Wednesday 29 November 2017

Hindu Dharm Darshan 116



गीता और क़ुरआन

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>मुझ भगवान् में अपने चित्त को स्थिर करो
और अपनी सारी  बुद्धि मुझ में लगाओ.
इस प्रकार तुम निःसंदेह मुझ में वास करोगे.

>>हे अर्जुन ! हे धनञ्जय !!
 यदि तुम अपने चित को अविचल भाव से मुझ पर स्थिर नहीं कर सकते 
तो तुम भक्ति योग की विधि-विधानों का पालन करो.
इस प्रकार तुम मुझे प्राप्त करने की चाह पैदा करो. 

>>> यदि तुम यह अभ्यास नहीं कर सकते तो 
घ्यान के अनुशीलन में लग जाओ. 
लेकिन ज्ञान से श्रेष्ट ध्यान है
और ध्यान से भी श्रेष्ट कर्म फलों का परित्याग, 
क्योकि ऐसे त्याग से मनुष्य को मन शान्ति प्राप्त हो सकती है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 12  श्लोक -8 -9 -12  

*धार्मिकता मानव मस्तिष्क की दासता चाहती है. 
उसे तरह तरह के प्रलोभन देकर मनाया जाए 
और अगर इस पर भी न पसीजे तो इसे डरा धमका कर 
जैसा कि भगवान् अपने विकराल रूप अर्जुन को दिखलाता है 
कि डर के मारे अर्जुन की हवा निकल जाती है.  
गीता सार को जो प्रसारित और प्रचारित किया जाता है
 वह अलग अलग श्लोकों में वर्णित टुकड़ों का समूह समूह है 
जो अलग अलग संदर्भित है. 
हर टुकड़ा युद्ध को प्रेरित करने के लिए है 
मगर उसे संयुक्त करके कुछ और ही अर्थ विकसित किया गया है.  
आखिर भगवान् अपनी भक्ति के लिए क्यों बेचैन है ? 
कहते हैं कर्म करके फल को भूल जाओ. 
भला क्यों ? 
फल के लिए ही तो मानव कोई काम करता है. 
फल भक्त भूल जाए ताकि इसे भगवान् आसानी से हड़प ले. 
हम बैल हैं ? कि दिन भर हल जोतें और सानी पानी देकर मालिक फसल को भोगे ? यह गीता का घिनावना कार्य क्रम है जिसके असर में मनुवाद ठोस हुवा है 
और मानवता जरजर.
पडोसी चीन में धर्म को अधर्म क़रार दे दिया गया, 
वह भारत से कई गुणा आगे निकल गया है. 
यहाँ आज भी इनके बनाए हुए शूद्र और आदिवासी अथवा मूल निवासी ग़रीबी रेखा से निकल ही नहीं पा रहे. 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>मुहम्मदी अल्लाह के दाँव पेंच इस सूरह में मुलाहिज़ा हो - - -
"जो लोग काफ़िर हुए और अल्लाह के रस्ते से रोका, अल्लाह ने इनके अमल को क़ालअदम (निष्क्रीय) कर दिए. और जो ईमान लाए, जो मुहम्मद पर नाज़िल किया गया है, अल्लाह तअला इनके गुनाह इनके ऊपर से उतार देगा और इनकी हालत दुरुस्त रक्खेगा."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१-२)

मुहम्मद की पयंबरी भोले भाले इंसानों को ब्लेक मेल कर रही है जो इस बात को मानने के लिए मजबूर कर  रही है कि जो गैर फ़ितरी है. क़ुदरत का क़ानून है कि नेकी और बदी का सिला अमल के हिसाब से तय है,ये  इसके उल्टा बतला रही है कि अल्लाह आपकी नेकियों को आपके खाते से तल्फ़ कर देगा. कैसी बईमान मुहम्मदी अल्लाह की खुदाई है? किस कद्र ये पयंबरी झूट बोलने  पर आमादः है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 27 November 2017

अलबकर -२ पहला पारा- नवीं क़ुरान सार किस्त

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

***************

क़ुरआन सार 


* शराब और जुवा में बुराइयाँ हैं और अच्छइयां भी. 
*खैर और खैरात में उतना ही खर्च करो जितना आसान हो. 
* यतीमों के साथ मसलेहत की रिआयत रखना ज्यादा बेहतर है. 
*काफिर औरतों के साथ शादी मत करो भले ही लौंडी के साथ कर लो. 
*काफिर शौहर मत करो, उस से बेहतर गुलाम है. 
*हैज़ एक गन्दी चीज़ है हैज़ के आलम में बीवियों से दूर रहो. 
*मर्द का दर्जा औरत से बड़ा है. 
*सिर्फ दो बार तलाक़ दिया है तो बीवी को अपना लो चाहे छोड़ दो. 
*तलाक के बाद बीवी को दी हुई चीजें नहीं लेनी चाहिएं, 
मगर आपसी समझौता हो तो वापसी जायज़ है. 
जिसे दे कर औरत अपनी जन छुडा ले. 
*तीसरे तलाक़ के बाद बीवी हराम है.
*हलाला के अमल के बाद ही पहली बीवी जायज़ होगी. 
*माएँ अपनी औलाद को दो साल तक दूध पिलाएं 
तब तक बाप इनका ख़याल रखें. 
ये काम दाइयों से भी कराया जा सकता है. 
*एत्काफ़ में बीवियों के पास नहीं जाना चाहिए. 
*बेवाओं को शौहर के मौत के बाद चार महीना दस दिन निकाह के लिए रुकना चाहिए. 
*बेवाओं को एक साल तक घर में पनाह देना चाहिए 
*मुसलमानों को रमजान की शब् में जिमा हलाल हुवा.
वगैरह वगैरह सूरह कि खास बातें, 
इस के अलावः नाकाबिले कद्र बातें जो फुजूल कही जा सकती हैं. 
भरी हुई हैं.
तमाम आलिमान को मोमिन का चैलेंज है.
मुसलमान आँख बंद कर के कहता है क़ुरआन में निजाम हयात 
(जीवन-विधान) है.
नमाज़ियो!
ये बात मुल्ला, मौलवी उसके सामने इतना दोहराते हैं कि वह सोंच भी नहीं सकता कि ये उसकी जिंदगी के साथ सब से बड़ा झूट है. 
ऊपर की बातों में आप तलाश कीजिए कि कौन सी इन बेहूदा बातों का आज की ज़िन्दगी से वास्ता है. 
इसी तरह इनकी हर हर बात में झूट का अंबार रहता है. 
इनसे नजात दिलाना हर मोमिन का क़स्द होना चाहिए . 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 26 November 2017

Hindu Dharm Darshan 115



वेद दर्शन 
 खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 
 हे प्रचंड योद्धा इन्द्र! 
तू सहस्त्रों प्रकार के भीषण युद्धों में अपने रक्षा-साधनों द्वारा हमारी रक्षा कर |४| 
हमारे साथियों की रक्षा के लिए वज्र धारण करता है, 
वह इन्द्र हमें धन अथवा बहुत से ऐश्वर्य के निमित्त प्राप्त हो.
(ऋग्वेद १.३.७) 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

इन्हीं वेदों की देन हैं कि आज मानव समाज विधर्मिओं और अधर्मियों को मिटाने की दुआ माँगा करता है और उनके बदले अपनी सुरक्षा चाहता है. इंसान को दूसरों का शुभ चिन्तक होना चाहिए.

                    
 खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 
अग्नि ने अपने मित्र इंद्र के लिए तीन सौ भैंसों को पकाया था. 
इंद्र ने वृत्र को मारने के लिए मनु के तीन पात्रों में भरे सोम रस को एक साथ ही पी लिया था.
 पंचम मंडल सूक्त - 7 
हे धन स्वामी इंद्र ! 
जब तुमने तीन सौ भैसों का मांस खाया, 
सोम रस से भरे तीन पात्रों को पिया 
एवं वृत्र को मारा, तब सब देवों ने सोमरस से पूर्ण तृप्त इंद्र को उसी प्रकार बुलाया जैसे मालिक अपने नौकर को बुलाता है. 
* मांसाहार भगवा भगवांस - - -


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 25 November 2017

अलबकर -२ पहला पारा- अलबकर -२ पहला पारा- आठवीं किस्त

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
********

सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर 
क़िस्त 8 (आख़ीर)

अज़ीयत पसंद हज़रात चाहें तो कुरआन उठा कर आयत २६१ देखें. 
सवाल उठता है हम ऐसी बातें वास्ते सवाब पढ़ते हैं? 
दिन ओ रात इन्हें दोहराते हैं, 
क्या अनजाने में हम पागल पन की हरकत नहीं करते ? 
 हाँ ! 
अगर हम इसको अपनी जबान में बआवाज़ बुलंद दोहराते रहें. 
सुनने वाले यक़ीनन हमें पागल कहने लगेंगे और इन्हें छोडें, 
कुछ दिनों बाद हम खुद अपने आप को पागल महसूस करने लगेंगे. 
आम तौर पर मुसलमान इसी मरज़ का शिकार है जिस की गवाह इस की मौजूदा तस्वीर है. 
वह अपने मुहम्मदी अल्लाह का हुक्म मान कर ही पागल तालिबान बन चुका है. ."
.(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 261) 

खर्च पर मुसलसल मुहम्मदी अल्लाह की ऊट पटांग तकरीर चलती रहती है. मालदार लोगों पर उसकी नज़रे बद लगी रहती है, 
सूद खोरी हराम है मगर बज़रीआ सूद कमाई गई दौलते बिक़ा हलाल हो सकती है अगर अल्लाह की साझे दारी हो जाए. 
रहन, बय, सूद और इन सब के साथ साथ गवाहों की हाज़िरी जैसी आमियाना बातें अल्लाह हिकमत वाला खोल खोल कर समझाता है. 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 263-273) 

अल्लाह ने इन आयतों में ख़र्च करने के तरीक़े और उस पर पाबंदियां भी लगाई हैं. 
कहीं पर भी मशक्क़त और ईमानदारी के साथ रिज़्क़ कमाने का मशविरा नहीं दिया है. 
इस के बर अक्स जेहाद लूट मार की तलक़ीन हर सूरह में है. 
"ऐ ईमान वालो! तुम एहसान जतला कर या ईजा पहुंचा कर अपनी ख़ैरात को बर्बाद मत करो, उस शख्स की तरह जो अपना मॉल ख़र्च करता है, लोगों को दिखने की ग़रज़ से और ईमान नहीं रखता - - - ऐसे लोगो को अपनी कमाई ज़रा भी हाथ न लगेगी और अल्लाह काफ़िरों को रास्ता न बतला देंगे." 
जरा मुहम्मद की हिकमते अमली पर गौर करें कि वह लोगों से कैसे अल्लाह का टेक्स वसूलते हैं. 
जुमले की ब्लेक मेलिंग तवज्जेह तलब है - - -
और अल्लाह काफिरों को रास्ता न बतला देंगे - - - 
एक मिसाल अल्लाह की और झेलिए- - - 
"भला तुम में से किसी को यह बात पसंद है कि एक बाग़ हो खजूर का और एक अंगूर का. इस के नीचे नहरें चलती हों, उस शख्स के इस बाग़ में और भी मेवे हों और उस शख्स का बुढापा आ गया हो और उसके अहलो अयाल भी हों, जान में कूवत नहीं, सो उस बाग़ पर एक बगूला आवे जिस में आग हो ,फिर वह बाग जल जावे. अल्लाह इसी तरह के नज़ाएर फरमाते हैं, तुम्हारे लिए ताकि तुम सोचो," 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 266) 

" और जो सूद का बक़ाया है उसको छोड़ दो, अगर तुम ईमान वाले हो और अगर इस पर अमल न करोगे तो इश्तहार सुन लो अल्लाह की तरफ से कि जंग का - - - और इस के रसूल कि तरफ से. और अगर तौबा कर लो गे तो तुम्हारे अस्ल अमवाल मिल जाएँगे. न तुम किसी पर ज़ुल्म कर पाओगे, न कोई तुम पर ज़ुल्म कर पाएगा." 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 279) 

एक अच्छी बात निकली मुहम्मद के मुँह से पहली बार 
"लेन देन किया करो तो एक दस्तावेज़ तैयार कर लिया करो, इस पर दो मर्दों की गवाही करा लिया करो, दो मर्द न मलें तो एक मर्द और दो औरतों की गवाही ले लो" 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 283) 

यानी दो औरत=एक मर्द 
कुरान में एक लफ्ज़ या कोई फ़िक़रा या अंदाज ए  बयान का सिलसिला बहुत देर तक क़ायम रहता है जैसे कोई अक्सर जाहिल लोग पढ़े लिखों की नक़्ल में पैरवी करते हैं. इस लिए भी ये उम्मी मुहम्मद का कलाम है, साबित करने के लिए लसानी तूल कलामी दरकार है. 
यहाँ पर अल्लाह के रसूल की धुन है 
"लोग आप से पूछते हैं. "
अल्लाह का सवाल फर्जी होता है, जवाब में वह जो बात कहना चाहता है. ये जवाब एन इंसानी फ़ितरत के मुताबिक होते हैं, जो हजारों सालों से तस्लीम शुदा हैं. जिसे आज मुस्लमान कुरानी ईजाद मानते हैं. 
आम मुसलमान समझता है इंसानियत, शराफ़त, और ईमानदारी, सब इसलाम की देन है, ज़ाहिर है उसमें तालीम की कमी है. उसे महदूद मुस्लिम मुआशरे में ही रखा गया है. 

कुरान में कीडे निकालना भर मेरा मक़सद नहीं है, बहुत सी अच्छी बातें हैं, इस पर मेरी नज़र क्यूँ नहीं जाती?
"अक्सर ऐसे सवाल आप की नज़र के सामने मेरे ख़िलाफ़ कौधते होंगे. बहुत सी अच्छी बातें, बहुत ही पहले कही गई हैं, 
एक से एक अज़ीम हस्तियां और नज़रियात इसलाम से पहले इस ज़मीन पर आ चुकी हैं जिसे कि कुरानी अल्लाह तसव्वुर भी नहीं कर सकता. अच्छी और सच्ची बातें फितरी होती हैं जिनहें आलमीं सचचाइयाँ भी कह सकते हैं. 
कुरान में कोई एक बात भी इसकी अपनी सच्चाई या इन्फरादी सदाक़त नहीं है. हजारों बकवास और झूट के बीच अगर किसी का कोई सच आ गया हो तो उसको कुरान का नहीं कहा जा सकता,
"माँ बाप की ख़िदमत करो" 
अगर कुरान में कहता है तो इसकी अमली मिसाल श्रवण कुमार इस्लाम से सदियों पहले क़ायम कर चुका है. 
मौलाना कूप मंडूकों का मुतलिआ कुरान तक सीमित है इस लिए उनको हर बात कुरान में नज़र आती है. 
यही हाल अशिक्षित मुसलमानों का है. 

सूरह के आख़ीर में अल्लाह खुद अपने आप से दुआ मांगता है, 
बकौल मुहम्मद कुरआन अल्लाह का कलाम है ? 
देखिए आयत में अल्लाह अपने सुपर अल्लाह के आगे कैसे ज़ारों क़तार गिडगिडा रहा है. 
सदियों से अपने फ़ल्सफ़े को दोहरते दोहराते मुल्ला अल्ला को बहरूपिया बना चुका है, 
वह दुआ मांगते वक़्त बन्दा बन जाता है. 
मुहम्मद दुआ मांगते हैं तो एलानिया अल्लाह बन जाते हैं. 
उनके मुंह से निकली बात, चाहे उनके आल औलादों के ख़ैर के लिए हो, चाहे सय्यादों के लिए बरकत की हो, कलाम इलाही बन कर निकलती है. 
आले इब्राहीमा व आला आले इब्राहिम इन्नका हमीदुं मजीद. 
यानी आले इब्राहीम ग़रज़ यहूदियों की ख़ैर ओ बरकत की दुआ दुन्या का हर मुस्लमान मांगता है और वही यहूदी मुसलमानों के जानी दुश्मन बने हुए हैं. 
हम हिदुस्तानी मुसलमान यानि अरबियों कि भाष में हिंदी मिस्कीन अरबों के ज़ेहनी गुलाम बने हुए हैं. 
अल्लाह को ज़ारों कतार रो रो कर दुआ मांगने वाले पसंद हैं. 
यह एक तरीक़े का नफ़्सियाती ब्लेक मेल है. 
रंज ओ ग़म से भरा हुआ इंसान कहीं बैठ कर जी भर के रो ले तो उसे जो राहत मिलती है, अल्लाह उसे कैश करता है, 
(बकौल मुहम्मद कुरआन अल्लाह का कलाम है ? 
देखिए आयत में अल्लाह अपने सुपर अल्लाह के आगे कैसे ज़ारों क़तार गिडगिडा रहा है. 
सदियों से अपने फ़ल्सफ़े को दोहरते दोहराते मुल्ला अल्ला को बहरूपिया बना चुका है, 
वह दुआ मांगते वक़्त बन्दा बन जाता है. 
मुहम्मद दुआ मांगते हैं तो एलानिया अल्लाह बन जाते हैं. 
उनके मुंह से निकली बात, चाहे उनके आल औलादों के ख़ैर के लिए हो, चाहे सय्यादों के लिए बरकत की हो, कलाम इलाही बन कर निकलती है. 
आले इब्राहीमा व आला आले इब्राहिम इन्नका हमीदुं मजीद. 
यानी आले इब्राहीम ग़रज़ यहूदियों की ख़ैर ओ बरकत की दुआ दुन्या का हर मुस्लमान मांगता है और वही यहूदी मुसलमानों के जानी दुश्मन बने हुए हैं. 
हम हिदुस्तानी मुसलमान यानि अरबियों कि भाष में हिंदी मिस्कीन अरबों के ज़ेहनी गुलाम बने हुए हैं. 
अल्लाह को ज़ारों कतार रो रो कर दुआ मांगने वाले पसंद हैं. 
यह एक तरीक़े का नफ़्सियाती ब्लेक मेल है. 
रंज ओ ग़म से भरा हुआ इंसान कहीं बैठ कर जी भर के रो ले तो उसे जो राहत मिलती है, अल्लाह उसे कैश करता है, 
सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 284-286) 


कुरान की एक बड़ी सूरह अलबकर अपनी २८६ आयातों के साथ तमाम हुई- जिसका लब्बो लुबाबा दर्ज जेल है - - -


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 22 November 2017

अलबकर -२ पहला पारा- सातवीं किस्त

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************

सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर 
क़िस्तt-7

"अल्लाह के राह में क़त्ताल करो" 
कुरआन का यही एक जुमला तमाम इंसानियत के लिए चैलेंज है, 
जिसे कि तालिबान नंगे हथियार लेकर दुन्या के सामने खड़े हुए हैं. 
अल्लाह की राह क्या है? 
इसे कालिमा ए शहादत
"लाइलाहा इललिललाह, मुहम्मदुररसूल लिललाह" 
यानी 
(एक आल्लाह के सिवा कोई अल्लाह आराध्य नहीं और मुहम्मद उसके दूत हैं) 
को आंख बंद करके पढ़ लीजिए और उसकी राह पर निकल पडिए 
या जानना चाहते हैं तो किसी मदरसे के तालिब इल्म (छात्र) से अधूरी जानकारी और वहां के मौलाना से पूरी पूरी जानकारी ले लीजिए.
जो लड़के उनके हवाले होते हैं उनको खुफ़िया तालीम दी जाती है. मौलाना रहनुमाई करते हैं और कुरान और हदीसें इनको मंजिल तक पहंचा देते हैं. 
मगर ज़रा रुकिए, ये सभी इन्तेहाई दर्जे धूर्त और दुष्ट लोग होते है, 
आप का हिन्दू नाम सुनत्ते ही सेकुलर पाठ खोल देंगे, 
फ़िलहाल हम जैसे ग़ैर जानिब दार पर ही भरोसा कर सकते हैं. 
हम जैसे सच्चों को इस्लाम मुनाफ़िक़ कहता है 
क्यूंकि चेतना और ज़मीर को कालिमा पहले ही खा लेता है. 
जी हाँ ! 
यही कालिमा इंसान को इंसान से मुसलमान बनाता है जो सिर्फ एक क़त्ल नहीं क़त्ल का बहु वचन क़त्ताल, सैकडों, हज़ारों क़त्ल करने का फ़रमान जारी करता है. यह फ़रमान किसी और का नहीं अल्लाह में बैठे मुहम्मदुररसूल अल्लाह का होता है. 
अल्लाह तो अपने बन्दों का रोयाँ भी दुखाना नहीं चाहता होगा, 
अगर वह होगा तो बाप की तरह ही होगा. 

आयत न २४४ के तहत मुहम्मद फिर एक बार मुसलमानों को भड़का रहे हैं कि अल्लाह को मंज़ूर है कि हम काफिरों का क़त्ताल क रें . 
"अल्लाह जिंदा है, संभालने वाला है, न उसको ऊंघ दबा सकती है न नींद, इसी की ममलूक है सब जो आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है- - - -इसकी मालूमात में से किसी चीज़ को अपने अहाता ए इल्मी में नहीं ला सकते, मगर जिस क़दर वह चाहे इस की कुर्सी ने सब आसमानों और ज़मीन को अपने अन्दर ले रखा है,और अल्लाह को इन दोनों की हिफ़ाज़त कुछ गराँ नहीं गुज़रती और वह आली शान और अजीमुश्शान है" 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 255) 

मुहम्मद साहब को पता नहीं क्यूँ ये बतलाने की ज़रुरत पड़ गई कि अल्लाह मियां मुर्दा नहीं हैं, उन में जान है. और वह बन्दों की तरह ला परवाह भी नहीं हैं, जिम्मेदार हैं. अफ़ीम नहीं खाते या कोई और नशा नहीं करते कि ऊंघते हों, या अंटा गफ़ील हो जाएँ, सब कुछ संभाले हुए हैं, ये बात अलग है की सूखा, बाढ़, क़हत, ज़लज़ला, तो लाना ही पड़ता है. अजब ज़ौक के मख़लूक़ हैं, 
जो भी हो अहेद के पक्के हैं. 
दोज़ख के साथ किए हुए मुआहिदा को जान लगा कर निभाते, 
उस गरीब का पेट जो भरना है. 
सब से पहले उसका मुंह चीरा है, बाक़ी का बाद में - - - 
चालू क़समें जिनको खा लेने पर अल्लाह मुआफ़ करता है, खा कर कहते हैं,
" दीन में ज़बरदस्ती नहीं." 
क़ुरआन  में ताज़ाद ((विरोधाभास) का यह सब से बड़ा निशान है. 
दीन ए इस्लाम में तो इतनी ज़बरदस्ती है कि इसे मानो या जज़िया दो या गुलामी कुबूल करो या तो फिर इस के मुंकिर होकर जान गंवाओ. 
"दीन में ज़बरदस्ती नहीं."ये बात उस वक़्त कही गई थी जब मुहम्मद की मक्का के कुरैश से कोर दबती थी. जैसे आज भारत में मुसलमानों की कोर दब रही है, वर्ना इस्लाम का असली रूप तो तालिबानी ही है. 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 256) 

दीन की बातें छोड़ कर मुहम्म्द्द फिर किस्सा गोई पर आ जाते हैं. 
अल्लाह से एक क़िस्सा गढ़वाते है क़िस्सा को पढ़ कर आप हैरान होंगे कि क़िस्सा गो मकानों को उनकी छतों पर गिरवाता है. 
कहानी पढिए, कहानी पर नहीं, कहानी कार पर मुकुरइए और उन नमाज़ियों पर आठ आठ आंसू बहाइए जो इसको अनजाने में अपनी नमाज़ों इसे में दोहरात्ते हैं. 

उनके ईमान पर मातम कीजिए जो ऐसी अहमकाना बातों पर ईमान रखते हैं. फिर दिल पर पत्थर रख कर सब्र कर डालिए कि वह मय अपने बल बच्चों के, तालिबानों का नावाला बन्ने जा रहे हैं. 

"तुम को इस तरह का क़िस्सा भी मालूम है, जैसे की एक शख्स था कि ऐसी बस्ती में ऐसी हालत में उसका गुज़र हुवा कि उसके मकानात अपनी छतों पर गिर गए थे, कहने लगे कि अल्लाह ताला इस बस्ती को इस के मरे पीछे किस कैफ़ियत से जिंदा करेंगे, सो अल्लाह तअला ने उस शख्स को सौ साल जिंदा रक्खा, फिर उठाया, पूछा, कि तू कितनी मुद्दत इस हालत में रहा? उस शख्स ने जवाब दिया एक दिन रहा हूँगा या एक दिन से भी कम. अल्लाह ने फ़रमाया नहीं, बल्कि सौ बरस रहा. तू अपने खाने पीने को देख ले कि सड़ी गली नहीं और दूसरे तू अपने गधे की तरफ देख और ताकि हम तुझ को एक नज़र लोगों के लिए बना दें.और हड्डियों की तरफ देख, हम उनको किस तरह तरकीब दी देते हें, फिर उस पर गोश्त चढा देते हैं - - - बे शक अल्लाह हर चीज़ पर पूरी कुदरत रखते हैं."
(सूरहह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 259) 

मुहम्मद ऐसी ही बे सिर पैर की मिसालें कुरान में गढ़ते हैं जिसकी तफ़सीर निगार रफ़ू किया करते हैं..
एक मुफ़स्सिर इसे यूं लिखता है - - -
यानी पहले छतें गिरीं फिर उसके ऊपर दीवारें गिरीं, मुराद यह कि हादसे से बस्ती वीरान हो गई." 
इस सूरह में अल्लाह ने इसी क़िस्म की तीन मिसालें और दी हैं जिन से न कोई नसीहत मिलती है, न उसमें कोई दानाई छिपी है, पढ़ कर खिस्याहट अलग होती है. 
अंदाजे बयान बचकाना है, बेज़ार करता है, 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 21 November 2017

Hindu Dharm Darshan 114



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>बुद्धिहीन मनुष्य मुझको ठीक से न जानने के कारण सोचते हैं 
कि मैं (भगवान कृष्ण) पहले निराकार था 
और अब मैंने इस स्वरूप को धारण किया है . 
वह अपने अज्ञान के करण मेरी अविनाशी तथा सर्वोच प्रकृति को नहीं जान पाते.
**मैं मूरखों एवं अल्पज्ञो के लिए कभी भी प्रकट नहीं होता हूँ.
उनके लिए तो मैं अपनी अंतरंगाशक्ति द्वारा आच्छादित रहता हूँ, 
अतः वे नहीं जान पाते कि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -24 +25 

> भगवान् रूपी जीव ईश्वरीय शक्ति का मालिक होता है, 
नकि इतना लाचार कि उसे रूप बदलने की ज़रुरत हो. 
सभी धर्म ग्रन्थ अपने ईजाद किए हुए भगवानों को न स्वीकारने वालों को अभद्र भाषा की शब्दावली प्रयोग में लाते हैं. 
थोडा स अगर आपके अन्दर स्वचितन है तो गई भैंस पानी में, 
आपको अज्ञानी अभिमानी और नास्तिक की उपाधि मिल जाएगी. 
धार्मिक रहकर आप कभी भी सीमा रेखा को पार नहीं कर सकते. 
एक अँगरेज़ कथा कार की मशहूर कथा है कि 
एक ठग शोहरत की बुलंदियों पर पहुँच चुका था. वह दुन्या के सबसे अद्भुत तथा कथित परिधान बनाता है जिसके पहनने वाले को सिर्फ सच्ची नज़रें देख सकती हैं, झूटों को वह नज़र नहीं आएगा. खबर राजा तक पहुंची तो वह राज महल पहुँच गया और राजा को अपना आविष्कार किया हुवा लिबास पहना दिया. किसकी मजाल थी कि वह खुद को अँधा साबित करे. सब ने ताली बजाई और राजा नंगा आसन पर बैठ कर शहर में घुमा दिया गया . 
केवल औरतें राजा को देख कर नज़रें नीची करके हैरत में पड़ जातीं, 
" हाय दय्या ! राजा नंगा ?? 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>''क्या तुम सचमुच गवाही दोगे कि अल्लाह के साथ और कोई देव भी हैं? 
आप कह दीजिए कि मैं तो गवाही नहीं देता. 
आप कह दीजिए कि वह तो बस एक ही माबूद (पूज्य) है 
और बेशक मैं तुम्हारे शिर्क से बेज़ार हूँ"
'' जिन लोगों ने अपने आप को ज़ाया कर लिया वह ईमान न लाएंगे''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (१६-२४) 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 20 November 2017

अलबकर -२ पहला पारा- छटवीं किस्त

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अल्बक्र २ दूसरा पारा
छटवीं किस्त

हरामा 

मुसलामानों में रायज रुस्वाए ज़माना नाज़ेबगी हलाला जिसको दर असल हरामा कहना मुनासिब होगा, वह तलाक़ दी हुई अपनी बीवी को दोबारा अपनाने का एक शर्म नाक तरीक़ा है जिस के तहेत मतलूक़ा को किसी दूसरे मर्द के साथ निकाह करना होगा और उसके साथ हम बिस्तरी की शर्त लागू होगी फिर वह तलाक़ देगा, बाद इद्दत ख़त्म औरत का तिबारा निकाह अपने पहले शौहर के साथ होगा, 
तब जाकर दोनों इस्लामी दागे बे ग़ैरती को ढोते हुए तमाम जिंदगी गुज़ारेंगे. 

अक्सर ऐसा भी होता है कि टेम्प्रेरी शौहर औरत को तलाक़ ही नहीं देता और वह नई मुसीबत में फंस जाती है, उधर शौहर ठगा सा रह जाता है. ज़रा तसव्वुर करें कि मामूली सी बात का इतना बड़ा बतंगड़, दो जिंदगियां और उनके मासूम बच्चे ताउम्र रुसवाई का बोझ ढोते रहें. 

"मुहम्मदी अल्लाह तलाक़ शुदा और बेवाओं के लिए अधूरे और बे तुके फ़रमान जारी करता है. बच्चों को दूध पिलाने कि मुद्दत और शरायत पर भी देर तक एलान करता है जो कि गैर ज़रूरी लगते हैं. 
एक तवील ला हासिल गुफ्तुगू जो कुरआन में बार बार दोहराई गई है जिस को इल्म का खज़ाना रखने वाले आलिम अपनी तकरीर में हवाला देते हैं कि अल्लाह ने यह बात फलां फलां सूरतों की फलां फलां आयत में फरमाई है, दर असल वह उम्मी मुहम्मद कि बड़ बड़ है जो बार बार कुरआन का पेट भरने के लिए आती है, और आलिमों का पेट इन आयातों की जेहालत से भारती है. "
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पारा आयत २३१-२४२)

अल्लाह औरतों के जिंसी और अज़वाजी मसलों की डाल से फुधक कर अफ़साना निगारी की टहनी पर आ बैठता है बद ज़ायका एक किस्सा पढ़ कर, आप भी अपने मुंह का ज़ायका बिगाडिए - - - 

"तुझको उन लोगों का क़िस्सा तहकीक़ नहीं हुवा जो अपने घरों से निकल गए थे और वह लोग हजारो ही थे, मौत से बचने के लिए. सो अल्लाह ने उन के लिए फ़रमाया कि मर जाओ, फिर उन को जला दिया. बे शक अल्लाह ताला बड़े फज़ल करने वाले हैं लोगों पर मगर अक्सर लोग शुक्र नहीं करते."
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पारा आयत २४३) 

लीजिए अफ़साना तमाम. 
क्या फ़ज़ले इलाही? उस जालिम अल्लाह का यही फ़ज़ल है  जिस ने अपने बन्दों को बे यारो मददगार करके जला दिया ? 
ये मुहम्मद कि ज़लिमाना फ़ितरत की लाशुऊरी अक्कासी ही है जिसको वह निहायत फूहड़ ढंड से बयान करते हैं. 

देखिए मुहम्मद के मुंह से अल्लाह को या अल्लाह के मुंह से मुहम्मद को, यह बैंकिंग प्रोग्राम पेश करते हैं, जेहाद करो - - - 

"अल्लाह के पास आपनी जान जमा करो, मर गए तो दूसरे रोज़ ही जन्नत में दाखला, मोती के महल, हूरे, शराब, कबाब, एशे लाफानी, अगर कामयाब हुए तो जीते जी माले गनीमत का अंबार और अगर क़त्ताल से जान चुराते हो का याद रखो लौट कर अल्लाह के पास ही जाना है, वहाँ खबर ली जाएगी. कितनी मंसूबा बंद तरकीब है बे वकूफों के लिए."

"और अल्लाह कि राह में क़त्ताल करो. कौन शख्स है ऐसा जो अल्लाह को क़र्ज़ दिया और फिर अल्लाह उसे बढा कर बहुत से हिस्से कर दे और अल्लाह कमी करते हैं और फराखी करते हैं और तुम इसी तरफ ले जाए जाओगे"
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत २४४+२४५)

"अगर अल्लाह को मंज़ूर होता वह लोग 
(मूसा के बाद किसी नबी की उम्मत)
उनके बाद किए हुआ बाहम कत्ल ओ क़त्ताल नहीं करते, बाद इसके, इनके पास दलील पहुँच चुकी थी, लेकिन वह लोग बाहम मुख्तलिफ हुए सो उन में से कोई तो ईमान लाया और कोई काफिर रहा. और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो वह बाहम क़त्ल ओ क़त्ताल न करते लेकिन अल्लाह जो कहते है वही करते हैं"
(सुरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत २५३)

मुहम्मद ने कैसा अल्लाह मुरत्तब किया था? 
क्या चाहता था वह? क्या उसे मंज़ूर था? मन मानी? 
मुसलमान कब तक क़ुरआनी अज़ाब में मुब्तिला रहेगा ? 
कब तक यह मुट्ठी भर इस्लामी ओलिमा  अपमी इल्म के ज़हर की मार गरीब मुस्लिम अवाम पर थोपते रहेंगे, 
मूसा को मिली उसके इलोही की दस हिदायतें आज क्या बिसात रखती हैं, हाँ मगर वक़्त आ गया है कि आज हम उनको बौना साबित कर रहे हैं. 
मूसा की उम्मत यहूद इल्म जदीद के हर शोबे में आसमान से तारे तोड़ रही है और उम्मते मुहम्मदी आसमान पर खाबों की जन्नत और दोज़ख तामीर कर रही है. इसके आधे सर फरोश तरक्की याफ़्ता कौमों के छोड़े हुए हतियार से खुद मुसलमानों पर निशाना साध रहे हैं और आधे सर फरोश इल्मी लियाक़त से दरोग फरोशी कर रहे हैं. 

मुसलमानों! 
खुदा के लिए जागो, 
वक्त की रफ़्तार के साथ खुद को जोडो, बहुत पीछे हुए जा रहे हो ,
तुम ही न बचोगे तो इस्लाम का मतलब? 
यह इसलाम, यह इस्लामी अल्लाह, यह इस्लामी पयम्बर, सब एक बड़ी साजिश हैं, काश समझ सको. इसके धंधे बाज़ सब के सब तुम्हारा इस्तेसाल (शोषण) कर रहे है. 
ये जितने बड़े रुतबे वाले, इल्म वाले, शोहरत वाले, या दौलत वाले हैं, सब के सब कल्बे स्याह, बे ज़मीर, दरोग गो और सरापा झूट हैं. 
इसलाम तस्लीम शुदा गुलामी है, इस से नजात हासिल करने की हिम्मत जुटाओ, ईमान जीने की आज़ादी है, इसे समझो और मुस्लिम नहीं,मोमिम बनो. 




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 18 November 2017

Hindu Dharm Darshan 113



गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
हे महाबाहु अर्जुन ! और आगे सुनो. 
चूँकि तुम मेरे प्रिय सखा हो, 
अतः मैं तुम्हारे लाभ के लिए  ऐसा ज्ञान प्रदान करूँगा, 
जो अभी तक मेरे द्वारा बताए गए ज्ञान में श्रेष्ट होगा .
**जो मुझे अजन्मा अनादि,  
समस्त लोकों के  स्वामी के रूप में जनता है,
मनुष्यों में केवल वही मोहरहित और समस्त पापों से मुक्त हिता है.     
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 10  श्लोक -1+3 

> भगवान् एक सामान्य आदमी को विभिन्न उपाधियाँ देकर ही संबोधित करते हैं.. कभी महाबाहु तो कभी कुंती पुत्र तो कभी पृथा पुत्र, पांडु पुत्र और भरतवंशी. 
अर्जुन भी कोई कसर नहीं छोड़ते मधुसूदन  भगवान्   पुरुषोत्तम आदि उपाधियों से नवाजते हैं. 
फ़ारसी की एक सूक्ति है कि नए शहर में रोज़ी कमाने दो लोग गए और तय किया कि "मन तुरा क़ाज़ी बगोयम, तू मरा हाजी बेगो." 
(तुम मुझे काज़ी जी कहा करो और मै तुमको हाजी जी.) 
कुछ दिनों में हम दोनों कम से कम इज़्ज़त तो कमा ही लेगे .
खैर यह लेखनी की नाट्य कला है. गीता कृष्ण और अर्जुन का नाटक ही तो है जिसे धर्म ग्रन्थ में लिया गया है. उसके बाद तुलसी दास के महा काव्य कृति रामायण को धर्म ग्रन्थ मान लिया गया.
कृष्ण जी अपने प्रिय सखा से एक ही बात को बार बार दोहराते हैं कि आखिर तुम मुझको ईश्वरीय ताक़त क्यों नहीं मान लेते.
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( २४ )

जादूई खसलत के मालिक मुहम्मद इंसानी ज़ेहन पर इस कद्र क़ाबू पाने में आखिर कार कामयाब हो ही गए जितना कि कोई ज़ालिम आमिर किसी कौम पर फ़तह पाकर उसे गुलाम बना कर भी नहीं पा सकती. आज दुन्या की बड़ी आबादी उसकी दरोग की आवाज़ को सर आँख पर ढो रही है और उसके कल्पित अल्लाह को खुद अपने और अपने दिल ओ दिमाग के बीच हायल किए हुए है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 17 November 2017

अलबकर -२ पहला पारा- पांचवीं किस्त

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
****************

सूरह अल्बक्र २ दूसरा पारा 
पाँचवीं किस्त 
हज 

हज जैसे ज़ेह्नी तफ़रीह में कोई तखरीबी पहलू नज़र नहीं आता सिवाय इसके कि ये मुहम्मद का अपनी क़ौम के लिए एक मुआशी ख़्वाब था. 
आज समाज में हज हैसियत की नुमाइश एक फैशन भी बना हुवा है. दरमियाना तबक़ा अपनी बचत पूंजी इस पर बरबाद कर के अपने बुढापे को ठन ठन गोपाल कर लेता है, जो अफ़सोस का मुक़ाम है. 
हज हर मुसलमान पर एक तरह का उस के मुसलमान होने का क़र्ज़ है जो मुहम्मद ने अपनी क़ौम के लिए उस पर लादा है. उम्मी की इस सियासत को दुन्या की हर पिछ्ड़ी हुई कौम ढो रही है. 

अल्लाह कहता है - - - 
"क्या तुहारा ख़याल है कि जन्नत में दाखिल होगे, हाँलाकि तुम को अभी तक इन का सा कोई अजीब वक़ेआ अभी पेश नहीं आया है जो तुम से पहले गुज़रे हैं और उन पर ऐसी ऐसी सख्ती और तंगी वाके हुई है और उन को यहाँ तक जुन्बिशें हुई हैं कि पैग़म्बर तक और जो उन के साथ अहले ईमान थे बोल उठे कि अल्लाह की मदद कब आएगी. याद रखो कि अल्लाह की इमदाद बहुत नज़दीक है"
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २१३)

मुहम्मद अपने शागिर्दों को तसल्ली की भाषा में समझा रहे हैं, कि अल्लाह की मदद ज़रूर आएगी और साथ साथ एलान है कि ये कुरान अल्लाह का कलाम है. इस कशमकश को मुसलमान सदियों से झेल रहा है कि इसे अल्लाह का कलाम माने या मुहम्मद का. 
ईमान लाने वालों ने इस्लाम कुबूल करके मुसीबत मोल ले ली है. 

उन के लिए अल्लाह फ़रमाता है - - - 
(तालिबानी आयत) 
"जेहाद करना तुम पर फ़र्ज़ कर दिया गया है और वह तुम को गराँ है और यह बात मुमकिन है तुम किसी अम्र को गराँ समझो और वह तुम्हारे ख़ैर में हो और मुमकिन है तुम किसी अम्र को मरगूब समझो और वह तुम्हारे हक में खराबी हो और अल्लाह सब जानने वाले हैं और तुम नहीं जानते," 
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २१४)

नमाज़, रोजा, ज़कात, हज, जैसे बेसूदा और मुहमिल अमल माना कि कभी न ख़त्म होने वाले अमले ख़ैर होंगे मगर ये जेहाद भी कभी न ख़त्म होने वाला अल्लाह का फरमाने अमल है कि जब तक ज़मीन पर एक भी गैर मुस्लिम बचे या एक भी मुस्लिम बचे? जेहाद जारी रहे बल्कि उसके बाद भी? 
मुस्लिम बनाम मुस्लिम (फिरका वार) बे शक. अल्लाह, उसका रसूल और कुरान अगर बर हक हैं तो उसका फ़रमान उस से जुदा नहीं हो सकता. सदियों बाद तालिबान, अलकायदा जैशे मुहम्मद जैसी इस की बर हक अलामतें क़ाएम हो रही हैं, तो इस की मौत भी बर हक है. 
इसलाम का यह मज्मूम बर हक, वक़्त आ गया है कि ना हक में बदल जाय. 

"लोग आप से शराब और कुमार (जुवा) के निस्बत दर्याफ़्त करते हैं, आप फरमा दीजिए कि दोनों में गुनाह की बड़ी बडी बातें भी हें और लोगों को फायदे भी हैं और गुनाह की बातें उनके फायदों से ज़्यादा बढी हुई हैं"
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २१९)

बन्दाए हकीर मुहम्मद का रुतबा, इस्लामी चापलूस कलम कारों ने इतना बढा दिया है कि कायनातों का मालिक उसको आप जनाब कह कर मुखातिब करता है. 
यह शर्म की बात है. 
अल्लाह में बिराजमान मुहम्मद मुज़ब्ज़ब बातें करते हैं जो हाँ में भी है और न में भी. 
मौलानाओं को फतवा बांटने की गुंजाइश इसी किस्म की कुरानी आयतें फराहम करती हैं जो जुवा खेलना या न खेलना शराब पीना या न पीना दोनों बाते जाएज़ ठहरती हैं. 
पता नहीं ये उस वक़्त की बात है जब शराब हलाल थी और वह दो घूट पीए रहे हों. 
वैसे भी शराब कहीं किसी मज़हब मे हराम नहीं, 
ईसा तो चौबीसों घंटे टुन्न रहते. 
खुद इस्लाम में मौत तक सब्र से कम लो ऊपर धरी है शराबन तहूरा. 
हाँ जुवा खेलना किसी भी हालत में फायदे मंद नही खिलवाना अलबत्ता फायदे मंद है. 
अल्लाह नासमझ है.

( ज़हरीलi आयत)

"निकाह मत करो काफिर औरतों के साथ जब तक कि वह मुसलमान न हो जाएँ और मुस्लमान चाहे लौंडी क्यूं न हो वह हजार दर्जा बेहतर है काफिर औरत से, गो वह तुम को अच्छी मालूम हो और औरतों को काफिर मर्दों के निकाह में मत दो, जब तक की वह मुसलमान न हो जाए, इस से बेहतर मुस्लमान गुलाम है"
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत 221)

हमारे मुल्क में फिरका परस्ती का जो माहौल बन गया है उसको देखते हुए दोनों क़ौमों को ज़हरीले फ़रमान की डट कर खिलाफ वर्जी करना चाहिए. हिदुस्तान में आपसी नफ़रत दूर करने की यही एक सूरत है कि दोनों फिरके आपस में शादी ब्याह करें ताकि नई नस्लें इस झगडे का खात्मा कर सकें. 
कितनी झूटी बात है - - - 
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना. 
हम देखते हैं कि कुरआन की हर दूसरी आयत नफ़रत और बैर सिखला रही है. 

"और लोग आप से हैज़ (मासिक-धर्म) का हुक्म पूछते हैं, आप फरमा दीजिए की गन्दी चीज़ है, तो हैज़ में तुम ओरतों से अलाह्दा रहा करो और इनसे कुर्बत मत किया करो, जब तक कि वह पाक न हो जाएँ"
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२२)

देखिए कि अल्लाह कहाँ था, 
कहाँ आ गया? 
कौमी मसाइल समझा रहा था कि हैज़ (मासिक धर्म)की गन्दगी में घुस गया. 
कुरआन में देखेंगे यह अल्लाह की बकसरत आदत है ऐसे बेहूदा सवाल भी कुरआन ने मुहम्मद के हवाले किए हैं. 
हदीसें भी इसी क़िस्म की गलीज़ बातों से भरी पडी हैं. 
हैज़, उछलता हुवा पानी, तुर्श और शीरीं दरयाओं का मिलन, मनी, खून का लोथडा और दाखिल ओ खुरूज कि हिकमत से लबरेज़ अल्लाह की बातें जिसको मुसलमान निजामे हयात कहते हैं. 
अफ़सोस कि यही गंदगी इबारतें नमाजों में पढाई जाती है. 

* औरतों के हुकूक का ढोल पीटने वाला इसलाम क्या औरत को इंसान भी मानता है? 
या मर्दों के मुकाबले में उसकी क्या औकात है, 
आधी? चौथाई? 
या कोई मॉल ओ मता, जायदाद और शय ? 
इस्लामी या कुरानी शरा और कानून ज्यादा तर कबीलाई जेहालत के तहत हैं. इन्हें जदीद रौशनी की सख्त ज़रुरत है ताकि औरतें ज़ुल्म ओ सितम से नजात पा सकें. 
इनकी कुरानी जिल्लत का एक नमूना देखें - - - 

"तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ, और आइन्दा के लिए अपने लिए कुछ करते रहो और यक़ीन रक्खो कि तुम अल्लाह के सामने पेश होने वाले हो. और ऐसे ईमान वालों को खुश खबरी सुना दो"
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२३)

तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ, 
अल्लाह बे शर्मी पर उतर आया है तो बात साफ़ करना पड़ रही है कि यहूदियों में ऐसा भरम था कि औरत को औंधा कर जिमा (सम्भोग) करने में तनासुल (लिंग) योनि के बजाय बहक कर आगे की बजाय पीछे चला जाता है और नतीजे में बच्चा भेंगा पैदा होता है. इस लिए सीधा लिटा कर जिमा करना चाहिए. 
मुहम्मद इस यहूदी अक़ीदत को खारिज करते हैं और अल्लाह के मार्फ़त यह जिंसी आयत नाज़िल करते हैं कि औरत का पूरा जिस्म मानिन्द खेत है जैसे चाहो जोतो बोवो. 

* मुसलमानों में अवाम से ले कर बडे बड़े मौलाना तक कसमें बहुत खाते हैं. खुद अल्लाह कुरान में बिला वजह कसमे खाता दिखाई देता है. 
अल्लाह कहता है वह तुम को कभी नहीं पकडेगा तुम्हारी उस बेहूदा कसमों पर जो तुम रवा रवी में खा लेते हो मगर हाँ जिसे दिल से खा लेते हो, इस पर जवाब तलबी होगी (इसे इरादी कसमें भी कहा गया है) 
फिर भी फ़िक्र की बात नहीं, वह गफूर रुर रहीम है. 
इस सिलसिले में नीचे दोनों आयतें हैं आयत २२६ के मुताबिक औरत से चार माह तक जिंसी राबता न रखने की अगर क़सम खा लो और उसपर कायम रहो तो तलाक यक लख्त फैसल होगा और इस बीच अगर मन बदल जाए या जिंसी बे क़रारी में वस्ल की नोबत आ जाए तो अल्लाह इस क़सम की जवाब तलबी नहीं करेगा. 
ये आयत का मुसबत पहलू है. 
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२६ )

"अल्लाह तअला वारिद गीर न फ़रमाएगा तुम्हारी बेहूदा कसमों पर लेकिन वारिद गीर फ़रमाएगा इस पर जिस में तुम्हारी दिलों ने इरादा किया था और अल्लाह ताला गफूरुर रहीम है" 
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत 225)

"जो लोग क़सम खा बैठे हैं अपनी बीवियों से, उन को चार महीने की मोहलत है, सो अगर ये लोग रुजू कर लें तब तो अल्लाह तअला मुआफ कर देंगे और अगर छोड़ ही देने का पक्का इरादा कर लिया है तो अल्लाह तअला जानने और सुनने वाले हैं."
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२७) 

मुस्लिम समाज में औरतें हमेशा पामाल रही हैं आज भी ज़ुल्म का शिकार हैं. मुश्तरका माहोल के तुफैल में कहीं कहीं इनको राहत मिली हुई है जहाँ तालीम ने अपनी बरकत बख्शी है. 
देखिए तलाक़ के कुछ इस तरह गैर वाज़ह फ़रमाने मुहम्मदी - - -
"तलाक़ दी हुई औरतें रोक रखें अपने आप को तीन हैज़ तक और इन औरतों को यह बात हलाल नहीं कि अल्लाह ने इन के रहेम में जो पैदा किया हो उसे पोशीदा रखें और औरतों के शौहर उन्हें फिर लौटा लेने का हक रखते हैं, बशर्ते ये की ये इस्लाह का क़स्द रखते हों. और औरतों के भी हुकूक हैं जव कि मिस्ल उन ही के हुकूक के हैं जो उन औरतों पर है, काएदे के मुवाफिक और मर्दों का औरतों के मुकाबले कुछ दर्जा बढा हुवा है."
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२८)

"औरतों के हुकूक आयत में अल्लाह ने क्या दिया है ? अगर कुछ समझ में आए तो हमें भी समझाना. 
"दो बार तलाक़ देने के बाद भी निकाह क़ायम रहता है मगर तीसरी बार तलाक़ देने के बाद तलाक़ मुकम्मल हो जाती है. और औरत से राबता कायम करना हराम हो जाता है, उस वक़्त तक कि औरत का किसी दूसरे मर्द से हलाला न हो जाए."

(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२९-३०) 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 16 November 2017

Hindu Dharm Darshan 112




गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
> इनमें (इंसानों में) जो परम ज्ञानी हैं 
और शुद्ध भक्ति में लगा रहता है, 
वह सर्व श्रेष्ट है 
क्योंकि मैं उसे अत्यंत प्रिय हूँ 
और वह मुझे प्रिय है.  
**अल्प बुद्धि वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं 
और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित एवं क्षणिक होते हैं. 
देवताओं की पूजा करने वाले देव लोक को जाते हैं, 
किन्तु मेरे भक्त अंततः मेरे परम धाम को प्राप्त होते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -17 +23 

'भक्ति' 
आने वाले समय में समाज की गाली बन जाएगी, 
भक्त पशुओं की श्रेणी में माना जाएगा.  
भक्ति दासता से बढ़ कर ऐसी मानसिकता है जो इंसान के व्यक्तिव को नष्ट करके दासता को अपनाने का हुक्म देती है. 
इसे मुस्लिम परिवेश में मुरीदी कहते हैं जिसका ह्कवारा कोई पीर हुवा करता है. मेरे परचित एक मुरीद ने बतलाया कि उसका अल्लाह और उस रसूल, 
उसका पीर है, मैं उसके लिए समर्पित हूँ, 
वह मेरे आकबत (परलोक) का निगहबान है. 
भक्ति भाव रखने वाले भेड़ और बकरियां से अधिक और हुछ भी नहीं , 
भारत भूमि का खासकर हिन्दू समूह इस चरागाह में चरना ज्यादा पसंद करते हैं. इस चरागाह के हक्वारे इतने स्वार्थी होते हैं कि प्रचलित देवी देवताओं को भी किनारे लगाने में संकोच नहीं करते.
भगवान् कृष्ण कहते हैं कि 
अल्प बुद्धी वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं 
और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित एवं क्षणिक होते हैं. 
देवताओं की पूजा करने वाले देव लोक को जाते हैं, 
किन्तु मेरे भक्त अंततः मेरे परम धाम को प्राप्त होते हैं.
 यानी अब देवताओं की माया से निकलो और मेरे शरण में आओ.

और क़ुरआन कहता है - - - 
''और अगर आप देखें जब ये दोज़ख के पास खड़े किए जाएँगे 
तो कहेंगे है कितनी अच्छी बात होती कि हम वापस भेज दिए जाएं
 और हम अपने रब की बातों को झूटा न बतलाएं और हम ईमान वालों में हो जाएं''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२7)

आगे ऐसी ही बचकानी बातें मुहम्मद करते हैं कि लोग इस पर यकीन कर के इस्लाम कुबूल करें. ऐसी बचकाना बातों पर जब तलवार की धारों से सैक़ल किया गया तो यह ईमान बनती चली गईं. तलवारें थकीं तो मरदूद आलिमों की ज़बान इसे धार देने लगीं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 14 November 2017

Hindu Dharm Darshan 111



वेद दर्शन - - -       
                    
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे अभीष्ट वर्षक मरूद गण ! 
तुम्हारी जो औषधियां शुद्ध एवं अत्यधिक सुख देने वाली हैं, 
जिन्हें हमारे पिता मनु ने पसंद किया था, 
रूद्र की उन्हीं सुखदायक व् भय नाशक औषधियों की हम इच्छा करते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त  33(13)
इस वेद मन्त्र को इस लिए चुना कि इससे मालूम हुवा कि इन मन्त्रों के रचैता रुस्वाए-ज़माना मनु महाराज वंशज हैं, मनु महाराज ने मनु समृति रच कर देश को मनु विधान दिया था, जिस में मानवता 5000 सालों से कराह रही है.
  (ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 13 November 2017

सूरह अलबकर -२ पहला पारा- चौथी किस्त

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अल्बक्र -२ पहला पारा आयत 
(चौथी किस्त)
अल्लाह कहता है - - - 
"मगर जो लोग तौबा कर लें और इस्लाह कर लें तो ऐसे लोगों पर मैं मुतवज्जो हो जाता हूँ और मेरी तो बकसरत आदत हे तौबा कुबूल कर लेना और मेहरबानी करना." 
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १६०) 

अल्लाह की बकसरत आदत पर गौर करें. 
अल्लाह इंसानों की तरह ही अलामतों का आदी है. 
कुरान और हदीसों का गौर से मुतालिआ करें तो साफ़ साफ़ पाएँगे कि दोनों के मुसन्निफ़ एक हैं जो अल्लाह को कुदरत वाला नहीं बल्कि आदत वाला समझते हैं, 

अल्ला मियां तौबा न करने वालों के हक में फरमाते हैं - - -
"अलबत्ता जो लोग ईमान न लाए और इसी हालत में मर गए तो इन पर लानत है, अल्लाह की, फरिश्तों की, और आदमियों की. उन पर अज़ाब हल्का न होने पाएगा." 
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १६१ ) 

भला आदमियों की लानत कैसे हुई ? वही तो ईमान नहीं ला रहे. 
खैर अल्लाह मियां और रसूल मियां बोलते पहले हैं और सोंचते बाद में हैं. और इन के दल्लाल तो कभी सोचते ही नहीं. 
* बहुत सी चाल घात की बातें इस के बाद की आयतों में अल्लाह ने बलाई हैं, अपनी नसीहतें और तम्बीहें भी मुस्लमान बच्चों को दी हैं. कुछ चीजें हराम क़रार दी हैं, बसूरत मजबूरी हलाल भी कर दी हैं. यह सब परहेज़, हराम, हलाल और मकरूह क़ब्ले इसलाम भी था जिस को भोले भाले मुस्लमान इसलाम की देन मानते हैं. 

कहता है - - -
"अल्लाह तअला ने तुम पर हराम किया है सिर्फ़ मुरदार और खून को और खिंजीर के गोश्त को और ऐसे जानवर को जो गैर अल्लाह के नाम से ज़द किए गए हों. फिर भी जो शख्स बेताब हो जावे, बशर्ते ये कि न तालिबे लज्ज़त हो न तजाउज़ करने वाला हो, कुछ गुनाह नहीं होता. 
वाकई अल्लाह ताला हैं बड़े गफूर्रुर रहीम" 
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १७३)

कुरान में कायदा कानून ज्यादा तर अधूरे और मुज़बज़ब हैं, इसी लिए मुस्लिम अवाम हमेशा आलिमों से फ़तवे माँगा करती है. 
मरहूम की वसीयत के मुताबिक कुल मॉल को हिस्से के पैमाइश या आने के हिसाब से बांटा गया है मगर रूपया कितने आने का है, साफ नहीं हो पाता, हिस्सों का कुला क्या है? वसीयत चार आदमी मिल कर बदल भी सकते हैं, फिर क्या रह जाती है मरने वाले की मर्ज़ी? 
कुरान यतीमों के हक का ढोल खूब पीटता है मगर यतीमों पर दोहरा ज़ुल्म देखिए कि अगर दादा की मौजूदगी में बाप की मौत हो जाय तो पोता अपनी विरासत से महरूम हो जाता है. 
क़स्सास और खून बहा के अजीबो गरीब कानून हैं. जान के बदले जान, मॉल के बदले मॉल, आँख के बदले आँख, हाथ के बदले हाथ, पैर के बदले पैर, ही नहीं, 
कुरानी कानून देखिए - - - 
"ऐ ईमान वालो! तुम पर क़स्सास फ़र्ज़ किया जाता है मक़्तूलीन के बारे में, आज़ाद आदमी आज़ाद के एवाज़ और गुलाम, गुलाम के एवाज़ में और औरत औरत के एवाज़ में. हाँ, इस में जिसको फरीकैन की तरफ़ से कुछ मुआफ़ी हो जाए तो माकूल तोर पर मतालबा करना और खूबी के तौर पर इसको पहुंचा देना यह तुम्हारे परवर दीगर की तरफ़ से तख्फ़ीफ़ तरह्हुम है जो इस बाद तअददी का मुरक्कब होगा तो बड़ा दर्द नाक अज़ाब होगा" 
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत१७९) 

एक फिल्म आई थी पुकार जिसमे नूर जहां ने अनजाने में एक धोबी का तीर से खून कर दिया था. इस्लामी कानून के मुताबिक धोबन को बदले में नूर जहाँ के शौहर यानी जहाँगीर के खून करने का हक मिल गया था और बादशाह जहाँ गिर धोबन के तीर के सामने आँखें बंद करके खडा हो गया था. 
गौर करें यह कोई इंसाफ का मेराज नहीं था बल्कि एन ना इंसाफी थी. ख़ता करे कोई और सज़ा पाए कोई. 
हम आप के गुलाम को कत्ल कर दें और आप मेरे गुलाम को, 
दोनों मुजरिम बचे रहे. वाह! अच्छा है मुजरिमों के लिए मुहम्मदी कानून. 
सूरह की मंदर्जा ज़ेल आयतों में रोज़ों को फ़र्ज़ करते हुए बतलाया गया है कि कैसे कैसे किन किन हालत में इन की तलाफ़ी की जाए. 
यही बातें कुरानी हिकमत हैं जिसका राग ओलिमा बजाया करते हैं. मुसलमानों की यह दुन्या भाड़ में जा रही है जिसको मुसलमान समझ नहीं पा रहा है. यह दीन के ठेकेदार खैराती मदरसों से खैराती रिज़्क़ खा पी कर फारिग हुए हैं अब इनको मुफ्त इज्ज़त और शोहरत मिली है जिसको ये कभी ना जाने देंगे भले ही एक एक मुस्लमान ख़त्म हो जाए. 
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८४-१८७) 

"तुम लोगों के वास्ते रोज़े की शब अपनी बीवियों से मशगूल रहना हलाल कर दिया गया, क्यूँ कि वह तुम्हारे ओढ़ने बिछोने हैं और तुम उनके ओढ़ने बिछौने हो। अल्लाह को इस बात की ख़बर थी कि तुम खयानत के गुनाह में अपने आप को मुब्तिला कर रहे थे। खैर अल्लाह ने तुम पर इनायत फ़रमाई और तुम से गुनाह धोया - - -जिस ज़माने में तुम लोग एत्काफ़ वाले रहो मस्जिदों में ये खुदा वंदी जाब्ते हैं कि उन के नजदीक भी मत जाओ। इसी तरह अल्लाह ताला अपने एह्काम लोगों के वास्ते बयान फरमाया करते हैं इस उम्मीद पर की लोग परहेज़ रक्खें " 
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८७)

आज के साइंसी दौर में, यह हैं अल्लाह के एह्कम जिसकी पाबंदी मुल्ला क़ौम से करा रहे हैं. उसके बाद सरकार पर इल्जाम तराशी कि मुसलमानों के साथ भेद भाव। मुसलमान का असली दुश्मन इस्लाम है जो आलिम इस पर लादे हुए हैं। 

"आप से लोग चांदों के हालत के बारे में तहकीक करते हैं, आप फरमा दीजिए कि वह एक आला ऐ शिनाख्त अवकात हैं लोगों के लिए और हज के लिए। 
और इस में कोई फ़ज़िलत नहीं कि घरों में उस कि पुश्त की तरफ़ से आया करो। हाँ! लेकिन फ़ज़िलत ये है कि घरों में उन के दरवाजों से आओ।" 
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८९)

मुहम्मद या उनके अल्लाह की मालूमात आमा और भौगोलिक ज्ञान मुलाहिज़ा हो, 
महीने के तीसों दिन निकलने वाले चाँद को अलग अलग तीस चाँद (चांदों) समझ रहे हैं। मुहम्मद तो खैर उम्मी थे मगर इन के फटीचर अल्लाह की पोल तो खुल ही जाती है जिस के पास मुब्लिग़ तीस अदद चाँद हर साइज़ के हैं जिसको वह तारीख के हिसाब से झलकाता है ।ओलीमा अल्लाह की ऐसी जिहालत को नाजायज़ हमल की तरह छुपाते हैं। 
अल्लाह कहता है किसी के घर जाओ तो आगे के दरवाजे से, 
भला पिछवाडे से जाने की किसको ज़रूरत पड़ सकती है मुहम्मद साहब बिला वजेह की बात करते हैं। 

"और तुम लड़ो अल्लाह की राह में उन लोगों के साथ जो तुम लोगों से लड़ने लगें, और हद से न निकलो, वाकई अल्लाह हद से निकलने वालों को पसंद नहीं करता और उनको क़त्ल करदो जहाँ उनको पाओ और उनको निकाल बाहर करदो, जहाँ से उन्हों ने निकलने पर तुम्हें मजबूर किया था. और शरारत क़त्ल से भी सख्त तर है - - - फिर अगर वह लोग बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह ताला बख्श देंगे.और मेहरबानी फरमाएंगे और उन ललोगों के साथ इस हद तक लड़ो कि फ्सदे अकीदत न रहे और दिन अल्लाह का हो जाए." 
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९०-१९२ )

मुहम्मद को कुछ ताक़त मिली है, वह मुहतात रवि के साथ इन्तेकाम पर उतारू हो गए हैं "शरारत क़त्ल से सख्त तर है" अल्लाह नबी से छींकने पर नाक काट लो जैसा फरमान जारी करा रहा है. 
जैसे को तैसा, अल्लाह कहता है - - - 

"सो जो तुम पर ज्यादती करे तो तुम भी उस पर ज्यादती करो जैसा उस ने तुम पर की है" 
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९४ )

क्या ये इंसानी अजमतें हो सकती हैं? 
ये कोई धर्म हो सकता है? 
ओलिमा डींगें मारा करते हैं कि इसलाम सब्रो इस्तेक्लाल का पैगाम देता है और मुहम्मद अमन के पैकर हैं मगर मुहम्मद इब्ने मरियम के उल्टे ही हैं. 

"और जब हज में जाया करो तो खर्च ज़रूर ले लिया करो क्यों की सब से बड़ी बात खर्च में बचे रहना. और ऐ अक्ल वालो! मुझ से डरते रहो. तुम को इस में जरा गुनाह नहीं की हज में मुआश की तलाश करो- - -" 
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९८) 

अल्लाह कहता है अक़्ल वालो मुझ से डरते रहो, 
ये बात अजीब है कि अल्लाह अक़्ल वालों को खास कर क्यूँ  डराता है? 
बेवक़ूफ़ तो वैसे भी अल्लाह, शैतान, भूत, जिन्, परेत, से डरते रहते हैं 
मगर अहले होश से अक्सर अल्लाह डर के भागता है क्यों कि ये मतलाशी होते है सदाक़त के. 

"सूरह में हज के तौर तरीकों का एक तवील सिलसिला है, जिसको मुस्लमान निजाम हयात कहता है."
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९६-२००

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान