Tuesday 27 May 2014

Soorah aAalaa 87

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****
सूरह अअला ८७ - पारा ३० 
(सब्बेहिस्मा रब्बिकल अअल ललज़ी)  

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. 
तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

आप अपने परवर दिगार के नाम की तस्बीह कीजिए,
जिसने बनाया, फिर ठीक बनाया, जिसने तजवीज़ किया, फिर राह बताई,
और जिसने चारा निकाला और फिर उसको स्याह कोड़ा कर दिया,
हम वादा करते हैं की हम कुरआन आपको पढ़ा दिया करेगे,
फिर आप नहीं भूलेगे मगर जिस कद्र अल्लाह को मंज़ूर हो,
वह हर ज़ाहिर और मुखफ़ी को जनता है और हम इस शरीअत के लिए आपको सहूलत देंगे.
तो आप नसीहत किया कीजिए अगर नसीहत करना मुफ़ीद होता है,
वही शख्स नसीहत पाता है जो डरता है और जो शख्स बद नसीब होता है,
वह इससे गुरेज़ करता है जो बड़ी आग में दाखिल होगा, फिर न इसमें मर ही जाएगा, और न इस में जिएगा,
बा मुराद हुवा जो शख्स पाक हो गया,
और अपने रब का नाम लेता रह और नमाज़ पढता रहा.
बल्कि तुम अपनी दुनयावी ज़िन्दगी को मुक़द्दम समझते हो,
हालाँकि आखिरत बदरजहा बेहतर और पाएदार है,
ये मज़मून अगले सहीफों में भी है,
यानी इब्राहीम और मूसा के सहीफों में.
सूरह अअला ८७ - पारा ३० आयत (१-१९) 

नमाज़ियो !
ज़रा गौर करो कि नमाज़ में तुम अल्लाह के हुक्म नामे को दोहरा रहे हो. अगर कोई हाकिम हैं और अपने अमले को कोई हुक्म जारी करता है, तो अमला रद्दे अमल में हुक्म की तामील करता है या हुक्म  नामे को पढता है? हुक्म नामे को पढना गोया हाकिम होने की दावा  दारी करने जैसा है. अल्लाह के कलाम को दोहराना क्या अल्लाह की नकल करने जैसा नहीं है? अल्लाह कहता है - - -
आप अपने परवर दिगार के नाम की तस्बीह कीजिए,
जिसने बनाया, फिर ठीक बनाया, जिसने तजवीज़ किया, फिर राह बताई,
और जिसने चारा निकाला और फिर उसको स्याह कोड़ा कर दिया,
हम वादा करते हैं की हम कुरआन आपको पढ़ा दिया करेगे,
फिर आप नहीं भूलेगे मगर जिस कद्र अल्लाह को मंज़ूर हो,
और उसकी कही बात को तुम उसके सामने दोहराते हो गोया अल्लाह बन कर अल्लाह को चिढाते हो? कहते हो कि
 "हम वादा करते हैं की हम कुरआन आपको पढ़ा दिया करेगे,"
मुसलमानी दिमाग का हर कल पुर्जा ढीला है, यह अंजाम है जाहिल रसूल की पैरवी का.
यहूदी अपने इलोही का नाम बाइसे एहतम लिखते नहीं और मुसलमान अल्लाह बन कर उसके हुक्म की नकल करके उसकी खिल्ली उडाता है..



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 19 May 2014

Soorah tariq 86

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

***
सूरह तारिक़ ८६ पारा ३०  
(वस्समाए वत्तारके) 

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"क़सम है आसमान की और उस चीज़ की जो रात को नमूदार होने वाली है,
और आपको कुछ मालूम है कि रात को वह नमूदार होने वाली चीज़ क्या है?
वह रौशन सितारा है,
कोई शख्स ऐसा नहीं कि जिसको कोई याद रखने वाला न हो,
तो इंसान को देखना चाहिए कि वह किस चीज़ से पैदा हुवा है,
वह एक उछलते पानी से पैदा हुवा है,
जो पुश्त और सीने के दरमियान से निकलता है,
वह इसको दोबारा पैदा करने में ज़रूर क़ादिर है,
जिस रोज़ कि कलई खुल जाएगी फिर इस इंसान को न तो खुद कूवत होगी,और न इक कोई हिमायती होगा,
क़सम है आसमान की जिससे बारिश होती है,
और ज़मीन की जो फट जाती है कि कुरआन एक फैसला कर देने वाला कलाम है,
कोई लग्व चीज़ नहीं. ये लोग तरह तरह की तदबीर कर रहे है,
और मैं भी तरह तरह की तदबीर कर रहा हूँ,
तो आप इन काफिरों को यूं ही रहने दीजिए.
सूरह तारिक़ ८६ पारा ३०  आयत (१-१७)

मैं पूने के सफ़र में दो आस्ट्रेलियंस के साथ सफ़र में था. बातों बातों में उन्होंने मेरा नाम पूछ लिया, मैंने अपना नाम मुस्लिम नुमा बतलाया. उन्हों ने तसदीक़ किया you are allah peaple ? मैं कहा हाँ.वह आपस में दबी ज़बान  कुछ बातें करने लगे और कन अंखियों से मुझे देखते जाते. मैं उनकी गुफ्तुगू तो नहीं समझ सका मगर इतना ज़रूर समझ सका कि वह मुझमे कोई अजूबा तलाश रहे हैं
क्या उन्होंने मुसलमानों के मुक़द्दस कुरआन की सूरह तारिक को पढ़ा हुवा है और कह रहे हों कि ये उछलते हुए  पानी से पैदा हुवा है? 

नमाज़ियो !
तुम अपना एक कुरआन खरीद कर लाओ और काले स्केच पेन से उन इबारतो को मिटा दो जो ब्रेकेट में मुतरज्जिम  ने कही है, क्यूँ कि ये कलाम बन्दे का है, अल्लाह नहीं. आलिमो ने अल्लाह के कलाम में दर असल मिलावट कर राखी है. अल्लाह की प्योर कही बातों को बार बार पढो अगर पढ़ पाओ तो, क्यूंकि ये बड़ा सब्र आजमा है. शर्त ये है कि इसे खुले दिमाग से पढो, अकीदत की टोपी लगा कर नहीं. जो कुछ तुम्हारे समझ में आए बस वही क़ुएआन है, इसके आलावा कुछ भी नहीं. जो कुछ तुम्हारी समझ से बईद है वह आलिमो की समझ से भी बाहर है. इसी का फायदा उठा कर उन्हों ने हजारो क़ुरआनी नुस्खे लिखे हैं अधूरा पन कुरआन का मिज़ाज है, बे बुन्याद दलीलें इसकी दानाई है. बे वज़न मिसालें इसकी कुन्द ज़ेहनी है, जेहालत की बातें करना इसकी लियाक़त है. किसी भी दाँव पेंच से इस कायनात का खुदा बन जाना मुहम्मद का ख्वाब है.इसके झूट का दुन्या पर ग़ालिब हो जाना मुसलामानों की बद नसीबी है.
आइन्दा सिर्फ पचास साल इस झूट की ज़िन्दगी है. इसके बाद इस्लाम एक आलमी जुर्म होगा. मुसलमान या तो सदाक़त की रह अपना कर तर्क इस्लाम करके अपनी और अपने नस्लों की ज़िन्दगी बचा सकते है या बेयार ओ मददगार तालिबानी मौत मारे जाएँगे. ऐसा भी हो सकता है ये तालिबानी मौत पागल कुत्तों की मौत जैसी हो, जो सड़क, गली और कूँचों में घेर कर दी जाती है.
मुसलामानों को अगर दूसरा जन्म गवारा है तो आसान है, मोमिन बन जाएँ. मोमिन का खुलासा मेरे मज़ामीन में है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 11 May 2014

Soorah burooj 85

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***
सूरह बुरूज ८५ - पारा ३० 
(वस्समाए ज़ाते अल्बुरूज)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. 
देखो और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"क़सम है बुरजों वाले आसमान की,
और वादा किए हुए दिन की,
और हाज़िर होने वाले की,
और इसकी कि जिसमें हाज़िर होती है,
कि खंदक वाले यअनी कि बहुत से ईधन की आग वाले मलऊन  हुए.
जिस वक़्त ये लोग इस के आस पास बैठे हुए थे,
इसको देख रहे थे और वह जो मुसलमानों के साथ कर रहे थे,
और इन काफिरों ने इन मुसलमानों में कोई ऐब नहीं पाया, बजुज़ इसके कि वह अल्लाह पर ईमान लाए थे, जो ज़बरदस्त सज़ा वार हम्द है.
जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बेहशतों में दाखिल कर देंगे, जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इस में रहेंगे, ये बड़ी काम्याबी  है.
आपके रब की वारद गीरी बड़ी सख्त है.
वही पहली बार पैदा केरता है, वही दूसरी बार पैदा करेगा, और वही बख्शने वाला है, मुहब्बत करने वाला, और अजमत वाला है.
वह जो कुछ चाहे सब कर गुज़रता है, क्या आपको उन लश्करों का किस्सा पहुँचा है यानी फिरओन और समूद की - - - -
ये काफ़िर तकज़ीब में हैं,
अल्लाह इन्हें इधर उधर से घेरे हुए है,
बल्कि वह एक बाअजमत कुरआन है.
सूरह बुरूज ८५ - पारा ३०  (आयत १-२२)

नमाज़ियो !
कोई तालीम याफ़्ता शख्स अगर बोलेगा तो उसका एक एक लफ्ज़ बा मअनी होगा, चाहे वह ज्यादा बोलने वाला हो चाहे कम. इसके बर अक्स जब कोई अनपढ़ उम्मी बोलेगा, चाहे ज़्यादा चाहे कम, तो वह ऐसा ही होगा जैसा तुमने इस सूरह में देखा. किसी मामूली वाकिए को अधूरा बयान करके वह आगे बढ़ जाता है, ये उम्मी मुहम्मद की  एक अदा है. सूरह में लोगों को न समझ में आने वाली बातें या वाक़िया होते हैं. इनकी जानकारी का इश्तियाक तुम्हें कभी कभी आलिमो तक खींच ले जाता है. तुम्हारे तजस्सुस को देख कर आलिम के कान खड़े हो जाते हैं. इस डर से कि कहीं बन्दा  बेदार तो नहीं हो रहा है? बाद में वह तुम्हारी हैसियत और तुम्हारे जेहनी मेयार को भांपते हुए तुम से क़ुरआनी आयातों को समझाता है. सवाली उसके जवाब से मुतमईन न होते हुए भी उसका लिहाज़ करता हुवा चला जाता है.उसमें हिम्मत नहीं कि वह आलिम से मुसलसल सवाल करता रहे जब तक कि उसके जवाब से मुतमईन न हो जाए.
वाक़िया है कि आग तापते हुए मुसल्मानो की काफिरों से कुछ कहा-सुनी हो गई थी
तो ये बात क़ुरआनी आयत क्यूं बन गई?
मुहम्मद का दावा है कुरआन अल्लाह हिकमत वाले का कलाम है.
क्या अल्लाह की यही हिकमत है?
आलिम के जवाब पर सवाल करना तुम्हारी मर्दानगी से बईद है. यही बात तुमको दो नम्बरी कौम बने रहने की वजह है.
तुम्हारे ऊपर कभी अल्लाह का खौफ तारी रहता है तो कभी समाज का. तुम सोचते हो .कि तुम खामोश रह कर जिंदगी को पार लगा लो.
इस तरह तुम अपनी नस्ल की एक खेप और इस दीवानगी के हवाले करते हो.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 4 May 2014

Soorah Infitaar 82

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इन्फितार  ८२ - पारा ३०   
(इज़ा अस्समाउन फ़ितरत)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. 
देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"जब आसमान फट जाएगा,
जब सितारे टूट कर झड पड़ेगे,
जब सब दरया बह पड़ेंगे,
और कब्रें उखड़ी जाएगी,
हर शख्स अपने अगले और पिछले आमाल को जन लेगा,
ऐ इंसान तुझको किस चीज़ ने तेरे रब्बे करीम के साथ भूल में डाल रख्खा है,
जिसने तुझको बनाया और तेरे आसाब दुरुस्त किए,
फिर तुझको एतदाल पर लाया,
जिस सूरत चाह तुझको तरकीब दे दिया,
हरगिज़ नहीं बल्कि तुम जजा और सज़ा को ही झुट्लाते हो,
और तुम पर याद रखने वाले और मुआज्ज़िज़ लिखने वाले मुक़र्रर हैं,
जो तुम्हारे सब अफ़आल  को जानते हैं,
नेक लोग बेशक आशाइश में होंगे,
और बदकार बेशक दोज़ख में होगे,
और आप को कुछ खबर है कि वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
और आप को कुछ खबर है की वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
वह दिन ऐसा है कि किसी शख्स को नफ़ा के लिए कुछ बस न चलेगा,
और तमाम तर हुकूमत उस रोज़ अल्लाह की होगी.
(मुकम्मल सूरह)
सूरह इन्फितार  ८२ - पारा ३०   आयत(१-१९)

आसमान कोई चीज़ नहीं होती, ये कायनात लामतनाही और मुसलसल है, ५०० किलो मीटर हर रोज़ अज़ाफत के साथ साथ बढ़ रही है. ये आसमान जिसे आप देख रहे हैं, ये आपकी हद्दे नज़र है.इस जदीद इन्केशाफ से बे खबर अल्लाह आसमान को ज़मीन की छत बतलाता है, और बार बार इसके फट जाने की बात करता है,. 
अल्लाह के पीछे छुपे मुहम्मद सितारों को आसमान पर सजे हुए कुम्कुमें समझते हैं , इन्हें ज़मीन पर झड जाने की बातें करते हैं. जब कि ये सितारे ज़मीन से कई कई गुना बड़े होते हैं..
अल्लाह कहता है जब सब दरियाएँ  बह पड़ेंगी. है न हिमाक़त की बात, क्या सब दरिया हिं रुकी हुई हैं? कि बह पड़ेंगी. बहती का नाम ही दरिया है.
 तुम्हारे तअमीर और तकमील में तुम्हारा या तुम्हारे माँ बाप का कोई दावा तो नहीं है, इस जिस्म को किसी ने गढ़ा हो, फिर अल्लाह हमेशा इस बात का इलज़ाम क्यूँ लगता रता है कि तुमको इस इस तरह से बनाया. इसका एहसास और एहसान भी जतलाता रहता है कि इसने हमें अपनी हिकमत से मुकम्मल किया.
सब जानतेहैं कि इस ज़मीन के तमाम मखलूक इंसानी तर्ज़ पर ही बने हैं, इस सूरत में वह चरिंद, परिन्द और दरिंद को अपनी इबादत के लिए मजबूर क्यूँ नहीं करता? इस तरह तमाम हैवानों को अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक मुसलमान होना चाहिए. मगर ये दुन्या अल्लाह के वजूद से बे खबर है.
अल्लाह पिछली सूरतों में कह चुका है कि वह इंसान का मुक़द्दर हमल में ही लिख देता है, फिर इसके बाद दो फ़रिश्ते आमाल लिखने के लिए इंसानी कन्धों पर क्यूँ बिठा रख्खे है?
असले-शहूद ओ शहीद ओ मशहूद एक है,
हैराँ हूँ फिर मुशाहिदा है किस हिसाब का. 
(ग़ालिब)
तज़ादों से पुर इस अल्लाह को पूरी जिसारत से समझो, ये एक जालसाजी है,  इंसानों का इंसानों के साथ, इस हकीकत को समझने की कोशिश करो. जन्नत और दोज़क्ज  इन लोगों की दिमागी पैदावार है  इसके दर और इसकी लालच से ऊपर उट्ठो. तुम्हारे अच्छे अमल और नेक ख़याल का गवाह अगर तुम्हारा ज़मीर है तोकोई ताक़त नहीं जो मौत के बाद तुहारा बल भी बीका कर सके. औए अगर तुम गलत हो तो इसी ज़िन्दगी में अपने आमाल का भुगतान करके जाओगे.
मुहम्मद अल्लाह की जुबां से कहते हैं 
"उस दिन तमाम तर हुकूमत अल्लाह की होगी"
आज कायनात  की तमाम तर हुकूमत किसकी है? क्या अल्लाह ने इसे शैतान के हवाले करके सो रहा है?
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान