Monday 31 October 2016

Soorah dukhan 44 Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह दुखान ४४- परा २५
पहली किस्त 

एक दिन मुहम्मद अपने मरहूम दोस्त इब्ने सय्यास के घर की तरफ़ चले, पास पहुँचे तो देखा कि इब्ने सय्यास का बेटा मैदान में अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था. उसे मुहम्मद की आमद की ख़बर न हुई, जब मुहम्मद ने उसे थपकी दी तो उसने आँख उठ कर देखा.
मुहम्मद ने उससे पूछा कि -
"तू इस बात की गवाही देता है कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ?"
उसने मुहम्मद की तरफ़ आँख उठा कर देखा और कहा,
 "हाँ मैं इस बात की गवाही देता हूँ कि आप उम्मियों के रसूल हैं."
इसके बाद उसने मुहम्मद से पूछा -
"क्या आप इस बात की गवाही देते हो  कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ?"
मुहम्मद ने उसके सवाल पर लापरवाई बरतते हुए कहा,
"मैं अल्लाह के तमाम बर हक़ रसूलों पर ईमान रखता हूँ "
फिर उससे पूछा -
"तुझको क्या मालूम पड़ता है?"
उसने कहा -
"मुझे झूटी और सच्ची दोनों तरह की ख़बरें मालूम पड़ती हैं"
मुहम्मद ने कहा -
"तुझ पर मुआमला मख्लूत हो गया."
फिर बोले -
"मैंने तुझ से पूछने के लिए एक बात पोशीदा रख्खी है?"
वह बोला -
"वह दुख़ है"(धुवाँ=स्याह क़ल्बी)
मुहम्मद बोले -
"दूर हो! तू अपने मर्तबा से हरगिज़ तजाउज़ न कर सकेगा."
साथी ख़लीफ़ा उमर बोले -
"या रसूलिल्लाह अगर इजाज़त हो तो मैं इसे क़त्ल कर दूं"
मुहम्मद बोले -
"अगर ये वही दज्जाल है तो तुम इसे क़त्ल करने में क़ादिर नहीं हो सकोगे और अगर ये वह दज्जाल नहीं है तो इसे क़त्ल करने से क्या हासिल?"
उस बहादर लड़के का नाम था
"ऐसाफ़"
उसने किस बहादरी से कहा है -
"वह दुख़ है"
दुख़ के मानी धुवाँ होता है
मुहम्मद के लिए इससे बड़ा सच हो ही नहीं सकता.
ऐसाफ़ ! तुम पर मोमिन का सलाम पहुँचे
शायद इसी दुख़ की सच्चाई पर इस सूरह दुखान का नाम रख्खा गया हो.
अब पढ़िए अल्लाह के धुवाँ धार झूट का फ़साना - - -

"हा मीम"
जादू गरों का मंतर, लोगों की तवज्जो खींचने के लिए. 
दुष्ट ओलिमा ने इसमें भी अल्लाह का कोई पैगाम पोशीदा पाया है.
सूरह दुखान ४४- परा २५ आयत (१)

"क़सम है इस किताब वाज़ह की कि हमने इसको बरकत वाली रात को उतारा है और हम आगाह करने वाले थे, इस रात में हर हिकमत वाला मुआमला हमारी पेशी से हुक्म होकर तय किया जाता है. हम बवजेह रहमत के जो आपके रब की तरफ़ से हुई है, आप को पैगम्बर बनाने वाले थे. बेशक वह बड़ा सुनने वाला और बड़ा जानने वाला है."
सूरह दुखान ४४- परा २५ आयत (२-६)

कहते हैं क़ुरआन  में कोई फ़र्क या बढ़त घटत नहीं हो सकती यहाँ तक कि ज़ेर ज़बर की भी नहीं. वह तमाम इबारत क़ुरआन बनती गई जो मुहम्मद मदहोशी में बाईस सालों तक बोले और जितना होश में बोले अपनी उम्मियत के साथ वह हदीसें बन गईं. मदहोशी के आलम में बकी गई आयते कुरानी में तर्जुमा निगारों को बड़ी गुंजाईश है कि अर्थ हीन जुमलों को मनमानी करके सार्थक बना लें मर हदीसों को जस का तस रखा गया. जिसमें मुहम्मद के किरदार का आइना है.
ऊपर की आयातों में मदहोशी है कि मुहम्मद जो कुछ कहना  चाह रहे है, कह नहीं पा रहे. अल्लाह के रसूल कभी अल्लाह बन कर बातें करते हैं, तो कभी उसके रसूल बन जाते हैं. जहाँ अटक जाते है, वहां कलाम को अधूरा छोड़ कर आगे बढ़ जाते हैं. 
कहते हैं - 
"आप को पैगम्बर बनाने वाले थे. बेशक वह बड़ा सुनने वाला और बड़ा जानने वाला है." 
आप को पैगम्बर बनाने वाले थे.? (मगर ? बना न सके??)
"रात में हर हिकमत वाला मुआमला हमारी पेशी से हुक्म होकर तय किया जाता है"( है न मदहोशी के आलम में की गई बात)
कुरआन कभी माहे रमजान में उतरता है और कभी बरकत वाली रात  शब क़दर को, वैसे मुहम्मद बाईस सालों तक क़ुरआनी उल्टियाँ करते रहे.




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 29 October 2016

Hindu Dharam Darshan 19

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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Pawan Prajapati
*वाल्मीकि ब्राह्मण था, अछूत नही*
( कृपया इतिहास जानने पूर्ण पढ़िए )
साथियों .......
काफी समय से यह चर्चा का विषय रहा है कि आखिर वाल्मीकि कौन थे ?? ब्राह्मण या अछूत ?? अब पूरी तरह सिद्ध हो चुका हैं कि महाकवि वाल्मीकि ब्राह्मण था, उनका अछूतों और दलितों से किसी भी प्रकार का दूर- दूर तक क़ोई सम्बन्ध ही नही था , और न है ।
महाकवि वाल्मीकि का खानदान इस प्रकार है ।
ब्रह्मा ---------@ प्रचेता ------ @वाल्मीकि 
वाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड सर्ग 16 श्लोक में कहाँ है " राम मैं प्रचेता का दशवाँ पुत्र हुँ ।" मनुस्मृति में लिखा है प्रचेता ब्रह्मा का पुत्र था ।रामायण के नाम से प्रचलित कई पुस्तको में भी महाकवि वाल्मीकि ने अपना जन्म ब्राह्मण कुल में बताया है ।
साथियों........ ** चूहड़ा (भंगी)* जाति को वाल्मीकि कब बनाया गया, इसके पीछे लगभग 80 वर्षो पुराना इतिहास है । जब डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर ने घोषणा की ** मैं हिन्दू पैदा हुआ , यह मेरे वश में नही था , लेकिन मैं हिन्दू के तौर पर मरूँगा नही । और अछूतों को हिन्दू धर्म का त्याग कर देना चाहिए क्योकि हिन्दू धर्म में रहते हुए ऊँची जाति की नफ़रत और भेदभाव से छुटकारा नही मिल सकता ।**
बाबा साहब डॉ अम्बेडकर की इस घोषणा से गैर हिन्दुओ के मुह में अछूतों को अपने धर्म में शामिल करने मुह में पानी आता रहा। वही हिन्दू धर्म के ठेकेदारो के पैरो के निचे से जमींन खिसकने लगी थी ।
अपनी योजना के अधीन सन् 1922 में हिन्दू आर्य समाजी नेताओ ने ** चूहड़ा ** जाति के लिए महाकवि वाल्मीकि को खोज निकाला । और चमारो को उनके जाति में पैदा होने के कारण रविदास जी (रविदासिया आदि धर्म) के अनुयायी बनने प्रेरित किया ।
आर्य समाज ने अपनी इस योजना को सफल बनाने लाहौर में वेतनभोगी कुछ वर्कर नियुक्त किये इनमें पृथ्वीसिंह आजाद ,स्वामी शुद्रानंद और प्रो. यशवंत राय प्रमुख थे ।इन लोगो ने लाहौर ट्रेनिग से वापस आकर वाल्मीकि को चूहड़ा जाति के ऊपर थोप दिया ।
हिन्दुओ की नफरत से बचने के चूहड़ा जाति ने आर्य समाज के प्रचारको के प्रभाव में आकर अपनी जाति का नाम बदलकर वाल्मीकि रख दिया ।किन्तु हिन्दुओ की नफ़रत में कोई अंतर नही आया भेदभाव और नफ़रत पहले जैसे ही बरक़रार है ।
आज कल के शिक्षित नौजवान इस सडयंत्र को समझने लगे है । वे मानते है कि वाल्मीकि यदि शुद्र था तो उनको संस्कृत पड़ने लिखने का आधिकर उस काल में किसने दिया ?? वाल्मीकि शुद्र थे तो रामायण में शूद्रों के प्रति इतनी नफ़रत क्यों लिख मारी ।
ये नौजवान न अपने आप को वाल्मीकि कहलाने से इंकार कर रहे है बल्कि वे वाल्मीकि रामायण की कठोर शब्दों में आलोचना भी करते है । 

साथियों .... आप खुद सोचिये और अपना भविष्य उज्जवल करने अम्बेडकर मिसन से जुड़ जाइये । आप ही को तय करना है कि हमें रोशनी और उन्नति की ओर जाना है या दलदल और अँधेरे में फसकर अपना जीवन बर्बाद करना है ।


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 28 October 2016

Soorah zukhruf 43-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५  
किस्त (2)

आइए मुहम्मदी अल्लाह का ताबूत खोला जाए - - -

"और आप के रब की रहमत बदरजहा से बेहतर है जिसको ये लोग समेटते फिरते हैं, 
और अगर ये बात न होती कि तमाम आदमी एक ही तरह के हो जाएँगे,
तो जो लोग अल्लाह के साथ कुफ्र करते हैं,
उनके लिए उनके घरों की छतें हम चाँदी की कर देते.
और जीने भी जिस पर वह चढ़ कर जाते हैं,
और उनके घरों के कंवाड़े भी और तख़्त भी जिस पर तकिया लगा कर वह बैठते हैं,
और सोने के भी, और ये सब कुछ भी नहीं,
सिर्फ़ दुनयावी ज़िन्दगी की कुछ रोज़ की कामरानी है,
आखरत आप के रब के यहाँ खुदा तरसों के लिए है."
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (३२-३५)

उम्मी मुहम्मद क्या बात कहना चाहते हैं? नतीजा अख्ज़ करना मोहल है. बात काफ़िरों के हक़ में जाती है जिसे मुतराज्जिम ने ब्रेकट में अपनी बात रख कर अल्लाह की मदद करके रसूल के हक में किया हुवा है. ऐसे आयतों को मुसलमान कहते हैं कि कुरआन का एक जुमला भी इंसान बना नहीं सकता. बेशक इंसान तो कभी नहीं बनाएगा ऐसा कलाम मगर पागल आदमी ऐसा कलाम दिन भर बडबडाया करता है.
सब लोग बराबर होते तो इंसान के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता था, मगर अल्लाह के लिए मुश्किल खडी हो जाती कि उसको ऐसे रसूल कहाँ मयस्सर होते.
कुफ्फर ने तो अपने घरों  की छतें, जीनें और कंवाड़े तो चांदी के कर लिए हैं और मुसलमान फ़क़त अल्लाह हू, अल्लाह हू में मुब्तिला है.

"और जो शख्स अल्लाह की नसीहत से अँधा हो जाए, हम इस पर एक शैतान मुसल्लत कर देते हैं, सो वह इनके साथ हो जाता है, और वह इनको राहे हक़ से रोकता है."
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (३७)

तो अल्लाह सब के बड़ा शैतान हुवा जो इंसान के पीछे शैतान लगा देता है, जो उसे बुरी राहों पर चलाता है.
मुसलामानों! यक़ीन करो कि तुम्हारा अल्लाह ही शैतान है जो तुमको तरक़क़ी  नहीं करने देता.
आयत में दो अल्लाह के वजूद पर गौर करें.
"तो बस अगर हम आप को उठा लें तब भी वह बदला लेने वाला है."
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (४१)

मुहम्मद की लगजिश देखिए कि यहाँ पर अल्लाह उनसे कहता है कि "अगर हम आप को उठा लें तब भी वह बदला लेने वाला है" 
अल्लाह हाज़िर, अल्लाह गायब की बात करता है.
अल्लाह मुहम्मद को ज़बान देता है कि आपके मरने के बाद भी वह उनके दुश्मनों से इन्तेकाम लेगा.गोया मुहम्मद मरने के बाद भी अपना भूत इंसानों पर तैनात कर रहे हैं.

"वह लोग शरारत से भरे थे, फिर जब उन्हों ने हमें ग़ुस्सा दिला दिया तो हम ने उन से बदला लिया और जिंदा डुबो दिया"
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (५५)

ऐसा अल्लाह है तुम्हारा ऐ मुसलमानों. उसको भड़काया भी गया कि उसको तैश आ जाए. और तैश में आकर इंसानों को पानी में डुबो भी दिया. यानी वह ज़रा सा बेवक़ूफ़ भी है, कम अक्ल पहेलवान जैसा.
दर अस्ल ऐसी फ़ितरत मुहम्मद की ज़रूर थी.

 "जो हमारी बातों पर ईमान लाए थे? ? ?
(उनका अंजाम ये रहा कि तुम देख रहे हो कि - - -बतलाना भूल गया)
तुम और तुम्हारी बीवियां खुश खुश जन्नत में दाख़िल हो जाओ,
इनके पास सोने की रेकाबियाँ और गिलास ले जाएँगे, और वहाँ हर चीज़ मिलेगी.
जिसको दिल चाहेगा, जिससे आँखों को लज्ज़त होगी,
और तुम यहाँ हमेशा रहोगे
जन्नत है जिसके तुम मालिक बनाए गए, अपने आमाल के एवाज़,
तुम्हारे लिए इसमें बहुत से मेवे हैं जिन में से खा रहे हो."
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (६९-७३)

किस अंदाज़ की चिरकुट गुफतुगू है अल्लाह हिकमत वाले की?
क्या औरतों के आमाल का हिसाब किताब नहीं होता? क्या वह अपने शौहरों के आमाल के सिलह में, अपने शौहरों के हमराह जन्नत में दाख़िल होंगी? वैसे मुहम्मद तो उनको मुकम्मल इंसान भी नहीं मानते थे, कहते थे कि एक दिन उनको दोज़ख दिखलाई गई जहाँ कसरत से औरतें थीं.
(एक हदीस)

"बेशक नाफ़रमान लोग अज़ाबे दोज़ख में हमेशा रहेगे. वह उनसे हल्का न किया जाएगा और वह उसी में मायूस पड़े रहेंगे और हमने उन पर ज़ुल्म नहीं किया लेकिन खुद ही ज़ालिम थे. पुकारेंगे ऐ मालिक तुम्हारा परवर दिगार हमारा काम ही तमाम करदे और जवाब देगा कि तुम हमेशा इसी हाल में रहो. हमने सच्चा दीन तुम्हारे पास पहुँचाया लेकिन तुम में से अक्सर आदमी सच्चे दीन से नफ़रत करते थे."
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (७४-७५)

ज़ालिम मोहम्मद की एक अदा ये भी है कि इस बात को बार बार दोहराते हैं कि "हमने उन पर ज़ुल्म नहीं किया लेकिन खुद ही ज़ालिम थे" वह इतनी सी बात पर ज़ालिम हो गए कि तुम्हारे झूट को नहीं माना और तुम पैदायशी  ज़ालिम जो अपने ही बुजुर्गों, रिश्ते दारों और और अज़ीज़ों को मार के तीन दिनों तक उनकी लाशों को सड़ने दिया फिर एक एक को नाम और उनकी वल्दियत के साथ ताने देते हुए बदर के कुँए में उनकी लाशें फिंकवा दिया था.(हदीसें देखिए)
इस आयत में देखिए कि कुफ्फार किस तरह से गिडगिडाते हैं और मुहम्मदी अल्लाह पसीजने के बजाए और सख्त हुवा जा रहा है. मुहम्मद के झूठे दीन के प्रचारक बारहा इस धरती पर ज़िल्लत की मौत पा चुके है मगर ये अपनी माँ के खसम ओलिमा कुकुरमुत्ते की तरह पैदा होकर फिर से इंसान को बहकाना शुरू कर देते है.
वाकई ये मुहम्मदी दीन काबिले नफ़रत है.

"हाँ क्या उन लोगों का ख़याल है कि हम उनकी चुपके चुपके बातों को और मशविरे को नहीं सुनते हैं और हमारे फ़रिश्ते उनके पास हैं, वह भी लिखते हैं"
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (८०)

देखिए कि मुहम्मद के चुगल खोर सहाबी किराम को मुहम्मद फरिश्तों का दर्जा दे रहे हैं.
"सो उनको आप शोगल और तफ़रीह में पड़ा रहने दें यहाँ तक कि उनको अपने इस दिन के साबेक़ा वाक़े हो जिसका इनसे वादा किया गया है."
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (८३)

बद नियत रसूल कहता है कि इनको मश्गलों में पड़ा रहने दो ताकि हम उनसे बदला ले सकें.कि इसका वादा पूरा हो, जो इसने  इंसानियत के साथ किया था.
"और इसको रसूल के इस कहने की भी खबर है कि ऐ मेरे रब ये ऐसे लोग हैं कि ईमान नहीं लाते तो आप इनसे बे रुख रहिए और यूं कह दीजिए कि तुमको सलाम करते हैं तो तुम को भी मालूम हो जायगा."
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (८९)
आयत में बेसिर पैर की बातें ही नहीं बे सिर पैर की भाषा भी है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 24 October 2016

Soorah zukhruf 43

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५  
(पहली किस्त ) 

मौजूदा  साइंस की बरकतों से फैज़याब दौर के लोगो! 
खास कर मुसलमानों!!
एक बार अपने ख़ुदा के वजूद का तसव्वुर अपनी ज़ेहनी सतह पर बड़ी गैर जानिब दारी से क़ायम करो. बस कि सच का मुक़ाम ज़ेहन में हो. सच से किसी शरीफ़ और ज़हीन आदमी को इंकार नहीं हो सकता, इसी सच को सामने रख कर ख़ुदा का वजूद तलाशो, हमारे कुछ सवालों का जवाब खुद को दो.
१-क्या ख़ुदा हिदुओं, मुसलामानों, ईसाइयों और दीगर मज़ाहिब के हिसाब से जुदा जुदा हो सकता है?
२- क्या ख़ुदा भारत, चीन, योरोप, अरब, अमरीका और जापान वगैरा के जुग़राफ़ियाई एतबार से अलग अलग हो सकता है?
३- क्या खुदा नस्लों, तबकों, फिरकों, संतों, गुरुओं, पैगम्बरों और क़बीलों के एतबार से जुदा जुदा हो सकते हैं?
४- समाज के इज्तेमाई (सामूहिक) फैसले के नतीजे से बरआमद खुदा क्या हो सकता है?
५- खौफ़, लालच, जंग ओ जेहाद से बरामद किय हुआ खुदा क्या सच हो सकता है?
६- क्या ज़ालिम, जाबिर, ज़बर दस्त, मुन्तकिम, चालबाज़, गुमराह करने वाली हस्ती खुदा हो सकती है?
७- पहले हमल में ही इंसान की क़िस्मत लिख्खे, फिर पैदा होते ही कांधों पर आमाल नवीस फ़रिश्ते मुक़र्रर करे. इसके बाद यौमे हिसाब मुनअकिद करे, क्या ऐसा कोई खुदा हो सकता है?
८-क्या खुदा ऐसा हो सकता है जो नमाज़, रोज़ा, पूजा पाठ, चढ़वाया और प्रसाद वगैरा का लालची हो सकता है?
९- क्या ऐसा खुदा कोई हो सकता है कि जिसके हुक्म के बगैर पत्ता भी न हिले?
तो क्या तमाम समाजी बुराइयाँ इसी का हुक्म हैं. तब तो दुन्या के तमाम दस्तूर इसके ख़िलाफ़ हैं.
१०- कहते हैं ख़ुदा के लिए हर कम मुमकिन है, क्या ख़ुदा इतना बड़ा पत्थर का गोला बना सकता है, जिसे वह खुद न उठा पाए?
मुसलमानों! इन सब सवालों का सही सही जवाब पाने के बाद तुम चाहो तो बेदार हो सकते हो.

जगे हुए इंसान को किसी पैगम्बर या मुरत्तब किए हुए अल्लाह की ज़रुरत नहीं होती है.
जगे हुए इंसान के का रहनुमा खुद इसके अन्दर विराजमान होता है.
याद रखो तुम्हारे जागने से सिर्फ़ तुम नहीं जागते, बल्कि इर्द गिर्द का माहौल जागेगा, चिराग़ जलने के बाद सिर्फ़ चिराग़ रौशनी में नहीं आता बल्कि तमाम सम्तें रौशन हो जाती हैं.

महक उट्ठो अपने अन्दर की खुशबू से. लाशऊरी तौर पर तुम अपनी इस खुशबू को खारजी रुकावटों के बायस पहचान नहीं पाते. ये खुशबू है इंसानियत की. मज़हब तो खारजी लिबास पर इतर का छिडकाव भर है.
छोडो इन पंज रुकनी लग्व्यात को. और इस पंज वकता खुराफ़ात को,
मैं देता हूँ तुम्हें बहुत ही आसान पाँच अरकान ए हयात.
१-सच को जानो. सच के बाद भी सच, सच को ओढो और बिछाओ, 
२- मशक्कत, का एक नावाला भी अपने या अपने बच्चों के मुँह में हलाल है, मुफ़्त या हराम से मिली नेमत मुँह में मत जाने दो.
३- जिसारत, सदाक़त को जिसारत की बहुत सख्त ज़रुरत होती है, वैसे सदाक़त अपने आप में जिसारत है.
४. प्यार, इस धरती से, धरती की हर शै से और खुद से भी.
५- अमल, तुम्हारे किसी अमल से किसी को ज़ेहनी या जिस्मानी या फिर माली नुकसान न हो.
 बस.

"हाम"
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (१)

मुह्मिल यानी अर्थ हीन शब्द है. वैसे तो पूरा कुरान ही अर्थ में अनर्थ है, नाइंसाफी और जब्र है.

"क़सम है इस किताब वाज़ेह की कि हमने इसे अरबी ज़बान का क़ुरआन बनाया है ताकि तुम लोग इसे समझ लो और हमारे पास लौहे महफूज़ में बड़ी हिकमत भरी किताब है. क्या तुम से  इस नसीहत को, इस बात से उठा लेंगे कि तुम हद से गुज़रने वाले हो."
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (२-५)

अल्लाह अपने इस किताब की क़सम खाता है क्यूँकि ये अरबी ज़बान में है. न क़सम खाता तो भी इसे अरबी ज़बान में ही ज़माना देख रहा है. अब तो हर ज़बान में इस रुस्वाए ज़माना किताब वाज़ेह उरियाँ हो रही है.
मुहम्मद के ज़ेहन पर अरबी ज़बान का भूत काबिज़ है कि जिसे ये बार बार दोहरा रहे हैं.
लौह यानी पत्थर कि स्लेट जिस पर इबारत खुदी हुई हो. मूसा को ख़ुदा ने दस इबारत खुदी हुई पत्थर की पट्टिका दी थीं "The Ten comondments " जो अरब दुन्या में मशहूर ए ज़माना था. उसी को मुहम्मद अपने कलाम में बार बार गाते हैं कि ये क़ुरआन पत्थर की लकीर है, इस की फोटो कापी कर के जिब्रील लाते हैं.
वह कहते है कि क्या अल्लाह इससे बाज़ आएगा कि उसकी बात नहीं मानते, कभी नहीं. गोया अपने अल्लाह की बे गैरती बतला रहे हैं.
एक गावँइ  कहावत है हालांकि फूहड़ है जिसे ज़द्दे क़लम में न लाते हुए भी लाना पड़ रहा है, अल्लाह की संगत का असर जो है कि वह बार बार अपने फूहड़ कलाम में फूहड़ पन को दोहराता है. कहावत यूं है कि "रात भर गाइन  बजाइन, भोर माँ देखिन तो बेटा के छुन्याँ ही नहीं" यही कहावत लागू होती है कुरआन पर कि इसकी तारीफों के पुल बंधे है मगर पुल के नीचे देखा तो नाली बह रही थी. कुरआन में कुछ भी नहीं है सिवाए खुद की तारीफ़ के. 

"और उन लोगों ने अल्लाह के बन्दे में अल्लाह का जुज़ ठहराया दिया और उनहोंने फ़रिश्तों को जो कि अल्लाह के बन्दे है, औरत क़रार दे रख्खा है. क्या इनकी पैदाइश के वक़्त मौजूद थे? इनका ये दावा लिख लिया जाता है और क़यामत के दिन इनसे बाज़ पुर्स होगी."
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (१९)

इशारा ईसाइयत की तरफ़ है जो फरिश्तों को इंसान से हट कर वह मासूम  मख्लूक़ मानते हैं जो कोई जिन्स नहीं रखते. ऊपर मैंने कहा था कि अल्लाह कुरआन फूहड़ पन से भरा हुवा है,.इसी आयत में यह बात आ गई कि फूहड़ मुहम्मद ईसाइयों से पूछते है कि फ़रिश्ते जब जन्म ले रहे थे तो क्या यह लोग खड़े इनका जिन्स देख रहे थे. इनसे पूछा जा सकता है कि जब अल्लाह इन्हें पैगम्बर बना रहा था तो कोई गवाह था. इनकी झूटी गवाहियाँ अज़ान और नमाज़ों में तो हर रोज़ दी जाती है.

"और वह लोग यूँ कहते हैं कि अगर अल्लाह चाहता तो हम लोग उन (बुतों) की इबादत न करते. उनको इसकी कुछ तहक़ीक़ नहीं, सब बे तहक़ीक़ बातें करते है. क्या हमने उनको इससे पहले कोई किताब दे रख्खी है कि वह इससे इस्तेद्लाल करते. और कहते हैं कि अगर कुरआन अल्लाह का कलाम है तो दोनों बस्ती मक्का और तायफ़ के किसी बड़े आदमी पर क्यूँ  न नाज़िल किया गया. क्या ये लोग अपने रब की रहमते नबूवत को तक़सीम करना चाहते है?"
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (२०-२१+३१-३२)

लोगों का सीधा और वाजिब सवाल और मुहम्मद का टेढ़ा और गैर वाजिब जवाब. मक्का के लोगों का कहना था कि वह पैगम्बरी को तक़सीम ओ ज़रब नहीं करना चाहते थे, वह सिर्फ़ इतना चाहते थे कि कुरआन अगर वाकई अरब में और अरबी ज़बान में आई होती तो किसी संजीदः, सलीक़े मंद, पढ़ा लिखा, नेक तबा, शरीफुन-नफ्स, अम्न  पसंद, ईमानदार, साहिबे किरदार, साहिबे इंसाफ, साहिबे फ़िक्र के हिस्से में आती, न कि किसी झूठे और शर्री के हिस्से में.

कलामे दीगराँ - - -
"मैं कहता आँखन की देखी, तू कागत की लेखी"
"कबीर"

इसे कहते हैं कलाम पाक 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 22 October 2016

Hindu Dharam Darshan 17

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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साही मरे मूड के मारे, हम संतन का का पड़ी - - -  
Pawan Prajapati

*वाल्मीकि ब्राह्मण था, अछूत नही*

( कृपया इतिहास जानने पूर्ण पढ़िए )
साथियों .......
काफी समय से यह चर्चा का विषय रहा है कि आखिर वाल्मीकि कौन थे ?? ब्राह्मण या अछूत ?? अब पूरी तरह सिद्ध हो चुका हैं कि महाकवि वाल्मीकि ब्राह्मण था, उनका अछूतों और दलितों से किसी भी प्रकार का दूर- दूर तक क़ोई सम्बन्ध ही नही था , और न है ।
महाकवि वाल्मीकि का खानदान इस प्रकार है ।
ब्रह्मा ---------@ प्रचेता ------ @वाल्मीकि 
वाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड सर्ग 16 श्लोक में कहाँ है " राम मैं प्रचेता का दशवाँ पुत्र हुँ ।" मनुस्मृति में लिखा है प्रचेता ब्रह्मा का पुत्र था ।रामायण के नाम से प्रचलित कई पुस्तको में भी महाकवि वाल्मीकि ने अपना जन्म ब्राह्मण कुल में बताया है ।
साथियों........ ** चूहड़ा (भंगी)* जाति को वाल्मीकि कब बनाया गया, इसके पीछे लगभग 80 वर्षो पुराना इतिहास है । जब डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर ने घोषणा की ** मैं हिन्दू पैदा हुआ , यह मेरे वश में नही था , लेकिन मैं हिन्दू के तौर पर मरूँगा नही । और अछूतों को हिन्दू धर्म का त्याग कर देना चाहिए क्योकि हिन्दू धर्म में रहते हुए ऊँची जाति की नफ़रत और भेदभाव से छुटकारा नही मिल सकता ।**
बाबा साहब डॉ अम्बेडकर की इस घोषणा से गैर हिन्दुओ के मुह में अछूतों को अपने धर्म में शामिल करने मुह में पानी आता रहा। वही हिन्दू धर्म के ठेकेदारो के पैरो के निचे से जमींन खिसकने लगी थी ।
अपनी योजना के अधीन सन् 1922 में हिन्दू आर्य समाजी नेताओ ने ** चूहड़ा ** जाति के लिए महाकवि वाल्मीकि को खोज निकाला । और चमारो को उनके जाति में पैदा होने के कारण रविदास जी (रविदासिया आदि धर्म) के अनुयायी बनने प्रेरित किया ।
आर्य समाज ने अपनी इस योजना को सफल बनाने लाहौर में वेतनभोगी कुछ वर्कर नियुक्त किये इनमें पृथ्वीसिंह आजाद ,स्वामी शुद्रानंद और प्रो. यशवंत राय प्रमुख थे ।इन लोगो ने लाहौर ट्रेनिग से वापस आकर वाल्मीकि को चूहड़ा जाति के ऊपर थोप दिया ।
हिन्दुओ की नफरत से बचने के चूहड़ा जाति ने आर्य समाज के प्रचारको के प्रभाव में आकर अपनी जाति का नाम बदलकर वाल्मीकि रख दिया ।किन्तु हिन्दुओ की नफ़रत में कोई अंतर नही आया भेदभाव और नफ़रत पहले जैसे ही बरक़रार है ।
आज कल के शिक्षित नौजवान इस सडयंत्र को समझने लगे है । वे मानते है कि वाल्मीकि यदि शुद्र था तो उनको संस्कृत पड़ने लिखने का आधिकर उस काल में किसने दिया ?? वाल्मीकि शुद्र थे तो रामायण में शूद्रों के प्रति इतनी नफ़रत क्यों लिख मारी ।
ये नौजवान न अपने आप को वाल्मीकि कहलाने से इंकार कर रहे है बल्कि वे वाल्मीकि रामायण की कठोर शब्दों में आलोचना भी करते है । 
साथियों .... आप खुद सोचिये और अपना भविष्य उज्जवल करने अम्बेडकर मिसन से जुड़ जाइये । आप ही को तय करना है कि हमें रोशनी और उन्नति की ओर जाना है या दलदल और अँधेरे में फसकर अपना जीवन बर्बाद करना है ।


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 21 October 2016

Soorah Sura 42-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ 
क़िस्त -2 

खालिस काफ़िर ले दे के नेपाल या भारत में ही बाक़ी बचे हुए हैं कुफ़्र और शिर्क इंसानी तहज़ीब की दो क़ीमती विरासतें है. इनके पास दुन्या की क़दीम तरीन किताबें हैं  जिन से इस्लाम ज़दा मुमालिक महरूम हो गए हैं. इनके पास बेश कीमती चारों वेद मौजूद हैं, जो कि मुख्तलिफ़ चार इंसानी मसाइल का हल हुवा करते थे, इन्हीं वेदों की रौशनी में १८ पुराण हैं. माना कि ये मुबालगों से लबरेज़ है, मगर तमाज़त और ज़हानत के साथ, जिहालत से बहुत दूर हैं.  इसके बाद इनकी शाख़ें १०८ उप निषद मौजूद हैं, रामायण और महा भारत जैसी क़ीमती गाथाएँ, गीता जैसी सबक आमोज़ किताबें, अपनी असली हालत में मौजूद हैं. ये सारी किताबें तखलीक़ हैं, तसव्वर की बुलंद परवाज़ें हैं, जिनको देख कर दिमाग हैरान हो जाता है. और अपनी धरोहर पर रश्क होता है. जब बड़ी बड़ी कौमों के पास कोई रस्मुल ख़त भी नहीं था, तब हमारे पुरखे ऐसे ग्रन्थ रचा करते थे. अरबों का कल्चर भी इसी तरह मालामाल था और कई बातों में वह आगे था, जिसे इस्लाम की आमद ने धो दिया. बढ़ते हुए कारवाँ की गाड़ियाँ बैक गेर में चली गई.
माज़ी में इंसानी दिमाग को रूहानी मर्कज़ियत देने के लिए मफ्रूज़ा माबूदों, देवी देवताओं और राक्षसों के किरदार उस वक़्त के इंसानों के लिए अलहाम ही थे. तहजीबें बेदार होती गईं और ज़ेहनों में बलूगत आती गई, काफ़िर अपने ग्रंथो को एहतराम के साथ ताक़ पर रखते गए. ख़ुशी भरी हैरत होती है कि आज भी उनके वच्चे अपने पुरखों की रचनाओं को पौराणिक कथा के रूप में पहचानते हैं.
कुरआन इन ग्रंथों के मुकाबले में अशरे अशीर भी नहीं. ये कोई तखलीक़ ही नहीं है बल्कि तखलीक़ के लिए एक बद नुमा दाग़ है. मुसलमान इसकी पौराणिक कथा की जगह, मुल्लाओं की बखानी हुई पौराणिक हकीकत की तरह जानते हैं और इन देव परी की कहानियों पर यक़ीन और अक़ीदा रखते है. यह मुसलमान कभी बालिग़ हो ही नहीं सकते. एक वक़्त इस्लामी इतिहास में ऐसा आ गया था कि इंगलिशतान अरबों के क़ब्ज़े में होने को था कि बच गया. इतिहास कार"वर्नियर" लिखता है 
"अगर कहीं ऐसा हो जाता तो आज आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पैगम्बर मुहम्मद के फ़रमूदात पढाए जा रहे होते."
अरब भी मुहम्मद को देखने और सुनने के बाद कहते थे कि 
"इसका कुरआन शायर के परेशान ख़यालों का पुलिंदा है" 
इस हक़ीक़त को जिस कद्र जल्दी मुसलमान समझ लें, इनके हक में होगा .
एक ही हल है कि मुसलमान को तर्क-इस्लाम करके, अपने बुनयादी कल्चर को संभालते हुए मोमिन बन जाने की सलाह है. जिसकी तफ़सील हम बार बार अपने मज़ामीन में दोहराते है. कोई भी गैर मुस्लिम नहीं चाहता कि  मुसलमान इस्लाम का दामन छोड़े. अरब तरके इस्लाम करके बेदार हुए तो योरप और अमरीका के हाथों से तेल का खज़ाना निकल जाएगा, भारत के मालदार लोगों के हाथों से नौकर चाकर, मजदूर, मित्री और एक बड़ा कन्ज़ियूमर तबक़ा सरक जाएगा. तिजारत और नौकरियों में दूसरे लोग कमज़ोर हो जाएँगे, गोया सभी चाहते है कि दुन्या कि २०% आबादी सोलवीं सदी में अटकी रहे.  

ये हैं गुमराही परोसने वाली क़ुरआनी आयतें - - -

"सो आप इस तरह बुलाते रहिए जिस तरह हुक्म हुवा है. मुस्तक़ीम रहिए और उनकी ख्वाहिश पर मत चलिए और आप कह दीजिए कि अल्लाह ने जितनी किताबें नाज़िल फ़रमाई हैं, सब पर ईमान लाता हूँ और मुझको ये इल्म भी हुवा है कि तुम्हारे दरमियान मैं अदल रख्खूँ . अल्लाह हमारा भी मालिक है और तुम्हारा भी मालिक है और हमारे आमाल हमारे लिए और तुम्हारे आमाल तुम्हारे लिए. हमारी तुम्हारी कुछ बहस नहीं . अल्लाह सबको जमा करेगा और उसी के पास जाना है.
"सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (१५)

अल्लाह सुलह पसँद  हो रहा है, इसकी गोट मक्का में फँस चुकी है इसी लिए मुहम्मद की शिद्दत पसँद भाषा बदली बदली लगती है. ये विपत्ति इस्लाम पर थोड़े अरसे के लिए ही आई थी इसी आयत को नेता और मुल्ला आज दोहराया करते हैं कि इस्लाम कहता है तुम्हारा दीन तुम्हारे लिए और हमारा दीन हमारे लिए. इस सँकट के हटते ही मुहम्मद की आयतें फिर हठ धर्मी पर आ गई थीं. पिछले बाब में आपको याद होगा कि सूरह को अल्लाह के नाम से शुरू नहीं किया गया था. क्यूँकि मुहम्मद ने मुआहदा तोडा था.

"याद रख्खो जो लोग क़यामत के बारे में झगड़ते है बड़ी दूर की गुमराही में में हैं"
"सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (१८)

मुहम्मद की तमाम आयतें जाहिलों के लिए है जिन पर फ़िक्र बार होती है. आग में पड़े हुए लोग हाथा पाई करेंगे?
काश की उनके दिमागों में सवालिया निशान उभरे. इसके पहले मुहम्मद ने कहा है कि नफ्सी नफ्सी का आलम होगा. 

"आप यूं कहिए कि मैं तुम से कोई मतलब नहीं रखना चाहता बजुज़ रिश्ते दारी की मुहब्बत के."
"सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (२३)

मुहम्मद रिश्तेदारों को क़त्ल करने के लिए उनसे मतलब रखना चाहते है. जैसा कि जंग बदर नें उन्हों ने किया, तीस करीबी रिश्तेदारों का गला रेत कर.

"क्या वह लोग कहते हैं कि इन्हों ने अल्लाह पर झूठा बोहतान बाँध रख्खा है?
"और अगर अल्लाह दुन्या में सब बन्दों को रोज़ी फ़राख कर देता तो दुन्या में शरारत करने लगते लेकिन जितना रिज़क़ चाहता है अंदाज़ से हार एक के लिए उतार देता है, वह अपने बन्दों को जानने वाला और देखने वाला है."
"सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (24-२७)

लोग सौ फीसदी सच कहते थे. तुम्हारे वारिसों के ज़ुल्म ओ सितम ने झूट को सच बना दिया.
अल्लाह कहाँ खूराक मुहय्या कराता है? लाखों लोग अकाल के गाल में चले जाते है. मासूम बच्चों से लेकर अच्छे बन्दे, चरिंदे और परिंदे तक.

"और मिन जुमला इसकी निशानियों के जहाज़ हैं, समंदर में, जैसे पहाड़. अगर वह चाहे तो हवा को ठहरा दे तो वह समन्दर में खड़े के खड़े रह जाएँ. बेशक इस में निशानियाँ हैं. हर साबिर शाकिर के लिए. या इन जहाज़ों को इनके आमाल के सबब तबाह कर दे और बहुत से आदमियों के लिए दर गुज़र कर जाए. और उन लोगों को जो हमारी आयातों में झगडे निकालते हैं मालूम हो जाए कि इनके लिए कहीं बचाओ नहीं."
 "सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (३५)

मुहम्मदी अल्लाह से ज़्यादः जहाज़ की हवाओं को मल्लाहों ने समझा था और उनके लिए उन्हों ने मस्तूल बनाए थे. अल्लाह आलिमुल गैब को इतना भी पता नहीं कि आने वाला वक़्त बगैर हवा के जहाज़ दौड़ेंगे.
मुहम्मद कैसी बेसिर पर की बातें करते है - - -"या इन जहाजों को इनके आमाल के सबब तबाह कर दे" अब आश्याओं के आमाल भी होने लगे. फरिश्तों,जिन्नातों शैतानों और इंसान के बाद अपनी नई मखलूक जहाजों का वजूद भी शामिल ए मखलूक  हुवा

"वाकई अल्लाह जालिमों को पसँद नहीं करता और जो अपने ऊपर ज़ुल्म हो चुकने के बाद बराबर का बदला लेले, सो ऐसे लोगों पर कोई इलज़ाम नहीं और जो सब्र करे और मुआफ़ करदे तो ये अलबत्ता बड़े हिम्मत के कामों में से है."
"सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (४०-४२)

मुहम्मद की कुछ बाते वाजिब लगती हैं, अगर उनके पहले से चला आ रहा हो तो ये उनकी बात नहीं हुई.

"और अल्लाह जिसे गुमराह करे उसे नजात के लिए कोई रास्ता नहीं."
"सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (४६)

बेशक अल्लाह से बड़ा शैतान तो कोई हो भी कैसे सकता है.

कलामे दीगराँ - - -
"अगर तुम में से हर कोई अपने भाई को दिल से मुआफ करेगा तो मेरा बाप बहिश्त में जो बैठा है, वह तुम्हारे साथ भी वैसा ही करेगा?"
"ईसा"
इससे कहते हैं कलम पाक 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 18 October 2016

Hindu Dharam Darshan 16

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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हिंदुत्व का बंजर भविष्य 

अरब के असभ्य कबीलाई बददू  आज भी अपनी पुरानी खसलतों के मालिक हैं .
इनकी फितरत में जन्मा इस्लाम बहुत से अपने कबीलाई रंग ढ़ंग रखता है. 
लड़ाई झगडे, लूट मार, जंग जदाल इनकी खू हुवा करती है. 
यह समझते हैं कि इनकी बहादुरी, 
इन्हीं तलवार बाजियों के दम पर कायम रहती है. 
अगर अपने इस रवय्ये को यह छोड़ दें तो एक दिन गुलाम बन जाएँगे. 
गुलामी को यह मौत से बदतर समझते हैं. 
इनकी फितरत क़ब्ल इस्लाम हजारों साल पहले से लेकर आज ताक कायम है. 
इनको अपनों के मर जाने का कोई ग़म नहीं होता, 
तीन दिन से ज्यादह किसी की मौत का शोक मनाना इनमें हराम होता है.
इनमें नस्ल अफजाई की भी बला की कूवत होती है. 
दर्जन भर बच्चे पैदा करना इनकी आम औसत है. 
बस खुश हाली और इक्तेदार दरकर है, 
जिसके लिए वह हर वक़्त आमादा ए जंग रहते हैं. 
अलकायदा, जैश ए मुहम्मद, हुर्रियत, तालिबान और ISIS तक, 
इनके वर्तमान के नमूने हैं.  

इसके बर अक्स हम बर्र सगीर के लोग अरबियों के उलटी फितरत के हुवा करते हैं . हर हाल में अम्न और अहिंसा पसंद होते हैं. 
मार लो, काट लो, लतया लो, घुसया लो, दास बना लो, दासियाँ बना लो, 
मुंह में थुकवा लो, हम हर हाल में जिंदा रहना चाहते हैं. 
इसका नया रूप सहिष्णुता है.
यह मुसलमान कहे जाने वाले हमारी उन बहन बेटियों की संताने हैं, 
जिन्हें हमारे अहिंसक पूर्वजों ने मुस्लिम लडाको को समर्पित कर दिया था. 
यह सब दोगले हैं हिन्दू कायरता और अरबी वह्शत  का मुरक्कब. 
यह शाका हारी, मांसा हारी हो गए अपने मातृ पूर्वजों के करण, 
जंग जू हो गए अपने पितृ पूर्वजों के कारण. 
इनकी खेती बड़ी ज़रखेज़ होती है. 
यह मुट्ठी भर दोगले जिस ज़मीन पर छिड़क दिए जाएं, 
देखते ही देखते हरी भरी फसल बन जाते हैं. 
यह अपनी तान के तंबू तानते हुए दो दो पकिस्तान बना लेते हैं.  
इंशा अल्लाह भारत में भी एक दिन इनका तम्बू तन जाएगा. 
हिन्दू कुश की हिन्दू कुशी करते हुए भारत को यह  हिन्दुस्तान बन लेंगे. 
भारत योगी भूमि, स्वामी भूमि, साधु और साधुवी भूमि, ब्रहम चर्य भूमि बनते बनते एक दिन हिंदुत्व की बंजर भूमि बन जाएगी. 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 17 October 2016

Soorah shura 42-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ 
पहली किस्त 

हर शै की तरह इंसानी ज़ेहन भी इर्तेकई मरहलों के हवाले रहता है जिसके तहत अभी इंसानी मुआशरे को खुदा की ज़रुरत है. कुछ लोग बहुत ही सादा लौह होते हैं, उन्हें अपने वजूद के सुपुर्दगी में मज़ा आता है. जैसे की एक हिन्दू धर्म पत्नि अपने पति को ही देवता मान कर उसके चरणों में पड़ी रहने में राहत महसूस करती है. 
हमारे एक डाक्टर दोस्त हैं, जो बहुत ही सीधे सादे नेक दिल इंसान हैं, वह अपने हर काम का अंजाम ईश्वर की मर्ज़ी पर डाल के बहुत सुकून महसूस करते हैं, उनको देख कर बड़ा रश्क आता है कि वह मुझ से बेहतर ज़िन्दगी गुज़ारते हैं, कभी कभी अन्दर का कमज़ोर इंसान भटक कर कहता है कि किसी न किसी खुदा को मान कर ही जीना चाहिए. किसी का क्या नुक्सान है कि कोई अपना खुदा रख्खे. ये फ़ितरते इंसानी ही नहीं, बल्कि फ़ितरते हैवानी भी है. एक कुत्ता अपने मालिक के क़दमों पर लोट कर कितना खुश होता है. बहुत से हैवान इंसान की पनाह में रहकर ही अमाँ पाते हैं. 
अपने पूज्य, अपने माबूद, अपने देव और अपने मालिक के तरफ़ ये क़दम इंसान या हैवान के दिल के अन्दर से फूटा हुवा जज़बा है, न कि इनके ऊपर लादा गया तसल्लुत. ये किसी खारजी तहरीक या तबलीग का नतीजा नहीं, इसके पीछे कोई डर, खौफ नहीं, कोई लालच या सियासत नहीं है. इसको मनवाने के लिए कोई क़ुरआनी अल्लाह की आयतें नहीं जिसके एक हाथ में दोज़ख की आग और दूसरे हाथ में जन्नत का गुलदस्ता रहता है. अन्दर से फूटी हुई ये चाहत क़ुरआनी अल्लाह की तरह हमारे वजूद की घेरा बंदी नहीं करतीं. आपका ख़ुदा  किसी को मुतास्सिर न करे, शौक से पूजिए जब तक कि आप अपने सिने बलूगत में न आ जाएं, आप की समझ में ज़िन्दगी के राज़ ओ नयाज़ न झलकें. 

बेटे ने कहा अब्बा अब्बा फफीम खाएँगे. बाप बोला बेटा पहले अफ़ीम कहना तो सीखो. ये रही अल्लाह की फफीम - - -

"हा मीम"
सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (१)

ये मुसलमानों की फफीम है जिसके कोई मानी नहीं है, न मुसलमानों का कोई बाप ऐसा है जो इन्हें अफ़ीम कहना सिखलाए और अफ़ीम के नाक़िस इस्तेमाल से आगाह करे, गोया पूरी कौम अफ़ीम के नशे में धुत्त पड़ी हुई है. यही 'हामीम या फफीम' का शिकार साठ साल पहले पूरी चीन कौम थी, वहाँ उनका बाप पैदा हुवा और अफ़ीम के मुज़िर असरात को बतलाया और इसकी फ़सलों को तबाह किया. आज मज़हबों से चीन नजात पा चुका है और दुन्या का सुर्खुरू तरीन मुल्क बनने की दर पर है. 
योरोप में कार्ल मार्क्स ने कहा 
"मज़हब अफ़ीम का नशा है' जिस का इलाज कौमो के लिए ज़रूरी है'' नतीजतन दुन्या ने इस नशे को समझा और इससे उनको छुटकारा मिला. बद नसीब हिदुस्तान और मुस्लिम दुन्या इस के पंजे में फंसी हुई है. मुसलमानों का कोई रहनुमा पैदा होना मुश्किल है कि इनको खुद जागना होगा. 

"ऐन सीन क़ाफ़"
सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (२)
ये हुरूफ़ मुक़त्तेआत है. बस अफ़ीम का ही हम सर भाँग की तरह.  

"इसी तरह ज़बरदस्त हिकमत वाला अल्लाह आप की तरफ़ और आप के पहले नबियों की तरफ़ वह्यी भेजता रहा. कुछ बईद नहीं कि आसमान अपने ऊपर से फट पड़ें और फ़रिश्ते अपने रब की तस्बीह और तम्हीद करते हैं और ज़मीन वालों के लिए माफ़ी माँगते हैं और हम ने आप पर ये कुरआन अरबी वह्यी के जारीए नाज़िल किया है ताकि आप मक्का में रहने वालों को और जो लोग इसके आस पास हैं, उनको डराएँ और जमा होने वाले दिन से डराएँ."
सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (३-७)

ये अल्लाह मुसलमानी ज़हनों पर नाजायज़ बाप की तरह मुसल्लत रहता है. एक ख्वाह मख्वाह का डर मुसलामानों को कचोके लगाता रहता है. इनका ज़ालिम अल्लाह इन पर कोई भी ज़ुल्म कर सकता है, कुछ नहीं तो आसमान ही इनके सर पर गिरा दे. कौन इन्हें समझाए कि आसमान कोई छत जैसी चीज़ नहीं, ये हद्दे नज़र है. क़ुरआनी आयतें समझाती हैं कि इंसान का वजूद ही धरती पर एक गुनाह है, जिसके लिए मुसलमान बे मार की तौबा किया करता है, यह इतना बड़ा मुजरिम है कि इसके लिए फ़रिश्ते भी दुआ किया करते हैं, 
इस तरह से इनका खेवन हार ले दे के रसूल ही बचते है.
अल्लाह ने अरबी में कुरआन इस लिए भेजा था कि इससे अरबियों को डराया जाए, बद किस्मती ये है कि इसे हिंदी भी झेल रहे है.

"आप जानदार चीज़ों को बेजान से निकल देते हैं, (जैसे मुर्गी से अंडा) और बेजान चीज़ों को जानदार से निकलते हैं (अंडे से चूजा)"
"सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (९)

क़ुरआनी अल्लाह यानी मुहम्मद की मशहूर जिहालत जो बार बार इस कलाम पाक को नापाक करती है. 
मुसलमानों ! 
क्या इक्कीसवीं सदी में भी तुम ऐसी आयातों पर भरोसा करते हो जो साबित करती हैं कि अंडे बेजान होते है.

कलामे दीगराँ  - - -
"पाएमाली से पहले क़िब्र और ठोकर से पहले घमंड होता है. 
बे इज्ज़ाती उन्हीं की होती है जिन्हें इज्ज़त का नशा होता है, 
मगर नरम लोगों में समझ होती है,"
"यहूदी  मसलक "
इसे कहते हैं कलाम पाक 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 15 October 2016

Hindu Dharam Darshan 15

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है। 


नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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धर्मांध आस्थाएँ 

मोक्ष की तलाश में गए जन समूह को पहाड़ों की प्राकृति ने लील लिया आस्था कहती है उनको मोक्ष मिल गया, वह सीधे स्वर्ग वासी हो गए, सरकार और मीडिया इसे त्रासदी क्यों मानते है . 
समाज में भगवन का दोहरा चरित्र क्यों है .? 
यह मामला धर्म के धंधे बाजों की ठग विद्या है, इनकी दूकानों का पूरे भारत में एक जाल है. इन लोगों ने हमेशा जगह जगह पर अपने छोटे बड़े केंद्र स्थापित कर रखे हैं और भोली भाली नादान जनता इनका आसान शिकार हैं . 
सब कुछ गँवा चुकने के बाद भी जनता के मुंह से कल्पित भगवानों के विरोध में शब्द नहीं फूटते हैं. मठाधिकारी आड़म्बरों के उपाय सुझाते फिर रहे हैं और अपने अपने गद्दियों के लिए लड़ रहे होते हैं,जनता सब कुछ देख कर भी अंधी बनी हुई है . 
मुस्लिम वहदानियत और निरंकार के हवाई बुत को लब बयक कहने के लिए मक्का जाते हैं और शैतान के बुत को कन्कडियाँ मार कर वापस आते हैं. बरसों से यह समाज अरबियों की सहायता हज के नाम पर करता चला आ रहा है. अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार होता है . 
कब यह मानव जाति जागेगी ? 
कब तक समाज का सर्व नाश होता रहेगा . 
अलौकिक विशवास को आस्था का नाम दे दिया गया है और गैर फ़ितरी यकीन को अकीदत का मुकाम हासिल है. 
बनी नॊअ इन्सान के हक में दोनों बातें तब असली सूरत ले सकती हैं 
जब मुसलामानों को केदार नाथ और हिन्दुओं को हज यात्रा पर जबरन भेज जाए. 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 14 October 2016

Soorah Sajda 41-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ 
किस्त 2  

"तुम अपने काले करतूत करते वक़्त ये तो न करते थे कि अपने कान आँख और खाल से अपनी हरकत छुपा सकते. लेकिन तुम ज़्यादः तर इस गुमान में रहे कि वह बहुत कुछ जो तुम करते रहे अल्लाह को मालूम नहीं."
सूरह  सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (२२)

ए मुहम्मद तेरे अल्लाह ने शर्म से मुँह छुपा लिया था जब तू अपनी बहू जैनब के साथ काले करतूत कर रहा था  .

"और हम ने इसके लिए कुछ साथ रहने वाले शयातीन मुक़र्रर कर रखे थे सो इन्हों ने इनके अगले पिछले आमाल इनकी नज़र में मुस्तःसिन कर रखे थे और इनके लिए भी अल्लाह का कौल पूरा होके रहा.जो इनके पहले जिन और इंसान हो गुज़रे है बेशक वह भी ख़सारे में रहे."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (२५)

यह आयत मेरे कौल की सदाक़त बयान करती है कि अल्लाह और शैतान आपस में भाई भाई हैं और एक हैं. जब अल्लाह ही शैतान से काम कराता है तो इंसान दो तो तरफ़ा मार झेल रहा है.
मुहम्मद एक बेवकूफ साजिशी का नाम है, जिसे नादान मुसलमान समझ नहीं पाते.

"और   कहते हैं इस क़ुरआन को सुनो मत और इसके बीच ही शोर कर दिया करो. ऐसे काफ़िरों को हम बड़ा सख्त मज़ा चखाएंगे और उनके बुरे कामों का भर पूर सज़ा उनको देंगे,"
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (२६-२७)

मुहम्मद की असली हालत ये सूरह बतला रही है कि किस क़दर लाखैरे और बेहया ज़ात थी उनकी. जाहिलों की पुश्त पनाही उसके बाद माले ग़नीमत की लालच से ये जिहालत की आयतें इबादत की बन गईं .

"और मिन जुमला इसकी निशानियों में एक ये है कि तू ज़मीन को देखता है कि दबी दबी पड़ी है, फिर जब हम पानी बरसाते हैं तो ये उभरती और फूलती है, हमने इस ज़मीन को ज़िंदा कर दिया वही मुर्दों को जिंदा करेगा. बे शक वह हर चीज़ पर क़ादिर है."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (२९)

ज़मीन का मुशाहिदा न किसानों के लिए किया न मज़दूरों के लिए, जिनका तअल्लुक़ ज़मीन से है. अपने लाल बुझककड़ी दिमाग से इंसानों की फ़सल ज़मीन से उगा रहे हैं.

"और ये बड़ी बा वक़अत किताब है जिसमें गैर वाकई बात न आगे से आ सकती है न इसके पीछे की तरफ़ से. ये अल्लाह हकीम महमूद की तरफ़ से नाज़िल किया गया है और अगर हम इसे अजमी कुरआन बनाते तो यूँ कहते कि इसकी आयतें साफ़ साफ़ क्यूँ बयान नहीं की गईं. ये क्या बात है कि अजमी कुरआन और अरबी रसूल ? आप कह दीजिए कि ये कुरआन ईमान वालों के लिए राह नुमा और शिफ़ा है. और जो ईमान नहीं लाते उनके लिए डाट लगा दी गई है."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (४१-४४) 

"बार उम्मी अपना तकिया कलाम कुरआन में दोहराते हैं 
"न आगे से आ सकती है न इसके पीछे की तरफ़ से." 
अल्लाह का नया नाम किसी तालीम याफ़्ता ने सुझाया "अल्लाह हकीम महमूद" अस्ल में कुरआन तौरेत और यहूदियत की चोरी है मगर इसमें झूट और जिहालत की आमेज़िश कर दी गई.मालूम हो कि जब उस्मान गनी कुरआन को तरतीब देने पर आए  तो इसके आगे से, पीछे ऊपर से और नीचे से ५०% आयतें निकल कर कूड़ेदान में डाल दी गईं थी. कि आप की आयतें इन्तेहाई दर्जे हिमाक़त की थी और कराहियत की भी थीं. अरबी और अजमी की बातें कितनी झोलदार हैं.
कितना मामूली फ़िक्र का रसूल है जो कहता है 

"जो ईमान नहीं लाते उनके लिए डाट लगा दी गई है."
"बहुत जल्द हम अपनी निशानियाँ उनके चारो तरफ़ दिखलाएँगे और खुद इनके अन्दर भी, यहाँ तक कि इनके लिए ये इक़रार किए बगैर कोई चारा न होगा कि ये कुरआन हक़ है. क्या तुम्हारे लिए ये काफ़ी नहीं कि तुम्हारा  परवर दिगार हर हर चीज़ पर खुद गवाह है . आगाह हो जाओ कि इसने हर चीज़ को अपने घेरे में ले रखा है."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (५३-५४)  

पहली बार मुहम्मद डरा धमका नहीं रहे बल्कि आगाह कर रहे हैं मगर एक झूट के साथ. कुदरत की निशानियाँ तो चारो तरफ़ रौशन हैं जो इन्हें नज़र नहीं आतीं, नज़र कुछ आता है तो किज़्ब और मिथ्य.    


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 11 October 2016

Hindu Dharam Darshan 14

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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  वेद दर्शन - - -6  खेद  है  कि  यह  वेद  है  . 

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हे इंद्र जो लोग स्वयं यज्ञ नहीं करते अथवा यज्ञ करने वालों का विरोध करते हैं, 
वह पीछे की ओर मुंह हरके भाग रहे हैं. 
हे इंद्र ! तुम हरि नमक घोड़ों के स्वामी, युद्ध में पीठ न दिखलाने वाले तथा उग्र हो. 
यज्ञ न करने वालों को तुमने स्वर्ग आकाश तथा धरती से भगा दिया है.
(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 33)(5) 

पंडितों ने वेद श्लोक को रहस्य मय औए पवित्र बनाने के लिए इन का दुश्मन खुद बना रख्खा है. और यह दुश्मन है शुद्र, शुद्र अगर इन निरर्थक श्लोकों को सुन ले तो उसके कानों में पिघला हुवा शीशा पिला दिया जाए. इसके आलावा वह जानते थे कि इन दरिद्रों के पास है ही क्या कि यह हमारी यजमानी करें ? इनको तो मन्त्रों में लूट  लेने की अर्जी देवताओं को दी जाती है. 
हे अश्वनी कुमारो ! हमें तीन बर धन प्रदान करो. हमारे देव संबंधी य ज्ञ में तीन बार आओ.तीन बार हमारी बुद्दी की रक्षा करो तीन बार हमारे सौभग्य की रक्षा करो. हमें तीन बार अन्न दो. तुम्हारे तीन पहिए वाले रथ पर सूर्य पुत्री सवार है. 
(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 34 )(5)  
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


इस सूक्त के बारहों श्लोक में तीन तीन की रट लगाईं हुई है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 10 October 2016

सूरह सजदा - ४१-पारा २४ -1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह  सजदा - ४१-पारा २४  
किस्त -1

भारत के मुस्तकबिल करीब में मुसलामानों की हैसियत बहुत ही तशवीश नाक होने का अंदेशा है. अभी फ़िलहाल जो रवादारी बराए जम्हूरियत बक़रार है, बहुत दिन चलने वाली नहीं. इनकी हैसियत बरक़रार रखने में वह हस्तियाँ है जिनको इस्लाम मुसलमान मानता ही नहीं और उन पर मुल्ला फतवे की तीर चलाते रहते हैं. उनमे मिसाल के तौर पर डा. ए पी. जे अब्दुल  कलाम, तिजारत में अज़ीम प्रेम जी, सिप्ला के हमीद साहब वगैरा ,फ़िल्मी  दुन्या के ए. आर. रहमान, आमिर खान, शबाना आज़मी. और दिलीप कुमार, फ़नकारों में फ़िदा हुसैन, बिमिल्ला खान जैसे कुछ लोग हैं. आम आदमियों में सैनिक अब्दुल हमीद जैसी कुछ फौजी हस्तियाँ भी हैं जो इस्लाम को फूटी आँख भी नहीं भाते. मैंने अपने कालेज को एक क्लास रूम बनवा कर दिया तो कुछ इस्लाम ज़दा कहने लगे की यही पैसा किसी मस्जिद की तामीर में लगते तो क्या बात थी, वहीँ उस कालेज के एक टीचर ने कहा तुमने मुसलामानों को सुर्खुरू कर दिया, अब हम भी सर उठा कर बातें कर सकते है.
कौन है जो सेंध  लगा रहा है आम मुसलामानों के हुकूक़ पर?
कि सरकार को सोचना पड़ता  है कि इनको मुलाज़मत दें या न दें?
आर्मी को सोचना पड़ता है कि इनको कैसे परखा जाय?
कंपनियों को तलाश करना पड़ता कि इनमें कोई जदीद तालीम का बंदा है भी?
बनिए और बरहमन की मुलाजमत को इनके नाम से एलर्जी है.
इसकी वजेह इस्लाम है और इसके गद्दार एजेंट जो तालिबानी ज़ेहन्यत रखते हैं.
यह भी हमारी गलतियों से खता के शिकार हैं. 
हमारी गलती ये है कि हम भारत में मदरसों को फलने फूलने का अवसर दिए हुए है जहाँ वही पढाया जाता है जो कुरआन में है.

अब शुरू करिए शैतानुर्रज़ीम  के नाम से - - -    

"हा मीम"
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (१)

जी हाँ! यह भी एक बात कही है अल्लाह ने, जिसे आप समझ नहीं पाएंगे. जो बात अल्लाह की आपके समझ में आती हैं वो ही कौन सी बेहतर बात है. ज़िन्दगी को कौन सा मज़ा देती हैं.

"ये कलाम रहमान और रहीम की तरफ़ से नाज़िल किया जाता है."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (२)

मुहम्मद के जेहन में पहली बार रहमान और रहीम नाज़िल हुए हैं यही बात हिदुस्तानी रवा दारी में जब कही जाती है तो राम रहीम हो जाती है .

"बशारत देने वाला और डर सुनाने वाला और वह लोग सुनते ही नहीं, और मुँह फेर कर चले जाते हैं .''
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (४)

जो आयतें ज़िन्दगी को मुर्दनी बनाएँ उनको कौन सुनना गवारा करेगा? जब तक कि इस्लामी तलवार सर पर न हो. हम धीरे धीरे कोफ़्त को सुनने के आदी हो गए हैं, वह भी ज़बाने गैर में. ये आयतें बशारत नहीं खबासत और कराहियत देती हैं अगर अपनी ज़बान में इसका इल्म हो, इसका ख़ालिस तर्जुमा हो .

"और कहते हैं कि जिस बात की तरफ़ आप हमें दावत देते हो हमारे दिल में उस के लिए कोई जगह नहीं और हम ने अपने कान भी बंद कर लिए, आप के और हमारे बीच पर्दा पद गया है, हमारी समझ में कुछ नहीं आता, बस तुम अपना काम करो और हम अपना काम जारी रखेंगे."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (५)

ये बातें लोग उल्टा मुहम्मद के मुँह पर तअने के तौर पर वापस मारते हैं. अल्लाह की आयतें बार बार दोहराई जाती हैं कि ये काफ़िर समझने वाले नहीं हमने इनके कानों में डाट लगा दी कई और आँखों पर पर्दा डाल दिया है. सुम्मुम, बुक्मुम फ़हुम लायारजऊन. है जिसे बार बार वह कुरआन में गाया करते है.

"सुनो! मैं भी तुम्हारी तरह ही एक बशर हूँ, मुझ पर ये वह्यी नाज़िल होती है कि तुम्हारा माबूद एक ही माबूद है सो इसकी तरफ़ सीध बाँध लो और इससे माफ़ी माँगो, वर्ना शरीक करने वालों की बड़ी बर्बादी होगी."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  २४ (६)

खुदा न करे कि कोई बशर तुम जैसा मक्कार दूसरा हो. ये मक्र भरी तुम्हारी वहियाँ इस धरती के करोड़ों  इंसानों का खून पी चुकी हैं फिर भी तुम्हारे अल्लाह की प्यास अभी बुझी नहीं.

"और उसने ज़मीन में उसके ऊपर पहाड़ बना दिए हैं,
और उसमें फायदे की चीज़ रख दीं,
और इसमें इसकी गिज़ाएँ तजवीज़ कर दीं.
चार दिन में पूरे हैं, पूछने वालों के लिए.
फिर आसमान की तरफ़ तवज्जो फ़रमाई और वह धुवाँ सा था,
सो इससे और ज़मीन से फ़रमाया कि तुम दोनों ख़ुशी से आओ या ज़बरदस्ती से.
दोनों ने अर्ज़ किया हम दोनों हाज़िर हैं,
सो दो रोज़ में इसके सात आसमान बनाए और हर आसमान में इसके मुताबिक अपना हुक्म भेज दिया और हमने इस करीब वाले आसमान को सितारों से ज़ीनत दी और हिफाज़त दी.
ये तजवीज़ है ज़बरदस्त वाक़िफ़ ए कुल की."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (१०-१२) 

हर जुमला मुहम्मद की मूर्खता का बखान करते हैं - -
तौरेती इलाही छ दिन में दुनिया की तकमील करता जिसकी फूहड़ नक़ल उम्मी ने की "चार दिन में पूरे हैं, पूछने वालों के लिए.'' 
आसमान धुवाँ था तो ज़मीन क्या थी? और कहाँ थी? कि अल्लाह उनको धमका रहा है किसी उजड पहेलवान की तरह
"सो इससे और ज़मीन से फ़रमाया कि तुम दोनों ख़ुशी से आओ या ज़बरदस्ती से."
दोनों भाई बहनों से अर्ज़ करवा रहा है उम्मी 
"दोनों ने अर्ज़ किया हम दोनों हाज़िर हैं, "
अपने अल्लाह का नया नाम तराशते हुए कहता है,"वाक़िफ़ ए कुल '' किसी ने सुझा दिया होगा कि उसका ये नाम दो. नाम भर रखने से क्या फ़ायदा, जब पूरा मज़मून ही गुड गोबर हो.

"उनसे कह दीजिए कि मैं तुमको ऐसे आफ़त से डरता हूँ जैसे आद ओ सुमूद पर आफ़त आई थी जब कि इनके पास इनके आगे से भी इनके पीछे से भी पैगम्बर आए थे."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (१३)

दुन्या में लाखों हुक्मरान आए हैं आदिलो मरदूद, मगर मुहम्मदी अल्लाह को दस पाँच नाम ही याद हैं जिन्हें बार बार दोहराता है.

"जिस दिन अल्लाह के दुश्मन दोज़ख की तरफ़ जमा कर के ले जाए जाएंगे, यहाँ तक कि जब इसके करीब आ जाएंगे तो इन के कान, इनकी आँखें और इनकी खालें इन पर इनके आमाल की गवाही देंगे. और उस वक़्त वह लोग अपने अअज़ा से कहेगे तुमने हमारे ख़िलाफ़ गवाही क्यों दिया ? वह कहेंगे कि अल्लाह ने हमें गोयाई दी, जिसने हर चीज़ को गोयाई दी."
सूरह सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (१९-२१) 

ए रसूल तेरा अल्लाह चालबाज़ है, ज़ालिम है, क़ह्हार है, अय्यार है, मक्कार है और मुन्तकिम है जैसा कि तूने कई बार बतलाया तो उसे इन बनाए गए गवाहों की क्या ज़रुरत है?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान