Sunday 26 December 2010

सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा


(दूसरी क़िस्त)


अब आ जाएँ क़ुरआनी राग माले पर - - -  
"और इसी निशानियों में से ये है कि वह तुम्हें बिजली दिखाता है जिस से डर भी होता है और उम्मीद भी होती है और वही आसमान से पानी बरसता है, फिर उसी से ज़मीन को उस मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है. इसमें इन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो अक्ल रखते हैं. और इसी निशानियों में से ये है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं. फिर जब तुमको पुकार कर ज़मीन से बुलावेगा तो तुम यक बारगी पड़ोगे और जितने आसमान और ज़मीन हैं, सब उसी के ताबे हैं. और वही रोज़े अव्वल पैदा करता है और वही दोबारा पैदा करेगा, और ये इसके नजदीक ज्यादा आसान है. "सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२४-२७)मुसलमानों अल्लाह को बाद में जानो, पहले निज़ामे कुदरत को समझो. पेड़ पौदों की तरह क्या इंसान ज़मीन से उगने शुरू हो जाएँगे? ज़मीन न मुर्दा होती है न जिंदा, पानी ही ज़िदगी है. बेतर ये होता कि अल्लाह एक बार इंसान को पानी की बूँदें की तरह योम हश्र बरसता. ये थोडा छोटा झूट होता.


"अल्लाह तअला तुमसे एक मज्मूने-अजीब, तुम्हारे ही हालात में बयान फ़रमाते हैं, क्या तुम्हारे गुलामों में कोई शख्स तुम्हारा उस माल में जो हमने तुम्को दिया है, शरीक है कि तुम और वह इस में बराबर के हों, जिनका तुम ऐसा ख्याल करते हो जैसा अपने आपस में ख़याल किया करते हो? हम इसी तरह समझदार के लिए दलायल साफ़ साफ़ बयान करते हैं "
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२८)क्या अल्लाह की इस ना मुकम्मल बकवास में कोई दम है, अलबत्ता ये अजीबो गरीब ज़रूर है.


"सो जिसको खुदा गुमराह करे उसको कौन राह पर लावे"
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२९)
ये आयत कुरआन में मुहम्मद का तकिया कलाम है जो बार बार आती है, नतीजतन मुसलमान इसे दोहराते रहते हैं, बगैर इस पर गौर किए कि आयत कह क्या रही है, कि अल्लाह शैतान से भी बड़ा शैतान है कि सीधे सादे अपने बन्दों को ऐसा गुमराह करता है कि उसका राह पर आना मुमकिन ही नहीं है.

"जिन लोगों ने अपने दीन के टुकड़े टुकड़े कर रखे है और बहुत से गिरोह हो गए हैं, हर गिरोह अपने तरीक़े पर नाज़ाँ है जो उसके पास है - - -
इंसान को कम से कम ज़ेहनी आज़ादी थी कि अपने आस्था के मुताबिक़ अपना खुदा चुने हुए था. वह इरतेकाई हालत के सहारे आज इंसान बन गया होता, अगर इस्लाम ने इसके पैर में बेड़ियाँ न डाली होती.
क्या उनको मालूम है कि अल्लाह तअला जिसको चाहे ज़्यादः रोज़ी दे देता है जिसको चाहे कम देता है. इसमें निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं.- - -
अल्लाह तअला नहीं बल्कि बन्दों के घटिया निजाम के चलते इंसानों की शहेन शाही और गदा गरी हुवा करती है, आज भी भारत में हर इंसान को लूट की आज़ादी है, चाहे देश में कोई तबक़ा भूकों मरे. दुन्य को चीन और डेनमार्क जैसे निज़ाम की ज़रुरत है.अल्लाह ही वह है जिसने तुम को पैदा किया, फिर रिज्क़ दिया फिर मौत देता है, फिर तुमको जिलाएगा. क्या तुम्हारे शरीकों में कोई ऐसा है?- - -
पहले अल्लाह को तलाशी, साबित करिए, फिर उसकी करनी तय करिए. अल्लाह तो मुहम्मद जैसे घाघ बजोर लाठी बने बैठे हैं और मुसलमानों को जेहालत पर ठहराए हुए है.खुश्की और तरी में लोगों के आमाल के सबब बलाएँ फ़ैल रही हैं ताकि अल्लाह तअला उनके बअज़ आमाल का मज़ा उनको चखा दे ताकि वह बअज़ आएँ,
मुसलमानों का अल्लाह इस इंतज़ार में रहता है कि कब मौक़ा मिले और कब इन बन्दों पर क़हर बरसाएं.
वाकई अल्लाह तअला काफिरों को पसंद नहीं करता - - -
मुहम्मदी अल्लाह इंसानों में नफ़रत फैलता है और सियासत दान प्रचार करते हैं कि इस्लान ख़ुलूस, मुहब्बत, प्रेम और भाई चारे को फैलता है. काफिरों से नफ़रत का पैगाम ही मुसलामानों को बदनाम और कमज़ोर किए हुए है.''और हमने आप से पहले बहुत से पैगम्बर इनके कौमों के पास भेजे और वह उनके पास दलायल लेकर आए सो हमने उन लोगों से इन्तेकाम लिया जो मुर्तकाब जरायम हुए थे और अहले ईमान को ग़ालिब करना हमारा ज़िम्मा था.''
ईसाइयत का खुदा हमेशा अपने बन्दों को माफ़ किए रहता है और कभी अपने बन्दों पर ज़ुल्म नहीं करता, इंतेक़ाम लेना तो वह जानता ही नहीं, नतीजतन वह दुन्या की सफ़े अव्वल की कौम बन गई है. इन्तेकाम के डर से मुसलमान हमेशा चिंतित रहता है और अपना क़ीमती वक़्त इबादत में सर्फ़ करता है,जिसे कि उसे अपनी नस्लों को सुर्खरू करने में लगाना चाहिए. इस अकीदे के बाईस वह बुजदिल भी है. जो अल्लाह बदला लेता हो उस पर लानत है.

''सो आप मुर्दों को नहीं सुना सकते और बहरों को आवाज़ नहीं सुना सकते जब कि पीठ फेर कर चल दें, आप अंधों को उनकी बेराही से राह पर नहीं ला सकते, आप तो बस उनको सुना सकते हैं जो हमारी आयातों पर यकीन रखते हैं, बस वह मानते हैं.
सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (३०-५७)
मुहम्मद को अपना राग अवाम को सुनाने का मरज़ था, वह राग जो बेरागा था. आज की नई क़द्रें ऐसे लोगों को पसंद नहीं करतीं, पहले भी इनको पसंद नहीं किया जाता था मगर लखैरों को माल ग़नीमत की लालच ने इस जुर्म को सफल बनाया, जिसका अंजाम बहर हाल आज का आईना है जिसे मुसलमान देखना ही नहीं चाहते.


"और हमने इस कुरआन में तरह तरह के उम्दा मज़ामीन बयान किए हैं. और अगर आप उनके पास कोई निशानी ले आवें तब भी ये काफ़िर जो हैं, यही कहेंगे कि तुम सब निरा अहले बातिल हो. जो लोग यकीन नहीं करते अल्लाह तअला उनके दिलों में यूँ ही मुहर लगा देता है. तो आप सब्र कीजिए, बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है, और ये बद यकीन लोग आपको बेबर्दाश्त न कर पाएँगे."सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (६०-७५)खुद खुद अल्लाह से मुहर लगवाते हैं और फिर चाहते हैं कि सब लोग उसको तोड़ें भी।
सिडीसौदाइयों की तरह क्या क्या बक रहे हो, अल्लाह मियां? ये कौन लोग निरे अहले बातिल हैं? बद यकीन हैं? ये कौन लोग है जो आपको बेबर्दाश्त नहीं कर परहे है? ये बेबर्दाश्त क्या होता है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का ही,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा


इस सूरह का नाम रोम इस लिए पड़ा कि फारस (ईरान) ने मुहम्मद काल में रोम को फतह कर लिया था, जिसके बारे में क़ुरआनी अल्लाह ने अपने कुरआन में पेशीन गोई की थी कि फारस का यह गलबा तीन से नौ सालों के अन्दर ख़त्म हो जाएगा और रोम फिरसे आज़ाद हो जाएगा, बस कि ऐसा हो भी गया. दर अस्ल बात ये थी कि रोमी ईसाई थे जो कि मुसलामानों के किताबी भाई हुए और फ़ारस वाले उस वक़्त काफ़िर थे, उस वक़्त कुफ्फर मक्का ने इस्लामियों को तअने दिए थे कि हम अहले कुफ्र, अहले किताब पर ग़ालिब हो गए. जब रोम फ़ारस के गलबे से नजात पा गए तो ये सूरह मुहम्मदी अल्लाह को सूझी.
इस वाक़िए के सिवा इस सूरह में और कुछ नहीं है. मुहम्मदी अल्लाह का शुक्र है कि इस सूरह में इब्राहीम, नूह, मूसा और ईसा अलिस-सलामान की दस्ताने नहीं हैं. सिर्फ क़यामत की धुरी पर सूरह घूम रही है. हर आलमी और फितरी सच्चाइयों को कुरआन अपनी ईजाद बतलाता है, जिस पर मुसलमानों का ईमान है . एक साहब ने मुझे टटोलने के लिए पूछा कि आप नमाज़ क्यूँ नहीं पढ़ते? मैं ने जवाब दिया कि इंसानियत ही मेरा दीन है. कहने लगे कि इंसानियत सिखलाई किसने/ उनका मतलब था " मुहम्मद" उम पर तरस खाते हुए मैं खामोश रहा, बात तो ज़ेहन में आई गिना दूं ईसा, गौतम महावीर और सुकरात बुकरात के नाम मगर मसलहतन चुप रहा.
सूरह रोम में भी सूरह क़सस की तरह मुहम्मद की झक नहीं है, इस सूरह का मुसन्निफ़ कोई और है और साहिबे क़लम है. इसने सलीके के साथ कुरआन सार पेश किया है
मुलाहिजा हो - - -"अहले रोम करीब के मौके पर मगलूब हो गए और वह अपने मगलूब होने के बाद अनक़रीब तीन साल से नौ साल के अन्दर ग़ालिब आ जौएँगे. पहले भी अख्तियार अल्लाह का था और पीछे भी और उस वक़्त मुसलमान अल्लाह की इस इमदाद से खुश होंगे."सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२-४)अब ये कोई तिलावत की चीज़ या बात है ? कि मुसलमान नियत बाँध कर इन बातों को नमाज़ों में दोहराते हैं.

"ये लोग ज़मीन पर चलते फिरते नहीं, जिसमें देखते भालते कि जो लोग इनसे पहले हो गुज़रे हैं, उन पर अंजाम क्या हुवा है? वह उन से कूवत में भी बढे चढ़े हुए थे और उन्हों ने ज़मीन को बोया जोता था और जितना इन्हों ने इस को आबाद कर रखा है, उससे ज़्यादा उन्हों ने इसको आबाद कर रखा था और उनके पास भी उनके पैगम्बर मुआज्ज़े लेकर आए थे.सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (९)मुहम्मद माजी के लोगों की मौतें अज़ाबे इलाही का अंजाम कहते हैं. अगर उन पर अज़ाब न होता तो शायद वह ज़िदा होते. आज के लोगों को समझा रहे हैं कि उनकी बात मानो जो कि अल्लाह की मर्ज़ी है, तो अज़ाब में नहीं पड़ोगे. इन ओछी बातों से लोग गुमराह हुए, मगर आज के लोग इन बातों में सवाब ढूढ़ते हैं तो ये अफ़सोस का मुक़ाम है.

"और जब रोज़े क़यामत कायम होगी, उस रोज़ मुजरिम लोग हैरत ज़दा हो जाएँगे और उनके शरीकों में कोई उनका सिफारशी न होगा और ये लोग अपने शरीकों से मुनकिर हो जाएगे. और जस रोज़ क़यामत कायम होगी उस रोज़ आदमी जुदा जुदा हो जाएँगे यानी जो लोग ईमान लाए थे और अच्छे काम किए थे, वह तो बाग़ में मसरूर होंगे और जिन्हों ने कुफ्र किया था और हमारी आयातों को और आखरत के पेश आने को झुटलाया था, वह अजाब में होंगे."सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (१२-१६)कयामत तो आप के मरते ही आप के खानदान पर आ गई थी मुहम्मद साहब!
आप कि छोटी बेगम आयशा और आप के दामाद में मशहूर जंग ए जमल हुई तो एक लाख ताजः ताजः मुसलमान हुए लोग मारे गए थे. आप के सभी खलीफा और सहाबा ए किराम आपसी रंजिश में एक दूसरे का क़त्ल कर रहे थे . बात कर्बला तक पहुंची तो आपका खानदान एक एक क़तरह पानी के लिए तड़प तड़प कर मरा . आपकी झूटी रिसालत के बाईस आपके खानदान का बच्चा बच्चा भूक और प्यास के साथ मारा गया. काश कि इस अंजाम तक आप ज़िन्दा होते और सच्चाइयों के आगे तौबा करते और सदाक़त का पैर पकड़ कर रहेम की भीक तलब करते. याद करते अपने जेहादी नअरे को कि खैबर में क़त्ले आम करने से पहले जो आपने दिया था
"खैबर बर्बाद हुवा! क्यूं कि हम जब किसी कौम पर नाज़िल होते हैं तो उसकी बर्बादी का सामान होता है."क़यामत पूरे अरब और आजम में आप के झूट की से फ़ैल चुकी है, आपसी झगड़ों से मुसलामानों पर आग ज्यादह बरसी, गैर मुस्लिम भी जंगी चपेट में आए मगर ख़सारे में रहे वह जिन्हों ने आप की ज़हरीली पैगम्बरी को तस्लीम किया. आपके बोए हुए पैगम्बरी के ज़हर को दुन्या की २०% आबादी काट रही है. मुसलमानों को आप के इस्लाम ने पस्मान्दः कौम बना दिया है. किसी कौम की आलमी ज़िल्लत से बढ़ कर दूसरी क़यामत और ज़िल्लत क्या होगी.


मुहम्मदी अल्लाह का कुदरत से मुतालिक़ जानकारी मुलाहिजा हो - - -

"वह जानदार चीजों को बेजान को निकाल लेता है ( यानि मुर्गी से अण्डा?) और बेजान चीजों से जानदार चीजों (यानि अंडे से मुर्गी?) से निकल लेता है और ज़मीन को इसके मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है और इसी से तुम लोग निकलते हो."सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (१९)यह आयत कुरआन में बार बार आती है जिसको कि कोई आम मुसलमान कुरआन का नमूना बना कर पेश नहीं करता, ओलिमा की तो छोड़िए कि इनका आल्लाह परिंदों के अण्डों को जानदार मानता और मानता है. कोई जाहिल कहलाना पसँद नहीं करता. मुहम्मद बार बार अपने इस वैज्ञानिक ज्ञान को को दोहराते रहे , सहाबाए इकराम और उनके खलीफाओं ने भी कभी न टोका कि या रसूल लिल्लाह अंडे जानदार होते हैं. इस बात से ये साबित है कि उनके गिर्द सब के सब जाहिल और उम्मी हुआ करते थे.
अभी तक इंसान अपनी मान के पेट से निकलता रहा है जिसे अल्लाह के रसूल भुइव फुडवा बना रहे हैं.
यही जेहालत इस्लाम मुसलामानों को बाँट रहा है.

"और उसी की निशानियों में ये है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियाँ बनाईं ताकि तुमको उनके पास आराम मिले और तुम मिया बीवी में मुहब्बत और हमदर्दी पैदा की. इसमें उन लोगों के लिए निशामियाँ हैं जो फिक्र से काम लेते हैं. और उसी की निशानियों में से ज़मीन और आसमान का बनाना है. और तुम्हारे लबो लहजे और नुक़तों का अलग अलग होना है. इसी में दानिश मंदी के लिए निशानियाँ हैं."सूरतुल रोम ३०-२१ वाँ पारा आयत (२१-२२)मुहम्मदी अल्लाह कहता है तुम्हारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियां बनाईं? कुछ तर्जुमान ने लिखा कि तुम्हारे लिए तुम्हारी हम जिन्स बीवियां बनाईं. दोनों बातें एक ही है. मुहम्मदी अल्लाह चूँकि उम्मी है वह कहना चाहता है तुम्हारे लिए जिन्स ए मुख़ालिफ़ बीवियां बनाईं और उसमे लुत्फ़ डालकर जोड़ों में मुहब्बत पैदा की. मुहम्मद की ये लग्ज़िसें चीख चीख कर मुसलमानों को आगाह करती हैं कि कुरआन और कुछ भी नहीं, सिर्फ़ अनपढ़ मुहम्मद के कलाम के.
फिर सवाल ये उठता है कि कुदरत की इन बातों को कौन नहीं जनता था और कौन नहीं मानता था, उस वक़्त अरब की तारिख में बड़े बड़े दानिश्वर हुवा करते थे। इंसान तो इंसान, हैवान भी अपने जोड़े के लिए जान लेलेते हैं और जन दे देते हैं. तालिबानी जेहालत समझती है कि इन बातों को उनके नबी ने जानकर हमें बतलाया. जाहिलों की जमाअत समझती है कि इंसानों का रोज़ अव्वल रसूल की आमद के बाद से शुरू होता है और कुदरत के तमाम इन्केशाफात उनके रसूल ने किया है. उनको सुकरात बुकरात,गौतम, ईसा, कन्फ्यूसेस, ज़ेन, ज़र्तुर्ष्ट और महावीर कोई नज़र ही नहीं आता, जो मुहम्मद से पहले हो चुके है, अलावा लाल बुझक्कड़ के.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 22 December 2010

सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा



(दूसरी किस्त)

मुसलामानों ! तुम्हारे रसूल फरमाते हैं - - -"दौरान नमाज़ जिस पाद में आवाज़ कान तक आ जाए या बदबू नाक में पहुँच जाए तो वज़ू टूट जाता है."
वज़ू ? यानी नमाज़ पढने से पहले पानी से मुँह, हाथ और पैर को धो कर अपने बदन को शुद्ध करना वज़ू बनाना होता है जोकि पाद निष्काषित होने पर टूट जाता है.. यानी कान या नाक तक पाद की पहुँच ना हो तो वज़ू बना रहता है. कभी कभी नमाज़ी दोपहर को वज़ू बनाते हैं तो रात तक वह बना रहता है. इस दौरान पाद निष्काषित होने से वह बचते रहते हैं ताकि वजू बना रहे ।
पाद निष्कासन एक प्राकृतिक परिक्रिया है जिसे रोके रहना पेट को विकार अर्पित करना। " रसूल फरमाते हैं कि - - -
"इस्तेंजा करें तो ताक़ बार यानी ३,५, ७, ९ - - - अर्थात जुफ्त बार४,६,८ वगैरा न हो"इस्तेजा? पेशाब करने के बाद लिंग मुख को मिटटी के ढेले से पोछना ताकि वजू बना रहे. कपडे को पेशाब नापाक न करसके। इसमें ताक़ और जुफ्त की जेहालत है। दूसरी तरफ कहते हैं कि ऐसे टोटके शिर्क है.ऐसी मूर्खता पूर्ण बातों में आम मुसलमान मुब्तिला रहता है जो उसकी तरक्की में बाधा है।



१-अलौकिक-कला
मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - -
"अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को बड़ी मुनासिब तौर पर बनाया, ईमान वालों के लिए इसमें बड़ी दलील है."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४४)
ज़मीन और आसमानों की तकमील हो,
मकडीका बोदा घर हो,
पानी को चीरती हुई कश्तियाँ हों,
ऊँट का बेढंगा डील डौल हो,
या गधे की करीह आवाज़,
जिनको कि आप कुरान में बघारते हैं,
इन सब का तअल्लुक़ ईमान से है क्या? जिसकी शर्त पर आपकी पयंबरी कायम होती है. आपको तो इतना इल्म भी नहीं कि आसमान (कायनात) सिर्फ एक है और इस कायनात में ज़मीनें अरबों है ख़रबों हैं जिनको हमेशा आप उल्टा फरमाते हैं . . "आसमानों (जमा) ज़मीन (वाहिद)""जो किताब आप पर वह्यी की गई है उसे आप पढ़ा कीजिए और नमाज़ की पाबन्दी रखिए. बेशक नमाज़ बेहयाई और ना शाइस्ता कामों से रोक टोक करती हैं और अल्लाह की याद बहुत बड़ी चीज़ है और अल्लाह तुम्हारे सब कामों को जानता है."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४५)ऐ अल्लाह! मुहम्मद नाख्वान्दा हैं, अनपढ़ हैं, कोई किताब कैसे पढ़ सकते हैं? उन्हें थोड़ी सी अक्ल दे कि सोच समझ कर बोला करें." और आप इस किताब से पहले ना कोई किताब पढ़े हुए थे और ना कोई किताब अपने हाथों से लिख सकते थे कि ऐसी हालत में ये हक नाशिनास कुछ शुबहा निकालते, बल्कि ये किताब खुद बहुत सी वाजः दलीलें हैं. उन लोगों के ज़ेहन में ये इल्म अता हुआ है कि हमारी आयतों से बस जिद्दी लोग इंकार किए जाते हैं और ये लोग यूँ कहते हैं कि इन पर रब कि तरफ़ से निशानियाँ क्यूं नहीं नाज़िल हुईं. आप कह दीजिए कि वह निशानियाँ तो अल्लाह के क़ब्ज़े में हैं और मैं तो साफ़ साफ़ एक डराने वाला हूँ"सूरह अनकबूत -२९ २०+२१ वाँ पारा आयत(४८-५०)इस वावत आप थोडा सा सच बोले वह भी झूट के साथ, जिसे जिद्दी नहीं साहबे इल्म ओ फ़िक्र नकारते रहे. दो निशानियाँ आप दिखला चुके हैं १- शक्कुल क़मर और २- मेराज, जिन्हें आप भूल रहे हैं कि खलीफा उमर ने आप को वह फटकार लगाई कि निशानियाँ और मुआज्ज़े आप को भूलना ही पड़ा, मगर आपके चमचों ने उसको कुरआन में शामिल ही कर दिया. आप के बाद आपके मुसाहिबों ने तो सैकड़ों निशानियाँ आपके लिए गढ़ लिए .''निशानियाँ तो अल्लाह के क़ब्ज़े में हैं'' और अल्लाह आप के क़ब्ज़े में था.''क्या इन लोगों को ये बात काफ़ी नहीं क़ि हमने आप पर ये किताब नाजिल फरमाई जो उनको सुनाई जाती रहती है, ईमान ले आने वाले लोगों को बड़ी रहमत और नसीहत है. आप ये कह दीजिए अल्लाह मेरे और तुम्हारे दर्मियान गवाही बस है. इसको सब चीजों की खबर है जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है. जो लोग झूटी बातों पर यकीन रखते हैं और अल्लाह के मुनकिर हैं तो वह लोग ज़ियाँ कर रहे हैं. और ये लोग आप से अज़ाब का तक़ाज़ा करते हैं. और अगर मीयाद मुअय्यन न होती तो इन पर अज़ाब आ चुका होता. वह अज़ाब इनपर अचानक आ पहुंचेगा. और इनको खबर न होगी. ये लोग आप से अज़ाब का तक़ाज़ा करते हैं और इसमें शक नहीं कि जहन्नम इन काफिरों को घेर लेगा. जिस दिन क़ि इनपर अज़ाब उनके ऊपर से और उनके नीचे से घेर लेगा. और अल्लाह तअला फ़रमाएगा कि जो कुछ करते रहे हो अब चक्खो। ऐ मेरे ईमान दार बन्दों! मेरी ज़मीन फ़िराख है सो ख़ालिस मेरी इबादत करो. हर शख्स को मौत का मज़ा चखना है. फिर तुम सब को हमारे पास आना है''.और बहुत से जानवर ऐसे हैं जो अपनी गिज़ा उठा कर नहीं रखते, अल्लाह ही उनको रोज़ी भेजता है और तुमको भी. और वह सब कुछ सुनता है. - - बेशक अल्लाह सब चीज़ के हाल से वाकिफ है. आप उनसे दरयाफ्त करिए वह कौन है जिसने आसमान से पानी बरसाया? तो वह लोग यही कहेंगे की अल्लाह है. आप कहिए कि अलहम्दो लिल्लाह! बल्कि उन में अक्सर समझते भी नहीं. और यह दुनयावी ज़िन्दगी बजुज़ लह्व-लआब के और कुछ भी नहीं और असल ज़िन्दगी आलमे आखरत है. अगर इनको इसका इल्म होता तो ऐसा न करते. फिर जब ये लोग कश्ती पर सवार होते हैं तो खालिस एत्काद करके अल्लाह को ही पुकारते हैं, फिर जब नजात देकर खुश्की की तरफ ले आता है तो वह फ़ौरन ही शिर्क करने लगते हैं.सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४६-69)मुसलामानों! अगर आज कोई शनासा आपके पास आए और कहे कि
" अल्लाह ने मुझे अपना रसूल चुन लिया है"
और इस क़िस्म की बातें करने लगे तो आप का रद्दे-अमल क्या होगा?
जो भी हो मगर इतनी सी बात पर आप अपना आपा इतना नहीं खो देंगे
कि उसे क़त्ल ही कर दें।
फिर धीरे धीरे वह अपने दन्द फन्द से अपनी एक टोली बना ले जैसा कि आज आम तौर पर हो रहा है. उस वक़्त आप उसकी मुखालिफत करेंगे और उसके बारे में कोई बात सुनना पसंद नहीं करेंगे।
उसकी ताक़त बढती जाय और उसके चेले गुंडा गर्दी पर आमादः हो जाएँ तब आप क्या करेंगे?
पुलिस थाने या अदालत जाएँगे, मगर उस वक़्त ये सब नहीं थे, उस वक़्त जिसकी लाठी उसकी भैंस का ज़माना था.
शनासा का गिरोह अपनी ताक़त समाज में बढा ले, यहाँ तक कि जंग पर आमादः हो जाए,
आप लड़ न पाएं और मजबूर होकर बे दिली से उसको तस्लीम कर लें।
वह ग़ालिब होकर आप के बच्चों को अपनी तालीम देने लगे, और आप चल बसे,
आपके बच्चे भी न नकुर के साथ उसे मानने लगें
मगर
उनके बच्चे उस के बाद उस अल्लाह के झूठे रसूल को पूरी तरह से सच मानने लगेंगे. इस अमल में एक सदी की ज़रुरत होगी. आप तो चौदह सदी पार कर चुके हैं. गुंडा गर्दी आपका ईमान बन चुका है मिसाल अलकायदा और तालिबान वगैरा हैं ।
इस तरह दुन्या में इस्लाम और कुरआन मुसल्लत हुवा है.
कुरआन को अपनी समझ से पढ़ें , इस्लाम का नुस्खा खुद बखुद आप कि समझ में आ सकता है।
कुरान खुद इस्लाम की नंगी तस्वीर अपने आप में छुपाए हुए है, जिसकी पर्दा दारी ये मूज़ी ओलिमा किए हुए हैं।


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


Sunday 19 December 2010

सूरह अनकबूत -२९, २० वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी

'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


राहुल गाँधी ने अगर ये कहा है कि हिदू आतंक वाद ज्यादह खतरनाक है, बनिस्बत मुस्लिम आतंक वाद के, तो उनको संकुचित राज नीतिज्ञों से डरने की कोई ज़रुरत नहीं। उन्हों ने इक दम नपा तुला हुवा सच बोला है. उनके बाप स्वर्गीय राजीव गाँधी को बम से चीथड़े करके शहीद करने वाले मुस्लिम आतंक वाद नहीं था, बल्कि लिट्टे वाले थे, जो बहरहाल हिदू हैं. उनकी दादी श्री मती इंदिरा गाँधी को गोलियों से भून कर शहीद करने वाले सिख थे, जो बहरहाल हिन्दू होते हैं जैसा कि भगुवा ग्रुप मानता है. महात्मा गाँधी, बाबा ए कौम को इन आतंक वादी शैतानो ने अपना सांकेतिक हथियार त्रिशूल भोंक कर, तीन गोलियां से उनकी छाती छलनी करके आतंक का मज़ा लिया था. मुस्लिम आतंक वाद को आगे करके ये ज़हरीले प्राणी अपना वजूद कायम किए हुए हैं. मुस्लिम आतंक वाद अपने आप में विशाल भारत के लिए चूहों के झुड से ज्यादह कुछ भी नहीं हैं. मुस्लिम आतंक वादी दुन्या के कोने कोने में कुत्तों की मौत मारे जा रहे हैं. मुस्लिम आतंक वाद खुद सब से बड़ा दुश्मन मुसलामानों का है जो कि मुसलमान समझ नहीं पा रहे हैं, जिनको मैं कुरआन की आयतों की धज्जियां उड़ा उड़ा कर समझा रहा हूँ. राहुल गाँधी को थोड़ी और जिसारत करके मैदान में आना चाहिए कि हिन्दू आतंक वाद ५००० साल, वैदिक काल से भारत के मूल्य निवासियों पर ज़ुल्म ढा रहा है, मुस्लिम आतंक वाद तो सिर्फ १४ सौ सालों से पूरी दुन्या को बद अम्न किए हुए है, और हिदू आतंक वाद भारत के आदिवासियों और मूल निवासियों को (सिर्फ हिन्दुओं को) अपना शिकार बनाए हुए है. मुस्लिम आतंक वाद जितना गैरों को तबाह करता है उससे कहीं ज्यादा खुद तबाह होता चला आया है. हिन्दू आतंक वाद जोंक का स्वाभव रखता है अपने शिकार को ताउम्र मरने नहीं देता जिसे वह अपना गुलाम बना कर रखता है. हिन्दू आतंक वाद कई गुना घृणित है जो कि भारत में फला फूला हुवा है.


(पहली किस्त)



सूरह में इस्लाम के शुरूआती दौर के नव मुस्लिमों की ज़ेहनी कशमकश की तस्वीरें साफ़ नज़र आती हैं. लोग खुद साख्ता रसूल की बातों में आ तो जाते हैं मगर बा असर काफिरों का गलबा भी इनके जेहन पर सवार रहता है. वह उनसे मिलते जुलते हैं, इनकी जायज़ बातों का एतराफ़ भी करते हैं जो खुद साख्ता रसूल को पसंद नहीं, मुखबिरों और चुगल खोरों से इन बातों की खबर बज़रीआ वह्यीय ख़ुद साख्ता रसूल को हो जाती है और खुद साख्ता रसूल कहते हैं "अल्लाह ने इन्हें सारी खबर देदी है " वह फिर से लोगों को पटरी पर लाने के लिए क़यामत से डराने लगते हैं, इस तरह कुरआन मुकम्मल होता रहता . मुहम्मद के फेरे में आए हुए लोगों को मुहम्मद ज़हीन अफराद समझते हैं - - -"ये शख्स मुहम्मद, बुजुर्गों से सुने सुनाए किस्से को क़ुरआनी आयतें गढ़ कर बका करता है. इसकी गढ़ी हुई क़यामत से खौफ खाने की कोई ज़रुरत नहीं. चलो तुमको अंजाम में मिलने वाले इसके गढ़े हुए अज़ाबों की ज़िम्मेदारी मैं अपने सर लेने का वादा करता हूँ, अगर तुम इसके जाल से निकलो"माजी के इस पसे-मंज़र में डूब कर मैं पाता हूँ कि दौरे-हाज़िर के पीरो मुर्शिद, स्वामियों और स्वयंभू भगवानों की दूकानों को, जो बहुत करीब नज़र आती हैं और बहुत पास मिलते हैं वह सादा लौह, गाऊदी, अय्यर मुसाहिब और लाखैरे की भीड़ और मुरीदों के ये चेले. ऐसे ही लोग मुहम्मद के जाल में आते, जिनको समझा बुझा कर राहे-रास्त पर लाया जा सकता था.मैं खुद साख्ता रसूल की हुलिया का तसव्वुर करता हूँ । . .
नीम दीवाना, होशियार,
मगर गज़ब का ढीठ।
झूट को सच साबित करने का अहेद बरदार,
सौ सौ झूट बोल कर आखिर कार
" हज़रात मुहम्मद रसूल अल्लाह सललललाह अलैहे वसल्लम" बन ही गया।
वह अल्लाह जिसे खुद इसने गढ़ा, उसे मनवा कर, पसे पर्दा खुद अल्लाह बन बैठा.
झूट ने माना कि बहुत लम्बी उम्र पाई मगर अब और नहीं.मुहम्मद के गिर्द अधकचरे जेहन के लोग हुवा करते जिन्हें सहाबाए-कराम कहा जाता है, जो एक गिरोह बनाने में कामयाब हो गए. गिरोह में बेरोजगारों की तादाद ज्यादह थी. कुछ समाजी तौर पर मजलूम हुवा करते थे, कुछ मसलेहत पसंद और कुछ बेयारो मददगार. कुछ लोग तफरीहन भी महफ़िल में शरीक हो जाते. कभी कभी कोई संजीदा भी जायजा लेने की गरज़ से आकर खड़ा हो जाता और अपना ज़ेहनी जायका बिगाड़ कर आगे बढ़ जाता और लोगों को समझाता . . .
इसकी हैसियत देखो, इसकी तालीम देखो, इसका जहिलाना कलाम देखो, बात कहने की भी तमीज नहीं, जुमले में अलफ़ाज़ और कवायद की कोताही देखो. इसकी चर्चा करके नाहक ही इसको तुम लोग मुकाम दे राहे हो, क्या ऐसे ही सिडी सौदाई को अल्लाह ने अपना पैगामबर चुना है?बहरहाल इस वक़्त तक मुहम्मद ने तनाज़ा, मशगला और चर्चा के बदौलत मुआशरे में एक पहचान बना लिया था. एक बार मुहम्मद मक्का के पास एक मुकाम तायाफ़ के हाकिम की के पास अपनी रिसालत की पुड्या लेकर गए. उसको मुत्तला किया कि
"अल्लाह ने मुझे अपना रसूल मुक़रार किया है।"
उसने इनको सर से पावन तक देखा और थोड़ी गुफ्तुगू की और जो कुछ पाया उस पैराए में इनसे पूछा " ये तो बताओ कि मक्का में अल्लाह को कोई ढंग का आदमी नहीं मिला कि एक अहमक को अपना रसूल बनाया? "
धक्के देकर इन्हें बाहर निकला और लोगों को माजरा बतलाया. लोगों ने लात घूसों से इनकी तवाज़ो किया, बच्चों ने पागल मुजरिम की तरह इनको पथराव करते हुए बस्ती से बहार किया. क़ुरआनी आयतें लाने वाले जिब्रील अलैहस्सलाम दुम दबा कर भागे, और अल्लाह आसमान पर बैठा ज़मीन पर अपने रसूल का तमाशा देखता रहा.'मगर साहब ! मुहम्मद अपनी मिटटी के ही बने हुए थे, न मायूस हुए न हार मानी. जेहाद की बरकत माले-गनीमत' का फार्मूला काम आया. फतह मक्का के बाद तो तायाफ़ के हुक्मरान जैसे उनके क़दमों में पड़े थे.मुलाहिजा हो मुहम्मद की अल्लम गल्लम - - -

"अल्लम"सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(१)ये लफ्ज़ मुह्मिल है जिसके कोई मानी नहीं होते. ऐसे हर्फों को क़ुरआनी इस्तेलाह में हुरूफे मुक़त्तेआत कहते है. इसका मतलब अल्लाह ही जनता है. ऐसे लफ्ज़ मुह्मिल को कुरआन में मुहम्मद पहले लाते हैं। कुरआन की आयातों को सुनकर शायद किसी ने कहा होगा " क्या अल्लम-गलत बकते हो?" तब से ही अरबी, फ़ारसी और उर्दू में ये मुहवेरा कायम हुआ.


"क्या इन लोगों ने ये ख़याल कर रक्खा है कि वह इतना कहने पर छूट जाएँगे कि हम ईमान ले आए और उनको आज़माया न जायगा और हम तो उन लोगों को भी आज़मा चुके हैं जो इसके पहले हो गुज़रे हैं, सो अल्लाह इनको जान कर रहेगा जो सच्चे थे और झूटों को भी जान कर रहेगा."हर अमल का गवाह अल्लाह कहता है कि वह ईमान लाने वालों को जान कर रहेगा? मुहम्मद परदे के पीछे खुद अल्लाह बने हुए हैं जो ऐसी तकरार में अल्लाह को घसीटे हैं. वरना आलिमुल गैब अल्लाह को ऐसी लचर बात कहने की क्या ज़रुरत है? अल्लाह को क्या मजबूरी है कि वह तो दिलों की बात जनता है. इस्लाम कुबूल करने वाले नव मुस्लिम खुद आज़माइश के निशाने पर हैं. मुहम्मद इंसानी ज़हनों पर मुकम्मल अख्तियार चाहते हैं कि उनको तस्लीम इस तरह किया जाए कि इनके आगे माँ, बहेन, भाई, बाप कोई कुछ नहीं. इनसे साहब सलाम भी इनको गवारा नहीं.सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(२-३)

"हम ने इन्सान को अपने माँ बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है और अगर वह तुझ पर इस बात का ज़ोर डालें कि तू ऐसी चीज़ को मेरा शरीक ठहरा जिसकी कोई दलील तेरे पास नहीं है तो उनका कहना न मानना. तुझको मेरे ही पास लौट कर आना है. सो मैं तुमको तुम्हारे सब काम बतला दूंगा."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(८)मुहम्मदी अल्लाह के पास क्या दलील है कि वह सही है? अभी तो उसका होना भी साबित नहीं हुवा.
मुहम्मदी अल्लाह की ये गुमराही के एहकाम औलादों के लिए है तो दूसरी तरफ मान बाप को धौंस देता है कि अगर उनकी औलादें इस्लाम के खिलाफ गईं तो जहन्नम की सज़ा उनके लिए रक्खी हुई है. ये है मुसलमानों की चौ तरफ़ा घेरा बंदी
.


"अल्लाह ईमान वालों को जान कर ही रहेगा और मुनाफिकों भी."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(११)मुहम्मद अपने अल्लाह को भी अपनी ही तरह उम्मी गढ़े हुए हैं, कितनी मुताज़ाद बात है कुदरत के ख़िलाफ़ कि वह सच्चाई को ढूंढ रही है.

''कुफ्फर मुसलामानों से कहते हैं कि हमारी राह पर चलो, और तुम्हारे गुनाह हमारे जिम्मे, हालाँकि ये लोग इनके गुनाहों को ज़रा भी नहीं ले सकते, ये बिकुल झूट बक रहे हैं और ये लोग अपना गुनाह अपने ऊपर लादे हुए होंगे."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(१२)ये आयत उस वाकिए का रद्दे अमल है कि कोई शख्स मुसलमान हुवा था उसे दूसरे ने वापस पुराने दीन पर लाने में कामयाब हुवा, जब उसने इस बात कि तहरीरी शक्ल में लिख कर दिया कि अगर गुनाह हुवा तो उसके सर. मज़े की बात ये कि ज़मानत लेने वाले ने उससे कुछ रक़म भी ऐंठी. ऐसे गाऊदी हुवा करते थे सहबाए किरम .गुनाह और सवाब ?
आम मुसलमान उम्र भर इन दो भूतिए एहसास में डूबे रहते है, जब कि इंसान पर भूत इस बात का होना चाहिए कि उसका हिस और ज़मीर उस पर सवार हो.


"और हमने नूह को उनकी कौम की तरफ भेजा सो वह उनमें पचास बरस कम हज़ार साल रहे और कौम को समझाते रहे, इन को तूफ़ान ने आ दबाया और वह बड़े ज़ालिम लोग थे."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(१४)
अनपढ़ और गंवार मुहम्मदी अल्लाह पचास कम हज़ार हज़ार कहता है क्यूंकि वह नौ सौ पचास के हिन्दसे को नहीं कह पता. मुहम्मद का अल्लाह गलत बयानी कर रहा है. माजी बईद में आज के मुकाबिले में उम्रें कम ही हुवा करती थीं, ये बात साइंसी इन्केशाफ़ है, वैसे भी पहले ज़िदगी दुश्वार गुज़ार हुवा करती थी, ये हादसात का शिकार हो जाती थी. नूह का वक़्त आजसे ५००० साल पहले का है अगर अल्लाह की बात पर यकीन किया जाए तो नूह की तरह लम्बी उम्र पाने वाली उनकी छटवीं पुश्त आज दुनिया में कहीं न कहीं मौजूद होती. ऐसे ही हदीस में मुहम्मद एक जगह कहते हैं कि पहले इन्सान की लम्बाई साठ हाथ हुवा करती थी.


"और हमने आद और सुमूह को भी हलाक किया और ये हलाक होना तुमको उनके रहने के मकान से नज़र आ रहा है और शैतान ने उनके आमाल को उनकी नज़र में मुस्तःसिन कर रखा था और उनको राह से रोक रखा था और वह लोग होशियार थे. हमने कारून, फिरौन और हामान को भी हलाक किया और इनके पास मूसा खुली दलीलें लेकर आए थे, फिर ज़मीन पर इन्हों ने सरकशी की और भाग न सके. सो हमने हर एक को इसके गुनाह की सज़ा में पकड़ लिया. सो इनमें से बअज़ों पर तो हमने तुन्द हवा भेजी और इनमें से बअज़ों को हौलनाक आवाज़ ने आ दबाया और इनमें से बअज़ों को हमने में धँसा दिया और इनमे से बअज़ों को हमने डुबो दिया और अल्लाह ऐसा न था कि इन पर ज़ुल्म करता बल्कि यही लोग अपने ऊपर ज़ुल्म करते थे."सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(३८-४०)ये है मुहम्मदी अल्लाह, अल्लाह हलाकुल्लाह जिसके सजदे नादान मुसलमान करते हैं, इसके गुर्गों के बहकावे में आकर तालिबान बन जाते हैं या हिजबुल्लाह के मुजाहेदीन जो अक्सर मुसलमानों का ही क़त्ले आम करते हैं। क्या अल्लाह ने मुहम्मद को हलाक़ नहीं किया? उनकी नस्लों को नेस्त नाबूद नहीं किया?

नादान मुसलामानों! जागो, तुम मुहम्मदी अल्लाह के गुमराहों में बे यारो मददगार पड़े हुए हो. तुमको ये कुरानी जेहालत कहीं का भी नहीं रखेगी. अपनी नस्लों पर रहेम खाओ. जंग जद्दाल, खून खराबा, हलाक़त और तबाही के सिवा कुरान में तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा.''जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा कोई और साज़गार तजवीज़ कर रखे हैं उन लोगों की मिसाल मकड़ी की सी मिसाल है जिसने एक घर बनाया, और सब जानते हैं सब घरों में बोदा घर मकड़ी का घर होता है. अगर वह जानते तो. अल्लाह सब कुछ जानता है जिसको वह लोग अल्लाह के सिवा सोच रहे हैं और वह ज़बरदस्त हिकमत वाला है और इन मिसालों को लोगों के लिए बयान करते हैं और इन मिसालों को इल्म वाले ही समझते हैं.''सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४२-४३)वाह वाह! अल्लाह के रसूल, कलाम आपका और बयान आपका. मकड़ी के इस कद्र मज़बूत और खूब सूरत जाल को कोई बेहिक्मत अल्लाह ही बोदा घर कह सकता है। उसके जाल को उसका घर समझे? रहती तो वह ज़मीन के अन्दर बिलों में. आपके समझ का जवाब नहीं. समझो और अपनी उम्मत को समझ दो कि मकड़ी के जाल सा बारीक धागा अगर स्टील का बने तो मकड़ी के जाल का मुकाबिला नहीं कर सकता. मामूली कीड़ा ज़बरदस्त दस्तकारी का मुजाहिरा करता है. आपकी तरह फूहड़ आयतों का नहीं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान 
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Sunday 12 December 2010

सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी

'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा

(दूसरी क़िस्त)




कितनी बड़ी विडंबना है कि एक तरफ तो हम नफ़रत का पाठ पढाने वालों को सम्मान देकर सर आँखों पर बिठाते हैं, उनकी मदद सरकारी कोष से करते हैं, उनके हक में हमारा कानून भी है, मगर जब उनके पढे पाठों का रद्दे अमल (प्रतिक्रिया) होता है तो उनको अपराधी ठहराते हैं. ये हमारे मुल्क और क़ौम का दोहरा मेयार है. धर्म अड्डों और गुरुओं को खुली छूट कि वोह किसी भी अधर्मी और विधर्मी को एलान्या गालियाँ देता रहे भले ही सामने वाला विशुद्ध मानव मात्र हो या योग्य कर्मठ पुरुष हो अथवा चिन्तक नास्तिक हो. इनको कोई अधिकार नहीं की यह अपनी मान हानि का दावा कर सकें. मगर उन मठाधिकारियों को अपने छल बल के साथ न्याय का सन्रक्षन मिला हुवा है. ऐसे संगठन, और संसथान धर्म के नाम पर लाखों के वारे न्यारे करते हैं, अय्याशियों के अड्डे होते हैं और अपने स्वार्थ के लिए देश को खोखला करते हैं.
इन्हीं के साथ साथ हमारे मुल्क में एक कौम है मुसलमानों की जिसको दुनयावी दौलत से ज़्यादः आसमानी दौलत यानी स्वर्ग लोक की चाह है. यह बात उन के दिलो दिमाग में सदियों से इस्लामी ओलिमा (धर्म गुरु) भर रहे हैं, जिनका ज़रीआ मुआश (भरण-पोषण) इस्लाम प्रचार है. हिंदुत्व की तरह ये भी हैं. मगर इनका पुख्ता माफिया बना है. इनकी भेड़ें न सर उठा सकती हैं न कोई इन्हें चुरा सकता है. बागियों को फतवा की तौक़ पहना कर बेयारो-मददगार कर दिया जाता है. कहने को हिदू बहु-संख्यक भारत में हैं मगर क्षमा करें धन लोभ और धर्म पाखण्ड ने उनको कायर बना रखा है, १०% मुस्लमान उन पर भारी है, तभी तो गाँव गाँव, शहर शहर मदरसे खुले हुए हैं जहाँ तालिबानी की तलब और अलकायदा के कायदे बच्चों को पढाए जाते हैं. भारत में जहाँ एक ओर पाखंडियों, और लोभियों की खेती फल फूल रही है वहीँ दूसरी और तालिबानियों और अल्कादियों की फसल तैयार हो रही है..सियासत दान देश के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने में बद मस्त हैं. उनको मालूम नहीं कि इतिहास उनको किस रूप में बदलेगा.
क्या दुन्या के मान चित्र पर कभी कोई भारत था? क्या आज कहीं को भारत है? धर्म और मज़हब की अफीम खाए हुए, लोभ और अमानवीय मूल्यों को मूल्य बनाए हुए, क्या हम कहीं से देश भक्त भारतीय भी हैं? नकली नारे लगाते हुए, ढोंग का परिधान धारण किए हुए, हम केवल स्वार्थी ''मैं'' हूँ. हम तो मलेशिया, इंडोनेशिया तक भारत थे, थाई लैंड, बर्मा, श्री लंका और काबुल कंधार तक भारत थे. कहाँ चला गया भारत? अगर यही हाल रहा तो पता नहीं कहाँ जाने वाला है भारत. भारत को भारत बनाना है तो अतीत को दफ़्न करके वर्तमान को संवारना होगा, धर्म और मज़हब की गलाज़त को कोडों से साफ़ करना होगा. मेहनत कश अवाम को भारत का हिस्सा देना होगा न कि गरीबी रेखा के पार रखना और कहते रहना की रूपिए का पंद्रह पैसा ही गरीबों तक पहुँच पाता है.

सूरह क़सस मुहम्मद ने किसी पढ़े लिखे संजीदा शख्स से लिखवाई है. इसे पढने के बाद आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है. हराम ज़ादे आलिमों को खूब पता है मगर उन्हों ने सच न बोल्लने की क़सम जो खा राखी है. न सच बोलेंगे, न सच सुनेंगे और न सच महसूस करेंगे.
लीजिए महसूस कीजिए गैर अल्लाह के कुरआन को, मगर हाँ! क़ि इस मुजरिम ने मुहम्मद की उम्मियत की इस्लाह की है, कलम में मुहम्मद का हम सर ही है - - -
"आप जिसको चाहें हिदायत नहीं कर सकते बल्कि अल्लाह ही जिसको चाहे हिदायत कर देता है और हिदायत पाने वालों का इल्म उसी को है."सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-56)
यानी कि अल्लाह नहीं चाहता कि लोग इस्लाम को क़ुबूल करें मगर जिसको बेवकूफ समझता है उसको ही चुनता है। बक़ौल जोश मलीहाबादी - - -


जिसको अल्लाह हिमाक़त की सज़ा देता है।

उसको बेरूह नमाज़ों में लगा देता है।


''और हम बहुत सी ऐसी बस्तियाँ हलाक कर चुके हैं जो अपने सामाने ऐश पर नाज़ां थे सो ये उनके घर हैं कि उनके बाद आबाद ही न हुए मगर थोड़ी देर के लिए और आखिर कार हम ही मालिक रहे और आप का रब बस्तियों को हलक नहीं किया करता जब तक कि सदर मुकाम में किसी पैगम्बर को न भेज ले कि वह इन लोगों को हमारी आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाए. और हम उन बस्तियों को हलाक नहीं करते मगर इस हालत में कि वहाँ के बाशिंदे बहुत ही शरारत न करने लगें"
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-५८-५९)
अव्वल कार अल्लाह गाफ़िल रहा कि''आखिर कार हम ही मालिक रहे '' क्या मुहम्मदी अल्लाह गाफिल भी हुवा करता है कि लोगों को मनमानी करने की छूट दे ताकि उसको अपने बन्दों को सज़ा देने का मज़ा भी मिले. वह ज़ालिम नहीं है, अल्लाह पहले बस्तियों के सदर मुक़ाम पर ''मुहम्मादों'' को भेजता रहता है कि उनकी किताब पढ़े जो लाल बुझक्कड़ की पोथी है .
"और जिस दिन काफिरों से पूछा जाएगा कि तुमने पैगम्बरों को क्या जवाब die ? सो उस रोज़ उनसे सारे मज़मून गुम हो जाएँगे सो वह लोग आपस में पूछ ताछ भी न कर सकेगे, अलबत्ता जो शख्स तौबा कर ले और ईमान ले आए तो ऐसे लोग उम्मीद है कि फलाह पाने पाने वालों में से होंगे ."सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (६६-६७)

देखिए कि टुच्चा मुहम्मदी अल्लाह बन्दों की कैसी घेरा बंदी करता है. मुसलमानों ''नहीं'' करना भी सीखो ऐसे अल्लाह को दो लात रसीद करो.

"और कहें कि भला ये तो बताओ कि अल्लाह तुम पर हमेशा के लिए रात ही रहने दे तो वह अल्लाह के सिवा कौन सा माबूद है जो रौशनी ले आए? तो क्या तुम सुनते नहीं? और भला ये तो बताओ कि अगर अल्लाह तअला तुम पर क़यामत तक के लिए दिन ही रहने दे तो उसके सिवा तुम्हारा कौन सा माबूद है जो रात ले आए? जिसमें तुम आराम पाओ? क्या तुम देखते नहीं? और उसने अपनी रहमत से तुम्हारे लिए दिन और रात बनाया ताकि तुम रात में आराम करो और दिन में उसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि दोनों पर तुम शुक्र करो.सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (७१-७३)

मुहम्मद की इन्हीं दलीलों में फँस कर आज मुसलमान दूसरी कौमों की नज़र में अजीब ओ गरीब मख्लूक़ बना हुवा है.दुश्मने इंसानियत ओलिमा और उनकी सोच की दीगर कौमें चाहती है कि मुसलमान इसी अँधेरे में पड़े रहें और उनको अपने मजदूरों के लिए ऐसे नाक्बत अंदेशों (अदूर दरशी)की ज़रुरत है,

''कारून मूसा की बिरादरी में से था सो वह उन लोगों से तकब्बुर करने लगा और हमने उसको इस क़दर खजाने दिए थे कि उनकी कुंजियाँ कई कई ज़ोर आवर शख्सों को गराँ बार कर देतीं, जब कि उसको उसकी बिरादरी ने कहा कि तू इस पर इतरा मत, वाकई अल्लाह तअला इतराने वालों को पसंद नहीं करता - - - और जिस तरह अल्लाह तअला ने तेरे साथ एहसान किया है, तू भी एहसान कर. दुन्या में फसाद का ख्वाहाँ मत हो, बेशक अल्लाह तअला फसाद को पसंद नहीं करता. करून कहने लगा मुझको तो मेरी ज़ाती हुनर मंदी से मिला है. क्या इसने ये न जाना कि अल्लाह तअला इससे पहले गुज़श्ता उम्मतों में से ऐसे ऐसों हलाक कर चुका है जो कूवत में इससे कहीं बढे चढ़े थे और माल भी ज्यादह था. और अहले जुर्म से उनके गुनाहों का सवाल न करना पड़ेगा (?) फिर वह अपनी आराइश से अपनी बिरादरी के सामने निकला जो लोग दुया के तालिब थे, कहने लगे क्या खूब होता कि हमको भी वह साज़ो सामान मिला होता जैसा कि कारून को मिला है, वाकई वह वह बड़ा साहिबे नसीब है. और जिन लोगों को फहेम अता हुई थी वह कहने लगे, अरे तुम्हारा नास हो अल्लाह तअला के घर का सवाब इससे हज़ार दर्जा बेहतर है जो ऐसे लोगों को मिलता है कि ईमान लाए और नेक अमल करे. . . फिर हमने कारून को और इसके महेल सरा को ज़मीन में धंसा दिया. सो कोई ऐसी जमाअत न हुई जो इसको अल्लाह के अजाब से बचा लेती और कल जो लोग इस जैसे होने की तमन्ना रखते थे, वह आज कहने लगे बस जी यूँ मालूम होता है कि अल्लाह जिसको चाहे ज़्यादः रोज़ी देदेता है और तंगी से देने लगता है. अगर हम पर अल्लाह की मेहरबानी न होती तो हम को भी धँसा देता.
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (७४-८२)
अल्लाह सिर्फ एक कुंजी कारून के खजाने के लिए क्यूं नहीं दीं कि वह सब कुछ कर सकता है . कारून के खजाने की चाभियाँ इतनी थीं कि जोर आवारो से उठाए न उठतीं तो वह अपने तालों की पहचान कैसे रखती थीं? कई कई ज़ोर आवर शख्सों को गराँ बार कर देतीं, ''खुलजा सिम सिम'' का फ़ॉर्मूला भी उसके पास न था? मुसलामानों! अपने दिमाग का तालों अपनी हिस की कुंजी से खोलो।
अल्लाह क़ारूनो को इस क़दर दौलत क्या उन्हें इतराने के लिए देता है? दौलत देना अल्लाह के बस है और इतराना दौलत मंदों के बस का? कैसी डबुल स्टैंडर्ड बातें हैं कुरान में?ऐसी आयतें ही मुसलमानों को पस्मंदगी की तरफ खींचती हैं जो क़नाअत पसंदी को ओढ़ते बिछाते हैं और अपनी तरक्क़ी के तमाम दर्जे अपने पर बंद कर लेते हैं.''ये आलमे आखिरत हम उन ही लोगों के लिए खास करते हैं जो दुन्या में न बड़ा बनना चाहते हैं और न फसाद करना. और नेक नतीजा मुत्तकी लोगों को मिलता है. जो शख्स नेकी करके आएगा उसको इस से बेहतर नतीजा मिलेगा, और जो शख्स बदी करके आवेगा, सो ऐसे लोगों को जो बदी का काम करते हैं, इतना ही बदला मिलेगा. जितना वह बदी करते थे.''सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (८३)
''ये आलमे आखिरत हम उन ही लोगों के लिए खास करते हैं जो दुन्या में न बड़ा बनना चाहते हैं''यह ज़हर मुसलामानों के ईमान में रच बस कर उनको खोखला किए हुए है. दुसरे उनको मातहत और मजबूर किए हुए, उन्हें अपने ईमान पर कायम रहने पर आमादः किए हुए हैं, इनके लिए ईमान की फैक्ट्री (मदरसे) लगाए हुए हैं. ''जिस खुदा ने आप पर कुरआन के एहकाम पर अमल और इसकी तबलीग को फ़र्ज़ किया है, वह आप को (आपके) असली वतन (यानी मक्का) फिर पहुंचाएगा. आप (इनसे) फरमा दीजिए कि मेरा रब खूब जनता है कि (अल्लाह की तरफ़ से) कौन सच्चा दीन लेकर आया है. और कौन सरीह गुमराही में (मुब्तिला) है. और आप को (अपने नबी होने के क़ब्ल)ये तावक्को न थी कि आप पर ये किताब नाज़िल हो जाएगी. मगर महेज़ आपके रब की मेहरबानी से इसका नुज़ूल हुवा. सो आप उन काफिरों की ज़रा भी ताईद न कीजिए. जब अल्लाह के एहकाम आप पर नाज़िल हो चुके तो ऐसा न होने पाए (जैसा अब तक भी नहीं होने पाया) कि ये लोग आपको इन एहकाम से रोक दें. और आप (बदस्तूर) अपने (रब के दीन) की तरफ़ लोगों को बुलाते रहिए. और इन मुशरिकों में शामिल न होइए. और जिस तरह (अब तक शिर्क से मासूम हैं इसी तरह आइन्दा भी) अल्लाह के साथ किसी माबूद को न पुकारना. इसके सिवा कोई माबूद होने के काबिल नहीं. (इस लिए कि) सब चीज़ें फ़ना होने वाली हैं. बजुज़ उसके ज़ात की, उसी की हुकूमत है.''सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (८४-८७)मुहम्मद की गढ़ी हों या मुहम्मद के किसी किराए के टट्टू ने इनको सलीका बतलाते हुए इस आयत को बतौर नमूना गढ़ा हो, देखना ये है की कुरआन की बातों में कोई दम भी है? मुस्लमान इन कुरानी आयतों में सदियों से अटके हुए हैं. मुसलमान आकबत के फरेब में इस तरह गर्क है कि उसे अपना उरूज समझ में ही नहीं आता. आकबत का नशा उसे आँख ही नहीं खोलने देता, कि वह दुनिया में सुर्खुरू हो सके. मुहम्मदी अल्लाह बार बार हिदायत करता है इस दुन्या का हासिल छलावा है, उस दुन्या को हासिल करो. खुद मुहम्मद इस दुन्या को इस क़दर हासिल किए हुए थे कि हर जंग के माले गनीमत में २०% अल्लाह और उसके रसूल का हिस्सा रहता. ये कमबख्त आलिमान इस्लाम किस्सा गढ़े हुए हैं कि उनके मरने पर चंद दीनारें उनकी विरासत निकली.
ब्रेकेट की बंद बातें बन्दों की है जो कि मुहम्मद के अल्लाह के यार ओ मददगार हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा

(पहली क़िस्त)

*इस्लाम इसके सिवा और कुछ भी नहीं क़ि यह एक अनपढ़ मुहम्मद की जिहालत है भरी, जालिमाना तहरीक है. आज इसके नुस्खे सड़ गल कर गलीज़ हो चुके हैं, इसी गलाज़त में पड़े हुए हैं ९९% मुसलमान.
*कुरान सरापा बेहूदा और झूट का पुलिंदा है.इतिहास की बद तरीन तस्नीफे-खुराफ़ात .
*मुहम्मद ने निहायत अय्यारी से कुरआन की रचना की है जिसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह पर रख कर खुद अलग बैठे तमाश बीन बने रहते हैं.
*मुहम्मद एक कठमुल्ले थे जिसका सुबूत उनकी हदीसें हैं.
*कुरआन की हर आयत मुसलामानों की शह रग पर चिपकी जोंक की तरह उनका खून चूस रही हैं.
*वह जब तक कुरआन से मुंह नहीं फेरता, और उसके फ़रमान से बगावत नहीं करता, इस दुनिया में पसमान्दा कौम के शक्ल में रहेगा और दीगर कौमो का सेवक बना रहेगा.
*कुरआन के फायदे मक्कार ओलिमा गढ़े हुए हैं जो महेज़ इसके सहारे गुज़ारा करते हैं और आली जनाब भी बने रहते हैं..
*मुसलामानों! इन ओलिमा से उतनी ही दूरी कायम करो जितनी दूरी सुवरों से रखते हो. यही तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन हैं।


सूरह क़सस मुहम्मद ने किसी पढ़े लिखे संजीदा शख्स से लिखवाई है. इसे पढने के बाद आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इस बात का हराम जादे इस्लामी आलिमों को खूब पता है मगर उन्हों ने सच न बोलने की क़सम जो खा रखी है. न सच बोलेंगे, न सच सुनेंगे और न सच महसूस करेंगे.लीजिए क़ुरआनी खुराफ़ात हाज़िर है. - - -"तासिम"
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-१)
ये लफ्ज़ मोह्मिल है अर्थात अर्थ हीन. इसका मतलब अल्लाह ही जनता है और हम जन साधारण क़ुरआनी अल्लाह को अब तक खूब जान चुके हैं. ये मुहम्मद का फरेब है."ये किताब की आयतें हैं"सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-२)अल्लाह अपने ही फरमान में कहता है "ये किताब की आयतें हैं" जैसे किताब के बारे में कोई दूसरा बतला रहा हो. ये मुहम्मद ही है जो कुरआन में झूट बोल रहे हैं."हम आपको मूसा और फिरौन का कुछ क़िस्सा पढ़ कर सुनाते हैं. उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं."सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-३)अल्लाह को भी क़िस्सा पढ़ कर सुनाने की ज़रुरत है क्या? उसने जो देखा है या जो भी उसे याद है, क्या उसको ज़बानी नहीं बतला सकता? पढ़ कर तो कोई दूसरा ही सुनाएगा. अल्लाह कहाँ पढ़ कर सुना रहा है ? मुहम्मद अनपढ़ हैं, वह पढ़ कर सुना नहीं सकते, इस आयत की हुलिया कहाँ बनी? ऐसी गैर फितरी बात उम्मी मुहम्मद ही कह सकते है. कुरआन के हर जुमले फितरी सच्चाई से परे हैं. मुहम्मद के झूट को आलिमों ने परदे में रखकर मुसलामानों को गुमराह किया है.
"फिरौन सर ज़मीन पर बहुत बढ़ चढ़ गया था और उसने वहां के बाशिंदों को मुख्तलिफ किस्में कर रखा था कि उसने एक जमाअत का ज़ोर घटा रक्खा था. उनके बेटों को जिबह कराता था और उनकी औरतों को जिंदा रहने देता था''सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-४)सर ज़मीन, इस धरती के किसी मखसूस हिस्से को कहा जाता है, अपनी खासियत के साथ. मुहम्मद पढ़े लिखों की नक्ल करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं.
ये तौरेत की जग-जाहिर कहानी है जिसे उम्मियत में डूबे मुहम्मद अपने अल्लाह का कलाम बतला रहे हैं.

फिरौन के मज़ालिम बनी इस्राईल पर बढ़ते ही चले जा रहे थे. वह फिरौन के बंधक जैसे हो गए थे. किसी नजूमी की पेशीन गोई के तहत कि फिरौन को पामाल करने वाला कोई इसरईली बच्चा पैदा होने वाला है, वह तमाम इस्रईली बच्चों को जन्म लेते ही मरवा दिया करता था और लड़कियों को जिंदा रहने दिया करता था. इन्ही हालत में मूसा पैदा हुआ. इसकी बेक़रार माँ को अल्लाह ने हुक्म दिया कि इसे दूध पिलाओ और जासूसों का खतरा महसूस करो, फिर बगैर खौफ ओ खतर इसे दर्याए नील में डाल दो. जब खतरा महसूस हुवा तो उसकी माँ ने दिल पर पत्थर रख कर मूसा को संदूक में डाल कर, उसे दर्याए नील के हवाले कर दिया. दूसरे दिन माँ बेचैन हुई और बेटे की खैर ओ खबर और सुराग लेने के लिए उसकी बहेन को आस पास भेजा''संदूक में बच्चे की खबर फिरौन के जासूसों को लग चुकी है. बच्चा उठा कर महेल के हवाले कर दिया गया है. बादशाह की मलका आसिया को बच्चा बहुत अच्छा लगा और इसने इसकी जान बख्शुआ कर उसे अपना लिया. ''"मूसा की बहेन ने अपनी माँ को आकर ये खुश खबर दी. अल्लाह ने दूध पिलाइयों की बंदिश कर रखी थी, सो हुवा यूँ के मूसा की परवरिश के लिए खादिम के तौर पर इसकी माँ ही मिली . इस तरह अल्लाह ने अपना वादा पूरा किया जो मूसा की माँ से किया था. इसकी आँखें मूसा को देखकर ठंडी हुईं. गरज ये कि मूसा की जान बची. शाही महेल की सहूलतों के साथ साथ उसे माँ की देख भाल मिली. अल्लाह ने मूसा को इल्म ओ हुनर से नवाज़ा था."सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-५-१४)
''मूसा जब जवानी की दहलीज़ पर पहुँचा तो एक रोज़ शहर से निकल कर पास की बस्ती में घूमता हुवा चला गया, रात का वक़्त था सब सो रहे थे, इसने देखा कि दो आदमी झगड़ रहे हैं जिसमें से एक इस्रईली था उसके ही कौम का, जिसने इससे मदद मांगी और दूसरा मिसरी था. मूसा ने अपने हम कौम की ऐसी मदद की कि एक ही घूँसे में मिसरी का काम तमाम हो गया. वह वहाँ से चुप चाप खिसक लिया मगर बाद में इसको इस बात का बड़ा रंज रहा. दूसरे दिन मूसा ने देखा वही इस्रईली बन्दा एक दूसरे मिसरी से हाथा-पाई कर रहा था और मूसा को देख कर फिर मदद की गुहार लगाई. मूसा इसके पास पहुँचा तो, मगर घूँसा ताना इस्रईली पर. ये देखकर इस्राईली चीख पुकार करने लगा - - -"

''तू मुझे भी मार डालना चाहता है जैसे कल एक मिसरी को क़त्ल कर दिया था, तू अपनी ताक़त जमाना चाहता है, मेल मिलाप से नहीं रह सकता? "
इस तरह कल हुए क़त्ल के कातिल का पता लोगों को चल गया और इसकी खबर दरबार तक पहंच गई, बस कि मूसा की शामत आ गई.
एक शख्स मूसा के पास आया और खबर दी की भागो, मौत तुम्हारा पीछा कर रही है, दरबारी तुम्हें गिरफ्तार करने आ रहे हैं. मूसा सर पर पैर रख कर भागता है. भागते भागते वह मुदीन नाम की बस्ती तक पहुँच जाता है, गाँव के बाहर पेड़ के साए में बैठ कर वह अपनी सासें थामने लगता है. कुछ देर बाद देखता है कुछ लोग एक कुँए पर लोगों को पानी पिला रहे हैं और वहीँ दो लड़कियां अपनी बकरियों को पानी पिला ने के लिए इंतज़ार में खड़ी हुई हैं, वह उठता है और कुँए से पानी खींच कर बकरियों की प्यास बुझा देता है.
थका मांदा मूसा एक दरख़्त के से में बैठ जाता है और
अल्लाह से दुआ मांगता है - -''ऐ अल्लाह जो नेमत भी तू मुझे भेज दे मैं इसका तलबगार हूँ."सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-१५-२४)''मूसा की दुआ पलक झपकते ही कुबूल होती है. उसने जब आँखें खोलीं तो देखा कि एक नाज़ुक अंदाम दोशीजा सामने से खिरामाँ खिरामाँ चली आ रही है. ये उनमें से ही एक थी जिनकी बकरियों को मूसा ने पानी पिलाया था. करीब आकर उसने कहा - - -
अजनबी तुम से मेरे वालिद बुजुर्गवार मिलना चाहते हैं, अगर तुम मेरे साथ चलो?
मूसा लड़की के हमराह उसके बाप की खिदमत में पेश होता है. और उसको अपना हमदर्द पाकर पूरी रूदाद सुनाता है और (बुड्ढा बाप) कहता है. अच्छा हुआ तुम जालिमो से बच कर आ गए.
लड़की बाप को मशविरा देती है कि अब आप बूढ़े हो गए हैं, आपको एक ताक़त वर और अमानत दार इंसान की ज़रुरत है, बेहतर होगा कि आप मूसा को अपनी मुलाजमत में ले लें
लड़की का बूढा बाप उसकी बात मान जाता है और मूसा के सामने पेशकश रखता है कि वह इन दोनों बेटियों में से किसी एक के साथ शादी करले, इस शर्त के साथ कि वह दस साल तक घर जंवाई बन कर रहेगा, जिसे मूसा मान जाता है. वह तवील मुद्दत देखते ही देखते ख़त्म हो जाती है और वह वक़्त भी आ जाता है कि मूसा अपने बाल बच्चों को लेकर मिस्र के लिए कूच करता है .
मूसा सफ़र में था और रात का वक़्त कि इसने कोहे तूर पर एक रौशनी देखी, वह इसकी तरफ खिंच गया, अपने घर वालों से ये कहता हुवा कि तुम यहीं रुको मैं आग लेकर आता हूँ. वहीँ पर अल्लाह इसको अपना पैगम्बर चुन लेता है.
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-२५-३०)
इस मौक़े पर मुहाविरा है कि "मूसा गए आग लेने और मिल गई पैगम्बरी"अल्लाह फिरौन की सरकूबी के लिए मूसा को दो मुआज्ज़े देता है, पहला उसकी लाठी का सांप बन जाना और दूसरा यदे-बैज़ा(हाथ की गदेली पर अंडे की शक्ल का निशान) और मूसा के इसरार पर उसके भाई हारुन को उसके साथ का देना क्यूंकि मूसा की ज़ुबान में लुक्नत थी.
ये दोनों फिरौन के दरबार में पहुँच कर उसको हक की दावत देते हैं (यानी इस्लाम की) और अपने मुअज्ज़े दिखलाते हैं जिस से वह मुतासिर नहीं होता और कहता है यह तो निरा जादू के खेल है. फिर भी नए अल्लाह में कुछ दम पाता है. फिरौन अपने वजीर हामान को हुक्म देता है कि एक निहायत पुख्ता और बुलंद इमारत की तामीर की जाए कि इस पर चढ़ कर मूसा के इस नए (इस्लामी) अल्लाह की झलक देखी जाए.

सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-३१-३८)
अल्लाह इसके आगे अपनी अजमत, ताक़त और हिकमत की बखान में किसी अहमक की तरह लग जाता है और अपने रसूल मुहम्मद की शहादत ओ गवाही में पड़ जाता है और मूसा के किससे को भूल जता है. आगे की आयतें कुरानी खिचड़ी वास्ते इबादत हैं.सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-३९-८८)
सवाल ये उठता है की क्या मूसा और सुलेमान जैसे सरबराहों के क़िस्से और कहानियां हम अपनी नमाज़ों में दोराते हैं? ये आल्लाह बने मुहम्मद का हुक्म है? इससे तो बेहतर है हम तकली से रस्सियाँ बात कर दुन्या को कुछ दें.याद रहे कुरान किसी अल्लाह का कलाम नहीं है, मुहम्मद की वज्दानी कैफियत है, जेहालत है और खुराफाती बकवास है.
मैंने महसूस किया है कि कुरान की दो सूरतें किसी दूसरे ने लिखी है जो तालीम याफ्ता और संजीदा रहा होगा, मुहम्मद ने इसको कुरान में शामिल कर लिया. इस सिलसिले में सूरह क़सस पहली है, दूसरी आगे आएगी. इसे कारी आसानी से महसूस कर सकते हैं. किस्साए मूसा और किस्साए सुलेमान में आसानी से ये फर्क महसूस किया जा सकता है. इस सूरह में न क़वायद की लग्ज़िशें हैं न ख्याल की बेराह रावी.
देखें इस सूरह क़सस की कुछ आयतें जो खुद साबित करती है कि यस उम्मी मुहम्मद की नहीं, बल्कि किसी ख्वान्दा की हैं. - - -
"और हम रसूल न भी भेजते अगर ये बात न होती कि उन पर उनके किरदार के सबब कोई मुसीबत नाजिल हुई होती, तो ये कहने लगते ऐ हमारे परवर दिगार कि आपने हमारे पास कोई पैगम्बर क्यूं नहीं भेजा ताकि हम आप के एहकाम की पैरवी करते और ईमान लाने वालों में होते."
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-४७)

''सो जब हमारी तरफ से उन लोगों के पास अमर ऐ हक पहुँचा तो कहने लगे कि उनको ऐसी किताब क्यूँ न मिली जैसे मूसा को मिली थी. क्या जो किताब मूसा को मिली थी तो क्या उस वक़्त ये उनके मुनकिर नहीं हुए? ये लोग तो यूं ही कहते हैं दोनों जादू हैं. जो एक दूसरे के मुवाफिक हैं और यूँ भी कहते हैं कि हम दोनों में से किसी को नहीं मानते तो आप कह दीजिए कि तुम कोई और किताब अल्लाह के पास से ले आओ.जो हिदायत करने वालों में इन से बेहतर हो, मैं उसी की पैरवी करने लगूँगा, अगर तुम सच्चे हुए"सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-४८-४९)''ऐ अल्लाह जो नेमत भी तू मुझे भेज दे मैं इसका तलबगार हूँ."

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 8 December 2010

सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी

'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमीन'' का है।


सूरह नमल २७


(दूसरी क़िस्त)




कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवानों को

पिछले लेखों में मैं निवेदन कर चुका हूँ क़ि कमेंट्स करने वाले अभद्र भाषा का पर्योग न करें. मेरा अभियान नादान और गुमराह मुसलमानों के लिए है, जोकि दूसरों के लिए भी मार्ग दर्शन है. वैसे भी कडुई और कठोर बातें किसी को नहीं भातीं खुद टीका कार का स्तर गिरता है. नफरत के दिए से अंधकार जाने वाला नहीं. मेरे अभियान का साथ अच्छी और आकर्षक भाषा दें तभी नुसल्मानों को राहे रास्त पर ला सकते हैं.एक सज्जन कटुवा, कटुए जैसे शब्दों से मुसलामानों का अपमान करते हैं, बड़े शर्म की बात है. मै उनको जानकारी दे रहा हूँ कि लिंग की मुख पर जो गैर ज़रूरी चमड़ी होती है वह सभ्यता के विकसित होते ही लिंग से अलग की जाने लगी . चार हज़ार साल पहले पैदा होने वाले फादर अब्राहम से इस बात की पुष्टि होती है कि उनका खतना हुवा था. ख़तने की परिक्रिया यहूद्दियो से इस्लाम में आई. खतने से बहुत सी लैंगिक बीमारी नहीं होती, अक्सर डाक्टर गैर मुस्लिम बच्चों का इलाज खतना करके करते है . खतने के बाद लिंग की विशेष सफाई नहीं करनी पड़ती और कोई दुर्गन्ध भी नहीं होती . खास बात ये है कि इससे दम्पति को यौन सुख भली भान्त होता है.

मुसलामानों में बहुत सी बुराई के साथ साथ ये अच्छाई भी है. अच्छाई को कहीं से मिले, ग्रहण करना चाहिए. मैं भी अज्ञान की भाषा का शिकार हूँ कि मैं भी कटुवा हूँ और इस बात पर मैं मुस्लिम समाज का आभार प्रकट करता हूँ.

याद रखें मुखालिफत बराय मुखालफत गलत है। तथ्य और माकूलियत पर आप के विचार प्रार्थनीय हैं.

कुरआन ए नाज़ेबा की कथा मुलाहिजा हो - - -

बिकीस के दूतों का अपमान करते हुए सुलेमान उन्हें वापस कर देता है - - - उसके बाद कहानी का सिलसिला मुलाहिजा हो - - -बादशाह सुलेमान से मुहम्मद अपनी काबिलयत उगलवाते हैं - - -"सो हम उन पर ऐसी फौजें भेजते हैं कि उन लोगों से उन का ज़रा मुकाबिला न हो सकेगा और हम वहाँ से उनको ज़लील करके निकाल देगे और वह मातहत हो जाएँगे. सुलेमान ने फ़रमाया ऐ अहले दरबार तुम में से कोई ऐसा है कि उस बिलकीस का तख़्त, क़ब्ल इसके कि वह लोग मेरे पास आएँ, मती (आधीन) होकर आएँ, हाज़िर कर दे ?
एक क़वी हैकल जिन ने जवाब में अर्ज़ किया, मैं इसको आप की खिदमत में हाज़िर कर दूंगा, क़ब्ल इसके कि आप इस इजलास से उठ्ठें. और मैं इसको लाने की ताक़त रखता हूँ. और अमानत दार भी हूँ.
जिसके पास किताब का इल्म था उसने कहा मैं इसको तेरे सामने तेरी आँख झपकने से पहले लाकर खड़ा कर सकता हूँ.
पस जब सुलेमान अलैहिस्सलाम ने इसको अपने रूबरू देखा तो कहा ये भी मेरे परवर दिगार का एक फज़ल है. ताकि वह मेरी आज़माइश करे, मैं शुक्र करता हूँ. और जो शुक्र करता है अपने ही नफा के लिए करता है. और जो नाशुक्री करता है,(?) मेरा रब गनी है, करीम है.
सुलेमान ने हुक्म दिया कि इसके लिए इस तख़्त की सूरत बदल दो हम देखें कि इसको इसका पता चलता है या इसका इन्हीं में शुमार है जिन को पता नहीं लगता .
सो जब बिलकीस आई तो इस से कहा की क्या तुम्हारा तख़्त ऐसा ही है?
बिलकीस ने कहा हाँ ऐसा ही है और हम को तो इस वाकेऐ की पहले ही तहकीक हो गई थी. और हम मती हो चुके हैं
और इसको गैर अल्लाह की वबा ने रोक रख्खा था और वह काफ़िर कौम में की थी.
बिलकीस से कहा गया कि तू इस महल में दाखिल हो, तो जब इसका सेहन देखा तो उसको पानी समझा और अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दीं. सुलेमान ने फ़रमाया यह तो एक महेल है जो शीशों से बनाया गया है. बिकीस कहने लगी ऐ मेरे परवर दिगार ! मैं ने अपने नफ़स पर ज़ुल्म किया था और अब मैं सुलेमान के साथ होकर रब्बुल आलमीन पर ईमान लाई."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (३७-४४).इस सुलेमानी कहानी के बाद बिला दम लिए अल्लाह समूद और सालेह के बयान पर आ जाता है और इनकी दो एक बातें बतला कर लूत को पकड़ता है और लूत की इग्लाम बाज़ उम्मत (समलैंगिक समूह)को. फिर शुरू कर देता है कुफ्फर के साथ सवाल जवाब अजीब सूरत रखते हैं. कुफ्फर अल्लाह से बुनयादी सवाल करते हैं और अल्लाह उनको बे बुन्याद जवाब देता है.सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (४५-६४)सुलेमान की दास्तान मुहम्मद की अफसाना निगारी का एक नमूना है. हैरत होती है कि मुस्लमान इस अल्लाह की बद तरीन तसनीफ (रचना) किताब पर ईमान रखते हैं जिसको बात करने का सलीका भी नहीं है और जिसकी मदद बन्दों ने तर्जुमानी और लग्व तफ़सीर से की. क्या अल्लाह जलीलुल कद्र अपनी छीछा लेदर ऐसी दास्तान गोई से कराएगा जिसमें झूट और मक्र की भरमार है.
जिन और परिंदों का लश्कर होना ? सुलेमान का हज़ारों परिंदों की हाज़री लेना? इनमें से किसी एक को गैर हाज़िर पाना ? सुलेमान के मुँह से ऐसे कलिमें अदा कराना
" वह इसकी गैर हजिरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबाह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे"दर असल मुहम्मद अपनी फितरत के मुताबिक कुरआन की शक्ल पेश करते है. वह मिज़ाजन ऐसे थे , शुक्र है बुलबुल ने हुज्जत न करके बद खबरी दी कि कमबख्त बिलकीस एक औरत हो कर मर्दों पर हुक्मरानी करती है? भला मुहम्मदी दीन में इसकी गुजाइश कहाँ?
सुलेमान क़दीम बादशाहों में पहली हस्ती हैं जो आला दर्जे की शख्सियत था और अपने वक़्त कि जदीद तरीन तालीमों से लबरेज़ था.वह मुफक्किर था, अच्छा शायर था, माहिरे नबातात (बनस्पति-ज्ञान)और माहिरे हयात्यात था (जीवन विद्या). तमीरात में पहला पहला अज़ीम आर्चितेक्ट हुआ है. उसकी तामीर को वालियान मुमल्कत देखने आया करते थे. घामड़ मुहम्मद ने सुलेमान के बारे में बेहूदा कहानी गढ़ी है देखिए कि देवों के देव, महादेव ने किस तरह मलकाए शीबा का तख़्त पलक झपकते ही सुलेमान के क़दमों पर रख दिया? अगर इसी कुरानी हालात में एक हिन्दू कहता है कि परबत को लेकर हनुमान जी उड़े तो मुसलमान हसेंगे और लाहौल पढेंगे. नकली रसूल के अल्लाह की कहानी आप नियत बाँध कर नमाज़ों में पढ़ते हैं.बादशाह की शान में आधीन देवों की गुस्ताखी मुलाहिजा हो - - -"जिसके पास किताब का इल्म था उसने कहा मैं इसको तेरे सामने तेरी आँख झपकने से पहले लाकर खड़ा कर सकता हूँ." इसी तरह कुरआन के दीगर मुकालमों पर गौर करें और मानें कि यह एक अनपढ़ की तसनीफ है, किसी अल्लाह की नहीं.कुरआन में अक्सर कुफ्फार की अल्लाह से तकरार है, उनको सवालों पर अल्लाह का जवाब है, ज़ाहिर है इसके बाद वह जवाब पर सवाल करते होंगे, जिस बे ईमान अल्लाह कभी पेश नहीं करता. मुस्लमान अल्लाह के अर्ध-सत्य को ही पूरा सच मान लेता है. यह कुरआन की धांधली है और मुसलमानों का भोला पन. कुफ्फार मक्का की एक मफ्रूज़ा तकरार पेश है.रसूल :--" अच्छा बतलाओ ये बुत बेहतर हैं या वह जात जो तुमको खुश्की और दरया की तारीकी में रास्ता सुझाता है? जो हवाओं को बारिश से पहले भेजता है जो खुश कर देती हैं.?"सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (63)
कुफ्फार:-- हमारे ये पत्थर के बने बुत, यह तो हैं जो हमें रह दिखलाते हैं और बारिश लाते हैं, जब इनके सामने हम दुआएँ मांगते हैं.रसूल :-- इसका सुबूत ?कुफ्फार:-- सुबूत ? चलो ठीक है हम अपने बुतों को साथ लेकर आते हैं, तुम अपने अल्लाह को लेकर आओ , मिल जायगा सुबूत .रसूल :-- आएं ! (बगलें झाकते हुए) "मेरा परवर दिगार तो आसमानों और ज़मीन का मालिक है, और (और और) बड़ा हिकमत वाला है और (और और) बड़ा ज़बरदस्त है और (और और) आप कह दीजिए कि जितनी मख्लूकात आसमानों और ज़मीन पर मौजूद हैं, कोई भी गैब की बात नहीं जनता बजुज़ अल्लाह के. इनको ये खबर नहीं कि वह दोबारा कब ज़िन्दा किए जाएँगे, बल्कि आखरत के बारे में इनका इल्म नेस्त हो गया है, बल्कि ये लोग इस शक में हैं , बल्कि ये लोग इससे अंधे बने हुए हैं,"सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (65-66)कुफ्फार :-ठीक है ठीक है हम लोग आधा घंटा तक अपने बुतों की इबादत करते हैं और तुम अपने अल्लाह की याद में गर्क हो जाओ, तब तक वह तुम्हारे पास ज़रूर आ जाएगा .( कुफ्फर अपने बुतों के आगे ढोल, मजीरा और दीगर साज़ लेकर रक्से-मार्फ़त करने लगे, महवे-ज़ात-गैब हुए और फ़ना फिल्लाह हो गए, कुछ होश अपना रहा न दुन्या का, खून के कतरे कतरे में मरूफियत दौड़ने लगी, आधा घंटा पल भर में बीत गया, खुद साख्ता रसूल ने उनको झकझोरते हुए कहा कमबख्तो! तुम पर अल्लाह की मार , वक़्त ख़त्म हवा) .कुफ्फार :- अल्लाह के रसूल! पकड़ में आया तुम्हारा अल्लाह?रसूल :- क्या खाक पकड़ में आता तुम्हारे हंगामा आराई के आगे. मैं तो अपनी नमाज़ों की रकात भी न याद रख सका कि कितनी अदा की तुम्हारे शोर गुल के आगे ." आप कह दीजिए कि तुम ज़मीन पर चल फिर कर देखो कि मुजरिमीन का अंजाम क्या हुवा और आप इन पर गम न कीजिए और जो कुछ ये शरारतें कर रहे हैं, इनपर तंग न होइए और ये लोग यूँ कहते हैं कि ये वादा ( क़यामत) कब आएगा? अगर तुम सच्चे हो ? आप कह दीजिए कि अजब नहीं कि जिस अज़ाब की तुम जल्दी मचा रहे हो, उसमें से कुछ तुम्हारे पास ही आ लगा हो."सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (6-72)कुफ्फार :- तो गारे हरा चलें? शायद वहां मिले अल्लाह?"और आप का रब लोगों पर बड़ा फज़ल रखता है लेकिन अक्सर आदमी शुकर नहीं करते और आपके रब को सब खबर हैजो कुछ इनके दिलों में मुख्फी है और जिसको वह एलानिया करते हैं और आसमान और ज़मीन पर कोई मुख्फी चीज़ नहीं जो लौहे-महफूज़ में न हो."सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (७४-७५)छोडिए अल्लाह को, ऐ अल्लाह के फर्जी रसूल! जिब्रील अलैहिस सलाम को ही बुलाइए."ये कुफ्फार जब भी मुझको देखते हैं तो इनको तमस्खुर सूझता है.
अल्लाह ने छे दिन में दुन्या बनाई फिर सातवें दिन आसमान पर कायम हुआ.
वह नूर अला नूर है.
तुहें औंधे मुँह जहन्नम में डाल दिया जायगा और वह बुरी जगह है.
आप मुर्दों को नहीं सुना सकते, और न बहरों को अपनी आवाज़ सुना सकते हैं. जब वह पीठ फेर के चल दें और न आप अंधों को गुमराही से रास्ता दिखलाने वाले हैं. आप तो सिर्फ उन्हीं को सुना सकते हैं जो जो हमारी आयतों पर यकीन रखते हों. फिर वह मानते हैं और जब उन पर वादा पूरा होने का होगा तब उनके लिए हम ज़मीन से एक जानवर निकालेंगे वह इनसे बातें करेगा, कि लोग हमारी आयतों पर यकीन न लाते थे और जिस दिन हम हर उम्मत में से एक एक गिरोह उन लोगों का उन लोगों का जमा करेंगे जो हमारी आयतों को झुटलाया करते थे और उनको कहा जायगा यहाँ तक कि जब वह हाज़िर हो जाएँगे तो अल्लाह इरशाद फरमाएगा कि क्या तुमने हमारी आयतों को झुटलाया था, हालाँकि तुम उनको अपने अहाता ऐ इल्मी में भी नहीं लाए बल्कि और भी क्या क्या काम करते रहे "
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (७४-८० )
कुफ्फार:-- (क़हक़हा)"और तू पहाड़ों को देख रहा है, उनको ख़याल कर रहा है कि वह जुंबिश न करेंगे? हालां कि वह बाल की तरह उड़ते फिरेंगे . ये अल्लाह का काम है जिसने हर चीज़ को मज़बूत बनाये रखा है. यह यकीनी बात है कि अल्लाह तुम्हारे हर फेल की पूरी खबर रखता है."सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (८८)कुफ्फार :-- (क़हक़हा)


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान