Saturday 29 February 2020

खेद है कि यह वेद है (23)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (23)

हे बृहस्पति ! जो तुम्हें हव्य अन्न देता है, 
उसे तुम न्याय पूर्ण मार्ग से ले जाकर पाप से बचाते हो. 
तुम्हारा यही महत्त्व है कि तुम यज्ञ  का विरोध करने वाले को 
कष्ट देते एवं शत्रुओं की हिंसा करते हो. 
द्वतीय मंडल सूक्त 23(4)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

ब्रह्मणस्पति और बृहस्पति भी इंद्र देव की तरह कोई इनके देव होंगे. 
इनके सामने पुरोहित उन लोगों को नाश कर देने की तमन्ना करते हैं 
और उनको उनका हिंसक महत्व बतलाते हैं. 
उनको हिंसा करने का निमंत्रण देते हैं.
एक ओर हिन्दू अहिंसा का पुजारी है कि वह पानी भी छान कर पता है 
और दूसरी ओर हर मौके पर हवन कराता है, 
कि हे देव तुम हिंसा करो, हम पर पाप लगेगा. 
ठीक ही कहा है किसी ने - - -

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 28 February 2020

खेद है कि यह वेद है (22)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (22)

इंद्र ने अपनी शक्ति द्वारा इधर उधर जाने वाले पर्वतों को अचल बनाया, 
मेघों के जल को नीचे की ओर गिराया, 
सब को धारण करने वाली धरती को सहारा दिया 
और अपनी बुद्धिमानी से आकाश को नीचे गिरने से रोका है.  
द्वतीय मंडल सूक्त 17(5)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

कुरआन कहता है कि आसमान बिना खंबे की छत है 
और वेद भी  कुछ ऐसा ही कहता है. 
कुरआन की बातें सुनकर हिन्दू अजाक उडाता है, 
और कहता है वेद को अपमानित मत करो 
क्योकि यह सब  से पुराना ग्रन्थ है. 
दोनों को ग़लत फहमी है कि योरोपियन इन्ही ग्रंथो से बहु मूल्य नुस्खे उड़ा कर ले गए हैं और आज आकाश को नाप रहे हैं. 
कितनी बड़ी विडंबना है - - - 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 27 February 2020

खेद है कि यह वेद है (21)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (21)

हे इंद्र ! घास खाकर तृप्त होने हुई गाय जिस प्रकार अपने बछड़े की भूख को समाप्त करती है, उसी प्रकार तुम शत्रु वाधा सम्मुख आने से पूर्व ही हमारी रक्षा कर लो. 
जिस प्रकार पत्नियां युवक को घेरती हैं, 
उसी प्रकार हे शत्तरुत्र इंद्र ! हम सुन्दर स्तुत्यों द्वारा तुमको घेरेंगे.
सूक्त 16-8 

पंडित अपनी सुरक्षा अग्रिम ज़मानत की तरह इंद्र देव से तलब करता है. 
उपमा देखिए कि जिस तरह धास खाकर गाय अपने बछड़े को तृप्त रखती है.
अनोखी मिसाल 
" पत्नियाँ सामूहिक रूप में युवक को घेरती हैं"
हो सकता है वैदिक युग में यह कलचर रहा हो 
कि इस पर उनके पतियों को कोई एतराज़ न होता रहा हो, 
वैसे कामुक इंद्र देव की रिआयत से पत्नियों की जगह कुमारियाँ होना चाहिए था. 
पंडित जी कहते हैं उसी तरह वह इन्दर देव को घेरेगे.
हिंदुओ ! कब तक इन पाखंडियों के मनुवाद के घेरे में घिरे रहोगे?

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 26 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (30)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (30)

अर्जुन पूछते हैं  - - -
>हे मधु सूदन !
आपने जिस योग पद्धति का संक्षेप में वर्णन किया है,
वह मेरे लिए अव्यवहारिक तथा असहनीय है, 
क्योकि मन चंचल तथा अस्थिर है.
**
हे कृष्ण ! 
चूँकि मन चंचल, उच्छूँकल, हठीला तथा अत्यन्त बलवान है. 
अतः इसे मुझे वश में करना, 
वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है.   
*** 
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
हे महाबाहु कुंती पुत्र ! 
निःसंदेह चंचल मन को वश में करना अत्यंत कठिन है,
किन्तु उपयुक्त अभ्यास द्वारा तथा विरक्ति द्वारा ऐसा संभव है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -6  - श्लोक -33-34-35 
>अर्जुन की दलील बिलकुल सहीह है. 
ओशो रजनीश कहता है , 
कोई माई का लाल अपने मन को एक मिनट से ज्यादा स्थिर नहीं कर सकता. जब कि उसका काम ही था कि ध्यान में डुबोना. 
जब मानव मस्तिष्क ध्यान में जा ही नहीं सकता तो उसकी कोशिश क्यों ?
मेरा दिल कुछ घंटों के लिए दिमाग़ से अलग करके एक प्लेट में रखा रहा, 
उन घंटों की कोई याद दाश्त मेरे पास नहीं है. 
अर्थात मेरा शरीर घंटों ध्यान और योग युक्त था, 
इससे बड़ा योग क्या हो सकता है ? 
सवाल उठता है कि विचार मुक्त शरीर ने कौन सी उपलब्धियाँ उखाड़ ली. 
हमारी विडंबना यह है कि हम गुरु के दिए हुए उत्तर पर सवाल नहीं करते 
क्योंकि हम उसका ज़रुरत से ज्यादह सम्मान करते हैं, उससे डरते है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
मुहम्मद अपनी उम्मत को इसी तरह समझाते हैं - - -
>" और मैं इस तौर पर आया हूँ कि तस्दीक करता हूँ इस किताब को जो तुहारे पास इस से पहले थी,यानि तौरेत की. और इस लिए आया हूँ कि तुम लोगों पर कुछ चीजें हलाल कर दूं जो तुम पर हराम कर दी गई थीं और मैं तुम्हारे पास दलील लेकर आया हूँ तुम्हारे परवर दिगर कि जानिब से. हासिल यह कि तुम लोग परवर दिगर से डरो और मेरा कहना मानो"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (50) 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 25 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (29)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (29)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>जो मुझे सर्वत्र देखता है 
और सब कुछ मुझमें देखता है, 
उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ 
और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है.
**जो योगी मुझे और परमात्मा को अभिन्न जानते हुए 
परमात्मा की भक्ति पूर्वक सेवा करता है , 
वह हर प्रकार से मुझमें सदैव स्थित रहता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -6  - श्लोक -30 -31 

>जिधर देखता हूँ , उधर तू ही तू है,
न तेरा स जलवा न तेरी सी बू है.
भगवन श्री ! दुन्या ने तो आपका अंत देख कर सब कुछ देख लिया 
जब आप बिना खाना पानी बे यार व् मददगार अठ्ठारह दिनों तक आम के बाग़ में तड़प तड़प कर मरे. आपकी वास्तविकता यह है. लेखनी आप को चने की झाड पर चढ़ाए फिरे.
और क़ुरआन कहता है - - - 
"अल्लाह बड़ी नरमी के साथ बन्दों को अपनी बंदगी की अहमियत को समझाता है. 
काफिरों की सोहबतों के नशेब ओ फ़राज़ समझाता है. 
अपनी तमाम खूबियों के साथ बन्दों पर अपनी मालिकाना दावेदारी बतलाता है. 
दोज़ख पर हुज्जत करने वालों को आगाह करता है. 
कुरान से इन्हिराफ़ करने वालों का बुरा अंजाम है, 
ग़रज़ ये कि दस आयातों तक अल्लाह कि कुरानी तान छिडी रहती है 
जिसका कोई नतीजा अख्ज़ करना मुहाल है.
"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (16-26)
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 24 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (28)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (28)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>जिसने मन को जीत लिया, 
उसके लिए मन सर्व श्रेष्ट मित्र है. 
किन्तु जो ऐसा नहीं कर पाया, 
उसके लिए मन सब से बड़ा शत्रु है.
**जिसने मन को जीत लिया है, 
उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, 
क्योकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है. 
ऐसे पुरुष के लिए सुख दुःख, सर्दी गर्मी, मान अपमान एक सामान हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -6  - श्लोक -6 -7 
>बहुत अच्छा गीता सन्देश है. 
यह विचार इस्लाम के बाग़ी समूह तसव्वुफ़ (सूफ़ी इज़्म) के आस पास है. 
इस श्लोक में इन्द्रीय तृप्ति की बात नहीं है, इसलिए यह तसव्वुफ़ के और अरीब है. हर सूफी शादी शुदा रह कर और बीवियों के बख्शे हुए कष्ट को झेल कर ही सूफी बनता है. 
एक सूफ़ी की बीवी अपने शौहर के इंतज़ार में आग बगूला हो रही थी कि  
दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई, 
तो देखा सूफी नहीं ,उसका दोस्त खड़ा है. 
इतने में सूफी भी लकड़ियों का गठ्ठर जिसे शेर पर लादे हुए और एक सांप बांधे हुए था, 
लेकर आया. 
बीवी जो लकड़ियों का इंतज़ार खाली हांडी हाथों में लिए कर रही थी, 
गुस्से में हांडी को सूफी के सर पर पटख दिया. 
हांडी टूट गई मगर उसका अंवठ सूफी के गर्दन में था. 
दोस्त ने पूंछा यह क्या ? 
सूफी का जवाब था 
"शादी का तौक़" 
शेर और सांप मेरी लकड़ी ढोते हैं और मैं शादी का तौक़. 

उर्दू शायरी इस गीता सन्देश को कुछ इस तरह कहती है - - -
नहंग व् अजदहा व् शेर ए नर मारा तो क्या मारा,
बड़े मूज़ी को मारा, नफ्स ए अम्मारा को गर मारा.
नहंग=घड़ियाल*नफस ए अम्मारा =मन 

नक्क़ारे के शोर में मुंकिर की आवाज़ 
मन को इतना मार मत, मर जाएँ अरमान,
अरमानों के जाल में, मत दे अपनी जान.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>क़ुरान की तो अलाप ही जुदा है.
>"तुम लोगों के वास्ते रोजे की शब अपनी बीवियों से मशगूल रहना हलाल कर दिया गया, 
क्यूँ कि वह तुम्हारे ओढ़ने बिछोने हैं और तुम उनके ओढ़ने बिछौने हो। 
अल्लाह को इस बात की ख़बर थी कि तुम खयानत के गुनाह में अपने आप को मुब्तिला कर रहे थे। खैर अल्लाह ने तुम पर इनायत फ़रमाई और तुम से गुनाह धोया - - -
जिस ज़माने में तुम लोग एत्काफ़ वाले रहो मस्जिदों में ये खुदा वंदी जाब्ते हैं कि उन के नजदीक भी मत जाओ। इसी तरह अल्लाह ताला अपने एह्काम लोगों के वास्ते बयान फरमाया करते हैं इस उम्मीद पर की लोग परहेज़ रक्खें .
" (सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८७)
***

*****
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 23 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (27)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (27)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>हे पांडु पुत्र ! 
जिसे संन्यास कहते हैं, 
उसे ही तुम योग अर्थात परब्रह्म से युक्त होना जानो 
क्योंकि इन्द्रीय तृप्ति के लिए इच्छा को त्यागे बिना 
कोई कभी योगी नहीं हो सकता. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -6  - श्लोक -2 
>इच्छा को त्यागने की बात तो किसी हद तक सही है, 
खाने पीने की कीमती गिज़ा, कीमती कपड़े, आभूषण, सवारी और ताम झाम के बारे में 
गीता की राय सहीह है 
मगर हर जगह जो इन्द्रीयतृप्ति की बात होती है तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है. 
इस सुख से न किसी का शोषण होता है न शारीरिक अथवा मानसिक हानि. 
इस मुफ्त में बखशे हुए क़ुदरत के तोहफे से गीता को क्यों बैर है ? 
समझ से बहर है. 
इन्द्रीयतृप्ति की इच्छा समान्यता भरी हुई नाक की तरह एक खुजली है, 
इसे छिनक कर फिर विषय पर आ बैठो. 
इन्द्रीयतृप्तिके बाद ही दिमाग़ और दृष्टि कोण को संतुलन मिलता है. 
इन्द्रीयतृप्ति से खुद को तो आनंद मिलता है, किसी दूसरे को भी आनंद मिलता है. इन्द्रीयतृप्ति सच पूछो तो पुण्य कार्य है, 
परोपकार है. 
एक योगी एक को और हज़ार योगी हजारों बालाओं को इस प्रकृतिक सुख से वंचित कर देते है. 
यह सामाजिक जुर्म है.
और क़ुरआन कहता है - - - 
>क़ुरआन ब्रह्मचर्य को सख्ती के साथ नापसंद करता है. वह इसके लिए चार चार शादियों की छूट देता है.
दोनों sex के मुआमले में असंतुलित हैं. दोनों ही शिद्दत पसंद हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 22 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (26)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (26)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>बुद्धिमान मनुष्य दुःख के कारणों से भाग नहीं लेता 
जोकि भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग से उत्पन्न होते हैं.
हे कुंती पुत्र ! 
ऐसे भोगों का आदि तथा अंत होता है.
अतः चतुर व्यक्ति उनमे आनंद नहीं लेता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -5  - श्लोक -22 
>भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग से उत्पन्न सुख, दुःख कैसे हो गए ? 
इस सुख से वंचित व्यक्ति दुखी होता है, 
ऐसा भगवान् कहते हैं और कहते हैं 
इस दुःख से पलायन नहीं करना चाहिए. 
सवाल यह है कि ऐसे दुःख अपने लिए पैदा ही क्यों किए जाएं ?
सुख को त्याग कर. 
भगवान् कहते हैं 
"ऐसे भोगों का आदि तथा अंत होता है." 
आदि तथा अंत तो सभी का होता है चाहे वह भोग हो अथवा अभोग. 
व्यक्ति को चतुर होना चाहिए या सरल ? हे भगवन !
और क़ुरआन कहता है - - - 
" अल्लाह बड़ी नरमी के साथ बन्दों को अपनी बंदगी की अहमियत को समझाता है. काफ़िरों की सोहबतों के नशेब ओ फ़राज़ समझाता है. अपनी तमाम खूबियों के साथ बन्दों पर अपनी मालिकाना दावेदारी बतलाता है. दोज़ख पर हुज्जत करने वालों को आगाह करता है. कुरान से इन्हिराफ़ करने वालों का बुरा अंजाम है, ग़रज़ ये कि दस आयातों तक अल्लाह कि कुरानी तान छिडी रहती है जिसका कोई नतीजा अख्ज़ करना मुहाल है.
"सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (16-26)
भगवान् और अल्लाह की बातें एक जैसी ही हैं, 
***

जीम.'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 21 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (25)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (25)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
*विनर्म साधु पुरुष अपने वास्तविक ज्ञान के कारण 
एक विज्ञान तथा विनीत ब्राह्मण, 
गाय, हाथी, कुत्ता, तथा चांडाल को सामान दृष्टि (समभाव) से देखते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -5 - श्लोक -18 
>
वैसे भगवान् कृष्ण पर सियासी तौर पर यादवों (अहीरों) का क़ब्ज़ा है, 
मथुरा और आस पास दूधयों की बड़ी आबादी है, 
स्थानीय लोग दूध घी का सेवन कुछ ज़यादा ही करते हैं. 
मगर पौराणिक दर्पण में भगवान् कृष्ण क्षत्रीय माने जाते हैं . 
वैदिक युग में गाय, हाथी, कुत्ता सब जीव सामान थे, 
गौ मांस प्रचलित था, सम्मानित खाद्य पदार्थ था दूसरे  पदार्थों के बनिसबत. 
आज यह गऊ माता हो गई, 
यह हमारा चाल, चरित्र और चेहरा है जो ज़रूरतन बदलता रहता है. 
मनुवाद ने चांडाल को पशुओं की सीमा रेखा पर रखा है,  
हक़ीक़त यह है कि चोर चांडाल और बरहमन एक ही कुल के होते हैं, 
शेर कुत्ता और क्षत्रीय दूसरे कुल के,
तथा हाथी सुवर और बनिए तीसरे कुल के.
और क़ुरआन कहता है - - - 
"बे शक जो लोग काफ़िर हो चुके हैं, 
बेहतर है उनके हक में, 
ख्वाह उन्हें आप डराएँ या न डराएँ, 
वह ईमान न लाएंगे।
 बंद लगा दिया है अल्लाह ने उनके कानों और दिलों पर और आंखों पर परदा डाल दिया है" 
(सूरह अलबकर -२ पहला पारा अलम आयत 6-7) 
इस मौके पर एक वाकेया गाँव के एक नव मुस्लिम राम घसीटे उर्फ़ अल्लाह बख्श का याद आता है --- 
मस्जिद में नमाज़ से पहले मौलाना पेश आयत को बयान कर रहे थे, 
अल्लाह बख्श भी बैठा सुन रहा था, 
पास में बैठे गुलशेर ने पूछा , 
"अल्लाह बख्श कुछ समझे ? 
"अल्लाह बख्श ने ज़ोर से झुंझला कर जवाब दिया , 
"क्या ख़ाक समझे ! 
"जब अल्लाह मियाँ खुदई दिल पर परदा डाले हैं 
और कानें माँ डाट ठोके हैं. 
पहले परदा और डाट हटाएँ, मोलबी साहब फिर समझाएं" 
भरे नमाज़ियों में अल्लाह की किरकिरी देख कर गुलशेर बोला 
"रहेगा तू काफ़िर का काफ़िर'' 
"तुम्हारे ऐसे अल्लाह की ऐसी की तैसी" 
कहता हुवा घसीटा राम सर की टोपी उतार कर ज़मीन पर फेंकता हुवा मस्जिद के बाहर था.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 20 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (24)



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (24)

 भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
किन्तु जो अज्ञानी और श्रद्धा विहीन व्यक्ति शाश्त्रों में संदेह करते हैं , 
श्रद्धाभावनामृत नहीं प्राप्त कर सकते. 
अपितु नीचे गिर जाते हैं. 
संशयात्मा के लिए न तो इस लोक मे, न परलोक में कोई सुख है.
जो व्यक्ति अपने कर्म फलों का परित्याग करते भक्ति करता है 
और जिसके संशय दिव्य ज्ञान द्वारा विनष्ट हो चुके होते हैं , 
वही वास्तव में आत्म परायण है. 
हे धनञ्जय ! 
वह कर्मों के बंधन में नहीं बंधता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -40 - 41 
**हर धर्म की धुरी है श्रद्धा अर्थात कल्पना करना कि कोई शक्ति है जिसे हमें पूजना चाहिए. 
इस कशमकश में पड़ते ही गीता और क़ुरआन के रचैता आपकी कल्पना को साकार कर देते हैं, 
इसके बाद आपकी आत्म चिंतन शक्ति ठिकाने लग जाती है. 
किन्तु स्वचिन्तक बअज़ नहीं आता तब धर्म गुरु इनको गरिया शुरू कर देते हैं. 
इस ज्ञानी को अज्ञानी और नास्तिक की उपाधि मिल जाति है. 
श्रद्धाभावनामृत की पंजीरी बुद्धुओं में बांटी जाती है. 
कर्म करते रहने की भी ख़ूब परिभाषा है, 
बैल की तरह खेत जोतते रहो, 
फसल का मूल्य इनके भव्य मंदिरों में लगेगा, 
तभी तो इनकी दुकाने चमकेंगी.
क़ुरआन कहता है ---
''और जब तू इन लोगों को देखे जो हमारी आयातों में ऐब जोई कर रहे हैं तो इन लोगों से कनारा कश हो जा, यहाँ तक कि वह किसी और बात में लग जाएं और अगर तुझे शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों में मत बैठ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (६८)
मुहम्मद ने मुसलामानों पर किस ज़ोर की लगाम लगाईं है कि उनकी इस्लाह माहौल के ज़रिए करना भी बहुत मुश्किल है. उनको माहौल बदल नहीं सकता. मुल्ला जैसे कट्टर मुसलमान जब आधुनिकता की बातों वाली महफ़िल में होते हैं तो वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज़िक्र सुन कर बेज़ार होते हैं और दिल ही दिल में तौबा कर के महफ़िल से उठ जाते हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 19 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (23)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (23)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
किन्तु जो अज्ञानी और श्रद्धा विहीन व्यक्ति शाश्त्रों में संदेह करते हैं , 
श्रद्धाभावनामृत नहीं प्राप्त कर सकते. 
अपितु नीचे गिर जाते हैं. 
संशयात्मा के लिए न तो इस लोक मे, न परलोक में कोई सुख है.
जो व्यक्ति अपने कर्म फलों का परित्याग करते भक्ति करता है 
और जिसके संशय दिव्य ज्ञान द्वारा विनष्ट हो चुके होते हैं , 
वही वास्तव में आत्म परायण है. 
हे धनञ्जय ! 
वह कर्मों के बंधन में नहीं बंधता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -40 - 41 
**हर धर्म की धुरी है श्रद्धा अर्थात कल्पना करना कि कोई शक्ति है जिसे हमें पूजना चाहिए. 
इस कशमकश में पड़ते ही गीता और क़ुरआन के रचैता आपकी कल्पना को साकार कर देते हैं, 
इसके बाद आपकी आत्म चिंतन शक्ति ठिकाने लग जाती है. 
किन्तु स्वचिन्तक बअज़ नहीं आता तब धर्म गुरु इनको गरिया शुरू कर देते हैं. 
इस ज्ञानी को अज्ञानी और नास्तिक की उपाधि मिल जाती  है. 
श्रद्धाभावनामृत की पंजीरी बुद्धुओं में बांटी जाती है. 
कर्म करते रहने की भी ख़ूब परिभाषा है, 
बैल की तरह खेत जोतते रहो, 
फ़सल का मूल्य इनके भव्य मंदिरों में लगेगा, 
तभी तो इनकी दुकाने चमकेंगी.
क़ुरआन कहता है ---
''और जब तू इन लोगों को देखे जो हमारी आयातों में ऐब जोई कर रहे हैं तो इन लोगों से कनारा कश हो जा, यहाँ तक कि वह किसी और बात में लग जाएं और अगर तुझे शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों में मत बैठ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (६८)
मुहम्मद ने मुसलामानों पर किस ज़ोर की लगाम लगाईं है कि उनकी इस्लाह माहौल के ज़रिए करना भी बहुत मुश्किल है. उनको माहौल बदल नहीं सकता. मुल्ला जैसे कट्टर मुसलमान जब आधुनिकता की बातों वाली महफ़िल में होते हैं तो वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज़िक्र सुन कर बेज़ार होते हैं और दिल ही दिल में तौबा कर के महफ़िल से उठ जाते हैं.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 18 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (22)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (22)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
जैसे प्रज्वलित अग्नि ईधन को भस्म कर देती है, 
उसी तरह से 
अर्जुन ! 
ज्ञान रुपी अग्नि भौतिक कर्मों के सभी फलों को जला डालती है. 
इस संसार में दिव्य ज्ञान के समान कुछ भी उदात्त तथा शुद्ध नहीं . 
ऐसा ज्ञान समस्त योग का परिपक्व फल है. 
जो व्यक्ति भक्ति में सिद्ध हो जाता है, 
वह यथा समय अपने अंतर में इस ज्ञान का आस्वादन करता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -37- 38 -
बहुत ज्ञान मनुष्य को भ्रमित और गुमराह किए रहता है, 
इन ज्ञानियों को बहुधा भौतिक सुख और सुविधा का आदी ही देखा जाता है, 
वह मान और सम्मान के भूके होते हैं. 
और अगर ज्ञान पाकर मनुष्य गुमनाम हो जाए, 
तब तो ज्ञान का लाभ ही ग़ायब हो जाता है. 
वैसे भी इस युग में ईश्वरीय ज्ञान का कोई महत्व नहीं. 
यह युग विज्ञान का है. 
विज्ञान के लिए गहन अध्यन की ज़रुरत है, 
तप और तपश्या की नहीं.
ठीक कहा है 
"ज्ञान रुपी अग्नि भौतिक कर्मों के सभी फलों को जला डालती है. "
अर्थात ज्ञान का फल राख का ढेर. 
भभूति लगा कर ज्ञान का चिंमटा बजाइए.
और क़ुरआन कहता है - - - 
" बिल यक़ीन जो लोग कुफ्र करते हैं, हरगिज़ उनके काम नहीं आ सकते, उनके माल न उनके औलाद, अल्लाह तअला के मुक़ाबले में, ज़र्रा बराबर नहीं और ऐसे लोग जहन्नम का सोख़ता होंगे."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (१०)

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 17 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (21)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (21)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
जिस व्यक्ति का प्रत्येक प्रयास (उद्दयम ) इन्द्रिय तृप्ति की कामना से रहित होता है , उसे पूर्ण ज्ञानी समझा जाता है. 
उसे ही साधु पुरुष ऐसा करता कहते है. 
जिसमें पूर्ण ज्ञान की अग्नि से काम फलों को भस्म कर कर दिया जाता है.   
ऐसा ज्ञानी पुरुष पूर्ण रूप से संयमित मन तथा बुद्धि से काम करता है. 
अपनी संपत्ति के सारे स्वभाव को त्याग देता है 
और केवल शरीर निर्वाह के लिए कर्म करता है. 
इस तरह कार्य करता हुवा वह पाप रुपी फलों से प्रभावित वहीँ होता है.                                                                                                                                                                                                                     
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -19 -21 
*केचुवे बहुत ही महत्त्व पूर्ण जीव हैं, 
इस धरती की उर्वरकता के लिए वह 24सो घंटे मिटटी को एक ओर से खाते हैं और दूसरी ओर से निकालते हैं. केचुवे अपने कर्म में लगे रहते हैं अपनी उपयोगिता को जानते भी नहीं 
कि धरती की हरियाली उनके दम से है. 
भगवान् कृष्ण इंसान को केचुवे बन जाने की सलाह देते हैं, 
इंसान इंसानी मिज़ाज से परे होकर हैवानी प्रकृति को अपनाए. 
ज्ञान का खाना, कपड़ा खाए और पहने, 
कोई प्रयास (उद्दयम ) इन्द्रिय तृप्ति की कामना से रहित हो ही नहीं सकता . 
इन्द्रिय तृप्ति ही तो संचालन है, मानव उत्पत्ति का. 
इसके बग़ैर तो मानव जाति ही धरती से ग़ायब हो जाएगी. 
सिर्फ़ सनातनी ही इस ईश वाणी का पालन करें तो सौ साल से पहले इतिहास बन जाएँगे.
और क़ुरआन कहता है - - - 
''और मेरे पास ये क़ुरआन बतौर वही (ईश वाणी) भेजा गया है ताकि मैं इस क़ुरआन के ज़रीए तुम को और जिस जिस को ये क़ुरआन पहुंचे, इन सब को डराऊं''
सूरह अनआम-६-७वाँ पारा आयत(२८)
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 16 February 2020

खेद है कि यह वेद है (19=20)



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (19)

दभीति को उनके नगर से बाहर ले जाने वाले असुरों को इंद्र ने मार्ग में रोका 
एवं उनके प्रकाश मान आयुधों को आग में जला दिया. 
इसके पश्चात इंद्र ने उन्हें बहुत सी गायें घोड़े और रथ प्रदान किए. 
इंद्र ने यह सब सोमरस के नशे में किया.
सूक्त 15-4
ऐसी हरकतें कोई नशे के आलम में ही कर सकता है 
कि दुश्मन के प्रकाशमान आयुधों को जला दे 
फिर उसको गाएँ घोड़े और रथ दे.
इंद्र की इस हरकत को किसी ने नहीं देखा 
अलबत्ता श्लोक रचैता पंडित ने ज़रूर इसे भंग के नशे में लिखा होगा .

***
  

विवाह की इच्छा से आई हुई कन्याओं को भागता देख कर परावृज ऋषि सब के सामने खड़े हुए. 
इंद्र की कृपा से वह पंगु दौड़ा और अँधा होकर भी देखने लगा. 
इंद्र ने यह सब सोमरस के मद में किया है.
सूक्त 15-7 

आप भांग पीकर इस वेद श्लोक को जितना चाहें और जैसे चाहें कल्पनाओं की दुन्या में कूद सकते हैं मगर मैं समझता हूँ कि वेद ज्ञान को शून्य कर देता है,अज्ञानता में ढकेल देता है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 15 February 2020

खेद है कि यह वेद है (17-(18))



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (17)

हे  अध्वर्युजनो ! इंद्र के लिए सोम ले आओ एवं चमचों के द्वारा मादक सोम को अग्नि में डालो. इस सोम को पीने के लिए वीर इंद्र सदा इच्छुक रहते हैं. तुम काम वर्धक इंद्र के निमित्त सोम दो, क्यों कि वह इसे चाहते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 14-1 
कामुक इंद्र देव के लिए शराब की महिमा गान ?. 
इंद्र भगवान् की चाहत काम उत्तेजक सोमरस ??. 
भगवान् और मानव से इनकी फरमाइश??? 
जिन्हें गर्व हिंदुत्व का है वह कहाँ हैं ?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (18)

हे यज्ञ कर्म करता अध्वर्युजनो ! तुम जो चाहते हो वह इंद्र के लिए सोमरस देने पर तुरंत मिल जाएगा. 
याज्ञको ! हाथों द्वारा निचोड़ा हुवा सोम रस लाकर इंद्र के लिए प्रदान करो.
द्वतीय मंडल सूक्त 14-8 
यज्ञ आयोजन करने वालों को पंडित आश्वासन सोमरस के चढ़ावे से इंद्र प्रसन्न हो जाएगे. 
ध्यान रख्खें वह ओम्रस हाथों द्वारा निचोड़ा हो, न कि पैरों द्वारा अथवा मशीनों द्वारा.
धन्य है पोंगा पंडितो.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 14 February 2020

खेद है कि यह वेद है (17+18)



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (17+18)

हे  अध्वर्युजनो ! इंद्र के लिए सोम ले आओ एवं चमचों के द्वारा मादक सोम को अग्नि में डालो. इस सोम को पीने के लिए वीर इंद्र सदा इच्छुक रहते हैं. तुम काम वर्धक इंद्र के निमित्त सोम दो, क्यों कि वह इसे चाहते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 14-1 
कामुक इंद्र देव के लिए शराब की महिमा गान ?. 
इंद्र भगवान् की चाहत काम उत्तेजक सोमरस ??. 
भगवान् और मानव से इनकी फरमाइश??? 
जिन्हें गर्व हिंदुत्व का है वह कहाँ हैं ?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
***

हे यज्ञ कर्म करता अध्वर्युजनो ! तुम जो चाहते हो वह इंद्र के लिए सोमरस देने पर तुरंत मिल जाएगा. 
याज्ञको ! हाथों द्वारा निचोड़ा हुवा सोम रस लाकर इंद्र के लिए प्रदान करो.
द्वतीय मंडल सूक्त 14-8 
यज्ञ आयोजन करने वालों को पंडित आश्वासन सोमरस के चढ़ावे से इंद्र प्रसन्न हो जाएगे. 
ध्यान रख्खें वह ओम्रस हाथों द्वारा निचोड़ा हो, न कि पैरों द्वारा अथवा मशीनों द्वारा.
धन्य है पोंगा पंडितो.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 13 February 2020

खेद है कि यह वेद है (16)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (16)

जल धारण करने वाली नदियाँ आपस में मिलकर चारो ओर बह रही हैं एवं जल के स्वामी सागर को भोजन पहुँचती हैं, नीचे की ओर बहने वाले जलों का रास्ता एक सामान है, जिसे इंद्र ने प्राचीन काल में ये सब काम किए हैं, वह प्रशंशा के योग्य हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 13-2 
अर्थात विश्व की सारी नदियाँ राजा इन्दर की परिश्रम के परिणाम स्वरूप हैं. 
क्या हम अपने बच्चों को यह शिक्षा  और ज्ञान दे सकते है? 
योरोप के सभ्य समाज के लोग वेदों को पढ़कर हिनुस्तानियों को क्या दर्जा देंगे?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 12 February 2020

खेद है कि यह वेद है (15)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (15)

हे मनुष्यों ! जिसने चंचल धरती को दृढ किया, क्रोधित पर्वतों को नियमित किया, विशाल आन्तरिक्ष को बनाया और आकाश को स्थिर किया, वही इंद्र है.
द्वतीय मंडल सूक्त 12-2 
वाह ! वाह !! वाह!!!
गोया गोया राजा इन्दर, मिनी अल्लाह मियाँ भी हुए. धन्य है पंडित जी.
*
हे मनुष्यों ! जो सोम रस निचोडने वाले यजमान, पुरोडाश पकाने वाले व्यक्ति, 
स्तुति रचना करने वाले एवं पढने वाले की रक्षा करता है. हमारा अन्न सोम एवं स्तोत्र जिसे बढ़ाने वाले हैं, हमारे इंद्र हैं. 
द्वतीय मंडल सूक्त 12-14 
पुरोहित जी मादक भंग को कूटने, पीसने, भिगोने और निचोड़ने वाले यजमान (मेज़बान) को और पुरोडाश (पकवान) बनाने वाले बावरची के उत्थान का भी ख़याल रखते हैं. उनके भले में ही सब का भला है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 11 February 2020

खेद है कि यह वेद है (14)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (14)

हे शूर इंद्र ! तुमने अधिक मात्रा में जल बरसाया, उसी को घृत असुर ने रोक लिया था. तुमने उस जल को छुड़ा लिया था. तुमने स्तुत्यों द्वारा उन्नति पाकर स्वयं को मरण रहित मानने वाले दास घृत को नीचे पटक दिया था. 
द्वतीय मंडल सूक्त 11-2 
कुरआन की तरह वेद को भी  हिन्दू समझ नहीं पाते, वह अरबी में है, यह संस्कृत में. ज़रुरत है इन किताबों को लोगों को उनकी भाषा में पढाई जाए और इसे विषयों में अनिवार्य कर दिया जाए जब ताक कि विद्यार्थी इसे पढने से तौबा न करले.
*
हे शूर इंद्र ! तुम बार बार सोमरस पियो. मद (होश) करने वाला सोमरस तुमको प्रसन्न करे. सोम तुम्हारे पेट को भर कर तुम्हारी वृध करे. पेट भरने वाला सोम तुम्हें तिरप्त करे.   द्वतीय मंडल सूक्त 11-11
सोमरस अर्थात दारू हवन की ज़रूरी सामग्री हुवा करती थी, अब पता नहीं है या नहीं हवन के बाद शराब इन पुरोहितों को ऐश का सामान होती.
*
हे इंद्र ! तुम्हारी जो धनयुक्त स्तोता की इच्छा पूरी करती है, वह हमें प्रदान करो. तुम सेवा करने योग्य हो, इस लिए हमारे अतरिक्त वह daxina किसी को न देना. हम पुत्र पौत्रआदि को साथ लेकर यज्ञ में तुम्हारी अधिक स्तुति करेंगे.   
द्वतीय मंडल सूक्त 11-21 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 10 February 2020

खेद है कि यह वेद है (13)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (13)

सुन्दर नयनों वाले, जरा रहित एवं शोभन गति वाले अग्नि, हव्य दाता !  यजमान के शत्रुओं को नष्ट करने के लिए बुलाए गए हैं .
द्वतीय मंडल सूक्त  8-2 
हजारों वर्षों से यजमान का सम्मान देकर हिदू समाज को इन निर्मूल मन्त्रों से लूटा जा रहा है. बाम्हन हिदू समाज के जोक हैं.
*
शत्रु नाशक एवं स्वयं शोभित अग्नि की स्तुति में ऋग वेद के सभी मन्त्रों का प्रयोग किया जाता है. अग्नि समस्त शोभओं को धारण करते हैं. 
द्वतीय मंडल सूक्त  8-5 
मुसलमानों को क़यामत की आग से डराया जाता है और हिदुओ को इसी अग्नि से लुभाया जाता है.

ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 9 February 2020

खेद है कि यह वेद है (12)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (12)

अपने शरीर को पुष्ट करने के समान अग्नि के शरीर का पोषण एवं लकड़ियों को जलाने के इच्छुक अग्नि का प्रकट होना भी बहुत सुन्दर जान पड़ता है. 
रथ में जुता हुवा घोडा मख्खियाँ उड़ाने के किए जिस प्रकार बार बार पूंछ हिलाता है, उसी प्रकार अग्नि अपने लपटों रुपी जीभ को बार बार फेरते है.
द्वतीय मंडल  सूक्त 4-4 
पोंगा पंडित की कल्पना को देखें कि घोड़े ही दुम की हरकत को आग की लपटों से कर रहा है. कल्पना तो खैर कुछ भी की जा सकती है मगर इन पर आधारित हिन्दू आस्था  की कल्पना करें. आस्था जिसके बाद कुछ भी उसके विरुद्ध सोचना पाप जैसा होता है. क्या कल्पना कर सकते हैं कि हिन्दू कभी जय श्री गणेश के गुड गोबर से उबर सकता है ?
**
हे अग्नि ! हमें मनुष्यों एवं देवों की शत्रुता हरा न सके. हमें इन दोनों प्रकार के शत्रुओं  से बचाव. 
द्वतीय मंडल  सूक्त 7-2 
लीजिए पंडित जी जिन देवों की कृपा से माला माल हुवा करते हैं उन को भी अपना शत्रु घोषित कर रहे हैं और अग्नि से सुरक्षा तलब कर रहें हैं ? 
मन्त्र में कुछ तो बोलना है, उल्टा सीधा ही सही.
*
हे ऋत्वजों का भरण करने वाले अग्नि ! तुम हमारे हो. तुम बाँझ गायों बैलों और गर्भिणी गायों द्वारा बुलाए गए हो. 
द्वतीय मंडल  सूक्त 7-2 
कहत वेद सुनो भाई साधो - - - 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 8 February 2020

खेद है कि यह वेद है (11)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (11)

हे अग्नि हम तुम्हारे दिए हुए अन्न अश्व से शोभन सामर्थ्य प्राप्त करके सर्व श्रेष्ट बन जाएगे. 
इस से वह हमारा अनंत धन ब्रह्मण, क्षत्रिय वैश, शूद्रऔर निषाद - 
पांच जातियों के ऊपर प्रकाशित होगा जो दूसरों को प्राप्त होना कठिन है. 
द्वतीय मंडल सूक्त-2 (10)
इस वेद मन्त्र से ज्ञात होता है कि शूद्र वैदिक काल तक  अछूत नहीं माने जाते थे. 
ऐसा लगता है कि मनु विधान ने इनको अछूत बना दिया जो कि आज ताक हिन्दू समाज का कोढ़ बना हुवा है. मगर वेड मन्त्र शूद्रों के कान में पड़ने पर दंड का प्रावधन क्यों था ?
*
हे अग्नि ! जो लोग बुद्धिमान स्तोताओं को उत्तम गौ और शक्ति शाली अन्न दान करते हैं, उन्हें तथा हमें उत्तम स्थान पर ले चलो. हम उत्तम वीरों से युक्त होकर यज्ञ में बहुत से मन्त्र बोलेंगे.
द्वतीय मंडल सूक्त 2-(13)
वेद कुछ भी नहीं पंडितों की ठग विद्या है. बाह्मण उत्तम गाय और तर नवाले की फरमाईस कर रहा है, इसी शर्त पर वह वीरता युक्त मन्त्र जपने की बातें करता है.                          
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
*
हे इंद्र ! हमारे द्वारा दिए गए  पुरोडाशादि हव्य और सोमरस से प्रसन्न होकर हमें गायों और घोड़ों के साथ साथ धन्य भी दो.
इस तरह तुम हमारी दरिद्रता को मिटा कर तुम शोभन मान बन जाओ.
 इंद्र इस सोमरस के करण संतुष्ट होकर हमारी सहायता करेंगे तो हम दस्यु का नाश करके एवं शत्रुओं से छुटकारा पाकर इंद्र द्वारा दिए गए अन्न का उपयोग करेंगे.
सूक्त (53-4)*(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
हे ब्राह्मण भिखारियो ! 
काश कि तुम इंद्र देवता से सहायता की जगह परिश्रमी बनने और मेहनत की रोटी खाने का वरदान मांगते, काश कि तुम इन दंद फंद की बाते न करके ईमान दारी की बातें करते तो आज हिन्दुस्तानी विश्व में प्रथम श्रेणी के इंसान होते. तुम्हारे इन ग्रंथों के कारण हम आज दुन्या की नज़रों में घटिया  तरीन मानव समाज हैं. 
यहाँ तक कि खुद से नज़र मिलाने के लायक भी नहीं बचे.

 हे अग्नि ! तुम यजमानों के पालन करता हो. 
वे तुन्हें अपने घर में प्रकाश मान एवं अनुकूल चेतना वाला पाकर सुशोभित करते हैं. हे उत्तम सेवा वाले ! एवं समस्त हव्यों के स्वामी अग्नि ! 
तुम हजारों, सैकड़ों और दस्यों प्रकार के फल लोगों को देते हो. 
सुक्त -1(8)(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

चापलूसी में करके उदर पोषण करने वालो पुरोहितो ! 
तुम्हारा मानसिक स्तर क्या था ? 
दस्यों, सैकड़ों और हजारों को उल्टा करके गिना रहे हो, पहले हजारों, फिर सैकड़ों उसके बाद दस्यों ? 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 7 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (20)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (20)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -

*हे भरतवंशी ! 
जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है 
और अधर्म की प्रधानता होने लगती है , 
तब मैं अवतार लेता हूँ.
* * भगतों का उद्धार करने, दुखों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ.
>
कहते हैं कि युद्ध के लिए कौरव और पांडु दोनों एक साथ भगवान के पास आए. भगवान शय्या पर सो रहे थे. 
होशियार कौरव शय्या के पैताने बैठे कि भगवान् उठेंगे तो उनकी नज़रें सामने होंगी और हम पर पड़ेंगी, और वरदान मागने का मौक़ा पहले मिलेगा. 
हुवा भी ऐसा, कौरवों ने सैन्य सहायता भगवान् से मांग ली 
औए उन्हें मिल भी गई. 
जब भगवान् ने सर उठा कर देखा तो पीछे पांडु खड़े थे, 
पूछा तुमको क्या चाहिए ? मेरी सेना तो यह झटक ले गए. 
पांडु बोले आप अपने आप को हमें दे दीजिए.
भगवान तुरंत तैयार हो गए , 
पूरे युद्ध काल में मैं तुम्हें पाठ और पट्टी पढ़ाता रहूँगा. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -7 -8 
*भगवान की भग्नत्व तो यह थी कि दोनों भाइयो को चेतावनी देते कि पुर अमन ज़िन्दगी गुज़ारो वरना अपने प्रताप से मैं तुम लोगों में से एक को लंगड़ा कर दूंगा और दूसरे को लूला.  
* और क़ुरआन कहता है - - - 
"कुल्ले नफ़्सिन ज़ाइक़तुलमौत''
हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है, 
और तुम को तुम्हारी पूरी पूरी पादाश क़यामत के रोज़ ही मिलेगी, 
सो जो शख्स दोज़ख से बचा लिया गया और जन्नत में दाखिल किया गया, 
सो पूरा पूरा कामयाब वह हुवा. 
और दुनयावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं, 
सिर्फ धोके का सौदा है।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (185) 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 6 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (19)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (19)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
आज मेरे द्वारा यह प्राचीन योग यानी परमेश्वर के साथ 
अपने संबंध का विज्ञान तुम से कहा जा रहा है, 
क्योंकि तुम मेरे भक्त और मित्र हो, 
अतः तुम इस विज्ञान के दिव्य को समझ सकते हो. 
अर्जुन ने कहा ---
* सूर्य देव विवस्वान आप से पहले हो चुके (ज्येष्ट) हैं 
तो फिर मैं कैसे समझूं कि प्रारंभ में भी आप ने उन्हें उपदेश दिया था. 
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
तुम्हारे और मेरे अनेकानेक जन्म हो चुके हैं. 
मुझे तो उन सब का स्मरण है परन्तु 
हे परन्ताप ! 
तुम्हें इनका स्मरण नहीं रह सकता.
यद्यपि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ 
और यद्यपि मैं समस्त जीवों का स्वामी हूँ , 
तो भी प्रतियेक युग में मैं अपने आदि दिव्य रूप में प्रकट होता रहता हूँ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -3- 4 -5-6 
*
और क़ुरआन कहता है - - -
आधे क़ुरआन में अल्लाह अपनी बड़प्पन की डीगें मारता है कि 
वह हर राज़ को जानता है, 
वह मुसब्बुल असबाब है, 
वह बड़ी ताक़त वाला है, 
हिकमत वाला है. 
डींगें मारते मारते वह यह भी भूल जाता है कि 
वह उल्लू के पट्ठों जैसी बातें कर रहा है. 
वह कहता है,
" कि वह  रात को दिन में दाख़िल कर देता है,
और दिन को रात में. 
वोह जानदार चीज़ों को बेजान से निकाल लेता है 
(जैसे अंडे से चूजा) 
और बे जान चीज़ों को जानदार से निकाल लेता है 
(जैसे परिंदों से अंडा)
"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (27)
वेद और क़ुरआन में बस इतना फ़र्क़ है कि वेद का लेखक साक्षर था और क़ुरआन का लेखक निरक्षर.
बातें दोनों  की स्तर हीन  हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 5 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (18)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (18)

भगवान् कृष्ण ने कहा 
मैंने इस अमर योग्यता का उपदेश सूर्य देव विवस्वान को दिया 
और विवस्वान ने मनुष्यों के पिता मनु को उपदेश दिया 
और मनु ने इसका उपदेश इक्षवाकु को दिया.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -1 -
*
 वाह भगवन् !
तुम तो अल्लामियां से भी चार क़दम आगे निकले. 
वह कहता है कि दिन निकल कर सूरज को प्रकाशित करता है 
और रात आकर सूरज को ढक लेती है. 
रात और दिन एक दूसरे का पीछा करते हैं, 
कभी आपस में मिल नहीं सकते चाहे जितना प्रयास करें. 
आप के तो माशा अल्लाह !!!
"सूर्य देव विवस्वान " शागिरदों में ठहरा,  
सूरज जो ब्रह्माण्ड को गर्मी देता है वह आप से पाठ पढ़ता है ? 
और यह मनु कहीं आदम की तरह जन्नत से टपके हुए आदमियों के बाप तो नहीं ? 
मगर वह अद्भुत थे कि सूर्य देव विवस्वान के सामने बैठ कर आपका ज्ञान समेटते थे. 
इक्षवाकु हाबील क़ाबील आदम पुत्रों का भाई तो नहीं ?
*
और हदीस कहती है - - -
मुहम्मद अपने शागिर्द से कहते हैं, 
क्या तुमको मालूम है कि यह सूरज डूबने के बाद रात को कहाँ जाता है? 
शागिर्द कहता है यह बात अल्लाह जनता है या अल्लाह का रसूल. 
मुहम्मद ने पुलकित होकर बतलाया, 
सूरज पश्चिम में जाकर अल्लाह को सजदा करता 
और फिर वापस जाने की इजाज़त मांगता है, 
वह वापस फिर पूरब से निकलता है. 
जिस दिन अल्लाह की इजाज़त नहीं होगी, वह पश्चिम से निकलेगा.
उस रोज़ क़यामत आ जाएगी.
***
ऐसे पोंगों की बातों को भगवान् और अल्लाह का कथन माना जाता है.
उसके बाद भी हिन्दू और मुसलमान मुझे समझाने की कोशिश करते हैं कि 
इनके ग्रन्थ की बातें समझने के लिए ज्ञान चाहिए. 
कोई है जो भगवान और अल्लाह की इस बकवास को समझे में समर्थ हो?
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 3 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (17)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (17)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
 इस लिए हे भरतवंशियों में श्रेष्ट अर्जुन ! 
प्रारंभ में ही इन्द्रियों को वश में करके, इस पाप के महा प्रतीक (काम) का दमन करो और ज्ञान तथा आत्म साक्षातार के इस विनाश करता का बद्ध करो. 
इस प्रकार हे महाबाहु अर्जुन ! 
अपने आपको भौतिक इन्द्रियों, मन तथा बुद्धि से परे जान कर और मन को सावधान आघ्यात्मिक बुद्धि (कृष्ण भावनामृत) से स्थिर करके आघ्यात्मिक शक्ति द्वारा इस काम रुपी दुर्जेय शत्रु को जीतो.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -3 - श्लोक -41-43 
*काम अर्थात संभोग, 
संभोग स्त्री और पुरुष (Male Female) का ऐसा खेल है जिस को भोगने का आनंद दोनों को बराबर बराबर मिलता है. 
सम+भोग=सम्भोग. बिलकुल उचित नाम है इस क्रिया क्रम का . 
उर्दू में संभोग को मुबाशरत कहते हैं. मुबाशरत शब्द बशर से बना है . 
मुबाशरत यानी बशर की उत्पत्ति. 
कहने का मतलब है कि केवल मुबाशरत से ही इंसान के वजूद का सिलसिला जारी रह सकता है, 
वरना मानव जीव अलविदा. 
मुबाशरत और संभोग के लिए इंसान ही नहीं हैवान भी जान की बाज़ी लगा देते हैं.
धरती का हर जीव मुबाशरत और संभोग के लिए उत्साहित रहता है. 
इस में इतनी लज्ज़त क़ुदरत ने क्यों भर दी ? 
इस लिए कि जीवन का सिलसिला इस धरती पर कायम रहे. 
क़ुदरत दुन्या को जीवित रखना चाहती है. 
भगवान कृष्ण काम यानी मुबाशरत और संभोग को 
"पाप के महा प्रतीक (काम) का दमन" क्यों आदेशित करते हैं ? 
क्या उद्देश, क्या मकसद है उनका ? 
अगर उनके आज्ञा का पालन सारी मानव जाति करने लगे तो 40-50 सालों बाद मानव जाति का The End .
और क़ुरआन कहता है - - - 
क़ुरआन मुबाशरत और संभोग को प्रोत्साहित करता है. क़ुरआनमें ब्रम्हचर्य गुनाह है. एक ही नहीं चार चार निकाह की छूट देता है. बेवा से शादी को अव्वलिल्यत देता है ताकि मुबाशरत और संभोग जारी रहे.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान