Tuesday 28 February 2017

Hindu Dharm Darshan 45


मानव मात्र 

मैं हिन्दू हूँ न मुसलमान, न क्रिश्चेन और न ही कोई धार्मिक आस्था रखने वाला व्यक्ति. 
मैं सिर्फ एक इंसान हूँ, मानव मात्र , हिदू और मुस्लिम संस्कारों में ढले आदमी को मानव मात्र बनना बहुत ही मुश्किल काम है. कोई बिरला ही सत्य और सदाक़त से आँखें मिला पाता है कि 
परिवेश का ग़लबा उसके सामने त्योरी चढाए खड़ा रहता है और वह फिर आँखें मूँद कर असत्य की गोद में चला जाता है. 
ग़ालिब कहता है - - - 
बस कि दुश्वार है हर काम का आसान होना, 
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना।
(हर आदमी, आदमी का बच्चा होता है चाहे उसे भेड़िए ने ही क्यूं न पाला हो और सभ्य होने के बाद ही आदमी इंसान कहलाता है)

मैं सिर्फ इन्सान हो चुका हूँ , इस लिए मैं इंसान दोस्त हूँ. 
दुन्या में सब से ज्यादह दलित, दमित, शोषित और भोली भाली मूर्ख जैसी  कौम है . मुसलमान, 
उस से ज्यादा हमारे भारत में अछूत, हरिजन, दलित और पिछड़ा वर्ग के नामों से पहचान रखने वाला हिन्दू . 
पहले अंतर राष्ट्रीय कौम को क़ुरआनी आयातों ने पामाल कर रखा है,
दूसरे को भारत में लोभ और पाखण्ड ने। 
मुट्ठी भर लोग इन दोनों को उँगलियों पर नचा रहे हैं. मैं फिलहाल मुसलामानों को इस दलदल से निकालने का बेडा उठता हूँ, हिन्दू भाइयो के शुभ चिन्तक लाखों हैं. इस लिए मैं इस मुसलमन मानव जाति का असली 
शुभ चिन्तक हूँ यही मेरा मानव धर्म है. नादान मुसलमान मुझे अपना दुश्मन समझते हैं जब कि मैं उनके अज़ली दुश्मन इस्लाम की का विरोध करता हूँ और वाहियात गाथा कुरआन का. 
हर मानवता प्रेमी पाठक से मेरा अनुरोध है कि वह मेरे अभियान के साथ आएं, मेरे ब्लॉग को मुस्लिम भाइयों के कानों तक पहुँचाएँ। हर साधन से उनको इसकी सूचना दें। मैं मानवता के लिए जान की बाज़ी लगा कर मैदान में उतरा हूँ, आप भी कुछ कर सकते हैं .



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 27 February 2017

Soorah mukal 67

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह  मुलक  -६७ -पारा -२९



मुसलमानों !
दस्तूर ए कुदरत के मुताबिक हर सुब्ह कुछ बदलाव हुवा करता है. 
कहते हैं कि परिवर्तन ही प्रकृति नियम है.
फ़िराक़ कहते हैं -
निज़ाम ए दह्र बदले, आसमान बदले ज़मीं बदले,
कोई बैठा रहे कब तक हयात ए बे असर लेकर.
तुम क्या "हयात ए बे असरी" को जी रहे हो? हर रोज़ सुब्ह ओ शाम तुम कुछ नया देखते हो . इसके बावजूद तुम पर असर नहीं होता? इंसानी ज़ेहन भी इसी ज़ुमरे में आता है, जो कि तब्दीली चाहता है.
बैल गाड़ियाँ इस तबदीली की बरकत से आज तेज़ रफ़्तार रेलें बन गई हैं. तुम जब सोते हो तो इस नियत को बाँध कर सोया करो कि कल कुछ नया होगा, जिसको अपनाने में हमें कोई संकोच नहीं होगा.
तरीक्यों से पहले सरे शाम चाहिए,
हर रोज़ आगाही से भरा जाम चाहिए.
मगर तुम तो सदियों पुरानी रातों में सोए हुए हो, जिसका सवेरा ही नहीं होने देते. दुनिया कितनी आगे बढ़ गई है, तुमको खबर भी नहीं.
रात मोहलत है इक, जागने के लिए,
जाग कर सोए तो नींद आज़ार है.
उट्ठो आँखें खोलो. इस्लाम तुम पर नींद की अलामत है. इसे अपनाए हुए तुम कभी भी इंसानी बिरादरी की अगली सफों में नहीं आ सकते. इस से अपना मोह भंग करो वर्ना तुम्हारी नस्लें तुमको कभी मुआफ नहीं करेगी.
खुद साख्ता अल्लाह बना पैगम्बर कहता है - - -

"वह बड़ा आलीशान है, जिसके कब्जे में तमाम सल्तनत है और हर चीज़ पर कादिर है, जिस ने मौत और हयात पैदा किया, ताकि तुम्हारी आजमाइस करे कि तुम में अमल में कौन ज़्यादः अच्छा है और वह ज़बरदस्त बख्शने वाला है."
सूरह  मुलक -६७ -पारा -२९- आयत (१-२)

मुसलामानों ! 
अगर किसी अल्लाह ने तुमको आजमाने के लिए पैदा किया है तो उस पर लअनत भेजो. एक बाप अपनी औलाद को पाल पोस कर इस लिए परवान चढ़ाता कि औलाद बड़ी होकर उसके बुढ़ापे का सहारा बनेगी, 
इंसानी कमजोरी के तहत ये बात जायज़ हो सकती है, 
अल्लाह का अगर ये ख़याल है तो तुम उस अल्लाह मुँह पर उसके एलान को मार दो. 

"जिसने सात आसमान ऊपर तले पैदा किए. सो तू फिर निगाह डाल के देख ले  . . . फिर बार बार निगाहे ज़ेल और दरमान्दा होकर तेरी तरफ़ लौट आएँगे और करीब के आसमान को चराग़ों से आरास्ता कर रखा है और हमने उनको शैतान के मरने का ज़ारीया भी बना दिया है और हम ने उनके लिए दोज़ख का अज़ाब भी तैयार कर रखा है."
सूरह  मुलक -६७ -पारा -२९- आयत (३-५)

कहाँ हैं ऊपर तले सात आसमान? 
ये मुहम्मदी अटकलें हैं. 
वह अरबों खरबों सितारों और सय्यारों को शामयाने को किंदील समझते हैं, और सितारों के टूटने को राम बाण. 
अहमकों के सरदार सरवरे कायनात.

"जब काफ़िर लोग दोज़ख में डाले जाएँगे तो उसकी बड़ी शोर की आवाज़ सुनेंगे और वह इस तरह ज़ोर मारती होगी जैसे मालूम होगा कि गुस्से के मारे फट पड़ेगी . . . "
सूरह  मुलक -६७ -पारा -२९- आयत (८)

क्या मुहम्मदी अल्लाह में तुमको कहीं भी जेहालत नज़र नहीं आती?. 

"बेशक जो लोग अपने परवर दिगार से बे देखे डरते हैं, उनके लिए मगफिरत और उजरे अज़ीम है."
सूरह  मुलक -६७ -पारा -२९- आयत (११)

पैगम्बर दगाबाज़ है जो बगैर देखे और बिना सोचे समझे किसी अल्लाह या रसूल्लिल्लाह का यक़ीन दिलाता है. मुआज्ज़िन झूटी गवाही अपनी अजान में देता है, उसको सजा मिलनी चाहिए. 

"आप कहिए कि उसी ने तुमको पैदा किया और कान, नाक और दिल दिया मगर तुम लोग कम शुक्र करते हो"
सूरह  मुलक   -६७ -पारा -२९- आयत (२३)
अफ़सोस कि मुसलमान अपने कान, नाक और दिल का इस्तेमाल नहीं करता.  




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 25 February 2017

Hindu Dharm Darshan 44


वेद दर्शन - - -           
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

दभीति को उनके नगर से बाहर ले जाने वाले असुरों को इंद्र ने मार्ग में रोका .
एवं उनके प्रकाश मान आयुधों को आग में जला दिया. 
इसके पश्चात इंद्र ने उन्हें बहुत सी गायें घोड़े और रथ प्रदान किए. 
इंद्र ने यह सब सोमरस के नशे में किया.

सूक्त 15-4

ऐसी हरकतें कोई नशे के आलम में ही कर सकता है 
कि दुश्मन के प्रकाशमान आयुधों को जला दे 
फिर उसको गाएँ घोड़े और रथ दे.
इंद्र की इस हरकत को किसी ने नहीं देखा 
अलबत्ता श्लोक रचैता पंडित ने ज़रूर इसे भंग के नशे में लिखा होगा .

(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 24 February 2017

soorah tarheem 66

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह तह्रीम ६६

अन्ना हज़ारे का इन्क़लाब आया और चार दिन में पूरे मुल्क को हिला कर चला गया. इस इन्क़लाब में गांधी के साथ कोई 'अबुल कलाम' नहीं था. मुसलामानों का कहीं दूर दूर तक अता पता नहीं था.
शबाना आज़मी ज़रूर थी जिसको आलिमान इस्लाम " नचनियाँ,गवैया और नापाक औरत से नवाज़ते हैं. शबाना एक अज़ीम फ़न्कारह ही नहीं, एक अज़ीम इंसान भी है, जिसकी पहचान आक्सफोर्ड का एवार्ड है जो इसे मिला. ऐसी ही कुछ फ़िल्मी हस्तियाँ हैं जिनका मेल भारतीयता से खता है.
अन्ना की हवा में जो जमाअत इस्लामी ने हिस्सा लिया वह 'मेहमान नाज़ेबा' थे उनकी तंजीम तो इस्लामी इन्कलाब की मुन्तजिर है. वह इंसानी मसायल से बेबहरे है.चाहते हैं कि देश में तमाम  रहनुमाओं की तस्वीरें उतार कर अल्लाह की तस्वीर लगा दी जाए, जैसे अभी मिस्र में देखा गया कि होस्नी मुबारक की तस्वीर हटा कर हवा का बुत, यानी अल्लाह का तोगरा लगा दिया गया.
बरेली के तथा कथित आला हज़रात ने उन मुसलामानों को कुफ्र का फतुवा दिया था जो गाँधी जी की अर्थी में शरीक हुए थे. फिर भी उनके नाम की आला हजरत एक्सप्रेस चलाई जा रही है और मुसलमान सुब्ह  ओ शाम उसका गुणगान करते हैं.
इस्लाम की घुट्टी मुसलमानों को दुन्या में कहीं सुर्ख रू नहीं होने देगी, ये जहाँ भी दूसरी कौमों के साथ रहते हैं अपने आप में ज़लील खवर रहते हैं. जहाँ ये काबिज़ हैं, हर रोज़ अपनी जेहादी मौत के नावाला आपस में होते रहते हैं. इस्लाम ने इंसानों को ऐसा ज़हरीला नशा पिलाया है जिसकी काट अभी तक तो पैदा नहीं हुवा है.
फिर मैं कहूँगा कि मुसलमान इस्लाम से तौबा करके मुस्लिम से ईमान दार मोमिम हो जाएँ, एक एलान के साथ. उनका कुछ न छिनेगा,  न बदलेगा, न नाम, न तहजीब ओ तमद्दुन, न रख रखाव और न किसी दूसरे धर्म की पैरवी . धर्मांतरण का मतलब होगा चूहे दानों की अदला बदली.  धर्म के नए मानी हैं धाँधली जिस दिन इस बात को समझ कर कोई गाँधी, कोई अन्ना पैदा होंगे उस दिन हिदुस्तान में मुकम्मल इन्कलाब आएगा.
    
देखो कि तुम अपनी नमाज़ों में क्या पढ़ते हो - - -

"ऐ नबी जिस चीज़ को अल्लाह ने आप के लिए हलाल किया है, आप उसे क्यूँ हराम फ़रमाते हैं.
 अपनी बीवियों की खुशनूदी हासिल करने के लिए?
और अल्लाह बख्शने वाला है."

मुहम्मद ज़रा सी बात पर बीवियों को तलाक़ देने पर आ गए जिसे उनका अल्लाह हलाल फ़रमाता है बल्कि समझाता है कि आप जनाब तलाक़ को क्यूँ हराम समझते हैं?
 हमारे ओलिमा डफ्ली बजाया करते है कि तलाक़ अल्लाह को सख्त ना पसन्द है.
कुरान में ऐसा कहीं है तो यहाँ पर तलाक़ इतना आसान क्यूँ?
दोहरा और मुतज़ाद हुक्म मुहम्मदी अल्लाह क्यूँ फ़रमाता रहता है?

"जब पैगम्बर ने एक बात चुपके से फरमाई, फिर जब बीवी ने वह बात दूसरी बीवी बतला दी और पैगम्बर को अल्लाह ने इसकी खबर देदी व् पैगम्बर ने थोड़ी सी बात जतला दी और थोड़ी सी टाल गए.जतलाने पर वह कहने लगी, आपको किसने खबर दी? आपने फ़रमाया मुझको बड़े जानने वाले, खबर रखने वाले ने खबर दी." (यानी अल्लाह ने)

वाक़ेआ यूं है- मुहम्मद की एक बीवी ने उनको शहद पिला दिया था , उन्हों ने इस शर्त पर पिया कि दूसरी किसी बीवी को इसकी खबर न हो,
मगर उसने अपनी सवतन को बतला दिया कि उनको बात ज़ाहिर न करना.
दूसरी ने तीसरी को कहा आज राजा इन्दर आएँ तो कहना,
 क्या शहेद पिया  है कि बू आ रही है? यही मैं भी कहूँगी. मज़ा आएगा.
मुहम्मद दूसरी के यहाँ गए तो उसने उनसे पुछा,"क्या शहेद पिया  है कि बू आ रही है? वह इंकार करते हुए टाल गए.
फिर तीसरी ने भी उनसे यही सवाल दोराय .क्या शहेद पिया  है कि बू आ रही है?"
मुहम्मद सनके कि जिसके यहाँ शहद पिया थ ये उसकी हरकत है सब बीवियों से उसने गा दिया .
बस इतनी सी बात पर पैगम्बर अपनी बीवियों पर बरसे कि अल्लाह ने उनको सारी खबर देदी.
गोया अल्लाह ने उनकी बीवियों में चुगल खोरी करता फिरा.
मैं मुहम्मदी अल्लाह को ज़ालिम, जाबिर, चाल चलने वाला, और मुन्ताकिम के साथ साथ चुगल खोर  भी कहता हूँ. जो अपने बन्दों को आपस में लड़ता है. 
और सभी ९ बीवियों को तलाक़ देने की धमकी देने लगे. 

"ऐ दोनों बीवियों ! अगर तुम अल्लाह के सामने तौबा कर लो तो तुम्हारे दिल मायल हो रहे हैं और अगर पैगम्बर के मुकाबले में तुम दोनों कार रवाईयाँ  करती रहीं तो याद रखो पैगम्बर का रफ़ीक़ अल्लाह है और जिब्रील है और नेक मुसलमान हैं और इनके अलावा फ़रिश्ते मददगार हैं."

मुहम्मद दो बे सहारा और मजबूर औरतो के लिए अल्लाह की, फरिश्तों की और इंसानों की फ़ौज खडी कर रहे हैं, इससे ही इनकी कमजोरी का अंदाजः किया जा सकता है.

"अगर पैगम्बर तुम औरतों को तलाक़ देदें तो उसका परवर दिगार बहुत जल्द तुम्हारे बदले इनको तुम से अच्छी बीवियाँ दे देगा जो इस्लाम वालियाँ, ईमान वालियाँ, फरमा बरदारी करने वालियाँ, तौबा करने वालियाँ, इबादत करने वालियाँ और रोजः रखने वालियाँ होंगी. कुछ बेवा और कुछ कुंवारियाँ होंगी."
ऐसे रसूल पर ग़ैरत वालियों की लअनत .

"ऐ ईमान वालो तुम अपने आप को और अपने घरों को आग से बचाओ जिसका ईंधन आदमी और पत्थर है, जिस पर तुन्दखू फ़रिश्ते हैं, जो अल्लाह की नाफ़रमानी नहीं करते, किसी बात में, जो उनको हुक्म दिया जाता है और जो कुछ उनको हुक्म दिया जाता है उसको बजा लाते है."

मुसलमानों! क्या ऐसी बातें तुम्हारी इबादत और तिलावत के लायक हैं जो वज्द में आकर तुम बकते हो. बड़े शर्म की बात है. सोचो, अल्लाह की बात में कोई बात तो हो.

"ऐ नबी कुफ्फर से और मुनाफिकीन से जेहाद कीजिए और उनका ठिकाना दोज़ख है और बुरी जगह है"

किसी इंसान का खून किसी हालत में भी जायज़ नहीं हो सकता, चाहे वह कितना बड़ा मुजरिम ही क्यूँ न हो, क़ातिल ही क्यूँ न हो. क़त्ल के मुजरिम को अल्म नाक  ज़िन्दगी गुज़ारने की सज़ा हो ताकि वह आखिरी साँसों तक सज़ा काटता ही मरे मगर हाँ !जेहादियों को देखते ही गोली मार देनी चाहिए जो इंसानी खून के बदले सवाब पाते हों.

"अल्लाह काफिरों के लिए नूह की बीवी और लूत कि बीवी का हाल बयान फ़रमाता है. वह दोनों हमारे खास में से खास दो बन्दों के निकाह में थीं. सो उन औरतों दोनों बन्दों का हक ज़ाया किया . दोनों नेक बन्दे अल्लाह के मुकाबिले में उनके ज़रा भी काम न आ सकेऔर उन दोनों औरतों को हुक्म हो गया और जाने वालों के साथ तुम भी दोज़ख में जाओ."

अल्लाह का मुकाबिला किस्से हुवा था? ऐ पागल क्या बक रहा है. ?
कमज़ोर इंसान ! अपनी बीवियों को किस नामर्दी के साथ धमका रहा है.
सूरह तह्रीम ६६ पारा २८ आयत (१-१०) 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 21 February 2017

Hindu Dharm Darshan 43



वेद दर्शन - - -            खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे यज्ञ कर्म करता अध्वर्युजनो ! तुम जो चाहते हो वह इंद्र के लिए सोमरस देने पर तुरंत मिल जाएगा. 
याज्ञको ! हाथों द्वारा निचोड़ा हुवा सोम रस लाकर इंद्र के लिए प्रदान करो.
द्वतीय मंडल सूक्त 14-8 
यज्ञ आयोजन करने वालों को पंडित आश्वासन सोमरस के चढ़ावे से इंद्र प्रसन्न हो जाएगे. 
ध्यान रख्खें वह ओम्रस हाथों द्वारा निचोड़ा हो, न कि पैरों द्वारा अथवा मशीनों द्वारा.
धन्य है पोंगा पंडितो.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

वेद दर्शन - - -            खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे  अध्वर्युजनो ! इंद्र के लिए सोम ले आओ एवं चमचों के द्वारा मादक सोम को अग्नि में डालो. इस सोम को पीने के लिए वीर इंद्र सदा इच्छुक रहते हैं. तुम काम वर्धक इंद्र के निमित्त सोम दो, क्यों कि वह इसे चाहते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 14-1 
कामुक इंद्र देव के लिए शराब की महिमा गान ?. 
इंद्र भगवान् की चाहत काम उत्तेजक सोमरस ??. 
भगवान् और मानव से इनकी फरमाइश??? 
जिन्हें गर्व हिंदुत्व का है वह कहाँ हैं ?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 20 February 2017

Soorah Tagabun 64

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह तग़ाबुन ६४

मुहम्मदी अल्लाह काफिरों, मुशरिकों, मुकिरों और मुल्हिदों का उनके मरने के बाद जो करेगा सो तो बाद की बात है, फिलहाल जिन लोगों ने इसका दीन ए इस्लाम क़ुबूल कर लिया है उनकी जान साँसत में डाले हुए है. जिन्हों ने इस्लाम नहीं कुबूल किया उनके लिए तो क़यामत और सवाब ओ अज़ाब मज़ाक की बातें हैं मगर जिन्हों ने इस्लाम की घुट्टी पी ली है उनपर अल्लाह का खौफ़ तारी रहता है. इस नए मौला की याद आते ही मुस्लिम, मस्जिद की तरफ़ भागते हैं. नमाज़ को किसी भी हालत में अल्लाह मुआफ़ नहीं करता खड़े होकर नहीं तो बैठ कर, बैठ कर भी नहीं लेट कर, बोल नहीं सकते तो इशारे से ही सहीह.नमाज़ किसी भी हालत में मुआफ़ नहीं.
इसी तरह रोज़ा भी है मगर थोड़ी सी रिआयत के साथ. आज नहीं रख पाए तो क़ज़ा हुवा, बाद में रखना पड़ेगा. मोहताजों को खाना खिला कर इसका हर्जाना अदा किया जा सकता है या दूसरे को बदले में रोज़ा रखवा कर जान छूट सकती है.
कुछ मॉल टाल इकठ्ठा हुवा तो इससे नजात पाने के लिए हज का रुक्न सामने खड़ा हुवा है कि मक्का जाकर आले रसूल की मदद करिए. यानी हज फ़र्ज़ बन जाता है.
इसके बाद खैरात लाजिम है. हर हालत में ज़कात निकलना फ़र्ज़ है २.५% सालाना अगर ४० रूपिया बचे तो १ रुपया ज़कात निकालिए. ये भुगतान तब तक लाजिम है जब तक की आप खुद खैरात खोरों की लाइन में न आ जाएँ.
चौदह सौ सालों से मुसलमान हुए इंसानी बिरादरी इस टार्चर को झेलती हुई चली आ रही है.इनकी ये अज़ीयत पसंदी दर असल इनकी ज़ेहनी गिज़ा बन चुकी है. जैसे कि क़दीम यूनान के उम्र क़ैद काटने वाले कैदियों को अपने हथकड़ियों और बेड़ियों से प्यार हो जाया करता था कि वह उसे रगड घिस करते कि क़ैदी के वह ज़ेवर चमकने लगते थे. वह उन बेड़ियों से नजात पाने के बाद उसे लादे रहते.
मुसलमान इन गैर तामीरी अमल और फेल के इतने आदी हो चुके हैं कि जैसे इन लग्व्यात के बगैर जिंदा ही नहीं रह सकते. अल्लाह के एजेंट्स इसके लिए हम्मा वक़्त तैयार रहते हैं. मुसलमान अपनी इस दीनी मुसीबत को ज़रा देर के लिए भूलना भी चाहे तो ये भूलने नहीं देते. वह दिन में पाँच बार इन्हें लाउड स्पीकर से याद दिलाए रहते हैं कि चलो अल्लाह के सामने उठठक  बैठक करने का वक़्त हो गया है. 
पहले ये गाज़ी माले गनीमत का मज़ा लिया करते थे अब मस्जिदों की खिद मत की ज़कात, मदरसों के चंदा और गण्डा तावीज़ इनका माल गनीमत बन चुके हैं
ये हराम खोर और निकम्मे खुद धरती का बोझ बने हुए हैं और हर साल अपनी जैसी एक जमात कौम को खोखला करने के लिए खड़ी कर देते हैं. ये लोग मुल्क के मदरसों में सरकारी मदद से मुफ्त खोरी की तालीम ए नाक़िस पाते हैं फिर बड़े होने पर बड़ी बड़ी मज़हबी किताबें लिखते है
एक नमूना मैं पेश कर रहा हूँ ,इनकी तहरीर का - - -  
एक बादशाह का क़िस्सा है कि निहायत मूतशद्दित (आतंकी) और मुतअस्सिब (भेद भाव करने वाला) था. इत्तेफ़ाक़ से मुसलामानों की एक लड़ाई में गिरफ़्तार हो गया. चूंकि मुसलामानों को इसने तकलीफ बहुत पहुँचाई थी, इस लिए इंतेक़ाम का ज़ोर इनमें भी बहुत था. इसको एक देग में डाल कर आग पर रख दिया.  इसने अव्वल अपने बुतों को पुकारना शुरू कर दिया और मदद चाही, जब कुछ न बन पडा तो वहीँ मुसलमान हुवा और लाइलाहा इललिल्लाह का विरद (रटंत) शुरू कर दिया. लगातार पढ़ रहा था और ऐसी हालत में जिस ख़ुलूस और जोश से पढ़ा जा सकता है. ज़ाहिर है अल्लाह तअला शानाहू की तरफ़ से जो मदद हुई, और इस ज़ोर की बारिश हुई कि वह सारी आग भी बुझ गई और देग ठंडी हो गई. इसके बाद जोर की आँधी चली, जिससे वह देग उडी और दूर उस शहर में जहां सब काफ़िर ही रहते थे, जा गिरी. ये शख्स लगातार कलमे तय्यबा पढ़ रहा था, लोग इसके गिर्द जमा हो गए और अजूबा देख के हैरान थे. इससे हाल दर्याफ़्त किया, उसने अपनी सरगुज़श्त सुनाई, जिससे वह लोग भी मुसलमान हो गए.
(तबलीगी निसाब फ़ज़ायल ज़िक्र ८९) 
मुसलामानों की ये रुस्वाए ज़माना जमाअत है जिसका ज़ेहनी मेयार आपने देखा.
अब देखिए कि इनके अल्लाह का क्या मेयार है.
"सब कुछ जो आसमानों में है, ज़मीन में हैं, अल्लाह की पाकी बयान करती हैं, इसी की सल्तनत है और वही तारीफ़ के लायक़ है और वह हर शय पर क़ादिर है ."
"वही है जिसने तुम को पैदा किया है, सो इनमे बअज़े काफ़िर हैं, बअज़े मोमिन और अल्लाह तुम्हारे आमाल देख रहा है."
"ये  काफ़िर दावा करते हैं हरगिज़ हरगिज़ दोबारा जिंदा न किए जाएँगे. आप कह दीजिए क्यूँ नहीं ? वल्लाह! दोबारा जिंदा किए जाएँगे. तुमको सब जतला दिया जाएगा"
"ए ईमान वालो! तुम्हारी बअज़ बीवियां और औलाद तुम्हारे दुश्मन हैं, सो तुम इनसे होशियार रहो और अगर तुम मुआफ़ करदो और दर गुज़र कर जाओ और बख्श दो तो अल्लाह बख्शने वाला है, रहेम करने वाला है."
"तो जहाँ तक तुम से हो सके अल्लाह से डरते रहो और सुनो और मानो. खर्च किया करो ये तुम्हारे लिए बेहतर होगा और जो शख्स नफसानी हिरस से महफ़ूज़ है, ऐसे लोग फलाह पाते हैं. अगर तुम अल्लाह को अच्छी तरह क़र्ज़ दोगे तो वह इसको तुम्हारे लिए बढाता चला जाएगा और तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और अल्लाह बड़ा क़द्र दान है. बड़ा बुर्दबार है, पोशीदः और ज़ाहिर को जानने वाला, ज़बरदस्त है, हिकमत वाला.है "
सूरह तग़ाबुन ६४ आयत (१-१८)

मुहम्मद दर अस्ल अल्लाह की हकीकत को जान चुके थे कि वह एक वह्म के सिवा और कुछ भी नहीं. इस बात का फ़ायदा लेते हुए खुद दर पर्दा अल्लाह बन बैठे थे, इस बात की गवाही कई जगह परखुद कुरआन देता है. अगर मुसलामानों के अक़ीदे का कोई अल्लाह होता तो वह सब से पहले मुहम्मद के साथ  कुछ इस तरह पेश आता- - -
ऐ मुहम्मद! तू मुझसे मुतालिक़ हमेशा ग़लत बयानी किया करता है,
मैं जो कुछ हूँ तुझे मालूम भी नहीं और जो नहीं हूँ वह तू खूब जानता है. 
मैंने कब तुझ पिद्दी को आप, आप कहकर मुख़ातिब किया था कि अपनी बकवास में तू बार बार कहता है
 " आप कह दीजिए - - -"
मैं अपने बन्दों को डराता हूँ?
इसके लिए कब तुझको मुक़र्रर किया?
वह खर्च  करें या न करें, उनका ज़ाती मुआमला है. मैं या तू कौन होते हैं इसकी राय के लिए?
जो जितनी मशक्क़त से चीज़ें पैदा करेगा वह उसे सर्फ़ करने में उतना ही मोहतात रहेगा.
भला मैंने बन्दों से कब क़र्ज़ माँगा ?
तूने मुझे एक सूद खोर बनिया बना कर बन्दों के सामने ला खड़ा किया.
तूने मुझे भी अपने जैसा समझा ?
मैं ये हूँ, मैं वह हूँ. मैं कद्र दान हूँ, मैं बुर्दबार हूँ, ज़बरदस्त हूँ, हिकमत वाला हूँ - - -
तुझे गलत फ़हमी है कि ये सब तू हो गया है और मेरा नाम लेकर तू इसका एलान किया करता है
ऐ अक्ल के अंधे! मैं अल्लाह हूँ अल्लाह!
इंसान जैसी अगर शक्ल नहीं है तो इंसान जैसी मेरी अक्ल कैसे हो सकती है?
मेरी अजीब ओ गरीब खसलातें तू बन्दों के सामने पेश किया करता है.
तू अल्लाह बन कर बन्दों को गुमराह कर रहा है जिसक अन्जाम कमसे कम इनके लिए बुरा ही होगा.

तू दुन्या के गुनाह गारों में अव्वल होगा. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 17 February 2017

Soorah Talaa q 65

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह तलाक़ ६५ 

मैं फिर इस बात को दोहराता हूँ कि मुस्लमान समझता है कि इस्लाम में कोई ऐसी नियमावली है जो उसके लिए मुकम्मल है, ये धारणा  बिलकुल बे बुन्याद है, बल्कि कुरआन के नियम तो मुसलामानों को पाताल में ले जाते हैं. मुसलामानों ने कुरानी निजाम ए हयात को कभी अपनी आँखों से नहीं देखा, बस कानों से सुना भर है. इनका कभी कुरआन का सामना हुवा है, तो तिलावत के लिए. मस्जिदों में कुवें के मेंढक मुल्ला जी अपने खुतबे में जो उल्टा सीधा समझाते हैं, ये उसी को सच मानते हैं. 
जदीद तालीम और साइंस का स्कालर भी समाजी लिहाज़ में आकर जुमा जुमा नमाज़ पढने चला ही जाता है. इसके माँ बाप ठेल ढकेल कर इसे मस्जिद भेज देते हैं, वह भी अपनी आकबत की खातिर. मज़हब इनको घेरता है कि हश्र के दिन अल्लाह इनको जवाब तलब करेगा कि अपनी औलाद को टनाटन मुसलमान क्यूँ नहीं बनाया ? और कर देगा जहन्नम में दाखिल. 
कुरआन में ज़मीनी ज़िन्दगी के लिए कोई गुंजाईश नहीं है, जो है वह क़बीलाई है, निहायत फ़रसूदा. 
क़ब्ल ए इस्लाम, अरबों में रिवाज था कि शौहर अपनी बीवी को कह देता था कि 
"तेरी पीठ मेरी माँ या बहन की तरह हुई," 
बस उनका तलाक हो जाया करता था. 
इसी तअल्लुक़ से एक वक़ेआ पेश आया कि कोई ओस बिन सामत नाम के शख्स ने गुस्से में आकर अपनी बीवी हूला को तलाक़ का मज़कूरा जुमला कह दिया. बाद में दोनों जब होश में आए तो एहसास हुआ कि ये तो बुरा हो गया. इन्हें अपने छोटे छोटे बच्चों का ख़याल आया कि इनका क्या होगा? दोनों मुहम्मद के पास पहुँचे और उनसे दर्याफ़्त किया कि उनके नए अल्लाह इसके लिए कोई गुंजाईश रखते हैं ? कि वह इस आफत ए नागहानी से नजात पाएँ. 
मुहम्मद ने दोनों की दास्तान सुनने के बाद कहा तलाक़ तो हो ही गया है, इसे फ़रामोश नहीं किया जा सकता. बीवी हूला खूब रोई पीटी और मुहम्मद के सामने गींजी कि नए अल्लाह से कोई हल निकलवाएँ. फिर हाथ उठा कर सीधे अल्लाह से वह मुख़ातिब हुई और जी भर के अपने दिल की भड़ास निकाली, तब जाकर अल्लाह पसीजा और मुहम्मद पर वह्यी आई. इसी रिआयत से इस सूरह का नाम सूरह तलाक़ पड़ा, वैसे होना तो चाहिए सूरह हूला. 
अब देखिए और सुनिए अल्लाह के रसूल पर आने वाली वहियाँ यानी ईश वाणी - - -
" ए पैगम्बर ! 
जब तुम लोग औरतों को तलाक़ देने लगो तो उनको इद्दत से पहले तलाक़ दो और तुम इद्दत को याद रखो और अल्लाह से डरते रहो जो तुम्हारा रब है. इन औरतों को इनके घरों से मत निकालो और न वह औरतें खुद निकलें, मगर हाँ अगर कोई खुली बे हयाई करे तो और बात है. ये सब अल्लाह के मुक़र्रर किए हुए एहकाम हैं." 

"फिर जब औरतें इद्दत गुजरने के करीब पहुँच जाएँ, इनको कायदे के मुवाफिक निकाह में रहने दो या कायदे के मुवाफिक इन्हें रिहाई देदो और आपस में दो मुअत्बर शख्सों को गवाह कर लो." 

"तुम्हारी बीवियों में जो औरतें हैज़ (मासिक धर्म) आने से मायूस हो चुकी हैं, अगर तुमको शुब्हः है तो इनकी इद्दत तीन महीने है और इसी तरह जिनको हैज़ नहीं आया और हामला औरतों का इनके हमल का पैदा हो जाना है."

"जो शख्स अल्लाह औए उसके रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इनमें रहेंगे. ये बड़ी कामयाबी है." 

अल्लाह की आकाश वाणी कुछ समझ में आई? 
पता नहीं इन आयतों से ओस बिन सामत और हूला बी की बरबादियों का कोई हल निकला या नहीं, 
इनको रोजों से नजात तो नहीं मिली अलबत्ता नमाज़ें इनके गले और पड़ गईं. कहीं कोई हल तो नाजिल नहीं हुवा . हाँ बे सिर पैर की बातें ज़रूर नाज़िल हो गईं. इस अल्लाही एहकाम में चौदह सौ सालों से माहरीन दीनयात ज़रूर मुब्तिला है कि वह आपस में मुख्तलिफ रहा करते हैं. तलाक के बाद शौहर का घर बीवी के लिए अपना कहाँ रह जाता है कि वह वहाँ जमी रहे और इद्दत के दौरान शौहर उसके साथ मनमानी करता रहे.

गौर तलब है कि मुहम्मद ने हमेशा मर्दों को ही इंसान का दर्जा दिया है. 
ये सारी मुहम्मदी नाज़ेबगी आज रायज नहीं है, पहले रही होगी. इसको सुधार कर ही शरअ को एक पैकर दिया गया है जो कि दर अस्ल एहकाम ए इलाही में इन्सान की मुदाखलत का नतीजा है, वर्ना अल्लाह की गुत्थी और भी उलझी हुई होती. 
अल्लाह की बातें पहले भी मुज़ब्ज़ब थीं और आज भी मुज़ब्ज़ब हैं. जैसे इस्लामी शरअ कुरआन को तराश खराश कर इस्लाम के बहुत दिन बाद बनाई गई, वैसे ही आज भी इसमें तबदीली की ज़रुरत है और इतनी ज़रुरत है कि आज इस्लाम की खुल कर मुखालिफत की जाए. खास कर औरतों के हक में इस्लाम निहायत ज़ालिम ओ जाबिर है, अफ़सोस कि यही औरतें इस्लाम की ज्यादह पाबंद है. वह सुब्ह उठ कर कुरआन की तिलावत को मख्खियों की तरह भिनभिनाने लगती हैं. वह अपने ही खिलाफ उतरी अल्लाह की आयातों पर मर्दों से ज्यादह ईमान रखती है. इनको इनका अल्लाह अकले सलीम दे.५०% की ये इंसानी आबादी अगर जग जाए तो मुसलामानों की दुन्या बदल सकती है.
कोई हूला नहीं पैदा हो रही कि अल्लाह को इन नाकिस आयातों पर अल्लाह को तलब करे. 
तमिल नाडू की कुछ मुस्लिम औरतें अपनी अलग एक मस्जिद बना कर उसमें पेश इमामी खुद करती है, इससे मर्दों का गलबा उन पर से उठा है. 
इसे इनकी बेदारी कहें या नींद? 

आजतक वह कठ मुल्लों की गिरफ्त में थीं, 
अब वह कठ मुल्लियों की गिरफ्त में होंगी. 
खवातीन की मस्जिद में भी मुहम्मदी अल्लाह के कानून कायदे होंगे. 
क्या इस मस्जिद में उन क़ुरआनी आयतों का बाई काट किया जाएगा जो औरतों को रुसवा करती हैं. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 14 February 2017

Hindu Dharm Darsha 42



वेद दर्शन - - -7   
                                           ऋग वेद -प्रथम मंडल 

(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

दूध भरे स्तनों वाली रंभाती हुई गाय के समान बिजली गरजती है. 
गाय जिस प्रकार बछड़े को चाटती है, उसी प्रकार बिजली मरूद गणों की सेवा करती है. इसी के फल स्वरूप मरूद गणों ने वर्षा की है.  
 (ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 3)(8)  
पोंगा पंडित की मंतिक़ देखिए , रंभाती गाय बिजली गरजती है तो मरूद गण वर्षा करते हैं. कुत्ते के भौंकने से मरूद गणों की हवा खिसकती होगी.
हे अश्वनी कुमारो ! सागर तट पर स्थित तुमहारी नौका, आकाश से भी विशाल है. धरती पर गमन करने के लिए तुम्हारे पास रथ हैं, 
तुम्हारे यज्ञ कर्म में सोमरस भी  सम्लित रहता है.
(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 46)(8)  

कल्पित देवताओं के कल्पित कारनामों को पुरोहित देवताओं को याद दिला दिला कर अपने बेवकूफ यजमान को प्रभावित करता है. जैसे कि वह उनके  हर कामों का चश्म दीद  गवाह हो. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 13 February 2017

Soorah munafikoon 63

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मुनाफिकून ६३- पारा २८

"जब आपके पास ये मुनाफिकीन आते हैं तो कहते हैं हम गवाही देते हैं कि आप बेशक अल्लाह के रसूल हैं और ये तो अल्लाह को मालूम है कि आप अल्लाह के रसूल हैं, अल्लाह तअला ही गवाही देता है.''

इंसानी फितरत की सब से बड़ी कमजोरी है अल्लाह . 
इसको मनवाकर उस से कुछ भी मनवाना आसान है. 
कुछ लोग अल्लाह के बाद सोचना ही पाप समझते हैं.
किस बेशर्मी से बात कही गई है 

"ये तो अल्लाह को मालूम है कि आप अल्लाह के रसूल हैं, अल्लाह तअला ही गवाही देता है.''
किस बुनियाद पर मुनाफ़िक़ मुहम्मद को रसूल मानने या न मानने की गवाही दे रहे हैं.?
कुदरत कोई चीज़ है, इसकी गवाही तो दी जा सकती है मगर इंसानी सोंच के नतीजे में उसे कोई रूप देना सरासर बे ईमानी है.

"मुनाफिकीन झूठे हैं. इन लोगों ने अपनी कसमों को सिपर बना रख्खा है. फिर ये अल्लाह की राह से रोकते हैं. बेशक इनके ये आमाल बहुत बुरे हैं."

जिस तरह खुद अल्लाह कुरआन में अपनी क़स्मों को सिपर बना कर, क़स्मों की छीछा लेदर करता है कि क़स्मों की कोई औकात नहीं रह जाती, उसी की राह पर उसके बन्दे चल रहे हैं .

"यही लोग आपके दुश्मन हैं. इनसे होशियार रहिए, अल्लाह इनको ग़ारत करे. कहाँ फिरे चले जाते हैं, जब इन से कहा जाता है कि रसूल के पास आओ, वह तुम्हारा इस्तगफ़ार  करदें तो मुंह फेर लेते हैं और उनको देखेंगे तो तकब्बुर करते हुए बेरुखी करते हैं."

क्या खूब ! 
अल्लाह कहता है कि अल्लाह उसे गारत करे. गोया वह भी मोहताज है और दुआ गो है.
मुहम्मद की सहीह औकात यही है कि वह पागलों की तरह कुरआन बकते और लोग दीवाने की बात अनसुनी करके आगे बढ़ जाते. आज उन लोगों पर हैरत होती है जो उसकी बड़ बड़ को दोहराना इबादत और तिलावत का दर्जा दिए हुए हैं.
मुहम्मदी दिमाग की शातिराना चाल है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है, वह जो भी कहता है, वह वही जाने.. अगर मुहम्मद इसे अपना कलाम कहते तो हर गली कूँचे में उनकी दुर्गत होती. इसी लिए मैं कहता हूँ कि इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी है अल्लाह, ईश्वर या गोड.

"ये कहते हैं कि  अगर अब मदीना लौट कर जाएँगे तो इज्ज़त वाला वहाँ से, ज़िल्लत वाले को बहार निकल देगा. और अल्लाह की है इज्ज़त और उसके रसूल की और मुसलामानों की, लेकिन मुनाफिकीन जानते नहीं..ऐ ईमान वालो! तुमको तुम्हारे मॉल और औलाद अल्लाह की याद से गाफिल न करने पाएँ ."
"अगर अब मदीना लौट कर जाएँगे तो इज्ज़त वाला वहाँ से, ज़िल्लत वाले को बहार निकल देगा" 
ये बात मुहम्मद का सख्त मुख़ालिफ़ और मदीना के होने वाले मुखिया अब्दुल्ला बिन उब्बी की जो यक़ीनन ठीक कह रहा था. मुहम्मद के मदीने आमद से उसका बना बनाया खेल बिगड़ गया था. वह अपने  साथियों से कहता कि तुम्हारे कहने पर उनको मैंने अल्लाह का रसूल मन लिया, फिर  उनकी ज्यादती भी    मजबूरन तस्लीम कर लिया कि ज़कात भी देने लगा, अब तुम चाहते हो कि उनका सजदा भी हम करने लगें तो ये हमसे न होगा.
बुग्ज़ी मुहम्मद ने अब्दुल्ला बिन उब्बी के मरने के बाद उसे उसकी कब्र से निकलवाया था और उसके मुँह में थूका था. हराम ज़ादे ओलिमा उस पर भी मुहम्मद का गुन गान किया.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 11 February 2017

Hindu Dharm Darsha 41



हिन्दू ब्राह्मण 
Pawan Prajapati   

ब्राह्मणवादी RSS पहले RSSAथा अर्थात Royal Supremo secret Agent जो अंग्रजों ने बनाया था. RSSA से A हटाकर ब्राह्मण गोलवलकर ने ब्राह्मणवादी संस्था RSS बना दिया ।और पिछड़े दलितों तथा मुसलमानों के बीच दरार पैदा कर शासन करना चाह्ता है और मनुस्मृति लागू करना चाहता है ॥ 
स्वयं को हिन्दू होने पर गर्व करने वाले पढ़े लिखे कुरमी ,कुशवाहा ,गुज्जर लोधी ,अहिर ,जाट माली ,तेली आदि बहुजन मूलनिवासी जो एक ही कुल एक ही बंश के हैं थोड़ा गौर करे....
और सोचे
जाति बनाने वाले वाले हिन्दू ब्राह्मण है। जातिगत भेदभाव निर्माण करने वाले हिन्दू ब्राह्मण है।
ब?
बहुजनो के खिलाफ षड़यंत्र रच उनके खिलाफ विधान लिखने वाला मनु ब्राह्मण हिन्दू था।
संत रविदास के हत्यारे हिन्दू ब्राह्मण थे।
संत कबीर का मजाक बनाने वाले हिन्दू ब्राह्मण ही थे।
(nishad mata se utpann Gautam Buddh) koliyon
के बुद्ध धम्म को ख़त्म करने वाल ब्राह्मण हिन्दू थे।
बौद्ध राजा बृहद्रथ मौर्या की हत्या करने वाला पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण हिन्दू था।
एक बौद्ध भिक्षु के सर के बदले 100 स्वर्ण मुद्राए देने वाला पातंजलि और उसका चेला पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण हिन्दू थे।
बहुजनो के गले में हांड़ी और पीछे झाड़ू लटकाने वाले ब्राह्मण हिन्दू थे।
बहुजनो को अछूत कह दुत्कारने वाल ब्राह्मण हिन्दू थे।
शुद्र और नारी को सिर्फ ताड़ने का अधिकारी बताने वाला तुलसीदास ब्राह्मण हिन्दू था।
शुद्र ऋषि शम्बूक(nishad) की ब्राह्मण के कहने पर हत्या करने वाला श्रंखला राम हिन्दू था।
महान धनुर्धर भील(nishad) बालक एकलव्य का अंगूठा मांगने वाला द्रोणाचार्य ब्राह्मण हिन्दू था।
शिवाजी महाराज का राजतिलक पाँव के अंगूठे से करने वाला ब्राह्मण हिन्दू था।
शाहू जी महाराज को शुद्र कह अपमानित करने वाला ब्राह्मण हिन्दू था।
देश की गुलामी के समय शुद्रो को हथियार ना उठाने का ज्ञान देने वाले ब्राह्मण हिन्दू थे।
शुद्रो द्वारा ज्ञान प्राप्ति को और धन संचय को गलत ठहराने वाले सब उच्च जातीय ब्राह्मण हिन्दू थे।
राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले को अपमानित करने वाले सब ब्राह्मण हिन्दू थे।
कुरमी ,कुशवाहा ,गुज्जर ,अहिर जाट ,लोधी ,चमार ,माझी आदि बहुजनो को शिक्षित करने वाली शिक्षा की देवी माता सावित्रीबाई फुले पर गोबर फेंकने वाले सब उच्च जातीय ब्राह्मण हिन्दू थे।
नारी शिक्षा के विरोधी हिन्दू ब्राह्मण थे।
1857 की क्रांति के जनक मातादीन भंगी को बन्दूक की बट से मारने वाला नशेड़ी मंगल पाण्डे ब्राह्मण हिन्दू ही था।
अछूतो के हाथ का खाना ना खाने की सलाह देने वाला मूलशंकर ब्राह्मण उर्फ़ दयानंद सरस्वती हिन्दू ही था।
बाबा साहब द्वारा बहुजन हितों के लिए लड़ी जा रही लड़ाई में हर कदम पर रोड़ा अटकाने वाले सब ब्राह्मण हिन्दू थे।
अछूतो के मताधिकार का विरोध करने वाले सब उच्च जातीय ब्राह्मण हिन्दू थे।
तेली, तमोली और कुरमी ,गुज्जर कुनभट लोगो के राजनितिक अधिकारो का मजाक उड़ाने वाला तिलक ब्राह्मण हिन्दू था।
अछूतो को हरिजन और गिरिजन कहकर गाली देने वाला बनिया मोहनदास गांधी हिन्दू था।
गोलमेज सम्मलेन में अछूतो के अधिकारो का विरोध करने वाला गांधी बनिया हिन्दू था।
कम्युनल अवार्ड के विरोध में मरण व्रत करने वाला गांधी हिन्दू था।
बाबा साहब पर हमले करने वाले सब ब्राह्मण हिन्दू थे।
महाड़ तालाब सत्याग्रह के दौरान बाबा साहब को जान से मारने की कोशिस करने वाले सब उच्च जातीय ब्राह्मण हिन्दू ही थे।
कालाराम मंदिर सत्याग्रह के दौरान बाबा साहब पर पत्थर बरसाने वाले सब पंडित पुजारी हिन्दू ही थे।
बड़ोदा में बाबा साहब को पानी ना पिने देने वाले सब ब्राह्मण हिन्दू थे।
संविधान सभा में बाबा साहब के आने का विरोध करने वाले सब उच्च जातीय ब्राह्मण हिन्दू थे।
साहब कांशीराम का विरोध करने वाले सब ब्राह्मण हिन्दू थे।
दुलिना गाव में बहुजन समाज के 9 लोग जिनमे एक 10 साल का बच्चा भी शामिल था को जिन्दा जलाने वाले सब आर्य समाजी हिन्दू ही थे।
BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा गुलाम है। इसके लिए जिम्मेदार सब उच्च जातीय ब्राह्मण हिन्दू ही है।
UNO की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर 18वे मिनट एक का उत्पीड़न होता है। ये सब उत्पीड़न उच्च जातीय हिन्दू ही करते है।
shudra(dalit)का मंदिर में घुसने का विरोध करने वाला शंकराचार्य ब्राह्मण हिन्दू है।
गांधी नेहरू को हीरो बनाने वाले सब हिन्दू ही है।
बहुजनो के प्रतिनिधित्व और आरक्षण के विरोधी सब उच्च जातीय ब्राह्मण हिन्दू ही है। सरदार पटेल को प्रधानमंत्री पद न देने वाले ब्राह्मण बनिया हिन्दू ही है ।
..फिर ब्राह्मण बनिया की पार्टी बीजेपी को वोट क्यों ? 
एक बनो।। 
ब्राह्मणवाद को लात मारो। 
और लात मारो ऐसे धर्म को जो तुम्हे इंसान ना समझता हो। 
गुलामी को तोड़ो। गुलामी की जड़ को नष्ट करो!


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah jumoaa 62

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ 

मुसलमानों को अँधेरे में रखने वाले इस्लामी विद्वान, मुस्लिम बुद्धि जीवी और कौमी रहनुमा, समय आ गया है कि अब जवाब दें- - -
कि लाखों, करोरों, अरबों बल्कि उस से भी कहीं अधिक बरसों से इस ब्रह्मांड का रचना कार अल्लाह क्या चौदह सौ साल पहले केवल तेईस साल चार महीने (मोहम्मद का पैगम्बरी काल) के लिए अरबी जुबान में बोला था? 
वह भी मुहम्मद से सीधे नहीं, किसी तथा कथित दूत के माध्यम से, 
वह भी बाआवाज़ बुलंद नहीं काना-फूसी कर के ? 
जनता कहती रही कि जिब्रील आते हैं तो सब को दिखाई क्यूँ नहीं पड़ते? जो कि उसकी उचित मांग थी और मोहम्मद बहाने बनाते रहे।
क्या उसके बाद अल्लाह को साँप सूँघ गया कि स्वयम्भू अल्लाह के रसूल की मौत के बाद उसकी बोलती बंद हो गई और जिब्रील अलैहिस्सलाम मृत्यु लोक को सिधार गए ?
उस महान रचना कार के सारे काम तो बदस्तूर चल रहे हैं, मगर झूठे अल्लाह और उसके स्वयम्भू रसूल के छल में आ जाने वाले लोगों के काम चौदह सौ सालों से रुके हुए हैं, 
मुस्लमान वहीँ है जहाँ सदियों पहले था,
उसके हम रकाब यहूदी, ईसाई और दीगर कौमें आज हम मुसलमानों को सदियों पीछे अतीत के अंधेरों में छोड़ कर प्रकाश मय संसार में बढ़ गए हैं. हम मोहम्मद की गढ़ी हुई जन्नत के मिथ्य में ही नमाजों के लिए वजू, रुकू और सजदे में विपत्ति ग्रस्त है. 
मुहम्मदी अल्लाह उन के बाद क्यूँ मुसलमानों में किसी से वार्तालाप नहीं कर रहा है? जो वार्ता उसके नाम से की गई है उस में कितना दम है? ये सवाल तो आगे आएगा जिसका वाजिब उत्तर इन बदमआश आलिमो को देना होगा.... 
क़ुरआन का पोस्ट मार्टम खुली आँख से देखें,
"हर्फ़ ए ग़लत" का सिलसिला जारी हो गया है. 
आप जागें, मुस्लिम से मोमिन हो जाएँ और ईमान की बात करें। 
अगर ज़मीर रखते हैं तो सदाक़त अर्थात सत्य को ज़रूर समझेंगे 
और अगर इसलाम की कूढ़ मग्ज़ी ही ज़ेह्न में समाई है तो जाने दीजिए अपनी नस्लों को तालिबानी जहन्नम जिन गलाज़तों में आप सने हुए हैं - - -
 उसे ईमान के सच्चे साबुन से धोइए 
और पाक ज़ेहन के साथ ज़िंदगी का आगाज़ करिए. 
गलाज़त भरे पयाम आपको मुखातिब करते हैं इन्हें सुनकर इससे मुंह फेरिए - - -

"सब चीजें जो कुछ आसमानों पर है और ज़मीन में हैं, अल्लाह की पाकी बयान करती हैं.जोकि बादशाह है, पाक है, ज़बरदस्त है, हिकमत वाला है." 
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (१)
सूरह जदीद के बाद मुहम्मद के लब ओ लहजे में संजीदी आ गई है, न अब वह जादूगरों की तरह हुरूफे मुक़त्तेआत की भूमिका बाँधते हैं न गैर फ़ितरी जेहालत करते है. उनकी शुरुआत तौरेत की तरह होती है,जैसा कि मैंने कहा था कि सूरह जदीद किसी यहूदी मुसाहिब की कही हुई थी.

''वही है जिसने नाख्वान्दा लोगों में , इन्हीं में से एक को पैगम्बर भेजा जो इनको अल्लाह की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाते हैं और इनको पाक करते हैं और इनको किताब और दानिश मंदी सिखलाते हैं और ये लोग पहले से ही खुली गुमराही में थे."
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (२)
मुहम्मद क़ुरआनी आयतें बना बना कर जो भी गाते बजाते थे उसका कोई असर समाज पर नहीं पड़ता था मगर उनकी तहरीक ने जब जेहाद का तरीक़ा अपनाया तो ये सदियों साल पहले कमन्यूज़म की सदा थी, जो सदियों बाद कार्ल मार्क्स की पहचान बनी. कार्ल मार्क्स की तहरीक में किसी अल्लाह का झूट नहीं था, जिसकी वजेह से बनी नव इंसान की आँखें खुलीं, मुहम्मद की तहरीक में झूट और कुरैश परस्ती ने आबादी को मज़हबी अफीम दे दिया, जिसके सेवन चौथाई दुन्या अफीमची बन गई. "जिन लोगों पर तौरेत पर अमल करने का हुक्म दिया गया , फिर उन्हों ने उस पर अमल नहीं किया क्या उनकी हालत उस गधे की सी है जो बहुत सी किताबें लादे हुए है , उनकी हालत बुरी है जिन लोगों ने अल्लाह की किताब को झुटलाया."
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (५)

यहूदियों की किताब तौरेत है, जिस पर वक़्त के साथ बदलते रहने की ज़रुरत उन्हों ने समझी और आज भी वह आलमी कौमों में सफ़े अव्वल पर हैं. सच पूछिए तो गधे अब मुसलमान हैं जो कुरान को लादे लादे दूसरी कौमों के खिदमत में लगे हुए हैं.

''आप कह्दीजिए कि ऐ यहूदियों! अगर तुम्हारा दावा है कि तुम बिला शिरकत गैरे अल्लाह को मकबूल हो तो तुम मौत की तमन्ना करो अगर तुम सच्चे हो. और वह कभी भी इसकी तमन्ना नहीं करेंगे बवाजेह इस आमाल के जो अपने हाथों में समेटे हुए हैं. आप कह दीजिए कि जिस मौत से तुम भाग रहे हो, वह तुमको आ पकड़ेगी." 
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (६-७)
मुलाहिजा हो- - - 
है न मुहम्मद की गधे पन की बात ? जवाब में यही बात कोई यहूदी, मुसलामानों को कह सकता है. मौत को कौन पसँद करता है? यहाँ तक कि हैवान भी इस से दूर भागता है. मुसलमानों को जो जन्नत ऊपर मिलेगी वह तो मौजूदा हालात से लाख गुना बेहतर होगी, फटाफट मौत की तमन्ना करें या फिर बेदार हों कि जो कुछ है बस यही दुन्या है, जिसमें ईमान के साथ ज़िन्दगी गुज़ारें और हो सके तो कुछ खिदमते खल्क करें. 

"ऐ ईमान वालो जब जुमअ के रोज़ नमाज़ के लिए अज़ान कही जाया करे तो तुम अल्लाह की याद की तरफ चल दिया करो और खरीद फरोख्त छोड़ दिया करो. और वह लोग जब किसी तिजारत या मश्गूली की चीज़ को देखते हैं तो वह उनकी तरफ दौड़ने के लिए बिखर जाते हैं और आपको खडा हुवा छोड़ जाते है. आप कह दीजिए कि जो चीज़ पास है वह ऐसे मशागिल और तिजारत से बदर्जाहा बेहतर है और अल्लाह सब से अच्छा रोज़ी पहचानने वाला है." 
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (९-११)

एक बार मुहम्मद अपने झुण्ड के साथ किसी बाज़ार में थे कि बाज़ार की 
अशिया और हंगामों ने झुण्ड को अपनी तरफ खींच मुहम्मद अकेले पड़ गए थे, उनको जान का खतरा महसूस हुवा तब ये आयते उनको सूझीं , 
ऐसे बुजदिल थे अल्लाह के रसूल. 
मुहम्मद के अल्लाह की दूसरी बेहतर रोज़ी जेहाद है. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 7 February 2017

Hindu Dharm Darsha 40



मुझे हिन्दुत्व अज़ीज़ है, 

हिंदुत्व मेरी पहली पसंद ही नहीं, मेरा ईमान भी है. 
हर हिदुस्तानी को मेरी तरह ही हिन्दुत्व प्रेम होना चाहिए, 
ख्वाह वह किसी जाति या धर्म का हो.
सिर्फ हिन्दुस्तान में ही नहीं ,
दुन्या के हर भूभाग का अपना अपना कलचर होता है, 
तहजीबें होती हैं और रवायतें होती हैं. हिदुस्तान का कलचर अधिक तर हिंसा रहित है. मारकाट से दूर , मान मोहक नृत्य और गान के साथ. 
जब धर्म और मज़हब कलचर में घुसपैठ बना लेते हैं तो, 
वहां के लोगों को जेहनी कशमकश हो जाती है 
जो बाद में विरोध और झगडे का कारण बन जाते हैं. 
मुझे हिन्दुत्व इस लिए पसंद है कि हम कभी सोच भी नहीं सकते कि 
शादी ब्याह में मेरी बेटी के तन पर अरब के सफेद जोड़े में रुखसत हो, 
आलावा सुर्ख लिबास के दूसरा कोई रंग मुझे गवारा नहीं. 
मुझे बदलते मौसम के हर त्यौहार पसंद हैं, 
जो मेले ठेले के रूप में होते है, मेरा दिल मोह लेते हैं 
जब मेले जाती हुई महिलाएं  रवायती गीत गाती हैं. 
जब मुख्तलिफ जातियां शादी बारात में अपने अपने पौराणिक कर्तव्य दिखलाती हैं. मुझे रुला देता है वह पल जब बेटी अपने माँ बाप को आंसू भरी आँखों से विदा होती है. मैं अन्दर ही अन्दर नाचने लगता हूँ 
जब कोई कबीला अपने आबाई रूप में तान छेड़ता है. 
मैं ही नहीं अमीर ख़ुसरो, रहीम, रसखान और नजीर बनारसी जैसे 
मुसलमान भी  हिन्दुत्व पर नहीं बल्कि अपनी सभ्यता पर जान छिड़कते थे.
धर्मों ने आकर सभ्यताओं,में दुर्गन्ध भर दी है, 
खास कर इस्लाम ने इसे गुनाह करार दे दिया हैं. 
इस्लाम की शिद्दत इतनी रही कि बारात में नाचने गाने को हराम करार दिया है, 
वह कहता है कि इन मौकों पर दरूद शरीफ 
(सय्यादों यानी मुहम्मद के पुरखों का गुनगान) 
पढ़ते हुए चलो. 
मनुवाद ने नाचने गाने की आज़ादी तो दी है मगर हर मौके पर अपने किसी आत्मा को घुसेड दिया है कि इनकी पूजा भी ज़रूरी हो गई है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 6 February 2017

Soorah Saf 61

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह सफ़ ६१- पारा -२८

क़ुरान कहता है - - -
"सब चीजें अल्लाह की पाकी बयान करती हैं, जो कुछ कि आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है. वही ज़बरदस्त है, हिकमत वाला है. ऐ ईमान वालो ! ऐसी बात क्यूँ कहते हो जो करते नहीं? अल्लाह के नज़दीक ये बात बड़ी नाराज़ी की बात है कि ऐसी बात कहो और करो नहीं."
 सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१-३)

और खुद साख्ता रसूल की नापाकी भी बयान करती है, जो मोमिन को गुमराह करके मुस्लिम बनाते हैं.
"जब मूसा ने अपनी कौम से फ़रमाया कि ऐ मेरी कौम मुझको क्यूँ ईज़ा पहुंचाते हो , हालांकि तुम को मालूम है कि मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ . फिर जब वह लोग टेढ़े हो रहे तो अल्लाह तअला ने इन्हें और टेढ़ा कर दिया."
 सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (५)

मूसा एक ज़ालिम तरीन इंसान था, तौरेत उठा कर इसकी जन्गी दास्ताने पढ़ें. अल्लाह टेढ़ा तो नहीं होता मगर हाँ मुहम्मदी अल्लाह पैदायशी टेढ़ा है.

"जब ईसा बिन मरियम ने बनी इस्राईल से फ़रमाया कि ऐ बनी इस्राईल! मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ कि मुझ से पहले जो तौरेत आ चुकी है, मैं इसकी तस्दीक करने वाला हूँ और मेरे बाद जो रसूल आने वाले हैं, जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ, फिर जब वह उनके पास खुली दलीलें ले तो वह लोग कहने लगे सरीह जादू है."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (६)

न ईसा पर इंजील नाज़िल हुई और न मूसा पर तौरेत. इंजील मूसा और उसके बाद उनके पैरोकारो की तसनीफ़ है जो चार पांच सौ वर्षों तक लिखी जाती रही है. तौरेत  यहूदियों का खानदानी इतिहास है, ये आसमान से नहीं उतरी और न इंजील आसमान से टपकी. ये भी ईसा के साथ रहने वाले हवारियो (धोबियों)  का दिया हुवा बयान है जो ईसा के खास हुवा करते थे. इंसानी जन्गों ने मूसा, ईसा और मुहम्मद को पैगामबर बनाए हुए है. मुसलमानों ! तुमको कुरआन सफेद झूट में मुब्तिला किए हुए है कि इंजील में कोई इबारत ऐसी दर्ज हो कि "जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ " झूठे ओलिमा तुमको  अंधरे में रख कर अपनी हलुवा पूरी अख्ज़ कर रहे है.

"उस शाख से ज्यादह ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट बाँधे हाँलाकि वह इस्लाम की तरफ बुलाया जाता है."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (७)

ये क़ुरआनी तकिया कलाम है, अल्लाह की जेहालत को न मानना ज़ुल्म है और बेकुसूर लोगों पर जंग थोपना सवाब है.

"ये लोग चाहते हैं कि अल्लाह के नूर को अपने मुँह से फूंक मार कर बुझा दें हाँला कि अल्लाह अपने नूर को कमाल तक पहुँचा कर रहेगा. गो काफ़िर लोग कितना ही नाखुश हों "
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (८)

मुहम्मद की कठ मुललई पर सिर्फ़ हँस सकते हो.

"वह अल्लाह ऐसा है जिसने अपने रसूल को सच्चा दीन देकर भेजा है, ताकि इसको तमाम दीनों पर ग़ालिब कर दे, गोकि मुशरिक कितने भी नाखुश हों."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (९)
अगर तमाम दीन अल्लाह के भेजे हुए हैं तो किसी एक को ग़ालिब करने का क्या जवाज़ है? अल्लाह न हुवा कोई पहेलवान हुवा जो अपने शागिदों में किसी को अज़ीज़ और किसी को गलीज़ समझता है.

"ऐ ईमान वालो ! क्या मैं तुमको ऐसी सौदागरी बतलाऊँ कि दूर तक अज़ाब से बचा सके, कि तुम लोग अल्लाह पर और इसके रसूल पर ईमान लाओ और अल्लाह की राह में अपने माल और अपनी जान से जेहाद करो ये तुम्हारे लिए बहुत बेहतर है, अगर तुम कुछ समझ रखते हो."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१०-११)

"जैसा कि ईसा इब्ने मरियम ने हवारीन से फ़रमाया कि अल्लाह के वास्ते मेरा कौन मददगार होता है ? हवारीन बोले हम अल्लाह मददगार होते हालांकि सो बनी इस्राईल में कुछ लोग ईमान लाए , कुछ लोग मुनकिर रहे सो हमने ईमान वालों के दुश्मनों के मुकाबिले ताईद की सो वह ग़ालिब रहे."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१४)

मुहम्मद मक्का के काफिरों को हवारीन बना रहे हैं.
मुहम्मद अपनी एडी की गलाज़ात उस अज़ीम हस्ती ईसा की एडी में लगाने की कोशिश कर रहे हैं. उस कलन्दर का जँग से क्या वास्ता. उसका तो कौल है - - -
"अपनी तलवार मियान में रख ले, क्यूँ कि जो तलवार चलाते हैं, वह सब तलवार से ही ख़त्म किए जाते हैं."




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 4 February 2017

Hindu Dharm Darsha 39


यथा राजा तथा प्रजा  

60 के दशक में कानपुर में  फूल बाग़ के मैदान में एक पांडे जी हुवा करते थे. घोर नास्तिक. हिदू धर्म की बखिया उधेड़ते .
उनके गिर्द सौ डेढ़ सौ जनता इकठ्ठा हो कर बैठ जाती, 
अनोखी बातें पांडे जी के मुखर विन्दु से फूटतीं 
जिसको जनता नकार तो नहीं सकती थी मगर पचा भी न पाती. 
वह कहते जंग में चीन ने भारत के एक हिस्से पर अधिकार कर लिया, क्यूँ न पवन सुत हनुमान उड़कर आए ? 
क्यों न अपनी गदा से  चीनियों का सर न फोड़ दिया?? 
उनकी बातें सुनकर कुछ लोग हनुमान भक्त आँख बचा कर उन पर कंकड़ी मार देते, 
जैसे मुसलमान हाजी मक्का में जाकर शैतान को कंकड़ी मरते हैं .
वह हंस कर कहते यह तुम्हारा दोष नहीं तुम्हारे धार्मिक संस्कारों का दोष है कि तुम अभी तक सभ्य इंसान भी नहीं बन सके.

उनके जवाब में थोड़ी दूर पर एक मौलाना इस्लाम की तबलीग़ करते, वही घिसी पिटी बातें कि अल्लाह ने कुरआन में फ़रमाया है - - - 
उनके पास भी दस पांच लोग इकठ्ठा होते.

उसी ज़माने में एक कालिया मदारी हुवा करता था 
जिसकी लच्छेदार बातें सुनने के लिए 5-6 सौ लोग घेरा बना कर खड़े हो जाते. 
अपने वर्णन कला पर उसको पूरा कमांड होता कि वह ग्रीस को मरहम बना कर और काली रेत को मंजन बना कर बेच लेता, 
वह भीड में मूर्खों को ताड लेता उनको मंजन मुफ्त जैसे बाँट कर फंसा लेता फिर उनसे बातों की चोट से पैसे निकलवा लेता.
महफ़िल बर्खास्त होने से पहले अपने शिकारों को मुखातिब करके बतलाता कि 
तुममे कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हों ने कल रत अपनी माँ के साथ ज़िना किया होगा , वह तुसे कहेगे कि फंस गए बेटा.
कभी कभी मोदी का भाषण सुनकर एकदम मुझे कालिया मदारी याद आता है और उसके श्रोता गण.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 3 February 2017

Soorah muntha 60

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८

जिस तरह आप कभी कभी खुदाए बरतर की ज़ात में ग़र्क़ होकर कुछ जानने की कोशिश करते हैं, इसी तरह कभी मुहम्मद की ज़ात में ग़र्क़ होकर कुछ तलाश करने की कोशिश करें. अभी तक बहैसियत  मुसलमान होने के उनकी ज़ात में जो पाया है, वह सब दूसरों के मार्फ़त है. जबकि इनके कुरआन और इनकी हदीस में ही सब कुछ अयाँ है. 
आपके लिए मुहम्मद की पैरवी कल भी ज़हर थी और आज भी ज़हर है. इंसानियत की अदालत में आज सदियों बाद भी इन पर मुक़दमा चलाया जा सकता है, जिसमे बहेस मुबाहिसे के लिए मुहज्ज़ब समाज के दानिशवरों को दावत दी जाय.
 इनका फैसला यही होगा की इस्लाम और कुरआन पर यकीन रखना काबिले जुर्म अमल होगा. आज न सही एक दिन ज़रूर ऐसा वक़्त आएगा कि मज़हबी ज़हन रखने वाले तमाम मजहबों के अनुनाइयों को सज़ा भुगतना होगा जिसमे पेश पेश होंगे मुसलमान.
धर्म व् मज़हब द्वारा निर्मित खुदा और भगवान दुर्गन्ध भरे झूट हैं, इसके विरोध में सच्चाई सुबूत लिए खड़ी है. मानव समाज अभी पूर्णतया बालिग़ नहीं हुवा है, अर्ध विकसित है, इसी लिए झूट का बोल बाला है और सत्य का मुँह काला है. जब तक ये उलटी बयार बहती रहेगी, मानव समाज सच्ची खुशियों से बंचित रहेगा.   

कुरआन कहता है - - -

"ऐ ईमान वालो ! तुम मेरे दुश्मनों और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाओ कि इनकी दोस्ती का इज़हार करने लगो, हालाँकि तुम्हारे पास जो दीन ए हक़ आ चुका है, वह इसके मुनकिर है. रसूल को और तुमको इस बिना पर कि तुम अपने परवर दिगार पर ईमान ले आए, शहर बदर कर चुके हैं. अगर तुम मेरे रस्ते पर जेहाद करने की ग़रज़ से , मेरी रज़ामंदी ढूँढने की ग़रज़ से निकले हो. तुम इनसे चुपके चुपके बातें करते हो , हालाँकि मुझको हर चीज़ का इल्म है. तुम जो कुछ छिपा कर करते हो और जो ज़ाहिर करते हो. और तुम में से जो ऐसा करेगा, वह राहे रास्त से भटकेगा."
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१)

  मुहम्मद के साथ मक्का से मदीना हिजरत करके आए हुए लोगों को अपने खूनी रिश्तों से दूर रहने की सलाह अल्लाह के नबी बने मुहम्मद दे रहे हैं मुसलमानों का इनसे मेल जोल मुहम्मदी अल्लाह को पसंद नहीं. हर चुगल खोर की इत्तेला अल्लाह की आवाज़ का कम करती है. 
कुरआन खूनी रिश्तों को दर किनार करते हुए कहता है - - -

"अपने अजीजों से बे तअल्लुक़ ही नहीं, बल्कि उनके दुश्मन बन जाओ, और ऐसे दुश्मन कि उनको जेहाद करके क़त्ल कर दो."

इंसानियत के खिलाफ इस्लामी ज़हर को समझें. जिसे आप पिए हुए हैं.
मुहम्मद और इस्लामी काफिरों का एक समझौता हुवा था कि अगर कुरैश में से कोई मुसलमान होकर मदीना चला जाए तो उसको मदीने के मुसलमान पनाह न दें, इसी तरह मदीने से कोई मुसलमान मुर्तिद होकर मक्का में पनाह चाहे तो उसे मदीना पनाह न दें. इस मुआह्दे के बाद एक कुरैश खातून जब मुसलमान होकर मदीना आती हैं तो मुहम्मदी अल्लाह फिर एक बार मुआहदा शिकनी करके उसे पनाह देदेता है. मुहम्मद फिर एक बार वह्यी का खेल खेलते हैं, अल्लाह कहता है कि अगर उसके शौहर ने उसका महर अदा किया हो तो वह उसे अपने शौहर को वापस करके मदीने में रह सकती है.
यह हुवा करती थी मुहम्मदी अल्लाह की ज़बान और पैमाना.

"जो मुसलमान अपने बाल बच्चों को छोड़ कर मदीने आए हैं, अपनी काफ़िर बीवियों से तअल्लुक़ ख़त्म कर लें और मुसलमान बीवियाँ जो मक्का में फँसी हुई है, इनके शौहर का हर्ज खर्च देकर कुफ्फर इनको अपनी मिलकियत में लेलें और इसी तरह मुसलमान इनकी बीवियों का हर्जाना अदा करदें."
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१०)

गौर तलब है की मुहम्मद की नज़र में क्या क़द्र  ओ क़ीमत थी औरतों की ? मवेशियों की तरह उनकी ख़रीद फ़रोख्त करने की सलाह देते है सल्ललाहो अलैहे वसल्लम. कितना मजलूम और बेबस कर दिया था पैगम्बर बने मुहम्मद ने.
माज़ी में इंसान मजबूर और बेबस था ही, कोई इस्लाम ही जाबिर नहीं था, मगर वह माज़ी आज भी ईमान के नाम पर ज़िन्दा है. अरब में आज भी औरतों के दिन नहीं बहुरे हैं, सात परदे के अन्दर हरमों में मुक़य्यद यह खुदा की मखलूक पड़ी हुई है. झूठे और शैतान ओलिमा कहते हैं कि इस्लाम औरतों को बराबर के हुकूक देता है.

मुसलमान औरतें जो मक्का से आती हैं उनकी खासी छानबीन हुवा करती थी, कहीं वह काफ़िरों से हामला होकर तो मदीने में दाखिल नहीं हो रही?
 क्या होने वाला बच्चा भी काफ़िर ही पैदा होगा? ईमान लाई माँ की तरबियत क्या उसे काफ़िर बना देगी? मुहम्मद को इतनी भी अक्ल नहीं थी.
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१०)

ये औरतें बोहतान की औलादें साथ में लेकर न आएंगी जिनको कि अपने हाथों और पाँव के दरमियान बना लें - - -
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१२)
यह किसी अल्लाह की आवाज़ हो सकती है ???



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान