Sunday 28 December 2014

Soorah Akhlas 112 /30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इखलास - ११२ - पारा - ३० 
( कुल हवाल लाहो अहद) 

जंगे-बदर के बाद जंगे-ओहद में अल्लाह के खुद साख्ता रसूल हार के बाद अपने मुँह ढक कर हारी हुई फ़ौज के सफ़े-आखीर में पनाह लिए हुए खड़े थे और अबू सुफ्यान की आवाज़ ए बुलंद को सुनकर भी टस से मस न हुए. वह आवाज़ जंग का बाहमी समझौता हुवा करता था कि नाम पुकारने के बाद दस्ते के मुखिया को सामने आ जाना चाहिए ताकि उसके मातहतों का खून खराबा मजीद न हो. 
वैसे भी मुहम्मद ने कभी तलवार और तीर कमान को हाथ नहीं लगाया, बस लोगों को चने की झाड़ पर चढाए रहते थे. उनका कलाम होता ,
'' मार ज़ोर लगा के, तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान"
सूरह इखलास
"आप कह दीजिए वह यानि अल्लाह एक है,
अल्लाह बेनयाज़ है,
इसके औलाद नहीं,
और न वह किसी की औलाद है, और न कोई उसके बराबर है."
नमाज़ियो !
सूरह अखलास दूसरी ग़नीमत सूरह है, पहली ग़नीमत थी सूरह फातेहा. बाक़ी कुरआन सूरतें करीह हैं , तमाम सूरतें मकरूह हैं. 
इन दोनों सूरतों को छोड़ कर बाक़ी कुरआन नज़रे-आतिश कर दिया जाय, तो भी इस्लाम की लाज बच सकती है, वरना तो ज़रुरत है मुकम्मल इन्कलाब की.

इसमें कोई शक नहीं की कुदरत की न कोई औलाद है, न ही वह किसी की औलाद. इसी तरह कुदरत की मज़म्मत करना या उसे पूजना दोनों ही नादानियाँ हैं. 
कुदरत का सामना करना ही उसका पैगाम है. कुदरत पर फ़तह पाना ही इंसानी तजस्सुस और इंसानी ज़िन्दगी का राज़ है. कुदरत को मगलूब करना ही उसकी चाहत है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 22 December 2014

सूरह फ़लक़ - ११३ - पारा - ३०

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह फ़लक़ - ११३ - पारा - ३० 

(कुल आऊजो बेरब्बिल फलके) 

 मैं खुश हूँ कि क़ुरआन की आख़िरी सूरह पर पहुँच चुका हूँ. 
सूरह अव्वल यानी सूरह फातेहा में मैंने आपको बतलाया था कि मुहम्मद खुद अपने कलाम को अल्लाह बन कर फ़रमाने की नाकाम कोशिश की, जिसे ओलिमा ने क़लम का ज़ोर दिखला कर कहा कि अल्लाह कभी अपने मुँह से बोलता है, कभी मुहम्मद के मुँह से, तो कभी बन्दे के मुँह से बोलता है. 
बोलते बोलते देखिए कि आखिर में अल्लाह की बोलती बंद हो गई, 
उसने सच बोलकर अपनी खुदाई के खात्मे का एलान कर दिया है. 
क़ुरआन की ११४ सूरतों का सिलसिला बेतुका सा है, कोई सूरह इस्लाम के वक़्त ए इब्तेदा की है तो अगली सूरह आखिर दौर की आ जाती है. बेहतर यह होता कि इसे मुरत्तब करते वक़्त मुहम्मद की तहरीक के मुताबिक इस का सिसिला होता. खैर, 
इस्लाम की तो सभी चूलें ढीली हैं, उनमें से एक यह भी है. 
इस खामी से एक फ़ायदा यह हुवा है कि इन आखिरी दो सूरतों में इस्लाम की वहदानियत की हवा खुद मुहम्मदी अल्लाह ने निकाल दिया है. 
अल्लाह जिब्रील के मार्फ़त जो पैगाम मुहम्मद के लिए भेजता है उसमे मुहम्मद उन तमाम कुफ्र के माबूदों से पनाह माँगते है, अल्लाह की, जिसे हमेशा नकारते रहे, जिससे साबित है कि उनमें खुदाई करने का दम है. इस सूरह में अल्लाह तमाम माबूदों को पूजने का मश्विरः देता है क्यूंकि वह बीमारी से निढाल है.
मुहम्मद शदीद बीमार हो गए थे, कहते हैं कि उनका पेट फूल गया था, जिसकी वजेह थी कि कुछ यहूदिनों ने उन पर जादू टोना कर दिया था कि उनकी बजने वाली मिटटी जाम हो गई थी और उनका बजना बंद हो गया था.
( पिछली सूरतों में उन्होंने फ़रमाया है कि इंसान बजने वाली मिटटी का बना हुवा है) 
उनका पेट इतना फूल गया था कि बोलती बंद हो गई थी. 
जिब्रील अलैहिस सलाम वहयी लेकर आए और मंदार्जा जेल आयतें पढनी शरू कीं, तब जाकर धीरे धीरे उनका जाम खुलने लगा, 
उनसे जिब्रील ने कहलवाया कि - - - 
"तुम गाठों पर पढ़ पढ़ कर फूंकने वाली वालियों को तस्लीम करो कि उनकी भी एक हस्ती है तुम्हारे अल्लाह जैसी ही." 
"हसद करने वाले भी दमदार हैं जो अपना असर अल्लाह की तरह रखते हैं, जब वह हसद करने पर आ जाएं." 
"आदमियों के मालिक, बादशाहों का भी अल्लाह की तरह ही कोई मुक़ाम है." 
"आदमियों के मुखतलिफ़ माबूदों ; लात, मनात और उज्जा वगैरा को भी तस्लीम करो कि वह भी अल्लाह की तरह ही कोई ताक़त हैं." 
"वुस्वुसा डालने के वहेम को भी अपना माबूद तस्लीम करो जब तुम वुस्वुसे में आओ." 
"जिन्न को तो तुम पहले से ही अल्लाह दो नम्बरी माने बैठे हो. तो ठीक है . . . ." 
एन हफ्ते की मामूली बीमारी ने मुहम्मद को ऐसा सबक़ सिखलाया कि इस्लाम का मुँह काला हो गया. मुहम्मद के फूले हुए पेट से मुहम्मदी अल्लाह की सारी हवा ख़ारिज हो गई, 
मुसलमान सिर्फ इन ग्यारह आयतों की दो सूरतों को ही पढ़ कर संजीदगी से मुहम्मद को समझ लें तो मुहम्मदी अल्लाह को समझ पाना आसान होगा. 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 21 December 2014

सूरह नास ११४ - पारा - ३०

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नास ११४ - पारा - ३० 
(कुल आऊजो बेरब्बिंनासे) 

"आप कहिए,
कि मैं आदमियों के मालिक और आदमियों के बादशाह,
और आदमियों के माबूद से पनाह लेता हूँ,
वुस्वुसा डालने, पीछे हट जाने वाले के शर से,
जो आदमियों के दिलों में वुस्वसा डालता है,
ख्वाह वह जिन हो या आदमी." 
(सूरह फ़लक़ - ११३ - पारा - ३० आयत (१-६)

नमाज़ियो !
सूरह फ़लक और सूरह नास के बारे में वाक़िया है कि यहूदिनों ने मुहम्मद पर जादू टोना करके उनको बीमार कर दिया था, तब अल्लाह ने यह दोनों सूरतें बयक वक़्त नाजिल कीं, घर की तलाशी ली गई, एक ताँत (सूखे चमड़े की रस्सी) की डोरी मिली, जिसमे ग्यारह गाठें थीं. इसके मुकाबिले में जिब्रील ने मंदार्जा ग्यारह आयतें पढ़ीं, हर आयत पर डोरी की एक एक गाठें खुलीं, और सभी गांठें खुल जाने पर मुहम्मद चंगे हो गए.
जादू टोना को इस्लामी आलिम झूट क़रार देते हैं, जब कि इसके ताक़त के आगे रसूल अल्लाह की अमाँ चाहते हैं. 
यह क़ुरआन क्या है?
राह भटके हुए मुहम्मदी अल्लाह की भूल भुलय्या ?
 या मुहम्मद की, अल्लाह का पैगम्बर बन्ने की चाहत ? 

मुसलमानों! 
मैं तुम्हारा और तुम्हारी नस्लों का सच्चा ख़ैर ख्वाह हूँ , इस लिए कि दुन्या की कोई कौम तुम जैसी सोई हुई नहीं है. माजी परस्ती तुम्हारा ईमान बन गया है, जब कि मुस्तकबिल पर तुम्हारे ईमान को क़ायम होना चाहिए. 

हमारी तहकीकात और हमारे तजुरबे, हमारे अभी तक के सच है, इन पर ईमान लाओ. कल यह झूट भी हो सकते हैं, तब तुम्हारी नस्लें नए फिर एक बार सच पर ईमान लाएँगी, उनको इस बात पर लाकर कायम करो, और इस्लाम से नजात दिलाओ. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 14 December 2014

Al Hamd pahli Soorah

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह फातेहा (१) 

सब अल्लाह के ही लायक हैं जो मुरब्बी हें हर हर आलम के। (१) 
जो बड़े मेहरबान हैं , निहायत रहेम वाले हैं। (२) 
जो मालिक हैं रोज़ जज़ा के। (३) 
हम सब ही आप की इबादत करते हैं, और आप से ही दरखास्त मदद की करते हैं। (४) 
बतला दीजिए हम को रास्ता सीधा । (५) 
रास्ता उन लोगों का जिन पर आप ने इनआम फ़रमाया न कि रास्ता उन लोगों का जिन पर आप का गज़ब किया गया । (६) 
और न उन लोगों का जो रस्ते में गुम हो गए। (७) 
( पहला पारा जिसमें ७ आयतें हैं) 
कहते है क़ुरआन अल्लाह का कलाम है, मगर इन सातों आयतों पर नज़र डालने के बाद यह बात तो साबित हो ही नहीं सकती कि यह कलाम किसी अल्लाह जैसी बड़ी हस्ती ने अपने मुँह से अदा क्या हो। यह तो साफ साफ किसी बन्दा-ऐ-अदना के मुँह से निकली हुई अर्ज़दाश्त है. अल्लाह ख़ुद अपने आप से इस क़िस्म की दुआ मांगे, क्या यह मजाक नहीं है? 
या फिर अल्लाह किसी सुपर अल्लाह के सामने गुज़ारिश कर रहा है ? 
अगर अल्लाह इस बात को फ़रमाता तो वह इस तरह होती ----- 
"सब तारीफ़ मेरे लायक़ ही हैं, मैं ही पालनहार हूँ हर हर आलम का. १ 
मैं बड़ा मेहरबान, निहायत रहेम करने वाला हूँ. २ 
मैं मालिक हूँ रोज़े-जज़ा का..३ 
तो मेरी ही इबादत करो और मुझ से ही दरखास्त करो मदद की. ४ 
ऐ बन्दे मैं ही बतलाऊँगा तुझ को सीधा रास्ता . 5 
रास्ता उन लोगों का जिन पर हम नें इनआम फ़रमाया .६ 
न की रास्ता उन लोगों का जिन पर हम ने गज़ब किया और न उन लोगों का जो रस्ते से गुमहुए। 7" 
मगर,
 अगर अल्लाह इस तरह से बोलता तो ख़ुद साख्ता रसूल की गोट फँस गई होती और इन्हें पसे परदा अल्लाह बन्ने में मुश्किल पेश आती. बल्कि ये कहना दुरुस्त होगा कि मुहम्मद क़ुरआन को अल्लाह का कलाम ही न बना पाते.क्यूँकी ऐसे बड बोले अल्लाह को मानता कोई न जो खुद अपने मुँह से अपनी तारीफ़ झाड़ रहा हो.इस सिलसिले में इस्लामीं ओलिमा इस बात को यूँ रफू गरी करते हैं कि 
क़ुरआन में अल्लाह कभी ख़ुद अपने मुँह से कलाम करता है, 
कभी बन्दे की ज़बान से. 
याद रखे कि खुदाए बरतर के लिए ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी कि वह अपने बन्दों को वहम में डालता और ख़ुद अपने सामने गिड़गिडाता. उसकी कुदरत तो अपरम्पार होगी अगर वह है.गौर करें पहली आयत----
कहता है --- 
"सारी तारीफें मुझे ही ज़ेबा देती हैं क्यो कि मैं ही पालन हार हूँ तमाम काएनातों में बसने वालों का." 
अल्लाह मियाँ! अपने मुँह मियाँ मिट्ठू ? अच्छी बात नहीं, भले ही आप अल्लाह जल्ले शानाहू हों. प्राणी की परवरिश अगर आप अपनी तारीफ़ करवाने के लिए कर रहे हैं तो बंद करें पालन हारी. वैसे भी आप की दुन्या में लोग दुखी ज्यादा और सुखी कम हैं. 
दूसरी आयत पर आइए-----
आप न मेहरबान हैं, न रहेम वाले , यह आगे चल कर कुरानी आयतें चीख चीख कर गवाही देंगी, आप बड़े मुन्तक़िम( प्रतिशोधक) ज़रूर हैं और बे कुसुर अवाम का जीना हराम किए रहते हैं. 
तीसरी आयत ---
यौमे जज़ा (प्रलय दिवस) यहूदियों की कब्र गाह से बर आमद की गई रूहानियत की लाश, जिस को ईसाइयत ने बहुत गहराई में दफ़न कर दिया था, इस्लाम की हाथ लग गई, जिसे मुहम्मद ने अपनी धुरी बनाई. मुसलामानों की जिदगी का मकसद यह ज़मीन नहीं, वह आसमान की तसव्वुराती दुनिया है, जो यौमे-जज़ा के बाद मिलनी है. 
क़यामत नामा कुरआन पढ़ें. 
दर अस्ल मुसलमान यहूदियत को जी रहा है. 
*पाँचवीं आयत में अल्लाह अपने आप से या अपने सुपर अल्लाह से पूछता है कि बतला दीजिए हमको सीधा रास्ता. क्या अल्लाह टेढे रास्ते भी बतलाता है? 
यकीनन, आगे आप देखेंगे कि कुरानी अल्लाह किस कद्र अपने बन्दों को टेढे रास्तों पर गामज़न कर देता है जिस पर लग कर मुसलमान गुमराह हैं.क़ुरआन का क़ौल है 
अल्लाह जिस को चाहे गुमराह करे, 
कूढ़ मग्ज़ मुसलमान कभी इस पर गौर नहीं करता कि यह शैतानी हरकत इस का अल्लाह क्यों करता है? कहीं दाल में कुछ कला है. 
छटी आयत में अल्लाह कहता है रास्ता उन लोगों का रास्ता बतलाइए जिन पर आप ने करम फरमाया है. 
यहाँ इब्तेदा में ही मैं आप को उन हस्तियों का नाम बतला दें जिन पर अल्लाह ने करम फ़रमाया है, आगे काम आएगा क्यूं कि कुरान में सैकडों बार इन को दोहराया गया है. यह नम हैं---
इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक़, लूत, याकूब, यूसुफ़, मूसा, दाऊद, सुलेमान, ज़कर्या, मरयम, ईसा अलैहिस्सलामन वगैरह वगैरह.
 याद रहे यह हज़रात सब पाषण युग के हैं, जब इंसान कपड़े और जूते पहेनना सीख रहा था 
छटी आयत गौर तलब है कि अल्लाह गज़ब ढाने वाला भी है. अल्लाह और अपने मखलूक पर गज़ब भी ढाए? सब तो उसी के बनाए हुए हैं बगैर उसके हुक्म के पत्ता भी नहीं हिलता, इंसान की मजाल? 
उसने इंसान को ऐसा क्यूं बनाया की गज़ब ढाने की नौबत आ गई?
सातवीं आयत में भी अल्लाह अपने आप से दुआ गो है कि न उन लोगों का रास्ता न बतलाना `जो रास्ता गुम हुए. रास्ता गुम शुदा के भी चंद नाम हैं---
आजार, समूद, आद, फ़िरौन, वगैरह. इन का भी नाम कुरान में बार बार आता है. 
कुरआन अपने यहूदी और ईसाई मुरीदों की मालूमाती मदद में रद्दो बदल करके, उम्मी ( निरक्षर और नीम शाएर) मुहम्मद का कलाम है। इस का पता हर खास ओ आम क़ुरआनी विद्वान को मालूम है, मगर वह वह सब के सब धूर्त हैं. 
क़ुरआन का मिथ्य ही उनकी रोज़ी रोटी है.
यह सूरह फातेहा की सातों आयतें कलाम-इलाही बन्दे के मुंह से अदा हुई हैं। 
यह सिलसिला बराबर चलता रहेगा, अल्लाह कभी बन्दे के मुंह, से बोलता है, कभी मुहम्मद के मुंह से, तो कभी ख़ुद अपने मुंह से
माहरीन द्ल्लाले कुरआन ओलिमा इस को अल्लाह के गुफ्तुगू का अंदाजे बयान बतलाते हैं, मगर माहरीन ज़बान इंसानी इस को एक उम्मी जाहिल का पुथन्ना करार देते हैं. जिस को मुहम्मद ने वज्दानी कैफियत में गढा है. मुहम्मद को जब तक याद रहता है कि वह अल्लाह की ज़बान से बोल रहे हें तब तक ग्रामर सही रहती है,
जब भूल जाते है तो उनकी बात हो जाती है. 
यह बहुत मुश्किल भी था की पूरी कुरआन अल्लाह के मुंह से बुलवाते. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 13 December 2014

Jhalkiyan END

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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हर्फ़े-ग़लत में झलकियों का सिलसिला रोका जा रह है। 

आगे हर सोमवार को आप क़ुरानी आयतों का तर्जुमा देखेंगे 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 10 December 2014

Eesa 21

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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योसो (ईसा) 
ईसा की बारह साला बचपन मरयम की झलकी में आपने देखा।
ईसा यहूदियत का बंटा धार करने वाला जनम जात कट्टर यहूदी था।  ग़ैर यहूदियों को वह पिल्ला कहता और शागिर्दों से कहता इनके रस्ते पर मत चलना , समारियों के किसी शहर में दाखिल मत होना , भले ही इस्राइलियों के किसी खोई हुई भेड़ (गुमराह यहूदी) के घर चले जाना (मित्ती १०/५+६। 
एक कन्नानी (ग़ैर यहूदी) औरत  ईसा के पीछे  से आई कि उसकी बेटी को बद रूह से छुटकारा दिलाएँ , ईसा उसको टाल गए , शागिर्दों ने कहा इसे निमटा दें , हमारे पीछे पड़ी हुई है , 
ईसा ने कहा मैं सिर्फ इस्राइलियों की भटकी हुई भेड़ों के पास भेजा गया हूँ।  उस औरत ने ईसा के सामने सजदा में गिर कर मिन्नतें कीं , 
ऐ मसीह तू मेरी मदद कर। 
ईसा ने जवाब दिया बच्चों की रोटी पिल्लों के सामने डालना मुनासिब नहीं। 
ईसा ऐसे भी थे ,
 यह बात अलग है कि वह ग़ैर इस्राइलि कन्नानी औरत अपनी दलीलो से ईसा की दुआएँ  लेकर ही टली 
मगर 
सलीब पर चढ़ने के बाद (जैसा कि ईसा ने एलान किया था तीन दिन बाद मैं ज़िंदा हो जाऊँगा )

जब शाम के वक़्त ईसा बेजान हो गए थे,उनको एक बा असर और दौलत मंद शागिर्द योसेफ सरकारी हुक्म लेकर ईसा की मय्यत ले गया और दफना दिया। सरकारी अमले ने तीन दिनों तक के लिए ईसा की क़ब्र पर पहरा बिठा दिया कि कहीं लाश गुम होकर भूत बन कर ज़मीन पर न आ जाए। 
हुवा यही कि पहरे दारों को घूस देकर लाश को चुरा लिया गया और ईसा ज़िंदा होकर गेलेल्या के पहाड़ों पर पहुँच गए। 
गेलेल्या में जो आखरी पैग़ाम दिया , उसके मुताबिक़ उनका पैग़ाम बदल चुका था.
ईसा यहूदियत के हिसार को तोड़ कर तमाम इंसानी बिरादरी के लिए खुदा का बेटा बन गए थे। 
इस तरह ईसाइयत पूरी दुन्या में फ़ैल गई।  



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 7 December 2014

Maryam 20

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता 
झलकी नं २० 
मरयम 
मरयम या ईसा की ज़ात पर क़लम चलाना इस नाचीज़ की गुस्ताखी होगी और सूरज को चराग दिखलाने जैसा होगा , मगर क़ुरआन में इनके बारे में जो कुछ आया है , उसके मुताबिक़ मुसलामानों की जानकारी इनके बारे में एक फरेब होगा। मुस्लिम अवाम को इनकी जानकारी देना ज़रूरी है ,
ईसा से पहले (३१-१४ साल) ,फिलिस्तीन में यहूदी शहनशाह अगस्ट्स का राज था। उसने मुल्क में मर्दुम शुमारी का हुक्म दिया जिसके तहत नाज़रत का बढ़ई युसूफ अपनी मंगेतर मरयम को लेकर गलेलिया के क़स्बा बेल्थेहम गया। वहां उसको मुसाफिर खाने में जगह न मिली तो अस्तबल में ही रहना पड़ा। इसी अस्तबल में मरयम ने बच्चा जना। आठवें दिन बच्चे का वहीँ पर खतना हुवा। बच्चे का नाम योसो रखा गया. 
बारह साल बाद युसूफ और मरयम अपने बेटे को लेकर पास्का का त्यौहार मनाने योरोसलाम गए , वहां योसो भीड़ में खो गया।  माँ बाप बेटे को ढूंढने में हलकान हो गए। तीन दिन बाद मरयम ने बेटे को एक मंदिर में पाया जोकि पुजारी की पनाह में था। 
मरयम ने योसो को डांटा कि वहां तेरा बाप परेशान बैठा है, घर जाने के लिए के लिए और तुम यहाँ बैठे हुए हो ?
योसो ने कहा आपको नहीं मालूम कि मैं अपने घर में आ गया हूँ। यहीं पर मेरे बाप हैं। 
योसो वहीँ का होकर रह गया। दीन दुख्यों की सेवा करता , दीन की तब्लीग करता। 
बाइबिल के एक बाब के मुताबिक़।  . . . 
गाब्रील (जिब्रील) खुदा के हुक्म से गलेलिया के क़स्बे नाज़रात गया जहाँ कुवांरी मरयम रहती थी। उसकी मंगनी दाऊद खानदान  के एक बढ़ई युसूफ से हो गई थी।  गाब्रील ने मरयम को सलाम किया और उसको खुदा का पैगाम सुनाया कि 
आप हामला होंगी और एक बच्चे को जन्म देंगी , उसका नाम योसो होगा और वह खुदा  का बेटा होगा और दाऊद की मुमलकत क़ायम करेगा।  इसकी क़ायम की हुई मुमलकत कभी ख़त्म न होगी। मरयम ने कहा मैं खुदा की बंदी हूँ , उसकी मंशा मुझ पर पूरी होगी। 
मरयम अपने बेटे से मिलने और उससे बात करने के लिए तरसती थी।  एक बार वह उससे मिली तो।  . . . 
ईसा अपने शागिर्दों में बैठा बातें कर रहा था कि इससे मिलने इसकी माँ और भाई आए और अंदर अपने आने की खबर भिजवाई। 
ईसा ने खबर सुन कर कहा , कौन है मेरी माँ और मेरा भाई ?
उसने महफ़िल में बौठे लोगों की तरफ इशारा करते हुए कहा 
देखो यह हैं मेरी माँ और मेरे भाई जो मेरे जन्नत नशीन बाप की मर्ज़ी पर चलते हैं। 
इसके बर अक्स ईसा ने यहूदी आलिमों के एतराज़ पर कि यहूदी उसूलों की खिलाफ वर्ज़ी क्यों करते हो ?
ईसा का जवाब था तुम खुदा की मर्ज़ी की खिलाफ काम क्यों करते हो ?
खुदा बाप ने कहा है अपने माँ बाप की इज़्ज़त करो , जो अपने माँ बाप को कोसें उनको सजाए-मौत हो। 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 4 December 2014

yunas+zakariya No 18-19

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****

क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है। पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें। मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  - - -

झलकी नं १८ 
यूनस (युनुस)
बाइबिल में यूनस को एक नबी बतलाया है जिसकी निशानी यह थी कि तीन दिन और तीन रात मगर मछ के पेट में रह कर ज़िंदा निकलता है। इसके बावजूद लोगों ने इस के पैग़ाम पर कोई ध्यान नहीं दिया। 
जब लोग ईसा से भी फरीसी यूनस की निशानी मांगते हैं तो ईसा को ग़ुस्सा आता है। 

झलकी नं १९ 
ज़खरया (ज़करिया, ज़कारिया)
यहूदी हुक्मराँ राजा हीरोद के दौर में ज़खरया नाम का पुजारी हुवा करता था। इसकी बीवी अल्ज़ीबियत थी जोकि मूसा के भाई हारुन की वंशज थी। वह बाँझ थी और बूढी भी हो चुकी थी। एक दिन पूजा के दरमियान फ़रिश्ते गाबरील ने ज़खरया को खबर दी कि अल्ज़ीबियत एक बच्चे की माँ बनेगी और तुम साहिबे औलाद होगे। ज़खरया ने हैरत से पूछा ,
मैं बूढा हूँ और मेरी बीवी बाँझ ? यह कैसे मुमकिन होगा ? 
गाब्रील ने कहा खुदा के लिए हर काम मुमकिन है। उस फ़रिश्ते ने साथ साथ यह भी कहा तुम उस वक़्त तक  गूंगे होगे जब तक बच्चा न हो जाए , बच्चे का नाम योहन रखना। वह असीयस की तरह यहूदियों को खुदा की तरफ फेरेगा। 
अलजबीयत ने पांच महीने तक इस बात को छुपा रख्खा था कि व हामला है। छटवें महीने वह गाबरील के बतलाए हुए मुक़ाम गलेलिया की नाज़रत नगरी तक पहुँची जहाँ मरियम से मिलने की हिदायत थी। उसने मरियम के घर दाखिल होकर उसको सलाम किया। उस वक़्त अलजबीयत के पेट का बच्चा ख़ुशी से उछल पड़ा , जैसे कि पाक रूह इसमें समां गई हो। 
अलजबीयत ने मरियम से कहा शुक्र है आप जैसी खातून से मुझे मिलने का मौक़ा मिला जिसके पेट में खुदा का बेटा पल रहा है। 
अलजबीयत के यहाँ बच्चा हुवा जिसका नाम योहन रख्खा गया। हर तरफ खुशियां मनाई गईं , आठवें रोज़ बच्चे का खतना हुवा , साथ में ज़खरिया की चुप भी ख़त्म हुई , तब उसने खुदा की हम्द व् सना की। 

योहन बस्ती से दूर सेहरा में पला बढ़ा , उसके बाद इस्राइलियों में अपने नबूवत का एलान किया।  वह सख्त मिज़ाज़ था. जो लोग उससे बपतिस्मा लेने आते उनसे कहता------
"ऐ सांप के बच्चो ! किसने तुम्हें आने वाले अज़ाब से आगाह किया 
और भागने का रास्ता बतलाया ?
अपने पछतावे के मुताबिक़ फल पैदा करो , 
दिल में यह कभी न रहे कि तुम अब्राहम की औलाद हो 
मैं तुम से सच कहता हूँ कि खुदा इन पत्थरों से भी अब्राहम की औलाद पैदा कर सकता है "
योहन ने राजा हीरोड की छोटी भावज के बारे में किरदार कुशी पर ज़बान खोली तो इसको गिरफ्तार कर लिया गया। किसी तक़रीब में भतीजी ने बड़े बाप राजा हीरोद के सामने ऐसा रक़्स किया कि राजा खुश हुवा और कुछ भी मांग लेने को कहा। 
उसने फ़ौरन योहन का सर थाली में रख कर अपनी माँ को पेश करने की फरमाइश की। 
ऐसा न चाहते हुए भी राजा ने अपनी ज़बान को निंभाते हुए योहन का सर भावज को दिया। 
(यह खबर सुनकर ईसा खौफ के मारे बस्ती छोड़ कर वीराने को भागे)

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 1 December 2014

Zakariya+sol Samuil No. 16+17

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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झलकी नं 16 
ज़करया  1st 
५२० ईसा पूर्व यहूदयों में नबी का दर्जा पाने वाले ज़करया इब्न बैरेकिया को खुदा अपने दर्शन देते हुए कुछ मंज़र पेश करता था। इनके कई इल्हामी दीदार क़लम बंद हैं। ज़करया कहते हैं , मैं ने आँखें उठाईं तो मुझे इल्हामी दीदार हुवा। मैंने चार सींगें देखीं तो मैंने उस फ़रिश्ते से जिससे मैं बात कर रहा था पूछा ,
यह क्या है ? 
उसने कहा यही वह सींगें हैं जिसने बोड़ा और योरोसलाम को बिखेर दिया। फिर खुदा ने मुझे चार लोहार दिखलाए , 
मैंने पूछा यह किस काम के लिए आए हैं ?
 कहा यह इस लिए आए हैं कि लोगों को खौफ ज़दा  करें और उन देशों के सींग काट डालें जिन्हों ने बिखेर देने के लिए बोड़ा के खिलाफ अपनी सींग उठाइं। और - - - 
(शायद ज़करया की इल्हामी बातें मुहम्मद के क़ुरानी आयतों की तरह बे सर पैर की हैं)

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झलकी नं १७ 
राजा सोल और समूईल (सालेह और समूद)
इसराईलियों का नबी समूईल बूढा हो चुका था , उसने अपने बेटों को अपना क़ायम मुक़ाम बनाया , जोकि बद उनवानियों के शिकार हो चुके थे। अवाम ने इसकी शिकायत समूईल से की और राय दिया कि
 दीगर क़ौमों की तरह उनका भी कोई अच्छा राजा होना चाहिए। 
यह बात समूईल को पसंद नहीं आई। उसने लोगों को जवाब दिया राजा तुम्हारी औलादों को रथों में घोड़े की जगह लगाएगा और घोड़ों के साथ ही दौड़ाएगा।  
तुम्हारी पैदावार से माल गुज़ारी लेगा। सब राजा के गुलाम और खादिमाएं हो जाएंगी। 
उस वक़्त इस्रइलयों का खुदा  तुम्हारी कोई मदद नहीं करेगा। 
मगर अवाम बज़िद रहे कि कम से कम  हमारा कोई मुहाफ़िज़  होगा जो हमें बैरूनी ताक़तों से हमें बचाएगा। 
बेन्यामीन खानदान से एक फ़र्द कैश हुवा करता था जिसका बेटा सोल (सालेह) था जोकि अच्छी शख्सियत का मालिक था। वह इतना लंबा था कि बाक़ी लोग उसके काँधे तक ही पहुँच पाते। 
एक दिन किसी तक़रीब के बाद समूईल की मुलाक़ात सोल से हुई जिसके बारे में खुदा ने समूईल से कहा था कि जो शख्स ऐसे मौके पर मिलेगा  , वही इस्राईल का राजा होगा। 
ग़रज़ कई आज़माइश को तय करते हुए सोल इस्राईल का राजा बना। 
कुछ दिनों बाद समूईल और सोल में इख्तिलाफ़ात शुरू होने लग गए। दरअस्ल समूईल नबूवत को क़ायम रखते हुए अपने बेटों तक यह सिलसिला ले जाना चाहता था। उसने राजा और रजवाड़े के खिलाफ एक तक़रीर करके लोगों को आगाह किया। 
सोल बहुत अच्छा हुक्मरां साबित न हुवा।  इसने एक मौके पर इस्राइलियों से क़सम ले ली कि जब तक दुश्मन पर फ़त्ह न हासिल हो जायगी , कुछ खाएंगे न पिएंगे, वर्ना उन पर खुदा का अज़ाब नाज़िल हो जाएगा , इस बात को नज़र अंदाज़ करते हुए उसके बेटे ने शहद चाट लिया। उसने लोगों को आगाह किया कि बिना खाए पाई तो वैसे ही हम मर जाएंगे, फ़तेह कैसे होगी ?
सोल ने अपनी नाकामी और क़ौम पर आए ज़वाल का ज़िम्मेदार अपने बेटे योनातान को ठहराया और बेटे को फांसी की सजा सुना दिया , मगर लोगों ने इसका विरोध किया और यूनातान बच गया। 
(क़ुरआन में सालेह और समूद का नाम बार बार आता है मगर उनका कोई ब्यौरा नहीं मिलता) 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 27 November 2014

Ilyas+Ayyoob N0 14+15

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है। पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें। मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं। दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  
झलकियाँ - - -
झलकी नं १४ 
इलियास (एलियास)
 इलियास यहूद का नबी था। रवायत है कि सुमारिया का हुक्मराँ अब्जिया बीमार हुवा तो उसने अपने क़ासिद को एक्रोन बालजियूब देवता के पास भेजा कि वह पूछ कर आए कि वह ठीक होगा या नहीं ? रस्ते में उसकी मुलाक़ात सर पे टोप पहने और कमर में पट्टा कैसे इलियास से हुई। इलियास ने क़ासिद से कहा जाकर राजा से कह दे , क्या इस्राईल में खुदा नहीं कि राजा तुझे एक्रोन भेज रहा है ? कहना तू जिस खाट पर पड़ा है उससे कभी उठ नहीं पाएगा और मर जाएगा। जब यह बात राजा तक पहुंची तो उसने ५० सिपाह इलियास को गिरफ्तार करने के किए भेजा। मौके पर पहुचने से पहले सभी सिपाह आग की बरसात में जल मरे।  राजा ने दोबारा दस्ता  भेजा , उनका भी हश्र वैसा ही हुवा , 
इलियास की बद्दुआ के शिकार हो गए। 
राजा ने तीसरा दस्ता भेजा जिसका मुखिया समझदार था। उसने अपनी दलीलों से इलियास को राज़ी कर लिया कि व राजा के पास चले। इलियास राजा के पास पहुँच कर भी अपनी ही बात दोहराई ,'' क्या क्या इस्राईल में खुदा नहीं कि - - - 
तू जिस खाट पर पड़ा है उससे कभी उठ नहीं पाएगा " 
थोड़ी देर में राजा मर गया। 
कहते हैं कि खुदा ने इलियास को मुजस्सम जन्नत के लिए उठा लिया था जिसकी खबर इल्यास को पहले ही हो गई थी। वह अपने शागिर्दों को लेकर उर्दन नदी के पार गया। अपनी चादर को मार के उसने नदी में खुश्क रास्ता निकल लिया , फिर सभों ने नदी पार किया। एक बवंडर आया और इलियास को जन्नत के लिए उड़ा  ले गया। 

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झलकी नं 15 
अय्यूब (योब)
अय्यूब एक ख़ुदा तरस बंदा था , वक़्त ने उसको बहुत नवाज़ा था , उसके सात बेटे और तीन बेटियां  थीं , सब अपने अपने घरों में खुश हाल थे। अय्यूब  मुल्क का अमीर तरीन इंसान था , इसके पास ७००० भेड़ें , तीन हज़ार ऊँट , १००० बैल ५०० गधे और बहुत से नौकर चाकर थे। 
एक दिन शैतान ने जाकर ख़ुदा को बहकाया कि 
अय्यूब का माल मेरे हवाले कर दे , फिर देख वह तेरा कितना रह जाता है। 
ख़ुदा ने शैतान की चुनौती क़ुबूल कर ली। 
शैतान की शैतानी से अय्यूब के तमाम बेटे और बेटियां एक तक़रीब में मारे जाते हैं , दुसरे दिन तमाम जानवर लुट जाते हैं। अचानक यह सब देख कर अय्यूब कहता है ,
जो गया जाने दो , नंगा आया था , नंगा जाऊँगा 
और वह फिर याद ए इलाही में गर्क़ हो जाता है। 
यह देख कर शैतान मायूस हुवा और ख़ुदा के पास फिर गया और कहा 
ठीक है, अय्यूब तुझे भूला नहीं , न तुझ से बेज़ार हुवा मगर तू अय्यूब को जिस्मानी मज़ा चखा दे, 
तो देख वह तेरे आज़माइश में कितना खरा उतरता है ?
खुदा ने कहा ठीक है जा उसके जिस्म को तेरे हवाले करता हूँ मगर हाँ ! याद रहे कि उसकी जान नहीं ले लेना। 
शैतान उसके जिस्म पर ऐसे फोड़े फुंसी निकलता है कि उसे कपडे पहनने में भी तकलीफ होती है। वह नंगा होकर राख के ढेर पर अपने रात और दिन काटता है। वह एक छोटे से कमरे में बंद होकर खुदा की बंदगी करता। 
अय्यूब की बीवी इसे ताने देती कि अब अपने खुदा को कोसो और मर जाओ। 
अय्यूब कहता , कम्बख्त क्या खुदा से सब पाने पाने की ही उम्मीद रखती है ?
इस हाल में इसके तीन दोस्त इस से मिलने आते हैं , अय्यूब को देख कर पहचान नहीं पाते , मारे सदमे के अपने अपने कपडे फाड़ लेते हैं और सरों पर राख मल लेते हैं। 
अय्यूब ने इस हालत में बड़ी दर्दनाक नज़्में कहीं। ( देखें सहीफ़े में )

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 23 November 2014

Sulemaan No 13

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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झलकी नं १३ 
क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  
झलकियाँ - - -

सुलेमान 
दाऊद ने अपनी ज़िन्दगी में ही अपनी चहीती बीवी बतशीबा के बेटे सुलेमान को बादशाह बना दिया था। इसके दीगर सरकश बेटे सुलेमान के खिलाफ थे। सारे मुल्क में अम्न का क़याम हो चुका था और सुलेमान को भरी- पुरी विरासत मिली थी जिसे उसने एक लायक जा नशीन की तरह संवारा और सजाया ही नहीं बल्कि बढ़ाया भी।  सुलेमान ने मिस्री फ़िरअना (बादशाह) की बेटी से शादी की। उसके बाद मुख़तलिफ़ मुमालिक , मज़ाहिब और क़बाइल् से बीवियाँ करके हरम की रौनक़ बढाता रहा। इसके हरम में सात सौ रानियां और तीन सौ पट-रानियाँ थीं। 
सुलेमान हर एक के मज़हब का एहतराम करता था और उन पर चलता भी था। इसका बाप दाऊद ज़िन्दगी भर जंगों में उलझा रहा , उसने सल्तनत तो बनाई मगर उसके लिए कुछ भला न कर सका। दाऊद की ख़्वाहिश थी कि वह कोई बड़ी इबादत गाह बनवाए मगर बनवा न सका जिसे उसके बेटे सुलेमान ने पूरी की। 
दाऊद के ज़माने में ऊँचे टीले पर बेदी बनाई जाती थी और उस पर जाकर जानवरों की बलि देकर दुआएं मांगी जाती थी। यही तरीका उसके पूर्वज नूह , मूसा और दाऊद का भी हुवा करता था , भारत में भी ऐसा ही था। 
सुलेमान ने एक आलिशान इबादत गाह 'योरोसलम' में बनवाई जिसके खंडहरों में दीवार गिरया आज भी क़ायम है। सुलेमान ने अपने लिए एक शानदार महल भी बनवाया था जिसमें पीतल के खम्बे और हौज़ हुवा करते थे और सोने की नक़्क़ाशी हुवा करती थी। 
सुलेमान के महल की शोहरत दूर दूर तक थी। 
सुलेमान बहुत ही ज़हीन इंसान था। वह माहिर ए नबातात (बनस्पति) और जीवों जानवरों पर शोध करता था। सारे राज काज के कामों में काफी पकड़ रखने वाला था। उसकी शोहरत सुनकर शीबा की रानी बिलक़ीस सुलेमान की मेहमानी में आई थी जो अपने साथ ऊंटों पर लाद कर तोहफे लाइ थी और दस दिनों तक सुलेमान की मेहमान रही।  सुलेमान भी उसको तोहफे तहायफ़ दिए। 
(क़ुरआन सुलेमान और बिलकीस की शर्मनाक कहानी गढ़े हुए है) 

सुलेमान की रानियों में मुआबी , अम्मोनी , सुदीदनी , हित्ती और मिस्री औरतें थीं जो अपने अपने अक़ायद के लिए आज़ाद थीं जिसे योवहा (खुदा) पसंद नहीं करता था , इसकी वजह से सुलेमान ज़वाल पिज़ीर (पतन) हुवा। सुलेमान ने योरोसलम को राजधानी बना कर चालीस साल तक हुकूमत की। उसने एक बड़ा इस्राईली साम्राज्य क़ायम किया। 
मूसा के ४८० सालों बाद सुलेमान हुक्मराँ हुवा यानी आज से तक़रीबन ३००० साल पहले। 
सुलेमान दानिश्वर होने के साथ साथ एक शायर भी था। इसकी रचनाएँ लगभग ३००० हैं , इनके आलावा १००० गीत लिखे। 
इन्ही को क़ुरआन ज़ुबूर कहता है और कहता है अल्लाह ने इसे उठा लिया।  

एक कामयाब और होनहार बादशाह सुलेमान। 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 20 November 2014

Daood No12

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है। पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं। दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका  विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  

झलकियाँ - - -

झलकी १२ 
दाऊद और सालेह 
दाऊद एक चरवाहा था जो अपने आठ भाइयों में सब से छोटा था। वह अपने बाप के साथ भेड़ें चराया करता था। बचपन से ही उसे सितार बजने का शौक़ था। इसके कुछ भाई मशहूर राजा सोल (जिसे क़ुरआन में सालेह कहा गया है) की फ़ौज में सिपाह थे। 
एक दिन वह भाइयों के लिए रोटियाँ लेकर फौजी दस्ते में गया। उसने देखा कि दुश्मन फिलिस्ती फ़ौज का कमांडर ज़र व् बख़्तर और हथियारों से लैस मैदान में डटा हुवा मुकाबले का इन्तज़ार कर रहा है। 
( उस ज़माने में जंगें ऐसी होती थीं कि मुक़ाबिल फौजो के कमांडर मैदान में मुक़ाबला करते , उनकी ही जीत या हार से जंग का अंजाम मान लिया जाता था, फौजों का खून खराबा नहीं होता था।) 
इस तरह फिलिस्ती कमांडर मैदान में उतर कर मुखालिफ को ललकार रहा था। दाऊद जोकि फौजी भी नहीं था मुकाबले की ख्वाहिश ज़ाहिर की। थोड़े से एतराज़ के बाद सोल के दस्ते की तरफ से दाऊद मुकाबले के लिए सामने आ गया था। दाऊद ने अपने गोफने में गुल्ला रख कर गोफने को घुमाया और ऐसा वार किया कि फ़िलस्ती कमांडर अपना सर थाम कर वहीँ ढेर हो गया। दाऊद ने पालक झपकते ही उसकी गर्दन उतार ली। फ़िलस्ती फ़ौज की सिकश्त हुई और उलटे पाँव मैदान से भाग कड़ी हुई। 
इस वाक़ए से इसराईलियों में दाऊद की ऐसी शोहरत हुई कि राजा सोल तक उससे रुवाब खाने लगा। उसके शान में एक कहावत रायज हुई 
"सोल ने मारे हज़ार , दाऊद ने मारा लाख को " 
इसकी शोहरत से राजा अपने लिए खतरा महसूस करने लगा यहाँ तक कि उसको मरवा देने का इरादा कर लिया मगर इस तरकीब के साथ कि अवाम को भनक न लगे। 
उसने साजिशन दाऊद को अपनी बेटी तक ब्याह दी। 
राजा सोल की नियत को दाऊद भांप गया। अपनी जान बचाने के लिए वह राजा के जाल से बाहर निकल गया.
 और लुटेरों में शामिल हो गया। राजा सोल दाऊद की तलाश में निकल पड़ा , ऐसा वक़्त भी आया कि दाऊद दो बार सोल के फंदे में आया। दाऊद को जब राजा के सामने पेश किया गया तो वह बड़े एहतराम से हाज़िर हुआ। उसने कहा आप मेरे राजा और बुज़ुर्ग  हैं। 
सोल को उस पर तरस आ गया और छोड़ दिया। 
दाऊद के खिलाफ उसका शक  बना रहा। वह  छोड़ कर भी उसका पीछा करने के लिए निकल जाता , ग़रज़  मारने की  फ़िराक़ में एक दिन वह खुद मर गया जिसक रंज दाऊद को भी हुवा उसने सोल का  मर्सिया  भी लिखा। 
राजा सोल से बचने के लिए दाऊद ने फ़िलस्तियो के मुल्क में पनाह ले रखी थी।  उसकी लूट मार बदस्तूर जारी रही , वह जिन बस्तियों पर हमला करता , वहां तबाही और बर्बादी के निशान छोड़ जाता। 
तारीख में दाऊद की एक झलक 
दाऊद अपने आदमियों को साथ लेकर मशूरियों , गिरजियों और अमालील्यों पर छापे मरता था। यह क़ौमें ज़माना ए क़दीम में मिस्र की तरफ शोर तक बसी हुई थीं। दाऊद ने उन मुल्कों पर हमला बोला और वहां के मर्द व् ज़न को ज़िंदा नहीं छोड़ा। उनकी भेड़ें गधे गायें और ऊँट सब लूट लेता, 
दर अस्ल लूट मार करता फिलिस्तियों का ही मगर अपने फिलिस्ती आक़ा से बतलाता कि इस्राईल्यों को तबाह कर रहा है। 
दाऊद डाकुओं के एक बड़े गिरोह का सरदार बन गया था इसकी दहशत गरी की चर्चा दूर दूर तक फ़ैल गई थी। राजा सोल का मर्सिया गाते गाते और उसके दामाद का फायदा लेते हुए , आखिर कार एक दिन दाऊद इस्राइलियों का बादशाह बन गया। 
और क़ुरआन दाऊद को "दाऊद अलैहिस्सलाम " कहता है। 
दाऊद हर पराजित देश से एक रानी चुनता, इस तरह उसकी कई पत्नियां हो गई थीं। एक रोज़ उसने हाथी पर सवार होकर बस्ती का जायज़ा ले रहा था कि उसे एक हित्ती औरत अपने आँगन में नंगी नहाते दिखी, उसने दाऊद को दीवाना कर दिया, दाऊद ने पता लगाया कि वह नाज़ुक अन्डम कौन है। पता चला कि इसका नाम बतशीबा है और शौहर का नाम ऊर्या है जो कि उसी की मुलाज़मत में था।
 दाऊद ने उसका काम वैसे ही तमाम किया जैसे कि जहांगीर ने शेर अफगान का काम तमाम किया था।  उसके बाद बतशीबा दाऊद की चहीति रानी बनी। इसी के बेटे सुलेमान को दाऊद ने अपना वारिस बनाया। 
दाऊद इस्राईल्यों में अज़ीम बादशाहों में शुमार होता है। 
दाऊद बूढा हो गया , इसे सर्दी का मौसम रास न आता। दाऊद के मुआलिजों ने राय दिया कि बादशाह के लिए कोई हसीन और कमसिन दोशीजा तलाश की जाए जो रात को इसको लिपटा कर सोया करे। ग़रज़ मुल्क भर में ऐसी कुवांरी कन्या की तलाश शुरू हो गई। 
मुक़ाम शूनेम से अबीशग नाम की लड़की मिली। इस तरह सौ साला बूढ़े दाऊद का इलाज हुवा मगर वह भी उसे बचा न सकी। दाऊद ने कभी भी इसके साथ मुबशरत नहीं किया। 
दाऊद के मरने के बाद उसके बड़े बेटे अदूनिया के ताल्लुक़ात अबिशग से क़ायम हो चुके थे , वह उसे अपनी बीवी बनाना चाहता था।  इसके आलावा अदूनिया बड़े बेटे होने के नाते दाऊद की गद्दी भी चाहता था। मगर दाऊद ने अपना जांनशीन सुलेमान को पहले ही बना चुका  था। 
माँ दाखिल औरत को बीवी बनाने और गद्दी की दावेदारी की वजह से सुलेमान ने मौक़ा पाकर अदूनिया को मौत के घाट उतार दिया। 
दाऊद एक कामयाब शाशक था। वह अपने मुल्की सलाह कारों , सादिकों (पुरोहित} नबियों , नातानों , यहुया दायाग के मशविरे से ही काम करता था. 
आखीर अय्याम में वह बुत परस्ती करने लगा था। 
(यह थी दाऊद की हक़ीक़त जिसकी कहानी मुहम्मदी अल्लाह क़ुरआन में अजीब व् ग़रीब गढ़े हुए है)  



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 16 November 2014

MOOSA No 11 Part 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***

(2)
क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  
झलकियाँ - - -
मूसा 

(2)

खुदा ने मूसा को तीन करिश्मे दिए ,
१- जब अपनी लाठी को ज़मीन पर डाल दोगे तो वह सांप बन जाएगी। 
२- अपना हाथ बगल में डाल कर निकालोगे तो गदेली पर कोढ़ के दाग आ जाएंगे और दोबारा डाल कर निकालो गे तो दाग गायब हो जाएंगे।  
३ - नील नदी के पानी को चुल्लू में लेकर डालोगे तो वह खून बन जाएगा।
मूसा ने ख़ुदा से गुज़ारिश की कि वह हकला है , फ़िरऔन के दरबार में कैसे बातें करेगा ?
ख़ुदा  ने इसके भाई हारुन को इसका मददगार बना दिया ,
फिर भी मूसा इस काम से घबरा रहा था क्योकि मिस्र जाकर वह मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता था। उसने ख़ुदा  से कहा , तू इस काम के लिए किसी और को चुन ले। 
यह सुन कर ख़ुदा  नाराज़ हुवा और उसे मिस्र जाने का हुक्म दिया। 

मूसा अपने ससुर ययतरु से नेक दुआएं लेकर भाई हारुन के साथ मिस्र के लिए रवाना हो गया। 
उसने मिस्र पहुँच कर फिरौन से दरख्वास्त की कि वह अपने भाई इसराईलियों को लेकर हेरोब की पहाड़ियों पर इबादत के लिए जाना चाहता है। इसके लिए योवहा (ख़ुदा) ने हमें हुक्म दिया है। 
फ़िरऔन मूसा की चल को समझ जाता है कि वह मिस्र से इस्राइलियों को आज़ाद कराना चाहता है जोकि यहाँ मेहनत मज़दूरी करके गुज़ारा करते हैं , गोया उसने साफ़ इंकार कर दिया , इसके बाद उसने इसराईलियों पर काम के बोझ को दोगुना कर दिया।

 मूसा परेशान होकर अपने आप से कहता है , कहाँ मुसीबत में डाल दिया मुझको और मेरे भाई इसराईलियों को ? यवोहा उसे तसल्ली देता है। 
 मूसा और हारुन अपना जादू दिखलाने फ़िरऔन के दरबार में जाते हैं। 
मूसा का मुक़ाबला फ़िरऔन के जादूगरों से शुरू हो जाता है जिसमें दरबारी जादूगर मूसा से कहीं पर कमज़ोर  साबित नहीं होते। 
इसके बाद शुरू होता है मिस्र पर अज़ाब ए इलाही का सिलसिला। 
मूसा अपनी लाठी के इशारे से नील नदी की सभी मछलियों को मार देता है.
नील नदी के सारे मेढक खुश्की पर आ जाते है। 
मच्छर पूरे मिस्र पर अज़ाब बन कर छा जाते हैं। 
डंक दार कीड़े पैदा हो जाते हैं। 
पूरे मिस्र में बीमारियां फ़ैल जाती हैं। 
इसके बाद टिड्डियों का हमला होता है। 
मूसा ने फ़िरऔन को चेतावनी दी कि अगर इसराईलियों को हेरोब पर न जाने दिया गया तो मिस्र में इंसानों और मवेशियों के पहले सभी बच्चे मौत के घाट उत्तर जाएंगे। 

मूसा की चेतावनी से फ़िरऔन घबरा जाता और इसराईलियों को हेरोब पहाड़ियों पर जाने की इजाज़त दे देता है । 

इसराईलियों का मिस्र से हिजरत (प्रवास)
युसूफ के ज़माने में सिर्फ सत्तर नफर बनी इसराईल (याक़ूब की औलादें) के नाम से कनान से मिस्र में दाखिल हुए थे जोकि ४३० सालों में फल फूल कर छः लाख से ऊपर हो गए थे। इन बनी इसराईलियों यानी याक़ूब की औलादों को फ़िरऔन मिस्र से निकाल रहा था। 
मूसा की बद दुआओं से मिस्र का माहौल ऐसा हो गया था कि  सारे मिस्री इब्रानियों से मरऊब हो चुके थे और इनकी बातों पर भरोसा करने लग गए थे। इसका असर ये हुवा कि इसराईलियों ने मिस्रियों से क़र्ज़ ऐंठा , इसराईलियों औरतों ने मिस्री औरतों से जेवरात ऐंठे कि हैरोब जाकर आपके लिए दुआ करेंगे। 
तौरेत कहती हैं "इस तरह इसराईलियों ने मिस्रियों को रातो रात लूट लिया।" 
इनके साथ इनके सारे असासे , मवेशी और कुछ मिस्री भी थे। 
 बड़ा क़ाफ़िला पूरी रात चलता रहा। इस रात को त्योहारों की तरह मनाने का रवायत इसराईलियों में आज भी क़ायम है। 

सुब्ह हुई , दिन आया , इस दिन को इसराईलियों ने अपने कैलेंडर साल का पहला दिन माना और इस दिन को "पास्का" के नाम से मंसूब किया। इसराईलियों में जश्न ए पास्का मानाने का रिवाज आज भी चला आ रहा है। 
इसराईल अपने साथ अपने नबी जोसेफ़ का ताबूत भी ले गए जो मिस्र के म्युज़ियम में महफूज़ था। 

इधर फ़िरऔन को एहसास हुवा कि वह बहुत बड़ी गलती कर बैठा है। सारे मिस्र से खादिम और मज़दूर लापता हो चुके थे , अब कौन करेगा इनके काम ?
इसने अपने फैसले पर नज़र ए सानी किया और अपनी फ़ौज को हुक्म दिया कि इसराईलियों के काफिले को रोके और वापस ले आए। 
तब तक मूसा का क़ाफ़िला एक बड़ा सफर तय करके नड सागर (बह्र ए सौफ़) तक पहुँच चुका था। मूसा को खबर मिली की मिस्री फ़ौज इब्रानियों को वापस लेने के लिए आ रही है। इस खबर से लोग घबराए , मूसा ने उन्हें तसल्ली दी और बह्र ए सौफ़ की तरफ अपने दोनों हाथों को दुआ के लिए फैला दिया। 
सागर दो दीवारों में बट गया और बीच में एक खुश्क राह बन गई। मूसा ने इस करिश्माई रहगुज़र पर इसराईलियों को डाल दिया। 
क़ाफ़िला नड सागर को पार कर चुका था कि फ़िरऔन की फौजें दूसरे किनारे पर पहुँच चुकी थीं। मिस्री सरबराह ने अपनी फ़ौज को उसी रस्ते पर चल कर इसराईलियों तक पहुँचने का हुक्म दिया। 
मूसा ने अपने फैले हुए बाज़ुओं को समेट लिया , पानी में बनी हुई दोनों दीवारें गायब हो गईं और फ़िरऔन की फ़ौज उसमे ग़र्क़ हुई 

नड सागर लाल सागर के क़रीब ही है। इसे क़ुरआन दरयाय नील लिखता है। 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 13 November 2014

Moosa No 11 Part i

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*
झलकी ११ 
मूसा 
(1)

बनी इस्राईल के लेवी क़बीले में मूसा का जन्म हुवा . इस ज़माने में इस्राईल्यों पर बादशाह-ए-वक़्त फ़िरऔन का ज़ुल्म बरपा था , इस लिए कि ज्योतषियों ने फ़िरऔन को बतलाया था कि इस्राईल्यों में एक बच्चा पैदा होगा जो फ़िरऔन के पतन का कारण बनेगा। 
फ़िरऔन ने फ़ौज को हुक्म दिया कि इस्राईल्यों में पैदा होने वाले हर नरीना बच्चों को हलाक कर दिया जाए और लड़कियों को ज़िंदा रहने दिया जाए।  ऐसे में मूसा जन्मा जिसको माँ ने तीन महीने तक इसे छिपा रखा , इसके बाद बच्चे को एक सरकिणडे की टोकरी में रख कर बेटी को दिया कि वह इसको दर्याय नील के हवाले कर आए। 
फ़िरऔन की बीवी (या बेटी) आसिया कपड़ों के साथ नील पर नहाने आई थी कि इसने किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनी , उस टोकरी पर नज़र गई जिससे रोने की आवाज़ आ रही थी। उसने सेविकाओं को हुक्म दिया कि  बच्चे को टोकरी से निकाल कर मेरे पास ले आओ।  सेविकाओं ने देखा कि टोकरी में एक इब्रानी बच्चा था। शहज़ादी को बच्चा अच्छा लगा , उसने इसे पालने का इरादा किया और के लिए किसी इब्रानी औरत को दूध पिलाने के लिए तलाश करने का हुक्म दिया। दाई पास ही मिल गई जो दर अस्ल मूसा की माँ ही थी। 
इस तरह मूसा को माँ मिल गई और माँ को उसका लाल। 
मूसा अच्छी परवरिश में जवान हुवा , पुर कशिश और मजबूत शख्सियत का मालिक बना।  हक़ और नाहक़ की लड़ाई में वह कूद पड़ता। 
एक दिन उसने देखा कि दो लोगों में लड़ाई हो रही थी जिनमे एक इब्रानी और दूसरा मिस्री था। इब्रानी ने मूसा को गुहार लगाई तो वह लपका , मिस्री की ज़्यादती को देख कर उसको एक घूसा रसीद कर दिया जिसकी ताब मिस्री न ला सका और वहीँ ढेर हो गया। 
मूसा वहां से भाग गया और अपने किए पर पछताया। 
फिर एक दिन वही इब्रानी किसी मिस्री से झगड़ रहा था कि मूसा को देख कर उसकी मदद मांगी। मूसा वहाँ पहुंचा मगर इस बार उसने अपने बिरादर की मदद करने के बजाय उसको एक घूँसा रसीद किया। 
मूसा की इस रविश से इब्रानी घबरा गया और फैल मचा दिया कि मूसा ने पहले एक मिस्री को घूँसा मारा था जो मर गया था , अब यह मुझे मार डालना चाहता है। 
यह खबर जब फ़िरऔन तक पहंची तो उसने मूसा को गिरफ्तार करने का हुक्म दे दिया। 
 खबर पाकर मूसा घर छोड़ कर भाग निकला। रातो-दिन भागते हुए वह मिस्र की सरहद से बाहर निकल गया और मिदयान नाम की बस्ती में रुका ,फिर वहाँ के मुखिया से पनाह मांगी। मुखिया ययतरू ने उसे पनाह दिया और अपनी भेड़ें चराने के काम पर लगा दिया। कुछ दिनों बाद मुखिया ने अपनी बेटी सपूरा से मूसा की शादी कर दी और इसे अपना दामाद बना लिया 
मूसा बाल बच्चों वाला हुवा , उसके बड़े बेटे का नाम गोरशेम हुवा। 

एक रोज़ मूसा घर से दूर हेरोब की पहाड़ियों पर गया।  वहाँ झाड़ियों के पीछे से खुदा ने मूसा को अपना दीदार दिया। झाड़ियाँ अंगारों की लपटों में थीं मगर जल कर खाक नहीं हो रही थीं। मूसा इस राज़ को जानने के लिए आगे बढ़ना ही चाहा कि निदा (ईश वाणी) आई - - -
मूसा ! ऐ मूसा !!
मूसा ने लब्बयक (आया मेरे ख़ुदा) कहा 
खुदा ने कहा 
आगे मत बढ़ना , पहले अपने पाँव के जूते उतार , यह जगह मुक़द्दस है 
खुदा ने कहा , मै तेरे पूर्वज इब्राहीम , इस्हाक़ ,याक़ूब और यूसुफ़ का खुदा हूँ। 
खुदा ने ऐसा ही वादा मूसा से किया जैसा कि इन सभों से किया था। 
खुदा ने हुक्म दिया कि तू मिस्र जा और वहां से इस्राईल्यों को निकाल के ला. 
खुदा ने अपना नाम याओवह  या योवहह बतलाया। 
(इस्राइली इन नामों को लिखते ज़रूर हैं मगर कभी मुंह से उच्चारित नहीं करते , इनकी जगह इनके माने 
{"मैं ही हूँ जो हूँ ) पुकारते हैं।



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 9 November 2014

yusuf No 10 Part 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
********
योसेफ़ / यूसुफ़ / जोज़फ़ 
Part 2


क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  
झलकियाँ - - -



क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
***

यूसुफ़ की ताबीर और तदबीर से बादशाह बहुत मुतास्सिर हुवा और यूसुफ़ का मुक़दमा तलब किया जोकि दो सालों से चल रहा था। पूरा मुआमला नए सिरे से पेश किया गया , कुर्ते का दामन पीछे की तरफ का चाक था इस लिए ज़ुलैख़ा को मुजरिम पाया गया जिसे खुद ज़ुलैखा ने तस्लीम कर लिया। यूसुफ़ बाइज़्ज़त बरी हुवा और उसने फ़िरऔन के दिल में अपना मुक़ाम बना लिया। फ़िरऔन ने खुश होकर यूसुफ़ को वज़ीर-खज़ाना मुक़र्रर किया , इसे सारे मिस्र का दौरा कराया और उसे "साफ़नत्त पीयूऊह " के लक़ब से नवाज़ा, यूसुफ़ की शादी इमाम पोटी फियरऊ की बेटी आसनत से हुई। 
यूसुफ़ की ताबीर के मुताबिक़ सात साल खरे उतरे , इतना गल्ला पैदा हुवा कि जिसकी नाप तौल रखना मुमकिन न था। उसके बाद मुल्क और आस-पास ऐसा क़हत पड़ा कि लोग दाने दाने को मुहताज हो गए। फ़िरऔन ने यूसुफ़ को पूरा अख्तियार दे रखा था कि वह ग़ल्ले को जिस तरह चाहे रिआया को बाटे या बाहर वालों को बेचे। यूसुफ़ की हिकमत-अमली से बादशाह का खज़ाना लबरेज़ हो गया था।  मुल्क की सारी ज़मीन बादशाह की मिलकियत हो गई थी। 

यूसुफ़ के वतन कनान को भी कहत का सामना करना पड़ा जहाँ यूसुफ़ का परिवार रहता था। 
याक़ूब ने अपने कुछ बेटों को भी अनाज लेने के लिए मिस्र भेजा। यूसुफ़ से बहैसियत वज़ीर जब इन भाइयों से आमना सामना हुवा तो उसने इन सभों को पहचान लिया मगर यूसुफ़ को कोई भी न पहचान सका। उनके वहमो-गुमान में भी न था कि जिस भाई को उन्हों ने अंधे कुवें में डाल  कर मार दिया था , वह इस वक़्त हुक्मरान-मिस्र होगा। यूसुफ़ ने अपने भाइयों पर जासूसी का इलज़ाम लगा कर गिरफ्तार करा लिया और तफ्तीश के बहाने अपने सारे कुनबे की जानकारी ली।
  इस तरह यूसुफ़ को इसके बाप और भाई बिन्यामीन की खैरियत मिली। इसके बाद यूसुफ़ ने समऊन को हथकड़ी लगा कर बाकियों को इस शर्त पर छोड़ा कि अगली बार वह बेन्यामीन को साथ लेकर आएँ। युसूफ ने अनाज की कीमत भी ग़ल्ले के बोरियों में छुपा कर उन्हें वापस कर दिया। 
बेटे कनान आकर पूरी दास्तान बाप याक़ूब को सुनते हैं समऊन को यर्गः माल बनाने और बिन्यामीन को साथ लाने की शर्त को याक़ूब न मानते हुए कहता है - - -
तुम लोग यूसुफ़ को भी इसी तरह की साज़िश करके मार चुके हो , अब उसके भाई को भी मारना चाहते हो ?
बहुत यक़ीन दिलाने के बाद याक़ूब उनकी बात मान जाता है। 
कुछ दिनों बाद बेन्यामिन को साथ लेकर सभी भाई मिस्र आते हैं। यूसुफ़ अपने चहीते भाई बेन्यामिन को देखता है तो देखता ही रह जाता है , भाग कर गोशा-एतन्हाई में चला जाता है और खूब रोता है। इस बार यूसुफ़ सभी भाइयों की दावत करता है और उन्हें ठीक से परखता है कि आया इसके सभी भाई सुधर गए हैं ? इसके बाद वह सारे भेद खोल देता है कि वह कोई और नहीं , तुमहारा भाई यूसुफ़ है। 
इसकी खबर बादशाह तक पहुंच जाती है कि यूसुफ़ के भाई आए हुए हैं। वह उनको इजाज़त देता है कि सभी अपने खानदान के साथ मिस्र आ कर बस जाएं। वह सभी कनान जाकर माँ बाप को और घर के सभी साज़ व् सामान लेकर मिस्र में आकर आबाद हो जाते हैं। 
इस वक़्त यूसुफ़ के खानदान में कुल ७० नफ़र थे।   
यूसुफ़ की इमान दारी , वफ़ा दारी और हिकमत-ए -अमली से बादशाह इनता खुश था कि उसने मिस्र की निजामत भी यूसुफ़ को सौंप दी।  नतीजतन यूसुफ़ बादशाह को पक्का वफादार और फ़रमा बरदार बन गया। वह उसे अपने बाप का दर्जा देता था। यूसुफ़ ने जिस दूर अंदेशी से अनाज का ज़ख़ीरा बनाया , बादशाह के लिए एक वरदान था। इसके ज़रिए मुल्क और ग़ैर मुल्क की भारी दौलत बादशाह के ख़ज़ाने में आ गई थी। अवाम के पास फूटी कौड़ी भी नहीं बची कि वह ज़िंदा रह सकें। 
यूसुफ़ ने बड़ी बेरहमी के साथ अवाम की ज़मीनें बादशाह के नाम करा लीन और उनको बादशाह का मज़दूर बना लिया। ज़मीन इस शर्त पर लोगों में बाटी गईं कि पैदावार को पाँचवाँ हिस्सा बादशाह का होगा। 
यूसुफ़ का बनाया हुवा यह क़ानून हज़ारों साल से दुन्या में रायज है .
उसने अपने देखे हुए ख्वाब "कि सूरज चाँद और ग्यारह सितारे उसको सजदा कर रहे हैं। " की ताबीर को अपने बाप और भाइयों के सामने फिर दोहराई।  





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान