Sunday 29 April 2012

सूरह ताहा २० 1st

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह ताहा २० 1st 

बहुत से लक़बों (उपाधियों) के साथ साथ तथा-कथित पैगम्बर मुहम्मद का एक लक़ब उम्मी भी है जिसके के लफ़्ज़ी मानी होते हैं अनपढ़ और जाहिल. ये लफ्ज़ किसी फर्द को नफ़ी (न्यूनता की परिधि)में ले जाता है मगर बात मुहम्मद की है तो बात कुछ और ही हो जाती है. इस तरह उनके तुफैल में उम्मी शब्द पवित्र और मुक़द्दस हो जाता है. ये इस्लाम का खास्सा है. इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में कई लफ्जों आलिमों के साजिशो से अस्ल मानी कुछ के कुछ हो गए हैं जिसे आगे आप देखेंगे. मुहम्मद निरे उम्मी थे, मुतलक जाहिल. क़ुरआन उम्मी, अनपढ़ और अकली तौर पर उजड, मुहम्मद का ही कलाम (वचन) है जिसे उनके गढे हुए अल्लाह का कलाम कहा जाता है. इसको कुराने-हकीम कहा जाता है यानी हिकमत से भरी हुई बातें.
क़ुरआन के बड़े बड़े हयूले बनाए गए, बड़ी बड़ी मर्यादाएं रची गईं, ऊंची ऊंची मीनारें कायम की गईं, इसे विज्ञान का का जामा पहनाया गया, तो कहीं पर रहस्यों का दफीना साबित किया गया है. यह कहीं पर अजमतों का निशान बतलाया गया है तो कहीं पर जन्नत की कुंजी है और हर सूरत में नजात (मुक्ति) का रास्ता, निजामे हयात (जीवन विद्या) तो हर अदना पदना मुसलमान इसे कह कर फूले नहीं समाता, गोकि दिनोरात मुस्लमान इन्हीं क़ुरानी आयतों की गुमराही में मुब्तितिला, पस्पाइयों में समाता चला जा रहा है. आम मुसलमान क़ुरआन को अज़ खुद कभी समझने की कोशिश नहीं करता, उसे हमेशा अपनी माँओं के खसम ओलिमा (धर्म गुरु) ही समझाते हैं.
इस्लाम क्या है? इसकी बरकत क्या है? छोटे से लेकर बड़े तक सारे मुसलमान ही दानिस्ता और गैर दानिस्ता तौर पर इस के झूठे और खोखले फायदे और बरकतों से जुड़े हुए हैं. सच पूछिए तो कुछ मुट्ठी भर अय्यार और बेज़मीर मुसलमानों का सब से बड़ा ज़रीया मुआश (भरण पोषण) इस्लाम है जो कि मेहनत कश इसी तबके के अवाम पर मुनहसर करता है यानी बाकी कौमों से बचने के बाद खुद मुसलमान मुसलमानों का इस्तेह्सल (शोषण) करते हैं. दर अस्ल यही मज़हब फरोशों का तबका, गरीब मुसलामानों का ख़ुद दोहन करता है और दूसरों से भी इस्तेह्साल कराता है. वह इनको इस्लामी जेहालत के दायरे से बहार ही निकलने नहीं देता.



" ताहा" 
सूरह ताहा २० आयत 1 
यह शब्द निरर्थक है ऐसे शब्दों को क़ुरआनी सन्दर्भ में हुरूफे-मुक़त्तेआत कहते हैं जिसका मतलब अल्लाह ही जाने. ऐसे शब्द सूरह के पहले कभी कभी आते हैं. यहाँ यह एक आयत भी बन गया है अर्थात अल्लाह का एक पैगाम जिसे बन्दे न समजते हुए भी गाया करते हैं. 

"हमने कुरान को आप पर इस लिए नहीं उतरा कि आप तकलीफ उठाएं बल्कि ऐसे शख्स के नसीहत के लए उतारा है कि जो अल्लाह से डरता हो" 
सूरह ताहा २० आयत २-३ 
ऐ अल्लाह ! तू अगर वाकई है तो सच बोल तुझे इंसान को डराना भला क्यूं अचछा लगता है ?क्या मज़ा मज़ा आता है कि तेरे नाम से लोग थरथरएं ? गर बन्दे सालेह अमल और इंसानी क़द्रों का पालन करें जिससे कि इंसानियत का हक अदा होता हो तो तेरा क्या नुकसान है? तू इनके लिए दोज्खें तैयार किए बैठा है, तू सबका अल्लाह है या कोई दूसरी शय ? 
तेरा रसूल लोगों पर ज़ुल्म ढाने पर आमादा रहता है. तुम दोनों मिलकर इंसानियत को बेचैन किए हुए हो

"क्या आपको मूसा की खबर है? उन्हों ने एक आग देखी, तो घर वालों से कहा तुम ठहरे रहो, मैं ने एक आग देखी है, शायद कोई शोला तुम्हारे लिए ला सकूं और रास्ते का पता मालूम हो सके और जब मूसा आग के पास पहुचे तो अल्लाह ने आवाज़ दी कि ऐ मूसा! तू अपनी जूतियाँ उतार दे. हमने तुझे मुन्तखिब किया है. जो कुछ वह्यी की जा रही है, तू उसे सुन. मैं ही अल्लाह हूँ , मेरे सिवा कोई माबूद नहीं , मेरी ही इबादत किया करो और मेरे नाम की नमाज़ पढ़ा करो. दूसरी बात सुनो बिला शुब्ह क़यामत आएगी. मैं इसको पोशीदा रखना चाहता हूँ, ताकि हर शख्स को उसके किए का बदला मिले." 
सूरह ताहा २० आयत ९-१५ 
जब मुहम्मद को यहूदी मुखबिर से कोई खबर मिलती तो वह अपने कबीलाई माहौल में इसे अल्लाह की वह्यी बना कर पेश करते. मुआमले में कुछ फेर बल कर लेते ताकि बात मुहम्मद की अपनी लगे, वह उसमें नमाज़ ज़कात की बातें बतौर आमेज़िश शामिल कर देते. एक बेवकूफी की बात ज़रूर शामिल करते .... 
देखिए अल्लाह कहता है. 
" दूसरी बात सुनो ! बिला शुब्ह क़यामत ज़रूर आएगी . मैं इसको पोशीदा रखना चाहता हूँ ताकि लोगों को इसका बदला मिल सके." 

"अल्लाह मूसा की लाठी में करामत पेश करता है और गदेली में सफेद दाग जो दे-बैजा कहा गाया. अल्लाह मूसा को हुक्म देता है कि इन निशानियों को लेके फिरौन के पास जाओ क्यूंकि वह हद से निकल गाया है. 
मूसा कुछ और चाहते हुए अल्लाह से कहते हैं कि वह इनकी ज़बान से लुक्नत (तुतलाहट) हटा दे और मदद के लिए इनके भाई हारून को इनका सहायक बना दे" 
सूरह ताहा २० आयत १५-३६ 
अल्लाह मूसा की दरख्वास्त को मंज़ूर करता है और कहता है,
" हम तो तुम पर और एक बार एहसान कर चुके है कि तुम्हारी माँ को इल्हाम में बतलाया था कि तुम को जल्लादों के हाथों से बचाने के लिए सन्दूक में रखकर दरया में डाल दें. हमने तुम्हारे दिल में डाल दिया था कि तुम हम से रागिब रहो और मेरी निगरानी में परवरिश पाओ. तुम्हारी बहन भागती हुई हमारे पास आई थी कि तुम्हें परवरिश के लिए कुछ करूँ, सो हमने कुछ ऐसी तरकीब किया कि तुम फिर अपनी माँ की परवरिश में चले गए ताकि इनकी आँखें ठंडी हों और तुमने एक शख्स को जान से मार डाला, फिर हमने तुमको ग़मों से नजात दी. और हमने तुमको सख्त मेहनतों में डाला और तुमको तुम्हारे भाई समेत मुअज्ज़ा दिया. जाओ हमारी यद् में सुस्ती मत करो."
सूरह ताहा २० आयत ३७-४२ 
मुहम्मद का जेहनी मेयार इन बातों में निहाँ है कि देखिए
 अल्लाह एहसान भी करता है और 
तरकीब भी भिड़ाता है. 
कितना बड़ा हादसा है जो मुसलामानों के दिल पर काबू किए हुए है. वह इन्ही बातों की सुब्ह व् शाम इबादत करते हैं. 
इस कौम की रहनुमाई कोई नहीं कर सकता.
ऐ अल्लाह अगर तू कोई हस्ती है तो हिन्दुस्तान में माओत्ज़े तुंग को भेज. 

मूसा अपने भाई हारुन को लेकर फिरौन के दरबार में पहुँचता है और उससे अपने लोगों को आज़ाद करने की बात करता है. मूसा से फिरौन और उसके जादूगरों से लफ्ज़ी जंग होती है 

"फिर अपने मकर का सामान जमा करना शुरू किया. मूसा ने उन लोगों से फ़रमाया
 " ऐ कमबख्ती मारो अल्लाह तअला पर झूठा इफ्तार मत बांधो, कभी वह तुमको सजा से बिलकुल नेस्त नाबूद न करदे . 
सूरह ताहा २० आयत ६१ 
फिरौनऔर मूसा में जादुई मुकाबले शुरू हो जाते हैं. अल्लाह कभी खुद फिरौन को जादूगर बतलाता है, कभी उसके जादूगरों को. यह तौरेत का मशहूर ज़माना वाक़िया है जिसे कुरआन में मुहम्मद निहायत फूहड़ ढंग से पेश कर रहे हैं . इस नाटक के आखिर में मूसा की लाठी का बड़ा सांप , फिरौन के जादूगरों की रस्सियों के छोटे छोटे साँपों को निंगल जाता है. फिरौन के जादूगर मूसा के क़दमों में गिर कर लिपट जाते हैं और मूसा पर ईमान लाते हैं. मूसा के बतलाए हुए अल्लाह पर ईमान लाते हैं. फिरौन अपने जादूगरों से नाराज़ होकर हुक्म देता है कि इनके हाथ और पैर काट कर इनको पेड़ों पर लटका दिया जाए. 
सूरह ताहा २० आयत ६८-७१ 
यहूदियों की सुनी सुनाई कहानी में मिलावट करके मुहम्मदी अल्लाह दूसरे वाकिआत को आगे बयान करते रहने का वादा करके फिर इस्लामी डफली क़यामत का राग अलापने लगता है..... 
जब सूर फूँका जाएगा और तमाम मुर्दे अपनी अपनी क़ब्रों से बरामद होंगे और आपस में बातें करेंगे . . . 

"जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसे बहिश्तों में दाख़िल कर देगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इसमें रहेंगे , ये बड़ी कामयाबी होगी" 
सूरह ताहा २० आयत ७२-७६ 
ये जुमला मुहम्मदी अल्लाह  का तकिया कल्लम है वर बार उसको दोहराता है. 


मूसा का फिरौन से बनी इस्राईल को आज़ाद कराने, फिर इन्हें दर्याए नील पार कराने और फिरौन को गर्क आब करने, इसके बाद कोहेतूर पर ले जाने और मन व् सलवा बरसाने की बातें दोहराते हुए अल्लाह मूसा को आगाह करता है कि तेरी कौम हद से न गुज़रे .
मूसा कलीम उल्लाह तूर पर अल्लाह के दरबार में वास्ते कलाम पहुँचते हैं तो अल्लाह शिकायत ले बैठता है कि तू जिस अपनी कौम को पीछे छोड़ आया है व एक सामरी के जाल में फँस चुकी है. मूसा रंजीदा हो कर पहाड़ से नीचे उतरता है, कौम पर अपनी खफ्गी का इज़हार करता है . मूसा सामरी से पूछता है 
बता तेरा मुआमला क्या है? 
वह कहता है कि मैं मुट्ठी भर खाक उठता हूँ और डाल देता हूँ , 
इसनें इसका कोई कमाल छिपा होगा जिससे अवाम मुरीद हो गई होगी?मूसा इसको आगाह करता है कि एक माबूद के सिवा दूसरा कोई काबिले इबादत नहीं. और फिर इसके बाद शुरू हो जाती है तब्लिगे-इस्लाम .
अल्लाह वादा करता है आगे भी ऐसी कहानियाँ सुनाता रहूँगा"
सूरह ताहा २० आयत ७६-१०० 
मुसलमानों! 
तुम जिस कुरआन को वास्ते सवाब पढ़ते हो उसमे तुम्हारा अल्लाह ढंग की कहानी भी नहीं बयान कर पता. बेश कीमत फरमान और एलन तो दूर की बात है. मुहम्मद की आजिज़ करने वाली बकवास को कलाम इलाही समझते हो.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 22 April 2012

Soorah Mariyam 19

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

ऐ खुदा!

(तीसरी किस्त)

ऐ खुदा! तू खुद से पैदा हुवा,


ऐसा बुजुर्गों का कहना है।



तू है भी या नहीं? ये मेरा जेहनी तजस्सुस और कशमकश है।



दिल कहता है तू है ज़रूर कुछ न कुछ. ब्रहमांड को भेदने वाला,



हमारी ज़मीन की ही तरह लाखों असंख्य ज़मीनों को पैदा करके उनका संचालन करने वाला,



क्या तू इस ज़मीन पर बसने वाले मानव जाति की खबर भी रखता है?



तेरे पास दिल, दिमाग, हाथ पाँव, कान नाक, पर,सींग और एहसासात हैं क्या?


या इन तमाम बातों से तू लातअल्लुक़ है?


तेरे नाम के मंदिर, मस्जिद,गिरजे और तीरथ बना लिए गए हैं,



धर्मं का माया जाल फैला हुवा है, सब दावा करते हैं कि वह तुझसे मुस्तनद हैं,



इंसानी फ़ितरत ने अपने स्वार्थ के लिए मानव को जातियों में बाँट रख्खा है,



तेरी धरती से निकलने वाले धन दौलत को अपनी आर्थिक तिकड़में भिड़ा कर ज़हीन लोग अपने कब्जे में किए हुवे हैं।



दूसरी तरफ मानव दाने दाने का मोहताज हो रहा है।



कहते हैं सब भाग्य लिखा हुआ है जिसको भगवान ने लिखा है।



क्या तू ऐसा ही कोई खुदा है?



सबसे ज्यादह भारत भूमि इन हाथ कंडों का शिकार है।



इन पाखंडियों द्वरा गढ़े गए तेरे अस्तित्व को मैं नकारता हूँ.

तेरी तरह ही हम और इस धरती के सभी जीव भी अगर खुद से पैदा हुए हें,


तो सब खुदा हुए?



त्तभी तो तेरे कुछ जिज्ञासू कहते हैं,



''कण कण में भगवन ''


मैं ने जो महसूस किया है, वह ये कि तू बड़ा कारीगर है।

तूने कायनात को एक सिस्टम दे दिया है,

एक फार्मूला सच्चाई का २+२=४ का सदाक़त और सत्य,

कर्म और कर्म फल,

इसी धुरी पर संसार को नचा दिया है कि धरती अपने मदार पर घूम रही है।


तू ऐसा बाप है जो अपने बेटे को कुश्ती के दाँव पेंच सिखलाता है,



खुद उससे लड़ कर,



चाहता है कि मेरा बेटा मुझे परास्त कर दे।



तू अपने बेटे को गाली भी दे देता है,



ये कहते हुए कि ''अगर मेरी औलाद है तो मुझे चित करके दिखला'',



बेटा जब गैरत में आकर बाप को चित कर देता है,



तब तू मुस्कुराता है और शाबाश कहता है।



प्रकृति पर विजय पाना ही मानव का लक्ष है,



उसको पूजना नहीं.

मेरा खुदा कहता है तुम मुझे हल हथौड़ा लेकर तलाश करो,


माला लेकर नहीं।



तुम खोजी हो तो एक दिन वह सब पा जाओगे जिसकी तुम कल्पना करते हो,



तुम एक एक इंच ज़मीन के लिए लड़ते हो,



मैं तुम को एक एक नक्षत्र रहने के लिए दूँगा।



तुम लम्बी उम्र की तमन्ना करते हो,



मैं तुमको मरने ही नहीं दूँगा जब तक तुम न,



तुम तंदुरस्ती की आरज़ू करते हो,



मैं तुमको सदा जवान रहने का वरदान दूंगा,



शर्त है कि,


मेरे छुपे हुए राज़ो-नियाज़ को तलाशने की जद्दो-जेहाद करो,


मुझे मत तलाशो,



मेरी लगी हुई इन रूहानी दूकानों पर तुम को अफीमी नशा के सिवा कुछ न मिलेगा।



तुम जा रहे हो किधर ? सोचो,



पश्चिम जागृत हो चुका है. वह आन्तरिक्ष में आशियाना बना रहा है,



तुम आध्यात्म के बरगद के साए में बैठे पूजा पाठ और नमाज़ों में मग्न हो।



जागृत लोग नक्षर में चले जाएँगे तुम तकते रह जाओगे,



तुमको बनी ले जाएंगे साथ साथ,



मगर अपना गुलाम बना कर,



जागो, मोमिन सभी को जगा रहा है।


सूरह मरियम १९


'इस किताब में मूसा का भी ज़िक्र करिए. वह बिला शुबहा अल्लाह के खास किए हुए थे. और वह रसूल भी थे और नबी भी थे और हमने उनको तूर की दाहिनी जानिब से आवाज़ दी और हमने उनको राज़ की बातें करने के लिए मुक़र्रिब बनाया और उनको हमने अपनी रहमत से उनके भाई हारुन को नबी बना कर अता किया''
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(५०-५३)

''और इस किताब में इस्माईल का ज़िक्र कीजिए, बिला शुबहा वह बड़े सच्चे थे, वह रसूल भी थे और नबी भी और अपने मुतअलिकीन को नमाज़ और ज़कात का हुक्म किया करते थे और वह अपने परवर दिगार के नजदीक पसंद दीदा थे.''
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(५४-५५)

''और इस किताब में इदरीस का भी ज़िक्र कर दीजिए. बेशक वह बड़े रास्ती वाले थे और हमने उनको बुलंद मर्तबा तक पहुँचाया. ये वह लोग हैं जिन को अल्लाह ने खास इनआम अता फ़रमाया. . . .जब उनके सामने रहमान की आयतें पढ़ी जातीं तो सजदा करते हुए और रोते हुए गिर जाते थे - - -''
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(५७-६०)

मुसलमानों ! इन आयतों को बार बार पढ़िए. ये हिंदी में हैं अक़ीदत की ऐनक उतर कर, कोई गुनाह नहीं पड़ेगा. मुझ से नहीं, अपने आप से लड़िये अपने तह्तुत ज़मीर को जगाइए, अपने बच्चों के मुस्तकबिल को पेशे नज़र रख कर, फिर तय कीजिए कि क्या यह हक बजानिब बातें हैं? अगर आप जग गए हों तो दूसरों को जगाइए, खुद पार हुए तो ये काफी नहीं, औरों को पार  लगाइए  . यही बड़ा कारे ख़ैर है. इसलाम यहूदियत का उतरन है जिनसे आप नफ़रत करते हैं, मगर उसी से लैस हैं. वाकई यहूदी नस्ली तौर पर खुद को बरतर मानते हैं. दीगरों के लिए कोई बुरा फेल उनके लिए गुनाह नहीं होता. मूसा इंसानी तारीख में अपने ज़माने का हिटलर हुआ करता था. शायद हिटलर ने मूसा को अच्छी तरह समझा और यहूदियों को नेस्त नाबूद करना नेस्त नाबूद करना चाहा । मुसलमानों के लिए इन्तेकामन कई हिटलर पैदा हो चुके हैं मगर नई क़द्रें उनके पैरों में human right की ज़ंजीर डाले हुए हैं, अगर कहीं इस कौम में ज़्यादः तालिबानियत का उबाल आया तो यह जंजीरें पिघल जाएँगी. कहर ए हिटलर इस बार क़ुरआनी आयतों पर और इनके मानने वालों पर टूटेगा. यह हराम जादे ओलिमा ऐंड कंपनी आपको आज भी गुमराह किए हुए हैं कि इस्लाम अमरीका और योरोप में सुर्खुरू हो रहा है. एक ही रास्ता है कि इस्लाम से तौबा करके एलान के साथ एक सच्चे मोमिन बन जाओ. मोमिन बनना ज़रा मुश्किक अमल है मगर जिस दिन आप मोमिन बन जाएँगे जिंदगी बहुत बे बोझ हो जाएगी.
''इस जन्नत में वह लोग कोई फुजूल बात न सुन पाएँगे, बजुज़ सलाम के. और उनको उनका खाना सुब्ह शाम मिला करेगा। ये जन्नत ऐसी है कि हम अपने बन्दों में से इस का मालिक ऐसे लोगों को बना देंगे जो खुदा से डरने वाले हों. और हम बगैर आप के रब हुक्म वक्तन फवक्तन नहीं आ सकते. उसी की हैं हमारे आगे की सब चीजें और हमारे पीछे की सब चीजें और जो चीजें उनके दरमियान में हैं. और आप का रब भूलने वाला नहीं. वह रब है आसमानों और ज़मीन का और जो कुछ इन के दरमियान में हैं सो ऐ ! तू इसकी इबादत किया कर और उसकी इबादत पर कायम रह. भला तू किसी को इसका हम सिफ़त मानता है?
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(६१-६५)

ऐसी जन्नत पर फिटकर है जहाँ बात चीत न हो, कोई मशगला न हो, फ़न ए लतीफा न हो, शेरो शाइरी न हो, बस सलाम ओ वालेकुम सलाम, सलाम ओ वालेकुम सलाम? कैदियों की तरह सुब्ह शाम खाने की मोहताजी, वहां भी हमीं में से दरोगा बनाया जायगा, गोया वहां भी मातहती ? कौन किसके हुक्म से वक्तन फवक्तन नहीं आ सकेगा? अल्लाह ने मुल्लाओं को समझ दी है कि इन बातों का मतलब समझाएं. भला कौन सी चीजें होती है '' आगे की सब चीजें और हमारे पीछे की सब चीजें और जो चीजें उनके दरमियान में हैं.'' जिसको अल्लाह भूलने वाला नहीं?
है न दीवानगी के आलम में हादी बाबा की बडबड जिनका ज़िक्र मैं कर चूका हूँ. मोहम्मद को कुरआन का पेट भरना था, सो भर दिया और एलान कर दिया कि यह अल्लाह का कलाम है. मुसलमानों क्या यह आपकी बदनसीबी नहीं कि इस पागल कि बातों को अपना सलीका मानते हो, अपनी तमाज़त तस्लीम करते हो?
 
''क्या आप को मालूम नहीं कि हमने शयातीन को कुफ्फ़र पर छोड़ रक्खा है कि वह उनको खूब उभारते रहते हैं, सो आप उनके लिए जल्दी न करें, हम उनकी बातें खुद शुमार करते हैं, जिस रोज़ हम मुत्ताकियों को रहमान की तरफ मेहमान बना कर जमा करेंगे और मुजरिमों को दोज़ख की तरफ हाकेंगे, कोई सिफारिश का अख्तियार न रखेगा. मगर हाँ जिसने रहमान से इजाज़त ली. और ये लोग कहते हैं अल्लाह तअला ने औलाद अख्तियार कर रखी है. ये ऐसी सख्त हरकत है कि जिसके सबब कुछ बईद नहीं कि आसमान फट पड़ें और ज़मीन के टुकड़े हो जाएँ और पहाड़ गिर पड़ें. इस बात से कि ये लोग रहमान की तरफ औलाद निस्बत करते हैं, हालांकि रहमान की शान नहीं कि वह औलाद अख्तियार करें. जितने भी कुछ हैं आसमानों और ज़मीन में हैं, वह सब रहमान की तरफ गुलाम बन कर हाज़िर होते हैं. रहमान - - - रहमान - - -रहमान - - -
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(८३-९८)

और लीजिए अल्लाह कहता है अपने रसूल से कि उसने अपने बन्दों पर शैतान छोड़ दिए है. 
हे अल्लाह के बन्दों! 
क्या अल्लाह ऐसा भी होता है? यह तो खुद शैतानो का बाप लग रहा है. और आप के रसूल लिल्लाह जल्दी मचा रहे हैं कि उनको पैगम्बर न मानने वाले कुफ्फारों को सज़ा जल्दी क्यूं नहीं उतरती? इसी तरह की बातें हैं इस पोथी में. मुझे तअज्जुब हो रहा है कि इतनी बड़ी आबादी और इतनी खोखली कि इस पोथी को निज़ामे-हयात मान कर इसको अपना रहबर बनाए हुए है? मुसलमानों ! क्यूं अपनी जग हसाई करवा रहे हो?
ईसा खुदा का बेटा है, इस अक़ीदत को लेकर मुहम्मद बार बार ईसाइयों को चिढ़ा रहे हैं, और ईसाई हर बार मुसलमानों की धुलाई करते हैं, स्पेन से लेकर ईराक तक इसके लाखों शैदाई मौत का मज़ा चखते आ रहे हैं मगर अक्ल नहीं आती, बद्ज़ाद ओलिमा आप के अन्दर शैतान पेवश्त किए हुए हैं।

मुहम्मद ने ज़ैद बिन हरसा को भरी महफ़िल में अल्लाह को गवाह बनाते हुए गोद लेकर अपनी औलाद बनाया था, उसकी बीवी के साथ ज़िना करते हुए जब ज़ैद ने हज़रात को पकड़ा तो उसने मुहम्मद को ऊपर से नीचे तक देखा, गोया पूछ रहा हो
 अब्बा हुज़ूर! ये आप अपनी बहू के साथ पैगम्बरी कर रहे हैं?
 मुहम्मद ने हज़ार समझाया की मन जा, हम दोनों का काम चलता रहेगा, आखिर तेरी पहली बीवी ऐमन भी तो मेरी लौंडी हुवा करती थी, पर वह नहीं माना, तभी से गैर के बच्चे को औलाद बनाना हराम कर दिया. उसी का रद्दे अमल है कि इस बंदे नामुराद ने अल्लाह तक पर ईसा को औलाद बनाना हराम कर दिया.

इस पूरी सूरह में अल्लाह का नाम बदल कर मुहम्मद ने रहमान कर दिया है, ये भी पागलों की अलामत है, जाहिलों की खू.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 15 April 2012

Soorah Maryam 19

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह मरियम १९
2nd

मोमिन अपने लिए तो नहीं लिखता मगर शायद आप को ये अच्छा नहीं लगता कि मैं हिदू वादी हूँ, न इस्लाम वादी, मैं इस्लाम विरोधी हूँ तो मुझे हिदू समर्थक होना चाहिए - - -

विडम्बना ये है कि हमारे समाज में ज्यादाः तर लोग आपस में सीगें लड़ाते हुए यही दोनों हैं, फिर भी ये मत देखिए कि कौन कह रहा है, यह देखिए कि क्या कह रह है,


क़ुरआन की चुनौतियाँ

आम मुसलामानों को कहने में बड़ा गर्व होता है कि कुरआन की एक आयत (वाक्य) भी कोई इंसान नहीं बना सकता क्यूंकि ये आल्लाह का कलाम है. दूसरी फ़ख्र की बात ये होती है कि इसे मिटाया नहीं जा सकता क्यूंकि यह सीनों में सुरक्षित है, (अर्थात कंठस्त है.) यह भी धारणा आलिमों द्वारा फैलाई गई है कि इसकी बातों और फ़रमानों को आम आदमी ठीक ठीक समझ नहीं सकता, बगैर आलिमों के. सैकड़ों और भी बे सिरों-पर की खूबियाँ इसकी प्रचारित हैं.
सच है कि किसी दीवाने की बात को कोई सामान्य आदमी दोहरा नहीं सकता और आपकी अखलाकी जिसारत भी नहीं कि किसी पागल को दिखला कर मुसलामानों से कह सको कि यह रहा, बडबडा रहा है क़ुरआनी आयतें. एक सामान्य आदमी भी नक्ल में मुहम्मद की आधी अधूरी और अर्थ हीन बातें स्वांग करके दोहराने पर आए तो दोहरा सकता है, कुरआन की बक्वासें मगर वह मान कब सकेंगे. मुहम्मद की तरह उनकी नक्ल उस वक़्त लोग दोहराते थे मगर झूटों के बादशाह कभी मानने को तैयार न होते. हिटलर के शागिर्द मसुलेनी ने शायद मुहम्मद की पैरवी की हो कि झूट को बार बार दोहराव, सच सा लगने लगेगा. मुहम्मद ने कमाल कर दिया, झूट को सच ही नहीं बल्कि अल्लाह की आवाज़ बना दिया, तलवार की ज़ोंर और माले-ग़नीमत की लालच से. मुहम्मद एक शायर नुमा उम्मी थे, और शायर को यह भरम होता है कि उससे बड़ा कोई शायर नहीं, उसका कहा हुवा बेजोड़ है.
कुरआन के तर्जुमानों को इसके तर्जुमे में दातों पसीने आ गए, मौलाना अबू कलाम आज़ाद सत्तरह सिपारों का तर्जुमा करके, मैदान छोड़ कर भागे. मौलाना  अशरफ़   अली थानवी ने ईमानदारी से इसको शब्दार्थ में परिवर्तित किया और भावार्थ को ब्रेकेट में अपनी राय देते हुए लिखा, जो नामाकूल आलिमों को चुभा. इनके बाद तो तर्जुमानों ने बद दयानती शुरू कर दी और आँखों में धूल झोंकना उनका ईमान और पेशा बन गया.
दर अस्ल इस्लाम की बुनियादें झूट पर ही रख्खी हुई, अल्लाह बार बार यक़ीन दिलाता है कि उसकी बातें इकदम सही सही हैं, इसके लिए वह कसमें भी खाता है. इसी झूट के सांचे को लेकर ओलिमा चले हैं. इनका काम है मुहम्मद की बकवासों में मानी ओ मतलब पैदा करना. इसके लिए ताफ्सीरें(व्याख्या) लिखी गईं जिसके जारीए शरअ और आध्यात्म से जोड़ कर अल्लाह के कलाम में मतलब डाला गया. सबसे बड़ा आलिम वही है जो इन अर्थ हीन बक बक में किसी तरह अर्थ पैदा कर दे. मुहम्मद ने वजदानी कैफ़ियत (उन्माद-स्तिथि) में जो मुंह से निकाला वह कुरआन हो गया अब इसे ईश वाणी बनाना इन रफुगरों का काम है.
जय्यद आलिम वही होता है जो कुरान को बेजा दलीलों के साथ इसे ईश वाणी बनाए.
मुसलमान कहते हैं कुरआन मिट नहीं सकता कि ये सीनों में क़ायम और दफ़्न है. यह बात भी इनकी कौमी बेवकूफी बन कर रह गई है, बात सीने में नहीं याद दाश्त यानी ज़हनों में अंकित रहती है जिसका सम्बन्ध सर से है. सर खराब हुआ तो वह भी गई समझो. जिब्रील से भी ये इस्लामी अल्लाह ने मुहम्मद का सीना धुलवाया था, चाहिए था कि धुलवाता इनका भेजा. रही बात है हाफ़िज़े (कंठस्त) की, मुसलमान कुरआन को हिफ्ज़ कर लेते हैं जो बड़ी आसानी से हो जाता है, यह फूहड़ शायरी की तरह मुक़फ्फा (तुकान्तित) पद्य जैसा गद्य है, आल्हा की तरह, गोया आठ साल के बच्चे भी इसके हाफिज़ हो जाते हैं, अगर ये शुद्ध गद्य में होता तो इसका हफिज़ा मुश्किल होता.

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''फिर वह (मरियम) उसको (ईसा को) गोद में लिए हुए कौम के सामने आई. लोगों ने कहा ऐ मरियम तुमने बड़े गज़ब का काम किया है .ऐ हारुन की बहेन! तुम्हारे बाप कोई बुरे नहीं थे, और न तुम्हारी माँ बद किरदार. बस कि मरियम ने बच्चे की तरफ इशारा किया, लोगों ने कहा भला हम शख्स से कैसे बातें कर सकते हैं ? जो गोद में अभी बच्चा है. बच्चा खुद ही बोल उट्ठा कि मैं अल्लाह का बन्दा हूँ . उसने मुझ को किताब दी और नबी बनाया और मुझको बरकत वाला बनाया. मैं जहां कहीं भी हूँ. और उसने मुझको नमाज़ और ज़कात का हुक्म दिया जब तक मैं ज़िन्दा हूँ. और मुझको मेरी वाल्दा का खिदमत गार बनाया, और उसने मुझको सरकश और बद बख्त नहीं बनाया. और मुझ पर सलाम है. जिस रोज़ मैं पैदा हुवा, और जिस रोज़ रेहलत करूंगा और जिस रोज़ ज़िदा करके उठाया जाऊँगा. ये हैं ईसा इब्ने मरियम. सच्ची बात है जिसमे ये लोग झगड़ते हैं. अल्लाह तअला की यह शान नहीं कि वह औलाद अख्तियार करे वह पाक है.''
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(२७-३४)

पिछली किस्त में आपने पढ़ा कि क़ुरआन में किस शर्मनाक तरीक़े से मुहम्मद ने मरियम को जिब्रील द्वारा गर्भवती कराया और ईसा रूहुल-जिब्रील पैदा हुए. अब देखिए कि दीवाना पैगम्बर, ईसा का तमाशा मुसलमानों को क्या दिखलाता है? विडम्बना ये है कि मुसलमान इस पर यक़ीन भी करता है, क़ुरआन का फ़रमाया हुवा जो हुवा. मरियम हरामी बच्चे को पेश करते हुए समाज को जताती है कि मेरा बच्चा कोई ऐसा वैसा नहीं, यह तो खुद चमत्कार है कि पैदा होते ही अपनी सफाई देने को तय्यार है. लो, इसी से बात करलो कि ये कौन है. लोगों के सवाल करने से पहले ही एक बालिश्त की ज़बान निकल कर टाँय टाँय बोलने लगे ईसा अलैहिस्सलाम . ज़ाहिर है उनके डायलोग और चिंतन उम्मी मुहम्मद के ही हैं. बच्चा कहता है, ''मैं अल्लाह का बन्दा हूँ '' जैसे कि वह देखने में भालू जैसा लग रहा हो. मुहम्मद को उनके अल्लाह ने चालीस साल की उम्र में क़ुरआन दिया था, ईसा को पैदा होते ही किताब मिली? जैसे कि ईसा का पुनर जन्म हुवा हो, और वह अपने पिछले जन्म की बात कर रहे हों. मुहम्मद की कुबुद्धि बोल चाल में इस स्तर की है कि इल्म की दुन्या में जैसे वह थे. व्याकरण, काल, भाषा, परस्तुति, इनकी गौर तलब है. लेखन की दुन्या में अगर इन आयतों को दे दिया जय तो मुहम्मद की बुरी दुर्गत हो जाए. इन्ही परिस्थियों में जो आलिम इसके अन्दर मानी, मतलब और हक़ गोई पैदा कर दे, वह इनआम याफ़्ता आलिम हो सकता है. मुसलमानों के सामने ये खुली खराबी है कि वह ऐसी क़ुरआन पर लअनत भेज कर इससे मुक्ति लें. अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बने ईसा मुहम्मद की नमाज़,ज़कात और इस्लाम का प्रचार भी करते हैं.
''तमाम ज़मीन और इस पर रहने वालों के हम ही मालिक रह जाएँगे और ये सब हमारे पास ही लौटे जाएँगे ''
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(४०)

मुसलामानों तुम्हारा अल्लाह कितना बडबोला है, यह बशर का सच्चा अल्लाह तो नहीं हो सकता. वह जो भी हो, जैसा भी हो, अपने आप में रहे, मखलूक को क्यूँ डराता धमकाता है ? हम उससे डरने वाले नहीं, क्या हक़ है उसे मखलूक को सज़ा देने की ? क्या मखलूक ने उससे गुज़ारिश की थी कि हम पैदा होना चाहते हैं, इस तेरी अज़ाबुन-नार में? अपनी तमाश गाह बनाया है दुन्या को? ऐसा ही ज़ालिम ओ जाबिर अगर है अगर तू , तो तुझ पर लअनत है।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 8 April 2012

सूरह मरियम १९

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह मरियम १९
(पहली किस्त)

* क्या आप कभी ख़याल करते हैं कि इस जहाँ में आपका सच्चा रहनुमा कौन है?
* क्या आप ने कभी गौर किया कि किस मसलके-इस्लाम से आप का तअल्लुक़ हैं?
* क्या आपने कभी ख़याल किया कि आप का महफूज़ मुल्क कहाँ है?
* क्या आपने कभी सोचा कि आप में किसी ने इस धरती को कुछ दिया, जिससे सब कुछ ले रहे है?
* क्या आप ने कभी खोजबीन की, कि मौजूदा ईजाद और तरक्की में आपका कोई योगदान है? जब कि भोगने में आगे है?
* क्या आपने कभी सोचा कि मुहम्मद के बाद मुसलमानों में कोई आलमी हस्ती पैदा हुई है?
* क्या आप ने कभी ख़याल किया कि अपनी नस्लों के लिए किया कर रहे हैं? 
बतौर नमूने के यह चन्द सवाल मैंने आपके सामने रख्खे हैं, सवाल तो सैकड़ों हैं. बगैर दूर अनदेशी के जवाब तो आपके पास हर सवाल के होंगे मगर हकीकत में आप के पास कोई मअक़ूल जवाब नहीं, अलावः शर्मसार होने के, क्यूँकि आपको मुहम्मदी अल्लाह ने गुमराह कर रखा है कि यह दुन्या फ़ानी है और आक़बत की ज़िदगी लाफ़ानी. 
इस्लाम ९०% यहूदियत है और यह अकीदा भी उन्हीं का है। वह इसे तर्क करके आसमान में सुरंग लगा रहे हैं और मुसलमान उनकी जूठन चबा रहे हैं. पहला सवाल है मुसलमानों की रहनुमाई का? आलावा रूहानी हस्तियों के कोई काबिले ज़िक्र नहीं, रूहानियत जो अपने आप में इन्सान को निकम्मा बनाती है, इनको छोड़ कर जिसके शाने बशाने आप हों?
 आला क़द्रों में कबीर, शिर्डी का साईं बाबा जैसे जो आपके लिए नियारया हो सकते थे उनको आप ने इस्लाम से ख़ारिज कर दिया और वह हिन्दुओं में बस कर उनके अवतार हो गए. माजी करीब में क़ायदे-मिल्लत मुहम्मद अली जिनह शराब और सुवर के गोश्त के शौकीन थे, कभी भूल कर नमाज़ रोज़ा नहीं किया, कैसे पाकिस्तानियों ने उनको क़ायदे-मिल्लत बना दिया? मौलाना आज़ाद सूरज डूबते ही शराब में डूब जाते थे. ए.पी.जे अब्दुल कलाम तो जिंदा ही हैं, मुसलमान उनको मुहम्मदी हिन्दू कहते हैं। इनमें से कोई इस्लाम की कसौटी पर खरा नहीं उतरा.
 गाँधी जी जो आप के हमदर्दी में गोली के शिकार हुए, उनको आप के ओलिमा काफ़िर कहते हैं। बरेली के आला हज़रात ने तो उनकी अर्थी में शामिल होने वाले मुसलमानों को काफ़िर का फ़तवा दे दिया था. 
एक कमाल पाशा तुर्की में मुस्लिम रहनुमा सही मअनो में हुवा जिसको इस्लामी दुन्या क़यामत तक मुआफ नहीं करेगी. पिछली चौदा सदियों से आप लावारिस हैं, क्यूँकि आप का वारिस, मालिक, रहनुमा है मुहम्मदी अल्लह और वह फरेब जिसके आप शिकार हैं आप के आखरुज्ज़मा. सललल्लाहो अलैहे वसल्लम.
आप किस टाइप के मुसलमान है? टाईप नंबर एक तो आप को काफ़िर कहता है. हर मस्जिद किसी न किसी मुल्ला की हुकूमत बनी हुई है. खुद मुहम्मद ने मस्जिदे नबवी को अपने हाथों से मदीने में मिस्मार किया कि वह काफिरों की मस्जिद हो गई थी. अली ने तीनो खलीफाओं को क़त्ल कराया, यहाँ तक कि उस्मान गनी की लाश तीन दिनों तक सडती रही तब रहम दिल यहूइयों ने उनको अपने कब्रिस्तान में दफ़नाया था. दुन्या भर में बकौल मुहम्मद अगर मुसलमानों के ७२ फिरके हो चुके हैं तो उनमें से ७१ आपका जानी दुश्मन हैं.फिर भी आप मुसलमान हैं? जाएँगे भी कहाँ? सोचें कि कोई रास्ता बचा है आपके लिए?
आपका कोई मुल्क नहीं कहीं आप आज़ादी के साथ कहीं भी नहीं रह सकते, हर मुल्क में आप पड़ोस में दुश्मन पाले हुए हैं आपका कोई मुल्क हो ही नहीं सकता, तमाम दुन्या पर इस्लाम को छा देने की आप की नियत जो है और आप को अमलन देखा गया है कि मुस्लिम हुक्मरान हमेशा एक दूसरे को फ़तह करते रहे. बस काबे में आप सब ज़रूर इकठ्ठा होते हैं लबबैक कह कर, ताकि कुरैशियों को इमदाद जारिया हो और आप को मुहम्मदी सवाब मिले.
आप ने खिदमत ए ख़ल्क़ के लिए कोई ईजाद की? कोई तलाश कोई या कोई खोज मुसलामानों द्वारा वजूद में आई ? आप दो चार मुस्लिम नाम गिना सकते हैं और ए. पी जे. अब्दुल कलाम को भी पेश कर सकते हैं, मगर आप अच्छी तरह जानते हैं कि साइंटिस्ट कभी मुसलमान हो ही नहीं सकता. मुसलमान तो सिर्फ अल्लाह का खोजी होता है और उम्मी मुहम्मद को सब से बड़ा साइंसदान ख़याल करता है. 
जहाँ कोई फ़नकार बना कि टाट पट्टी बाहर हुवा. मकबूल फ़िदा हुसैन या नव मुस्लिम ए. आर. रहमान जैसी आलमी हस्तियाँ क्या इस्लाम को गवारा हैं? हम तो यहाँ तक कहेंगे कि मुसलमानों को नई ईजादों की बरकतों को छूना भी नहीं चाहिए, चाहे रेल या हवाई सफ़र हो, चाहे बिजली हो. मोबाईल, कप्यूटर,ए.सी. मुसल्म्मानों के लिए बंद और हराम हो जाना चाहिए, तब होश ठिकाने आएँगे. इसकी तालीम भी इनके लिए मामनू हो अगर तालिब इल्म इस्लामी अकीदे का हो, वर्ना इल्म का इस्तेमाल तालिबान बन कर इंसानियत पर खुदकश बम बन कर नाज़िल.
क्या आपने कभी सोचा कि मुहम्मद के बाद मुसलमानों में कोई आलमी हस्ती पैदा हुई है? कोई नहीं. उन्हों ने इसकी इजाज़त ही नहीं दी. ज़माना जितना आगे जाएगा, मुसलमान उतना ही पीछे चला जायगा. एक दिन इसके हाथ में झाड़ू पंजा आ जाएगा. इसकी अलामत बने मज़लूम बिरादरी भी जग गई है मगर मुसलमानों की नींद ही नहीं खुल रही है.
मुसलमानों ! 
मोमिन आप के साथ रहते हुए आप को जगा रहा है, वर्ना उसके लिए बड़ा आसान था ईसाई या हिन्दू बन जाना. क्यूं अपनी जान को हथेली पर रख कर मैदान में उतरा? इस लिए कि आप लोग सब से ज्यादह इंसानी बिरादरी की आँखों में खटक रहे हो. मै आपका कुछ भी नहीं छीनना चाहता, जैसे हैं, जहाँ हैं, बने रहिए बस ईमानदार मोमिन बन जाइए, देखिगा कि ज़माने कि नफरत आपकी पैरवी में बदल जाएगी.
इस्लामी ओलिमा को अपनी ड्योढ़ी मत लांगने दीजिए और इनसे गलाज़त आलूद खिंजीर मानिए. इनके अलावा जो भी आपको इस्लाम के हक़ में समझाए, देखिए कि इसकी रोज़ी रोटी तो इस्लाम से वाबिस्ता नहीं है? ऐसे लोगों की मदद कीजिए कि वह ज़रीआ मुआश बदल सकें. आप जागिए और दूसरों को जगाइए.


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''खायाअस''
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(१)
यह शब्द मुहम्मदी अल्लाह का मन्त्र है, पढने वाले इस का मतलब नहीं जानते मगर हाँ! यह अल्लाह की कही हुई कोई बात ज़रूर है जिस का मतलब वही जानता है. ऐसे पचास मोह्मिलात (अर्थ हीन) हैं जिन को कुरआन की कोई सूरह शुरू करने से पहले इसका उच्चारण मुसलमान करते हैं. इंसानी नफसियत (मनो विज्ञानं) के माहिर मोहम्मद ने मुसलमानों के लिए यह शब्द गढ़े गोकि वह निरक्षर थे, जैसे जोगी जटा मदारी तमाशा दिखलाने से पहले मन्त्र भूमिका बाँधता है. 
 
''ये तज़करह है आप के परवर दिगार के मेहरबानी फ़रमाने का अपने बन्दे ज़कारिया पर जब कि उन्होंने अपने परवर दिगार को पोशीदा तौर पर पुकारा. अर्ज़ किया ऐ मेरे परवर दिगार ! मेरी हड्डियाँ कमज़ोर पड़ गई हैं और मेरे सर में बालों की सफैदी फ़ैल गई है और आप से मांगने में ऐ मेरे रब, मैं नाकाम नहीं रहा हूँ और मैं अपने बाद रिश्ते दारों से ये अंदेशा रखता हूँ और मेरी बीवी बाँझ है. आप अपने पास से ऐसा वारिस दे दीजिए''
''ऐ हम तुमको एक नेक फ़रज़न्द की खुश खबरी देते हैं जिसका नाम यहिया होगा कि इससे पहले हमने किसी को इसका हम सिफ़त न बनाया होगा. अर्ज़ किया ऐ मेरे रब मेरे औलाद कैसे होगा हालाँकि मेरी बीवी बाँझ है और में बुढ़ापे के इन्तेहाई दर्जे को पहँच गया हूँ .इरशाद हुवा कि यूं ही तुम्हारे रब का कौल है कि ये मुझको आसान है हमने तुमको पैदा किया तो तुम न कुछ थे अर्ज़ किया कि मेरे रब मेरे लिए कोई अलामत मुक़रार फरमा दीजिए इरशाद ये हुवा कि तुम्हारी अलामत ये है कि तुम तीन दिन किसी आदमी से बात न कर सकोगे. पस कि हुजरे में से अपनी कौम की तरफ बरामद हुए और इरशाद फरमाया कि तुम लोग सुब्ह शाम खुदा की पाकी बयान किया करो. ऐ यहिया किताब को मज़बूत होकर लो और हमने उनको लड़कपन में ही समझ और खास अपने पास से रिक्कात ए कल्ब और पाकीजगी अता फरमाई थी - - - और उनको सलाम पहुँचे जिस दिन से वह पैदा हुए और जिस दिन कि वह इन्तेकाल करेंगे और जिस दिन वह जिन्दा हो कर उठाए जाएगे.
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(२-१५)
तौरेती हस्ती ज़खारिया का नाम और बुढ़ापे में साहिबे औलाद होना ही मुहम्मद ने सुन रखा था, उसकी जानकारी देकर आगे बढ़ गए.
ज़खारिया का मुख़्तसर तअर्रुफ़ दे दूं कि वह और उसकी बीवी उम्र की ढलान पर थे कि औलाद हुई, जैसा कि आजकल भी देखा जा सकता है. ये यहूदी शाशक हीरोद के ज़माने में हुए। ज़खारिया से ज्यादह इसके बेटे योहन काबिले ज़िक्र हैं जिनका नाम मुहम्माद ने यहिया बतलाया कि वह अहेम था.
योहन ईसा कालीन एक सत्य वादी हुवा था जिस का राजा हीरोद ने एक रककासा की मर्ज़ी से सर कलम कर दिया था. योहन की माँ अल्हुब्बियत और मरियम आपस में सहेलियां हुवा करती थीं और साथ साथ हामला हुई थीं. ज़खरिया औलाद पैदा होने के बाद तरके-दुन्या हो गया था. ईसा यहिया की खबर से ऐसा खायाफ़ हुए कि सर पे पैर रख कर भागे और आखिर कार गिरफ़्तार हुए और सलीब पर चढ़ा दी गए। मंदार्जा बाला लाल रंग के जुमले पर गौर करें कि उम्मी मुहम्मद अपनी धुन में क्या कह रहे हैं.
 (उ''और इस किताब में मरियम का भी तज़करह करिए जब मरियम अपने घर वालों से अलाहिदा एक ऐसे मकान में जो मशरिक जानिब था, नहाने के लिए गईं. फिर इन घर वालों के बीच उन्हों ने पर्दा डाल दिया, पास हमने अपने फ़रिश्ते जिब्रील को उनके पास भेज दिया और मरियम के सामने पूरा बशर बन कर ज़ाहिर हुवा. मरियम ने कहा मैं तुझ से रहमान की पनाह मांगती हूँ और अगर तू खुदा तरस है तो यहाँ से हट जा. उसने कहा मै तेरे रब का भेजा हुवा फ़रिश्ता हूँ (आया इस लिए हूँ) ताकि तुझ को एक पाकीज़ा औलाद दूं. मरियम ने कहा मुझे बच्चा कैसे हो जायगा? जब कि मुझे किसी मर्द ने हाथ नहीं लगाया है.और न मैं बदकार हूँ। फ़रिश्ते ने कहा यूं ही, यह उसके लिए आसान है, इस लिए पैदा करेंगे ताकि ये लोगों के लिए निशानी हो और रहमत बने और ये एक तय शुदा बात है. और फिर मरियम के पेट में बच्चा रह गया. फिर इस को लिए हुए वह दूर चली गई, फिर दर्द ज़ेह (प्रसव पीड़ा) के आलम में खजूर की तरफ आई और कहने लगी कि काश! मैं इससे पहले ही मर गई होती और ऐसी नेस्त नाबूद होती कि किसी को याद भी न आती. फिर जिब्रील ने पुकारा तुम मगमूम मत हो. तुम्हारे पैताने तुम्हारे रब ने नहर पैदा कर दी है और खजूर के तने को पकड़ कर हिलाओ, तुम्हारे लिए ताज़े खुरमें गिरेंगे सो इन्हें खाओ और पानी पियो. और आँखें ठंडी करो फिर जब तुम किसी आदमी को देखो कह दो कि हम ने तो रोज़ा के वास्ते अल्लाह से मन्नतमाँग रख्खी है, सो आज मैं किसी आदमी से न बोलूंगी''
(उम्मियत का एक नमूना)
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(१६-२६)
हकीकत ये है कि ईसा मरियम के शौहर का नहीं बल्कि उसके मंगेतर यूसुफ का बेटा था और दोनों की शादी होने से पहले बच्चा पैदा हो गया था, रूढ़ी वादी समाज उस वक़्त ऐसी औलाद को हरामी करार देता था, जैसे आज मुस्लिम समाज को देखा जा सकता है. हरामी है, हरामी है - - - का तअना सुन सुन कर बच्चे ईसा का दिल बचपन में ही मजरूह हो गया. चौदह साल की उम्र में इस यहूदी नवजवान ने योरुसलम की एक इबादत गाह में पनाह ली, जहाँ उसने खुद को खुदा का बेटा कहा और उसी दिन दिन से वह खुदा का बेटा मशहूर हुवा. बिलकुल कबीर की कहानी है, कबीर की तरह उसने भी रूढ़ी वादिता का सामना किया. ईसा की ऐसी चर्चा हुई कि वह हुकूमत की निगाहों में आ गया और सलीब पर चढ़ा दिया गया. सलीब पर चढ़ जाने के बाद वह वाकई खुदा का बेटा बन गया. मानव जाति को यहूदियत के क़दामत की ग़ार से निकल कर जदीद वसी मैदान बख्सने वाला ईसा के छे सौ साल बाद वजूद में आने वाले इस्लाम ने इंसानियत को एक बार फिर यहूदियत की ग़ार में झोंक दिया. मूसा ने नस्ली तौर पर बनी इस्राईल को ही यहूदियत की चपेट में रख्खा था, मुहम्मद ने चौथाई दुन्या हर कौम को यहूदियत की ज़द में लाकर खड़ा कर दिया है.
ईसा की विवादित वल्दियत को लेकर मुहम्मद ने जो बेहूदा कहानी गढ़ी है इसे पढ़ कर ईसाइयों की दिल आज़ारी होना लाजिम है. सैकड़ों सलीबी जंगें ऐसी बातों को लेकर ईसाइयों और मुसलामानों में हुई हैं और आज तक जारी हैं . करोरों इंसानी खून मुहम्मद के सर जाता है.
ईसा को कुरआन में रूहुल क़ुद्स बतलाया गया है जैसा कि उपरोक्त आयतें कहती हैं। इन आयतों पर गौर कीजिए कि मुहम्मदी अल्लाह ने किस तरह जिब्रील से मरियम का रूहानी मुबाश्रत (सम्भोग) करवाया है कि जो जिस्मानी बलात्कार का ही एक मुज़ाहिरा है - -

मरियम का नहाने के लिए जाना, सामने पर्दा डालना, नहाने के लिए उरयाँ होना,

जिब्रील का बशक्ल इंसान मरियम के सामने आकर खड़े हो जाना,

मरियम का हट जाने की मिन्नत करना,

फरिस्ते का आल्लाह का फैसला सुनाना, और मरियम का हामला हो जाना - - -

यह सब ख़ुराफात के सिवा और क्या है?

ईसा की ज़िन्दगी के एक एक लम्हात तारिख इंसानी में दर्ज है और मुसलमान उस हकीकत पर यक़ीन न करके क़ुरआनी आयतों कि बद तमीज़ियों पर यक़ीन करता है तो अगर कोई बुश इसकी दुर्गत करे तो हैरानी किस बात की?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 1 April 2012

Soorah Kuhaf 18 (Aakhir Qist)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह कुहफ़ १८

चौथी किस्त

"लोग आप से ज़ुलक़रनैन का हाल पूछते हैं, आप बयान करिए - - - हम ने उनको रूए ज़मीन पर हुकूमत दी थी और हम ने उनको हर क़िस्म का सामान दिया था, चुनांच वह एक राह पर हो लिए, यहाँ तक कि जब ग़ुरूब आफ़ताब तक का मौक़ा आ पहुंचा तो उनको एक सियाह रंग के पानी में डूबता हुवा दिखाई दिया (?) और इस मौके पर उन्हों ने एक कौम देखी. हमने उनसे कहा ऐ ज़ुलक़रनैन ! ख्वाह सज़ा दो खवाह नरमी का बरताव अख्तियार करो, जवाब दिया जो ज़ालिम रहेगा उसको तो हम लोग सज़ा ही देंगे, फिर वह अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाएगा और वह उसको सख्त सज़ा देगा और जो शख्स ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए बदले में भलाई मिलेगी - - -
 फिर ज़ुलक़रनैन ऐसी जगह तुलूए आफ़ताब देखी जिसके लिए हम ने आफ़ताब को ही आड़ नहीं रख्खी. इस तरह ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, उसको इसकी पूरी खबर है ,फिर एक और राह हो लिए, यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के दरमियाँ पहुँचे तो उनसे, उस तरफ एक कौम को देखा जो कोई बात समझने के करीब में नहीं पहुँचते. उन्हों ने अर्ज़ किया कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! 
याजूज माजूज इस सर ज़मीन पर बड़ा फ़साद मचाते हैं सो क्या हम लोग आप के लिए कुछ चंदा जमा करें , इस शर्त पर कि आप हमारे उनके बीच कोई रोक बना दें, जवाब दिया कि जिस में हमारे रब ने अख्तियार दिया है, वह बहुत बहुत कुछ है . सो कूवत से मेरी मदद करो. मैं तुम्हारे और उनके दरमियान खूब मज़बूत दीवार बना दूगा. तो लोग मेरे पास लोहे की चादरें लाओ, यहाँ तक कि जब उनके दोनों सरों के बीच बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि धौंको, यहाँ तक कि जब उसको अंगारा क़र दिया तो हुक्म दिया कि मेरे पास पिघला हुवा ताम्बा लाओ कि इस पर डाल दूँ सो वह लोग न तो इस पर चढ़ सकते थे, कहा कि ये मेरे रब की रहमत है फिर जिस वक़्त मेरे रब का वादा आएगा , इसके फ़ना का वक़्त आएगा सो इसको ढा कर बराबर कर देगा और मेरे रब का बर हक़ हक है.''
सूरह कुहफ १८-१६ वां परा(८३-९८)
मुहम्मद ने ईसा, मूसा, मरियम, हकीम लुकमान वगैरह, जिनका हाल सुन रख्खा था, या जिनकी कहानी सुनी थी सबको कुरआन में शामिल करके उनकी कहानी अपने अंदाज़ में बनाई है, जो इस्लामी प्रचार के लिए विषय होते थे और इसका गवाह सीधे अल्लाह को बना दिया। कुरआन को अल्लाह का कलाम बता कर।
मशहूर हस्तियाँ ही नहीं कुछ अजीबो-गरीब हस्तियाँ अपनी तरफ़ से भी गढ़ लिया था. इस सूरह में कोई फ़र्ज़ी बादशाह ज़ुलक़रनैन की कहानी गढ़ी है.
''हम ने उनको रूए ज़मीन पर हुकूमत दी थी''
''हम ने उनको हर क़िस्म का सामान दिया था''
बड़े बादशाह को हर क़िस्म का सामान भी अल्लाह ने दिया, है न अहमकाना बात - -
''और ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, अल्लाह को इसकी पूरी खबर है ''
है ये दूसरी अहमकाना दलील हुई,
मगर वह बे सरो समानी के आलम में तनहा सफ़र पर भी था - - -
शाम का वक़्त था काले पानी में क्या डूबता हुवा दिखाई दिया उसका नाम बतलाना भूल कर आगे बढ़ते हैं।
''चुनांच वह एक राह पर हो लिए, यहाँ तक कि जब ग़ुरूब आफ़ताब तक का मौक़ा आ पहुंचा तो उनको एक सियाह रंग के पानी में डूबता हुवा दिखाई दिया (?)''
''इस मौके पर उन्हों ने एक कौम देखी। हमने (गोया अल्लाह ने) उनसे कहा ऐ ज़ुलक़रनैन ! ख्वाह सज़ा दो खवाह नरमी का बरताव अख्तियार करो''
मतलब हुवा कि अल्लाह ज़ुलक़रनैन के मातहत था। अल्लाह का मशविरा ठुकरा कर ज़ुलक़रनैन ने फैसला कुन जवाब दिया कि
''जो ज़ालिम रहेगा उसको तो हम सज़ा ही देंगे और (कोई आप से बड़ा मालिक है तो) फिर वह अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाएगा। वह उसको सख्त सज़ा देगा.''
मुहम्मद अपनी इस्लामी डफली बजाने लगते हैं - - -''जो शख्स ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए बदले में भलाई मिलेगी - - -
चलते चलते शाम से रात हुई और सुबह का वक़्त आया फिर ''ज़ुलक़रनैन ऐसी जगह तुलूए आफ़ताब देखी जिसके लिए हम ने आफ़ताब को ही आड़ नहीं रख्खी।''
मुहम्मद ने यहाँ क्या कहा है आलिम रफुगरों की समझ से भी बाहर है. अल्लाह ने सूरज को चिलमन बना कर नहीं लटकाया? मुखबिर अल्लाह ज़ुलक़रनैन के झोले में रख्खे सामान की पूरी जानकारी रखता है यह मुक़र्रर इरशाद है . - - - ''इस तरह ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, उसको इसकी पूरी खबर है''
चलते चलते ''ज़ुलक़रनैन यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के दरमियाँ पहुँचे तो उनसे, उस तरफ एक कौम को देखा जो कोई बात समझने के करीब में नहीं पहुँचते।''
यानी उस कौम की गुतुगू को न समझते हुए भी समझे कि उन लोगों ने '' अर्ज़ किया कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! याजूज माजूज इस सर ज़मीन पर बड़ा फ़साद मचाते हैं सो क्या हम लोग आप के लिए कुछ चंदा जमा करें, इस शर्त पर कि आप हमारे उनके बीच कोई रोक बना दें''
यह याजूज माजूज भी मुहम्मद की जेहनी पैदावार हैं. आगे फरमाते हैं की ज़ुलक़रनैन ने उन लोगों से कोई माली मदद तो नहीं ली क्यूँकि उनके पास रब का दिया हुवा बहुत था, मगर लोगों कि मेहनत ज़रूर तलब की. बादशाह उनकी मदद यूँ करता है - - -
''तो लोग मेरे पास लोहे की चादरें लाओ, यहाँ तक कि जब उनके दोनों सरों के बीच बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि धौंको'',
 जिस कौम ने लोहे की चादर बना ली हो, उसको इनसे मैदान की घेरा बंदी भी आती होगी. ज़ुलक़रनैन उनसे क्या (?) धौंक्वता है,
'' यहाँ तक कि जब उसको अंगारा क़र देते हैं तो हुक्म दिया कि मेरे पास पिघला हुवा ताम्बा लाओ कि इस पर डाल दूँ सो वह लोग न तो इस पर चढ़ सकते थे.''
लोग ताम्बा पिघला सकते हैं, बस कि लोहे की चादरों से दीवार नहीं खड़ी कर सकते?
'' फिर मुहम्मद क़ुरआनी सारंगी छेड़ देते हैं.''
मुसलमानों! ईमान दार मोमिन ही कुरआन की सही तर्जुमानी कर सकता है, ये ज़मीर फरोश ओलिमा सच बोलने की हिम्मत भी नहीं कर सकते. कुरआन में इस फ़र्ज़ी वाकिए और नामुकम्मल गुफ्तुगू में आलिम ने क्या क्या न आरिफाना (आध्यात्मिक) मिर्च मसालों की छ्योंक बघारी हैं कि पढ़ कर दिल मसोसता है.
 तुम जागो, जग कर मोमिन हो जाओ जो कि इंसान का मुकम्मल मज़हब है, जिसका कोई झूठा पैगम्बर नहीं, बल्कि कोई पैगम्बर नहीं, कोई चल-घात की बातें नहीं, सीधा सादा एलान कि २+२=४ होता है, न तीन और न पाँच. फूल में खुशबू होती है, इसे किसने पैदा किया? उसकी तलाश में मत जाओ कि तुम्हारी तलाश की राह में कोई मुहम्मद बना हुवा पैगम्बर बैठा होगा. बहुत से सवाल, जवाब नहीं रखते, कि वक़्त कब शुरू हुआ था? कब ख़त्म होगा? सम्तें (दिशाएँ) कहाँ से शुरू होती हैं, कहाँ ख़त्म होंगी? इन सवालों को ज़मीन की दीगर मखलूक की तरह सोचो ही नहीं. फितरत की इस दुन्या में चार दिन के लिए आए हो, फ़ितरी ज़िन्दगी जी लो।
''और उस रोज़ हम उनकी ऐसी हालत कर देंगे कि वह एक दूसरे में गडमड हो जाएँगे और सूर फूँका जायगा और हम सब को जमा कर लेंगे और दोज़ख को उस रोज़ काफ़िरों के सामने पेश करेगे और वह अपने ख़याल में हैं कि अच्छा काम कर रहे हैं, ये लोग हैं जो कि रब की आयातों का और उस से मिलने का इंकार कर रहे हैं इनके सारे काम ग़ारत हो जाएँगे क़यामत के रोज़. हम इनका ज़रा भी वज़न न कायम करेंगे. यानी दोज़ख इस सबब से कि उन्हों ने कुफ्र किया था और मेरी आयातों और पैगम्बर का मज़ाक उड़ाया था. आप कह दीजिए कि मेरे रब की बातें लिखने के लिए समन्दर रोशनी हो तोसमन्दर ख़त्म हो जाएगा मगर मेरे रब की बातें ख़त्म न होंगी'' 
सूरह कुहफ १८-१६ वां परा(१००-११०)
मुसलमानों! देखो कि अपने अल्लाह की शान, अपने बन्दों की हालत वह क्या कर देगा, यह मुहम्मद की ज़ालिमाना फ़ितरत की गम्माज़ी है. क्या तुम को ये शैतान ज़ेहन की साज़िश नहीं मअलूम पड़ती? क्या तुम उस कुदरत को इतना बे रहम समझते हो कि अपने बन्दों में कुफ़्र को गुनाह साबित करके उनके लिए अलग से सज़ा मुक़र्रर करेगा? ज़लज़ला आता है तो काफ़िर और मोमिन को देख कर उनके घर गिराता है ? मुहम्मद इतने बड़े गैर मुंसिफ थे कि काफिरों के नेक अमल को भी खातिर में नहीं लाते. बस कि जब तक उनकी इन पुरगुनाह आयतों को तस्लीम न कर लें. दुन्या की तारिख में इतना बड़ा साजिशी कोई और नहीं हुवा कि इंसानियत को महसूर करके कामयाब हो गया हो. मगर नहीं यह कामयाबी नहीं, झूट भी क्या कभी कामयाब हो सकता है? मकर कभी हक़ीक़त का सामना नहीं कर सकती, मुहम्मद आलमे इंसानियत में बद तरीन मुजरिम हैं।
खुदा के लिए अपने आप को और अपनी औलादों को आने वाले वक़्त से बचाओ. अभी सवेरा है, वरना मुहम्मद के किए धरे की सज़ा भुगतने के लिए तैयार रख्खो अपनी नस्लों को. तुमको छूट हैकि मोमिन बन के अपने बुजुर्गों की भूल की तलाफी करो।


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान