Friday 29 April 2016

Surah Haj 22- Q3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं..
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सूरह हज २२-१७ वाँ पारा 
रीसरी किस्त 
फतवा 

देवबंद के ओलिमा ने एक बार फिर इंसानी हुकूक को लेकर, ज़िदा दिल जीने वाले फ़िल्मी बन्दों सेहरिश और जहाँगीर पर फतवा जड़ दिया है. उनकी निजी आज़ादी इस्लाम को रास नहीं आती इस लिए इन दोनों को इस्लाम से और इसकी बिरादरी ख़ारिज कर दिया गया. ओलिमा के इन फतवों की कोई कद्र व कीमत नहीं होती तब तक कि मुलजिम इन फतवों की परवाह करने लगे. अफ़सोस हुवा ये देखकर कि जहाँगीर इन कठ मुल्लों की परवाह करते हुए सफाई देने लगे कि वह पक्के मुसलमान हैं. वह और उनकी महबूबा कहाँ तक सफाई देते रहेंगे कि वह इस्लाम के पाबंद हैं. उनकी एक्टिंग ही हराम करार दी जा सकती है, कैमरे के सामने जाकर तस्वीर खिचाना भी हराम, बे बुरका रहना हराम, गैर मुस्लिम से शादी करना हराम. मियाँ जहाँगीर सच तो ये है की आप इनकी परवाह किए बगैर अपने धुन में लगे रहिए. इन हराम खोरों की बातों में आकर गुमराह मत होइए. इन से कहिए कि ठीक है मुल्ला जी! हम आप के यहाँ आपकी बेटी का हाथ मांगने नहीं आएँगे. वैसे भी इनकी बहन बेटियों को कोई ढंग का रिश्ता नहीं मिलता है. यह किराए के टट्टू अपने साथ साथ अपनी नस्लों के दुश्मन होते हैं.
हाथी गुज़र जाता है कुत्ते भौंकते रहते हैं. पिद्दी भर एक मुम्बैया तंजीम "जामा कादिर्या अशरफिया " दुन्या की ताक़ते-अव्वल अमरीका को आगाह कर रही है कि अगर ११-९ को क़ुरआनी नुस्खे जलाए गए तो इसके अंजाम बुरे होंगे. इस्लामी दुन्या ऐसी गुमराहियों पर है कि हर मुसलमान कायदे-आज़म बना हुवा है. मुस्लिम अवाम को चाहिए कि इन काठ मुल्लों को ठेंगा दिखलाते हुए अपनी मंजिल की तरफ गामज़न रहें.

चलिए  देखें  मुहम्मदी अल्लाह की दाँव पेच - - - 

" निज़ामे-हयात के तहत अल्लाह अपने लिए जिन मासूम जानवरों की कुर्बानी चाहता है, उसकी नफासत को जताता है और कुर्बानी के तौर तरीकों का बयान करता है . खाना ए काबा को इब्राहीम ने बनाया इसका खुलासा करते हए उनके एह्कमात बाबत हज के बतलाता है. फिर हस्बे- आदत यहूदी नबियों के नाम गिनता है - - - नूह, आद , समूद से मूसा तक."
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२६-४४) 

''सो मेरा अज़ाब कैसा हुवा, कितनी बस्तियां है जिनको हम ने हलाक किया जिनकी यह हालत थी कि वह नाफ़रमानी करती थीं, सो वह अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं और बहुत से बेकार कुवें ''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-४५)
जुमला गौर तलब है कि 
''सो वह अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं" 
छतों पर कौन गिरी पड़ी हैं? बस्तियां? या उसके मकानात? या फिर मकानों की दीवारे? कौन सी चीज़ छतों पर गिरी कि जिसके बोझ से वह गिरीं ? कि जिससे बस्ती के लोग हालाक हुए? क़ुरआनी अल्लाह क्या अफीमची है? मूतरज्जिम यहाँ पर इस तरह अल्लाह की बात की रफू गरी करता है कि " गोया पहले छतें गिरीं, फिर छत पर दीवारें. अल्लाह अपने बन्दों पर अज़ाब नाजिल करता है, इसके लिए पहले वह लोगों को गुराह करता है? 

''और ये लोग अज़ाब का तकाज़ा करते हैं हालाँकि अल्लाह अपना वादा खिलाफ न करेगा और आप के रब के पास एक दिन एक हज़ार साल के बराबर है तुम लोगों के शुमार के मुवाफ़िक़ और बहुत सी बस्तियां हैं कि जिनको हम ने मोहलत दी थीं और वह ना फ़रमानी करती थीं फिर मैं ने उनको पकड़ लिया और मेरी तरफ ही लौटना होगा और कह दीजिए कि ऐ लोगो ! मैं तो तुम्हारे लिए आशकारा डराने वाला हूँ."
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-४७-४८)
मुसलमानों! 
क्या तुम ऐसे मूजी अल्लाह के डर से मुसलमान बने बैठे हो? 
जो तुमको एक शर्री बन्दे मुहम्मद को तस्लीम करने पर मजबूर करता है? यह तुम्हारा अकीदा बन चुका है तो इसे तोड़ दो और अपनी अक्ल पर यकीन करो. मुहम्मद बार बार तुम्हें कुदरती आफतों से डरा रहे जो दस पांच साल के वक्फे में बाद, अकाल, बीमारी या जंगो की सूरत में आती ही है, मगर कोई नागहानी आ ही नहीं रही? तो मकर का एक रास्ता उनको सूझता है कि तुम तो चौबीस घंटों का दिन जोड़ते हो, जब कि अल्लाह का एक दिन एक हज़ार साल का होता है तुम अगर ५० साल भी जिए तो अल्लाह महेज़ ८ घंटे, उसकी नींद भी पूरी नहीं हुई और लोग जल्दी मचा रहे हैं कि वादा कब पूरा होगा? अल्लाह का खूब सूरत वादा क़यामत का, जो बन्दों को भुगतना है. मुहम्मद का मकरूह हथकंडा और मुसलामानों की ज़ंग आलूद ज़ेहन, सब यकजा हैं. 

"जो शख्स इस क़दर तकलीफ पहुँचावे जिस क़दर उसको दी गई थी, फिर उस शख्स पर ज्यादती की जाय तो अल्लाह उस शख्स की ज़रूर मदद करेगा. बेशक अल्लाह कसीरुल अफो ,कसीरुल मग्फ़िरत है.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-६०)
इन्तेकाम का कायल मुहम्मदी अल्लाह खुद को मुन्ताकिम के साथ बतलाता है. मुहम्मद ने अपनी जिंदगी में अपने पुराने दुश्मनों से गिन गिन कर बदला लिया है, इस्लामी तवारीख देखें. 

''ऐ लोगो एक अजीब बात बयान की जाती है, इसे कान लगा कर सुनो. इसमें कोई शुबहा नहीं जिन की तुम अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हो, वह एक मक्खी तो पैदा नहीं कर सकते गो सब के सब जमा हो जाएँ और पैदा करना तो बड़ी बात है, इन से मक्खी कुछ छीन ले जाय तो इस से ये छुड़ा नहीं सकते .''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-८२-८३)
बे शक मिटटी के बुत भला कम भी क्या कर सकते हैं? मगर मुहम्मदी अल्लाह क्या पेड़ों में हमारे लिए बने बनाए फर्नीचर पैदा का सकता है? दोनों ही मिथ्य हैं। 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 25 April 2016

Soorah haj 22 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हज २२-१७ वाँ पारा 
दूसरी किस्त 

'' जो शख्स इस बात का ख़याल रखता है कि अल्लाह तअला उसकी  आखरत में मदद न करेगा तो उसको चाहिए कि एक रस्सी आसमान तक तान ले और मौकूफ करा दे गौर करना चाहिए कि तदबीर उसकी न गवारी की चीज़ को मौकूफ कर सकती है और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१५-१६)

दिमाद मुहम्मद का, कलाम अल्लाह का, समझ बंदए-मुस्लिम का - - - बड़ा मुश्किल मुक़ाम है कि ऐसी आयतें कुरआन की क्या कहना चाहती हैं? आम मुस्लमान में जब कोई इस किस्म की बाते करता है तो सुनने वाले उसे कठमुल्ला कह कर मुस्कुराते है. मगर अगर उनको बतलाया जाय कि क़ुरआनी अल्लाह ही कठमुल्ला है, ये उसकी बातें हैं, तो कुछ देर के लिए कशमकश में पड़ जाता है? 
मगर वह मुसलमान ही बना रहना पसंद करता है , कुछ बगावत के साथ. भारतीय माहौल में वह जाय तो कहाँ जाय? 
मोमिन का रास्ता उसे टेढ़ा नज़र आता है, जो कि है बहुत सीधा.सितम ये कि बे शऊर अल्लाह कहता है'' और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,'' 

''और अल्लाह तअला उन लोगों को कि ईमान लाए और नेक काम किए ऐसे बागों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरें जरी होंगी. इनको वहाँ पर सोने के कंगन और मोती पहनाई जाएँगे और पोषक वहाँ रेशम की होगी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-23)

मुहम्मद को इतनी भी अक्ल नहीं है कि जहाँ सोने के घर द्वार हैं वहाँ सोने के कंगन पहना रहे हैं? वैसे भी सोने का जब तक ख़रीदार न हो उसकी कोई क़द्र व् कीमत नहीं. सोने और रेशम को मर्दों पर हराम करके दुन्या में तो कहीं का न छोड़ा, जहाँ इनकी जीनत थी. महरूम और मकरूज़ कौम. 

''बेशक जो लोग काफ़िर हुए अल्लाह के रस्ते से और मस्जिदे हराम (काबा ) से रोकते हैं जिसको हमने तमाम आदमियों के लिए मुक़र्रर किया है, कि इस में सब बराबर हैं। इसमें रहने वाले भी और बहार से आने वाले भी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२५)
कुरआन की यह आयत बहुत ही तवाज्जेह तलब है - - - आज काबे में कोई गैर मुस्लिम दाख़िल नहीं हो सकता है। काबा ही क्या शहर मक्का में भी मुसलामानों के अलावा किसी और के दाखिले पर पाबन्दी है। आज की हकीकत ये है जब कि ये आयतें उस वक्त कि हैं जब मुसलामानों पर काबे में दाखिले पर पाबन्दी थी. 
इसी कुरआन में आगे आप देखेंगे कि अल्लाह कैसे अपनी बातों से फिरता है. इनके ही जवाब में आज़ाद भारत में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ मुसलामानों के दाखिले पर पाबन्दी है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


Friday 22 April 2016

Soorah Haj 22 Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हज २२-१७ वाँ पारा 
पहली किस्त 

''ऐ लोगो अपने रब से डरो यकीनन क़यामत का ज़लज़ला बहुत भारी चीज़ होगी.'' 
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१)

एक बार फिर आप को दावते-फ़िक्र दे रहा हूँ कि गौर करिए कि आपका अल्लाह कैसा होना चाहिए? 
बहुत ज़ालिम, 
बड़ा गुस्सैल, 
शेर की तरह कि ज़रा सी हरकत पर अप पर चढ़ बैठे? 
या आपके चचा और मामा की तरह आप को चाहने वाला, 
आपकी गलतियों को दरगुज़र करने वाला, कम से कम सज़ा देने वाले को तो आप पसंद नहीं ही करेगे. 
यह आप पर मुनहसर है कि आप जैसा अल्लाह चाहें अख्तियार करें. 
जी हाँ! यही तो इंसान का ज़ाती मुआमला हो जाता है कि वह अपने को किस पसंद दीदा दोस्त के हवाले करता है. दोस्त कोई ज़ात पाक भी हो सकता है, दोस्त कोई खयाले-नादिर भी हो सकता है. दोस्त आपकी महबूबा भी हो सकती है और आप का हुनर भी. दोस्त आप की पूजा भी हो सकती है और आपकी इबादते-लाहूत भी. 
दोस्त कैसा भी हो सकता है मगर क़ुरआनी अल्लाह को दोस्त बनाना किसी साजिश का शिकार हो जाना है.
ज़लज़ले और आताश फिशां निज़ाम कुदरत के तहत मुक़र्रर है जो किसी काफ़िर या मुस्लिम आबादी को देख कर नहीं आते न उनका उस टुकाची अल्लाह से कोई सरोकार है जो मुहम्मद ने गढ़े हैं. 
खुलकर ऐसे अल्लाह से बगावत कीजिए जो कौम को जुमूद में किए हुए है. 

''जिस रोज़ तुम इसको देखोगे, तमाम दूध पिलाने वालियाँ अपने बच्चों को दूध पिलाना भूल जाएँगी और तमाम हमल वालियाँ अपना हमल डाल देंगी और तुझको लोग नशे के आलम में दिखाई देंगे.हालांकि वह नशे में न होंगे मगर अल्लाह का अज़ाब है सख्त.'' 
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२-३)

कबीलाई बन्दे मुहम्मद तमाज़त और मेयार को ताक पर रख कर गुफ्तुगू कर रहे हैं. क़यामत का बद तरीन नज़ारा वह किस घटिया हरबे को इस्तेमाल कर, कर रहे है कि जिसमे औरत ज़ात रुसवा हो रही है. और मर्द शराब के नशे में बद मस्त अपनी औरतों की रुस्वाइयाँ देख रहे होगे. 

''हमने तुमको मिटटी से बनाया फिर. नुत्फे से, फिर खून के लोथड़े से फिर खून की बोटी से कि पूरी होती है और अधूरी भी , ताकि हम तुम्हारे सामने ज़ाहिर कर दें . हम गर्भ में जिसको चाहते हैं एक मुद्दत ए मुअय्यना तक ठहराए रखते हैं, फिर तुम को बच्चा बना कर हम बाहर लाते हैं. फिर ताकि तुम अपनी भरी जवानी तक पहुँच जाओ और बी अजे तुम में वह भी हैं जो निकम्मी उम्र तक पहुंचे जाते हैं. - - - और क़यामत आने वाली है , इसमें ज़रा शुबहा नहीं और अल्लाह कब्र वालों को दोबारह पैदा करेगा.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-५-७)

एक बार फिर मुहम्मदी अल्लाह अपने हुनर और हिकमत को दोहराता है कि उसने जो कुछ इंसानी वजूद की शुरूआत अपनी आँखों से मुश्तअमल होते हुए देखा है. यानी मुहम्मद अपना ज़ाती मुशाहिदा बयान करते हैं जो मेडिकल साइंस में जेहालत कही जायगी. 
इन्हीं पुर जेहल बातों को ओलिमा कुराने-हकीम की बातें कहते हैं. पुनर जन्म की फिलासफी एक कशिश तो रखती है मगर ये सदियों कब्र में पड़े रहना और उसके बाद उठाए जाना बड़ा बोरियत वाला अफसाना है. क्या मजाक है अल्लाह अपने कारनामों का यकीन ज़ोरदार तरीके से दिलाता है.
 
''जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जरी होंगी। हमेशा हमेशा इनमें रहें. ये बड़ी कामयाबी है, अल्लाह तअला जो इरादः करता है, कर गुज़रता है '' 
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१४)

मुसलामानों!
 अल्लाह तआला कोई इंसानी ज़ेहन का नहीं है, 
वह अगर कुछ है तो इन बातों से बाला तर होगा. वह बज़ाहिर लगता है बहुत बारीक, मगर है बहुत साफ.. हर जगह नज़र आता है मगर बिना किसी रंग रूप का . 
उसकी कोई जुबान नहीं है न उसका कोई कलाम. जुबान होती तो बोलता ही रहता , सिर्फ चौदह सौ साल पहले मुहम्मद से बात करने के बाद उसके मुँह को लकवा नहीं मार गया होता कि उनके बाद उसकी बोलती बंद है. बार बार मुहम्मद तुम से नहरों वाली जन्नत की बात करते हैं जो कि तुमको अगर मिल जाय तो घर घर न रह जाय बल्कि खेत और ताल बन जाय. 




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 18 April 2016

Soorah Ambiya 21 Q 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अंबिया -२१ परा १७
Part-III
पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद, मैंने जबसे होश सभाला है, देखा किए कि राजनीति के मंच पर हमेशा एक मदारी पांव पसारे बैठा रहा. कुछ अक्ल से पैदल और चमत्कार पसंद नेता उनको बढ़ावा देते हैं. मीडिया को भी थाली में खुराक के साथ साथ कुछ चटनी आचार चाहिए होता है, कुछ दिन के लिए वह मदारी समाचारों में छा जाते हैं, फिर पिचके हुए गुब्बारे की तरह फुर्र हो जाते हैं. धीरेन्द्र ब्रहमचारी, आशाराम बापू , स्वामी नित्यानन्द अभी अभी वर्तमान के मदारी निवर्तमान हो चुके हैं, मगर कुछ ज़्यादः ही समय ले रहे है निकम्मे, हास्य स्पद और बड बोले, रंग से स्वामी, रूप से बाबा, बने रामदेव. मामूली सी पेट की धौकनी की प्रेक्टिस कर के वह रातो रात योग गुरू बन गए. रामदेव देखते ही देखते सर्व रोग साधक भी बन गए और आयुर्वेद संस्था के मालिक भी. परदे के पीछे बैठे किन हाथों में इस कठ पुतली की डोर है, 
अभी समझ में नहीं आता. कौन गुरू घंटाल है जो इन्हें हाई लाईट कर रहा है ? ये तो आने वाला समय ही बतलाएगा. उनकी योग की दूकान और फार्मेसी की फैक्ट्री चल निकली है. जहां तक मीडिया पर समाज की ज़िम्मेदारी है, उसके तईं वह कभी कभी दिशा हीन हो जाती है. मीडिया जिसे मानव समाज का आखिरी हथियार माना गया है, वहीँ वह ऐसे लोगों को सम्मानित करके समाज के लिए ज़हर भी बो देती है. ये लोक तंत्र की विडम्बना है कि सब को पूरी आज़ादी है ,कोई कुछ भी करे.
भजन मण्डली का ढोलकिया, निर्मूल्य एवं अज्ञात अतीत का मालिक, आज हर विषय पर अपनी राय दे देता है, चाहे क्रिकेट हो, राजनीती हो, भरष्टाचार हो अथवा सेक्स स्कैनडिल. बीमारियों को तो चुटकी में भगा देने का दावा करने वाले बाबा के पास कैसर, एड्स जैसे रोग का शर्तिया योग है. 
''हर मर्ज़ की दवा है सल्ले अला मुहम्मद'' 
अर्थात कपाल भात और आलोम बिलोम. कोई इस ढोंगी से नहीं पूछता कि बाबा आप के मुँह पर लकवा मार गया है, आप कुरूप, मुँह टिढ़े और काने हो गए हो? अपना इलाज क्यूँ नहीं करते?
अब तो रामदेव गड बोले मुंगेरी लाल के सपने भी देखने लगे हैं आगामी चुनाव में वह हर जगह से चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं. मर्यादा पुरुष बन कर सब को चकित कर देंगे. वह राष्ट्र पति क्या राष्ट्र पिता भी बन्ने का सपना देखने लगे. काला धन, भ्रष्टाचार, नक्सली समस्या, गरीबी रेखा समापन और पडोसी देश चीन की तरह अपराधियों को गोली मार देने की बात करते हैं. रामदेव को नहीं मालूम कि अगर चीनी लगाम भारत आयातित करता है तो सबसे पहले रामदेव ऐसे लोग जपे जाएँगे जो अपने पाखण्ड से लोगों के लाखों वर्किंग आवर्स बर्बाद करते हैं और कोई रचनात्मक काम किए बगैर मुफ्त की रोटियाँ तोड़ते हैं.

आइए चलें अतीत के बाबा मुहम्मद देव की तरफ - - -

'और बअज़े शैतान ऐसे थे कि उनके(सुलेमान) लिए गोता लगाते थे और वह और काम भी इसके अलावा किया करते थे और उनको संभालने वाले थे और अय्यूब, जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि हमें तकलीफ पहुँच रही है और आप सब मेहरबानों से ज़्यादः मेहरबान हैं, हमने दुआ कुबूल की और उनकी जो तकलीफ थी, उसको दूर किया. और हमने उनको उनका कुनबह अता फ़रमाया और उनके साथ उनके बराबर और भी अपनी रहमते-खास्सा के सबब से और इबादत करने वालों के लिए यादगार रहने के सबब. और इस्माईल और इदरीस और ज़ुल्कुफ्ल सब साबित क़दम रहने वाले लोगों में से थे.और उनको हमने अपनी रहमत में दाखिल कर लिया, बे शक ये कमाल सलाहियत वालों में थे. और मछली वाले जब कि वह अपनी कौम से ख़फा होकर चल दिए और उन्हों ने यह समझा कि हम उन पर कोई वारिद गीर न करंगे, बस उन्हों ने अँधेरे में पुकारा कि आप के सिवा कोई माबूद नहीं है, आप पाक हैं, मैं बेशक कसूर वार हूँ.. सो हमने उनकी दुआ कुबूल की और उनको इस घुटन से नजात दी.. और ज़कारिया, जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि ऐ मेरे रब! मुझको लावारिस मत रखियो, और सब वारिसों से बेहतर आप हैं, सो हमने उनकी दुआ कुबूल की और उनको याह्या अता फ़रमाया.और उनकी खातिर उनकी से बीवी को क़ाबिल कर दिया. ये सब नेक कामों में दौड़ते थे और उम्मीद ओ बीम के साथ हमारी इबादत करते थे.और हमारे सामने दब कर रहते थे.''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (८१-९०)
मुहम्मद कहतेहैं कि यहूदी बादशाह सुलेमान शैतान पालता था, जो उसके लिए नदियों में गोते लगा कर मोतियाँ और खुराक के सामान मुहय्या करता था, और भी शैतानी काम करता रहा होगा. आगे आएगा कि वह पलक झपकते ही महारानी शीबा का तख़्त बमय शीबा के उठा लाया था. वह सुलेमान अलैहिस्सलाम के तख़्त कंधे पर लाद कर उड़ता था, बच्चों की तरह आम मुसलमान इन बातों का यकीन करते हैं, कुरआन की बात जो हुई, तो यकीन करना ही पड़ेगा, वर्ना गुनाहगार हो जाएँगे और गुनाहगारों के लिए अल्लाह की दोज़ख धरी हुई है. यह मजबूरियाँ है मुसलामानों की. उन यहूदी नबियों को जिन जिन का नाम मुहम्मद ने सुन रखा था, कुरान में उनकी अंट-शंट गाथा बना कर बार बार गाये हैं .
योब (अय्यूब) की तौरेती कहानी ये है कि वह अपने समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति था, औलादों से और धन दौलत में बहुत ही सम्पन्न था । उस पर बुरा वक्त ऐसा आया कि सब समाप्त हो गया, इसके बावजूद उसने ईश भक्ति नहीं त्यागी. वह चर्म रोग से इस तरह पीड़ित हुवा कि शरीर पर कपडे भी गड़ने लगे और वह एक कोठरी में बंद होकर नंगा भभूत धारी बन कर रहने लगा, इस हालत में भी उसको ईश्वर से कोई शिकायत न रही, और उसकी भक्ति बनी रही. उसके पुराने दोस्त आते, उसको देखते तो दुखी होकर अपने कपडे फाड़ लेते.
इस्माईल लौंडी जादे थे ,अब्राहम इनको इनके माँ के साथ सेहरा बियाबान में छोड़ गए थे इनकी माँ हैगर ने इनको पाला पोसा. ये मात्र शिकारी थे और बड़ी परेशानी में जीवन बिताया . इन्हीं के वंशज मियां मुहम्मद हैं, यहूदियों की इस्माईल्यों से पुराना सौतेला बैर है.
इदरीस और ज़ुल्कुफ्ल सब साबित क़दम रहने वाले लोगों में से थे. बस अल्लाह को इतना ही मालूम है दुन्या में लाखो साबित क़दम लोग हुए अल्लाह को पता नहीं. और मछली वाले जब कि वह अपनी कौम से ख़फा होकर चल दिए जिनका नाम मुहम्मद भूल गए और मुखातिब मछवारे कि संज्ञा से किया है (यूनुस=योंस नाम था) मशहूर हुवा कि वह तीन दिन मगर मछ के पेट में रहे, निकलने के बाद इस बात का एलान किया तो लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया, कुहा के बस्ती छोड़ कर चले गए थे. योंस का हथकंडा मुहम्मद जैसा ही था मगर उनके साथ लाखैरे सहाबा-ए-कराम न थे, जेहाद का उत्पात न सूझा था कि माले-गनीमत की बरकत होती. फ्लाप हो गए .
ज़कारिया (ज़खारिया)और याहिया (योहन) का बयान मैं पिछली किस्तों में कर चुका हूँ.

मुहम्मद फरमाते हैं कि उपरोक्त हस्तियाँ मेरी इबादत करते - - -
''और हमारे सामने दब कर रहते थे.'' 
दिल की बात मुंह से निकल गई और जेहालत को तख़्त और ताज भी मिल गया.
''और उनका भी जिन्हों ने अपने नामूस को बचाया, फिर हमने उन में अपनी रूह फूँक दी, फिर हमने उनको और उनके फरजंद को जहाँ वालों के लिए निशानी बना दी - - - और हमने जिन बस्तियों को फ़ना कर दीं हैं उनके लिए ये मुमकिन नहीं है फिर लौट कर आवें. यहाँ तक कि जब याजूज माजूज खोल दी जंगे तो(?) और वह हर बुलंदी से निकलते होंगे. और सच्चा वादा आ पहुँचा होगा तो बस एकदम से ये होगा कि मुनकिर की निगाहें फटी की फटी रह जाएँगी कि हाय कमबख्ती हमारी कि हम ही ग़लती पर थे, बल्कि वक़ेआ ये है कि हम ही कुसूरवार थे. बिला शुबहा तुम और जिनको तुम खुदा को छोड़ कर पूज रहे हो, सब जहन्नम में झोंके जाओगे. (इसके बाद फिर दोज़खियो को तरह तरह के अज़ाब और जन्नातियों को मजहका खेज़ मज़े का हल है जो बारबार बयान होता है)
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (९१-१०३)

मुहम्मद का इशारा मरियम कि तरफ है. ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह खुदा के बेटे है तब मुहम्मद कहते हैं कि यह अल्लाह की शान के खिलाफ है , न वह किसी का बाप है न उसकी कोई औलाद है. यहं पर अल्लाह कहता है कि फिर हमने उन में अपनी रूह फूँक दी तब तो ईसा ज़रूर अल्लाह के बेटे हुए. जिस्मानी बेटे से रूहानी बेटा ज्यादह मुअत्बर हुवा. यही बात जब ईसाई कहते हैं तो मुहम्मद का तसव्वुर फैज़ अहमद फैज़ के शेर का हो जाता है - - -
आ मिटा दें ये ताक़द्दुस ये जुमूद,
फिर हो किसी ईसा का वुरूद,
तू भी मजलूम है मरियम की तरह,
मैं भी तनहा हूँ खुदा के मानिद.
यहाँ अल्लाह मरियम के अन्दर अपनी रूह फूंकता है ,इसके पहले फ़रिश्ते जिब्रील से उसकी रूह फुन्क्वाया थे, ईसा को रूहिल क़ुद्स कहा जाता है, जब कि यहाँ पर रूहुल्लाह हो गए.
कहते हैं कि 'दारोग आमोज रा याद दाश्त नदारद. झूटों की याद दाश्त कमज़ोर होती है.
''और हम उस रोज़ आसमान को इस तरह लपेट देंगे जिस तरह लिखे हुए मज़मून का कागज़ को लपेट दिया जाता है, हमने जिस तरह अव्वल बार पैदा करने के वक़्त इब्तेदा की थी, इसी तरह इसको दोबारा करेंगे ये हमारे जिम्मे वादा है और हम ज़रूर इस को करेंगे. और हम ज़ुबूर में ज़िक्र के बाद लिख चुके हैं कि इस ज़मीन के मालिक मेरे नेक बन्दे होंगे. 
(इसके बाद मुहम्मद अंट-शंट बका है जिसमें मुतराज्जिम ने ब्रेकेट लगा लगा कर थक गए होंगे कि कई बात बना दें, कुछ नमूने पेश हैं - - -
''और हम ने 
(1) आप को और किसी बात के लिए नहीं भेजा, मगर दुन्या जहान के लोगों (2) पर मेहरबानी करने के लिए . आप बतोर
(3) फरमा दीजिए कि मेरे पास तो सिर्फ वह्यी आती है कि तुम्हारा माबूद 
(4 )सिर्फ एक ही है सो अब भी तुम 
(5) फिर 
(6) ये लोग अगर सर्ताबी करेंगे तो 
(7) आप फरमा दीजिए कि मैं तुम को निहायत साफ़ इत्तेला कर चुका हूँ और मैं ये जानता नहीं कि जिस सज़ा का तुम से वादा हुवा है, आया क़रीब है या दूर दराज़ है (8). - - -
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (१०४--११२)

मुहम्मद की चिंतन शक्ति एक लाल बुझक्कड़ से भी कम है, ब्रह्माण्ड को नज़र उठा कर देखते हैं तो वह उनको कागज़ का एक पन्ना नज़र आता है और वह आसानी के साथ उसे लपेट देते हैं। मुसलमान उनकी इस लपेटन में दुबका बैठा हुवा है. मुहम्मदी अल्लाह कयामत बरपा करने का अपना वादा कुरआन में इस तरह दोहराता है जैसे कोई खूब सूरत वादा किसी प्रेमी ने अपने प्रियशी से किया हो. मुसलमान उसके वादे को पूरा होने के लिए डेढ़ हज़ार सालों से दिल थामे बैठा है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 15 April 2016

Soorah Anbiya 21 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
********

सूरह अंबिया -२१ 
 
(दूसरी किस्त)

''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने लगे.और हमने इसमें कुशादा रस्ते बनाए ताकि वह लोग मंजिल तक पहुँच सकें और हम ने आसमान को एक छत बनाया जो महफूज़ है. और ये लोग इस से एराज़ किए (मुंह फेरे) हुए हैं. और वह ऐसा है जिसने रात और दिन बनाए, सूरज और चाँद. हर एक, एक दायरा में तैरते है. और हमने आप से पहले भी किसी बशर को हमेशा रहना तजवीज़ नहीं किया. फिर आप का इंतक़ाल हो जाए तो क्या लोग हमेश हमेशा दुन्या में रहेंगे. हर जानदार मौत का मज़ा चक्खेगा और हम तुमको बुरी भली से अच्छी तरह आज़माते हैं. और तुम सब हमारे पास चले आओगे और यह काफ़िर लोग जब आपको देखते हैं तो बस आप से हँसी करने लगते हैं. क्या यही हैं जो तुम्हारे मअबूदों का ज़िक्र किया करते हैं? और यह लोग रहमान के ज़िक्र पर इंकार करते हैं. इंसान जल्दी का ही बना हुवा है. हम अनक़रीब आप को अपनी निशानियाँ दिखाए देते हैं ,पस ! तुम हम से जल्दी मत मचाओ. और ये लोग कहते हैं वादा किस वक़्त आएगा? अगर तुम सच्चे हो, काश इन काफ़िरों को उस वक़्त की खबर होती. जब ये लोग आग को न अपने सामने से रोक सकेंगे न अपने पीछे से रोक सकेंगे. और न उनकी कोई हिमायत करेगा. बल्कि वह उनको एकदम से आलेगी. - - -''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (३१-४०)

देखिए ऊपर शुरू आयत में ही तर्जुमा करने वाले आलिम ने कैसे मुहम्मद की बक बक में पेवन्द लगाया है - - -
मुहम्मद कह रहे है ''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने लगे.''
तर्जुमा करने वाले आलिम ने इसको ब्रेकट में (न) लगा कर मतलब को उल्टा कर दिया है --
''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने (न)लगे.''
अब ऐसी जगह पर ओलिमा आपस में एक दूसरे का विरोध कर करते रहते हैं कि अल्लाह ने पहाड़ इस लिए रखे कि ज़लज़ला की सूरत पैदा होती है और यह भी कि वजन रखने से ज़मीन सधी रहे मगर अस्ल मतलब को ज़ाहिर करने की हिम्मत किसी में नहीं कि ये अल्लाह बने मुहम्मद की ला इल्मी है, क्यूंकि वह उम्मी थे.
इंसान जल्दी का ही बना हुवा है.? क्यूँ क्या जल्दी थी अल्ला मियां को, वह अगर उनका बनाया हुवा है तो फिर उसको मुसलमान बनाने का पापड़ क्यूं वह और उनके रसूल बेल रहे हैं.
ज़मीन पर रस्ते इंसान बनाते हैं, अल्लाह नहीं. इस बात में भी मुहम्मद की उम्मियत हायल है.
मुसलामानों ! आसमान कोई छत नहीं आपकी हद्दे नज़र है. ये लामतनाही है, जिसको जनाब ने सात तबक में सात  मंजिला ईमारत तसव्वुर किया है.
आप पर हंसने वाले काफ़िर थे, न ज़ालिम, वह ज़हीन लोग थे कि ऐसी बातों पर हँस दिया करते थे कि आज जो तिलावत बनी हुई हैं.
मुहम्मद तबीयातन तालिबानी थे, जो दुन्या की आबादी को ख़त्म कर देना चाहते थे, इशारतन वह बतला रहे हैं कि वह अल्लाह से जल्दी बाज़ी कर रहे हैं कि क़यामत क्यूँ नहीं आती.
मुहम्मद का एक यह भी तकिया कलाम रहा है कि किसी आमद को हर बार सामने से बुलाते हैं, फिर पीछे से भी आने का कयास करते हैं.

''आप कह दीजिए कि मैं तो सिर्फ वह्यी (ईश वाणी) के ज़रीए तुम को डराता हूँ और बहरे जिस वक़्त डराए जाते हैं पुकार सुनते ही नहीं और उनको आप के रब के अज़ाब का एक झोंका भी लग जाए तो कहने लगें कि हाय मेरी कमबख्ती हम तो खतावार थे. और क़यामत के रोज़ हम मीज़ने-अज़ल क़ायम करेंगे सो किसी पर असला ज़ुल्म न होगा और अगर राइ के दाने के बराबर होगा तो हम इसको हाज़िर कर देंगे.और हम हिसाब लेने वाले काफी हैं.- - - (इब्राहीम की अपने बाप से तू तू मैं मैं, जैसे पहले आ चुका है, इब्राहीम अपने बाप से कहता है) - - -और खुदा की क़सम मैं तुम्हारे इन बुतों की गत बना दूंगा, जब तुम पीठ फेर के चले जाओगे. और उन्हों ने इन के टुकड़े टुकड़े कर दिए बजुज़ एक बड़े बुत के (लोगों के गुस्से को देखते ही इब्राहीम झूट बोलते हैं कि ये हरकत इस बड़े बुत की है इससे पूछ लो, - - - झूट काम नहीं आता ,पंचायत इनको आग में झोंक देती है जो अल्लाह की मुदाखलत से ठंडी हो जाती है) ''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (४५-७०)

अल्लाह के कलाम में ? पैगम्बर मुहम्मद की विपदा बयान होती है, दीवाना अल्लाह उनके मुँह से बोलता है कि वह ईशवानी द्वारा लोगों को डराता है मगर वह बहरे काफ़िर बन्दे उसकी सुनते ही नहीं, धमकता है कि अगर एक झोंका भी मेरे अज़ाब का उन पर पड़ जाय तो उनको नानी याद आ जाय. अल्लाह कहता है क़यामत के दिन वह तमाम लोगों के कर्मों का लेखा-जोखा पेश करेगे. एक तरफ कहता है कि किसी पर रत्ती भर अत्याचार न होगा, दूसरी तरफ धमकता है, ''तो हम इसको हाज़िर कर देंगे.और हम हिसाब लेने वाले काफी हैं.- - -''
मूर्ती तोड़क मुहम्मद का अल्लाह भी उन्हीं की ज़बान में खुद अपनी क़सम खाकर कहता है , ''और खुदा की क़सम मैं तुम्हारे इन बुतों की गत बना दूंगा, जब तुम पीठ फेर के चले जाओगे'' क्या डरपोक अल्लाह है कि इब्राहीम के बाप आज़र के सामने उसकी हिम्मत नहीं कि बुतों को हाथ भी लगाए, मुन्तजिर है कि यह हटें तो मैं बुतों की दुर्गत कर दूं. मुहम्मद बड़े बुत को बचा कर उससे गवाही की दिल चस्प कहानी गढ़ते हैं जो इस्लामी बच्चे अपने बच्चों के कानों में पौराणिक कथा की तरह घोल देते हैं..
मुसलामानों!
 क्या तुम इन्हीं बेवज्न कलाम को अपनी नमाज़ों में दोहराते हो? ये बड़े शर्म की बात है.
 जागो! खुदा के लिए जागो!!
''और दाऊद और सुलेमान जब दोनों किसी खेत के बारे में फैसला करने लगे जब कि कुछ लोगों की बकरियाँ रात के वक़्त उसको चर गईं और हम उस फैसले को जो लोगों के मुतअल्लिक हुवा था, हम देख रहे थे सो हमने उसकी समझ सुलेमान को देदी और हमने दोनों को हिकमत और इल्म अता फ़रमाया और हम ने दाऊद के साथ तबेअ कर दिया था पहाड़ों को कि वह तस्बीह किया करते थे और परिंदों को हुक्म करने वाले हम थे. और इनको ज़ेरह (कन्वच) की सनअत तुम लोगों के वास्ते सिखलाई ताकि वह लड़ाई में तुम लोगों को एक दूसरे की ज़द से बचाए तो तुम शुक्र करोगे भी? और हम ने सुलेमान अलैहिस सलाम का जोर की हवा को ताबे बना दिया था''.
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (71-81)
क्या पुर मजाक बात है कि दाऊद जिसने चोरी और डाके में अपनी जवानी गुजारी वह अल्लाह की हिकमत से इस मुक़ाम तक पहुंचा कि पहाड़ उसके साथ बैठ कर माला फेरने लगे. पहाड़ कैसे बैठते, उठते और तस्बीह भानते होगे बात भी गौर तलब है जिसे मुहम्मदी अल्लाह ही जाने जो अपने पुश्त से घोडा खोल सकता है. मुहम्मदी अल्लाह ऐसा है कि पंछियों को हुक्म देता है कि इन के मातहेत रहें. यहाँ तक कि हवाओं तक पर भी इन बाप बेटों की हुक्मरानी हुवा करती थी. सवाल उठता है कि जब उन हस्तियों को अल्लाह ने इतनी पवार ऑफ़ अटर्नी देदी थी तो मुसलामानों के आखरुज़ज़मा को क्यों फटीचर बना रक्खा है?
मेरे नादाँ भाइयो !
 कुछ समझ में आता है कि कुरानी इबारतें क्या मुक़ाम रखती हैं इस तरक्की याफ्ता समाज में. क्यूँ अपनी भद्द कराने की ज़िद पर अड़े हुए हो. हिदुस्तान में हिदुत्व का देव है, जो तुम को बचाए हुए है, अगर ये न होता तो तुम खेतों में चरने के लिए भेड़ बकरियों की तरह छोड़ दिए जाते और तुम्हारा अल्लाह आसमान पर बैठा टुकुर टुकुर देखता रहता, किसी मुहम्मद की गवाही देने के लिए. कुरान पूरी की पूरी बकवास है जब तक इसके खिलाफ़ खुद मुसलमान आवाज़ बुलंद नहीं करते तब तक हिंदुत्व का भूत भी ज़िदा रहेगा. जिस दिन मुसलमान जग कर मैदान में आ जाएँगे, हिदुत्व का जूनून खुद बखुद काफुर हो जायगा फिर भारत में बनेगा एक नया समाज जिसका धर्म और मज़हब होगा ईमान.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 11 April 2016

soorah Ambiya 21 Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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  सूरह अंबिया -२१ परा १७
पहली  किस्त 
चलिए देखें उस डरावने बगड़बिल्ला को जो मुसलमानों को डरा डरा कर अल्लाह बना हुवा है- - -
कुछ मुसलमानों का मानना है कि इंसान के दिल में अगर खौफे-खुदा न रहे तो वह हैवान हो जायगा और माँ बहन बेटियों की तमाज़त खो देगा। आधी दुन्या जो नॉन बिलिवेर्स है, तो क्या वह सब ऐसी ही है? 
हाँ मुहम्मद तबअ रखने वाले लोग ऐसे ज़रुर हो सकते हैं जिनके लिए गढ़ित अल्लाह सब रिश्तों की छूट देता है, या उन्हें अल्लाह मानने वाले लोग।
मुहम्मद ने इंसान की जिस सब से बड़ी कमजोरी पर अपनी गिरफ़्त मज़बूत की है, वह है अल्लाह का डर. वह कुरआन में बार बार कहते हैं कि वह अल्लाह की तरफ से तुम को डरा रहे हैं और मुसलमान उनके झूट पर रोज़े हश्र और दोज़ख का यक़ीन कर लेता है. उसको कैसे समझाया जाए कि दोज़ख और जन्नत सब उसके दिलो-दिमाग में हैं और कायनात में कहीं नहीं हैं, उसके बुरे और अच्छे फ़ेल ही उसको दोज़खी और जन्नती बनाए रहते हैं. किसी फ़ेल या अमल से पहले खूब सोच समझ लेना चाहिए कि इसका रद्दे अमल दूसरों के लिए नुक्सान दह या फायदे मंद, बस वह हर अमल आपका रहनुमाई करता है कि आप इस वक़्त दोज़ख में जाने वाले है या जन्नत में. यह ख़याल दिमाग से निकाल दीजिए कि ज़माना क्या कहेगा. ज़माना तो ज़माना है, उसके कहने पर मत जाइए. जो समाज में कमजोरियां हैं उनका डट कर विरोध करिए, एक दिन आएगा कि लोग आपके साथ होंगे और आप खुद को जन्नती महसूस करेंगे।
चलिए डरपोक बने समाज को जगाया जाए कि अल्लाह किसी बनिए का मुनीम नहीं होता जो अपनी मख्लूक़ के फ़ेलों का बही खता रक्खे, इस कायनात में वह हर शय में विराजमान है और हर शय उसके बनाए नियमानुसार चलती है, कि सदाक़त जन्नत के दरवाजे पर बैठी आप का इंतज़ार कर रही है और दारोग और झूट दोज़ख के दर पे - - - 

''इन लोगों से इनका हिसाब नजदीक आ पहुँचा और ये गफ़लत में एराज़ (विमुखता) किए हुए हैं. इनके पास इनके रब से जो नसीहत ताज़ा आती है, ये इसको ऐसे सुनते हैं कि उनके साथ हँसी करते हैं, उनके दिल मुतवज्जो नहीं होते और ये लोग यानी ज़ालिम लोग चुपके चुपके सरगोशी करते हैं कि ये तुम जैसे एक आदमी हैं, तो क्या तुम भी जादू के पास जाओगे? हालाँकि तुम जानते हो कि पैगम्बर ने फ़रमाया कि मेरा रब आसमान में या ज़मीन में सब जानता है. और वह खूब सुनने वाला और जानने वाला है, बल्कि कहा कि परेशान खयालात हैं। बल्कि इन्हों ने इसको तराश लिया है, बल्कि यह तो एक शायर हैं, तो इसको चाहिए कि हमारे पास कोई ऐसी निशानी लावें जैसे पहले लोग रसूल बनाए गए. इनसे पहले कोई बस्ती वाले जिनको हमने हलाक़ किया है, ईमान नहीं लाए तो क्या यह लोग ईमान ले आवेंगे और इस से पहले सिर्फ आदमियों को ही पैगम्बर बनाया जिनके पास हम वह्यी को भेजा करते थे, सो अगर तुमको मालूम न हो तो अहले किताब से दरियाफ़्त कर लो, और हमने इन के ऐसे जुस्से (शरीर) नहीं बनाए थे जो खाना न खाते हों और वह हमेशा रहने वाले नहीं हुए. फिर हमने उन से जो वअदा किया था उसको सच्चा किया. यानी उनको और जिन जिन को मंज़ूर हुआ, हमने नजात दी. और हद से गुजरने वाले को हलाक किया, हम तुम्हारे पास ऐसी किताब भेज चुके हैं कि जिसमें नसीहत है, क्या फिर भी तुम नहीं समझते''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ - आयत (१-१०)

वह कथित काफ़िर और जाहिल आज के तालीम याफ़्ता लोगों से कुजा बेहतर थे जो कुरआन को उस दीवाने पैगम्बर का ख्याल-ए-परेशान कहते थे, कैसी माकूल बात है. जो आज भी लागू होती है. मुहम्मद अपनी बातों को तारीफ़ के सन्दर्भ में जादू जैसी पुर कशिश बतलाते हैं, नहीं जानते कि जादू झूट होता है. मुहम्मदी अल्लाह की तमाम वाणी मज़ाक के स्तर पर भी नहीं बल्कि मज्मूम (निन्दित) हैं. इन बातों को कैसे किसी अल्लाह का कलाम माना जा सकता है? मुसलामानों को इनसे पीछा छुड़ाने में शर्म कैसी? ये समझदारी और फ़ख्र का क़दम होगा.

''बहुत सी हस्तियाँ जहाँ के रहने वाले ज़ालिम थे, गारत कर दीं और उसके बाद दूसरी कौम पैदा कर दीं. सो जब उन्हों ने हमारा अज़ाब आता देखा, इस से भागना शुरू किया, भागो मत और अपने सामान ऐश की तरफ और अपने मकानों की तरफ वापस चलो, शायद तुम से कोई पूछे पाछे,. वह लोग कहने लगे हाय! हमारी कम्बख्ती, बेशक हम लोग ज़ालिम थे. सो उनकी यही पुकार रही, हत्ता कि हमने उनको ऐसा कर दिया जिस तरह खेती कट गई हो. और आग ठंडी हो गई. और हमने आसमान और ज़मीन को इस तरह नहीं बनाया कि हम कोई फालतू काम कर रहे हों. अगर हमको मशगला ही बनाना मंज़ूर होता तो हम खास अपने पास की चीजों को मशगला बनाते. अगर हम को ये करना होता, बल्कि हम हक बात को बातिल पर फ़ेंक मारते हैं,. सो वह इस का भेजा निकाल देता है.सो वह दफअतन जाता रहता है. और तुम्हारे लिए ये बड़ी खराबी होगी जो तुम गढ़े हो और जितने कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब इसी के हैं और जो उसके नज़दीक हैं, वह उस से आर नहीं करते.और न झुकते हैं. बल्कि शबो रोज़ तस्बीह करते हैं,  मौकूफ नहीं करते हैं''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (११-२०)

यह मुहम्मदी अल्लाह मुहम्मद के कठमुल्ला जैसे दिमाग की पैदावार है, पच्चीस साल की उम्र तक मक्कियों की भेड़ बकरियां चराने के दरमियान वह भेड़ बकरियों को साधते और सोचते रहे कि इनकी तरह ही आदमी भी इस धरती पर मौजूद हैं क्यूँ न उनको चराया जाए, और बेवकूफ भेड़ बकरियों जैसा दिमाग रखने वाले दुन्या में उनको भरे पड़े मिले, माँ की उम्र वाली खदीजा ने इनको टुकड़े डाले और यह उसके पालतू बन गए, फिर क्या था गारे-हरा में बैठ कर पंद्रह सालों तक मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ते रहे और मंसूबा बंदी करते रहे. चालीस सालों में एक जाहिल जट ने पैगम्बरी का एलान कर दिया. ईसा और मूसा के बराबर होने का मौक़ा मुनासिब था और अपनी उम्मियत को उरूज पर रखते हुए तजुर्बा किया किए और बन बैठे भेड़ बकरियों नुमा उम्मत के पैगम्बर- ए- आखुज्ज़मा - . कई हदीसें गवाही देती है कि मुहम्मद तबीयतन ज़ालिम थे. इज्ज़त दार खातून का हाथ काट डाला मअमूली सी चोरी के इलज़ाम में, अपने सामने दो वफ़ादार और बाकिरदार जोड़े को संगसार करते हुए जिंदा दफन कराया. ऐसी एक नहीं सैकड़ों मिसालें हैं. अपने ही तरह ज़ालिम अल्लाह को मुहम्मद ने क़ायम किया।
साजगारे-कायनात कहता है कि उसे मशगला मंज़ूर होता तो अपने आस-पास ही करता. देखिए कि अल्लाह भागते हुए लोगों को ललकारता है, भागो मत, मेरे ज़ुल्म से भाग न सकोगे, वह अपने बन्दों को जला कर ही अपने ज़ुल्म की आग को ठंडी बतलाता है. उनकी बसी बसी दुन्या को वीरान करके कटे हुए खेत कि तरह कर देता है. हद तो ये है  कि वह कसाइयों की तरह बन्दों के भेजे भी खोल देता है. कहता है शबो रोज़ तस्बीह किया करो, सोचो कि अगर शबो रोज़ तस्बीह करोगे तो मेहनत और मशक्क़त करके अपने बच्चों का पेट कैसे भरोगे?
मुसलमानों! क्या तुम फिर भी ऐसे अल्लाह को पसंद करोगे जिसे फ़ासिक़ मुहम्मद ने गढ़ा हो?

''क्या बावजूद दलायल के उन लोगों ने खुदा के सिवा किसी और को माबूद बना रक्खे हैं - - - और हमने आपसे पहले कोई ऐसा पैगम्बर नहीं भेजा जिसके पास हमने ये वह्यी न भेजी हो कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, पस मेरी इबादत किया करो. - - - वह जानते हैं कि अल्लाह तअला उनके अगले और पिछले अहवाल को जनता है और बजुज़ उसके जिसके लिए अल्लाह तअला की मर्ज़ी हो और किसी की सिफ़ारिश नहीं कर सकते. और सब अल्लाह तअला की मौजूदगी से डरते। इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और जमीन बंद थे, फिर हमने अपनी कुदरत से दोनों को खोल दिया और हमने पानी से हर जानदार चीज़ को बनाया. क्या फिर भी ईमान नहीं लाते ''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (२१-३०)

उस अल्लाह पर लअनत है जो अपने मुँह से कहता हो कि मैं ही इबादत के लायक हूँ,तुम मेरी इबादत ही किया करो. वह टुच्चा और खुद नुमाई करने वाला अल्लाह तुम्हारा मालिके-कायनात है? तो यह तुम्हारे लिए शर्म की बात होनी चाहिए. जहिले-मुतलक की दलील पर गौर हो कि ''क्या इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और जमीन बंद थे, फिर हमने अपनी कुदरत से दोनों को खोल दिया'' जैसे कि मुस्लिमों को इसका इल्म रहा हो। मुसलमान इस खुलासे को पाकर फूले नहीं समाते, उनसे बेहतर काफ़िर हैं जो इनका मज़ाक उड़ाते हैं।
मुसलामानों, सिर्फ ये मुल्ला और मोलवी ही नहीं दूसरे फ़िरके के दुष्ट प्रकृति के लोग भी नहीं चाहते कि तुम बेदार हो सको. तुमको मुसलमान बना कर रखने में ही उनका हित निहित है. तुम अगर जग गए तो उन्हें अच्छे और मेहनती मज़दूर मिस्त्री कहाँ मिलेंगे? अच्छे दस्त कर मुसलमानों में ही ज़्यादा पाए जाते हैं, क्या कभी सोचा है कि ऐसा क्यूं? इस लिए कि जिन बच्चों में पढ़ लिख कर इंजीनियर, डाक्टर, केमिस्ट और साइंटिस्ट बनने कि सलाहियत होती है मगर वह उसकी तालीम से महरूम रहते है, तो हुनर में अपनी सलाहियत का मज़हिरा करते हैं. 
मुल्ला बार बार दोहराते हैं कि कुरआन कहता है''  इल्म हासिल करना है तो चीन तक जाना पड़े तो जाओ'', तो चीन में क्या इस्लामी अल्लाह के मुताबिक तालीम तब थी, या अब है। तुम बेदार हुए तो उनकी सनअतों का क्या होगा जो तुम्हारे लिए वज़ू बनाने और इस्तेंजा पाक (लिंग-शोधन) करने का टोटी दार लोटा बनाते हैं. तहमदें, टोपियाँ, पोशाकें और खिज़ाब वगैरा बनाते हैं. बड़ी दूकानों और सलाटर हाउसों के लिए कर्मीं कहाँ होंगे? हत्ता कि तुम्हारे कुरआन की इशाअत और तबाअत भी उन्हीं के हाथ है.
नवल किशोर प्रेस का नाम सुना है? तुम्हारी सभी दीनी किताबों की बरकतें पचास साल तक उन्हीं के हक में गई है. गैर मुसलामानों की कंज्यूमर सेंटर तुम्हारी इस दीनी जेहालत पर ही क़ायम है, वह तो तुमको क़ायम रखना ही चाहेंगे. 
कुरआन बार बार तुम्हारी बदहाली और काफिरों की खुशहाली की वकालत करता है क्यूंकि तुम्हारी पूँजी तो ऊपर जमा हो रही है.
 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 8 April 2016

Soorah Tah 20 -Q3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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रूरह ताहा २०
तीसरी किस्त 
''और हमने इसी तरह उसको अरबी कुरआन नाज़िल किया है और हमने उसमें तरह तरह की चेतावनियाँ दी हैं. ताकि वह लोग डर जाएँ या यह उनके लिए किसी कद्र समाझ पैदा कर दे. - - - और आप दुआ कीजिए की ऐ मेरे रब मेरा इल्म बढ़ा दीजिए. और इस से पहले हम आदम को एक हुक्म दे चुके थे, सो उनसे गफ़लत हो गई हमने इन में पुखतगी न पाई, जब कि हमने फरिश्तों को इरशाद फ़रमाया था कि आदम को सजदा करो. - - -
शुरू हो जाती है आदम और इब्लीस की दास्तान जो कुरआन में बार बार दोहराई गई है.
रूरह ताहा २० _ आयत (११३-१२३)

मुहम्मद बार बार कहते हैं कि वह क़यामत की (मुख्तलिफ ड्रामे बाज़ी करके) लोगों को डरा रहा हूँ, डराने वाला ज़ाहिर है झूठा होता है, मुसलमान इसी बात को ही अगर समझ लें तो उनकी इसमें बेहतरी है, मगर इतना ही काफी नहीं है, क्यूं कि उम्मी के पास शब्द भंडार नहीं थे कि वह ''डराने'' की जगह आगाह या तंबीह लफ़्ज़ों को अपने कलाम में लाते. इस से साबित होता है कि मुहम्मद अव्वल दर्जे के फ़ासिक़ और दरोग़ गो थे. कुरआन के एक एक हर्फ़ झूठे हैं जब तक इस बात पर मुसलमान ईमान नहीं लाते, वह सच्चे मोमिन नहीं कहलाएंगे.
कुरआन अरबी में है, मुनासिब था कि ये अरबियों तक सीमित रहता, वह रहते कुँए के मेंढक, मगर यह तो तलवार के ज़ोर और ओलिमा के प्रोपोगंडा से पूरी दुन्या में मोहलिक बीमारी बन कर फ़ैल गया. हमारे पूर्वजों के वंशजों पर इसका कुप्रभाव ऐसा पड़ा कि अपने रंग में रंगे भारत टुकड़ों में बट गया, अफगानिस्तान में शांति प्रिय बुद्धिस्ट तालिबानी बन गए, आर्यन की मुक़द्दस सरज़मीन नापाक(किस्तान) हो गई, साथ साथ आधा बंगाल भी इस्लाम के भेट चढ़ गया. अगर इस्लाम का स्तित्व न होता तो भारत हिंदुत्व ग्रस्त कभी भी न होता, कोई महान ''माओज़े तुंग'' यहाँ भी पैदा होता जो धर्मों की अफीम से भारत को मुक्त करता और आज हम चीन से आगे होते.
मुसलमान कौम, कौमों में रुवाई और ज़िल्लत उठा रही है, इबादत और दुवाओं के फ़रेब में आकर. मुन्जमिद कौम की कोड़ों की मार और संगसारी सिंफे-नाज़ुक पर, ज़माना इनकी तस्वीरें देख रहा है, यह ओलिमा अंधे हो कर इस्लाम की तबलीग में लगे हुए है क्यूंकि मुसलामानों की दुर्दशा ही इनकी खुराक है.
''रोज़-हश्र अल्लाह गुनेहगार मुर्दों को कब्र से अँधा करके उठाएगा और कहेगा कि तूने मेरे हुक्म को नहीं, मैं भी तेरे साथ कोई रिआयत नहीं करूंगा. अल्लाह कहता है क्या इस से भी लोगों को इबरत नहीं मिलती कि इससे पहले कई गिरोहों को हमने हालाक कर दिया, (मूसा द्वारा बर्बाद और वीरान की गई बस्तियों का हवाला देते हुए) कहता कि क्या इनको वह दीखता नहीं कि यहाँ लोग चलते फिरते थे. मुहम्मद समझाते हैं कि अगर अल्लाह ने अज़ाब के लिए एक दिन मुक़ररर न किया होता तो अजाब आज भी नाज़िल हो जाता. अल्लाह बार बार मुहम्मद को तसल्ली देता है कि आप सब्र कीजिए जल्दी न मचाइए और दुखी मत होइए. अपने रब की हम्द के साथ इसकी तस्बीह कीजिए. ख़बरदार! खुश हल लोगों की तरफ नज़र उठा कर भी न देखिए कि वह उनके साथ मेरी आज़माइश है. आप के रब का इनआम तो आखरत है. समझाइए अपने साथियों को कि नमाज़ पढ़े, और खुद भी पाबन्दी रखिए. अल्लाह कहता है - - - ''
''हम आप से मुआश कमवाना नहीं चाहते मुआश तो आप को हम देंगे.और बेतर अंजाम तो परहेज़ गारी है.'' (१३०) अवाम जब मुहम्मद से पैगम्बरी की कोई निशानी चाहते हैं तो जवाब होता है, पहले के नबियों और उन पर उतरी किताबों की बातें क्या नहीं कान पडीं. कहते हैं हम सब आक़बत की दौड़ में हैं देखना है कि कौन राहे रास्त पर है किसको मंजिले मक़सूद मिलती है.
रूरह ताहा २० _ आयत (११४-२३५)
इतना ज़ालिम अल्लाह ? अगर अपने बन्दों को अँधा कर के उठाएगा तो वह मैदाने-हश्र में पहुचेंगे कैसे? इस क़यामती ड्रमों ने तो मुसलमानों को इतना बुज़दिल बना दिया है कि वह दुन्या में सबसे पीछे खड़े होकर अपने अल्लाह से दुआओं में मसरूफ हैं, उनके अक्ल में ये बात नहीं घुसती कि दुआ का फ़रेब इनको पामाल किए हुए है.
मुसलमानों! तुमहारी खुशहाली न अल्लाह को गवारा है, न तुमहारे मफरूज़ा पैगम्बर को, न इन हरम खोर इस्लामी एजेंटों को .
देखो आँखें खोल कर तुम्हारे अल्लाह को अपनी मशक्क़त से रोज़ी रोटी गवारा नहीं? वह अपने रसूल से कहता है,
''हम आप से मुआश कमवाना नहीं चाहते मुआश तो आप को हम देंगे.और बेतर अंजाम तो परहेज़ गारी है.'' (१३०)
तरक्की की जड़ है अनथक मेहनत मगर इस्लाम में इसकी तबलीग कहीं भी नहीं है, जंगों से मिला माले गनीमत जो मुयस्सर है.
मुहम्मद फरमाते हैं - - -
'' अम्लों में तीन अमल अफज़ल हैं -(हदीस-बुखारी २५)
* १-अल्लाह और उसके रसूल पर इमान रखना.
* २-अल्लाह की रह में जेहाद करना.
* ३- हज करना."
देखें कि बेअमली को वह अमल बतलाते है. 
१-ये आस्था है, अमल या कर्म नहीं.
जेहाद ही को मुहम्मद ज़रीआ मुआश कहते है. कई हदीसें इसकी गवाह हैं.
तीर्थ यात्रा भी कोई अमल नहीं अरबियों की परवरिश का ज़रीआ मुहम्मद ने कायम किया है.
मुसलमानों !
मेरी तहरीर में आपको कहीं भी कोई खोट नज़र आती है? मेरे इन्केशाफत (उदघोषण) में कहीं भी कोई ऐसा नुक्ता-ऐ-रूपोश आप पकड़ पा राहे हैं जो आप के खिलाफ हो? हम समझते हैं कि मेरी बातों से आप परेशान होते होंगे और दुखी भी. मेरी इमान गोई आपको आपरेट कर रही है, ज़ाहिर है आपरेशन में कुछ तकलीफ तो होती है. मैं क़ुरआनी मरज़ से आपको नजात दिलाना चाहता हूँ, अपनी नस्लों को मोमिन की ज़िदगी दीजिए, ज़माना उनकी पैरवी में होगा, फितरत के आगोश में बेबोझ आबाद होंगे।

मोमिन को समझने की कोशिश कीजिए.









जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 4 April 2016

Soorah Taha 20 Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह  ताहा २०
दूसरी किस्त 
आइए ले चलते हैं आपको मुहम्मदी अल्लाह के ज़टल क़ाफ़िए पर - - -

मूसा जब अल्लाह के हुज़ूर में हाज़िर होते हैं तो अल्लाह उनसे पूछता है कि ''ऐ मूसा आपको अपनी कौम से जल्दी आने का क्या सबब हुवा ? उन्हों ने जवाब दिया वह लोग यहीं तो हैं, मेरे पीछे और मैं आपके पास जल्दी से चला आया कि आप खुश होंगे. इरशाद हुवा कि हमने तो तुम्हारी कौम को तुम्हारे बाद मुब्तिला कर दिया और उनको सामरी ने गुमराह कर दिया, ग़रज़ मूसा ग़ुस्से और रंज से भरे हुए अपनी कौम की तरफ वापस आए, फरमाने लगे, ऐ मेरी कौम ! क्या तुम्हारे रब ने तुमसे एक अच्छा वादा नहीं क्या था? क्या तुम पर ज़्यादा ज़माना गुज़र गया? या तुमको ये मंज़ूर हुवा कि तुम पर तुम्हारे रब का गज़ब नाज़िल हो? इस लिए तुमने मुझ से जो वादा किया था, उसको खिलाफ किया था. - - - लेकिन कौम के ज़ेवर में से हम पर बोझ लद रहा था. सो हमने उसको आग में डाल दिया, फिर सामरी ने डाल दिया, फिर उसने उन लोगों के लिए एक बछड़ा ज़ाहिर किया कि वह एक क़ालिब था जिसमे एक आवाज़ आई थी. फिर वह कहने लगे तुम्हारे और मूसा का भी तो माबूद यही है - - - ''
सूरह ताहा २० _ आयत (८१-१००)
आप कुच्छ समझे? मैं भी कुछ नहीं समझ सका. तहरीर हूबहू क़ुरआनी है. यह ऊट पटांग न समझ में आने वाली आयतें मुहम्मद उम्मी की हैं, न कि किसी खुदा की. 
इनमें दारोग गो, मुतफ़न्नी आलिमों ने सर मगजी करके तहरीर को बामअने ओ मतलब बनाने की नाकाम कोशिश की है. सवाल उठता है कि अगर इसमें मअने ओ मतलब पैदा भी हो जाएँ तो पैगाम क्या मिलता है इन्सान को ?यह सब तौरेती वक़ेआत का नाटकीय रूप है.
मेरे भाई क्या कभी आप ने इस कुरआन की हकीक़त जानने की कोशिश की है? जो आप को गुमराह किए हुए है. इसमें कोई भी बात आपको फ़ायदा पहुचने वाली नहीं है, अलावा इसके कि ज़िल्लत को गले लगाने का इलज़ाम तुम पर आयद हो. आखिर ये ओलिमा इसे किस बुन्याद पर कुरआनऐ-हकीम कहते हैं, कोई हिकमत की बात है इसमें? ज़ाती तौर पर हमें कोई ज़िल्लत हो तो काबिले बर्दाश्त है मगर क़ौमी तौर की बे आब्रूई किन आँखों से देखा जाय. जागो, देखो कि ज़माना कहाँ जा रहा हैऔर मुसलमान दिन बदिन पिछड़ता जा रहा है. आज के युग में इसका दोष इस्लाम फरोशों पर जाता है जो आप के पुराने मुजरिम हैं.

''जो लोग कुरआन से मुंह फेरेंगे सो वह क़यामत के रोज़ बड़ा बोझ लादेंगे, वह इस अज़ाब में हमेशा रहेगे. बोझ क़यामत के रोज़ उनके लिए बुरा होगा. जिस रोज़ सूर में फूंक मारी जायगी और हम उस रोज़ मुजरिम को मैदान हश्र में इस हालत में जमा करेंगे कि अंधे होंगे, चुपके चुपके आपस में बातें करेंगे कि तुम लोग सिर्फ दस रोज़ रहे होगे, जिस की निस्बत वह बात चीत करेंगे, उनको हम खूब जानते हैं. जबकि उन सब में का सैबुल राय यूं कहता होगा, नहीं तुम तो एक ही रोज़ में रहे और लोग आप से पहाड़ों के निस्बत पूछते हैं, आप फरमा दीजिए कि मेरा रब इनको बिलकुल उदा देगा, फिर इसको इसको मैदान हमवार कर देगा.जिसमें तू न हम्वारी देखेगा न कोई बुलंदी देखेगा. - - - और उस वक़्त तमाम चेहरे हय्युल क़य्यूम के सामने झुके होंगे. ''
इसके बाद मुहम्मद इसी टेढ़ी मेढ़ी भाषा में क़यामत बपा करते हैं, फरिश्तों की तैनाती और सूर की घन गरज भी होती है और ख़ामोशी का यह आलम होता है कि सिर्फ़ पैरों की आहट ही सुनाई देती है, बेसुर तन की गप जो उनके जी में आता है बकते जाते हैं और वह गप कुरआन बनती जाती है.
ऐसे कुरान से जो मुँह फेरेगा वह रहे रास्त पा जायगा और उसकी ये दुन्या संवर जायगी. वह मरने के बाद अबदी नींद सो सकेगा कि उसने अपनी नस्लों को इस इस्लामी क़ैद खाने से रिहा करा लिया.
सूरह ताहा २० _ आयत (१०१-११२)
इंसान को और इस दुन्या की तमाम मख्लूक़ को ज़िन्दगी सिर्फ एक मिलती है, सभी अपने अपने बीज इस धरती पर बोकर चले जाते हैं और उनका अगला जनम होता है उनकी नसले और पूर्व जन्म हैं उनके बुज़ुर्ग. साफ़ साफ़ जो आप को दिखाई देता है, वही सच है, बाकी सब किज़्ब और मिथ्य है. कुदरत जिसके हम सभी बन्दे है, आइना की तरह साफ़ सुथरी है, जिसमे कोई भी अपनी शक्ल देख सकता है. इस आईने पर मुहम्मद ने गलाज़त पोत दिया है, आप मुतमईन होकर अपनी ज़िन्दगी को साकार करिए, इस अज्म के साथ कि इंसान का ईमान ए हाक़ीकी ही सच्चा ईमन है, इस्लाम नहीं. 
इस कुदरत की दुन्या में आए हैं तो मोमिन बन कर ज़िन्दगी गुज़ारिए,आकबत की सुबुक दोशी के साथ.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 1 April 2016

Soorah Taha 20 Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह ताहा २० 
पहली किस्त 
बहुत से लक़बों (उपाधियों) के साथ साथ तथा-कथित पैगम्बर मुहम्मद का एक लक़ब उम्मी भी है जिसके के लफ़्ज़ी मानी होते हैं अनपढ़ और जाहिल. ये लफ्ज़ किसी फर्द को नफ़ी (न्यूनता की परिधि)में ले जाता है मगर बात मुहम्मद की है तो बात कुछ और ही हो जाती है. 
इस तरह उनके तुफैल में उम्मी शब्द पवित्र और मुक़द्दस हो जाता है. 
ये इस्लाम का खास्सा है. इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में कई लफ्जों आलिमों के साजिशो से अस्ल मानी कुछ के कुछ हो गए हैं जिसे आगे आप देखेंगे. मुहम्मद निरे उम्मी थे, मुतलक जाहिल. क़ुरआन उम्मी, अनपढ़ और अकली तौर पर उजड, मुहम्मद का ही कलाम (वचन) है जिसे उनके गढे हुए अल्लाह का कलाम कहा जाता है. इसको कुराने-हकीम कहा जाता है यानी हिकमत से भरी हुई बातें.
क़ुरआन के बड़े बड़े हयूले बनाए गए, बड़ी बड़ी मर्यादाएं रची गईं, ऊंची ऊंची मीनारें कायम की गईं, इसे विज्ञान का का जामा पहनाया गया, तो कहीं पर रहस्यों का दफीना साबित किया गया है. यह कहीं पर अजमतों का निशान बतलाया गया है तो कहीं पर जन्नत की कुंजी है और हर सूरत में नजात (मुक्ति) का रास्ता, निजामे हयात (जीवन विद्या) तो हर अदना पदना मुसलमान इसे कह कर फूले नहीं समाता, गोकि दिनोरात मुस्लमान इन्हीं क़ुरानी आयतों की गुमराही में मुब्तितिला, पस्पाइयों में समाता चला जा रहा है. आम मुसलमान क़ुरआन को अज़ खुद कभी समझने की कोशिश नहीं करता, उसे हमेशा अपनी माँओं के खसम ओलिमा (धर्म गुरु) ही समझाते हैं.
इस्लाम क्या है? इसकी बरकत क्या है? छोटे से लेकर बड़े तक सारे मुसलमान ही दानिस्ता और गैर दानिस्ता तौर पर इस के झूठे और खोखले फायदे और बरकतों से जुड़े हुए हैं. 
सच पूछिए तो कुछ मुट्ठी भर अय्यार और बेज़मीर मुसलमानों का सब से बड़ा ज़रीया मुआश (भरण पोषण) इस्लाम है जो कि मेहनत कश इसी तबके के अवाम पर मुनहसर करता है यानी बाकी कौमों से बचने के बाद खुद मुसलमान मुसलमानों का इस्तेह्सल (शोषण) करते हैं. 
दर अस्ल यही मज़हब फरोशों का तबका, गरीब मुसलामानों का ख़ुद दोहन करता है और दूसरों से भी इस्तेह्साल कराता है. वह इनको इस्लामी जेहालत के दायरे से बहार ही निकलने नहीं देता.

" ताहा" 
सूरह ताहा २० आयत 1 
यह शब्द निरर्थक है ऐसे शब्दों को क़ुरआनी सन्दर्भ में हुरूफे-मुक़त्तेआत कहते हैं जिसका मतलब अल्लाह ही जाने. ऐसे शब्द सूरह के पहले कभी कभी आते हैं. यहाँ यह एक आयत भी बन गया है अर्थात अल्लाह का एक पैगाम जिसे बन्दे न समजते हुए भी गाया करते हैं. 

"हमने कुरान को आप पर इस लिए नहीं उतरा कि आप तकलीफ उठाएं बल्कि ऐसे शख्स के नसीहत के लए उतारा है कि जो अल्लाह से डरता हो" 
सूरह ताहा २० आयत २-३ 
ऐ अल्लाह ! 
तू अगर वाकई है तो सच बोल तुझे इंसान को डराना भला क्यूं अचछा लगता है ? क्या मज़ा मज़ा आता है कि तेरे नाम से लोग थरथरएं ? गर बन्दे सालेह अमल और इंसानी क़द्रों का पालन करें जिससे कि इंसानियत का हक अदा होता हो तो तेरा क्या नुकसान है? तू इनके लिए दोज्खें तैयार किए बैठा है, तू सबका अल्लाह है या कोई दूसरी शय ? 
तेरा रसूल लोगों पर ज़ुल्म ढाने पर आमादा रहता है. तुम दोनों मिलकर इंसानियत को बेचैन किए हुए हो. 

"क्या आपको मूसा की खबर है? उन्हों ने एक आग देखी, तो घर वालों से कहा तुम ठहरे रहो, मैं ने एक आग देखी है, शायद कोई शोला तुम्हारे लिए ला सकूं और रास्ते का पता मालूम हो सके और जब मूसा आग के पास पहुचे तो अल्लाह ने आवाज़ दी कि ऐ मूसा! तू अपनी जूतियाँ उतार दे. हमने तुझे मुन्तखिब किया है. जो कुछ वह्यी की जा रही है, तू उसे सुन. मैं ही अल्लाह हूँ , मेरे सिवा कोई माबूद नहीं , मेरी ही इबादत किया करो और मेरे नाम की नमाज़ पढ़ा करो. दूसरी बात सुनो बिला शुब्ह क़यामत आएगी. मैं इसको पोशीदा रखना चाहता हूँ, ताकि हर शख्स को उसके किए का बदला मिले." 
सूरह ताहा २० आयत ९-१५ 
जब मुहम्मद को यहूदी मुखबिर से कोई खबर मिलती तो वह अपने कबीलाई माहौल में इसे अल्लाह की वह्यी बना कर पेश करते. मुआमले में कुछ फेर बल कर लेते ताकि बात मुहम्मद की अपनी लगे, वह उसमें नमाज़ ज़कात की बातें बतौर आमेज़िश शामिल कर देते. एक बेवकूफी की बात ज़रूर शामिल करते .... 
देखिए अल्लाह कहता है. 
" दूसरी बात सुनो ! बिला शुब्ह क़यामत ज़रूर आएगी . मैं इसको पोशीदा रखना चाहता हूँ ताकि लोगों को इसका बदला मिल सके." 

"अल्लाह मूसा की लाठी में करामत पेश करता है और गदेली में सफेद दाग जो यदे-बैजा कहा गाया. अल्लाह मूसा को हुक्म देता है कि इन निशानियों को लेके फिरौन के पास जाओ क्यूंकि वह हद से निकल गाया है. 
मूसा कुछ और चाहते हुए अल्लाह से कहते हैं कि वह इनकी ज़बान से लुक्नत (तुतलाहट) हटा दे और मदद के लिए इनके भाई हारून को इनका सहायक बना दे" 
सूरह ताहा २० आयत १५-३६ 
अल्लाह मूसा की दरख्वास्त को मंज़ूर करता है और कहता है,
" हम तो तुम पर और एक बार एहसान कर चुके है कि तुम्हारी माँ को इल्हाम में बतलाया था कि तुम को जल्लादों के हाथों से बचाने के लिए सन्दूक में रखकर दरया में डाल दें. हमने तुम्हारे दिल में डाल दिया था कि तुम हम से रागिब रहो और मेरी निगरानी में परवरिश पाओ. तुम्हारी बहन भागती हुई हमारे पास आई थी कि तुम्हें परवरिश के लिए कुछ करूँ, सो हमने कुछ ऐसी तरकीब किया कि तुम फिर अपनी माँ की परवरिश में चले गए ताकि इनकी आँखें ठंडी हों और तुमने एक शख्स को जान से मार डाला, फिर हमने तुमको ग़मों से नजात दी. और हमने तुमको सख्त मेहनतों में डाला और तुमको तुम्हारे भाई समेत मुअज्ज़ा दिया. जाओ हमारी यद् में सुस्ती मत करो."
सूरह ताहा २० आयत ३७-४२ 
मुहम्मद का जेहनी मेयार इन बातों में निहाँ है कि देखिए
 अल्लाह एहसान भी करता है और 
तरकीब भी भिड़ाता है. 
कितना बड़ा हादसा है जो मुसलामानों के दिल पर काबू किए हुए है. 
वह इन्ही बातों की सुब्ह व् शाम इबादत करते हैं. 
इस कौम की रहनुमाई कोई नहीं कर सकता.
ऐ अल्लाह अगर तू कोई हस्ती है तो हिन्दुस्तान में माओत्ज़े तुंग को भेज. 

मूसा अपने भाई हारुन को लेकर फिरौन के दरबार में पहुँचता है और उससे अपने लोगों को आज़ाद करने की बात करता है. मूसा से फिरौन और उसके जादूगरों से लफ्ज़ी जंग होती है 

"फिर अपने मकर का सामान जमा करना शुरू किया. मूसा ने उन लोगों से फ़रमाया
 " ऐ कमबख्ती मारो अल्लाह तअला पर झूठा इफ्तार मत बांधो, कभी वह तुमको सजा से बिलकुल नेस्त नाबूद न करदे . 
सूरह ताहा २० आयत ६१ 
फिरौनऔर मूसा में जादुई मुकाबले शुरू हो जाते हैं. अल्लाह कभी खुद फिरौन को जादूगर बतलाता है, कभी उसके जादूगरों को. यह तौरेत का मशहूर ज़माना वाक़िया है जिसे कुरआन में मुहम्मद निहायत फूहड़ ढंग से पेश कर रहे हैं . इस नाटक के आखिर में मूसा की लाठी का बड़ा सांप , फिरौन के जादूगरों की रस्सियों के छोटे छोटे साँपों को निंगल जाता है. फिरौन के जादूगर मूसा के क़दमों में गिर कर लिपट जाते हैं और मूसा पर ईमान लाते हैं. मूसा के बतलाए हुए अल्लाह पर ईमान लाते हैं. फिरौन अपने जादूगरों से नाराज़ होकर हुक्म देता है कि इनके हाथ और पैर काट कर इनको पेड़ों पर लटका दिया जाए. "
सूरह ताहा २० आयत ६८-७१ 
यहूदियों की सुनी सुनाई कहानी में मिलावट करके मुहम्मदी अल्लाह दूसरे वाकिआत को आगे बयान करते रहने का वादा करके फिर इस्लामी डफली क़यामत का राग अलापने लगता है..... 
जब सूर फूँका जाएगा और तमाम मुर्दे अपनी अपनी क़ब्रों से बरामद होंगे और आपस में बातें करेंगे . . . 

"जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसे बहिश्तों में दाख़िल कर देगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इसमें रहेंगे , ये बड़ी कामयाबी होगी" 
सूरह ताहा २० आयत ७२-७६ 
ये जुमला मुहम्मदी अल्लाह  का तकिया कल्लम है. 
वर बार उसको दोहराता है. 
मूसा का फिरौन से बनी इस्राईल को आज़ाद कराने, फिर इन्हें दर्याए नील पार कराने और फिरौन को गर्क आब करने, इसके बाद कोहेतूर पर ले जाने और मन व् सलवा बरसाने की बातें दोहराते हुए अल्लाह मूसा को आगाह करता है कि तेरी कौम हद से न गुज़रे .
मूसा कलीम उल्लाह तूर पर अल्लाह के दरबार में वास्ते कलाम पहुँचते हैं तो अल्लाह शिकायत ले बैठता है कि तू जिस अपनी कौम को पीछे छोड़ आया है व एक सामरी के जाल में फँस चुकी है. मूसा रंजीदा हो कर पहाड़ से नीचे उतरता है, कौम पर अपनी खफ्गी का इज़हार करता है . मूसा सामरी से पूछता है 
"बता तेरा मुआमला क्या है? 
वह कहता है कि मैं मुट्ठी भर खाक उठता हूँ और डाल देता हूँ , 
इसनें इसका कोई कमाल छिपा होगा जिससे अवाम मुरीद हो गई होगी?मूसा इसको आगाह करता है कि एक माबूद के सिवा दूसरा कोई काबिले इबादत नहीं. और फिर इसके बाद शुरू हो जाती है तब्लिगे-इस्लाम .
अल्लाह वादा करता है आगे भी ऐसी कहानियाँ सुनाता रहूँगा"
सूरह ताहा २० आयत ७६-१०० 
मुसलमानों! 
तुम जिस कुरआन को वास्ते सवाब पढ़ते हो उसमे तुम्हारा अल्लाह ढंग की कहानी भी नहीं बयान कर पता. बेश कीमत फरमान और एलन तो दूर की बात है. मुहम्मद की आजिज़ करने वाली बकवास को कलाम इलाही समझते हो.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान