Sunday 24 February 2013

सूरह अहज़ाब - ३३

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा

कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैररत" कहा जा सकता है. यह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है. मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दाग़दार किया है, इसकी मिसाल बहैसियत एक  रहनुमा, दुन्या में कहीं न मिल सकेगी. क़ारी हज़रात (पाठक गण) से इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक दें, फिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.
ज़ैद - एक मजलूम का पसे-मंज़र - - -
एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद बिन हारसा को बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरों) ने अपहरण कर लिया,और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फ़रोख्त कर दिया. ज़ैद बिन हारसा  अच्छा बच्चा था, इस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम खदीजा ने उसे भरपूर प्यार दिया. 
उधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा था, वह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करता. उसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है, तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुंचा. मुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."
 ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दी, वह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गया, मगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया. 
"खाई मीठ कि माई" ?
 बदहाल माँ बाप का बेटा था. हारसा मायूस हुवा. मुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गई, मुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था, 
"आप सब के सामने मैं  अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"
ज़ैद अभी नाबालिग ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दिया. ऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि बचपन में वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.
आमिना चल बसी, मुहम्मद की देख भाल ऐमन ही करती, यहाँ  तक कि वह सिने बलूगत में आ गए. पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.
जी हाँ! आप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थी. ऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी न पहुँचा था, अन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.
ज़ैद के बालिग होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन  ज़ैनब से कर दी. खानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी ? 
मुहम्मद जवाब था, ज़ैद गुलाम नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है.
फिर हुआ ये, 
एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवा, देखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी  ज़ैनब के साथ मुँह काला कर रहा है. उसके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक गई, घर से बाहर निकला तो घर का मुँह न देखा. 
हवस से जब मुहहम्मद फ़ारिग हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगे, मगर वह न पसीजा. मुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे, वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने दे. 
तू था क्या? 
मैं ने तुझको क्या से क्या बना दिया, पैगम्बर का बेटा, हम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगा, मान जा,
ज़ैद न माना तो न माना, बोला तब मैं नादान था, ऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,
आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?
मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैली. औरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला। 
अपने हाथ से चाल निकलते देख कर, ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया, 
एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी है, मेरा इसके साथ निकाह हुवा है, निकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,
अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लिया. उस वक़्त का समाज था ही क्या? रोटियों को मोहताज, उसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है. 
ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है, इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के ख़सम कहता हूँ. दर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए.   .
देखिए कि इस घिनावने आमाल के तहत, "कुरआने" नापाक कैसे कैसे गिरगिट के रंग बदलता है - - -

"ऐ नबी! हमने आप के लिए ये बीवियाँ जिनको आप इनके महेर दे चुके हैं हलाल की हैं और वह औरतें भी जो तुम्हारी ममलूका हैं, जो ग़नीमत में अल्लाह ने आपको दिलवाई हैं. और आप के चचा की बेटियाँ और आपकी फूफी की बेटियाँ और आपके मामूं की बेटियाँ और आप कि खाला की बेटियाँ जिन्हों ने आपके साथ हिजरत की हों और उस मुसलमान औरत को भी जो बगैर एवज अपने आपको पैगम्बर को देदे, बशर्ते ये कि पैगम्बर इसे क़ुबूल कर लें, हलाह कीं. ये सब आप पर मखसूस किए गए हैं न कि दीगर मोमनीन पर. हमको वह एहकाम मालूम हैं जो हम ने उन पर, उनकी बीवियों पर और उनकी लोंडियों के बारे में मुक़र्रर किए हैं ताकि आप पर किसी क़िस्म की तंगी न हो. और अल्लाह तअला ग़फूरुर रहीम है. इनमें से आप जब चाहें और जिसको चाहें अपने से दूर या नज़दीक रख सकते है - - - इनके अलावा और औरतें आप पर हलाल नहीं."
सूरह अहज़ाब  - ३३- २२-वां पारा आयत (५०-५२)

  शुक्र है कि अय्यार नबी की कोई सगी बहन या भाई नहीं थे वर्ना उसका अल्लाह उसकी बहन बेटियों को भी उसके लिए हलाल कर देता, मुसलमानों भी को कोई तन्गी न रह जाती. ये कौम इस बेहूदगी और बद तमीज़ी को अपनी नमाज़ों में दोहराती हैं. इसकी आँखें तो कोई इसके सर पे हथौड़ा मर कर ही खोल सकती है. ईसाइयत ने मुहम्मद को " रंगीला रसूल" का ख़िताब दिया है, देना चाहिए कमीना रसूल का दर्जा. मैं मुसलमानों को ज़ेहनी झटका नहीं देना चाहता क्यूँकि मुझे उनसे लगाव है, मगर उनका इस्लाम से बगावत की कोशिश करना चाहता हूँ. इसी में उनकी बका है और उनकी आबरू भी.
मेरा तजज़िया है कि मुहम्मद नाम के आदमी में एक खूँ खार हैवानियत पेवाश्त थी जो इंसानियत की हवा से सर सब्ज़ होती हुई इंसानी तहजीब और इंसानों का सबसे बड़ा दुश्मन था. इंसानियत और तमद्दुन के इर्तेकाई साँचे में ढलते हुए इंसानों को वह अपने क़दमों तले गिडगिडाते हुए देखना चाहता था. हैरत है उसके नंगे-नाच की तस्वीर देखते हुए कोई दानिश्वर मुसलमान अपना मुँह नहीं खोलता. यही है मुसलमानों की पसपाई की वजेह.
एक रसूल का दीवाना, अहमक लिखता है " मुसलामानों को अपने रसूल से इतनी अक़ीदत होनी चाहिए कि आप के जिस्म से (रसूल के जिस्म से) ख़ारिज हुए खून और पेशाब को पी जाने में भी आर नहीं होना चाहिए"
ऐसे दीवानों को रसूल वंशजों का मल-मूत्र खिलाना पिलाना चाहिए.  

"ऐ ईमान वालो! नबी के घर में बिना बुलाए हुए मत जाया करो खाने पर बुलाया जाए तो  बैठ कर मुन्तजिर रहा करो बल्कि खाना तैयार हो जाए तो आया करो, बातों में जी लगा कर मत बैठे रहा करो, इस बात से नबी को नागवारी होती है, सो तुम्हारा लिहाज़ करते हैं. अल्लाह साफ़ साफ़ बात करने में कोई लिहाज़ नहीं करता और जब तुम इन से कोई चीज़ माँगो तो परदे के बाहर से. ये बात तुम्हारे और उनके दिलों को पाक रखने का एक उम्दा ज़रीआ है. तुमको जायज़ नहीं कि रसूल को कुलफ़त पहुँचाओ, और न ये जायज़ है नहीं कि तुम इनके बाद इनसे शादी करो. ये अल्लाह के नज़दीक बहुत भारी बात है."
"पैगम्बर की बीवियों पर अपने बापों, भाइयों, बेटों, भतीजों, भाँजों, औरतों और न लौडियों पर गुनाह है.
बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूल को ईजः  देते हैं, इन पर दुन्या और आखरत में लानत करता है. इनके लिए ज़लील करने वाला अज़ाब तैयार रखा है, और जो लोग ईमान रखने वाले मर्दों को और ईमान रखने वाली औरतों को बिना इसके कि उन्हों ने कुछ किया हो, तो वह लोग बोहतान और सरीह गुनाह का बार लेते हैं"
सूरह अहज़ाब  - ३३- २२-वां पारा आयत (५३-५८)

 इतने बड़े मज़्मूम वाकिए के बाद मुहम्मद का ये क़ुरआनी फ़रमान, ये साबित करता है कि इस्लाम आने के बाद कौम अरब किस क़दर मुर्दा ज़मीर हो गई थी कि ज़ीस्त ए बेआबरू को गले लगाए हुए थी. लाखों में कोई एक मर्द बच्चा न था कि इस मुजरिमाना फ़ेल के बाद मुहम्मद का गरेबान पकड़ता और इस कुरआन को उनके मुँह पर मार के कोई मुहाज़ खड़ा करता. सारे के सारे नामर्द सहाबिए कराम इन गलाज़त भरी आयातों को अपनी तकदीर मान चुके थे. डीठ मुहम्मद अपने ही ज़ुमरे में तमाम उन हस्तियों को घसीटते हैं जिन्हों ने इंसानियत के लिए अपनी ज़िंदगियाँ निछावर कर दीं. मुहम्मद कहना चाहते हैं कि उनके अल्लाह ने उनकी ये बदकारी उनके लिए मुक़र्रर कर दी थी इस लिए उन पर कोई इलज़ाम नहीं. समाज के तआने तिशने से वह न घबराए और न डरे, अपनी खाल को मोटी करते हुए कहते हैं कि डरे तो अल्लाह से डरे किसी बन्दे से डरने के वह क़ायल नहीं. वह जानते हैं कि अल्लाह नाम की कोई मखलूक नहीं. मुहम्मद आयत में साफ़ साफ़ कहते हैं कि उनको मालूम था कि उनकी बहू के साथ ज़ेना कारी किसी न किसी दिन पकड़ी जायगी. बे शर्म रसूल कहता है "हम ने इससे आप का निकाह कर दिया ताकि मुसलामानों को अपने मुँह बोले बेटों की बीवियों से निकाह करने में कोई तंगी न रहे."मुबारक हो  मुसलमानों.
क्या कोई मुसलमान इसका फायदा उठा सकता है? 

 "ऐ पैगम्बर! अपनी बीवियों, अपनी साहब ज़ादियों और दूसरी मुसलमान बीवियों से कह दीजिए कि नीची कर लिया करें अपने ऊपर थोड़ी सी अपनी चादरें, इससे पहचान हो जाया करेगी तो आज़ार न दी जाया करेंगी, तो अल्लाह बख्शने वाला और मेहरबान है. वह लोग जो मदीने में अफवाहें उड़ाया करते हैं अगर बअज़ न आए तो हम ज़रूर आप को उन पर मुसल्लत कर देंगे, ये लोग मदीने में बहुत ही कम रहने पाएँगे, वह भी फिट्कारे हुए जहाँ मिलेंगे, पकड़ धाकड़ कर मार धाड की जायगी."   

ये है पैग़मबरी भाषा, रहमतुल अलामीन की. कैसा दमन किया है अपनी लगजिशो के बाद अपने हलक़ा ऐ बदोशों का. सच बोलने वालों पर ज़बान खोलने की पाबन्दी आयद हो गई है.
   एक आम और शरीफ इंसान मरने से पहले अपनी जवाँ साल बीवी को वसीअत कर जाता है कि मेरी मौत करीब है, मरने के बाद तुम दूसरी शादी कर लेना, अपनी जवानी मत जलाना. एक पैगम्बर को देखिए कि वह कितना तंग दिल है कि तमाम जवान बीवियों पर अपने मरने के बाद शादी हराम कर गया है, ये कह कर कि उसकी सारी बीवियाँ तमाम मुसलामानों की मान होंगी. मुहम्मद की बीवियां "उम्मुल-मोमनीन" हुवा करती हैं.  खुद बेवाओं पर करम फ़रमाते रहे. बेवाओं से शादी को सवाब कहते रहे. जिन बेवाओं ने बूढ़े रसूल पर अपनी जवानियाँ जलाईं  उनको इसने तमाम उम्र बेवा रहने की सज़ा दी. जब मुहम्मद मरे तो आयशा की उम्र अट्ठार साल की थी जो कि आज की सिने बलूगत की शुरूआत है.  

कलामे दीगराँ - - -
"अपने आपको खुशियों से महरूम मत रखो. जो कि तुम्हारे लिए पैदा की गई है. ये तुम्हारा फ़र्ज़ है कि तुम्हारे चेहरे पर आसूदगी और खुशियों के निशान हों."
"बहाउल्लाह"
बहाई मसलक

ये है कलामे पाक  




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 17 February 2013

Soorah Ahzab 33 (3)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह अहज़ाब  - ३३- २१-वां पारा
(तीसरी क़िस्त)


कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैररत" कहा जा सकता है. यह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है. मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दागदार किया है, इसकी मिसाल बहैसियत एक  रहनुमा ,दुन्या में कहीं न मिल सकेगी. कारी हजरात (पाठक गण) से इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक दें,  फिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.

ज़ैद - एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -
एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा को , बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरों) ने अपहरण कर लिया,और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फ़रोख्त कर दिया. ज़ैद बिन हारसा  अच्छा बच्चा था, इस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम ख़दीजा ने उसे भरपूर प्यार दिया. उधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा था, वह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करता. उसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुंचा. मुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."
 ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दी, वह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गया, मगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया. 
"खाई मीठ कि माई" ? बदहाल माँ बाप का बेटा था. हारसा मायूस हुवा. मुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गई, मुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था, 
"आप सब के सामने मैं  अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"
ज़ैद अभी नाबालिग़ ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दिया. ऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि बचपन में वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.
आमिना चल बसी, मुहम्मद की देख भाल ऐमन ही करती, यहाँ  तक कि वह सिने बलूगत में आ गए. पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.
जी हाँ! आप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थी. ऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी न पहुँचा था, अन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.
ज़ैद के बालिग़ होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन  ज़ैनब से कर दी. खानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी ? मुहम्मद जवाब था, ज़ैद गुलाम नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है.
फिर हुआ ये, 
एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवा, देखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा है. उसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गई, घर से बाहर निकला तो घर का मुँह न देखा. हवस से जब मुहम्मद फ़ारिग़ हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगे, मगर वह न पसीजा. मुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने दे. तू था क्या? मैं ने तुझको क्या से क्या बना दिया, पैगम्बर का बेटा, हम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगा, मान जा,
ज़ैद न माना तो न माना, बोला तब मैं नादान था, ऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,
आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?
मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैली. औरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला  . 
अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया, 
एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी है, मेरा इसके साथ निकाह हुवा है, निकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,
अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लिया. उस वक़्त का समाज था ही क्या? रोटियों को मोहताज, उसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है. 
ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है, 
इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँ. दर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए.   .
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"किसी ईमान दार मर्द और किसी ईमान दार औरत को गुंजाइश नहीं है, जब कि अल्लाह और उसका रसूल किसी काम का हुक्म देदें कि इन कामों में कोई अख्तियार रहे और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल का कहना न मानेगा, वह सरीह गुमराही में पड़ा और जब आप इस शख्स से (ज़ैद बिन हारसा से) फ़रमा रहे थे जिस पर अल्लाह ने इनआम किया और आपने भी इनआम किया कि वह अपनी बीवी (जैनब) को अपनी ज़ौजियत में रहने दे और अल्लाह से डरे. और आप अपने दिल में छिपाए हुए थे जिसको अल्लाह ज़ाहिर करने वाला था. और आप लोगों के तअनो से अंदेशा करते थे, और डरना तो आपको अल्लाह से ही ज़्यादा सज़ावार है. फिर जब ज़ैद का इससे दिल भर गया, हम ने इससे आप का निकाह कर दिया ताकि मुसलामानों को अपने मुँह बोले बेटों की बीवियों से निकाह करने में कोई तंगी न रहे कि जब यह उनसे अपना जी भाई चुकें . अल्लाह का ये हुक्म होने ही वाला था."

सूरह अहज़ाब  - ३३- २२-वां पारा आयत (३६-३७)

देखिए कि किस ढिटाई के साथ उम्मी कह रहा है कि अपनी रखैल ज़ैनब की कहानी ज़ाहिर करने को था कि उसकी कोई तरकीब उसको नहीं सूझ रही थी, कि कैसे इसको ज़ाहिर करे. खुद को अल्लाह का हम सर कहते हुए दोनों के हुक्म को मानने की हिदायत दे रहा है. आयत कह रही है कि खुद को अल्लाह बतलाते हुए ज़ैद को धमकी दे चुका है.
इस्लाम इंसानी आज़ादी का खून करते हुए कह रहा है "किसी ईमान दार मर्द और किसी ईमान दार औरत को गुंजाइश नहीं है, जब कि अल्लाह और उसका रसूल किसी काम का हुक्म देदें कि इन कामों में कोई अख्तियार रहे" यानी इस्लाम में  हक और सदाक़त की कोई गुंजाइश ही नहीं है.
अय्यारों के सरताज ये तो बतलाइए कि कौन सा ये दूसरा मेराज आपका कब और किस तरह हुवा था? किस बुर्राक या लिल्ली घोड़ी पर सवार होकर, अपनी रखैल ज़ैनब को बाँहों में लेकर आप ने आसमान की सैर की थी? पहले मेराज में तो अल्लाह तअला ने आपको परदे के पीछे रह कर नमाज़ों का खज़ाना देकर रुखसत किया था, इस बार तो आमने सामने बैठ कर बाक़ायदा क़ाज़ी बन के आप का निकाह पढाया और जिब्रील मुजम्मम आपके सामने थे? आप तो ईसा मूसा सबसे आगे हो गए कि किसी ज़ानिया को लेकर अल्लाह के सामने थे, उसको देखा भी, उससे बात भी की. आप पर अल्लाह की मार.

"और इन पैगम्बरों के वास्ते अल्लाह तअला ने जो बात मुक़र्रर कर दी थी, इस नबी पर कोई इलज़ाम नहीं. अल्लाह तअला ने इनके हक में यही मामूल रखा है जो पहली हो गुज़रे हैं और अल्लाह का हुक्म तजवीज़ किया हुवा होता है."
सूरह अहज़ाब  - ३३- २२-वां पारा आयत (38)

उम्मी अपनी ज़बान ए जिहालत में कह रहा है कि इस तरह की कहानी है हर पैगम्बर की है, उसकी ही नहीं. वह अपनी ज़िम्मेदारी अल्लाह पर डालता है. उसके दीवाने उसकी इस बात से इत्तेफाक करते हुए कहा करते हैं कि रसूल तो मासूम हुवा करते हैं, उनके हर काम मिनजानिब अल्लाह होता है.

"ये सब पैगम्बरान-गुज़श्ता ऐसे ही थे कि अल्लाह का पैगाम पहुँचाया करते थे और इस बात में अल्लाह से डरते थे, अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते रहे. अल्लाह हिसाब लेने के लिए काफी है. मुहम्मद तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं लेकिन रसूल हैं, सब नबियों पर ख़त्म हैं."
सूरह अहज़ाब  - ३३- २२-वां पारा आयत (३९-४०)

जेहालत से भरपूर पयंबरी कहती है कि वह अल्लाह का आखरी रसूल है. उसके बाद इस धरती पर कोई दूसरा रसूल न आएगा. यानी वह अपनी जिहालत की आयतें हमेशा हमेशा के लिए मुसलमानों के लिए वक्फ कर रहा है. मुसलमान दुन्या के साथ रह कर चाहे जितनी बुलंदी पर चला जाए, इस्लाम में आकर वह खाईं की गहराई ही में गिर जाएगा,

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 10 February 2013

सूरह एह्जाब - ३३ - (दूसरी क़िस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह एह्जाब - ३३२१-वां पारा
(दूसरी क़िस्त) 


कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान  बेग़ैररत"  कहा जा सकता हैयह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है.मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दाग़दार किया हैइसकी मिसाल बहैसियत एक रहनुमादुन्या में कहीं  मिल सकेगीकारी हजरात (पाठक गणसे इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक देंफिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.ज़ैद - एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा को बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरोंने अपहरण कर लिया और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथोंफरोख्त कर दियाज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा थाइस लिए मुहम्मदऔर उनकी बेगम खदीजा ने उसे भरपूर प्यार दियाउधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा थावह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करताउसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुँचामुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"
पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दीवह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गयामगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया.
"
खाई मीठ कि माई" ?बदहाल माँ बाप का बेटा थाहारसा मायूस हुवामुआमले को जान कर आस पास से भीड़  गईमुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था,
"
आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"ज़ैद अभी नाबालिग ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दियाऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि आमिना की मौत के बाद बचपन से ही वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.आमिना चल बसीयहाँ तक कि वह सिने बलूगत में  गए.पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.जी हाँआप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थीऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी  पहुँचा थाअन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.ज़ैद के बालिग होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से कर दीखानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी ? मुहम्मद जवाब थाज़ैद गुलाम नहींज़ैदज़ैद बिन मुहम्मद है.फिर हुआ ये,एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवादेखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा हैउसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गईघर से बाहर निकला तो घर का मुँह  देखाहवस से जब मुहहम्मद फ़ारिग हुए तबबाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलानेलगेमगर वह  पसीजामुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने देतू था क्यामैं ने तुझको क्या से क्या बना दियापैगम्बर का बेटाहम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगामान जा,ज़ैद  माना तो  मानाबोला तब मैं नादान थाऐमनआपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?मुहम्मद  की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैलीऔरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया,एलान किया कि  ज़ैनब मेरी बीवी हैमेरा इसके साथ निकाह अर्श पर हुवा हैनिकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लियाउस वक़्त का समाज था ही क्यारोटियों को मोहताजउसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है.ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है,इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँदर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए.

पढ़िए क़ुरआनी ग़लाज़त नाक बंद करके - - -

"नबी मोमनीन के साथ खुद उनकी नफ़स से भी ज़्यादः तअल्लुक़ रखते हैं और आप की बीवियाँ (नबी की बीवियाँ) उनकी (मोमनीन की)माएँ हैं."
सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा आयत (६)

मुसलामानों पर जज़बाती मक्खन लगा कर फ़रमाते हैं कि उनकी तमाम बीवियां मुसलामानों की माँ हैं.
मुहम्मद अपनी बीवियों और मोमनीन से खतरा मेहसूस करते हैं कि कहीं कुछ का कुछ न हो जाए. कहीं कोई बीवी ये न एलान करदे कि मेरा निकाह अर्श पर फलाँ मोमिन से हुवा था जैसे आपका ज़ैनब के साथ हुआ है. अल्लाह ने निकाह पढाया और जिब्रील ने गवाही दी.
जेहादों में मोमनीन को गाजर मूली की तरह कटवाने वाले ज़ालिम अल्लाह के रसूल मोमनीन को अपने नफ़स से भी करीब रखने का ढोंग कर रहे हैं.

"आप अपनी बीवियों से कह दीजिए कि अगर दुनयावी ज़िन्दगी और बहार चाहती हो तो आओ तुमको कुछ माल व मता दे दूं और खूबी के साथ रुखसत कर दूं. और अगर तुम अल्लाह को चाहती हो और उसके रसूल को चाहती हो और आखरत को चाहती हो तो नेक किरदारों के लिए अल्लाह ने उज़्र अज़ीम मुहय्या कर रखा है. ऐ नबी की बीवियों! जो कोई तुम में खुली बेहूदगी करेगी तो उसको दोहरी सज़ा दी जाएगी और ये बात अल्लाह को आसान है."
सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा आयत (२८-३०) 

बद किरदार मुहम्मद अपनी बीवियों के लिए बाकिरदार रहने की सीख देते है,
ज़ैनब की वजेह से घरेलू माहौल ख़राब हो गया था, सूरत यहाँ तक पहुँच गई थी कि मुहम्मद तमाम बीवियों को तलाक देने पर उतार आए थे. दोहरे अज़ाब और दोहरे सवाब के लिए कहते हैं कि ''ये बात अल्लाह को आसान है." क्यूं कि अल्लाह का अख्तियार तो वह खुद रखते थे.

"और जो कोई तुम में अल्लाह और उसके रसूल की फरमा बरदारी करेगी और नेक काम करेगी तो हम उसको इस का सवाब दोहरा देंगे और हम ने उसके लिए एक उम्दा रोज़ी तैयार कर रखी है."
सूरह अहज़ाब - ३३- २२-वां पारा आयत (३१)

धमकाने के साथ साथ अपनी बीवियों को समझाते भी हैं कि उनके पेट भरने का इंतज़ाम भी उन्हीं के हाथ में है, कहीं ठिकाना न मिलेगा.

"ऐ नबी की बीवियों! तुम मामूली औरतों की तरह नहीं हो. अगर तक़वा अख्तियार करो तो बोलने में नज़ाकत अख्तियार मत किया करो, इससे शख्स को ख़याल पैदा होने लगता है, जिसके दिल में खराबी है. कायदे के मुवाकिफ बातें किया करो. और अल्लाह को मंज़ूर है कि ऐ घर वालो! तुम को आलूदी से दूर रखे और तुमको पाक साफ़ रखे और तुम इन आयत को और इस हुक्म को याद रखो जिसका तुम्हारे घर में चर्चा रहता है, बे शक अल्लाह राजदान है, पूरा खबरदार है."
सूरह अहज़ाब - ३३- २२-वां पारा आयत (३२-३४)

खुद समाज का और ख़ास कर अपनी बीवियों का मुजरिम खानदानी बरतरी और तक़वा के सबक दे रहा है. तरीके बतलाता है कि तुम अखलाक़ शिकनी किया करो. गिरावट में लिप्त हुवा खुद साख्ता रसूल अपनी बीवियों को दर्से-पाकीज़गी दे रहा है. चर्चा उसकी ज़ैनब के साथ मुँह काला करने की ही घर घर हो रही थी, उन का मुँह अल्लाह की आयतों से बंद करा रहा है. वह बादशाह बे ताज बन चुका है, उसकी फौजें अतराफ़ के खित्तों पर ज़ुल्म ढाते हुए माले गनीमत और जज़्या वसूल रही हैं, जिसका २०% का हिस्सा इसने अपने और अपने अल्लाह के नाम कर रखा है, लोगों के दिलों पर दहशत कायम कर रखा है. भले ही उनमें उसकी बीवियां ही क्यूं न हो.
अफ़सोस कि मुसलमान ऐसे धूर्त की उम्मत होने में फ़ख्र महसूस करते हैं. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 4 February 2013

सूरह एह्जाब - ३३-

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


सूरह एह्जाब - ३३
(पहली किस्त)


कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान  बेग़ैररत"  कहा जा सकता हैयह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है.मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दाग़दार किया हैइसकी मिसाल बहैसियत एक रहनुमादुन्या में कहीं  मिल सकेगीकारी हजरात (पाठक गणसे इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक देंफिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.ज़ैद - एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा को बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरोंने अपहरण कर लिया और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथोंफरोख्त कर दियाज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा थाइस लिए मुहम्मदऔर उनकी बेगम खदीजा ने उसे भरपूर प्यार दियाउधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा थावह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करताउसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुँचामुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"
पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दीवह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गयामगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया.
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खाई मीठ कि माई" ?बदहाल माँ बाप का बेटा थाहारसा मायूस हुवामुआमले को जान कर आस पास से भीड़  गईमुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था,
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आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"ज़ैद अभी नाबालिग ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दियाऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि आमिना की मौत के बाद बचपन से ही वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.आमिना चल बसीयहाँ तक कि वह सिने बलूगत में  गए.पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.जी हाँआप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थीऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी  पहुँचा थाअन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.ज़ैद के बालिग होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से कर दीखानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी ? मुहम्मद जवाब थाज़ैद गुलाम नहींज़ैदज़ैद बिन मुहम्मद है.फिर हुआ ये,एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवादेखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा हैउसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गईघर से बाहर निकला तो घर का मुँह  देखाहवस से जब मुहहम्मद फ़ारिग हुए तबबाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलानेलगेमगर वह  पसीजामुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने देतू था क्यामैं ने तुझको क्या से क्या बना दियापैगम्बर का बेटाहम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगामान जा,ज़ैद  माना तो  मानाबोला तब मैं नादान थाऐमनआपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?मुहम्मद  की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैलीऔरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया,एलान किया कि  ज़ैनब मेरी बीवी हैमेरा इसके साथ निकाह अर्श पर हुवा हैनिकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लियाउस वक़्त का समाज था ही क्यारोटियों को मोहताजउसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है.ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है,इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँदर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए.

देखिए कि इस घिनावने आमाल के तहत, "कुरआने" नापाक कैसे कैसे गिरगिट के रंग बदलता है - - -

"ऐ नबी अल्लाह से डरते रहिए और काफ़िरों और मुनाफ़िकों का कहना न मानिए. बेशक अल्लाह बड़ी इल्म वाला और हिकमत वाला है,"
सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा आयत (१)

बने हुए नबी लोगों को अल्लाह से डराते हैं क्यूँकि यही हवाई अल्लाह उनके बचने का ढाल है. मुसलमान हुए लोगों को भड़काते हैं कि वह उनके मुखालिफों से भिड़े रहें और ये समाज और खुद अपने घर में पापड़ बेलते रहें.

"आल्लाह ने किसी के सीने में दो दिल नहीं बनाए, और तुम्हारी इन बीवियों से जिनसे तुम इज़हार कर लेते हो, तुम्हारी माँ नहीं बना दिया और तुम्हारे मुँह बोले बेटे को सच मुच का तुम्हारा बेटा नहीं बना दिया. ये सिर्फ तुम्हारे मुँह से कहने की बात है. और अल्लाह हक़ बात फ़रमाता है और वही सीधा रास्ता बतलाता है,"
सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा आयत (४)

इस वाकिए की आग मुहम्मद के घर तक पहुँची थी. कई बीवियाँ थीं, कई घर थे, बीवियों से आपस में तल्ख़ कलामी हुई थी. इन्हें रसूल धमका रहे हैं. जिस बच्चे को भरी महफ़िल में अल्लाह को गवाह बना कर अपना बेटा बनाया था, उसे अब ठुकरा रहे हैं. मुंह से निकली हुई बात की कोई अहमियत ही न हुई, जैसे बात पाख़ाने के मुक़ाम से निकली हो. उम्मत को ज़िना की सज़ा सौ कोड़े और अपने ज़िना पर अल्लाह का सहारा लेते हैं.
दर अस्ल मुहम्मद ताक़तवर गुंडे बन चुके थे, लोग उनसे इतना डरते थे कि हाथ जोड़ कर उनको "परवर दिगार" कहते और इल्तेजा करते. ये बातें कुरआन में अयाँ है. आगे देखिगा.

"तुम इनको उनके बापों की तरफ मंसूब किया करो. ये अल्लाह के नज़दीक रास्ती की बात है और अगर तुम उनके बापों को न जानते हो तो वह तुम्हारे दीन के भाई हैं और तुम्हारे दोस्त हैं और तुम को इसमें कुछ भूल चूक हो जाए तो इस पर तुम को कोई गुनाह नहीं , लेकिन हाँ! जो दिल से इरादा करके करो और अल्लाह तअला ग़फूरुर रहीम है."
सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा आयत (५)


इस आयत को दस बार पढ़ कर समझने की कोशिश करें कि क्या मुहम्मद खुद इस में अल्लाह नज़र नहीं आते?
बने हुए अल्लाह के रसूल अपने आप को समझाने की बजाए अपनी उम्मत को समझाते हैं कि इस तरह का बोला रिश्ता कोई अहमियत नहीं रखता. शख्स का गर बाप है तो उसको उसी के बाप के नाम से मंसूब करो. किसी और के बाप से नहीं. मुहम्मद जो गलती कर चुके हैं उसके लिए उनके पास उनका गुलाम "ग़फूरुर रहीम" है. इस तरह ये जाबिर शख्स सदियों से चले आ रहे इंसानी रिश्तों को तार तार कर रहा है.
औलादे नारीना से महरूम मुहम्मद ने ज़ैद जैसा क़ीमती फ़रमा बरदार औलाद को खो दिया. जज़बाती ज़ैद जिसने खदीजा और मुहम्मद को अपने माँ बाप पर तरजीह दी, सीधा इतना की मुहम्मद के कहने पर उसने मुहम्मद की हब्शी बाँदी से निकाह कर लिया, जो की उम्र दराज़ सियाह फ़ाम थी.
मुसलामानों! ऐसे शख्स को मोह्सिने इंसानियत कहते हो, ये तुम्हारी बद किस्मती है
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान