Sunday 27 May 2012

Soorah Ambia -21

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अंबिया -२१ 
 
यह रफुगर ओलिमा

लखनऊ के नवाबीन में ये प्रथा हुआ करती थी कि अपने साथ कुछ मुसाहिब (चमचे) रखते जो उनकी बातों को संशोधित और सुधार का काम किया करते. नवाब साहब महफ़िलों में लाफ्फ़ाज़ी करते और वह उनकी बात को रफू करते हुए हाँ में हाँ मिला कर कहते 'यानी नवाब साहब के कहने का मतलब हुआ - - -यह
महफ़िल जमी थी और नवाब साहब अपने शिकार के कारनामें बयान कर रहे थे. फरमाने लगे
'' और मैं ने निशाना लगा कर नीलगाय पर बंदूक दागी, गोली उसके खुर को लगी और उसका जिस्म चीरते हुए आँखों से निकल गई .
लोगों ने कहा ,नवाब साहब ये कैसे हो सकता है कि गोली सीधी जाय और जानवर के जिस्म में जाकर टेढ़ी-मेढ़ी चाल अख्तिअर करे?
मुसाहिब ने फ़ौरन नवाब साहब की बात को रफु किया 'दर अस्ल नीलगाय अपने खुर से अपनी आँख खुजला रही थी, गोली दोनों हिस्सों को ज़ख़्मी करती हुई निकल गई. क़िबला नवाब साहब को मुगालता हुआ कि - - -
महफ़िल ने कहा हाँ यह तो हो सकता है - - -
फिर नवाब साहब शुरू हुए ''कि उड़ते कव्वे को मेरी गोली ने ऐसे भूना कि कबाब बन कर ज़मीन पर गिरा - - -
महफ़िल ने फिर मगर अगर का निशाना साधा तो मुसाहिब ने मोर्चा संभालते हुए कहा,
''दर अस्ल कव्वा अपने चोंच में कबाब लिए हुए उड़ रहा था गोली की आवाज़ से कबाब उसकी चोंच से गिरा था, नवाब साहब को मुगालता हुआ कि कव्वा ही कबाब बन गया.'
ऐसी ही गप नवाब साहब छोड़ते रहे और मुसाहिब रफू करता रहा
नवाब साहब फरमाने लगे '' हम शिकार करते हुए पहाड़ की चोटियों पर पहुँचे तो बारिश शुरू हो गई, गोया क़यामत की बारिश थी, इतनी बरसी इतनी बरसी कि पूरा इलाका पानी से लबालब, शुक्र था कि मैं ऊंची पहाड़ी पर था - - -
फिर महफ़िल ने चूँ-चरा की तो नवाब साहब ने रफु गर की तरफ आँख फेरी, वह तो अपनी नशिस्त छोड़ कर दरवाजे पर खड़ा था, वह वहीं से बोला नवाब साहब! मैं रफु करने की मुलाज़मत करता हूँ, पेवन्द लगाने का नहीं.
कुरान की बातें नवाब साहब की, की हुई बक बक जैसी है और आलिमान दीन उसकी रफु गरी करते हैं, रफू ही नहीं, पेवंद कारी  भी करते हैं. इस्लामी दुन्या में जो आलिम बड़ा रफु गर है वही जय्यद आलिम है. फिर भी अल्लाह की बातों को कहीं कहीं कोई आलिम नहीं समझ सका और पेवंद कारी  की नौकरी से बअज आया, यह कहते हुए कि इसका मतलब अल्लाह बेहतर जनता है.



चलिए मुहम्मदी अल्लाह के खेत में चलें जहाँ एक बड़ी उम्मत चरती है. 
(दूसरी किस्त)

''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने लगे.और हमने इसमें कुशादा रस्ते बनाए ताकि वह लोग मंजिल तक पहुँच सकें और हम ने आसमान को एक छत बनाया जो महफूज़ है. और ये लोग इस से एराज़ किए (मुंह फेरे) हुए हैं. और वह ऐसा है जिसने रात और दिन बनाए, सूरज और चाँद. हर एक, एक दायरा में तैरते है. और हमने आप से पहले भी किसी बशर को हमेशा रहना तजवीज़ नहीं किया. फिर आप का इंतक़ाल हो जाए तो क्या लोग हमेश हमेशा दुन्या में रहेंगे. हर जानदार मौत का मज़ा चक्खेगा और हम तुमको बुरी भली से अच्छी तरह आज़माते हैं. और तुम सब हमारे पास चले आओगे और यह काफ़िर लोग जब आपको देखते हैं तो बस आप से हँसी करने लगते हैं. क्या यही हैं जो तुम्हारे मअबूदों का ज़िक्र किया करते हैं? और यह लोग रहमान के ज़िक्र पर इंकार करते हैं. इंसान जल्दी का ही बना हुवा है. हम अनक़रीब आप को अपनी निशानियाँ दिखाए देते हैं ,पस ! तुम हम से जल्दी मत मचाओ. और ये लोग कहते हैं वादा किस वक़्त आएगा? अगर तुम सच्चे हो, काश इन काफ़िरों को उस वक़्त की खबर होती. जब ये लोग आग को न अपने सामने से रोक सकेंगे न अपने पीछे से रोक सकेंगे. और न उनकी कोई हिमायत करेगा. बल्कि वह उनको एकदम से आलेगी. - - -''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (३१-४०)
देखिए ऊपर शुरू आयत में ही तर्जुमा करने वाले आलिम ने कैसे मुहम्मद की बक बक में पेवन्द लगाया है - - -
मुहम्मद कह रहे है ''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने लगे.''
तर्जुमा करने वाले आलिम ने इसको ब्रेकट में (न) लगा कर मतलब को उल्टा कर दिया है --
''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने (न)लगे.''
अब ऐसी जगह पर ओलिमा आपस में एक दूसरे का विरोध कर करते रहते हैं कि अल्लाह ने पहाड़ इस लिए रखे कि ज़लज़ला की सूरत पैदा होती है और यह भी कि वजन रखने से ज़मीन सधी रहे मगर अस्ल मतलब को ज़ाहिर करने की हिम्मत किसी में नहीं कि ये अल्लाह बने मुहम्मद की ला इल्मी है, क्यूंकि वह उम्मी थे.
इंसान जल्दी का ही बना हुवा है.? क्यूँ क्या जल्दी थी अल्ला मियां को, वह अगर उनका बनाया हुवा है तो फिर उसको मुसलमान बनाने का पापड़ क्यूं वह और उनके रसूल बेल रहे हैं.
ज़मीन पर रस्ते इंसान बनाते हैं, अल्लाह नहीं. इस बात में भी मुहम्मद की उम्मियत हायल है.
मुसलामानों ! आसमान कोई छत नहीं आपकी हद्दे नज़र है. ये लामतनाही है, जिसको जनाब ने सात तबक में सात  मंजिला ईमारत तसव्वुर किया है.
आप पर हंसने वाले काफ़िर थे, न ज़ालिम, वह ज़हीन लोग थे कि ऐसी बातों पर हँस दिया करते थे कि आज जो तिलावत बनी हुई हैं.
मुहम्मद तबीयातन तालिबानी थे, जो दुन्या की आबादी को ख़त्म कर देना चाहते थे, इशारतन वह बतला रहे हैं कि वह अल्लाह से जल्दी बाज़ी कर रहे हैं कि क़यामत क्यूँ नहीं आती.
मुहम्मद का एक यह भी तकिया कलाम रहा है कि किसी आमद को हर बार सामने से बुलाते हैं, फिर पीछे से भी आने का कयास करते हैं.

''आप कह दीजिए कि मैं तो सिर्फ वह्यी (ईश वाणी) के ज़रीए तुम को डराता हूँ और बहरे जिस वक़्त डराए जाते हैं पुकार सुनते ही नहीं और उनको आप के रब के अज़ाब का एक झोंका भी लग जाए तो कहने लगें कि हाय मेरी कमबख्ती हम तो खतावार थे. और क़यामत के रोज़ हम मीज़ने-अज़ल क़ायम करेंगे सो किसी पर असला ज़ुल्म न होगा और अगर राइ के दाने के बराबर होगा तो हम इसको हाज़िर कर देंगे.और हम हिसाब लेने वाले काफी हैं.- - - (इब्राहीम की अपने बाप से तू तू मैं मैं, जैसे पहले आ चुका है, इब्राहीम अपने बाप से कहता है) - - -और खुदा की क़सम मैं तुम्हारे इन बुतों की गत बना दूंगा, जब तुम पीठ फेर के चले जाओगे. और उन्हों ने इन के टुकड़े टुकड़े कर दिए बजुज़ एक बड़े बुत के (लोगों के गुस्से को देखते ही इब्राहीम झूट बोलते हैं कि ये हरकत इस बड़े बुत की है इससे पूछ लो, - - - झूट काम नहीं आता ,पंचायत इनको आग में झोंक देती है जो अल्लाह की मुदाखलत से ठंडी हो जाती है) ''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (४५-७०)
अल्लाह के कलाम में ? पैगम्बर मुहम्मद की विपदा बयान होती है, दीवाना अल्लाह उनके मुँह से बोलता है कि वह ईशवानी द्वारा लोगों को डराता है मगर वह बहरे काफ़िर बन्दे उसकी सुनते ही नहीं, धमकता है कि अगर एक झोंका भी मेरे अज़ाब का उन पर पड़ जाय तो उनको नानी याद आ जाय. अल्लाह कहता है क़यामत के दिन वह तमाम लोगों के कर्मों का लेखा-जोखा पेश करेगे. एक तरफ कहता है कि किसी पर रत्ती भर अत्याचार न होगा, दूसरी तरफ धमकता है, ''तो हम इसको हाज़िर कर देंगे.और हम हिसाब लेने वाले काफी हैं.- - -''
मूर्ती तोड़क मुहम्मद का अल्लाह भी उन्हीं की ज़बान में खुद अपनी क़सम खाकर कहता है , ''और खुदा की क़सम मैं तुम्हारे इन बुतों की गत बना दूंगा, जब तुम पीठ फेर के चले जाओगे'' क्या डरपोक अल्लाह है कि इब्राहीम के बाप आज़र के सामने उसकी हिम्मत नहीं कि बुतों को हाथ भी लगाए, मुन्तजिर है कि यह हटें तो मैं बुतों की दुर्गत कर दूं. मुहम्मद बड़े बुत को बचा कर उससे गवाही की दिल चस्प कहानी गढ़ते हैं जो इस्लामी बच्चे अपने बच्चों के कानों में पौराणिक कथा की तरह घोल देते हैं..
मुसलामानों!
 क्या तुम इन्हीं बेवज्न कलाम को अपनी नमाज़ों में दोहराते हो? ये बड़े शर्म की बात है.
 जागो! खुदा के लिए जागो!!
''और दाऊद और सुलेमान जब दोनों किसी खेत के बारे में फैसला करने लगे जब कि कुछ लोगों की बकरियाँ रात के वक़्त उसको चर गईं और हम उस फैसले को जो लोगों के मुतअल्लिक हुवा था, हम देख रहे थे सो हमने उसकी समझ सुलेमान को देदी और हमने दोनों को हिकमत और इल्म अता फ़रमाया और हम ने दाऊद के साथ तबेअ कर दिया था पहाड़ों को कि वह तस्बीह किया करते थे और परिंदों को हुक्म करने वाले हम थे. और इनको ज़ेरह (कन्वच) की सनअत तुम लोगों के वास्ते सिखलाई ताकि वह लड़ाई में तुम लोगों को एक दूसरे की ज़द से बचाए तो तुम शुक्र करोगे भी? और हम ने सुलेमान अलैहिस सलाम का जोर की हवा को ताबे बना दिया था''.
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (71-81)
क्या पुर मजाक बात है कि दाऊद जिसने चोरी और डाके में अपनी जवानी गुजारी वह अल्लाह की हिकमत से इस मुक़ाम तक पहुंचा कि पहाड़ उसके साथ बैठ कर माला फेरने लगे. पहाड़ कैसे बैठते, उठते और तस्बीह भानते होगे बात भी गौर तलब है जिसे मुहम्मदी अल्लाह ही जाने जो अपने पुश्त से घोडा खोल सकता है. मुहम्मदी अल्लाह ऐसा है कि पंछियों को हुक्म देता है कि इन के मातहेत रहें. यहाँ तक कि हवाओं तक पर भी इन बाप बेटों की हुक्मरानी हुवा करती थी. सवाल उठता है कि जब उन हस्तियों को अल्लाह ने इतनी पवार ऑफ़ अटर्नी देदी थी तो मुसलामानों के आखरुज़ज़मा को क्यों फटीचर बना रक्खा है?
मेरे नादाँ भाइयो !
 कुछ समझ में आता है कि कुरानी इबारतें क्या मुक़ाम रखती हैं इस तरक्की याफ्ता समाज में. क्यूँ अपनी भद्द कराने की ज़िद पर अड़े हुए हो. हिदुस्तान में हिदुत्व का देव है, जो तुम को बचाए हुए है, अगर ये न होता तो तुम खेतों में चरने के लिए भेड़ बकरियों की तरह छोड़ दिए जाते और तुम्हारा अल्लाह आसमान पर बैठा टुकुर टुकुर देखता रहता, किसी मुहम्मद की गवाही देने के लिए. कुरान पूरी की पूरी बकवास है जब तक इसके खिलाफ़ खुद मुसलमान आवाज़ बुलंद नहीं करते तब तक हिंदुत्व का भूत भी ज़िदा रहेगा. जिस दिन मुसलमान जग कर मैदान में आ जाएँगे, हिदुत्व का जूनून खुद बखुद काफुर हो जायगा फिर भारत में बनेगा एक नया समाज जिसका धर्म और मज़हब होगा ईमान.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 21 May 2012

सूरह अंबिया -२१ परा १७ 1st (1-30)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

  सूरह अंबिया -२१ परा १७
1st (1=30) 
चलिए देखें उस डरावने बगड़बिल्ला को जो मुसलमानों को डरा डरा कर अल्लाह बना हुवा है- - -
कुछ मुसलमानों का मानना है कि इंसान के दिल में अगर खौफे-खुदा न रहे तो वह हैवान हो जायगा और माँ बहन बेटियों की तमाज़त खो देगा। आधी दुन्या जो नॉन बिलिवेर्स हैतो क्या वह सब ऐसी ही हैहाँ मुहम्मद तबअ रखने वाले लोग ऐसे ज़रुर हो सकते हैं जिनके लिए गढ़ित अल्लाह सब रिश्तों की छूट देता हैया उन्हें अल्लाह मानने वाले लोग।
मुहम्मद ने इंसान की जिस सब से बड़ी कमजोरी पर अपनी गिरफ़्त मज़बूत की हैवह है अल्लाह का डरवह कुरआन में बार बार कहते हैं कि वह अल्लाह की तरफ से तुम को डरा रहे हैं और मुसलमान उनके झूट पर रोज़े हश्र और दोज़ख का यक़ीन कर लेता हैउसको कैसे समझाया जाए कि दोज़ख और जन्नत सब उसके दिलो-दिमाग में हैं और कायनात में कहीं नहीं हैंउसके बुरे और अच्छे फ़ेल ही उसको दोज़खी और जन्नती बनाए रहते हैंकिसी फ़ेल या अमल से पहले खूब सोच समझ लेना चाहिए कि इसका रद्दे अमल दूसरों के लिए नुक्सान दह या फायदे मंदबस वह हर अमल आपका रहनुमाई करता है कि आप इस वक़्त दोज़ख में जाने वाले है या जन्नत मेंयह ख़याल दिमाग से निकाल दीजिए कि ज़माना क्या कहेगाज़माना तो ज़माना हैउसके कहने पर मत जाइएजो समाज में कमजोरियां हैं उनका डट कर विरोध करिएएक दिन आएगा कि लोग आपके साथ होंगे और आप खुद को जन्नती महसूस करेंगे।
चलिए डरपोक बने समाज को जगाया जाए कि अल्लाह किसी बनिए का मुनीम नहीं होता जो अपनी मख्लूक़ के फ़ेलों का बही खता रक्खेइस कायनात में वह हर शय में विराजमान है और हर शय उसके बनाए नियमानुसार चलती हैकि सदाक़त जन्नत के दरवाजे पर बैठी आप का इंतज़ार कर रही है और दारोग और झूट दोज़ख के दर पे - - - 
''इन लोगों से इनका हिसाब नजदीक आ पहुँचा और ये गफ़लत में एराज़ (विमुखताकिए हुए हैंइनके पास इनके रब से जो नसीहत ताज़ा आती हैये इसको ऐसे सुनते हैं कि उनके साथ हँसी करते हैंउनके दिल मुतवज्जो नहीं होते और ये लोग यानी ज़ालिम लोग चुपके चुपके सरगोशी करते हैं कि ये तुम जैसे एक आदमी हैंतो क्या तुम भी जादू के पास जाओगेहालाँकि तुम जानते हो कि पैगम्बर ने फ़रमाया कि मेरा रब आसमान में या ज़मीन में सब जानता हैऔर वह खूब सुनने वाला और जानने वाला हैबल्कि कहा कि परेशान खयालात हैं। बल्कि इन्हों ने इसको तराश लिया हैबल्कि यह तो एक शायर हैंतो इसको चाहिए कि हमारे पास कोई ऐसी निशानी लावें जैसे पहले लोग रसूल बनाए गएइनसे पहले कोई बस्ती वाले जिनको हमने हलाक़ किया हैईमान नहीं लाए तो क्या यह लोग ईमान ले आवेंगे और इस से पहले सिर्फ आदमियों को ही पैगम्बर बनाया जिनके पास हम वह्यी को भेजा करते थेसो अगर तुमको मालूम न हो तो अहले किताब से दरियाफ़्त कर लोऔर हमने इन के ऐसे जुस्से (शरीरनहीं बनाए थे जो खाना न खाते हों और वह हमेशा रहने वाले नहीं हुएफिर हमने उन से जो वअदा किया था उसको सच्चा कियायानी उनको और जिन जिन को मंज़ूर हुआहमने नजात दीऔर हद से गुजरने वाले को हलाक कियाहम तुम्हारे पास ऐसी किताब भेज चुके हैं कि जिसमें नसीहत हैक्या फिर भी तुम नहीं समझते''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ आयत (-१०)
वह कथित काफ़िर और जाहिल आज के तालीम याफ़्ता लोगों से कुजा बेहतर थे जो कुरआन को उस दीवाने पैगम्बर का ख्याल--परेशान कहते थेकैसी माकूल बात हैजो आज भी लागू होती हैमुहम्मद अपनी बातों को तारीफ़ के सन्दर्भ में जादू जैसी पुर कशिश बतलाते हैंनहीं जानते कि जादू झूट होता हैमुहम्मदी अल्लाह की तमाम वाणी मज़ाक के स्तर पर भी नहीं बल्कि मज्मूम (निन्दितहैंइन बातों को कैसे किसी अल्लाह का कलाम माना जा सकता हैमुसलामानों को इनसे पीछा छुड़ाने में शर्म कैसीये समझदारी और फ़ख्र का क़दम होगा.

''बहुत सी हस्तियाँ जहाँ के रहने वाले ज़ालिम थेगारत कर दीं और उसके बाद दूसरी कौम पैदा कर दींसो जब उन्हों ने हमारा अज़ाब आता देखाइस से भागना शुरू कियाभागो मत और अपने सामान ऐश की तरफ और अपने मकानों की तरफ वापस चलोशायद तुम से कोई पूछे पाछे,. वह लोग कहने लगे हायहमारी कम्बख्तीबेशक हम लोग ज़ालिम थेसो उनकी यही पुकार रहीहत्ता कि हमने उनको ऐसा कर दिया जिस तरह खेती कट गई होऔर आग ठंडी हो गईऔर हमने आसमान और ज़मीन को इस तरह नहीं बनाया कि हम कोई फालतू काम कर रहे होंअगर हमको मशगला ही बनाना मंज़ूर होता तो हम खास अपने पास की चीजों को मशगला बनातेअगर हम को ये करना होताबल्कि हम हक बात को बातिल पर फ़ेंक मारते हैं,. सो वह इस का भेजा निकाल देता है.सो वह दफअतन जाता रहता हैऔर तुम्हारे लिए ये बड़ी खराबी होगी जो तुम गढ़े हो और जितने कुछ आसमानों और ज़मीन में हैसब इसी के हैं और जो उसके नज़दीक हैंवह उस से आर नहीं करते.और न झुकते हैंबल्कि शबो रोज़ तस्बीह करते हैं,  मौकूफ नहीं करते हैं''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (११-२०)
यह मुहम्मदी अल्लाह मुहम्मद के कठमुल्ला जैसे दिमाग की पैदावार हैपच्चीस साल की उम्र तक मक्कियों की भेड़ बकरियां चराने के दरमियान वह भेड़ बकरियों को साधते और सोचते रहे कि इनकी तरह ही आदमी भी इस धरती पर मौजूद हैं क्यूँ न उनको चराया जाएऔर बेवकूफ भेड़ बकरियों जैसा दिमाग रखने वाले दुन्या में उनको भरे पड़े मिलेमाँ की उम्र वाली खदीजा ने इनको टुकड़े डाले और यह उसके पालतू बन गएफिर क्या था गारे-हरा में बैठ कर पंद्रह सालों तक मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ते रहे और मंसूबा बंदी करते रहेचालीस सालों में एक जाहिल जट ने पैगम्बरी का एलान कर दियाईसा और मूसा के बराबर होने का मौक़ा मुनासिब था और अपनी उम्मियत को उरूज पर रखते हुए तजुर्बा किया किए और बन बैठे भेड़ बकरियों नुमा उम्मत के पैगम्बरआखुज्ज़मा - . कई हदीसें गवाही देती है कि मुहम्मद तबीयतन ज़ालिम थेइज्ज़त दार खातून का हाथ काट डाला मअमूली सी चोरी के इलज़ाम मेंअपने सामने दो वफ़ादार और बाकिरदार जोड़े को संगसार करते हुए जिंदा दफन करायाऐसी एक नहीं सैकड़ों मिसालें हैंअपने ही तरह ज़ालिम अल्लाह को मुहम्मद ने क़ायम किया।
साजगारे-कायनात कहता है कि उसे मशगला मंज़ूर होता तो अपने आस-पास ही करतादेखिए कि अल्लाह भागते हुए लोगों को ललकारता हैभागो मतमेरे ज़ुल्म से भाग न सकोगेवह अपने बन्दों को जला कर ही अपने ज़ुल्म की आग को ठंडी बतलाता हैउनकी बसी बसी दुन्या को वीरान करके कटे हुए खेत कि तरह कर देता हैहद तो ये है  कि वह कसाइयों की तरह बन्दों के भेजे भी खोल देता हैकहता है शबो रोज़ तस्बीह किया करोसोचो कि अगर शबो रोज़ तस्बीह करोगे तो मेहनत और मशक्क़त करके अपने बच्चों का पेट कैसे भरोगे?
मुसलमानोंक्या तुम फिर भी ऐसे अल्लाह को पसंद करोगे जिसे फ़ासिक़ मुहम्मद ने गढ़ा हो?
''क्या बावजूद दलायल के उन लोगों ने खुदा के सिवा किसी और को माबूद बना रक्खे हैं - - - और हमने आपसे पहले कोई ऐसा पैगम्बर नहीं भेजा जिसके पास हमने ये वह्यी न भेजी हो कि मेरे सिवा कोई माबूद नहींपस मेरी इबादत किया करो. - - - वह जानते हैं कि अल्लाह तअला उनके अगले और पिछले अहवाल को जनता है और बजुज़ उसके जिसके लिए अल्लाह तअला की मर्ज़ी हो और किसी की सिफ़ारिश नहीं कर सकतेऔर सब अल्लाह तअला की मौजूदगी से डरते। इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और जमीन बंद थेफिर हमने अपनी कुदरत से दोनों को खोल दिया और हमने पानी से हर जानदार चीज़ को बनायाक्या फिर भी ईमान नहीं लाते ''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (२१-३०)
उस अल्लाह पर लअनत है जो अपने मुँह से कहता हो कि मैं ही इबादत के लायक हूँ,तुम मेरी इबादत ही किया करोवह टुच्चा और खुद नुमाई करने वाला अल्लाह तुम्हारा मालिके-कायनात हैतो यह तुम्हारे लिए शर्म की बात होनी चाहिएजहिले-मुतलक की दलील पर गौर हो कि ''क्या इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और जमीन बंद थेफिर हमने अपनी कुदरत से दोनों को खोल दिया'' जैसे कि मुस्लिमों को इसका इल्म रहा हो। मुसलमान इस खुलासे को पाकर फूले नहीं समातेउनसे बेहतर काफ़िर हैं जो इनका मज़ाक उड़ाते हैं।
मुसलामानोंसिर्फ ये मुल्ला और मोलवी ही नहीं दूसरे फ़िरके के दुष्ट प्रकृति के लोग भी नहीं चाहते कि तुम बेदार हो सकोतुमको मुसलमान बना कर रखने में ही उनका हित निहित हैतुम अगर जग गए तो उन्हें अच्छे और मेहनती मज़दूर मिस्त्री कहाँ मिलेंगेअच्छे दस्त कर मुसलमानों में ही ज़्यादा पाए जाते हैंक्या कभी सोचा है कि ऐसा क्यूंइस लिए कि जिन बच्चों में पढ़ लिख कर इंजीनियरडाक्टरकेमिस्ट और साइंटिस्ट बनने कि सलाहियत होती है मगर वह उसकी तालीम से महरूम रहते हैतो हुनर में अपनी सलाहियत का मज़हिरा करते हैंमुल्ला बार बार दोहराते हैं कि कुरआन कहता है''  इल्म हासिल करना है तो चीन तक जाना पड़े तो जाओ'', तो चीन में क्या इस्लामी अल्लाह के मुताबिक तालीम तब थीया अब है। तुम बेदार हुए तो उनकी सनअतों का क्या होगा जो तुम्हारे लिए वज़ू बनाने और इस्तेंजा पाक (लिंग-शोधनकरने का टोटी दार लोटा बनाते हैंतहमदेंटोपियाँपोशाकें और खिज़ाब वगैरा बनाते हैंबड़ी दूकानों और सलाटर हाउसों के लिए कर्मीं कहाँ होंगेहत्ता कि तुम्हारे कुरआन की इशाअत और तबाअत भी उन्हीं के हाथ है.
नवल किशोर प्रेस का नाम सुना हैतुम्हारी सभी दीनी किताबों की बरकतें पचास साल तक उन्हीं के हक में गई हैगैर मुसलामानों की कंज्यूमर सेंटर तुम्हारी इस दीनी जेहालत पर ही क़ायम हैवह तो तुमको क़ायम रखना ही चाहेंगे
कुरआन बार बार तुम्हारी बदहाली और काफिरों की खुशहाली की वकालत करता है क्यूंकि तुम्हारी पूँजी तो ऊपर जमा हो रही है.
 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 13 May 2012

रूरह ताहा २० 3rd

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


''और हमने इसी तरह उसको अरबी कुरआन नाज़िल किया है और हमने उसमें तरह तरह की चेतावनियाँ दी हैं. ताकि वह लोग डर जाएँ या यह उनके लिए किसी कद्र समाझ पैदा कर दे. - - - और आप दुआ कीजिए कि ऐ मेरे रब मेरा इल्म बढ़ा दीजिए. और इस से पहले हम आदम को एक हुक्म दे चुके थे, सो उनसे गफ़लत हो गई हमने इन में पुखतगी न पाई, जब कि हमने फरिश्तों को इरशाद फ़रमाया था कि आदम को सजदा करो. - - - शुरू हो जाती है आदम और इब्लीस की दास्तान जो कुरआन में बार बार दोहराई गई है.
रूरह ताहा २० _ आयत (११३-१२३)
मुहम्मद बार बार कहते हैं कि वह क़यामत की (मुख्तलिफ ड्रामे बाज़ी करके) लोगों को डरा रहा हूँ, डराने वाला ज़ाहिर है झूठा होता है, मुसलमान इसी बात को ही अगर समझ लें तो उनकी इसमें बेहतरी है, मगर इतना ही काफी नहीं है, क्यूं कि उम्मी के पास शब्द भंडार नहीं थे कि वह ''डराने'' की जगह आगाह या तंबीह लफ़्ज़ों को अपने कलाम में लाते. इस से साबित होता है कि मुहम्मद अव्वल दर्जे के फ़ासिक़ और दरोग़ गो थे. कुरआन के एक एक हर्फ़ झूठे हैं जब तक इस बात पर मुसलमान ईमान नहीं लाते, वह सच्चे मोमिन नहीं कहलाएंगे.
कुरआन अरबी में है, मुनासिब था कि ये अरबियों तक सीमित रहता, वह रहते कुँए के मेंढक, मगर यह तो तलवार के ज़ोर और ओलिमा के प्रोपोगंडा से पूरी दुन्या में मोहलिक बीमारी बन कर फ़ैल गया. हमारे पूर्वजों के वंशजों पर इसका कुप्रभाव ऐसा पड़ा कि अपने रंग में रंगे भारत टुकड़ों में बट गया, अफगानिस्तान में शांति प्रिय बुद्धिस्ट तालिबानी बन गए, आर्यन की मुक़द्दस सरज़मीन नापाक(किस्तान) हो गई, साथ साथ आधा बंगाल भी इस्लाम के भेट चढ़ गया. अगर इस्लाम का स्तित्व न होता तो भारत हिंदुत्व ग्रस्त कभी भी न होता, कोई महान ''माओज़े तुंग'' यहाँ भी पैदा होता जो धर्मों की अफीम से भारत को मुक्त करता और आज हम चीन से आगे होते.
मुसलमान कौम, कौमों में रुसवाई और ज़िल्लत उठा रही है, इबादत और दुवाओं के फ़रेब में आकर. मुन्जमिद कौम की कोड़ों की मार और संगसारी सिंफे-नाज़ुक पर, ज़माना इनकी तस्वीरें देख रहा है, यह ओलिमा अंधे हो कर इस्लाम की तबलीग में लगे हुए है क्यूंकि मुसलामानों की दुर्दशा ही इनकी खुराक है.
''रोज़-हश्र अल्लाह गुनेहगार मुर्दों को कब्र से अँधा करके उठाएगा और कहेगा कि तूने मेरे हुक्म को नहीं, मैं भी तेरे साथ कोई रिआयत नहीं करूंगा. अल्लाह कहता है क्या इस से भी लोगों को इबरत नहीं मिलती कि इससे पहले कई गिरोहों को हमने हालाक कर दिया, (मूसा द्वारा बर्बाद और वीरान की गई बस्तियों का हवाला देते हुए) कहता कि क्या इनको वह दीखता नहीं कि यहाँ लोग चलते फिरते थे. मुहम्मद समझाते हैं कि अगर अल्लाह ने अज़ाब के लिए एक दिन मुक़ररर न किया होता तो अजाब आज भी नाज़िल हो जाता. अल्लाह बार बार मुहम्मद को तसल्ली देता है कि आप सब्र कीजिए जल्दी न मचाइए और दुखी मत होइए. अपने रब की हम्द के साथ इसकी तस्बीह कीजिए. ख़बरदार! खुश हल लोगों की तरफ नज़र उठा कर भी न देखिए कि वह उनके साथ मेरी आज़माइश है. आप के रब का इनआम तो आखरत है. समझाइए अपने साथियों को कि नमाज़ पढ़े, और खुद भी पाबन्दी रखिए. अल्लाह कहता है - - - 
''हम आप से मुआश कमवाना नहीं चाहते मुआश तो आप को हम देंगे.और बेतर अंजाम तो परहेज़ गारी है.'' (2३०)
 अवाम जब मुहम्मद से पैगम्बरी की कोई निशानी चाहते हैं तो जवाब होता है, पहले के नबियों और उन पर उतरी किताबों की बातें क्या नहीं कान पडीं. कहते हैं हम सब आक़बत की दौड़ में हैं देखना है कि कौन राहे रास्त पर है किसको मंजिले मक़सूद मिलती है.
रूरह ताहा २० _ आयत (११४-२३५)
इतना ज़ालिम अल्लाह ? अगर अपने बन्दों को अँधा कर के उठाएगा तो वह मैदाने-हश्र में पहुचेंगे कैसे? इस क़यामती ड्रमों ने तो मुसलमानों को इतना बुज़दिल बना दिया है कि वह दुन्या में सबसे पीछे खड़े होकर अपने अल्लाह से दुआओं में मसरूफ हैं, उनके अक्ल में ये बात नहीं घुसती कि दुआ का फ़रेब इनको पामाल किए हुए है.
मुसलमानों! तुमहारी खुशहाली न अल्लाह को गवारा है, न तुमहारे मफरूज़ा पैगम्बर को, न इन हरम खोर इस्लामी एजेंटों को .
देखो आँखें खोल कर तुम्हारे अल्लाह को अपनी मशक्क़त से रोज़ी रोटी गवारा नहीं? वह अपने रसूल से कहता है,
''हम आप से मुआश कमवाना नहीं चाहते मुआश तो आप को हम देंगे.और बेतर अंजाम तो परहेज़ गारी है.'' (१३०)
तरक्की की जड़ है अनथक मेहनत मगर इस्लाम में इसकी तबलीग कहीं भी नहीं है, जंगों से मिला माले गनीमत जो मुयस्सर है.
मुहम्मद फरमाते हैं - - -
'' अम्लों में तीन अमल अफज़ल हैं -(हदीस-बुखारी २५)
* १-अल्लाह और उसके रसूल पर इमान रखना.
* २-अल्लाह की रह में जेहाद करना.
* ३- हज करना.
देखें कि बेअमली को वह अमल बतलाते है. १-ये आस्था है, अमल या कर्म नहीं.
जेहाद ही को मुहम्मद ज़रीआ मुआश कहते है. कई हदीसें इसकी गवाह हैं.
तीर्थ यात्रा भी कोई अमल नहीं अरबियों की परवरिश का ज़रीआ मुहम्मद ने कायम किया है.
मुसलमानों !
मेरी तहरीर में आपको कहीं भी कोई खोट नज़र आती है? मेरे इन्केशाफत (उदघोषण) में कहीं भी कोई ऐसा नुक्ता-ऐ-रूपोश आप पकड़ पा रहे हैं जो आप के खिलाफ हो? हम समझते हैं कि मेरी बातों से आप परेशान होते होंगे और दुखी भी. मेरी हक़ गोई आपको मजरूह  कर रही है, ज़ाहिर है आपरेशन में कुछ तकलीफ तो होती है. मैं क़ुरआनी मरज़ से आपको नजात दिलाना चाहता हूँ, अपनी नस्लों को मोमिन की ज़िदगी दीजिए, ज़माना उनकी पैरवी में होगा, फितरत के आगोश में बेबोझ आबाद होंगे।

मोमिन को समझने की कोशिश कीजिए.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 12 May 2012

आगाही (ख़ास मज़मून)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


मैं बार बार मुसलमानों को आगाह कर रह हूँ कि इस्लाम को तर्क करके ईमान दार मोमिन बन जाओ. हिम्मत करके मुस्लिम से मोमिन हो जाओ.
फिर आगाह करता हूँ कि ५० साल के अन्दर अन्दर ऐसा वक़्त आने वाला है कि पूरी दुन्या में मुसलामानों का जीना मुश्किल हो जायगा. उस वक़्त हमारे सामने मौत होगी या फिर ज़िल्लत भरा धर्मांतरण यानी दो नंबर के बशिदे. हर ग़ैर मुस्लिम मुल्क के मुस्लिम बशिदे पर उनके ही मुल्क में उनके लिए जम्हूरियत के मअनी बदल जाएँगे. गैर मुस्लिम के लिए जम्हूरियत कुछ होगी और मुसलमानों के लिए कुछ. मुसलमानो पर जज़िया ठोका जाएगा, जैसे माज़ी में मुसलामानों ने गैर मुस्लिम पर लागू किया था.
मुसलामानों के मरकज़ में सूरत हाल नाकाबिले बयान होगी . मक्का मदीना की सभी इस्लामी नुकूश काबा से लेकर मस्जिएद नबवी तक बमों के ज़रिए उड़ा दिए जाएगे. मुहम्मदी नस्ल और उस वक़्त के उनके हामियों पर जीना हरम हो जाएगा जन्हों ने १४ सौ सालों पहले मक्का और मदीना में बसे यहूदियों और ईसाइयों को तलवार के जोर पस मुसलमान कर लिया था. 
अमरीका योरोप और इनके हिमायती मुल्क एक गुट बनाएँगे और पूरी दुन्या को मजबूर कर देंगे कि अपने अपने मुल्कों में बसे मुसलमनो पर दायरा तंग कर दें. और वह हक़ बजनिब होंगे कि मुसलमान कल भी दुश्मने-इंसानियत थे और आज भी दुश्मने इन्सानिता हैं. क्योकि हर मुसलमान अन्दर से तालिबानी होता है, और इनमें ही, जो ज़रा वसीउन नज़र है , उसको भी तालिबानी मुस्लिम अपना दुश्मन समझते है.
हमारे मुल्क हिदुस्तान में आमिर खान, शाहरुख़ खान, सलमान खान और ए पी जे अब्दुल कलाम जैसे लोग सुर्कुरू होंगे जिन्हों ने इन्कलाब के क़ब्ल ही अपनी पहचान बना ली है.
आज की खबर हमारी आगाही के के गवाह हैं. हम इसकी एक झलक पेश कर रहे हैं. . . .

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 6 May 2012

Soorah Taha 20 2nd

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
रूरह ताहा २०

(दूसरी किस्त)


नया एलान  

ज़िन्दगी एक ही पाई, ये अधूरी है बहुत, 
इसको गैरों से छुड़ा लो, ये ज़रूरी है बहुत. 
इसको जीने की मुकम्मल हमें आज़ादी हो, 
इसको शादाब करें, इसकी न बर्बादी हो. 
इसपे वैसे भी मुआशों की मुसीबत है बहुत, 
तन के कपड़ों की, घर व् बार की कीमत है बहुत. 
इसपे क़ुदरत के सितम ढोने की पाबन्दी है, 
मुल्की क़ानून की, आईन की ये बन्दी है. 
बाद इन सबके, ये जो सासें बची हैं इसकी, 
उसपे मज़हब ने लगा रक्खी हैं मुहरें अपनी. 

खास कर मज़हब-ए-इस्लाम बड़ा मोहलिक है, 
इसका पैगाम ग़लत, इसका गलत मालिक है. 
दीन ये कुछ भी नहीं, सिर्फ़ सियासत है ये, 
बस ग़ुलामी है ये, अरबों की विरासत है ये. 
देखो कुरान में बस थोड़ी जिसारत   करके, 
तर्जुमा सिर्फ़ पढो, हाँ , न अक़ीदत करके. 
झूट है इसमें, जिहालत हैं रिया करी, 
बोग्ज़ हैं धोखा धडी है, निरी अय्यारी है. 
गौर से देखो, निज़ामत  की निज़ामत है कहाँ? 
इसमें जीने के सलीके हैं, तरीक़त है कहाँ? 
धांधली की ये फ़क़त राह दिखाता है हमें, 
गैर मुस्लिम से कुदूरत ये सिखाता है हमें. 
जंगली वहशी कुरैशों में अदावत का सबब, 
इक कबीले का था फितना, जो बना है मज़हब. 
जंग करता है मुस्लमान जहाँ पर हो सुकून, 
इसको मरगूब जेहादी गिजाएँ, कुश्त व् खून. 
सच्चा इन्सान मुसलमान नहीं हो सकता, 
पक्का मुस्लिम कभी इंसान नहीं हो सकता. 
सोहबत ए ग़ैर से यह कुछ जहाँ नज़दीक हुए, 
धीरे धीरे बने इंसान, ज़रा ठीक हुए. 

इनकी अफ़गान में इक पूरी झलक बाकी है, 
वहशत व् जंग व् जूनून, आज तलक बाक़ी है. 
तर्क ए इस्लाम का पैगाम है मुसलमानों ! 
वर्ना, ना गुफ़तनी अंजाम है मुसलमानों ! 
न वह्यी और न इल्हाम है मुसलमानों ! 
एक उम्मी का बुना दाम है मुसलमानों ! 
इस से निकलो कि बहुत काम है मुसलमानों ! 
शब् है खतरे की, अभी शाम है मुसलमानों ! 
जिस क़दर जल्द हो तुम इस से बग़ावत कर दो. 
बाकी इंसानों से तुम तर्क ए अदावत कर दो. 
तुम को ज़िल्लत से निकलने की राह देता हूँ, 

साफ़ सुथरी सी तुम्हें इक सलाह देता हूँ. 
है एक लफ्ज़ इर्तेक़ा, अगर जो समझो इसे, 
इसमें सब कुछ छुपा है समझो इसे. 
इसको पैगम्बरों ने समझा नहीं, 
तब ये नादिर ख़याल था ही नहीं. 
इर्तेक़ा नाम है कुछ कुछ बदलते रहने का, 
और इस्लाम है महदूदयत को सहने का. 
बहते आए हैं सभी इर्तेक़ा की धारों में, 
ये न होती तो पड़े रहते अभी ग़ारों में. 
हम सफ़र इर्तेक़ा के हों, तो ये तरक्क़ी है, 
कायनातों में नहीं ख़त्म, राज़ बाकी है. 

"सितारों के आगे जहाँ और भी है,
अभी इश्क के इम्तेहान और भी हैं"

तर्क ए इस्लाम का मतलब नहीं कम्युनिष्ट बनो, 
या कि फिर हिन्दू व् ईसाई या बुद्धिष्ट बनो, 
चूहे दानों की तरह हैं सभी धर्म व् मज़हब. 
इनकी तब्दीली से हो जाती है आज़ादी कब? 
सिर्फ़ इन्सान बनो तर्क हो अगर मज़हब, 
ऐसी जिद्दत हो संवरने की जिसे देखें सब. 
धर्म व् मज़हब की है हाजत नहीफ़ ज़हनों को, 
ज़ेबा देता ही नहीं ये शरीफ़ ज़हनो को. 
इस से आज़ाद करो जिस्म और दिमागों को. 
धोना बाकी है तुन्हें बे शुमार दागों दागों को. 

सब से पहले तुम्हें तालीम की ज़रुरत है, 
मंतिक व् साइंस को तस्लीम की ज़रुरत है. 
आला क़द्रों की करो मिलके सभी तय्यारी, 
शखसियत में करें पैदा इक आला मेयारी. 
फिर उसके बाद ज़रुरत है तंदुरुस्ती की, 
है मशक्क़त ही फ़कत ज़र्ब, तंग दस्ती की. 
पहले हस्ती को संवारें, तो बाद में धरती, 
पाएँ नस्लें, हो विरासत में अम्न की बस्ती, 
कुल नहीं रब है, यही कायनात है अपनी, 
इसी का थोडा सा हिस्सा हयात है अपनी.. 
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आइए ले चलते हैं आपको मुहम्मदी अल्लाह के ज़टल क़ाफ़िए पर - - -
रूरह ताहा २०

मूसा जब अल्लाह के हुज़ूर में हाज़िर होते हैं तो अल्लाह उनसे पूछता है कि
 ''ऐ मूसा आपको अपनी कौम से जल्दी आने का क्या सबब हुवा ? उन्हों ने जवाब दिया वह लोग यहीं तो हैं, मेरे पीछे और मैं आपके पास जल्दी से चला आया कि आप खुश होंगे. इरशाद हुवा कि हमने तो तुम्हारी कौम को तुम्हारे बाद मुब्तिला कर दिया और उनको सामरी ने गुमराह कर दिया, ग़रज़ मूसा ग़ुस्से और रंज से भरे हुए अपनी कौम की तरफ वापस आए, फरमाने लगे, ऐ मेरी कौम ! क्या तुम्हारे रब ने तुमसे एक अच्छा वादा नहीं क्या था? क्या तुम पर ज़्यादा ज़माना गुज़र गया? या तुमको ये मंज़ूर हुवा कि तुम पर तुम्हारे रब का गज़ब नाज़िल हो? इस लिए तुमने मुझ से जो वादा किया था, उसको खिलाफ किया था. - - - लेकिन कौम के ज़ेवर में से हम पर बोझ लद रहा था. सो हमने उसको आग में डाल दिया, फिर सामरी ने डाल दिया, फिर उसने उन लोगों के लिए एक बछड़ा ज़ाहिर किया कि वह एक क़ालिब था जिसमे एक आवाज़ आई थी. फिर वह कहने लगे तुम्हारे और मूसा का भी तो माबूद यही है - - - ''
रूरह ताहा २० _ आयत (८१-१००)
आप कुच्छ समझे? मैं भी कुछ नहीं समझ सका. तहरीर हूबहू क़ुरआनी है. यह ऊट पटांग न समझ में आने वाली आयतें मुहम्मद उम्मी की हैं, न कि किसी खुदा की. इनमें दारोग गो, मुतफ़न्नी आलिमों ने सर मगजी करके तहरीर को बामअने ओ मतलब बनाने की नाकाम कोशिश की है. सवाल उठता है कि अगर इसमें मअने ओ मतलब पैदा भी हो जाएँ तो पैगाम क्या मिलता है इन्सान को ?यह सब तौरेती वक़ेआत का नाटकीय रूप है.
मेरे भाई क्या कभी आप ने इस कुरआन की हकीक़त जानने की कोशिश की है? जो आप को गुमराह किए हुए है. इसमें कोई भी बात आपको फ़ायदा पहुचने वाली नहीं है, अलावा इसके कि ज़िल्लत को गले लगाने का इलज़ाम तुम पर आयद हो. आखिर ये ओलिमा इसे किस बुन्याद पर कुरआनऐ-हकीम कहते हैं, कोई हिकमत की बात है इसमें? ज़ाती तौर पर हमें कोई ज़िल्लत हो तो काबिले बर्दाश्त है मगर क़ौमी तौर की बे आब्रूई किन आँखों से देखा जाय.
 जागो, देखो कि ज़माना कहाँ जा रहा है और मुसलमान दिन बदिन पिछड़ता जा रहा है. आज के युग में इसका दोष इस्लाम फरोशों पर जाता है जो आप के पुराने मुजरिम हैं.

''जो लोग कुरआन से मुंह फेरेंगे सो वह क़यामत के रोज़ बड़ा बोझ लादेंगे, वह इस अज़ाब में हमेशा रहेगे. बोझ क़यामत के रोज़ उनके लिए बुरा होगा. जिस रोज़ सूर में फूंक मारी जायगी और हम उस रोज़ मुजरिम को मैदान हश्र में इस हालत में जमा करेंगे कि अंधे होंगे, चुपके चुपके आपस में बातें करेंगे कि तुम लोग सिर्फ दस रोज़ रहे होगे, जिस की निस्बत वह बात चीत करेंगे, उनको हम खूब जानते हैं. जबकि उन सब में का सैबुल राय यूं कहता होगा, नहीं तुम तो एक ही रोज़ में रहे और लोग आप से पहाड़ों के निस्बत पूछते हैं, आप फरमा दीजिए कि मेरा रब इनको बिलकुल उदा देगा, फिर इसको इसको मैदान हमवार कर देगा.जिसमें तू न हम्वारी देखेगा न कोई बुलंदी देखेगा. - - - और उस वक़्त तमाम चेहरे हय्युल क़य्यूम के सामने झुके होंगे. ''
इसके बाद मुहम्मद इसी टेढ़ी मेढ़ी भाषा में क़यामत बपा करते हैं, फरिश्तों की तैनाती और सूर की घन गरज भी होती है और ख़ामोशी का यह आलम होता है कि सिर्फ़ पैरों की आहट ही सुनाई देती है, बेसुर तन की गप जो उनके जी में आता है बकते जाते हैं और वह गप कुरआन बनती जाती है.

"ऐसे कुरान से जो मुँह फेरेगा वह रहे रास्त पा जायगा और उसकी ये दुन्या संवर जायगी. वह मरने के बाद अबदी नींद सो सकेगा कि उसने अपनी नस्लों को इस इस्लामी क़ैद खाने से रिहा करा लिया."
रूरह ताहा २० _ आयत (१०१-११२)
इंसान को और इस दुन्या की तमाम मख्लूक़ को ज़िन्दगी सिर्फ एक मिलती है, सभी अपने अपने बीज इस धरती पर बोकर चले जाते हैं और उनका अगला जनम होता है उनकी नसले और पूर्व जन्म हैं उनके बुज़ुर्ग. साफ़ साफ़ जो आप को दिखाई देता है, वही सच है, बाकी सब किज़्ब और मिथ्य है. कुदरत जिसके हम सभी बन्दे है, आइना की तरह साफ़ सुथरी है, जिसमे कोई भी अपनी शक्ल देख सकता है. इस आईने पर मुहम्मद ने गलाज़त पोत दिया है, 
आप मुतमईन होकर अपनी ज़िन्दगी को साकार करिए, इस अज्म के साथ कि इंसान का ईमान ए हाक़ीकी ही सच्चा ईमन है, इस्लाम नहीं. इस कुदरत की दुन्या में आए हैं तो मोमिन बन कर ज़िन्दगी गुज़ारिए,आकबत की सुबुक दोशी के साथ.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान