Saturday 28 January 2012

सूरह नह्ल 16

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह नह्ल 16

(दूसरी किस्त) 
सूरतें क्या खाक में होंगी ?



मुहम्मद ने कुरआन में कुदरत की बख्शी हुई नेमतों का जिस बेढंगे पन से बयान किया है, उसका मज़ाक़ ही बनता है न कि कोई असर ज़हनों पर ग़ालिब होता हो. बे शुमार बार कहा होगा- - - 


''मफ़िस समावते वमा फ़िल अरज़े'' यानी आसमानों को( अनेक कहा है ) और ज़मीन (को केवल एक कहा है ). जब कि आसमान ,कायनात न ख़त्म होने वाला एक है और उसमें ज़मीने, बे शुमार हैं.
वह बतलाते हैं पहाड़ों को ज़मीन पर इस लिए ठोंक दिया कि तुम को लेकर ज़मीन डगमगा न पाए.
परिंदों के पेट से निकले हुए अंडे को बेजान बतलाते है और अल्लाह की शान कि उस बेजान से जान दार परिन्द निकल देता है.
ज़मीन पर रस्ते और नहरें भी अल्लाह की तामीर बतलाते हैं. कश्ती और लिबासों को भी अल्लाह की दस्त कारी गर्दानते है.
मुल्लाजी कहते हैं अल्लाह अगर अक्ल ही देता तो दस्तकारी कहाँ से आती? मुहम्मद के अन्दर मुफक्किरी या पयंबरी फ़िक्र तो छू तक नहीं गई थी कि जिसे हिकमत, मन्तिक़ या साइंस कहा जाए.
ज़मीन कब वजूद में आई?
कैसे इरतेकाई सूरतें इसको आज की शक्ल में लाईं, इन को इससे कोई लेना देना नहीं, बस अल्लाह ने इतना कहा'' कुन'', यानी होजा और ''फयाकून'' हो गई.
जब तक मुसलमान इस कबीलाई आसन पसंदी को ढोता रहेगा, वक़्त इसको पीछे करता जाएगा. जब तक मुसलमान मुसलमान रहेगा उसे यह कबीलाई आसन पसंदी ढोना ही पड़ेगा, जो कुरआन उसको बतलाता है. मुसलमानों के लिए ज़रूरी हो गया है कि वह इसे अपने सर से उठा कर दूर फेंके और खुल कर मैदान में आए.

देखिए कि ब्रिज नारायण चकबस्त ने दो लाइनों में पूरी मेडिकल साइंस समो दिया है। 


ज़िन्दगी क्या है? अनासिर में ज़हूरे तरतीब,
मौत क्या है? इन्ही अजजा का परीशां होना। 

कुरआन की सारी हिकमत, हिमाक़त के कूड़े दान में डाल देने की ज़रुरत है अगर ग़ालिब का यह शेर मुहम्मद की फ़िक्र को मयस्सर होता तो शायद कुरानी हिमाक़त का वजूद ही नहोता - - - 


सब कहाँ कुछ लाला ओ गुल में नुमायाँ हो गईं,
सूरतें क्या खाक में होंगी जो पिन्हाँ हो गईं'' 


देखिए कि मुहम्मदी हिमाक़तें क्या क्या गुल खिलाती हैं - - -  

''बखुदा आप से पहले जो उममतें हो गुजरी हैं, उनके पास भी हमने भेजा था (?) सो उनको भी शैतान ने उनके आमाल ए  मुस्तहसिन करके दिखलाए, पस वह आज उन का रफ़ीक था और उनके वास्ते दर्द नाक सज़ा है.''

सूरह नह्ल पर१४ आयत (६३)


मुहम्मद का एलान कि कुरआन अल्लाह का कलाम है मगर आदतन उसके मुँह से भी "बखुदा" निकलता  है। "जो उम्मतें हो गुज़री हैं, उनके पास भी हमने भेजा था (?)''

 क्या भेजा था?
'' गोया मतलब शेर का बर बतने-शायर रह गया''
मूतराज्जिम मुहम्मद का मददगार बन कर ब्रेकेट में (रसूलों को) लिख देता है। यह कुरआन का ख़ासा है  

''और हम ने आप पर यह किताब सिर्फ इस लिए नाज़िल की है कि जिन उमूर पर लोग इख्तेलाफ़ कर रहे हैं, आप लोगों पर इसे ज़ाहिर फ़रमा दें और ईमान वालों को हिदायत और रहमत की ग़रज़ से. और तुम्हारे लिए मवेशी भी गौर दरकार हैं, इन के पेट में जो गोबर और खून है, इस के दरमियान में से साफ़ और आसानी से उतरने वाला दूध हम तुम को पीने को देते हैं. और खजूर और अंगूरों के फलों से तुम लोग नशे की चीज़ और उम्दा खाने चीज़ें बनाते हो. बे शक इसमें समझने के लिए काफी दलीलें हैं जो अक्ल रखते हैं.''

सूरह नह्ल पर१४ आयत (६४-६७)

कठ मुल्ले ने गोबर, खून और दूध का अपने मंतिक बयानी से कैसा गुड गोबर किया है. 

''और आप के रब ने शाहेद की मक्खी के जी में यह बात डाली कि तू पहाड़ में घर बनाए और दरख्तों में और जो लोग इमारते बनाते हैं इनमें, फिर हर किस्म के फलों को चूसती फिर, फिर अपने रब के रास्तों पर चल जो आसन है. उसके पेट में से पीने की एक चीज़ निकलती है, जिस की रंगतें मुख्तलिफ होती हैं कि इन में लोगों के लिए शिफ़ा है. इस में इन लोगों के लिए बड़ी दलील है जो सोचते हैं.''

सूरह नह्ल पर१४ आयत (६८-६९)

मुहम्मद का मुशाहिदा शाहेद की मक्खियों पर कि जिनको इतना भी पता नहीं की मक्खियाँ फलों का नहीं फूलों का रस चूसती हैं। रब का कौन सा रास्ता है जिन पर हैवान मक्खियाँ चलती हैं? या अल्लाह कहाँ मक्खियों के रास्तों पर हज़ारों मील योमिया मंडलाया करता है? मगर तफ़सीर निगार कोई न कोई मंतिक गढ़े होगा. 

''और अल्लाह तअला ने तुम को पैदा किया, फिर तुम्हारी जान कब्ज़ करता है और बअज़े तुम में वह हैं जो नाकारा उम्र तक पहंचाए जाते हैं कि एक चीज़ से बा ख़बर होकर फिर बे ख़बर हो जाता है . . . और अल्लाह तअला ने तुम में बअज़ों को बअज़ों पर रिज्क़ में फ़ज़ीलत दी है, वह अपने हिस्से का मॉल गुलामों को इस तरह कभी देने वाले नहीं कि वह सब इस पर बराबर हो जावें. क्या फिर भी खुदाए तअला की नेमत का इंकार करते हो. और अल्लाह तअला ने तुम ही में से तुम्हारे लिए बीवियाँ बनाईं और बीवियों में से तुम्हारे लिए बेटे और पोते पैदा किए और तुम को अच्छी चीज़ें खाने कोदीं, क्या फिर भी बे बुन्याद चीजों पर ईमान रखेंगे . . .

सूरह नह्ल पर१४ आयत (७०-७२)

न मुहम्मद कोई बुन्याद कायम कर पा रहे हैं और न मुखालिफ़ को बे बुन्याद साबित कर पा रहे हैं। बुत परस्त भी बुतों को तवस्सुत मानते थे, न कि अल्लाह. तवस्सुत का रुतबा छीन लिया बड़े तवस्सुत बन कर खुद मुहम्मद ने. मुजरिम बेजान बुत कहाँ ठहरे? मुजरिम तो गुनेह्गर मुहम्मद साबित हो रहे हैं जिन्हों ने आज तक करोरो इंसानी जिंदगियाँ वक़्त से पहले खत्म कर दीं. अफ़सोस कि करोरो जिंदगियां दाँव पर लगी हुई हैं। 

''और अल्लाह तअला ने तुम को तुम्हारी माओं के पेट से इस हालत में निकाला कि तुम कुछ भी न जानते थे और इसने तुम को कान दिए और आँख और दिल ताकि तुम शुक्र करो. क्या लोगों ने परिंदों को नहीं देखा कि आसमान के मैदान में तैर रहे हैं, इनको कोई नहीं थामता. बजुज़ अल्लाह के, इस में ईमान वालों के लिए कुछ दलीलें हैं. और अल्लाह तअला ने तुम्हारे लिए जानवरों के खाल के घर बनाए जिन को तुम अपने कूच के दिन हल्का फुल्का पाते हो और उनके उन,बल और रोएँ से घर की चीज़ें बनाईं . . . और मखलूक के साए . . . पहाड़ों की पनाहें . . . ठन्डे कुरते . . . और जंगी कुरते बनाए ताकि तुम फरमा बरदार रहो. फिर भी अगर यह लोग एतराज़ करें तो आप का ज़िम्मा है साफ़ साफ़ पहुंचा देना.

सूरह नह्ल पर१४ आयत (७८-८२)

यह है कुरानी हकीकत किसी पढ़े लिखे गैर मुस्लिम के सामने दावते-इस्लाम के तौर पर ये आयतें पेश करके देखिए तो वह कुछ सवाल उल्टा आप से खुद करेगा . . .

-अल्लाह ने कान दिए और आँख और दिल - - - सुनने, देखने और एहसास करने के लिए दिए हैं कि शुक्र अदा करने के लिए?

- और अब हवाई जहाज़, रॉकेट और मिसाइलें कौन थामता है? ईमान वालों के पस अक़ले-सलीम है?

-अब हम जानवरों की खाल नहीं बुलेट प्रूफ़ जैकेट पहेनते हैं उन,बाल और रोएँ का ज़माना लद गया, हम पोलोथिन युग में जी रहे हैं, तुम भी छोड़ो, इस बाल की खाल में जीना और मरना. जो कुछ है बस इसीदुन्या में और इसी जिंदगी में है.
-हम बड़े बड़े टावर बना रहे हैं और मुस्लमान अभी भी पहाड़ों में रहने की बैटन को पढ़ रहा है? और पढ़ा रहा है?
-बड़े बड़े साइंसदानों का शुक्र गुज़र होने के बजाय इन फटीचर सी बातों पर ईमान लाने की बातें कर रहे हो.
- तुम्हारे इस उम्मी रसूल पर जो बात भी सलीके से नहीं कर पता? तायफ़ के हाकिम ने इस से बात करने के बाद ठीक ही पूछा था '' क्या अल्लाह को मक्का में कोई ढंग का पढ़ा लिखा शख्स नहीं मिला था जो तुम जैसे जाहिल को पैग़म्बरबना दिया।'' 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 22 January 2012

सूरह नह्ल १६- पारा १४

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह नह्ल 16
(पहली किस्त)
सच का एलान

क़ुरआन मुकम्मल दरोग़, किज़्ब, लग्व, मिथ्य, असत्य और झूट का पुलिंदा है। इसके रचनाकार दर परदा, अल्लाह बने बैठे मुहम्मद सरापा मक्र, अय्यारी, बोग्ज़, क़त्लो-गारत गरी, सियासते-ग़लीज़, दुश्मने इंसानियत और झूटे हैं. इनका तख्लीक़ कार अल्लाह इंसानों को तनुज्ज़ली के ग़ार में गिराता हुवा इनकी बिरादरी कुरैशियों पर दरूद-सलाम भिजवाता रहेगा, इनके हराम ख़ोर ओलिमा बदले में खुद भी हलुवा पूरी खाते रहेंगे और करोरों मुसलमानों को अफ़ीमी इस्लाम की नींद सुलाए रखेंगे.
मैं एक मोमिन हूँ जो कुछ लिखता हूँ सदाक़त की और ईमान की छलनी से बात को छान कर लिखता हूँ.
मैं क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा मुसम्मी (बमय अलक़ाब) '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' को लेकर चल रहा हूँ जो हिंदो-पाक में अपना पहला मुक़ाम रखते हैं. मैं उनका एहसान मंद हूँ कि उनसे हमें इतनी क़ीमती धरोहर मिली. मौलाना ने बड़ी ईमान दारी के साथ अरबी तहरीर का बेऐनेही उर्दू में अक्षरक्ष: तर्जुमा किया जोकि बाद के आलिमों को खटका और उन्होंने तर्जुमें में कज अदाई करनी शुरू करदी, करते करते 'कूकुर को धोकर बछिया' बना दिया.
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' ने इस्लामी आलिम होने के नाते यह किया है कि ब्रेकेट(मनमानी) के अन्दर अपनी बातें रख रख कर क़ुरआन की मुह्मिलात में माने भर दिए हैं, मुहम्मद की ग्रामर दुरुस्त करने की कोशिश की है, यानी तालिब इल्म अल्लाह और मुहम्मद के उस्ताद बन कर उनके कच्चे कलाम की इस्लाह की है, उनकी मुताशाइरी को शाइरी बनाने की नाकाम कोशिश की है.'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' ने एक और अहेम काम किया है कि रूहानियत के चले आ रहे रवायती फार्मूले और शरीयत की बारीकियों का एक चूँ चूँ का मुरब्बा बना कर नाम रखा 'तफसीर'। जो कुछ कुरआन के तल्ख़ जुज़ थे मौलाना ने इस मुरब्बे से उसे मीठा कर दिया है. तफसीर हाशिया में लिखी है , वह भी मुख़फ़फ़फ़ यानी short form में जिसे अवाम किया ख़वास का समझना भी मोहल है.
दूसरी बात मैं यह बतला दूँ कि कुरआन के बाद इस्लाम की दूसरी बुनियाद है हदीसें. हदीसें बहुत सी लिखी गई हैं जिन पर कई बार बंदिश भी लगीं मगर ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की हदीसें मुस्तनद मानी गई हैं मैंने इनको ही अपनी तहरीर के लिए मुन्तखिब किया है। ज़ईफ़ कही जाने वाली हदीसों को छुवा भी नहीं. याद रखें कि हदीसं ही इस्लामी इतिहास की बुन्याद हैं अगर इन्हें हटा दिया जाए तो इस्लाम का कोई मुवर्रिख न मिलेगा जैसे तौरेत या इंजील के हैं क्यूं कि यह उम्मी का दीन है. ज़ाहिर है मेरी मुखालिफत में वह लोग ही आएँगे जो मुकम्मल झूट कुरआन पर ईमान रखते है और सरापा शर मुहम्मद को ''सललललाहो अलैहे वसल्लम'' कहते हैं. जब कि मैं अरब की आलमी इंसानी तवारीख तौरेत Old Testament को आधा सच और आधा झूट मान कर अपनी बात पर कायम हूँ।
अब आइए मुकम्मल झूट और सरापा शर कि तरफ . . .
सूरह नह्ल १६- परा १४


''अल्लाह तअला का हुक्म पहुँच चुका है, सो तुम इस में जल्दी मत मचाओ. वह लोगों के शिर्क से पाक और बरतर है. वह फरिश्तों को वह्यी यानी अपना हुक्म भेज कर अपने बन्दों पर जिस पर चाहे नाज़िल फ़रमाते हैं कि ख़बरदार कर दो कि मेरे सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं है सो मुझ से डरते रहो. आसमान को ज़मीन को हिकमत से बनाया. वह उनके शिर्क से पाक है. इन्सान को नुतफ़े से बनाया फिर वह यकायक झगड़ने लगा. उसने चौपाए को बनाया, उनमें तुम्हारे जाड़े का सामान है और बहुत से फ़ायदे हैं और उन में से खाते भी हो. और उनकी वजेह से तुम्हारी रौनक़ भी है जब कि शाम के वक़्त लाते हो और जब कि सुब्ह के वक़्त छोड़ देते हो. और वह तुम्हारे बोझ भी ऐसे शहर को ले जाते हैं जहाँ तुम बगैर जान को मेहनत में डाले हुए नहीं पहुँच सकते थे. वाक़ई तुम्हारा रब बड़ी शफ़क़त वाला और रहमत वाला है. और घोड़े और खच्चर और गधे भी पैदा किए ताकि तुम उस पर सवार हो और ज़ीनत के लिए भी.''
सूरह नह्ल १६- आयत (१-८)
कुर आन की आठ आयतें हैं. मुताराज्जिम ने अल्लाह की मदद के लिए काफी रफुगरी की है मगर मुहम्माग के फटे में पेवंद तो नहीं लगा सकता.
१-अल्लाह तअला का हुक्म पहुँच चुका है . . . तो कहाँ अटका है?
२-सो तुम इस में जल्दी मत मचाओ - - - किसको जल्दी थी, सब तुमको पागल दीवाना समझते थे.
३-वह लोगों के शिर्क से पाक और बरतर है. . .क्या है ये शिर्क? अल्लाह के साथ किसी दुसरे को शरीक करना, न ? फिर तुम क्यूं शरीक हुए फिरते हो.
४- अल्लाह को तुम जैसा फटीचर बन्दा ही मिला था कि तुम पर हुक्मरानी नाज़िल कर दिया.
५-सो मुझ से डरते रहो - - - आख़िर अल्लाह खुद से बन्दों का डरता क्यूं है?
६-अल्लाह इन्सान को कभी नुतफ़े से बनता है, कभी बजने वाली मिटटी से, कभी, उछलते हुए पानी से तो कभी खून के लोथड़े से? तुम्हारा अल्लाह है या चुगद?
७- इन्सान को अगर अल्लाह नेक नियती से बनता तो झगडे की नौबत ही न आती.
८- अब इंसान को छोड़ा तो चौपाए खाने पर आ गए, उनकी सिफ़तें गिनाते है जिस पर अलिमान दीन किताबों के ढेर लगाए हुए हैं, न उन पर रिसर्च, न उनकी नस्ल अफ़ज़ाइश पर काम, न उनका तहफ़फ़ुज़ बल्कि उनका शिकार और उन पर ज़ुल्म देखे जा सकते हैं।


'' और वह ऐसा है कि उसने दरया को मुसख़ख़िर (प्रवाहित) किया ताकि उस में से ताजः ताजः गोश्त खाओ और उसमें से गहना निकालो जिसको तुम पहेनते हो. और तू कश्तियों को देखता है कि वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो. और उसने ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने न लगे. और उसने नहरें और रास्ते बनाए ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको . . . और जो लोग अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हैं वह किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते और वह ख़ुद ही मख्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, जिंदा नहीं और इस की खबर नहीं कि कब उठाए जाएँगे.
सूरह नह्ल १६- आयत (१४-२१)

बगैर तर्जुमा निगारों के सजाए यह कुरआन की उरयाँ इबारत है. मुहम्मद बन्दों को कभी तू कहते हैं कभी तुम, ऐसे ही अल्लाह को. कभी ख़ुद अल्लाह बन कर बात करने लगते हैं तो कभी मुहम्मद बन कर अल्लाह की सिफ़तें बयान करते हैं. कहते हैं ''वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो'' अगर ओलिमा उनकी रोज़े अव्वल से मदद गार न होते तो कुरआन की हालत ठीक ऐसी ही होती ''कहा उनका वो अपने आप समझें या खुदा समझे.'' कठ मुल्ले नादार मुसलमानों को चौदा सौ सालों से ये बतला कर ठग रहे है कि अल्लाह ने ''ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने न लगे.'' मुहम्मद इंसान के बनाए नहरें और रास्ते को भी अल्लाह की तामीर गर्दान्ते हैं. भूल जाते हैं कि इन्सान रास्ता भूल कर भटक भी जाता है मगर कहते हैं '' ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको'' मख्लूक़ को मुर्दा कहते हैं, फिर उनको मौत से बे खबर बतलाते हैं. ''वह ख़ुद ही मख्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, जिंदा नहीं और इस की खबर नहीं कि कब उठाए जाएँगे''
मुसलामानों की अक्ल उनके अकीदे के आगे खड़ी ज़िन्दगी की भीख माँग रही है मगर अंधी अकीदत अंधे कानून से ज़्यादा अंधी होती है उसको तो मौत ही जगा सकती है, मगर मुसलमानों! तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. जागो.
मुहम्मद जब अपना कुरआन लोगों के सामने रखते, लेहाज़न लोग सुन भी लेते, तो बगैर लिहाज़ के कह देते '' क्या रक्खा है इन बातों में ? सब सुने सुनाए क़िस्से हैं जिनकी कोई सनद नहीं'' ऐसे लोगों को मुहम्मद मुनकिर (यानी इंकार करने वाला) कहते हैं और उन्हें वह क़यामत के दिन से भयभीत करते हैं. एक ख़ाका भी खीचते हैं क़यामत के दिन का कि काफ़िरो-मुनकिर को किस तरह अल्लाह जहन्नम रसीदा करता है और ईमान लाने वालों को किस एहतेमाम से जन्नत में दाखिल करता है. काफिरों मुशरिकों के लिए . . .
'' सो जहन्नम के दवाज़े में दाखिल हो जाओ, इसमें हमेशा हमेशा को रहो, ग़रज़ तकब्बुर करने वालों का बुरा ठिकाना है.'' और मुस्लिमों के लिए ''फ़रिश्ते कहते हैं . . .अस्सलाम अलैकुम! तुम जन्नत में चले जाना अपने आमाल के सबब.''
सूरह नह्ल १६- आयत (२२-३४)
इतना रोचक प्लाट, और इतनी फूहड़ ड्रामा निगारी.
मुशरिकीन ऐन मुहम्मद का कौल दोहराते हुए पूछते हैं
''अगर अल्लाह तअला को मंज़ूर होता तो उसके सिवा किसी चीज़ की न हम इबादत करते और न हमारे बाप दादा और न हम बगैर उसके हुक्म के किसी चीज़ को हराम कह सकते'' इस पर मुहम्मद कोई माक़ूल जवाब न देकर उनको गुमराह लोग कहते हैं और बातें बनाते हैं कि माज़ी में भी ऐसी ही बातें हुई हैं कि पैगम्बर झुटलाए गए हैं . . . जैसी बातें करने लगे.
सूरह नह्ल १६- आयत (35-३७)

''और लोग बड़े ज़ोर लगा लगा कर अल्लाह कि क़समें खाते हैं कि जो मर जाता है अल्लाह उसको जिंदा करेगा, क्यों नहीं? इस वादे को तो उस ने अपने ऊपर लाज़िम कर रक्खा है, लेकिन अक्सर लोग यक़ीन नहीं करते. . . . हम जिस चीज़ को चाहते हैं, पस इस से हमारा इतना ही कहना होता है कि तू हो जा, पस वह हो जाती है.''
सूरह नह्ल १६- आयत (३८+४०)
यह सूरह मक्का की है जब मुहम्मद खुद राह चलते लोगों से क़समें खा खा कर और बड़े ज़ोर लगा लगा कर लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाते कि तुम मरने के बाद दोबारा क़यामत के दिन ज़िन्दा किए जाओगे और लोग इनका मज़ाक उड़ा कर आगे बढ़ जाते. मुहम्मद ने अल्लाह को कारसाज़े-कायनात से एक ज़िम्मेदार मुलाज़िम बना दिया है. उनका अल्लाह इतनी आसानी से जिस काम को चाहता है इशारे से कर सकता है तो अपने प्यारे नबी को क्यूँ अज़ाब में मुब्तिला किए हुए है कि लोगों को इस्लाम पर ईमान लाने के लिए जेहाद करने का हुक्म देता है? यह बात तमाम दुन्या के समझ में आती है मगर नहीं आती तो ज़ीशान और आलीशानों के।
''४१ से ५५'' आयत तक मुहम्मद ने अपने दीवान में मोहमिल बका है जिसको ज़िक्र करना भी मुहाल है। उसके बाद कहते हैं
''और ये लोग हमारी दी हुई चीज़ों में से उन का हिस्सा लगते हैं जिन के मुताललिक़ इन को इल्म भी नहीं. क़सम है ख़ुदा की तुम्हारी इन इफतरा परदाज़यों की पूछ ताछ ज़रूर होगी.
सूरह नह्ल १६- आयत (५६)
मुहम्मद ज़मीन पर पूजे जाने वाले बुत लात, मनात, उज़ज़ा वगैरा पर चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे को देख कर ललचा रहे हैं कि एक हवा का बुत बना कर सब का बंटा धार किया जा सकता है और इन चढ़ावों पर उनका क़ब्ज़ा हो सकता है, वह अपने इस मंसूबे में कामयाब भी हैं.एक अल्लाह वाहिद का दबदबा भी क़ायम हो गया है और इन्सान तो पैदायशी मुशरिक है, सो वह बना हुवा है. मुस्लमान आज भी पीरों के मज़ारों के पुजारी हैं,मगर हिदू बालाजी और तिरुपति मंदिरों के श्रधालुओं का मज़ाक उड़ाते हुए.

''और अल्लाह के लिए बेटियां तजवीज़ करते हैं सुबहान अल्लाह!और अपने लिए चहीती चीजें.''
सूरह नह्ल १६- आयत (५७)
मुहम्मद भटक कर गालिबन ईसाई अकीदत पर गए हैं जो कि खुदा के मासूम फरिश्तों को मर्द और औरत से बाला तर समझते हैं. उनके आकृति में पर, पिश्तान, लिंग आदि होते हैं मगर पवित्र आकर्षण के साथ. मुहम्मद को वह लडकियाँ लगती हैं, वह मानते हैं कि ऐसा ईसाइयों ने खुदा के लिए चुना. और कहते है खुद अपना लिए चाहीती चीज़ यानि बेटा.मूर्ति पूजकों के साथ साथ ये मुहम्मद का ईसाइयों पर भी हमला है.

''और जब इन में से किसी को औरत की ख़बर दी जाए तो सारे दिन उस का चेहरा बे रौनक रहे और वह दिल ही दिल में घुटता रहे, जिस चीज़ की उसको खबर दी गई है इसकी आर से लोगों से छुपा छुपा फिरे कि क्या इसे ज़िल्लत पर लिए रहे या उसको मिटटी में गाड़ दे. खूब सुन लो उन की ये तजवीज़ बहुत बुरी है.''
सूरह नह्ल १६- आयत (५८-५९)
मुल्लाओं की उड़ाई हुई झूटी हवा है कि रसूल को बेटियों से ज़्यादः प्यार हुवा करता था. यह आयत कह रही है कि वह बेटी पैदा होने को औरत की पैदा होने की खबर कहते हैं. बेशक उस वक़्त क़बीलाई दस्तूर में अपनी औलाद को मार देना कोई जुर्म था बेटी हो या बेटा. आज भी भ्रूण हत्या हो रही है. मुहम्मद से पहले अरब में औरतों को इतनी आज़ादी थी कि आज भी जितना मुहज्ज़ब दुन्या को मयस्सर नहीं. इस मौज़ू पर फिर कभी.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 13 January 2012

सूरह हुज्र,१५ पारा१४ (२१-९७)

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह हुज्र,१५ पारा१४
(दूसरी किस्त)
 
मैजिक आई 



अल्ताफ हुसैन 'हाली' (हलधर) कहते हैं अँधेरा जितना गहरा होता है, मैजिक आई उतनी ही चका चौंध और मोहक लगती है.

हाली साहब सर सय्यद के सहायकों में एक थे, रेडियो कालीन युग था जब रेडयो में एक मैजिक आई हुवा करती थी, श्रोता गण उसी पर आँखें गडोए रहते थे. हाली का अँधेरे से अभिप्राय था निरक्षरता.

कहते हैं कि चम्मच से खाने पर भी मुल्लाओं का कटाक्ष है जब कि यह साइंसटिफिक है, क्यूँकि इंसान की त्वचा बीमारी के कीटाणुओं को आमन्तिरित करती है.

सर सय्यद को मुल्लाओं ने काफ़िर होने का फ़तवा दे दिया था. पता नहीं मौलाना हाली को बख्शा या नहीं.
कुरआन का सपाट तर्जुमा और उस पर बेबाक तबसरा पहली बार शायद अपने भारतीय माहौल में मैंने किया है. मेरे विश्वास पात्र सरिता मैगज़ीन के संपादक स्वर्गीय विश्व नाथ जी ने कहा इतना तो मैं भी समझता हूँ जो तुम समझते हो मगर इसका फायदा क्या? मुफ्त में अंगार हाथ में ले रहे हो और मेरे लेख की पंक्तियाँ उन्हें अंगार लगीं, सरिता में जगह देने से इंकार कर दिया.

कुरआन को नग्नावस्था में देखने के बाद कुकर्मियों की रालें टपक पड़ती हैं कि एक अनपढ़, उम्मी का नाम धारण करके अगर इतना बड़ा पैगम्बर बन सकता है तो मैं क्यूँ नहीं? न बड़ा तो मिनी पैगम्बर ही सही. गोया चौदह सौ सालों से मुहम्मद की नकल में जगह जगह मिनी पैगम्बर कुकुर मुत्ते की तरह पैदा हो रहे हैं.

इसी सिलसिले के ताज़े और कामयाब पैगम्बर मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी हुए हैं. यह मुहम्मद की ही भविष्य वाणी के फल स्वरुप हैं कि ''ईसा एक दिन मेहदी अलैहिस्सलाम बन कर आएँगे और दज्जाल को क़त्ल कर के इस्लाम का राज क़ायम करेंगे .''

मिर्ज़ा ने मुहम्मद की बकवास का फ़ायदा उठाया, और बन बैठे'' मेंहदी अलैहिस्सलाम'' क़दियानियों की मस्जिदें तक कायम हो गईं, वह भी पाकिस्तान लाहोर में. उसमें इस्लामी कल्चर के मुवाफिक क़त्ल ओ ग़ारत गरी भी होने लगी. पिछले दिनों ७२ अहमदिए शहीद हुए. उस शहादत की याद आती है जब मुहम्मद का वंश कर्बला में अपने कुकर्मों का परिणाम लिए इस ज़मीन से उठ गया था, वह भी ७२ थे.
उम्मी (निरक्षर) मुहम्मद सदियों पहले अंध वैश्वासिक युग में हुए. उन्होंने इर्तेक़ा (रचना क्रिया) के पैरों में ज़ंजीर डाल कर युग को और भी सदियों पीछे ढकेल दिया. इस्लाम से पहले अरब योरोप से आगे था, खुद इसे योरोपियन दानिश्वर तस्लीम करते हैं और अनजाने में मुस्लिम आलिम भी मगर मुहम्मद ने सिर्फ अरब का ही नहीं दुन्या के कई टुकड़ों का सर्व नाश कर दिया.
युग का अँधेरा दूर हो गया है, धरती के कई हिस्सों पर रातें भी दिन की तरह रौशन हो गई मगर मुहम्मद का नाज़िला (प्रकोपित) अंधकार मय इस्लाम अपनी मैजिक आई लिए मुसलमानों को सदियों पुराने तमाशे दिखा रहाहै
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आइए अब अन्धकार युग के मैजिक आई कि तरफ़ चलें . . . 
''और हम ही हवाओं को भेजते हैं जो कि बादलों को पानी से भर देती हैं फिर हम ही आसमान से पानी बरसते हैं फिर तुम को पीने को देते हैं और तुम जमा करके न रख सकते थे और हम ही ज़िन्दा करते मारते हैं और हम ही रह जाएँगे.सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (२१-२३)कुदरत अपने फ़ितरी अमल पर गामज़न रहते हुए मुहम्मदी अल्लाह की बातों पर हँस रही होगी न रो रही होगी जो उसकी सिफ्तों को अपने नाम कर रहा है और बदले में खुद को पुजवा रहा है. कमज़रफी के साथ खुद सताई कर रहा है.
''बेशक आप का रब हिकमत वाला है और हमने इन्सान को बजती हुई मिटटी से जो कि सड़े हुए गारे की बनी हुई थी पैदा किया. और जिन्न को इस के क़ब्ल आग से कि वह एक गरम हवा हुवा करती थी, पैदा किया."सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (२५-२७)ये बजती हुई मिटटी भी खूब रही? जिससे इन्सान बनाया गया? आदमी बोलता है, गाता है, तिलावत भी करता है मगर बजता कहाँ है? हाँ कभी कभी बदबू दार हवा छोड़ने से या पेट का हारमोनियम फूलने से रियाह खरिज हो जाने की वजेह बज जाता है. ऐसे गंधैले इंसान का मंसूबा जब साफ सुथरे फरिश्तों के सामने अल्लाह रखता है कि मैं इसको वजूद में ला रहा हूँ तो तमाम फ़रिश्ते उसको सजदा करने पर राज़ी हो जाते हैं मगर इब्लीस भड़क उठता है. इस की कहानी जानी पहचानी दूर तक कुरआन में जो बार बार दोहराई जाती है, शुरू हो जाती है . . .
मुहम्मद का एक और शगूफा की जिन्न को गरम हवा से पैदा किया. खुद इनको अल्लाह ने दरोग और मक्र से पैदा किया।
 
(आदम के वजूद और इब्ल्लीस की बग़ावत की कहानी उम्मी की ज़ुबानी कई बार दोहराई जाती है)सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (२८-४४)''बेशक अल्लाह से डरने वाले बाग़ों और चश्मों में होंगे. तुम उसमें सलामती और अम्न से दाखिल होगे. उनके दिलों में जो कीना था वह हम सब दूर कर देंगे कि सब भाई भाई की तरह रहेंगे तख्तों पर आमने सामने, वहां इनको ज़रा भी तकलीफ़ नहीं होगी. और न वहां से निकाले जाएँगे. आप मेरे बन्दों को इत्तेला दे दीजिए कि मैं बड़ा मगफेरत वाला हूँ और मेरी सजा दर्दनाक सजा है.''सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (४५-५०)मुहम्मद से डरने वालों की ही खैर है. कल जब वह हयात थे तो उनके साथी हथियार बन्दों से डरना पड़ता था, उनके बाद उनकी खड़ी की गई फौजों से, फिर उन फौजयों की लश्करों और जज़िया से, फिर ओलिमा के फ़तुओं से और अब इस्लामी गुंडों से डरना पड़ रहा है. हम बागों और चश्मों में तो नहीं, हाँ झुग्गी और झोपड़ियों में रहते चले आए हैं और मुहम्मदी अल्लाह ने चाहा तो हमेशा रहेंगे. सब्र,सुकून अम्न और अल्लाह के डर के साथ. अल्लाह ऊपर हमारे दिलों के तमाम कीना, बुग्ज़ दूर कर देगा दुन्या में दूर करके हम सब को नेक इन्सान क्यूं नहीं बना देता? आखिर उसकी भी तो कुछ मजबूरी होगी, मगर ऐ अल्लाह जो भी हो तू है पक्का दोगला. इत्तेला देता है ''मैं बड़ा मगफेरत वाला हूँ ''और अगली साँस में ही कहता है ''मेरी सज़ा दर्दनाक सज़ा है।'' 
 
''अल्लाह ने इस सूरह में फिर किस्से इब्राहीमी और किस्से लूत बड़ी बेमज़ा तरह से दोहराया है जिसे सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (५१-७६) तक देखा जा सकताहै।
''और हुज्र वालों ने पैगम्बर को झूठा बतलाया और हमने उनको अपनी निशानयाँ दीं सो वह लोग उस से रू गरदनी करते रहे और वह लोग पहाड़ों को तराश तराश कर अपना घर बनाते थे कि अमन में रहें सो उनको सुबह के वक़्त आवाज़ ए सख्त ने आन पकड़ा सो उनका हुनर उनके कुछ काम न आया . . और ज़रूर क़यामत आने वाली है, सो आप खूबी के साथ दरगुज़र कीजिए."सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (८०-८५)मुहम्मद ने तौरेती वाक़ेए के मुखबिर यहूदी के ज़ुबानी सुना सुनाया किस्सा गढ़ते हुए उस बस्ती को लिया है जिस पर कुदरती आपदा आ गई थी जिसमें बसे लूत बस्ती को तर्क करके पहाड़ों पर अपनी बेटियों के साथ आबाद हो गए थे और उनकी बीवी हादसे का शिकार हो गई थी. उसके आसार आज भी देखे जा सकते हैं कि योरोपियन लूत की नस्लें मुआबियों और अम्मोनियों को उस वाक़ेए पर रिसर्च करने की तैफीक़ हुई है. मुहम्मद उसकी कहानी की गाढ़ी कुरआन की मुसलामानों से तिलावत करा रहे हैं.
''बिला शुबहा आप का रब बड़ा खालिक और बड़ा आलिम है. और हम ने आप को सात आयतें दीं जो मुक़र्रर हैं और कुरआन ए अज़ीम. आप अपनी आँख उठा कर भी इस चीज़ को न देखिए जो कि हम ने उन मुख्तलिफ़ लोगों को बरतने के लिए दे रक्खी है और उन पर ग़म न कीजिए.और मुसलमानों पर शिफक़त रखिए."सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (८६-८८)अल्लाह अपने प्यारे नबी से वार्ता लाप कर रहा है कि वह बड़ा निर्माण कुशल और ज्ञानी है, कहता है हमने आपको सात आयतें दीं(?) { अब याद नहीं कि सात दीं या सात सौ ? कुछ याद नहीं आ रहा} कि कुराने-अज़ीम समझो. वह अपने बच्चे को समझाता है दूसरों की संपन्नता को आँख उठा कर देखा ही मत करो. ''रूखी सूखी खाए के ठंडा पानी पिव, देख पराई चोपड़ी क्यूं ललचाए जिव.'' इस बात का गम भी न किया करो.( कुरैशियों का आगे भला ज़रूर होगा.) बस मुसलामानों को चूतिया बनाए रहना।
 
''और कह दीजिए कि खुल्लम खुल्ला मैं डराने वाला हूँ जैसा कि हम ने उन लोगों पर नाज़िल किया है जिन्हों ने हिस्से कर रखे थे यानी आसमानी किताबों के मुख्तलिफ़ अजज़ा करार दिए थे, सो तुम्हारे परवर दिगार की क़सम हम उन सब के आमाल की ज़रूर बाज़ पुर्स करेंगे. ये लोग जो हँसते हैं अल्लाह तअला के साथ, दूसरा माबूद क़रार देते हैं, उन से आप के लिए हम काफ़ी हैं. सो उनको अभी मालूम हुवा जाता है. और वाक़ई हमें मालूम है ये लोग जो बातें करते हैं उस से आप तंग दिल हैं."सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (९५-९७)अल्लाह की राय मुहम्मद को कितनी सटीक है कि कहता है कह दीजिए कि खुल्लम खुल्ला मैं डराने वाला बागड़ बिल्ला हूँ , यह कि इस से वह हजारों साल तक डरते रहेगे. हमने उन मुसलमानों पर दिमागी हिपना टिज्म कायम ओ दायम कर दिया है. यह आसमानी किताबों के मुख्तलिफ़ अजज़ा क्या होते हैं किसी दारोग गो आलिम से पूछना होगा की अल्लाह यहाँ पर बे महेल बहकी बहकी बातें क्यूं करता है? अपने प्यारे नबी को तसल्ली देता है कि वह उनके दुश्मनों से जवाब तलब करेगा कि मेरे रसूल की बातें क्यूं नहीं मानीं? और उल्टा उनका मजाक उड़ाया.
काश कि मुहम्मद तंग दिल न होते, कुशादा दिल और तालीम याफ़्ता भी होते।
 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान