Friday 31 July 2015

Soorah Nisa 4 Part 5(77)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
किस्त 5

लोहे को जितना गरमा गरमा कर पीटा जाय वह उतना ही ठोस हो जाता है। इसी तरह चीन की दीवार की बुन्यादों की ठोस होने के लिए उसकी खूब पिटाई की गई है, लाखों इंसानी शरीर और रूहें उसके शाशक के धुर्मुट तले दफ़न हैं. ठीक इसी तरह मुसलमानों के पूर्वजों की पिटाई इस्लाम ने इस अंदाज़ से की है कि उनके नस्लें अंधी, बहरी और गूंगी पैदा हो रही हैं.(सुम्मुम बुक्मुम उम्युन, फहुम ला युर्जूऊन) इन्हें लाख समझाओ यह समझेगे नहीं.मैं कुरआन में अल्लाह की कही हुई बात ही लिख रह हूँ जो कि न उनके हक में है न इंसानियत के हक में मगर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं, वजेह वह सदियों से पीट पीट कर मुसलमान बनाए जा रहे है, आज भी खौफ ज़दा हैं कि दिल दिमाग और ज़बान खोलेंगे तो पिट जाएँगे, कोई यार मददगार न होगा.
यारो! तुम मेरा ब्लॉग तो पढो, कोई नहीं जान पाएगा कि तुमने ब्लॉग पढ़ा,फिर अगर मैं हक बजानिब हूँ तो पसंद का बटन दबा दो, इसे भी कोई न जान पाएगा और अगर अच्छा न लगे तो तौबा कर लो, तुम्हारा अल्लाह तुमको मुआफ करने वाला है। 
अली के नाम से एक कौल शिया आलिमो ने ईजाद किया है, 
''यह मत देखो कि किसने कहा है, यह देखो की क्या कहा है.'' 
मैं तुम्हारा असली शुभ चितक हूँ, मुझे समझने की कोशिश करो.
" फिर जब उन पर जेहाद करना फ़र्ज़ कर दिया गया तो क़िस्सा क्या हुआ कि उन में से बअज़् आदमी लोगों से ऐसा डरने लगे जैसे कोई अल्लाह से डरता हो, बल्कि इस भी ज़्यादह डरना और कहने लगे ए हमारे परवर दिगार  ! आप ने मुझ पर जेहाद क्यूँ फ़र्ज़ फरमा दिया? हम को और थोड़ी मुद्दत देदी होती ----" 
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (77) 
आयात गवाह है कि मुहम्मद को लोग डर के मारे "ऐ मेरे परवर दिगर" कहते और वह उनको इस बात से मना भी न करते बल्कि खुश होते जैसा की कुरानी तहरीर से ज़ाहिर है। हकीक़त भी है क़ुरआन में कई ऐसे इशारे मिलते हैं कि अल्लाह के रसूल से वोह अल्लाह नज़र आते हैं. खैर - - -
खुदा का बेटा हो चुका है, ईश्वर के अवतार हो चुके है तो अल्लाह का डाकिया होना कोई बड़ा झूट नहीं है। मुहम्मद जंगें, बशक्ले हमला लोगों पर मुसल्लत करते थे जिस से लोगों का अमन ओ चैन गारत था। उनको अपनी जान ही नहीं माल भी लगाना पड़ता था. हमलों की कामयाबी पर लूटा गया माले गनीमत का पांचवां हिस्सा उनका होता. जंग के लिए साज़ ओ सामान ज़कात के तौर पर उगाही मुसलमानों से होती. उस दौर में इसलाम मज़हब के बजाए गंदी सियासत बन चुका था. अज़ीज़ ओ अकारिब में नज़रया के बिना पर आपस में मिलने जुलने पर पाबंदी लगा दी गई थी। तफ़रक़ा नफ़रत में बदलता गया. 
बड़ा हादसती दौर था. भाई भाई का दुश्मन बन गया था. रिश्ते दारों में नफ़रत के बीज ऐसे पनप गए थे कि एक दूसरे को बिना मुतव्वत क़त्ल करने पर आमादा रहते, इंसानी समाज पर अल्लाह के हुक्म ने अज़ाब नाजिल कर रखा था. नतीजतन मुहम्मद के मरते ही दो जंगें मुसलमानों ने आपस में ऐसी लड़ीं कि दो लाख मुसलमानो ने एक दूसरे को काट डाला, गलिबन ये कहते हुए कि 
इस इस्लामी अल्लाह को तूने पहले तसलीम किया - - -
नहीं पहले तेरे बाप ने - - 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 27 July 2015

Soorah Nisa 4 Part 4 (56-75)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
किस्त 4

" जो लोग अल्लाह की आयातों के मुनकिर (विरोधी) हो जाएँगे उन को जहन्नम में इतना जलाया जाएगा कि इनकी खालें गल जाएँगी और इनको मज़ा चखाने के लिए नई खालें लगा दी जाएगी. बिला शक अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाला है."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (56)
गौर तलब है कि अल्लाह की इस हिकमत पर ही मुहक़्क़िक़ान-ऐ-क़ुरआन (शोध करता) ने इस मूर्खता को ''क़ुरआन-ऐ-हकीम'' का नाम दिया है. इस को इतना उछाला गया है कि दुन्या में क़ुरआन एक हिकमत वाली किताब बन कर रह गई है. 
हिकमत क्या है? 
बस यही जो मुहम्मद की जेहालत और इस्लामी ओलिमा की अय्याराना चाल. अफ़सोस कि तालीम याफ़्ता मुस्लिम अवाम मेडिकल साइंस की ए बी सी से वाकिफ़ है और कानो में बेहिसी का तेल डाले बैठे, इन हराम जादों के साथ हम नावाला हम पियाला हैं. 

"मुहम्मद का गलबा मदीना पर है, उन का फ़रमान है कि मुसलमान अपने हर व्ययिगत और सामूहिक मुआमले अल्लाह और उसके रसूल के सामने पेश किया करें( अल्लाह तो कहीं पकड़ में आने से रहा, मतलब साफ़ था  कि अल्लाह का मतलब भी मुहम्मद है. कुछ समझदार लोग मुसलमानों, यहूदियों और दीगरों में अपने मुआमले मुहम्मदी पंचायत में न ले जाकर आपस में बैठ कर निपटा लेते हैं, 
ऐसे तरीकों की तारीफ़ करने की बजाय मुहम्मद इसे मुनाफ़िक़त (कपटाचार) की राह क़रार देते हैं. 
कोई झगडा दो लागों का खामोशी से आपसी समझदारी से ख़त्म हो जाय, यह बात अल्लाह के रसूल को रास नहीं आती. इसको वोह शैतानी इसे रास्ता बतलाते हैं. क़ुरआन के मुताबिक़ हुए फैसले को ही सहीह मानते हैं. हर मुआमले का तस्फिया बहैसियत अल्लाह के रसूल के खुद करना चाहते हैं।"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (59-73)
" और जो शख्स अल्लाह कि राह में लडेगा वोह ख्वाह जान से मारा जाए या ग़ालिब आ जाए तो इस का उजरे अज़ीम देंगे और तुम्हारे पास क्या औचित्य है कि तुम जेहाद न करो अल्लाह कि राह में।"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (75)
यह मुहम्मदी क़ुरआन का अहेम पाठ है जिस पर भारत सरकार को सोचना होगा, किसी हिन्दू वादी संगठन को नहीं। ये आयात और इस से मिलती जुलती हुई आयतें मदरसों में मुस्लमान लड़कों के कच्चे ज़हनों में घोल घोल कर पिलाई जाती हैं जो बड़े होकर मौक़ा मिलते ही तालिबानी बन जाते हैं, बहरहाल अन्दर से जेहनी तौर पर तो वह बुनयादी देश द्रोही होते ही हैं, जो इस इन में रह कर इस ज़हर से बच जाए वह सोना है. हर राज नैतिक पार्टी को बिना हिचक मदरसों पर अंकुश लगाने की माँग करनी चाहिए बल्कि एक क़दम बढ़ा कर क़ुरआन की नाक़िस तालीम देने वाले सभी संगठनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. इसका सब से ज़्यादा फ़ायदा मुस्लिम अवाम का होगा, नुक़सान दुश्मने क़ौम ओलिमा का और गुमराह करने वाले नेताओं का।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 24 July 2015

Soorah Nisa 4 Part 3 (43-55)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
किस्त 3
देखिए कि हरियाणा खाप पंचायत के मुखियाओं जैसा मुहम्मदी अल्लाह अरबी भाषा में क्या क्या कहता है - - -
अल्लाह नशे की हालत में नमाज़ के पास भटकने से भी मना करता है. मुसलमानों को जनाबत(शौच) इस्तेंजा(लिंग शोधन ) मुबाश्रत (सम्भोग) और तैममुम (पवित्री करण) के तालमेल और तरीके समझाता है इस सिलसिले में यहूदियों की गुमराहियों से आगाह करता है कि वह तुम को भी अपना जैसा बनाना चाहते हैं. अल्लाह समझाता है कि वह अल्फाज़ को तोड़ मरोड़ कर तुम्हारे साथ गुफ्तुगू में कज अदाई करते हैं. यहाँ पर सवाल उठता है कि न यहूदी हमारे संगी साथी हैं और न उनकी भाषा का हम से कोई लेना देना, इस पराई पंचायत में हम भारतीय लोगों को क्यूँ सदियों से घसीटा जा रहा है, क्यूँ ऐसे क़ुरआन का रटंत हम मुसलसल किए जा रहे है। रौशनी नए इल्म की आ चुकी है तो ऐसे इल्म को तर्क करना और इसकी मुखालफ़त करना सच्चा ईमान बनता है. 
देखिए अल्लाह कहता है - - -
" उन को अल्लाह ने उन के कुफ्र के सबब अपनी रहमत से दूर फेंक दिया है। ए वह लोगो! 
जो किताब दिए गए हो, तुम उस किताब पर ईमान लाओ जिस को हम ने नाज़िल फ़रमाया है, ऐसी हालत पर वोह सच बतलाती है जो तुम्हारे पास है, इस से पहले कि हम चेहरों को बिलकुल मिटा डालें और उनको उनकी उलटी जानिब की तरफ बना दें या उन पर ऐसी लानत करें जैसी लानत उन हफ़्ता वालों पर की थी. अल्लाह जिस को चाहे मुक़द्दस बना दे, इस पर धागे के बराबर भी ज़ुल्म न होगा - - - 
वोह बुत और शैतान को मानते हैं. वोह लोग कुफ्फार के निस्बत कहते हैं कि ये लोग बनिस्बत मुसलमानों के ज़्यादः राहे रास्त पर हैं - - - 
और दोज़ख में आतिश-ऐ-सोज़ाँ काफी है''
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (43-55)
उम्मी मुहम्मद अपने क़ुरआन और हदीस में बवजेह उम्मियत हज़ार झूट गढा हो मगर उसमे उनके खिलाफ़ सच्चाई दर पर्दा दबे पाँव रूपोश बैठी नज़र आ ही जाती है. बुत को मानने वाले तो काफ़िर थे ही, बाकी उस वक़्त नुमायाँ कौमें हुवा करती थीं जो मशसूरे वक़्त थीं, ये शैतान के मानने वाले गालिबन नास्तिक हुवा करते थे? बडी ही जेहनी बलूगत थी इनमें जब इसलाम नाजिल हुवा, इसने तमाम ज़र खेजियाँ गारत करदीं. ये नास्तिक हमेशा गैर जानिब दार और इमान दार रहे हैं. यह इन की ही बे लाग आवाज़ होगी 

"वोह बुत और शैतान को मानते हैं. वोह लोग कुफ्फर के निस्बत कहते हैं कि ये लोग बनिस्बत मुसलमानों के ज़्यादः राहे रास्त पर हैं " 

जहाँ भी मुसलमानों के साथ किसी क़ौम का झगडा होता है, तीसरी ईमान दार आवाज़ ऐसी ही आती है. आज जो लोग गलती से मुस्लमान हैं, वक्ती तौर पर इस बात का बुरा मान सकते हैं, क्यूँ कि वोह नहीं जानते कि आम मुस्लमान फितरी तौर पर लड़ाका होता है जिसकी वकालत गाँधी जी भी करते हैं। 

मुहम्मदी अल्लाह आजतक अपने मुखालिफों का चेहरा मिटा कर उलटी जानिब तो कर नहीं सका मगर हाँ मुसलमानों की खोपडी को अतीत की ओर करने में कामयाब ज़रूर हुवा है।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 21 July 2015

Soorah Nisa 4 Part 2 (16-34)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
2- किस्त 

"और जो मर्द बेहयाई का अमल करें, उनको तुम अज़ीयत पहुँचाओ और अगर वह तौबा कर लें तो अल्लाह मुआफ़ करने वाला है." (१६)
मर्द अल्लाह है, उसके तमाम एक लाख चौबीस हज़ार पैगम्बर मर्द. लगता है औरत इंसानी मख्लूक़ से अलग होती है. मर्द को इसका मालिक और हाकिम बनाया है,मरदूद अल्लाह ने. 
औरत को तडपा तडपा कर मार डालने की राय देता है और मर्द को बहरहाल मुआफ़ कर देने की रज़ा मंदी देता है.
 
"तुम पर हराम की गईं तुम्हारी माएँ और तुम्हारी बेटियां और तुम्हारी बहनें और तुम्हारी फूफियाँ और तुम्हारी खालाएं और भतीज्याँ और भान्जियाँ . तुम्हारी वह माएँ जिन्हों ने तुम्हें दूध पिलाया होऔर तुम्हारी वह बहनें जो दूध पीने की वजह से हैं, तुम्हारी बीवियों की माएँ और तुम्हारी बीवियों की बेटियां जो तुम्हारी परवरिश में रहती हों, उन बीवियों से जिनके साथ तुमने सोहबत की हो और तुम्हारी बेटियों की बेटियां और दो सगी बहनें" (२३)
ऐसा लगता है कि माएँ किसी ज़माने में अरब के कुछ क़बीलों में हलाल हुवा करती थीं कि मुहम्मद इसको आज से हराम कर रहे हैं.
शराब पहले हलाल थी हम्ज़ा और अली कि मामूली सी रंजिश के बिना पर, अली के हक़ में शराब रातो रात हराम हो गई थी. 
इसी तरह अहमक रसूल फर्द पर उसकी माँ, बहनें , बेटियाँ और दीगर मोहतरम और अज़ीज़ तर रिश्तों को हराम कर रहा है. खुद इन गन्दग्यों तक समा जाने के नतीजे का यह अहकाम हैं जिन पर जाने वाला दूसरों को रोकता है. सूरह अहज़ाब में देखेंगे कि कैसे इस गलीज़ ने अपने गोद ली हुई औलाद की बीवी से जिंसी तअल्लुक़ क़ायम किया.
मुहम्मद की कोई बहन नहीं थी, वर्ना मुसलमानों के लिए वह इसे भी हलाल कर जाते जैसे कि फुफेरी बहन ज़ैनब को अपने बेटे से ब्याह कर फिर उस पर डोरे डाले और रंगे हाथों पकडे जाने पर एलन किया कि ज़ैनब का निकाह मेरे साथ हो चुका है, अल्लाह ने निकाह पढाया और जिब्रील ने गवाही दी.
जिन रिश्तों को हलाल और हराम के खानों में डाला है उसका कोई जवाज़ भी नहीं बतलाया. दो सगी बहने क्यूँ हराम हुईं जब कि बेहतर होता कई हालत में बनिस्बत इसके कि कोई गैर हो.
मोहम्मद ने जिन रिश्तों को हराम किया है वह तो अफ्रीका के क़बीलों का मुखिया भी फर्द पर हराम किए हुए था और है.

"मर्द हाकिम हैं औरतो पर , इस सबब से कि अल्लाह ने बअजों को बअजों पर फ़ज़ीलत दी है. और जो औरतें ऐसी हों कि उनकी बद दिमाग़ी का एहतेमाल हो तो उनको ज़बानी नसीहत करो और इनको लेटने की जगह पर तनहा छोड़ दो और उनको मारो, फिर वह तुम्हारी इताअत शुरू कर दें तो उनको बहाना मत ढूंढो."(३४)
मुहम्मदी अल्लाह के ज़ुल्म ओ सितम , सदियों से मुसलमान औरतें झेल रही हैं . वह इसके खिलाफ आवाज़ भी बुलंद नहीं कर सकतीं क्यूँ कि मर्द ताक़त वर है जो अल्लाह के कानून के सहारे उसे ज़ेर किए रहता है. 
सिन्फ ए नाजुक कुदरत के बख्से हुए इनाम में सरे फेहरिश्त है, इसके अस्मत का जितना एहतराम किया जाए, उतनी ही ज़िदगी मसरूर होती है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 18 July 2015

Soorah Nisa 4 Part 1 (1-15)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
पहली किस्त 

"ऐ लोगो ! अपने परवर दिगार से डरो, जिसने हमको एक जानदार से पैदा किया और उस जानदार से उसका जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें फैलाईं और क़राबत से भी डरो . बिल यक़ीन अल्लाह तअला सब की इत्तेला रखता है."आयत (१) 

ऐ मुसलमानों! सब से पहले तो अपने अन्दर से अल्लाह का खौफ दूर करो. अल्लाह अगर है तो किसी को डराता नहीं, उसने एक निजाम बना कर, इस ज़मीन को इंसान के हवाले कर दिया है. हर अच्छे और बुरे अमल का अंजाम इसी दुन्या में मिल जाता है. डरो तो अपने अन्दर बैठे ज़मीर से डरो जो कम से कम इन्सान को कोई बुरा काम करने से रोकता है, 
उसके इंसाफ से डरो. 
अब अल्लाह राय देता है कि क़राबत दारियों से डरो, भला क्यूँ, क्या क़राबत दार भी छोटे अल्लाह होते हैं? मुहम्मद को राय देना चाहिए कि क़राबत में रिश्तों का एहतराम करो, 
खैर वह कोई मुफक्किर नहीं थे फ़क़त उम्मी थे.
तौरेती नकल आदम की कहानी है कि पहला इन्सान आदम मिटटी के पुतले से बना फिर उसकी पसली से हव्वा बनी और फिर उनसे नस्ल ऐ इंसानी फैली. यह सब मन गढ़ंत है. इन्सान इर्तेकई मरहलों को तय करता हुआ आजकी दुन्या में मौजूद है.
 
"जिन बच्चों के बाप मर जाएँ तो उनका माल उनको पहुंचाते रहो, अच्छी चीज़ को बुरी चीज़ से मत बदलो और अगर तुम्हें एहतेमाल हो कि यतीम लड़कियों के साथ इंसाफ़ न कर सकोगे तो और औरतों से जो तुम्हें पसँद हों निकाह कर लो. दो दो, तीन तीन या चार चार, बस कि इंसाफ सब के साथ कर सको, वर्ना एक, और जो लौड़ी तुम्हारी मिलकियत में है, वही सही." (२-३)
जंग जूई का दौर था मर्द आपस में कत्ल ओ खून किया करते थे. औरतें अपने बच्चों के साथ बेवा और यतीम हो जाया करते, आज यतीमों पर तरस खाने का वक़्त गया. अल्लाह के कानून में दूर अनदेशी नहीं है. इन चार चार शादियों का फरमान भी उसी माजी के लिए था, आज ये बात बेजा मानी जाती है मगर अरबी शेख आज भी उन्हीं फरमान का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं. 
उस वक़्त साहिबे हैसियत लोग ज़्यादः से ज़्यादः लावारिस औरतों और बच्चों को सहारा दे दिया करते थे, चार बीवियों के बाद भी मजबूर और गरीब औरतें क़नीजें बन जाती थीं, यह बात हिन्दू समाज से बेहतर थी कि बेवाओं को पंडों को अय्याशी के लिए सन्यास में दे दी जाएं.
 
" यह सब अहकाम मज़्कूरह खुदा वंदी जाब्ते हैं और जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल करेगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी. हमेशा हमेशा उसमें रहेंगे, यह बड़ी कामयाबी है."
(८-१३)
यह आयत कुरान में बार बार दोहराई गई है. अरब की भूखी प्यासी सर ज़मीन के किए पानी की नहरें वह भी मकानों के बीचे पुर कशिश हो सकती हैं मगर बाकी दुन्या के लिए यह जन्नत जहन्नम जैसी हो सकती है. 
मुहम्मद अल्लाह के पैगाबर होने का दावा करते हैं और अल्लाह के बन्दों को झूटी लालच देते हैं. अल्लाह के बन्दे इस इक्कीसवीं सदी में इस पर भरोसा करते हैं. 
अल्लाह के कानूनी जाब्ते अलग ही हैं कि उसका कोई कानून ही नहीं है.

" जो औरतें बेहयाई का काम करें तुम्हारी बीवियों में से, सो तुम लोग उन औरतों पर अपने लोगों में से चार आदमी गवाह कर,सो अगर वह लोग गवाही देदें तो इन्हीं घरों में मुक़य्यद रखो. यहाँ तक कि उनकी मौत उनका खात्मा कर दे या अल्लाह उनके लिए कोई रह पैदा कर दे."
(१५)

यह आयतें आलमी हुक़ूक़ इंसानी के मुंह पर तमाचा हैं. मुहम्मदी अल्लाह ने औरत की बेबसी और बेकसी को बरकरार रखा है. इस कुरानी एहकाम पर आलमी बिरादरी आवाज़ उठाए, अगर मुसलमानों का ज़मीर बेदार ही नहीं होता. इसको मानने वाला हर शख्स इंसानियत का मुजरिम है. उसे इंसानी समाज में रहने के हक से महरूम किया जाय.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 14 July 2015

Soorah Imran 3 Part 11 ( 168-198)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह आले इमरान     
Part -11

एक मुहम्मद की फ़रामूदा हदीस मुलाहिज़ा हो - - -
मुहम्मद कालीन अबू ज़र कहते हैं कि हुज़ूर गिरामी सल लाल्लाहो अलैह वसस्सल्लम (अर्थात मुहम्मद) ने मुझ से फ़रमाया, 
''अबू ज़र तुम को मालूम है यह आफताब (डूबने के बाद) कहाँ जाता है? 
मैं ने अर्ज़ किया खुदा या खुदा का रसूल ही बेहतर जानता है, 
फ़रमाया यह अर्श पर इलाही के सामने जाकर सजदा करता है और दोबारा तुलू (प्रगट) होने कि इजाज़त तलब करता है. इसको इजाज़त दी जाती है, लेकिन क़रीब क़यामत में यह सजदा की बदस्तूर इजाज़त तलब करेगा, लेकिन इसका सजदा कुबूल होगा न इजाज़त मिलेगी, बल्कि हुक्म होगा कि जिस तरफ से आया है उसी तरफ को वापस हो जा. 
चुनांच वह मगरिब (पश्चिम) से तुलू होगा. '' 
(बुखारी १३०३) +(सही मुस्लिम - - किताबुल ईमान)
तो मियाँ मुहमम्म्द इस किस्म के लाल बुझक्कड़ थे और अबू ज़र जैसे उल्लू के पट्ठे जो आँख तो आँख मुँह बंद करके सुनते थे, यह भी पूछने की हिम्मत न करते कि सूरज के हाथ पांव सर कहाँ है कि वह सजदा करता होगा?
 मुहम्मद से सदियों पहले यूनान और भारत में आकाश के रहस्य खुल चुके थे। अफ़सोस का मुकाम यह है कि आज भी मुसलमान अहले हदीस लाखों की तादाद में इस गलाज़त को ढो रहे हैं। 
मैं एक गाँव में हुक्के के साथ पीने का मशगला अपने दोस्तों के साथ कर रहा था कि एक मुल्ला जी नमूदार हुए. हमने एख्लाकन उन्हें हुक्के कि तरफ इशारह करके कहा आइए नोश फरमाइए. 
हुक्के को धिक्कारते हुए बोले
'' हुज़ूर ने फ़रमाया है हुक्का, बीडी, सिगरेट पीने वालों के मुंह से क़यामत के दिन शोले निकलेंगे'' 
लीजिए हो गई एक ताज़ा हदीस, 
जी हाँ! मुहम्मद के नाम से हर कठ मुल्ला रोज़ नई नई हदीसें गढ़ता है। मुहमाद के ज़माने में हुक्का, बीडी, सिरेट कहाँ थे? 

अब शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से मुहम्मद का राग माला - - - 

" और उन से कहा गया आओ अल्लाह की रह में लड़ना या दुश्मन का दफ़ीअ बन जाना। वह बोले कि अगर हम कोई लडाई देखते तो ज़रूर तुम्हारे साथ हो लेते, यह उस वक़्त कुफ़्र से नजदीक तर हो गए, बनिस्बत इस हालत के की वह इमान के नज़दीक तर थे।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (168) 
ये जज़्बाए जेहाद ओ क़त्ताल ओ जंग और लूट मार जज़्बए ईमाने इस्लामी का अस्ल है. चौदह सौ सालों से यह इस्लामी ईमान के भूखे और इंसानी खून के प्यासे, भूके भेडिए मौजूदा तालिबान इंसानी आबादी को सताते चले आ रहे हैं. यह सब अपने आका हज़रात मुहम्मद(+अल्काबात) की पैरवी करते हैं. मुहम्मद पुर अमन किसी बस्ती पर हमला करने के लिए लोगों को वर्गाला रहे हैं, जिस पर लोगों का माकूल जवाब देखा जा सकता है जिसे मुहम्मद उनको कुफ्र के नज़दीक बतला रहे हैं. अफ़सोस कि भारतीय लोकतंत्र इस्लामी तबलीग के ज़हर को चीन की तरह नहीं समझ पा रही, इसके साथ समस्या ये है कि इसे पहले हिंदुत्व के बड़े देव के नाक में नकेल डालनी होगी। 
" ऐसे लोग हैं जो अपने भाइयों के निस्बत बैठे बातें बनाते हैं कि वह हमारा कहना मानते तो क़त्ल न किए जाते, आप कहिए कि अच्छा अपने ऊपर से मौत को हटाओ, अगर तुम सच्चे हो." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (170)
मुहम्मद नंबर१ कठ मुल्ला थे, 
कठ मुल्लाई दुन्या में शायद मुहम्मद की ही ईजाद है. 
जंग ओहद में मरने वालों के पस्मानदागान के आँखें खुश्क नहीं हो पा रही हैं और मुहम्मद उन के ज़ख्मों पर कठ मुल्लाई का नमक छिड़क रहे हैं, उनके गुंडे उनके साथ हैं, उनके सभी रिश्ते दार सूबों के हुक्मरान बन कर जेहादी वुसअत की मौज उड़ा रहे हैं. 
बे फौफ रसूल जो बोलते है वह अल्लाह की ज़बान होती है. 
सूरह के आखीर में अल्लाह अपने शिकार मुसलामानों को जेहादी लूट मार में लपेटने की भरपूर कोशिश कर रहा है. इसके दांव पेंच ऐसे हैं जैसे कोई सोबदे बाज़ किसी गंवारू बाज़ार में रंगीन राख को अक्सीर दवा बता कर बेच रहा हो जो खाने, पीने, लगाने और सूंघने, हर हाल में फायदे मंद है. कुरानी आयातों का भी यही हाल है. ओलिमा का प्रोपेगंडा है कि इसमें तमाम हिकमत है, यह कुरआने हकीम है, 
अगर हिकमत कहीं नज़र न आए तो इसे पढ़ कर मुर्दों को बख्शो सब उसके आमाल ए बद मग्फेरत की नज़र हो जाएगे, 
यह बात अलग है कि अल्लाह बन्दे की किस्मत उसके हमल में ही लिख देता है. 
इस तालिबानी अल्लाह के हाथों से जिब्रीली तलवार, शैतानी ढाल, दोज़ख के अंगार और जन्नत के लड्डू छीन लिए जाएँ तो यह कंगाल हो जाए. 

"और जो लोग कुफ्र कर रहे हैं वह ये खयाल हरगिज़ न करें कि हमारा इन को मोहलत देना बेहतर है। हम उनको सिफ इस लिए मोहलत दे रहे हैं कि ताकि जुर्म में उनके और तरक्की हो जाए और उन को तौहीन आमेज़ सजा होगी।'' 
"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (178) 
किर्द गारे कायनात नहीं, किसी क़स्बे का बनिया हुआ जो लोगों को कर्ज़ दे कर सूद बढ़ते रहने का इन्तेज़ार कर रहा है. आखीर में मन मानी तौर पर बक़ाया वसूल कर लेगा. 
दुन्या से जेहालत अलविदा हुई, सूद, ब्याज और मूल धन की शक्लें बदलीं, न बदल पाई तो बेचारे मुसलमानों की तक़दीर में लिखी हुई ये कुरान। 
"कुल्ले नफ़्सिन ज़ाइक़तुलमौत''-हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है, और तुम को तुम्हारी पूरी पूरी पादाश क़यामत के रोज़ ही मिलेगी, सो जो शख्स दोज़ख से बचा लिया गया और जन्नत में दाखिल किया गया, सो पूरा पूरा कामयाब वह हुवा। और दुनयावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं, सिर्फ धोके का सौदा है।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (185) 
मुसलमानों की पस्मान्दगी की कहानी बस इसी आयत से शुरू होती है और इसी पर ख़त्म. वह मौत के अंजाम को हर हर साँस में ढोता है मुस्लमान, बजाए इस के कि ज़िन्दगी की नेमतों को ढोए. जब कभी रद्दे अमल में इसका बागी होता है तो जेहादी तशद्दुद को जीने की अंगडाई लेता है. दुन्या के हर नशेब ओ फ़राज़ से बे नयाज़ पल भर में खुद कुश आलात के हवाले अपने को करके अल्लाह और दीन की राह में शहीद हो जाता है। वहां उसे यकीने कामिल है कि वह सब कुछ मिलेगा जिसका वादा उस से अल्लाह कर रहा है। वह मासूम, नहीं जनता कि अल्लाह के खोल में एक खूखार पयम्बरी कयाम करती है। 
"ऐ मेरे परवर दीगर! बिला शुबहा आप जिसको चाहें दोजख में दाखिल करें, उसको वाकई रुसवा ही कर दिया और ऐसे बे इन्साफों का कोई साथ देने वाला नहीं।'' 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (192) 
यह एक आयात है जिसमें साफ साफ मुहम्मद अल्लाह को मुखातिब कर रहे हैं और कहते हैं कि यह अल्लाह का कलाम है। कुरान में हर जगह अल्लाह बन्दों के साथ बे इंसाफी करता है और उल्टा इलज़ाम बन्दों पर लगता है। मन मानी अल्लाह की है, जिसको चाहे दोज़ख दे, जिसको चाहे जन्नत, इसको मानने वाले मूरख ही तो हैं, अपने आप में क़ैद इस झूठे अल्लाह के बन्दे. 
"ऐ हमारे परवर दिगर! हमें वह चीज़ भी दीजिए जिसका हम से आप ने अपने पैगम्बर के मार्फ़त वादा फ़रमाया था और हम को क़यामत के रोज़ रुसवा न कीजिए और यक़ीनन आप वादा खिलाफ़ी नहीं करते।'' 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (194) 
यह आयत चीख चीख कर गवाही दे रही है कि क़ुरआन उम्मी मुहम्मद का गढ़ हुवा साजिशी कलाम है जिसको वह अल्लाह का कलाम कहते हैं. एक अदना आदमी भी इस आयत को पढ़ कर कह सकता है कि ये बात मुहम्मद की है जिस में कोई पैगम्बर गवाह भी है. खुदा गारत करे इन आलिमों को जो इतनी बड़ी मुसलमान आबादी की आँखों में धूल झोंके हुए हैं। 
"तुझ को इस शहर में काफिरों का चलना फिरना मुबालगा में न डाल दे. चंद दिनों की बहार है, फिर उनका ठिकाना दोज़ख होगा और वह बुरी आराम की जगह है." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (197) 
जुमले में उम्मियत टपक रही है. बुरी जगह आराम की कैसे हो सकती है? और अगर आराम की है तो बुरी कैसे हुई? 
दुश्मने इंसानियत, इंसानों के लिए हमेशा बुरा सोचा, बुरा किया. मुहम्मद की बुराई क़ौम पे अज़बे जरिया है. 
"जो लोग अल्लाह से डरें उनके लिए बागात हैं, जिनके नीचे नहरें जारी होंगी। वह इस में हमेशा हमेशा के लिए रहेंगे. यह मेहमानी होगी अल्लाह की तरफ से." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (198) 
यह लाली पफ की आयत पूरे कुरआन में बार बार आई है. शायद अल्लाह की इसी बात पर ग़ालिब ने चुटकी ली है. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 9 July 2015

Soorah aAale Imran 3Part 10(151-164)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****
सूरह आले इमरान    

Part-10
" हम अभी डाले देते हैं हौल काफिरों के दिलों में बसबब इस के कि उन्हों ने अल्लाह का शरीक ऐसी चीजों को ठहराया जिस की कोई दलील अल्लाह ताला ने नाजिल नहीं फरमाई और इन की जगह जहन्नम है. और वह बुरी जगह है."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (151)
अल्लाह का डेढ़ हज़ार साल पहले का "अभी" कभी नहीं आया. हुवा उल्टा मुसलमानों के दिलों में हौल ज़रूर पड़ा हुवा है. काफिरों के पास बे बुन्याद दलीलों का न होना, बेहतर है, कुरान के होने से. काफिरों के पास सैकडों कारामद ग्रन्थ उस वक़्त मौजूद थे जिनका नाम भी अनपढ़ मुहम्मद ने सुना नहीं होगा. 
जंगे ओहद की शिकस्त के बाद मुसलमानों में बड़ी बे चैनी का आलम था. अल्लाह इन पर इल्जाम लगता है कि उन्हों ने आखरत के बजाए दुन्या को तरजीह दिया. हार की फजीहत थी, जीती हुई जंग में लालची मुसलमानों की लालच. जो नकली माले गनीमत लूटने के लिए दौड़ पड़े, जो कि मुखालिफ़ की हिकमते अमली थी. हुवा यूँ की मुसलमानों ने देखा कि कुछ औरतें गठरियाँ लिए भाग रही है जिनको उन्हों ने माल समझा और दौड़ पड़े उसे लूटने. मुहम्मद आवाज़ लगाते रहे लौट आओ मगर किसी ने इनकी न सुनी. कुछ लोग एह्तेजजन कहते है हमारी कुछ चलती है क्या? मुहम्मद कहते हैं - - - चली तो सब अल्लाह की है. कुछ लोग कहते हैं हम मना कर रहे थे की मौत (जेहाद) की तरफ मत जाओ. मुहम्मद कहते हैं मौत आती है तो घर बैठे बैठे आ जाती है, मकतूल का कत्ल होना तो उसका मुक़द्दर था. मुहम्मद मरने वालों के पस्मंदगान को यूं भी समझाते हैं कि ये अल्लाह की आज़माइश थी इन लोगों की बातिन की जो पीठ मोड़ कर मैदान जंग से वापस आए. फिर दूसरी बोली बोलते हैं इन को शैतान ने इन के कुछ आमल के बाईस बहका दिया. मुहम्मद किज़्ब और मक्र के मरहम से शिकस्त खुर्दों के ज़ख्म भर रहे हैं साथ साथ उन पर नमक पाशी भी कर रहे हैं..
" और यकीन मनो की अल्लाह ने इन्हें मुआफ कर दिया और अगर तुम अल्लाह की रह में मारे जाओ या मर जाओ तो बिल ज़रुरत अल्लाह के पास की मग्फ़ेरत और रहमत, उन चीज़ों से बेहतर है जिन को यह लोग जमा कर रहे हैं."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (145-158)
अगर मर गए या मारे गए तो बिल ज़रुरत अल्लाह के पास ही जमा होगे. इस बीसवीं सदी में ऐसी अंध विशवासी बातें? अल्लाह इंसानी लाशें जमा करेगा दोज़ख सुलगाने के लिए? अल्लाह अपने नबी मुहम्मद कि तारीफ करता है कि अगर वह तुनुक और सख्त मिजाज होते तो सब कुछ मुन्तशिर हो गया होता? यानि कायनात का दारो मदार उम्मी मुहम्मद पर मुनहसर था इसी रिआयत से ओलिमा उनको सरवरे कायनात कहते हैं. मुहम्मद को अल्लाह सलाह देता है कि खास खास उमूर पर मुझ से राय ले लिया करो. गोया अल्लाह एक उम्मी दिमागी फटीचर को मुशीर करी का अफ़र दे रहा है. अस्ल में इस्लामी अफीम पिला पिला कर आलिमान इसलाम ने मुसलमानों को दिमागी तौर पर फटीचर बना दिया है.
नबूवत अल्लाह के सर चढ़ कर बोल रही है, वक़्त के दानिश वर खून का घूट पी रहे हैं कि जेहालत के आगे सर तस्लीम ख़म है. मुहम्मद मुआशरे पर पूरी नज़र रखे हुए हैं .एक एक बागी और सर काश को चुन चुन कर ख़त्म कर रहे हैं या फिर ऐसे बदला ले रहे हैं कि दूसरों को इबरत हो. हदीसें हर वाकिए की गवाह हैं और कुरान जालिम तबा रसूल की फितरत का, मगर बदमाश ओलिमा हमेशा मुहम्मद की तस्वीर उलटी ही अवाम के सामने रक्खी. इन आयातों में मुहम्मद कि करीह तरीन फितरत कि बदबू आती है, मगर ओलिमा इनको, इतर से मुअत्तर किए हुए है. अल्लाह बने मुहम्मद कहत्ते हैं - - - 
" हकीक़त में अल्लाह ने मुसलमानों पर बड़ा एहसान किया है जब कि इनमें इन्हें कि जींस के एक ऐसे पैगम्बर को भेजा कि वह इनको अल्लाह कि आयतें पढ़ कर सुनते हैं."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (164)
बकौल सलमान रश्दी कुरआन की आयतों का इस से अच्छा कोई नाम हो ही नहीं सकता जो उसने रखा है शैतानी आयतें (सैटनिक वर्सेज़). मुस्लमान आखें मूँद कर इस की तिलावत करते रहें ताकि शैतान इन को अपने काबू में रख सके. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 3 July 2015

Soorah Aale Imran 3 Part 9 (86-144)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह आले इमरान     
Part- 9
आइए देखें कि हमारे समाज की विडंबना क्यू क्या ज़हर इसके लिए बोती है - - - 
" अल्लाह ऐसे लोगों की हिदायत कैसे करेगे जो काफ़िर हो गए, बाद अपने ईमान लाने के और बाद अपने इस इक़रार के कि मुहम्मद सच्चे हैं और बाद इस के कि उन पर वाजः दलायल पहुँच चुके थे और अल्लाह ऐसे बे ढंगे लोगों को हिदायत नहीं करते।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (86) 
यह है मुहम्मद का अभियान जिसमे अल्लाह किसी गाँव के मेहतुक की तरह है, जिसे कि वह रब्बुल आलमीन कहते हैं. उनका अल्लाह उन लोगों से बेज़ार हो रहा है जो रोज़ रोज़ मुसलमान से काफ़िर हो जाते हैं और काफ़िर से मुसलमान. 
" ऐसे लोगों की सज़ा ये है कि इन पर अल्लाह ताला की भी लानत होती है, फरिश्तों की और आदमियों की भी, सब की। वह हमेशा हमेशा के लिए दोज़ख में रहेंगे, इन पर अज़ाब हल्का न होने पाएगा और न ही मोहलत दी जाएगी, हाँ मगर तौबा करके जो लोग अपने आप को संवार लेंगे, सो अल्लाह ताला बख्शने वाला है." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (88-89) 
मुसलमानों! सोचो अचानक मुहम्मद किसी अदभुत अल्लाह को पैदा करते है, उसके फ़रमान अपने कानों से अनदेखे फ़रिश्ते से सुनते हैं और उसको तुम्हें बतलाते है। वोह अल्लाह सिर्फ़ २३ सालों की जिंदगी जिया, न उसके पहले कभी था, न उसके बाद कभी हुवा। इस मुहम्मदी अल्लाह पर भरोसा करना क्या अपने आप को धोका देना नहीं है? सोचो कि ऐसे अल्लाह की क़ैद से रिहाई की ज़रुरत है, करना कुछ भी नहीं है, बस जो ईमान उस से ले कर आए थे उसे वापस कर दो. लौटा दो ऐसे हवाई और नामाकूल अल्लाह को उस का ईमान. 
ईमान लाओ मोमिन का जो धर्म कांटे का ईमान रखता  है.
       जंगे ओहद की हार पर लोगों में फैली बद गुमानी, बे चैनी और बगावत पर मुहम्मद धीरे धीरे क़ाबू पा रहे हैं. उनका अल्लाह मज़बूत होता चला जा रहा है. देखिए उसकी हिम्मत की दाद दीजिए - - - 
" हाँ! क्या ये खयाल करते हो कि जन्नत में दाखिल हो गए, हालां कि अभी तक अल्लाह ने उन लोगों को तो देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम लोगों में से जेहाद की हो और न उन लोगों को देखा जो लोग साबित क़दम रहे हों, तुम तो मरने की तमन्ना कर रहे थे." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (142)
मुसलमानों! तर्क ए इसलाम के लिए यही आयत काफी है, जो अल्लाह दावा करता हो कि वह कायनात की हर मख्लूक़ के हर एक अमल ओ हरकत की खबर रखता है, जिसके हुक्म के बगैर कोई पत्ता भी न हिलता हो, वह कुरआन में कहता है कि "हालां कि अभी तक अल्लाह ने उन लोगों को तो देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम लोगों में से जेहाद की हो और न उन लोगों को देखा जो लोग साबित क़दम रहे हों"
कुरान क़यामत तक बदला नहीं जा सकता, ये बात इसकी ज़िल्लत के लिए मुनासिब ही है, मगर क्या इस के साथ साथ तुम नस्ल ए इंसानी भी न बदलने का अहेद किए बैठे हो?
" और तुम मरने की तमन्ना कर रहे थे, मौत के सामने आने से पहले, सो इस को खुली आँखों से देखा था."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (143)
हारी हुई जंगे ओहद के बारे में जब चे मे गोइयाँ होती हैं तो होशियार नबी इस की ज़िम्मे दरियाँ अल्लाह पर डाल देते हैं. अल्लाह जंग जूओं को माव्ज़ा देने में टाल मटोल करते हुए कहता है - - - 
" अभी इसे मालूम नहीं कि जंग तुमने कैसी लड़ी (वैसे) तुम तो मौत की तमन्ना पहले ही कर रहे थे."
अल्लाह ने यहाँ पर लम्बी नामार्दाना बहेस की है जो की इन्तेहाई शर्मनाक है, खास कर मुस्लमान दानिश वरों के लिए, रह गई बात पढ़े लिखे जाहिलों के लिए तो उनको जेहालत ही अज़ीज़ है, वह अपने इल्म नाकिस के साथ जहन्नम में जाएँ. कुरान इंसानी क़त्ले आम जेहाद के एवाज़ ऊपर शराब और शबाब से भरी जन्नत दिलाने का यकीन दिलाता है, गाल्बन यही यकीन उनकी तमन्ना है. अब देखिए अल्लाह बेवकूफ बन जाने वालों को कैसे ताने देता है " तुम तो मौत की तमन्ना पहले ही कर रहे थे." मतलब साफ है की तुम मेरे झांसे में आए."
 "और मुहम्माद निरे अल्लाह के रसूल ही तो हैं आप से पहले भी कई अल्लाह के रसूल गुज़र चुके हैं सो अगर आप का इंतकाल भी हो जावे या अगर आप शहीद ही हो जाएँ तो क्या लोग उल्टे फिर जाएँगे और जो उल्टा फिर भी जाएगा तो अल्लाह का कोई नुकसान न होगा."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (144)
मुहम्मद निरे अल्लाह के रसूल तो नहीं मगर निरे घाघ और पैकरे दरोग ज़रूर हैं. ठीक कहते हैं कि इसलाम मे रुकने या फिरने से उसके अल्लाह का कोई नुकसान या नफ़ा होने का नहीं मगर इनकी ईजाद से डेढ़ हज़ार साल से इंसानियत शर्मिंदा है. जब तक इन्सान जेहनी बलूगत को नहीं छूता इस्लामी शर्मिंदगी उस पर ग़ालिब रहेगी.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान