Wednesday 26 January 2011

सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३ (2)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३

ईमान दारी बनाम इस्लाम दारी
ईमान दारी बनाम इस्लाम दारी इस्लाम ने हर मुक़द्दस अल्फ़ाज़ को अपनी बद नियती का शिकार बना डाला. ईमान बहुत ही अहम् लफ़्ज़ है जो मेरी मालूमात तक इसका हम पल्ला (पर्याय वाची) लफ़्ज़ कहीं और नहीं. ईमान दारी में पूरी सच्चाई के साथ साथ फितरत की गवाई भी शामिल हो और ज़मीर की आवाज़ भी. जो फितरी सच हो वही ईमान दारी है. ईमान दारी गैर जानिबदारी की अलामत होती है और मसलेहत से परे. बहुत जिसारत की ज़रुरत है इस को अपनाने के लिए. इस्लाम्दारी दर असल गुलामी होती है मुहम्मदी अल्लाह की, जिसका फ़रमान हर सूरत से मुसलमान को मानना पड़ता है, ख्वाह कि वह कितनी भी बे ईमानी हो.
लीजिए इस्लाम दारी हाज़िर है - - -
"अल्लाह ने बड़ा उम्दा कलाम नाज़िल फ़रमाया है जो ऐसी किताब है कि बाहम मिलती जुलती है, बारहा दोहराई गयी है. जिस से उन लोगों को जो अपने रब से डरते हैं, बदन काँप उठते हैं. फिर उनके बदन और दिल अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जह हो जाते हैं, ये अल्लाह की हिदायत है, जिसको चाहे इसके ज़रीए हिदायत करता है. और जिसको गुमराह करता है उसका कोई हादी नहीं." क्या यह ईमान दारी है ?सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (२३)उम्मी ने अपने अल्लम गल्लम किताब को तौरेत, ज़ुबूर और इंजील के बराबर साबित करने की कोशिश की है जिनके मुकाबिले में कुरआन कहीं ठहरती ही नहीं. जब तक मुसलमान इसके फरेब में क़ैद रहेंगे दुनिया के गुलाम बने रहेंगे. दुनिया बेवकूफों का फ़ायदा उठती है उसको बेवकूफी से छुटकारा नहीं दिलाती.

''हाँ! बेशक तेरे पास मेरी आयतें आई थीं, तूने इन्हें झुटलाया और तकब्बुर किया और काफिरों में शामिल हुवा.
आप कह दीजिए कि ए जाहिलो ! क्या फिर भी तुम मुझ से गैर अल्लाह की इबादत करने को कहते हो?
और इन लोगों ने अल्लाह की कुछ अज़मत न की, जैसी अज़मत करनी चाहिए थी. हालांकि सारी ज़मीन इसकी मुट्ठी में होगी, क़यामत के दिन और तमाम आसमान लिपटे होंगे इसके दाहिने हाथ में. वह पाक और बरतर है उन के शिर्क से " क्या यह ईमान दारी है ?
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २४ - आयत (५९-६८)
दुन्या का बद तरीन झूठा नाम निहाद पैगम्बर अपने जाल में फँसे मुसलामानों को कैसे कैसे मक्र से डरा रहा है. इसे किसी ताक़त का डर न था, अल्लाह तो इसकी मुट्ठी में था. तखरीब का फ़नकार था, मुत्फंनी की ज़ेहनी परवाज़ देखे कि कहता है "ज़मीन इसकी मुट्ठी में होगी, क़यामत के दिन और तमाम आसमान लिपटे होंगे इसके दाहिने हाथ में." क्यूंकि बाएँ हाथ से अपना पिछवाडा धो रहा होगा इसका अल्लाह.


"और सूर में फूँक मार दी जायगी और होश उड़ जाएँगे तमाम ज़मीन और आसमान वालों के, मगर जिसको अल्लाह चाहे. फिर इसमें दोबारा फूँक मार दी जायगी, अचानक सब के सब खड़े हो जाएँगे और देखने लगेंगे और ज़मीन अपने रब के नूर से रौशन हो जाएगी और नामा ए आमाल रख दिया जायगा और उन पर ज़ुल्म न होगा और हर शख्स को इसके आमाल का पूरा पूरा बदला दिया जायगा. और सबके कामों को खूब जानता है और जो काफ़िर हैं वह जहन्नम की तरफ़ हाँके जाएँगे गिरोह दर गिरोह बना कर, यहाँ तक कि जब दोज़ख के पास पहुँचेंगे तो इसके दरवाजे खोल दिए जाएंगे और इनमें से दोज़ख के मुहाफ़िज़ फ़रिश्ते कहेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम ही में से कोई तुम्हारे पैगम्बर नहीं आए थे? जो लोगों को तुम्हारे रब की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे. और तुम को तुम्हारे इन दिनों के आने से डराया करते थे. काफ़िर कहेंगे हाँ आए तो थे मगर अज़ाब का वादा काफिरों से पूरा होके रहा. फिर कहा जायगा कि जहन्नम के दरवाजे में दाखिल हो जाओ और हमेशा इसी में रहो."
क्या यह ईमान दारी है ?सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २४ - आयत (६८-७२)क़यामत की ये नई मंज़र कशी है. न कब्रें शक हुईं, न मुर्दे उट्ठे, न कोई हौल न हंगामा आराई. लगता है जिन्दों में ही यौम हिसाब है.
सूर की अचानक आवाज़ सुन कर लोग चौंकेंगे उनके कान खड़े हुए तो दोबारा आवाज़ आई, वह खुद खड़े हो गए, ज़मीन अपने रब की रौशनी से रौशन हो गई, बड़ा ही दिलकश नज़ारा होगा. गवाहों के सामने लोगों के आमाल नामे बांटे जाएँगे, किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं हुवा. बस काफ़िर दोज़ख की जानिब हाँके गए. दोज़ख के दरवाजे पर खड़ा दरोगा उनसे पूछता है अमा यार क्या तुम्हारे पास तुम ही में से कोई तुम्हारे पैगम्बर नहीं आए थे? जो लोगों को तुम्हारे रब की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे. और तुम को तुम्हारे इन दिनों के आने से डराया करते थे.
काफ़िर कहेंगे आए तो थे एक चूतिया टाईप के उनकी मानता तो मेरी दुन्या भी खराब हो जाती.
अगर आप के पास वक़्त है तो पूरी ईमान दारी के साथ फ़ितरत को गवाह बना कर इन क़ुरआनी आयतों का मुतालिआ करें. मुतराज्जिम की बैसाखियों का सहारा क़तई न लें ज़ाहिर है वह उसकी बातें हैं, अल्लाह की नहीं. मगर अगर आप गैर फ़ितरी बातो पर यक़ीन रखते हैं कि २+२=५ हो सकता है तो आप कोई ज़हमत न करें और अपनी दुन्या में महदूद रहें
.
मुसलामानों के लिए इस से बढ़ कर कोई बात नहीं हो सकती कि कुरआन को अपनी समझ से पढ़ें और अपने ज़ेहन से समझें. जिस क़दर आप समझेंगे, कुरआन बस वही है. जो दूसरा समझाएगा वह झूट होगा. अपने शऊर, अपनी तमाज़त और अपने एहसासात को हाज़िर करके मुहम्मद की तहरीक को परखें. आपको इस बात का ख्याल रहे कि आजकी इंसानी क़द्रें क्या हैं, साइंसटिफिक टुरुथ क्या है. मत लिहाज़ करें मस्लेहतों का, सदाक़त के आगे. बहुत जल्द सच्चाइयों की ठोस सतह पर अपने आप को खडा पाएँगे.
आप अगर मुआमले को समझते हैं तो आप हज़ारों में एक हैं, अगर आप सच की राह पर गामज़न हुए तो हज़ारों आपके पीछे होंगे. इंसान को इन मज़हबी खुराफ़ात से नजात दिलाइए.

कलामे डीगराँ"हुकूकुल इबाद, खैर ओ खैरात, कुवें और तालाबों की तामीर, गाय बैल और कुत्ते जैसे फायदे मंद जानवरों का पालन, मियाँ और बीवी का एक दूसरे पर यक़ीन, अनाज का भरपूर पैदा वार, ऐश ओ अय्याशी से दूर, पराए माल और पराई औरत पर नज़रे बद नहीं, गुस्सा लालच, हसद, चोरी झूट और शराब से दूर रहो. मेहनत, सदाक़त और तालीम के करीब रहो.""ज़र्थुर्ष्ट "पारसी धर्मइसे कहते हैं कलाम पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३ (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३ (1)

 
"यह नाज़िल की हुई किताब है अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाले की तरफ से "
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (१)नाज़िल और ग़ालिब यह दोनों अल्फाज़ मकरूह हैं अगर रहमान और रहीम, वह खालिक़ ए कायनात कोई है तो.
नाज़िल वह शै होती है जो नाज़ला हो. वबाई हालत में कोई आफ़त नाज़ला होती है.
ग़ालिब वह सूरतें होती हैं जिसका वजूद पर ग़लबा हो, जो हठ धर्मी और ना इंसाफी का एक पहलू होता है. अल्लाह अगर नाज़ला और ग़लबा में रखता है तो वह ख़ालिक़ हो ही नहीं सकता.
कुदरत तो हर शै को उसके वजूद में आने के लिए मददगार होती है. वजूद का मज़ा लेकर वह उसे फ़ना की तरफ़ माइल कर देती है.
इस्लाम, का अल्लाह और इसका रसूल मखलूक के लिए नाज़ला और ग़लबा ही हैं. इसमें रहकर क़ुदरत की बख्शी हुई नेमतों से महरूमी है .

"अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मखलूक में से जिसको चाहता है मुन्तखिब फ़रमाता है. वह पाक है और ऐसा है जो वाहिद है, ज़बरदस्त है."सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (४)ईसा को खुदा का बेटा कहने वाले ईसाइयों पर वार करते हुए कुरआन में बार बार कहा गया है कि "लम यलिद वलम यूलद" न वह किसी का बाप है और न किसी का बेटा. अब मुहम्मद कह रहे है.
"अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मखलूक में से जिसको चाहता है मुन्तखिब फ़रमाता है."कुरान तज़ाद (विरोधाभास) का का अफ़साना है. मुहम्मद खुद इस बात के इमकानात की सूरत पैदा कर रहे हैं
 
"और तुम्हारे नफ़े के लिए आठ नर मादा चार पायों को पैदा किये और तुम्हें माँ के पेट में एक कैफियत के बाद दूसरी कैफियत में बनाता है, तीन तारीखों में. ये है अल्लाह तुम्हारा रब, इसी की सल्तनत है. इसके सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं. सो तुम कहाँ फिरे चले जा रहे हो?"सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (६)कुरआन के ख़िलाफ़ अब इससे ज़्यादः और क्या सुबूत हो सकता है कि यह किसी अनपढ़, मूरख और कठ मुल्ले की पोथी है.
वह सिर्फ आठ चौपायों की ख़बर रखता है, उसे इस बात की कहाँ ख़बर है कि एक एक चौपायों की सौ सौ इक्साम हो सकती हैं. हमल में इंसान की तीन सूरतें भी उसके जिहालत का सुबूत है, पिछले बाबों में इसका ज़िक्र आ चुका है.
 
"ऐ बन्दों! मुझ से डरो. और जो लोग शैतान की इबादत करने से बचते हैं, अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जे होते हैं, वह मुस्तहक खुश ख़बरी सुनाने के हैं, सो आप मेरे इन बन्दों को खुश ख़बरी सुना दीजिए जो इस कलाम को कान लगा कर सुनते हैं, फिर उसकी अच्छी अच्छी बातों पर चलते हैं, यही हैं जिन को अल्लाह ने हिदायत की. और यही हैं जो अहले अक्ल हैं."सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (१७-१८)कोई खुदा यह कह सकता है क्या?
दर पर्दा मुहम्मद ही अल्लाह बने हुए हैं ये बात जिस दिन आम मुसलामानों की समझ में आ जाएगी इसी दिन उनको अपने बुजुगों के साथ ज़ुल्म ओ सितम के घाव नज़र आ जाएँगे.
कुरआन में एक बात भी अच्छी नहीं है अगर कोई है तो वह आलमी सच्चियों की सूरत है.
मुसलामानों कुरआन तुम्हें सिर्फ गुमराह करता है .

"लेकिन जो लोग अपने रब से डरते हैं उनके लिए बाला खाने है. जिन के ऊपर और बाला खाने हैं, जो बने बनाए तय्यार हैं. इसके नीचे नहरें चल रही हैं, ये अल्लाह ने वादा किया है. अल्लाह वादा खिलाफी नहीं करता. क्या तूने इस पर कभी नज़र नहीं की कि अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया फिर इसको ज़मीन के सोतों में दाखिल कर देता है, फिर इसके ज़रीए से खेतियाँ करता है जिसकी कई क़िस्में हैं, फिर वह खेती बिलकुल ख़ुश्क हो जाती है सो इनको तू ज़र्द देखता है, फिर इसको चूरा चूरा कर देता है. इसमें अहले अक्ल के लिए बड़ी इबरत है.सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (२०-२१)ए उम्मी! आजकल तेरे बाला खाने से लाख गुना बेहतर इंसानी पाखाने बन गए हैं. हज़ारों खाने वाली सैकड़ों मंज़िल की इमारतें खड़ी होकर तुझे मुँह चिढ़ा रही हैं. तूने मुसलामानों पर हराम कर रखी हैं इंसानी काविशों की बरकतें. तूने तो सिर्फ़ अपने ख़ानदान कुरैश की बेहतरी तक सोंचा था, अब तो हर एक बिरादरी में एक कठ मुल्ला, मुहम्मद बना बैठा है. उनके ऊपर मौलानाओं की टोली फ़तवा लिए बैठी है, औए इससे भी कोई बाग़ी हुआ तो मफ़िया सरगना सर काटने को तैयार है.कलामे दीगराँ - - -
"जो कुछ भी पूरी सच्चाई से नहीं कहा जा सकता, वह तक़रीर ए बोसीदा है, इस बुराई से नाकाम होना बद तरीन जहन्नम में जाना है."'दाव'
(चीनी धर्म)
इसे कहते हैं कलाम पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह साद - ३८- पारा २३ (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह साद - ३८- पारा २३ (2)



"और आप हमारे बन्दे अय्यूब को लीजिए जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि शैतान ने मुझे रंज ओ आज़ार पहुँचाया. अपना पाँव मारो यह नहाने का ठंडा पानी है और पीने का, और हम ने उनको उनका कुनबा अता किया और उनके साथ उनके बराबर और भी अपनी रहमत खास्सा के सबब और अहले अक्ल के याद गार रहने के सबब से और तुम हाथ में एक मुट्ठा सीकों का लो और इस से मारो और क़सम न तोड़ो. बेशक उनको मैं ने साबिर बनाया, अच्छे बन्दे थे कि बहुत रुजू होते थे.
" सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (४१-४२)
उम्मी में इतनी सलाहियत नहीं कि किसी बात को पूरी कर सके. इस खुराफात को दोहराते रहिए और नतीजा खुद अख्ज़ कीजिए.
अय्यूब एक खुदा तरस बन्दा था. वक़्त ने उसे बहुत नवाज़ा था. सात बेटे और तीन बेटियाँ थीं. सब अपने अपने घरों में खुश हाल थे. अय्यूब अपने मुल्क का अमीर तरीन इंसान था. उसके पास ७००० भेढं, तीन हज़ार ऊँट, एक हज़ार गाय बैल, ५०० गधे और बहुत से नौकर चाकर थे. एक दिन शैतान ने जाकर खुदा को भड़काया कि तू अय्यूब का माल मेरे हवाले कर दे, फिर देख वह तेरे लिए कितना बाक़ी बचता है? खुदा ने उसकी चुनौती कुबूल करली. शैतान की शैतानी से अय्यूब का कुनबा एक हादसे में ख़त्म हो जाता है, दूसरे दिन तमाम जानवर लुट जाते हैं. अचानक ये सब देख कर अय्यूब ने कहा जो हुवा सो हुवा, नंगे आए थे नंगे जाएँगे. वह बदस्तूर यादे इलाही में ग़र्क़ हो गया. फिर एक दिन शैतान खुदा के पास आता है और कहता है कि माना अय्यूब तुझे भूला नहीं और न तुझ से बेज़ार हुवा, मगर ज़रा उसको तू जिस्मानी मज़ा चखा तो देख वह कितना खरा उतरता है. खुदा ने कहा ठीक है, जा मैंने अय्यूब के जिस्म को तेरे हवाले किया, बस कि उसकी जान मत लेना. शैतान अय्यूब के जिस्म में ऐसे फोड़े निकालता है कि कपडा पहेनना भी उसे दूभर हो जाता. वह नंगा होकर अपने जिस्म पर राख की खाक पहेनने लगा. अय्यूब एक छोटे से कमरे में क़ैद होकर खुदा की इबादत करने लगा. वह अपने जोरू के तआने भी सुनता रहा. वह कहती - - -
कि अब ऐसे खुदा को कोसो जिसकी इबादत में लगे रहते हो. वह कहता नादान क्या मालिक से सब अच्छा ही अच्छा पाने की उम्मीद रखती है. (ये एक पौराणिक कथा है)
अय्यूब ने इस हालत में नज़में कही हैं,
नमूए पेश हैं - - -

ऐ मालिक! पीढ़ी दर पीढ़ी से तू हमारी पनाह बना चला आ रहा है,
उसके पहले जब परबत भी नहीं बने थे,
न ज़मीन थी, न कायनात थी,
तब भी इब्तेदा से लेकर इन्तहा तक,
ऐ माबूद तू ही रहा.
बे सबात (क्षण भंगुर) तू ही मिटटी में मिल जाने के लिए कहता है,
और फिर कहता है ऐ इंसानों की औलाद लौट आओ.
"क्यूँकि तुझे हज़ारों साल भी बीते हुए कल की तरह लगते है,
और वह जैसे रात का एक पहर हो.
तू आदमियों को उठा ले जाता है हर सुब्ह होने पर,
देखे हुए ख़्वाबों की तरह लगते हैं,
या बढ़ी हुई घास की तरह .
वह सुब्ह बढ़ती है और हरी होती है,
और शाम को कट जाती है और सूख जाती है.
सच मुच तेरे अज़ाब से हम बर्बाद हो गए हैं,
और जब तूने कहर ढाया तो हम घबरा गए थे,
हमारे गुनाहों को तूने मेरे सामने रखा,
ख़याल कर कि मेरी ज़िन्दगी कितनी मुख़्तसर है,
और तूने इंसानों को कितना फ़ानी बनाया है.
(२)
"ऐ खुदा मेरे पुख्खों का पूज्य तेरा शुक्र है,
तू पूजा के लायक है और क़ाबिले तारीफ़ है,
तेरे पाक और अज़मत वाले नामों को सलाम,
ऐ मुक़द्दस और पुर नूर पूज्य !
तेरे आगे सर ख़म करता हूँ,
ऐ आसमानी फरिश्तो और बदलो!
तुम भी शुक्र अदा करो.
ऐ ख़ल्क़ की तमाम मख्लूक़ !
उसको सलाम करो,
ऐ सूरज और चाँद खुदा का शुक्र अदा करो,
ऐ बारिश और ओस! खुदा का शुक्र अदा करो.
ऐ अतराफ़ की हवाओ! उसका शुक्र अदा करो- - -
यह है तौरेत में योब (अय्यूब) की सबक आमोज़ कहानी जिसे क़ुरआनी अल्लाह न चुरा पाता है और न चर पाता है.
"और हमारे बन्दे इब्राहीम, इसहाक़ और याकूब जो हाथों वाले और आँखों वाले थे - - - (?) और इस्माईल और अल लसीअ और ज़ुलकुफ्ल को भी याद कीजिए.- - -"
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (४५-४८)
जिन का भी नाम सुन रखा था मुहम्मद ने सब को उनका अल्लाह याद करने को कहता है,
हैरत की बात ये है कि सभी हाथों और आँखों वाले थे, उस से भी ज्यादः हैरत का मुक़ाम ये है कि आज और इस युग में भी मुसलमान इन बातों का यक़ीन करते हैं. इस बेहूदा और गुमराही की तबलीग़ भी करते हैं.
"एक नसीहत का मज़मून ये तो हो चुका और परहेज़ गारों के लिए अच्छा ठिकाना है. यानी हमेशा रहने के बागात जिनके दरवाज़े इनके लिए खुले होंगे. वह बागों में तकिया लगाए बैठे होंगे. वह वहाँ बहुत से मेवे और पीने की चीज़ (शराब) मंगवाएँ . और इनके पास नीची निगाह वालियाँ, हम उम्र होंगी. ये वह है जिनका तुम से रोज़े हिसाब आने का वादा किया जाता है और ये हमारी अता है . ये बात तो हो चुकी."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (५६-५७)
ये बात तो हो चुकी,
अब मुसलामानों को चाहिए कि इस बात में कुछ बात ढूंढें.
कौन सी नसीहत कहाँ है?
हलक़ तक शराब उतारने के बाद ही कोई ऐसी बहकी बहकी बातें करता है. जैसे बातों का क़र्ज़ उतारते हों कि ये बात तो हो चुकी .

"और एक जमाअत और आई जो तुम्हारे साथ घुस रही हैं, इन पर अल्लाह की मार. ये भी दोज़ख में घुस रहे हैं. वह कहेंगे बल्कि तुम्हारे ऊपर ही अल्लाह की मार. तुम ही तो ये हमारे आगे लाए हो, सो बहुत ही बुरा ठिकाना है, दुआ करेंगे ऐ हमारे परवर दिगार! इसको जो हमारे आगे लाया हो, उसको दूना अज़ाब देना."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (५९-६१)
शराब जंगे खैबर के बाद हराम हुई. ये आयतें यक़ीनन शराब की नशे की हालत में कही गई हैं. खुद पूरी सूरह गवाह हैं कि ऐसी बातें होश मंदी में नहीं की जाती.
"ये बात, यानी दोज़खियों का आपस में लड़ना झगड़ना बिलकुल सच्ची हैं. आप कह दीजिए कि मैं तो डराने वाला हूँ और बजुज़ अल्लाह वाहिद ओ ग़ालिब के कोई लायक़े इबादत नहीं है. और वह परवर दिगार है आसमान ओ ज़मीन का और उन चीजों का जो कि उसके दरमियान हैं, ज़बर दस्त बख्शने वाला."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (६४-६६)

"आप कह दीजिए कि ये अजीमुश्शान मज़मून है जिस से शायद तुम बे परवाह हो रहे हो. मुझको आलमे बाला की कुछ भी खबर न थी, झगड़ रहे थे."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (६६-६९)

सरफिरा, मजनू, दीवाना और पागल था वह ,
अपने ही बनाए हुए अल्लाह का रसूल,
जिसकी पैरवी में है दुन्या कि २०% आबादी,
वह अपने पैरों से उलटी तरफ़ भाग रही है.
यह रहा कुरआन का मज़मून ए नसीहत जिसमे आप नसीहत को तलाश करें.
पूरे कुरआन में, कुरआन की अज़मतों का बखान है,
जिसे सुन सुन कर आम मुसलमान इसे अक़दस की मीनार समझता है.
असलियत ये है कि कुरआन का ढिंढोरा ज्यादः है और इसमें मसाला कम. कम कहना भी ग़लत होगा कुछ है ही नहीं,
बल्कि जो कुछ है वह नफ़ी में है.
"ये बात, यानी दोज़खियों का आपस में लड़ना झगड़ना बिलकुल सच्ची हैं." कोई झूटा ही इस क़िस्म की बातें करता है,
इसके आलिम अवाम को कुरआन का मतलब समझने से मना करते हैं और इस अमल को गुनाह क़रार देते हैं कि आम लोग बात को उलटी समझेंगे. दर अस्ल वह ख़ायफ़ होते हैं कि कहीं अवाम की समझ में इसकी हक़ीक़त न आ जाए. तर्जुमा निगार ज़बान दानी की बहस छेड़ देते हैं जिससे पार पाना सब के बस की बात नहीं,
जब कि कुरआन इल्म, ज़बान, किसी फ़लसफ़े और किसी मंतिक से कोसों दूर है. इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाना बैसे भी रुसवाई बन जाता है या आगे बढ़ने पर मजहबी गुंडों का शिकार होना तय हो जाता है. मगर कौम को जागना ही पडेगा.
कलामे दीगराँ - - -
"जो दूर अनदेशी से फैसला नहीं करते हैं, पछतावा उसको पास ही खड़ा मिलता है" "कानफ़िव्यूशेश"
(चीनी मसलक)
इसे कहते हैं कलामे पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह साद - ३८- पारा २३ (1)

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह साद - ३८- पारा २३ (1)





फ़तह मक्का के बाद मुसलामानों में दो बाअमल गिरोह ख़ास कर वजूद में आए जिन का दबदबा पूरे खित्ता ए अरब में क़ायम हो गया. पहला था तलवार का क़ला बाज़ और दूसरा था क़लम बाज़ी का क़ला बाज़. अहले तलवार जैसे भी रहे हों बहर हाल अपनी जान की बाज़ी लगा कर अपनी रोटी हलाल करते मगर इन क़लम के बाज़ी गरों ने आलमे इंसानियत को जो नुकसान पहुँचाया है उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती. अपनी तन आसानी के लिए इन ज़मीर फरोशों ने मुहम्मद की असली तसवीर का नकशा ही उल्टा कर दिया. इन्हों ने कुरआन की लग्वियात को अज़मत का गहवारा बना दिया. यह आपस में झगड़ते हुए मुबालगा आमेज़ी (अतिशोक्तियाँ )में एक दूसरे को पछाड़ते हुए, झूट के पुल बांधते रहे. कुरआन और कुछ असली हदीसों में आज भी मुहम्मद की असली तस्वीर सफेद और सियाह रंगों में देखी जा सकती है. इन्हों ने हक़ीक़त की बुनियाद को खिसका कर झूट की बुन्यादें रखीं और उस पर इमारत खड़ी कर दी. -
कहते हैं कि इतिहास कार किसी हद तक ईमान दार होते हैं मगर इस्लामी इतिहास कारों ने तारीख़ को अपने अक़ीदे में ढाल कर दुन्या को परोसा.
"मुकम्मल तारीख ए इस्लाम" का एक सफ़ा मुलाहिज़ा हो - - -
"हज़रात अब्दुल्ला (मुहम्मद के बाप) के इंतेक़ाल के वक़्त हज़रात आमना हामिला थीं, गोया रसूल अल्लाह सल्ललाह - - शिकम मादरी में ही थे कि यतीम हो गए. आप अपने वालिद के वफ़ात के दो माह बाद १२ रबीउल अव्वल सन १ हिजरी मुताबिक ५७० ईसवी में तवल्लुद (पैदा) हुए. आप के पैदा होते ही एक नूर सा ज़ाहिर हुवा, जिस से सारा मुल्क रौशन हो गया. विलादत के फ़ौरन बाद ही आपने (मुहम्मद ने) सजदा किया और अपना सर उठा कर फरमाया " अल्लाह होअक्बर वला इलाहा इल्लिल्लाह लसना रसूल लिल्लाह "
जब आप पैदा हुए तो सारी ज़मीन लरज़ गई. दर्याय दजला इस क़दर उमड़ा कि इसका पानी कनारों से उबलने लगा. ज़लज़ले से कसरा के महल के चौदह कँगूरे गिर गए. आतिश परस्तों के आतिश कदे जो हज़ारों बरस से रौशन थे, खुद बख़ुद बुझ गए. आप कुदरती तौर पर मख्तून ( खतना किए हुए) थे और आप के दोनों शाने के दरमियान मोहरे नबूवत मौजूद थी.
रसूल अल्लाह सालअम निहायत तन ओ मंद और तंदुरुस्त पैदा हुए. आप के जिस्म में बढ़ने की कूव्कत आप की उम्र के मुकाबिले में बहुत ज़्यादः थी. जब आप तीन महीने के थे तो खड़े होने लगे और जब सात महीने के हुए तो चलने लगे. एक साल की उम्र में तो आप तीर कमान लिए बच्चों के साथ दौड़े दौड़े फिरने लगे. और ऐसी बातें करने लगे थे कि सुनने वालों को आप की अक़ल पर हैरत होने लगी."
गौर तलब है कि किस क़दर गैर फ़ितरी बातें पूरे यकीन के साथ लिख कर सादा लौह अवाम को पिलाई जा रही हैं. अगर कोई बच्चा पैदा होते ही सजदा में जा कर दुआ गो हो जाता तो समाज उसे उसी दिन से सजदा करने लगता. न कि वह हलीमा दाई की बकरियां चराने पर मजबूर होता. एक साल की उसकी कार गुजारियां देख कर ज़माना उसकी ज़यारत करने आता न कि बरसों वह गुमनामी की हालत में पड़ा रहता.

कबीलाई माहौल में पैदा होने वाले बच्चे की तारीखे पैदाइश भी गैर मुस्तनद है. रसूल और इस्लाम पर लाखों किताबें लिखी जा चुकी हैं. और अभी भी लिखी जा रही हैं जो दिन बदिन सच पर झूट की परतें बिछाने का कम करती हैं. इन्हीं परतों में मुसलामानों की ज़ेहन दबे हुए हैं.
चंगेज़ खान ने ला शुऊरी तौर पर एक भला काम ये किया था जब कि दमिश्क़ की लाइब्रेरी में रखी लाखों इस्लामी किताबों को इकठ्ठा कराके आलिमो से कहा था कि इनको खाओ. ऐसा न करने पर आलिमो को वह सज़ा दी थी कि तारीख उसको भुला न सकती. उसने पूरी लाइब्रेरी आग के हवाले कर दिया था और आलिमों को जहन्नम रसीदा. आज भी इन इल्म फरोशों के लिए ज़रुरत है किसी चंगेज़ खान की.
इस सूरह में मुहम्मद की पूरी ज़ेहनी बे एतदाली देखी जा सकती है. उनके कलाम को नीम पागल की बडबड कहा जा सकता है. इसे क़लम गीर करना जितना मुहाल होगा इस से ज़्यादः पढने वाले को पचा पाना; उस वक़्त के लोगों ने मुहम्मद को जो शायरे दीवाना कहा था, उसके बाद कुछ नहीं कहा जा सकता.
बतौर नमूना कुछ आयतें पेश हैं - -
-
"साद"मुहम्मदी अल्लाह का छू मंतर.

"क़सम है कुरआन की जो नसीहत से पुर है बल्कि ये कुफ्फर तअस्सुब (पक्ष पात) और मुखालिफ़त में हैं. इनसे पहले बहुत सी उम्मतों को हम हलाक़ कर चुके हैं, सो इन्हों ने बड़ी हाय पुकार की थी. और वह वक़्त खलासी का न था. और इन कुफ्फर कुरैश ने इस पर तअज्जुब किया कि इनके पास इनमें ही से कोई पैगम्बर डराने वाला आ गया. और कहने लगे ये शख्स साहिर और झूठा है. क्या ये सच्चा हो सकता है? क्या हम सब में से इसी के ऊपर कलाम इलाही नाज़िल होता है, बल्कि ये लोग मेरी वह्यी की तरफ़ से शक में हैं, बल्कि अभी उन्हों ने मेरे एक अज़ाब का मज़ा नहीं चक्खा "सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (१-८)मुहम्मद की कबीलाई लड़ाई थी जो बद किस्मती से बढ़ते बढ़ते आलिमी बन गई. हम मुसलमानाने आलम एक ही नहीं सारे अज़ाबों का मज़ा सदियों से चखते चले आ रहे हैं. अब तो चखने की बजाए छक रहे हैं.


"और हमारे बन्दे दाऊद को याद कीजिए जो निहायत क़ुदरत और रहमत वाले थे. वह बहुत रुजू करने वाले थे. हमने पहाड़ों को हुक्म दे रखा था कि उनके साथ सुब्ह ओ शाम तस्बीह किया करें. और परिंदों को भी, जमा हो जाते थे. सब उनकी वजेह से मशगूले ज़िक्र (ईश गान) हो जाते थे."सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (१९-२०)दाऊद एक मामूली चरवाहा था और गोफन चलने में माहिर था. एक सेना पति को गोफ्ने की मार से चित करने के बाद वह यहूदी एक लुटेरा डाकू बन गया था. फिलस्तीनियो में लूटमार करता हुवा एक दिन बादशाह बन गया. वह मुहम्मद की तरह ही शायर था. उसकी नज़्मों को ही ज़ुबूर कहते हैं. लम्बी उम्र पाई थी और बुढ़ापे में सर्दियों से परेशान रहता था. इलाज के लिए उसके मातहतों ने उसके लिए मुल्क कि सबसे खूसूरत नव उम्र लड़की से शादी कर करवा दिया था. उसके मरने के बाद उसका लड़का उस लड़की का आशिक बन गया था जिसे दाऊद पुत्र सुलेमान ने धोके से मरवा दिया था. दाऊद आखरी उम्र के पड़ाव में बुत परस्त (मूर्ति पूजक) हो गया था. (तौरेत)
मुहम्मद पहाड़ों और परिंदों से उसके साथ तस्बीह करवा के पहाड़ ऐसा झूट गढ़ रहे हैं.


हमेसा की तरह बेज़ार करने वाला क़िस्सा मुहम्मदी अल्लाह का देखिए- - -
"दो अफ़राद दीवार फान्द कर दाऊद के इबादत खाने में घुस आते हैं, उनमें से एक कहता है कि आप डरें मत. हम दोनों भाई भाई हैं. आप हमारा फ़ैसला कर दीजिए. हम लोगों के पास सौ अशर्फियाँ हैं, मेरे पास एक और इसके पास ९९ . ये कहता है ये भी मुझे दे डाल ताकि मेरी सौ पूरी हो जाएँ. दाऊद इसे ज़ुल्म क़रार देता हुवा कहता है, अक्सर साझीदार ज़ुल्म करने लगते हैं. - - -
इसके बाद मुहम्मद तब्लिगे इस्लाम करने लगते है और क़िस्सा अधूरा रह जाता है. "
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (२२-२४)दाऊद की कहानी के बाद अल्लाह मुहम्मद के कान में फुसकता है कि अब अय्यूब की कहानी गढ़ो- - -

(अगली क़िस्त में पढ़ें)कलामे दीगराँ - - -"ए इलाही! इनके अन्दर खौफ़ पैदा कर, कौमे अपने आप को इंसान ही मानें"
"तौरेत"
(यहूदी मसलक )
इसे कहते हैं कलामे पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 25 January 2011

सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा -२३ (2)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा -२३ (2)
अब आइए क़ुरआनी अल्लाह के रागमाले पर - - -  
"और इन से एक कहने वाला कहेगा कि मेरा एक साथी था. कहा करता था कि क्या तू बअस ( अल्लाह की ओर से नियुक्तियाँ) के मुअतकिदीन (आस्थावान) में से है? क्या जब हम मर जाएँगे तो, मिट्टियाँ और हड्डियाँ हो जाएगे? तो क्या हम जज़ा, सज़ा दिए जाएँगे? इरशाद होगा कि क्या तुम झाँक कर देखना चाहोगे, तो वह शख्स झाँकेगा तो वह उसको बीच जहन्नम में देखेगा. कहेगा अल्लाह की क़सम, तू मुझे तबाह ही करने वाला था"सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(५१-५६)
कुरआन की ये बेहूदा कसरत मुसलमानों को क्या दे सकती हैं जिसके लिए ये मरने मारने के लिए तैयार रहते हैं. मुहम्मदी अल्लाह की बातों में कहीं कोई दम है? कोई दुरुस्तगी है?


"हमने उस दरख़्त को ज़ालिमों के लिए मूजिबे इम्तेहान बनाया. वह एक दरख़्त है ज़कूम, जो दोज़ख के गढ़ों में से निकलता है. इसके फल ऐसे हैं जैसे साँप के फन, तो दोज़खी इस को खाएँगे. और इसी से अपना पेट भरेंगे. फिर इन्हें खौलता हुवा पानी, पीप मिला कर पिलाया जायगा."सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(६३-६७)
नफ़रत होती है, इन क़ुरआनी आयातों को पढ़ कर, क्या आप भी ऐसा महसूस करते हैं? तो
ऐसे अल्लाह को झाड़ू मारिए जो अपने ही बन्दों को साथ ऐसा सुलूक करता है.
"बेशक यूनुस भी पैगम्बरों में से थे. जब वह भाग कर भरी हुई कश्ती के पास पहुँचे तो वह शरीके क़ुरा न हुए, तो यहीं वह मुलजिम में ठहरे. फिर इन्हें मछली ने साबित निगल लिया और ये अपने आपको मलामत कर रहे थे. गर वह तस्बीह करने वाले न होते तो क़यामत तक मछली के पेट में पड़े रहते. और हम ने उन पर एक बेलदार दरख़्त भी उगा दिया और हम ने उनको एक लाख से भी ज़्यादः आदमियों पर पैगम्बर बना कर भेजा"सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१३९-१४७)यूनुस की कहानी भी तौरेत से ली गई है. वहाँ इनको तीन दिनों तक मगर मछ के पेट से जिंदा निकला जाता है. यहाँ मछली के पेट में क़यामत तक रहने की बात है, मुहम्मद उनके जिस्म पर बेलदार झाड़ उगा देते हैं, ये कमाल की पुडिया है. मज़हबी किताबों में सभी कुछ कल्पित होता है.


"और हाँ! हमने फरिशों को क्या औरत बनाया है? और वह देख रहे थे, खूब सुन रहे थे कि वह अपनी सुखन तराशी से कहते हैं कि अल्लाह साहिबे औलाद है और वह यक़ीनन झूठे है.क्या अल्लाह ने बेटों के मुकाबिले में बेटियाँ ज़्यादः पसंद कीं? तुम को क्या हो गया, तुम कैसा हुक्म लगाते हो?"सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१५४)ईसाइयों पर इलज़ाम है कि वह फरिश्तों को जिन्सियात से मुबर्रा, अल्लाह की मखलूक मानते है, मुहम्मद इसे औरत होना समझते हैं. वह कहते हैं कि कोई मौजूद था, देख और सुन रहा था कि औरत साबित करे. जैसे इनको सब के सामने अल्लाह ने पैगम्बर मुक़र्रर किया हो, जैसा कि अजानों में एलान होता है ''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह"
मुसलमान कहते हैं कि उनके नबी को लडकियां पसँद थीं. यहाँ अल्लाह की तरफ़ इशारा बतला रहा है कि मुहम्मद लड़का पसँद करते थे जिस से वह महरूम रहे.


"और उन लोगों ने अल्लाह में और जिन्नात में रिश्ते दारियां क़रार दिए है. और जिन्नात हैं, खुद उनका अक़ीदा है कि वह गिरफ्तार होंगे. अल्लाह इन बातों से पाक है.जो ये बयान करते हैं.सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१६०)मुहम्मद की ये बेहूदः बकवास कोई सम्त नहीं देती कि अपने मज़हब को मानते हैं या जिन्नातों के अक़ीदे को. कौन कहता है कि जिन्नात अल्लाह के रिश्तेदार हैं. ?

"और हमारे खास बन्दे यानी पैगम्बरों के लिए पहले ही ये मुक़र्रर हो चुका है कि बेशक वही ग़ालिब किए जाएँगे. और हमारा ही लश्कर ग़ालिब रहता है, तो आप थोड़े ज़माने तक सब्र करें."सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१७३-७४)
डंडे लाठी और तलवार के ज़ोर पर कुछ दिनों के लिए ग़ालिब ज़रूर हो गए थे मगर उसके बाद इतिहास बतलाता है कि हर जगह मगलूब हो. अपना मुल्क रखते हुए भी दूसरे मुल्कों के रहम करम पर हो.
कलामे दीगराँ - - -'दुन्या का खुश नसीब तरीन इंसान वह है जो किसी का ऋणी न हो"
'महा भारत'
(हिदू धर्म)
इसे कहते हैं कलामे पाक


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३

धरती की तमाम मख्लूक़ जब्र और ना इंसाफी की राहों पर गामज़न है. कुदरत का शायद यही निज़ाम है. आप गौर करें की शेर ज़्यादः हिस्सा जानवर को अपना शिकार बना लेता है, बड़ी मछली तमाम छोटियों को निगल जाती है, आसमान पर आज़ाद उड़ रहे परिंदों को भी इस बात का खटका रहता है कि वह किसी का शिकार न हो जाए. यहाँ तक कि एक पेड़ भी दूसरे पेड़ का शोषण करते हैं. सूरज जैसे रौशन बड़े सितारे के होने के बावजूद धरती के ज़्यादः हिस्से पर अँधेरा (अंधेर) का ही राज क़ायम है. मख्लूक़ के लिए मख्लूक़ का ही डर नहीं बल्कि कुदरती आपदाओं का ख़तरा भी लाहक़ है. तूफ़ान, बाढ़, सूखा, ज़लज़ला और जंग ओ जदाल का ख़तरा उनके सर पर हर पल मड्लाया करते है. सिर्फ इंसान ऐसी मख्लूक़ है कि जिसको क़ुदरत ने दिल के साथ साथ दिमाग भी दिया है और दोनों का तालमेल भी रखा है. शायद क़ुदरत ने इंसान को ही धरती का निज़ाम सौंपा है. अशरफुल मख्लूकात इसको उस सूरत में कहा जा सकता है जब यह समझदार होने के साथ साथ शरीफ़ भी हो जाए. इंसान इंसान के साथ ही नहीं तमाम मख्लूक़ के साथ इन्साफ करने की सलाहियत रखता है कि उसकी शराफ़त और ज़हानत में ताल मेल बन जाए . इंसान बनास्प्तियों और खनिजों का भी उद्धार कर सकता है, कुदरत के क़हरों का भी मुकाबिला कर सकता है. बस कि वह जब इस पर आमादा हो जाए. इंसानियत से पुर इंसान ही एक दिन इस ज़मीन का खुदा होगा.
***
मुसलामानों को क़समें खाने की कुछ ज़्यादः ही आदत है जो कि इसे विरासत में इस्लाम से मिली है. मुहम्मदी अल्लाह भी क़स्में खाने में पेश पेश है और इसकी क़समें अजीबो गरीब है. उसके बन्दे उसकी क़सम खाते हैं, तो अल्लाह जवाब में अपनी मख्लूक़ की क़समें खाता है, मजबूर है अपनी हेकड़ी में कि उससे बड़ा कोई है नहीं कि जिसकी क़समें खा कर वह अपने बन्दों को यक़ीन दिला सके, उसके कोई माँ बाप नहीं कि जिनको क़ुरबान कर सके. इस लिए वह अपने मख्लूक़ और तख्लीक़ की क़समें खाता है. क़समें झूट के तराज़ू में पासंग (पसंघा) का काम करती हैं वर्ना आवाज़ के "ना का मतलब ना और हाँ का मतलब हाँ" ही इंसान की क़समें होनी चाहिए. अल्लाह हर चीज़ का खालिक़ है, सब चीज़ें उसकी तख्लीक़ है, जैसे कुम्हार की तख्लीक़ माटी के बने हांड़ी,कूंडे वगैरा हैं, अब ऐसे में कोई कुम्हार अगर अपनी हांड़ी और कूंडे की क़समें खाए तो कैसा लगेगा? और वह टूट जाएँ तो कोई मुज़ायका नहीं, कौन इसकी सज़ा देने वाला है. कुरआन माटी की हांड़ी से ज़्यादः है भी कुछ नहीं.
अब देखिए कि इस सूरह में मुहम्मद अल्लाह का रूप धारण करके क्या कहते हैं.
"क़सम है उन फरिश्तों की जो सफ़ बांधे खड़े रहते हैं. फिर उन फरिश्तों की जो बंदिश करने वाले हैं. फिर उन फरिश्तों की जो ज़िक्र की तिलावत करने वाले हैं. कि तुम्हारा माबूद (साध्य) एक है. वह परवर दिगार है, आसमानों और ज़मीन का. और जो कुछ उसके दरमियान है. और परवर दिगार का है, तुलूअ करने वाले मवाके का, हमीं ने रौनक दी है उस तरफ़ वाले आसमान को, एक अजीब आराइश के साथ और हिफाज़त भी की है, हर शरीर शैतान से. और शयातीन आलमे-बाला की तरफ कान भी नहीं लगा सकते और हर तरफ़ मार धक्याय जाते हैं और उनके लिए दायमी अज़ाब होगा. मगर जो शैतान कुछ खबर ले ही भागते हैं तो एक दहकता हुवा शोला उन्हें उनके पीछे लग लेता है."
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१-१०)
क़ुरआन में कसमों का सिसिला शुरू हो गया है जो हैरत नाकी तक पहुँचेगा. अल्लाह उन फरिश्तों की क़समें खा रह है जो नमाज़ियों की तरह सफ़ बांधे खड़े रहते हैं. या फिर उन फरिश्तों की क़समें जो बंदिश करने में लगे हैं. मुहम्मदी अल्लाह ये नहीं बतलाता कि किन उमूर की बंदिश करते हैं, जब कि अल्लाह खुद हर काम को इशारों पर करने की तनहा कूवत रखता है. अल्लाह उन मुकामों की क़सम भी खाता है जहाँ से उसके मुताबिक सूरज, चाँद सितारे निकलते हैं. इन मुकामों को रौनक देने के एलान के साथ साथ, वह इनको महफूज़ रखने का दावा भी करता है. शैतान को ही अपने बाद कुदरत देने वाला अल्लाह इस से और इसके परिवार वालों से अपनी तख्लीकें बचाता भी रहता है. ये आयतें आसमान पर तारे टूटते रहने के मंज़र को देख कर मुहम्मद ने गढ़ी है. इतने हिफ़ाज़ती इंतेज़ाम होने के बाद भी शैतान अल्लाह की प्लानिग की ख़बरें उड़ा ही लेता है जिसके पीछे एक दहकता हुवा शोला लग जाता है फिर भी शैतान बच निकलने में कामयाब हो जाता है, आगे आयातों में है कि वह ख़बरें शैतान जादू गरों को दे देता है.
"तो आप उन लोगों से पूछिए कि वह लोग बनावट में ज़्यादः सख्त हैं या हमारी पैदा की हुई ये चीजें? हमने इन लोगों को चिपकती हुई मिटटी से पैदा किया है, बल्कि आप तअज्जुब करते हैं और ये लोग तमस्खुर करते हैं.और वह लोग ऐसे थे कि जब उन से कहा जाता था कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद ए बर हक़ नहीं, तो तकब्बुर किया करते थे और कहा करते थे कि क्या हम अपने माबूदों को एक शायरे दीवाना की वजेह से छोड़ दें. जो लोग खास किए हुए बन्दे हैं उनके लिए गिज़ाएँ और मेवे हैं और वह लोग बड़ी इज्ज़त से आराम के साथ बाग़ों में तख्तों पर आमने सामने बैठे होंगे. इनके पास ऐसा जामे शाराब लाया जायगा जो बहती हुई शराब से भरा जायगा. सफ़ेद होगी, पीने वालों को लज़ीज़ होगी. न इसमें दर्दे सर न अक़लों में फ़ितूर आयगा. और इनके पास नीची निगाह वाली बड़ी बड़ी आँखों वाली होंगी, गोया वह बैज़े हो जो छुपे हुए रखे हों."
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(११-४९)
अल्लाह बन्दों को चैलेज करता है कि वह उनसे बड़ा बनावट का कारीगर है. बन्दे जवाब दें तो दे सकते है कि तूने ज़र्रात बनाए, हमने उनसे आइटम बम बनाया. जिससे सारी दुन्या को तवानाई मिलती है, तू क्या ऐसा कर सकता है?
तूने दरख़्त बनाया हमने उनसे फर्नीचर बनाया, क्या तू ऐसा कर सकता है?
हम इंसान आज हवा में उड़ रहे हैं जिसको ज़माना देखता है, तू तेरे फ़रिश्ते, तेरे पैगम्बर कभी उड़ते हुए देखे गए हैं?
मेरी लड़ाई अल्लाह से नहीं है, वह है तो हुवा करे, जब कभी सामने आएगा देख लेंगे, मेरी लड़ाई उन लोगों से है जो अल्लाह के नाम का धंधा करते हैं.
एक और नया शोशा कि हमने " इन लोगों को चिपकती हुई मिटटी से पैदा किया है" ऐसी बातों पर कौन न हँसेगा? मैं बार बार कहता आया हूँ कि मुहम्मद टूटी फूटी शायरी करते थे जिसका सुबूत ये कुरआन है,शेरी ज़बान में. इसे बज़ोर तलवार अल्लाह का कलाम मनवा लिया गया. जन्नती शराबी होंगे? देखिए कि शायरे दीवाना को न शराब की तारीफ़ आती है, न पीने पिलाने का सलीका, बहती हुई नालियों ? या नदियों से? भरी जाएगी, दूध की तरह सफेद होगी. अय्याशी के लिए बड़ी बड़ी आँखों वाली मगर निगाह नीची किए होंगी? तब क्या लुत्फ़ आएगा. (हूरें) होंगी जैसे चूजों की तरह जो अंडे से बहार निकलते हैं. कई परिदों के चूजे तो घिनावने होते है.
अक्ल का बौड़म अल्लाह का रसूल.
कलामे दीगराँ - - -
"नफ्स परस्त शख्स के अन्दर बियाबान में भी खुराफ़ात पैदा हो जाएँगी. घर में रहते हुए नफ्स पर काबू रखना एक जेहाद है. जो लोग भले काम करते हैं और अपने नफ्स पर क़ाबू रखते हैं उनके लिए घर ही इबादत गाह है."
'पदम् श्री खंड'
(हिन्दू धर्म)
इसे कहते हैं कलामे पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 24 January 2011

सूरह यासीन -३६ पारा - २३ (2)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह यासीन -३६ परा - २२



(दूसरी क़िस्त)


"हम ने एक कश्ती पर लोगों को सवार किया और वह पानी को चीरती हुई रवाँ हो गई. हम चाहते तो इसे पानी में ग़र्क़ कर देते और वह सब के सब मर जाते, मगर जब वह मंजिल पर बा हिफाज़त आ जाते हैं तो तब भी हमारी कुदरत के कायल नहीं होते."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (४३)ये इस्लाम की कागज़ की कश्ती है जिस पर मुसलमान सवार हुए हैं, हर वक़्त खौफे-खुदा में मुब्तिला रहते है.


"और जब कहा जाता है कि अल्लाह ने तुम को जो कुछ दिया है उसमें से कुछ खर्च क्यूं नहीं करते, तो कुफ्फर मुसलामानों से कहते हैं कि क्या हम ऐसे लोगों को खाने को दें जिनको कि अगर अल्लाह चाहे तो बेहतर खाना देदे."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (४७)कुफ्फार का बेहतर जवाब था उस वक़्त के उभरते इस्लामी गुंडों को.
आज भी ये मज़हबी ऊधम के लिए चंदा उन्हीं से वसूलते हैं जिनकी रातें गारत करते है.



"ये लोग कहते हैं कि ये वादा कब पूरा होगा (अल्लाह के क़यामत का वादा) अगर तुम सच्चे हो? ये लोग बस एक आवाज़ सख्त के मुन्तज़िर हैं, जो इन को आलेगी और ये सब बाहम लड़ते रहे होंगे. सो न वासीअत करने की फ़ुर्सत होगी न अपने घर वालों के पास लौट कर वापस जा सकेगे. और तब सूर फूँका जायगा और वह सब क़ब्रों से निकल कर अपने रब की तरफ जल्दी जल्दी चलने लगेंगे. कहेगे कि हाय हमारी कम बख्ती! हम को हमारी क़ब्रों से किसी ने उठाया , ये वही है जिसका रहमान ने वादा किया था और पैगम्बर सच कहते थे."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (४९-५२)
कई बार कुरआन में ये बात आती है लोग पूछते हैं कि "ये वादा कब पूरा होगा".
इसकी सच्चाई ये है कि लोग उस वक़्त मुहम्मद की चिढ बनाए हुए थे मियाँ 'क़यामत कब आएगी? वो वादा कब पूरा होगा?- - - "ये सुनने के लिए कि देखें, इस बार दीवाने ने क़यामत का खाका क्या तैयार किया है.
अफ़सोस कि पागल दीवाने की वह बड़ बड़ आज मुसलामानों की किस्मत बन चुकी है.


"फिर उस दिन किसी पर ज़रा ज़ुल्म न होगा, तुमको बस उन्हीं कामों का बदला मिलेगा जो तुमने किए थे. अहले जन्नत बे शक उस दिन अपने मश्गलों में खुश दिल होंगे. वह और उनकी बीवियाँ साथ में, मसह्रियों पर तकिया लगाए बैठे होंगे. इनके लिए वहाँ पर मेवे होंगे और जो कुछ माँगेंगे मिलेगा. और इनको परवर दिगार मेहरबान की तरफ़ से सलाम फ़रमाएगा."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (५३-५८)
लअनत भेजिए उस जन्नत पर जिसमें आदमी हाथों पर हाथ धरे मसेह्रियों पर बैठा रहे. उस तवील ज़िन्दगी को जीने का न कोई मकसद हो न उसकी मंजिल.



"सो क्या तुम नहीं समझते ये जहन्नम है जिसका तुमसे वादा किया जाया करता था, आज अपने कुफ़्र के बदले इसमें दाखिल हो जाओ. आज हम उनके मुँह पर मोहर लगा देंगे, आज उनके हाथ हम से कलाम करेंगे और उनके पाँव शहादत देंगे, जो कुछ लोग करते थे और अगर हम चाहते तो उनकी आँखों को हम मालिया मेट कर देते तो वह रस्ते की तरफ़ दौड़ते फिरते सो उनको कहाँ नज़र आता."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (५३-५८)हाथ और पाँव कलाम करेंगे और गवाही देंगे, इसकी ज़रुरत क्या होगी जब अल्लाह ने मुँह दे रक्खा है? अल्लाह अगर चाहता तो " उनकी आँखों को हम मालिया मेट कर देते तो वह रस्ते की तरफ़ दौड़ते फिरते सो उनको कहाँ नज़र आता." सजा यहीं तक होती तो बेहतर होता.


"और हम जिसको उम्र ज्यादह दे देते हैं उसको तबई हालत में उल्टा कर देते हैं, सो क्या लोग नहीं समझते."सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (६८)
मुहम्मद आयतें चोकरने से पहले अगर सोच लिया करते तो कुरआन बहुत मुख़्तसर हो जाता और उनकी उम्मत के लिए बात बात पर रुसवा न होना पड़ता.
कह रहे हैं कि उम्र दरजी अल्लाह अज़ाबियों को देता है जब कि लोग उससे उम्र दराज़ करने की दुआ मांगते हैं. उलटी सीधी बातों का यह कुरआन.


"और हम ने आप को शायरी का इल्म नहीं दिया है और आपके लिए शायाने शान भी नहीं है. वह तो महेज़ नसीहत है. और आसमानी किताब है जो एहकाम को ज़ाहिर करने वाली है, ताकि ऐसे लोगों को डरावे जो जिंदा होऔर ताकि काफिरों पर हुज्जत साबित हो जाए."सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (६९-७०)शायर तो तुम थे ही ये उस वक़्त का इतिहास बतलाता है, शायर नहीं बल्कि मुत-शायर (अधूरे शायर) पूरी कि पूरी कुरआन गवाह है इस बात की. तुम्हारी तलवार ने तुम्हारी मुत-शायरी को कुरआन बना दिया.



"क्या आदमी को मालूम नहीं कि हम ने उसको नुत्फे से पैदा किया तो वह एलानिया एतराज़ पैदा करने लगा और उसने हमारी शान में एक अजीब मज़मून बयान किया और अपने असल को भूल गया . कहता है हड्डियों को जब वह बोसीदा हो गईं, कौन ज़िन्दा करेगा? जवाब दे दीजिए कि उनको जिंदा करेगा, जिसने अव्वल बार में इसको पैदा किया हैऔर वह सब तरह का पैदा करना जनता है."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (७८-७९)कौन कमबख्त आदमी कहता है कि वह अपने बाप के नुत्फे से नहीं, अलबत्ता तुम जैसे बने रसूल ज़रूर इस से परे दिखलाई देते हो. अजीब मज़मून तुम्हारा सुर्रा है कि इंसान क़ब्रों से उठ पडेगा.

''जब वह किसी चीज़ को पैदा करना चाहता है तो उसका मामूल तो ये है कि उस चीज़ को कह देता है,'' हो जा'', वह हो जाती है."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (८३)बस कि मुसलमान पैदा करने में नाकाम हो रहा है.कलामे दीगराँ - - -"अगर हम सच में ही मुसीबत में घिरे हुए हैं तो इन मुसीबत की घड़ियों में हमारी हिस ऊँची ऊँची छलाँग लगा सकती है. हमें चाहिए कि हम मुसीबत की घड़ियों का इस्तेमाल कर लें और ज़िदगी को फ़ुज़ूल न गँवाएँ.""ओशो"

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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सूरह यासीन -३६ पारा - २३ (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह यासीन -३६ परा - २२ (1)





(पहली क़िस्त)

कुरआन की ये चर्चित सूरह है. इस की चर्चा ये है कि ये बहुत ही बा बरकत आयतों से भरपूर है. मुसलमान इसे कागज़ पर मुल्ला से लिखवा के पानी में घोल कर पीते हैं. इस की अब्जद लिखवा कर गले में तावीज़ बना कर पहनते हैं. इस के तुगरा दीवार पर लगा कर घरों को आवेज़ां करते हैं.
मैं एक हार्ट स्पेशलिस्ट के पास खुद को दिखलाने गया, उन्हों ने मुझे नाम से मुस्लिम जान कर दीवार पर सजी सूरह यासीन को बुदबुदाने के बाद मेरा मुआएना किया. वह मुलिम अवाम का जज़्बाती इस्तेसाल करते हैं. ऐसे ही एक हिन्दू डाक्टर के पास गया तो मुझे देखने से पहले हाथों को जोड़ कर ॐ नमस् शिवाय का जाप किया. ये हिदू और मुसलमान दोनें डाक्टर पक्के ठग हैं. अवाम बेदार नहीं हुई कि समझे कि मेडिकल साइंस का आस्थाओं से क्या वास्ता है.

अब चलिए देखें कि ये सूरह कितनी बा बरकत है - - -
"यासीन"
मोह्मिल (अर्थ हीन) लफ्ज़ है, अल्लाह का रस्मी छू मंतर समझें.
"क़सम है कुरआन ए बा हिकमत की! कि बेशक आप मिन जुमला पैगम्बर के हैं."सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (२-३)उम्मी मुहम्मद जब कोई नया लफ्ज़ या लफ्ज़ी तरकीब को सुनते है तो उसे दोहराया करते हैं, जैसे कि अक्सर जाहिलों में होता है कि वह लफ्ज़ बोलने के किए बोलते हैं. यहाँ मुहम्मद ने "मिन जुमला" को जाना है जो कि कुरआन में कई बार दोहराने के लिए इसे बोले हैं. 'मिन जुमला' कारो बारी अल्फाज़ हैं जिसके मतलब होते हैं 'टोटली' यानी 'कुल जोड़'. तर्जुमान इसमें मंतिक भिड़ाते रहते हैं.
मुहम्मद मुतलक जाहिल थे और ये है जिहालत की अलामत. कहते हैं "आप मिन जुमला पैगम्बर के हैं."
इसी ज़माने की एक हदीस है कि इस उम्मी ने कहा - - -
" काफिरों की औरतें और बच्चे मिन जुमला काफ़िर होते है, शब खून में अगर ये मारे जाएँ तो कोई अज़ाब नहीं.यहाँ से अल्लाह को कसमें खाने का दौरा पड़ेगा तो आप देखेंगे कि वह किन किन चीजों की कसमें खाता है. वह कसमों की किस्में भी बतलाएगा, जिससे मुसलमान फैज़याब हुवा करते हैं. वह कुरआन ए बा हिक्मत की क़सम खा रहा है जिसमें कोई हिकमत ही नहीं है. खुद अपनी तारीफ कर रहा है?
कितने भोले भाले जीव हैं ये मुसलमान कि मुआमले को कुछ समझते ही नहीं.


"सीधे रस्ते पर हैं, ये कुराने-अल्लाह ज़बरदस्त की तरफ़ से नाज़िल किया गया है. कि आप ऐसे लोगों को डराएँ कि जिनके बाप दादे नहीं डराए गए थे सो इससे ये बेख़बर हैं."सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (४-६)जो डराए वह बुजदिल होता है.खुद डर का शिकार होता है. अल्लाह अगर है तो वह डराने का मतलब भी न जनता होगा, और अगर जानते हुए बन्दों को डराता है तो वह अल्लाह नहीं शैतान है.

"इनमें से अक्सर लोगों पर ये बात साबित हो गई है कि वह ईमान नहीं लाएँगे. हमने इनकी गर्दनों में तौक़ डाल दी है, फिर वह ठोडियों तक हैं, जिससे इनके सर उलर रहे हैं."सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (७-८)मजबूर और मायूस अल्लाह थक हार कर बैठ गया कि कुफ्फार ईमान लाने वाले नहीं. तौक़ (एक जेवर) उनकी गर्दनों में क्या इनाम के तौर पर डाल दी है?
उम्मी का तखय्युल मुलाहिज़ा हो, जब ठोडियाँ जुंबिश न कर सकें तो सर कैसे उलरेन्गे?
दीवाना जो मुँह में आता है, बक देता है.

"और हमने एक आड़ इनके सामने कर दी और एक इनके पीछे कर दी, जिससे हम ने इनको घेर दिया, सो वह नहीं देख सकते. इनके हक़ में आप का डराना न डराना दोनों बराबर है सो वह ईमान न ला सकेगे. पस आप तो सिर्फ़ ऐसे शख्स को डरा सकते हैं जो नसीहत पर चले और अल्लाह को बिन देखे डरे."सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (९-११)एक महिला प्रवचन दे रही थीं, कह रही थीं कि पुत्स्तक पर पहले आस्था क़ायम करो, फिर उसको खोलो.
मुझसे रहा न गया उनको टोका कि पुस्तक में चाहे कोकशास्त्र ही क्यूं न हो. वह एकदम से सटपटा गईं और मुँह जिलाने वाली बातें करने लगीं.
यहाँ पर मुहम्मदी अल्लाह आगे पीछे आड़ लगा रहा है कि सोचने समझने का मौक़ा ही नहीं रह जाता कि उसके क़ुरआन में कोकशास्त्र है या इससे घटिया बातें भी, बस डर के उसको तस्लीम कर ले.

"बेशक हम मुर्दों को जिंदा कर देंगे और हम लिखे जाते हैं वह आमाल भी जिन को लोग आगे भेजते जाते हैं और उनके वह आमाल भी जो पीछे छोड़ जाते हैं और हम ने हर चीज़ को एक वाज़ह किताब में दर्ज कर दिया है,"सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (१२)
मुहम्मद का मुशी बना अल्लाह दुन्या के अरबों खरबों इंसानों का बही खाता रखता है, ज़रा उम्मी की भाषा पर गौर करें - - -"जिन को लोग आगे भेजते जाते हैं और उनके वह आमाल भी जो पीछे छोड़ जाते हैं "अल्लाह के सहायक ओलिमा, ऐसी बातों की रफ़ू गरी करते हैं.

"और एक निशानी इन लोगों के लिए मुर्दा ज़मीन है, हमने इसको जिंदा किया और इससे गल्ले निकाले, सो इनमें से लोग खाते हैं."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (३३)बार बार मुहम्मद ज़मीन को मरे हुए इंसानी जिस्म की तरह मुर्दा बतलाते हैं, मुसलमान इसे ठीक मान बैठे हैं, मगर ज़मीन कभी भी मुर्दा नहीं होती, पानी के बिना वह उबरती नहीं, बस. मश हूर शायर रहीम खान खाना कहते हैं - -

रहिमन पानी राखियो, पानी बिन सब सून.
पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून.

मुहम्मद रहीम के फिकरी गर्द को भी नहीं पा सकते. जमीन को मुर्दा कहते हैं. फिर पानी पा जाने के बाद उसे ज़िदा पाते हैं मगर इसी तरह इंसानी जिस्म मुर्दा हो जाने के बाद कभी ज़िदा नहीं हो सकता.
वह इस जाहिलाना मन्तिक़ को मुसलामानों में फैलाए हुए हैं.

"सो इनके लिए एक निशानी रात है जिस पर से हम दिन को उतार लेते हैं सो यकायक वह लोग अँधेरे में रह जाते है और एक आफ़ताब अपने ठिकाने की तरफ़ चलता रहता है. ये अंदाज़ा बांधता है उसका जो ज़बर दस्त इल्म वाला है, न आफ़ताब को मजाल है कि चाँद को जा पकडे, और न रात दिन के पहले आ सकती है और दोनों एक एक दायरे में तैरते रहते हैं."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (३७-४०)ऐ उम्मी ! अपनी ज़बान में सालीक़ा और समझ पैदा कर. ये दिन यकायक नहीं उतरता, इस बीच शाम भी होती है, यकायक लोग अँधेरे में कब होते हैं.मुसलमानों को तू चूतिया बनाए हुए है जिनको देख कर ज़माना खुश हो रहा है कि ये अल्लाह की मखलूक यूँ ही बने रहें ताकि हमें सस्ते दामों में ग़ुलाम मयस्सर होते रहें.और ऐ उम्मी! ये आफताब चलता नहीं, अपनी खला में क़ायम है और इसके पास कोई इंसानी दिलो दिमाग नहीं है कि वह किसी ज़बरदस्त को जानने की जुस्तुजू रखता हो.और ऐ जहिले मुतलक! ये आफताब और ये माहताब कोई लुका छिपी का खेल नहीं खेल रहे. चाँद ज़मीन की गर्दिश करता है, ज़मीन इसे अपने साथ लिए सूरज की गर्दिश में है.और ऐ मजलूम मुसलमानों! तुम जागो कि तुम पर जगे हुए ज़माने की गर्दिश है.कलामे दीगराँ - - -"ऐ खुदा ! हमारी ज़िन्दगी को तालीम ए बद देने वाले आलिम बिगड़ते हैं, जो बद जातों को अज़ीम समझते हैं, जो मर्द और औरत के असासे और विरासत को लूटते हैं और तेरे नेक बन्दों को राहे रास्त से बहकते हैं""ज़र्थुर्ष्ट"
(पारसी धर्म गुरू)
इसे कहते हैं कलामे पाक -

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ (3)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ (3)



(तीसरी क़िस्त )
"आप तो सिर्फ डराने वाले हैं, हमने ही आपको हक़ देकर खुश ख़बरी सुनाने वाला और डराने वाला भेजा है. और कोई उम्मत ऐसी नहीं हुई जिसमे कोई डर सुनाने वाला नहो."
सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (२४)

या अल्लाह अब डराना बंद कर कि हम सिने बलूगत को पहुँच चुके हैं. डराने वाला, डराने वाला, पूरा कुरआन डराने वाला से भरा हुवा है. पढ़ पढ़ कर होंट घिस गए है. क्या जाहिलों की टोली में कोई न था कि उसको बतलाता कि डराने वाला बहरूपिया होता है. 'आगाह करना' होता है जो तुम कहना चाहते हो. मुजरिम अल्लाह के रसूल ने, इंसानों की एक बड़ी तादाद को डरपोक बना दिया है, या तो फिर समाज का गुन्डा.


"वह बाग़ात में हमेशा रहने के लिए, जिसमे यह दाखिल होंगे, इनको सोने का कंगन और मोती पहनाए जाएँगे और पोशाक वहाँ इनकी रेशम की होगी और कहेगे कि अल्लाह का लाख लाख शुक्र है जिसने हम से ये ग़म दूर किए. बेशक हमारा परवर दिगार बड़ा बख्शने वाला है.''

सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (३३-३४)

सोने के कँगन होंगे, हीरों के जडाऊ हार, मोतियों के झुमके और चांदी की पायल और रेशमी शलवार कुरता जिसको पहन कर जन्नती छमा छम नाचेंगे, क्यूँ कि वहाँ औरतें तो होंगी नहीं. जिसमें मकसदे हयात न हो वह ज़िन्दगी कैसी? जन्नत नहीं वह ही असली दोज़ख है.


"और जो लोग काफ़िर है उनके लिए दोज़ख की आग है. न तो उनको क़ज़ा आएगी कि मर ही जाएँ और न ही दोज़ख का अज़ाब उन पर कम होगा. हम हर काफ़िर को ऐसी सज़ा देते हैं और वह लोग चिल्लाएँगे कि ए मेरे परवर दिगार! हमको निकाल लीजिए, हम अच्छे काम करेंगे, खिलाफ उन कामों के जो किया करते थे. क्या हमने तुम को इतनी उम्र नहीं दी थी कि जिसको समझना होता समझ सकता और तुम्हारे पास डराने वाला नहीं पहुँचा था? तो तुम मज़े चक्खो, ऐसे जालिमों का मदद गार कोई न होगा."

सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (३६-३७)

ऐसी आयतें बार बार कुरआन में आई हैं, आप बार बार गौर करिए कि मुहम्मदी अल्लाह कितना बड़ा ज़ालिम है कि उसकी इंसानी दुश्मन फरमानों को न मानने वालों का हश्र क्या होगा? माँगे मौत भी न मिलेगी और काफ़िर अन्त हीन काल तक जलता और तड़पता रहेगा. मुसलमान याद रखें कि अल्लाह के अच्छे कामों का मतलब है उसकी गुलामी बेरूह नमाज़ी इबादत है और उसे पढ़ते रहने से कोई फिकरे इर्तेक़ा या फिकरे- नव दिमाग में दाखिल ही नहीं हो सकती और ज़कात की भरपाई से कौम भिखारी की भिखारी बनाए रहेगी और हज से अहले-मक्का की परवरिश होती रहेगी. मुसलामानों कुछ तो सोचो अगर मुझको ग़लत समझते हो तो कुदरत ने तुम्हें दिलो दिमाग़ दिया है. इस्लाम मुहम्मद की मकरूह सियासत के सिवा कुछ भी नहीं है.

"आप कहिए कि तुम अपने क़रार दाद शरीकों के नाम तो बतलाओ जिन को तुम अल्लाह के सिवा पूजा करते हो? या हमने उनको कोई किताब भी दी है? कि ये उसकी किसी दलील पर क़ायम हों. बल्कि ये ज़ालिम एक दूसरे निरी धोका का वादा कर आए हैं.''

"सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (४०)

और आप भी तो लोगों के साथ निरी धोका हर रहे हैं, अल्लाह के शरीक नहीं, दर पर्दा अल्लाह बन गए हैं, इस गढ़ी हुई कुरआन को अल्लाह की किताब बतला कर कुदरत को पामाल किए हुए हैं. इसकी हर दलील कठ मुललई की कबित है.

"और इन कुफ्फर(कुरैश) ने बड़े जोर की क़सम खाई थी कि इनके पास कोई डराने वाला आवे तो हम हर उम्मत से से ज़्यादः हिदायत क़ुबूल करने वाले होंगे, फिर इनके पास जब एक पैगम्बर आ पहुंचे तो बस इनकी नफ़रत को ही तरक्की हुई - - - सो क्या ये इसी दस्तूर के मुन्तज़िर हैं जो अगले काफ़िरों के साथ होता रहा है, सो आप कभी अल्लाह के दस्तूर को बदलता हुवा न पाएँगे. और आप अल्लाह के दस्तूर को मुन्तकिल होता हुवा न पाएँगे."

"सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (42-43)

सूरह अहज़ाब में अल्लाह ने वह आयतें मौकूफ (स्थगित करना या मुल्तवी करना) कर दिया था और मुहम्मद ने कहा था कि उसको अख्तिअर है कि वह जो चाहे करे. पहली आयत में अल्लाह का दस्तूर ये था कि बहू या मुँह बोली बहू के साथ निकाह हराम है, फिर वह आयतें मौकूफ हो गईं. नई आयतों में अल्लह ने मुँह बोली बहू के साथ निकाह को इस लिए जायज़ क़रार दिया ताकि मुसलामानों पर इसकी तंगी ना रहे. मुहम्मदी अल्लाह का मुँह है या जिस्म का दूसरा खंदक ? वह कहता है कि "और आप अल्लाह के दस्तूर को मुन्ताकिल होता हुवा न पाएँगे." अल्लाह ने अपना दस्तूर फर्जी फ़रिश्ते जिब्रील के मुँह में डाला, जिब्रील मुहम्मद के मुँह में उगला और मुहम्मद इस दस्तूर को मुसलामानों के कानों में टपकते हैं. मुहम्मद को अपना इल्म ज़ाहिर करना था कि वह लफ्ज़ 'मुन्तकिल' को खूब जानते हैं.

मुसलमानों! मोमिन को समझो, परखो, तोलो,खंगालो, फटको और पछोरो.
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
चमन में जाके होता है कोई तब दीदा वर पैदा.
मेरी इस जिसारत की क़द्र करो. इस्लामी दुन्या कानों में रूई ठूँसे बैठी है, हराम के जने कुत्ते ओलिमा तुम्हें जिंदा दरगोर किए हुवे हैं,
तुम में सच बोलने और सच सुनने की सलाहियत ख़त्म हो गई है.
तुमको इन गुन्डे आलिमो ने नामर्द बना दिया है.
जिसारत करके मेरी हौसला अफ़ज़ाई करो जो तुम्हारा शुभ चिन्तक और खैर ख्वाह है.
मैं मोमिन हूँ और मेरा मसलक ईमान दारी है,
इस्लाम अपनी शर्तों को तस्लीम कराता है जिसमें ईमान रुसवा होता है,

मेरे ब्लॉग पर अपनी राय भेजो भले ही गुमनाम हो. दो अदद ++ ही सही. अगर मेरी बातों में कुछ सदाक़त पाते हो तो.

देखो बहाउल्लाह ईरानी को क्या कहता है - - -
कि जिसे ईरानी मुस्लिम जल्लादों ने सच बोलने पर फाँसी पर लटका दिया.

बहाउल्लाह कहते हैं - - -

"ईमान दारी यक़ीनी तौर पर सारे खल्क़ के लिए अम्न और क़याम का दरवाज़ा है और खुदाए मेहबान के सामने अक़ीदत का निशान है, जो इसे पा लेता है, धन दौलत के अम्बार पा लेता है. ईमान दारी ही इंसान के लिए तहफ्फुज़ और इसके लिए चैन का सब से बड़ा बाब है. हर काम की पुख्तगी ईमान दारी पर मुनहसर होती है. इज्ज़त शोहरत और खुश हाली इसकी रौशनी से चमकते है,"

"बहाई मसलक"

इसे कहते हैं ईशवानी या कलाम ए पाक .

इसी को कबीर ने यूं कहा है - - -


साँच बराबर तप नहीं, झूट बराबर पाप.

जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (2)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२

(दूसरी क़िस्त)

"तो क्या ऐसा शख्स जिसको उसका अमले-बद से अच्छा करके दिखाया गया, फिर वह उसको अच्छा समझने लगा, और ऐसा शख्स जिसको क़बीह को क़बीह (बुरा)समझता है, कहीं बराबर हो सकते हैं
सो अल्लाह जिसको चाहता गुमराह करता है.
जिसको चाहता है हिदायत करता है .
सो उन पर अफ़सोस करके कहीं आपकी जान न जाती रहे .
अल्लाह को इनके सब कामों की खबर है.
और अल्लाह हवाओं को भेजता है, फिर वह बादलों को उठाई हैं फिर हम इनको खुश्क क़ता ज़मीन की तरफ हाँक ले जाते हैं, फिर हम इनको इसके ज़रिए से ज़मीन को जिंदा करते हैं. इसी तरह (रोज़े -हश्र इंसानों का) जी उठाना है. जो लोग इज्ज़त हासिल करना चाहें तो, तमाम इज्ज़त अल्लाह के लिए ही हैं.
अच्छा कलाम इन्हीं तक पहुँचता है और अच्छा कम इन्हें पहुँचाता है."
सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (८-१०)इन आयतों के एक एक जुमले पर गौर करिए कि उम्मी अल्लाह क्या कहता है?*मतलब ये कि अच्छे और बुरे दोनों कामों के फ़ायदे हैं मगर दोनों बराबर नहीं हो सकते.
*मुसलामानों के लिए सबसे भला काम है= जिहाद, फिर नमाज़, ज़कात और हज वगैरा और बुरा काम इन की मुखालिफ़त.
*जब अल्लाह ही बन्दे को गुमराह करता है तो ख़ता वार अल्लाह हुवा या बंदा?
*जिसको हिदायत नहीं देता तो उसे दोज़ख में क्यूँ डालता है ? क्या इस लिए कि उससे, उसका पेट भरने का वादा किए हुए है ?
*जब सब कामों की खबर है तो बेखबरी किस बात की? फ़ौरन सज़ा या मज़ा चखा दे, क़यामत आने का इंतज़ार कैसा? बुरे करने ही क्यूँ देता है इंसान को?
*अल्लाह हवाओं को हाँकता है, जैसे चरवाहे मुहम्मद बकरियों को हाँका करते थे.
*गोया इंसान कि दफ़्न होगा और रोज़ हश्र बीज की तरह उग आएगा. फिर सारे आमाल की खबर रखने वाला अल्लाह खुद भी नींद से उठेगा और लोगों के आमालों का हिसाब किताब करेगा.
*"तमाम इज्ज़त अल्लाह के लिए ही हैं."
तब तो तुम इसके पीछे नाहक भागते हो, इस दुन्या में बेईज्ज़त बन कर ही जीना है. जो मुस्लमान जी रहे हैं.मुसलमानों! तुम जागो. अल्लाह को सोने दो. क़यामत हर खित्ता ए ज़मीन पर तुम्हारे लिए आई हुई है. पल पल तुम क़यामत की आग में झुलस रहे हो. कब तुम्हारे समझ में आएगा. क़यामत पसंद मुहम्मद हर तालिबान में जिंदा है जो मासूम बच्चियों को तालीम से गाफिल किए हुए है. गैरत मंद औरतों पर कोड़े बरसा कर जिंदा दफ़्न करता है. ठीक ऐसा ही जिंदा मुहम्मद करता था.
"अल्लाह ने तुम्हें मिटटी से पैदा किया, फिर नुत्फे से पैदा किया, फिर तुमको जोड़े जोड़े बनाया और न किसी औरत को हमल रहता है न वह जनती है मगर सब उसकी इत्तेला से होता है और न किसी की उम्र ज़्यादः की जाती है न उम्र कम की जाती है मगर सब लौहे -महफूज़ (आसमान में पत्थर पर लिखी हुई किताब) में होता हो.ये सब अल्लाह को आसान है."सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (११)इंसान के तकमील का तरीका कई बार बतला चुके हैं अल्लाह मियाँ! कभी अपने बारे में भी बतलाएँ कि आप किस तरह से वजूद में आए.उम्मी का ये अंदाज़ा यहीं तक महदूद है. वह अनासिरे खमसा (पञ्च तत्व) से बे खबर है,"मिटटी से भी और फिर नुत्फे से भी"? मुहम्मद तमाम मेडिकल साइंस को कूड़े दान में डाले हुए हैं. मुसलमान आसमानी पहेली को सदियों से बूझे और बुझाए हुए है.

"और दोनों दरिया बराबर नहीं है, एक तो शीरीं प्यास बुझाने वाला है जिसका पीना आसन है. और एक खारा तल्ख़ है और तुम हर एक से ताजः गोश्त खाते हो, जेवर निकलते हो जिसको तुम पहनते हो और तू कश्तियों को इसमें देखता है, पानी को फाड़ती हुई चलती हैं, ताकि तुम इससे रोज़ी ढूढो और शुक्र करो."
सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१२)
मुहम्मदी अल्लाह की जनरल नालेज देखिए कि खारे समन्दर को दूसरा दरिया कहते हैं , ताजः मछली को ताजः गोश्त कहते हैं , मोतियों को जेवर कहते हैं. हर जगह ओलिमा अल्लाह की इस्लाह करते हैं. भोले भाले और जज़बाती मुसलामानों को गुमराह करते हैं.

"वह रात को दिन में और दिन को रात दाखिल कर देता है. उसने सूरज और चाँद को काम पर लगा रक्खा है. हर एक वक्ते-मुक़र्रर पर चलते रहेंगे. यही अल्लाह तुम्हारा परवर दिगार है और इसी की सल्तनत है और तुम जिसको पुकारते हो उसको खजूर की गुठली के छिलके के बराबर भी अख्तियार नहीं"सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१३)रात और दिन आज भी दाखिल हो रहे हैं एक दूसरे में मगर वहीँ जहाँ तालीम की रौशनी अभी तक नहीं पहुची है. अल्लाह सूरज और चाँद को काम पर लगाए हुए है अभी भी जहां आलिमाने-दीन की बद आमालियाँ है. मुहम्मदी अल्लाह की हुकूमत कायम रहेगी तब तक जब तक इस्लाम मुसलामानों को सफ़ा ए हस्ती से नेस्त नाबूद न कर देगा.


"अगर वह तुमको चाहे तो फ़ना कर दे और एक नई मखलूक पैदा कर दे, अल्लाह के लिए ये मुश्किल नहीं."सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१४)अल्लाह क्या, कोई भी गुंडा बदमाश किसी को फ़ना कर सकता है.
मगर मख्लूको में इंसान भी एक किस्म की मखलूक, अगर वह वह इसे ख़त्म कर दे तो पैगम्बरी किस पर झाडेंगे?
मैं बार बार मुहम्मद मी अय्यारी और झूट को उजागर कर रहा हूँ ताकि आप जाने कि उनकी हकीकत क्या है. यहाँ पर मखलूक की जगह वह काफ़िर जैसे इंसानों को मुखातिब करना चाहते हैं मगर इस्तेमाल कर रहे हैं शायरी लफ्फाजी.

"आप तो सिर्फ ऐसे लोगों को डरा सकते हैं जो बिन देखे अल्लाह से डर सकते हों और नमाज़ की पाबंदी करते हों."सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१८)बेशक ऐसे गधे ही आप की सवारी बने हुए हैं.


"और अँधा और आँखों वाला बराबर नहीं हो सकते और न तारीकी और रौशनी, न छाँव और धूप और ज़िंदे मुर्दे बराबर नहीं हो सकते. अल्लाह जिसको चाहता है सुनवा देता है. और आप उन लोगों को नहीं सुना सकते जो क़ब्रों में हैं."सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१९-२२)मगर या अल्लाह तू कहना क्या चाहता है, तू ये तो नहीं रहा कि मुल्ला जी और डाक्टर बराबर नहीं हो सकते.
जो इस पैगाम को सुनने से पहले क़ब्रों में चले गए, क्या उन पर भी तू रोज़े-हश्र मुक़दमा चला कर दोज़खी जेलों में ठूँस देगा ? तेरा उम्मी रसूल तो यही कहता है कि उसका बाप भी जहन्नम रसीदा होगा.
या अल्लाह क्या तू इतना नाइंसाफ़ हो सकता है?

दुन्या को शर सिखाने वाले फित्तीन के मरहूम वालिद का उसके जुर्मों में क्या कुसूर हो सकता है?कलामे दीगराँ - - -"आदमी में बुराई ये है कि वह दूसरे का मुअल्लिम (शिक्षक) बनना चाहता है और बीमारी ये है कि वह अपने खेतों की परवाह नहीं करता और दूसरे के खेतों की निराई करने का ठेका ले लेता है."" कानफ़्यूशश"यह है कलाम पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (1)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२



(पहली क़िस्त) 
मुहम्मद के ज़ेहन में पैगम्बर बनने का ख़याल कैसे आया और फिर ये ख़याल जूनून में कैसे बदला??
मुहम्मद एक औसत दर्जे के समाजी फर्द थे. तालीम याफ्ता न सही, मगर साहिबे फ़िक्र थे. अब ये बात अलग है कि इंसान की फ़िक्र समाज के लिए तामीरी हो या तखरीबी. मुहम्मद की कोई ख़ूबी अगर कही जाए तो उनके अन्दर दौलत से मिलने वाली ऐश व आराम की कोई अहेमयत नहीं थी. क़ेनाअत पसँद थे, लेन देन के मुआमले में व ईमान दार भी थे.
मुहम्मद ने ज़रीआ मुआश के लिए मक्के वालों की बकरियाँ चराईं. सब से ज़्यादः आसान कम है, बकरियाँ चराना वह इसी दौरान ज़ेहनी उथल पुथल में पैगम्बरी का खाका बनाते रहे.
एक वाक़िया हुवा कि खाना ए काबा की दीवार ढह गई जिसमें संग ए असवद नस्ब था जोकि आकाश से गिरी हुई उल्का थी. दीवार की तामीर अज़ सरे नव हुई, मक्का के क़बीलों में इस बात का झगड़ा शुरू हुआ कि किस कबीले का सरदार असवद को दीवार में नस्ब करेगा? पंचायत हुई, तय ये हुवा कि जो शख्स दूसरे दिन सुब्ह सब से पहले काबे में दाखिल होगा उसकी बात मानी जायगी. अगले दिन सुबह सब से पल्हले मुहम्मद हरम में दाखिल हुए.( ये बात अलग है कि वह सहवन वहाँ पहुँचे या क़सदन, मगर क़यास कहता है कि वह रात को सोए ही नहीं कि जल्दी उठाना है) बहर हाल दिन चढ़ा तमाम क़बीले के लोग इकठ्ठा हुए, मुहम्मद की बात और तजवीज़ सुनने के लिए.
मुहम्मद ने एक चादर मंगाई और असवद को उस पर रख दिया, फिर हर क़बीले के सरदारों को बुलाया, सबसे कहा कि चादर का किनारा पकड़ कर दीवार तक ले चलो. जब चादर दीवार के पास पहुच गई तो खुद असवद को उठा कर दीवार में नस्ब कर दिया. सादा लोह अवाम ने वाहवाही की, हालाँकि उनका मुतालबा बना रहा कि पत्थर कौन नस्ब करे. मुहम्मद को चाहिए था कि सरदारों में जो सबसे ज़्यादः बुज़ुर्ग होता उससे पत्थर नस्ब करने को कहते.
मुहम्मद अन्दर से फूले न समाए कि वह अपनी होशियारी से क़बीलो में बरतर हो गए. उसी दिन उनमें ये बात पक्की हो गई कि पैगम्बरी का दावा किया जा सकता है.
तारीख अरब के मुताबिक बाबा ए कौम इब्राहीम के दो बेटे हुए इस्माईल और इसहाक़. छोटे इसहाक़ की औलादें बनी इस्राईल कहलाईं जिन्हें यहूदी भी कहा जाता है. इन में नामी गिरामी लोग पैदा हुए, मसलन यूफुफ़, मूसा, दाऊद, सुलेमान और ईसा वगैरा और पहली तारीखी किताब मूसा ने शुरू की तो उनके पेरू कारों ने साढ़े चार सौ सालों तक इसको मुरत्तब करने का सिलसिला क़ायम रखा. लौंडी जादे हाजरा (हैगर) पुत्र इस्माइल की औलादें इस से महरूम रहीं जिनमें मुहम्मद भी आते हैं. उनमें हमेशा ये क़लक़ रहता कि काश हमारे यहाँ भी कोई पैगम्बर होता कि हम उसकी पैरवी करते. इन रवायती चर्चा मुहम्मद के दिल में गाँठ की तरह बन्ध गई कि कौम में पैगामरी की जगह ख़ाली है.
मदीने की एक उम्र दराज़ बेवा मालदार खातून खदीजा ने मुहम्मद को अपने साथ निकाह की पेश काश की. वह फ़ौरन राज़ी हो गए कि बकरियों की चरवाही से छुट्टी मिली और आराम के साथ रोटी का ज़रीया मिला. इस राहत के बाद वह रोटियाँ बांध कर ग़ार ए हिरा में जाते और अल्लाह का रसूल बन्ने का खाका तैयार करते.
इस दौरान उनको जिंसी तकाजों का सामान भी मिल गया था और छह अदद बच्चे भी हो गए, साथ में ग़ार ए हिरा में आराम और प्लानिग का मौक़ा भी मिलता कि रिसालत की शुरूवात कब की जाए, कैसे की जाए, आगाज़, हंगाम और अंजाम की कशमकश में आखिर कार एक रोज़ फैसला ले ही लिया कि गोली मारो सदाक़त, सराफ़त और दीगर इंसानी क़दरों को. खारजी तौर पर समाज में वह अपना मुकाम जितना बना चुके हैं, वही काफी है.
एक दिन उन्हों ने अपने इरादे को अमली जामा पहनाने का फैसला कर ही डाला. अपने कबीले कुरैश को एक मैदान में इकठ्ठा किया, भूमिका बनाते हुए उन्हों ने अपने बारे में लोगों की राय तलब की, लोगों ने कहा तुम औसत दर्जे के इंसान हो कोई बुराई नज़र नहीं आती, सच्चे, ईमान दार, अमानत दार और साबिर तबा शख्स हो. मुआहम्मद ने पूछा अगर मैं कहूँ कि इस पहाड़ी के पीछे एक फ़ौज आ चुकी है तो यकीन कर लोगे? लोगों ने कहा कर सकते हैं इसके बाद मुहम्मद ने कहा - - -
मुझे अल्लाह ने अपना रसूल चुना है.
ये सुन कर क़बीला भड़क उट्ठा. कहा तुम में कोई ऐसे आसार, ऐसी खूबी और अज़मत नहीं कि तुम जैसे जाहिल गँवार को अल्लाह चुनता फिरे.
मुहम्मद के चाचा अबू लहेब बोले
"माटी मिले, तूने इस लिए हम लोगों को यहाँ बुलाया था?"
सब मुँह फेर कर चले गए. मुहम्मद की इस हरकत और जिसारत से कुरैशियों को बहुत तकलीफ़ पहुंची मगर मुहम्मद मैदान में कूद पड़े तो पीछे मुड कर न देखा.
बाद में वह कुरैशियों के बा असर लोगों से मिलते रहे और समझाते रहे कि अगर तुम मुझे पैगम्बर मान लिया और मैं कामयाब हो गया तो तुम बाकी क़बीलों में बरतर होगे, मक्का ज़माने में बरतर होगा और अगर नाकाम हुवा तो खतरा सिर्फ मेरी जान को होगा. इस कामयाबी के बाद बदहाल मक्कियों को हमेशा हमेश के लिए रोटी सोज़ी का सहारा मिल जाएगा.
मगर कुरैश अपने माबूदों (पूज्य) को तर्क करके मुहम्मद को अपना माबूद बनाए को तैयार न हुए.
इस हकीकत के बाद क़ुरआन की बनावटी आयातों को परखें.

"तमाम तर हम्द अल्लाह तअला को लायक़ है जो आसमानों और ज़मीनों को पैदा करने वाला है. जो फरिश्तों को पैगाम रसा बनाने वाला है, जिनके दो दो तीन तीन और चार चार पर दार बाजू हैं, जो पैदाइश में जो चाहे ज़्यादः कर देता है. बे शक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है."सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१)तमाम हम्द उन हस्तियों की होनी चाहिए जिनहों ने इंसान और इंसानियत के लिए कुछ किया हो. जो मुसबत ईजादों के मूजिद हों. उन पर लअंतें हों जिन्हों ने इंसानी खून से नहाया हो .
ईसाइयों के फ़रिश्ते न नर होते हैं न नारी और उनका कोई जिन्स भी नहीं होता, अलबत्ता छातियाँ होती हैं जिस को मुहम्मदी अल्लाह कहता है ये लोग तब मौजूद थे जब वह पैदा हुए कि उनको औरत बतलाते हैं. तअने देता है कि अपने लिए तो बेटा और अल्लाह के लिए बेटी? मुहम्मद हर किसी की धार्मिक मान्यता विरोध करते हुए अपनी बात ऊपर रखते हैं चाहे वह कितनी भी धांधली की क्यूँ न हो. खुद फरिश्तों के बाजू गिना रहे हैं, जैसे अपनी आँखों से देखा हो.


"अल्लाह जो रहमत लोगों के लिए खोल दे, सिवाए इसके कोई बन्द करने वाला नहीं और जिसको बंद कर दे, सो इसके बाद इसको कोई जारी करने वाला नहीं - - - ए लोगो ! तुम पे जो अल्लाह के एहसान हैं, इसको याद करो, क्या अल्लाह के सिवा कोई खालिक़ है जो तुमको ज़मीन और आसमान से रिज़्क पहुँचाता हो. इसके सिवा कोई लायक़-इबादत नहीं. अगर ये लोग आप को झुट्लाएंगे तो आप ग़म न करें क्यूंकि आप से पहले भी बहुत से पैगम्बर झुट्लाए जा चुके हैं. "सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (२-४)अभी तक कोई अल्लाह खोजा नहीं जा सका, दुन्या को वजूद में आए लाखों बरस हो गए. अगर वह मुहम्मदी अल्लाह है तो निहायत टुच्चा है जिसे नमाज़ रोज़ों की शदीद ज़रुरत है. किसी भी इंसान पर वह एहसान नहीं करता बल्कि ज़ुल्म ज़रूर करता है कि आज़ाद रूह किसी पैकर के ज़द में आकर ज़िन्दगी पर थोपी गई मुसीबतें झेलता है.
"ए लोगो! अल्लाह का वादा ज़रूर सच्चा है, सो ऐसा न हो कि ये दुन्यावी ज़िन्दगी तुम्हें धोके में डाल रखे और ऐसा न हो कि तुम्हें धोकेबाज़ शैतान अल्लाह से धोके में डाल दे . ये शैतान बेशक तुम्हारा दुश्मन है, सो तुम इसको दुश्मन समझते रहो. वह तो गिरोह को महेज़ इस लिए बुलाता है कि वह दोंनों दोज़खियों में शामिल हो जाएँ."सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (५-६)अल्लाह और शैतान दोनों ही इन्सान को दोज़ख में डालने का वादा किए हुए हैं. अल्लाह इंसानों का दुश्मन नंबर वन है, तभी तो किसी वरदान की तरह दोज़ख पेश करने का वादा करता है, ऐसे अल्लाह को जूते मार कर घर (दिल) से बाहर करिए, और शैतान नंबर दो को समझने की कोशिश करिए जिसकी बकवास ये क़ुरआन है.उम्मी फरमाते हैं "धोकेबाज़ शैतान अल्लाह से धोके में डाल दे."मुतराज्जिम अल्लाह की इस्लाह करते हैं.कलामे दीगराँ - - -"जन्नत और दोज़ख दोनों इंसान के दिल में होते हैं.""शिन्तो"
जापानी पयम्बर
इसे कहते हैं कलाम पाक



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 22 January 2011

सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा (2)

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा

मशविरे


(दूसरी क़िस्त)

इस्लाम की हकीकत



अब चलते है कुरान की हक़ीक़त पर"सो अपनों ने सरताबी की तो हमने उन पर बंद का सैलाब छोड़ दिया, हमने उनको फलदार बागों के बदले, बाँझ बागें दे दीं जिसमें ये चीज़ें रह गईं, बद मज़ा फल और झाड़, क़द्रे क़लील बेरियाँ. उनको ये सज़ा हमने उनकी नाफ़रमानी की वजेह से दीं, और हम ऐसी सज़ा बड़े ना फरमानों को ही दिया करते हैं."सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (१७)अल्लाह बन बैठा रसूल अपनी तबीअत, अपनी फिरत और अपनी खसलत के मुताबिक अवाम को सज़ा देने के लिए बेताब रहता है. वह किस क़दर ज़ालिम था कि उसकी अमली तौर में दास्तानें हदीसों में भरी पडी हैं. तालिबान ऐसे दरिन्दे उसकी ही पैरवी कर रहे हैं. देखिए वह कि अपने लोगों के लिए कैसी सोच रखता है.
"सो अपनों ने सरताबी की तो हमने उन पर बंद का सैलाब छोड़ दिया,"हमने उनको अफसाना बना दिया और उनको बिलकुल तितर बितर कर दिया. बेशक इसमें हर साबिर और शाकिर के लिए बड़ी बड़ी इबरतें हैं"सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (१९)मुसलमानों! अगर ऐसा अल्लाह कोई है जो अपने बन्दों को तितर बितर करता हो और उनको तबाह करके कहानी बना देता हो तो वह अल्लाह नहीं मलऊन शैतान है, जैसे कि मुहम्मद थे.
वह चाहते हैं कि उनकी ज़्यादितियों के बावजूद लोग कुछ न बोलें और सब्र करें.


"उन्होंने ये भी कहा हम अमवाल और औलाद में तुम से ज्यादः हैं और हम को कभी अज़ाब न होगा. कह दीजिए मेरा परवर दिगार जिसको चाहे ज्यादः रोज़ी देता है और जिसको चाहता है कम देता है, लेकिन अक्सर लोग वाकिफ़ नहीं और तुम्हारे अमवाल और औलाद ऐसी चीज़ नहीं जो दर्जा में हमारा मुक़र्रिब बना दे, मगर हाँ ! जो ईमान लाए और अच्छा काम करे, सो ऐसे लोगों के लिए उनके अमल का दूना सिलह है. और वह बाला खाने में चैन से होंगे."सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (३५-३७)कनीज़ मार्या के हमल को आठवाँ महीना लगने के बाद जब समाज में चे-मे गोइयाँ शुरू हुईं तो मार्या के दबाव मे आकर मुहम्मद ने उसे अपनी कारस्तानी कुबूला और बच्चा पैदा होने पर उसको अपने बुज़ुर्ग इब्राहीम का नाम दिया, उसका अक़ीक़ा भी किया. ढाई साल में वह मर गया तब भी समाज में चे-मे गोइयाँ हुईं कि बनते हैं अल्लाह के नबी और बुढ़ापे में एह लड़का हुवा, उसे भी बचा न सके. तब मुहम्मद ने अल्लाह से एक आयत उतरवाई " इन्ना आतोय्ना कल कौसर - - - "यानी उस से बढ़ कर अल्लाह ने मुझको जन्नत के हौज़ का निगराँ बनाया - - -"
तो इतने बेगैरत थे हज़रत.
इस सूरह के पसे मंज़र मे इन आयतों भी मतलब निकला जा सकता है.
एक उम्मी की रची हुई भूल भूलैय्या में भटकते राहिए कोई रास्ता ही नान मिलेगा,


"आप कहिए कि मैं तो सिर्फ़ एक बात समझता हूँ, वह ये कि अल्लाह वास्ते खड़े हो जाओ, दो दो, फिर एक एक, फिर सोचो कि तुम्हारे इस साथी को जूनून नहीं है. वह तुम्हें एक अज़ाब आने से पहले डराने वाला है."
सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (४६)
बेशक, ये आयत ही काफ़ी है कि आप पर कितना जूनून था. दो दो, फिर एक एक - - - फिर उसकेबाद सिफार सिफार फिर नफ़ी एक एक यानी बने हुए रसूल की इतनी धुनाई होती और इस तरह होती कि इस्लामी फितने का वजूद ही न पनप पता.

यहूदी धर्म कहता है - - -ऐ खुदा!
फिरके फिरके का इन्साफ़ करेगा. मुल्क मुल्क के लोगों के झगडे मिटाएगा, वह अपने तलवारों को पीट पीट कर हल के फल और भालों को हँस्या बनाएँगे, तब एक फ़िरका दूसरे फ़िरके पर तलवारें नहीं चलाएगा न आगे लोग जंग के करतब सीखेंगे.
"तौरेत"
ये हो सकती है अल्लाह की वह्यी या कलाम ए पाक. 
जीम 'मोमिन' निसारुल-इमान