Wednesday 31 May 2017

Hindu Dharm Darshan 69

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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गाय बचाओ आश्रम 

दूध पूत से छुट्टी पाइस , भूखी खड़ी है गइया , 
इसके दुःख को कोई न समझे , देखे खड़ा क़सय्या। 

मैं कुछ दिनों के लिए वंधना (कानपुर) एक हिंदू आश्रम में M J Khan के नाम से रहा। लोगों के मुस्लिम विरोध पर आश्रम के संस्थापक स्वामी जी ने उनको समझाया कि वह खाड़ी देशों में जाते है तो वहाँ मुसलमान ही उनके मेज़बान होते हैं। डरना तो खान साहब को चाइए जो तुम्हारे बीच रहने आए हैं। 
 वहाँ जानवरों से मेरा प्यार देख कर गऊ शाले की देख भाल रखने की ज़िम्मेदारी मुझे सौप दी गई।  एक गाय गाभिन थी, बियाने से पहले समस्या खड़ी हो गई मैं मवेशी डॉक्टर के पास गया , उसने आकर गाय के काम को आसान किया।  गाय ने एक बहुत खूब सूरत बछिया जनी ।  उसे इंसानो के बच्चों की तरह मैं खेलाता।  वहां के लोग हमें देख कर मुस्कुराते। 
गाय में बड़ा ऐब निकला कि उसका दूध इतना भी न होता कि उसके बच्चे का पेट भर पाता । 
इसी बीच एक पति पत्नी एक काली गाय उसके नए जन्मे बच्चे को लेकर आये उसे आश्रम को दान किया और १०१ रुपया भी दिया , हाथ जोड़ा , नमस्कार किया और चलते बने।  दूसरे दिन मालूम हुवा कि यह माता पहली वाली से भी ज़्यादा कमज़ोर है , इसमें दूध ही नहीं था। 
गायों  के सेवक पाल जी ने बतलाया कि द्वेदी जी आफ़िफ़ में चर्चा कर रहे थे कि दो दो निकम्मे जानवरों का खर्च खराबा कैसे उठाया जाय।  
मैं इतवार को घर चला गया था , वापस आकर देखा तो दोनों गायें नदारद थीं।  मैंने  पाल से पूछा ? उसने मुस्कुराते हुए इशारा किया कि गईं।  
मैं समझ गया कि जो सुनते आए थे , उसे देख भी लिया। 
इस आश्रम के संस्थापक प्रसिध स्वामी जी हुवा करते थे , लेखक थे , प्रवचन में ताक और स्वामी चिन्मयानन्द के उत्तराधिकारी थे. प्रबंधक द्वेदी जी स्वामी जी के दामाद थे। 
इन्हीं के हवाले से मैं चिन्मया आश्रम सिधवाड़ी (धर्मशाला) गया जहाँ स्वामियों गुरुवों और पंडों के साथ रहा।  वहां ढेर सारे शिष्य और शिष्याओं का जमावड़ा था। 
 यहाँ पर अय्याशियों का एक अलग  अद्धयाय  है। 
   

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 29 May 2017

Soorah Inshraah 94

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इन्शिराह ९४ - पारा ३०
(अलम नशरह लका सद्रका)


ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

दुन्या की सब से बड़ी ताक़त कोई है, यह बात सभी मानते हैं चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक उसकी मान्यता सर्व श्रेष्ट है. उसका सम्मान सभी करते हैं, वह किसी को नहीं सेठ्ता. एक मुहम्मद ऐसे हैं जो उस सर्व शक्ति मान से अपनी इज्ज़त कराते हैं. 
अल्लाह मुहम्मद को सम्मान जनक शब्दों से ही संबोधित करता है.वह मुहम्मद को आप जनाब करके ही बात करता है. 
इसका असर ये है की मुसलमान मुहम्मद को मान सम्मान अल्लाह से ज्यादह देते है, वह इस बात को मानें या न मानें, मगर लाशूरी तौर पर उनके अमल बतलाते हैं की वह मुहम्मद को अल्लाह के मुकाबिले में ज्यादा मानते है. मुहम्मद की शान में नातिया मुशायरे हर रोज़ दुन्या के कोने कोनों में हुवा करते है, मगर अल्लाह की शान में "हम्दिया" मुशायरा कहीं नहीं सुना गया. 
अल्लाह की झलक तो संतों और सूफियों की हदों में देखने को मिलती है.
देखिए कि अल्लाह अपने आदरणीय मुहम्मद को कैसे लिहाज़ के साथ मुखातिब करता है - - -

"क्या हमने आपकी खातिर आपका सीना कुशादा नहीं कर दिया,
और हमने आप पर से आपका बोझ उतार दिया,
जिसने आपकी कमर तोड़ रक्खी थी,
और हमने आप की खातिर आप की आवाज़ बुलंद किया,
सो बेशक मौजूदा मुश्किलात के साथ आसानी होने वाली है,
तो जब आप फारिग हो जाया करेंतो मेहनत करें,
और अपने रब की तरफ़ तवज्जो दें."
सूरह इन्शिराह ९४ - पारा ३० आयत(१-८)
क्या क्या न सहे हमने सितम आप की खातिर

नमाज़ियो!
धर्म और मज़हब का सबसे बड़ा बैर है नास्तिकों से जिन्हें इस्लाम दहेरया और मुल्हिद कहता है. वो इनके खुदाओं को न मानने वालों को अपनी गालियों का दंड भोगी और मुस्तहक समझते हैं. कोई धर्म भी नास्तिक को लम्हा भर नहीं झेल पाता. यह कमज़र्फ और खुद में बने मुजरिम, समझते हैं कि खुदा को न मानने वाला कोई भी पाप कर सकता है, क्यूंकि इनको किसी ताक़त का डर नहीं. ये कूप मंडूक नहीं जानते कि कोई शख्सियत नास्तिक बन्ने से पहले आस्तिक होता है और तमाम धर्मों का छंद विच्छेद करने के बाद ही क़याम पाती है. वह इनकी खरी बातों को जो फ़ितरी तकाज़ा होता हैं, उनको ग्रहण कर लेता है और थोथे कचरे को कूड़ेदान में डाल देता है. यही थोथी मान्यताएं होती हैं धर्मों की गिज़ा. नास्तिकता है धर्मो की कसौटी. पक्के धर्मी कच्चे इंसान होते हैं. नास्तिकता व्यक्तित्व का शिखर विन्दु है.
एक नास्तिक के आगे बड़े बड़े धर्म धुरंदर, आलिम फाजिल, ज्ञानी ध्यानी आंधी के आगे न टिक पाने वाले मच्छर बन जाते हैं. 
पिछले दिनों कुछ टिकिया चोर धर्मान्ध्र नेताओं ने एलक्शन कमीशन श्री लिंग दोह पर इलज़ाम लगाया थ कि वह क्रिश्चेन हैं इस लिए सोनिया गाँधी का खास लिहाज़ रखते हैं. 
जवाब में श्री लिंगदोह ने कहा था,"मैं क्रिश्चेन नहीं एक नास्तिक हूँ और इलज़ाम लगाने वाले नास्तिक का मतलब भी नहीं जानते." 
बाद में मैंने अखबार में पढ़ा कि आलमी रिकार्ड में "आली जनाब लिंगदोह, दुन्या के बरतर तरीन इंसानों में पच्चीसवें नंबर पर शुमार किए गए हैं. ऐसे होते हैं नास्तिक.
फिर मैं दोहरा रहा हूँ कि दुन्या की ज़ालिम और जाबिर तरीन हस्तियाँ धर्म और मज़हब के कोख से ही जन्मी है. जितना खूनी नदियाँ इन धर्म और मज़ाहब ने बहाई हैं, उतना किसी दूसरी तहरीक ने नहीं. और इसके सरताज हैं मुहम्मद अरबी जिनकी इन थोथी आयतों में तुम उलझे हुए हो.

जागो मुसलामानों जागो.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 27 May 2017

Hindu Dharm Darshan 68




मोदी +योगी =मनुवाद 

मूल भारतीयों का मानव समूह पांच हज़ार साल  तक शूद्र अवस्था में रहने केबाद 
इनमे डा. भीम राव अम्बेडकर का उदय हुवा. 
हिन्दुतान में जमहूरियत आई, 
एक मौक़ा था कि मनुवाद द्वारा नामित शूद्र उठते मगर वह दलित बन कर ही रह गए. शूद्र हो या हरिजन या फिर दलित, इन बदलाओं से क्या हासिल हुवा? 
उन्हें डांगर निक्याने और मल ढोने से नजात कहाँ मिली ? 
कुछ शूद्र महा शूद्र ज़रूर हो गए हैं, 
जैसे राम बिलास पासबान, उदित नारायण और माया वती नमूने के तौर पर देखे जा सकते हैं. 
यह महान शूद्र मनुवाद के शरण में आकर या शूद्रों का ही दोहन करके बरहमन नुमा शूद्र ज़रूर बन गए हैं. 
कितनी घिनावनी दलील है पासबान की कि कहते हैं, 
क्या नाम कि टूटी चप्पल और फटे पायजामे ही क्या दलितों की पहचान है ? 
बहन जी अपने करोड़ों की सम्पति को 
उन टूटी चप्पल और फटे पायजामे के गरीबों से ही अर्जित किया है. 
इनको शर्म नहीं आती कि एक बनिया इनसे बेहतर था जिसने बैरिस्टर के सूट बूट को  त्याग कर महात्मा बन गया था, 
सोने की चम्मच मुंह में लेकर पैदा होने वाला बरहमन नेहरू, 
इन के लिए सब कुछ त्याग दिया था और बार बार जेल जाकर अपनी नस्लों के लिए सिर्फ अपने किताबों की रायल्टी छोड़ी.
पांच हज़ार तक आर्यन लुटेरे मनुवादियों ने भारत के मूल निवासी को शूद्र बना कर रख्खा और इनको चीन की दीवार की तरह इतना कूटा और धुरमुटयाया कि बेचारे शूद्र इन मनु वादियों के बनाए हुए फ्रेम में खुद बखुद फिट हो होकर चरण दास बन गए. खुद को जनम जात पापी समझने लग गए हैं.
 इनका ज़मीर, इनकी ग़ैरत और इनका आत्म सम्मान सब मर चुके है. यह मनुवादियों के कमांडरों के स्वयं सेवक बन गए है जैसे कि रामायण राम की सेना में हनुमान नुमा वानर सेना का वर्णन मिलता है. 
भारत में बौद्ध धर्म का उदय मनु वादियों के शाशन काल में ही हुवा था. 
गौतम के असर को अशोक ने कुबूल किया, बौध धर्म की कामयाबी सर चढ़ कर बोलने लगी. मनुवादियों को बड़ा खतरा दिखने लगा. 
शाम दाम दंड भेद का फार्मूला चला कर इन्हों ने बौद्धों का नर संहार किया और कुछ दिनों बाद ही इसे देश निकाला मिल गया. 
भारत निष्कासित होकर कर बौध धर्म मानव मूल्यों को लेकर पूरे एशिया का बड़ा धर्म बन गया. 
मनुवादियों ने बौध धर्म के पैग़म्बर को अपना पैग़म्बर बना लिया और उसको  विष्णु का अवतार कहा गरज़ कि विष्णु की दोहरी पूजा होने लगी. 
आज भी आज़ाद भारत में कुछ ऐसा ही हो रहा है, 
अम्बेडकर को मनुवाद सर आँखों पर रख रहे हैं, आशा है कि वह उन्हें ब्रह्मा का अव तार घोषित कर देंगे और शूद्रों की चमड़ी उधड़ते रहेगे. 
संवेदना हीन मनुवाद कहता है, पेट में दाना सूद उताना, 
अतः शूद्र को कभी भर पेट खाना न दिया जाए. 
यहीं तक नहीं, 
हमारे बुज़ुर्ग कहते कि सड़ गल जाए सूद न खाए, सूद का खावा कुंवारत जाए. 
यहाँ पर मैं जोकि इस्लाम दुश्मन होते हुए भी इस्लाम का शुक्र गुज़ार हूँ कि इसकी शरण में आकर लगभग चालीस करोड़ मानव समूह मनुवाद के चंगुल से मुक्त है. केवल एक व्यक्ति जिसे इतिहास में काला पहाड़ का नाम दिया गया है, शूद्रता को छोड़ कर इस्लाम की पनाह ली और दोनों बंगाल +आसाम बिहार की आधी आबादी मनुवाद मुक्त है, यही नहीं एक देश बंगला देश की मालिक भी है. काला पहाड़ का नाम मनुवादियों ने इतिहास के सफहों से उड़ा दिया. इसकी आंधी ऐसी चली कि डर के मारे बरहमनों ने भी इस्लाम को स्वीकार कर लिया था. शेख मुजीबुर रहमान इन्ही में आते हैं.
मनुवादियों ने अपनी जड़ें बहुत गहराई तक फैला रखी हैं. भारत के तमाम मंदिर  इनका रिज़र्व बाँक हैं जहाँ इतनी दौलत है कि वह एक बार भारत सरकार को भी खीद सकते हैं. 
अहिंसा का प्रयोग दुन्या के तमाम मुल्कों के सिवा सिर्फ भारत में हुवा है जिश्के नतीजे में केवल मनुवा ही आज़ाद हुवा , इसे नए सिरे से आज़ादी मिली है. केंद्र में मोदियों और राज्यों में योगियों का ग़लबाकायम हो चूका है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 26 May 2017

Soorah zuha 93

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह जुहा ९३  - पारा ३० 
( वज़ज़ुहा वल्लैले इज़ा सजा) 


ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
अल्लाह कहता है - - - 

"क़सम है दिन की रौशनी की,
और रात की जब वह क़रार पकडे,
कि आपके परवर दिगार ने न आपको छोड़ा न दुश्मनी की,
और आखरात आपके लिए दुन्या से बेहतर है.
अनक़रीब अल्लाह तअला आपको देगा, सो आप खुश हो जाएँगे.
क्या अल्लाह ने आपको यतीम नहीं पाया, फिर ठिकाना दिया और अल्लाह ने आपको बे खबर पाया, फिर रास्ता बतलाया और अल्लाह ने आपको नादर पाया.
और मालदार बनाया,
तो आप यतीम पर सख्ती न कीजिए,
और सयाल को मत झिड़कइए,
और अपने रब के इनआमात का का तज़किरा करते रहा कीजिए."    .
सूरह जुहा ९३  - पारा ३० आयत (१-११)

मुहम्मद बीमार हुए, तीन रातें इबादत न कर सके, बात उनके माहौल में फ़ैल गई. किसी काफ़िर ने इस पर यूँ चुटकी लिया,
"मालूम होता है तुम्हारे शैतान ने तुम्हें छोड़ दिया है."
मुहम्मद पर बड़ा लतीफ़ तंज़ था, जिस हस्ती को वह अपना अल्लाह मुश्तहिर करते थे, काफ़िर उसे उनका शैतान कहा करते थे. इसी के जवाब में खुद साख्ता रसूल की ये पिलपिली आयतें हैं.
नमाज़ियो !
इन आसमानी आयतों को बार बार दोहराओ. इसमें कोई आसमानी सच नज़र आता है क्या? खिस्याई हुई बातें हैं, मुँह जिलाने वाली.
यहाँ मुहम्मद खुद कह रहे हैं कि वह मालदार हो गए हैं. जिनको इनके चापलूस आलिमों ने ज़िन्दगी की मुश्किल तरीन हालत में जीना इनकी हुलिया गढ़ रखा है. ये बेशर्म बड़ी जिसारत से लिखते है कि मरने के बाद मुहम्मद के पास चाँद दीनार थे. मुहम्मद के लिए दस्यों सुबूत हैं कि वह अपने फायदे को हमेशा पेश इ नज़र रखा. तुम्हारे रसूल औसत दर्जे के एक अच्छे इंसान भी नहीं थे. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 23 May 2017

Hindu Dharm Darshan 67



ग़द्दार
आजकल मुसलमानों को ग़द्दार कहने का फैशन बन गया है. 
नोट बंदी ने साबित कर दिया है कि ग़द्दार कहाँ बसते हैं. 
सिर्फ दिल्ली में चांदी सोने और जवाहरात की एक हज़ार दुकानें ताला बंदी की हालात में हैं , काला बाजारी, टेक्स चोरी सब इनके कारनामे हुवा करते हैं. 
जिनमें मुसलमान कोई नहीं. 
बड़ी बड़ी कंपनियों  के मालकान में सब ग़ैर मुस्लिम हैं. 
भारत माता की जय बोलने और बुलवाने वाले , 
इनको मिलने वाली सज़ा मुसलामानों को झेलनी पड़ती है. जनता इनके जुर्म को भुला देती है.यही लोग देश भगति के नाम पर मुज़फ्फ़र नगर वीरान कर दिया करते है.

ग़द्दार
ग़द्दार वह लोग हैं जो देश हित में टेक्स नहीं देते, वह नहीं जो देश को माता या पिता नहीं मानते. 
देश सीमा बंदी का नाम है जो कभी भारत होता है तो कभी 
पाकिस्तान हो जाता है 
तो कभी बांगला देश. 
देश धरती का सीमा बंद एक टुकड़ा होता है जिसका निर्माण वहां  के लोगों के आपसी समझौते से हुवा करता था, फिर राजाओं महाराजाओं और बादशाहों की बाढ़ आई जनता ने उनके अत्याचार झेले. आज जम्हूरियत आई तो बादशाहत की जगह "देश भगति" ने लेली. 
देश भगति की मूर्ति बना कर अत्याचार को नया स्वरूप दे दिया गया है. 
सरकारी शायर देश प्रेम के गुनगान में लग गए. 
धूर्त टैक्स चोर भारत माता की पूजा हवन में लग गए.
देश की हिफाज़त दमदार सेना करती है जिनका खर्च देशवासियों द्वारा टेक्स भर कर ही किया जा सकता है, देश की ख़ाली पोली पूजा करके नहीं.
देश के असली ग़द्दार सब नंगे हो कर बिलों में घुसे हुए हैं. इनकी दुकानों में ताले लगे हुए हैं. 
इनके जुर्म की सज़ा गरीब और बेबस जनता अपनी खून पसीने की कमाई को लेने के लिए बैंक के कतारों में दिनों रात ख़ड़ी हुई है.
देश के असली और ऐतिहासिक ग़द्दार हमेशा बनिए हुवा करते हैं जिनका अपनी बिरादरी के लिए सन्देश हुवा करता है - - -बनिए -- बनिए - बनिए कुछ बनिए , दूसरों को बिगड़ कर खुद बनिए. इसी निज़ाम को पूँजी वाद कहते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 22 May 2017

Soorah Lail 92

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह लैल ९२  - पारा ३० 
(वललैलेइज़ा यगषा) 


ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद मुजाहिदे इस्लाम दुन्या भर में बिरझाए हुए हैं. अब तो वक़्त आ गया है कि भारत में ये अपनी दीवानगी का मुजाहिरा नहीं कर पा रहे हैं ,क्यूंकि पिछले दिनों हुकूमत  ए  हिंद ने सख्त होकर इनको सबक दे दिया था कि अपने मज़हबी जूनून को अपने घर तक सीमित रखो. अब  इनकी इतनी भी ताक़त नहीं बची कि  दूसरे किसी गैर मुस्लिम मुल्क में अपनी दीवानगी का इज़हार करें, ले दे के ये दीवाने मुस्लिम मुमालिक में मुसलामानों को अपनी बुज़दिली, खुद कुश हमले को अंजाम देकर कर रहे हैं. खास कर पकिस्तान में आए दिन खूँ रेज़ी हो रही है.
इस्लाम की तहरीक जेहाद के ज़रीए कमाई का रास्ता बनाओ, अभी तक मुसलमान के मुँह लगा हुवा है. इसके सूत्रधार हैं ओलिमा, यही ज़ात ए नापाक हमेशा आम इंसानों को बहकाती रही है, जो इनके झांसे में आकर इस्लाम क़ुबूल कर लिया करते थे. इस्लाम एक तरीका है, एक फार्मूला है ब्लेक मेलिंग का कि लोगों को मुसलमान बना कर अपने लिए साधन बनाओ, भरण पोषण का. ये इंसान को जेहादी बनाता है, जेहाद का मकसद है लूट मार, वह चाहे गैर मुस्लिम का हो चाहे मुसलामानों का. इतिसस गवाह हैं कि मुसलामानों ने जितना खुद मुसलामानों का खून किया है, उसका सवां हिस्सा भी काफिरों और मुरिकों का नहीं किया. आज पकिस्तान इस्लामी जेहादियों का क़त्ल गाह बना हुवा है. इसको इसकी सज़ा मिलनी भी चाहिए कि इस्लाम के नाम पर किसी देश का बटवारा किया था. इसके नज़रिए को मानने वाले तर्क वतन को मज़हब की बुनियाद पर तरजीह दिया था. इसके बानी मुहम्मद अली जिना को अपने कौम को इस्लामी क़त्ल गाह के हवाले कर देने का अज़ाब, उनकी रूह को इस्लामी जहन्नम में पड़ा होना चाहिए मगर काश कि इस्लामी जन्नत या जहन्नम में कुछ सच्चाई होती.
हिन्दुतान अपनी तहजीब की बुन्यादों पर इर्तेकाई मंजिलों पर गामज़न है. मुसलामानों को चाहिए कि अपनों आँखें खोलें. 
जाहिले मुतलक मुहम्मदी अल्लाह क्या कहता है देखो - - -

"क़सम है रात की जब वह छुपाले,
दिन की जब वह रौशन हो जाए,
और उसकी जिस ने नर और मादा पैदा किया,
कि बेशक तुम्हारी कोशिशें मुख्तलिफ हैं,.
सो जिसने दिया और डरा,
और अच्छी बात को सच्चा समझा,
तो हम उसको राहत की चीज़ के लिए सामान देंगे,
और जिसने बोख्ल किया और बजाए अल्लाह के डरने के, इससे बे परवाई अख्तियार की और अच्छी बात को झुटलाया,
तो हम इसे तकलीफ़ की चीज़ के लिए सामान देंगे."
सूरह लैल ९२  - पारा ३० आयत (१-१०)

"और इसका माल इसके कुछ काम न आएगा,
जब वह बर्बाद होने लगेगा,
वाकई हमारे जिम्मे राह को बतला देना है,
औए हमारे ही कब्जे में है,
आखिरत और दुन्या, तो तुमको एक भड़कती हुई आग से डरा चुका हूँ,
इसमें वही बदबख्त दाखिल होगा जिसने झुटलाया और रूगरदानी की,
और इससे ऐसा शख्स दूर रखा जाएगा जो बड़ा परहेज़गार है,
जो अपना माल इस लिए देता है कि पाक हो जाए,
और बजुज़ अपने परवर दिगार की रज़ा जोई के, इसके ज़िम्मे किसी का एहसान न था कि इसका बदला उतारना हो .
और वह शख्स अनक़रीब खुश हो जाएगा."
सूरह लैल ९२  - पारा ३० आयत(११-२१)

नमाजियों!
हिम्मत करके सच्चाई का सामना करो. तुमको तुम्हारे अल्लाह का रसूल वर्गाला रहा है. अल्लाह का मुखौटा पहने हुए, वह तुम्हें धमका रहा है कि उसको माल दो. वह ईमान लाए हुए मुसलामानों से, उनकी हैसियत के मुताबिक टेक्स वसूल किया करता था. इस बात की गवाही ये क़ुरआनी आयतें हैं. ये सूरह मक्का में गढ़ी गई हैं जब कि वह एक्तेदार पर नहीं था. मदीने में मका मिलते ही भूख खुल गई थी.
मुहम्मद ने कोई समाजी, फलाही,खैराती या तालीमी इदारा कायम नहीं कर रखा था कि वसूली हुई रक़म उसमे जा सके. मुहम्मद के चन्द बुरे दिनों का ही लेकर आलिमों ने इनकी ज़िन्दगी का नक्शा खींचा है और उसी का ढिंढोरा पीटा है. मुहम्मद के तमाम ऐब और खामियों की इन ज़मीर फरोशों ने पर्दा पोशी की है. बनी नुज़ैर की लूटी हुई तमाम दौलत को मुहम्मद ने हड़प के अपने नौ बीवियों और उनके घरों के लिए वक्फ कर लिया था. और उनके बागों और खेतियों की मालगुजारी उनके हक में कर दिया था. जंग में शरीक होने वाले अंसारी हाथ मल कर राह गए थे. हर जंगी लूट मेल गनीमत में २०% मुहम्मद का उवा करता था.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 20 May 2017

Hindu Dharm Darshan 66



देश का नैतिक पतन 

भारत के मानस का जितना नैतिक पतन आज हुवा है उतना कभी भी नहीं हुवा. 
तीन चौताई बहुमत की ओर जा रही BJP अपने साथ जनना को भी मानव मूल्यों पाताल में लिए जा रही है. 
पेट्रोल पम्प के सर्वे बतला रहे हैं कि ९९@ पम्पों में घटत्तौलियों के चिप्स लगे गुए हैं . क्या इस बात से साबित नहीं हो रहा कि EVM की मशीनों में कोई हरकत न लगी हुई हो ? 
नोट बंदी के दौरान जेवरात के सभी दुकाने इनकम tex छापों के डर से बंद हुईं, 
बनियों को लूट पाट का सुनहरा मौक़ा मिला था. 
ज़िन्दा बे कुसूर इंसान जुनूनी भीड द्वारा पीट पीट कर मारे जा रहे है, 
जैसे असभ्य ईरान जैसे देशों में हर चौराहे पर फांसी पर लटके अवाम दिखते हैं . 
क्या नेहरू काल में आजके हालात का तसव्वुर भी किया जा सकता था ?
अनजाम कार विश्व पटल पर भारत का स्थान 3 अंक गिर कर १४२ निम् स्तरीय श्रेणी में आ गया है. 
जब कि बदनाम अमरीका का स्थान 42 नंबर पर. 
भारत का उदय मोदी नहीं कर रहे हैं, 
समय चक्र कर रहा है, 
हाँ भारत का नैतिक पतन धर्मान्धरता के शिकार मोदी कर रहे हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah shams 91

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह शम्स ९१  - पारा ३० 
(वश्शमसे वज़ूहाहा)  

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
इस धरती पर मुख्तलिफ़ वक्तों में समाज में कुछ न कुछ वाकिए और हादसे हुवा करते है जिसे नस्लें दो तीन पुश्तों तक याद रखती हैं. इनको अगर मुरत्तब किया जाए लाखों टुकड़े ज़मीन के ऐसे हैं जो करोरों वाकिए से ज़मीन भरे हुए  है. इसको याद रखना और बरसों तक दोहराना बेवकूफी  की अलामत है. मगर मुसलमान इन बातों को याद करने की इबादत करते हैं. बहुत से ऐसे मामूली वाकिए कुरआन में है जिनको नमाज़ों में पढ़ा जाता है. पिछली  सूरह में था कि आग तापते हुए मुसलामानों और मफरूज़ा काफिरों में कुछ कहा-सुनी हो गई, बात मुहम्मद के कान तक पहुँची, बस वह मामूली सा वाकिया क़ुरआनी आयत बन गया और मुसलमान वजू करके, नियत बाँध के, उसको रटा करते है. ऐसा ही एन वाकिया अबू लहब का है कि जब मुहम्मद ने अपने कबीले को बुला कर अपनी पैगम्बरी  का एलान किया तो मुहम्मद के चचा अबी लहब, पहले शख्स थे जिन्होंने कहा, "तेरे हाथ माटी मिले , क्या इसी लिए तूने हमें बुलाया था?" बस ये बात कुरआन की एक सूरह बन गई जिसको मुसलमान सदियों से गा रहे हैं, "तब्बत यदा अबी लह्बिवं - - -"

"क़सम है सूरज की और उसके रौशनी की,
और चाँद की, जब वह सूरज से पीछे आए,
और दिन की, जब वह इसको खूब रौशन कर दे,
और रत की जब वह इसको छुपा ले,
और आसमान की और उसकी. जिसने इसको बनाया.
और ज़मीन कीऔर उसकी. जिस ने इसको बिछाया.
और जान की और उसकी, जिसने इसको दुरुस्त बनाया,
फिर इसकी बद किरदारी की और परहेज़ गारी की, जिसने इसको अल्क़ा किया,
यकीनन वह इसकी मुराद को पहुँचा जिस ने इसे पाक कर लिया ,
और नामुराद वह हुवा जिसने इसको दबा दिया."
सूरह शम्स ९१  - पारा ३० आयत (१-१०)

"कौम सुमूद ने अपनी शरारत के सबब तकज़ीब की,
जब कि इस कौम में जो सबसे ज़्यादः बद बख्त था,
वह उठ खड़ा हुआ तो उन  लोगों से अल्लाह के पैगम्बर ने फ़रमाया कि अल्लाह की ऊँटनी से और इसके पानी पीने से खबरदार रहना,
सो उन्हों ने पैगम्बर को झुटला दिया, फिर इस ऊँटनी को मार डाला.
तो इनके परवर दिगार ने इनको इनके गुनाह के सबब इन पर हलाक़त नाज़िल फ़रमाई."
सूरह शम्स ९१  - पारा ३०  आयत (११-१५)

नमाज़ियो !
अल्लाह चाँद की क़सम खा रहा है, जबकि वह सूरज के पीछे हो. इसी तरह वह दिन की क़सम खा रहा है जब कि वह सूरज को खूब रौशन करदे?
गोया तुम्हारा अल्लाह ये भी नहीं जनता कि सूरज निकलने पर दिन रौशन हो जाता है. वह तो जानता है कि दिन जब निकलता है तो सूरज को रौशन करता है.
इसी तरह रात को अल्लाह एक पर्दा समझता है जिसके आड़ में सूरज जाकर छिप जाता है.
ठीक है हजारो साल पहले क़बीलों में इतनी समझ नहीं आई थी, मगर सवाल ये है कि क्या अल्लाह भी इंसानों की तरह ही इर्तेकाई मराहिल में था?
मगर नहीं! अल्लाह पहले भी यही था और आगे भी यही रहेगा. ईश या खुदा कभी जाहिल या बेवकूफ तो हो ही नहीं सकता.
इस लिए मानो कि कुरआन किसी अल्लाह का कलाम तो हो ही नहीं सकता. ये उम्मी मुहम्मद की जेहनी गाथा है.
कुरआन में बार बार एक आवारा ऊँटनी का ज़िक्र है. कहते हैं कि अल्लाह ने बन्दों का चैलेंज कुबूल करते हुए पत्थर के एह टुकड़े से एक ऊँटनी पैदा कर दिया. बादशाह ने इसे अल्लाह की ऊँटनी करार देकर आज़ाद कर दिया था जिसको लोगों ने मार डाला और अल्लाह के कहर के शिकार हुए.
ये किंवदंती उस वक्त की है जब इंसान भी ऊंटों के साथ जंगल में रहता था, इस तरह की कहानी के साथ साथ.
मुहम्मद उस ऊँटनी को पूरे कुरआन में जा बजा चराते फिरते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 16 May 2017

Hindu Dharm Darshan 65



वेद दर्शन                         
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

1-अग्नि ने अपने मित्र इंद्र के लिए 
तीन सौ भैंसों को पकाया था. 
इंद्र ने वृत्र को मारने के लिए मनु के 
तीन पात्रों में भरे सोम रस को एक साथ ही पी लिया था.
 पंचम मंडल सूक्त - 7 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

अग्नि देव ने तीन सौ भैसों को किस कढाई में पकाया होगा?
और इंद्र ने कितनी बड़ी परात में तीन सौ भैंसों को भक्षा होगा ? 
यह दोनों मांसाहारी रहे होंगे बल्कि महा मान्साहारी, 
जिनके पुजारी शाकाहारी क्यों हो गए? 
इनको झूट बोलने में कभी कोई लज्जा नहीं आती ? 
इन मन्त्रों को लाउड स्पीकर पर बड़ी बेशर्मी के साथ उच्चारित किया जाता है. 
इस लिए कि संस्कृत भाषा में होते हैं 
जैसे कुरआन अरबी भाषा में होता है. 
दोनों हिन्दू और मुसलमान इन पंडों और मुल्लों के शिकार हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 15 May 2017

Soorah Balad 90

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह बलद ९०   - पारा ३० 
(लअ उक्सिमो बेहाज़िल बलदे)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
भारत की मरकजी सरकार और रियासती हुकूमतें भले ही मुस्लिम दुश्मन न हों, मगर यह मुस्लिम दोस्त भी नहीं. यह इलाकाई और कबीलाई तबकों की तरह मुसलमानों को भी छूट दिए हुए है कि मुसलमान सैकड़ों साल पुराने वहमों को ढ़ोते रहें. इन्हें शरई क़ानून के पालन की इजाज़त है, जो इंसानियत सोज़ है. पेश इमामों को और मुअज़ज़िनों को सरकार तनख्वाह मुक़र्रर किए हुए है कि वह मुसलामानों को पंज वक्ता खुराफात पढ़ाते रहे. मदरसों को तअव्वुन देती हैं कि वह हर साल निकम्मे और बेरोजगार पैदा करते रहें. मुसलमानों को नहीं मालूम कि उनका सच्चा हमदर्द कौन है. वह कुरआन को अपना राहनुमा समझते हैं जोकि दर असल उनके लिए ज़हर है. इसका कौमी और सियासी रहनुमा कोई नहीं है. इसे खुद आँखें खोलना होगा, तर्क इस्लाम करके मर्द ए सालह यानी मोमिन बनना होगा.    

"मैं क़सम खता हूँ इस शहर की,
और आपको इस शहर में लड़ाई हलाल होने वाली है,
और क़सम है बाप की और औलाद की,
कि हमने इंसान को बड़ी मशक्कत में पैदा किया है,
क्या वह ख़्याल करता है कि इस पर किसी का बस न चलेगा,
सूरह बलद ९०   - पारा ३० आयत (१-५)
कहता है हमने इतना वाफर मॉल खर्च कर डाला, क्या वह ये ख़याल करता है कि उसको किसी ने देखा नहीं,
क्या हमने उसको दो आँखें ,
और ज़बान और दो होंट नहीं दिए,
और हमने उसको दोनों रास्ते बतलाए,
सो वह शख्स घाटी से होकर निकला,
और आपको मालूम है कि घाटी क्या है,
और वह है किसी शख्स की गर्दन को गुलामी से छुड़ा देना है,
या खाना खिलाना फ़ाक़ा के दिनों में किसी यतीम रिश्तेदार को,.
या किसी खाक नशीन रिश्ते दार को.
सूरह बलद ९०   - पारा ३० आयत (६-१६)
"फिर इन लोगों में से न हुवा जो ईमान लाए  और एक दूसरे को फ़ह्माइश की, पाबन्दी की और एक दूसरे को तरह्हुम की फ़ह्माइश की, यही लोग दाहने वाले हैं,
और जो लोग हमारी आयातों के मुनकिर हैं वह बाएँ वाले हैं,
इन पर आग मुहीत होगी जिनको बन्द कर दिया जाएगा.
सूरह बलद ९०   - पारा ३० आयत (१७-२०)

नमाज़ियो !
देखिए कि अल्लाह साफ़ साफ़ अपने बाप और अपने औलाद की क़सम खा रहा है, जैसे कि मुहम्मद अपने माँ बाप को दूसरों पर कुर्बान किया करते थे, वैसे है तो ये उनकी ही आदतन क़सम जिसको बे खयाली में अल्लाह की तरफ़ से खा गए. हाँ, तुमको समझने की ज़रुरत है, इस बात को कि कुरआन किसी अल्लाह का कलाम नहीं बल्कि मुहम्मद की बकवास है.
अल्लाह कहता है कि उसने इंसान को बड़ी मशक्क़त से पैदा किया. है ना ये सरासर झूट कि इसके पहले मुहम्मद ने कहा था कि अल्लाह को कोई काम मुश्किल नहीं बस उसको कहना पड़ता है "कुन" यानि होजा, और वह हो जाता है. है न दोहरी बात यानी कुरानी तजाद यानी विरोधाभास. किसी खर्राच के खर्च पर मुहम्मद का कलेजा फट रहा है, कि शायद उसने अल्लाह का कमीशन नहीं निकाला. घाटी के घाटे और मुनाफ़े में अल्लाह क्या कह रहा है, सर धुनते रहो. मुहम्मद के गिर्द कोई भी मामूली वाकिया कुरआन की आयत बना हुवा है, जिसको तुम सुब्ह ओ शाम घोटा करते हो.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 14 May 2017

Hindu Dharm Darshan 64



बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना 

मेरे एक मित्र शमीम शेख लिखते हैं - - - 
"आप ईमानदारी से सच लिखते हैं, ऐसा सच लिखने की हिम्मत करोड़ों में किसी किसी को हासिल है, काश मुस्लिम भी सच को मानते, और अपना दिमाग ईमानदारी से खर्च करते।"
मगर मुझे आश्चर्य हो रहा है कि 
सच बोलना दुन्या का सब से आसान काम है, 
झूट बोलने के लिए सोचना पड़ता है, 
नापना तौलना पड़ता है. 
सच बोलने में एक सेकेण्ड लगता है. 
मेरा दावा है कि अगर दुन्या सच बोलने पर राज़ी हो जाए 
और सच को समझने पर तय्यार रहे तो 
दुन्या में कोई भी मसअला बाक़ी न बचे .
एक अग्रेज़ी दानिश्वर को मैंने कालेज कोर्स में पढ़ा था कि 
एक माँ को अपने बेटे से इश्क़ हो गया औए एक बेटी को अपने बाप से . 
इन माँ और बेटियों की सदाक़त की पैरवी में 
दानिश्वर ने ला जवाब कर दिया था कि उनकी सदाक़त में कोई झूट नहीं था. 
कुछ चूतिए प्रति क्रिया में मेरी माँ बहन करेगे .
मगर अब नहीं.

जो हमें होना चाहिए, वह हूँ.

मेरा कोई धर्म नहीं, कोई मज़हब नहीं, कोई देश नहीं. 
मैं भारत माता का नहीं धरती माता का बेटा हूँ और अपनी माँ की औलाद हूँ. 
भारत हो या ईरान, सब अंतर राष्ट्रीय घेरा बंदीयां हैं,
इन अंतर राष्ट्रीय सीमा बंदीयों के खानों में क़ैद,
मैं अवाम हूँ. 
हुक्मरानों के एलान में क़ैद, 
हम देश प्रेमी है, या देश द्रोही  हैं  ?
या उनके मुताबिक अपराधी?
जो हमें होना चाहिए, मैं वह हूँ.??
इन सीमा बंदियों में रहने के लिए हम महज़ किराए दार मात्र हैं. 
इसी सीमा में हम और हमारा कुटुम्भ और क़बीला रहता है. 
इन्हीं हुक्मरानों ने हमारी सुरक्षा का वादा किया है, दूसरे हुक्मरानों से.??
मैं, अपने हम को लेकर, इस धरती के टुकड़े पर रहने का वादा कर लिया है. 
इस देश के लिए हमें Tex भरने में ईमान दार होना चाहिए, 
किसी देश की यह पहली शर्त है. 
और ज़रुरत पड़े तो इसके लिए हमें जान माल समर्पित कर देना चाहिए. 
नक़ली देश प्रेम के नाम का नारा लगा कर लुटेरे अपनी तिजरियाँ भरते है 
और किसी मानव समूह को तबाह करने की साज़िश में क़हक़हे लगाते हैं.  
देश प्रेम नहीं कर्तव्य पालन की चाहत हमारे दिलों में होनी चाहिए.
और धरती प्रेम की आरज़ू.
तभी हम एक ईमान दार और नेक इंसान बन सकते हैं.
मेरी दिली चाहत है कि मैं धरती माता के उस हिस्से का वासी बन जाऊं 
जहाँ मानव मूल्य परवान चढ़ रहे हों. 
और खुद को उस देश को अपने जान माल के साथ समर्पित करदूं.
मगर भौगोलिकता हमारी कमजोरी है,
भारत का बंदा नार्वे में तो सहज नहीं हो सकता. 
भौगोलिक स्तर पर वह देश मेरा प्रदेश है जिसे कुदरत ने भरपूर नवाज़ा है. 
और पाखंडी धूर्तों ने उसे लूटा है. 
मेरी दिली तमन्ना है कि धरती का यह भू भाग नार्वे और स्वीडन को पछाड़ कर 
पहले नंबर पर पहुंचे.
इसके लिए मैं अपने शारीर का हर एक अंग समर्पित कर चुका हूँ , 
जैसे कि जानवर समर्पित करते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 12 May 2017

Soorah ghasia 88

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह ग़ाशियह -८८ - पारा ३० 
(हल अताका हदीसुल ग़ासिया)     

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
कुरआन कहता है - - -

"आपको उस मुहीते-आम वाकिए की कुछ खबर पहुँची है?
बहुत से चेहरे उस रोज़ ज़लील मुसीबत झेलते हुए,
ख़स्ता होंगे.
आतिशे-सोज़ाँ में दाखिल होंगे,
खौलते हुए चश्मे से पानी पिलाए जाएँगे,
इनको बजुज़ एक खारदार झाड़ के और कोई खाना नसीब न होगा.
जो न फ़रबा करेगा न भूक मिटेगा.
सूरह ग़ाशियह -८८ - पारा ३० आयत (१-७)

"बहुत से चेहरे उस रोज़ बा रौनक होंगे,
अपने कामों के बदौलत खुश होंगे.
बेहिश्ते-बरीं में होंगे,
जिसमें कोई लग्व बात न सुनेंगे.
इसमें बहते हुए चश्में होंगे.
इसमें ऊंचे ऊंचे तख़्त हैं,
और रखे हुए आब खोरे हैं,
और बराबर बराबर लगे हुए गद्दे हैं,
और सब तरफ कालीन फैले पड़े हैं"
सूरह ग़ाशियह -८८ - पारा ३० आयत (८-१६)

तो क्या वह लोग ऊँट को नहीं देखते कि किस तरह पैदा किया गया है?
और आसमान को कि किस क़दर बुलंद है?
और पहाड़ों को कि किस तरह खड़े किए गए हैं?
और ज़मीन को कि किस क़दर बिछाई गई है? तो आप नसीहत कर दिया कीजिए.
आप तो सिर्फ़ नसीहत करने वाले हैं और आप उन पर मुसल्लत नहीं हैं.
हाँ मगर जो रू गरदानी करेगा और कुफ्र करेगा ,
तो उसको बड़ी सज़ा है.
क्यूंकि हमारे पास ही उनको आना होगा,
फिर हमारा ही काम इनसे हिसाब लेना है.
सूरह ग़ाशियह -८८ - पारा ३० आयत (१७-६२)

नमाजियों!
गौर करो कि जिस अल्लाह की तुम बंदगी करते हो वह किस क़दर आतिशी है?
कितना ज़बरदस्ती करने वाला?
कैसा ज़ालिम तबा?
इससे पल झपकते ही छुटकारा पा सकते हो.
बस मुहम्मद से नजात पा जाओ. मुहम्मद जो सियासत दान है, कीना परवर है, इक्तेदार का भूका है, शर्री और बोग्ज़ी है. इसकी बड़ी बुराई और जुम्र्म ये है कि ये मुजस्सम झूठा शैतान है.
मुहम्मदी अल्लाह उसी की पैदा की हुई नाजायज़ औलाद है.

अगर मैं आज अल्लाह का रसूल बन जाऊँ तो मेरी दुआ कुछ इस तरह होगी - - -
"ऐ रसूल !तू मेरे बन्दों को आगाह कर कि ये दुनयावी ज़िन्दगी आरज़ी है और आख़िरी भी. इस लिए इसको कामयाबी के साथ जीने का सलीक़ा अख्तियार कर.
"ऐ बन्दे! तू सेहत मंद बन और अपनी नस्लों को सेहत मंद बना, उसके बाद तू कमज़ोरों का सहारा बन.
"ऐ बन्दे!हमने अगर तुझे दौलत दी है तो तू मेरे बन्दों के लिए रोज़ी के ज़राए पैदा कर.
"ऐ बन्दे!  हमने तुझे अगर ज़ेहन दिया है तो तू लोगों को इल्म बाँट,
"ऐ बन्दे! तू मेरी मख्लूक़ को जिस्मानी, ज़ेहनी और माली नुसान मत पहुँचा, ये अमल तुझे और तेरी नस्लों को पामाल करेगा.
"ऐ बन्दे! बन्दों के दुःख दर्द को समझ, यही तेरी ज़िंदगी की अस्ल ख़ुशी है.
"ऐ बन्दे! तू मेरे बन्दों का ही नहीं तमाम मख्लूक़ का ख़याल रख क्यूंकि मैंने तुझे अशरफुल मख्लूकात बनाया है.
"ऐ बन्दे! मखलूक का ही नहीं बल्कि तमाम पेड़ पौदों का भी ख़याल रख क्यूंकि ये सब तेरे फ़ायदे के लिए हैं.
"ऐ बन्दे! साथ साथ इस धरती का भी ख़याल रख क्यूंकि यही सब जीव जंतु औए पेड़ पौदों की माँ है.
"ऐ बन्दे! तू कायनात का ही एक जुज़्व है, इसके सिवा कुछ भी नहीं.
"ऐ बन्दे! तू अपनी ज़िन्दगी को भरपूर खुशियों से भर ले मगर किसी को ज़रर पहुँचाए बगैर.



'

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 9 May 2017

Hindu Dharm Darshan 63



जिंस ए लतीफ़ 

बड़े ही पुर कशिश शब्द हैं, जिंस ए लतीफ़. 
जिंस के लफ्ज़ी मअने है 'लिंग' 
लतीफ़=लुत्फ़ देने वाला. 
अर्थात 'लिंगाकर्षण'.  
जिंस ए लतीफ़ उर्दू में खुला और प्राकृतिक सच है 
जो कि हिंदी में शायद संकोच और लज्जा जनक हो सकता है. 
मैंने दो बच्चों को देखा कि सुबह एक साथ दोनों खुली छत पर जागे, उट्ठे और पेशाब करने चले गए, 
मैंने देखा कि लड़का अपनी बहन की नंग्नता की तरफ आकर्षित था, 
बार बार जगह बदल कर वह इसे देखना चाहता था. 
लड़की ने भी लड़के की जिज्ञासा को महसूस किया मगर खामोश पेशाब करती रही. 
यह दोनों भाई बहन थे और उम्र 5-6 साल की थी, 
मासूम किसी तरह से गुनाहगार नहीं कहे जा सकते. 
एक दूसरे के जिंस ए लतीफ़ की ओर आकर्षित थे 
जो कि कुदरती रद्दे अमल था. 
जिन बच्चों में यह प्रवृति नहीं होती उन पर नज़र रखनी चाहिए कि कहीं वह एबनार्मल तो नहीं.
नादान माँ बाप को यह फ़ितरत बुरी मालूम पड़ती है, 
वह इस उम्र से ही टोका टाकी शुरू कर देते हैं.
मगर समझदार वालदैन के लिए यह खुश खबरी है कि बच्चे नार्मल हैं.
यही एबनार्मल बच्चे बड़े होकर ब्रहमचारी, योगी, योगिनें, यहाँ तक कि किन्नर हिजड़े और होम्यो - - - आदि बन जाते हैं. 
ऐसे लोग बड़े होकर दुन्या में अपना मुकाम भी पाना चाहते हैं, 
यदि उग्र हुए तो धार्मिक परिधानों के साथ दाढ़ी, चोटी और जटा की वेषभूषा अपनाते हैं. यह आधे अधूरे और नपुंसक लोग कुदरत का बदला समाज से लेते हैं. 
अपने अधूरेपन का इंतेक़ाम समाज में नफरत फैला कर संतोष पाते हैं. 
आजकल मनुवादी वयोवस्था में इनका बोलबाला है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 8 May 2017

Soorah aala 87

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अअला ८७ - पारा ३० 
(सब्बेहिस्मा रब्बिकल अअल ललज़ी)  

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
अब अल्लाह के कारनामे देखिए - - - 

आप अपने परवर दिगार के नाम की तस्बीह कीजिए,
जिसने बनाया, फिर ठीक बनाया, जिसने तजवीज़ किया, फिर राह बताई,
और जिसने चारा निकाला और फिर उसको स्याह कोड़ा कर दिया,
हम वादा करते हैं की हम कुरआन आपको पढ़ा दिया करेगे,
फिर आप नहीं भूलेगे मगर जिस कद्र अल्लाह को मंज़ूर हो,
वह हर ज़ाहिर और मुखफ़ी को जनता है और हम इस शरीअत के लिए आपको सहूलत देंगे.
तो आप नसीहत किया कीजिए अगर नसीहत करना मुफ़ीद होता है,
वही शख्स नसीहत पाता है जो डरता है और जो शख्स बद नसीब होता है,
वह इससे गुरेज़ करता है जो बड़ी आग में दाखिल होगा, फिर न इसमें मर ही जाएगा, और न इस में जिएगा,
बा मुराद हुवा जो शख्स पाक हो गया,
और अपने रब का नाम लेता रह और नमाज़ पढता रहा.
बल्कि तुम अपनी दुनयावी ज़िन्दगी को मुक़द्दम समझते हो,
हालाँकि आखिरत बदरजहा बेहतर और पाएदार है,
ये मज़मून अगले सहीफों में भी है,
यानी इब्राहीम और मूसा के सहीफों में.
सूरह अअला ८७ - पारा ३० आयत (१-१९) 

नमाज़ियो !
ज़रा गौर करो कि नमाज़ में तुम अल्लाह के हुक्म नामे को दोहरा रहे हो. अगर कोई हाकिम हैं और अपने अमले को कोई हुक्म जारी करता है, तो अमला रद्दे अमल में हुक्म की तामील करता है या हुक्म  नामे को पढता है? हुक्म नामे को पढना गोया हाकिम होने की दावा दारी करने जैसा है. अल्लाह के कलाम को दोहराना क्या अल्लाह की नकल करने जैसा नहीं है? अल्लाह कहता है - - -
आप अपने परवर दिगार के नाम की तस्बीह कीजिए,
जिसने बनाया, फिर ठीक बनाया, जिसने तजवीज़ किया, फिर राह बताई,
और जिसने चारा निकाला और फिर उसको स्याह कोड़ा कर दिया,
हम वादा करते हैं की हम कुरआन आपको पढ़ा दिया करेगे,
फिर आप नहीं भूलेगे मगर जिस कद्र अल्लाह को मंज़ूर हो,
और उसकी कही बात को तुम उसके सामने दोहराते हो गोया अल्लाह बन कर अल्लाह को चिढाते हो? कहते हो कि "हम वादा करते हैं की हम कुरआन आपको पढ़ा दिया करेगे,"

मुसलमानी दिमाग का हर कल पुर्जा ढीला है, यह अंजाम है जाहिल रसूल की पैरवी का.
यहूदी अपने इलोही का नाम बाइसे एहतराम लिखते नहीं और मुसलमान अल्लाह बन कर उसके हुक्म की नकल करके उसकी खिल्ली उडाता है..



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 6 May 2017

Hindu Dharm Darshan 62



वेद दर्शन                           
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . .

हे अग्नि ! 
तुम हमारे सामने आकर अनुकूल एवं कर्म साधक बनो. 
जिस प्रकार मित्र के सामने मित्र एवं संतान के प्रति माता पिता होते हैं. 
मनुष्य मनुष्य के द्रोही बने हैं. 
तुम हमारे विरोधी शत्रुओं को भस्म करो. 
हे अग्नि हमें हराने के इच्छुक शत्रुओं के बाधक बनो. 
हमारे शत्रु तुमको द्रव्य नहीं देते. 
उनकी इच्छा नष्ट करो. 
हे निवास देने वाले एवं कर्म ज्ञाता अग्नि ! 
यज्ञ कर्मों में मन न लगाने वालों को दुखी करो 
क्योकि तुम्हारी किरणें जरा रहित हैं.
त्रतीय मंडल  सूक्त 1 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

इन वेद मन्त्रों से ज़ाहिर होता है कि कुंठित वर्ग अग्नि से आग्रह कर रहा है 
कि वह उसके दुश्मनो का नाश करे. 
कौन थे इन मुफ्त खोरों के दुश्मन ? 
वही जो इनको दान दक्षिणा नहीं देते थे, न इनको टेते  थे. 
यही प्रवृति आज भी बनी हुई है. 
आज भी इस वर्ग को गवारा नहीं कि कोई इनसे आगे बढे. 
मंदिरों और मूर्तियों को गंगा जल से धोते हैं, 
यदि शूद्र या दलिद्र बना वर्ग इसमें प्रवेश कर जाए.




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 5 May 2017

Soorah burooj 86

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह तारिक़ ८६ पारा ३०  
(वस्समाए वत्तारके) 

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.


"क़सम है आसमान की और उस चीज़ की जो रात को नमूदार होने वाली है,
और आपको कुछ मालूम है कि रात को वह नमूदार होने वाली चीज़ क्या है?
वह रौशन सितारा है,
कोई शख्स ऐसा नहीं कि जिसको कोई याद रखने वाला न हो,
तो इंसान को देखना चाहिए कि वह किस चीज़ से पैदा हुवा है,
वह एक उछलते पानी से पैदा हुवा है,
जो पुश्त और सीने के दरमियान से निकलता है,
वह इसको दोबारा पैदा करने में ज़रूर क़ादिर है,
जिस रोज़ कि कलई खुल जाएगी फिर इस इंसान को न तो खुद कूवत होगी,
और न इक कोई हिमायती होगा,
क़सम है आसमान की जिससे बारिश होती है,
और ज़मीन की जो फट जाती है कि कुरआन एक फैसला कर देने वाला कलाम है,
कोई लग्व चीज़ नहीं. ये लोग तरह तरह की तदबीर कर रहे है,
और मैं भी तरह तरह की तदबीर कर रहा हूँ,
तो आप इन काफिरों को यूं ही रहने दीजिए.
सूरह तारिक़ ८६ पारा ३०  आयत (१-१७)

मैं पूने के सफ़र में दो आस्ट्रेलियंस के साथ सफ़र में था. बातों बातों में उन्होंने मेरा नाम पूछ लिया, मैंने अपना नाम मुस्लिम नुमा बतलाया. उन्हों ने तसदीक़ किया you are allah peaple ? मैं कहा हाँ.वह आपस में दबी ज़बान  कुछ बातें करने लगे और कन अंखियों से मुझे देखते जाते. मैं उनकी गुफ्तुगू तो नहीं समझ सका मगर इतना ज़रूर समझ सका कि वह मुझमे कोई अजूबा तलाश रहे हैं
क्या उन्होंने मुसलमानों के मुक़द्दस कुरआन की सूरह तारिक को पढ़ा हुवा है और कह रहे हों कि ये उछलते हुए  पानी से पैदा हुवा है? 

नमाज़ियो !
तुम अपना एक कुरआन खरीद कर लाओ और काले स्केच पेन से उन इबारतो को मिटा दो जो ब्रेकेट में मुतरज्जिम  ने कही है, क्यूँ कि ये कलाम बन्दे का है, अल्लाह नहीं. आलिमो ने अल्लाह के कलाम में दर असल मिलावट कर राखी है. अल्लाह की प्योर कही बातों को बार बार पढो अगर पढ़ पाओ तो, क्यूंकि ये बड़ा सब्र आजमा है. शर्त ये है कि इसे खुले दिमाग से पढो, अकीदत की टोपी लगा कर नहीं. जो कुछ तुम्हारे समझ में आए बस वही क़ुएआन है, इसके आलावा कुछ भी नहीं. जो कुछ तुम्हारी समझ से बईद है वह आलिमो की समझ से भी बाहर है. इसी का फायदा उठा कर उन्हों ने हजारो क़ुरआनी नुस्खे लिखे हैं अधूरा पन कुरआन का मिज़ाज है, बे बुन्याद दलीलें इसकी दानाई है. बे वज़न मिसालें इसकी कुन्द ज़ेहनी है, जेहालत की बातें करना इसकी लियाक़त है. किसी भी दाँव पेंच से इस कायनात का खुदा बन जाना मुहम्मद का ख्वाब है.इसके झूट का दुन्या पर ग़ालिब हो जाना मुसलामानों की बद नसीबी है.
आइन्दा सिर्फ पचास साल इस झूट की ज़िन्दगी है. इसके बाद इस्लाम एक आलमी जुर्म होगा. मुसलमान या तो सदाक़त की रह अपना कर तर्क इस्लाम करके अपनी और अपने नस्लों की ज़िन्दगी बचा सकते है या बेयार ओ मददगार तालिबानी मौत मारे जाएँगे. ऐसा भी हो सकता है ये तालिबानी मौत पागल कुत्तों की मौत जैसी हो, जो सड़क, गली और कूँचों में घेर कर दी जाती है.

मुसलामानों को अगर दूसरा जन्म गवारा है तो आसान है, मोमिन बन जाएँ. मोमिन का खुलासा मेरे मज़ामीन में है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान