Tuesday 29 November 2016

Hindu Dharam Darshan 27

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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मैसुलेनिअस mussolinians

जो लोग तौरेत (Old Testament) की रौशनी में यहूदियों की फितरत को जानते है, 
वह हिटलर को हक बजानिब कहते हैं मगर तारीख के आईने में वह मुजरिम ही है.
हिटलर को इस कशमकश में भूला जा सकता है 
मगर मसुलीनी (mussolini) को कभी नहीं जिसकी लाश पर अवाम ने 24 घंटे थूका था.
भारत में मनुवाद नाजियों की ही समानांतर व्योवस्था है.
ट्रेन में अयोध्या के तीर्थयात्री stove पर खाना बनाने की गलती के कारण 
हादसे का शिकार हो गए, उनको किसी मुसलमान ने आग के हवाले नहीं किया था.  मनुवादियों ने इस दुरघटना को रूपांतरित करके मुसलामानों को शिकार बनाया, जान व माल का ऐसा तांडव किया कि हादसा इतिसास का एक बाब बन गया.
मुंबई में पाकिस्तानी आतंकियों के हमले को मनुवादियों ने इस तरह मौके का फायदा उठाया कि पोलिस अफसर करकरे को मरवा दिया जो एक ईमान दार अफसर था और हिन्दू आतंकियों की घेरा बंदी किए हुए था, 
उसको भितर घात करके अपनी एडी का गूं पाक आतंक वादियों की एडी में लगा दिया. इन मनुवादी आतंकियों के विरोध में किसी को बोलने की हिम्मत न थी.
सूरते-हाल ही कुछ ऐसी थी.
मुज़फ्फर नगर में हिन्दू आतंक फैला कर जनता में धुरुवीय करण करने में, 
यह मनुवादी कामयाब रहे.
उनहोंने एलानिया अल्प संख्यकों के सामने अपने ताण्डव का एक नमूना पेश किया.
मुज़फ्फर नगर के शरणार्थी मुस्लिम आबादी कैराना में शरण गत हुए तो, 
मनुवादियों को नया शोशा मिल गया कि कैराना मुस्लिम जिहादी सर गर्म हैं,
उनके आतंक से हिन्दू पलायन कर रहे है, 
कश्मीर की तरह. 62% की हिन्दू आबादी 8% रह गई है.
यह mussolinian जनता के Vote को कैसे मोडते हैं, खुली हुई किताब है. 
उनकी मजबूरी यह है कि देश में जमहूरियत आ गई है, 
वरना इनका पाँच हज़ार साला वैदिक काल की तस्वीर देखी जा सकती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 28 November 2016

Soorah Alfata 48

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६

"बेशक हमने आप को खुल्लम खुल्ला फ़तह दी, ताकि अल्लाह तअला आप की अगली पिछली सभी खताएँ मुआफ़ कर दे. और आप पर अपने एहसानात की तकमील कर दे. और आप को सीधे रस्ते पर ले चले. अल्लाह आपको ऐसा ग़लबा दे जिस में इज्ज़त ही इज्ज़त हो."
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (१-३)

गौर तलब है कि अल्लाह ने मुहम्मद को इस लिए खुल्लम खुल्ला फ़तह दी कि उनकी ख़ताएँ उसको मुआफ़ करना था. उसे अपने एहसानात की तकमील करने की जल्दी जो थी, मक्र की इन्तेहा है.मुहम्मद का माफ़ीउज़ज़मीर इस बात की गवाही देता है कि वह ख़तावार थे जिसे अनजाने में खुद वह तस्लीम करते हैं. मुहम्मद को तो मुहम्मदी अल्लाह ने तो मुआफ़ कर दिया मगर बन्दे मुहम्मद को कभी मुआफ़ नहीं करेंगे.
फ़तह के नशे में चूर मुहम्मद खुल्लम खुल्ला अल्लाह बन गए थे, इसबात की गवाह उनकी बहुत सी आयतें हैं. 

"मगर वह अल्लाह ऐसा है जिसने मुसलमानों के दिलों में तहम्मुल पैदा किया है ताकि इनके पहले ईमान के साथ, इनका ईमान और ज़्यादः हो और आसमानों और ज़मीन का लश्कर सब अल्लाह का ही है और अल्लाह बड़ा जानने वाला, बड़ी हिकमत वाला है, ताकि अल्लाह मुसलमान मरदों और मुसलमान औरतों को ऐसी बहिश्त में दाख़िल करे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, जिनमें हमेशा को रहेंगे, और ताकि इनके गुनाह दर गुज़र कर दे. और ये अल्लाह के नजदीक बड़ी कामयाबी है. और ताकि अल्लाह मुनाफ़िक़ मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों को, और मुशरिक मर्दों और मुशरिक औरतों को अज़ाब दे जो अल्लाह के साथ बुरे बुरे गुमान रखते थे. उन पर बुरा वक़्त पड़ने वाला है और अल्लाह उन पर गज़ब नाक होगा."
 सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (४-६)

"ये अल्लाह के नजदीक बड़ी कामयाबी है." इस जुमले पर गौर किया जाए कि वह अल्लाह जो अपनी कायनात में पल झपकते ही जो चाहे कर दे बस "कुन" कहने की देर है, उसके नज़दीक फ़तह मक्का बड़ी कामयाबी है. मुहम्मद अन्दर से खुद को अल्लाह बनाए हुए हैं.
इस फ़तह के बाद मुसलमानों का ईमान और पुख्ता हो गया कि वह सब्र वाले लुटेरे बन गए और लूट का माल मुहम्मद के हवाले कर दिया करते थे और जो कुछ वह उन्हें हाथ उठा कर दे दिया कयते उसी में वह सब्र कर लिया करते. मुहम्मद मुसलामानों को अल्लाह का लश्कर करार देते हैं और यक़ीन दिलाते है कि उनकी तरह ही अल्लाह के सिपाही आसमानों पर हैं.
जब तक मुसलमान अपने अल्लाह की इन बातों पर यक़ीन करते रहेंगे तालीम ए जदीद भी उनका भला नहीं कर सकती.

"जो लोग आपसे बैत कर रहे हैं, वह अल्लाह से बैत कर रहे हैं. अल्लाह का हाथ उनके हाथ पर है. फिर जो शख्स अहेद तोड़ेगा ,इको इसका वबाल इसी के सर होगा, जो पूरा करेगा उसको अल्लाह अनक़रीब बड़ा उज्र देगा.
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (१०)

आखिर बंदे मुहम्मद ने इशारा कर ही दिया कि ही पाक परवर दिगार है, मगर एक धमकी के साथ.

"अगली दस आयातों में जंगों से मिला माले ग़नीमत पर अल्लाह का हुक्म मुहम्मद पर नाज़िल होता रहता है. दर अस्ल इस जंग में देहाती नव मुस्लिमों ने शिरकत करने से आनाकानी की थी. उनको उम्मीद नहीं थी कि मुहम्मद मक्का पर फ़तेह पाएँगे, बिल खुसूस कुरैशियों पर. अगर फ़तेह हो भी गई तो वह अपने कबीले पर रिआयत बरतेंगे और उनको लूटेंगे नहीं. ग़रज़ उनको इस जंग से माले ग़नीमत का कोई खास फायदा मिलता नज़र नहीं आया, इस लिए जंग में शिरकत से वह बचते रहे. मगर मुहम्मद को मिली कामयाबी के बाद वह मुसलमानों का दामन थामने लगे कि अल्लाह से इनके हक में वह दुआ करें. अल्लाह दिलों का हाल जानने वाला? अपने रसूल से कहता है कि इनको टरकाओ, ये तो मुसलामानों के ख़िलाफ़ बद गुमानी रखते थे. अंधे, लंगड़े और बीमारों को छोड़ कर बाकी किसी को जंग से जान चुराने की इजाज़त नहीं थी. मुहम्मद ऐसे लोगों पर फ़ौरन लअन तअन शुरू कर देते, दोज़ख उसके सामने लाकर पेश कर देते."
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (११-१५)

"जो लोग पीछे रह गए थे वह अनक़रीब जब (तुम खैबर) की गनीमत लेने चलोगे, कहेगे कि हम को भी इजाज़त दो कि हम तुम्हारे साथ चलें. वह लोग यूँ चाहते हैं कि अल्लाह के हुक्म को बदल डालें. आप कह दीजिए कि हरगिज़ हमारे साथ नहीं चल सकते. अल्लाह तअला ने पहले से यूँ फ़रमा दिया था. इनके पीछे रहने वाले देहात्यों से कह दीजिए कि तुम लोग लड़ने के लिए बुलाए जाओगे, जो सख्त लड़ने वाले होंगे,"
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (१६)

मुलाहिजा हो मुहम्मद कहते हैं "जब (तुम खैबर) की गनीमत लेने चलोगे" ये है मुहम्मद की जंगी फ़ितरत, लगता है जैसे खैबार में ग़नीमत की अशर्फियाँ इनके बाप दादे गाड कर आए हों.ये ये शख्स कोई इंसान भी नहीं जिसको ओलिमा हराम जादे मशहूर किए हुए हैं.मोह्सिने इंसानियत. जंगों से हजारो घर तबाह ओ बरबाद हो जाते हैं, उम्र भर की जमा पूँजी लुट जाती है, बस्तियों में खून की नदियाँ बहती हैं. मुहम्मद के लिए ये मशगला ठहरा,
किया मुहम्मदी अल्लाह की कोई हक़ीक़त हो सकती है कि घुटे मुहम्मद की तरह वह साज़ बाज़ की बातें करता है.

"अल्लाह ने तुम से बहुत सी गनीमातों का वादा कर रखा है, जिनको तुम लोगे. सरे दस्त ये दे दी है. और लोगों के हाथ तुम से रोक दिए हैं, और ताकि अहले ईमान के लिए नमूना हो. और ताकि तुम को एक सीधी सड़क पर दाल दे"
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (२०)

मुसलमानों! 
समझो कि तुम्हारा नबी दीन के लिए नहीं लड़ता लड़ाता था, बल्कि अवाम को लूटने के लिए अल्लाह के नाम पर लोगों को उकसाता था.    
अल्लाह का पैगम्बर लड़ाकुओं को समझा रहा है कि जो कुछ मिल रहा है, रख लो. उनसे रसूल बना गासिब, अल्लाह का वादा दोहराता है, मुस्तकबिल में मालामाल हो जाओगे. सब्र और किनाअत को मक्कारी के आड़ में छिपाते हुए कहता है "और ताकि अहले ईमान के लिए नमूना हो. और ताकि तुम को एक सीधी सड़क पर दाल दे"
एक बड़ी आबादी को टेढ़ी और बोसीदा सड़क पर लाकर, उनके साथ खिलवाड़ कर गया.

"और अगर तुम से ये काफ़िर लड़ते तो ज़रूर पीठ दिखा कर भागते, फिर इनको कोई यार मिलता न मदद गार. अल्लाह ने कुफ्फार से यही दस्तूर कर रखा है जो पहले से चला आ रहा है, आप अल्लाह के दस्तूर में कोई रद्दो-बदल नहीं कर सकते."

सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (२३) 

जंग हदीबिया में मुहम्मद ने मक्का के जाने माने काफिरों को रिहा कर दिया जिसकी वजह से इन्हें मदनी मुसलमानों की मुज़ाहमत का सामना करना पड़ा, बस कि मुहम्मद पर अल्लाह की वह्यियों का दौरा पड़ा और आयात नाज़िल ही.
अल्लाह के दस्तूर के चलते मुस्लमान आज दुन्या में अपना काला मुँह भी दिखने के लायक़ नहीं रह गए, कुफ्फारों की पीठ देखते देखते.

*ऐ मज़लूम कौम! क्या ये क़ुरआनी आयतें तुमको नज़र नहीं आतीं जो मुहम्मद की छल-कपट को साफ़ साफ़ दर्शाती हैं. ?
*अपने पड़ोस पकिस्तान के अवाम की जो हालत हो रही है कि मुल्क छोड़ कर गए हुए लोग आठ आठ आँसू रो रहे हैं, इन्हीं आयतों की बेबरकती है उन पर, क्या इस सच्चाई को तुम समझ नहीं पा रहे हो?
पूरी दुन्या में मुसलामानों को शको शुबहा की नज़र से देखा जा रहा है, क्या सारी दुन्या गलत है और तुम ही सहीह हो?
*मुल्क और गैर मुमालिक में मुसलमानों की रोज़ी रोटी तंग हुई जा रही है, क्या तुम्हारे समझ में नहीं आता?
*तुम्हारे समझ में सब आता है कि तुम सबसे पहले इंसान हो, बाद में मुसलमान, हिन्दू और ईसाई वगैरा. तुमको हक शिनाश नहीं दे रहे हैं ये अपनी माओं के ख़सम आलिमान दीन औए उनके मज़हबी गुंडे.
**वक़्त आ गया है कि अब आँखें खोलो, जागो और बहादर बनो. तुम्हारा कुछ भी नहीं बदलेगा, बस बदलेगा ईमान कि अल्लाह, उसका रसूल, उसकी किताब, मफरूज़ाराजे हश्र, वह मफरूज़ा जन्नत दोज़ख
ये सब फिततीन मुहम्मद की ज़ेहनी पैदावार है. इनकी भरपूर मुखालिफत ही आज का ईमान होगा. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 26 November 2016

Hindu Dharam Darshan 26

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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पाप और महा पाप है.

शरीर में लिंग बहुत उपयोगी और सदुपयोगी पार्ट है, चाहे स्त्री लिंग हो अथवा पुल्लिंग.
बस कि नपुंसक लिंग एक हादसा हो सकता है.
एक हदीस में पैगंबर कहते है कि अगर कोई शख्स मेरी ज़बान और मेरे लिंग पर मुझे क़ाबू दिलादे तो उसके आक़बत की ज़मानत मैं लेता हूँ. 
यह इस्लामी हदें या बे हदें हुईं.
बहरहाल एतदाल (संतुलन) तो होना ही चाहिए. मुसलमान असंतुलित हैं मगर सीमा में रह कर. 
शादियाँ चार हो सकती हैं, इन में से किसी एक को तलाक़ देकर पांचवीं से निकाह करके पुरानी को Renew कर सकते हैं और यह रिआयत ता ज़िन्दगी बनी रहती है. 
पैग़म्बर के दामाद अली ने 18 निकाह किए और अली के बेटे हसन ने 72. 
 मुसलमानों का कोई गोत्र नहीं होता, उल्टा यह गोत्र में शादियाँ तरजीह देते हैं. 
बस कि सगी बहेन और न बीवी की बहन न हो.
हिन्दुओं के शास्त्र कुछ अलग ही सीमा बतलाते हैं कि इंद्र देव और कृष्ण भगवान ने हज़ारों पत्नियों का सुख भोगा . 
इनके पूज्य कुछ देव बहन और बेटियों का उपयोग किया है. 
इनमे बहु पत्नियाँ ही नहीं एक पत्नी के बहु पति भी हुवा करते थे. 
और तो और ऋषि मुनि पशु प्राणी का भी उपभोग करते थे. 
चीन में अभी की खबर है कि मुसलमानों की दाढ़ी और ख़तने पर भी पाबन्दी लगा दी  गई है. 
यह खुश खबरी है, 
वहां इस्लाम के सिवा किसी धर्म का अवशेष नहीं बचा. 
हिदुस्तान में देव रूपी खूंखार धर्म हिदू धर्म है जिसकी आत्मा इस्लाम में क़ैद है. 
इस्लाम पर कोई भी ज़र्ब हिन्दू देव को घायल करती है. इनको छूट देने पर ही हिंदुत्व का भला और बक़ा है वरना महा पाप का देव गया पानी में. 
जी हाँ ! इस्लाम अगर धरती पर पाप है तो मनुवाद धरती पर महा पाप है.
इस्लाम जो हो जैसा भी हो खुली किताब है, हिन्दू धर्म का तो कोई आकार ही नहीं.
वेद में कुछ लिखा है तो पुराण में कुछ. उपनिषद तो कुछ और ही कहते हैं.
हिंदी मानुस सब पर भरोसा करते हैं कि पता नहीं कौन सच हो और न माँ कर पाप लगे. 
एक वाक़ेए की haqeeqat दस पंडितो की लिखी हुई गाथा में दस अलग अलग सूरतें हैं. 
विष्णु भगवान की उत्पत्ति मेंढकी की योनि से लेकर गौतम बुद्ध तक पहुँचती है. 
ब्रह्मा के शरीर से निर्माण किया गया यह ब्रह्माण्ड, 
बम बम महा देव एक युग को ही बम से भस्म कर देते हैं. 
इस क़दर अत्याचार ? 
इसके आगे इस्लामी जेहादियों का क़त्ल व खून पिद्दी भर भी नहीं.
मनुवाद 5000 सालों से मानवता को भूखा नंगा और अधमरा किए हुए अपने क़ैद खानें रख्खे हुए है, 
जिहादी 5000 सालों में ५०० बार अपने अनजाम को पंहुचे .  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 25 November 2016

Soorah Muhammad 47 -2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह मुहम्मद -४७- पारा -२६
(दूसरी किस्त) 

"बेशक अल्लाह तअला उन लोगों को जो ईमान लाए और उनहोंने अच्छे काम किए, ऐसे बाग़ों में दाखिल कर देगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी. और जो लोग काफ़िर हैं वह ऐश कर रहे हैं और इस तरह खाते हैं जैसे चौपाए खाते हैं और जहन्नम जिनका ठिकाना है."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१२)

"और इस तरह खाते हैं जैसे चौपाए खाते हैं "
इंसान और चौपाए के खाने में भी मुहम्मद को फर्क नज़र आता है? क्या मुसलमानों के खाने का तरीक़ा इस्लाम लाने के बाद कुछ बदल जाता है? भूका प्यासा हर इंसान चौपाया बन जाता है ख्वाह हिदू हो या मुसलमान. नक़ली पैगम्बर बे सर पैर की बात ही पूरे कुरआन में बकते हैं.

"जिस जन्नत का मुत्ताकियों से वादा किया जाता है, उसकी कैफ़ियत ये है कि इसमें बहुत सी नहरें तो ऐसे पानी की हैं कि जिसमें ज़रा भी तगय्युर नहीं होगा और बहुत सी नहरें दूध की हैं जिनका ज़ाएकः  ज़रा भी बदला हुवा नहीं होगा और बहुत सी नहरें शराब की हैं जो पीने वालों को बहुत ही लज़ीज़ मालूम होंगी और बहुत सी नहरे शहद की जो बिलकुल साफ़ होगा और इनके लिए वहाँ बहुत से फल होंगे."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१५)

मुसलामानों! 
तुमको तालीम ए नव दावत दे रही है कि एयर कंडीशन फ्लेट्स में रहो, बजाए बाग़ में रहने के. क़ुरआनी तालीम तुम्हें दिक्क़त तलब सम्त में ले जा रही है.
अगर शौकीन हो तो शराब भी अपनी मेहनत की कमाई से पी पाओगे जो लज़ीज़ तो बहर हाल नहीं होगी मगर उसका सुरूर बा असर होगा.
मुहम्मद जन्नत में मिलने वाले दूध की सिफ़त बतलाते हैं कि 
"जिनका ज़ाएकः  ज़रा भी बदला हुवा नहीं होगा " 
तो दुन्या और जन्नत के दूध का क्या फर्क हुवा ?
पानी, दूध शराब और शहद की नहरें अगर बहती होंगी तो बे लुत्फ होंगी कि जिसमें आप नहाना भी पसँद नहीं करेंगे, पीना तो दर किनार  .

"बअज़े आदमी ऐसे हैं जो आप की तरफ़ कान लगाते हैं, यहाँ तक कि जब वह लोग आपके पास से बहार जाते हैं तो दूसरे अहले-इल्म से कहते हैं कि हज़रत ने अभी क्या बात फ़रमाया ? और जो ईमान वाले हैं वह कहते हैं कि कोई सूरत क्यूँ  न नाज़िल हुई ? सो जिस वक़्त कोई साफ़ साफ़ सूरह नाज़िल होती है  तो और इसमें जेहाद का भी ज़िक्र आता है, तो जिन लोगों के दिलों में बीमारी होती है तो आप उन लोगों को देखते हैं कि वह आप को किस तरह देखते हैं, कि जिस पर मौत की बेहोशी तारी हो, सो अनक़रीब इनकी कमबखती आने वाली है. इनकी इताअत और बात चीत मालूम है, पस जब सारा काम तैयार हो जाता है तो अगर ये लोग अल्लाह के सच्चे रहते तो उनके लिए बहुत ही बेहतर होता, सो अगर तुम कनारा कश रहो तो . . . . क्या तुमको एहतेमाल भी है कि तुम दुन्या में फ़साद मचा दो.
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (२०-२२)

मुहम्मद अपनी दास्तान उस वक़्त की बतला रहे हैं जब उनकी पैगम्बरी की लचर बातों से लोग बेज़ार हुवा करते थे वह अपनी बकवास किया करते थे और लोग कान भी नहीं धरते थे. पुर अमन माहौल में जब वह  जंग की आयतें अपने अल्लाह से उतरवाते तो लोग बेज़ार हो जाते. लोग रसूल को नफ़रत और हिक़ारत की नज़र से दखते कि जिसे वह खुद बयान कर रहे है. खुद दुन्या में फ़साद बरपा करके कहते हैं 
"क्या तुमको एहतेमाल भी है कि तुम दुन्या में फ़साद मचा दो"

"ये लोग हैं जिनको अल्लाह तअला ने अपनी रहमत से दूर कर दिया, फिर इनको बहरा कर दिया और फिर इनकी आँखों को अँधा कर दिया तो क्या ये लोग कुरआन में गौर नहीं करते या दिलों में कुफल लग रहे हैं. जो लोग पुश्त फेर कर हट गए बाद इसके कि सीधा रास्ता इनको मालूम हो गया , शैतान ने इनको चक़मा दे दिया और इनको दूर दूर की सुझाई है."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (२३-२५)

जब अल्लाह तअला ने उन लोगों को कानों से बहरा और आँखों से अँधा कर दिया और दिलों में क़ुफ्ल डाल दिया तो ये कुरआन की गुमराहियों को कैसे समझ सकते हैं? वैसे मुक़दमा तो उस अल्लाह पर कायम होना चाहिए कि जो अपने मातहतों को अँधा और बहरा करता है और दिलों पर क़ुफ्ल जड़ देता है मगर मुहम्मदी अल्लाह ठहरा जो गलत काम करने का आदी.. शैतान मुहम्मद बनी ए   नव इंसान को चकमा दे गया. की कौम पुश्त दर पुश्त गारों में गर्क़ है.

"और अगर तुम ईमान और तक्वा अख्तियार करो तो अल्लाह तुमको तुम्हारा उज्र अता करेगा और तुम से तुम्हारे माल तलब न करेगा. अगर तुम से तुम्हारे मॉल तलब करे, फिर इन्तहा दर्जे तक तुम से तलब करता रहे तो तुम बुख्ल करने लगो. और अल्लाह तअला तुम्हारी नागवारी ज़ाहिर करदेगा, हाँ तुम लोग ऐसे हो कि तुम्हें अल्लाह की राह में खर्च करने के लिए बुलाया जा रहा है. सो बअज़े तुम में ऐसे हैं जो  बुख्ल करते हैं. जो बुख्ल करता है सो वह खुद अपने से बुखल करता है और अल्लाह तो किसी का मोहताज नहीं और तुम सब मोहताज हो. और अगर तुम रू -ग़रदानी  करोगे तो अल्लाह तअला तुम्हारी जगह कोई दूसरी कौम पैदा कर देगा."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (३७-३८)

मुहम्मद अल्लाह तअला बने हुए है अपने बन्दों को समझा रहे हैं किअगर मैं हद से ज़्यादः तलब करूँ तो तुम बुखालात करो. मगर अगले पल ही अल्लाह की राह बतलाते हैं की जिस पर मुसलामानों को चलना है.
और बुखल करने वालों को तअने देते हैं.
मुहम्मद अल्लाह की राह में रक़म तलब करते हैं ताकि जेहाद के लिए फण्ड इकठ्ठा किया जा सके. जंग मुहम्मद की ज़ेहनी गिज़ा थी जिसमें लूट पाट करके इस्लाम को बढाया है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 21 November 2016

Soorah Muhammad 47 -1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह मुहम्मद -४७- पारा -२६
(पहली किस्त)
1
इस्लामी तरीक़े चाहे वह अहम् हों चाहे ग़ैर अहम्, इंसानों के लिए ग़ैर ज़रूरी तसल्लुत बन गए हैं. उनको क़ायम रखना आज कितना मज़ाक बन गया है कि हर जगह उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है. उन्हीं में एक थोपन है पाकी, यानी शुद्ध शरीर. कपडे या जिस्म पर गन्दगी की एक छींट भी पड़ जाए तो नापाकी आ जाती है. मुसलमान हर जगह पेशाब करने से पहले पानी या खुश्क मिटटी का टुकड़ा ढूँढा करता है कि वह पेशाब करने के बाद इस्तेंजा (लिंग शोधन) करे.आज के युग में ये बात कहीं कहीं कितनी अटपटी लगती है, ख़ास कर नए समाज की ख़ास जगहों पर. 
कपडे साफ़ी हो जाएँ मगर इसमें पाकी बनी रहे.
इसी तरह माँ बाप बच्चों को सिखलाते है सलाम करना, उसके बाद मुल्ला जी समझाते हैं  कि दिन में जितनी बार भी मिलो सलाम करो, शिद्दत ये कि घर में माँ बाप से हर हर मुलाक़ात पर सलाम करो. ये जहाँ लागू हो जाता है, वहां सलाम एक मज़ाक़ बन जाता है. इसी पर कहा गया है
"लोंडी ने सीखा सलाम, सुब्ह देखा न शाम." 

मुहम्मदी अल्लाह के दाँव पेंच इस सूरह में मुलाहिज़ा हो - - -
"जो लोग काफ़िर हुए और अल्लाह के रस्ते से रोका, अल्लाह ने इनके अमल को क़ालअदम (निष्क्रीय) कर दिए. और जो ईमान लाए, जो मुहम्मद पर नाज़िल किया गया है, अल्लाह तअला इनके गुनाह इनके ऊपर से उतार देगा और इनकी हालत दुरुस्त रक्खेगा."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१-२)

मुहम्मद की पयंबरी भोले भाले इंसानों को ब्लेक मेल कर रही है जो इस बात को मानने के लिए मजबूर कर  रही है कि जो गैर फ़ितरी है. क़ुदरत का क़ानून है कि नेकी और बदी का सिला अमल के हिसाब से तय है,ये  इसके उल्टा बतला रही है कि अल्लाह आपकी नेकियों को आपके खाते से तल्फ़ कर देगा. कैसी बईमान मुहम्मदी अल्लाह की खुदाई है? किस कद्र ये पयंबरी झूट बोलने  पर आमादः है.

"सो तुम्हारा जब कुफ़फ़ार  से मुकाबला हो जाए तो उनकी गर्दनें मार दो, यहाँ तक कि जब तुम इनकी ख़ूब खूँरेजी कर चुको तो ख़ूब मज़बूत बाँध लो, फिर इसके बाद या तो बिला मावज़ा छोड़ दो या मावज़ा लेकर, जब तक कि लड़ने वाले अपना हथियार न रख दें, ये हुक्म बजा लाना. अल्लाह चाहता तो इनसे इंतेक़ाम लेलेता लेकिन ताकि तुम में एक दूसरे के ज़रिए इम्तेहान करे. जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाते हैं, अल्लाह इनके आमाल हरगिज़ ज़ाया नहीं करेगा." 
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (३-४)

ऐसे अल्लाह और ऐसी पैगम्बरी पर आज इक्कीसवीं सदी में लअनत भेजिए. जो अज़हान इक्कीसवीं सदी तक नहीं पहुँचे वह इस नाजायज़ अल्लह की नाजायज़ औलादें तालिबानी हैं. ऐसे जुनूनियों के साथ ऐसा सुलूक जायज़ होगा कि नाजायज़ अल्लाह का क़ानून उसकी औलादों पर नाफ़िज़ हो. इस्लामी अल्लाह के अलावा कोई खुदा ऐसा कह सकता है क्या "अल्लाह चाहता तो इनसे इंतेक़ाम ले लेता लेकिन ताकि तुम में एक दूसरे के ज़रिए इम्तेहान करे." मुसलामानों! ऐसे अल्लाह और ऐसे रसूल की रहें जिस क़द्र जल्द हो सके छोड़ दो 

"ऐ ईमान वालो! अगर तुम अल्लाह की मदद करोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दम जमा देगा. और जो लोग काफ़िर हैं उनके लिए तबाही है और इनके आमल को अल्लाह तअला ज़ाया कर देगा, ये इस सबब से हुवा कि उन्हों ने अल्लाह के उतारे हुए हुक्म को ना पसंद किया,सो अल्लाह ने उनके आमाल को अकारत किया."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (७-९)

दुन्या का हर हुक्मराँ जंग में सब जायज़ समझ कर ही हुकूमत कर पाता है. अशोक महान ने अपनी हुक्मरानी में एक लाख इंसानी जानों की कुर्बानी दी थी, जंग को जीत जाने के बाद उसके एहसास ए हुक्मरानी ने शिकस्त मान ली कि क्या राजपाट की बुनन्यादों में हिंसा होती है? उसे ऐसा झटका लगा कि वह बैरागी हो गया, बौध धर्म को अपना लिया. वह कातिल हुक्मरान से महात्मा बन गया और इस्लामी महात्मा को देखिए कि क़त्ल ओ खून  का पैगाम  दे रहे हैं, वह भी  अल्लाह के पैगम्बर  बन  कर.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 19 November 2016

Hindu Dharam Darshan 25

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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मनु वाद का ज़हर ---(1)

जंगल में आज़ाद हाथियों को राम करके पालतू बनाने में सब से ज्यादा खुद हाथियों का किरदार होता है. जानवर ही नहीं इंसान भी पालतू हाथी ही हुवा करते हैं. 
35 करोर भारतीयों को एक लाख अँगरेज़, इन्हीं शरीर और ज़मीर के ग़ुलाम हिन्दुस्तानियों के बदौलत हमें गुलाम बना कर वर्षों आका बने रहे. 
यह शरीर और ज़मीर के ग़ुलाम इतिहास के पन्नो में बहुतेरे देखने को मिल जाएँगे. औरंगजेब के सिपाह सालार हिन्दू हुवा करते थे तो शिवाजी के मुस्लिम.
ज़माना लद गया और यह गुलामी इतिहास के पन्नो में दफ्न हुई, मगर नहीं, 
दुन्या की सब से बड़ी दास प्रथा मनुवाद आज तक भारत भूमि पर अमर बेलि की तरह फल फूल रही है. इसी से मुतास्सिर होकर इकबाल ने कहा था, 
क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, 
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहाँ हमारा. 
मनुवाद की बुन्याद झूट के ठोस बुन्यदों पर राखी हुई है. 
जिस में पुनर जन्म का चक्र ऐसा चक्र है कि इसको एक बार चला दिया जाए तो यह चलता ही रहता है, बेचारा दास अपनी ज़िन्दगी को पूर्व जन्म के पाप का परिणाम समझने लगता है, मनु वंश इन पापियों पर भरपूर नफरत बरसता है और तमाम सुख-सुविधओं के साथ तमाशा देखता रहता है. 
मनुवाद की तस्वीर भारत में आज भी खुली आँखों से देखी जा सकती है. 
आर्यन भारत में पश्चिम की ओर से आते और भारत के मूल निवासियों को अपना गुलाम बनाते, जो मूल निवासी भागने में कामयाब हो जाते वह भारत के दक्छिन में पनाह पाते. आर्यन हमला तो लगातार बना रहता, 
मगर उनके यलगार मुख्यता चार बार हुए हैं जिसके रद-ए-अमल में हर बार मूल निवासी पच्छिम से दच्छिन की तरफ पनाह पाकर बसते गए. 
आज द्रविड़ मुंनैत्र कड़गम जैसी मूल निवासी मानव श्रृंखला इसके सुबूत हैं. 
कुछ आर्यन दख्खन में भी  पहुचे मगर वहां मूल निवासियों के जमावड़े के आगे वह भीगी बिल्ली बने हुए है,
उत्तर भारत में आर्यन का पूरा पूरा साम्राज कायम हुवा जहाँ वर्ण व्योवस्था की बुन्याद जो पड़ी तो आज सत्तर साल  देश आज़ाद होने के बाद भी कायम है. 

मनु वाद का ज़हर ---(2)
हालांकि वैदिक कालीन 5000 वर्षों में आखिर एक हज़ार वर्षों में, 
इस्लाम की आमद से और फिर ईसाई मिशनरीज़ की कोशिशों के बदौलत, 
दलित, दमित मजलूमों को मनुवाद से मुक्त होने का मौक़ा मिला, 
इनकी बरकतों से भारत की आधी आबादी मनुवाद के चंगुल से मुक्त हुई. 
भारत आज़ाद हुवा डा. भीमराव आंबेडकर के विचार धारा के साथ, 
मनुवाद के हाथों से तोते उड़ गए. 
नेहरु की निगरानी में नए भारत का उदय हुवा, 
साठ सालों में भारत का भाग्य बदला, 
मेरा बाल काल था, मैं इस बात गवाह हूँ कि भारत के इस सपूत नेहरु ने मानव जीवन को नया आयाम दिया, मेरी बस्ती जहाँ दो चार घर पक्के हुवा करते थे, 
वहां आज दो चार घर ही कच्चे बाकी बचे हुए है.
पूरा भारत बदहाली का शिकार था, आज खुश हाली से मालामाल हो रहा है. 
मनुवाद जिस पर पाबंदी जैसी अवस्था लगा दी गई थी, 70 साल बाद फिर जीवित और जवान हो चुका है. 
फिर खुलेआम शूद्रों पर मज़ालिम की शुरुआत हो गई है, 
खास कर उस आबादी पर जो शूद्र से मुसलमान या ईसाई हो गए थे, 
उन्हें मनुवाद घर वापसी के लिए मजबूर कर रहा है.
मनुवाद ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना करके नागपुर से पूरे देश को कंट्रोल करता है, 
हमेशा की तरह यह किंग मेकर बना हुवा है, 
और किंग से अपने पैर पुजवाता है. 
अतीत में इसके पास हनुमान की निगरानी में वानर सेना (शूद्रों की)  हुवा करती थी, 
आज भी RRS के स्वयं सेवक यानी सिपाही वही दैत्य हैं. 
जंगल में मुक्त हाथियों को पालतू दास बनाने में इन्हीं पालतू हाथियों को RRS इस्तेमाल कर रहा है.

इतिहास का अपना चेहरा  होता है, देखते जाइए कि इतिहास क्या क्या रूप दिखलाए. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 18 November 2016

SoorahAhqaf 46 – 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
************

सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  
दूसरी क़िस्त 



"हम ने तुम्हारे आस पास की और बस्तियाँ भी ग़ारत की हैं और हम ने बार बार अपनी निशानियाँ बतला दी थीं, ताकि वह बअज़ आएँ, सो जिन जिन चीजों को उन्हों ने अल्लाह का तक़र्रुब हासिल करने के लिए अपना माबूद बना रखा है, उन्हों ने इनकी मदद क्यूँ न कीं, बल्कि जब वह उनसे गायब हो गए और ये सब उनकी तराशी और गढ़ी हुई बात है."

सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (२७-२८)

ऐ मुसलमानों! 
क्या तुम इतने कुन्द ज़ेहन हो कि किसी मक्कार और चल बाज़ की बातों में आ जाओ? क्या तुम्हारा रुवाए ज़माना अल्लह इस क़दर ज़ालिम होगा कि बस्तियों को ग़ारत कर दे? उसकी नक्ल में अली मौला ने एक गाँव के लोगों को जिंदा जला के मार डाला. अगर तुम कट्टर मुसलमान अली मौला की तरह हो तो क्यूं न तुम को और तुम्हारे परिवार को जिंदा जला दिया जय? अभी सवेरा है अपने ज़मीर की आवाज़ सुनो. तुहारे लिए एक ही हल है कि तरके-इस्लाम करके मोमिन होने का एलान करदो.

"और जब हम जिन्नात की एक जमाअत को आपके पास लेकर आए तो कुरआन सुनने लगे थे, गरज़ जब वह कुरआन के पास आए तो कहने लगे खामोश रहो, फिर जब कुरआन पढ़ा जा चूका तो वह अपनी कौम के पास खबर पहुँचाने के वास्ते गए. कहने लगे कि ऐ भाइयो! हम एक किताब सुन कर आए हैं जो मूसा के बाद नाज़िल हुई है, जो अपने से पहले की किताबों को तसदीक़ करती है हक़ और रहे रास्त की रहनुमाई करती है.. ऐ भाइयो! अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले का कहना मानो और इस पर ईमान ले आओ. अल्लाह तअला तुमको मुआफ़ कर देगा और तुमको अज़ाबे दर्द नाक से महफूज़ रख्खेगा."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (२९-३१)  

आयत पर गौर करो कि कितना बड़ा झूठा है तुम्हारा सल्ललाह ओ अलैहे वसल्लम. ड्रामे गढ़ता है और उसे किर्दगार ए कायनात के फ़रमान बतलाता है.



"जो शख्स अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले का कहना नहीं मानेगा वह ज़मीन में हरा नहीं सकता. और अल्लाह के सिवा कोई इसका हामी भी न होगा. ऐसे लोग सरीह गुमराही में हैं."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (३२)

एक जुमला भी सहीह न बोल पाने वाला उम्मी तुम्हें अपना मज़हब सिखलाता है, गौर करो " वह ज़मीन में हरा नहीं सकता." इसकी इस्लाह ओलिमा हराम जने किया करते हैं,
 मुहम्मद बार बार कहते हैं कि उनका कलाम जादू का असर रखता है, ओलिमा कहते हैं नौज़ बिल्लाह जादू तो झूटा होता है अल्लाह के कहने माँ मतलब ये हा कि - - .

"क्या उन लोगों ने ये न जाना कि जिस अल्लाह ने ज़मीन और आसमान को पैदा किया और उनके पैदा करने में ज़रा भी नहीं थका, वह इस पर कुदरत रखता है कि मुरदों को ज़िंदा कर दे. क्यूँ न हो ? बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है. और जिस रोज़ वह काफ़िर दोज़ख के सामने ले जाएँगे. क्या वह दोज़ख अम्र वाक़ई नहीं है? वह कहेंगे हम को अपने परवर दिगार की क़सम ज़रूर अम्र वाक़ई है. इरशाद होगा अपने कुफ्र के बदले इस का मज़ा चख्खो."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (३४) 

देखिए कि गंवार अपने अल्लाह को कभी न थकने वाला मख्लूक़ बतलाता है, जैसे खुद था कि जिसे झूट गढ़ने से कभी कोई परहेज़ न था.
अम्र ए वाक़ई ? पढ़े लिखों की नक़ल जो करता था.



"तो आप सब्र करिए जैसा कि और हिम्मत वाले पैगम्बरों ने किया है और इन लोगों के वास्ते इंतेक़ाम की जल्दी न करिए. जिस रोज़ ये लोग इस चीज़ को देखेंगे जिसका वादा किया जाता है, तो गो ये दिन भर में एक घडी रहेगे, ये पहुँचा देना है, सो वह ही बर्बाद होंगे, जो नाफ़रमानी करेंगे."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (३५)  

शर्री रसूल के बाप को किसी ने नहीं मारा कि वह उससे इंतेक़ाम ले न दादा को. वह तो इस बात का बदला लेगा कि उसकी रिसालत को लोग नहीं मान रहे हैं जो कि किसी बच्चे के गले भी नहीं उतरती.
लाखों लोग उसके इंतेक़ाम के शिकार हो गए.

*क़ुरआन की लाखों झूटी तस्वीरें इस्लामी आलिमों ने दुन्या के सामने अब तक पेश की हैं. " हर्फ़ ए ग़लत" आप की ज़बान में गालबान पहली किताब है जो  उरियां सदाक़त के साथ आप के सामने एक बाईमान मोमिन लेकर आया है. इसके सामने कोई भी फ़ासिक़ लम्हा भर के लिए नहीं ठहर सकता.
क़ुरआनी अल्लाह के मुकाबिले में कोई भी कुफ़्र का देव और शिर्क के बुत बेहतर हैं कि अय्याराना कलाम तो नहीं बकते, डराते धमकाते तो नहीं, गरयाते भी नहीं, पूजो तो सकित न पूजो तो सकित, जिस तरह से चाहो  इनकी पूजा कर सकते हो, सुकून मिलेगा, बिना किसी डर के. इनकी न कोई सियासत है, न किसी से बैर और बुग्ज़.  इनके मानने वाले किसी दूसरे तबके, खित्ते और मुखालिफ पर ज़ोर ओ ज़ुल्म करके अपने माबूद को नहीं मनवाते. इस्लाम हर एक पर मुसल्लत होना अपना पैदायशी हक समझता है. जब तक इस्लाम अपने तालिबानी शक्ल में दुन्या पर क़ायम रहेगा, जवाब में अफ़गानिस्तान,इराक़ और चेचेनिया का हश्र  इसका नसीब बना रहेगा.
भारत में कट्टर हिन्दू तंजीमे इस्लाम की ही देन हैं. गुजरात जैसे फ़साद का भयानक अंजाम क़ुरआनी आयातों का ही जवाब हैं. ये बात कहने में कोई मुजायका नहीं कि जो मुकम्मल मुसलमान होता है वह किसी जम्हूरियत में रहने का मुस्ताक नहीं होता. मुसलामानों के लिए कोई भी रास्ता बाकी नहीं बचा है, सिवाय इसके कि तरके इस्लाम करके मजहबे इंसानियत क़ुबूल कर लें. कम अज़ कम हिदुस्तान में इनका ये अमल फाले नेक साबित होगा राद्दे अमल में कट्टर हिदू ज़हनियत वाले हिदू भी अपने आप को खंगालने पर आमादा हो जाएँगे. हो सकता है वह भी नए इंसानी समाज की पैरवी में आ जाएँ. तब बाबरी मस्जिद और राम मंदिर, दो बच्चों के बीच कटे हुए पतंग के फटे हुए कागज़ को लूटने की तरह माज़ी की कहानी बन जाए. तब दोनों बच्चे कटी फटी पतंग को और भी मस्ख करके ज़मीन पर फेंक कर क़हक़हा लगाएँगे. इंसान के दिलों में ये काली बलूगत को गायब करने की ज़रुरत है, और मासूम ज़हनों में लौट जाने की.       



कलामे दीगराँ  - - -
"इंसान को अपनी बे एतदाल तबीअत और बोझिल हसरतों को छोड़ कर सादा लौही और शुरूवाती उसूलों को अपनाना चाहिए."
"कानफियूशस Kung Fu Tzu" 
(चीनी धर्म गुरु)

इस कहते हैं कलाम पाक 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 15 November 2016

Hindu Dharam Darshan 24

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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एक कहानी, नाना के ज़ुबानी 

महमूद गजनवी सोमनाथ को जब सोलवहीं बार लूट पाट करके वापस गजनी पहुंचा तो उसकी बीवी ने दरयाफ्त किया कि हमला कैसा रहा ? 
महमूद ने जवाब दिया बदस्तूर पहले जैसा, 
जितनी दौलत चाही महंत ने दे दिया. कोई हमला, न खून खराबा. 
बीवी बोली - - - गोया वसूली करके चले आए ?
यानी बुतों को उनके हाथ बेच कर चले आए? 
महमूद ने पूछा, कहना क्या चाहती हो ? 
बीवी बोली बुरा तो नहीं मानेंगे ? 
नहीं कह भी डालो. महमूद बोला 
बीवी बोली क़यामत के रोज़ अल्लाह तअला तुमको 
महमूद बुत फरोश के नाम से जब पुकारेगा तो कैसा लगेगा? 
महमूद ने गैरत से आँखें झुका लीं. 
दूसरे रोज़ सुबह अपन सत्तरह घुड सवारों को लिया और सोमनाथ को कूच कर दिया . इस बार भी महंत जी फिरौती लिए खड़े थे, 
महमूद ने तलवार की नोक से नजराने की थाली को हवा में उडा दिया. 
पुजारी समेत मंदिर का पूरा अमला सोमदेव के सामने दंडवत होकर लेट गया  
कि कोई चमत्कार कर दो महाराज ! 
उनको विश्वाश था कि यवण भस्म हो जाएँगे. 
मंदिर के सैकड़ों रक्षकों ने लुटेरों से मुकाबिला करने का साहस नहीं किया . 
महमूद के सिर्फ 17 सिपाहियों ने मंदिर को तहेस नहेस कर के खजाने तक पहुँचने में कामयाबी हासिल की. 
खज़ाना देख कर उनकी आँखें खैरा हो गईं. 
सोना चाँदी हीरे जवाहरात का अंबार. 
महमूद ने ऊँट गाड़ी तलाश किया और सोमनाथ की अकूत दौलत ऊंटों पर लाद कर गजनी ले गया. 
महमूद गजनी पहुँच कर सब से पहले अपनी बीवी के आँचल पर दो रिकातें नमाज़ शुकराना अदा किया. 
महमूद सोमनाथ के कुछ अवशेष भी साथ ले गया जो आज भी गजनी मी एक मस्जिद में प्रवेश द्वार के जीनों में लगे हुए हैं .
नाना की ज़बान से यह कहानी, 
इस वजेह से दोहराने की ज़रुरत पड़ी कि हमारे हिंदू मित्र मनन और चितन करें 
कि मंदिरों की मानसिकता क्या होती है? 
सैकड़ों सालों बाद आज भी कोई फर्क नहीं पड़ा. 
आज भी भारत की मंदिरों में बेशुमार दौलत निष्क्रीय पड़ी हुई है . 
लोगों का अनुमान है कि भारत सरकार के पास इतना सोना नहीं है, 
जितना भारत के मंदिरों में जाम पड़ा हुवा है. 
कौन भगवन है ? इस दौलत को वह क्या करेगा ?  
यह मनु विधान की एक व्योवस्था है जो उनको महफूज़ और मज़बूत किए हुए है.
महमूदों की सुल्तानी गई, अरबी बद्दुओं की लूट पाट का दौर भी गया, 
मनुवाद और शुद्र वाद अपनी जगह पर कायम हैं.
अब भारत को एक माओत्ज़े तुंग की ज़रुरत है 
जो इन मठा धीशों का काम तमाम करके देश की 40% आबादी को 
गरीबी रेखा से निकाल कर भारत का भाग्य बदले .        




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 14 November 2016

SoorahAhqaf 46 - 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अहक़ाफ़ ४६  

(पहली किस्त)

"यह किताब अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाले  की तरफ़ से भेजी गई है."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६   आयत (२)

ज़बरदस्त यानी जब्र करने वाला, जो ज़बरदस्त हो वह अल्लाह कैसे हो सकता है? इंसानी हिकमतो से अल्लाह बे ख़बर है, वरना मुहम्मद को ऐसी सज़ा देता की पैगम्बरी छोड़ कर वह बकरियाँ चराने वापस चले जाते, दाई हलीमा के पास. अल्लाह अगर है तो शफीक़ बाप की मानिंद होगा.

"जो लोग काफ़िर हैं, उनको जिस चीज़ से डराया जाता है, वह उससे बे रुखी करते हैं"
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६   आयत (3)

सबसे बड़ा काफ़िर मुसलमान होता है जो खुदा की मख्लूक़ को काफ़िर, मुशरिक, मुकिर और मुल्हिद समझता है. इरतेकाई मरहलों को पार करता हुवा कारवाँ पुर फरेब वहदानियत के चपेट में आकर मुसलमान बना तो दुन्या की तमाम बरकतें उस पर हराम हो गई. जिन्होंने बे रुखी बरती वह सुर्खरू हैं.

"आप कहिए कि ये तो बताओ कि जिस चीज़ की तुम अल्लाह को छोड़ कर, इबादत करते हो, मुझको  दिखलाओ कि उन्होंने कौन सी ज़मीन पैदा की है? या उसका आसमान के साथ कुछ साझा है. मेरे पास कोई किताब जो पहले की हो, या कोई मज़मून मनकूल लाओ अगर तुम सच्चे हो?" और जब हमारी खुली खुली आयतें उन लोगों के सामने पढ़ी जाती हैं तो ये मुनकिर लोग उसकी सच्ची बात की निस्बत, जब कि ये उन तक पहुँचती है, ये कहते हैं, ये सरीह जादू है."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६   आयत (४-७)

ज़मीन ओ आसमान को पैदा करने वाली कोई भी ताक़त हो मगर मुहम्मदी अल्लाह जैसा अहमक लाल बुझक्कड़ नहीं हो सकता. मुहम्मद अपनी किताबे-वाहियात को दुन्या के बड़े बड़े ग्रंथों के आगे रख कर पशेमान तो न हुए मगर इसको रटने वाले आज मिटटी के मोल हो रहे है, पस्मान्दा कौम का नाम इनको दिया जा रहा है. इसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह के साझीदार मुहम्मद पर आती है.

"क्या ये लोग कहते हैं कि इसको इसने अपनी तरफ़ से बना लिया है? कह दीजिए कि इसको अगर मैंने अपनी तरफ़ से बना लिया है तो तुम लोग मुझे अल्लाह से बिलकुल नहीं बचा सकते. वह खूब जानता है कि तुम कुरआन में जो बातें बता रहे हो, मेरे और तुम्हारे दरमियान वह काफ़ी गवाह है, और  वह मग्फ़िरत वाला और रहमत वाला है."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६   आयत (८)

ये मुहम्मद का मेराजे अय्यारी है.

"और आप कह दीजिए कि तुम मुझको ये तो बताओ कि ये कुरआन मिन जानिब अल्लाह हो और तुम इसके मुनकिर हो और बनी इस्राईल में से कोई गवाह इस जैसी किताब पर गवाही देकर ईमान ले आवे और तुम तकब्बुर में ही रहो. बेशक अल्लाह बे इन्साफ़ लोगों को हिदायत नहीं करता."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (१०)

दो एक लाखैरे यहूदी मुसलमान हो गए थे तो उनको को बुनियाद बना कर खुद को अल्लाह का रसूल साबित करना चाहते हैं. मुहम्मद की बकवास किताब को न तस्लीम करना लोगों की बे इंसाफी ठहरी? आज भी इन बातों को पढ़ कर उम्मी रसूल से सिर्फ़ नफ़रत बढ़ती है. उस वक़्त लोग पागल समझ कर टाल जाया करते थे.

"और हमने इंसान को अपने माँ बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है. इसकी माँ ने इसको बड़ी मशक्क़त के साथ पेट में रख्खा है, और बड़ी मशक्क़त के साथ इसको जना और इसका दूध छुड़ाना तीस महीने में है, यहाँ तक कि जब वह अपनी जवानी तक पहुँच जाता है और चालीस बरस को पहुँचता है तो कहता है, ऐ मेरे परवर दिगार मुझ को इस पर हमेशगी दीजे  कि मैं आपकी इन नेमत का शुक्र अदा किया करूँ जो आपने मुझको और मेरे माँ बाप को अता फ़रमाई."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (१५)

अल्लाह हमल से लेकर चालीस साल की उम्र तक इंसान से मुहम्मद के प्रोग्रामिंग के हिसाब से जिलाता है, साथ में उसकी हिदायतें भी उनके सबक में हैं. क्या आयतें किसी सनकी की बकवास नहीं लगती?

कलामे दीगराँ  - - -
"ज़्यादः रौशनी इंसान को अँधा बना देती है, अलफ़ाज़ बहरा बना देते हैं, लज्ज़तें ज़बान को बे ज़ायक़ा कर देती हैं और क़ीमती अश्या लालच में डाल देती हैं, इस लिए समझदार लोग ज़मीर की तरफ़ मुतावज्जो होते हैं, न कि  नफ्स की तरफ़"
"ताओ"


इस कहते हैं कलाम पाक


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Hindu Dharam Darshan 23

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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वैदिक युग
मैं अपने हिन्दू पाठकों को बतलाना चाहता हूँ कि 
कम बुरा इस्लाम, अधिक बुरे हिंदुत्व से कुछ बेहतर है. 
यह बात अलग है कि बहु संख्यक की आवाज़ अल्प संख्यक पर भारी पड रही है 
मगर सत्य की आवाज़ दबी हुई जब उभरती है तो हर तरफ सन्नाटा छा जाता है .
इसका जीता जगता सुबूत यह है कि हमेशा की तरह आज भी कम बुरा इस्लाम, 
हिन्दुओं को अपनी तरफ खींच रहा है, 
अल्ला रखखा रहमान से लेकर शक्ति कपूर तक सैकड़ों संवेदन शील लोग देखे जा सकते हैं , 
जबकि कोई अदना मुसलमान भी नहीं मिलेगा 
जो इस्लाम के आगे हिंदुत्व को पसंद करके हिन्दू बन गया हो .
कुछ मुख़्तसर सी बातें देखी - - -
एक अल्लाह की पूजा और बेशुमार भगवानो की पूजा ? 
कौन आकर्षित करता है अवाम को ? 
ऐसी ही बहुत सी समाजी बुराइयाँ मुसलमानों में कम है, हिन्दुओं से . 
मसलन शराब और दूसरे नशा .
त्योहारों को ही लीजिए, दीपावली आई तो रौशनी कर के बिजली घर को आफत में डाल दिय जाता है , 
पटाखे से जान माल और पर्यावरण को नुकसान, 
जुवा खेलना भी इसका महूरत है .
होली को खुद हिन्दुओं में संजीदा हिन्दू पसंद नहीं करते . 
अंधेर है कि होली में अमर्यादित गालियां गई जाती हैं , 
रंग गुलाल को नाक से फांका जाता है .
दर्शन और स्नान के नाम पर पंडों की दासता .
इन तमाम बुराइयों से मुसलमान अलग नज़र आता है. 
अपने त्योहारों को भी पाक साफ़ रखता है और कोई पंडा बंधन नहीं .
फिर एक बार वैदिक युगीन हिंदुत्व के हाथों में सत्ता आ गई है. 
हिंदुत्व का दबाव जितना बढेगा, इस्लाम को भारत में उतना ही फलने फूलने का अवसर मिलेगा. 
कहीं ऐसा न हो कि संघ परिवार का सपना देखते ही देखते चकना चूर हो जाए 
कि कोई समाजी इन्कलाब आए और भारत का नक्शा ही बदल जाए .
नेहरु का हिदोस्तान सही दिशा में जा रहा था, 
धर्म रहित मर्यादाएं विकसित हो रही थीं . 
याद नहीं कि हमने कभी उनको या उनके साथियों को टीका लगा देखा हो 
आज सारी की सारी सरकारी मिशनरी टीका और बिंदिया से सुसज्जित दिखाई देती हैं . 

समाजी मुजरिम मंत्री बने नफरत फैला रहे हैं ,


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 11 November 2016

Soorah Jasia 45 - 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह जासिया -४५- 
दूसरी किस्त 


क़ुदरत ने ये भूगोल रुपी इमारत को वजूद में लाने का जब इरादा किया तो सब से पहले इसकी बुनियाद 
"सच और ख़ैर" 
की कंक्रीट से भरी. फिर इसे अधूरा छोड़ कर आगे बढती हुई मुस्कुराई कि मुकम्मल इसको हमारी रख्खी हुई बुनियाद  करेगी. वह आगे बढ़ गई कि उसको कायनात में अभी बहुत से भूगोल बनाने हैं. 
उसकी कायनात इतनी बड़ी है कि कोई बशर अगर लाखों रौशनी साल (light years ) की उम्र भी पाए तब भी उसकी कायनात के फासले को तय नहीं कर सकता, तय कर पाना तो दूर की बात है, अपनी उम्र को फासले के तसव्वुर में सर्फ़ करदे तो भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाएगा  .
कुदरत तो आगे बढ़ गई इन दो वारिसों  "सच और ख़ैर" के हवाले करके इस भूगोल को कि यही इसे बरक़रार रखेंगे जब तक ये चाहें. 
भूगोल की तरह ही क़ुदरत ने हर चीज़ को गोल मटोल पैदा किया  
कि ख़ैर के साथ पैदा होने वाली सादाक़त ही इसको जो रंग देना चाहे दे. 
क़ुदरत ने पेड़ को गोल मटोल बनाया कि इंसान की "सच और ख़ैर" की तामीरी अक्ल इसे फर्नीचर बना लेगी, उसने पेड़ों में बीजों की जगह फर्नीचर नहीं लटकाए. 
ये ख़ैर का जूनून है कि वह क़ुदरत की उपज को इंसानों के लिए उसकी ज़रुरत के तहत लकड़ी की शक्ल बदले.
तमाम ईजादें ख़ैर(परोकार) का जज्बा ही हैं कि आज इंसानी जिंदगी कायनात तक पहुँच गई है, 
ये जज़्बा ही एक दिन इंसानों को ही नहीं बल्कि हैवानों को भी उनके हुकूक दिलाएगा.
जो सत्य नहीं वह मिथ्य है. 
दुन्या हर तथा कथित धर्म अपने कर्म कांड और आडम्बर के साथ मिथ्य है, इससे मुक्ति पाने के बाद ही क़ुदरत का धर्म अपने शिखर पर आ जाएगा और ज़मीन पाक हो जाएगी.
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क़ुरान कहता है - - - 

"आप ईमान वालों से फ़रमा दीजिए कि उन लोगों से दर गुज़र करें जो खुदा के मुआमलात का यक़ीन नहीं रखते ताकि अल्लाह तअला एक कौम को  इनके आमल का सिला दे.
सूरह जासिया -४५-पारा - २५ आयत (१५)

मजहबे इस्लाम में इतने पोल खाते हैं कि दलायल गढ़ने वाला अल्लाह पल भर भी किसी बहस मुबाहिसे वाली महफ़िल में टिक नहीं सकता, इस लिए इसका हल पेश कर रहा है कि मुसलमान बुद्धि जीवयों का शिकार न बने और उनकी संगत से बाहर आ जाएं. 
उम्मी मुहम्मद ने मुसलामानों की किस क़दर घेरा बंदी की है, इसकी गवाही पूरे कुरान में देखी जा सकरी है. मुल्ला जी दानिश वरों की महफ़िल से उठ कर खिसक लेते हैं.
ये वही ज़माना है जब मुहम्मद दीवाने पागल की तरह हर जगह अपनी आयतें गाते फिरते थे और अवामी रद्दे अमल को खुद बयान करते है. 
क्या आज भी ऐसे शख्स के साथ यही सुलूक नहीं किया जायगा? 
मगर माज़ी की इस कहानी को जानते हुए आज मुसलमान उसकी बातों पर यक़ीन करने लगे.
बुद्धि हाथों पे सरसों उगाती रही,
बुद्धू कहते रहे कि चमत्कार है.


"मुनकिर लोग कहते हैं कि बजुज़ हमारी इस दुनयावी हयात के और कोई हयात नहीं है. हम मरते हैं न जीते हैं और हमको सिर्फ ज़माने की गर्दिश से मौत आ जाती है, और उन लोगों के पास कोई दलील नहीं है, महज़ अटकल हाँक रहे है. और जिस वक़्त इन लोगों के सामने हमारी खुली खुली आयतें पढ़ी जाती हैं तो इनका बजुज़ इसके कोई जवाब नहीं होता कि हमारे बाप दादों को ज़िदा करके लाओ."
सूरह जासिया -४५-परा - २५ आयत (२५-४४)

देखिए कि उस ज़माने में भी ऐसे साहिबे फ़िक्र थे जिन्होंने ज़िन्दगी को समझने की कोशिश की थी. उनकी फ़िक्र की गहराई देखें
" बजुज़ हमारी इस दुनयावी हयात के और कोई हयात नहीं है. हम मरते हैं न जीते हैं और हमको सिर्फ ज़माने की गर्दिश से मौत आ जाती है"
उनको जवाब में मुहम्मद की "खुली खुली आयतें" हैं जिन की उरयानियत मुसलामानों को मुँह चिढ़ाती हैं.

"और हमने बनी इस्राईल को किताब और हिकमत और नबूवत दी थी और हमने उनको नफ्से-नफ़ीस चीजें खाने को दी थीं और हमने उनको दुन्या जहान वालों पर फ़ौक़ियत दी थी और हमने उनको दीन के बारे में खुली खुली दलीलें दीं, सो उन्हों ने इल्म के आने के बाद बाहम एख्तेलाफ़ किया बवजेह आपस की ज़िद्दा ज़िद्दी. आप का रब इनके आपस में बैर रखने का क़यामत के रोज़ इन उमूर में फ़ैसला करेगा जिसके लिए इन में बाहम इख्तेलाफ़ किया करते थे, फिर हमने आप को दीन का एक तरीक़ा दिया, सो आप तरीके पर चलते जाइए, और इन जाहिलों की ख्वाहिश पर मत चलिए."
सूरह जासिया -४५-परा - २५ आयत (१६-१८)

मुहम्मद ने जितना बनी इस्राईल के बारे में जाना है, बयान कर दिया. जबकि इनकी बुनयादी अक़ीदे को जानते भी नहीं. 
इस्रईलयों के खुदा ने इन्हें दिया हुआ है क़ि तुम ही पूरी दुन्या के हाकिम रहोगे और दुन्या की तमाम कौमें तुम्हारे तुफ़ैल में ज़िन्दगी जिएँगी. 
उन्हीं के वंशज आर्यन हिदुस्तान में ब्रहमिन यानी इब्राहीमी अपने ब्रहमा का वरदान लिए हिंदुस्तान में आज भी सुपरमैन बने हुए है. 
आज भी पूरी दुन्या में यही यहूदी सबसे ज़्यादः दौलत मंद और साइंस दान मौजूद हैं, मगर ये भी क़रारा सच है कि दुश्मने इंसानियत होने की वजेह से अपनी ही जाति की बड़ी कुर्बानी दी है. 
इनका बड़ा गुनाह ये है क़ि अमरीका में मालिक रेड इंडियन का इन्हों ने सफ़ा ए हस्ती से मिटा दिया. भारत के असली बाशिंदों पाँच हज़ार साल से ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी जीने को मजबूर किए हुए हैं.
ये दुन्या अभी भी रचना काल में है और शायद हमेशा रचना काल में रहेगी. इसकी रचना में बाधा बन कर कभी मूसा पैदा होते हैं, कभी ब्राह्मन तो कभी मुहम्मद.
जब तक धरती पर धर्म के धंधे बाज़ ज़िंदा हैं, इंसानियत कभी फल फूल नहीं सकती.

कलामे दीगराँ - - -
"जो जवानी में ऐसा नरम नहीं जैसा बच्चों को होना चाहिए, 
जो बुढ़ापे में ऐसा काम नहीं कर पाया जो अगली नस्लों के लिए मुफीद हो, जो बुढ़ापे तक सिर्फ जीता ही रहा, ऐसा इंसान महामारी है"
"कानफियूशस Kung Fu Tzu"
(चीनी धर्म गुरु)
इसे कहते हैं कलाम पाक

"इंसान को अपनी बे एतदाल तबीअत और बोझिल हसरतों को छोड़ कर सादा लौही को अपनाना चाहिए."





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 9 November 2016

Hindu Dharam Darshan 22

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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धर्म मुक्त धरती 

अन्न और घी को आग में झोंक कर कायनात को शुद्ध करने वाले मूरख अपनी नीदें खोलें, उनको गलत फहमी है कि सदियों बाद उनका साम्राज्य स्थापित होने जा रहा है। बार बार उनके कान में फूंका जा रहा है कि शब्द हिन्दू, आक्रमण कारी विजेताओं, अरबियों और फारसियों की बख्शी हुई उपाधि है, जो उनकी भाषा में कुरूप काले चोर उचक्कों को कहा जाता है 
और तथा कथित हिन्दू परिषद फिर भी अपने इस अपमान पर गर्व करता है ?? 
कैसा आस्चर्य है कि शायद यही हिन्दू परिषद की नियति है। 
दक्षिण भारत में "द्रविण मुन्नैत्र" शुद्घ शब्द है जोकि हिन्दू का बदल हो सकता है , 
मगर यहाँ पर स्वर्ण फिर भी फंस जाते हैं कि वह आर्यन है और उनका मूल रूप ईरान है। इस ऐतिहासिक सत्य को कभी भी ढका नहीं जा सकता। 
दर अस्ल हिंदुत्व और इस्लाम एक ही सिक्के दो पहलू हैं। 
हिंदू अपने आधीनों को कभी भी मार नहीं डालता , 
उसके यहाँ तो जीव हत्या पाप है 
चाहे वह बीमारी फ़ैलाने वाले जीव जंतु ही क्यों न हों। 
आधीन उसके लिए"सवाब जरिया" (सदयों जारी रहने वाला पुण्य) होते हैं जिन्हें वह कभी मारता है, और न मोटा होने देता है। 
मनुवाद को ईमान दारी से पढ़िए। 
इस्लाम क़त्ल और गारतगरी पर ईमान रखता है , 
यहूदियत की तरह। 
हिन्दू परिषद वालो सावधान ! 
देश की अवाम जाग चुकी है , 
तुमको हमेशा की तरह एक बार भी बड़ी ज़िल्लत उठानी पड़ेगी।  
मानवता अपने शिखर विंदू को छूने वाली है। 
जिसके तुम दुश्मन हो. 
इस्लाम खुद अपने ताबूत में आखरी कील ठोंक रहा है। 
सऊदी की जाम गटरों से क़ुरआन की जिल्दें निकाली जा रही हैं।  
बहुत हो चुकी धर्म व् मज़हब की धांधली ,
अब मानव समाज को धर्म मुक्त धरती चाहिए 
जो फ़ितरी सदाक़तो और लौकिक सत्य पर आधारित हो। 
अल्लाह कुछ और नहीं यही कुदरत है , कहीं और नहीं , सब तुम्हारे सामने मौजूद है, अल्लाह के नाम से जितने नाम सजे हुए हैं सब तुम्हारा वह्म है और साज़िश्यों की तलाश है . 
कुदरत जितना तुम्हारे सामने मौजूद है उससे कहीं ज्यादा तुम्हारे नज़र और जेहन से परे है. उसे साइंस तलाश कर रही है. जितना तलाशा गया है वही सत्य है,   बाक़ी सब इंसानी कल्पनाएँ हैं .
आदनी आम तौर पर अपने पूज्य की दासता चाहता है, ढोंगी पूज्य पैदा करते रहते हैं और हम उनके जाल में फंसे रहते हैं. हमें दासता ही चाहिए तो अपनी ज़मीन की दासता करे, इसे सजाएं, संवारें. इसमें ही हमारे पीढ़ियों का भविष्य निहित है. मन की अशांति का सामना एक पेड़ की तरह करें जो झुलस झुलस कर धूप में खड़ा रहता है, वह मंदिर और मस्जिद नहीं ढूंढता, आपकी तरह ही एक दिन मर जाता है .
हमें खुदाई हकीकत को समझने में अब देर नहीं करनी चाहिए, वहमों के ख़ुदा इंसान को अब तक काफी बर्बाद कर चुके हैं अब और नहीं। 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 7 November 2016

Soorah jasia 45 -1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह जासिया -४५
पहली किश्त

मुहम्मदी अल्लाह तअज्जुब में है कि इसके कारनामें ज़मीन से लेकर आसमान तक बिखरे हुए हैं, आख़िर लोग इसके क़ायल क्यूँ नहीं होते? मुसलमान कुरआन को सैकड़ों साल से यक़ीन और अक़ीदे के साथ पढ़ रहे हैं, नतीजा ए कार ये है कि इनके समझ में ये आ गया कि मुहम्मद के ज़माने में कुफ्फार खुदा के क़ुदरत के क़ायल न रहे होंगे. या मुशरिकों का दावा रहा होगा कि बानिए कायनात उनके देवी देवता रहे होंगे. ये महेज़ इनका वह्म है. मगर कुरान ऐसी छाप इनके ज़ेहनो पर छोड़ता है. कि ज़माना ए मुहम्मद में इंसान दुश्मने अक्ल रहा होगा. ये कुरानी प्रोपेगंडा से फैलाया हुवा वाहिमा है. 
वह लोग आज ही की तरह मुख्तलिफ फ़िक्र और मुख्तलिफ नज़रयात के मालिक हुवा करते थे. वह अल्लाह को मानने वाले और उसकी क़ुदरत को मानने और जानने वाले लोग थे. मुहम्मद ने जिस अल्लाह की तशकील की थी, वह उनकी फ़ितरत और उनकी सियासत के एतबार से था, यानी ज़लिम, जाबिर, जाहिल, मकर फरेब का पैकर, मुन्तकिम  झूठा और खुदसर जिसकी तर्जुमानी मुहम्मद ने कुरआन में की है. अपनी इस गंदी हांडी के अन्दर, वह उस अज़ीम ताक़त को बन्द करके पकाना चाहते हैं जिसे क़ुदरत कहते हैं और परोसना चाहते हैं उन लोगों को जिनको क़ुदरत ने थोड़ी बहुत समझ दी है या अपना ज़मीर दिया है. जब वह इस गलाज़त को खाने से इंकार करते हैं तो वह उन पर इलज़ाम लगाते हैं 
" तअज्जुब है कि अल्लाह की क़ुदरत को तस्लीम ही नहीं करते."
इधर हम जैसे लोग तअज्जुब में हैं कि एक अनपढ़, मक्र पैगमरी का फ़ासिक़, अपने धुन में किस क़दर आमादा ए रुसवाई था कि हज़ारों मज़ाक बनने के बाद भी, फिटकारने  और दुत्कारने के बाद भी, बे इज्ज़त और पथराव होने के बाद भी, मैदान से पीछे हटने को तैयार न था. फ़तह मक्का के बाद फिर तो ये फक्कड़ों और लखैरों का रसूल जब फातेह बन कर मक्का में दाख़िल हुवा होगा तो शहर के साहिबे इल्म ओ फ़िक्र पर क्या गुज़री होगी? आँखें बन्द करके सब्र कर गए होंगे, अपनी आने वाली नस्ल के मुस्तक़बिल को सोच कर वह जीते जी मर गए होंगे.
दस्यों लाख इंसानों का क़त्ल तो इस्लाम ने सिर्फ़ पचास साल में ही का डाला. 

एक ही राग को मुहम्मद सूरह शुरू होने से पहले हर बार गाते हैं - - -
"ये नाज़िल की हुई किताब है, अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाले की तरफ़ से."
सूरह जासिया -४५-परा - २५ आयत (२)

झूट को सौ बार बोलो मुहम्मद साहब! हज़ार बार बोलो, लाख बार बोलो, झूट; झूट ही रहेगा. चाहे जितना ज़ोर लगा कर बोलो, बहर हाल झूट झूट ही रहेगा. तुम्हारे चेले ओलिमा चौदह सौ सालों से झूट को दोहरा रहे हैं फिर भी झूट को सच्चाई में तब्दील नहीं कर पाए.
अल्लाह कहीं कोई बेहूदा आयत गढ़ता है? यही नहीं अल्लाह क्या बोलता भी है, सवाल ये उठता है कि मुहम्मदी अल्लाह क्या हो भी सकता है? जो दाँव पेंच की बातें करता है, फिर भी तुम्हारे जाल में फँसे इंसान आज फडफडा रहे हैं, तुम्हारे बारे में ज़बान खोलने पर मौत तक दे दी जाती हैं, बहुत मुनज्ज़म गिरोह बन गया है झूट का जो इंसानों को झूट को ओढने और बिछाने पर मजबूर किए हुए है. 

"आसमान में और ज़मीन और ज़मीन पर  ईमान वालों के लिए बहुत से दलायल हैं और तुम्हारे और उन हैवानात के पैदा करने में जिनको ज़मीन पर फैला रखा है, दलायल हैं उन लोगों के लिए जो यक़ीन रखते हैं एक के बाद दीगरे रात और दिन के आने जाने में और उस रिज़्क के बारे में जिसको अल्लाह ने आसमान से उतरा "
सूरह जासिया -४५-परा - २५ आयत (३-५)

निज़ाम ए क़ुदरत पर सतही और बे वक़ूफ़ाना तजज़िया को रूहानियत की पुडिया में भर कर मुहम्मद सीधे सादे लोगों को बेच रहे हैं.

"और ये अल्लाह की आयतें हैं जो सहीह सहीह तौर पर हम आपको पढ़ कर सुनाते हैं, तो फिर अल्लाह और इसकी आयातों के बाद और कौन सी बात पर ये लोग ईमान लावेंगे. बड़ी खराबी होगी हर ऐसे शख्स के लिए जो झूठा और नाफरमान है."  
सूरह जासिया -४५-परा - २५ आयत (६-७)
मुहम्मद की तर्ज़ ए गुफ्तुगू ही झूट होने की गवाह है कि वह अपनी गढ़ी आयातों को "सहीह सहीह तौर पर" जताने की कोशिश करते हैं.

"जो अल्लाह की आयातों को सुनता है, जब इसके रूबरू पढ़ी जाती हैं, फिर भी वह तकब्बुर करता हुवा, इस तरह अड़ा रहता है, जैसे उसने उनको सुना ही न हो. सो ऐसे शख्स को एक दर्द नाक अज़ाब की खबर सुना दीजिए. और जब वह हमारी आयातों में से किसी आयत की ख़बर पाता है तो इसकी हँसी उड़ाता है, ऐसे लोगों के लिए सख्त ज़िल्लत का अज़ाब है." 
सूरह जासिया -४५-परा - २५ आयत (८-९)

क़ुरआन की हकीक़त यही थी, यही है  आज भी है और यही हमेशा रहेगी. आप किसी मुसलमान को क़ुरआनी आयतें अनजाने में ही सुनाइए  कि फलाँ धर्म ये बात कहता है तो वह इसकी खिल्ली उडाएगा मगर जब उसको बतलइए कि ये बात कुरआन की है तो वह अपमा मुँह पीट पीट कर तौबा तौबा करेगा..
मेरे मज़ामीन को बहुत से लोग कहते थे कि जाने कहाँ से आएँ बाएँ शाएँ  का कुरआन पेश करता है ये मोमिन. जब मैं नोट लगाया - - -
मेरी तहरीर में - - - 
तो सब की बोलती बंद हो गई.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान