Friday 29 July 2016

Soorah Sajda 32

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

************

सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा 

"अलम"
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (१)
मुहम्मदी अल्लाह का छू मंतर.

"ये नाज़िल की हुई किताब है. इस में कुछ शुबहा नहीं कि ये रब्बुल आलमीन की तरफ़ से है."
अल्लाह बने हुए मुहम्मद का नज़ला है जो मुसलामानों को मरीज़ बनाए हुए है. रब्बुल आलमीन जो बे सर पैर की अहमकाना बातें करता है.

"वह आसमान से लेकर ज़मीन तक हर अम्र की तदबीर करता है. - - -
अल्लाह तदबीर यानी जतन  करता है ? पहले आप इसी कुरआनमें  कह चुके हैं कि अल्लाह को जो काम करना होता है, वह बस "कुन" (हो जा) कहता है, बस वह "फयाकून" (हो गया) हो जाता है. " दरोग़ आमोज़ याद दाश्त  न दारद" (झूठे की याद दाश्त कमज़ोर होती है). आप निहायत बे शर्मी से अपने कलाम में तज़ाद (विरोध भास्) रखते हैं. 

फिर हर अम्र उसी के हुज़ूर में पहुँच जाएगा - - ,-
कहाँ स्टाक करता होगा इंसान के सारे कर्मों को?

एक दिन, दिन में जिसकी मिकदार तुम्हारे शुमार के मुवाफिक  एक हज़ार बरस होगी - - -
ये पुडिया छोड़े हुए एकहज़ार बरस से ज्यादह हो गए आपको, और मुसलमान उसे अभी तक खोल नहीं पाए . खुदा करे कि उनको अकले-सलीम आए. वह समझ सकें कि उनको इस्लाम बर्बाद किए हुए है.

वही है जानने वाला पोशीदा और ज़ाहिर चीजों का, ज़बर दस्त रहमत वाला है- - -
मगर इतना नहीं जनता कि अंडे में पोशीदा जान होती है जिसे वह कहता है कि 
"बेजान से जानदार निकलता है "
 उसने जो चीज़ बनाई खूब बनाई - - -
जैसे तूफ़ान, ज़लज़ला, बीमारी आजारी, भूक, क़त्ल व् ग़ारत गरी, आप की पसंदीदा गिज़ा जिसका मज़ा जैशे-मुहम्मद, अल्क़ायदा, और तालिबान आज तक ले रहे हैं.

और इंसान की पैदाइश मिटटी से शुरू की , फिर फिर इसकी नस्ल को खुलासा एख्तेलात(यौन सम्बन्ध) यानी एक बे कद्र पानी से बनाया - - -
मुसलमानी से वह पानी निकलता है, जिससे मुसलमान होते हैं. बेश कीमती पानी (बीज) को बेक़द्र बना दिया जिसके दम पर आपने ११-११ बीवियां रखीं. और लौंडियाँ अलग से.

फिर इसके अअज़ा दुरुत किए और इसमें अपनी रूह फूंकी - - -
अगर अल्लाह अअज़ा दुरुत न करता तो ? मछलियों के अअज़ा दुरुत नहीं हैं तो भी व इकोरियम की ज़ीनत बनी हुई हैं.

और तुम को कान आँख और दिल दी, तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो."
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (३-९)
बस इतना ही आप जानते हैं? हाथ पाँव, मुंह, कान जैसे हज़ारो अअज़ा इंसानी जिस्म में मौजूद है. हाँ इंसानों को भेजा भी दिया है, शायद मुसलामानों को देना भूल गया.

"और अगर देखें तो अजब हाल देखेंगे कि क़यामत के दिन काफ़िर लोग अपने रब के सामने सर झुकाए खड़े होंगे कि ऐ मेरे परवर दिगार! कि मेरी आँखें और कान खुल गए हैं कि हम को फिर ज़मीन पर भेज दीजिए कि हम नेक काम किया करें, हम को पूरा यक़ीन आ गया है- - -
क़यामत का यकीन ही मुसलामानों का सत्या नास किए हुए है.

 और अगर हम को मंज़ूर होता तो हम हर शख्स को यही रास्ता अता फरमाते लेकिन मेरी ये बात मुहक्किक हो चुकी है कि हम जहन्नम को जिन्नात और इंसान दोनों से भर दूंगा."
अल्लाह काफिरों को जवाब  देगा कि उसे अपने फैसले में रद्दो-बदल मंज़ूर नहीं क्यूँकि इसकी तहकीक हो चुकी है?  गौर करें कि अल्लाह इसी एक जुमले में पहले जमा(बहु वचन) में है बाद में वाहिद (एक वचन)हो गया है. ये लग्ज़िशें  कुरआन में आम है जो मुहम्मद के अन पढ़ होने की दलील है.
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (१३)

"बस कि हमारी आयातों पर लोग ईमान लाते हैं कि उनको जब वह आयतें याद दिलाई जाती हैं तो वह सजदे में गिर पड़ते हैं और अपने रब की तस्बीह व् तमहीद करने लगते हैं और वह लोग तकब्बुर नहीं करते"
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (१५)

मुहम्मद अल्लाह बनने की मुहिम में सरगर्म हैं कि चाहते हैं कि ज़माना उनकी बातों पर इतना यक़ीन करने लगे कि उनको सजदा करे. आज भी ऐसे महत्त्व  कांक्षे  देखे जा सकते हैं.      
     
"और इस शख्स से ज़्यादा ज़ालिम कौन  होगा जिसको इसकी रब की आयतें याद दिलाई जाएँ, फिर ये इस से मुँह फेरे. हम ऐसे मुजरिमों से बदला लेंगे."
मुहम्मदी अल्लाह को ये बात ज़ुल्म लगती है कि कोई उसकी बात को न माने. काश कि इस पर कभी कोई मुहम्मद पर ज़ुल्म करता तो वह ज़ुल्म के मअनी समझ जाते.
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (२२)

"और वह लोग कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो ये फैहला ( क़यामत) कब होगा ? आप फरमा दीजिए कि इस फैसले के दिन काफिरों का ईमान लाना नफ़ा बख्श न होगा.और इनको मोहलत भी न मिलेगी"
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (३०)

अय्यारी और झूट का पुलिंदा है ये कुरआन. 





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 25 July 2016

Soorah Luqmaan 31 Q-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

************


सूरह लुकमान ३१-२१ वां परा
(दूसरी किस्त)

"और हमने इंसान को उसके माँ बाप के मुतालिक़ ताकीद किया है कि उसकी माँ ने तकलीफ़ पर तकलीफ़ उठा कर ? और दो बरस में उसका दूध छूटता है कि तू मेरी और अपने माँ बाप का शुक्र गुज़री किया कर. मेरी तरफ ही लौट कार आना है."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ परा आयत(१४)

लगता है मुसंनिफे कुरआन कुछ मदक़ पिए हुए है, 
ज़बान लड़खड़ा रही है, 
जुमले को पूरा भी नहीं कर पा रहा है. 
ऐसे अल्लाह के मुँह पर लगाम लगाई जाए और पैरों में बेडी डाली जाए. कैसी मखलूक है ये कट्टर मुसलामानों की भीड़ 
जो इन बकवासों  को इबादत के लायक समझते हैं.

"और अगर तुझ पर वह दोनों मिलकर ज़ोंर डालें तो कि तू मेरे साथ ऐसी चीज़ को शरीक न कर जिसकी तेरे पास कोई दलील नहीं है तो तू इनका कहना न मानना और दुन्या में इनके साथ खूबी से बसर करना और उसी कि राह पर चलना जो मेरी तरफ रुजू हो, फिर तुम सब को मेरे पास आना है, फिर तुम को जत्लाऊँगा जो कुछ तुम करते हो."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ परा आयत(१५)

मुहममद अल्लाह से कहलाते है कि औलाद माँ बाप की नाफ़रमानी भी करे और इनके साथ खूबी से बसर भी करे. 
है न ये मुत्ज़ाद हिमाक़त की बातें?
मुहम्मद औलादों को बहकते भी हैं और साथ साथ धमकाते भी हैं.
बद क़िस्मत कौम! जागो.
बेटा! अगर कोई अमल राई के दाने के बराबर हो, वह किसी पत्थर के अन्दर हो या आसमान के अन्दर या ज़मीन के अन्दर हो तब भी अल्लाह इसको हाज़िर कर देगा. बेशक अल्लाह बारीक बीन बाखबर है."

मुसलामानों! 
अल्लाह तअला न बारीक बीन है न बाखबर, 
न वह बनिए है कि सब का हिसाब किताब रखता हो, 
वह अगर है तो एक निजाम बना कर कुदरत के हवाले कर दिया है, 
अगर नहीं है तो भी कुदरत का निजाम ही कायनात में लागू है. 
हर अच्छे बुरे का अंजाम मुअय्यन है, 
इस ज़मीन की रफ़्तार अरबों बरस से मुक़र्रर है कि है कि वह एक मिनट के देर के बिना साल में एक बार अपनी धुरी पर अपना चक्कर पूरा करती है. कुदरत गूँगी, बहरी है और अंधी है उससे निपटने के लिए इंसान हर वक़्त मद्दे मुकाबिल है. अगर वह मुकाबिला न केता होता तो अपना वजूद गवां बैठता, आज जानवरों की तरह सर्दी, गर्मी और बरसात की मर झेलता होता, बड़ी बड़ी इमारतों में ए सी में न बैठा होता.
मुसलमान उसका मुकाबिला नहीं करता बल्कि उसको पूजता है, यही वजेह है कि वह ज़वाल पज़ीर है.
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ परा आयत(१६)

"बेटा नमाज़ पढ़ा कर और अच्छे कामो की नसीहत किया कर और बुरे कामों से मना किया कर, और तुझ पर मुसीबत वाक़े हो तो सब्र किया कर, ये उम्मत के कामों में से है. और लोगों से अपना मुँह मत फेर और ज़मीन पर इतरा कर मत चला कर. बेशक अल्लाह तकब्बुर करने वाले, फख्र करने वाले को पसन्द नहीं करता. अपनी रफ़्तार में एतदाल अख्तियार कर और अपनी आवाज़ पस्त कर, बे शक आवाजों में सब से बुरी आव्वाज़ गधों की है"
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ परा आयत(१७-१९)

हकीम लुकमान से कैसी कैसी टुच्ची बातें करवाते हैं . 
यह हकीम लुकमान की मिटटी पिलीद करना हुआ. 
मुहम्मद को इसकी परवाह भी नहीं , 
जो इंसानी समाज का बद ख्वाह रहा हो 
उसको बुद्धि जीव्यों की कद्र कीमत कोई मानी नहीं रखती. 
बहुत से बुद्धि जीवी मुहम्मद के ज़माने में हुवा करते थे जिन्हें उन्हों ने काफ़िर, मुशरिक, मुल्हिद कहकर पामाल कर दिया.
देखिए कि हज़रात कह रहे हैं 
"बे शक आवाजों में सब से बुरी आव्वाज़ गधों की है " 
अल्लाह के बने रसूल अल्लाह की मखलूक पर कैसा तबसरा कर रहे हैं.
हमने उनको चन्द रोज़ का ऐश दी हुए हैं, उनको धेरे धीरे एक सख्त अज़ाब की तरफ ले जाएँगे और- - -''
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ परा आयत(१७-१९)

गौर कीजिए कि  मुहम्मदी अल्लाह अपने बन्दों के साथ कैसी साजिश रचता है . इंसानी दिलो-दिमाग और जन का दुश्मन शिकारी.
"और अल्लाह तबारक तअला बेनयाज़, सब खूबियों वाला है. और जितने दरख़्त ज़मीन भर में हैं, ये सब क़लम बन जाएं तो और ये समंदर है, इसके अलावः सात समंदर और इसमें शामिल हो जाएं तो इस की बातें ख़त्म न होंगी."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ परा आयत(२७)

गोया रसूल का अंदाज़ा है कि इस ज़मीन के सारे दरख़्त अगर कलम बन जाएँ तो समंदर भर की रोशनाई कम पड़ जायगी बल्कि इस का सात गुना भी कम पड़ जाएगी कि अल्लाह की बातें ख़त्म न होंगी. 
मगर बातें कुरानी बकवास न हों, नई नई बातें हो, कारामद बातें होंतो इसको पढने के लिए मुसलसल इंसानी नस्लें तैयार हैं.
"और वही जनता है जो रहेम (गर्भ) में है "
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ परा आयत(३४)
आज अल्लाह का चैलेंज तार तार हो चुका है. 
अगर इस आयत को ही लेकर मुसलमान अपनी आँखें खोलना चाहें तो काफी है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 22 July 2016

Soorah Luqmaan 31 Q-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

********

सूरह लुकमान ३१-२१ वां पारा

(पहली किस्त)


कहते हैं कि हकीम लुक़मान खेतों में, बागों और जंगलों में सैर करने जाते तो पौदों और पेड़ उनको आवाज़ देकर बुलाते कि हकीम साहब मैं फलाँ बीमारी का इलाज हूँ . और यह बात भी मशहूर है कि अल्लाह मियाँ ने उनको पैगम्बरी की पेश कश की थी जिसे उन्हों ने ठुकरा दिया था कि मुझे हिकमत पसन्द है. 
ये तो खैर किंवदंतियाँ हुईं. 
हकीम साहब आला ज़र्फ़ इंसान रहे होंगे और समझ दार भी, साथ साथ मेहनत कश और हलाल खोर भी. बस यूँ समजें कि आज के परिवेश में एक सच्चा डाक्टर जो इन कुकुरमुत्तों की औलादों बाबा, स्वामी, पीर, गुरू और योगी वगैरह से महान होता है, 
हकीम साहब ने लाखों इंसानी ज़िंदगियाँ बचाईं और उनके नुस्खे यूनानी इलाज के बुनियाद बने हुए हैं. पैगम्बर ने लाखों जिंदगियों को मौत के घाट उतरा और उनके मज़हब मुसलसल इंसानियत का खून किए जा रहे हैं.
सूरह में देखें कि मुहम्मदी अल्लाह ने उस अज़ीम हस्ती को उल्लू का पट्ठा बनाए हुए है. मुहम्मद जिस क़दर मूसा ईसा को जानते थे उतना ही लुकमान हकीम को और ठोंक दी एह सूरह उनके नाम की  भी,
" आलम"
मुहम्मदी छू मंतर. मतलब अल्लाह जाने.

"ये आयतें एक पुर हिकमत किताब की हैं जो कि हिदायत और रहमत है, नेक कारों के लिए. जो नमाज़ की पाबन्दी करते हैं और ज़कात अदा करते हैं और वह लोग आखरत का पूरा यकीन रखते हैं.''
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(२-४)

वाजेह हो कि मुहम्मदी अल्लाह की नज़र में नेक कार नमाज़, ज़कात और आखरत पर यकीन रखना ही है जोकि दर असल कोई कार ही नहीं है. 
नेक कार है हक हलाल की रोज़ी, खून पसीना बहा कार कमाई गई रोटी, इनसे परवरिश पाया हुवा परिवार, इस कमाई से की गई मदद. 
अल्लाह के बन्दों के लिए रोज़ी के ज़राए पैदा करना. 
धरती को सजा संवार कार इससे खाद्य निकालना, 
सनअत क़ायम करना.
कुरान अगर पुर हिकमत किताब होती तो मुसलमान हिकमत लगा कर बहुत सी ईजादों के मूजिद होते. 
कोई ईजाद इन नमाजियों ने नहीं की?

"और बअज़ा आदमी ऐसा है जो उन बातों का खरीदार बनता है जो  गाफ़िल करने वाली हो, ताकि अल्लाह की राह से बेसमझे बूझे गुमराह करे और इसकी हंसी उड़ा दे, ऐसे लोगों को ज़िल्लत का अज़ाब है. और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो वह तकब्बुर करता हुआ मुँह फेर लेता है, जैसे इसने सुना ही न हो, जैसे इसके कानों में नक्श हो."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(६-७)

कैसा मेराकी इंसान था वह जो अल्लाह का रसूल बना हुआ था? 
जो राह चलते राही की राहें रोक रोक क़र परलय आने की बातें करता था. ज़रा आज भी ऐसे दीवाने कि कल्पना कीजिए कि 
कोई पैदा हो जाए तो क्या हो? 
वह खुद लोगों को गफ़लत बेचने में कामयाब हो गया, 
ऐसी गफ़लत कि सदियाँ गुज़र गईं, लोग गाफ़िल हुए पड़े है, पूरी की पूरी कौम गफ़लत के नशे में चूर है.

"अल्लाह ने आसमान को (बहैसियत एक छत) बगैर खम्बे के कायम किया, तुम इसको देख रहे हो और ज़मीन में पहाड़ डाल रक्खे हैं ताकि वह तुम को लेकर डावां डोल न हो.और इस में हर क़िस्म के जानवर फैलाए और हम ने आसमान से पानी बरसाया और फिर हमने ज़मीन पर हर तरह के उम्दा एक्साम उगाए."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१०)

अफ्रीका के क़बीलों में जहाँ अभी तालीम नहीं पहुँची ऐसी आयतों पर अक़ीदा बांधे  हुए हैं जब कि मुसलमान योरोप में रहकर भी नहीं बदले उनका अकीदा भी यही है कि अल्लाह ने आसमानों की छतें बगैर खम्बों के बनाए हुए है और ज़मीन में पहाड़ों के खूँटे गाड़ कार हमें महफूज़ किए हुए है.
मुहम्मद अल्लाह की बखान कभी खुद करते हैं 
और कभी खुद अल्लाह बन कर बोलने लगते हैं. 
गौर करें कि कहते हैं "अल्लाह ने आसमान को - - - 
" फिर कहते हैं " हम ने आसमान से पानी बरसाया- - - "
इसे मुसलमान अल्लाह का कलाम मानते हैं, 
गोया मुहम्मद को जुज़वी तौर पर अल्लाह मानते हैं. 
ओलिमा इस पर गढ़ी हुई दलील पेश करते हैं कि 
अल्लाह कभी खुद अपने मुँह से बात करता है तो कभी मुहम्मद के मुँह से. ओलिमा सारी हकीक़त जानते हैं और ये भी जानते हैं कि इनको इनका अल्लाह ग़ारत नहीं कर  सकता, 
क्यूंकि अल्लाह वह भी मुहम्मदी अल्लाह हवाई बुत है 
जैसे मुशरिकों के माटी के बुत होते हैं.
देखिए कि खुद साख्ता अल्लाह के रसूल हकीम लुक़मान से कोई हिकमत की बातें नहीं कराते हैं बल्कि अपने दीन इस्लाम का प्रचार कराते हैं - - -

"और हमने लुक़मान को दानिश मंदी अता फ़रमाई कि अल्लाह का  शुक्र करते रहो, कि जो शुक्र करता है, अपने ज़ाती नफ़ा नुक़सान के लिए शुक्र करता है. और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़ खूबियों वाला है."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१२)
"और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़ खूबियों वाला है."बन्दा नाशुक्री करता रहे और अल्लाह खूबियाँ बटोरता रहे? है न मुहम्मद की उम्मियत का असर.

"और जब लुक़मान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा कि बेटा! अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराना. बे शक शिर्क करना बहुत बड़ा ज़ुल्म है."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१३)

क्या बात है नाज़िम ए कायनात कान लगाए बैठा हकीम लुक़मान की नसीहत सुन रहा था जो वह अपने बेटे को दे रहे थे. फिर हजारों साल बाद जिब्रील अलैहिस्सलाम को इसकी खबर देकर कहा कि इस  वाकिए को मेरे प्यारे नबी के कानों में फुसक आओ ताकि वह अपनी उम्मत के लिए तिलावत का सामान पैदा कार सकें,
मुसलमानों थोड़ी देर के लिए दिमाग़ की खिड़की खोलो. अपने रसूल की चालबाज़ी को समझो, क्या हकीम लुक़मान अपने बेटे को कोई हकीमी नुस्खा दे रहे हैं, जो कि उनकी हिकमत के मुताबिक अल्लाह को गवाही देनी चाहिए? क़ुरआनी अल्लाह निरा झूठा है.

ज़ुल्म वही इंसानी अमल है जिसके करने से किसी को जानी नुक़सान हो रहा हो, 
या फिर ज़ेहनी नुक़सान के इमकान हों, 
या तो माली नुकसान पहुँचाना हो. 
शिर्क करने से कौन घायल होता है? 
किसको ज़ेहनी अज़ीयत होती है या 
फिर किसकी जेब कटती है? 
आम मुसलमान कुफ्र और शिर्क को ज़ुल्म मानता है 
क्यूंकि कुरआन बार बार इस बात को दोहराता है. 
कुरान ने अलफ़ाज़ के मानी बदल रक्खे हैं.





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah Luqmaan 31 Q-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

********

सूरह लुकमान ३१-२१ वां पारा

(पहली किस्त)


कहते हैं कि हकीम लुक़मान खेतों में, बागों और जंगलों में सैर करने जाते तो पौदों और पेड़ उनको आवाज़ देकर बुलाते कि हकीम साहब मैं फलाँ बीमारी का इलाज हूँ . और यह बात भी मशहूर है कि अल्लाह मियाँ ने उनको पैगम्बरी की पेश कश की थी जिसे उन्हों ने ठुकरा दिया था कि मुझे हिकमत पसन्द है. 
ये तो खैर किंवदंतियाँ हुईं. 
हकीम साहब आला ज़र्फ़ इंसान रहे होंगे और समझ दार भी, साथ साथ मेहनत कश और हलाल खोर भी. बस यूँ समजें कि आज के परिवेश में एक सच्चा डाक्टर जो इन कुकुरमुत्तों की औलादों बाबा, स्वामी, पीर, गुरू और योगी वगैरह से महान होता है, 
हकीम साहब ने लाखों इंसानी ज़िंदगियाँ बचाईं और उनके नुस्खे यूनानी इलाज के बुनियाद बने हुए हैं. पैगम्बर ने लाखों जिंदगियों को मौत के घाट उतरा और उनके मज़हब मुसलसल इंसानियत का खून किए जा रहे हैं.
सूरह में देखें कि मुहम्मदी अल्लाह ने उस अज़ीम हस्ती को उल्लू का पट्ठा बनाए हुए है. मुहम्मद जिस क़दर मूसा ईसा को जानते थे उतना ही लुकमान हकीम को और ठोंक दी एह सूरह उनके नाम की  भी,
" आलम"
मुहम्मदी छू मंतर. मतलब अल्लाह जाने.

"ये आयतें एक पुर हिकमत किताब की हैं जो कि हिदायत और रहमत है, नेक कारों के लिए. जो नमाज़ की पाबन्दी करते हैं और ज़कात अदा करते हैं और वह लोग आखरत का पूरा यकीन रखते हैं.''
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(२-४)

वाजेह हो कि मुहम्मदी अल्लाह की नज़र में नेक कार नमाज़, ज़कात और आखरत पर यकीन रखना ही है जोकि दर असल कोई कार ही नहीं है. 
नेक कार है हक हलाल की रोज़ी, खून पसीना बहा कार कमाई गई रोटी, इनसे परवरिश पाया हुवा परिवार, इस कमाई से की गई मदद. 
अल्लाह के बन्दों के लिए रोज़ी के ज़राए पैदा करना. 
धरती को सजा संवार कार इससे खाद्य निकालना, 
सनअत क़ायम करना.
कुरान अगर पुर हिकमत किताब होती तो मुसलमान हिकमत लगा कर बहुत सी ईजादों के मूजिद होते. 
कोई ईजाद इन नमाजियों ने नहीं की?

"और बअज़ा आदमी ऐसा है जो उन बातों का खरीदार बनता है जो  गाफ़िल करने वाली हो, ताकि अल्लाह की राह से बेसमझे बूझे गुमराह करे और इसकी हंसी उड़ा दे, ऐसे लोगों को ज़िल्लत का अज़ाब है. और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो वह तकब्बुर करता हुआ मुँह फेर लेता है, जैसे इसने सुना ही न हो, जैसे इसके कानों में नक्श हो."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(६-७)

कैसा मेराकी इंसान था वह जो अल्लाह का रसूल बना हुआ था? 
जो राह चलते राही की राहें रोक रोक क़र परलय आने की बातें करता था. ज़रा आज भी ऐसे दीवाने कि कल्पना कीजिए कि 
कोई पैदा हो जाए तो क्या हो? 
वह खुद लोगों को गफ़लत बेचने में कामयाब हो गया, 
ऐसी गफ़लत कि सदियाँ गुज़र गईं, लोग गाफ़िल हुए पड़े है, पूरी की पूरी कौम गफ़लत के नशे में चूर है.

"अल्लाह ने आसमान को (बहैसियत एक छत) बगैर खम्बे के कायम किया, तुम इसको देख रहे हो और ज़मीन में पहाड़ डाल रक्खे हैं ताकि वह तुम को लेकर डावां डोल न हो.और इस में हर क़िस्म के जानवर फैलाए और हम ने आसमान से पानी बरसाया और फिर हमने ज़मीन पर हर तरह के उम्दा एक्साम उगाए."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१०)

अफ्रीका के क़बीलों में जहाँ अभी तालीम नहीं पहुँची ऐसी आयतों पर अक़ीदा बांधे  हुए हैं जब कि मुसलमान योरोप में रहकर भी नहीं बदले उनका अकीदा भी यही है कि अल्लाह ने आसमानों की छतें बगैर खम्बों के बनाए हुए है और ज़मीन में पहाड़ों के खूँटे गाड़ कार हमें महफूज़ किए हुए है.
मुहम्मद अल्लाह की बखान कभी खुद करते हैं 
और कभी खुद अल्लाह बन कर बोलने लगते हैं. 
गौर करें कि कहते हैं "अल्लाह ने आसमान को - - - 
" फिर कहते हैं " हम ने आसमान से पानी बरसाया- - - "
इसे मुसलमान अल्लाह का कलाम मानते हैं, 
गोया मुहम्मद को जुज़वी तौर पर अल्लाह मानते हैं. 
ओलिमा इस पर गढ़ी हुई दलील पेश करते हैं कि 
अल्लाह कभी खुद अपने मुँह से बात करता है तो कभी मुहम्मद के मुँह से. ओलिमा सारी हकीक़त जानते हैं और ये भी जानते हैं कि इनको इनका अल्लाह ग़ारत नहीं कर  सकता, 
क्यूंकि अल्लाह वह भी मुहम्मदी अल्लाह हवाई बुत है 
जैसे मुशरिकों के माटी के बुत होते हैं.
देखिए कि खुद साख्ता अल्लाह के रसूल हकीम लुक़मान से कोई हिकमत की बातें नहीं कराते हैं बल्कि अपने दीन इस्लाम का प्रचार कराते हैं - - -

"और हमने लुक़मान को दानिश मंदी अता फ़रमाई कि अल्लाह का  शुक्र करते रहो, कि जो शुक्र करता है, अपने ज़ाती नफ़ा नुक़सान के लिए शुक्र करता है. और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़ खूबियों वाला है."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१२)
"और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़ खूबियों वाला है."बन्दा नाशुक्री करता रहे और अल्लाह खूबियाँ बटोरता रहे? है न मुहम्मद की उम्मियत का असर.

"और जब लुक़मान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा कि बेटा! अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराना. बे शक शिर्क करना बहुत बड़ा ज़ुल्म है."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१३)

क्या बात है नाज़िम ए कायनात कान लगाए बैठा हकीम लुक़मान की नसीहत सुन रहा था जो वह अपने बेटे को दे रहे थे. फिर हजारों साल बाद जिब्रील अलैहिस्सलाम को इसकी खबर देकर कहा कि इस  वाकिए को मेरे प्यारे नबी के कानों में फुसक आओ ताकि वह अपनी उम्मत के लिए तिलावत का सामान पैदा कार सकें,
मुसलमानों थोड़ी देर के लिए दिमाग़ की खिड़की खोलो. अपने रसूल की चालबाज़ी को समझो, क्या हकीम लुक़मान अपने बेटे को कोई हकीमी नुस्खा दे रहे हैं, जो कि उनकी हिकमत के मुताबिक अल्लाह को गवाही देनी चाहिए? क़ुरआनी अल्लाह निरा झूठा है.

ज़ुल्म वही इंसानी अमल है जिसके करने से किसी को जानी नुक़सान हो रहा हो, 
या फिर ज़ेहनी नुक़सान के इमकान हों, 
या तो माली नुकसान पहुँचाना हो. 
शिर्क करने से कौन घायल होता है? 
किसको ज़ेहनी अज़ीयत होती है या 
फिर किसकी जेब कटती है? 
आम मुसलमान कुफ्र और शिर्क को ज़ुल्म मानता है 
क्यूंकि कुरआन बार बार इस बात को दोहराता है. 
कुरान ने अलफ़ाज़ के मानी बदल रक्खे हैं.





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 18 July 2016

Soorah Rome 30-Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****

सूरतुल रोम ३०
(दूसरी क़िस्त) 


"और इसी निशानियों  में से ये है कि वह तुम्हें बिजली दिखता है जिस से डर भी होता है और उम्मीद भी होती है और वही आसमान से पानी बरसता है, फिर उसी से ज़मीन को उस मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है. इसमें इन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो अक्ल रखते हैं. और इसी निशानियों में से ये है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं. फिर जब तुमको पुकार कर ज़मीन से बुलावेगा तो  तुम यक बरगी निकल पड़ोगे और जितने आसमान और ज़मीन हैं, सब उसी के ताबे हैं. और वही रोज़े अव्वल पैदा करता है और वही दोबारा पैदा करेगा, और ये इसके नजदीक ज्यादा आसन है. "
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२४-२७)

मुसलमानों अल्लाह को बाद में जानो, पहले निज़ामे कुदरत को समझो. पेड़ पौदों की तरह क्या इंसान ज़मीन से उगने शुरू हो जाएँगे? ज़मीन न मुर्दा होती है न जिंदा, पानी ही ज़िदगी है. बेहतर ये होता कि अल्लाह एक बार इंसान को पानी की बूँदें की तरह योम हश्र बरसता. ये थोडा छोटा झूट होता.

"अल्लाह तअला तुमसे एक मज्मूने-अजीब, तुम्हारे ही हालात में बयान फ़रमाते हैं, क्या तुम्हारे गुलामों में कोई शख्स तुम्हारा उस माल में जो हमने तुम को दिया है, शरीक है कि तुम और वह इस में बराबर के हों, जिनका तुम ऐसा ख्याल करते हो जैसा अपने आपस में ख़याल किया करते हो? हम इसी तरह समझदार के लिए दलायल साफ़ साफ़ बयान करते हैं "
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२८)

क्या अल्लाह की इस ना मुकम्मल बकवास में कोई दम है, अलबत्ता ये अजीबो गरीब ज़रूर है.

"सो जिसको खुदा गुमराह करे उसको कौन रह पर लावे"
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२९)

ये आयत कुरआन में मुहम्मद का तकिया कलाम है जो बार बार आती है, नतीजतन मुसलमान इसे दोहराते रहते हैं, बगैर इस पर गौर किए कि आयत कह क्या रही है, कि अल्लाह शैतान से भी बड़ा शैतान है कि सीधे सादे अपने बन्दों को ऐसा गुमराह करता है कि उसका राह पर आना मुमकिन ही नहीं है.

"जिन लोगों ने अपने दीन के टुकड़े टुकड़े कर रखे है और बहुत से गिरोह हो गए हैं, हर गिरोह अपने तरीक़े पर नाज़ाँ है जो उसके पास है  - - -
क्या उनको मालूम है कि अल्लाह तअला जिसको चाहे ज़्यादः रोज़ी दे देता है जिसको चाहे कम देता है. इसमें निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं.- - -
अल्लाह ही वह है जिसने तुम को पैदा किया, फिर रिजक दिया फिर मौत देता है, फिर तुमको जिलाएगा. क्या तुम्हारे शरीकों में कोई ऐसा है?- - -
खुश्की और तरी में लोगों के आमाल के सबब बलाएँ फ़ैल रही हैं ताकि अल्लाह तअला उनके बअज़ आमाल का मज़ा उनको चखा दे ताकि वह बअज़ आएँ,
वाकई अल्लाह तअला काफिरों को पसंद नहीं करता
और हमने आप से पहले बहुत से पैगम्बर इनके कौमों के पास भेजे और वह उनके पास दलायल लेकर आए सो हमने उन लोगों से इन्तेकाम लिया जो मुर्तकाब जरायम हुए थे और अहले ईमान को ग़ालिब करना हमारा ज़िम्मा था.
सो आप मुर्दों को नहीं सुना सकते और बहरों को आवाज़ नहीं सुना सकते जब कि पीठ फेर कर चल दें, आप अंधों को उनकी बेराही से राह पर नहीं ला सकते, आप तो बस उनको सुना सकते हैं जो हमारी आयातों पर यकीन रखते हैं, बस वह मानते हैं.
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (३०-५७)

"और हमने इस कुरआन में तरह तरह के उम्दा मज़ामीन बयान किए हैं. और अगर आप उनके पास कोई निशानी ले आवें तब भी ये काफ़िर जो हैं, यही कहेंगे कि तुम सब निरा अहले बातिल हो. जो लोग यकीन नहीं करते अल्लाह तअला उनके दिलों में यूँ ही मुहर लगा देता है. तो आप सब्र कीजिए, बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है, और ये बद यकीन लोग आपको बेबर्दाश्त न कर पाएँगे."
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (६०-७५)

सिडी सौदाइयों की तरह क्या क्या बक रहे हो, अल्लाह मियां?
ये कौन लोग निरे अहले बातिल हैं? बद यकीन हैं? ये कौन लोग है जो आपको बेबर्दाश्त नहीं कर परहे है? 
ये बेबर्दाश्त क्या होता है. 



   

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 15 July 2016

Soorah e rome 30-q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

**********
सूरतुल रोम ३०

पहली किस्त 

इस सूरह का नाम रोम इस लिए पड़ा कि फारस (ईरान) ने मुहम्मद काल में रोम को फतह कर लिया था, जिसके बारे में क़ुरआनी अल्लाह ने अपने कुरआन में पेशीन गोई की थी कि फारस का यह गलबा तीन से नौ सालों के अन्दर ख़त्म हो जाएगा और रोम फिरसे आज़ाद हो जाएगा, 
बस कि ऐसा हो भी गया. 
दर अस्ल बात ये थी कि रोमी ईसाई थे जो कि मुसलामानों के किताबी भाई हुए और फ़ारस वाले उस वक़्त काफ़िर थे, उस वक़्त कुफ्फर मक्का ने इस्लामियों को तअने दिए थे कि हम अहले कुफ्र, अहले किताब पर ग़ालिब हो गए. जब रोम फ़ारस के गलबे से नजात पा गए तो ये सूरह मुहम्मदी अल्लाह को सूझी.
इस वाक़िए के सिवा इस सूरह में और कुछ नहीं है. 
मुहम्मदी अल्लाह का शुक्र है कि इस सूरह में इब्राहीम, नूह, मूसा और ईसा अलैहिस-सलामान की दास्तानें नहीं हैं. 
सिर्फ क़यामत की धुरी पर सूरह घूम रही है. 
हर आलमी और फितरी सचाइयों को कुरआन अपनी ईजाद बतलाता है, जिस पर मुसलमानों का ईमान है . 
एक साहब ने मुझे टटोलने के लिए पूछा कि आप नमाज़ क्यूँ नहीं पढ़ते? 
मैं ने जवाब दिया कि इंसानियत ही मेरा दीन है. 
कहने लगे कि इंसानियत सिखलाई किसने/ उनका मतलब था " मुहम्मद" उन पर तरस खाते हुए मैं खामोश रहा, 
बात तो ज़ेहन में आई गिना दूं ईसा, गौतम महावीर और सुकरात बुकरात के नाम मगर मसलहतन चुप रहा.
सूरह रोम में भी सूरह क़सस की तरह मुहम्मद की झक नहीं है, इस सूरह का मुसन्निफ़ कोई और है और साहिबे क़लम है. इसने सलीके के साथ कुरआन सार पेश किया है

मुलाहिजा हो - - - 
"अहले रोम करीब के मौके पर मगलूब हो गए और वह अपने मगलूब होने के बाद अनक़रीब तीन साल से नौ साल के अन्दर ग़ालिब आ जौएँगे. पहले भी अख्तियार अल्लाह का था और पीछे भी और उस वक़्त मुसलमान अल्लाह की इस इमदाद से खुश होंगे."
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२-४)

अब ये कोई तिलावत की चीज़ या बात है?
"ये लोग ज़मीं पर चलते फिरते नहीं, जिसमें देखते भालते कि जो लोग इनसे पहले हो गुज़रे हैं, उन पर अंजाम क्या हुवा है? वह उन से कूवत में भी बढे चढ़े हुए थे और उन्हों ने ज़मीन को बोया जोता था और जितना इन्हों ने इस को आबाद कर रखा है, उससे ज़्यादा उन्हों ने इसको आबाद कर रखा था और उनके पास भी उनके पैगम्बर मुअज्ज़े लेकर आए थे.
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (९)

मुहम्मद माजी के लोगों की मौतें अज़ाबे इलाही का अंजाम कहते हैं. 
अगर उन पर अज़ाब न होता तो शायद वह ज़िदा होते. 
आज के लोगों को समझा रहे हैं कि उनकी बात मानो जो कि अल्लाह की मर्ज़ी है, तो अज़ाब में नहीं पड़ोगे. इन ओछी बातों से लोग गुमराह हुए, 
मगर आज के लोग इन बातों में सवाब ढूढ़ते हैं, 
तो ये अफ़सोस का मुक़ाम है 
"और जब रोज़े क़यामत कायम होगी, उस रोज़ मुजरिम लोग हैरत ज़दा हो जाएँगे और उनके शरीकों में कोई उनका सिफारशी न होगा और ये लोग अपने शरीकों से मुनकिर हो जाएगे. और जिस रोज़ क़यामत कायम होगी उस रोज़ आदमी जुदा जुदा हो जाएँगे यानी जो लोग ईमान लाए थे और अच्छे काम किए थे, वह तो बाग़ में मसरूर होंगे और जिन्हों ने कुफ्र किया था और हमारी आयातों को और आखरत के पेश आने को झुटलाया था, वह अजाब में होंगे."
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (१२-१६)
कयामत तो आप के मरते ही आप के खानदान पर आ गई थी, 
मुहम्मद साहब!
आप कि छोटी बेगम आयशा और आप के दामाद अली में मशहूर जंग ए जमल हुई तो एक लाख ताजः ताजः मुसलमान हुए लोग मारे गए थे. 
आप के सभी खलीफा और सहाबा ए किराम आपसी रंजिश में एक दूसरे का क़त्ल कर रहे थे . बात कर्बला तक पहुंची तो आपका खानदान एक एक क़तरह पानी के लिए तड़प तड़प कर मरे. 
आपकी झूटी रिसालत के बाईस आपके खानदान का बच्चा बच्चा भूक और प्यास के साथ मारा गया. 
काश कि इस अंजाम तक आप ज़िन्दा होते और सच्चाइयों के आगे तौबा करते और सदाक़त का पैर पकड़ कर रहेम की भीक तलब करते. 
याद करते अपने जेहादी नअरे को कि खैबर में क़त्ले आम करने से पहले जो आपने दिया था 
"खैबर बर्बाद हुवा! क्यूं कि हम जब किसी कौम पर नाज़िल होते हैं तो उसकी बर्बादी का सामान होता है."
क़यामत पूरे अरब और अजम में आप के झूट की से फ़ैल चुकी है, 
आपसी झगड़ों से मुसलामानों पर आग ज्यादह बरसी, 
गैर मुस्लिम भी जंगी चपेट में आए मगर ख़सारे में रहे वह जिन्हों ने आप की ज़हरीली पैगम्बरी को तस्लीम किया. 
आपके बोए हुए पैगम्बरी के ज़हर बीज को दुन्या की २०% आबादी काट रही है.मुसलमानों को आप के इस्लाम ने पस्मान्दः कौम बना दिया है. 
किसी कौम की आलमी ज़िल्लत से बढ़ कर, 
दूसरी क़यामत और ज़िल्लत क्या होगी. 
मुहम्मदी अल्लाह का कुदरत से मुतालिक़ जानकारी मुलाहिजा हो - - -

"वह जानदार चीजों को बेजान को निकाल लेता है ( यानि मुर्गी से अण्डा?) और बेजान चीजों से जानदार चीजों ( यानि अंडे से मुर्गी?) से निकल लेता है और ज़मीन को इसके मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है और इसी से तुम लोग निकलते हो."
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (१९)

यह आयत कुरआन में बार बार आती है जिसको कि कोई आम मुसलमान कुरआन का नमूना बना कर पेश नहीं करता, ओलिमा की तो छोड़िए कि इनका आल्लाह परिंदों के अण्डों को बेजान जानता और मानता है. 
कोई जाहिल कहलाना पसँद नहीं करता. 
मुहम्मद बार बार अपने इस वैज्ञानिक ज्ञान को दोहराते रहे, 
सहाबाए इकराम और उनके खलीफाओं ने भी कभी न टोका कि 
या रसूल लिल्लाह अंडे जानदार होते हैं. 
इस बात से ये साबित है कि उनके गिर्द सब के सब जाहिल और उम्मी हुआ करते थे.

यही जेहालत इस्लाम मुसलामानों को बाँट रही है, 
"और उसी की निशानियों में ये है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियाँ बनाईं ताकि तुमको उनके पास आराम मिले और तुम मिया बीवी में मुहब्बत और हमदर्दी पैदा की. इसमें उन लोगों के लिए निशामियाँ हैं जो फिक्र से काम लेते हैं. और उसी की निशानियों में से ज़मीन और आसमान का बनाना है. और तुम्हारे लबो लहजे और नुक़तों का अलग अलग होना है. इसी में दानिश मंदी के लिए निशानियाँ हैं."
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२१-२२)

मुहम्मदी अल्लाह कहता है तुमहारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियां बनाईं? कुछ तर्जुमान ने लिखा कि तुम्हारे लिए तुम्हारी हम जिन्स बीवियां बनाईं. दोनों बातें एक ही है. 
मुहम्मदी अल्लाह चूँकि उम्मी है वह कहना चाहता है तुम्हारे लिए जिन्स ए मुख़ालिफ़ बीवियां बनाईं और उसमे लुत्फ़ डालकर जोड़ों में मुहब्बत पैदा की. मुहम्मद की ये लग्ज़िसें चीख चीख कर मुसलमानों को आगाह करती हैं कि कुरआन और कुछ भी नहीं, सिर्फ़ अनपढ़ मुहम्मद के कलाम के.
फिर सवाल ये उठता है कि कुदरत की इन बातों को कौन नहीं जनता था और कौन नहीं मानता था, 
उस वक़्त अरब की तारीख़ में बड़े बड़े दानिश्वर हुवा करते थे. 
इंसान तो इंसान, हैवान भी अपने जोड़े के लिए जान लेलेते हैं और जान दे देते हैं. तालिबानी जेहालत समझती है कि इन बातों को उनके नबी ने जानकर हमें बतलाया. 
जाहिलों की जमाअत समझती है कि इंसानों का रोज़ अव्वल रसूल की आमद के बाद से शुरू होता है और कुदरत के तमाम इन्केशाफात उनके रसूल ने किया है. उनको सुकरात बुकरात,गौतम, ईसा, कन्फ्यूसेस, ज़ेन, ज़र्तुर्ष्ट और महावीर कोई नज़र ही नहीं आता, जो मुहम्मद से पहले हो चुके है, अलावा लाल बुझक्कड़ के.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 12 July 2016

sOORAH aNKABOOT 29-Q3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
******


सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा
(तीसरी किस्त)

मुसलामानों ! 
तुम्हारे रसूल फरमाते हैं - - -
"दौरान नमाज़ जिस पाद में आवाज़ कान तक आ जाए या बदबू नाक में पहुँच जाए तो वजू टूट जाता है."
वजू ? अर्थात पानी से मुँह, हाथ और पैर को धो कर अपने बदन को शुद्ध करना वजू बनाना होता है जोकि पाद निष्काषित होने पर टूट जाता है.. यानी कान या नाक तक पाद की पहुँच ना हो तो वजू बना रहता है. 
कभी कभी नमाज़ी दोपहर को वजू बनाते हैं तो रात तक वह बना रहता है. इस दौरान पाद निष्काषित होने से वह बचते रहते हैं ताकि वजू बना रहे . पाद निष्कासन एक प्राकृतिक परिक्रिया है जिसे रोके रहना पेट को विकार अर्पित करना है
कहते हैं कि - - - 
"इस्तेंजा करें तो ताक़ बार यानी ३,५, ७, ९ - - - अर्थात जुफ्त बार४,६,८ वगैरा न हो"
इस्तेजा? पेशाब करने के बाद लिंग मुख को मिटटी के ढेले से पोछना ताकि वजू बना रहे. कपडे को पेशाब नापाक न कर सके .
ऐसी मूर्खता पूर्ण बातों में आम मुसलमान मुब्तिला रहता है जो उसकी तरक्की में बाधा है

"और आप इस किताब से पहले ना कोई किताब पढ़े हुए थे और ना कोई किताब अपने हाथों से लिख सकते थे कि ऐसी हालत में ये हक नाशिनास कुछ शुबहा निकालते, बल्कि ये किताब खुद बहुत सी वाजः दलीलें हैं. उन लोगों के ज़ेहन में ये इल्म अता हुआ है कि हमारी आयतों से बस जिद्दी लोग इंकार किए जाते हैं और ये लोग यूँ कहते हैं कि इन पर रब कि तरफ़ से निशानियाँ क्यूं नहीं नाज़िल हुईं. आप कह दीजिए कि वह निशानियाँ तो अल्लाह के क़ब्ज़े में हैं और मैं तो साफ़ साफ़ एक डराने वाला हूँ"
सूरह अनकबूत -२९ २०+२१ वाँ पारा आयत(४८-५०)

इस वावत आप थोडा सा सच बोले वह भी झूट के साथ, 
जिसे जिद्दी नहीं साहबे इल्म ओ फ़िक्र नकारते रहे. 
दो निशानियाँ आप दिखला चुके हैं 
1- शक्कुल क़मर और 
२- मेराज, 
जिन्हें आप भूल रहे हैं कि 
ख़लीफ़ा  उमर ने आप को वह फटकार लगाई कि निशानियाँ और मुआजज़े आप को भूलना ही पड़ा, मगर आपके चमचों ने उसको कुरआन में शामिल ही कर दिया. आप के बाद आपके मुसाहिबों ने तो सैकड़ों निशानियाँ आपके लिए गढ़ लिए .
''निशानियाँ तो अल्लाह के क़ब्ज़े में हैं'' 
और अल्लाह आप के क़ब्ज़े में था.

''क्या इन लोगों को ये बात काफ़ी नहीं क़ि हमने आप पर ये किताब नाज़िल फ़रमाई जो उनको सुनाई जाती रहती है ईमान ले आने वाले लोगों को बड़ी रहमत और नसीहत है. आप ये कह दीजिए अल्लाह मेरे और तुम्हारे दर्मियान गवाही बस है. इसको सब चीजों की ख़बर है जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है. जो लोग झूटी बातों पर यक़ीन रखते हैं और अल्लाह के मुनकिर हैं तो वह लोग ज़ियाँ कर रहे हैं. और ये लोग आप से अज़ाब का तक़ाज़ा करते हैं. और अगर मीयाद मुअय्यन न होती तो इन पर अज़ाब आ चुका होता. वह अज़ाब इनपर अचानक आ पहुंचेगा. और इनको ख़बर न होगी. ये लोग आप से अज़ाब का तक़ाज़ा करते हैं और इसमें शक नहीं कि जहन्नम इन काफ़िरों को घेर लेगा. जिस दिन क़ि इनपर अज़ाब उनके ऊपर से और उनके नीचे से घेर लेगा. और अल्लाह तअला फ़रमाएगा कि जो कुछ करते रहे हो अब चक्खो.
ऐ मेरे ईमान दार बन्दों! 
मेरी ज़मीन फ़िराख है सो ख़ालिस मेरी इबादत करो. हर शख्स को मौत का मज़ा चखना है. फिर तुम सब को हमारे पास आना है''.और बहुत से जानवर ऐसे हैं जो अपनी गिज़ा उठा कर नहीं रखते, अल्लाह ही उनको रोज़ी भेजता है और तुमको भी. और वह सब कुछ सुनता है. - - बेशक अल्लाह सब चीज़ के हाल से वाकिफ है. आप उनसे दरयाफ़त करिए वह कौन है जिसने आसमान से पानी बरसाया? 
तो वह लोग यही कहेंगे की अल्लाह है. 
आप कहिए कि अलहम्दो लिल्लाह, बल्कि उन में अक्सर समझते भी नहीं. और यह दुनयावी ज़िन्दगी बजुज़ लह्व-लआब के और कुछ भी नहीं और असल ज़िन्दगी आलमे आख़रत है. अगर इनको इसका इल्म होता तो ऐसा न करते. फिर जब ये लोग कश्ती पर सवार होते हैं तो ख़ालिस एत्काद करके अल्लाह को ही पुकारते हैं, फिर जब नजात देकर खुश्की की तरफ ले आता है तो वह फ़ौरन ही शिर्क करने लगते हैं.
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४६-69)

मुसलामानों! 
अगर आज कोई शनासा आपके पास आए और कहे कि 
"अल्लाह ने मुझे अपना रसूल चुन लिया है" 
और इस क़िस्म की बातें करने लगे तो आप का रद्दे-अमल क्या होगा? 
जो भी हो मगर इतनी सी बात पर आप अपना आपा इतना नहीं खो देंगे कि उसे क़त्ल ही कर दें. 
फिर धीरे धीरे वह अपने दन्द फन्द से अपनी एक टोली बना ले जैसा कि आज आम तौर पर हो रहा है. 
उस वक़्त आप उसकी मुख़ालिफत करेंगे और उसके बारे में कोई बात सुनना पसंद नहीं करेंगे. 
उसकी ताक़त बढती जाय और उसके चेले गुंडा गर्दी पर आमादः हो जाएँ तब आप क्या करेंगे ? 
पुलिस थाने या अदालत जाएँगे, 
मगर उस वक़्त ये सब नहीं थे, 
उस वक़्त जिसकी लाठी उसकी भैंस का ज़माना था.
शनासा का गिरोह अपनी ताक़त समाज में बढा ले, 
यहाँ तक कि जंग पर आमादः हो जाए, 
आप लड़ न पाएं और मजबूर होकर बे दिली से उसको तस्लीम कर लें. 
वह ग़ालिब होकर आप के बच्चों को अपनी तालीम देने लगे, 
और आप चल बसें, आपके बच्चे भी न नकुर के साथ उसे मानने लगें 
मगर उनके बच्चे उस के बाद उस अल्लाह के झूठे रसूल को पूरी तरह से सच मानने लगेंगे. 
इस अमल में एक सदी की ज़रुरत होगी. 
आप तो चौदह सदी पार कर चुके हैं. 
गुंडा गर्दी आपका ईमान बन चुका है. 
इस तरह दुन्या में इस्लाम और कुरआन मुसल्लत हुवा है.
कुरआन को अपनी समझ से पढ़ कर इस्लाम का नुसख़ा  
ख़ुद बख़ुद आप कि समझ में आ सकता है. 
कुरान खुद इस्लाम की नंगी तस्वीर अपने आप में छुपाए हुए है, 
जिसकी पर्दा दारी ये मूज़ी ओलिमा किए हुए हैं.
   



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 8 July 2016

Soorah Aknkaboot 29 Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

************

सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा

दूसरी किस्त


सूरह में इस्लाम के शुरूआती दौर के नव मुस्लिमों की ज़ेहनी कशमकश की तस्वीरें साफ़ नज़र आती हैं. लोग खुद साखता   रसूल की बातों में आ तो जाते हैं मगर बा असर काफिरों का ग़लबा भी इनके जेहन पर सवार रहता है. वह उनसे मिलते जुलते हैं, इनकी जायज़ बातों का एतराफ़ भी करते हैं जो खुद साख्ता रसूल को पसंद नहीं, मुखबिरों मुख्बिरों और चुग़ल खोरों से इन बातों की खबर बज़रीआ वह्यीय ख़ुद साख्ता रसूल को हो जाती है और खुद साख्ता रसूल कहते हैं
"अल्लाह ने इन्हें सारी खबर देदी है "
वह फिर से लोगों को पटरी पर लाने के लिए क़यामत से डराने लगते हैं, इस तरह कुरआन मुकम्मल होता रहता. मुहम्मद के फेरे में आए हुए लोगों  को ज़हीन अफराद समझते हैं - - -
"ये शख्स मुहम्मद, बुजुर्गों से सुने सुनाए किस्से को क़ुरआनी आयतें गढ़ कर बका करता है. इसकी गढ़ी हुई क़यामत से खौफ खाने की कोई ज़रुरत नहीं. चलो तुमको अंजाम में मिलने वाले इसके गढ़े हुए अज़ाबों को की ज़िम्मेदारी मैं अपने सर लेने का वादा करता हूँ, अगर तुम इसके जाल से निकलो"
माजी के इस पसे-मंज़र में डूब कर मैं पाता हूँ कि दौरे-हाज़िर के पीरो मुर्शिद, स्वामियों और स्वयंभू भगवानों की दूकानों को, जो बहुत क़रीब  नज़र आती हैं और बहुत पास मिलते हैं वह सदा लौह, गाऊदी, अय्यारों मुसाहिबो  और लाखैरों  की भीड़. मुरीदों के ये चेले. ऐसे ही लोग मुहम्मद के जाल में आते, जिनको समझा बुझा कर राहे-रास्त पर लाया जा सकता था.
मैं खुद साख्ता रसूल की हुलिया का तसव्वुर करता हूँ . . .
नीम दीवाना, नीम होशियार, मगर गज़ब का ढीठ. 
झूट को सच साबित करने का अहेद बरदार, सौ सौ झूट बोल कर आखिर कार " हज़रात मुहम्मद रसूल अल्लाह सललललाह अलैहे वसल्लम"
बन ही गया. वह अल्लाह जिसे खुद इसने गढ़ा, उसे मनवा कर, पसे पर्दा खुद अल्लाह बन बैठा. उसके झूट ने माना कि बहुत लम्बी उम्र पाई मगर अब और नहीं.  
मुहम्मद के गिर्द अधकचरे जेहन के लोग हुवा करते जिन्हें सहाबाए-कराम कहा जाता है, जो एक गिरोह बनाने में कामयाब हो गए. 
गिरोह में बेरोजगारों की तादाद ज्यादह थी. 
कुछ समाजी तौर पर मजलूम हुवा करते थे, 
कुछ मसलेहत पसंद और कुछ बेयारो मददगार. 
लोग तफरीहन भी महफ़िल में शरीक हो जाते. कभी कभी कोई संजीदा भी जायजा लेने की गरज़ से आकर खड़ा हो जाता और अपना ज़ेहनी ज़ाइका ज़ायका बिगाड़ कर आगे बढ़ जाता और लोगों को समझाता . . .
इसकी हैसियत देखो, इसकी तालीम देखो, इसका जहिलाना कलाम देखो, बात कहने की भी तमीज नहीं, जुमले में अलफ़ाज़ और क़वायद  की कोताही देखो. इसकी चर्चा करके नाहक ही इसको तुम लोग मुक़ाम दे राहे हो, क्या ऐसे ही सिडी सौदाई को अल्लाह ने अपना पैगामबर चुना है?
   बहरहाल इस वक़्त तक मुहम्मद ने तनाज़ा, मश्गला और चर्चा के बदौलत मुआशरे में एक पहचान बना लिया था. 
एक बार मुहम्मद मक्का के पास एक मुकाम तायाफ़  के हाकिम की के पास अपनी रिसालत की पुड्या लेकर गए. उसको मुत्तला किया कि
"अल्लाह ने मुझे अपना रसूल मुक़रार किया है."
 उसने इनको सर से पावन तक देखा और थोड़ी गुफ्तुगू की और जो कुछ पाया उस पैराए में इनसे पूछा
"ये तो बताओ कि मक्का में अल्लाह को कोई ढंग का आदमी नहीं मिला कि एक अहमक को अपना रसूल बनाया? "
उसने धक्के देकर इन्हें बाहर निकला और लोगों को माजरा बतलाया. 
लोगों ने लात घूसों से इनकी तवाज़ो किया, 
बच्चों ने पागल मुजरिम की तरह इनको पथराव करते हुए बस्ती से बाहर किया. क़ुरआनी आयतें लाने वाले जिब्रील अलैहस्सलाम दुम दबा कर भागे, और अल्लाह आसमान पर बैठा ज़मीन  पर अपने रसूल का तमाशा देखता रहा.
मगर साहब ! मुहम्मद अपनी मिटटी के ही बने हुए थे, न मायूस हुए न हार मानी. जेहाद की बरकत 'माले गनीमत' का फार्मूला काम आया. 
फतह  मक्का के बाद तो तायाफ़ के हुक्मरान जैसे उनके क़दमों में पड़े थे.

"अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को बड़ी मुनासिब तौर पर बनाया, ईमान वालों के लिए इसमें बड़ी दलील है."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४४)

मकड़ी का बोदा घर हो, ज़मीन और आसमानों की तकमील हो, पानी को चीरती हुई कश्तियाँ हों, ऊँट का बेढंगा डील डौल हो, या गधे की करीह आवाज़, जिनको कि आप कुरान में बघारते हैं, इन सब का तअल्लुक़ ईमान से क्या है? जिसकी शर्त पर आपकी पयंबरी कायम होती है. 
आपको तो इतना इल्म भी नहीं कि आसमान (कायनात) सिर्फ एक है और इस कायनात में ज़मीनें अरबों है जिनको हमेशा आप उल्टा फरमाते हैं . . "आसमानों (जमा) ज़मीन (वाहिद)"

"जो किताब आप पर वह्यी की गई है उसे आप पढ़ा कीजिए और नमाज़ की पाबन्दी रखिए. बेशक नमाज़ बेहयाई और ना शाइस्ता कामों से रोक टोक करती हैं और अल्लाह की याद बहुत बड़ी चीज़ है और अल्लाह तुम्हारे सब कामों को जानता है."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४५)

ऐ अल्लाह! मुहम्मद नाख्वान्दा हैं, अनपढ़ हैं, कोई किताब कैसे पढ़ सकते हैं? उन्हें थोड़ी सी अक्ल दे कि सोच समझ कर बोला करें.

"और हमने नूह को उनकी कौम की तरफ भेजा सो वह उनमें पचास बरस कम हज़ार साल रहे और कौम को समझाते रहे, इन को तूफ़ान ने आ दबाया और वह बड़े ज़ालिम लोग थे."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(१४)

अनपढ़ और गंवार मुहम्मदी अल्लाह पचास कम हज़ार हज़ार कहता है क्यूंकि वह नौ सौ पचास के हिन्दसे को नहीं कह पता. 
मुहम्मद का अल्लाह गलत बयानी कर रहा है. 
माजी बईद में आज के मुकाबिले में उम्रें कम ही हुवा करती थीं, 
ये बात साइंसी  इन्केशाफ़ है, 
वैसे भी पहले ज़िदगी दुश्वार गुज़ार हुवा करती थी, 
हादसात का शिकार हो जाती थी. 
नूह का वक़्त आजसे ५००० साल पहले का है अगर अल्लाह की बात पर यकीन किया जाए तो नूह की तरह लम्बी उम्र पाने वाली उनकी छटवीं पुश्त आज दुनिया में कहीं न कहीं मौजूद होती. 
ऐसे ही हदीस में मुहम्मद एक जगह कहते हैं कि पहले इन्सान की लम्बाई साथ हाथ हुवा करती थी.  

   
"और हमने आद और सुमूह को भी हलाक किया और ये हलाक होना तुमको उनके रहने के मकान से नज़र आ रहा है और शैतान ने उनके आमाल को उनकी नज़र में मुस्तःसिन कर रखा था और उनको राह से रोक रखा था और वह लोग होशियार थे. हमने कारून, फिरौन और हामान को भी हलाक किया और इनके पास मूसा खुली दलीलें लेकर आए थे, फिर ज़मीन पर इन्हों ने सरकशी की और भाग न सके. सो हमने हर एक को इसके गुनाह की सज़ा में पकड़ लिया. सो इनमें से बअज़ों पर तो हमने तुन्द हवा भेजी और इनमें से बअज़ों को हौलनाक आवाज़ ने आ दबाया और इनमें से बअज़ों को हमने में धँसा दिया और इनमे से बअज़ों को हमने डुबो दिया और अल्लाह ऐसा न था कि इन पर ज़ुल्म करता बल्कि यही लोग अपने ऊपर ज़ुल्म करते थे."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(३८-४०)

ये है मुहम्मदी अल्लाह, अल्लाह हलाकुल्लाह जिसके सजदे नादान मुसलमान करते हैं, इसके गुर्गों के बहकावे में आकर तालिबान बन जते हैं या हिजबुल्लाह के मुजाहेदीन जो अक्सर मुसलमानों का ही क़त्ले आम करते हैं.क्या अल्लाह ने मुहम्मद को हलाक़ नहीं किया? उनकी नस्लों को नेस्त नाबूद नहीं किया?
नादान मुसलामानों! जागो, 
तुम मुहम्मदी अल्लाह के गुमराहों में बे यारो मददगार पड़े हुए हो. तुमको ये कुरानी जेहालत कहीं का भी नहीं रखेगी. अपनी नस्लों पर रहेम खाओ. 
जंग जद्दाल, खून खराबा, हलाक़त और तबाही के सिवा कुरान में तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा.
''जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा कोई और साज़गार तजवीज़ कर रखे हैं उन लोगों की मिसाल मकड़ी की सी मिसाल है जिसने एक घर बनाया, और सब जानते हैं सब घरों में बोदा घर मकड़ी का घर होता है. अगर वह जानते तो. अल्लाह सब कुछ जानता है जिसको वह लोग अल्लाह के सिवा सोच रहे हैं और वह ज़बरदस्त हिकमत वाला है और इन मिसालों को लोगों के लिए बयान करते हैं और इन मिसालों को इल्म वाले ही समझते हैं.''
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४२-४३)


वाह वाह! अल्लाह के रसूल, कलाम आपका और बयान आपका. 
मकड़ी के इस कद्र मज़बूत और खूब सूरत जाल  को कोई बेहिक्मत अल्लाह ही बोदा घर कह सकता है.उसके जाल को उसका घर समझे? रहती तो वह ज़मीन के अन्दर बिलों में. आपके समझ का जवाब नहीं. समझो और अपनी उम्मत को समझ दो कि मकड़ी के जाल सा बारीक धागा अगर स्टील का बने तो मकड़ी के जाल का मुकाबिला नहीं कर सकता. मामूली कीड़ा ज़बरदस्त दस्तकारी का मुजाहिरा करता है. आपकी तरह फूहड़ आयतों का नहीं. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 4 July 2016

Soorah Ankaboot 29-Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****

सूरह अनकबूत -२९ -२० वाँ पारा
(पहली किस्त)
हिदू आतंक वाद 

राहुल गाँधी ने अगर ये कहा है कि हिदू आतंक वाद ज्यादह खतरनाक है, बनिस्बत मुस्लिम आतंक वाद के, तो उनको संकुचित राज नीतिज्ञों से डरने की कोई ज़रुरत नहीं. उन्हों ने इक दम नपा तुला हुवा सच बोला है. उनके बाप को बम से चीथड़े करके शहीद करने वाले मुस्लिम आतंक वाद नहीं था, बल्कि लिट्टे वाले थे जो बहरहाल हिदू हैं. उनकी दादी को गोलियों से भून कर शहीद करने वाले सिख, थे जो बहरहाल हिन्दू होते हैं जैसा कि भगुवा ग्रुप मानता है. महात्मा गाँधी, बाबा ए कौम को इन आतंक वादी शैतानो  ने त्रिशूल भोंक कर, तीन गोलियां से उनकी छाती छलनी करके आतंक का मज़ा लिया था. 
मुस्लिम आतंक वाद  को आगे करके ये अपना वजूद कायम किए हुए हैं जो कि अपने आप में विशाल भारत के लिए चूहों के झुड से ज्यादह कुछ भी नहीं हैं. मुस्लिम आतंक वाद दुन्या के कोने कोने में कुत्तों की मौत मारे जा रहे हैं. मुस्लिम आतंक वाद खुद सब से बड़ा दुश्मन मुसलामानों का है जो कि समझ नहीं पा रहे हैं, जिनको मैं कुरआन की आयतों की धज्जियां उड़ा उड़ा कर समझा रह हूँ.
राहुल गाँधी को थोड़ी और जिसारत करके मैदान में आना चाहिए कि हिन्दू आतंक वाद ५००० साल, वैदिक कल से भारत के मूल्य निवासियों पर ज़ुल्म ढा रहा है, मुस्लिम आतंक वाद तो सिर्फ १४ सौ सालों से पूरी दुन्या को बद अम्न किए हुए है, और हिदू आतंक वाद आदिवासियों और मूल निवासियों  को (सिर्फ हिन्दुओं को) अपना शिकार बनाए हुए है. मुस्लिम आतंक वाद जितना गैरों को तबाह करता है उससे कहीं  ज्यादा खुद तबाह होता चला आया है. हिन्दू आतंक वाद जोंक का स्वाभव रखता है अपने शिकार को ताउम्र मरने नहीं देता जिसे वह अपना गुलाम बना कर रखता है.
हिन्दू आतंक वाद कई गुना घृणित है जो कि भारत में फला फूला हुवा है.     

इस सूरह में इस्लाम के शुरूआती दौर के नव मुस्लिमों की ज़ेहनी कशमकश की तस्वीरें साफ़ नज़र आती हैं. लोग खुद साख्ता रसूल की बातों में आ तो जाते हैं मगर बा असर काफिरों का गलबा भी इनके जेहन पर सवार रहता है. वह उनसे मिलते जुलते हैं, इनकी जायज़ बातों का एतराफ़ भी करते हैं जो खुद साख्ता रसूल को पसंद नहीं, मुखबिरों और चुगल खोरों से इन बातों की खबर बज़रीआ वह्यीय ख़ुद साख्ता रसूल को हो जाती है और खुद साख्ता रसूल कहते हैं, 
"अल्लाह ने इन्हें सारी खबर देदी है " 
वह फिर से लोगों को पटरी पर लाने के लिए क़यामत से डराने लगते हैं, इस तरह कुरआन मुकम्मल होता रहता . मुहम्मद के फेरे में आए हुए लोगों को ज़हीन अफराद समझते हैं - - -
"ये शख्स मुहम्मद, बुजुर्गों से सुने सुनाए किस्से को क़ुरआनी आयतें गढ़ कर बका करता है. इसकी गढ़ी हुई क़यामत से खौफ खाने की कोई ज़रुरत नहीं. चलो तुमको अंजाम में मिलने वाले इसके गढ़े हुए अज़ाबों को की ज़िम्मेदारी मैं अपने सर लेने का वादा करता हूँ, अगर तुम इसके जाल से निकलो"
माजी के इस पसे-मंज़र में डूब कर मैं पाता हूँ कि दौरे-हाज़िर के पीरो मुर्शिदों, स्वामियों और स्वयंभू भगवानों की दूकानों को, जो बहुत करीब नज़र आती हैं और बहुत पास मिलते हैं वह सादा लौह, गाऊदी, अय्यार मुसाहिबों और लाखैरों की भीड़, मुरीदों के ये चेले, ऐसे ही लोग मुहम्मद के जाल में आते, जिनको समझा बुझा कर राहे-रास्त पर लाया जा सकता था.
मैं खुद साख्ता रसूल की हुलिया का तसव्वुर करता हूँ . . . 
नीम दीवाना, नीम होशियार, मगर गज़ब का ढीठ. 
झूट को सच साबित करने का अहेद बरदार, 
सौ सौ झूट बोल कर आखिर कार 
"हज़रात मुहम्मद रसूल अल्लाह सललललाह अलैहे वसल्लम" 
बन ही गया. वह अल्लाह जिसे खुद इसने गढ़ा, 
उसे मनवा कर, पसे पर्दा खुद अल्लाह बन बैठा. 
झूट ने माना कि बहुत लम्बी उम्र पाई मगर अब और नहीं.  
मुहम्मद के गिर्द अधकचरे जेहन के लोग हुवा करते जिन्हें सहाबाए-कराम कहा जाता है, जो एक गिरोह बनाने में कामयाब हो गए. 
गिरोह में बेरोजगारों की तादाद ज्यादह थी. कुछ समाजी तौर पर मजलूम हुवा करते थे, कुछ मसलेहत पसंद और कुछ बेयारो मददगार. 
कुछ लोग तफरीहन भी महफ़िल में शरीक हो जाते. 
कभी कभी कोई संजीदा भी जायजा लेने की गरज़ से आकर खड़ा हो जाता और अपना ज़ेहनी जायका बिगाड़ कर आगे बढ़ जाता 
और लोगों को समझाता . . . 
इसकी हैसियत देखो, इसकी तालीम देखो, इसका जहिलाना कलाम देखो, बात कहने की भी तमीज नहीं, जुमले में अलफ़ाज़ और कवायद की कोताही देखो. इसकी चर्चा करके नाहक ही इसको तुम लोग मुकाम दे राहे हो, क्या ऐसे ही सिडी सौदाई को अल्लाह ने अपना पैगामबर चुना है?
   बहरहाल इस वक़्त तक मुहम्मद ने तनाज़ा, मशगला और चर्चा के बदौलत मुआशरे में एक पहचान बना लिया था. 
एक बार मुहम्मद मक्का के पास एक मुकाम तायाफ़  के हाकिम के पास अपनी रिसालत की पुडिया लेकर गए. उसको मुत्तला किया कि 
"अल्लाह ने मुझे अपना रसूल मुक़रार किया है." 
उसने इनको सर से पाँव तक देखा और थोड़ी गुफ्तुगू की और जो कुछ पाया उस पैराए में इनसे पूछा 
"ये तो बताओ कि मक्का में अल्लाह को कोई ढंग का आदमी नहीं मिला कि एक अहमक को अपना रसूल बनाया? " 
उसने धक्के देकर इन्हें बाहर निकला और लोगों को माजरा बतलाया. 
लोगों ने लात घूसों से इनकी तवाज़ो किया, 
बच्चों ने पागल मुजरिम की तरह इनको पथराव करते हुए बस्ती से बाहर किया. क़ुरआनी आयतें लाने वाले जिब्रील अलैहस्सलाम दुम दबा कर भागे, और अल्लाह आसमान पर बैठा ज़मीन पर अपने रसूल का तमाशा देखता रहा.
मगर साहब ! मुहम्मद अपनी मिटटी के ही बने हुए थे, न मायूस हुए न हार मानी. जेहाद की बरकत 'माले गनीमत' का फार्मूला काम आया. 
फतह मक्का के बाद तो तायाफ़ के हुक्मरान जैसे उनके क़दमों में पड़े थे.

मुलाहिजा हो मुहम्मद की अल्लम गल्लम  - - -  

"अल्लम"
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(१)

ये लफ्ज़ मुह्मिल है जिसके कोई मानी नहीं होते. ऐसे हर्फों को क़ुरआनी इस्तेलाह में हुरूफे मुक़त्तेआत कहते है. इसका मतलब अल्लाह ही जानता है. ऐसे लफ्ज़ मुह्मिल को कुरआन में मुहम्मद पहले लाते हैं. 
कुरआन की आयातों को सुनकर शायद किसी ने कहा होगा 
"क्या अल्लम-गलत बकते हो?" 
तब से ही अरबी, फ़ारसी और उर्दू में ये मुहवेरा कायम हुआ.

"क्या इन लोगों ने ये ख़याल कर रक्खा है कि वह इतना कहने पर छूट जाएँगे कि हम ईमान ले आए और उनको आज़माया न जायगा और हम तो उन लोगों को भी आज़मा चुके हैं जो इसके पहले हो गुज़रे हैं, सो अल्लाह इनको जान कर रहेगा जो सच्चे थे और झूटों को भी जान कर रहेगा."

हर अमल का गवाह अल्लाह कहता है कि वह ईमान लाने वालों को जान कर रहेगा? मुहम्मद परदे के पीछे खुद अल्लाह बने हुए हैं जो ऐसी तकरार में अल्लाह को घसीटे हैं. वरना आलिमुल गैब अल्लाह को ऐसी लचर बात कहने की क्या ज़रुरत है? अल्लाह को क्या मजबूरी है कि वह तो दिलों की बात जनता है. 
इस्लाम कुबूल करने वाले नव मुस्लिम खुद आज़माइश के निशाने पर हैं. मुहम्मद इंसानी ज़हनों पर मुकम्मल अख्तियार चाहते हैं कि उनको तस्लीम इस तरह किया जाए कि इनके आगे माँ, बहेन, भाई, बाप कोई कुछ नहीं. इनसे साहब सलाम भी इनको गवारा नहीं.
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(२-३)

"हम ने इन्सान को अपने माँ बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है और अगर वह तुझ पर इस बात का ज़ोर डालें कि तू ऐसी चीज़ को मेरा शरीक ठहरा जिसकी कोई दलील तेरे पास नहीं है तो उनका कहना न मानना. तुझको मेरे ही पास लौट कर आना है. सो मैं तुमको तुम्हारे सब काम बतला दूंगा."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(८)

मुहम्मदी अल्लाह के पास क्या दलील है कि वह सही है? अभी तो उसका होना भी साबित नहीं हुवा.
मुहम्मदी अल्लाह की ये गुमराही के एहकाम औलादों के लिए है तो दूसरी तरफ मान बाप को धौंस देता है कि अगर उनकी औलादें इस्लाम के खिलाफ गईं तो जहन्नम की सज़ा उनके लिए रक्खी हुई है. 
ये है मुसलमानों की चौ तरफ़ा घेरा बंदी.

"अल्लाह ईमान वालों को जान कर ही रहेगा और मुनाफिकों भी."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(११)

मुहम्मद अपने अल्लाह को भी अपनी ही तरह उम्मी गढ़े हुए हैं, 
कितनी मुताज़ाद बात है कुदरत के ख़िलाफ़ कि वह सच्चाई को ढूंढ रही है.

"कुफ्फर मुसलामानों से कहते हैं कि हमारी राह पर चलो, और तुम्हारे गुनाह हमारे जिम्मे, हालाँकि ये लोग इनके गुनाहों को ज़रा भी नहीं ले सकते, ये बिकुल झूट बक रहे हैं और ये लोग अपना गुनाह अपने ऊपर लादे हुए होंगे."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(१२)

ये आयत उस वाकिए का रद्दे अमल है कि कोई शख्स मुसलमान हुवा था उसे दूसरे ने वापस पुराने दीन पर लाने में कामयाब हुवा, जब उसने इस बात कि तहरीरी शक्ल में लिख कर दिया कि अगर गुनाह हुवा तो उसके सर. मज़े की बात ये कि ज़मानत लेने वाले ने उससे कुछ रक़म भी ऐंठी. ऐसे गाऊदी हुवा करते थे सहबाए किराम .

गुनाह और सवाब ?
आम मुसलमान उम्र भर इन दो भूतिए एहसास में डूबे रहते है, 
जब कि इंसान पर भूत इस बात का होना चाहिए कि उसका हिस और ज़मीर उस पर सवार रहे .

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान