Wednesday 30 January 2013

सूरह एह्जाब - ३३

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**************

सूरह एह्जाब ३३२१-वां पारा

(चौथी क़िस्त)
 
कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैररतकहा जा सकता हैयह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती हैमुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दागदार किया हैइसकी मिसाल बहैसियत एक रहनुमा ,दुन्या में कहीं न मिल सकेगीकारी हजरात (पाठक गणसे इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक देंफिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.

ज़ैद एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -


एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा को बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरोंने अपहरण कर लिया,और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फ़रोख्त कर दियाज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा थाइस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम ख़दीजा ने उसे भरपूर प्यार दियाउधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा थावह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करताउसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुंचामुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---


"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."


ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दीवह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गयामगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया.


"खाई मीठ कि माई" ? बदहाल माँ बाप का बेटा थाहारसा मायूस हुवामुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गईमुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था,


"आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"


ज़ैद अभी नाबालिग़ ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दियाऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि बचपन में वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.


आमिना चल बसीमुहम्मद की देख भाल ऐमन ही करतीयहाँ तक कि वह सिने बलूगत में आ गएपच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.


जी हाँआप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थीऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी न पहुँचा थाअन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.


ज़ैद के बालिग़ होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से कर दीखानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी मुहम्मद जवाब थाज़ैद गुलाम नहींज़ैदज़ैद बिन मुहम्मद है.


फिर हुआ ये,


एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवादेखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा हैउसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गईघर से बाहर निकला तो घर का मुँह न देखाहवस से जब मुहम्मद फ़ारिग़ हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगेमगर वह न पसीजामुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने देतू था क्यामैं ने तुझको क्या से क्या बना दियापैगम्बर का बेटाहम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगामान जा,


ज़ैद न माना तो न मानाबोला तब मैं नादान थाऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,


आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?


मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैलीऔरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला  .


अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया,


एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी हैमेरा इसके साथ निकाह हुवा हैनिकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,


अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लियाउस वक़्त का समाज था ही क्यारोटियों को मोहताजउसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है.


ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है,


इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँदर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए.

**************** .
आल राउंडर


इक वकेया पुर सोज़ सुनाता मुसाफिर 

सर शर्म से झुक जाय अगर उठ न सके फिर 
कज्ज़ाक मुसलमानों की टोली थी सफ़र में
छः साल का इक बच्चा उन्हें आया नज़र में 


अगवा किया उसे बगरज़ माल ए ग़नीमत 

बेचा मदीने में मुहम्मद ने दी कीमत 
था नाम उसका ज़ैद ,पिदर उसका हारसा  
माँ बाप का दुलारा गुलामी में अब बंधा.


बेटे के गम हारसा   पागल सा हो गया 

सदमा   लगा उसे कि मेरा ज़ैद खो गया.
रो रो के पढता रहता जुदाई का मर्सिया 
हर इक से पूछता था गुम   ज़ैद का पता 


"लखते जिगर को देख भी पाऊँगा जीते जी"

गिरया पे उसके रोती थी गैरों की आंख भी. 
माहौल को रुलाए थी फरयाद ए हारसा   
इक रोज़ उसको मिल ही गया ज़ैद का पता 
पूछा किसी ने हारसा तू क्यूं उदास है 
मक्के में तेरा लाल मुहम्मद के पास है .



भाई को ले के  हारसा  मक्के का रुख किया   

जो हो सका फिरौती के असबाब कर लिया
देखा जो उसने ज़ैद को बढ़ के लिपट गया 
खुद पाके ज़ैद बाप व् चचा से चिमट गया 


हज़रात से हारसा ने रिहाई कि बात की 

हज़रात ने कहा ज़ैद की मर्ज़ी भी जान ली ?
जब ज़ैद ने रिहाई से इंकार कर दिया 
बढ़ कर नबी ने गोद में उसको उठा लिया.


बेटा हुआ तू मेरा यह अल्लाह गवाह है 

मैं बाप हुवा ज़ैद का मक्का हुवा गवाह है.
कुर्बान बाप को किया, वास्ते नबी, 
उस घर में जवान हुवा  ज़ैद अजनबी. 



क़ल्ब ए सियाह बाप के मज्मूम हैं सुलूक ,

देखें कि ज़ैद को दिए हैं किस तरह हुकूक़.
मासूम था, नादान   था, बालिग न था अभी ,
ऐमन के साथ अक़्द में बांधा था तभी .


आमिना की लौंडी थी ऐमन-ए- हब्शी ,

रंगीले मुहम्मद से बस थोड़ी सी बड़ी. 
छोटी थी ख़दीजा जो थीं हज़रात की जोरू मां.
इक बेटा जना उसने था नाम ओसामा,



तेरा बरस में ज़ैद ओसामा का बाप था,

तारीख़ है, ओसामा मुहम्मद का पाप था.
ओसामा बड़ा होके मुहम्मद को था अज़ीज़,
सहाबिए कराम था मुस्लिम का बा तमीज़ 



 फिर शादी हुई ज़ैद की जैनब बनी दुल्हन,

रिश्ते में वह नबी की फुफी ज़ाद थीं बहन . 
इक रोज़ दफअतन घुसा ज़ैद घर में जब, 
जैनब को देखा बाप के जांगों में पुर तरब . 


काटो तो उसके खून न था ऐसा हाल था,

धरती में पांव जम गए उठना मुहाल था. 
मुंह फेर के वह पलता तो बहार निकल गया 
फिर घर में अपने उसने कभी न क़दम रखा 



"ऐमन की तरह चलने दे दोनों का सिलसिला" 

हज़रत ने उसको लाख पटाया ,वह न पटा 



इस्लाम में निकाह के कुछ एहतमाम हैं 

अज़वाज के लिए कई रिश्ते हराम हैं 
जैसे कि खाला फूफी चची और मामियां 
भाई बहन कीबेटीयां बहुओं की हस्तियाँ 


बदबू समाज उठी मज़्मूम फेल की

चर्चा समाज में थी जैनब रखैल की 
बुड्ढ़े के बीवियाँ मौजूद चार थीं
फिर भी हवस में उसको बहु बेटियाँ मिलीं 



लेकिन कोई भी ढीठ पयम्बर सा था कहीं 

लोगों की चे मे गोइयाँ रुकवा दिया वहीँ. 
एलान किया जैनब मंकूहा है मेरी 
है रिश्ता आसमान का महबूबा है मेरी 
जैनब का मेरे साथ फलक पर ही था निकाह 
अल्लाह मियाँ थे क़ाज़ी तो जिब्रील थे गवाह. 



जिब्रील लेके पहुंचे वह्यी, जो कि जाल है.

मुंह बोले ,गोद लिए की बीवी हलाल है. 


खौफ़ था खिलक़त का न अल्लाह मियाँ का डर,

जिन्स की दुन्या थे, वह आल राउंडर . .     


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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 28 January 2013

सूरह एह्जाब - ३३ (चौथी क़िस्त) 2nd Time

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान



सूरह एह्जाब ३३२१-वां पारा

(चौथी क़िस्त)
 
कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैररतकहा जा सकता हैयह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती हैमुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दागदार किया हैइसकी मिसाल बहैसियत एक रहनुमा ,दुन्या में कहीं न मिल सकेगीकारी हजरात (पाठक गणसे इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक देंफिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.

ज़ैद एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -

एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा को बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरोंने अपहरण कर लिया,और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फ़रोख्त कर दियाज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा थाइस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम ख़दीजा ने उसे भरपूर प्यार दियाउधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा थावह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करताउसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुंचामुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---

"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."

ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दीवह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गयामगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया.

"खाई मीठ कि माई" ? बदहाल माँ बाप का बेटा थाहारसा मायूस हुवामुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गईमुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था,

"आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"

ज़ैद अभी नाबालिग़ ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दियाऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि बचपन में वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.

आमिना चल बसीमुहम्मद की देख भाल ऐमन ही करतीयहाँ तक कि वह सिने बलूगत में आ गएपच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.

जी हाँआप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थीऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी न पहुँचा थाअन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.

ज़ैद के बालिग़ होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से कर दीखानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी मुहम्मद जवाब थाज़ैद गुलाम नहींज़ैदज़ैद बिन मुहम्मद है.

फिर हुआ ये,

एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवादेखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा हैउसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गईघर से बाहर निकला तो घर का मुँह न देखाहवस से जब मुहम्मद फ़ारिग़ हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगेमगर वह न पसीजामुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने देतू था क्यामैं ने तुझको क्या से क्या बना दियापैगम्बर का बेटाहम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगामान जा,

ज़ैद न माना तो न मानाबोला तब मैं नादान थाऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,

आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?

मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैलीऔरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला  .

अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया,

एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी हैमेरा इसके साथ निकाह हुवा हैनिकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,

अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लियाउस वक़्त का समाज था ही क्यारोटियों को मोहताजउसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है.

ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है,

इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँदर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए.

**************** .
"ऐ ईमान वालोनबी के घर में बिना बुलाए हुए मत जाया करो खाने पर बुलाया जाए तो बैठ कर मुन्तजिर रहा करो बल्कि खाना तैयार हो जाए तो आया करोबातों में जी लगा कर मत बैठे रहा करोइस बात से नबी को नागवारी होती हैसो तुम्हारा लिहाज़ करते हैंअल्लाह साफ़ साफ़ बात करने में कोई लिहाज़ नहीं करता और जब तुम इन से कोई चीज़ माँगो तो परदे के बाहर सेये बात तुम्हारे और उनके दिलों को पाक रखने का एक उम्दा ज़रीआ हैतुमको जायज़ नहीं कि रसूल को कुलफ़त पहुँचाओऔर न ये जायज़ है कि तुम इनके बाद इनसे शादी करोये अल्लाह के नज़दीक बहुत भारी बात है."

"पैगम्बर की बीवियों पर अपने बापोंभाइयोंबेटोंभतीजोंभाँजोंऔरतों और न लौडियों पर गुनाह है.

बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूल को ईजः देते हैंइन पर दुन्या और आखरत में लानत करता हैइनके लिए ज़लील करने वाला अज़ाब तैयार रखा हैऔर जो लोग ईमान रखने वाले मर्दों को और ईमान रखने वाली औरतों को बिना इसके कि उन्हों ने कुछ किया होतो वह लोग बोहतान और सरीह गुनाह का बार लेते हैं"

सूरह अहज़ाब ३३२२-वां पारा आयत (५३-५८)


इतने बड़े मज़्मूम वाकिए के बाद मुहम्मद का ये क़ुरआनी फ़रमान,ये साबित करता है कि इस्लाम आने के बाद कौम अरब किस क़दर  मुर्दा ज़मीर हो गई थी कि ज़ीस्त ए बेआबरू को गले लगाए हुए थीलाखों में कोई एक मर्द बच्चा न था कि इस मुजरिमाना फ़ेल के बाद मुहम्मद का गरेबान पकड़ता और इस कुरआन को उनके मुँह पर मार के कोई मुहाज़ खड़ा करता. सारे के सारे नामर्द सहाबिए कराम इन गलाज़त भरी आयातों को अपनी तकदीर मान चुके थेडीठ मुहम्मद अपने ही ज़ुमरे में तमाम उन हस्तियों को घसीटते हैं जिन्हों ने इंसानियत के लिए अपनी ज़िंदगियाँ निछावर कर दींमुहम्मद कहना चाहते हैं कि उनके अल्लाह ने उनकी ये बदकारी उनके लिए मुक़र्रर कर दी थी इस लिए उन पर कोई इलज़ाम नहींसमाज के तआने तिशने से वह न घबराए और न डरेअपनी खाल को मोटी करते हुए कहते हैं कि डरे तो अल्लाह से डरे किसी बन्दे से डरने के वह क़ायल नहीं. वह जानते हैं कि अल्लाह नाम की कोई मखलूक नहींमुहम्मद आयत में साफ़ साफ़ कहते हैं कि उनको मालूम था कि उनकी बहू के साथ  ज़िना कारी किसी न  किसी दिन पकड़ी जायगीबे शर्म रसूल कहता है "हम ने इससे आप का निकाह कर दिया ताकि मुसलामानों को अपने मुँह बोले बेटों की बीवियों से निकाह करने में कोई तंगी न रहे."
मुबारक हो मुसलमानों.

क्या कोई मुसलमान इसका फायदा उठा सकता है?

"ऐ पैगम्बर! अपनी बीवियोंअपनी साहब ज़ादियों और दूसरी मुसलमान बीवियों से कह दीजिए कि नीची कर लिया करें अपने ऊपर थोड़ी सी अपनी चादरेंइससे पहचान हो जाया करेगी तो आज़ार न दी जाया करेंगी, तो अल्लाह बख्शने वाला और मेहरबान हैवह लोग जो मदीने में अफवाहें उड़ाया करते हैं अगर बअज़ न आए तो हम ज़रूर आप को उन पर मुसल्लत कर देंगेये लोग मदीने में बहुत ही कम रहने पाएँगेवह भी फिट्कारे हुए जहाँ मिलेंगेपकड़ धाकड़ कर मार धाड की जायगी."
सूरह अहज़ाब ३३२२-वां पारा आयत (aakheer)

ये है पैग़मबरी भाषारहमतुल अलामीन की.
कैसा दमन किया है अपनी लगजिशो के बाद अपने हलक़ा ऐ बगोशों कासच बोलने वालों पर ज़बान खोलने की पाबन्दी आयद हो गई है.

एक आम और शरीफ इंसान मरने से पहले अपनी जवाँ साल बीवी को वसीअत कर जाता है कि मेरी मौत करीब हैमरने के बाद तुम दूसरी शादी कर लेनाअपनी जवानी मत जलानाएक पैगम्बर को देखिए कि वह कितना तंग दिल है कि तमाम जवान बीवियों पर अपने मरने के बाद शादी हराम कर गया हैये कह कर कि उसकी सारी बीवियाँ तमाम मुसलामानों की माँ होंगीमुहम्मद की बीवियां"उम्मुल-मोमनीन" हुवा करती हैंखुद बेवाओं पर करम फ़रमाते रहेबेवाओं से शादी को सवाब कहते रहेजिन बेवाओं ने बूढ़े रसूल पर अपनी जवानियाँ जलाईं उनको इसने तमाम उम्र बेवा रहने की सज़ा दीजब मुहम्मद मरे तो आयशा की उम्र अट्ठारह साल की थी जो कि आज की सिने बलूगत की शुरूआत है.


कलामे दीगराँ - - -
"अपने आपको खुशियों से महरूम मत रखोजो कि तुम्हारे लिए पैदा की गई हैये तुम्हारा फ़र्ज़ है कि तुम्हारे चेहरे पर आसूदगी और खुशियों के निशान हों."
"बहाउल्लाह"
बहाई मसलक
ये है कलामे पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 27 January 2013

सूरह एह्जाब - ३३ (चौथी क़िस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह एह्जाब - ३३- २१-वां पारा
(चौथी क़िस्त)
 
कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैररत" कहा जा सकता है. यह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है. मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दागदार किया है, इसकी मिसाल बहैसियत एक रहनुमा ,दुन्या में कहीं न मिल सकेगी. कारी हजरात (पाठक गण) से इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक दें, फिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.
ज़ैद - एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -
एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा को , बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरों) ने अपहरण कर लिया,और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फ़रोख्त कर दिया. ज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा था, इस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम ख़दीजा ने उसे भरपूर प्यार दिया. उधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा था, वह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करता. उसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुंचा. मुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."
ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दी, वह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गया, मगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया.
"खाई मीठ कि माई" ? बदहाल माँ बाप का बेटा था. हारसा मायूस हुवा. मुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गई, मुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था,
"आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"
ज़ैद अभी नाबालिग़ ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दिया. ऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि बचपन में वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.
आमिना चल बसी, मुहम्मद की देख भाल ऐमन ही करती, यहाँ तक कि वह सिने बलूगत में आ गए. पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.
जी हाँ! आप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थी. ऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी न पहुँचा था, अन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.
ज़ैद के बालिग़ होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से कर दी. खानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी ? मुहम्मद जवाब था, ज़ैद गुलाम नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है.
फिर हुआ ये,
एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवा, देखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा है. उसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गई, घर से बाहर निकला तो घर का मुँह न देखा. हवस से जब मुहम्मद फ़ारिग़ हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगे, मगर वह न पसीजा. मुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने दे. तू था क्या? मैं ने तुझको क्या से क्या बना दिया, पैगम्बर का बेटा, हम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगा, मान जा,
ज़ैद न माना तो न माना, बोला तब मैं नादान था, ऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,
आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?
मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैली. औरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला .
अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया,
एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी है, मेरा इसके साथ निकाह हुवा है, निकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,
अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लिया. उस वक़्त का समाज था ही क्या? रोटियों को मोहताज, उसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है.
ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है,
इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँ. दर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए.
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"ऐ ईमान वालो! नबी के घर में बिना बुलाए हुए मत जाया करो खाने पर बुलाया जाए तो बैठ कर मुन्तजिर रहा करो बल्कि खाना तैयार हो जाए तो आया करो, बातों में जी लगा कर मत बैठे रहा करो, इस बात से नबी को नागवारी होती है, सो तुम्हारा लिहाज़ करते हैं. अल्लाह साफ़ साफ़ बात करने में कोई लिहाज़ नहीं करता और जब तुम इन से कोई चीज़ माँगो तो परदे के बाहर से. ये बात तुम्हारे और उनके दिलों को पाक रखने का एक उम्दा ज़रीआ है. तुमको जायज़ नहीं कि रसूल को कुलफ़त पहुँचाओ, और न ये जायज़ है कि तुम इनके बाद इनसे शादी करो. ये अल्लाह के नज़दीक बहुत भारी बात है."
"पैगम्बर की बीवियों पर अपने बापों, भाइयों, बेटों, भतीजों, भाँजों, औरतों और न लौडियों पर गुनाह है.
बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूल को ईजः देते हैं, इन पर दुन्या और आखरत में लानत करता है. इनके लिए ज़लील करने वाला अज़ाब तैयार रखा है, और जो लोग ईमान रखने वाले मर्दों को और ईमान रखने वाली औरतों को बिना इसके कि उन्हों ने कुछ किया हो, तो वह लोग बोहतान और सरीह गुनाह का बार लेते हैं"
सूरह अहज़ाब - ३३- २२-वां पारा आयत (५३-५८)

इतने बड़े मज़्मूम वाकिए के बाद मुहम्मद का ये क़ुरआनी फ़रमान, ये साबित करता है कि इस्लाम आने के बाद कौम अरब किस क़दर मुर्दा ज़मीर हो गई थी कि ज़ीस्त ए बेआबरू को गले लगाए हुए थी. लाखों में कोई एक मर्द बच्चा न था कि इस मुजरिमाना फ़ेल के बाद मुहम्मद का गरेबान पकड़ता और इस कुरआन को उनके मुँह पर मार के कोई मुहाज़ खड़ा करता. सारे के सारे नामर्द सहाबिए कराम इन गलाज़त भरी आयातों को अपनी तकदीर मान चुके थे. डीठ मुहम्मद अपने ही ज़ुमरे में तमाम उन हस्तियों को घसीटते हैं जिन्हों ने इंसानियत के लिए अपनी ज़िंदगियाँ निछावर कर दीं. मुहम्मद कहना चाहते हैं कि उनके अल्लाह ने उनकी ये बदकारी उनके लिए मुक़र्रर कर दी थी इस लिए उन पर कोई इलज़ाम नहीं. समाज के तआने तिशने से वह न घबराए और न डरे, अपनी खाल को मोटी करते हुए कहते हैं कि डरे तो अल्लाह से डरे किसी बन्दे से डरने के वह क़ायल नहीं. वह जानते हैं कि अल्लाह नाम की कोई मखलूक नहीं. मुहम्मद आयत में साफ़ साफ़ कहते हैं कि उनको मालूम था कि उनकी बहू के साथ  ज़िना कारी किसी न किसी दिन पकड़ी जायगी. बे शर्म रसूल कहता है "हम ने इससे आप का निकाह कर दिया ताकि मुसलामानों को अपने मुँह बोले बेटों की बीवियों से निकाह करने में कोई तंगी न रहे."
मुबारक हो मुसलमानों.
क्या कोई मुसलमान इसका फायदा उठा सकता है?

"ऐ पैगम्बर! अपनी बीवियों, अपनी साहब ज़ादियों और दूसरी मुसलमान बीवियों से कह दीजिए कि नीची कर लिया करें अपने ऊपर थोड़ी सी अपनी चादरें, इससे पहचान हो जाया करेगी तो आज़ार न दी जाया करेंगी, तो अल्लाह बख्शने वाला और मेहरबान है. वह लोग जो मदीने में अफवाहें उड़ाया करते हैं अगर बअज़ न आए तो हम ज़रूर आप को उन पर मुसल्लत कर देंगे, ये लोग मदीने में बहुत ही कम रहने पाएँगे, वह भी फिट्कारे हुए जहाँ मिलेंगे, पकड़ धाकड़ कर मार धाड की जायगी."
सूरह अहज़ाब ३३२२-वां पारा आयत (aakheer)
ये है पैग़मबरी भाषा, रहमतुल अलामीन की.
कैसा दमन किया है अपनी लगजिशो के बाद अपने हलक़ा ऐ बगोशों का. सच बोलने वालों पर ज़बान खोलने की पाबन्दी आयद हो गई है.
एक आम और शरीफ इंसान मरने से पहले अपनी जवाँ साल बीवी को वसीअत कर जाता है कि मेरी मौत करीब है, मरने के बाद तुम दूसरी शादी कर लेना, अपनी जवानी मत जलाना. एक पैगम्बर को देखिए कि वह कितना तंग दिल है कि तमाम जवान बीवियों पर अपने मरने के बाद शादी हराम कर गया है, ये कह कर कि उसकी सारी बीवियाँ तमाम मुसलामानों की माँ होंगी. मुहम्मद की बीवियां "उम्मुल-मोमनीन" हुवा करती हैं. खुद बेवाओं पर करम फ़रमाते रहे. बेवाओं से शादी को सवाब कहते रहे. जिन बेवाओं ने बूढ़े रसूल पर अपनी जवानियाँ जलाईं उनको इसने तमाम उम्र बेवा रहने की सज़ा दी. जब मुहम्मद मरे तो आयशा की उम्र अट्ठारह साल की थी जो कि आज की सिने बलूगत की शुरूआत है.


कलामे दीगराँ - - -
"अपने आपको खुशियों से महरूम मत रखो. जो कि तुम्हारे लिए पैदा की गई है. ये तुम्हारा फ़र्ज़ है कि तुम्हारे चेहरे पर आसूदगी और खुशियों के निशान हों."
"बहाउल्लाह"
बहाई मसलक
ये है कलामे पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान