Sunday 25 December 2016

Soorah najm 53

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नज्म ५३ - पारा २७ 

ईश निदा
आज कल मीडिया में शब्द "ईश निंदा" बहुत ही प्रचलित हो रहा है, जो दर अस्ल तालिबान नुमा मुसलामानों को संरक्षण देने का काम करता है. ईश निंदा का मतलब हुवा खुदा या ईश्वर का अपमान करना, जब कि नया दृष्ट कोण रखने वाले बुद्धि जीवी इस्लामी आदेशों की निंदा करते है. कुरान में ९०% आयतें मानवता के विरुद्ध हैं, जिसकी निंदा करना मानव अधिकार ही नहीं, मानव धर्म भी है. कोई उस सृष्टि व्यापी अबूझी महा शक्ति को नहीं अपमानित करता, बल्कि अल्लाह बने मुहम्मद और उनके क़ुरआनी आदेशों का खंडन करता है, जो अमानवीय है.
हमारा नया कल्चर बना हुवा है सभी धर्मो का सम्मान करना, जिसे सेकुलरटी का नाम भी गलत अर्थों  में दिया गया है. सेकुलर का अर्थ है धर्म विहीन.  सेकुलरटी को भी एक नए धर्म का नाम जैसा बना दिया गया है.
ज़्यादः हिस्सा धर्म दूसरे धर्मों का विरोध करते हैं, जिसके तहत वह अधर्मी, काफ़िर और नास्तिकों को खुल्लम खुल्ला गालियाँ देते हैं. जवाब में अगर नास्तिक के मुँह से कुछ निकल जाए तो वह ईश निंदा हो जाता है, उसको तिजारती मीडिया ललकारने लगती है.
मेरी मांग है कि जागृत मानव को पूरा हक़ होना चाहिए कि वह अचेत लोगों की चेतना को सक्रीय करने के लिए इस्लाम निदा, क़ुरआन निंदा और मुहम्मदी अल्लाह की निंदा को ईश निदा न कहा जाए.बल्कि इसे मठा धीशों की "धीश निंदा" कहा जा सकता है. 
  
"क़सम है सितारे की जब वह ग्रूब होने लगे, ये तुम्हारे साथ  के रहने वाले (मुहम्मद) न राहे-रास्त से भटके, न ग़लत राह हो लिए और न अपनी ख्वाहिशात ए नफ्सियात से बातें बनाते हैं. इनका इरशाद निरी वह्यी है जो इन पर भेजी जाती है. इनको एक फ़रिश्ता तालीम करता है जो बड़ा ताक़तवर है, पैदैशी ताक़त वर."
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (१-६)

जिस सितारे की क़सम खुद साख्ता रसूल खाते हैं उसके बारे में अरबियों का अक़ीदा है कि वह जब डूबने लगेगा तो क़यामत आ जाएगी.
भला कोई तारा डूबता और निकलता भी है क्या?
ग़ालिब कहते हैं - - -
थीं बिनातुन नास ए गर्दूं दिन के परदे में निहाँ,
शब  को इनके जी में क्या आया कि उरियां हो गईं.
अल्लाह इस जुगराफिया से बे खबर है.
बन्दों को इस से ज़्यादः समझने की ज़रुरत महसूस नहीं हो पाती कि वह समझे कि वादहू ला शरीक की क़सम खाने की क्या ज़रुरत पड गई मुहम्मदी अल्लाह को, जिसके कब्जे में कायनात है. वह तो पलक झपकते ही सब कुछ कर सकता है बिना कस्मी कस्मा के.
मुहम्मद का आई. क्यू. फ़रिश्ते  को पैदायशी ताक़त वर कहते है, तुर्रा ये कि इसको अल्लाह का कलाम कहते हैं जो बज़रिए वह्यी (ईश वाणी)  उन पर नाजिल होती है.

''फिर वह फ़रिश्ता असली सूरत में नमूदार हुवा,.ऐसी हालत में वह बुलंद कनारे पर था, फिर वह फ़रिश्ता नज़दीक आया फिर और नज़दीक आया, सो दो कमानों  के बराबर फ़ासला रह गया बल्कि और भी कम, फिर अल्लाह ने अपने बन्दे पर वह्यी नाज़िल फ़रमाई. जो कुछ नाज़िल फ़रमाई थी, क़ल्ब ने देखी हुई चीज़ में कोई ग़लती नहीं की. तो क्या इनकी देखी हुई चीज़ में निज़ाअ करते हो.?"
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (७-१२)

 ऐ पढ़े लिखे मुसलमानों!
तुम अपने तालीमी सार्टी फिकेट, डिग्रियाँ और अपनी सनदें फाड़ कर नाली में डाल दो, अगर मुहम्मद की इन वाहियों पर ईमान रखते हो. उनकी बातों में हिमाक़त और जेहालत कूट कूट कर भरी हुई है. या फिर नशे के आलम में बक बकाई हुई बातें.
कुरआन यही है जो तुम्हारे सामने है.
 हमारे बुजुर्गो के ज़हनों को कूट कूट कर क़ुरआनी अक़ीदे को भरा गया है, इसे तलवार की ज़ोर पर हमारे पुरखों को पिलाया गया है, जिससे हम कट्टर मुसलमान बन गए.  इस कुरआन की असलियत जान कर ही हम नए सिरे से जाग सकते हैं.

*और उन्होंने इस फ़रिश्ते को एक बार और भी देखा है सद्रतुन-मुन्तेहा के पास इसके नजदीक जन्नतुल माविया है. जब इस सद्रतुल माविया को लिपट रही थीं, जो चीज़ लिपट रही थीं, निगाह न तो हटी न तो पड़ती उन्होंने अपने परवर दिगार के बड़े बड़े अजायब देखे."
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (१३-१८)

मुसलमानों! जो इस्लाम आपके हाथ में है वह यहूदी अकीदतों की चोरी का माल है, जिसमें मुहम्मद ने कज अदाई करके इसकी शक्लें बदल दी है. सद्रतुन-मुन्तेहा जन्नत का एक मफरूज़ा दरख़्त है, जैसे ज़कूम को तुम्हारे नबी ने दोज़ख में उगाया था. इस दरख्त में क्या शय लिपट रही थी उसका  नाम अल्लाह के रसूल को याद नहीं रहा, जो चीज़ लिपट रही थी इनको ओलिमा ने तौरेत और दीगर पौराणिक किताबों से मालूम कर के तुमको बतलाया है. खुद अल्लाह सद्रतुन-मुन्तेहा और जन्नतुल माविया को अलग अलग बता नहीं सका, इन्हों ने अल्लाह की मदद की.
किस्से मेराज में इस फर्जी पेड़ का ज़िक्र है, उसी रिआयत से मुहम्मद तस्दीक करते हैं कि इसे एक बार और भी देखा है.

"भला तुमने लात, उज्ज़ा और मनात के हाल पर भी गौर किया है?
क्या तुम्हारे लिए तो बेटे हों और अल्लाह के लिए बेटियाँ? इस हालत में ये तो बहुत ही बेढंगी तकसीम है.
ये महेज़ नाम ही नाम है जिनको तुमने और तुम्हारे बाप दादाओं ने ठहराया, अल्लाह ने इनको माबूद होने की कोई दलील भेजी,  न हीं. ये लोग सिर्फ बे हासिल ख्याल पर और अपने नफस की ख्वाहिश पर चल रहे हैं. हालांकि इन्हें इनके रब की जानिब से हिदायत आ चुकी है. क्या इंसान को इसकी हर तमन्ना मिल जाती है?"
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (१९-२३)

लात ,उज्ज़ा और मनात की टहनी से अल्लाह फुदक कर ईसाइयत की डाली पर आ बैठता है. अल्लाह तहज़ीबी इर्तेका को बेढंगी बात कहता है.
फिर लात, उज्ज़ा और मनात के हाल पर आता है कि इसे तो वह भूल ही गया था. अल्लाह ने इन बुतों को कोई दलील न देकर ठीक ही किया कि झूटी पैगम्बरी तो इनके पीछे नहीं गढ़ी हुई है.
काले जादू और सफेद झूट में अगर दीवानगी मिला दी जाए तो बनती हैं क़ुरआनी आयतें.

"तो भला आपने ऐसे शख्स को भी देखा जिसने दीन ए हक़ से रू गरदनी की और थोडा मॉल दिया और बंद कर दिया. क्या इस शख्स के पास इल्म गैब है? कि उसको देख रहा है."
सूरह नज्म ५३ - पारा २७ आयत (३३-३५)

कोई वलीद नाम का शख्स था जिसने मुहम्मद के हाथों पर हाथ रख कर बैत की थी और इस्लाम कुबूल किया था. वह अपने घर वापस जा रहा था कि उसे कोई शनासा मिल गया और तहकीक की. वलीद ने जवाब दिया कि तुमने ठीक ही सुना है. मैं डर रहा हूँ कि मरने के बाद कोई खराबी न दर पेश हो. शनासा ने कहा बड़े शर्म की बात है कि तुम ने अपना और अपने बुजुर्गों के दीन को छोड़ कर एक सौदाई की बातों पर यकीन कर लिया वलीद ने कहा मुमकिन है उसकी बातें सच हों और मैं जहन्नम में जा पडूँ?शनासा बोला भाई मैं तुम्हारे वह इम्कानी अज़ाब अपने सर लेने का वादा कर रहा हूँ, बशर्ते तुम मुझे कुछ मॉल देदो.वलीद इस बात पर राज़ी हो गया मागर कुछ मोल भाव के बाद. वलीद ने शनासा से इसकी तहरीर लिखवाई और दो लोगों की गवाही कराई फिर तय शुदा रक़म अदा करके अपने पुराने दीन पर लौट आया ये बात जब मुहम्मद के इल्म में आई तो मनदर्जा  बाला आयत नाज़िल हुई.
आप उस वक़्त के इस वाकए से तब के लोगों का ज़ेहनी मेयार को समझ सकते हैं.
कुछ वलीद जैसे गऊदियों ने इस्लाम क़ुबूल किया, फिर माले-गनीमत के लुटेरों ने. इसके बाद जंगी मजलूमों ने इसे कुबूल किया.
कुरआन खोखला पहले भी था और आज भी है.
वलीद जैसे सादा लौह कल भी थे और आज भी हैं.
देखना है तो टेली विज़न  पर बाबाओं, बापुओं, स्वामियों और पीरों की सजी हुई महफ़िल देख सकते हैं.
शनासा जैसे होशियार और होश मंद भी हमेशा रहे ही हैं.
ज़रुरत है कौम को चीन जैसे इन्क़लाब की, जो अवाम की ज़ेहनी मरम्मत गोलियों की चन्द आवाज़ से करें, वर्ना हमारा मुल्क इसी कश मकश की हालत में पड़ा रहेगा..


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 17 December 2016

Hindu Dharam Darshan 30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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राम नाम सत्य है 

ऐसे कीमती मन्त्र हमारे पूर्वजों ने वर्षों पहले हमें वरदान स्वरूप दिए हैं मगर इसे आज तक हम समझने में असफल हैं .
एक बच्चा स्कूल के रास्ते, जाते समय जब भी मंदिर के सामने से गुज़रता , कभी राम नाम सत्य है के नारे लगाता ,
तो कभी सत्य बोलो मुक्ति है के नारे लगाता.
मंदिर का पुजारी उसे पत्थर उठा कर दौडाता और हडकाता.
पुजारी नादान था और बच्चा बुद्धिमान था.
राम नाम सत्य है में पैगाम छुपा हुवा है कि 
"सत्य का नाम ही राम है", 
राम रुपी कोई हस्ती नहीं है, 
सत्य का रूप ही राम (ईश्वर) है .
यह राम दशरथ पुत्र नहीं, 
सत्य का कोई रूप रंग ही नहीं ,
सत्य कोई हस्ती भी नहीं जिसे देखा जा सके ,
सत्य तो निरंकार कर्म है .
कर्म के आधार पर ही हम जीते हैं .
हमारे कर्मों में अगर सत्य आधारित है. 
तो ही हमारी मुक्ति है .
मुक्ति मरणोपरान्त होती है? 
यह भी हास्य स्पद बातधारणा हैं.
मरने के बाद तो किस्सा तमाम हो जाता है.
कोई कर्म फल पाने का जीवन ही नहीं रहा.

राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है 
का नारा बच्चे के पैदा होते ही उसके कान में लगवाना चाहिए, मगर लगता है उसके मरने के बाद, 
यह पाखंड की शुरुआत और अंत का अर्थ हीन नतीजा है,
जिसके नतीजे में भार युक्त जीवन जीते हैं.
इंसान की हर सांस भार रहित हो, यह उसकी मुसलसल मुक्ति है.
इन कीमती मन्त्रों का उल्टा रूप दे दिया गया है, 
हम बजाय सत्य मंदिर के राम मंदिर बनाते हैं 
और जीवन भर असत्य को जीते हैं और उसकी पूजा करते हैं. जीवन मुक्ति होने के बाद सत्य बोलने सन्देश मुर्दे को सुनबा ते हैं.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 16 December 2016

Soorah toor 52 -2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह तूर ५२ - पारा २७
दूसरी क़िस्त 

"कोई इसे टाल नहीं सकता. जिस रोज़ आसमान थरथराने लगेंगे, और पहाड़ हट जाएँगे, जो लोग झुटलाने वाले हैं, जो मशगला में बेहूदी के साथ लगे रहते हैं , इनकी इस रोज़ कमबख्ती आ जायगी. जिस रोज़  इन्हें आतिशे दोज़ख की तरफ धक्के मार कर लाएँगे, . . ये वही दोज़ख है जिसे तुम झुट्लाते थे, फिर क्या सेहर है या तुमको नज़र नहीं आ रहा."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (८-१५)

"मुत्तकी लोग बिला शुबहा बागों और सामान ए ऐश में होंगे.
खूब खाओ पियो अपने आमालों के साथ.
तकिया लगाए हुए तख्तों पर बराबर बिछाए हुए हैं.
हम उनका गोरी गोरी, बड़ी बड़ी आँखों वालियों से ब्याह कर देंगे.
और हम उनको मेवे और गोश्त , जिस क़िस्म का मरगूब हो रोज़े अफ़जूँ  देते रहेंगे.
वहाँ आपस में जाम ए शराब में छीना झपटी करेंगे, इसमें न बक बक लगेगी.और न कोई बेहूदा बात होगी.
इनके पास ऐसे लड़के आएँगे, जाएँगे जो ख़ास इन्हीं के लिए होंगे,
गोया वह हिफ़ाज़त में रखे मोती होंगे वह एक दूसरे की तरफ़ मुतवज्जो होकर बात चीत करेंगे.
ये भी कहेगे की हम तो इससे पहले अपने घर में बहुत डरा करते थे, सो अल्लाह ने बड़ा एहसान किया.  
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (१७-२७)

सामान ए ऐश के लिए गोरी गोरी, बड़ी बड़ी आँखों वालियों,
शराब कबाब के दौर चलेंगे, धींगा मुश्ती होगी,
तख्तों पर जन्नती बे खटके बेशर्मी करेंगे.
वहाँ न किसी क़िस्म की हरकत नाज़ेबा न होगी और इज्तेमाई अय्याशी रवा होगी. सभी जन्नती एक दूसरे की नकलों हरकत देख कर मह्जूज़ हुवा करेंगे. 
मन पसंद गोशत और मेवे शराब के साथ बदर्जा स्नैक्स होंगे, जिसे ऐसे लड़के लेकर आएँगे, जाएँगे जो ख़ास इन्हीं जन्नातियों के लिए वक्फ़ होगे वह चाहें तो उनका हाथ खींच कर उन्हें अपने तख्त पर लिटा लें.
सारी हदें पार करते हुए मुहम्मद जन्नातियों को लौंडे बाज़ी की दावत देते है. वहाँ कोई काम न करना पडेगा, न ही नमाज़ रोज़ा न वज़ू की पाकीज़गी की ज़रुरत होगी.
बस कि जिनसे लतीफ़ और जिनसे गलीज़ की जन्नत में हर वक़्त डूबे रहिए.

मुहम्मद का तसव्वर गौर तलब है. कहते है कि जन्नती ये भी कहेंगे - - -
"ये भी कहेगे की हम तो इससे पहले अपने घर में बहुत डरा करते थे, सो अल्लाह ने बड़ा एहसान किया."

शर्म! शर्म!!शर्म!!!
ये नापाक बातें किसी नापाक किताब में ही दीन के नाम पर मिलती होंगी. अय्यास मुसव्विर का तसव्वुर मुलाहिजा हो - --

"आप समझाते रहिए क्यूँकि आप बफ़ज्लेही तअला न काहन हैं न मजनूँ हैं, हाँ क्या ये लोग कहते हैं कि ये शायर है? हम इनके वास्ते हादसा ए मौत का इंतज़ार करते हैं."
हाँ क्या वह लोग कहते हैं की कुरआन को इसने खुद गढ़ लिया है, बल्कि तस्दीक नहीं करते तो ये लोग इस तरह का कोई कलाम ले आएँ."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (३०-३३

मुहम्मद काश की काहन या मजनू होते तो बेहतर होता की आज उनकी एक उम्मत न तैयार होती की जो मौत और जीस्त में मुअल्लक है.
मुहम्मद शायर तो कतई नहीं थे मगर मुतशयर (तुक्बन्दक) ज़रूर थे क्यूँकि पूरा कुरआन एक फूहड़ तरीन तुकबंदी है.
"हम इनके वास्ते हद्साए मौत का इंतज़ार करते हैं.
ये बात अल्लाह कह रहा है जो हुक्म देता है तो पत्ता हिलता है, और इतना मजबूर कि इंसान की मौत का मुताज़िर है कि ये कमबख्त मरे तो हम  इसको दोज़ख का मज़ा चखाएं.

"क्या ये लोग बदून खालिक के खुद ब खुद पैदा हो गए? हैं या ये लोग खुद अपने खालिक हैं? या उन्हों ने आसमान आर ज़मीन को पैदा किया है? बल्कि ये लोग यक़ीन नहीं लाते. क्या इन लोगों के पास तुम्हारे रब के खज़ाने हैं? या ये लोग हाकिम हैं? क्या इनके पास कोई सीढ़ी है? कि इस पर चढ़ कर बातें सुन लिया करते हैं- - - "
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (३८)

ये तमाम बातें तो आप पर ही लागू होती है,
 ऐ अल्लाह के मुजरिम, नकली रसूल ! !

"वह आसमान का कोई टुकड़ा अगर गिरता हुवा देखें तो यूं कहेंगे की ये तो तह बहुत जमा हुवा बादल है ."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (४४)

इसका अंदाज़ा खुद मुहम्मद ने ही लगाया होगा क्यूँकि उनकी सोच यही कहती है.

  








जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 13 December 2016

Hindu Dharam Darshan 29

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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Hindu Dharam Darshan 29

ब्रहमांड से बाबा बर्फानी तक 

आज से पचास पहले हिदी की नई नई शब्दावली गढ़ी जा रही थी, 
रेलवे स्टेशन  को भकभक अड्डा और रेल पटरी को लौह पद गामिनी किया गया था, तो अंडे का शुद्धि करण करते हुए इसे शाकाहार बनाया गया 
और नाम दिया गया, पखेरू गंड फल. 
कुछ ऐसा ही नाम ब्रहमांड का मालूम पड़ता है. 
ब्रह्मा का अंडा. 
ज़ाहिर है ब्रहम देव नर ही थे योनि विहीन. 
बच्चा देने से रहे, अंडा वैसे ही दिया होगा जैसे पखेरू, 
अर्थात यह ब्रहमांड ब्रह्मा गंड फल हुवा.
हमें वैदिक हिंदुत्व भी बतलाता है कि समस्त मानव प्राणी ब्रह्मा के शरीर से निर्मित हुए, सर, बाज़ू , पेट और पैरों निर्मित चार जातियां हुईं. 
मुझे अकसर कहा जाता है कि मैं हिन्दू धर्म की गहराइयों में जा कर देखूं 
कि इस में कितना दम है ?
इस का आभास मुझे ब्रहमांड से शरू हिता है, 
मैं कर बध्य होकर पांडित्य के सामने बैठता हूँ, 
उनकी गायकी और उबाऊ कथा के आगे.
मेरे हर कौतूहल के जवाब में इन का सन्दर्भ और संगर्भ आ जाता है, 
सुनते सुनते रत बीत जाती है, 
सन्दर्भ और संगर्भ का सिलसिला ख़त्म होने का नाम नहीं लेता. 
मुझे खामोश रह कर इन सनातनी दास्तानों को सुननी है, 
ब्रह्मा शरीर से निर्मित, सुवर पुत्र, या मेढकी से जन्मित अथवा जल से निकसित  
विष्णु द्वारा संचालित सृष्टि की गाथा से लेकर , 
महेश यानी शिव जी के तांडव तक जाने में हमारी ज़िन्दगी 2 अरब 50 करोर वर्ष समाप्त हो जाते हैं , मै बोझिल हो कर पूछता हूँ , पंडित जी महाराज ! 
आप की गाथा ख़त्म हुई? 
और वह कहते हैं , 
वत्स अभी तो वैदिक गर्भ का एक काल ख़त्म हुवा है, 
अभी तो असंख्य काल शेष हैं, आस्था के साथ सुन.

ब्रह्मा की चार सरों वाली तस्वीर मुस्लिम मोलवी  छाप जैसी है. 
मेरे अनुमान के हिसाब से यह तस्वीर मुस्लिम, ईसाई और यहूदियों में 
मुश्तरका मूल पुरुष अब्राम जो अब्राहम हुए फिर इब्राहीम हुए, 
उसके बाद बराहम हुए, ब्रह्मनो ने उनको ब्रह्मा बना दिया.  
अभी पिछले अंकों में इस बात पुष्टि हो गई है कि यहूदियों और ब्रह्मनो का DNA टेस्ट से मालूम हुवा हैकि दोनों में ९८% यकसानियत है. 
अब्राहम साढ़े तीन हज़ार साल पहले इराक में पैदा हुआ जिसका वहाँ के मानव इतिहास में पहला वरदान है. 
इनको बाबा ए कौम भी कहा जाता है. 
इनकी प्रसिद्धि इनके पड पोते युसूफ की वजह से और हुई जो मिस्र के फ़िरअना का मंत्री था, बाद में ऐतिहासिक आइकान बना.
शिव जी जो अभी चंद सौ साल पहले उत्तर भारत में हुए 
जिनको कश्मीरी मुसलमान बर्फानी बाबा हहते हैं, 
अभी कुछ साल पहले उनकी लाठी किसी मुस्लिम ने तलाश करके नई दुन्या को दिया जिसे छड़ी मुबारक नाम दिया. 
यही बाबा बर्फानी आस्था वानो के ज्ञान का श्रोत्र हैं जो ब्रह्मा के साथ मिल कर २५०००००००० वर्षों का कार्य काल पूरा करते हैं.
अब तो मुसलमानों को ही नहीं 
हिदुओं को भी कहने को मजबूर होना पड़ रहा है कि 

जागो हिन्दू जागो !!


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 12 December 2016

Soorah toor 52

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह तूर ५२ - पारा २७
पहली किस्त्त 

पूरी दुन्या की तमाम मस्जिदों में नमाज़ से पहले अज़ान होती है. फिर हर नमाज़ी नमाज़ की नियत बांधने के साथ साथ अज़ान को दोहराता है.
अज़ान का एक जुमला होता है - - -
अशहदों अन ला इलाहा इल्लिल्लाह.
(मैं गवाही देता हूँ कि एक अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है)
दूसरा जुमला है - - -
(मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं)
गवाही का मतलब होता है आँखों से देखा और कानों से सुना हो.
कोई बतलाए कि कोई कैसे दावा कर सका है कि एक अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है? इस बात पर यकीन हो सकता है कि इस कायनात को बनाने वाली कोई एक ताक़त है मगर इस बात की गवाही नहीं दी जा सकती
सवाल ये उठता है कि हज़ारों मुआज्ज़िन और लाखों नमाजियों ने ये कब देखा और कब सुना कि अल्लाह मुहम्मद को अपना रसूल (दूत) बना रहा था?
हर इंसान के लिए ये अज़ान आलमी झूट की तरह है जिसे मुसलमान आलमी सच मानते है और अज़ान देते हैं.
राम चंद परम हंस ने अदालत में झूटी गवाही दी कि 
"मैंने अपनी आँखों से कि गर्भ गृह से राम लला हो पैदा होते हुए देखा."
जिसे अदालत ने झूट करार दिया. इस साधू की गवाही झूटी सही मगर थी गवाही ही.
मुसलामानों की झूटी गवाही तो गवाही ही नहीं है, पहली जिरह में मुक़दमा ख़ारिज होता है कि मुआमला चौदह सौ साल पुराना है और मुल्लाजी की उम्र महेज़ चालीस साल की है, उन्हों ने कब देखा सुना है कि इनके नबी अल्लाह के रसूल बनाए गए? मुसलामानों की पंज वक्ता गवाही उनकी ज़ेहनी पस्ती की अलामत ही कही जाएगी.
जिस तरह मुहम्मदी अल्लाह झूटी गवाही और शहादत को पसंद करता है उसी तरह झूटी क़सम भी उसकी पसंद है.
 देखिए कि उसकी कसमें कौन कौन सी चीज़ों को मुक़द्दस और पवित्र बनाए हुए ही - - -

"क़सम है तूर पहाड़ की और इस किताब की जो कोरे काग़ज़ पर लिखी हुई है, और क़सम है  बैतुल उमूर की और ऊँची छत की और दरियाए शोर की जो पुर है कि बेशक तुम्हारे रब का अज़ाब होकर रहेगा."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (1-7)

* तूर पर्बत अरब में है, तौरेती रिवयात है कि अल्लाह ने मूसा को अपनी एक झलक दिखलाई थी जिसके तहेत तूर अल्लाह की झलक पड़ते ही जल कर सुरमा बन गया जो लोगों में आँख की राशनी बढ़ता है.
*कोई किताब कोरे काग़ज़ पर ही लिखी जाती है, लिखे हुए पर काग़ज़ पर नहीं. है न हिमाकत की बात?
* कहते हैं कि बैतुल उमूर सातवें आसमान पर एक काबा है जिसमें सिर्फ फ़रिश्ते हज करने जाते हैं. उसमें हर साल सत्तर हज़ार(मुहम्मद की पसंद दीदा गिनती) फ़रिश्ते ही हज कर सकते है. बाकी फ़रिश्ते वेटिंग लिस्ट में र्सहते हैं.
* ऊँची छत से मुराद है सातवाँ आसमान . फिल हाल अभी तक साबित नहीं हुवा कि आसमान है भी या नहीं? पहले, दूसरे छटें और सातवें की छत  काल्पनिक झूट है.
*दरिये शोर, अहमक रसूल समंदर को दर्याय शोर ही कहा करते थे,इसे भरा हुवा कहते है गरज ये भी एक हिमाक़त है.

झूठे रसूल अपनी बात सच साबित करने के लिए इन चीजों की कसमें खाते हैं, मुसलमानों को यकीन दिलाते है कि अज़ाब होकर रहेगा. जैसे अल्लाह कोई तौफ़ा देने का वादा कर रहा हो.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 10 December 2016

Hindu Dharam Darshan 28

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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राम नाम  

ISIS और दूसरी इस्लामी तंजीमों के मानव समाज पर ज़ुल्म व् सितम देख कर बजरंग दल को हिंदुत्व का जोश आया कि वह भी इन की नकल में प्रतीक आत्मक मुजाहिरा करें, 
कि वह भी उनकी तरह मानवता के और खास कर मुसलमानों के दुश्मन हो सकते है . 
हालांकि इनका प्रदर्शन राम लीला के लीला जैसा हास्य स्पद है . 
मदारियों की शोब्दा बाज़ी की तरह . 
बजरंग दल का कमांडर अक्सर मनुवादी स्वर्ण होता है , बाकी फौजी दलित और गरीब होते हैं . 
वह स्वर्ण इन दलितों को पूर्व तथा कथित वानर सेना आज तक बनाने में सफल है . 
वह इन्हीं में से एक को हनुमान बना देते हैं जो अपना सीना चीर कर दलितों को दिखलाता है कि उसके भीतर छत्रीय राम का वास है .
विनय कटिहार , कल्याण सिंह , राम विलास पासवान और उदिति नारायण जैसे सुविधा भोगी हर समाज में देखे जा सकते हैं . यह मौजूदा मनुवाद के हनुमान हैं .
12% मनुवादियों ने बाकी मानव जाति को राक्षस, पिशाच, वानर, शुद्र, अछूत जैसे नाम देकर इनके साथ अमानवीय बर्ताव किया है . इन्हीं में से जिन लोगों ने दासता स्वीकार करके इनके अत्याचार में शाना बशाना हुए और इनके लिए अपनी जान आगे कर दि उनको हनुमान बना कर उनकी बिरादरी के लिए पूजनीय बना दिया .
राम के आगे हाथ जोड़ कर घुटने टेके हनुमान देखे जा सकते हैं शूर वीरों के लिए, 
जिनकी दूसरी तस्वीर होती है सीना फाड़ कर राम सीता की, 
जो आस्था और प्रेम को दर्शाती है, 
उनके दास साथियों के लिए . 
यही नहीं मौक़ा पड़ने पर यह ब्रह्मण भी हनुमान पूजा में शामिल हो जाते हैं मगर उनको अपने घाट पर पानी के लिए फटकने नहीं देते . किस क़दर धूर्तता होती है इनके दिमाग़ में. 
जहाँ मजबूर होकर यह दमित सर उठाते हैं, 
तो मनुवाद इनको माओ वादी या नक्सली कह कर दमन करती है .
दमितों के सब से बड़े दुश्मन यही मुसलसल बनाए जाने वाले हनुमान होते हैं . यह अपने ताक़त का प्रदर्शन कभी मुसलमानों पर करते हैं तो कभी ईसाइयों पर जोकि अस्ल में दलित और दमित ही होते हैं मगर मनुवाद से छुटकारा लेकर धर्म बदल लेते है .
कितनी मज़बूत घेरा बंदी है मनुवाद की .   

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 9 December 2016

Soorah Zaryat 51

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह ज़ारियात ५१ -पारा २६-

"क़सम है उन हवाओं की जो गुबार वगैरा उडाती हैं."
"फिर उन बादलों की क़सम जो बोझ को उठाते हैं."
"फिर उन कश्तियों की क़सम जो नरमी से चलती हैं."
"फिर उन फरिश्तों की क़सम जो चीज़ें तक़सीम करते हैं."
"क़सम है आसमान की जिसमें रास्ते हैं कि तुम से जो वादा किया गया है,
वह सच है."
"तुम क़यामत के बारे में मुख्तलिफ गुफ्तुगू में हो, इससे वही फिरता है जो फिरने वाला है. ग़ारत हो जाएँगे बे सनद बातें करने वाले."
"पूछते हैं कि रोज़े-जज़ा का दिन कब है?"
"जिस रोज़ तुम आग पर रखे जाओगे फिर कहा जाएगा, अपनी इस सज़ा का मज़ा चक्खो जिसकी तुम जल्दी मचा रहे थे."
सूरह ज़ारियात ५१ -पारा २६-  आयत(१-१४)

क़यामत मुहम्मद का सबसे बड़ा हथियार रहा है. वह इस शोब्दे को लेकर काफी क़ला बाज़ियाँ खाते हैं. लोगो ने इनकी चिढ बना ली थी, जब सामने पड़ते लोग तफ़रीह के मूड में आ जाते और उनसे पूछ बैठते कि अल्लाह के रसूल क़यामत कब आएगी? और उनका बडबडाना शुरू हो जाता. हैरत है कि आज ये बडबड तिलावत और इबादत बन गई है.
देखा गया है, झूठा और बेवक़अत  इंसान ही कसमें खाता है जब अपने झूट में खुद उसकी निगाह जाती है तो कसमें खाकर खुद से मुँह छुपता है. अब भला ग़ुबार उठाने वाली हवाओं की क़सम क्या वज़न रखती है? या बदल कौन से मुक़द्दस हैं? ये नरमी से चलने वाली कशतियां क्या होती हैं? फ़रिश्ते चीज़ें कब बाँटते है? आसमान में रास्ता, गली और सड़क कब और कहाँ है? कठमुल्ले अल्लाह की बात को लाल बुझक्कड़ी दिमाग़ से साबित कर सकते हैं "कि आज जो जहाज़ों के रास्ते फ़िज़ा में बनाए गए हैं, इसकी भविष्य बाणी हमारे कुरआन में पहले से ही है. ऐसे बहुत से अहमक़ाना मिसालें देखने और सुनने में आती हैं. ऐसे बहुत सी नजीरें हैं.

"जब कि वह इनके पास आए, इनको सलाम किया 
इब्राहीम ने भी कहा सलाम, 
अंजान लोग हैं, 
फिर अपने घर की तरफ चले और एक फ़रबा बछड़ा लाए
 और इसको उनके सामने रक्खा, 
कहने लगे आप लोग खाते क्यूँ नहीं,
 तो इनसे दिल में खौफ ज़दा हुए. 
उनसे कहा डरो मत और एक फ़रज़न्द की बशारत दी, 
जो बड़ा आलिम होगा. 
इतने पर इनकी बीवी बोली आएँ,
 फिर माथे पर हाथ मारा,
 कहने लगी बुढिया बाँझ?
 फ़रिश्ते कहने लगे तुम्हारे परवर दिगार ने ऐसा ही फ़रमाया है. 
कुछ शक नहीं कि वह बड़ा हिकमत वाला है. 
इब्राहीम कहने लगे कि अच्छा तो तुमको बड़ी मुहिम क्या दर पेश है?
 ऐ फरिश्तो! 
फरिश्तों ने कहा हम एक मुजरिम कौम की तरफ़  भेजे गए हैं ताकि हम इनके ऊपर मिटटी के पत्थर बरसाएँ जिस पर आप के रब के पास खास निशानियाँ भी हैं, 
हद से गुजरने वालों वालों के लिए. 
और हमने जितने ईमान वाले थे  वहां पर, उनको निकल कर अलाहिदा कर दिया है, 
सो बजुज़ एक मुसलमान के और कोई घर हमने नहीं पाया. 
और हमने इस वाकी में ऐसे लोगों के लिए एक इबरत रहने दी जो दर्द नाक अजाब से डरते है."   
सूरह ज़ारियात ५१ -पारा २६-  आयत(15 +)
ये आयतें तौरेती वाक़िए की बेहूदा शक्लें हैं. चूँकि मुहम्मद कुरआन में शायरी गढ़ते हैं तो ज़बान नज़्म की रह जाती है न नस्र की. इन आयतों में आलिमों ने तफ़सीर और इस्लाह करके इसे कुरआन बना दिया है. 
ज़रुरत इस बात की है कि आप समझें कि कुरआन की हैसियत क्या है.




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 5 December 2016

Soorah Qaaf 50

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६

क़सम है कुरआन मजीद की, बल्कि इनको इस बात का तअज्जुब हुवा कि इनके पास इन्हीं में से कोई डराने वाला आ गया. सो काफ़िर कहने लगे कि ये अजीब बात है.
 - - - अल्लाह अपनी तखलीक को बार बार दोहराता है कि ज़मीन, आसमान, सितारे, पहाड़, पेड़ और फसलें सब उह्की करामात से हुए. जो ज़रीआ बीनाई और दानाई है.
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (१-७)

अल्लाह ने अपनी किताब की इतनी जोर की क़सम बिला किसी वजह की खाई. अरबी ज़बान में "बल्कि " का इतेमाल ऐसे ही होता है तो अरबी अल्लाह की कवायद पर अफ़सोस होता है. ये बात अक्सर कुरान में आती है जिसे हम अहले ज़बान उर्दू को खटकती है. मुझे लगता है मुहम्मद की उम्मियत का इसमें दख्ल है. ये डराने वाला किरदार मुहम्मद ने अनोखा अपनी उम्मत के लिए पैदा किया है. उनके पास आगाह, तंबीह या ख़बरदार करने वाले अलफ़ाज़ शायद न रहे हों. भला काफ़िर ओ मुनकिर को इस बात पर नए सिरे से यक़ीन करने की क्या ज़रुरत है कि अल्लाह की कुदरत से ही इस कायनात का कारोबार चल रहा है. इनका कब दावा था कि ये ज़मीन और आसमान इनकी देवी देवताओं  ने बनाया. वह तो बानिए  कायनात का तसव्वर करने में नाकाम रहने के बाद उसको  एक शक्ल देकर उसमें उसको सजा कर उसकी ही पूजा करते हैं. इस मामूली सी बात को खुद नादान मुसलमान नहीं समझते. संत कबीर ने यादे इलाही को मर्कज़ियत देने के लिए "सालिग राम की बटीया " बना कर ईश्वर को उसमे समेटा ताकि ध्यान उस पर कायम रहे. ओलिमा कुरआन मुसलामानों को इस तरह समझाते हैं गोया उस वक्त के काफिरों का दावा था कि सब कुछ उनके बुतों की माया थी जो ज़मीन ओ आसमान में है.

"क्या हम पहली बार पैदा करने में थक गए हैं? हमने इंसान को पैदा किया, इसके दिल में जो ख़याल आते हैं, इन्हें हम जानते हैं. और हम इंसान के इतने करीब हैं कि इसकी रगे-गर्दन से भी ज्यादह."
"जब दो अख्ज़ करने वाले फ़रिश्ते अख्ज़ करते  हैं जो कि दाएँ और बाएँ तरफ बैठे रहते हैं. वह कोई लफ्ज़ मुँह से निकलने नहीं पाता मगर इस के पास ही एक ताक लगाने वाला तैयार रहता है."
जब अल्लाह इंसान के रगे गर्दन के क़रीब रहता है और दिलों की बातें जानता है तो उसने बन्दों के दाएँ बाएँ अख्ज़ करने वाले फरिश्तों को अपनी मुलाज़मत में क्यूँ रख छोड़े है? ये तो अल्लाह नहीं इंसान जैसा लग रहा है कि जिसको दो गवाहों की ज़रुरत होती है. अल्लाह बे वकूफ इंसान जैसी बातें भी करता है "क्या हम पहली बार पैदा करने में थक गए हैं?" या "इस के पास ही एक ताक लगाने वाला तैयार रहता है."
कुरान में जाहिल मुहम्मद की जेहालत साफ़ साफ़ झलती है मगर मुसलामानों की आँखों पर पर्दा पड़ा हुवा है.

"और हर शख्स मैदाने-हश्र में यूँ आएगा कि इसको एक फ़रिश्ता हमराह लाएगा और दूसरा इसके अमल का गवाह होगा. पहला अर्ज़ करेगा कि ये रोज़ नामचा है जो मेरे पास तैयार है. शैतान जो इसके पास रहता था, कहेगा हमने इसको जबरन गुमराह नहीं किया था, ये खुद दूर दराज़ की गुमराही में रहता था."
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (१५-२७)

अल्लाह मुस्तकबिल बईद की अपनी काररवाई की इत्तेला मुहम्मद को देता है कि वह ऐसा कहेंगे और हम उसका जवाब इस तरह देंगे.
मुहम्मद तरह तरह की ड्रामा निगारी कुरआन की हर सूरह में अलग अलग तरह से करते हैं, गौर करें कि खरबों इन्सान के साथ उनके दो गुना फ़रिश्ते और हर के साथ एक अदद शैतान होगा, मगर मुक़दमा सिर्फ़ एक अल्लाह सुनेगा? मगर अल्लाह की हिकमत के लिए हर काम मुमकिन है, इसके लिए इतना बड़ा झूट गढ़ा ही इस तरह से है.. अक्सर मुहम्मद "दूर दराज़ की गुमराही" का इस्तेमाल करते हैं ,ये गुमराही की कौन सी सिंफ होती है?

"अल्लाह इरशाद करेगा, मेरे सामने झगडे की बातें मत करो. मैं तो पहले ही तुम्हारे पास वईद भेज चुका हूँ. "
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (२८)

मुसलामानों तुहारा अल्लाह  क्या इस तरह का शिद्दत पसंद है?
हर इंसान की तरह ही अपने माँ  के पेट से निकले हुए मुहम्मद तुम्हारे अल्लाह बन गए हैं, जागो! बहुत देर हो चुकी है फिर भी अभी वक़्त है.

"हम बन्दों पर ज़ुल्म करने वाले नहीं, दोज़ख से जिस दिन पूछेंगे कि तू भर गई, वह कहेगी कि कुछ और जगह खाली है."
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (३०)

इस्लामी पैगम्बर तो उम्मी था ही, क्या उसकी पूरी उम्मत भी उम्मी ही है कि उसका अल्लाह बन्दों का मदद गार नहीं, उसे तो दोज़ख से कहीं  ज़्यादः लगाव है कि उसकी भूख को पूछ रहा है, क्यूँकि वह उससे वादा जो किए हुए है कि उसका पेट व भरेगा.

"और जन्नत मुत्तकियों के लिए, कि कुछ दूर न रहेगी."
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (३१)

क्यूँकि मुत्तकियों के लिए वहाँ शराब, कबाब और शबाब मुफ्त होंगे. इतना ही नहीं इग्लाम बाज़ी भी मयस्सर होगी जिस अमल को इस दुन्या में करने से शर्मिंदगी होती थी.
ऐसी जन्नत पर लअनत है और इसकी चाहत रखने वालों पर भी धिक्कार.

"और रुजू होने वाला दिल लेकर आएगा. इस जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओ यह दिन है हमेशा रहने का."
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (३४).

दुन्या की तमाम नेमतों को छोड़ क़र, अपने दूसरे ज़रुरी मिशन को ताक पर रख क़र मुहम्मदी अल्लाह की तरफ रुजू हो जाओ ताकि मुहम्मद और अरबियों की गुलामी कायम रहे.

"और सुन लो कि जिस दिन एक पुकारने वाला पास ही से पुकारेगा, जिस दिन इस चीखने को बिल्याकीन सब सुन लेंगे, ये दिन होगा निकलने का. हम ही जलाते हैं, हम ही मारते हैं और हमारी तरफ फिर लौट कर आओगे
मुसलमानों! तुम भोले भले हो, या अहमक कि जिस अल्लाह कू तुम पूजते हो वह जो जलाता है और मरता है?  या फिर कलमा इ शहादत पढ़ लो तो तुमको जन्नत में दाखिल क़र देगा.
."सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (४२-४४)



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 2 December 2016

Soorah hujraat 49

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६

मुहम्मद लगभग हाकिम बन चुके हैं. इनके मुँह से निकली हुई हर बात आयते क़ुरआनी हो जाती है. वह अल्लाह के रसूल की बजाए, अल्लाह उनका रसूल बन जाता है. नए रसूल की सियासी सूझ बूझ और तौर तरीकों के आगे पुराना रसूल मुहम्मद का साया नज़र आता है. वह अपने गिर्द फैले हुए जाँ निसारों, चापलूसों और लाखैरों की शिनाख्त बड़ी महारत से करने लगे हैं. मक्का में वह कुफ़फ़ार का मुकाबिला जूनून और मसलेहत के साथ कर रहे थे और मदीने में मुनाफिक़ों का सामना जिसारत के साथ करते नज़र आते हैं. रसूल को अब भर्ती के मुसलमान नहीं चाहिएं. वह अपने मुँह लगे साथियों के मुँह में लगाम लगाने लगे हैं.
मुहम्मदी अल्लाह कहने लगा - - -

"ऐ ईमान वालो ! अल्लाह और उसके रसूल से पहले तुम सिबक़त मत किया करो और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह सुनने वाला और जानने वाला है."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१)

रसूल अब अपने अल्लाह को शाने बशाने रखने लगे हैं, तभी तो कहते हैं "अल्लाह और उसके रसूल से पहले तुम सिबक़त मत किया करो और अल्लाह से डरते रहो" मुहम्मद में अल्लाह का तकब्बुर आ गया है , कोई उन्हें परवर दिगार कहता है तो उन्हें वह कोई  एतराज़ नहीं करते, अन्दर से मह्जूज़ होते हैं.

"ऐ ईमान वालो! तुम अपनी आवाजें पैगम्बर की आवाज़ के सामने बुलंद मत किया करो. और न इनसे खुल कर बोला करो, जैसे तुम आपस में खुल कर बोलते हो. कभी तुम्हारे आमाल बर्बाद हो जाएँगे और तुमको खबर भी न होगी. बे शक जो लोग अपनी आवाज़ को रसूल की आवाज़ से पस्त रखते हैं, ये वही हैं जिनको के दिलों को अल्लाह ने तक़वा के लिए ख़ास कर दिया है. इन लोगों के लिए मग्फ़िरत और उजरे-अज़ीम है."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (२-३)

मुहम्मद अपनी उम्मत बनी रिआया को आदाबे-महफ़िल सिखला रहे है. उनकी पीरी मुरीदी चल निकली है.

"जो लोग हुजरे के बहार से आपको पुकारते हैं, वह लोग अक्सर बे अक्ल होते हैं. बेतर है कि ये लोग सब्र करें, यहाँ तक कि आप खुद बाहर निकल आते तो ये उन लोगों के लिए बेहतर होता और अल्लाह गफूर्रुर रहीम है.
ऐ इमान वालो ! अगर कोई शरीर आदमी तुम्हारे पास कोई ख़बर लाए तो खूब तहकीक़ कर लिया करो, कभी किसी कौम को नादानी से कोई ज़रर न पहुँचाओ कि फिर अपने किए पर पछताना पड़े."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (४-६) 

तमाज़त और दूर अनदेशी भी मुहम्मद के आस पास फटकने लगी है.

"और जान रक्खो कि तुम में रसूल अल्लाह हैं. बहुत सी बातें ऐसी होती हैं कि अगर वह इसमें तुम्हारा कहना माना करें, तो तुम को बड़ी मुज़र्रत होगी.
और अगर मुसलमानों में दो गिरोह आपस में लड़ें तो उनके दरमियान इस्लाह कर दो. मुसलमान तो सब भाई हैं, सो अपने भाइयों के दरमियाँ इस्लाह कर दिया करो."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (७-१०)

काश कि ये बातें आलमे-इंसानियत के लिए होतीं, न कि सिर्फ मुसलामानों के लिए. इन तालीमात से तअस्सुब का ही जन्म होता है.

ऐ ईमान वालो! मर्दों को मर्दों पर नहीं हँसना चाहिए और औरतों को न औरतों पर, क्या जाने कि वह हँसने वालों से बेहतर हो, और न एक दूसरे को तअने दो.
 ऐ इमान वालो! बहुत से गुमानों से बचो क्यूँ कि बहुत से गुमान गुनाह होते है. सुराग न लगाया करो, किसी की गीबत न करो. क्या तुम में कोई पसंद करता है कि मरे हुए भाई का गोष्ट खाए."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (११-१२)

औरत को मर्दों पर मर्दों को और औरतों पर हँसना भी ?
मुहम्मद को सहाबी कहा करते थे कि आप तो हमारी बातों पर कान धरे रहते हैं. चुगल खोरों की बातों को अल्लाह की वह्यी बतलाने वाले कमज़ोर इंसान आज दूसरों को नसीहत दे रहे हैं.
काफ़िर, मुशरिक और दीदरों की गीबत करने वाले मुहम्मद क्या बक रहे हैं?
जंगे-बदर भूल रहे हैं जहाँ अपने भाई बन्दों को मार कर उनके गोश्त को तीन दिनों तक सड़ने दिया था, फिर इनकी लाशों को बद्र के कुँए में फिकवा दिया था?

"अल्लाह के नजदीक बड़ा शरीफ वही है जो परहेज़गार हो"
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१३०)

माले-गनीमत खाने वाला इंसान क्या कभी शरीफ़ इंसान भी हो सकता है?

"ये गंवार कहते हैं कि हम ईमान लाए, आप फ़रमा दीजिए कि तुम ईमान तो नहीं लाए, यूं कहो कि हम मती हुए. मोमिन तो वह है जो अल्लाह पर और उसके रसूल पर ईमान लाए. फिर शक नहीं किया और अपने जान ओ माल से अल्लाह की राह में जेहाद किया."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१४-१५)

करने लगे गीबत या रसूल अल्लाह.?
अल्लाह के नाम पर मार काट और लूट-पाट से ही इस्लाम फैला जो हमेशा रुस्वाए ज़माना रहा.

 "ये लोग अपने ईमान लाने का आप पर एहसान रखते हैं, आप कही कि मुझ पर एहसान नहीं, बल्कि एहसान अल्लाह का का है तुम पर कि उसने तुमको ईमान लाने की हिदायत दी, बशर्ते तुम सच्चे हो. बे शक अल्लाह ज़मीन और आसमान की मुख्फी बातों को जनता है और तुम्हारे सब आमल जनता है.
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१७-१८)


इस्लामी ईमान ,ईमान नहीं, बे ईमानी है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान