दू में मैंने जवाब दिया है जिसकी नक़ल हिंदी पाठकों के नज़र है.
आप लोगों ने गालिबन मेरे बारे में ही रोजनामा इन्किलाब में खबर दे कर भोले भाले मुस्लिम अवाम को गुमराह करने की कोशिश की है जो अन्बियाय अव्वलीन और अन्बियाय आख्रीन का सबक नादान मखलूक को पढ़ाता है - - -


दुन्या रवाँ मिर्रीख पर और आपका ये दरसे-दीन,
अववलिनो, आखरीनो, काफरीनो, मोमनीन .

आप मेरी तहरीर और तहरीक की एक झलक भी मुस्लिम अवाम को दिखला नहीं सकते कि बकौल आपके गुनाहगार हो जाने का डर लाहक है. दर पर्दा आपको डर है कि इसे पढ़ कर कहीं मुस्लमान बेदार न हो जाएँ.
तुम ईमान और इस्लाम को बहुत दिनों तक ज़रीआ मुआश बनाए नहीं रख सकते, अब ये नामुमकिन है कि सदाक़त की आवाज़ को दबाए रख सको. तुम हुकूमत और अदालत का दरवाज़ा खटखटाने जा रहे हो; मेरी सदाक़त को पढ़ कर कोई भी दानिश वर जज तुमलो दस जूते खाने की सजा ही सुना सकता है. तुम वेब साइट्स को बंद करावगे? बचकाना और बेहूदा बात करते हो. यह पाकिस्तान नहीं है जहाँ तालिबानों की चलती है.
तुम्हारे लिए मेरा मश्विरह यह है कि अवाम को मेरी तहरीर का जवाब तहरीर से दो. मगर तुम्हारे दीन में इतना दम ही नहीं है कि सच के सामने टिक सके. हमेशा की तरह तुम मुस्लिम अवाम को सड़क पर उतारने की धमकी दे रहे. इससे किया होगा सौ पचास बे कुसूर मुसलमान पुलिस की गोली से मौत के घाट उतर जाएँगे. तुम्हारे लिए कुछ दिनों की हलुवा पूरी और पक्की हो जायगी. मगर अब अवाम होशियार हो रहे हैं, तुम्हारे जादू का असर ख़त्म हो रहा है.
मै तसलीमा नसरीन नहीं हूँ कि जो बेघर है गरीब, मैं हिन्दुस्तानी हूँ , यहीं रहकर हमेशा अपने नादान भाइयों को राह दिखलाता रहूँगा.
मैं एक मोमिन हूँ जिसका मसलक है ईमान, तुम मुलिम हो जो इस्लाम को तस्लीम किए हुए है. फ़ासिक़ कुरान जो कहता है वही तुम्हारी राह है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 13 November 2011

सूरह ए तौबः ९ (चौथी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह ए तौबः ९(चौथी किस्त)


अव्वल दर्जा लोग

मैं दर्जाए-अव्वल में उस इंसान को शुमार करता हूँ जो सच बोलने में ज़रा भी देर न करता हो, उसका मुतालिआ अश्याए कुदरत के बारे में फितरी हो (जिसमें खुद इंसान भी एक अश्या है.) वह ग़ैर जानिबदार हो, अक़ीदा, आस्था और मज़हबी उसूलों से बाला तर हो, जो जल्द बाज़ी में किए गए "हाँ" को सोच समझ कर न कहने पर एकदम न शर्माए और मुआमला साज़ हो. जो सब का ख़ैर ख्वाह हो, दूसरों को माली, जिस्मानी या जेहनी नुकसान, अपने नफ़ा के लिए न पहुंचाए, जिसके हर अमल में इस धरती और इस पर बसने वाली मखलूक का खैर वाबिस्ता हो, जो बेख़ौफ़ और बहादर हो और इतना बहादर कि उसे दोज़ख में जलाने वाला नाइंसाफ अल्लाह भी अगर उसके सामने आ जाए तो उस से भी दस्तो गरीबानी के लिए तैयार रहे. ऐसे लोगों को मैं दर्जाए अव्वल का इंसान, मेयारी हस्ती शुमार करता हूँ. ऐसे लोग ही हुवा करते हैं साहिबे ईमान यानी ''मरदे मोमिन''.


दोयम दर्जा लोग

मैं दोयम दर्जा उन लोगों को देता हूँ जो उसूल ज़दा यानी नियमों के मारे होते हैं. यह सीधे सादे अपने पुरखों की लीक पर चलने वाले लोग होते हैं. पक्के धार्मिक मगर अच्छे इन्सान भी यही लोग हैं. इनको इस बात से कोई मतलब नहीं कि इनकी धार्मिकता समाज के लिए अब ज़हर बन गई है, इनकी आस्था कहती है कि इनकी मुक्ति नमाज़ और पूजा पाठ से है. अरबी और संसकृति में इन से क्या पढाया जाता है, इस से इनका कोई लेना देना नहीं। ये बहुधा ईमानदार और नेक लोग होते हैं. भोली भली अवाम इस दर्जे की ही शिकार है धर्म गुरुओं, ओलिमाओं और पूँजी पतियों की. हमारे देश की जम्हूरियत की बुनियाद इसी दोयम दर्जे के कन्धों पर राखी हुई है.सोयम दर्जा लोग

हर कदम में इंसानियत का खून करने वाले, तलवार की नोक पर खुद को मोह्सिने इंसानियत कहलाने वाले, दूसरों की मेहनत पर तकिया धरने वाले, लफ़फ़ाज़ी और ज़ोर-ए-क़लम से गलाज़त से पेट भरने वाले, इंसानी सरों के सियासी सौदागर, धार्मिक चोले धारण किए हुए स्वामी, गुरू, बाबा और साहिबे रीश ऑ दुस्तार ओलिमा, सब के सब तीसरे और गिरे दर्जे के लोग हैं. इन्हीं की सरपरस्ती में देश के मुट्ठी भर सरमाया दार भी हैं जो देश को लूट कर पैसे को विदेशों में छिपाते हैं. यही लोग जिसका कोई प्रति शत भी नहीं बनता, दोयम दर्जे को ब्लेक मेल किए हुए है और अव्वल दर्जा का मजाक हर मोड़ पर उडाने पर आमादा रहते है. सदियों से यह गलीज़ लोग इंसान और इंसानियत को पामाल किए हुए हैं।


*****************


आइए कुरआन के अन्दर पेवस्त होकर इंसानियत की आला क़दरों को पहचाने। इसके बारे में जो कुछ भी आप ने सुन रखा है वह लाखों बार बोला हुआ बद ज़मीर आलिमों का झूट है. आप खुद कुरआनी फरमान को पढ़ें और उस पर सदाक़त से गौर करें, हक की बात करें, मुस्लिम से ईमान दार मोमिन बनें और दूसरों को भी मोमिन बनाएँ. आप मोमिन बने तो ज़माना आपके पीछे होगा.



यह जेहादी आयतें अपने हकीकत के साथ पेश है, जिसे ओलिमा आज जिहाद का मतलब समझा रहे हैं की "जद्दो जेहद"


''निकल पड़ो थोड़े से सामान से या ज़्यादः सामान से और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जेहाद करो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम यक़ीन करते हो.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४१)

मुहम्मद इज्तेमाई डकैती के लिए नव मुस्लिमों को वर्गाला रहे हैं अडोस पड़ोस की बस्तियों पर डाका डालने के लिए, अपनी ताक़त बढ़ाने के लिए, पुर अम्न आबादियों में बद अमनी फैलाने के लिए. मुहम्मद के दिमाग में एक अल्लाह का भूत सवार हो चुका था, अल्लाह एक हो या अनेक, भूके, नंगे, ग़रीब अवाम को इस से क्या लेना देना?


''जो लोग अल्लाह और कयामत के दिन पर ईमान रखते हैं वह अपने माल ओ जान से जेहाद करने के बारे में आप से रुखसत न मांगेंगे अलबत्ता वह लोग आप से रुखसत मांगते हैं जो अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान नहीं रखते और इन के दिल शक में पड़े हैरान हैं.

''सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४५)

ज़रा डूब कर सोचें, अपने भरे पुरे परिवार के साथ उस दौर में खुद को ले जाएँ और उस बस्ती के बाशिंदे बन जाएँ फिर मुहम्मद के फर्मूदाद सुनें जिसे वह अल्लाह का कलाम बतलाते हैं,. आप महसूस करें कि अपने बाल बच्चों को छोड़ कर और अपने जानो-माल के साथ किसी अनजान आबादी पर बिला वजेह हमला करने पर आमादः को जाएँ, वह भी इस बात पर कि इस का मुआवजा बाद मरने के क़यामत के रोज़ मिलेगा. याद रखें कि इसी धोखा धडी और खूँ-रेज़ी की बुनियादों पर मुहम्मद ने इस्लाम की झूटी इमारत खड़ी की थी जो हमेशा ही खोखली रही है आज रुसवाए ज़माना है.


''इन में से बअजा शख्स वह है जो कहता है मुझको इजाज़त दे दीजिए और मुझको ख़राबी में मत डालिए. खूब समझ लो कि यह लोग तो ख़राबी में पड़ ही चुके हैं और यक़ीनन दोज़ख इन काफ़िरों को घेर लेगी.''सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४७-४९)

मुहम्मद इन बेवकूफों की बेवकूफी का खुला मजाक उड़ा रहे हैं जो इस्लाम कुबूल करने की हिमाक़त कर चुके हैं वाकई इस्लाम का यकीन हयातुद्दुन्या के लिए एक ख़राबी ही है जब कि दीन की दुन्या मुहम्मद का गढ़ा हुवा फरेब है.


''आप फर्म फ़रमा दीजिए कि हम पर कोई हादसा पड़ नहीं सकता मगर वही जो अल्लाह ने हमारे लिए मुक़द्दर फ़रमाया है, वह हमारा मालिक है. और अल्लाह के तो सब मुसलमानों के अपने सब काम सुपुर्द रखने चाहिए."

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५१)

मुहम्मद तकब्बुर की बातें करते हैं कि ''हम पर कोई हादसा पड़ नहीं सकता'' अगर कोई टोके तो जवाब होगा यह तो अल्लाह का कलाम है जब कि अगले जुमले में ही वह अल्लाह को अलग कर के कहते हैं- - '' मगर वही जो अल्लाह ने हमारे लिए मुक़द्दर फ़रमाया है, वह हमारा मालिक है.'' मुसलमान कल भी अहमक था और चौदा सौ साल गुज़र जाने के बाद आज भी अहमक ही है जो बार बार साबित होने के बाद भी नहीं मानता कि क़ुरआन एक इंसानी दिमाग की उपज है, इसमें कुछ नहीं रक्खा, अलावा गुमराही के..


''आप फरमा दीजिए तुम तो हमारे हक में दो बेहतरीयों में से एक बेहतरी के हक में ही के मुताज़िर रहते हो और हम तुम्हारे हक में इसके मुन्तजिर रहा करते हैं कि अल्लाह तअला तुम पर कोई अज़ाब नाज़िल करेगा, अपनी तरफ से या हमारे हाथों से.सो तुम इंतज़ार करो, हम तुम्हारे साथ इंतज़ार में हैं.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५२)

यह आयत मुहम्मद की फितरते बद का खुला आइना है, कोई आलिम आए और इसकी रफूगरी करके दिखलाए. ऐसी आयतों को ओलिमा अवाम से ऐसा छिपाते हैं जैसे कोई औरत बद ज़ात अपने नाजायज़ हमल को ढकती फिर रही हो. आयत गवाह है कि मुहम्मद इंसानों पर अपने मिशन के लिए अज़ाब बन जाने पर आमादा थे. इस में साफ़ साफ मुहम्मद खुद को अल्लाह से अलग करके निजी चैलेन्ज कर रहे हैं, क़ुरआन अल्लाह का कलाम को दर गुज़र करते हुए अपने हाथों का मुजाहिरा कर रहे हैं. अवाम की शराफत को ५०% तस्लीम करते हुए अपनी हठ धर्मी पर १००% भरोसा करते हैं. तो ऐसे शर्री कूढ़ मग्ज़ और जेहनी अपाहिज हैं

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 10 November 2011

सूरह ए तौबः 9

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह ए तौबः 9(तीसरी किस्त)
ये नर्म नर्म हवाएँ हैं किसके दामन की ,

चराग़ दैरो-हरम के हैं झिलमिलाए हुए।

'फ़िराक़' गोरखपूरी


एक बार उर्दू के महान शायर 'फ़िराक़' गोरखपूरी के पास संबंधित विभाग से लोग इस सूचना को लेकर आए आए कि सरकार ने आप का बुत गोल घर चौराहे पर आप के मृत्यु बाद स्थापित करने की मंज़ूरी दी है, आप से गुजारिश है कि इस सिलसिले में आप विभाग का मूर्ति रचना में सहयोग दें.

'फ़िराक़' साहब इंजीनियर पर उखड गए कि आप चौराहे पर मेरा बुत खड़ा कर देंगे और चील कौवे मेरे सर पर बैठ कर बीट करेंगे ?

मुझे यह अपनी तौहीन मनजूर नहीं. सरकार से कह दो कि वह अगर बुत की लागत का पैसा मुझे बतौर मदद देदे तो मैं जिंदगी भर गोल घर चौराहे पर मूर्ति बना खड़ा रह सकता हूँ.

रघुपति सहाय 'फ़िराक़' गोरखपूरी उर्दू के अज़ीम शायर के साथ साथ सत्य वाद्यता के लिए भी प्रसिद्ध हैं कटु सत्य बोलने में ज़रा भी न झिझकते. गाँधी जी ने उन्हें स्पोइल जीनियस कहा था. क्यूंकि उनमें बहुत सी व्यक्तिगत खामियाँ थीं जिसमें एक सम लैगिकता - - -

इस संबंध में कटु संवाद ने 'फ़िराक़' साहब के बेटे की जान लेली.'फ़िराक़' साहब ने अपना बुत न लगवा कर सच्चाई का मीनार कायम किया है, भविष्य के सस्ती शोहरत में गुम हो जाने के लिए, उन्हों ने इंसानियत के दामन से नर्म नर्म हवाएँ बिखेरी हैं और उसमें मग्न हो रहा कई इंसानी समाज जिस को यह हवाएं पनाह दे रही हैं. इन हवाओं से मंदिरों-मस्जिद के ज़हरीले चिराग झिलमिला गए हैं और बुझने वाले ही हैं.

झूट के अलम बरदार, हवा का बुत कायम करने वाले मुहम्मद जिसको (हवा के बुत को )आधा मिनट से ज्यादह ध्यान में रखना मुहाल है

कि उसके बाद खुद मुहम्मद का बुत दिलो-दिमाग पर नक्श हो जाता है,

इसके लिए उन्होंने इंसानियत का खून किया और ढूंढ ढूढ़ कर उन इंसानी जमाअतों का खून किया जो ''मुहम्मादुर्रसूलिल्लाह'' (अर्थात मुहम्मद अल्लाह के दूत) कहने से इंकार करता था. मुहम्मद ने अपनी ज़िन्दगी में ही अपना बुत दुन्या के चौराहे पर कायम कर के दम तोडा.

आज दुन्या का हर शिक्छित समाज, हर बुद्धि जीवी, हर दानिश्वर, यहाँ तक कि हर ईमान दार आदमी उनके कायम किए हुए जेहालत के बुत पर परिंदा बन कर बीट करना पसंद करता है।अब देखिए कि क़ुरआन में मुहम्मद कल्पित साज़िशी अल्लाह क्या कहता है - - -



मुहम्मद पहले कुंद ज़हनों, लाखैरों और नादारों को मुसलमान बनाते हैं और उसके बाद मुसलमानों को जेहादी ज़रीआ मुआश फराहम करके उस पर कायम रहने पर आमादा किए रहते हैं. माले गनीमत को मुसलमानों को चार दिन सुकून से खाने पीने भी नहीं देते कि अगली जेहाद की तय्यारी का हुक्म हो जाता है. अल्लाह अम्न पसंदों को कैसे कैसे ताने देता है मुलाहिजा हो - - -


''जेहाद से जान चुराने वालों को अल्लाह भी नहीं चाहता कि वह शरीक हों, वह अपाहिजों के साथ यहीं धरे रहें ''


किसी फर्द की उभरती हैसियत मुहम्मद को क़तई नहीं भाती, किसी की इन्फ़िरादियत की खूबी उनसे फूटी आँख नहीं देखी जाती, न ही किसी की भारी जेब उनको हजम होती है. ऐसे लोगों के खिलाफ धडाधड आयतें उतरने लगती हैं. आययतें खुद गवाह हैं कि इस्लाम क़ुबूल किए हुए मुसलामानों के दरमियाँ अल्लाह, उसका खुद साख्ता रसूल, और उसके कुरानी फ़रमूदात तमस्खुर(मजाक) का बाईस है, जिस पर अलाह बरहम होता है.

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२५)

आखिर तंग आकर नव मुस्लिम, झक्की और बक्की मुहम्मद से एहतेजाज करते हैं कि आप तो हमारी ज़रा ज़रा सी बातों पर कान लगाए रहते हैं? जिसे मुहम्मद उनको बेवकूफ़ बनाते कि '' यह बात मुझे बज़रिए वहिय अल्लाह ने बतलाई'' दर असल यह बाते बज़रिए चुगलखोराने रसूल से उनको मालूम पड़तीं. अपने नव मुस्लिम साथियों को डराना धमकाना, जहन्नमी क़रार दे देना, मुनाफ़िक़ या काफ़िर कह देना, मुहम्मद के लिए कोई ख़ास बात न थी, जोकि मुसलामानों में आज भी चला आ रहा है,


अल्लाह कहता है - - -

''ऐ ईमान वालो! मुशरिक लोग निरा नापाक होते हैं, सो इस साल के बाद यह लोग मस्जिद हराम के पास न आने पाएं। अगर तुम्हें मुफलिसी का अंदेशा हो तो अल्लाह तुम को अपने फज़ल से अगर चाहेगा तो मोहताज नहीं रखेगा. बेशक अल्लाह खूब जानने वाला और रहमत वाला है.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२८)

मनु महाराज अपनी स्मृति में लिखते हैं कि शूद्रों का साया भी अगर किसी बरहमन पर पड़ जाए तो वह अपित्र हो जाता है और उसको स्नान करना चाहिए, इस क़िस्म की बहुत सी बाते. जैसे इनको जीने का हक बरहमन की सेवा के बदले ही है - - -

इसी तरह यहूदियों को उनके खुदा यहवाह ने नबी मूसा को ख्वाब दिखलाया कि तुम दुन्या की बरतर कौम हो और एक दिन आएगा जब तुम्हारी कौम दुन्या के हर कौम पर शाशन करेगी, कोशिश जरी रहे - - -

मेरा अनुमान है कि बरहमन जो बुनयादी तौर पर आर्यन हैं, के पूर्वज मनु मूसा वंशज एक ही खून हैं यहूदी और ब्राह्मणों का जेहनी मीलान बहुत कुछ यकसाँ है. दोनों के मूल पुरुष इब्राहीम, अब्राहाम, अब्राहम, बराहम, ब्रह्मा एक ही लगते हैं. अब यह बात अलग है कि अतिशियोक्ति पसंद पंडितों ने ब्रह्मा का रूप तिल का ताड़ नहीं बल्कि तिल का पहाड़ बना दिया.

मुहम्मद मूसा और मनु से भी चार क़दम आगे हैं, इन दोनों ने विदेशियों से नफ़रत सिखलाया और यह जनाब अपने भाई बन्धुओं को ही अछूत बना रहे है.


'' अहले किताब जो कि न अल्लाह पर ईमान रखते है न क़यामत के दिन पर और न उन चीज़ों को हराम समझते हैं जिनको अल्लाह और उसके रसूल ने हराम फ़रमाया और न सच्चे दीन को क़ुबूल करते हैं, इनसे यहाँ तक लड़ो की यह मातहत हो कर जज़िया देना मंज़ूर कर लें.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२९)

शर पसंद मुहम्मद, उनसे सदियों पहले आए आए ईसाई और मूसाई कौमों से जेहाद के बहाने तलाश कर रहे हैं, वह भी जज़िया वसूलने के लिए. . कितने बेशर्म इस्लमी ओलिमा हैं जो कहते हुए नहीं थकते कि इस्लाम अमन पसंद है. इस्लाम का अंजाम यही खुद सोज़ बम रख कर एक मुस्लिम नव जवान अपने साथ ५० मुसलामानों को पाकिस्तान जैसे मुस्लिम मुल्क में हर हफ्ते मौत के घाट उतरता है. भारत में हर रोज़ सैकड़ों बे कुसूर मुसलामानों को खुद अपनी नज़रों में ज़लील ओ ख्वार करता है.

शाह रुख खान जैसे फ़नकार को दुन्या के सामने गाना पड़ता है ''माय नेम इज खान बट आइ एम नाट टेरेरिस्ट.''

मुहम्मद की कबीलाई दहशत पसंदी की वक्ती आलमी कामयाबी ने आज दुन्या की एक अरब आबादी को शर्मसार किए हुए है मगर ओलिमा रोटियों पर रोटियाँ सेके चले जा रहे हैं. आजके मुस्लिम ओलिमा और दानिश्वर जिस की पर्दा दारी करते फिर रहे हैं वह कलमुही डायन इन आयातों के परदे में अयाँ है जो दुन्या की हर खास जुबान में तर्जुमा हो चुकी है.

इस्लाम के चेहरे पर कला धब्बा है यह माले गनीमत और जज़िया जो मौक़ा मिलते ही आज भी इस्लाम के ना इंसाफी पाकिस्तान में दो सिक्खों का सर कलम करके अपनी वहशत का मुज़ाहिरा करते हैं.

क्या वह वक़्त आने वाला है कि मुसलमानों से दुन्या की मुतासिर कौमें माले गनीमत और जज़िया वापस तलब करें, मुसलामानों पर हर गैर मुस्लिम मुल्क में जज़िया लगा करे?

''और यहूद ने कहा अज़ीज़ अल्लाह के बेटे हैं और नसारा ने कहा मसीह अल्लाह के बेटे हैं. यह इनका कौल है मुँह से कहने का - - - अल्लाह इनको गारत करे यह उलटे जा रहे हैं.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (३०)

हाँ सच है कि कोई अल्लाह का बेटा है नहीं है. न कोई अल्लाह का रसूल, न कोई अल्लाह न नबी, न कोई अल्लाह का अवतार न कोई अल्लाह का चेला और न कोई अल्लाह का दलाल. अभी तक यह साबित नहीं हो पाया है कि अल्लाह है भी या नहीं. अल्लाह अगर है भी तो ऐसा कोई नहीं जैसा इन अल्लाह के मुजरिमों ने अल्लाह का रूप गढ़ा है.

मोह्सिने इंसानियत इंसानों को खुद बद दुआ दे रहे हैं कि उन्हें अल्लाह ग़ारत करे और मुसलमानों की आँखों में धूल झोंक रहे हैं कि यह मेरा नहीं अल्लाह का कलाम है, मुसलमानों का हाल यह है कि उनकी हाँ में हाँ मिला रहा है, हाँ में ना मिलाने कि हिम्मत ही नहीं है.

'' लोग चाहते हैं कि अल्लाह के नूर को अपने मुंह से फूँक मार के बुझा दें ,हालाँकि अल्लाह तआला बदून इसके अपने नूर को कमाल तक पहुँचा दे , मानेगा नहीं, गो काफ़िर लोग कैसे ही नाखुश हों.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (३२)

इस आयत में मुहम्मद ने लाशऊरी तौर पर खुद को अल्लाह तस्लीम कराने की कोशिश की है जो कि उनकी मुहीम की मरकजी नियत थी। लात, मनात, उज्ज़ा जैसे देवी देवता के क़तार में अल्लाह के बुत निराकार की स्थापना ही तो करते हैं और उन्हीं के दिए की तरह अल्लाह के बुत का भी एक दिया जलाते हैं, कल्पना करते हैं कि जैसे हम इरादा रखते हैं इन देवो पर जलने वाले चिरागों को बुझाने का, वैसे ही यह काफ़िर, मुशरिक और मुल्हिद भी हमारे वहदानियत के बुत का दिया मुँह से फूँक मार के बुझादेने का..कहते हैं - -

''अपने नूर को कमाल तक पहुँचा दे , हालाँकि अल्लाह तआला बदून इसके अपने नूर को कमाल तक पहुँचा दे , मानेगा नहीं, गो काफ़िर लोग कैसे ही नाखुश हों.''

अरे भाई उस खुदाए बरतर का कमाल तो रोज़े अव्वल से कायम है. तुम पिद्दी? क्या पिद्दी का शोरबा? उसे कमाल तक क्या पहुंचोगे? हाँ उसकी मिटटी ज़रूर पिलीद किए हुए हो . उसकी मिटटी क्या पिलीद कर पाओगे ? हाँ मुसलमानों को पामाल ज़रूर किए हुए हो.

'' वह ऐसा है कि उसने अपने रसूल को हिदायत और सच्चा दीन देकर भेजा है ताकि इसको तमाम दीनो पर ग़ालिब कर दे, गो कि मुशरिक कितने भी नाखुश हों.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (३३)

खुदाए बरतर? खालिके कायनात? अगर कोई है तो निज़ाम ए कायनात की निजामत को छोड़ कर अरब के मुट्ठी भर कबीलाई बन्दों की नाराजी और रजामंदी को देख रहा है. अफ़सोस कि लाल बुझक्कड़ी माहौल में कोई चतुर मुखिया पैदा हुवा था और वह ऐसा चतुर था कि उसकी बोई हुई घास हम आज तक चर रहे हैं.

''ऐ इमान वालो! तुम लोगो को क्या हुवा? जब तुम से कहा जाता है अल्लाह की राह में (जेहाद के लिए) निकलो, तो तुम ज़मीन को लगे हो जाते हो. क्या तुम ने आख़िरत की एवज़ दुनयावी ज़िन्दगी पर किनाअत कर ली है? सो दुनयावी ज़िन्दगी का फ़ायदा बहुत क़लील है, अगर तुम न निकले तो वह तुम को बहुत सख्त सज़ा देगा और तुम्हारे बदले दूसरी क़ौम को पैदा कर देगा. और तुम अल्लाह को कुछ ज़रर नहीं पहूंचा सकते और अल्लाह को हर चीज़ पर पूरी पूरी कुदरत है.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (३८-३९)

मुहम्मद कुरआनी अल्लाह बन कर अपने पर ईमान लाए मुसलमान बन्दों को पैगामे तशद्दुद दे रहे हैं. इन्हीं के एहकामात भारतीय मदरसों में आज भी पढाए जाते हैं वह भी सरकारी मदद से. जब बच्चा जिज्ञासु होकर मोलवी साहब से पूछता है कि हमारे सल्लल्लाहो अलैहे वालेही वसल्लम किस के साथ जंग करने के लिए फरमा रहे हैं? तो जवाब होता है काफिरों के साथ. बच्चा पूछता है यह काफ़िर कौन लोग होते हैं तो मोलवी शरारत से मुस्कुरा कर कहता है बड़े होकर सब समझ जाओगे. बच्चा इसी तलब में बड़ा होता है

कि काफ़िर कौन होते हैं?

कुफ्र क्या है?

बड़ा होते होते पूरी तरह से उस पर जब यह भावुक ईमान ग़ालिब हो लाता है तो उसकी तलब उसे तालिबान बना देती है.

अफ़सोस का मुकाम यह है कि देश में तालिबानी मदरसे खुद हमारी सरकारें कायम करके चला रही हैं. हर एक को अल्प संख्यक वोट चाहिए क्यूंकि इसके दम से ही बहु सख्यक वोट का दारो मदार है, अल्प संख्यक मुस्लिम समाज पर सिर्फ मज़हबी जूनून का भूत ग़ालिब है जिसके चलते वह पीछे हैं, अनपढ़ हैं, गरीब है, बस. मगर बहु संख्यक हिदू समाज पर धार्मिक नशे का भूत ऐसा सवार है कि शराब, जुवा, अफीम. भाँग, चरस, गाँजा, कई अमानवीय, असभ्य नागा साधू जैसी नग्नता उसकी सभ्यता और धर्म का अंग बन चुके हैं. समाज सुधार का ढोल पीटने वाले मीडिया के नए अवतार केवल नाम नमूद की चाह रखते हैं अन्दर से पैसे की भूख उनको भी है. जम्हूरियत भारत के लिए इक्कीसवीं सदी में भी अभिशोप है. ज़मीर फरोश हर पार्टी के नेता किसी इनक्लाबी तलवार के इंतज़ार में हैं. जाने कब कोई माओ ज़े तुंग भारत में अवतरित होगा.

अल्लाह बने मुहम्मद कहते हैं ऐ ईमान वाले गधो! मैंने हुक्म दिया कि जेहाद के लिए खड़े हो जाओ , तुन ने सुना नहीं? अभी भी ज़मीन से पीठ लगाए लेटे हुए हो? क्या तुम्हें मेरे कबीले कुरैश के मुस्तक़बिल की कोई परवाह नहीं? गोकि मेरी नस्ल चुन चुन कर मार दी जायगी , मेरा तुख्म भी बाकी नहीं बचेगा, मैं जनता हूँ कि मेरी बद आमालियों की सज़ा कुदरत मुझे देगी मगर मैं क्या करून अपनी फितरत का गुलाम हूँ। मैं फिर भी कहता हूँ कुरैशयों के भले के लिए लड़ो वर्ना अल्लाह कोई कबीला ,कोई क़ौम ए दीगर उन पर मुसल्लत कर देगा क्यूंकि वह बड़ी कुदरत वाला है।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 8 November 2011

सूरात्तुत तौबा९ (दूसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरात्तुत तौबा९

(दूसरी किस्त)

आज बकरीद है. धार्मिक अंध विश्वास के तहत आज क़ुरबानी का दिन है. अल्लाह को प्यारी है, क़ुरबानी. अब अगर अल्लाह ही किसी अनैतिक बात को पसंद करता हो, तो बन्दे भला कैसे उसको राज़ी करने का भर पूर मुजाहिरा न करेंगे, भले ही यह हिमाक़त का काम क्यूं न हो. वैसे अल्लाह को क़ुरबानी अगर प्यारी है तो मुस्लमान अपनी औलादों की कुर्बानी किया करे. जानवरों की क़ुरबानी कोई बलिदान है क्या? क़ुरबानी की कहानी ये है कि बाबा इब्राहीम की कोई औलाद न थी. उनकी पत्नी जवानी पार करने के हद पर आई तो उसने अपने शौहर को राय दिया की वह मिसरी लोंडी हाजरा को उप पत्नी बना ले ताकि वह उसकी औलाद से अपना वारिस पा सके.उसके बाद हाजिरा हमला हुई और इस्माईल पैदा हुए, मगर हुवा यूं कि उसके बाद वह खुद हामिला हुई और इशाक पैदा हुवा. इसके बाद सारा हाजिरा और उसके बेटे से जलने लगी. सारा ने हाजिरा से ऐसी दुश्मनी बाँधी कि पहली बार हामला हाजिरा को घर से बाहर कर दिया. वह लावारिस दर बदर मारी मारी फिरी और आख़िर सारा से माफ़ी मांगी और घर दाखिल हुई. जब इस्माईल पैदा हुवा तो सारा और भी कुढने लगी इसके बाद जब खुद इशाक की माँ बनी तो एक दिन अपने शौहर को इस बात पर अमादा कर लिया कि वह हाजिरा के बेटे को अल्लाह के नाम पर क़त्ल कर दे. इब्राहीम राज़ी हो गया मगर उसके दिल में कुछ और ही था. वह अलने बेटे इस्माईल को लेकर घर से दूर एह पहाड़ी पर ले गया, रास्ते में एक दुम्बा भी खरीद लिया और इस्माईल की क़ुरबानी को एक घटना बतलाया "इस्माईल की जगह अल्लाह ने दुम्बा ला खड़ा किया" जो आज क़ुरबानी के रस्म की सुन्नत बन गई है. इस नाटक से दोनों बीवियों को इब्राहीम ने साध लिया. जब इब्राहीम ने अपने बेटे की क़ुरबानी दी तो अकेले वह थे और उनका अल्लाह, बेटा मासूम था गोदों में खेलने की उसकी उम्र थी. यानि कोई गवाह नहीं था सिर्फ अल्लाह के जो अभी तक अपने वजूद को साबित करने में नाकाम है, जैसे कि तौरेत, इंजील और कुरान के मानिंद उसे होना चाहिए. दीगर कौमें वक़्त के साथ साथ इस क़ुरबानी के वाक़िए को भूल गईं जो इब्राहीम ने अपने दो बीवियों के झगडे का एक हल निकाला , मगर मुसलामानों ने इसको उनसे उधार लेकर इस फ़ितूर पर क़ायम हैं. हिदुस्तान मे भी ये पशु बलि और नर बलि की कुप्रथा थी, मगर अब ये प्रथा जुर्म बन गई है. कहीं कोई देव इब्राहीम नुमा नहीं बचा कि उसकी कहानी की मान्यता क़ायम हो.

अब देखिए कि क़ुरआन में मुहम्मद कल्पित साज़िशी अल्लाह क्या कहता है - - -


''यह लोग मुसलामानों के बारे में न कुर्बत का पास करें न कौलो-करार का और यह लोग बहुत ही ज़्यादती कर रहे हैं, सो यह लोग अगर तौबा कर लें और नमाज़ पढने लगें और ज़कात देने लगें तो तुम्हारे दीनी भाई होंगे और हम समझदार लोगों के लिए एहकाम को खूब तफ़सील से बयान करते हैं''

सूरात्तुत तौबा९ -१०वाँ परा आयत (११-१२)

यह क़ुरआन का अनुवाद ईश-वाणी है, वह ईश जिसने इस ब्रह्माण्ड की रचना की है, हर आयत के बाद मेरी इस बात को सब से पहले ध्यान कर लिया करें.सूरह तौबा की पहली किस्त में बयान है की बे ईमान अल्लाह अपने ग़ैर मुस्लिम बन्दों से किस बे शर्मी के साथ किए हुए समझौते तोड़ देता है. अब देखिए कि वह उल्टा उन पर कौल क़रार तोड़ने का इलज़ाम लगा रहा है, लड़ने के बहाने ढूढ़ रहा है, नमाज़ें पढवा कर अपनी उँगलियों पर नचाने का इन्तेज़ाम कर रहा है, उनसे टेक्स वसूलने के जतन कर रहा है।


''क्या तुम ख़याल करते हो कि तुम यूँ ही छोड़ दिए जाओगे ? हालां कि अभी अल्लाह तअला ने उन लोगों को देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम में से जेहाद की हो और अल्लाह तअला और रसूल और मोमनीन के सिवा किसी को खुसूसयत का दोस्त न बनाया हो''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१६)

जंग, जेहाद से लौटे हुए लाखैरे, बे रोज़गार और बद हाल लोग लूट के माल में अपना हिस्सा मांगते हैं तो 'आलिमुल-ग़ैब'' मुहम्मदी अल्लाह बहाने बनाता है कि अभी तो मैं ने जंग की वह रील देखी ही नहीं जिसमें तुम शरीक होने का दावा करते हो. उसके बाद अभी अपने ग़ैबी ताक़त से यह भी मअलूम करना है कि तुम्हारे तअल्लुकात हमारे दुश्मनों से तो नहीं हैं या हमारे रसूल के दुश्मनों से तो नहीं है या कहीं मोमनीन के दुश्मनों से तो नहीं हैं, भले ही वह तुम्हारे भाई बाप ही क्यूँ न हों. अगर ऐसा है तो तुम क्या समझते हो तुम को कुछ मिलेगा ? बल्कि तुम गलत समझते हो कि तुम को यूं ही बख्श दिया जाएगा .

मुसलामानों!

यही ईश वानियाँ तुम्हारी नमाज़ों के नजर हैं. जागो।


''और अल्लाह तअला को सब खबर है तुम्हारे सब कामों का''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१७)

मुसलामानों को डेढ़ हज़ार साल तक अक्ल से पैदल तसव्वुर करने वाले खुद साख्ता रसूल शायद अपनी जगह पर ठीक ही थे कि अल्लाह के कलाम में ताजाद पर ताजाद भरते रहे और उनकी उम्मत चूँ तक न करती. देखिए कि पिछली आयत में मुहम्मदी अल्लाह कहता है कि ''अभी अल्लाह तअला ने उन लोगों को देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम में से जेहाद की हो और अल्लाह तअला और रसूल और मोमनीन के सिवा किसी को खुसूसयत का दोस्त न बनाया हो'' और अगली ही सांस में इसके बर अक्स बात करता है ''और अल्लाह तअला को सब खबर है तुम्हारे सब कामों का'' ऐसा नहीं कि उस वक़्त जब मुहम्मद लोगों को यह क़ुरआनी आयतें सुनाते थे तो लोग अक्ल से पैदल थे. मक्का में बारह सालों तक गलियों, सड़कों, मेलों, बाज़ारों और चौराहों पर जहाँ लोग मिलते यह शुरू हो जाते क़ुरआनी राग लेकर. लोग पागल, दीवाना, सनकी और ख़ब्ती समझ कर झेल जाते. कुछ तौहम परस्त और अंधविश्वासी इन्हें मान्यता भी देने लगे. कबीलाई सियासत ने इन्हें मदीना में शरन दे दिया, वहीँ पर यह दीवाना फरज़ाना बन गया. मुहम्मद को मदीने में ऐसी ताक़त मिली कि इनकी क़ुरआनी खुराफ़ात मुसलामानों की इबादत बन कर रह गई है. अल्लाह के रसूल शायद कामयाब ही हैं


''ऐ ईमान वालो! अपने बापों को, अपने भाइयों को अपना रफ़ीक़ मत बनाओ अगर वह कुफ़्र को बमुक़बिला ईमान अज़ीज़ रखें और तुम में से जो शख्स इनके साथ रफ़ाक़त रखेगा, सो ऐसे लोग बड़े नाफ़रमान हैं''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२३)

खून के रिश्तों में निफ़ाक़ डालने वाला यह मुहम्मद का पैगाम दुन्या का बद तरीन कारे-बद है. इन रिश्तों से महरूम हो जाने के बाद क्या रह जाती है इंसानी ज़िन्दगी? मार कट, जंगो जद्दल, लूट पाट , की यह दुनयावी ज़िन्दगी या फिर उस दुन्या की उन बड़ी बड़ी आँखों वाली खयाली जन्नत की हूरें? मोती जैसे सजे हुए बहिश्ती लौंडे? शराब कबाब, खजूर अंगूर? इसके लिए भूल जाएँ अपने शफीक बाप को जिसके हम जुज़्व हैं? अपने रफ़ीक़ भाई को जिसके हम हमखून हैं? वह भी उस ईमान के एवज़ जो एक अकीदत है, एक खयाली तस्कीन. लअनत है ऐसे ईमान पर जो ऐसी कीमत का तलबगार हो. अफ़सोस है उन चूतियों पर जो बाप और भाई की क़ीमत पर मिटटी के बुत को छोड़ कर हवा के बुत पर ईमान बदला हो।


''आप कह दीजिए तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियां और तुम्हारा कुनबा और तुम्हारा माल जो तुमने कमाया और वह तिजारत जिस में से निकासी करने का तुम को अंदेशा हो और वह घर जिसको तुम पसंद करते हो, तुमको अल्लाह और उसके रसूल से और उसकी राह में जेहाद करने से ज़्यादः प्यारे हों तो मुन्तज़िर रहो, यहाँ तक की अल्लाह अपना हुक्म भेज दे. और बे हुकमी करने वाले को अल्लाह मक़सूद तक नहीं पहुंचता''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२४)
उफ़ !

इन्तहा पसंद मुहम्मद, ताजदारे मदीना, सरवरे कायनात, न खुद चैन से बैठते कभी न इस्लाम के जाल में फंसने वाली रिआया को कभी चैन से बैठने दिया. अगर कायनात की मख्लूक़ पर क़ाबू पा जाते तो जेहाद के लिए दीगर कायनातों की तलाश में निकल पड़ते. अल्लाह से धमकी दिलाते हैं कि तुम मेरे रसूल पर अपने अज़ीज़ तर औलाद, भाई, शरीके-हयात और पूरे कुनबे को कुर्बान करने के लिए तैयार रहो, वह भी बमय अपने तमाम असासे के साथ जिसे तिनका तिनका जोड़ कर आप ने अपनी घर बार की खुशियों के लिए तैयार किया हो. इंसानी नफ्सियात से नावाकिफ पत्थर दिल मुहम्मद क़ह्हार अल्लाह के जीते जागते रसूल थे.

मुसलमानो!

एक बार फिर तुम से गुज़ारिश है कि तुम मुस्लिम से मोमिन बन जाओ. मुस्लिम और मोमिन के फ़र्क़ को समझने कि कोशिश करो. मुहम्मद ने दोनों लफ़्ज़ों को खलत मलत कर दिया है और तुम को गुमराह किया है कि मुस्लिम ही असल मोमिन होता है जिसका ईमान अल्लाह और उसके रसूल पर हो. यह किज़्ब है, दरोग़ है, झूट है, सच यह है कि आप के किसी अमल में बे ईमानी न हो यही ईमान है, इसकी राह पर चलने वाला ही मोमिन कहलाता है. जो कुछ अभी तक इंसानी ज़ेहन साबित कर चुका है वही अब तक का सच है, वही इंसानी ईमान है. अकीदतें और आस्थाएँ कमज़ोर और बीमार ज़ेहनों की पैदावार हैं जिनका नाजायज़ फ़ायदा खुद साखता अल्लाह के पयम्बर, भगवन रूपी अवतार , गुरु, महात्मा उठाते हैं.तुम समझने की कोशिश करो. मैं तुम्हारा सच्चा ख़ैर ख्वाह हूँ. ख़बरदार ! कहीं मुस्लिम से हिन्दू न बन जाना वर्ना सब गुड गोबर हो जायगा, क्रिश्चेन न बन जाना, बौद्ध न बन जाना वर्ना मोमिन बन्ने के लिए फिर एक सदी दरकार होगी. धर्मांतरण बक़ौल जोश मलीहाबादी एक चूहेदान से निकल कर दूसरे चूहेदान में जाना है. बनना ही है तो मुकम्मल इन्सान बनो, इंसानियत ही दुन्या का आख़िरी मज़हब होगा. मुस्लिम जब मोमिन हो जायगा तो इसकी पैरवी में ५१% भारत मोमिन हो जायगा।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 3 November 2011

सूरह ए तौबः ९ (पहली किस्त)

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।




नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.





सूरह ए तौबः ९


(पहली किस्त)


सूरह-ए-तौबः एक तरह से अल्लाह की तौबः है .

अरबी रवायत में किसी नामाक़ूल, नामुनासिब, नाजायज़ या नाज़ेबा काम की शुरूआत अल्लाह या किसी मअबूद के नाम से नहीं की जाती थी,

आमदे इस्लाम से पहले यह क़ाबिले क़द्र अरबी कौम के मेयार का एक नमूना था.

मुहम्मद ने अपने पुरखों की अज़मत को बरक़रार रखते हुए इस सूरह की शुरूआत बगैर बिस्मिल्लाह हिररहमा निररहीम से अज खुद शुरू किया.

आम मुसलमान इस बात को नहीं जानता कि कुरान की ११४ सूरह में से सिर्फ एक सूरह, सूरह-ए-तौबः बगैर बिस्मिल्लाह हिररहमा निररहीम पढ़े शुरू करनी चाहिए, इस लिए कि इस में रसूल के दिल में पहले से ही खोट थी.

मुआमला यूँ था कि मुसलामानों का मुशरिकों के साथ एक समझौता हुआ था कि आइन्दा हम लोग जंगो जद्दाल छोड़ कर पुर अम्न तौर पर रहेंगे. ये मुआहदा कुरआन का है, गोया अल्लाह कि तरफ से हुवा. इसको कुछ रोज़ बाद ही अल्लाह निहायत बेशर्मी के साथ तोड़ देता है

और बाईस-ए-एहसास जुर्म अपने नाम से सूरह की शुरूआत नहीं होने देता.

मुसलामानों!

इस मुहम्मदी सियासत को समझो.

अकीदत के कैपशूल में भरी हुई मज़हबी गोलियाँ कब तक खाते रहोगे?

मुझे गुमराह, गद्दार, और ना समझ समझने वाले कुदरत कि बख्सी हुई अक्ल का इस्तेमाल करें, तर्क और दलील को गवाह बनाएं तो खुद जगह जगह पर क़ुरआनी लग्ज़िशें पेश पेश हैं

कि इस्लाम कोई मज़हब नहीं सिर्फ सियासत है और निहायत बद नुमा सियासत जिसने रूहानियत के मुक़द्दस एहसास को पामाल किया है।
क़बले-इस्लाम अरब में मुख्तलिफ़ फिरके हुवा करते थे जिसके बाकियात खास कर उप महाद्वीप में आज भी पाए जाते हैं। इनमें क़ाबिले ज़िक्र नीचे दिए जाते हैं ---
१- काफ़िर ---- यह क़दामत पसंद होते थे जो पुरखों के प्रचीनतम धर्म को अपनाए रहते थे. सच पूछिए तो यही इंसानी आबादी हर पैगम्बर और रिफार्मर का रा-मटेरियल होती रही है. बाकियात में इसका नमूना आज भी भारत में मूर्ति पूजक और भांत भांत अंध विश्वाशों में लिप्त हिदू समाज है.

ऐसा लगता है चौदह सौ साला पुराना अरब पूर्व में भागता हुआ भारत में आकर ठहर गया हो और थके मांदे इस्लामी तालिबान, अल क़ायदा और जैशे मुहम्मद उसका पीछा कर रहे हों.

२- मुश्रिक़ ---- जो अल्लाह वाहिद (एकेश्वर) के साथ साथ दूसरी सहायक हस्तियों को भी खातिर में लाते हैं. मुशरिकों का शिर्क जानता की खास पसंद है. इसमें हिदू मुस्लिम सभी आते है, गोकि मुसलमान को मुश्रिक़ कह दो तो मारने मरने पर तुल जाएगा मगर वह बहुधा ख्वाजा अजमेरी का मुरीद होता है, पीरों का मुरीद होता है जो की इस्लाम के हिसाब से शिर्क है.

आज के समाज में रूहानियत के क़ायल हिन्दू हों या मुसलमान थोड़े से मुश्रिक़ ज़रूर हैं.

३- मुनाफ़िक़ ---- वह लोग जो बज़ाहिर कुछ, और बबातिन कुछ और, दिन में मुसलमान और रात में काफ़िर. ऐसे लोग हमेशा रहे हैं जो दोहरी जिंदगी का मज़ा लूट रहे हैं. मुसलामानों में हमेशा से कसरत से मुनाफ़िक़ पाए जाते हैं.

४- मुनकिर ----- मुनकिर का लफ्ज़ी मतलब है इंकार करने वाला जिसका इस्लामी करन करने के बाद इस्तेलाही मतलब किया गया है कि इस्लाम क़ुबूल करने के बाद उस से फिर जाने वाला मुनकिर होता है. बाद में आबाई मज़हब इस्लाम को तर्क करने वाला भी मुनकिर कहलाया.

५-मजूसी ----- आग, सूरज और चाँद तारों के पुजारी. ज़रथुष्टि.

६-मुल्हिद ------ कब्र रसीदा (नास्तिक) हर दौर में ज़हीनों को ढोंगियों ने उपाधियाँ दीं हैं मुझे गर्व है कि इंसान की ज़ेहनी परवाज़ बहुत पुरानी है.

७- लात, मनात, उज़ज़ा जैसे देवी देवताओं के उपासक, जिनकी ३६० मूर्तियाँ काबे में रक्खी हुई थीं जिसमे महात्मा बुद्ध की मूर्ति भी थी.

इनके आलावा यहूदी और ईसाई कौमे तो मद्दे मुकाबिल इस्लाम थीं ही जो कुरआन में छाई हुई .

हैं.

अल्लाह अह्द शिकनी करते हुए कहता है - - -''अल्लाह की तरफ से और उसके रसूल की तरफ से उन मुशरिकीन के अह्द से दस्त बरदारी है, जिन से तुमने अह्द कर रखा था.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१)

मुसलामानों !

आखें फाड़ कर देखो यह कोई बन्दा नहीं, तुम्हारा अल्लाह है जो अहद शिकनी कर रहा है, वादा खेलाफ़ी कर रहा है, मुआहिदे की धज्जियाँ उड़ा रहा है, मौक़ा परस्ती पर आमदः है, वह भी इन्सान के हक में अम्न के खिलाफ ?

कैसा है तुम्हारा अल्लाह, कैसा है तुम्हारा रसूल ? एक मर्द बच्चे से भी कमज़ोर जो ज़बान देकर फिरता नहीं। मौक़ा देख कर मुकर रहा है?

लअनत भेजो ऐसे अल्लाह पर.


''सो तुम लोग इस ज़मीन पर चार माह तक चल फिर लो और जान लो कि तुम अल्लाह तअला को आजिज़ नहीं कर सकते और यह कि अल्लाह तअला काफिरों को रुसवा करेंगे.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२)

कहते है क़ुरआन अल्लाह का कलाम है, क्या इस क़िस्म की बातें कोई तख्लीक़ कार-ए-कायनात कर सकता है? मुसलमान क्या वाकई अंधे,बहरे और गूँगे हो चुके हैं, वह भी इक्कीसवीं सदी में. क्या खुदाए बरतर एक साजिशी, पैगम्बरी का ढोंग रचाने वाले अनपढ़ , नाकबत अंदेश का मुशीर-ए-कार बन गया है. वह अपने बन्दों क्र अपनी ज़मीन पर चलने फिरने की चार महीने की मोहलत दे रहा है ? क्या अजमतो जलाल वाला अल्लाह आजिज़ होने की बात भी कर सकता है? क्या वह बेबस, अबला महिला है जो अपने नालायक बच्चों से आजिज़-ओ-बेजार भी हो जाती है. वह कोई और नहीं बे ईमान मुहम्मद स्वयंभू रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हैं जो अल्लाह बने हुए अह्द शिकनी कर रहे है.


''अल्लाह और रसूल की तरफ से बड़े हज की तारीखों का एलान है और अल्लाह और उसके रसूल दस्त बरदार होते हैं इन मुशरिकीन से, फिर अगर तौबा कर लो तो तुम्हारे लिए बेहतर है और अगर तुम ने मुंह फेरा तो यह समझ लो अल्लाह को आजिज़ न कर सकोगे और इन काफिरों को दर्द नाक सज़ा सुना दीजिए."

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (३)

क़ब्ले इस्लाम मक्का में बसने वाली जातियों का ज़िक्र मैंने ऊपर इस लिए किया था कि बतला सकूं कअबा जो इनकी पुश्तैनी विरासत था, इन सभी का था जो कि इस्माइली वंशज के रूप में जाने जाते थे।यह कदीम लडाका कौम यहीं पर आकर अम्न और शांति का प्रतीक बन जाती थी, सिर्फ अरबियों के लिए ही नहीं बल्कि सारी दुन्या के लिए. अरब बेहद गरीब कौम थी, इसकी यह वजह भी हो सकती है सकती सकती कि हज से इनको कुछ दिन के लिए बद हाली से निजात मिलती रही हो. मुहम्मद ने अपने बनाए अल्लाह के कानून के मुताबिक इसको सिर्फ मुसलामानों के लिए मखसूस कर दिया, क्या यह झगडे की बुनियाग नहीं कायम की गई. इन्साफ पसंद मुस्लिम अवाम इस पर गौर करे.


'' मगर वह मुस्लेमीन जिन से तुमने अहेद लिया, फिर उन्हों ने तुम्हारे साथ ज़रा भी कमी नहीं की और न तुम्हारे मुकाबिले में किसी की मदद की, सो उनके मुआह्दे को अपने खिदमत तक पूरा करो. वाकई अल्लाह एहतियात रखने वालों को पसंद करता है.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४)

यह मुहम्मदी अल्लाह की सियासत अपने दुश्मन को हिस्सों में बाँट कर उसे किस्तों में मरता है. आगे चल कर यह किसी को नहीं बख्शता चाहे इसके बाप ही क्यूँ न हों.


''सो जब अश्हुर-हुर्म गुज़र जाएँ इन मुशरिकीन को जहाँ पाओ मारो और पकड़ो और बांधो और दाँव घात के मौकों पर ताक लगा कर बैठो. फिर अगर तौबा करलें, नमाज़ पढने लगें और ज़कात देने लगें तो इन का रास्ता छोड़ दो,''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५)

मैं ने क़ब्ले इस्लाम मक्का कें मुख्तलिफ क़बीलों का ज़िक्र इस लिए किया था कि बावजूद इख्तेलाफ ए अकीदे के हज सभी का मुश्तरका मेला था क्यूँकि सब के पूर्वज इस्माईल थे. हो सकता है यहूदी इससे कुछ इख्तेलाफ़ रखते हों कि वह इस्माईल के भाई इसहाक के वंसज हैं मगर हैं तो बहरहाल रिश्ते दार. अब इस मुश्तरका विरासत पर सैकड़ों साल बाद कोई नया दल आकर अपना हक तलवार की जोर पर कायम करे तो झगडे की बुनियाद तो पड़ती ही है. इस तरह मुसलामानों ने यहूदियों और ईसाइयों से न ख़त्म होने वाला बैर खरीदा है. अल्लाह के वादे की खिलाफ वर्ज़ी के बाद मुहम्मद की बरबरियत की यह शुआतशुरुआत है।



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान