Friday 30 September 2016

Soorah momin 40-Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है। 


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नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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   सूरह मोमिन ४० पारा  २४  
किस्त (1)

ये सूरह मक्का की है जोकि मुहम्मद की तरकीब, तबलीग और तक़रीर से पुर है. वह कुछ  डरे हुए है, उनको अपने ऊपर मंडराते ख़तरे का पता चल चुका है, पेशगी में इब्राहीम और मूसा की गिरफ़्तारी की आयतें गढ़ने लगे हैं. उन पर जो आप बीती होती है वह अगलों की आप बीती बन जाती है. नाक लगी फटने,  खैरात लगी बटने, 
उस वक़्त लोग उन्हें सुनते और दीवाने की बडबड जानकर नज़र अंदाज़ कर जाते. तअज्जुब आज के लोगों पर है कि लोग उसी बडबड को अल्लाह का कलाम मानने लगे हैं.
मुहम्मद जानते थे क़ि अल्लाह नाम की कोई मख्लूक़ नहीं है. उसका वजूद कयासों में मंडला रहा है,  इस लिए वह खुद अल्लाह बन कर कयासों में समां गए. इस हक़ीक़त को हर साहिब ए होश (बुद्धि जीवी) जनता है और हर बद ज़ाद आलिम भी. मगर माटी के माधव अवाम को हमेशा झूट और मक्र में ही सच्चाई नज़र आती है. वक़्त मौजूँ हो तो कोई भी होशियार मुहम्मद अल्लाह का मुखौटा पहन कर भेड़ों की भीड़ में खड़ा हो सकता है और वह कम अक़लों का खुदा बन सकता है. दो चार नस्लों के बाद वह मुस्तनद भी हो जाता है. ये हमारी पूरब की दुन्या की ख़ासियत  है.
मुहम्मद ने अल्लाह का रसूल बन कर कुछ ऐसा ही खेल खेला जिस से सारी दुन्या मुतास्सिर है. मुहम्मद इन्तेहाई दर्जा खुद परस्त और खुद ग़रज़ इंसान थे. वह हिकमते अमली में चाक चौबंद, 
पहले मूर्ति पूजकों को निशाना बनाया, अहले किताब (ईसाई और यहूदी) को भाई बंद बना रखा, 
कुछ ताक़त मिलने के बाद मुल्हिदों और दहरियों (कुछ न मानने वाले, नास्तिक) को निशाना बनाया, और मज़बूत हुए, तो अहले किताब को भी छेड़ दिया कि  इनकी किताबें असली नहीं हैं, इन्हों ने फर्जी गढ़ ली हैं, असली तो अल्लाह ने वापस ले लीं हैं. 
हालाँक़ि अहले किताब को छेड़ने का मज़ा इस्लाम ने भरपूर चखा, और चखते जा रहे हैं मगर खुद परस्त और खुद गरज मुहम्मद को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. वह को अपने सजदे में झुका हुवा देखना चाहते थे, इसके अलावा कुछ भी नहीं.
ईमान लाने वालों में एक तबका मुन्किरों का पैदा हुआ जिसने इस्लाम को अपना कर फिर तर्क कर दिया, जो मुहम्मदी खुदा को करीब से देखा तो इसे झूट क़रार दिया, उनको ग़ालिब मुहम्मद ने क़त्ल कर देने का हुक्म दिया इससे बा होश लोगों का सफाया हो गया, जो डर कर इस्लाम में वापस हुए वह मुरतिद कहलाए.
मुहम्मद खुद सरी, खुद सताई, खुद नुमाई और खुद आराई के पैकर थे. अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ चाहा, पा लिया, मरने के बाद भी कुछ छोड़ना नहीं चाहते थे कि खुद को पैग़म्बरे आखरुज़ ज़मा बना कर कायम हो गए, यही नहीं मुहम्मद अपनी जिहालत भरी कुरआन को अल्लाह का आखरी निज़ाम बना गए. मुहम्मद ने मानव जाति के साथ बहुत बड़ा जुर्म किया है जिसका खाम्याज़ा सदियों से मुसलमान कहे जाने वाले बन्दे झेल रहे है.
अध् कचरी, अधूरी, पुर जेह्ल और नाक़िस कुछ बातों को आखरी निज़ाम क़रार दे दिया है. क्या उस शख्स के सर में ज़रा भी भेजा नहीं था क़ि वह इर्तेकाई तब्दीलियों को समझा ही नहीं. क्या उसके दिल में कोई इंसानी दर्द था ही नहीं कि इसके झूट एक दिन नंगे हो जाएँगे.तब इसकी उम्मत का क्या हश्र होगा?
आज इतनी बड़ी आबादी हज़ारों झूट में क़ैद, मुहम्मद की बख्शी हुई सज़ा काट रही है. वह सज़ा जो इसे विरासत में मिली हुई है, वह सज़ा जो ज़हनों में पिलाई हुई घुट्टी की तरह है, वह क़ैद जिस से रिहाई खुद कैदी नहीं गवारा करता, रिहाई दिलाने वाले से जान पर खेल जाता है. इन पर अल्लाह तो रहेम करने वाला नहीं, आने वाले वक्तों में देखिए, क्या हो? कहीं ये अपने बनाए हुए क़ैद खाने में ही दम न तोड़ दें. या फिर इनका कोई सच्चा पैगम्बर पैदा हो. 

"हा मीम"
सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (१)

अल्लाह का ये छू मंतर कभी एक आयत (बात) होती है और कभी कभी कोई बात नहीं होती. यहाँ पर ये "हा मीम" एक बात है जो की अल्लाह के हमल में है.

"ये किताब उतारी गई है अल्लाह की तरफ़ से जो ज़बर दस्त है. हर चीज़ का जानने वाला है, गुनाहों को बख्शने वाला है, और तौबा को क़ुबूल करने वाला है. सख्त सज़ा देने वाला और क़ुदरत वाला है. इसके सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं है, इसके पास लौट कर जाना है. अल्लाह की इस आयत पर वही लोग झगड़ने लगते हैं जो मुनकिर हैं, सो उनका चलना फिरना आप को शुबहे में न डाले."
सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (२-४)

अल्लाह कोई ऐसी हस्ती नहीं है जो इंसानी दिल ओ दिमाग़ रखता हो, जो नमाज़ रोज़ा और पूजा पाठ से खुश होता हो या नाराज़. यहाँ तक कि वह रहेम करे या सितम ढाए जाने से भी नावाकिफ़ है. अभी तक जो पता चला है, हम सब सूरज की उत्पत्ति हैं और उसी में एक दिन लीन हो जाएँगे. हमारे साइंसदान कोशिश में हैं कि नसले इंसानी बच बचा कर तब तक किसी और सय्यारे को आबाद कर ले, मगर हमारे वजूद को फ़िलहाल लाखों साल तक कोई खतरा नहीं.

"जो फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए हैं और जो फ़रिश्ते इसके गिर्दा गिर्द हैं और अपने रब की तस्बीह और तम्हीद करते रहतेहैं और ईमान वालों के लिए इसतेगफ़ार करते रहते है कि ऐ मेरे परवर दिगार इन लोगों को बख्श दीजिए जिन्हों ने तौबा कर लिया है और उनके माँ बाप बीवी और औलादों में से जो लायक़ हों उनको भी बहिश्तों में दाखिल कीजिए."
सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (७-८)

जो फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए है तो उनका पैर किस ज़मीन पर टिकता है? फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए नहीं बल्कि अर्श में लटके अपनी जान की दुआ करने में लगे होंगे. मुहम्मद कितने सख्त हैं कि "उनके माँ बाप बीवी और औलादों में से जो लायक़ हों उनको भी बहिश्तों में दाखिल कीजिए." अगर इन लोगों ने इस्लाम को क़ुबूल कर लिया हो तभी वह लायक हो सकते हैं.
अल्लाह बने मुहम्मद अपनी तबीअत की ग़ममाज़ी  कुछ इस तरह करते हैं

"बेशक जो लोग कुफ़्र की हालत में मर कर आए होंगे, उनको सुना दिया जाएगा जिस तरह आज तुम को अपने रब से नफ़रत  है, इससे कहीं ज़्यादः अल्लाह को तुम से नफ़रत थी जब तुमको दुन्या  में ईमान की तरफ़ दावत दी जाती थी और तुम इसे मानने से इंकार करते थे,"
सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (१०)

ऐसी आयतें बार बार इशारा करती है कि मुहम्मद अंदरसे खुद को खुदा माने हुए थे. इन से बड़ा जहन्नमी और कौन हो सकता है?

कलामे दीगराँ - - -
लीक पुरानी न तजैं, कायर कुटिल कपूत.
लीक पुरानी न रहैं, शायर, सिंह, सपूत.
"कबीर"
इस कहते हैं कलाम पाक
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 27 September 2016

Hindu Dharam Darshan 10

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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गुंडे और कायर 

गाँधी जी ने बड़ी हिम्मत की , 
यह कहकर कि मुसलमान बहुधा गुंडा होता है 
और हिंदू बहुधा कायर होता है। 
ग़ांधी जी ने पूरी हिम्मत नहीं की वर्ना कहते इस्लाम अपने आप में गुंडा गर्दी है और हिन्दू सिर्फ कायर ही नहीं बल्कि ख़सीस और बेईमान भी होता है। खुद गाँधी जी की अहिंसा भी कायरता की श्रृंखला में आती है। 
मुसलमानों की जग जाहिर गुंडा गर्दी है isis है। 
और हिंदुओं की जग जाहिर बेईमानी है मसअला कश्मीर। 
अंतर राष्ट्रीय मंच "राष्ट्र-संघ " में देश के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वादा किया था कि काश्मीर में राय शुमारी होगी , आया काशमीरी हिन्दुतान में रहना चाहते है या पाकिस्तान या फिर अपना आज़ाद मुल्क चाहते हैं। 
काशमीर पर अपनी बात से मुकर जाना अंतर राष्ट्रीय स्तर की बेईमानी है। 
कहते हैं काशमीर भारत का अभिन्न अंग है। 
भारत का अंग तो कभी मलेश्या , इंडोनेशिया , थाई लैंड , बर्मा से लेकर अफगानिस्तान तक थे।  सब भिन्न हो गए।  
अभी कल की बात है भारत के अंग रहे पाकिस्तान और बांगला देश भिन्न हो गए। कल हिन्दुतान के दो चार अंग अलग होकर नए देश हो जायँ, तो कौन सी बुरी बात हो जाएगी ? 
जैसे कि सोवियत यूनियन का हुवा है। 
योरोप में आए दिन देश जुड़ते और टूटते रहते है। 
कैनाडा में फ़्रांस बाहुल्य इलाक़ा कई बार अलग होने की बात करता है , हर बार चुनाव में मामूली अंतर से हार जाता है। 
देश में कोई खून रेज़ी नहीं होती. 
काशमीर में सेना से लेकर अवाम तक की लगभग लाख से अधिक जाने जा चुकी हैं। 
यह देश प्रेम कहा जायगा या बेईमानी ? 
देश प्रेम नहीं , धरती प्रेम की ज़रूरत है मानव जाति को , 
देश तो सियासत दानों की सीमा बंदी होता हैं 
जिसमें रहकर हम सुऱक्षित रहते हैं , 
हम सुऱक्षित रहते हैं दाख़िली तौर पर और खारजी तौर पर जिसके लिए हम जान भी दे सकते हैं। 
देश को प्रेम नहीं टैक्स चाहिए , 
टैक्स चोरी देश द्रोह है न कि दिल की आवाज। 
देखिए कब तक यह गुंडे और बेईमान सियासत दान कब तक इंसानी खून से अपनी प्यास बुझाते रहते हैं।  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 26 September 2016

Soorah Aljumar 39 Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह अलज़ुमर  ३९ पारा २३  
(किस्त 2) 

"अल्लाह ने बड़ा उम्दा कलाम नाज़िल फ़रमाया है जो ऐसी किताब है कि बाहम मिलती जुलती है, बारहा दोहराई गयी है. जिस से उन लोगों को जो अपने रब से डरते हैं, बदन काँप उठते हैं. फिर उनके बदन और दिल अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जह हो जाते हैं, ये अल्लाह की हिदायत है, जिसको चाहे इसके ज़रीए हिदायत करता है और जिसको गुमराह करता है उसका कोई हादी नहीं."
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (२३)

उम्मी ने अपने अल्लम गल्लम किताब को तौरेत, ज़ुबूर और इंजील के बराबर साबित करने की कोशिश की है जिनके मुकाबिले में कुरआन कहीं ठहरती ही नहीं. जब तक मुसलमान इसके फरेब में क़ैद रहेंगे दुनिया के गुलाम बने रहेंगे. दुनिया बेवकूफों का फायदा उठती है उसको बेवकूफी से छुटकारा नहीं दिलाती.

''हाँ! बेशक तेरे पास मेरी आयतें आई थीं, तूने इन्हें  झुटलाया और तकब्बुर किया और काफिरों में शामिल हुवा.
आप कह दीजिए कि ए जाहिलो ! क्या फिर भी तुम मुझ से गैर अल्लाह की इबादत करने को कहते हो?
और इन लोगों ने अल्लाह की कुछ अज़मत न की, जैसी अज़मत करनी चाहिए थी. हालांकि सारी ज़मीन इसकी मुट्ठी में होगी, क़यामत के दिन और तमाम आसमान लिपटे होंगे इसके दाहिने हाथ में. वह पाक और बरतर है उन के शिर्क से "
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २४ - आयत (५९-६८)

दुन्या का बद तरीन झूठा नाम निहाद पैगम्बर अपने जाल में फँसे मुसलामानों कैसे कैसे मक्र से डरा रहा है. इसे किसी ताक़त का डर न था, अल्लाह तो इसकी मुट्ठी में था. तखरीब का फ़नकार था, मुत्फंनी की ज़ेहनी परवाज़ देखे कि कहता है 
"ज़मीन इसकी मुट्ठी में होगी, क़यामत के दिन और तमाम आसमान लिपटे होंगे इसके दाहिने हाथ में." 
क्यूंकि बाएँ हाथ से अपना पिछवाडा धो रहा होगा इसका अल्लाह.

"और सूर में फूँक मार दी जायगी और होश उड़ जाएँगे तमाम ज़मीन और आसमान वालों के, मगर जिसको अल्लाह चाहे. फिर इसमें दोबारा फूँक मार दी जायगी, अचानक सब के सब खड़े हो जाएँगे और देखने लगेंगे और ज़मीन अपने रब के नूर से रौशन हो जाएगी और नामा ए आमाल रख दिया जायगा और उन पर ज़ुल्म न होगा और हर शख्स को इसके आमाल का पूरा पूरा बदला दिया जायगा. और सबके कामों को खूब जानता है और जो काफ़िर हैं वह जहन्नम की तरफ़ हाँके जाएँगे गिरोह दर गिरोह बना कर, यहाँ तक कि जब दोज़ख के पास पहुँचेंगे तो इसके दरवाजे खोल दिए जाएंगे और इनमें से दोज़ख के मुहाफ़िज़ फ़रिश्ते कहेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम ही में से कोई तुम्हारे पैगम्बर नहीं आए थे? जो लोगों को तुम्हारे रब की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे. और तुम को तुम्हारे इन दिनों के आने से डराया करते थे. काफ़िर कहेंगे हाँ आए तो थे मगर अज़ाब का वादा काफिरों से पूरा होके रहा. फिर कहा जायगा कि जहन्नम के दरवाजे में दाखिल हो जाओ और हमेशा इसी में रहो."
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २४ - आयत (६८-७२)

क़यामत की ये नई मंज़र कशी है. न कब्रें शक हुईं, न मुर्दे उट्ठे, न कोई हौल न हंगामा आराई. लगता है जिन्दों में ही यौम हिसाब है.
सूर की अचानक आवाज़ सुन कर लोग चौंकेंगे उनके कान खड़े हुए तो दोबारा आवाज़ आई, वह खुद खड़े हो गए, ज़मीन अपने रब की रौशनी से रौशन हो गई, बड़ा ही दिलकश नज़ारा होगा.  गवाहों के सामने लोगों के आमाल नामे बांटे जाएँगे, किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं हुवा. बस काफ़िर दोज़ख की जानिब हाँके गए. दोज़ख के दरवाजे पर खड़ा दरोगा उनसे पूछता है अमा यार क्या तुम्हारे पास तुम ही में से कोई तुम्हारे पैगम्बर नहीं आए थे? जो लोगों को तुम्हारे रब की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे. और तुम को तुम्हारे इन दिनों के आने से डराया करते थे.
काफ़िर कहेंगे आए तो थे एक चूतिया टाईप के उनकी मानता तो मेरी दुन्या भी खराब हो जाती.

अगर आप के पास वक़्त है तो पूरी ईमान दारी के साथ फ़ितरत को गवाह बना कर इन क़ुरआनी आयतों का मुतालिआ करें. मुतराज्जिम की बैसाखियों का सहारा क़तई न लें ज़ाहिर है वह उसकी बातें हैं, 
अल्लाह की नहीं. 
मगर अगर आप गैर फ़ितरी बातो पर यक़ीन रखते हैं कि २+२=५ हो सकता है तो आप कोई ज़हमत न करें और अपनी दुन्या में महदूद रहें.
मुसलामानों के लिए इस से बढ़ कर कोई बात नहीं हो सकती कि कुरआन को अपनी समझ से पढ़ें और अपने ज़ेहन से समझें. जिस क़दर आप समझेंगे, कुरआन बस वही है. जो दूसरा समझाएगा वह झूट होगा. अपने शऊर, अपनी तमाज़त और अपने एहसासात को हाज़िर करके मुहम्मद की तहरीक को परखें. आपको इस बात का ख्याल रहे कि आजकी इंसानी क़द्रें क्या हैं, साइंसटिफिक टुरुथ क्या है. मत लिहाज़ करें मस्लेहतों का, सदाक़त के आगे. बहुत जल्द सच्चाइयों की ठोस सतह पर अपने आप को खडा पाएँगे.
आप अगर मुआमले को समझते हैं तो आप हज़ारों में एक हैं, अगर आप सच की राह पर गामज़न हुए तो हज़ारों आपके पीछे होंगे. इंसान को इन मज़हबी खुराफ़ात से नजात दिलाइए.  

कलामे डीगराँ

"हुकूकुल इबाद, खैर ओ खैरात, कुवें और तालाबों की तामीर, गाय बैल और कुत्ते जैसे फायदे मंद जानवरों का पालन, मियाँ और बीवी का एक दूसरे पर यक़ीन, अनाज का भरपूर पैदा वार, ऐश ओ अय्याशी से दूर, पराए माल और पराई औरत पर नज़रे बद नहीं, गुस्सा लालच, हसद, चोरी झूट और शराब से दूर रहो. मेहनत, सदाक़त और तालीम के करीब रहो."
   "ज़र्थुर्ष्ट "
पारसी धर्म
इसे कहते हैं कलाम पाक 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 24 September 2016

Hindu Dharam Darshan 9

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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वेद दर्शन (1)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

बहुत शोर सुनते थे सीने में दिल का ,
जो चीरा तो इक क़तरा ए खून निकला .

वेदों के जानकर वेदी कहे जाते थे . 
एक वेद का ज्ञान रखने वाला वेदी हुवा करता था, 
दो वेदों के ज्ञाता को द्वेदी का प्रमाण पात्र मिलता था, 
तीन वेदों पर ज्ञान का अधिकार रखने वाला त्रिवेदी हुवा हुवा था, 
इसी तरह चारों वेदों का विद्वान चतुर्वेदी की उपाधि पाया करता था. 
वैदिक काल में यह डिग्रियां इम्तेआन पास करने के बाद ही मिलतीं. 
जैसे आज PHD करने वाले स्कालर को दी जाती हैं. 
मगर हिन्दू धर्म के राग माले ने सभी ऐरे गैरों को 
वेदी, द्वेदी, त्रिवेदी और चतुर्वेदी बना दिया है, जिनका कोई पूर्वज वेद ज्ञाता रहा हो. 
अगर ऐसा न होता तो आजकी दुन्या में,  
कोई योग्य पुरुष वेदों के ज्ञान को लेकर अज्ञानता को गले न लगगाता. 
आज के युग में वेद ज्ञान शून्य है, 
इससे बेहतर है कि एक कमज़ोर दिमाग़ का बच्चा हाई स्कूल पास कर ले. 
और किसी आफिस में चपरासी लग जाए.
वह कहते हैं कि पश्चिम हमारे वेदों से ज्ञान चुरा कर ले गए 
और इससे उनहोंने विज्ञान को जाना और समझा और उसका फायदा लिया. 
इसी तरह क़ुरआनी ढेंचू भी दावा करते हैं.
क़ुरआन और वेद में बड़ा फर्क इस बुन्याद पर ज़रूर है कि 
वेदों के रचैता भाषा के ज्ञानी हुवा करते थे, 
इसके बर अक्स क़ुरआन का रचैता परले दर्जे का अनपढ़ और जाहिल था.
इस बात को वह खुद अपने मुंह से कहता है कि 
हम अनपढ़ क्या जाने कि किस महीने में कितने दिन होते हैं. (एक हदीस)
मुसलमान जाहिल को Refine करते हुए मुहम्मद के लिए 
हिब्रू लफ्ज़ उम्मी का इस्तेमाल करते हैं. 
जिसका अस्ल मतलब है हिब्रू भाषा का ज्ञान न रखने वाला.
वेद में जीवन दायी तत्वों को एक जीवंत शक्ल दे दी गई है 
जोकि एक देव रूप रखता है, यह इस लिए किया कि उसको संबोधित कर सके. 
जैसे इस्लाम ने कुदरत को अल्लाह का रूप दे रखा है. 
इससे तत्व मानव जैसा कोई रूप बन गया है.
इससे संबोधन में जान पड जाती है.
वेद में सबसे ज्यादह जीवन दायी पानी हवा और अग्नि को महत्त्व दिया है, 
पानी को इंद्र देव बना दिया और इंद्र देव को मुखातिब करके  सूक्त गढे. 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 23 September 2016

Soorah Aljumar 39 Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३

किस्त -1

"यह नाज़िल की हुई किताब है अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाले की तरफ से "
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (१)

नाज़िल और ग़ालिब यह दोनों अल्फाज़ मकरूह हैं 
अगर रहमान और रहीम, वह खालिक़ ए कायनात कोई है तो. 
नाज़िल वह शै होती है जो नाज़ला हो. वबाई हालत में कोई आफ़त ए नाज़ला होती है.
ग़ालिब वह सूरतें होती हैं जिसका वजूद पर ग़लबा हो,  
जो हठ धर्मी और ना इंसाफी का एक पहलू होता है. अल्लाह अगर बन्दों को नाज़ला और ग़लबा में रखता है तो वह ख़ालिक़ हो ही नहीं सकता.
कुदरत तो हर शै को उसके वजूद में आने के लिए मददगार होती है. 
वजूद का मज़ा लेकर वह उसे फ़ना की तरफ़ माइल कर देती है.
इस्लाम, का अल्लाह और इसका रसूल मखलूक के लिए नाज़ला और ग़लबा ही हैं. इसमें रह कर क़ुदरत  की बख्शी हुई नेमतों से महरूमी है . 

"अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मखलूक में से जिसको चाहता है मुन्तखिब फ़रमाता है. वह पाक है और ऐसा है जो वाहिद है, ज़बरदस्त है."
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (४)

ईसा को खुदा का बेटा कहने वाले ईसाइयों पर वार करते हुए कुरआन में बार बार कहा गया है कि 
"लम यलिद वलम यूलद" 
न वह किसी का बाप है और न किसी का बेटा. अब मुहम्मद कह रहे है 
"अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मखलूक में से जिसको चाहता है मुन्तखिब फ़रमाता है."
कुरान तज़ाद (विरोधाभास) का का अफ़साना है. मुहम्मद खुद इस बात के इमकानात की सूरत पैदा कर रहे हैं 

"और तुम्हारे नफ़े के लिए आठ नर मादा चार पायों को पैदा किये और तुम्हें माँ के पेट में एक कैफियत के बाद दूसरी कैफियत में बनाता है, तीन तारीखों में. ये है अल्लाह तुम्हारा रब, इसी की सल्तनत है. इसके सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं. सो तुम कहाँ फिरे चले जा रहे हो?"
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (६)

कुरआन के ख़िलाफ़ अब इससे ज़्यादः और क्या सुबूत हो सकता है कि यह किसी अनपढ़,मूरख और कठ मुल्ले की पोथी है.
वह सिर्फ आठ चौपायों की ख़बर रखता है, उसे इस बात की कहाँ ख़बर है कि एक एक चौपायों की सौ सौ इक्साम हो सकती हैं. 
हमल में इंसान की तीन सूरतें भी उसके जिहालत का सुबूत है, पिछले बाबों में इसका ज़िक्र आ चुका है.

"ऐ बन्दों! मुझ से डरो. और जो लोग शैतान की इबादत करने से बचते हैं, अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जे होते हैं, वह मुस्तहक खुश ख़बरी सुनाने के हैं, सो आप मेरे इन बन्दों को खुश ख़बरी सुना दीजिए जो इस कलाम को कान लगा कर सुनते हैं, फिर उसकी अच्छी अच्छी बातों पर चलते हैं, यही हैं जिन को अल्लाह ने हिदायत की. और यही हैं जो अहले अक्ल हैं."
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (१७-१८)

कोई खुदा यह कह सकता है क्या?
दर पर्दा मुहम्मद ही अल्लाह बने हुए हैं ये बात जिस दिन आम मुसलमानों की समझ में आ जाएगी इसी दिन उनको अपने बुजुगों के साथ ज़ुल्म ओ सितम के घाव नज़र आ जाएँगे.
कुरआन में एक बात भी अच्छी नहीं है अगर कोई है तो वह आलमी सच्चाइयों की सूरत है.
मुसलमानों कुरआन तुम्हें सिर्फ गुमराह करता है .


"लेकिन जो लोग अपने रब से डरते हैं उनके लिए बाला खाने है. जिन के ऊपर और बाला खाने हैं, जो बने बनाए तय्यार हैं. इसके नीचे नहरें चल रही हैं, ये अल्लाह ने वादा किया है. अल्लाह वादा खिलाफी नहीं करता. क्या तूने इस पर कभी नज़र नहीं की कि अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया फिर इसको ज़मीन के सोतों में दाखिल कर देता है, फिर इसके ज़रीए  से खेतियाँ करता है जिसकी कई क़िस्में हैं, फिर वह खेती बिलकुल ख़ुश्क हो जाती है सो इनको तू ज़र्द देखता है, फिर इसको चूरा चूरा कर देता है. इसमें अहले अक्ल के लिए बड़ी इबरत है.
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (२०-२१)

ए उम्मी! आजकल तेरे बाला खाने से लाख गुना बेहतर इंसानी पाखाने बन गए हैं. हज़ारों खाने वाली सैकड़ों मंज़िल की इमारतें खड़ी होकर तुझे मुँह चिढ़ा रही हैं. तूने मुसलमानों पर हराम कर रखी हैं. 
इंसानी काविशों की बरकतें तूने तो सिर्फ़ अपने ख़ानदान  कुरैश की बेहतरी तक सोचा था, अब तो हर एक बिरादरी में एक कठ मुल्ला, मुहम्मद बना बैठा है. उनके ऊपर मौलानाओं की टोली फ़तवा लिए बैठी है, और इससे भी कोई बाग़ी हुआ तो मफ़िया सरगना सर काटने को तैयार है.

कलामे दीगराँ  - - - 
"जो कुछ भी पूरी सच्चाई से नहीं कहा जा सकता, 
वह तक़रीर ए बोसीदा है, इस बुराई से नाकाम होना बद तरीन जहन्नम में जाना है."
'दाव' 
(चीनी धर्म)

इसे कहते हैं कलाम पाक 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 20 September 2016

Hindu Dharam Darshan 8

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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वैदिक युग

मैं अपने हिन्दू पाठकों को बतलाना चाहता हूँ कि 
कम बुरा इस्लाम, अधिक बुरे हिंदुत्व से कुछ बेहतर है. 
यह बात अलग है कि बहु संख्यक की आवाज़ अल्प संख्यक पर भारी पड रही है 
मगर सत्य की आवाज़ दबी हुई जब उभरती है तो हर तरफ सन्नाटा छा जाता है .
इसका जीता जगता सुबूत यह है कि हमेशा की तरह आज भी कम बुरा इस्लाम, 
हिन्दुओं को अपनी तरफ खींच रहा है, 
अल्ला रखखा रहमान से लेकर शक्ति कपूर तक सैकड़ों संवेदन शील लोग देखे जा सकते हैं , 
जबकि कोई अदना मुसलमान भी नहीं मिलेगा 
जो इस्लाम के आगे हिंदुत्व को पसंद करके हिन्दू बन गया हो .
कुछ मुख़्तसर सी बातें देखी - - -
एक अल्लाह की पूजा और बेशुमार भगवानो की पूजा ? 
कौन आकर्षित करता है अवाम को ? 
ऐसी ही बहुत सी समाजी बुराइयाँ मुसलमानों में कम है, हिन्दुओं से . 
मसलन शराब और दूसरे नशा .
त्योहारों को ही लीजिए, दीपावली आई तो रौशनी कर के बिजली घर को आफत में डाल दिय जाता है , 
पटाखे से जान माल और पर्यावरण को नुकसान, 
जुवा खेलना भी इसका महूरत है .
होली को खुद हिन्दुओं में संजीदा हिन्दू पसंद नहीं करते . 
अंधेर है कि होली में अमर्यादित गालियां गई जाती हैं , 
रंग गुलाल को नाक से फांका जाता है .
दर्शन और स्नान के नाम पर पंडों की दासता .
इन तमाम बुराइयों से मुसलमान अलग नज़र आता है. 
अपने त्योहारों को भी पाक साफ़ रखता है और कोई पंडा बंधन नहीं .
फिर एक बार वैदिक युगीन हिंदुत्व के हाथों में सत्ता आ गई है. 
हिंदुत्व का दबाव जितना बढेगा, इस्लाम को भारत में उतना ही फलने फूलने का अवसर मिलेगा. 
कहीं ऐसा न हो कि संघ परिवार का सपना देखते ही देखते चकना चूर हो जाए 
कि कोई समाजी इन्कलाब आए और भारत का नक्शा ही बदल जाए .
नेहरु का हिदोस्तान सही दिशा में जा रहा था, 
धर्म रहित मर्यादाएं विकसित हो रही थीं . 
याद नहीं कि हमने कभी उनको या उनके साथियों को टीका लगा देखा हो , 
आज सारी की सारी सरकारी मिशनरी टीका और बिंदिया से सुसज्जित दिखाई देती हैं . 
समाजी मुजरिम मंत्री बने नफरत फैला रहे हैं ,

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 19 September 2016

Soorah Saad 38 Q3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह साद - ३८- पारा २३  
किस्त 3 


"एक नसीहत का मज़मून ये तो हो चुका और परहेज़ गारों के लिए अच्छा ठिकाना है. यानी हमेशा रहने के बागत जिनके दरवाज़े इनके लिए खुले होंगे. वह बागों में तकिया लगाए बैठे होंगे. वह वहाँ बहुत से मेवे और पीने की चीज़ (शराब) मंगवाएंगे. और इनके पास नीची निगाह वालियाँ, हम उम्र होंगी.  ये वह है जिनका तुम से रोज़े हिसाब आने का वादा किया जाता है और ये हमारी अता है . ये बात तो हो चुकी."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (५६-५७)

ये बात तो हो चुकी, अब मुसलामानों को चाहिए कि इस बात में कुछ बात ढूंढें. कौन सी नसीहत कहाँ है?
हलक़ तक शराब उतारने के बाद ही कोई ऐसी बहकी बहकी बातें करता है.
"ये एक जमाअत और आई जो तुम्हारे साथ घुस रही हैं, इन पर अल्लाह की मार. ये भी दोज़ख में घुस रहे हैं. वह कहेंगे बल्कि तुम्हारे ऊपर ही अल्लाह की मार. तुम ही तो ये हमारे आगे लाए हो , सो बहुत ही बुरा ठिकाना है, दुआ करेंगे ऐ हमारे परवर दिगार! इसको जो हमारे आगे लाया हो, उसको दूना अज़ाब देना."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (५९-६१)

शराब जंगे खैबर  के बाद हराम हुई. ये आयतें यक़ीनन शराब की नशे की हालत में कही गई हैं. खुद पूरी सूरह गवाह हैं कि ऐसी बातें होश मंदी में नहीं की जाती.
"ये बात, यानी दोज़खियों का आपस में लड़ना झगड़ना बिलकुल सच्ची हैं. आप कह दीजिए कि मैं तो डराने वाला हूँ और बजुज़ अल्लाह वाहिद ओ ग़ालिब  के कोई लायक़े इबादत नहीं है. और वह परवर दिगार है आसमान ओ ज़मीन का और उन चीजों का जो कि उसके दरमियान हैं, ज़बर दस्त बख्शने वाला."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (६४-६६)

आप कह दीजिए कि ये अजीमुश्शान मज़मून है जिस से शायद तुम बे परवाह हो रहे हो. मुझको आलमे बाला की कुछ भी खबर न थी, झगड़ रहे थे."
सूरह साद  - ३८- पारा २३- आयत (६६-६९)

सर फिर, मजनू, दीवाना , पागल था वह अपने ही बनाए हुए अल्लाह का रसूल.जिसकी पैरवी में है  दुन्या कि २०% आबादी. वह अपने पैरों से उलटी तरफ भाग रही है.

यह रहा कुरआन का मज़मून ए नसीहत जिसमे आप नसीहत को तलाश करें. पूरे कुरआन में, कुरआन की अज़मतों का बखान है. जिसे सुन सुन कर आम मुसलमान इसे अक्दास की मीनार समझता है. असलियत ये है कि कुरआन का ढिंढोरा ज्यादः है और इसमें मसाला कम. कम कहना भी ग़लत होगा कुछ है ही नहीं, बल्कि जो कुछ है वह नफी में है. इसके आलिम अवाम को कुरआन का मतलब समझने से मना करते हैं और इस अमल को गुनाह करार देते हैं कि आम लोग बात को उलटी समझेंगे. दर अस्ल वह खायाफ़ होते हैं कि कहीं अवाम की समझ में इसकी हक़ीक़त न  आ जाए. तर्जुमा पर ज़बान दानी की बहस छेड़ देते हैं जिससे पार पाना सब के बस की बात नहीं, जब कि कुरआन इल्म, ज़बान, किसी फलसफे और किसी मंतिक से कोसों दूर है. इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाना बैसे भी रुसवाई बन जाता है या आगे बढ़ने पर मजहबी गुंडों का शिकार होना तय हो जाता है. मगर कौम को जागना ही पडेगा.

"जो दूर अनदेशी से फैसला नहीं करते हैं, 
पछतावा उसको पास ही खड़ा मिलता है"
"कानफ़िव्यूशेश"
(चीनी मसलक)
इसे कहते हैं कलामे पाक   


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 17 September 2016

Hindu Dharam Darshan 7

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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हिन्दू 

भारत वासियों को यह नाम अरबियों और फारस अर्थात ईरानियो का दिया हुवा है ,
इस तथ्य को ज़माना जानता है कि वह स को उच्चारित नहीं कर पाते थे , उनके लिए सि की जगह हि आसान लगा और सिंधु हिन्दू उच्चारित करने लगे। 
सिंधु नदी के पार रहने वालों को हिन्दू कहने लगे। 
अरब दुन्या के ग़लबे के बाद इसका दिया हुवा नाम सारी दुन्या में जाना जाने लगा, 
हत्ता कि खुद भारतीय अपने आपको हिन्दू कहने लगे। 
यहाँ का रूप रंग काला हुवा करता था , ग़रज़ अरबी लुग़ात में इन्हें काला कुरूप लिखा और आर्यन ने इनको डाकू चोर लुटेरे लिखा।  
अरबी स्वयंभू ख़ुद को सभ्य क़ौम समझते थे और ग़ैर अरब को अजमी अर्थात अन्धे का नाम दिया।  इस्लाम के बाद तो उनका रुतबा और बढ़ गया।, गैर मुस्लिम मुल्को को उन्होंने हर्बी (चाल-घात वाली क़ौम) की संज्ञा दी। 
  हिन्दुओं की विडम्बना ये है कि उन्होंने अरबों , ईरानियों और अंग्रेज़ों की बख्शी हुई उपाधि को अपने ऊपर थोप लिया जैसे कि क़ज़्ज़ाक़ ने अरबियों का बख्शा हुवा नाम क़ज़्ज़ाक़ (लुटेरे) को न सिर्फ़ अपनाया बल्कि अपने मुल्क का नाम भी रख लिया "क़ज़्ज़ाक़िस्तान" 
सुनने में आया है कि अब उनके समझ में बात आई है कि वह क़ज़्ज़ाक़िस्तान का नाम बदल रहे हैं। 
शब्द कोष (लुग़ातें) ऐतिहासिक सच्चाइयाँ हैं , 
इस पर हिन्दुओं को इसे पढ़ कर आग बगूला नहीं होना चाहिए बल्कि संतुलन क़ायम रखते हुए कुछ नया क़दम उठाना चाहिए। 
खुद आर्यन ने भारत पर प्रभुत्व के बाद असली भारतीयों को राक्षस, पिचाश , असुर और वानर तक लिखा।    
वैसे हर क़ौम सुदूर अतीत में असभ्य ही रहे हैं अमानुष से ही मनुष्य बने।  
सब को आदमी से इंसान बनने में समय लगा , 
कोई पहले तो कोई बाद में।   

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah Saad 38 Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह साद - ३८- पारा २३ 
किस्त-2 

"और आप हमारे बन्दे अय्यूब को लीजिए जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि शैतान ने मुझे रंज ओ आज़ार पहुँचाया. अपना पाँव मारो यह नहाने का ठंडा पानी है और पीने का, और हम ने उनको उनका कुनबा अता किया और उनके साथ उनके बराबर और भी अपनी रहमत खास्सा के सबब और अहले अक्ल के याद गार रहने के सबब से और तुम हाथ में एक मुट्ठा सीकों का लो और इस से मरो और क़सम न तोड़ो. बेशक उनको मैं ने साबिर बनाया, अच्छे बन्दे थे कि बहुत रुजू होते थे."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (४१-४२)

उम्मी में इतनी सलाहियत नहीं कि किसी बात को पूरी कर सके. 
इस खुराफात को दोहराते रहिए और नतीजा खुद अख्ज़ कीजिए.

अय्यूब एक खुदा तरस बन्दा था. वक़्त ने उसे बहुत नवाज़ा था. 
सात बेटे और तीन बेटियाँ थीं. सब अपने अपने घरों में खुश हल थे. 
अय्यूब अपने मुल्क का अमीर तरीन इंसान था. 
उसके पास ७००० भेढं, तीन हज़ारऊँट, एक हज़ार गाय बैल, 
५०० गधे और बहुत से नौकर चाकर थे.
एक दिन शैतान ने जाकर खुदा को भड़काया कि तू अय्यूब का माल मेरे हवाले कर दे, फिर देख वह तेरे लिए कितना बाक़ी बचता है? 
खुदा ने शैतान की चुनौती कुबूल करली. 
शैतान की शैतानी से अय्यूब का कुनबा एक हादसे में ख़त्म हो जाता है, दूसरे दिन तमाम जानवर लुट जाते हैं.
अचानक ये सब देख कर अय्यूब ने कहा 
जो हुवा सो हुवा नंगे आए थे नंगे जाएँगे. 
वह बदस्तूर यादे इलाही में ग़र्क़ हो गया.
फिर एक दिन शैतान खुदा के पास आता है और कहता है कि 
माना अय्यूब तुझे भूला नहीं और न तुझ से बेज़ार हुवा, 
मगर ज़रा उसको तू जिस्मानी मज़ा चखा तो देख 
वह कितना खरा उतरता है.
खुदा ने कहा ठीक है, 
जा मैंने अय्यूब के जिस्म को तेरे हवाले किया, 
बस कि उसकी जान मत लेना.
शैतान अय्यूब के जिस्म में ऐसे फोड़े निकालता है 
कि उसे कपडा पहेनना भी दूभर हो जाता. 
वह नंगा होकर अपने जिस्म पर राख की खाक पहेनने लगा. 
अय्यूब एक छोटे से कमरे में क़ैद होकर खुदा की इबादत करने लगा. 
वह अपने जोरू के तआने भी सुनता रहा. 
वह कहती - - - 
कि अब ऐसे खुदा को कोसो जिसकी इबादत में लगेरहते हो. 
वह कहता _ _ _ 
नादान क्या मालिक से सब अच्छा ही अच्छा पाने की उम्मीद रखती है.
अय्यूब ने इस हालत में नज्में कही हैं, नमूए पेश हैं  - - -

ऐ मालिक! 
पीढ़ी दर पीढ़ी से तू हमारी पनाह बना चला आ रहा है,
उसके पहले जब परबत भी नहीं बने थे, 
न ज़मीन थी, न कायनात थी, 
तब भी इब्तेदा से लेकर इन्तहा तक,
ऐ माबूद तू ही रहा.
बे सबात (क्षण भंगुर) तू ही मिटटी में मिल जाने के लिए कहता है,
और फिर कहता है ऐ इंसानों की औलाद लौट आओ.
क्यूँकि तुझे हज़ारों साल भी बीते हुए कल की तरह लगते है 
और वह जैसे रात का एक पहर हो.
तू आदमियों को उठा ले जाता है हर सुब्ह होने पर,
देखे हुए ख्व्स्बों की तरह लगते हैं,
या बढ़ी हुई घास की तरह .
वह सुब्ह बढ़ती है और हरी होती है 
और शाम को कट जाती है और सूख जाती है.
सच मुच तेरे अज़ाब से हम बर्बाद हो गए हैं ,
और जब तूने कहर ढाया तो हम घबरा गए थे,
हमारे गुनाहों को तूने मेरे सामने रखा,
ख़याल कर कि मेरी ज़िन्दगी कितनी मुख़्तसर है,
और तूने इंसानों को कितना फ़ानी बनाया है.    
(२)
"ऐ खुदा मेरे पुख्खों का पूज्य तेरा शुक्र है ,
तू पूजा के लायक है और काबिले तारीफ़ है,
तेरे पाक और अज़मत वाले नामों को सलाम,
ऐ मुक़द्दस और पुर नूर पूज्य ! तेरे आगे सर ख़म करता हूँ,
ऐ आसमानी फरिश्तो और बदलो! तुम भी शुक्र अदा करो.
ऐ खलक की तमाम मखलूक ! उसको सलाम करो,
ऐ सूरज और चाँद खुदा का शुक्र अदा करो,
ऐ बारिश और ओस! खुदा का शुक्र अदा करो.
ऐ अतराफ की हवाओ! उसका शुक्र अदा करो- - -

यह है तौरेत में योब (अय्यूब) की सबक आमोज़ कहानी जिसे क़ुरआनी अल्लाह न चुरा पाता है और न चर पाता है.

"और हमारे बन्दे इब्राहीम, इसहाक़ और याकूब जो हाथों वाले और आँखों वाले थे - - - 
और इस्माईल और अल लसीअ  और ज़ुलकुफ्ल को भी याद कीजिए.- - -"
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (४५-४८)

जिन का भी नाम सुन रखा था मुहम्मद ने सब को उनका अल्लाह याद करने को कहता है, हैरत की बात ये है कि सभी हाथों और आँखों वाले थे, उस से भी ज्यादः  हैरत का मुक़ाम ये है कि आज और इस युग में भी मुसलमान इन बातों का यक़ीन करते हैं. इस बेहूदा और गुमराही की तबलीग भी करते हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 13 September 2016

Hindu Dharam Darshan 6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं
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हिन्दू धर्म दर्शन 

महा भारत 

सेकुलर अकबर ने एक रोज़ अपने वजीर अबुल फज़ल से कहा महा भारत का तर्जुमा फारसी में किया जाए ताकि हिन्दुस्तान का मुकाम आलमी सतह पर कायम हो सके .
दो हफ्ते गुज़र गए , अकबर ने फिर अबुल फज़ल  को फ्रीर याद दिलाया और दरियाफ्त  किया, कहाँ तक पहुंचे? .
अबुल फज़ल  ने कहा महा भारत का अध्धयन चल रहा है हुज़ूर .
महीना गुज़रा तो फिर अकबर ने अबुल फज़ल  से पूछा , महा भारत की शुरुआत हुई ?
अबुल फज़ल  ने जवाब दिया अभी शुरुआत में ही अटका हवा हूँ हुज़ूर 
बादशाह ने पूंचा , आखिर माजरा क्या है ?
अबुल फज़ल ने कहा , दर अस्ल मुआमला यह है कि महा भारत के शुरुआती किरदार ही बस्बन और नसलन मशकूक और हरामी हैं 
अकबर :- वह कैसे ?
अबुल फज़ल :- हिन्दुओं में एक प्रथा नियोग की हुवा करती है .
अकबर :- वह  क्या हैं ? 
अबुल फज़ल  :- वह यह कि इनके नपुंसक महानभाव अपनी पत्नियों का गर्भाधान  किसी हिष्ट पुष्ट और योग्य पुरुष से कराते हैं , जैसे गायों के लिए सांड किराय पर लिए जाते हैं .
एक राजा ने वेड व्यास को किराय पर लेकर अपनी तीनों रानियों का गर्भा दान कराया , इनसे जन्मित तीनों रानियों के राज कुमार महा भारत के बुनयादी किरदार हैं . इसके प्रचार और प्रसार से हिदुस्तान की शोहरत कम बदनामी ज्यादा होगी .
अकबर सर पकड कर बैठ गया कि उसका तैमूरी खून गैरत में आ गया .
अबुल फज़ल  ने कह एक गुज़ारिश और है हुज़ूर .
जलाल उद्दीन अकबर सरापा सवालिया निशान बन कर अबुल फज़ल   को देखा और पूछा , वह क्या है ?
अबुल फज़ल बतलाया ,
 महा भारत के बुनयादी किरदार पांडु नाम के पांच भाई हैं जिन्हों ने मुश्तरका तौर पर एक औरत से ही शादी की है . 
द्रव पदि अपने शौहरों की देवर और जेठों की तनहा बीवी है .
इसे पढ़ कर फ़ारसी दानों को और उनके समाज को क्या पैगाम जाएगा ?
सुन कर अकबर चीखा , खामोश ! तखलिया !!
महा भारत को बी आर चौपडा ने बड़ी कामयाबी के साथ फिलमाया . 
इसके प्रसारण के वक़्त सड़कों पर कर्फ्यू का आलम होता .
यही हिम्मत आज कोई खान करके दिखलाए ?
फिल्म बैंड ही नहीं हो जाएगी ,
मुल्क में फसाद की नौबत आ जाएगी .
*****
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 12 September 2016

Soorah Saad 38 Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह साद - ३८- पारा २३ 
किस्त -1 

फ़तह मक्का के बाद मुसलामानों में दो बाअमल गिरोह ख़ास कर वजूद में आए जिन का दबदबा पूरे खित्ता ए अरब में क़ायम हो गया. 
पहला था तलवार का क़ला बाज़ और दूसरा था क़लम बाज़ी का क़ला बाज़. अहले तलवार जैसे भी रहे हों बहर हाल अपनी जान की बाज़ी लगा कर अपनी रोटी हलाल करते मगर इन क़लम के बाज़ी गरों ने आलमे इंसानियत को जो नुकसान पहुँचाया है उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती. 
अपनी तन आसानी के लिए इन ज़मीर फरोशों ने मुहम्मद की असली तसवीर का नकशा ही उल्टा कर दिया. इन्हों ने कुरआन की लग्वियात को अज़मत का गहवारा बना दिया. यह आपस में झगड़ते हुए मुबालगा आमेज़ी (अतिशोक्तियाँ)में एक दूसरे को पछाड़ते हुए, झूट के पुल बंधते रहे. कुरआन और कुछ असली हदीसों में आज भी मुहम्मद की असली तस्वीर सफेद और सियाह रंगों में देखी जा सकती है. इन्हों ने हक़ीक़त की बुनियाद को खिसका कर झूट की बुन्यादें रखीं और उस पर इमारत खड़ी कर दी. -
कहते हैं कि इतिहास कार किसी हद तक ईमान दार होते हैं मगर इस्लामी इतिहास कारों ने तारीख़ को अपने अक़ीदे में ढाल कर दुन्या को परोसा.
"मुकम्मल तारीख ए इस्लाम" का एक सफ़ा मुलाहिज़ा हो - - -

"हज़रात अब्दुल्ला (मुहम्मद के बाप) के इंतेक़ाल के वक़्त हज़रात आमना हामिला थीं, गोया रसूल अल्लाह सल्ललाह - - शिकम मादरी में ही थे कि यतीम हो गए. आप अपने वालिद के वफ़ात के दो माह बाद १२ रबीउल अव्वल सन १ हिजरी मुताबिक ५७० ईसवी में तवल्लुद (पैदा) हुए. आप के पैदा होते ही एक नूर सा ज़ाहिर हुवा, जिस से सारा मुल्क रौशन हो गया. विलादत के फ़ौरन बाद ही आपने सजदा किया और अपना सर उठा कर फरमाया "अल्लाह होअक्बर वला इलाहा इल्लिल्लाह लसना रसूल लिल्लाह "
जब आप पैदा हुए तो सारी ज़मीन लरज़ गई. दर्याय दजला इस क़दर उमड़ा कि इसका पानी कनारों से उबलने लगा. ज़लज़ले से कसरा के महल के चौदह कँगूरे गिर गए. आतिश परस्तों के आतिश कदे जो हज़ारों बरस से रौशन थे, खुद बख़ुद बुझ गए. आप कुदरती तौर पर मख्तून ( खतना किए हुए) थे और आप के दोनों शाने के दरमियान मोहरे नबूवत मौजूद थी.
रसूल अल्लाह सालअम निहायत तन ओ मंद और तंदुरुस्त पैदा हुए. आप के जिस्म में बढ़ने की कूव्कत आप की उम्र के मुकाबिले में बहुत ज़्यादः थी. जब आप तीन महीने के थे तो खड़े होने लगे और जब सात महीने के हुए तो चलने लगे. एक साल की उम्र में तो आप तीर कमान लिए बच्चों के साथ दौड़े दौड़े फिरने लगे. और ऐसी बातें करने लगे थे कि सुनने वालों को आप की अक़ल पर हैरत होने लगी."
गौर तलब है कि किस क़दर गैर फ़ितरी बातें पूरे यकीन के साथ लिख कर सादा लौह अवाम को पिलाई जा रही हैं. अगर कोई बच्चा पैदा होते ही सजदा में जा कर दुआ गो हो जाता तो समाज उसे उसी दिन से सजदा करने लगता. न कि वह हलीमा दाई की बकरियां चराने पर मजबूर होता. एक साल की उसकी कार गुजारियां देख कर ज़माना उसकी ज़यारत करने आता न कि बरसों वह गुमनामी की हालत में पड़ा रहता. कबीलाई माहौल में पैदा होने वाले बच्चे की तारीखे पैदाइश भी गैर मुस्तनद है. रसूल और इस्लाम पर लाखों किताबें लिखी जा चुकी हैं. और अभी भी लिखी जा रही हैं जो दिन बदिन सच पर झूट की परतें बिछाने का कम करती हैं.  इन्हीं परतों में मुसलामानों की ज़ेहन दबे हुए हैं.
चंगेज़ खान ने ला शुऊरी तौर पर एक भला काम ये किया था जब कि दमिश्क़ की लाइब्रेरी में रखी लाखों इस्लामी किताबों को इकठ्ठा कराके आलिमो से कहा था कि इनको खाओ. ऐसा न करने पर आलिमो को वह सज़ा दी थी कि तारीख उसको भुला न सकती. उसने पूरी लाइब्रेरी आग के हवाले कर दिया था और आलिमों को जहन्नम रसीदा. आज भी इन इल्म फरोशों के लिए ज़रुरत है किसी चंगेज़ खान की.

इस पूरी सूरह में मुहम्मद की ज़ेहनी बे एतदाली देखी जा सकती है. उनके कलाम को नीम पागल की बडबड कहा जा सकता है. इसे क़लम गीर करना जितना मुहाल होगा इस से ज़्यादः पढने वाले को पचा पाना; उस वक़्त के लोगों ने मुहम्मद को जो शायरे दीवाना कहा था, उसके बाद कुछ नहीं कहा जा सकता.

बतौर नमूना कुछ आयतें पेश हैं - - -
"साद"
मुहम्मदी अल्लाह का छू मंतर
"क़सम है कुरआन की जो नसीहत से पुर है बल्कि ये कुफ्फर तअस्सुब (पक्ष पात) और मुखालिफ़त में हैं. इनसे पहले बहुत सी उम्मतों को हम हलाक़ कर चुके हैं, सो इन्हों ने बड़ी हाय पुकार की थी. और वह वक़्त खलासी का न था. और इन कुफ्फर कुरैश ने इस पर तअज्जुब किया कि इनके पास इनमें ही से कोई पैगम्बर डराने वाला आ गया. और कहने लगे ये शख्स साहिर और झूठा है. क्या ये सच्चा हो सकता है? क्या हम सब में से इसी के ऊपर कलाम इलाही नाज़िल होता है, बल्कि ये लोग मेरी वह्यी की तरफ़ से शक में हैं, बल्कि अभी उन्हों ने मेरे एक अज़ाब का मज़ा नहीं चक्खा "
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (१-८)

मुहम्मद की कबीलाई लड़ाई थी जो बद किस्मती से बढ़ते बढ़ते आलिमी बन गई. हम मुसलमानाने आलम एक ही नहीं सारे अज़ाबों का मज़ा सदियों से चखते चले आ रहे हैं. अब तो चखने की बजाए छक रहे हैं.

"और हमारे बन्दे दाऊद को याद कीजिए जो निहायत क़ुदरत और रहमत वाले थे. वह बहुत रुजू करने वाले थे. हमने पहाड़ों को हुक्म दे रखा था कि उनके साथ सुब्ह ओ शाम तस्बीह किया करें. और परिंदों को भी, जमा हो जाते थे. सब उनकी वजेह से मशगूले ज़िक्र (ईश गान) हो जाते थे."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (१९-२०)

दाऊद एक मामूली चरवाहा था और गोफन चलने में माहिर था. एक सेना पति को गोफ्ने की मार से चित करने के बाद वह यहूदी एक लुटेरा डाकू बन गया था. फिलस्तीनियो में लूटमार करता हुवा एक दिन बादशाह बन गया. वह मुहम्मद की तरह ही शायर था. उसकी नज़्मों को ही ज़ुबूर कहते हैं. लम्बी उम्र पाई थी और बुढ़ापे में सर्दियों से परेशान रहता था. इलाज के लिए उसके मातहतों ने उसके लिए मुल्क कि सबसे खूसूरत नव उम्र लड़की से शादी कर करवा दिया था. उसके मरने के बाद उसका लड़का उस लड़की का आशिक बन गया था जिसे दाऊद पुत्र सुलेमान ने धोके से मरवा दिया था. दाऊद आखरी उम्र के पड़ाव में बुत परस्त(मूर्ति पूजक) हो गया था. (तौरेत)
मुहम्मद पहाड़ों और परिंदों से उसके साथ तस्बीह करवा के पहाड़ ऐसा झूट गढ़ रहे हैं.
हमेसा की तरह बेज़ार करने वाला क़िस्सा मुहम्मदी अल्लाह का देखिए- - -

"दो अफ़राद दीवार फान्द कर दाऊद के इबादत खाने में घुस आते हैं, उनमें से एक कहता है कि आप डरें मत. हम दोनों भाई भाई हैं. आप हमारा फ़ैसला कर दीजिए. हम लोगों के पास सौ अशर्फियाँ हैं, मेरे पास एक और इसके पास ९९ . ये कहता है ये भी मुझे दे डाल ताकि मेरी सौ पूरी हो जाएँ. दाऊद इसे ज़ुल्म क़रार देता हुवा कहता है, अक्सर साझीदार ज़ुल्म करने लगते हैं.
इसके बाद मुहम्मद तब्लिगे इस्लाम करने लगते है और क़िस्सा अधूरा रह जाता है. "
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (२२-२४)

यूनुस की कहानी के बाद अल्लाह मुहम्मद के कान में फुसकता है कि अब अय्यूब की कहानी गढ़ो- - -

कलामे दीगराँ  - - -
"ए इलाही! इनके अन्दर खौफ़ पैदा कर, 
कौमे अपने आप को इंसान ही मानें"
"तौरेत"
(यहूदी मसलक)
इसे कहते हैं कलामे पाक 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 11 September 2016

Hindu Dharm Darshan 5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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हिन्दू धर्म दर्शन 
ब्रह्मा विष्णु महेश 
तीसरी किस्त 

ब्रह्मा और विष्णु के बाद आर्यन ने एक ईश्वर हिदुस्तानी को चुना है , वह हैं महेश यानी शिव जी .यह महाशय ब्रह्मा के शरीर अंगों से संचालित विष्णु के सृष्टि का सर्व नाश कर देते हैं .
इन तीनों ईश्वरों का कार्य काल ढाई अरब वर्ष का होता है .
शिव जी भी हिन्दू धर्म के अजीब व् ग़रीब हस्ती हैं . 
कहते हैं कि शिव जी जब क्रोधित होते थे तो डमरू वादन करते , उनके ताण्डव नृत से 
 पर्वत हिल जाते , जैसे क़ुरान कहता है कि दाऊद अलैहिस्समन के साथ पहाड़ सजदा करते थे .
शिवजी बहुत गुस्सैल हुवा करते थे .
उनकी एक खूबी और भी है कि वह शांत होने पर अपनी जड़ी बूटी  (भांग और गांजा )खा पी कर , शरीर पर भभूत लगा कर पार्वती के बगल में बैठ जाते  .
इनका वस्त्र हिरन की खाल होती और भूषन नाग देवता .
आज भी  शिवजी की वेश भूषा में लाखों साधक  भारत के शहरों और सड़कों पर देखे जा सकते हैं . यह जनता से दंड स्वरूप भिक्ष वसूलते हैं .
अनोखे शिव लिंग (तानासुल ) की चर्चा इतनी ही काफी है कि इसे देश भर में मंदिरों में देखे जा सकते हैं जिसकी पूजा नर नारी सभी करते है .
शिव लिंग के विषय में मेरा ज्ञान अधूरा हैं , इतना ही सुना है कि क्रोधित होकर शिव जी ने अपना लिंग काट कर ज़मीन पर फेंक दिया था, जनता से कुछ न बना तो इसे पूजने लगी .
भारत की एक विचित्र जंतु नागा साधु होते हैं . शिव जी मात्र हिरन खाल शरीर पर लपेटते , नागा जीव उस से भी मुबर्रा होती है . मादर जाद नंगे , 
शिव बूटी ग्रहण करने के लिए चिलम एक मात्र इनकी संपति होती है .
मैं कुरआन के रचनाकार पर गरजता रहता हूँ , 
कोई इस गाथा पर बरसने वाला है ? 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 9 September 2016

Soorah Saffaf 37 Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा ­-२३ 
(दूसरी किस्त) 


"और इन से एक कहने वाला कहेगा कि मेरा एक साथी था. कहा करता था कि क्या तू  बअस ( अल्लाह की और से नियुक्तियाँ) के मुअतकिदीन (आस्थावान) में से है? क्या जब हम मर जाएगे तो, मिट्टियाँ और हड्डियाँ हो जाएगे? तो क्या हम जज़ा, सज़ा दिए जाएँगे? इरशाद होगा कि क्या तुम झाँक कर देखना चाहोगे, तो वह शख्स झाँकेगा तो वह उसको बीच जहन्नम में देखेगा. कहेगा अल्लाह की क़सम, तू मुझे तबाह ही करने वाला था"
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(५१-५६)

कुरआन की ये बेहूदा कसरत मुसलमानों को क्या दे सकती हैं जिसके लिए ये मरने मारने के लिए तैयार रहते हैं.

"हमने उस दरख़्त को ज़ालिमों के लिए मूजिबे इम्तेहान बनाया. वह एक दरख़्त है ज़कूम, जो दोज़ख के गढ़ों में से निकलता है. इसके फल ऐसे हैं जैसे साँप के फन, तो दोज़खी इस को खाएँगे. और इसी से अपना पेट भरेंगे. फिर इन्हें खौलता हुवा पानी, पीप मिला कर पिलाया जायगा."
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(६३-६७)

ऐसे अल्लाह को झाड़ू मारो जो अपने ही बन्दों को साथ ऐसा सुकूक करता है.

"बेशक यूनुस भी पैगम्बरों में से थे. जब वह भाग कर भरी हुई कश्ती के पास पहुँचे तो वह शरीके क़ुरा न हुए, तो यहीं वह मुलजिम में ठहरे. फिर इन्हें मछली ने साबित निगल लिया और ये अपने आपको मलामत कर रहे थे. गर वह तस्बीह करने वाले न होते तो क़यामत तक मछली के पेट में पड़े रहते. और हम ने उन पर एक बेलदार दरख़्त भी उगा दिया और हम ने उनको एक लाख से भी ज़्यादः आदमियों पर पैगम्बर बना कर भेजा"
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१३९-१४७) 

यूनुस की कहानी भी तौरेत से ली गई है. वहाँ इनको तीन दिनों तक मगर मछ के पेट से जिंदा निकला जाता है. यहाँ मछली के पेट में क़यामत तक रहने की बात है, मुहम्मद उनके जिस्म पर बेलदार झाड़ उगा देते हैं, 
ये कमाल की पुडिया है. मज़हबी किताबों में सभी कुछ कल्पित होता है.

और हाँ! हमने फरिश्तों को क्या औरत बनाया है? और वह देख रहे थे, खूब सुन रहे थे कि वह अपनी सुखन तराशी से कहते हैं कि अल्लाह साहिबे औलाद है और वह यकीनन झूठे है.क्या अल्लाह ने बेटों के मुकाबिले में बेटियाँ ज़्यादः पसंद कीं? तुम को क्या हो गया, तुम कैसा हुक्म लगाते हो?"
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१५४)

ईसाइयों पर इलज़ाम है कि वह फरिश्तों को जिन्सियात से मुबर्रा, अल्लाह की मखलूक मानते है, मुहम्मद इसे औरत होना समझते हैं. वह कहते हैं कि कोई मौजूद था, देख और सुन रहा था कि औरत साबित करे. जैसे इनको सब के सामने अल्लाह ने पैगम्बर मुक़र्रर किया हो, जैसा कि अजानों में एलान होता है ''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह"
मुसलमान कहते हैं कि उनके नबी को लडकियां पसँद थीं. यहाँ अल्लाह की तरफ़ इशारा बतला रहा है कि मुहम्मद लड़का पसँद करते थे जिस से वह महरूम रहे.

"और उन लोगों ने अल्लाह में और जिन्नात में रिश्ते दारियां क़रार दिए है. और जिन्नात हैं, खुद उनका अक़ीदा है कि वह गिरफ्तार होंगे. अल्लाह इन बातों से पाक है.जो ये बयान करते हैं.
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१६०)

मुहम्मद की ये बेहूदः बकवास कोई सम्त नहीं देती कि अपने मज़हब को मानते हैं या जिन्नातों के अक़ीदे को. कौन कहता है कि जिन्नात अल्लाह के रिश्तेदार हैं.

"और हमारे खास बन्दे यानी पैगम्बरों के लिए पहले ही ये मुक़र्रर हो चूका है कि बेशक वही ग़ालिब किए जाएँगे. और हमारा ही लश्कर ग़ालिब रहता है, तो आप थोड़े ज़माने तक सब्र करें."
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१७३-७४)

डंडे लाठी और तलवार के ज़ोर पर कुछ दिनों के लिए ग़ालिब ज़रूर हो गए थे मगर उसके बाद इतिहास बतलाता है कि हर जगह मगलूब हो. 
अपना मुल्क रखते हुए भी दूसरे मुल्कों के रहम करम पर हो.

कलाम ए दिगराँ 
'दुन्या का खुश तरीन इंसान वह है जो किसी का ऋणी न हो"
'महा भारत'
हिदू धर्म
इसे कहते हैं कलामे पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान