Sunday 30 September 2012

सूरह नमल २७ (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*********************


दीन के मअनी हैं दियानत दारी. इस्लाम को दीन कहा जाता है मगर इसमें कोई दियानत दारी नहीं है. अज़ानों में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल कहने वाले बद दयानती का ही मुज़ाहिरा करते हैं . वह अपने साथ तमाम मुसलमानों को गुमराह करते हैं, उन्हों ने अल्लाह को नहीं देखा कि वह मुहम्मद को अपना रसूल बनता हो , न अपनी आँखों से देखा और न अपने कानों से सुना, फिर अज़ानों में इस बे बुन्याद आकेए की गवाही दियानत दारी और सदाक़त कहाँ रही ? कुरान की हर आयत दियानत दारी की पामाली करती है जिसको अल्लाह का कलाम कह गया है. नई साइंसी तहकीक व् तमीज़ आज हर मौजूअ  को निज़ाम ए  कुदरत के मुताबिक सही या ग़लत साबित कर देती है. साइंसी तहकीक के सामने धर्म और मज़हब मज़ाक मालूम पड़ते हैं. बद दयानती को पूजना और उस पर ईमान रखना ही इंसानियत के खिलाफ एक साज़िश है. हम लाशऊरी तौर पर बद दयानती को अपनाए हुए हैं. जब तक बद दयानती को हम तर्क नहीं करते, इंसानियत की आला क़द्रें कायम नहीं हो सकतीं और तब तक यह दुन्या जन्नत नहीं बन सकती. 
आइए हम अपनी आने आली नस्लों के लिए इस दुन्या को जन्नत नुमा बनाएँ. इस धरती पर फ़ैली हुई धर्म व् मज़हब की गन्दगी को ख़त्म करें, अल्लाह है तो अच्छी बात है और नहीं है तो कोई बात नहीं. अल्लाह अगर है तो दयानत दारी और ईमान ए सालेह को ही पसंद करेंगा न कि इन साजिशी जालों को जो मुल्ला और पंडित फैलाए हुए हैं. 

**********************  
सूरह नमल २७
(1)
  

आइए देखें मुहम्मदी कुरान के जालों में बने हुए फन्दों को - - -

मुहम्मद ने इस सूरह में देव और पारी की कहानी गढ़ी है. इस्लामी बच्चे इस कहानी को अल्लाह के बयान किए हुए हक़ायक मानते हैं और इस पर इतना ईमान और यकीन रखते हैं कि वह बालिग़ ही नहीं होना  चाहते. ये कहानी मशहूर-ज़माना यहूदी बादशाह सोलेमन (सुलेमान) की है. इस कहानी की हकीकत के साथ साथ तारीखी सच्चाई तौरेत में तफसील के साथ बयान की गई  है, जिसे मुहम्मद ने पूरी तरह से बदल कर कुरआन बनाया है. मुहम्मद का तरीका ये रहा है कि उन्होंने हर यहूदी हस्ती को लिया और उसके नाम की कहानी ऐसी गढ़ी  कि जिसका तौरेती हकीकत से कोई लेना देना नहीं. अपनी गढंत को अल्लाह से गवाही दिला दिया है और असली तौरेत और इंजील को नकली बतला दिया. इनके इस बदलाव में मज़मून में कोई सलीका होता तो भी मसलहतन माना जा सकता है, मगर देखिए  कि उनका जेहनी मेयार कितना पस्त है - - -

"तास" 

यह कोई इशारा है जिसे आज तक कोई नहीं समझ सका, बस अल्लाह ही बेहतर जाने, कह कर आलिमान आगे बढ़ लेते हैं, गोया मंतर है सूरह शुरू करने से पहले दोहराने का.

"ये आयतें हैं कुरआन की और एक वाज़ह किताब की. ये ईमान वालों के लिए हिदायत और खुश खबरी सुनाने वाली है."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (१).

ये आयतें हैं कुरआन की जो कि एक गैर वाज़ह किताब है और इस में सब कुछ मुज़ब्ज़ब है जिसमे अल्लाह के रसूल को बात कहने का सलीका तक नहीं है, आयातों में कोई दम नहीं है, जो कुछ है सब मुहम्मद का बका हुआ झूट है.ये किताब आज इक्कीसवीं सदी में भी लोगों को गुमराह किए हुए है. मुहम्मद की दी हुई तरबियत में कुछ लोग अवाम के सीने पर तालिबान बने खड़े हुए हैं.यही खुश खबरी है,
 ऐ मजलूम मुसलमानों.  

"अल्लह मुसलमानों को इस्लाम पर चलने की ताक़ीद करता है और बदले में आखरत की तस्वीर दिखलाता है. अल्लाह मुहम्मद  को मूसा की याद दिलाता है जब वह अपने परिवार के साथ सफ़र में होते हैं - - - 
"मैंने एक आग देखी है मैं अभी वहाँ से कोई खबर लाता हूँ. तुम्हारे पास आग का शोला किसी लकड़ी वगैरा में लगा हुवा लाता हूँ ताकि तुम सेंको. सो जब इसके पास पहुंचे तो उनको आवाज़ दी गई कि जो इस आग के अन्दर हैं, उन पर भी बरकत हो और जो इसके पास है, उसपर भी बरकत हो, और रब्बुल आलमीन पाक है. ऐ मूसा बात ये है कि  मैं जो कलाम करता हूँ , अल्लाह हूँ ज़बरदस्त हिकमत वाला, और तुम अपना असा डाल दो सो जब उन्हों ने इसको इस तरह हरकत करते हुए देखा जैसे सांप हो तो पीठ फेर कर भागे और पीछे मुड कर भी न देखा. ऐ मूसा डरो नहीं हमारे हुज़ूर में पैगम्बर नहीं डरा करते.
हाँ! मगर जिससे कुसूर हो जावे फिर नेक काम करे तो मैं मगफिरत करने वाला हूँ . - - -
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (३-१६).

कुरान के अल्लाह बने मुहम्मद इस वक़्त आयातों में वज्द की हालत में हैं, कुछ बोलना चाहते हैं और मुँह से निकल रहा है कुछ, तर्जुमे और तफ्सीर के कारीगर मौलाना ने पच्चड लगा लगा कर इन मुह्मिलात में मअनी भरा है. अभी पिछले बाब में मूसा के बारे में जो बयान किया गया है, उसी को यहाँ पर दोहराया गया है, और आगे भी कई बार दोहराया जाएगा. मुसलामानों की नजात का एक ही इलाज है कि कुरआन इनको मार-बाँध कर सुनाया जाय, जब तक कि ये मुन्किरे-कुरान न हो जाएँ.

"हज़रात सुलेमान के पास बहुत बड़ी फ़ौज थी जिसमे आदमियों के अलावा जिन्न और परिंदों के दस्ते भी थे और कसरत से थे कि जिनको चलाने के लिए निजामत की जाती थी. लश्करे सुलेमानी जब चीटियों के मैदान में आया तो वह आपस में बातें करने लगीं कि अपने अपने बिलों में गुस जाओ.कि लश्करे-सुलेमानी तुमको कहीं कुचल न डाले. सुलेमान ये सुनकर मुस्कुरा पड़े."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (१७-१९).

कहते हैं मैजिक आई घुप अँधेरे में बड़ी खूबसूरत दिखाई पड़ती है, जैसे कि नादान और निरक्षर कौमों में जादूई करिश्में. मुहम्मद इन्हें सुलेमानी लश्कर में जिन्न और परिंदों के दस्ते शामिल बतला रहे हैं मुसलमान इस पर यकीन करने पर मजबूर है. चीटियों की खामोश झुण्ड में मुहम्मद उनकी गुफ्तुगू सुनते हैं और सुलेमान को मुस्कुराते हुए लम्हे की गवाही देते हैं. यह तमाम गैर फ़ितरी बातें ही मुसलमानों की फितरत में शामिल हैं, इन्हें कैसे समझाया जाए? 

"एक बार यूँ हुआ कि सुलेमान ने परिंदों की हाजिरी ली, पाया कि हुद हुद गायब है. वह इसकी गैर हजिरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबाह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे. सो थोड़ी देर में वह आ गया और कहने लगा मैं ऐसी खबर लेकर आया हूँ जिसकी खबर आप को भी नहीं है, मैं कबीला-ए-सबा से एक तहकीक़ खबर लाया हूँ. मैं ने एक औरत को देखा कि वह लोगों पर हुकूमत कर रही है और इसके यहाँ अश्या-ए-ऐश मुहय्या है और उसके यहाँ एक बड़ा तख़्त है. मैंने देखा उसको और उसके कौम को कि अल्लाह की इबादत को छोड़ कर सूरज को सजदह कर रहे हैं. वह राहे-हक पर नहीं चलते, शैतान ने उन्हें रोक रक्खा है."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (२०-२४).

इसके बाद कुछ देर के लिए मुहम्मद की जुबान हुद हुद की चोंच में आ जाती है और वह करने लगती है तब्लिगे-इस्लाम - - -

"सुलेमान ने दास्तान सुन कर कहा, देख लेते है कि तू सच बोलता है या झूट तू मेरा एक ख़त दरबार में छोड़ कर, सुन कि वहां क्या सवाल जवाब होते हैं."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (२८).

(हुद हुद हुक्म बजाते हुए सुलेमान के ख़त को मलका ए बिलकीस के महल में डालकर रद्दे अमल का इंतज़ार करता है. बिलकीस ख़त उठाती है और इसे पढ़ कर दरबार तलब करती है.)

"ए लोगो! सुलेमान का यह ख़त आया है जिसमें सब से पहले लिखा है 'बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम' तुम लोग मेरे बारे में ज़्यादः तकब्बुर न करो और मती हो कर चले आओ. मलका ने अपने दरबारियों से पूछा कि तुम लोगों की क्या राय है? तुम लोगों के मशविरे के बगैर तो मैं कोई काम करती नहीं, बोलो कि हमें क्या करना चाहिए? दरबारी कहने लगे वैसे हम लोग बहादर हैं और बेहतर फौजी हैं मगर तुम्हारी मसलेहत क्या कहती है? फैसला करके हम को हुक्म दो. बिलकीस बोली वालियान मुल्क जब किसी बस्ती में दाखिल होते हैं तो इसे तहों-बाला कर देते है और इसमें रहने वाले इज्ज़त दार लोगों को ज़लील करते हैं और वह लोग भी ऐसा करेंगे. मैं उन लोगों के पास कुछ हदिया भेजती हूँ , फिर देखती हूँ कि वह फरिस्तादे क्या लाते है, सो वह फरिस्तादा जब सुलेमान के पास पहुंचा तो सुलेमान ने फ़रमाया क्या तुम लोग मॉल से मेरी इमदाद करना चाहते हो?  सो अल्लाह ने मुझे जो कुछ दे रक्खा है, वह इससे बहुत बेहतर है, हाँ तुम ही अपनी इस हदिया पर इतराते हो."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (२९-३६)

'बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम'
अल्लाह का ये नाम मुहम्मद का रखा हुआ है जिसको यहूदी बादशाह के मुंह से कहलाते हैं. किस कद्र झूट और मकर के पुतले थे वह जिनको मुसलमान सल्लाल्हो-अलैहे-असल्लम कहते हैं.

(अगली किस्त में तौरेती सुलेमान की हकीकत होगी जिससे इस गढ़ंत का कोई ता अल्लुक नहीं.)



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 23 September 2012

सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (तीसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***

सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा 
(तीसरी किस्त) 


पिछले बाब में आपने मूसा की गाथा मुहम्मद जे ज़ुबानी सुनी जो कि मुसलामानों को बतलाया गया और जिस पर हर मुसलमान ईमान रखता है, यह बात और है कि ऐतिहासिक सच कुछ और ही है. इसके बाद  मुहम्मद  अब्राहम को पकड़ते हैं जो अपने बाप को एक ईश्वरीय नुक्ते को समझाता और धमकता है. बाप आज़र मशहूर संग तराश था जिसके वंशजों की मूर्ति रचनाएँ आज भी मिस्र की शान बनी हुई है, वह बाप एक चरवाहे की बात और डांट को सुनता है. अब्राहम जो कि अपने पोते यूसुफ़ की वजह से मशहूर हुवा (क्यूँकि  यूसुफ़ मिस्र के शाशक फिरौन का मंत्री बना). इब्राहीम बाप के लिए मुजस्सम मुहम्मद बन जाता है और उसके लिए मुक्ति की दुआ माँगता है जैसे मुहम्मद ने खुद अपने चचा के लिए दुआ माँगी थी.
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१०-६८)

इसके बाद नूह का नंबर आता है और अल्लाह उनका किस्सा एक बार फिर दोहराता है, फिर आद और हूद पर आता है और उनके नामों का जिक्रे-खास भर कर पाता है. मुहम्मदी अल्लाह ऊँची ऊँची इमारतों की तामीर को गुनाह ठहराते हुए मुसलमानों को ऐसा पाठ पढाता है कि आज भी तरक्की याफ्ता कौमों के सामने वह झुग्गियों में रहकर गुज़र बसर कर रहे हैं. मवेशी, बागबानी, और औलादों की बरकतों की फैजयाबी से मुसलामानों को नवाजते हुए मुहम्मद अपना दिमागी तवाजुन खो बैठते हैं और जो मुँह में आता है, बकते चले जाते हैं, जो ऐसे ही कुरआन बनता चला जाता है. अपने इर्द गिर्द के माहौल को दीवाने हादी बाबा की तरह बडबडाते हुए कहते हैं

"वह लोग कहने लगे यूँ कि तुम पर तो किसी ने बड़ा जादू कर दिया है, तुम तो महेज़ हमारी तरह एक आदमी हो. और हम तो तुम पर झूठे लोगों का ख़याल करते हैं, सो अगर तुम सच्चे हो तो हम पर कोई आसमान का टुकड़ा गिरा दो."
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (६९-१७८)

और ये कुरआन रब्बुल आलमीन का भेजा हुवा है.  इसको अमानत दार फ़रिश्ता लेकर आया है, आपके क़ल्ब पर साफ़ अरबी जुबान में, ताकि आप मिनजुम्ला डराने वालों में हों और इसका ज़िक्र पहली उम्मतों की किताबों में ह. क्या इन लोगों के लिए ये बात दलील नहीं है कि इसको इन के ओलिमा बनी इस्राईल जानते हैं"
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१९१-९७)

रब्बुल आलमीन गर्म हवाओं का क़हर भेजता है, ठंडी हवाओं की लहर भेजता है, सैलाब और तूफ़ान भेजता है, साथ साथ खुश गवार सहर भेजता है. भूचाल और ज्वाला मुखी भेजता है, सूखा औरबाढ़ भेजता है, सोने की खानें भेजता है, हासिल कर सकते हो तो करो. किताब कापी वह जानता भी नहीं न कोई भाषा और न कोई लिपि को वह समझता है. उसने एक निजाम बना कर अपने मख्लूक़ के लिए सिद्क़ और सदभाव की चुनौती दी है. उसने हर चीज़ को फ़ना होने का ठोस नियम भेजा है, उसके ज़हरों  और नेमतों को समझो, मुकाबिला करो. इसी उसूल को मान कर मगरीबी दुन्या फल फूल रही है और मुसलमान क़ुरआनी जेहालातों में मुब्तिला है. मुहम्मद एक नाक़बत अंदेश का सन्देशा लेकर पैदा हुए और करोरों लोगों को गुमराह करने में कामयाब हुए.

"फिर वह उनके सामने पढ़ भी देता, ये लोग फिर भी इसको न मानते. हम ने इसी तरह इस ईमान न लाने वालों को, इन नाफ़र्मानों के दिलों में डाल रख्खा है, ये लोग इस पर ईमान न लाएँगे ,जब तक कि सख्त अज़ाब को न देख लेंगे, जो अचानक इन के सामने आ खड़ा होगा और इनको खबर न होगी."
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१९९-२०२)

मुहम्मद अनजाने में अपने अल्लाह को शैतान साबित कर रहे हैं जो इंसानों के दिलों में वुस्वसे पैदा करता है. किस कद्र बेवकूफ़ी की बातें करते है? क्या ये कोई पैगम्बर हो सकते है. अगर ये अल्लाह का कलाम है तो कोई दीवाना ही मुसलमानों का अल्लाह हो सकता है. 
जागो मुसलमानों! 
तुम क़ुरआनी इबारतों को समझो और अपने गुमराहों को राह  दिखलाओ. 

"और जितनी बस्तियां हमने गारत की हैं, सब में नसीहत के वास्ते डराने वाले आए और हम ज़ालिम नहीं हैं और इसको शयातीन लेकर नहीं आए, और ये इनके मुनासिब भी नहीं, और वह इस पर क़ादिर भी नहीं, क्यूँकि वह शयातीन सुनने से रोक दिए गए हैं, सो तुम अल्लाह के साथ किसी और माबूद की इबादत न करना, कभी तुम को सज़ा होने लगे और आप अपने नज़दीक के कुनबे को डराइए "
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (२०९-२१४)

पूरे कुरआन में सिर्फ़ कुरआन की अज़्मतें बघारी गई हैं, कौन सी अज़्मतें है इसको मुहम्मद बतला भी नहीं पा रहे. शैतान मियाँ को कुरआन ने अल्लाह मियाँ का सौतेला भाई बना रख्खा है. ताक़त में उन्नीस बीस का फर्क है. उम्मी के जेहनी भंडार में इतने शब्द भी नहीं  कि डराने के बजाए कोई इनके मकसद को छूता हुवा लफ्ज़ होता जिससे  इनकी बातें और भाषा में कमी न होती , बल्कि मुनासिबत होती.  

"और अगर ये लोग आपकी बात को न मानें तो कह दीजिए मैं आपके अफआल  से बेज़ार हूँ, और आप अल्लाह क़ादिर और रहीम पर तवक्कुल कीजिए "
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (२१६-१७)
उस वक़्त के ज़हीन लोगों से खुद मुहम्मद बेजार थे या उनका लाचार अल्लाह? जोकि रब्बुल आलमीन है. नाफरमान काफिरों से अल्लाह कैसे खिसया रहा है. सब मुहम्मद की कलाकारी है.

"और शायरों की रह तो बेराह लोग चला करते हैं और क्या तुमको मालूम नहीं शायर खयाली मज़ामीन के हर मैदान में हैरान फिरा करते हैं और ज़ुबान से वह बातें कहते हैं, जो करते नहीं. हाँ ! जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए और अपने अशआर में कसरत से अल्लाह का ज़िक्र किया."
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (२२४-२७)
मुहम्मद खुद उम्मी शायर थे. कुरआन उनकी ऐसी रचना है जो तुकान्तों में है, तुकबंदी करने में ही वह नाकाम रहे. अपनी शायरी में मानी ओ मतलब  पैदा करने में नाकाम रहे. लोग उनको शायरे-मजनू कहते थे. अपनी इस फूहड़ गाथा को अल्लाह का कलाम बतला कर अपनी एडी की गलाज़त को अल्लाह की एडी में लगा दिया. मुहम्मद उल्टा शायरों पर बेहूदा आयतें गढ़ते हैं ताकि इन पर मुता शायरी का इलज़ाम न आए.काश की मुहम्मद पूरे शायर होते और साहिबे फ़िक्र भी. उनके कलाम में इतना दम होता कि ग़ालिब कह पड़ता - - -
देखना तक़रीर की लज्ज़त कि जो उसने कहा,
मैं ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है.

मुहम्मद ने शायरों की फकड़ी उड़ाई है, ग़ालिब के एक शेर पर उनका कुरआन निछावर किया जा सकता है - - -
वफ़ादारी बशर्ते-उस्तवारी असले-ईमां है,
मरे बुत खाने में तो काबे में गाडो बरहमन को.
कहता है - - -
ताअत में ताराहे न मय ओ अन्ग्बीं की लाग,
दोज़ख में ड़ाल दो कोई लेकर बहिश्त को.

कुरआन कहता है अल्लाह की इबादत करो तो ऊपर शराब और शबाब से भरी हुई जन्नत मिलेगी. ग़ालिब कहता है ऐसी जन्नत को उठा कर जहन्नम में झोंक दो.
आजकल शोअरा कसरत से अल्लाह की बात मानने लगे हैं मगर हम्दो -सना को छोड़ कर मुहम्मद गाथा यानी नअत पर आमदः हैं. कौल-फ़ेल में चिरकुट, ज़रीआ मुआश हराम मगर नअत शरीफ को हलाल किए रहते हैं. नअत गोई का फैशन हुआ जा रहा है. कैसा भी मुशायरा हो क़ुरआनी आयात से शुरू होता है फिर दो एक नअत के बाद ही शायर शायरी के अदब में आते हैं. मुशायरों का नअत्या करन हो गया है. गुंडे  नातिया मुशायरे करा रहे हैं, नअत्या के नाम पर चंदे का धंधा बन गया है. ऐसे मुशायरों की कामयाबी की गारंटी होती है, हूट होने की कोई गुंजाईश नहीं होती, अकीदत मंद नियत बांध कर बैठे हैं तो सुबह अज़ान की आवाज़ तक बैठे रहते हैं. रसूल की शान में जो जितनी मुबल्गा आराई, दारोग गोई और किज़्ब के पुल बाँधता है उसको उतना ही बड़ा रुतबा मिलता है. 
 रसूल में सारे गुण पाए जाते हैं. हर शोबए इल्म ओ हुनर में यह बेजोड़ होते हैं. हर मौजूअ, हर मज़मून में इनके सललल्लाहोअलैहेवसल्लम ताक़ होते है, दुन्या की तमाम अज़्मतें इन पर ख़त्म है. अकीदत मंद यहाँ तक कहते हैं  - - -
"बअद अज़ खुदा ए बुज़ुर्ग तूई अस्त"
खुद साख्ता रसूल के लिए मुसलमानों का ख़याल इसी नुकताए उरूज पर है कि अल्लाह के बाद मुहम्मद का दर्जा है. जहाँ तक अल्लाह का सवाल है वह मादूम और मफरूर है, इसका तसव्वुर भी बहुत देर तक ज़ेहन में कायम नहीं रहता, इसके बर अक्स मुहम्मद मौजूद और मुजस्सम हैं. अल्लाह ताला हटे तो ये डेट. गोया मुहम्मद अव्वल हैं और अल्लाह दोयम. मानना पड़ता है मुहम्मद की हिकमते-अमली को जिसमें वह कामयाब हैं मगर बहार हल वह दुश्मने-इंसानियत थे.

XXXXXXXXXXXXXXXXXXx


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 16 September 2012

सूरह-शोअरा २६ (दूसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

मुअजज़ात
 
मूसा और ईसा के बहुत से मुआज्ज़े(चमत्कार)थे जिनको देख कर लोग क़ायल हो जाया करते थे और उनकी हस्ती को तस्लीम करते थेमूसा के करिश्मे कि पानी पर लाठी मारके उसे फाड़ देनालाठी को ज़मीन पर डालकर उसे सांप बना देनादरयाय नील को अपनी लाठी के लम्स से सुर्ख कर देनानड सागर को दो हिस्सों में तक़सीम करके बीच से रास्ता बना देना वगैरह वगैरह
इसी तरह ईसा भी चलते फिरते करिश्में दिखलाते थेबीमार को सेहत मंद कर देनाकोढियों को चंगा करदेनासूखे दरख़्त को हरा भरा कर देना और बाँझ औरत की गोद भर देना वगैरह वगैरह
लोग मुहम्मद से पूछा करते कि आप बहैसियत पैगम्बर क्या मुअज्ज़े रखते हैं तो जवाब में मुहम्मद बजाय अपने करिश्मे दिखलाने के कुदरत के कारनामें गिनवाने लगते
जैसे रात के पीछे दिन और दिन के पीछे रात के आने का करिश्मा
मेह से पानी बरसने का करिश्मा
ज़मीन के मर जाने और पानी पाकर जी उठने का करिश्मा
अल्लाह को हर बात के इल्म होने का करिश्मा
किस कद्र ढीठ और बेशर्मी का पैकर थे वहकरिश्मा साज़बाद में रसूल के प्रोपेगंडा बाजों नें रसूली करिश्मों के अम्बार लगा दिएपानी की कमयाबी अरब में मसला--अज़ीम थासफ़र में पानी की जहाँ कमी होती लोग प्यास से बिलबिला उठतेबस रसूल की उँगलियों से ठन्डे पानी के चश्में फूट निकलतेलोग सिर्फ प्यास ही  बुझातेवजू भी करते बल्कि नहाते धोते भी
रसूल हांड़ी में थूक देतेबरकत ऐसी होती की दस लोगों की जगह सैकड़ों अफराद भर पेट खाते और हांड़ी भरी की भरी रहती
इस किस्म के दो सौ चमत्कार मुहम्मद के मदद गार उनके बाद उनके नाम से जोड़ते गए.मुहम्मद जीते जी लोगों के तअनो से शर्मसार हुए तो दो मुअज्ज़े आख़िरकार गढ़ ही डाले जो मूसा और ईसा के मुअज्जों को ताक़ पर रख दें
पहला यह कि उंगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए जिसे 
''शक्कुल क़मर'' नाम दिया
दूसरा था पल भर में सातों आसमानॉ की सैर करके वापस  जाना
इसको नाम दिया ''मेराज'' 
यह बात अलग है कि इसका कोई गवाह नहीं सिवाय अल्लाह केअफ़सोस कि मुसलामानों का यह गैर फितरी सच ईमान बन गया है।
सूरह-शोअरा २६ - १९वाँ पारा
(दूसरी किस्त)

मुसलमानों के हाथों में खुद साख्ता रसूल के फ़रमूदात फ़क़त तौरेत कि कहानी का सुना हुआ वक़ेआ मुहम्मद अपनी पैगम्बरी चमकाने के लिए कुछ इस तरह गढ़ते हैं - - -
.''- - - जब आप के रब ने मूसा को पुकारा - - -
रब्बुल आलमीन :--"तुम इन ज़ालिम लोगों यानी काफिरौं के पास जाओ, क्या वह लोग नहीं डरते?"
मूसा :--"ऐ मेरे परवर दिगार! मुझे ये अंदेशा है कि वह मुझको झुटलाने लगें औए मेरा दिल तंग होने लगता है और मेरी ज़बान भी नहीं चलती है , इस लिए हारून के पास भी वह्यी भेज दीजिए और मेरे जिम्मे उन लोगों का एक जुर्म भी है. सो मुझको अंदेशा है कि व लोग मुझे क़त्ल कर देंगे."
(वाजेह हो कि मूसा ने एक मिसरी का खून कर दिया था और मसर से फरार हो गए थे.)
रब्बुल आलमीन :-- "क्या मजाल है? तुम दोनों मेरा हुक्म लेकर जाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, सुनते हैं. कहो कि हम रब्बुल आलमीन के भेजे हुए हैं कि तू बनी इस्राईल को हमारे साथ जाने दे "
फिरऔन :-- "क्या बचपन में हमने तुम्हें पवारिश नहीं किया? और तुम अपनी उम्र में बरसों हम में रहा सहा किए, और तुम ने अपनी वह हरकत भी की थी, जो की थी, और तुम बड़े ना सिपास हो."
मूसा :-- " उस वक़्त वह हरकत कर बैठ था और मुझ से गलती हो गई थी फिर जब मुझको डर लगा तो मैं तुम्हारे यहाँ से मफरुर हो गया था. फिर मुझको मेरे रब ने दानिश मंदी अता फ़रमाई और मुझको पैगम्बरों में शामिल कर दिया और वह ये नेमत है जिसका तू मेरे ऊपर एहसान रखता है कि तू ने बनी इस्राईल को सख्त ज़िल्लत में डाल रक्खा था."
फिरऔन : -- "रब्बुल आलमीन की हकीक़त क्या है? "
मूसा : -- "वह परवर दिगार है मशरिक और मगरिब का और जो कुछ इसके दरमियान है उसका. भी, अगर तुमको यकीन करना हो."
फिरऔन : -- "(अपने लोगों से कहा) तुम लोग सुनते हो ?
मूसा :-- "वह परवर दिगार है, तुम्हारा और तुम्हारे पहले बुजुर्गों का "
फिरऔन : --"ये जो तुम्हारा रसूल है, खुद साख्ता तुम्हारी तरफ़ रसूल बन कर आया है, मजनू है."
मूसा :-- "वह परवर दिगार है मशरिक और मगरिब का और जो कुछ इसके दरमियान है, उसका. भी, अगर तुमको अक्ल हो."
फिरऔन (झल्लाकर) : --"अगर तुम मेरे सिवा कोई और माबूद तस्लीम करोगे तो तुम को जेल खाने भेज दूंगा."
मूसा : -- "अगर मैं कोई सरीह दलील पेश करूँ तब भी. ?
फिरऔन : --"अच्छा तो दलील पेश करो, अगर तुम सच्चे हो ."
मूसा ने अपनी लाठी डाल दी तो वह एक नुमायाँ अज़दहा बन गया और अपना हाथ बाहर निकाला तो दफअतन सब देखने वालों के रूबरू बहुत ही चमकता हुवा हो गया.
फिरऔन:--( ने अहले-दरबार से जो उसके आसपास थे कहा) : -- "इसमें कोई शक नहीं की ये शख्स बड़ा माहिर जादूगर है, इसका मतलब ये है कि तुमको तुम्हारी सर ज़मीन से बाहर कर देगा तो तुम क्या मशविरह देते हो, "
दरबारियों ने कहा : -- "आप उनको और उनके भाई को मोहलत दीजिए. और शहरों में चपरासियों को भेज दीजिए कि वह सब जादूगरों को आप के पास हाज़िर करें"
(गोया फिरऔन बादशाह न था बल्कि किसी सरकारी आफिस का अफसर था जो चपरासियों से काम चलता था कि वह मिस्र के शहरों में जाकर बादशाह के हुक्म की इत्तेला अवाम तक पहुंचाते थे)
गरज वह सब जादूगर मुअय्यन दिन पर, खास वक़्त पर जमा किए गए और लोगों को इश्तेहार दिए गए कि क्या तुम जमा हो गए, ताकि अगर जादूगर ग़ालिब आ जावें तो हम उन्हीं की राह पर रहें .
फिर जब वह जादूगर आए तो फिरौन से कहने लगे अगर हम ग़ालिब हो गए तो क्या हमें कोई बड़ा सिलह मिलेगा?
फिरऔन : --"हाँ! तुम हमारे क़रीबी लोगों में दाखिल हो जाओगे "
मूसा : -- ( जादूगरों से )तुम को "जो कुछ डालना हो डालो"
चुनाँच उन्हों ने अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ डालीं और कहने लगे की फिरौन के इकबाल की क़सम हम ही ग़ालिब होंगे.
मूसा ने अपना असा (लाठी) डाला सो असा के डालते ही उनके तमाम तर बने बनाए धंधे को निगलना शुरू कर दिया. जादूगर सब सजदे में गिर गए, और कहने लगे हम ईमान ले आए रब्बुल आलमीन पर जो मूसा और हारुन का भी रब है.
फिरऔन : -- "हाँ!तुम मूसा पर ईमान ले आए बगैर इसके कि मैं तुम को इसकी इजाज़त देता, ज़रूर ये तुम सब का उस्ताद है जिसने तुम को जादू सिखलाया है, सो अब तुम को हक़ीक़त मालूम हुई जाती है. मैं तुम्हारे एक तरफ़ के हाथ और दूसरे तरफ़ के पैर काटूँगा ."
जादूगर :-- "कोई हर्ज नहीं हम अपने रब के पास जा पहुच जाएँगे. हम उम्मीद करंगे कि हमारे परवर दिगार हमारी खताओं को मुआफ़ कर दे, सो इस वजेह से कि हम सब से पहले ईमान ले आए ."
रब्बुल आलमीन :--और हमने मूसा को हुक्म भेजा कि मेरे इन बन्दों को रातो रात बाहर निकल ले जाओ .
फिरौन : -- "तुम लोगों का पीछा किया जाएगा, उसने पीछा करने के लिए शहरों में चपरासी दौड़ाए कि ये लोग थोड़ी सी जमाअत हैं और इन लोगों ने हमको बहुत गुस्सा दिलाया है और हम सब एक मुसल्लह जमाअत हैं''
रब्बुल आलमीन :-- ''गरज हम ने उनको बागों से और चश्मों से और खज़ानों से और उमदः मकानों से बाहर किया. और उसके बाद बनी इस्राईल को उनका मालिक बना दिया. गरज़ सूरज निकलने से पहले उनको जा लिया. फिर जब दोनों जमाअतें एक दूसरे को देखने लगीं तो मूसा के हमराही कहने लगे कि बस, हम तो हाथ आ गए ''
मूसा :-- "हरगिज़ नहीं ! क्यूं कि मेरे हमराह मेरा परवर दिगार है, वह मुझको अभी रास्ता बतला देगा "
रब्बुल आलमीन :--''फिर हमने हुक्म दिया कि अपने असा को दरिया में मारो, चुनाँच वह दरिया फट गया और हर हिस्सा इतना था जैसे बड़ा पहाड़. हमने दूसरे फरीक़ को भी मौके के करीब पहुँचा दिया और हम ने मूसा को और उनके साथ वालों को बचा लिया फिर दूसरे को ग़र्क़ कर दिया और इस वाकिए में बड़ी इबरत है और बावजूद इसके बहुत से लोग ईमान नहीं लाते और आप का रब बहुत ज़बरदस्त है और बड़ा मेहरबान है."
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१०-६८ )

मूसा की कहानी कई बार कुरआन में आती है, मुख्तलिफ़ अंदाज़ में. एक कहानी मैंने बतौर नमूना पेश किया आप के समझ में आए या न आए मगर है ये खालिस तर्जुमा, बगैर मुतरज्जिम की बैसाखियों के. कोई अल्लाह तो इतना बदजौक हो नहीं सकता कि अपनी बात को इस फूहड़ ढंग से कहे उसकी क्या मजबूरी हो सकती है? ये मजबूरी तो मुहम्मद की है कि उनको बात करने तमीज़ भी नहीं थी. ऐसी ही हर यहूदी हस्तियों की मुहम्मद ने दुर्गत की है. अल्लाह को जानिबदार, चालबाज़, झूठा और जालसाज़ हर कहानी में साबित किया गया है.
******************************************************************************************************
 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान