Sunday 26 January 2014

Soorah Jamoa 62

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ 

मुसलमानों को अँधेरे में रखने वाले इस्लामी विद्वान, मुस्लिम बुद्धि जीवी और कौमी रहनुमा, समय आ गया है कि अब जवाब दें- - -
 कि लाखों, करोरों, अरबों बल्कि उस से भी कहीं अधिक बरसों से इस ब्रह्मांड का रचना कार अल्लाह क्या चौदह सौ साल पहले केवल तेईस साल चार महीने (मोहम्मद का पैगम्बरी काल) के लिए अरबी जुबान में बोला था? 
वह भी मुहम्मद से सीधे नहीं, किसी तथा कथित दूत के माध्यम से, 
वह भी बाआवाज़ बुलंद नहीं काना-फूसी कर के ? 
जनता कहती रही कि जिब्रील आते हैं तो सब को दिखाई क्यूँ नहीं पड़ते? जो कि उसकी उचित मांग थी और मोहम्मद बहाने बनाते रहे।
 क्या उसके बाद अल्लाह को साँप सूँघ गया कि स्वयम्भू अल्लाह के रसूल की मौत के बाद उसकी बोलती बंद हो गई और जिब्रील अलैहिस्सलाम मृत्यु लोक को सिधार गए ?
 उस महान रचना कार के सारे काम तो बदस्तूर चल रहे हैं, मगर झूठे अल्लाह और उसके स्वयम्भू रसूल के छल में आ जाने वाले लोगों के काम चौदह सौ सालों से रुके हुए हैं, 
मुस्लमान वहीँ है जहाँ सदियों पहले था,
 उसके हम रकाब यहूदी, ईसाई और दीगर कौमें आज हम मुसलमानों को सदियों पीछे अतीत के अंधेरों में छोड़ कर प्रकाश मय संसार में बढ़ गए हैं. हम मोहम्मद की गढ़ी हुई जन्नत के मिथ्य में ही नमाजों के लिए वजू, रुकू और सजदे में विपत्ति ग्रस्त है. 
मुहम्मदी अल्लाह उन के बाद क्यूँ मुसलमानों में किसी से वार्तालाप नहीं कर रहा है? जो वार्ता उसके नाम से की गई है उस में कितना दम है? ये सवाल तो आगे आएगा जिसका वाजिब उत्तर इन बदमआश आलिमो को देना होगा.... 
क़ुरआन का पोस्ट मार्टम खुली आँख से देखें,
 "हर्फ़ ए ग़लत" का सिलसिला जारी हो गया है. 
आप जागें, मुस्लिम से मोमिन हो जाएँ और ईमान की बात करें। अगर ज़मीर रखते हैं तो सदाक़त अर्थात सत्य को ज़रूर समझेंगे और अगर इसलाम की कूढ़ मग्ज़ी ही ज़ेह्न में समाई है तो जाने दीजिए अपनी नस्लों को तालिबानी जहन्नम जिन गलाज़तों में आप सने हुए हैं - - -
 उसे ईमान के सच्चे साबुन से धोइए और पाक ज़ेहन के साथ ज़िंदगी का आगाज़ करिए. 
गलाज़त भरे पयाम आपको मुखातिब करते हैं इन्हें सुनकर इससे मुंह फेरिए - - -
 "सब चीजें जो कुछ आसमानों पर है और ज़मीन में हैं, अल्लाह की पाकी बयान करती हैं.जोकि बादशाह है, पाक है, ज़बरदस्त है, हिकमत वाला है." सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (१)

सूरह जदीद के बाद मुहम्मद के लब ओ लहजे में संजीदी आ गई है, न अब वह जादूगरों की तरह हुरूफे मुक़त्तेआत की भूमिका बाँधते हैं न गैर फ़ितरी जेहालत करते है. उनकी शुरुआत तौरेत की तरह होती है,जैसा की मैंने कहा था की सूरह जदीद किसी यहूदी मुसाहिब की कही हुई थी.
''वही है जिसने नाख्वान्दा लोगों में , इन्हीं में से एक को पैगम्बर भेजा जो इनको अल्लाह की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाते हैं और इनको पाक करते हैं और इनको किताब और दानिश मंदी सिखलाते हैं और ये लोग पहले से ही खुली गुमराही में थे."
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (२)

मुहम्मद क़ुरआनी आयतें बना बना कर जो भी गाते बजाते थे उसका कोई असर समाज पर नहीं पड़ता था मगर उनकी तहरीक ने जब जेहाद का तरीक़ा अपनाया तो ये सदियों साल पहले कमन्यूज़म की सदा थी, जो सदियों बाद कार्ल मार्क्स की पहचान बनी. कार्ल मार्क्स की तहरीक में किसी अल्लाह का झूट नहीं था, जिसकी वजेह से बनी नव इंसान की आँखें खुलीं, मुहम्मद की तहरीक में झूट और कुरैश परस्ती ने आबादी को मज़हबी अफीम दे दिया, जिसके सेवन चौथाई दुन्या अफीमची बन गई. "जिन लोगों पर तौरेत पर अमल करने का हुक्म दिया गया , फिर उन्हों ने उस पर अमल नहीं किया क्या उनकी हालत उस गधे की सी है जो बहुत सी किताबें लादे हुए है , उनकी हालत बुरी है जिन लोगों ने अल्लाह की किताब को झुटलाया."
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (५)

यहूदियों की किताब तौरेत है, जिस पर वक़्त के साथ बदलते रहने की ज़रुरत उन्हों ने समझी और आज भी वह आलमी कौमों में सफ़े अव्वल पर हैं. सच पूछिए तो गधे अब मुसलमान हैं जो कुरान को लादे लादे दूसरी कौमों के खिदमत में लगे हुए हैं.
''आप कह्दीजिए कि ऐ यहूदियों! अगर तुम्हारा दावा है कि तुम बिला शिरकत गैरे अल्लाह को मकबूल हो तो तुम मौत की तमन्ना करो अगर तुम सच्चे हो. और वह कभी भी इसकी तमन्ना नहीं करेंगे बवाजेह इस आमाल के जो अपने हाथों में समेटे हुए हैं. आप कह दीजिए कि जिस मौत से तुम भाग रहे हो, वह तुमको आ पकड़ेगी." 
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (६-७)

मुलाहिजा हो- -
 है न मुहम्मद की गधे पन की बात ? जवाब में यही बात कोई यहूदी, मुसलामानों को कह सकता है. मौत को कौन पसँद करता है? यहाँ तक कि हैवान भी इस से दूर भागता है. मुसलमानों को जो जन्नत ऊपर मिलेगी वह तो मौजूदा हालात से लाख गुना बेहतर होगी, फटाफट मौत की तमन्ना करें या फिर बेदार हों कि जो कुछ है बस यही दुन्या है, जिसमें ईमान के साथ ज़िन्दगी गुज़ारें और हो सके तो कुछ खिदमते खल्क करें. 
"ऐ ईमान वालो जब जुमअ के रोज़ नमाज़ के लिए अज़ान कही जाया करे तो तुम अल्लाह की याद की तरफ चल दिया करो और खरीद फरोख्त छोड़ दिया करो. और वह लोग जब किसी तिजारत या मश्गूली की चीज़ को देखते हैं तो वह उनकी तरफ दौड़ने के लिए बिखर जाते हैं और आपको खडा हुवा छोड़ जाते है. आप कह दीजिए कि जो चीज़ पास है वह ऐसे मशागिल और तिजारत से बदर्जाहा बेहतर है और अल्लाह सब से अच्छा रोज़ी पहचानने वाला है." 
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (९-११)

एक बार मुहम्मद अपने झुण्ड के साथ किसी बाज़ार में थे कि बाज़ार की आशिया और हंगामों ने झुण्ड को अपनी तरफ खींच मुहम्मद अकेले पड़ गए थे, उनको जान का खतरा महसूस हुवा तब ये आयते उनको सूझीं , ऐसे बुजदिल थे अल्लाह के रसूल. 

मुहम्मद के अल्लाह की दूसरी बेहतर रोज़ी जेहाद है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 19 January 2014

Soorah Saf 61

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह सफ़ ६१- पारा -२८

"सब चीजें अल्लाह की पाकी बयान करती हैं, जो कुछ कि आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है. वही ज़बरदस्त है, हिकमत वाला है. ऐ ईमान वालो ! ऐसी बात क्यूँ कहते हो जो करते नहीं? अल्लाह के नज़दीक ये बात बड़ी नाराज़ी की बात है कि ऐसी बात कहो और करो नहीं."
 सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१-३)
और खुद साख्ता रसूल की नापाकी भी बयान करती है, जो मोमिन को गुमराह करके मुस्लिम बनाते हैं.

"जब मूसा ने अपनी कौम से फ़रमाया कि ऐ मेरी कौम मुझको क्यूँ ईज़ा पहुंचाते हो , हालांकि तुम को मालूम है कि मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ . फिर जब वह लोग टेढ़े हो रहे तो अल्लाह तअला ने इन्हें और टेढ़ा कर दिया."
 सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (५)

मूसा एक ज़ालिम तरीन इंसान था, तौरेत उठा कर इसकी जन्गी दस्ताने पढ़ें. अल्लाह टेढ़ा तो नहीं होता मगर हाँ मुहम्मदी अल्लाह पैदायशी टेढ़ा है.

"जब ईसा बिन मरियम ने बनी इस्राईल से फ़रमाया कि ऐ बनी इस्राईल! मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ कि मुझ से पहले जो तौरेत आ चुकी है, मैं इसकी तस्दीक करने वाला हूँ और मेरे बाद जो रसूल आने वाले हैं, जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ, फिर जब वह उनके पास खुली दलीलें ले तो वह लोग कहने लगे सरीह जादू है."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (६)

न ईसा पर इंजील नाज़िल हुई और न मूसा पर तौरेत. इंजील मूसा और उसके बाद उनके पैरोकारो की तसनीफ़ है जो चार पांच सौ वर्षों तक लिखी जाती रही है. तौरेत  यहूदियों का खानदानी इतिहास है, ये आसमान से नहीं उतरी और न इंजील आसमान से टपकी. ये भी ईसा के साथ रहने वाले हवारियो (धोबियों)  का दिया हुवा बयान है जो ईसा के खास हुवा करते थे. इंसानी जन्गों ने मूसा, ईसा और मुहम्मद को पैगामबर बनाए हुए है. 

मुसलमानों ! तुमको कुरआन सफेद झूट में मुब्तिला किए हुए है कि इंजील में कोई इबारत ऐसी दर्ज हो कि 
"जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ " 
झूठे ओलिमा तुमको  अंधरे में रख कर अपनी हलुवा पूरी अख्ज़ कर रहे है.

"उस शाख से ज्यादह ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट बाँधे हाँलाकि वह इस्लाम की तरफ बुलाया जाता है."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (७)

ये क़ुरआनी तकिया कलाम है, अल्लाह की जेहालत को न मानना ज़ुल्म है और बेकुसूर लोगों पर जंग थोपना सवाब है.

"ये लोग चाहते हैं कि अल्लाह के नूर को अपने मुँह से फूंक मार कर बुझा दें हाँला कि अल्लाह अपने नूर को कमाल तक पहुँचा कर रहेगा. गो काफ़िर लोग कितना ही नाखुश हों "
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (८)

मुहम्मद की कठ मुललई पर सिर्फ़ हँस सकते हो.

"वह अल्लाह ऐसा है जिसने अपने रसूल को सच्चा दीन देकर भेजा है, ताकि इसको तमाम दीनों पर ग़ालिब कर दे, गोकि मुशरिक कितने भी नाखुश हों."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (९)

अगर तमाम दीन अल्लाह के भेजे हुए हैं तो किसी एक को ग़ालिब करने का क्या जवाज़ है? अल्लाह न हुवा कोई पहेलवान हुवा जो अपने शागिदों में किसी को अज़ीज़ और किसी को गलीज़ समझता है.

"ऐ ईमान वालो ! क्या मैं तुमको ऐसी सौदागरी बतलाऊँ कि दूर तक अज़ाब से बचा सके, कि तुम लोग अल्लाह पर और इसके रसूल पर ईमान लाओ और अल्लाह की राह में अपने माल और अपनी जान से जेहाद करो ये तुम्हारे लिए बहुत बेहतर है, अगर तुम कुछ समझ रखते हो."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१०-११)

"जैसा कि ईसा इब्ने मरियम ने हवारीन से फ़रमाया कि अल्लाह के वास्ते मेरा कौन मददगार होता है ? हवारीन बोले हम अल्लाह मददगार होते हालांकि सो बनी इस्राईल में कुछ लोग ईमान लाए , कुछ लोग मुनकिर रहे सो हमने ईमान वालों के दुश्मनों के मुकाबिले ताईद की सो वह ग़ालिब रहे."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१४)

मुहम्मद मक्का के काफिरों को हवारीन बना रहे हैं.
मुहम्मद अपनी एडी की गलाज़ात उस अज़ीम हस्ती ईसा की एडी में लगाने की कोशिश कर रहे हैं. उस कलन्दर का जँग से क्या वास्ता. उसका तो कौल है - - -
"अपनी तलवार मियान में रख ले, क्यूँ कि जो तलवार चलाते हैं, वह सब तलवार से ही ख़त्म किए जाते हैं."



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 12 January 2014

Soorah Munteha 60

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८

जिस तरह आप कभी कभी खुदाए बरतर की ज़ात में ग़र्क़ होकर कुछ जानने की कोशिश करते हैं, इसी तरह कभी मुहम्मद की ज़ात में ग़र्क़ होकर कुछ तलाश करने की कोशिश करें. अभी तक बहैसियत  मुसलमान होने क्र उनकी ज़ात में जो पाया है, वह सब दूसरों के मार्फ़त है. जबकि इनके कुरआन और इनकी हदीस में ही सब कुछ अयाँ है. आपके लिए मुहम्मद की पैरवी कल भी ज़हर थी और आज भी ज़हर है. इंसानियत की अदालत में आज सदियों बाद भी इन पर मुक़दमा चलाया जा सकता है, जिसमे बहेस मुबाहिए के लिए मुहज्ज़ब समाज के दानिशवरों को दावत दी जाय. इनका फैसला यही होगा की इस्लाम और कुरआन पर यकीन रखना काबिले जुर्म अमल होगा. आज न सही एक दिन ज़रूर ऐसा वक़्त आएगा कि मज़हबी ज़हन रखने वाले तमाम मजहबों के अनुनाइयों को सज़ा भुगतना होगा जिसमे पेश पेश होंगे मुसलमान.
धर्म व् मज़हब द्वारा निर्मित खुदा और भगवान दुर्गन्ध भरे झूट हैं, इसके विरोध में सच्चाई सुबूत लिए खड़ी है. मानव समाज अभी पूर्णतया बालिग़ नहीं हुवा है, अर्ध विकसित है, इसी लिए झूट का बोल बाला है और सत्य का मुँह काला है. जब तक ये उलटी बयार बहती रहेगी, मानव समाज सच्ची खुशियों से बंचित रहेगा.   

"ऐ ईमान वालो ! तुम मेरे दुश्मनों और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाओ कि इनकी दोस्ती का इज़हार करने लगो, हालाँकि तुम्हारे पास जो दीन ए हक़ आ चुका है, वह इसके मुनकिर है. रसूल को और तुमको इस बिना पर कि तुम अपने परवर दिगार पर ईमान ले आए, शहर बदर कर चुके हैं. अगर तुम मेरे रस्ते पर जेहाद करने की ग़रज़ से , मेरी रज़ामंदी ढूँढने की ग़रज़ से निकले हो. तुम इनसे चुपके चुपके बातें करते हो , हालाँकि मुझको हर चीज़ का इल्म है. तुम जो कुछ छिपा कर करते हो और जो ज़ाहिर करते हो. और तुम में से जो ऐसा करेगा, वह राहे रास्त से भटकेगा."
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१)

  मुहम्मद के साथ मक्का से मदीना हिजरत करके आए हुए लोगों को अपने खूनी रिश्तों से दूर रहने की सलाह अल्लाह के नबी बने मुहम्मद दे रहे हैं मुसलमानों का इनसे मेल जोल मुहम्मदी अल्लाह को पसंद नहीं. हर चुगल खोर की इत्तेला अल्लाह की आवाज़ का कम करती है. कुरआन खूनी रिश्तों को दर किनार करते हुए कहता है - - -
"अपने अजीजों से बे तअल्लुक़ ही नहीं, बल्कि उनके दुश्मन बन जाओ, और ऐसे दुश्मन कि उनको जेहाद करके क़त्ल कर दो."
इंसानियत के खिलाफ इस्लामी ज़हर को समझें. जिसे आप पिए हुए हैं.
मुहम्मद और इस्लामी काफिरों का एक समझौता हुवा था कि अगर कुरैश  में से कोई मुसलमान होकर मदीना चला जाए तो उसको मदीने के मुसलमान पनाह न दें, इसी तरह मदीने से कोई मुसलमान मुर्तिद होकर मक्का में पनाह चाहे तो उसे मदीना पनाह न दें. इस मुआह्दे के बाद एक कुरैश खातून जब मुसलमान होकर मदीना आती हैं तो मुहम्मदी अल्लाह फिर एक बार मुआहदा शिकनी करके उसे पनाह देदेता है. मुहम्मद फिर एक बार वह्यी का खेल खेलते हैं, अल्लाह कहता है कि अगर उसके शौहर ने उसका महर अदा किया हो तो वह उसे अपने शौहर को वापस करके मदीने में रह सकती है.
यह हुवा करती थी मुहम्मदी अल्लाह की ज़बान और पैमान.

"जो मुसलमान अपने बाल बच्चों को छोड़ कर मदीने आए हैं, अपनी काफ़िर बीवियों से तअल्लुक़ ख़त्म कर लें और मुसलमान बीवियाँ जो मक्का में फँसी हुई है, इनके शौहर का हर्ज खर्च देकर कुफ्फर इनको अपनी मिलकियत में लेलें और इसी तरह मुसलमान इनकी बीवियों का हर्जाना अदा करदें."
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१०)

गौर तलब है की मुहम्मद की नज़र में क्या क़द्र  ओ क़ीमत थी औरतों की ? मवेशियों की तरह उनकी ख़रीद फ़रोख्त करने की सलाह देते है सल्ललाहो अलैहे वसल्लम. कितना मजलूम और बेबस कर दिया था पैगम्बर बने मुहम्मद ने.
माज़ी में इंसान मजबूर और बेबस था ही, कोई इस्लाम ही जाबिर नहीं था, मगर वह माज़ी आज भी ईमान के नाम पर ज़िन्दा है. अरब में आज भी औरतों के दिन नहीं बहुरे हैं, सात परदे के अन्दर हरमों में मुक़य्यद यह खुदा की मखलूक पड़ी हुई है. झूठे और शैतान ओलिमा कहते हैं कि इस्लाम औरतों को बराबर के हुकूक देता है.
मुसलमान औरतें जो मक्का से आती हैं उनकी खासी छानबीन हुवा करती थी, कहीं वह काफ़िरों से हामला होकर तो मदीने में दाखिल नहीं हो रही?
 क्या होने वाला बच्चा भी काफ़िर ही पैदा होगा? ईमान लाई माँ की तरबियत क्या उसे काफ़िर बना देगी? मुहम्मद को इतनी भी अक्ल नहीं थी.
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत ( )

ये औरतें बोहतान की औलादें साथ में लेकर न आएंगी जिनको कि अपने हाथों और पाँव के दरमियान बना लें - - -
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१२)
यह है अल्लाह की बेहूदा जबान 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 6 January 2014

Soorah Hasr 59

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

मदीने से चार मील के फासले पर यहूदियों का एक खुश हल क़बीला, नुज़ैर नाम का रहता था, जिसने मुहम्मद से समझौता कर रखा था कि मुसलामानों का मुक़ाबिला अगर काफ़िरों से हुवा तो वह मुसलामानों का साथ देंगे और दोनों आपस में दोस्त बन कर रहेंगे. इसी  सिलसिले में एक रोज़ यहूदियों ने मुहम्मद की, खैर शुगाली के जज़्बे के तहत  दावत की.
 बस्ती की खुशहाली देख कर मुहम्मद की आँखें खैरा हो गईं. उनके मन्तिकी ज़ेहन ने उसी वक़्त मंसूबा बंदी शुरू कर दी. अचानक ही बगैर खाए पिए उलटे पैर मदीना वापस हो गए और मदीना पहुँच कर यहूदियों पर इल्ज़ाम लगा दिया कि काफ़िरों से मिल कर ये मूसाई मेरा काम तमाम करना चाहते थे. वह एक पत्थर को छत के ऊपर से गिरा कर मुझे मार डालना चाहते थे. इस बात का सुबूत तो उनके पास कुछ भी न था मगर सब से बड़ा सुबूत उनका हथियार अल्लाह की वह्यी थी कि ऐन वक़्त पर उन पर नाज़िल हुई.
इस इलज़ाम तराशी को आड़ बना कर मुहहम्मद ने बनी नुज़ैर कबीले पर अपने लुटेरों को लेकर यलगार कर दिया. मुहम्मद के लुटेरों ने वहाँ ऐसी तबाही मचाई कि जान कर कलेजा मुंह में आता है. 
बस्ती के बाशिंदे इस अचानक हमले के लिए तैयार न थे, उन्हों ने बचाव के लिए अपने किले में पनाह ले लिया और यही पनाह गाह उनको तबाह गाह बन गई. 
खाली बस्ती को पाकर कल्लाश भूके नंगे मुहम्मदी लुटेरों ने बस्ती  का तिनका तिनका चुन लिया. उसके बाद इनकी तैयार फसलें जला दीं, यहाँ पर भी बअज न आए, उनकी बागों के पेड़ों को जड़ से काट डाला. फिर उन्हों ने किला में बंद यहूदियों को बहार निकला और उनके अपने हाथों से बस्ती में एक एक घर को आग के हवाले कराया.
तसव्वुर कर सकते हैं कि उन लोगो पर उस वक़्त क्या बीती होगी. इसकी मज़म्मत खुद मुसलमान के संजीदा अफराद ने की, तो वही वहियों का हथियार मुहम्मद ने इस्तेमाल किया. कि मुझे अल्लाह का हुक्म हुवा था. 
यहूदी यूँ ही मुस्लिम कश नहीं बने, इनके साथ मुहम्मदी जेहादियों ने बड़े मज़ालिम किए है. 
"वह ही है जिसने कुफ्फार अहले-किताब को उनके घरों से पहली बार इकठ्ठा करके निकाला. तुम्हारा गुमान भी न था कि वह अपने घरों से निकलेंगे और उन्हों ने ये गुमान कर रखा था कि इनके क़िले इनको अल्लाह से बचा लेंगे. सो इन पर अल्लाह ऐसी जगह से पहुँचा कि इनको गुमान भी न था, इनके दिलों में रोब डाल दिया था कि अपने घरों को खुद अपने हाथों से उजाड़ रहे थे,
सो ए दानिश मंदों! इबरत हासिल करो"
सूरह हश्र -५९ पारा २८ आयत (२)

"इन हाजत मंद मुहाजिरीन का हक है जो अपने घरों और अपने मालों से जुदा कर दिए गए. वह अल्लाह तअला के फज़ल और रज़ा मंदी के तालिब हैं और वह अल्लाह और उसके रसूल की मदद करते हैं.और यही लोग सच्चे हैं और इन लोगों का दारुस्सलाम में इन के क़ब्ल से क़रार पकडे हुए हैं. जो इनके पास हिजरत करके आता है, उससे ये लोग मुहब्बत करते हैं और मुहाजरीन को जो कुछ मिलता है, इससे ये अपने दिलों में कोई रश्क नहीं कर पाते और अपने से मुक़द्दम रखते हैं. अगरचे इन पर फाकः ही हो.और जो शख्स अपनी तबीयत की बुखल से महफूज़ रखा जावे, ऐसे ही लोग फलाह पाने वाले हैं. 
सूरह हश्र -५९ पारा २८ आयत (7-9)

" जो खजूर के दरख़्त तुम ने काट डाले या उनको जड़ों पर खड़ा रहने दिया सो अल्लाह के हुक्म के मुवाकिफ हैं ताकि काफ़िरों को ज़लील करे"
"जो कुछ अल्लाह ने अपने रसूल को दिलवाया सो तुमने उन पर न घोड़े दौडाए न ऊँट, लेकिन अल्लाह अपने रसूल को जिस पर चाहे मुसल्लत कर देता है और अल्लाह को हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत है कि जो अपने रसूल को दूसरी बस्तियों के लोगों से दिलवाए .  रसूल जो कुछ तुम्हें दें, ले लिया करो. और जिसको रोक  दें, रुक जाया करो, अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है."

"अगर हम इस कुरआन को पहाड़ नाज़िल करते तो तू इसको देखता कि अल्लाह के खौफ से डर जाता और फट जाता और इन मज़ामीन अजीब्या को हम लोगों के लिए बयान करते हैं ताकि  वह सोचें."
सूरह हश्र -५९ पारा २८ आयत (8-२१ )   
बस्ती बनी नुज़ैर की लूट पाट में मुहम्मद को पहली बार माली फ़ायदा हुवा है. माले-गनीमत को लेकर मदीने के लुटेरे मुहम्मद से काफी नाराज़ है कि उनको नज़र अंदाज़ किया जा रहा है. 
मुहम्मद उन्हें तअने दे रहे हैं कि
"तुमने उन पर न घोड़े दौडाए न ऊँट, लेकिन अल्लाह अपने रसूल को जिस पर चाहे मुसल्लत कर देता है " 
जो कुछ मिल रहा है, रख लो
रसूल के अल्लाह पर एक नज़र डालें, वह भी रसूल की तरह ही मौक़ा परस्त है 
"सो इन पर अल्लाह ऐसी जगह से पहुँचा कि इनको गुमान भी न था, इनके दिलों में रोब डाल दिया था कि अपने घरों को खुद अपने हाथों से उजाड़ रहे थे," 
मुहम्मद अपनी छल कपट से अल्लाह बन बैठे थे मगर मॉल-गनीमत के लालची सब कुछ समझते हुए भी खामोश रहते. अल्लाह को मानो चाहे मुहम्मद को मिलना चाहिए माल.
मुहम्मद ने अल्लाह की वहियाँ उतारते हुए और मुहाजिरों की हक अदाई का सहारा लेते हुए लूटे हुए तमाम मॉल को अपने हक में कर लिया. इतिहास कार कहते हैं कि उन्हों ने इस लड़ाई में मिले मॉल को अपने घरो के लिए रख लिया था और अपनी नौ बीवियों के नाम बनी नुज़ैर की तमाम जायदाद वक्फ़ कर दिया था.
 हरामी ओलिमा लिखते हैं कि
 ''सल्लल्हो अलैहे वासलं ने जब रेहलत की तो उनके खाते में कुल छ दरहम मिले. वहीँ दूसरी तरफ़ कहते हैं कि रसूल की बीवियाँ धन दौलत की आमद से ऐसी बेनयाज़ होतीं कि पलरों में अशर्फियाँ आतीं मगर उनको कोई खबर न होती कि वह सब गरीबों में तकसीम हो जातीं."
खुद साख्ता पैगम्बर मुहम्मद के ज़माने में इनकी क़ुरआनी बरकतों से मुतास्सिर होकर जो ईमान लाए वह अक़ली मैदान में निरा गधे थे, इन में जो शामिल नहीं, वह सियासत दान थे, चापलूस थे, मसलेहत पसंद गुडे या फिर गदागर थे.
 बाद में तो तलवार के से में सारा अरब इस्लाम का बे ईमान, ईमान वाला बन गया था. इस से इनका फायदा भी हुवा मगर सिर्फ माली फायदा. माले-गनीमत ने अरब को मालदार बना दिया. उनकी ये खुश हाली बहुत दिनों तक कायम न रही, हराम की कमाई हराम में गँवाई. मगर हाँ तेल की दौलत ने इन्हें गधा से घोडा ज़रूर बना दिया है. अफ़सोस गैर अरब के मुसलमानों पर है कि जो जेहादी असर के तहत या किसी और वजेह से क़ुरआनी अल्लाह और उसके रसूल पे ईमान लाए, वह गधे बाक़ी बचे न घोड़े बन पाए, सिर्फ़ खच्चर बन कर रह गए हैं जो गैर फितरी और गैर इंसानी निज़ामे मुस्तफा को ढो रहे हैं. तालीमी दुन्या में इनकी नस्ल अफज़ाई कभी भी नहीं हो सकती.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान