Sunday 30 December 2012

Soorah sajda 32

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह सजदा-३२

"अलम"
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (१)
मुहम्मदी अल्लाह का छू मंतर.

"ये नाज़िल की हुई किताब है. इस में कुछ शुबहा नहीं कि ये रब्बुल आलमीन की तरफ़ से है."
अल्लाह बने हुए मुहम्मद का नज़ला है जो मुसलामानों को मरीज़ बनाए हुए है. रब्बुल आलमीन जो बे सिर पैर की अहमकाना बातें करता है.

"वह आसमान से लेकर ज़मीन तक हर अम्र की तदबीर करता है. - - -
अल्लाह तदबीर यानी जतन करता है ? पहले आप इसी कुरआनमें कह चुके हैं कि अल्लाह को जो काम करना होता है, वह बस "कुन" (हो जा) कहता है, बस वह "फयाकून" (हो गया) हो जाता है. " दरोग़ आमोज़ याद दाश्त न दारद" (झूठे की याद दाश्त कमज़ोर होती है). आप निहायत बे शर्मी से अपने कलाम में तज़ाद (विरोध भास्) रखते हैं.

''फिर हर अम्र उसी के हुज़ूर में पहुँच जाएगा - - ,-
कहाँ स्टाक करता होगा इंसान के सारे कर्मों को?
एक दिन, दिन में जिसकी मिकदार तुम्हारे शुमार के मुवाफिक एक हज़ार बरस होगी - - -
ये पुडिया छोड़े हुए एकहज़ार बरस से ज्यादह हो गए आपको, और मुसलमान उसे अभी तक खोल नहीं पाए . खुदा करे कि उनको अकले-सलीम आए. वह समझ सकें कि उनको इस्लाम बर्बाद किए हुए है.
वही है जानने वाला पोशीदा और ज़ाहिर चीजों का, ज़बर दस्त रहमत वाला है- - -
मगर इतना नहीं जनता कि अंडे में पोशीदा जान होती है जिसे वह कहता है कि "बेजान से जानदार निकलता है .
उसने जो चीज़ बनाई खूब बनाई - - -जैसे तूफ़ान, ज़लज़ला, बीमारी आजारी, भूक, क़त्ल व् ग़ारत गरी, आप की पसंदीदा गिज़ा जिसका मज़ा जैशे-मुहम्मद, अल्क़ायदा, और तालिबान आज तक ले रहे हैं.और इंसान की पैदाइश मिटटी से शुरू की , फिर फिर इसकी नस्ल को खुलासा एख्तेलात(यौन सम्बन्ध) यानी एक बे कद्र पानी से बनाया - - -मुसलमानी से वह पानी निकलता है, जिससे मुसलमान होते हैं. बेश कीमती पानी (बीज) को बेक़द्र बना दिया जिसके दम पर आपने ११-११ बीवियां रखीं. और लौंडियाँ अलग से.फिर इसके अअज़ा दुरुत किए और इसमें अपनी रूह फूंकी - - -अगर अल्लाह अअज़ा दुरुस्त न करता तो ? मछलियों के अअज़ा दुरुत नहीं हैं तो भी इकोरियम की ज़ीनत बनी हुई हैं.और तुम को कान आँख और दिल दी, तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो."
बस इतना ही आप जानते हैं? हाथ पाँव, मुंह, कान जैसे हज़ारो अअज़ा इंसानी जिस्म में मौजूद है. हाँ इंसानों को भेजा भी दिया है, शायद मुसलामानों को देना भूल गया.सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (-)

"और अगर देखें तो अजब हाल देखेंगे कि क़यामत के दिन काफ़िर लोग अपने रब के सामने सर झुकाए खड़े होंगे कि ऐ मेरे परवर दिगार! कि मेरी आँखें और कान खुल गए हैं कि हम को फिर ज़मीन पर भेज दीजिए कि हम नेक काम किया करें, हम को पूरा यक़ीन आ गया है- - -
क़यामत का यकीन ही मुसलामानों का सत्या नास किए हुए है.
और अगर हम को मंज़ूर होता तो हम हर शख्स को यही रास्ता अता फरमाते लेकिन मेरी ये बात मुहक्किक हो चुकी है कि हम जहन्नम को जिन्नात और इंसान दोनों से भर दूंगा."
अल्लाह काफिरों को जवाब देगा कि उसे अपने फैसले में रद्दो-बदल मंज़ूर नहीं क्यूँकि इसकी तहकीक हो चुकी है?
गौर करें कि अल्लाह इसी एक जुमले में पहले जमा(बहु वचन) में है बाद में वाहिद (एक वचन)हो गया है. ये लग्ज़िशें कुरआन में आम है जो मुहम्मद के अन पढ़ होने की दलील है.सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (१३)

"बस कि हमारी आयातों पर लोग ईमान लाते हैं कि उनको जब वह आयतें याद दिलाई जाती हैं तो वह सजदे में गिर पड़ते हैं और अपने रब की तस्बीह व् तमहीद करने लगते हैं और वह लोग तकब्बुर नहीं करते"
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (१५)
मुहम्मद अल्लाह बनने की मुहिम में सरगर्म हैं कि चाहते हैं कि ज़माना उनकी बातों पर इतना यक़ीन करने लगे कि उनको सजदा करे. आज भी ऐसे महत्त्व कांक्षे देखे जा सकते हैं.

"और इस शख्स से ज़्यादा ज़ालिम कौन होगा जिसको इसकी रब की आयतें याद दिलाई जाएँ, फिर ये इस से मुँह फेरे. हम ऐसे मुजरिमों से बदला लेंगे."
मुहम्मदी अल्लाह को ये बात ज़ुल्म लगती है कि कोई उसकी बात को न माने. काश कि इस पर कभी कोई मुहम्मद पर ज़ुल्म करता तो वह ज़ुल्म के मअनी समझ जाते.
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (२२)

"और वह लोग कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो ये फैहला ( क़यामत) कब होगा ? आप फरमा दीजिए कि इस फैसले के दिन काफिरों का ईमान लाना नफ़ा बख्श न होगा.और इनको मोहलत भी न मिलेगी"
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (३०)

अय्यारी और झूट का पुलिंदा है ये कुरआन.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 23 December 2012

सूरह लुकमान ३१ - (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह लुकमान ३१
(2)

"और हमने इंसान को उसके माँ बाप के मुतालिक़ ताकीद किया है कि उसकी माँ ने तकलीफ़ पर तकलीफ़ उठा कर ? और दो बरस में उसका दूध छूटता है कि तू मेरी और अपने माँ बाप का शुक्र गुज़री किया कर. मेरी तरफ ही लौट कार आना है."
सूरह लुकमान ३१ आयत(१४)
लगता है मुसंनिफे-कुरआन कुछ मदक़ पिए हुए है, ज़बान लड़खड़ा रही है, जुमले को पूरा भी नहीं कर पा रहा है. ऐसे अल्लाह के मुँह पर लगाम लगाई जाए और पैरों में बेडी डाली जाए. कैसी मखलूक है ये कट्टर मुसलामानों की भीड़ जो इन बकवासों को इबादत के लायक समझते हैं.

"और अगर तुझ पर वह दोनों मिलकर ज़ोंर डालें तो कि तू मेरे साथ ऐसी चीज़ को शरीक न कर जिसकी तेरे पास कोई दलील नहीं है तो तू इनका कहना न मानना और दुन्या में इनके साथ खूबी से बसर करना और उसी कि राह पर चलना जो मेरी तरफ रुजू हो, फिर तुम सब को मेरे पास आना है, फिर तुम को जत्लाऊँगा जो कुछ तुम करते हो."
सूरह लुकमान ३१ आयत(१५)
मुहममद अल्लाह से कहलाते है कि औलाद माँ बाप की नाफ़रमानी भी करे और इनके साथ खूबी से बसर भी करे. है न ये हिमाक़त की बात?
मुहम्मद औलादों को बहकते भी हैं और साथ साथ धमकाते भी हैं.
बद क़िस्मत कौम! जागो.

"बेटा! अगर कोई अमल राई के दाने के बराबर हो, वह किसी पत्थर के अन्दर हो या आसमान के अन्दर या ज़मीन के अन्दर हो तब भी अल्लाह इसको हाज़िर कर देगा. बेशक अल्लाह बारीक बीन बाखबर है."
सूरह लुकमान ३१ आयत(१६)
मुसलामानों
अल्लाह तअला न बारीक बीन है न बाखबर, न वह बनिए है की सब का हिसाब किताब रखता हो, वह अगर है तो एक निजाम बना कर कुदरत के हवाले कर दिया है, अगर नहीं है तो भी कुदरत का निजाम ही कायनात में लागू है. हर अच्छे बुरे का अंजाम मुअय्यन है, इस ज़मीन की रफ़्तार अरबों बरस से मुक़र्रर है कि है कि वह एक मिनट के देर के बिना साल में एक बार अपनी धुरी पर अपना चक्कर पूरा करती है. कुदरत गूँगी, बहरी है और अंधी है उससे निपटने के लिए इंसान हर वक़्त मद्दे मुकाबिल है. अगर वह मुकाबिला न करता होता तो अपना वजूद गवां बैठता, आज जानवरों की तरह सर्दी, गर्मी और बरसात की मर झेलता होता, बड़ी बड़ी इमारतों में ए सी में न बैठा होता.
मुसलमान उसका मुकाबिला नहीं करता बल्कि उसको पूजता है, यही वजेह है कि वह ज़वाल पज़ीर है.




"बेटा नमाज़ पढ़ा कर और अच्छे कामो की नसीहत किया कर और बुरे कामों से मना किया कर, और तुझ पर मुसीबत वाक़े हो तो सब्र किया कर, ये उम्मत के कामों में से है. और लोगों से अपना मुँह मत फेर और ज़मीन पर इतरा कर मत चला कर. बेशक अल्लाह तकब्बुर करने वाले, फख्र करने वाले को पसन्द नहीं करता. अपनी रफ़्तार में एतदाल अख्तियार कर और अपनी आवाज़ पस्त कर, बे शक आवाजों में सब से बुरी आव्वाज़ गधों की है"
हकीम लुकमान से कैसी कैसी टुच्ची बातें करवाते हैं . यह हकीम लुकमान की मिटटी पिलीद करना हुआ. मुहम्मद को इसकी परवाह भी नहीं , जो इंसानी समाज का बद ख्वाह रहा हो उसको बुद्धि जीव्यों की कद्र कीमत कोई मानी नहीं रखती. बहुत से बुद्धि जीवी मुहम्मद के ज़माने में हुवा करते थे जिन्हें उन्हों ने काफ़िर, मुशरिक, मुल्हिद कहकर पामाल कर दिया.
देखिए कि हज़रात कह रहे हैं
"बे शक आवाजों में सब से बुरी आव्वाज़ गधों की है "
अल्लाह के बने रसूल अल्लाह की मखलूक पर कैसा तबसरा कर रहे हैं.

"हम उनको चन्द रोज़ का ऐश दिए  हुए हैं, उनको धेरे धीरे एक सख्त अज़ाब की तरफ ले जाएँगे और- - -''
सूरह लुकमान ३१ आयत(१७-१९)
गौर कीजिए कि मुहम्मदी अल्लाह अपने बन्दों के साथ कैसी साजिश रचता है . इंसानी दिलो-दिमाग और जन का दुश्मन शिकारी.

"और अल्लाह तबारक तअला बेनयाज़, सब खूबियों वाला है. और जितने दरख़्त ज़मीन भर में हैं, ये सब क़लम बन जाएं तो और ये समंदर है, इसके अलावः सात समंदर और इसमें शामिल हो जाएं तो इस की बातें ख़त्म न होंगी."
सूरह लुकमान ३१ आयत(२७)
गोया रसूल का अंदाज़ा है कि इस ज़मीन के सारे दरख़्त अगर कलम बन जाएँ तो समंदर भर की रोशनाई कम पड़ जायगी बल्कि इस का सात गुना भी कम पड़ जाएगी कि अल्लाह की बातें ख़त्म न होंगी. मगर बातें कुरानी बकवास न हों, नई नई बातें हो, कारामद बातें होंतो इसको पढने के लिए मुसलसल इंसानी नस्लें तैयार हैं.

"और वही जनता है जो रहेम (गर्भ) में है "
सूरह लुकमान ३१ आयत(३४)
आज अल्लाह का चैलेंज तार तार हो चुका है. अगर इस आयत को ही लेकर मुसलमान अपनी आँखें खोलना चाहें तो काफी है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 18 December 2012

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 17 December 2012

सूरह लुकमान ३१-२१ वां पारा (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह लुकमान ३१-२१ वां पारा

कहते हैं कि हकीम लुक़मान खेतों में, बागों और जंगलों में सैर करने जाते तो पौदों और पेड़ उनको आवाज़ देकर बुलाते कि हकीम साहब मैं फलाँ बीमारी का इलाज हूँ . और यह बात भी मशहूर है कि अल्लाह मियाँ ने उनको पैगम्बरी की पेश कश की थी जिसे उन्हों ने ठुकरा दिया था कि मुझे हिकमत पसन्द है. ये तो खैर किंवदंतियाँ हुईं. हकीम साहब आला ज़र्फ़ इंसान रहे होंगे और समझ दार भी, साथ साथ मेहनत कश और हलाल खोर भी. बस यूँ समजें कि आज के परिवेश में एक सच्चा डाक्टर जो इन कुकुरमुत्तों की औलादों बाबा, स्वामी, पीर, गुरू और योगी वगैरह से महान होता है, हकीम साहब ने लाखों इंसानी ज़िंदगियाँ बचाईं और उनके नुस्खे यूनानी इलाज के बुनियाद बने हुए हैं. पैगम्बर ने लाखों जिंदगियों को मौत के घाट उतरा और उनके मज़हब मुसलसल इंसानियत का खून किए जा रहे हैं.
सूरह में देखें कि मुहम्मदी अल्लाह ने उस अज़ीम हस्ती को उल्लू का पट्ठा बनाए हुए है. मुहम्मद जिस क़दर मूसा ईसा को जानते थे उतना ही लुकमान हकीम को और ठोंक दी एह सूरह उनके नाम की भी,
" आलम"
मुहम्मदी छू मंतर. मतलब अल्लाह जाने.

"ये आयतें एक पुर हिकमत किताब की हैं जो कि हिदायत और रहमत है, नेक करों के लिए. जो नमाज़ की पाबन्दी करते हैं और ज़कात अदा करते हैं और वह लोग आखरत का पूरा यकीन रखते हैं.''
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(-)
वाजेह हो कि मुहम्मदी अल्लाह की नज़र में नेक कार नमाज़, ज़कात और आखरत पर यकीन रखना ही है जोकि दर असल कोई कार ही नहीं है. नेक कार है हक हलाल की रोज़ी, खून पसीना बहा कार कमाई गई रोटी, इनसे परवरिश पाया हुवा परिवार, इस कमाई से की गई मदद. अल्लाह के बन्दों के लिए रोज़ी के ज़राए पैदा करना. धरती को सजा संवार कार इससे खाद्य निकालना, सनअत क़ायम करना.
कुरान अगर पुर हिकमत किताब होती तो मुसलमान हिकमत लगा कार बहुत सी ईजादों के मूजिद होते. कोई ईजाद इन नमाजियों ने नहीं की?

"और बअज़ा आदमी ऐसा है जो उन बातों का खरीदार बनता है जो गाफ़िल करने वाली हो, ताकि अल्लाह की राह से बेसमझे बूझे गुमराह करे और इसकी हंसी उड़ा दे, ऐसे लोगों को ज़िल्लत का अज़ाब है. और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो वह तकब्बुर करता हुआ मुँह फेर लेता है, जैसे इसने सुना ही न हो, जैसे इसके कानों में नक्श हो."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(-)
कैसा मेराकी इंसान था वह जो अल्लाह का रसूल बना हुआ था? जो राह चलते राही की राहें रोक रोक क़र परलय आने की बातें करता था. ज़रा आज भी ऐसे दीवाने कि कल्पना कीजिए कि कोई पैदा हो जाए तो क्या हो? वह खुद लोगों को गफ़लत बेचने में कामयाब हो गया, ऐसी गफ़लत कि सदियाँ गुज़र गईं, लोग गाफ़िल हुए पड़े है, पूरी की पूरी कौम गफ़लत के नशे में चूर है.

"अल्लाह ने आसमान को (बहैसियत एक छत) बगैर खम्बे के कायम किया, तुम इसको देख रहे हो और ज़मीन में पहाड़ डाल रक्खे हैं ताकि वह तुम को लेकर डावां डोल न हो.और इस में हर क़िस्म के जानवर फैलाए और हम ने आसमान से पानी बरसाया और फिर हमने ज़मीन पर हर तरह के उम्दा एक्साम उगाए."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१०)
अफ्रीका के क़बीलों में जहाँ अभी तालीम नहीं पहुँची ऐसी आयतों पर अक़ीदा बांधे  हुए हैं जब कि मुसलमान योरोप में रहकर भी नहीं बदले उनका अकीदा भी यही है कि अल्लाह ने आसमानों की छतें बगैर खम्बों के बनाए हुए है और ज़मीन में पहाड़ों के खूँटे गाड़ कार हमें महफूज़ किए हुए है.
मुहम्मद अल्लाह की बखान कभी खुद करते हैं और कभी खुद अल्लाह बन कर बोलने लगते हैं. गौर करें कि कहते हैं "अल्लाह ने आसमान को - - - " फिर कहते हैं " हम ने आसमान से पानी बरसाया- - - "
इसे मुसलमान अल्लाह का कलाम मानते हैं, गोया मुहम्मद को जुज़वी तौर पर अल्लाह मानते हैं. ओलिमा इस पर गढ़ी हुई दलील पेश करते हैं कि अल्लाह कभी खुद अपने मुँह से बात करता है तो कभी मुहम्मद के मुँह से. ओलिमा सारी हकीक़त जानते हैं और ये भी जानते हैं कि इनको इनका अल्लाह ग़ारत नहीं कर  सकता, क्यूंकि अल्लाह वह भी मुहम्मदी अल्लाह हवाई बुत है जैसे मुशरिकों के माटी के बुत होते हैं.
देखिए कि खुद साख्ता अल्लाह के रसूल हकीम लुक़मान से कोई हिकमत की बातें नहीं कराते हैं बल्कि अपने दीन इस्लाम का प्रचार कराते हैं - - -

"और हमने लुक़मान को दानिश मंदी अता फ़रमाई कि अल्लाह का शुक्र करते रहो, कि जो शुक्र करता है, अपने ज़ाती नफ़ा नुक़सान के लिए शुक्र करता है. और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़ खूबियों वाला है."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१२)
"और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़ खूबियों वाला है."बन्दा नाशुक्री करता रहे और अल्लाह खूबियाँ बटोरता रहे? है न मुहम्मद की उम्मियत का असर.

"और जब लुक़मान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा कि बेटा! अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराना. बे शक शिर्क करना बहुत बड़ा ज़ुल्म है."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१३)
क्या बात है नाज़िम ए कायनात कान लगाए बैठा हकीम लुक़मान की नसीहत सुन रहा था जो वह अपने बेटे को दे रहे थे. फिर हजारों साल बाद जिब्रील अलैहिस्सलाम को इसकी खबर देकर कहा कि इस वाकिए को मेरे प्यारे नबी के कानों में फुसक आओ ताकि वह अपनी उम्मत के लिए तिलावत का सामान पैदा कार सकें,
मुसलमानों थोड़ी देर के लिए दिमाग़ की खिड़की खोलो. अपने रसूल की चालबाज़ी को समझो, क्या हकीम लुक़मान अपने बेटे को कोई हकीमी नुस्खा दे रहे हैं, जो कि उनकी हिकमत के मुताबिक अल्लाह को गवाही देनी चाहिए? क़ुरआनी अल्लाह निरा झूठा है.
ज़ुल्म वही इंसानी अमल है जिसके करने से किसी को जानी नुक़सान हो रहा हो, या फिर ज़ेहनी नुक़सान के इमकान हों, या तो माली नुकसान पहुँचाना हो. शिर्क करने से कौन घायल होता है? किसको ज़ेहनी अज़ीयत होती है या फिर किसकी जेब कटती है? आम मुसलमान कुफ्र और शिर्क को ज़ुल्म मानता है क्यूंकि कुरआन बार बार इस बात को दोहराता है. कुरान ने अलफ़ाज़ के मानी बदल रक्खे हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 9 December 2012

सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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ईमान

सिने बलूगत से पहले मैं ईमान का मतलब माली लेन देन की पुख्तगी को समझता रहा मगर जब मुस्लिम समाज में प्रचलित शब्द "ईमान" को जाना तो मालूम हुवा कि "कलमाए शहादत", पर यक़ीन रखना ही इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में ईमान है, जिसका माली लेन देन से कोई वास्ता नहीं. कलमाए शहादत का निचोड़ है अल्लाह, रसूल, कुरआन और इनके फ़रमूदात पर आस्था के साथ यकीन रखना, ईमान कहलाता है. सिने बलूगत आने पर एहसास ने इस पर अटल रहने से बगावत करना शुरू कर दिया कि इन की बातें माफौकुल फितरत (अप्राकृतिक और अलौकिक) हैं. मुझे इस बात से मायूसी हुई कि लेन देन का पुख्ता होना ईमान नहीं है जिसे आज तक मैं समझता था. बड़े बड़े बस्ती के मौलानाओं की बेईमानी पर मैं हैरान हो जाता कि ये कैसे मुसलमान हैं? मुश्किल रोज़ बरोज़ बढती गई कि इन बे-ईमानियों पर ईमान रखना होगा. धीरे धीरे अल्लाह, रसूल और कुरानी फरमानों का मैं मुनकिर होता गया और ईमाने-अस्ल मेरा ईमान बनता गया कि कुदरती सच ही सच है. ज़मीर की आवाज़ ही हक है.
हम ज़मीन को अपनी आँखों से गोल देखते है जो सूरज के गिर्द चक्कर लगाती है, इस तरह दिन और रत हुवा करते हैं. अल्लाह, रसूल, कुरान और इनके फ़रमूदात पर यकीन करके इसे रोटी की तरह चिपटी माने, और सूरज को रत के वक़्त अल्लाह को सजदा करने चले जाना, अल्लाह का उसको मशरिक की तरफ से वापस करना - - -  ये मुझको क़ुबूल न हो सका. मेरी हैरत की इन्तहा बढती गई कि मुसलमानों का ईमान कितना कमज़ोर है. कुछ लोग दोनों बातो को मानते हैं, इस्लाम के रू से वह लोग मुनाफ़िक़ हुए यानी दोगले. दोगला बनना भी मुझे मंज़ूर हुवा.
मुसलमानों! मेरी इस उम्रे-नादानी से सिने-बलूगत के सफ़र में आप भी शामिल हो जाइए और मुझे अकली पैमाने पर टोकिए, जहाँ मैं ग़लत लगूँ. इस सफ़र में मैं मुस्लिम से मोमिन हो गया, जिसका ईमान सदाक़त पर अपने अकले-सलीम के साथ सवार है. आपको दावते-ईमान है कि आप भी मोमिन बनिए और आने वाले बुरे वक्त से नजात पाइए. आजके परिवेश में देखिए कि मुस्लमान खुद मुसलमानों का दुश्मन बना हुआ है वह भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईराक और दीगर मुस्लिम मुमालिक में. बाक़ी जगह गैर मुस्लिमो को वह अपना दुश्मन बनाए हुए है. कुरान के नाक़िस पैगाम अब दुन्या के सामने अपने असली रूप में नाजिल और हाजिर हैं. इंसानियत की राह में हक़ परस्त लोग इसको क़ायम नहीं रहने देंगे, वह सब मिलकर इस गुमराह कुन इबारत को गारत कर देंगे, उसके फ़ौरन बाद आप का नंबर होगा. जागिए मोमिन हो जाने का पहले क़स्द करिए, क्यूंकि मोमिन बनना आसान भी नहीं, सच बोलने और सच जीने में लोहे के चने चबाने पड़ते हैं. इसके बाद तरके-इस्लाम का एलान कीजिए.






सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा 

(दूसरी क़िस्त) 

अब आ जाएँ क़ुरआनी राग माले पर - - -  
"और इसी निशानियों में से ये है कि वह तुम्हें बिजली दिखाता है जिस से डर भी होता है और उम्मीद भी होती है और वही आसमान से पानी बरसता है, फिर उसी से ज़मीन को उस मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है. इसमें इन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो अक्ल रखते हैं. और इसी निशानियों में से ये है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं. फिर जब तुमको पुकार कर ज़मीन से बुलावेगा तो तुम यक बारगी पड़ोगे और जितने आसमान और ज़मीन हैं, सब उसी के ताबे हैं. और वही रोज़े अव्वल पैदा करता है और वही दोबारा पैदा करेगा, और ये इसके नजदीक ज्यादा आसान है. "
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२४-२७)
मुसलमानों अल्लाह को बाद में जानो, पहले निज़ामे कुदरत को समझो. पेड़ पौदों की तरह क्या इंसान ज़मीन से उगने शुरू हो जाएँगे? ज़मीन न मुर्दा होती है न जिंदा, पानी ही ज़िदगी है. बेतर ये होता कि अल्लाह एक बार इंसान को पानी की बूँदें की तरह योम हश्र बरसता. ये थोडा छोटा झूट होता. 

"अल्लाह तअला तुमसे एक मज्मूने-अजीब, तुम्हारे ही हालात में बयान फ़रमाते हैं, क्या तुम्हारे गुलामों में कोई शख्स तुम्हारा उस माल में जो हमने तुम्को दिया है, शरीक है कि तुम और वह इस में बराबर के हों, जिनका तुम ऐसा ख्याल करते हो जैसा अपने आपस में ख़याल किया करते हो? हम इसी तरह समझदार के लिए दलायल साफ़ साफ़ बयान करते हैं " 
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२८)
क्या अल्लाह की इस ना मुकम्मल बकवास में कोई दम है, अलबत्ता ये अजीबो गरीब ज़रूर है. 

"सो जिसको खुदा गुमराह करे उसको कौन राह पर लावे"
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२९)
ये आयत कुरआन में मुहम्मद का तकिया कलाम है जो बार बार आती है, नतीजतन मुसलमान इसे दोहराते रहते हैं, बगैर इस पर गौर किए कि आयत कह क्या रही है, कि अल्लाह शैतान से भी बड़ा शैतान है कि सीधे सादे अपने बन्दों को ऐसा गुमराह करता है कि उसका राह पर आना मुमकिन ही नहीं है. 

"जिन लोगों ने अपने दीन के टुकड़े टुकड़े कर रखे है और बहुत से गिरोह हो गए हैं, हर गिरोह अपने तरीक़े पर नाज़ाँ है जो उसके पास है - - - 
इंसान को कम से कम ज़ेहनी आज़ादी थी कि अपने आस्था के मुताबिक़ अपना खुदा चुने हुए था. वह इरतेकाई हालत के सहारे आज इंसान बन गया होता, अगर इस्लाम ने इसके पैर में बेड़ियाँ न डाली होती.
क्या उनको मालूम है कि अल्लाह तअला जिसको चाहे ज़्यादः रोज़ी दे देता है जिसको चाहे कम देता है. इसमें निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं.- - - 
अल्लाह तअला नहीं बल्कि बन्दों के घटिया निजाम के चलते इंसानों की शहेन शाही और गदा गरी हुवा करती है, आज भी भारत में हर इंसान को लूट की आज़ादी है, चाहे देश में कोई तबक़ा भूकों मरे. दुन्य को चीन और डेनमार्क जैसे निज़ाम की ज़रुरत है.
अल्लाह ही वह है जिसने तुम को पैदा किया, फिर रिज्क़ दिया फिर मौत देता है, फिर तुमको जिलाएगा. क्या तुम्हारे शरीकों में कोई ऐसा है?- - - 
पहले अल्लाह को तलाशी, साबित करिए, फिर उसकी करनी तय करिए. अल्लाह तो मुहम्मद जैसे घाघ बजोर लाठी बने बैठे हैं और मुसलमानों को जेहालत पर ठहराए हुए है.
खुश्की और तरी में लोगों के आमाल के सबब बलाएँ फ़ैल रही हैं ताकि अल्लाह तअला उनके बअज़ आमाल का मज़ा उनको चखा दे ताकि वह बअज़ आएँ, 
मुसलमानों का अल्लाह इस इंतज़ार में रहता है कि कब मौक़ा मिले और कब इन बन्दों पर क़हर बरसाएं.
वाकई अल्लाह तअला काफिरों को पसंद नहीं करता - - - 
मुहम्मदी अल्लाह इंसानों में नफ़रत फैलता है और सियासत दान प्रचार करते हैं कि इस्लान ख़ुलूस, मुहब्बत, प्रेम और भाई चारे को फैलता है. काफिरों से नफ़रत का पैगाम ही मुसलामानों को बदनाम और कमज़ोर किए हुए है.
''और हमने आप से पहले बहुत से पैगम्बर इनके कौमों के पास भेजे और वह उनके पास दलायल लेकर आए सो हमने उन लोगों से इन्तेकाम लिया जो मुर्तकाब जरायम हुए थे और अहले ईमान को ग़ालिब करना हमारा ज़िम्मा था.'' 
ईसाइयत का खुदा हमेशा अपने बन्दों को माफ़ किए रहता है और कभी अपने बन्दों पर ज़ुल्म नहीं करता, इंतेक़ाम लेना तो वह जानता ही नहीं, नतीजतन वह दुन्या की सफ़े अव्वल की कौम बन गई है. इन्तेकाम के डर से मुसलमान हमेशा चिंतित रहता है और अपना क़ीमती वक़्त इबादत में सर्फ़ करता है,जिसे कि उसे अपनी नस्लों को सुर्खरू करने में लगाना चाहिए. इस अकीदे के बाईस वह बुजदिल भी है. जो अल्लाह बदला लेता हो उस पर लानत है. 

''सो आप मुर्दों को नहीं सुना सकते और बहरों को आवाज़ नहीं सुना सकते जब कि पीठ फेर कर चल दें, आप अंधों को उनकी बेराही से राह पर नहीं ला सकते, आप तो बस उनको सुना सकते हैं जो हमारी आयातों पर यकीन रखते हैं, बस वह मानते हैं.
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (३०-५७) 
मुहम्मद को अपना राग अवाम को सुनाने का मरज़ था, वह राग जो बेरागा था. आज की नई क़द्रें ऐसे लोगों को पसंद नहीं करतीं, पहले भी इनको पसंद नहीं किया जाता था मगर लखैरों को माल ग़नीमत की लालच ने इस जुर्म को सफल बनाया, जिसका अंजाम बहर हाल आज का आईना है जिसे मुसलमान देखना ही नहीं चाहते. 

"और हमने इस कुरआन में तरह तरह के उम्दा मज़ामीन बयान किए हैं. और अगर आप उनके पास कोई निशानी ले आवें तब भी ये काफ़िर जो हैं, यही कहेंगे कि तुम सब निरा अहले बातिल हो. जो लोग यकीन नहीं करते अल्लाह तअला उनके दिलों में यूँ ही मुहर लगा देता है. तो आप सब्र कीजिए, बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है, और ये बद यकीन लोग आपको बेबर्दाश्त न कर पाएँगे."
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (६०-७५)
खुद खुद अल्लाह से मुहर लगवाते हैं और फिर चाहते हैं कि सब लोग उसको तोड़ें भी। 
सिडीसौदाइयों की तरह क्या क्या बक रहे हो, अल्लाह मियां? ये कौन लोग निरे अहले बातिल हैं? बद यकीन हैं? ये कौन लोग है जो आपको बेबर्दाश्त नहीं कर परहे है? ये बेबर्दाश्त क्या होता है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 2 December 2012

सूरतुल रोम ३० (part 1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरतुल रोम ३०

(part 1)
इस सूरह का नाम रोम इस लिए पड़ा कि फारस (ईरान) ने मुहम्मद काल में रोम को फतह कर लिया था, जिसके बारे में क़ुरआनी अल्लाह ने अपने कुरआन में पेशीन गोई की थी कि फारस का यह गलबा तीन से नौ सालों के अन्दर ख़त्म हो जाएगा और रोम फिरसे आज़ाद हो जाएगा, बस कि ऐसा हो भी गया. दर अस्ल बात ये थी कि रोमी ईसाई थे जो कि मुसलामानों के किताबी भाई हुए और फ़ारस वाले उस वक़्त काफ़िर थे, उस वक़्त कुफ्फर मक्का ने इस्लामियों को तअने दिए थे कि हम अहले कुफ्र, अहले किताब पर ग़ालिब हो गए. जब रोम फ़ारस के गलबे से नजात पा गए तो ये सूरह मुहम्मदी अल्लाह को सूझी.
इस वाक़िए के सिवा इस सूरह में और कुछ नहीं है. मुहम्मदी अल्लाह का शुक्र है कि इस सूरह में इब्राहीम, नूह, मूसा और ईसा अलैहिस-सलामान की दास्तानें नहीं हैं. सिर्फ क़यामत की धुरी पर सूरह घूम रही है. हर आलमी और फितरी सचाइयों को कुरआन अपनी ईजाद बतलाता है, जिस पर मुसलमानों का ईमान है . एक साहब ने मुझे टटोलने के लिए पूछा कि आप नमाज़ क्यूँ नहीं पढ़ते? मैं ने जवाब दिया कि इंसानियत ही मेरा दीन है. कहने लगे कि इंसानियत सिखलाई किसने/ उनका मतलब था " मुहम्मदउन पर तरस खाते हुए मैं खामोश रहा, बात तो ज़ेहन में आई गिना दूं ईसा, गौतम महावीर और सुकरात बुकरात के नाम मगर मसलहतन चुप रहा.
सूरह रोम में भी सूरह क़सस की तरह मुहम्मद की झक नहीं है, इस सूरह का मुसन्निफ़ कोई और है और साहिबे क़लम है. इसने सलीके के साथ कुरआन सार पेश किया है
मुलाहिजा हो - - -
"अहले रोम करीब के मौके पर मगलूब हो गए और वह अपने मगलूब होने के बाद अनक़रीब तीन साल से नौ साल के अन्दर ग़ालिब आ जौएँगे. पहले भी अख्तियार अल्लाह का था और पीछे भी और उस वक़्त मुसलमान अल्लाह की इस इमदाद से खुश होंगे."
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (-)
अब ये कोई तिलावत की चीज़ या बात है?

"ये लोग ज़मीं पर चलते फिरते नहीं, जिसमें देखते भालते कि जो लोग इनसे पहले हो गुज़रे हैं, उन पर अंजाम क्या हुवा है? वह उन से कूवत में भी बढे चढ़े हुए थे और उन्हों ने ज़मीन को बोया जोता था और जितना इन्हों ने इस को आबाद कर रखा है, उससे ज़्यादा उन्हों ने इसको आबाद कर रखा था और उनके पास भी उनके पैगम्बर मुअज्ज़े लेकर आए थे.
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत ()
मुहम्मद माजी के लोगों की मौतें अज़ाबे इलाही का अंजाम कहते हैं. अगर उन पर अज़ाब न होता तो शायद वह ज़िदा होते. आज के लोगों को समझा रहे हैं कि उनकी बात मानो जो कि अल्लाह की मर्ज़ी है, तो अज़ाब में नहीं पड़ोगे. इन ओछी बातों से लोग गुमराह हुए, मगर आज के लोग इन बातों में सवाब ढूढ़ते हैं तो ये अफ़सोस का मुक़ाम है
"और जब रोज़े क़यामत कायम होगी, उस रोज़ मुजरिम लोग हैरत ज़दा हो जाएँगे और उनके शरीकों में कोई उनका सिफारशी न होगा और ये लोग अपने शरीकों से मुनकिर हो जाएगे. और जिस रोज़ क़यामत कायम होगी उस रोज़ आदमी जुदा जुदा हो जाएँगे यानी जो लोग ईमान लाए थे और अच्छे काम किए थे, वह तो बाग़ में मसरूर होंगे और जिन्हों ने कुफ्र किया था और हमारी आयातों को और आखरत के पेश आने को झुटलाया था, वह अजाब में होंगे."
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (१२-१६)

कयामत तो आप के मरते ही आप के खानदान पर आ गई थी मुहम्मद साहब!
आप कि छोटी बेगम आयशा और आप के दामाद अली में मशहूर जंग ए जमल हुई तो एक लाख ताजः ताजः मुसलमान हुए लोग मारे गए थे. आप के सभी खलीफा और सहाबा ए किराम आपसी रंजिश में एक दूसरे का क़त्ल कर रहे थे . बात कर्बला तक पहुंची तो आपका खानदान एक एक क़तरह पानी के लिए तड़प तड़प कर मरे. आपकी झूटी रिसालत के बाईस आपके खानदान का बच्चा बच्चा भूक और प्यास के साथ मारा गया. काश कि इस अंजाम तक आप ज़िन्दा होते और सच्चाइयों के आगे तौबा करते और सदाक़त का पैर पकड़ कर रहेम की भीक तलब करते. याद करते अपने जेहादी नअरे को कि खैबर में क़त्ले आम करने से पहले जो आपने दिया था "खैबर बर्बाद हुवा! क्यूं कि हम जब किसी कौम पर नाज़िल होते हैं तो उसकी बर्बादी का सामान होता है."
क़यामत पूरे अरब और आजम में आप के झूट की से फ़ैल चुकी है, आपसी झगड़ों से मुसलामानों पर आग ज्यादह बरसी, गैर मुस्लिम भी जंगी चपेट में आए मगर ख़सारे में रहे वह जिन्हों ने आप की ज़हरीली पैगम्बरी को तस्लीम किया. आपके बोए हुए पैगम्बरी के ज़हर को दुन्या की २०% आबादी काट रही है.मुसलमानों को आप के इस्लाम ने पस्मान्दः कौम बना दिया है. किसी कौम की आलमी ज़िल्लत से बढ़ कर दूसरी क़यामत और ज़िल्लत क्या होगी.
मुहम्मदी अल्लाह का कुदरत से मुतालिक़ जानकारी मुलाहिजा हो - - -
"वह जानदार चीजों को बेजान को निकाल लेता है ( यानि मुर्गी से अण्डा?) और बेजान चीजों से जानदार चीजों ( यानि अंडे से मुर्गी?) से निकल लेता है और ज़मीन को इसके मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है और इसी से तुम लोग निकलते हो."
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (१९)

यह आयत कुरआन में बार बार आती है जिसको कि कोई आम मुसलमान कुरआन का नमूना बना कर पेश नहीं करता, ओलिमा की तो छोड़िए कि इनका आल्लाह परिंदों के अण्डों को बेजन जानता और मानता है. कोई जाहिल कहलाना पसँद नहीं करता. मुहम्मद बार बार अपने इस वैज्ञानिक ज्ञान को दोहराते रहेसहाबाए इकराम और उनके खलीफाओं ने भी कभी न टोका कि या रसूल लिल्लाह अंडे जानदार होते हैं. इस बात से ये साबित है कि उनके गिर्द सब के सब जाहिल और उम्मी हुआ करते थे.
अभी तक इंसान अपनी मां के पेट से निकलता रहा है जिसे अल्लाह के रसूल भुइ-फुडवा  कह रहे हैं.
यही जेहालत इस्लाम मुसलामानों को बाँट रही है,
"और उसी की निशानियों में ये है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियाँ बनाईं ताकि तुमको उनके पास आराम मिले और तुम मिया बीवी में मुहब्बत और हमदर्दी पैदा की. इसमें उन लोगों के लिए निशामियाँ हैं जो फिक्र से काम लेते हैं. और उसी की निशानियों में से ज़मीन और आसमान का बनाना है. और तुम्हारे लबो लहजे और नुक़तों का अलग अलग होना है. इसी में दानिश मंदी के लिए निशानियाँ हैं."
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२१-२२)

मुहम्मदी अल्लाह कहता है तुमहारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियां बनाईं? कुछ तर्जुमान ने लिखा कि तुम्हारे लिए तुम्हारी हम जिन्स बीवियां बनाईं. दोनों बातें एक ही है. मुहम्मदी अल्लाह चूँकि उम्मी है वह कहना चाहता है तुम्हारे लिए जिन्स ए मुख़ालिफ़ बीवियां बनाईं और उसमे लुत्फ़ डालकर जोड़ों में मुहब्बत पैदा की. मुहम्मद की ये लग्ज़िसें चीख चीख कर मुसलमानों को आगाह करती हैं कि कुरआन और कुछ भी नहीं, सिर्फ़ अनपढ़ मुहम्मद के कलाम के.
फिर सवाल ये उठता है कि कुदरत की इन बातों को कौन नहीं जनता था और कौन नहीं मानता था, उस वक़्त अरब की तारीख़ में बड़े बड़े दानिश्वर हुवा करते थे. इंसान तो इंसान, हैवान भी अपने जोड़े के लिए जान लेलेते हैं और जान दे देते हैं. तालिबानी जेहालत समझती है कि इन बातों को उनके नबी ने जानकर हमें बतलाया. जाहिलों की जमाअत समझती है कि इंसानों का रोज़ अव्वल रसूल की आमद के बाद से शुरू होता है और कुदरत के तमाम इन्केशाफात उनके रसूल ने किया है. उनको सुकरात बुकरात,गौतम, ईसा, कन्फ्यूसेस, ज़ेन, ज़र्तुर्ष्ट और महावीर कोई नज़र ही नहीं आता, जो मुहम्मद से पहले हो चुके है, अलावा लाल बुझक्कड़ के.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान