Saturday 29 December 2018

Hindu Dharm Darshan 264

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (72)
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>सदैव मेरा चिंतन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो. इस प्रकार से तुम निश्चित रूप से पास आ जाओगे. मैं तुहें वचन देता हूँ, क्यों कि तुम मेरे परम प्रिय मित्र हो.
>>समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ. मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूंगा. डरो मत.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -  18 श्लोक 59- 63

जो व्यक्ति भक्तों को यह परम रहस्य बताता है,
वह स्गुद्ध भक्ति को प्राप्त करेगा
और अंत में वह मेरे पास वापस आएगा.
इस संसार में उसकी अपेक्षा कोई सेवक न तो मुझे अधिक प्रीय है और न कभी होगा.
और मैं घोषित करता हूँ कि जो हमारे इस पवित्र संवाद का अध्ययन करता है, वह अपनी बुद्धि से मेरी पूजा करता है.
और जो श्रद्धा समेत तथा द्वेष रहित होकर इसे सुनता है,
वह सारे पापों से मुक्त हो जाता है
और उन शुभ लोकों को प्राप्त होता है, जहाँ पुण्य आत्माएं निवास करती हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -  18 श्लोक 68-69-70-71
*क्या आज आज़ाद भारत में जहाँ गरीबों को रेखाएं दबा रही हों,
ऐसी तालीम देना जुर्म नहीं ?
भोले भले आस्थावान नागरिकों को यह ब्लेक मेल नहीं करती ?

और क़ुरआन कहता है - - -
देखिए मुहम्मद के मुंह से अल्लाह को या अल्लाह के मुंह से मुहम्मद को,
यह बैंकिंग प्रोग्राम पेश करते हैं
जेहाद करो - - - अल्लाह के पास आपनी जान जमा करो ,
मर गए तो दूसरे रोज़ ही जन्नत में दाखला,
मोती के महल, हूरे, शराब, कबाब, एशे लाफानी,
अगर कामयाब हुए तो जीते जी माले गनीमत का अंबार
और अगर क़त्ताल से जान चुराते हो का याद रखो
लौट कर अल्लाह के पास ही जाना है,
वहाँ खबर ली जाएगी.
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत २४४+२४५)

कितनी मंसूबा बंद तरकीब है बे वक़ूफ़ो के लिए
 और अल्लाह की राह में क़त्ताल करो.
कौन शख्स है ऐसा जो अल्लाह को क़र्ज़ दिया
और फिर अल्लाह उसे बढा कर बहुत से हिस्से कर दे
और अल्लाह कमी करते हैं और फ़र्राख़ होते हैं और तुम इसी तरफ ले जाए जाओगे.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 28 December 2018

Hindu Dharm Darshan 263


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (70)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>यदि तुम मेरे निर्देशानुसार काम नहीं करते और युद्ध में प्रवृत नहीं होते हो तो तुम कुमार्ग पर जाओगे. तुम्हें अपने स्वभाव वश युद्ध में लगना चाहिए.
>>इस प्रकार मैंने तुम्हें गुह्यतर ज्ञान बतला दिया. इस पर पूरी तरह मनन करो.और तब जो चाहो करो. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -  18 श्लोक 59- 63 
*
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>मेरा शुद्ध भक्त मेरे मेरे संर क्ष ण में समस्त प्रकार के कार्यों में संलग्न रह कर भी मेरी कृपा से नित्य तथा अविनाशी धाम को प्राप्त होता है.
>>सारे कार्यों के लिए मुझ पर निर्भर रहो.और मेरे संर क्ष ण में सदा कर्म करो.ऐसी भक्ति में मेरे प्रति पूर्णतया सचेत रहो.
>>>लेकिन यदि तुम मिथ्या, अहंकार वश ऐसी चेन में काम नहीं करोगे और मेरी बात नहीं सुनोगे, तो तुम विनष्ट हो जाओगे. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -18    श्लोक 56-57 -58 
*
क़ुरआन और गीता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 27 December 2018

सूरह क़ाफ़- 50 - سورتہ ق (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह क़ाफ़- 50 -  سورتہ ق
(मुकम्मल)

क़सम है  क़ुरआन मजीद की, बल्कि इनको इस बात का तअज्जुब हुवा कि "इनके पास इन्हीं में से कोई डराने वाला आ गया. सो काफ़िर कहने लगे कि ये अजीब बात है.
 - - - अल्लाह अपनी तख़लीक़ को बार बार दोहराता है कि ज़मीन, आसमान, सितारे, पहाड़, पेड़ और फसलें सब उह्की करामात से हुए. 
जो ज़रीआ बीनाई और दानाई है".
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (1-7)
अल्लाह ने अपनी किताब की इतनी जोर की क़सम बिला किसी वजह की खाई. अरबी ज़बान में "बल्कि " का इतेमाल ऐसे ही होता है तो अरबी अल्लाह की क़वायद पर अफ़सोस होता है. 
ये बात अकसर क़ुरआन  में आती है जिसे हम अहले ज़बान उर्दू को खटकती है. 
मुझे लगता है मुहम्मद की उम्मियत का इसमें दख़्ल है. 
ये डराने वाला किरदार अरबी का लफ़ज़ी तरजुमा है.
उनके पास आगाह, तंबीह या ख़बरदार करने वाले अलफ़ाज़ शायद काफ़ी न रहे हों. भला काफ़िर ओ मुनकिर को इस बात पर नए सिरे से यक़ीन करने की क्या ज़रुरत है कि अल्लाह की क़ुदरत से ही इस कायनात का कारोबार चल रहा है. 
इनका कब दावा था कि ये ज़मीन और आसमान इनकी देवी देवताओं ने बनाया. वह तो बानिए कायनात का तसव्वर करने में नाकाम रहने के बाद उसको एक शक्ल देकर उसमें उसको सजा कर उसकी ही पूजा करते हैं. 
इस मामूली सी बात को ख़ुद नादान मुसलमान नहीं समझते. 
संत कबीर ने यादे इलाही को मर्कज़ियत देने के लिए "सालिग राम की बटिया " बना कर ईश्वर को उसमे समेटा ताकि ध्यान उस पर क़ायम रहे. 
ओलिमा क़ुरआन मुसलमानों को इस तरह समझाते हैं गोया उस वक्त के काफ़िरों का दावा था कि सब कुछ उनके बुतों की माया थी जो ज़मीन ओ आसमान में है.

"क्या हम पहली बार पैदा करने में थक गए हैं? हमने इंसान को पैदा किया, इसके दिल में जो ख़याल आते हैं, इन्हें हम जानते हैं. और हम इंसान के इतने क़रीब हैं कि इसकी रगे-गर्दन से भी ज़्यादः."
"जब दो अख्ज़ करने वाले फ़रिश्ते अख्ज़ करते हैं जो कि दाएँ और बाएँ तरफ़ बैठे रहते हैं. वह कोई लफ्ज़ मुँह से निकलने नहीं पाता मगर इस के पास ही एक ताक लगाने वाला तैयार रहता है."
जब अल्लाह इंसान के रगे गर्दन के क़रीब रहता है और दिलों की बातें जानता है तो उसने बन्दों के दाएँ बाएँ अख्ज़ करने वाले फ़रिश्तों को अपनी मुलाज़मत में क्यूँ रख छोड़े है? ये तो अल्लाह नहीं इंसान जैसा लग रहा है कि जिसको दो गवाहों की ज़रुरत होती है. अल्लाह बे वक़ूफ़ इंसान जैसी बातें भी करता है 
"क्या हम पहली बार पैदा करने में थक गए हैं?" 
या 
"इस के पास ही एक ताक लगाने वाला तैयार रहता है."
क़ुरआन  में जाहिल मुहम्मद की जेहालत साफ़ साफ़ झलती है 
मगर मुसलमानों की आँखों पर पर्दा पड़ा हुवा है.

"और हर शख़्स मैदाने-हश्र में यूँ आएगा कि इसको एक फ़रिश्ता हमराह लाएगा और दूसरा इसके अमल का गवाह होगा. पहला अर्ज़ करेगा कि ये रोज़ नामचा है जो मेरे पास तैयार है. शैतान जो इसके पास रहता था, कहेगा हमने इसको जबरन गुमराह नहीं किया था, ये ख़ुद दूर दराज़ की गुमराही में रहता था."
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (15-27)
अल्लाह मुस्तकबिल बईद की अपनी काररवाई की इत्तेला मुहम्मद को देता है कि वह ऐसा कहेंगे और हम उसका जवाब इस तरह देंगे.
मुहम्मद तरह तरह की ड्रामा निगारी क़ुरआन की हर सूरह में अलग अलग तरह से करते हैं, ग़ौर  करें कि खरबों इन्सान के साथ उनके दो गुना फ़रिश्ते और हर के साथ एक अदद शैतान होगा, मगर मुक़दमा सिर्फ़ एक अल्लाह सुनेगा? 
अल्लाह की हिकमत के लिए हर काम मुमकिन है, 
इसके लिए इतना बड़ा झूट गढ़ा ही इस तरह से है. 
अकसर मुहम्मद "दूर दराज़ की गुमराही" का इस्तेमाल करते हैं,
ये गुमराही की कौन सी सिंफ होती है?

"अल्लाह इरशाद करेगा, मेरे सामने झगड़े की बातें मत करो. मैं तो पहले ही तुम्हारे पास वईद भेज चुका हूँ. "
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (28)

मुसलमानों तुम्हारा अल्लाह क्या इस तरह का शिद्दत पसंद है?
अपने माँ के पेट से निकले हुए मुहम्मद तुम्हारे अल्लाह बन गए हैं, 
जागो! बहुत देर हो चुकी है फिर भी अभी वक़्त है.

"हम बन्दों पर ज़ुल्म करने वाले नहीं, दोज़ख़ से जिस दिन पूछेंगे कि तू भर गई, वह कहेगी कि कुछ और जगह खाली है."
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (30)

इस्लामी पैग़ामबर तो उम्मी था ही, 
क्या उसकी पूरी उम्मत भी उम्मी ही है कि उसका अल्लाह बन्दों का मदद गार नहीं, उसे तो दोज़ख़ से कहीं ज़्यादः लगाव है कि उसकी भूख को पूछ रहा है, क्यूँकि वह उससे वादा जो किए हुए है कि उसका पेट व भरेगा.

"और जन्नत मुत्तक़ियों के लिए, कि कुछ दूर न रहेगी."
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (31)
क्यूँकि मुत्तक़ियों के लिए वहाँ शराब, कबाब और शबाब मुफ्त होंगे. 
इतना ही नहीं इग्लाम बाज़ी भी मयस्सर होगी जिस अमल को इस दुन्या में करने से शर्मिंदगी होती थी.
ऐसी जन्नत पर लअनत है और इसकी चाहत रखने वालों पर भी धिक्कार.

"और रुजू होने वाला दिल लेकर आएगा. इस जन्नत में सलामती के साथ दाख़िल हो जाओ यह दिन है हमेशा रहने का."
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (34).

दुन्या की तमाम नेमतों को छोड़ क़र, अपने दूसरे ज़रुरी मिशन को ताक पर रख क़र मुहम्मदी अल्लाह की तरफ़ रुजू हो जाओ ताकि मुहम्मद और अरबियों की गुलामी क़ायम रहे.

"और सुन लो कि जिस दिन एक पुकारने वाला पास ही से पुकारेगा, जिस दिन इस चीखने को बिल यक़ीन सब सुन लेंगे, ये दिन होगा निकलने का. हम ही जलाते हैं, हम ही मारते हैं और हमारी तरफ़ फिर लौट कर आओगे"
सूरह क़ाफ़ -50 आयत  (42-44)

मुसलमानों! तुम भोले भाले हो, या अहमक़ ? 
कि जिस अल्लाह को तुम पूजते हो वह जो जलाता है और मारता है?  
या फिर कलमा इ शहादत पढ़ लो तो तुमको जन्नत में दाख़िल क़र देगा ??

***    
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 26 December 2018

Soorah hozorat 49 (mukammal)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह होजोरात -49 -سورتہ الحوجورات
(मुकम्मल)

मुहम्मद लगभग हाकिम बन चुके हैं. 
इनके मुँह से निकली हुई हर बात आयते क़ुरआनी हो जाती है. 
वह अल्लाह के रसूल की बजाए, अल्लाह उनका रसूल बन जाता है. 
नए रसूल की सियासी सूझ बूझ और तौर तरीकों के आगे पुराना रसूल मुहम्मद का साया नज़र आता है. वह अपने गिर्द फैले हुए जाँ निसारों, चापलूसों और लाखैरों की शिनाख्त बड़ी महारत से करने लगे हैं. 
मक्का में वह कुफ़फ़ार का मुक़ाबिला जूनून और मसलेहत के साथ कर रहे थे और मदीने में मुनाफिक़ों का सामना जिसारत के साथ करते नज़र आते हैं. रसूल को अब भर्ती के मुसलमान नहीं चाहिएं. 
वह अपने मुँह लगे साथियों के मुँह में लगाम लगाने लगे हैं.
मुहम्मदी अल्लाह कहने लगा - - -

"ऐ ईमान वालो ! अल्लाह और उसके रसूल से पहले तुम सिबक़त मत किया करो और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह सुनने वाला और जानने वाला है."
सूरह होजोरात -49 आयत (1)
रसूल अब अपने अल्लाह को शाने बशाने रखने लगे हैं, तभी तो कहते हैं "अल्लाह और उसके रसूल से पहले तुम सिबक़त मत किया करो और अल्लाह से डरते रहो" 
मुहम्मद में अल्लाह का तकब्बुर आ गया है, 
कोई उन्हें परवर दिगार कहता है तो उन्हें वह कोई एतराज़ नहीं करते, 
अन्दर से मह्जूज़ होते हैं.

"ऐ ईमान वालो! तुम अपनी आवाज़ें पैग़ामबर की आवाज़ के सामने बुलंद मत किया करो. और न इनसे खुल कर बोला करो, जैसे तुम आपस में खुल कर बोलते हो. कभी तुम्हारे आमाल बर्बाद हो जाएँगे और तुमको ख़बर भी न होगी. बे शक जो लोग अपनी आवाज़ को रसूल की आवाज़ से पस्त रखते हैं, ये वही हैं जिनको के दिलों को अल्लाह ने तक़वा के लिए ख़ास कर दिया है. इन लोगों के लिए मग्फ़िरत और उजरे-अज़ीम है."
सूरह होजोरात -49 आयत (2-3)

मुहम्मद अपनी उम्मत बनी रिआया को आदाबे-महफ़िल सिखला रहे है. 
उनकी पीरी मुरीदी चल निकली है.

"जो लोग हुजरे के बाहार से आपको पुकारते हैं, वह लोग अकसर बे अक़्ल होते हैं. बेहतर है कि ये लोग सब्र करें, यहाँ तक कि आप ख़ुद बाहर निकल आते तो ये उन लोगों के लिए बेहतर होता और अल्लाह ग़फ़ूरुर रहीम है.
ऐ इमान वालो ! अगर कोई शरीर आदमी तुम्हारे पास कोई ख़बर लाए तो ख़ूब तहक़ीक़ कर लिया करो, कभी किसी क़ौम  को नादानी से कोई ज़रर न पहुँचाओ कि फिर अपने किए पर पछताना पड़े."
सूरह होजोरात -49 आयत (4-6) 

तमाज़त और दूर अनदेशी भी मुहम्मद के आस पास फटकने लगी है.

"और जान रक्खो कि तुम में रसूल अल्लाह हैं. बहुत सी बातें ऐसी होती हैं कि अगर वह इसमें तुम्हारा कहना माना करें, तो तुम को बड़ी मुज़र्रत होगी.
और अगर मुसलमानों में दो गिरोह आपस में लड़ें तो उनके दरमियान इस्लाह कर दो. मुसलमान तो सब भाई हैं, सो अपने भाइयों के दरमियान इस्लाह कर दिया करो."
सूरह होजोरात -49 आयत (7-10)

काश कि ये बातें आलमे-इंसानियत के लिए होतीं, 
न कि सिर्फ़ मुसलमानों के लिए. 
इन तालीमात से तअस्सुब का ही जन्म होता है.

"ऐ ईमान वालो! मर्दों को मर्दों पर नहीं हँसना चाहिए और औरतों को न औरतों पर, क्या जाने कि वह हँसने वालों से बेहतर हो, और न एक दूसरे को तअने दो.
 ऐ इमान वालो! बहुत से गुमानों से बचो क्यूँ कि बहुत से गुमान गुनाह होते है. सुराग़ न लगाया करो, किसी की ग़ीबत न करो. क्या तुम में कोई पसंद करता है कि मरे हुए भाई का गोश्त खाए."
सूरह होजोरात -49 आयत (11-12)

औरत को मर्दों पर और मर्दों को औरतों पर हँसना चाहिए ?
मुहम्मद को सहाबी कहा करते थे कि आप तो हमारी बातों पर कान धरे रहते हैं. 
चुगल खोरों की बातों को अल्लाह की वह्यी बतलाने वाले कमज़ोर इंसान 
आज दूसरों को नसीहत दे रहे हैं.
काफ़िर, मुशरिक और दीदरों की ग़ीबत करने वाले मुहम्मद क्या बक रहे हैं?
जंगे-बदर भूल रहे हैं जहाँ अपने भाई बन्दों को मार कर उनके गोश्त को तीन दिनों तक सड़ने दिया था, फिर इनकी लाशों को बद्र के कुँए में फिकवा दिया था?
आज जिन मायूबात को हज़रात मना कर रहे ही, 
कल तक क़ुरआन इन ऐबों से पटा पड़ा है.

"अल्लाह के नजदीक बड़ा शरीफ वही है जो परहेज़गार हो"
सूरह होजोरात -49 आयत (130)
माले-ग़नीमत ख़ाने  वाला इंसान क्या कभी शरीफ़ इंसान भी हो सकता है?

"ये गंवार कहते हैं कि हम ईमान लाए, आप फ़रमा दीजिए कि तुम ईमान तो नहीं लाए, यूं कहो कि हम मती हुए. मोमिन तो वह है जो अल्लाह पर और उसके रसूल पर ईमान लाए. फिर शक नहीं किया और अपने जान ओ माल से अल्लाह की राह में जेहाद किया."
सूरह होजोरात -49 आयत (14-15)

करने लगे ग़ीबत या रसूल अल्लाह.!
अल्लाह के नाम पर मार काट और लूट-पाट से ही इस्लाम फैला है 
जो हमेशा रुस्वाए ज़माना रहा.

 "ये लोग अपने ईमान लाने का आप पर एहसान रखते हैं, आप कहिए कि मुझ पर एहसान नहीं, बल्कि एहसान अल्लाह का है तुम पर कि उसने तुमको ईमान लाने की हिदायत दी, बशर्ते तुम सच्चे हो. बे शक अल्लाह ज़मीन और आसमान की मुख़फ़ी बातों को जानता है और तुम्हारे सब आमल जानता है."
सूरह होजोरात -49 आयत (17-18)
इस्लामी ईमान, ईमान नहीं, बे ईमानी है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 25 December 2018

Hindu Dharm Darshan 262


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (68)
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>प्रत्येक उद्योग (प्रयास) किसी न किसी दोष से आवृत होता है, 
जिस प्रकार अग्नि धुंए से आवृत रहती है. 
अतएव हे कुंती पुत्र ! 
मनुष्य को चाहिए कि स्वाभाव से उत्पन्न कर्म को, 
भले ही वह दोष पूर्ण क्यों न हों, कभी त्यागे नहीं.
>>केवल भक्ति से मुझ भगवान् को यथा रूप में जाना जा सकता है. जब मनुष्य ऐसी भक्ति से मेरे पूर्ण भावनामृत में होता है, तो वह बैकुंठ जगत में प्रवेश करता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -18    श्लोक -48-55  
*
>हे परन्तप ! 
ब्राह्मणों, क्षत्रियो, वैश्यों तथा शूद्रों में प्रकृति के गुण के अनुसार उनके स्वभाव द्वारा उत्पन्न गुणों के द्वारा भेद किया जाता है. 
>>शांति प्रियता, आत्म संयम, तपश्या, पवित्रता, सहिष्णुता, सत्य निष्ठां, ज्ञान, विज्ञान तथा धार्मिकता --- यह सरे स्वभाव गुण हैं, जिनके द्वारा ब्राह्मण कर्म करते हैं.
>>>वीरता, शक्ति, संकल्प, द क्ष ता, युद्ध में धैर्य, उदारता तथा नेतृत्व --- 
क्षत्रियों के स्वाभाविक गुण हैं .
>>>>कृषि करना, गो र क्षा तथा व्यापार वैश्यों के स्वाभाविक कर्मा हैं और शूद्रों का कर्म श्रम तथा अन्यों की सेवा करना.
अपने अपने कर्म के गुणों का पालन करते हुए प्रत्येक व्यक्ति सिद्ध हो सकता है. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -  18 श्लोक -41-42-43-44- 
*
 क्या ऐसे स्तर आजके समाजी ताने बाने के लायक़ हैं ?
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 24 December 2018

सूरह फ़त्ह -48 - سورتہ الفتح (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह फ़त्ह -48 - سورتہ الفتح 
(मुकम्मल)

"बेशक हमने आप को खुल्लम खुल्ला फ़तह दी, ताकि अल्लाह तअला आप की अगली पिछली सभी खताएँ मुआफ़ कर दे. और आप पर अपने एहसानात की तकमील कर दे. और आप को सीधे रस्ते पर ले चले. अल्लाह आपको ऐसा ग़लबा दे जिस में इज्ज़त ही इज्ज़त हो."
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (1-3)

ग़ौर  तलब है कि अल्लाह ने मुहम्मद को इस लिए खुल्लम खुल्ला फ़तह दी कि उनकी ख़ताएँ उसको मुआफ़ करना था.
उसे अपने एहसानात की तकमील करने की जल्दी जो थी, 
मक्र की इन्तेहा है.
मुहम्मद का माफ़ीउज़ज़मीर इस बात की गवाही देता है कि वह ख़तावार थे जिसे अनजाने में ख़ुद वह तस्लीम करते हैं. 
मुहम्मद को तो मुहम्मदी अल्लाह ने मुआफ़ कर दिया मगर 
बन्दे मुहम्मद को कभी मुआफ़ नहीं करेंगे.
फ़तह के नशे में चूर मुहम्मद खुल्लम खुल्ला अल्लाह बन गए थे, 
इस बात की गवाह उनकी बहुत सी आयतें हैं. 

"मगर वह अल्लाह ऐसा है जिसने मुसलमानों के दिलों में तहम्मुल पैदा किया है ताकि इनके पहले ईमान के साथ, इनका ईमान और ज़्यादः हो और आसमानों और ज़मीन का लश्कर सब अल्लाह का ही है और अल्लाह बड़ा जानने वाला, बड़ी हिकमत वाला है, ताकि अल्लाह मुसलमान मरदों और मुसलमान औरतों को ऐसी बहिश्त में दाख़िल करे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, जिनमें हमेशा को रहेंगे, और ताकि इनके गुनाह दर गुज़र कर दे. और ये अल्लाह के नजदीक बड़ी कामयाबी है. और ताकि अल्लाह मुनाफ़िक़ मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों को, और मुशरिक मर्दों और मुशरिक औरतों को अज़ाब दे जो अल्लाह के साथ बुरे बुरे गुमान रखते थे. उन पर बुरा वक़्त पड़ने वाला है और अल्लाह उन पर गज़ब नाक होगा."
 सूरह फ़त्ह - 48 आयत (4-6)

"ये अल्लाह के नजदीक बड़ी कामयाबी है." 
इस जुमले पर ग़ौर  किया जाए कि वह अल्लाह जो अपनी कायनात में पल झपकते ही जो चाहे कर दे बस "कुन" कहने की देर है, उसके नज़दीक फ़तह मक्का बड़ी कामयाबी है. 
मुहम्मद अन्दर से ख़ुद को अल्लाह बनाए हुए हैं.
इस फ़तह के बाद मुसलमानों का ईमान और पुख़्ता हो गया 
कि वह सब्र वाले लुटेरे बन गए और लूट का माल मुहम्मद के हवाले कर दिया करते थे और जो कुछ वह उन्हें हाथ उठा कर दे दिया कयते उसी में वह सब्र कर लिया करते. मुहम्मद मुसलमानों को अल्लाह का लश्कर करार देते हैं और यक़ीन दिलाते है 
कि उनकी तरह ही अल्लाह के सिपाही आसमानों पर हैं.
जब तक मुसलमान अपने अल्लाह की इन बातों पर यक़ीन करते रहेंगे, 
तालीम ए जदीद भी उनका भला नहीं कर सकती.

"जो लोग आपसे बैत कर रहे हैं, वह अल्लाह से बैत कर रहे हैं. अल्लाह का हाथ उनके हाथ पर है. फिर जो शख़्स अहेद तोड़ेगा ,इको इसका वबाल इसी के सर होगा, जो पूरा करेगा उसको अल्लाह अनक़रीब बड़ा उज्र देगा.
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (10)

आख़िर बंदे मुहम्मद ने इशारा कर ही दिया कि वही पाक परवर दिगार है, 
मगर एक धमकी के साथ.

"अगली दस आयातों में जंगों से मिला माले ग़नीमत पर अल्लाह का हुक्म मुहम्मद पर नाज़िल होता रहता है. दर अस्ल इस जंग में देहाती नव मुस्लिमों ने शिरकत करने से आनाकानी की थी. उनको उम्मीद नहीं थी कि मुहम्मद मक्का पर फ़तेह पाएँगे, बिल ख़ुसूस क़ुरैशियों  पर. अगर फ़तेह हो भी गई तो वह अपने क़बीले पर रिआयत बरतेंगे और उनको लूटेंगे नहीं. ग़रज़ उनको इस जंग से माले ग़नीमत का कोई ख़ास फ़ायदा मिलता नज़र नहीं आया, इस लिए जंग में शिरकत से वह बचते रहे. मगर मुहम्मद को मिली कामयाबी के बाद वह मुसलमानों का दामन थामने लगे कि अल्लाह से इनके हक़ में वह दुआ करें. अल्लाह दिलों का हाल जानने वाला? अपने रसूल से कहता है कि इनको टरकाओ, ये तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ बद गुमानी रखते थे. अंधे, लंगड़े और बीमारों को छोड़ कर बाक़ी किसी को जंग से जान चुराने की इजाज़त नहीं थी. मुहम्मद ऐसे लोगों पर फ़ौरन लअन तअन शुरू कर देते, दोज़ख़ उसके सामने लाकर पेश कर देते."
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (11-15)

"जो लोग पीछे रह गए थे वह अनक़रीब जब (तुम ख़ैबर) की ग़नीमत लेने चलोगे, कहेगे कि हम को भी इजाज़त दो कि हम तुम्हारे साथ चलें. वह लोग यूँ चाहते हैं कि अल्लाह के हुक्म को बदल डालें. आप कह दीजिए कि हरगिज़ हमारे साथ नहीं चल सकते. अल्लाह तअला ने पहले से यूँ फ़रमा दिया था. इनके पीछे रहने वाले देहातियों से कह दीजिए कि तुम लोग लड़ने के लिए बुलाए जाओगे, जो सख़्त  लड़ने वाले होंगे,"
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (16)

मुलाहिज़ा हो मुहम्मद कहते हैं "जब (तुम ख़ैबर) की ग़नीमत लेने चलोगे" 
ये है मुहम्मद की जंगी फ़ितरत, 
लगता है जैसे ख़ैबार में ग़नीमत की अशर्फियाँ इनके बाप दादे गाड कर आए हों. 
ये शख़्स कोई इंसान भी नहीं जिसको ओलिमा हराम जादे मशहूर किए हुए हैं-
मोह्सिने-इंसानियत ?
जंगों से हज़ारो घर तबाह ओ बरबाद हो जाते हैं, उम्र भर की जमा पूँजी लुट जाती है, बस्तियों में ख़ून की नदियाँ बहती हैं. मुहम्मद के लिए ये मशगला ठहरा,
क्या मुहम्मदी अल्लाह की कोई हक़ीक़त हो सकती है कि घुटे मुहम्मद की तरह वह साज़ बाज़ की बातें करता है ?

"अल्लाह ने तुम से बहुत सी ग़नीमातों का वादा कर रखा है, जिनको तुम लोगे. सरे दस्त ये दे दी है. और लोगों के हाथ तुम से रोक दिए हैं, और ताकि अहले ईमान के लिए नमूना हो. और ताकि तुम को एक सीधी सड़क पर दाल दे"
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (20)

मुसलमानों! समझो कि तुम्हारा नबी दीन के लिए नहीं लड़ता लड़ाता था, 
बल्कि अवाम को लूटने के लिए अल्लाह के नाम पर लोगों को उकसाता था.    
अल्लाह का पैग़ामबर लड़ाकुओं को समझा रहा है कि जो कुछ मिल रहा है, रख लो. उनसे रसूल बना ग़ासिब, अल्लाह का वादा दोहराता है, 
मुस्तक़बिल में मालामाल हो जाओगे. 
सब्र और किनाअत को मक्कारी के आड़ में छिपाते हुए कहता है 
"और ताकि अहले ईमान के लिए नमूना हो. और ताकि तुम को एक सीधी सड़क पर डाल दे"
एक बड़ी आबादी को टेढ़ी और बोसीदा सड़क पर लाकर, 
उनके साथ खिलवाड़ कर गया.

"और अगर तुम से ये काफ़िर लड़ते तो ज़रूर पीठ दिखा कर भागते, फिर इनको कोई यार मिलता न मदद गार. अल्लाह ने कुफ़्फ़ार से यही दस्तूर कर रखा है जो पहले से चला आ रहा है, आप अल्लाह के दस्तूर में कोई रद्दो-बदल नहीं कर सकते."
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (23) 

जंग हदीबिया में मुहम्मद ने मक्का के जाने माने काफ़िरों को रिहा कर दिया जिसकी वजह से इन्हें मदनी मुसलमानों की मुज़ाहमत का सामना करना पड़ा, 
बस कि मुहम्मद पर अल्लाह की वह्यियों का दौरा पड़ा और आयात नाज़िल हुईं.
अल्लाह के दस्तूर के चलते मुस्लमान आज दुन्या में अपना काला मुँह भी दिखने के लायक़ नहीं रह गए, कुफ़्फ़ार की पीठ देखते देखते.

*ऐ मज़लूम क़ौम ! क्या ये क़ुरआनी आयतें तुमको नज़र नहीं आतीं जो मुहम्मद की छल-कपट को साफ़ साफ़ दर्शाती हैं. ?
*अपने पड़ोस पकिस्तान के अवाम की जो हालत हो रही है कि मुल्क छोड़ कर गए हुए लोग आठ आठ आँसू रो रहे हैं, इन्हीं आयतों की बेबरकती है उन पर, क्या इस सच्चाई को तुम समझ नहीं पा रहे हो?
पूरी दुन्या में मुसलमानों को शक व शुबहा की नज़र से देखा जा रहा है, 
क्या सारी दुन्या ग़लत है और तुम ही सहीह हो?
*मुल्क और ग़ैर मुमालिक में मुसलमानों की रोज़ी रोटी तंग हुई जा रही है, 
क्या तुम्हारे समझ में नहीं आता?
*तुम्हारे समझ में सब आता है कि तुम सबसे पहले इंसान हो, 
बाद में मुसलमान, हिन्दू और ईसाई वग़ैरह. 
तुमको हक़ शिनाश नहीं दिखाई दे रहे हैं, 
आलावा इन अपनी माओं के ख़सम आलिमान दीन औए उनके मज़हबी गुंडों के.
**वक़्त आ गया है कि अब आँखें खोलो, जागो और बहादर बनो. 
तुम्हारा कुछ भी नहीं बदलेगा, बस बदलेगा ईमान कि अल्लाह, उसका रसूल, उसकी किताब, मफ़रूज़ा हश्र, वह मफरूज़ा जन्नत और दोज़ख़
ये सब फिततीन मुहम्मद की ज़ेहनी पैदावार है. 
इनकी भरपूर मुख़ालिफ़त ही आज का ईमान होगा. 
*** 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह मुहम्मद -47 -سورتہ محمّد (क़िस्त 2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह मुहम्मद -47 -سورتہ محمّد 
(क़िस्त 2)  

"बेशक अल्लाह तअला उन लोगों को जो ईमान लाए और उनहोंने अच्छे काम किए, ऐसे बाग़ों में दाख़िल कर देगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी. और जो लोग काफ़िर हैं वह ऐश कर रहे हैं और इस तरह खाते हैं जैसे चौपाए खाते हैं और जहन्नम जिनका ठिकाना है."
सूरह मुहम्मद - 47आयत (12)

"और इस तरह खाते हैं जैसे चौपाए खाते हैं "
इंसान और चौपाए के ख़ाने  में भी मुहम्मद को फर्क नज़र आता है? 
क्या मुसलमानों के ख़ाने  का तरीक़ा इस्लाम के बाद कुछ बदल जाता है? 
भूका प्यासा हर इंसान चौपाया बन जाता है ? 
नक़ली पैग़ामबर बे सर पैर की बात ही पूरे  क़ुरआन में बकते हैं.

"जिस जन्नत का मुत्तक़ियों से वादा किया जाता है, उसकी कैफ़ियत ये है कि इसमें बहुत सी नहरें तो ऐसे पानी की हैं कि जिसमें ज़रा भी तगय्युर नहीं होगा और बहुत सी नहरें दूध की हैं जिनका ज़ाएकः ज़रा भी बदला हुवा नहीं होगा और बहुत सी नहरें शराब की हैं जो पीने वालों को बहुत ही लज़ीज़ मालूम होंगी और बहुत सी नहरे शहद की जो बिलकुल साफ़ होगा और इनके लिए वहाँ बहुत से फल होंगे."
सूरह मुहम्मद - 47आयत (15)

मुसलमानों! तुमको तअलीम ए नव दावत दे रही है कि एयर कंडीशन फ्लेट्स में रहो, बजाए बाग़ में रहने के. क़ुरआनी तालीम तुम्हें दिक्क़त तलब सम्त में ले जा रही है.
अगर शौकीन हो तो शराब भी अपनी मेहनत की कमाई से पी पाओगे 
जो लज़ीज़ तो बहर हाल नहीं होगी अलबत्ता उसका सुरूर बा असर होगा.
मुहम्मद जन्नत में मिलने वाले दूध की सिफ़त बतलाते हैं कि 
"जिनका ज़ाएकः ज़रा भी बदला हुवा नहीं होगा 
" तो दुन्या और जन्नत के दूध का क्या फर्क हुवा ?
पानी, दूध शराब और शहद की नहरें अगर बहती होंगी तो बे लुत्फ़ होंगी कि जिसमें आप नहाना भी पसँद नहीं करेंगे, पीना तो दर किनार.

"बअज़े आदमी ऐसे हैं जो आप की तरफ़ कान लगाते हैं, यहाँ तक कि जब वह लोग आपके पास से बाहर जाते हैं तो दूसरे अहले-इल्म से कहते हैं कि हज़रत ने अभी क्या बात फ़रमाया ? और जो ईमान वाले हैं वह कहते हैं कि कोई सूरत क्यूँ  न नाज़िल हुई ? सो जिस वक़्त कोई साफ़ साफ़ सूरह नाज़िल होती है  तो और इसमें जेहाद का भी ज़िक्र आता है, तो जिन लोगों के दिलों में बीमारी होती है तो आप उन लोगों को देखते हैं कि वह आप को किस तरह देखते हैं, कि जिस पर मौत की बेहोशी तारी हो, सो अनक़रीब इनकी कमबख़ती आने वाली है. इनकी इताअत और बात चीत मालूम है, पस जब सारा काम तैयार हो जाता है तो अगर ये लोग अल्लाह के सच्चे रहते तो उनके लिए बहुत ही बेहतर होता, सो अगर तुम कनारा कश रहो तो . . . . क्या तुमको एहतेमाल भी है कि तुम दुन्या में फ़साद मचा दो.
सूरह मुहम्मद - 47आयत (20-22)

मुहम्मद अपनी दास्तान उस वक़्त की बतला रहे हैं जब उनकी पैग़मबरी की लचर बातों से लोग बेज़ार हुवा करते थे. 
वह अपनी बकवास किया करते थे और लोग कान भी नहीं धरते थे. 
पुर अमन माहौल में जब वह जंग की आयतें अपने अल्लाह से उतरवाते, 
तो लोग बेज़ार हो जाते. लोग रसूल को नफ़रत और हिक़ारत की नज़र से दखते 
कि जिसे वह ख़ुद बयान कर रहे है. 
ख़ुद दुन्या में फ़साद बरपा करके कहते हैं 
"क्या तुमको एहतेमाल भी है कि तुम दुन्या में फ़साद मचा दो"

"ये लोग हैं जिनको अल्लाह तअला ने अपनी रहमत से दूर कर दिया, फिर इनको बहरा कर दिया और फिर इनकी आँखों को अँधा कर दिया तो क्या ये लोग क़ुरआन में ग़ौर नहीं करते या दिलों में कुफल लग रहे हैं. जो लोग पुश्त फेर कर हट गए बाद इसके कि सीधा रास्ता इनको मालूम हो गया , शैतान ने इनको चक़मा दे दिया और इनको दूर दूर की सुझाई है."
सूरह मुहम्मद - 47आयत (23-25)

जब अल्लाह तअला ने उन लोगों को कानों से बहरा और आँखों से अँधा कर दिया और दिलों में क़ुफ्ल डाल दिया तो ये  क़ुरआन की गुमराहियों को कैसे समझ सकते हैं? वैसे मुक़दमा तो उस अल्लाह पर क़ायम होना चाहिए कि जो अपने मातहतों को अँधा और बहरा करता है और दिलों पर क़ुफ़्ल जड़ देता है मगर मुहम्मदी अल्लाह ठहरा जो ग़लत काम करने का आदी. 
शैतान मुहम्मद बनी ए नव इंसान को चकमा दे गया 
कि क़ौम पुश्त दर पुश्त ग़ारों में गर्क़ है.

"और अगर तुम ईमान और तक्वा अख़्तियार करो तो अल्लाह तुमको तुम्हारा उज्र अता करेगा और तुम से तुम्हारे माल तलब न करेगा. अगर तुम से तुम्हारे मॉल तलब करे, फिर इन्तहा दर्जे तक तुम से तलब करता रहे तो तुम बुख्ल करने लगो. और अल्लाह तअला तुम्हारी नागवारी ज़ाहिर करदेगा, हाँ तुम लोग ऐसे हो कि तुम्हें अल्लाह की राह में ख़र्च करने के लिए बुलाया जा रहा है. सो बअज़े तुम में ऐसे हैं जो  बुख्ल करते हैं. जो बुफ़्ल करता है सो वह ख़ुद अपने से बुफ़्ल करता है और अल्लाह तो किसी का मोहताज नहीं और तुम सब मोहताज हो. और अगर तुम रू-ग़रदानी  करोगे तो अल्लाह तअला तुम्हारी जगह कोई दूसरी क़ौम  पैदा कर देगा."
सूरह मुहम्मद - 47आयत (37-38)

मुहम्मद अल्लाह तअला बने हुए है.  
अपने बन्दों को समझा रहे हैं किअगर मैं हद से ज़्यादः तलब करूँ तो तुम बुख़ालत करो. मगर अगले पल ही अल्लाह की राह बतलाते हैं की जिस पर मुसलमानों को चलना है.
और बुफ़्ल करने वालों को तअने देते हैं.
मुहम्मद अल्लाह की राह में रक़म तलब करते हैं ताकि जेहाद के लिए फण्ड इकठ्ठा किया जा सके. 
जंग मुहम्मद की ज़ेहनी गिज़ा थी जिसमें लूट पाट करके इस्लाम को बढाया है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 22 December 2018

Hindu Dharm Darshan 261


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (66)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>जो कर्ता सदा शास्त्रों के आदेशों के विरुद्ध कार्य करता रहता है, जो भौतिक वादी, हठी, कपटी तथा अन्यों का अपमान करने में पटु है तथा जो आलसी, सदैव खिन्न तथा काम करने में दीर्घ सूत्री है, 
वह तमोगुणी कहलाता है.  
>>इस लोक में, स्वर्ग लोकों में या देवताओं के मध्य में कोई भी ऐसा व्यक्ति विद्यमान नहीं है, जो प्रकृति के तीन गुणों से मुक्त हो.   
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -18   श्लोक -28 -40  
*हे मूरख भगवान !
तूने आखिर समस्त मानव को सतो गुणी ही क्यूँ न बनाया ? 
सब कुछ तो तेरे हाथ में था. तू चाहता तो मानव क्या, 
पशु को भी सतो गुणी बना देता, 
तमो गुणी और रजो गुणी मनुष्य बना कर गीता रचता है ? 
ताकि तेरा छलावरण का धंधा चलता रहे. 
तू अपनी लाठी से जनगण को हाकता रहे ?
 कब तक इंसान तेरी दासता को ओढ़ते और बिछाते रहेगे ?
प्रक्रति के केवल तीन गुण नहीं सैकड़ों गुण हैं, 
तेरा मस्तिष्क केवल तीन तक सीमित है. 
वैज्ञानिकों के एक गुण को भी तू नहीं जानता. 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>देखिए कि अल्लाह अपने आदरणीय मुहम्मद को कैसे लिहाज़ के साथ मुखातिब करता है - - -
"क्या हमने आपकी खातिर आपका सीना कुशादा नहीं कर दिया,
और हमने आप पर से आपका बोझ उतार दिया,
जिसने आपकी कमर तोड़ रक्खी थी,
और हमने आप की खातिर आप की आवाज़ बुलंद किया,
सो बेशक मौजूदा मुश्किलात के साथ आसानी होने वाली है,
तो जब आप फारिग हो जाया करेंतो मेहनत करें,
और अपने रब की तरफ़ तवज्जो दें."
सूरह इन्शिराह ९४ - पारा ३० आयत(१-८)

धर्म और मज़हब का सबसे बड़ा बैर है नास्तिकों से जिन्हें इस्लाम दहेरया और मुल्हिद कहता है. वो इनके खुदाओं को न मानने वालों को अपनी गालियों का दंड भोगी और मुस्तहक समझते हैं. 
कोई धर्म भी नास्तिक को लम्हा भर नहीं झेल पाता. यह कमज़र्फ और खुद में बने मुजरिम, समझते हैं कि खुदा को न मानने वाला कोई भी पाप कर सकता है, क्यूंकि इनको किसी ताक़त का डर नहीं. ये कूप मंडूक नहीं जानते कि कोई शख्सियत नास्तिक बन्ने से पहले आस्तिक होता है और तमाम धर्मों का छंद विच्छेद करने के बाद ही क़याम पाती है. वह इनकी खरी बातों को जो फ़ितरी तकाज़ा होता हैं, उनको ग्रहण कर लेता है और थोथे कचरे को कूड़ेदान में डाल देता है. यही थोथी मान्यताएं होती हैं धर्मों की गिज़ा. नास्तिकता है धर्मो की कसौटी. पक्के धर्मी कच्चे इंसान होते हैं. नास्तिकता व्यक्तित्व का शिखर विन्दु है.
एक नास्तिक के आगे बड़े बड़े धर्म धुरंदर, आलिम फाजिल, ज्ञानी ध्यानी आंधी के आगे न टिक पाने वाले मच्छर बन जाते हैं. 
जागो मुसलामानों जागो.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 21 December 2018

सूरह मुहम्मद -47 -سورتہ محمّد (क़िस्त 1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह मुहम्मद -47 -سورتہ محمّد 
(क़िस्त 1)

इस्लामी तरीक़े चाहे वह अहम् हों चाहे ग़ैर अहम्, इंसानों के लिए ग़ैर ज़रूरी तसल्लुत बन गए हैं. उनको क़ायम रखना आज कितना मज़ाक बन गया है कि हर जगह उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है. उन्हीं में एक थोपन है पाकी, यानी शुद्ध शरीर. 
कपड़े या जिस्म पर गन्दगी की एक छींट भी पड़ जाए तो नापाकी आ जाती है. मुसलमान हर जगह पेशाब करने से पहले पानी या खुश्क मिटटी का टुकड़ा ढूँढा करता है कि वह पेशाब करने के बाद इस्तेंजा (लिंग शोधन) कर सके .आज के युग में ये बात कहीं कहीं कितनी अटपटी लगती है, ख़ास कर नए समाज की ख़ास जगहों पर. 
इस वज़ू नुमा पाकी के सिवा जिस्म और कपड़ों की सफ़ाई की कहीं कोई हिदायत नहीं. आम तौर पर मुसलमान जुमा जुमा नहाते हैं. जिस्म पर मैल जम जाती है और कपड़ों से बदबू आने लगती है.
कपड़े साफ़ी हो जाएँ मगर इसमें पाकी बनी रहे.
इसी तरह माँ बाप बच्चों को सिखलाते है सलाम करना, 
उसके बाद मुल्ला जी समझाते हैं  कि दिन में जितनी बार भी मिलो सलाम करो, शिद्दत ये कि घर में माँ बाप से हर हर मुलाक़ात पर सलाम करो. 
ये जहाँ लागू हो जाता है, वहां सलाम एक मज़ाक़ बन जाता है. 
इसी पर कहा गया है
"लोंडी ने सीखा सलाम, सुब्ह देखी न शाम." 

मुहम्मदी अल्लाह के दाँव पेंच इस सूरह में मुलाहिज़ा हो - - -

"जो लोग काफ़िर हुए और अल्लाह के रस्ते से रोका, अल्लाह ने इनके अमल को क़ालअदम (निष्क्रीय) कर दिए. और जो ईमान लाए, जो मुहम्मद पर नाज़िल किया गया है, अल्लाह तअला इनके गुनाह इनके ऊपर से उतार देगा और इनकी हालत दुरुस्त रक्खेगा."
सूरह मुहम्मद - 47आयत (1-2)

मुहम्मद की पयंबरी भोले भाले इंसानों को ब्लेक मेल कर रही है जो इस बात को मानने के लिए मजबूर कर रही है कि जो ग़ैर फ़ितरी है. 
क़ुदरत का क़ानून है कि नेकी और बदी का सिला अमल के हिसाब से तय है, ये इसके उल्टा बतला रही है कि अल्लाह आपकी नेकियों को आपके खाते से तल्फ़ कर देगा. 
कैसी बईमान मुहम्मदी अल्लाह की ख़ुदाई है? 
किस क़द्र ये पयंबरी झूट बोलने  पर आमादः है.

"सो तुम्हारा जब कुफ़फ़ार  से मुकाबला हो जाए तो उनकी गर्दनें मार दो, यहाँ तक कि जब तुम इनकी ख़ूब खूँरेजी कर चुको तो ख़ूब मज़बूत बाँध लो, फिर इसके बाद या तो बिला मावज़ा छोड़ दो या मावज़ा लेकर, जब तक कि लड़ने वाले अपना हथियार न रख दें, ये हुक्म बजा लाना. अल्लाह चाहता तो इनसे इंतेक़ाम ले लेता लेकिन ताकि तुम में एक दूसरे के ज़रिए इम्तेहान करे. जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाते हैं, अल्लाह इनके आमाल हरगिज़ ज़ाया नहीं करेगा." 
सूरह मुहम्मद - 47आयत (3-4)

ऐसे अल्लाह और ऐसी पैग़मबरी पर आज इक्कीसवीं सदी में लअनत भेजिए, जो अज़हान इक्कीसवीं सदी तक नहीं पहुँचे वह इस नाजायज़ अल्लह की नाजायज़ औलादें तालिबानी हैं. 
ऐसे जुनूनियों के साथ ऐसा सुलूक जायज़ होगा कि नाजायज़ अल्लाह का क़ानून उसकी औलादों पर नाफ़िज़ हो. 
इस्लामी अल्लाह के अलावा कोई ख़ुदा ऐसा कह सकता है क्या "अल्लाह चाहता तो इनसे इंतेक़ाम ले लेता लेकिन ताकि तुम में एक दूसरे के ज़रिए इम्तेहान करे." 
मुसलमानों! ऐसे अल्लाह और ऐसे रसूल की राहें जिस क़द्र जल्द हो सके छोड़ दो. 

"ऐ ईमान वालो! अगर तुम अल्लाह की मदद करोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दम जमा देगा. और जो लोग काफ़िर हैं उनके लिए तबाही है और इनके आमल को अल्लाह तअला ज़ाया कर देगा, ये इस सबब से हुवा कि उन्हों ने अल्लाह के उतारे हुए हुक्म को ना पसंद किया, सो अल्लाह ने उनके आमाल को अकारत किया."
सूरह मुहम्मद - 47आयत (7-9)

दुन्या का हर हुक्मराँ जंग में सब जायज़ समझ कर ही हुकूमत कर पाता है. 
अशोक महान ने अपनी हुक्मरानी में एक लाख इंसानी जानों की कुर्बानी ली थी, 
जंग को जीत जाने के बाद उसके एहसास ए हुक्मरानी ने शिकस्त मान ली, 
कि क्या राजपाट की बुन्यादों में हिंसा होती है? 
उसे ऐसा झटका लगा कि वह बैरागी हो गया, बौध धर्म को अपना लिया. 
वह क़ातिल हुक्मरान से महात्मा बन गया 
और इस्लामी महात्मा को देखिए कि क़त्ल ओ ख़ून  का पैग़ाम  दे रहे हैं, 
वह भी  अल्लाह के पैग़ामबर  बन  कर.
अल्लाह इंसानों से मदद चाहता है ? 
मदद के तलबगार तो मुहम्मद हैं,
जो दर पर्दा अल्लाह बने बैठे हैं.

***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 20 December 2018

Hindu Dharm Darshan 260



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (65)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
> हे महाबाहु अर्जुन ! 
वेदान्त के अनुसार समस्त कर्मों की पूर्ति के लिए पांच करण हैं --- 
अब तुम इसे मुझ से सुनो.
कर्म का स्थान (शरीर) 
कर्ता 
विभिन्न इन्द्रियाँ 
अनेक प्रकार की चेष्टाएँ
तथा परमात्मा.
यह पांच कर्म के करण हैं.
>>मनुष्य अपने शरीर मन या वाणी से जो भी उचित या अनुचित कर्म करता है, 
वह इन पांच कारणों के फल स्वरूप होता है.
>>>जो मिथ्या अहंकार से प्रेरित नहीं है, 
वह इस संसार में मनुष्य को मारता हुवा भी नहीं मारता. 
न ही वह अपने कर्मों से बंधा हुवा होता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 18- श्लोक - 13-14-15-17  
*सृष्टि रचैता भगवान् कृष्ण का रूप लेकर एक मंद बुद्धि अर्जुन को सम्मान देता है, महा बाहुबली की उपाधि देता है, 
उसको पहाड़े रटाता, 
दो इक्कम दो, दो दूनी पांच, दो तिहाई सात - - - 
अर्जुन सदैव ऊहा पोह में रथ-बंधक बन कर उसकी ऊँट पटांग सुनता है, 
कभी कृष्ण से सवाल करने के बाद जवाब पर सवाल नहीं करता. 
पोंगा पंडित इंसानी फ़ितरत को हमेशा तीन, पांच और दस आदि संख्यकी गगित में सीमित करता है. 
अपनी अल्प बुद्धि से गीता ज्ञान प्रसारित करता है. 
वह कहता है - - -
 "वह इस संसार में मनुष्य को मारता हुवा भी नहीं मारता."
है न - - -दो इक्कम दो, दो दूनी पांच, दो तिहाई सात - - - 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>देखिए कि अल्लाह कुछ बोलने के लिए बोलता है, 
यही बोल मुसलमानों से नमाज़ों में बुलवाता है - - -
"जब ज़मीन अपनी सख्त जुंबिश से हिलाई जाएगी,
और ज़मीन अपने बोझ बहार निकल फेंकेगी,
और आदमी कहेगा, क्या हुवा?
उस  रज अपनी सब ख़बरें बयान करने लगेंगे,
इस सबब से कि आप के रब का इसको हुक्म होगा उस रोज़ लोग मुख्तलिफ़ जमाअतें बना कर वापस होंगे ताकि अपने आमाल को देख लें.
सो जो ज़र्रा बराबर नेकी करेगा, वह इसको देख लेगा
और जो शख्स ज़र्रा बराबर बदी करेगा, वह इसे देख लेगा.
सूरह  ज़िल्ज़ाल ९९   - पारा ३० आयत (१-८)
नमाज़ियो!
ज़मीन हर वक़्त हिलती ही नहीं बल्कि बहुत तेज़ रफ़्तार से अपने मदार (ध्रुव) पर घूमती है. 
इतनी तेज़ कि जिसका तसव्वुर भी कुरानी अल्लाह नहीं कर सकता. 
अपने मदार पर घूमते हुए अपने कुल यानी सूरज का चक्कर भी लगती है 
अल्लाह को सिर्फ यही खबर है कि ज़मीन में मुर्दे ही दफ्न हैं जिन से वह बोझल है 
तेल. गैस और दीगर मदनियात से वह बे खबर है. 
क़यामत से पहले ही ज़मीन ने अपनी ख़बरें पेश कर दी है और पेश करती रहेगी मगर अल्लाह के आगे नहीं, साइंसदानों के सामने.
धर्म और मज़हब सच की ज़मीन और झूट के आसमान के दरमियाँ में मुअललक फार्मूले है.ये पायाए तकमील तक पहुँच नहीं सकते. नामुकम्मल सच और झूट के बुनियाद पर कायम मज़हब बिल आखिर गुमराहियाँ हैं. अर्ध सत्य वाले धर्म दर असल अधर्म है. इनकी शुरूआत होती है, ये फूलते फलते है, उरूज पाते है और ताक़त बन जाते है, फिर इसके बाद शुरू होता है इनका ज़वाल ये शेर से गीदड़ बन जाते है, फिर चूहे. ज़ालिम अपने अंजाम को पहुँच कर मजलूम बन जाता है. दुनया का आखीर मज़हब, मजहबे इंसानियत ही हो सकता है जिस पर तमाम कौमों को सर जड़ कर बैठने की ज़रुरत है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 19 December 2018

Soorah ahqaf 46 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह अह्क़ाफ़-46 -سورتہ الا حقاف
(क़िस्त 2) 
हठ धरम अल्लाह कहता है - - -  
"हम ने तुम्हारे आस पास की और बस्तियाँ भी ग़ारत की हैं और हम ने बार बार अपनी निशानियाँ बतला दी थीं, ताकि वह बअज़ आएँ, सो जिन जिन चीजों को उन्हों ने अल्लाह का तक़र्रुब हासिल करने के लिए अपना माबूद बना रखा है, उन्हों ने इनकी मदद क्यूँ न कीं, बल्कि जब वह उनसे ग़ायब हो गए और ये सब उनकी तराशी और गढ़ी हुई बात है."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (27-28)
ऐ मुसलमानों! 
क्या तुम इतने कुन्द ज़ेहन हो कि किसी मक्कार और चाल बाज़ की बातों में आ जाओ? क्या तुम्हारा रुसवाए ज़माना अल्लह इस क़दर ज़ालिम होगा कि बस्तियों को ग़ारत कर दे? उसकी नक़्ल में अली मौला ने एक गाँव के लोगों को ज़िंदा जला के मार डाला. अगर तुम कट्टर मुसलमान अली मौला की तरह हो तो क्यूं न तुम को और तुम्हारे परिवार को ज़िंदा जला दिया जाय ? 
अभी सवेरा है अपने ज़मीर की आवाज़ सुनो. तुम्हारे लिए एक ही हल है कि तरके-इस्लाम करके मोमिन होने का एलान करदो.

"और जब हम जिन्नात की एक जमाअत को आपके पास लेकर आए तो  क़ुरआन सुनने लगे थे, गरज़ जब वह क़ुरआन के पास आए तो कहने लगे खामोश रहो, फिर जब  क़ुरआन पढ़ा जा चुका तो वह अपनी क़ौम  के पास ख़बर पहुँचाने के वास्ते गए. कहने लगे कि ऐ भाइयो! हम एक किताब सुन कर आए हैं जो मूसा के बाद नाज़िल हुई है, जो अपने से पहले की किताबों को तसदीक़ करती है. हक़ और राहे रास्त की रहनुमाई करती है.. 
ऐ भाइयो! अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले का कहना मानो और इस पर ईमान ले आओ. अल्लाह तअला तुमको मुआफ़ कर देगा और तुमको अज़ाबे दर्द नाक से महफ़ूज़ रख्खेगा."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (29-31)  
आयत पर ग़ौर  करो कि कितना बड़ा झूठा है तुम्हारा सल्ललाह ओ अलैहे वसल्लम. ड्रामे गढ़ता है और उसे किर्दगार ए कायनात के फ़रमान बतलाता है.

"जो शख़्स   अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले का कहना नहीं मानेगा वह ज़मीन में हरा नहीं सकता. और अल्लाह के सिवा कोई इसका हामी भी न होगा. ऐसे लोग सरीह गुमराही में हैं."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (32)
एक जुमला भी सहीह न बोल पाने वाला उम्मी तुम्हें अपना मज़हब सिखलाता है, 
ग़ौर करो " वह ज़मीन में हरा नहीं सकता." 
इसकी इस्लाह ओलिमा हराम जने किया करते हैं,
 मुहम्मद बार बार कहते हैं कि उनका कलाम जादू का असर रखता है, 
ओलिमा कहते हैं नौज़ बिल्लाह जादू तो झूटा होता है 
अल्लाह के कहने का मतलब ये है कि - - .

"क्या उन लोगों ने ये न जाना कि जिस अल्लाह ने ज़मीन और आसमान को पैदा किया और उनके पैदा करने में ज़रा भी नहीं थका, वह इस पर क़ुदरत रखता है कि मुरदों को ज़िंदा कर दे. क्यूँ न हो ? बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है. और जिस रोज़ वह काफ़िर दोज़ख़ के सामने ले जाएँगे. क्या वह दोज़ख़ अम्र वाक़ई नहीं है? वह कहेंगे हम को अपने परवर दिगार की क़सम ज़रूर अम्र वाक़ई है. इरशाद होगा अपने कुफ्र के बदले इस का मज़ा चख्खो."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (34) 
देखिए कि गंवार अपने अल्लाह को कभी न थकने वाला मख़लूक़ बतलाता है, जैसे ख़ुद था कि जिसे झूट गढ़ने से कभी कोई परहेज़ न था.
अम्र ए वाक़ई ? पढ़े लिखों की नक़ल जो करता था.

"तो आप सब्र करिए जैसा कि और हिम्मत वाले पैग़मबरों ने किया है और इन लोगों के वास्ते इंतेक़ाम की जल्दी न करिए. जिस रोज़ ये लोग इस चीज़ को देखेंगे जिसका वादा किया जाता है, तो गो ये दिन भर में एक घडी रहेगे, ये पहुँचा देना है, सो वह ही बर्बाद होंगे, जो नाफ़रमानी करेंगे."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (35)  
शर्री रसूल के बाप को किसी ने नहीं मारा कि वह उससे इंतेक़ाम ले न दादा को. वह तो इस बात का बदला लेगा कि उसकी रिसालत को लोग नहीं मान रहे हैं जो कि किसी बच्चे के गले भी नहीं उतरती.
लाखों लोग उसके इंतेक़ाम के शिकार हो गए.

*क़ुरआन की लाखों झूटी तस्वीरें इस्लामी आलिमों ने दुन्या के सामने अब तक पेश की हैं. " हर्फ़ ए ग़लत" आप की ज़बान में ग़ालिबान पहली किताब है जो उरियां सदाक़त के साथ आप के सामने एक बा ईमान मोमिन लेकर आया है. इसके सामने कोई भी फ़ासिक़ लम्हा भर के लिए नहीं ठहर सकता.
क़ुरआनी अल्लाह के मुक़ाबिले में कोई भी कुफ़्र का देव और शिर्क के बुत बेहतर हैं कि अय्याराना कलाम तो नहीं बकते, 
डराते धमकाते तो नहीं, गरयाते भी नहीं, पूजो तो सकित न पूजो तो सकित, 
जिस तरह से चाहो  इनकी पूजा कर सकते हो, सुकून मिलेगा, 
बिना किसी डर के. इनकी न कोई सियासत है, न किसी से बैर और बुग्ज़.  
इनके मानने वाले किसी दूसरे तबके, खित्ते और मुख़ालिफ़ पर ज़ोर ओ ज़ुल्म करके अपने माबूद को नहीं मनवाते. 
इस्लाम हर एक पर मुसल्लत होना अपना पैदायशी हक़ समझता है. 
जब तक इस्लाम अपने तालिबानी शक्ल में दुन्या पर क़ायम रहेगा, 
जवाब में अफ़गानिस्तान,इराक़ और चेचेनिया का हश्र इसका नसीब बना रहेगा. भारत में कट्टर हिन्दू तंजीमे इस्लाम की ही देन हैं. 
गुजरात जैसे फ़साद का भयानक अंजाम क़ुरआनी आयातों का ही जवाब हैं. 
ये बात कहने में कोई मुज़ायक़ा नहीं कि जो मुकम्मल मुसलमान होता है 
वह किसी जम्हूरियत में रहने का मुस्तहक़ नहीं होता. 
मुसलमानों के लिए कोई भी रास्ता बाक़ी नहीं बचा है, 
सिवाय इसके कि तरके इस्लाम करके मजहबे इंसानियत क़ुबूल कर लें. 
कम अज़ कम हिदुस्तान में इनका ये अमल फ़ाले नेक साबित होगा, 
राद्दे अमल में कट्टर हिदू ज़हनियत वाले हिदू भी अपने आप को खंगालने पर आमादा हो जाएँगे. हो सकता है वह भी नए इंसानी समाज की पैरवी में आ जाएँ. 
तब बाबरी मस्जिद और राम मंदिर, दो बच्चों के बीच कटे हुए पतंग के फटे हुए काग़ज़ को लूटने की तरह माज़ी की कहानी बन जाए. तब दोनों बच्चे कटी फटी पतंग को और भी मस्ख़ करके ज़मीन पर फेंक कर क़हक़हा लगाएँगे. 
इंसान के दिलों में ये काली बलूग़त को गायब करने की ज़रुरत है, 
और मासूम ज़ेहनों में लौट जाने की.  
     
कलामे दीगराँ  - - -
"इंसान को अपनी बे एतदाल तबीअत और बोझिल हसरतों को छोड़ कर सादा लौही और शुरूवाती उसूलों को अपनाना चाहिए."
"कानफियूशस Kung Fu Tzu" 
(चीनी धर्म गुरु)
इस कहते हैं कलाम पाक 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 18 December 2018

Hindu Dharm Darshan 259


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (64)

अर्जुन ने कहा - - -
> हे महाबाहु ! मैं त्याग का उद्देश्य जानने का इच्छुक हूँ  और 
हे  केशिनिषूदन !
हे हरिकेश !
मैं त्यागमय जीवन (संन्यास आश्रम) का भी उद्देश्य जानना चाहता हूँ.
>>भगवान् ने कहा --- भौतिक इच्छा पर आधारित कर्मों के परित्याग को विवान लोग संन्यास कहते हैं. 
और समस्त कर्मों के फल त्याग को बुद्धिमान लोग त्याग कहते हैं. 
>>>हे भारत श्रेष्ट ! अब त्याग के विषय में मेरा निर्णय सुनो.
हे नरशार्दूल !
शास्त्रों में त्याग तीन प्रकार का बतलाया गया है.
>>>यज्ञ दान तथा तपश्या के कर्मों का कभी परित्याग नहीं करना चाहिए, उन्हें आवश्य संपन्न करना चाहिए. निःसंदेह  यज्ञ दान तथा तपश्या महात्माओं को भी शुद्द बनाते हैं. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -18   श्लोक -1-2-4\5-   

*इन संदेशों से जनता जनार्दन को क्या सन्देश मिलता है, 
सिवाय महान आत्माओं के ? 
महान आत्माएं क्या मेहनत कश किसान और मज़दूर के बिना ज़िन्दा बच सकते हैं ? मगर जनता जनार्दन इन महानों के बिना जी सकते है, 
बल्कि बेहतर जी सकते है, 
इस लिए कि इनके मेहनत का फल उनके हिस्से में बिना मेहनत के चला जाता है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 17 December 2018

सूरह अह्क़ाफ़-46 -سورتہ الا حقاف (क़िस्त 1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह अह्क़ाफ़-46 -سورتہ الا حقاف
(क़िस्त 1)

"यह किताब अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाले  की तरफ़ से भेजी गई है."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत (2)

ज़बरदस्त यानी जब्र करने वाला, जो ज़बरदस्त हो वह अल्लाह कैसे हो सकता है? इंसानी हिकमतो से अल्लाह बे ख़बर है, वरना मुहम्मद को ऐसी सज़ा देता कि पैग़मबरी छोड़ कर वह बकरियाँ चराने वापस चले जाते, 
दाई हलीमा के पास. 
अल्लाह अगर है तो शफीक़ बाप की मानिंद होगा.

"जो लोग काफ़िर हैं, उनको जिस चीज़ से डराया जाता है, वह उससे बे रुखी करते हैं"
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (3)

सबसे बड़ा काफ़िर मुसलमान होता है जो ख़ुदा की मख़लूक़ को काफ़िर, मुशरिक, मुकिर और मुल्हिद समझता है. 
इरतेक़ाई मरहलों को पार करता हुवा कारवाँ पुर फ़रेब वहदानियत के चपेट में आकर मुसलमान बना तो दुन्या की तमाम बरकतें उस पर हराम हो गई. जिन्होंने बे रुखी बरती वह सुर्ख़रू हैं.

"आप कहिए कि ये तो बताओ कि जिस चीज़ की तुम अल्लाह को छोड़ कर, इबादत करते हो, मुझको  दिखलाओ कि उन्होंने कौन सी ज़मीन पैदा की है? या उसका आसमान के साथ कुछ साझा है. मेरे पास कोई किताब जो पहले की हो, या कोई मज़मून मनक़ूल लाओ अगर तुम सच्चे हो? और जब हमारी खुली खुली आयतें उन लोगों के सामने पढ़ी जाती हैं तो ये मुनकिर लोग उसकी सच्ची बात की निस्बत, जब कि ये उन तक पहुँचती है, ये कहते हैं, ये सरीह जादू है."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (4-7)

ज़मीन ओ आसमान को पैदा करने वाली कोई भी ताक़त हो मगर मुहम्मदी अल्लाह जैसा अहमक़ लाल बुझक्कड़ नहीं हो सकता. मुहम्मद अपनी किताबे-वाहियात को दुन्या के बड़े बड़े ग्रंथों के आगे रख कर पशेमान तो न हुए मगर इसको रटने वाले आज मिटटी के मोल हो रहे है, पस्मान्दा क़ौम  का नाम इनको दिया जा रहा है. इसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह के साझीदार मुहम्मद पर आती है.

"क्या ये लोग कहते हैं कि इसको इसने अपनी तरफ़ से बना लिया है? कह दीजिए कि इसको अगर मैंने अपनी तरफ़ से बना लिया है तो तुम लोग मुझे अल्लाह से बिलकुल नहीं बचा सकते. वह ख़ूब जानता है कि तुम  क़ुरआन में जो बातें बता रहे हो, मेरे और तुम्हारे दरमियान वह काफ़ी गवाह है, और  वह मग्फ़िरत वाला और रहमत वाला है."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (8)
ये मुहम्मद का मेराजे अय्यारी है.

"और आप कह दीजिए कि तुम मुझको ये तो बताओ कि ये  क़ुरआन मिन जानिब अल्लाह हो और तुम इसके मुनकिर हो और बनी इस्राईल में से कोई गवाह इस जैसी किताब पर गवाही देकर ईमान ले आवे और तुम तकब्बुर में ही रहो. बेशक अल्लाह बे इन्साफ़ लोगों को हिदायत नहीं करता."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (10)

दो एक लाख़ैरे  यहूदी मुसलमान हो गए थे तो उनको बुनियाद बना कर ख़ुद को अल्लाह का रसूल साबित करना चाहते हैं. मुहम्मद की बकवास किताब को न तस्लीम करना लोगों की बे इंसाफी ठहरी? आज भी इन बातों को पढ़ कर उम्मी रसूल से सिर्फ़ नफ़रत बढ़ती है. उस वक़्त लोग पागल समझ कर टाल जाया करते थे.

"और हमने इंसान को अपने माँ बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है. इसकी माँ ने इसको बड़ी मशक्क़त के साथ पेट में रख्खा है, और बड़ी मशक्क़त के साथ इसको जना और इसका दूध छुड़ाना तीस महीने में है, यहाँ तक कि जब वह अपनी जवानी तक पहुँच जाता है और चालीस बरस को पहुँचता है तो कहता है, ऐ मेरे परवर दिगार मुझ को इस पर हमेशगी दीजे  कि मैं आपकी इन नेमत का शुक्र अदा किया करूँ जो आपने मुझको और मेरे माँ बाप को अता फ़रमाई."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (15)

अल्लाह हमल से लेकर चालीस साल की उम्र तक इंसान से मुहम्मद के प्रोग्रामिंग के हिसाब से जिलाता है, साथ में उसकी हिदायतें भी उनके सबक में हैं. क्या आयतें किसी सनकी की बकवास नहीं लगती?

कलामे दीगराँ  - - -
"ज़्यादः रौशनी इंसान को अँधा बना देती है, अलफ़ाज़ बहरा बना देते हैं, लज्ज़तें ज़बान को बे ज़ायक़ा कर देती हैं और क़ीमती अश्या लालच में डाल देती हैं, इस लिए समझदार लोग ज़मीर की तरफ़ मुतावज्जो होते हैं, न कि  नफ्स की तरफ़"
"ताओ"

इस कहते हैं कलाम पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान