Monday 27 April 2015

Soorah Ammayatasayloon 78/30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**********
सूरह नबा ७८ - पारा ३०  
(अम्मा यता साएलूना)
यह तीसवाँ और कुरआन का आखिरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाजियों को नमाज़ में ज्यादह तर काम आती हैं. बच्चों को जब कुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें ७८से लेकर ११४ सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं और खासकर याद रखें  कि क्या पढ़ रहे हैं.

 "ये लोग किस चीज़ का हल दरयाफ्त करते हैं,
उस बड़े वाकिए का जिसका ये इख्तेलाफ करते हैं ,
हरगिज़ ऐसा नहीं, इनको अभी मालूम हवा जाता है,
.(दोबारा)
हरगिज़ ऐसा नहीं, इनको अभी मालूम हुवा जाता है,
क्या हमने ज़मीन को फर्श और पहाड़ को मेखें नहीं बनाईं?
और हमने ही तुमको जोड़ा जोड़ा बनाया,
और हमने ही तुम्हारे सोने को राहत की चीज़ बनाया.
और हमने ही रात को पर्दा की चीज़ बनाया,
और हमने ही दिन को मुआश का वक़्त बनाया,
और हम ही ने तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत आसमान बनाए,
और रौशन चराग बनाया,
और हम ही ने पानी भरे बादलों से कसरत से पानी बरसाया,
ताकि हम पानी के ज़रीया गल्ला और सब्जी और गुंजान बाग पैदा करें.
बेशक फैसले के दिन का मुअय्यन वक़्त है."
सूरह नबा ७८ - पारा ३० आयत (१-१७)

" हमने हर चीज़ को लिख कर ज़ब्त कर रखा है, सो मज़ा चक्खो हम तुम्हारी सजा बढ़ाते जाएगे {काफिरों से अल्लाह का वादा}अल्लाह से डरने वालों के लिए बेशक कामयाबी है यानी बाग और अंगूर और नव ख्वास्ता नव उम्र औरतें और लबालब भरे हुए जाम ए शराब. वहाँ न कोई बेहूदः बातें सुनेंगे और न झूट. ये काम बदला मिलेगा जो काफी इनआम होगा रब की तरफ से."
सूरह नबा ७८ - पारा ३० आयत (२७-३६)

 नमाजियों !
तुम्हारा अल्लाह तुमको गलत इत्तेला देता है कि ये ज़मीन फर्श की तरह समतल है और पहाड़ उस पर खूंटों की तरह ठुके हुए हैं ताकि ये तुमको लेकर हिले दुले ना.
हक़ीक़त ये है कि तुम्हारी धरती गोल है जिसे तुम टी वी पर हर रोज़  कायनात में गर्दिश करते हुए देख सकते हो. ज़मीन अपने गोद में पहाड़ और समंदर कैसे लिए हुए है, इसे तुम अपने बच्चे से पूछ सकते हो अगर वह तालीम जदीद ले रहा हो वर्ना अगर वह मदरसे का पामाल तालिब इल्म है तो तुम्हारी अगली नस्ल भी ज़ाया गई.
तुम अगर थोड़े से तालीम याफ्ता हो या तुम में फ़िक्र की कुछ अलामत है तो इन आयतों वाली नमाज़ पढ़ ही नहीं सकते.
ईसाई भो मुसलमानों की तरह ही धरती को गोल न मान कर समतल मानते थे, मगर चार सौ साल पहले आलिम ए फल्कियात, गैलेलिओ के इन्किशाफ़ के बाद , हुज्जत करते हुए वह ज़मीन को गोल मानने लगे हैं.
क्या तुम चार सौ साल और लोगे सच को सच मानने के लिए? 
'इसमें पहाड़ों के खूटे ठुके हुए हैं ताकि ये तुमको लेकर हिले दुले न' जैसी जिहालत भरी नमाज़ कब तक पढ़ते रहोगे?
रह गई ज़मीन पर कुदरत की बख्शी हुई नेमतें, तो इसको कौन बेवकूफ नहीं मानता. ये किसी छुपे हुए फ़नकार की तखलीक है, उसे खुदा, ईश्वर या गाड कोई भी नाम दो मागर इसे कुरानी अल्लाह का नाम नहीं दिया जा सकता क्यूंकि वह कठ मुल्ला है.
इसके अलावा तुम पूरा यकीन कर सकते हो कि तुमको मरने के बाद कोई सज़ा या जज़ा नहीं है.
ज़िन्दगी खुद एक आजार भरी सौगात है, मौत इसका अंजाम है.
मरने के बाद कोई सजा, कोई ताकत ऐसी नहीं जो तुम पर थोपे.

मुहम्मद इस लिए तुमको डराते हैं कि तुम इनको कम  ओ बेश खुदा की तरह मानते हो


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 25 April 2015

Soorah Naziyat 79/30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**********
सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३० 
(वन नज़ात ए आत गर्कन)
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखिए  और समझिए कि  इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, गलाज़त यहाँ तक कि गालियाँ भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने की क्या, तसव्वुर करने  की भी हिम्मत नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो.. इबादत के लिए रुक़ूअ, सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए और धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

अल्लाह की कसमें देखें, क्या इनमे झूट, मकर, सियासत, नफरत और जेहालत नहीं है - - -
"क़सम है फरिश्तों की जो जान सख्ती से निकालते हैं,
जो आसानी से निकलते हैं, गो ये बंद खोल देते हैं,
और जो तैरते हुए चलते हैं फिर तेज़ी से दौड़ते हैं,
फिर हर अम्र की तदबीर करते हैं,
क़यामत ज़रूर आएगी."
सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३०  (आयत १-५)

"जिस रोज़ हिला डालने वाली चीज़ हिला डालेगी ,
जिसके बाद एक पीछे आने वाली चीज़ आएगी,
बहुत से दिल उस रोज़ धड़क रहे होंगे,
आँखें झुक रही होंगी."
 सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३०  (आयत ६-९

क्या आपको मूसा का किस्सा पहुँचा, जब की अल्लाह ने इन्हें एक पाक मैदान में पुकारा कि फिरौन के पास जाओ, इसने बड़ी शरारत अख्तियार कर रख्खी है उससे जाकर कहो कि क्या तुझको इस बात की ख्वाहिश है कि तू दुरुस्त हो जाए . . . "
सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३०  (आयत १५-१७)

"भला तुम्हारा पैदा करना ज्यादह सख्त है या आसमान का?
अल्लाह ने आसमान को बनाया इसकी शेफ्कात को बुलंद किया,
फिर ज़मीन को बिछाया
इससे इसका पानी और चारा निकला
तुम्हारे मवेशियों को फाएदा पहुँचाने  के लिए."
सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३०  (आयत२७-३३)

सो जब वह बड़ा हंगामा आएगा
यानी जिस रोज़ इन्सान अपने किए को याद करेगा
और देखने वालों के सामने दोज़ख पेश की जाएगी,
तो जिस शख्स ने सरकशी की होगी और दुनयावी ज़िन्दगी को तरजीह दी होगी, सो दोज़ख ठिकाना होगा."
सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३०  (आयत ३४-३९)

मुसलमानों! 
सबसे पहले हिम्मत करके देखो कि ये अल्लाह किस ढब की बातें करता है? वह गैर ज़रुरी उलूल जुलूल कसमें क्यूँ खाता है ? 
ये फ़रिश्ते किसी की जान क्यूँ तडपा तडपा कर निकालते हैं और क्यूँ  किसी की आसानी के साथ?
 ऐसा भी नहीं कि ये आमाल के बदले होता हो.
एक बीमार मासूम बच्चा अपनी बीमारी झेलता हुवा क्यूँ पल पल घुट घुट कर मरता है? तो एक मुजरिम तलवार की धार से पल भर में मर जाता है? क्या इन हक़ीक़तों से कुरआन का दूर दूर तक का कोई वास्ता है? क़यामत का डर तुम्हें चौदह सौ सालों से खाए जा रहा है.
मूसा ईसा क़ी सुनी सुनाई दस्ताने मुहम्मद अपने दीवान में दोहराते रहते हैं, अगर ये अरबी में न होकर आपकी अपनी ज़बान में होती तो कब के आप इस दीवन ए मुहम्मद को बेजार होकर तर्क कर दिए होते.
इबादत के अल्फाज़ तो ऐसे होने चाहिए की जिससे खल्क़ क़ी खैर और खल्क़ का भला हो.

कुरआन को अज खुद तर्क करके आपको इससे नजात पाना है, इससे पहले की दूसरे तुमको मजबूर करें.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 20 April 2015

Soorah abas 80/30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह अबस ८० - पारा ३०   
(अ ब स वतावल्ला)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम, उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखिए  और समझिए कि  इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, गलाज़त यहाँ तक कि गालियाँ भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने की क्या, तसव्वुर करने  की भी हिम्मत नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो.. 
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए और धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"पैगम्बर चीं बचीं हो गए,
और मुतवज्जेह न हुए उससे कि इनके पास अँधा आया है,
और आपको क्या खबर कि नबीना सँवर जाता,
या नसीहत कुबूल करता तो इसको नसीहत करना फ़ायदा पहुँचाता,
सो जो शख्स लापरवाही करता है तो आप उसकी फ़िक्र में पड़े रहते हैं.
हालाँकि आप पर कोई इलज़ाम नहीं है कि वह साँवरे,
जो शख्स आपके पास दौड़ा हवा चला आता है,
और डरता है,
आप इससे बे एतनाई करते हैं.
हरगिज़ ऐसा न कीजिए, कुरआन नसीहत की चीज़ है,
सो जिसका दिल चाहे इसे कुबूल करे.
ऐसे सहीफों में से है जो मुकर्रम है.
सूरह अबस ८० - पारा ३० आयत(१-१३) 

आदमी पर अल्लाह की मार. वह कैसा है,
अल्लाह ने उसे कैसी चीज़ से पैदा किया,
नुत्फे से इसकी सूरत बनाई, फिर इसको अंदाज़े से बनाया.``
फिर इसको मौत दी,
फिर इसे जब चाहेगा दोबारह जिंदा कर देगा.
सूरह अबस ८० - पारा ३० आयत(१४-२२)  

"हरगिज़ नहीं इसको जो हुक्म दिया गया है बजा नहीं लाया,
कि आदमी को चाहिए अपने खाने पर गौर करे.
कि हमने अजीब तौर पर पानी बरसाया,
फिर अजीब तौर पर ज़मीन को फाड़ा,
फिर हमने उसमें गल्ला और तरकारी,
और ज़ैतून और खजूर,
और गुंजान  बाग़ और मेवे,
और चारा पैदा किया.
बअज़ी तुम्हारे और बअज़ी  तुम्हारे मवेशियों के फ़ायदे के वास्ते.
फिर जब कानों में बरपा होने वाला शोर बरपा होगा,
जिस रोज़ आदमी अपने भाई से, अपनी माँ से और अपने बाप से और अपनी बीवी से और अपनी अवलाद से भागेगा,
उस वक़्त हर शख्स को ऐसा मशगला होगा जो उसको और तरफ़ मुतवज्जेह न होने देगा.
बहुत  से चेहरे उस वक़्त रौशन, शादाँ और खन्दां होगे ,
और बहुत से चेहरों पर ज़ुल्मत होगी,
यही लोग काफ़िर ओ फ़ाजिर होंगे.    , 
सूरह अबस ८० - पारा ३० आयत(३२-४२)

झूट और शर की अलामत ओसामा बिन लादेन मारा गया  दुन्या भर में खुशियाँ मनाई जा रही हैं. याद रखें ये अलामत को सजा मिली है, झूट और शर को नहीं. सारी दुन्या मुत्तहद हो कर कह रही है कि झूट औए शर से इस ज़मीन को पाक किया जाए. ऐसे मौके पर ओबामा ने एक सियासी एलान किया कि हम इस्लाम के खिलाफ नहीं है बल्कि दहशत गरजी के खिलाफ हैं, ये उनकी मजबूरी होगी या मसलेहत.

ये झूट और शर कुरान है जिसकी तालीम जुनूनियों को तालिबान , जैश ए मुहम्मदी वग़ैरा बनाए हुए है. इसकी तबलीग और तहरीर दर पर्दा इंसानी जेहन को ज़हरीला किए हुए है. अगर तुम मुसलमान हो तो यकीनी तौर पर कुरान के शिकार हो. अब मुसलमान होते हुए  मुँह नहीं छिपाया जा सकता और न ओलिमा का ज़हरीला कैप्शूल निगला जा सकता है, वह चाहे उस पर कितनी शकर लपेटें. तुम्हारा भरम दुन्या के साथ टूट चुका है.

मुसलमानों!
तुम यकीनन " किं कर्तव्य विमूढ़" (क्या करें, क्या न करें) हो रहे हो. तुम्हारा इस वक़्त  कोई रहनुमा नहीं है, लावारिस हो रहे हो, ओलिमा ठेल ढ़केल कर तुम्हें कुरआन के झूट और शर भरी आयतों की तरफ ढकेल रहे है जिनके शिकार तुमहारे आबा ओ अजदा हुए हैं. एक वक़्त आएगा कि तुम्हारा वजूद ख़त्म हो रहा होगा और ये हरामी क्रिश्चिनीती और हिदुत्व के गोद में बैठ रहे होंगे. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 17 April 2015

Soorah taqvir 81/30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*******************
सूरह तक्वीर ८१  - पारा ३०
(इजा अशशम्सो कूवरत)
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
अब देखो, बाज़मीर होकर कि तुम अपने नमाज़ों में क्या पढ़ते हो - - -
"जब आफ़ताब बेनूर हो जाएगा,
जब सितारे टूट कर गिर पड़ेगे,
जब पहाड़ चलाए जाएँगे,
जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,
जब वहशी जानवर सब जमा जमा हो जाएगे,
 जब दरिया भड़काए जाएंगे,
और जब एक किस्म के लोग इकठ्ठा होंगे,
और जब ज़िन्दा गडी हुई लड़की से पूछा जाएगा
 कि वह किस गुनाह पर क़त्ल हुई,
और जब नामे आमाल खोले जाएँगे,
और जब आसमान फट जाएँगे,
और जब दोज़ख दहकाई जाएगी,
तो मैं क़सम खता हूँ इन सितारों की
जो पीछे को हटने लगते हैं,
और क़सम है उस रात की जब वह ढलने लगे,
और क़सम है उस सुब्ह की जब वह जाने लगे,
कि कलाम एक फ़रिश्ते का लाया हुवा है.
जो कूवत वाला है
 और जो मालिक ए अर्श के नजदीक ज़ी रुतबा है,
वहाँ इसका कहना माना जाता है,
सूरह तक्वीर ८१  - पारा ३० आयत (१-२०)
अपने कलाम में नुदरत बयानी समझने वाले मुहम्मद क्या क्या बक रहे हैं कि जब पहाड़ो में चलने के लिए अल्लाह पैर पैदा कर देगा, वह फुद्केंगे, लोग अचम्भा और तमाशा ही देखेगे, मुहम्मद ऊंटों और खजूरों वाले रेगिस्तानी थे, गोया इसे भी अलामाते क़यामत तसुव्वर करते हैं कि "जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी" छुट्टा घूमे या रस्सियों में गाभिन हो अभागिन, ऊंटनी ही नहीं तमाम जानवर हमेशा आज़ाद ही घूमा फिरा करेंगे. दरिया सालाना भड़कते ही रहते हैं. ये कुरआन की फूहड़ आयतें जिनकी कसमें अल्लाह अपनी तख्लीक़ की नव अय्यत को पेशे नज़र रख कर खता है तो इसपर यकीन तो नहीं होता, हाँ,  हँसी ज़रूर आती है.
मुसलामानों! क्या सुब्ह ओ शाम तुम ऐसी दीवानगी की इबादत करते हो?

और वह तुम्हारे साथ रहने वाले मजनू नहीं हैं.
उन्हों ने फ़रिश्ते को आसमान पर भी देखा है
और ये पैगम्बर की बतलाई हुई वह्यी क़ी बातों में बुख्ल करने वाले नहीं.
और ये कुरान शैतान मरदूद की कही हुई बातें नहीं हैं,
तो तुम लोग किधर जा रहे हो,
बस कि ये दुन्या जहान के लिए एक बड़ा नसीहत नामा है
और ऐसे लोगों के लिए जो तुम में सीधा चलना चाहे,
और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते.
सूरह तक्वीर ८१  - पारा ३० आयत(२१-२९)
कहाँ उसका कहना नहीं माना जाता? उसके हुक्म के बगैर तो पत्ता भी नहीं हिलता. ये वही फ़रिश्ता है जिसे वह रोज़ ही देखते हैं जन वह अल्लाह की वहयी लेकर मुहम्मद के पास आता है,फिर उसकी एक झलक आसमान पर देखने की गवाही कैसी?
क़यामत के बाद जब ये दुन्या ही न बचेगी तो नसीहत का हासिल?
कुरआन पर हजारों एतराज़ ज़मीनी बाशिदों के है, जिसे ये ओलिमा मरदूद उभरने ही नहीं देते.
भोले भाले ऐ नमाज़ियो!
सबसे पहले गौर करने की बात ये है कि ऊपर जो कुछ कहा गया है, वह किसी इंसान के मुंह से अदा किया गया है या कि किसी ग़ैबी अल्लाह के मुंह से?
ज़ाहिर है कि ये इंसान के मुंह से निकला हुवा कलाम है जो कि बाद कलामी की हदों में जाता है. किया होई खुदाई हस्ती इरशाद कर सकती है कि 
".जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,"
अरबी लोग कसमें ज्यादा खाते हैं. शायद कसमें इनकी ही ईजाद हों. मुहम्मद अपनी हदीसों में भी कुरान की तरह ही कसमे खाते हैं. इस्लाम में झूटी कसमें खाना आम बात है, इनको अल्लाह मुआफ करता रहता है. अगर इरादतन क़सम खा लिया तो किसी यतीम या मोहताज को खाना खिला दो. बस. गौर करने की बात है कि जहाँ झूटी कसमें राव हों वहां झूट बोलना किस क़दर आसन होगा? ये कुरान झूट ही तो है. क़यामत, दोज़ख, जन्नत, हिसाब-किताब, फ़रिश्ते, जिन और शैतान सब झूट ही तो हैं. क्या तुम्हारे आईना ए हयात पर झूट की परतें नहीं जम गई हैं?
ये इस्लाम एक गर्द है तुमको मैला कर रही है. अपने गर्दन को एक जुंबिश दो, इस जमी हुई गर्द को अपनी हस्ती पर से हटाने के लिए.
अल्लाह कहता है 
"और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते."
तो फिर दुन्या में कहाँ कोई बन्दा गुनाहगार हो सकता है, सिवाए अल्लाह के.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 13 April 2015

सूरह इन्फितार ८२ - पारा ३०

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इन्फितार  ८२ - पारा ३०   

(इज़ा अस्समाउन फ़ितरत)
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"जब आसमान फट जाएगा,
जब सितारे टूट कर झड पड़ेगे,
जब सब दरया बह पड़ेंगे,
और कब्रें उखड़ी जाएगी,
हर शख्स अपने अगले और पिछले आमाल को जन लेगा,
ऐ इंसान तुझको किस चीज़ ने तेरे रब्बे करीम के साथ भूल में डाल रख्खा है,
जिसने तुझको बनाया और तेरे आसाब दुरुस्त किए,
फिर तुझको एतदाल पर लाया,
जिस सूरत चाह तुझको तरकीब दे दिया,
हरगिज़ नहीं बल्कि तुम जजा और सज़ा को ही झुट्लाते हो,
और तुम पर याद रखने वाले और मुआज्ज़िज़ लिखने वाले मुक़र्रर हैं,
जो तुम्हारे सब अफ़आल  को जानते हैं,
नेक लोग बेशक आशाइश में होंगे,
और बदकार बेशक दोज़ख में होगे,
और आप को कुछ खबर है कि वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
और आप को कुछ खबर है की वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
वह दिन ऐसा है कि किसी शख्स को नफ़ा के लिए कुछ बस न चलेगा,
और तमाम तर हुकूमत उस रोज़ अल्लाह की होगी.
(मुकम्मल सूरह)
रह इन्फितार  ८२ - पारा ३०   आयत(१-१९)

आसमान कोई चीज़ नहीं होती, ये कायनात लामतनाही और मुसलसल है, ५०० किलो मीटर हर रोज़ अज़ाफत के साथ साथ बढ़ रही है. ये आसमान जिसे आप देख रहे हैं, ये आपकी हद्दे नज़र है.
इस जदीद इन्केशाफ से बे खबर अल्लाह आसमान को ज़मीन की छत बतलाता है, और बार बार इसके फट जाने की बात करता है,. अल्लाह के पीछे छुपे मुहम्मद सितारों को आसमान पर सजे हुए कुम्कुमें समझते हैं , इन्हें ज़मीन पर झड जाने की बातें करते हैं. जब कि ये सितारे ज़मीन से कई कई गुना बड़े होते हैं..
अल्लाह कहता है जब सब दरियाएँ  बह पड़ेंगी. है न हिमाक़त की बात, क्या सब दरिया हिं रुकी हुई हैं? कि बह बह पड़ेंगी. बहती का नाम ही दरिया है तुम्हारे तअमीर और तकमील में तुम्हारा या तुम्हारे माँ बाप का कोई दावा तो नहीं है, इस जिस्म को किसी ने गढ़ा हो, फिर अल्लाह हमेशा इस बात का इलज़ाम क्यूँ लगता रता है कि तुमको इस इस तरह से बनाया. इसका एहसास और एहसान भी जतलाता रहता है कि इसने हमें अपनी हिकमत से मुकम्मल किया.सब जानते हैं कि इस ज़मीन के तमाम मखलूक इंसानी तर्ज़ पर ही बने हैं, इस सूरत में वह चरिंद, परिन्द और दरिंद को अपनी इबादत के लिए मजबूर क्यूँ नहीं करता? इस तरह तमाम हैवानों को अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक मुसलमान होना चाहिए. मगर ये दुन्या अल्लाह के वजूद से बे खबर है.
अल्लाह पिछली सूरतों में कह चुका है कि वह इंसान का मुक़द्दर हमल में ही लिख देता है, फिर इसके बाद दो फ़रिश्ते आमाल लिखने के लिए इंसानी कन्धों पर क्यूँ बिठा रख्खे है?
असले-शहूद ओ शहीद ओ मशहूद एक है,
           हैराँ हूँ फिर मुशाहिदा है किस हिसाब का. (ग़ालिब)
तज़ादों से पुर इस अल्लाह को पूरी जिसारत से समझो, ये एक जालसाजी है,  इंसानों का इंसानों के साथ, इस हकीकत को समझने की कोशिश करो. जन्नत और दोज़क्ज  इन लोगों की दिमागी पैदावार है  इसके दर और इसकी लालच से ऊपर उट्ठो. तुम्हारे अच्छे अमल और नेक ख़याल का गवाह अगर तुम्हारा ज़मीर है तो कोई ताक़त नहीं जो मौत के बाद तुहारा बाल भी बीका कर सके. औए अगर तुम गलत हो तो इसी ज़िन्दगी में अपने आमाल का भुगतान करके जाओगे.
मुहम्मद अल्लाह की जुबां से कहते हैं 
"उस दिन तमाम तर हुकूमत अल्लाह की होगी"
आज कायनात  की तमाम तर हुकूमत किसकी है? क्या अल्लाह ने इसे शैतान के हवाले करके सो रहा है?



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 10 April 2015

Soorah Mutaffafeen 83/30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***********
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन  ८३ - पारा ३० 
(वैलुल्लिल मुतफ्फेफीन) 
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"बड़ी खराबी है नाप तौल में कमी करने वालों की,
कि जब लें तो पूरा लें,
और जब दें तो घटा कर दें.
क्या उनको यकीन नहीं है कि वह बड़े सख्त दिन में जिंदा करके उठाए जाएँगे,
जिस दिन तमाम आदमी अपने रब्बुल आलमीन के सामने खड़े होंगे,
हरगिज़ नहीं होगा लोगों का नामाए आमाल सजजैन में होगा,
आपको कुछ खबर है कि सजजैन में रक्खा हुवा नामाए आमाल क्या चीज़ है?
वह एक निशान किया हुवा दफ्तर है
इस रोज़ झुटलाने वालों की बड़ी खराबी होगी.
और इसको तो वही झुत्लाता है जो हद से गुजरने वाला हो और मुजरिम हो और इसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाएँ तो यूं कह दे बे सनद बातें है अगलों से मन्कूल चली आ रही हैं,
हरगिज़ नहीं बल्कि उनके आमाल का जंग उन दिलों पर बैठ गया है.
हरगिज़ नहीं बल्कि इस रोज़ ये अपने रब से रोक दिए जाएंगे,
फिर ये दोज़ख में डाले जाएँगे और कहा जाएगा यही है वह जिसे तुम झूट लाते थे.
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन  ८३ - पारा ३० आयत (१-१७)
हरगिज़ नहीं नेक लोगों का आमाल इल्लीईन में होगा,
और आपको कुछ खबर है कि ये इल्लीईन में रखा हुवा आमाल नामा क्या होगा,
वह एक निशान लगा दफ्तर है जिसे मुकरिब फ़रिश्ते देखते है,
नेक लोग बड़ी सताइश में होंगे,
मसेह्रियों पर बैठे बहिश्त के अजायब देखते होंगे,
ऐ मुखातिब तू इनके चेहरों में आसाइश की बशारत देखेगा,
और पीने वालों के लिए शराब खालिस  सर बमुहर होगी,
और हिरस करने वालों को ऐसी चीज़ से हिरस करना चाहिए,
काफ़िर दुन्या में मुसलमानों पर हँसते थे, अब मुसलमान इन पर हँस रहे होंगे, मसह्रियों पर होंगे, वाकई काफिरों को उनके किए का खूब बदला मिला."
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन  ८३ - पारा ३० आयत (१८-३६)
नमाज़ियो !

मुहम्मद की वज़अ करदा मन्दर्जा बाला इबारत बार बार ज़बान ए उर्दू में दोहराओ, फिर फ़ैसला करो कि क्या ये इबारत काबिले इबादत है? इसे सुन कर लोगों को उस वक़्त हंसी आना तो फितरी बात हुवा करती थी , जिसकी गवाही खुद सूरह दे रही है, आज भी ये बातें क्या तुम्हें मज़हक़ा  खेज़ नहीं लगतीं ? बड़े शर्म की बात है इसे आप अल्लाह का कलाम समझते हैं और उस दीवाने की बड़ बड़ की तिलावत करते हो. इससे मुँह मोड़ो ताकि कौम को इस जेहालत से नजात की कोई सूरत नज़र आए. दुन्या की २०% नादानों को हम और तुम मिलकर जगा सकते हैं. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 6 April 2015

Soorah Insheshaq 84/30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****************
सूरह इन्शेक़ाक़ ८४ - पारा ३० 
(इज़ा अस्समाउन शक्क़त)
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
"जब आसमान फट जाएगा,
और अपने रब का हुक्म सुन लेगा,
और वह इस लायक है,
और जब ज़मीन खींच कर बढ़ा दी जाएगी,
और अपने अन्दर की चीजों को बाहर निकाल देगी,
और खाली हो जाएगी, और अपने रब का हुक्म सुन लेगी और वह इस लायक है.
ऐ इंसान तू अपने रब तक पहुँचने तक काम में कोशिश कर रहा है, फिर इससे जा मिलेगा.
तो मैं क़सम खाकर कहता हूँ शफ़क की और रत की और उन चीजों की जिनको रात समेत लेती हैऔर चाँद की, जब कि वह पूरा हो जाए कि तुम लोगों को ज़रूर एक हालत के बाद दूसरी हालत में पहुंचना है.
सो उन लोगों को क्या हुवा जो ईमान नहीं लाते और जब रूबरू कुरआन पढ़ा जाता है तब भी अल्लाह की तरफ़ नहीं झुकते, बल्कि ये काफ़िर तकज़ीब करते हैं"
सूरह इन्शेक़ाक़ ८४ - पारा ३० आयत (१-२२)
नमाज़ियो !
अपनी नमाज़ में क्या पढ़ा? क्या समझे ?
ज़मीन ओ आसमान को भी अल्लाह तअला दिलो दिमाग वाला बना देता है? जोकि इसकी फ़रमा बरदारी के लायक हो जाते हैं? ये माफौकुल फितरत पाठ, उम्मी मुहम्मद तुमको शब् ओ रोज़ पढाते हैं
एक हदीस में वह पत्थर में ज़बान डालते है.जो बोलने लगता है  - - -
"ऐ मुसलमान जेहादियो! यहूदी मेरे आड़ में छिपा आओ इसे क़त्ल कर दो"
इक्कीसवीं सदी में आप इन अकीदों को जी रहे हैं?
जागो, अपनी नस्लों को आने वाले वक़्त का मजाक मत बनाओ.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 3 April 2015

Soorah burooz 85/30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह बुरूज ८५ - पारा ३० 
(वस्समाए ज़ाते अल्बुरूज)
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"क़सम है बुरजों वाले आसमान की,
और वादा किए हुए दिन की,
और हाज़िर होने वाले की,
और इसकी कि जिसमें हाज़िर होती है,
कि खंदक वाले यअनी कि बहुत से ईधन की आग वाले मलऊन  हुए.
जिस वक़्त ये लोग इस के आस पास बैठे हुए थे,
इसको देख रहे थे और वह जो मुसलमानों के साथ कर रहे थे,
और इन काफिरों ने इन मुसलमानों में कोई ऐब नहीं पाया, बजुज़ इसके कि वह अल्लाह पर ईमान लाए थे, जो ज़बरदस्त सज़ा वार हम्द है.
जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बेहशतों में दाखिल कर देंगे, जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इस में रहेंगे, ये बड़ी काम्याबी  है.
आपके रब की वारद गीरी बड़ी सख्त है.
वही पहली बार पैदा केरता है, वही दूसरी बार पैदा करेगा, और वही बख्शने वाला है, मुहब्बत करने वाला, और अजमत वाला है.
वह जो कुछ चाहे सब कर गुज़रता है, क्या आपको उन लश्करों का किस्सा पहुँचा है यानी फिरओन और समूद की - - - -
ये काफ़िर तकज़ीब में हैं,
अल्लाह इन्हें इधर उधर से घेरे हुए है,
बल्कि वह एक बाअजमत कुरआन है.
सूरह बुरूज ८५ - पारा ३०  (आयत १-२२)
नमाज़ियो !
कोई तालीम याफ़्ता शख्स अगर बोलेगा तो उसका एक एक लफ्ज़ बा मअनी होगा, चाहे वह ज्यादा बोलने वाला हो चाहे कम. इसके बर अक्स जब कोई अनपढ़ उम्मी बोलेगा, चाहे ज़्यादा चाहे कम, तो वह ऐसा ही होगा जैसा तुमने इस सूरह में देखा. किसी मामूली वाकिए को अधूरा बयान करके वह आगे बढ़ जाता है, ये उम्मी मुहम्मद की  एक अदा है. 
सूरह में लोगों को न समझ में आने वाली बातें या वाक़िया होते हैं. इनकी जानकारी का इश्तियाक तुम्हें कभी कभी आलिमो तक खींच ले जाता है. तुम्हारे तजस्सुस को देख कर आलिम के कान खड़े हो जाते हैं. इस डर से कि कहीं बन्दा  बेदार तो नहीं हो रहा है? बाद में वह तुम्हारी हैसियत और तुम्हारे जेहनी मेयार को भांपते हुए तुम से क़ुरआनी आयातों को समझाता है. सवाली उसके जवाब से मुतमईन न होते हुए भी उसका लिहाज़ करता हुवा चला जाता है.उसमें हिम्मत नहीं कि वह आलिम से मुसलसल सवाल करता रहे जब तक कि उसके जवाब से मुतमईन न हो जाए.
वाक़िया है कि आग तापते हुए मुसल्मानो की काफिरों से कुछ कहा-सुनी हो गई थी
तो ये बात क़ुरआनी आयत क्यूं बन गई?
मुहम्मद का दावा है कुरआन अल्लाह हिकमत वाले का कलाम है.
क्या अल्लाह की यही हिकमत है?
आलिम के जवाब पर सवाल करना तुम्हारी मर्दानगी से बईद है. यही बात तुमको दो नम्बरी कौम बने रहने की वजह है.
तुम्हारे ऊपर कभी अल्लाह का खौफ तारी रहता है तो कभी समाज का. तुम सोचते हो .कि तुम खामोश रह कर जिंदगी को पार लगा लो.
इस तरह तुम अपनी नस्ल की एक खेप और इस दीवानगी के हवाले करते हो.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान