Saturday 29 April 2017

Hindu Dhrm darshan 60



पूजा 


किसी की नक्ल में पूजा के अंकुर जब मन में फूटते हैं तो यह पाप की शुरुआत सहायक होती है. अकसर पूजा अर्चना और इबादत बच्चे को विरासत में मिलती है. 
यह सूरदास की तरह अंधी होती है. 
कानो से सुन सुन कर परवान चढ़ती है, फिर प्रतिस्परधा में आकर नामवर हो जाती है. कृष्ण प्रेम कथा सुन सुन कर सुनने वाला इसका शायर बन कर सूरदास और मीरा बन जाता है और कभी कभी रसखान.
इन दीवानों ने कितना देखा और समझा कृष्ण को ? बस सुना भर है.
पूजा आस्था से शुरू होती है और पूजा से ही पाप का जन्म होता है. 
हमारे गाँव से बच्चे कस्बे के स्कूल आते थे, 
रास्ते में सरपत के पेड़ हुवा करते थे, जिनकी लंबी लंबी पत्तियां होती है. 
बच्चे पत्तियों को मोड़ कर फंदा बना देते कि 
'अगर आज स्कूल में मार न खाया, या परीक्षा का परचा हल न हुवा तो तुमको फंदा में पड़े रहना और यदि हल कर लिया तो मुक्त कर देगे वरना नहीं.
इस बचकानी आस्था से पाप का आरम्भ होता है कि पेड़ पौदों के साथ ज़ुल्म होता है.
इसी तरह आस्थावान होकर पूज्य से कोई मानता का मन बनाया 
और ख्वाहिश पूरी न हुई , 
दो चार बार ऐसा हुवा तो आस्था अनास्था में बदल जाती है, 
ग़लत काम करने का हौसला बढ़ जाता है. 
चोरी और बे ईमानी की शुरुआत होती है 
जो बड़ी होती होती रिश्वत में बदल जाति है. 
इसे आस्था की जगह मारल साइंस से बच्चे का दिमाग़ स्थापित किया जा सकता है.आस्था रेत कीदीवार है जो अन्त्ततः ढय जाती है.
भारतीय सभ्यता इसी रेत की दीवार पर कायम है जो अन्दर से खोखली है. 
इसी वजह से  भारत दुन्या के आखिरी पायदानों पर मुसलसल नज़र आता है. 
अगर आस्था है कि गंगा परवाह करने से मृतक मुक्त होगा . 
इसके आगे लाख गंगा की सफाई होती रहे. 
जहाँ बार बार आस्थाएँ नाकाम होती हैं वहां पुख्ता अनास्था का जन्म होता है. फिर धड़ल्ले से हर ग़लत काम होते रहते हैं.  
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 28 April 2017

Soorah Insheqaaq 84

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
******

सूरह इन्शेक़ाक़ ८४ - पारा ३० 
(इज़ा अस्समाउन शक्क़त)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"जब आसमान फट जाएगा,
और अपने रब का हुक्म सुन लेगा,
और वह इस लायक है,
और जब ज़मीन खींच कर बढ़ा दी जाएगी,
और अपने अन्दर की चीजों को बाहर निकाल देगी,
और खाली हो जाएगी, और अपने रब का हुक्म सुन लेगी और वह इस लायक है.
ऐ इंसान तू अपने रब तक पहुँचने तक काम में कोशिश कर रहा है, फिर इससे जा मिलेगा.
तो मैं क़सम खाकर कहता हूँ शफ़क की और रत की और उन चीजों की जिनको रात समेत लेती हैऔर चाँद की, जब कि वह पूरा हो जाए कि तुम लोगों को ज़रूर एक हालत के बाद दूसरी हालत में पहुंचना है.
सो उन लोगों को क्या हुवा जो ईमान नहीं लाते और जब रूबरू कुरआन पढ़ा जाता है तब भी अल्लाह की तरफ़ नहीं झुकते, बल्कि ये काफ़िर तकज़ीब करते हैं"
सूरह इन्शेक़ाक़ ८४ - पारा ३० आयत (१-२२)

नमाज़ियो !
अपनी नमाज़ में क्या पढ़ा? क्या समझे ?
ज़मीन ओ आसमान को भी अल्लाह तअला दिलो दिमाग वाला बना देता है? जोकि इसकी फ़रमा बरदारी के लायक हो जाते हैं? ये माफौकुल फितरत पाठ, उम्मी मुहम्मद तुमको शब् ओ रोज़ पढाते हैं
एक हदीस में वह पत्थर में ज़बान डालते है.जो बोलने लगता है  - - -
"ऐ मुसलमान जेहादियो! यहूदी मेरे आड़ में छिपा आओ इसे क़त्ल कर दो"
इक्कीसवीं सदी में आप इन अकीदों को जी रहे हैं?
जागो, अपनी नस्लों को आने वाले वक़्त का मजाक मत बनाओ.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 25 April 2017

Hindu Dharm Darshan 59


प्रतिक्रियाएं

मेरे हिंदी आर्टकिल "लिंग भेद" पर काफी कमेंस पढने को मिल रहे हैं. 
जो पाठक मेरे इस्लाम के जायज़ विरोध पर मेरी हिम्मत की दाद देते हैं, 
वही पाठक हिन्दू आस्था और मान्यता को लेकर मेरे जायज़ जायजे पर आग बगुला हो रहे है. कहते है यह उनकी 5000 साल पुरानी आस्था है . 
मुस्लिम अकीदा क्या है ? हिन्दू आस्था है क्या ? 
कठ मुल्लों और पोंगा पंडितों की कल्पनाओं के सिवा 
कोई ठोस आधार रखती हैं यह गाथाएँ ? 
अगर इस्लाम 1400 साल पुराना बदबूदार व्यंजन है, 
तो 5000 साल पुरानी वैदिक आस्थाएँ इस्लाम से चार गुणा दुर्गंधित हैं. 
पोंगों ने १००० गुणा अतिश्यक्ति से काम लिया है. 
राम और कृष्ण काल को हजारों साल पुराना बतलाया 
और ढाई अरब साल का एक काल चक्र ? 
क्या इन बातों पर यकीन क्या जाय ? 
बाल्मीकि का समय अल्तुतमश के समय काल का है.
बाल्मीकि जिनके संक्षण में सीता अपने दो बेटों के साथ बिठूर में रहती यहीं. 
इससे तमाम वास्तविकता खुलती है. 
तुलसी दास के कल्पनाएँ हिदू धर्म बन गई हैं? 
राम के बाद कृष्ण हुए और महा भारत अभी कल की बात लगती है.
गुरु गाँव गुड़गांव हुवा अब गुरु ग्राम हो गया. 
शिव जी की बारात हरिदर निवासी अभी अपने पूर्वजों की कथाओं में समेटे हुए हैं.
 शिव जी मुसलामानों के बाबा बर्फानी बने हुए हैं 
जिनकी छड़ी मुबारक के दर्शन आज कराए जाते है. 
यही शिव जी ब्रह्मा विष्णु के साथ महेष बन कर ब्रह्मांड का सर्व नाश 
ढाई अरब साल बाद करते है > 
कोई हद होती है स्वयं घात की ? 
मैं मुसलमानों के साथ साथ अपने हिदू भाइयों को भी जागृत करना चाहता हूँ. 
तब मुझे और खीज होती है जब मुझे मुसलमान मान कर यह नादान मुझ पर हमला करते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 24 April 2017

Soorah Mutafefeen 83

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*********

सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन  ८३ - पारा ३० 
(वैलुल्लिल मुतफ्फेफीन) 

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"बड़ी खराबी है नाप तौल में कमी करने वालों की,
कि जब लें तो पूरा लें,
और जब दें तो घटा कर दें.
क्या उनको यकीन नहीं है कि वह बड़े सख्त दिन में जिंदा करके उठाए जाएँगे,
जिस दिन तमाम आदमी अपने रब्बुल आलमीन के सामने खड़े होंगे,
हरगिज़ नहीं होगा लोगों का नामाए आमाल सजजैन में होगा,
आपको कुछ खबर है कि सजजैन में रक्खा हुवा नामाए आमाल क्या चीज़ है?
वह एक निशान किया हुवा दफ्तर है
इस रोज़ झुटलाने वालों की बड़ी खराबी होगी.
और इसको तो वही झुत्लाता है जो हद से गुजरने वाला हो और मुजरिम हो और इसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाएँ तो यूं कह दे बे सनद बातें है अगलों से मन्कूल चली आ रही हैं,
हरगिज़ नहीं बल्कि उनके आमाल का जंग उन दिलों पर बैठ गया है.
हरगिज़ नहीं बल्कि इस रोज़ ये अपने रब से रोक दिए जाएंगे,
फिर ये दोज़ख में डाले जाएँगे और कहा जाएगा यही है वह जिसे तुम झूट लाते थे.
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन  ८३ - पारा ३० आयत (१-१७)

हरगिज़ नहीं नेक लोगों का आमाल इल्लीईन में होगा,
और आपको कुछ खबर है कि ये इल्लीईन में रखा हुवा आमाल नामा क्या होगा,
वह एक निशान लगा दफ्तर है जिसे मुकरिब फ़रिश्ते देखते है,
नेक लोग बड़ी सताइश में होंगे,
मसेह्रियों पर बैठे बहिश्त के अजायब देखते होंगे,
ऐ मुखातिब तू इनके चेहरों में आसाइश की बशारत देखेगा,
और पीने वालों के लिए शराब खालिस  सर बमुहर होगी,
और हिरस करने वालों को ऐसी चीज़ से हिरस करना चाहिए,
काफ़िर दुन्या में मुसलमानों पर हँसते थे, अब मुसलमान इन पर हँस रहे होंगे, मसह्रियों पर होंगे, वाकई काफिरों को उनके किए का खूब बदला मिला."
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन  ८३ - पारा ३० आयत (१८-३६)

नमाज़ियो !

मुहम्मद की वज़अ करदा मन्दर्जा बाला इबारत बार बार ज़बान ए उर्दू में दोहराओ, फिर फ़ैसला करो कि क्या ये इबारत काबिले इबादत है? इसे सुन कर लोगों को उस वक़्त हंसी आना तो फितरी बात हुवा करती थी , जिसकी गवाही खुद सूरह दे रही है, आज भी ये बातें क्या तुम्हें मज़हक़ा  खेज़ नहीं लगतीं ? बड़े शर्म की बात है इसे आप अल्लाह का कलाम समझते हैं और उस दीवाने की बड़ बड़ की तिलावत करते हो. इससे मुँह मोड़ो ताकि कौम को इस जेहालत से नजात की कोई सूरत नज़र आए. दुन्या की २०% नादानों को हम और तुम मिलकर जगा सकते हैं. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 22 April 2017

Hindu Dharm Darshan 58




वेद दर्शन                            

खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . .

कपडे बुनने वाली नारी जिस प्रकार कपडे लपेटी है, 
उसी प्रकार रात बिखरे हुए प्रकाश को लपेट लेती है. 
कार्य करने में समर्थ एवं बुद्धिमान लोग अपना काम बीच में ही रोक देते हैं. 
विराम रहित एवं समय का विभाग करने वाले सविता देव के उदित होने तक लोग शैया छोड़ते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 38(4)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली)

*वाह पंडित जी ! क्या लपेटा है.
कुरआन में भी कुछ ऐसे ही रात और दिन को अल्लाह लपेटता है. 
नारी कपडे को लपेट कर सृजात्मक काम करती है 
और रात बिखरे हुए प्रकाश को लपेट कर नकारात्मक काम करती है. 
यह विरोधाभाषी उपमाएं क्या पांडित्व का दीवालिया पन तो नहीं? 
इस सूक्त से एक बात तो साफ़ होती है कि वेद की आयु उतनी ही है कि जब इनसान कपडा बुनना और उसे लपेट कर रखने का सकीका सीख गया था, 
5-6 हज़ार वर्ष पुरानी नहीं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 21 April 2017

Soorah Infitar 82

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****

सूरह इन्फितार  ८२ - पारा ३०   

(इज़ा अस्समाउन फ़ितरत)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"जब आसमान फट जाएगा,
जब सितारे टूट कर झड पड़ेगे,
जब सब दरया बह पड़ेंगे,
और कब्रें उखड़ी जाएगी,
हर शख्स अपने अगले और पिछले आमाल को जन लेगा,
ऐ इंसान तुझको किस चीज़ ने तेरे रब्बे करीम के साथ भूल में डाल रख्खा है,
जिसने तुझको बनाया और तेरे आसाब दुरुस्त किए,
फिर तुझको एतदाल पर लाया,
जिस सूरत चाह तुझको तरकीब दे दिया,
हरगिज़ नहीं बल्कि तुम जजा और सज़ा को ही झुट्लाते हो,
और तुम पर याद रखने वाले और मुआज्ज़िज़ लिखने वाले मुक़र्रर हैं,
जो तुम्हारे सब अफ़आल  को जानते हैं,
नेक लोग बेशक आशाइश में होंगे,
और बदकार बेशक दोज़ख में होगे,
और आप को कुछ खबर है कि वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
और आप को कुछ खबर है की वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
वह दिन ऐसा है कि किसी शख्स को नफ़ा के लिए कुछ बस न चलेगा,
और तमाम तर हुकूमत उस रोज़ अल्लाह की होगी.
(मुकम्मल सूरह)
सूरह इन्फितार  ८२ - पारा ३०   आयत(१-१९)

आसमान कोई चीज़ नहीं होती, ये कायनात लामतनाही और मुसलसल है, ५०० किलो मीटर हर रोज़ अज़ाफत के साथ साथ बढ़ रही है. ये आसमान जिसे आप देख रहे हैं, ये आपकी हद्दे नज़र है.
इस जदीद इन्केशाफ से बे खबर अल्लाह आसमान को ज़मीन की छत बतलाता है, और बार बार इसके फट जाने की बात करता है,. अल्लाह के पीछे छुपे मुहम्मद सितारों को आसमान पर सजे हुए कुम्कुमें समझते हैं , इन्हें ज़मीन पर झड जाने की बातें करते हैं. जब कि ये सितारे ज़मीन से कई कई गुना बड़े होते हैं..
अल्लाह कहता है जब सब दरियाएँ  बह पड़ेंगी. है न हिमाक़त की बात, क्या सब दरिया कहिं रुकी हुई हैं? कि बह बह पड़ेंगी. बहती का नाम ही दरिया है तुम्हारे तअमीर और तकमील में तुम्हारा या तुम्हारे माँ बाप का कोई दावा तो नहीं है, इस जिस्म को किसी ने गढ़ा हो, फिर अल्लाह हमेशा इस बात का इलज़ाम क्यूँ लगता रता है कि तुमको इस इस तरह से बनाया. इसका एहसास और एहसान भी जतलाता रहता है कि इसने हमें अपनी हिकमत से मुकम्मल किया.सब जानते हैं कि इस ज़मीन के तमाम मखलूक इंसानी तर्ज़ पर ही बने हैं, इस सूरत में वह चरिंद, परिन्द और दरिंद को अपनी इबादत के लिए मजबूर क्यूँ नहीं करता? इस तरह तमाम हैवानों को अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक मुसलमान होना चाहिए. मगर ये दुन्या अल्लाह के वजूद से बे खबर है.
अल्लाह पिछली सूरतों में कह चुका है कि वह इंसान का मुक़द्दर हमल में ही लिख देता है, फिर इसके बाद दो फ़रिश्ते आमाल लिखने के लिए इंसानी कन्धों पर क्यूँ बिठा रख्खे है?
असले-शहूद ओ शहीद ओ मशहूद एक है,
           हैराँ हूँ फिर मुशाहिदा है किस हिसाब का. (ग़ालिब)
तज़ादों से पुर इस अल्लाह को पूरी जिसारत से समझो, ये एक जालसाजी है,  इंसानों का इंसानों के साथ, इस हकीकत को समझने की कोशिश करो. जन्नत और दोज़क्ज  इन लोगों की दिमागी पैदावार है  इसके दर और इसकी लालच से ऊपर उट्ठो. तुम्हारे अच्छे अमल और नेक ख़याल का गवाह अगर तुम्हारा ज़मीर है तो कोई ताक़त नहीं जो मौत के बाद तुमहारा बाल भी बीका कर सके. औए अगर तुम गलत हो तो इसी ज़िन्दगी में अपने आमाल का भुगतान करके जाओगे.
मुहम्मद अल्लाह की जुबां से कहते हैं 
"उस दिन तमाम तर हुकूमत अल्लाह की होगी"

आज कायनात  की तमाम तर हुकूमत किसकी है? क्या अल्लाह ने इसे शैतान के हवाले करके सो रहा है?

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 18 April 2017

Hindu Dharm Darshan 57



वेद दर्शन - - -                          
 खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे अग्नि ! तुम देवों में श्रेष्ट हो. 
उनका मान तुम से संबध है 
हे दर्शनीय ! तुम ही इस यज्ञ में देवों को बुलाने वाले हो. 
हे कामवर्षी ! सभी शत्रुओं को पराजित करने के लिए तुम हमें अद्वतीय शक्ति दो.

छठां मंडल सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

कुरआन के अनुसार जो अग्नि काफिरों का जलाती है वही अग्नि काफिरों (हिन्दुओं) की पूजनीय बनी हुई है. 
धर्म व् मज़हब के तमाशे देखिए.
वेदों इन्हें देवों में श्रेष्ट मानते हैं तो कुरआन में इन्हें बद तरीन ?
आग वाक़ई दर्शनीय है, दूर से दिखाई देती है. 
बाक़ी देव अदर्शनीय ही होते हैं, 
धर्म ग्रन्थ उनका दर्शन नहीं करा सकते, उनके नाम पर ठगी कर सकते हैं.
कामवर्षी ? इन्दर देव ही हो सकते है.
ब्रह्म चारियों और योग्यों को चाहिए कि वह इन्दर देव की उपासना करे, 
उनका रोग शीग्र दूर हो जाएगा. जिंस ए लतीफ़ से आशना हो जाएँगे.
मठाधीश मैदान ए जंग में कभी भी नहीं आते बस देवों को बुलाया करते है.
महमूद गज़नवी 17 लुटेरों को साथ लेकर आया और सोम नाथ को लूट कर ले गया, वहां मौजूद सैकड़ों पुजारी ज़मीन पर औंधे मुंह पड़े सोमदेव को सहायता के लिए बुलाते रहे.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 17 April 2017

Soorah Taqveer 81

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह तक्वीर ८१  - पारा ३०
(इजा अशशम्सो कूवरत)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

अब देखो, बाज़मीर होकर कि तुम अपने नमाज़ों में क्या पढ़ते हो - - -

"जब आफ़ताब बेनूर हो जाएगा,
जब सितारे टूट कर गिर पड़ेगे,
जब पहाड़ चलाए जाएँगे,
जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,
जब वहशी जानवर सब जमा जमा हो जाएगे,
 जब दरिया भड़काए जाएंगे,
और जब एक किस्म के लोग इकठ्ठा होंगे,
और जब ज़िन्दा गडी हुई लड़की से पूछा जाएगा
 कि वह किस गुनाह पर क़त्ल हुई,
और जब नामे आमाल खोले जाएँगे,
और जब आसमान फट जाएँगे,
और जब दोज़ख दहकाई जाएगी,
तो मैं क़सम खता हूँ इन सितारों की
जो पीछे को हटने लगते हैं,
और क़सम है उस रात की जब वह ढलने लगे,
और क़सम है उस सुब्ह की जब वह जाने लगे,
कि कलाम एक फ़रिश्ते का लाया हुवा है.
जो कूवत वाला है
 और जो मालिक ए अर्श के नजदीक ज़ी रुतबा है,
वहाँ इसका कहना माना जाता है,
सूरह तक्वीर ८१  - पारा ३० आयत (१-२०)

अपने कलाम में नुदरत बयानी समझने वाले मुहम्मद क्या क्या बक रहे हैं कि जब पहाड़ो में चलने के लिए अल्लाह पैर पैदा कर देगा, वह फुद्केंगे, लोग अचम्भा और तमाशा ही देखेगे, मुहम्मद ऊंटों और खजूरों वाले रेगिस्तानी थे, गोया इसे भी अलामाते क़यामत तसुव्वर करते हैं कि "जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी" छुट्टा घूमे या रस्सियों में गाभिन हो अभागिन, ऊंटनी ही नहीं तमाम जानवर हमेशा आज़ाद ही घूमा फिरा करेंगे. दरिया सालाना भड़कते ही रहते हैं. ये कुरआन की फूहड़ आयतें जिनकी कसमें अल्लाह अपनी तख्लीक़ की नव अय्यत को पेशे नज़र रख कर खता है तो इसपर यकीन तो नहीं होता, हाँ,  हँसी ज़रूर आती है.

मुसलामानों! क्या सुब्ह ओ शाम तुम ऐसी दीवानगी की इबादत करते हो?

"और वह तुम्हारे साथ रहने वाले मजनू नहीं हैं.
उन्हों ने फ़रिश्ते को आसमान पर भी देखा है
और ये पैगम्बर की बतलाई हुई वह्यी क़ी बातों में बुख्ल करने वाले नहीं.
और ये कुरान शैतान मरदूद की कही हुई बातें नहीं हैं,
तो तुम लोग किधर जा रहे हो,
बस कि ये दुन्या जहान के लिए एक बड़ा नसीहत नामा है
और ऐसे लोगों के लिए जो तुम में सीधा चलना चाहे,
और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते."
सूरह तक्वीर ८१  - पारा ३० आयत(२१-२९)

कहाँ उसका कहना नहीं मन जाता? उसके हुक्म के बगैर तो पत्ता भी नहीं हिलता. ये वही फ़रिश्ता है जिसे वह रोज़ ही देखते हैं जन वह अल्लाह की वहयी लेकर मुहम्मद के पास आता है,फिर उसकी एक झलक आसमान पर देखने की गवाही कैसी?
क़यामत के बाद जब ये दुन्या ही न बचेगी तो नसीहत का हासिल?
कुरआन पर हजारों एतराज़ ज़मीनी बाशिदों के है, जिसे ये ओलिमा मरदूद उभरने ही नहीं देते.
भोले भाले ऐ नमाज़ियो!
सबसे पहले गौर करने की बात ये है कि ऊपर जो कुछ कहा गया है, वह किसी इंसान के मुंह से अदा किया गया है या कि किसी ग़ैबी अल्लाह के मुंह से?
ज़ाहिर है कि ये इंसान के मुंह से निकला हुवा कलाम है जो कि बाद कलामी की हदों में जाता है. किया होई खुदाई हस्ती इरशाद कर सकती है कि ".जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,"
अरबी लोग कसमें ज्यादा खाते हैं. शायद कसमें इनकी ही ईजाद हों. मुहम्मद अपनी हदीसों में भी कुरान की तरह ही कसमे खाते हैं. इस्लाम में झूटी कसमें खाना आम बात है, इनको अल्लाह मुआफ करता रहता है. अगर इरादतन क़सम खा लिया तो किसी यतीम या मोहताज को खाना खिला दो. बस. गौर करने की बात है कि जहाँ झूटी कसमें राव हों वहां झूट बोलना किस क़दर आसन होगा? ये कुरान झूट ही तो है. क़यामत, दोज़ख, जन्नत, हिसाब-किताब, फ़रिश्ते, जिन और शैतान सब झूट ही तो हैं. क्या तुम्हारे आईना ए हयात पर झूट की परतें नहीं जम गई हैं?
ये इस्लाम एक गर्द है तुमको मैला कर रही है. अपने गर्दन को एक जुंबिश दो, इस जमी हुई गर्द को अपनी हस्ती पर से हटाने के लिए.
अल्लाह कहता है 
"और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते."
तो फिर दुन्या में कहाँ कोई बन्दा गुनाहगार हो सकता है, सिवाए अल्लाह के.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 16 April 2017

Hindu Dharm Darshan 56




वेद दर्शन - - -    

 खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . .

हे सोम !
तुम्हें इंद्र के पीने के लिए निचोड़ा गया है.
तुम अतिशय मादक
और मादक धारा से निचड़ो

नवाँ मंडल सूक्त 1

(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली)

सोम के कई अर्थ हैं, मगर वेदों में इसके अर्थ शराब के सिवा और कुछ नहीं.
चतुराई से वेद ज्ञाता अवाम को बहकते हैं कि सोम कोई और पवित्र चीज़ होती है. शराब सिर्फ इस्लाम में हराम है बाक़ी सभी धर्मों में पवित्र. ईसा शराब के नशे में हर समय टुन्न रहते. इंद्र भाब्वन भी सोम रस के बिना टुन्न कैसे रह सकते है.
अतिशय मादक दारू उनको हव्य में दी जाती तभी तो सोलह हज़ार पत्नियों को रखते होंगे.
वेद निर्माता पंडित जी शराब के नशे में डूबे लबरेज़ पैमाने से वार्तालाप कर रहे हैं. पैमाने को मुखातिब कर रहे हैं और उसको हिदायत दे रहे है. पैमाने को क्या पता कि उसको कौन पिएगा, वह आगाह कर रहे हैं कि खबर दार तुमको राजा इन्दर ग्रहण करेगे. तुमको और नशीला होना पड़ेगा. नशे की लहर से निचड़ो.
कुछ लोग मुझे सलाह देते हैं कि वेद को समझने के किए तुम्हें राजा इन्दर की तरह टुन्न होना पड़ेगा वरना वेद तुमको ख़ाक समझ आएगा.
यही मशविरा मुस्लिम ओलिमा भी देते हैं कि क़ुरान समझने के लिए तुम्हें दिल और दिमाग़ चाहिए.
वेद कोई पुण्य पथ नहीं, वेदना है समाज के लिए.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 15 April 2017

Soorah Abas 80

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************

सूरह अबस ८० - पारा ३०   
(अ ब स वतावल्ला)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम, उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखिए  और समझिए कि  इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, गलाज़त यहाँ तक कि गालियाँ भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने की क्या, तसव्वुर करने  की भी हिम्मत नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो.. 
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए और धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"पैगम्बर चीं बचीं हो गए,
और मुतवज्जेह न हुए उससे कि इनके पास अँधा आया है,
और आपको क्या खबर कि नबीना सँवर जाता,
या नसीहत कुबूल करता तो इसको नसीहत करना फ़ायदा पहुँचाता,
सो जो शख्स लापरवाही करता है तो आप उसकी फ़िक्र में पड़े रहते हैं.
हालाँकि आप पर कोई इलज़ाम नहीं है कि वह साँवरे,
जो शख्स आपके पास दौड़ा हवा चला आता है,
और डरता है,
आप इससे बे एतनाई करते हैं.
हरगिज़ ऐसा न कीजिए, कुरआन नसीहत की चीज़ है,
सो जिसका दिल चाहे इसे कुबूल करे.
ऐसे सहीफों में से है जो मुकर्रम है."

सूरह अबस ८० - पारा ३० आयत(१-१३) 

आदमी पर अल्लाह की मार. वह कैसा है,
अल्लाह ने उसे कैसी चीज़ से पैदा किया,
नुत्फे से इसकी सूरत बनाई, फिर इसको अंदाज़े से बनाया.``
फिर इसको मौत दी,
फिर इसे जब चाहेगा दोबारह जिंदा कर देगा.

सूरह अबस ८० - पारा ३० आयत(१४-२२)  

"हरगिज़ नहीं इसको जो हुक्म दिया गया है बजा नहीं लाया,
कि आदमी को चाहिए अपने खाने पर गौर करे.
कि हमने अजीब तौर पर पानी बरसाया,
फिर अजीब तौर पर ज़मीन को फाड़ा,
फिर हमने उसमें गल्ला और तरकारी,
और ज़ैतून और खजूर,
और गुंजान  बाग़ और मेवे,
और चारा पैदा किया.
बअज़ी तुम्हारे और बअज़ी  तुम्हारे मवेशियों के फ़ायदे के वास्ते.
फिर जब कानों में बरपा होने वाला शोर बरपा होगा,
जिस रोज़ आदमी अपने भाई से, अपनी माँ से और अपने बाप से और अपनी बीवी से और अपनी अवलाद से भागेगा,
उस वक़्त हर शख्स को ऐसा मशगला होगा जो उसको और तरफ़ मुतवज्जेह न होने देगा.
बहुत  से चेहरे उस वक़्त रौशन, शादाँ और खन्दां होगे ,
और बहुत से चेहरों पर ज़ुल्मत होगी,
यही लोग काफ़िर ओ फ़ाजिर होंगे. 
   , 
सूरह अबस ८० - पारा ३० आयत(३२-४२)

झूट और शर की अलामत ओसामा बिन लादेन मारा गया  दुन्या भर में खुशियाँ मनाई जा रही हैं. याद रखें ये अलामत को सजा मिली है, झूट और शर को नहीं. सारी दुन्या मुत्तहद हो कर कह रही है कि झूट औए शर से इस ज़मीन को पाक किया जाए. ऐसे मौके पर ओबामा ने एक सियासी एलान किया कि हम इस्लाम के खिलाफ नहीं है बल्कि दहशत गरजी के खिलाफ हैं, ये उनकी मजबूरी होगी या मसलेहत.

ये झूट और शर कुरान है जिसकी तालीम जुनूनियों को तालिबान , जैश ए मुहम्मदी वग़ैरा बनाए हुए है. इसकी तबलीग और तहरीर दर पर्दा इंसानी जेहन को ज़हरीला किए हुए है. अगर तुम मुसलमान हो तो यकीनी तौर पर कुरान के शिकार हो. अब मुसलमान होते हुए  मुँह नहीं छिपाया जा सकता और न ओलिमा का ज़हरीला कैप्शूल निगला जा सकता है, वह चाहे उस पर कितनी शकर लपेटें. तुम्हारा भरम दुन्या के साथ टूट चुका है.

मुसलमानों!
तुम यकीनन " किं कर्तव्य विमूढ़" (क्या करें, क्या न करें) हो रहे हो. तुम्हारा इस वक़्त  कोई रहनुमा नहीं है, लावारिस हो रहे हो, ओलिमा ठेल ढ़केल कर तुम्हें कुरआन के झूट और शर भरी आयतों की तरफ ढकेल रहे है जिनके शिकार तुमहारे आबा ओ अजदा हुए हैं. एक वक़्त आएगा कि तुम्हारा वजूद ख़त्म हो रहा होगा और ये हरामी क्रिश्चिनीती और हिदुत्व के गोद में बैठ रहे होंगे. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 10 April 2017

Soorah Naazyat 79

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**************

सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३० 
(वन नज़ात ए आत गर्कन)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखिए  और समझिए कि  इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, गलाज़त यहाँ तक कि गालियाँ भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने की क्या, तसव्वुर करने  की भी हिम्मत नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो.. इबादत के लिए रुक़ूअ, सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए और धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
अल्लाह की कसमें देखें, क्या इनमे झूट, मकर, सियासत, नफरत और जेहालत नहीं है - - -

"क़सम है फरिश्तों की जो जान सख्ती से निकालते हैं,
जो आसानी से निकलते हैं, गो ये बंद खोल देते हैं,
और जो तैरते हुए चलते हैं फिर तेज़ी से दौड़ते हैं,
फिर हर अम्र की तदबीर करते हैं,
क़यामत ज़रूर आएगी."
सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३०  (आयत १-५)

"जिस रोज़ हिला डालने वाली चीज़ हिला डालेगी ,
जिसके बाद एक पीछे आने वाली चीज़ आएगी,
बहुत से दिल उस रोज़ धड़क रहे होंगे,
आँखें झुक रही होंगी."
 सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३०  (आयत ६-९

क्या आपको मूसा का किस्सा पहुँचा, जब की अल्लाह ने इन्हें एक पाक मैदान में पुकारा
 कि फिरौन के पास जाओ, इसने बड़ी शरारत अख्तियार कर रख्खी है उससे जाकर कहो कि क्या तुझको इस बात की ख्वाहिश है कि तू दुरुस्त हो जाए . . . "
सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३०  (आयत १५-१७)

"भला तुम्हारा पैदा करना ज्यादह सख्त है या आसमान का?
अल्लाह ने आसमान को बनाया इसकी शेफ्कात को बुलंद किया,
फिर ज़मीन को बिछाया
इससे इसका पानी और चारा निकला
तुम्हारे मवेशियों को फाएदा पहुँचाने  के लिए."
सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३०  (आयत२७-३३)

सो जब वह बड़ा हंगामा आएगा
यानी जिस रोज़ इन्सान अपने किए को याद करेगा
और देखने वालों के सामने दोज़ख पेश की जाएगी,
तो जिस शख्स ने सरकशी की होगी और दुनयावी ज़िन्दगी को तरजीह दी होगी,
 सो दोज़ख ठिकाना होगा."
सूरह नाज़िआत ७९  - पारा ३०  (आयत ३४-३९)

मुसलमानों! 
सबसे पहले हिम्मत करके देखो कि ये अल्लाह किस ढब की बातें करता है? वह गैर ज़रुरी उलूल जुलूल कसमें क्यूँ खाता है ? ये फ़रिश्ते किसी की जान क्यूँ तडपा तडपा कर निकालते हैं और क्यूँ  किसी की आसानी के साथ? ऐसा भी नहीं कि ये आमाल के बदले होता हो.
एक बीमार मासूम बच्चा अपनी बीमारी झेलता हुवा क्यूँ पल पल घुट घुट कर मरता है? तो एक मुजरिम तलवार की धार से पल भर में मर जाता है? क्या इन हक़ीक़तों से कुरआन का दूर दूर तक का कोई वास्ता है? क़यामत का डर तुम्हें चौदह सौ सालों से खाए जा रहा है.
मूसा ईसा क़ी सुनी सुनाई दास्ताने मुहम्मद अपने दीवान में दोहराते रहते हैं, अगर ये अरबी में न होकर आपकी अपनी ज़बान में होती तो कब के आप इस दीवन ए मुहम्मद को बेजार होकर तर्क कर दिए होते.
इबादत के अल्फाज़ तो ऐसे होने चाहिए कि जिससे खल्क़ क़ी खैर और खल्क़ का भला हो.

कुरआन को अज खुद तर्क करके आपको इससे नजात पाना है, 
इससे पहले की दूसरे तुमको मजबूर करें.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 8 April 2017

Hindu Dharm Darshan 55



राम कहानी 

रज़िया सुल्तान के ज़माने में एक सज्जन पुरुष को बिठूर (कानपुर) के एक डाकू से सामना पड गया. 
डाकू उनका माल असबाब लूट कर चला तो 
उस सज्जन पुरुष ने उसे टोका, 
सुनो - - - 
डाकू रुका, दोनों में कुछ बात चीत हुई , 
उनको डाकू की बातों से लगा कि यह तो कोई पढ़ा लिखा विद्वान लगता है. 
उन्हों ने उसका नाम पूछा. 
डाकू ने सज्जन पुरुष की सज्जनता का आभाष कर लिया था, 
वह उनसे झूट बोलने की हिम्मत न जुटा पाया. 
मैं हूँ "वाल्मीकि". 
नाम सुनते ही उस सज्जन पुरुष ने लपक कर उसे लिपटा लिया. 
वाल्मीकि ने उनको अपनी लाचारी, और मजबूरी की दास्तान सुनाई. - - - 
उसने उनसे पूछा कि अपने छोटे छोटे बच्चों को क्या खिलाऊँ, क्या पहनाऊँ ? 
अपना ज्ञान ?? 
अपनी बुद्धिमत्ता को मैं ने इस कुल्हाड़ी के हवाले कर दिया. 
क्या करता बच्चों की हत्या से यह लूट मार भली लगी . 
उस सज्जन पुरुष ने वाल्मीकि को बात बात पर राज़ी कर लिया कि 
वह किसी महा काव्य लिखने का आयोजन करे जिस से शाशक वर्ग आकर्षित हों.
वाल्मीकि ने उससे विषय पूछा तो उस सज्जन पुरुष ने इशारा किया, 
विषय तुम्हारे सामने है और तुम्हारे शरण में है,
अभागन सीता अपने दो बच्चों के साथ. उन्हों ने कहा - - -
विषय कोई आकृति नहीं होती, विषय रचना और गढ़ना पड़ता है. 
पति द्वारा ठुकराई सीता को महिमा मंडित करो.
वाल्मीकि ने ऐसा महा काव्य रचा कि आस पास के परिवेश में विद्वानों के लिए आकार और आधार  भूत रोचक कथा बन गई. 
यह राम कहानी रामायण नाम से संस्कृत में थी और सीमित होकर विद्वानों के द्वारा ही प्रसारित और प्रचारित होती रही. शाशकों का भी कथा को संरक्षण मिला.
कहानी के किरदारों के साथ जनता की रूचि भी बढती गई, यह बहुधा होता है. 
आज भी 50 साल पहले फिल्म संतोषी माँ आई थी और इतनी चली कि संतोषी माँ एक देवी बनते बनते रह गईं. उनकी मंदिरें बनना शुरू हो गई थीं. अगर २०० वर्ष पहले यह रचना होती तो आज यक़ीनन संतोषी माँ कोई पूजनीय देवी होतीं. 
यही नहीं रोमियो और जूलिएट भी भारत में पूजनीय होते अगर शेक्स्पेयर भारत में जन्मा होता. 
वेदों और पुराणों के खोकले कृत के सामने रामायण एक ठोस कृति साबित हुई. रज़िया सुलतान के ३०० साल बद अकबर के दौर में हिंदी विद्वान महा कवि तुलसी दास पैदा हुए उनको वाल्मीकि कृत रामायण रोचक लगी और तुलसी दास ने इसको  हिंदी में रूपान्तर किया. 
फिर क्या था, जनता जनार्दन की पहली पसंद बन गई. 
उसके बाद रामायण कथाओं की बुन्याद बन गई . 
हर विद्वान इस पर अपनी कलम को आजमाता रहा . 
सत्तर से ऊपर विभिन्न भाषाओँ में रामायण मौजूद है. 
मैंने मांढा (मिर्ज़ापुर) में देखा कि पूर्व प्रधान मंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के पूर्वज राजा रूद्र प्राताप सिंह अपनी भाषा में एक अदद रामायण रचे हुए हैं. 
तुलसी रामायण से भी मोटी. 
हर रामायण कुछ परिवर्तन के साथ साकार हुई . 
कालिदास ने कहानी के किरदारों के साथ इन्साफ करते हुए उन्हें अनजाम तक पहुँचाया. उनकी कहानी में नायका सीता के किरदार को प्राथमिकता थी 
और राम को द्वतीयता. 
वाल्मीकि का राम अपने जीवन काल में जो जो अन्याय किया उनके पश्च्याताप की आग में जलता हुवा सरयू नदी में डूब कर आत्म हत्या कर लेता है. 
उससे जो अन्याय हुए वह थे भाईयों के साथ अन्याय,  
जैसे भरतके संतानों को देश निकला देना आदि , 
पत्नी सीता की अग्नि परीक्षा जैसे जघन्य अपराध. 
बाल्मीकि रामायण को देखा जाए जिसके आधार पर तुलसीदास की रचना है,तो  दोनों में मूल भूत टकराव है. 
न्याय तुलसीदास को कटहरे में खड़ा कर सकता है. 
वाल्मीकि ने सीता को प्राथमिकता और राम को द्वतीयता दी है .
तुलसीदास ने राम का प्राथमिकता और सीता को द्वतीयता.
इस कमजोरी को ब्रह्मण बुद्धी ने ताड़ा तो तुलसी दास को सर पर चढ़ा लिया और बाल्मीकि को भंगी बना दिया. 
उनकी लिखी रामायण अछूत हो गई. 
इसका प्रचार और प्रसार लुप्तमान है और तुलसी कथा विराजमान. 
रामायण पूरी तरह से कपोल कल्पित कथा है, 
यह कपोल कल्पित कथा आज देश का राज धर्म जैसा बना जा रहा है.
इसको कोई कसौटी सत्य साबित नहीं कर सकती. 
भारत का राजकाज मुट्ठी भर मनुवादियों के हाथों में 5000 साल से है 
जो खिलवाड़ बनी हुई है, इसमें कोई मानव मूल्य नहीं न मानव पीड़ा.
यह कुछ सालों की मेहमान और हो सकती है. 
क्यांकि अभिताभ बच्चन जैसे महा नायक हनुमान चालीसा पढ़ कर ही घर से बाहर निकलते हैं तो हिन्दुओं की श्याम स्वेत छवि से मलटी कलर हो जाती है. 
भारत दुन्या का अभागा भू भाग है जो हजारों सालों से दासता में रहा है 
चाहे वह आर्यन की ब्राह्मण वादी व्योवस्था हो या पठानों और मुघलों की दासता 
या फिर अंग्रेजों की गुलामी. 
कुप्रचार है कि भारत कभी जगत गुरु हुवा करता था. रहा होगा,
आर्यन के आक्रमण से पहले कभी. 
नोट -
मुहम्मद गौरी तुर्क हिन्दुस्तान का पहला मुस्लिम फातेह था जो फ़तेह के बाद अपने ग़ुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली की गद्दी पर बैठा कर खुद अपने वतन गौर वापस चला गया. कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद उसका भाई शमसुद्दीन इल्तुतमिश उसके बाद हिन्दुस्तान का सुलतान हुवा. शमसुद्दीन इल्तुतमिश की बेटी रज़िया सुलतान १२11-३६ ई में दिल्ली की पहली महिला शाशक हुई. 
बिठूर, वन्धना (कानपुर) में रहकर वाल्मीकि काल को सत्यापित किया जा सकता है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 7 April 2017

SOORAH SABA 78

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****

सूरह नबा ७८ - पारा ३०  
(अम्मा यता साएलूना)

यह तीसवाँ और कुरआन का आखिरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाजियों को नमाज़ में ज्यादह तर काम आती हैं. बच्चों को जब कुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें ७८से लेकर ११४ सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं और खासकर याद रखें  कि क्या पढ़ रहे हैं.

 "ये लोग किस चीज़ का हल दरयाफ्त करते हैं,
उस बड़े वाकिए का जिसका ये इख्तेलाफ करते हैं ,
हरगिज़ ऐसा नहीं, इनको अभी मालूम हवा जाता है,
.(दोबारा)
हरगिज़ ऐसा नहीं, इनको अभी मालूम हुवा जाता है,
क्या हमने ज़मीन को फर्श और पहाड़ को मेखें नहीं बनाईं?
और हमने ही तुमको जोड़ा जोड़ा बनाया,
और हमने ही तुम्हारे सोने को राहत की चीज़ बनाया.
और हमने ही रात को पर्दा की चीज़ बनाया,
और हमने ही दिन को मुआश का वक़्त बनाया,
और हम ही ने तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत आसमान बनाए,
और रौशन चराग बनाया,
और हम ही ने पानी भरे बादलों से कसरत से पानी बरसाया,
ताकि हम पानी के ज़रीया गल्ला और सब्जी और गुंजान बाग पैदा करें.
बेशक फैसले के दिन का मुअय्यन वक़्त है."
सूरह नबा ७८ - पारा ३० आयत (१-१७)

"हमने हर चीज़ को लिख कर ज़ब्त कर रखा है, सो मज़ा चक्खो हम तुम्हारी सजा बढ़ाते जाएगे {काफिरों से अल्लाह का वादा}अल्लाह से डरने वालों के लिए बेशक कामयाबी है यानी बाग और अंगूर और नव ख्वास्ता नव उम्र औरतें और लबालब भरे हुए जाम ए शराब. वहाँ न कोई बेहूदः बातें सुनेंगे और न झूट. ये काम बदला मिलेगा जो काफी इनआम होगा रब की तरफ से."
सूरह नबा ७८ - पारा ३० आयत (२७-३६)

 नमाजियों !
तुम्हारा अल्लाह तुमको गलत इत्तेला देता है कि ये ज़मीन फर्श की तरह समतल है और पहाड़ उस पर खूंटों की तरह ठुके हुए हैं ताकि ये तुमको लेकर हिले दुले ना.
हक़ीक़त ये है कि तुम्हारी धरती गोल है जिसे तुम टी वी पर हर रोज़ कायनात में गर्दिश करते हुए देख सकते हो. ज़मीन अपने गोद में पहाड़ और समंदर कैसे लिए हुए है, इसे तुम अपने बच्चे से पूछ सकते हो अगर वह तालीम जदीद ले रहा हो वर्ना अगर वह मदरसे का पामाल तालिब इल्म है तो तुम्हारी अगली नस्ल भी ज़ाया गई.
तुम अगर थोड़े से तालीम याफ्ता हो या तुम में फ़िक्र की कुछ अलामत है तो इन आयतों वाली नमाज़ पढ़ ही नहीं सकते.
ईसाई भो मुसलमानों की तरह ही धरती को गोल न मान कर समतल मानते थे, मगर चार सौ साल पहले आलिम ए फल्कियात, गैलेलिओ के इन्किशाफ़ के बाद , हुज्जत करते हुए वह ज़मीन को गोल मानने लगे हैं.
क्या तुम चार सौ साल और लोगे सच को सच मानने के लिए? 'इसमें पहाड़ों के खूटे ठुके हुए हैं ताकि ये तुमको लेकर हिले दुले न' जैसी जिहालत भरी नमाज़ कब तक पढ़ते रहोगे?
रह गई ज़मीन पर कुदरत की बख्शी हुई नेमतें, तो इसको कौन बेवकूफ नहीं मानता. ये किसी छुपे हुए फ़नकार की तखलीक है, उसे खुदा, ईश्वर या गाड कोई भी नाम दो मागर इसे कुरानी अल्लाह का नाम नहीं दिया जा सकता क्यूंकि वह कठ मुल्ला है.
इसके अलावा तुम पूरा यकीन कर सकते हो कि तुमको मरने के बाद कोई सज़ा या जज़ा नहीं है.
ज़िन्दगी खुद एक आजार भरी सौगात है, मौत इसका अंजाम है.
मरने के बाद कोई सजा, कोई ताकत ऐसी नहीं जो तुम पर थोपे.

मुहम्मद इस लिए तुमको डराते हैं कि तुम इनको कम ओ बेश खुदा की तरह मानते हो. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 4 April 2017

Dharm Darshan 54



 इंसान को मुकम्मल आज़ादी चाहिए 

वयस्क होने के बाद  व्यक्ति को पूरी पूरी आज़ादी चाहिए. 
कुछ लोग वक़्त से पहले ही बालिग़ हो जाते हैं और कुछ को समय ज्यादा लग जाता है. सिन ए बलूगत (वयस्कावस्था) से पहले बच्चों को मानव मूल्यों के लिए टोकना चाहिए न कि अपनी धार्मिकता और मानसिकता को इन पर स्थापित करना चाहिए. मसलन बच्चों को हिंसा से रोकें मगर अहिंसा के पाठ न पढाएँ. 
बड़े बड़े लेक्चर बच्चों को जबरन कंडीशंड कर देते हैं और उनकी अपनी सलाहियत और सोच पर अंकुश लगा देते हैं. 
लिंग भेद के लिए बच्चों को कम से कम टोकना चाहिए.
इससे बच्चों में हानिकारक आकर्षण आ जाता है 
जो कि मानव समाज में बहुधा पाया जाता है, 
पशु इससे बे खबर होते हैं. 
हमारी सभ्य दुन्या ने जिन्स (लिंगीय) के संबंध को बे मज़ा और अप्राकृतिक कर दिया है. लिंगीय सरलता को जटिल कर दिया है. 
इस में मान मर्यादा और अस्मत की ज़हरीली छोंक का समावेश कर दिया है. 
यहाँ तक कि इसे पाप और दागदार क़रार दे  दिया है. 
भाई बहन ही समाज इसे सात पुश्तों के गोत्र तक ले जाता है. 
इस लिंगीय सरलता को इतना कठिन बना दिया गया है कि यह मसला घरों से लेकर समाज तक में ब्योवस्थित हो जाते हैं. 
बड़ी बड़ी जंगें इस लिंगीय कर्म के कारण हुई हैं. 
एक बार दुन्या इस समस्या को आसान करके देखे तो लगेगा यह कोई समस्या ही नहीं है. बल्कि दोनों पक्ष लिंगीय कामना को समर्थन और सम्मान देना चाहिए. 
हाँ मगर बिल जब्र की सूरत में यह जुर्म ज़रूर है.
लिंगीय कामना अगर दोनों तरफ शबाब पर हो तब उनको उँगली उठा कर संकेत देना चाहिए कि अब हम आमादा हैं. 
फिर किसी की मजाल नहीं होना चाहिए कि इनके बीच में आए.
इसका सम्मान होना चाहिए.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 3 April 2017

Soorah Mursalaat 77

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मुर्सेलात 77 - पारा २९   

कुदरत को अगर खुदा का नाम दिया जाए तो इसका भी कोई जिस्म होगा जैसे कि इंसान का एक जिस्म है. 
कुरआन और तौरेत की कई आयतों के मुताबिक खुद बखुद इलाही मुजस्सम साबित होता है. 
इंसान के जिस्म में एक दिमाग है .
 दिमाग रखने वाला खुदा झूठा साबित हो चूका  है. 
कुदरत (बनाम खुदा) के पास कोई दिमाग नहीं है बल्कि एक बहाव है, इसके अटल उसूलों के साथ. इसके बहाव से मखलूक को कभी सुख होता है कभी दुःख. 
ज़रुरत है कुदरत के जिस्म की बनावट को समझने की जैसे कि मेडिकल साइंस ने इंसानी जिस्म को समझा है और लगातार समझने की कोशिश कर रहा है. इनके ही कारनामों से इंसान कुदरत के सैकड़ों कह्र से नजात पा चुका है. मलेरिया, ताऊन, चेचक जैसी कई बीमारियों से और बाढ़, अकाल जैसी आपदाओं से नजात पा रहा है. 
जंगलों और गुफाओं की रिहाइश गाह आज हमें पुख्ता मकानों तक लेकर आ गाई हैं. हमें ज़रुरत है कुदरत बनाम खुदा के जिस्मानी बहाव को समझने की, नाकि उसकी इबादत करने की. इस रस्ते पर हमारे जदीद पैगम्बर साइंस दान गामज़न हैं. यही पैगम्बरान वक़्त एक दिन इस धरती को जन्नत बना देंगे.
इनकी राहों में दीन धरम के ठेकेदार रोड़े बिखेरे हुए हैं. जगे हुए इंसान ही इन मज़हब फरोशों को सुला सकते है.

जागो, आँखें खोलो, अल्लाह के फ़रमान पर गौर करो और मोमिन के मशविरे पर, फैसला करो कि कौन तुमको गुमराह कर रहा है - - -

"क़सम है उन हवाओं की जो नफ़ा पहुँचाने के लिए भेजी जाती हैं"
फिर उन हवाओं की जो तुन्दी से चलती हैं,
और उन हवाओं की जो बादलों को फैलाती हैं,
फिर उन हवाओं की जो बादलों को बिखेरती हैं,
फिर उन हवाओं की जो अल्लाह की याद उठाती हैं,
कि जिस चीज़ का वादा किया गया है वह होने वाली है."

अल्लाह मुसलामानों के साथ एक वादा किए हुए है, 
वादा हमेशा वरदान का होता है और कुछ देने के लिए मुसबत पहलू रखता है, मगर मुसलमान अपने अल्लाह का ऐसा वादा लिए हुए हैं जो नफ़ी पहलू रखता है. 
इसके साथ अल्लाह का क़यामत का वादा है. 
इसके लिए अल्लाह हवाओं की कसमें खाता है वह भी कैसी कैसी हवाओं की. मुसलमान इस हवाई अल्लाह के हवाई वादों से यकलख्त छुटकारा पा सकता है, बस कि वह तर्क इस्लाम कर दे. उसे सच्चा मोमिन बन्ने की सलाह है.
तुम्हारे सीने में आबाद इन किताबों को,
बस एक मुनकिर ओ इनकार की ज़रुरत है.

"सो जब सितारे बेनूर हो जाएँगे,
जब आसमान फट जाएगा,
और जब पहाड़ उड़ते फिरेंगे,
जब सब पैगम्बर वक़्त मुक़र्रर पर जमा किए जाएँगे,
किस दिन के वास्ते पैगम्बरों का मुआमला मुल्तवी रखा जाएगा?
फैसले के दिन के लिए,
और आपको मालूम है कि ये फैसले का दिन कैसा कुछ है?
उस रोज़ झुटलाने वाले की बड़ी खराबी होगी" .

मुसलामानों!
तुम्हारे दिमागों पर मुहम्मद भूत सवार है. अगर वह आज होते तो यकीनन किसी पागल खाने में होते. उनकी जगह पर एक बड़ी इंसानी आबादी पागल खाने में है .
इस्लाम तुम्हारे वजूद का घेरा बंदी करता है जोकि बाहर की आज़ाद दुन्या से तुमको महरूम  रखता है. ख्वाह मख्वाह तुम ससी और सहमी हुई ज़िदगी जी रहे हो. इस क़ैद खाने से बाहर निकलो.

"क्या हम अगले लोगों को हलाक नहीं कर चुके,
फिर पिछले को भी इन्हीं के साथ साथ कर देंगे,
हम मुजरिमों के साथ ऐसा ही कुछ किया करते हैं,
इस रोज़ झुटलाने वालों की बड़ी खराबी होगी,"

जो पैदा होता है वह मरता है, 
उसे न कोई अल्लाह पैदा करता है, न मारता है. 
कानून ए कुदरत को मुहम्मद अपना कानून बनाए हुए है, इन्तेहाई बेहूदा तरीके से.

"क्या हम ने तुम को एक बेक़द्र पानी से नहीं बनाया?
फिर हमने उसको एक वक़्त मुक़रार तक महफूज़ जगह में रख्खा,
ग़रज़ हमने एक अंदाज़ा ठहराया,
सो हम कैसे अंदाज़ा ठहराने वाले हैं,
उस रोज़ झुटलाने वालों की बड़ी खराबी होगी".

ये मुहम्मद का अंदाज़ा है जो उनकी जेहालत में शराबोर है. मुसलमानों इस गन्दगी से बहार निकलो.

"क्या हमने ज़मीन को जिंदा या मुर्दों को समेटने वाली नहीं बनाया,
और हम ने इसमें ऊंचे ऊंचे पहाड़ बनाए,
और हम ने तुमको मीठा पानी पिलाया,
और उस रोज़ झुलाने वाले की बड़ी खराबी होगी".

इन सवाबी आयातों को अपनी ज़बान में बार बार दोहराव  और देखो कि तुम खुद को पागल क़रार देने लगोगे मगर ये ज़बाने गैर में है, इसलिए तुम इसकी गन्दगी को उम्र भर दोहराते हो.

"एक साएबान की तरफ चलो,
जिसकी तीन शाखें हैं,
जिसमें न साया है न गर्मी से बचाता है,
वह अंगारे बरसाएगा जैसे बड़े बड़े महल,
जैसे काले काले ऊँट,
और उस रोज़ झुटलाने वाले की बड़ी खराबी होगी."
सूरह मुर्सेलात ७७ - पारा २९ आयत (१-३४)
(मुसलसल  "और उस रोज़ झुटलाने वाले की बड़ी खराबी होगी." 
तवील सूरह)


पागल की बड़ बड़ के सिवा और कुछ भी नहीं ये कुरआन. इसकी भरपूर मज़म्मत करने वालों की क़तार में खड़े हो जाने की ज़रुरत है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान