Thursday 29 September 2011

सूरह अलएराफ़ ७ (पहली किस्त)

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह अलएराफ़ ७(पहली किस्त)


मिन जुमला काफिर


''सअब इब्ने जुसामा कहते हैं कि एक बार मुहम्मद से पूछा गया कि शब खून (रात के हमलों) में अगर कुफ्फर के बच्चे या औरतें क़त्ल हो जाएँ तो हम पर इसका कोई गुनाह होगा या नहीं? (मुहम्मद ने) फ़रमाया काफ़िरों के बच्चे और औरतें मिन जुमला काफ़िर ही शुमार किए जाएंगे और फ़रमाया कि अहाता सिवाय अल्लाह और उसके रसूल के किसी दूसरे का नहीं''

(बुखारी १२४३)

इस्लामी बरबरियत का नमूना आज जो तालिबानी दुन्या के सामने पेश कर रहे हैं वह चौदह सौ साल पहले से जारी है जिसको इसके ज़ालिम पैगम्बर मुहम्मद ने ईजाद किया था. किसी भी धर्म, धर्म क्या अधर्म में भी जंग के ऐसे घिनाओने कानून क़ायदे नहीं होंगे. ऐसे काबिले नफरत हस्ती को पूजने वाले दुन्या की २०% आबादी अपने को मुसलमान कहलाने पर नाज़ करती है ।


मुसलमानों !

इस्लाम से तौबा करके इंसानियत की राह को अपनाओ, बड़ी ही आसान राह है जिस पर हमेशा बे खौफ़ व ख़तर चला जा सकता है।
अब आइए मुहम्मदी अल्लाह की उम्मियत और इंसानियत सोज़ आयातों पर - - -


'अल्लमस''
सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (१)

यह एक अर्थ हीन शब्द है. मुहम्मद ने मदारियों और जोगियों की नकल में इस तरह के बहुत से शब्द कुरआन में गढ़े हैं. सूरह शुरू करने से पहले वह मंतर की तरह इन्हें पढ़ते हैं. मुल्लाओं ने इसको

'' हुरूफे मुक़त्तेआत ''

नाम दिया है. यह भी कोई एक आयत है, अल्लाह की कही हुई एक बात है, अल्लाह का पैगाम है, इसका मतलब अल्लाह ही जनता है.


''यह एक किताब है जो आप के पास इस लिए भेजी गई है कि आप इस के ज़रिए से डराएँ, सो आप के दिल में इस से बिलकुल तंगी न होना चाहिए और यह नसीहत है ईमान वालों के वास्ते.''

सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (२)

मुहम्मद का अभियान सब से बड़ा यह है कि लोगों को किताब में बखानी गई दोज़ख से डराओ, लोग डरने लगें तो उन पर क़ाबू पाकर, उनको मनमानी ढंग से इशारे पर नचाओ। डरपोकों को जन्नत की लालच भी दी गई है. इन्हीं दो मंत्रो से क़ाबू पाकर मुसलामानों को जंगी भट्टियों में झोका गया है.

''आप के दिल में इस से बिलकुल तंगी न होना चाहिए''

ऐसे जुमले जो इजहारे ख़याल न कर पा रहे हों जाहिल मुहम्मद की मजबूरी थी जिसको ओलिमा ने '' अल्लाह के कहने का मतलब ये है '' लिख कर मुहम्मद की मदद की है।


''और बहुत सी बस्तियों को हमने तबाह कर दिया है. और उन पर हमारा अज़ाब रात के वक़्त पहुंचा, या ऐसी हालत में दोपहर को जब वह आराम में थे. सो जिस वक़्त उन के ऊपर अज़ाब आया , उस वक़्त उन के मुंह से बजुज़ इस के कुछ भी न निकला कि वाकई हम ही ज़ालिम थे.''

''सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (४-५)

मुहम्मदी अल्लाह कैसा है?

इंसानी बस्तियों का और इंसानों का मश्शाक शिकारी ?

मुहम्मद अपनी हिकमते अमली अल्लाह के जुबानी कुरआन में बतला रहे हैं. वह खुद हमेशा सुब्ह तडके बस्तियों पर हमला करते थे जब लोग गहरी नींद में हों या सो कर उठ रहे हों, इसको उस अल्लाह का तरीका बतला रहे हैं जो बन्दों का खालिक और बाप की तरह है. मुहम्मद के लुटेरे हत्यारों के ज़ुल्म ढाने पर मुसलामानों की नादान नस्लें कहने लगी हैं कि वाकई हमारे पूर्वज ही ज़ालिम और काफ़िर थे।
*इस सूरह में मुहम्मद आदम, हव्वा और शैतान की मशहूर बाइबिल की कल्पना को अपने ढंग से पेश करते हैं. फारसी कहावत है कि झूटे की याद दाश्त बहुत कमज़ोर होती है, गरज मुहम्मद इन्जीली बातों को जितनी बार गढ़ते है, वह बदल जाती है, यहाँ मुहम्मद गढ़ते हैं कि शैतान को मरदूद और मातूब करके जन्नत से निकाल दिया जाता है, इस जुर्म पर कि वह माटी के माधव आदम को सजदा नहीं करता. इन्तेकामन वह आदम और हव्वा को जन्नत में भड़काने लगता है. सवाल यह उठता है कि जब अल्लाह ने उसको जन्नत से निकल दिया तो वह जन्नत में दाखिल कैसे हो पाता था? क्या मुहम्मदी अल्लाह के निज़ाम में इंसानी गफ़लत हुआ करती है? ऐसे सवाल जब अहले मक्का मुहम्मद के सामने उठाते तो वह इसे कुरान की सर्ताबी क़रार देते "

बहुत ही ढीट तबा थे मुहम्मद.


अल्लाह से ज़बान दराज़ी करते हुए इब्लीस (बड़ा शैतान) कहता है - - -''मुझको मोहलत दीजिए क़यामत के दिन तक. फरमाया कि तुझ को मोहलत दी गई. वह कहने लगा बसबब इसके कि आप ने मुझ को गुमराह किया, मैं क़सम खाता हूँ कि मैं उनके लिए सीधी राह पर बैठूंगा, फिर उन पर हमला करूंगा, उनके आगे से भी, उनके पीछे से भी, उनके दाहिने से भी, उनके बाएँ जानिब से भी और आप उनमें से अक्सर एहसान मानने वाला न पाएँगे.''

सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (१५-१६-१७)

अल्लाह की बातों में बे वज़नी मुलाहिज़ा हो. अपनी मादरी ज़बान में तर्जुमा करके इसे अपनी नमाज़ों में पढ़ कर देखिए. कुछ ही दिनों में खुद को पागल महसूस करने लगेंगे. या कम से कम परले दर्जे का बेवकूफ.


हर नमाज़ी मुसलमान दिन में लगभग ४४ रेकअत नमाज पढता है, इनका सच्चा रहनुमा वह है जो इनको इनकी मादरी ज़बान में नमाज़ें पढवाए। एक रेकअत में तीन आयत पढ़ी जाती हैं, यह सब अगर वह अपनी मादरी ज़बान में पढ़े तो हमें यकीन हैकि एह दिन वह खुद सच्चाई की राह पर आ जाएगा.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 27 September 2011

सूरह अनआम ६ (दसवीं किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह अनआम ६(दसवीं किस्त)


संत हसन बसरी का क़िस्सा मशहूर है कि वह जुनूनी कैफ़ियत में, अपने एक हाथ में आग और दूसरे हाथ में न पानी लेकर भागे चले जा रहे थे. लोगों ने उन्हें रोका और माजरा दर्याफ़्त किया, वह बोले जा रहा हूँ उस दोज़ख में पानी डालकर बुझा देने के लिए और उस जन्नत में आग लगा देने के लिए जिनके डर और लालच से लोग नमाज़ें पढ़ते हैं. तबेईन (मुहम्माद कालीन की अगली नस्ल)का दौर था जिसमे उस हस्ती ने ये एलान किया था. कुरआन की गुमराह कुन दौर था, हसन बसरी के नाम का वारंट निकल गया था, सरकारी अमला उनकी गिरफ़्तारी में सर गर्म था, उनके खैर खावाह उनको छिपाते फिरते. इस्लामी पैगाम के बाद आम और खास मुसलमान दोज़ख और जन्नत के ताल्लुक से ही नमाज़ पढता है, जिसको हसन जैसे हक शिनाश अज़ सरे नव ख़ारिज करते थे. ऐसे लोगों की ये जिसारत देख कर उनकी गर्दनें मार देने के एहकाम जारी हुए, मंसूर, तबरेज़, सरमद और कबीर इसकी मिसाल हैं.


इक्कीसवीं सदी में रहने वाले मुसलमानों को सातवीं सदी के क़ुरआनी पैगाम मुलहिज़ा हो - - -


'' ऐ जमाअत जिन्नात और इंसानों की !

क्या तुम्हारे पास तुम ही में से पैगम्बर नहीं आए थे ? जो तुम को मेरे एह्काम बयान किया करते थे और तुम को इस आज के दिन की खबर दिया करते थे ?

वह सब अर्ज़ करेंगे क़ि हम अपने ऊपर इकरार करते है और लोगों को दुनयावी ज़िन्दगी ने भूल में डाल रखा है

और यह लोग मुकिर होंगे क़ि वह लोग काफ़िर हैं

''सूरह अनआम आठवाँ पारा (आयत १३१)

मुहम्मद की कल्पित क़यामत का एक सीन ये आयत है जन्नत में दाखिल होने वाली इंसानी टोली जहन्नम रसीदे जिन्नातों और इंसानों की टोलियों से पूछेगी क़ि ऐ लोगो !

क्या तुम्हारे पास मुहम्मद नाम के पैगम्बर नहीं आए थे जो अल्लाह की राहें बतला रहे थे - - -
मुहम्मद के इन्तेहाई दर्जा मक्र की ये आयतें थीं क़ि जिसको बज़ोर तलवार मजबूरों को मनवाया गया और इन मजबूरों की नस्लें जब इस में पलती रहीं तो आज वह मक्र का पुतला सललललाहे अलैहे वसल्लम बन गया.


''तुम पर हराम किए गए हैं मुरदार,

खून

और खंजीर का गोश्त और जो गैर अल्लाह के नाम से ज़द कर दिया गया हो, जो गला घुटने से मर जावे, जो किसी ज़र्ब से मर जावे, या गिर कर मर जावे, जिसको कोई दरिंदा खाने लगे, लेकिन जिसको ज़बह कर डालो - - -.

''सूरह अनआम आठवाँ पारा (आयत १४६)

और हलाल किया जाता है माले ग़नीमत जो लूट मार और शबखून के ज़रिए हासिल किया गया हो, जिसमें बे कुसूर लोगों को क़त्ल कर गिया गया हो, औरतों को लौंडियाँ बना कर आपस में बाँट लिया गया हो, बच्चों और बूढों को इनके हल पर छोड़ दिया गे हो.


''सो इस शख्स से ज्यादह ज़ालिम कौन होगा जो हमारी इन आयतों को झूठा बतलाए और इस से रोके.

हम अभी इन लोगों को जो कि इन से रोकते हैं, इनको रोकने के सबब सख्त सजा देंगे.

यह लोग सिर्फ इस अम्र के मुन्तजिर है कि इन के पास फ़रिश्ते आवें या इन के पास इन का रब आवे या आप के रब कि कोई निशानी आवे.

जिस रोज़ आप के रब कि बड़ी निशानी आ पहुंचेगी, किसी ऐसे शख्स का ईमान इस के काम न आएगा, जो पहले स ईमान नहीं रखता या अपने आमाल में उसने कोई नेक अमल न किया हो.

आप फरमा दीजिए कि तुम मुन्तजिर रहो और हम भी मुन्तजिर हैं.''मुहम्मद के मज़ालिम की दास्तानें हैं जो आगे आप सिलसिलेवार देखते रहेंगे. ऐसे ज़ालिम इन्सान की बात देखिए कि कहता है

''इस से बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो इसकी चाल घात और मक्र की बात को न माने. इसकी बात मानने से लोगों को रोके,''

यह मुहम्मद का बनाया हुआ सांचा आज तक ज़ालिम मुसलामानों के काम आ रहा है.
यह तालिबानी क्या हैं ?
चौदह सौ साल पुराना मुहम्मदी साँचा ही तो उनके काम आ रहा है. यह आप को समझाएं बुझाएँगे, डराएँगे और बाद में सबक सिख्लएंगे.

मुसलामानों अल्लाह अगर है तो ऐसा घटिया हो ही नहीं सकता क्या आप ऐसे अल्लाह की इबादत करते हैं? इस पर तो लानत भेजा करिए।


नोट :-- आयातों में लम्बे लम्बे फासले देखे जा सकते हैं जिनको कि मानी, मतलब और तबसरे के शुमार में नहीं लिया गया है क्यों कि यह इस लायक भी नहीं इन का ज़िक्र या इन पर तबसरा किया जाए। इन पर कलम उठाना भी कलम की पामाली है. इस क़दर बकवास है कि आप पढ़ कर बेज़ार हो जाएँ. अफ़सोस सद अफ़सोस कि कौम इसख़ुराफ़ात को सरों पर उठाए घूमती है. 
 
 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 25 September 2011

सूरह अनआम ६-(नवीं किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अनआम 6

(नवीं किस्त)


पाकिस्तान अपने आप में एक क़ैद खाना बन गया है और हर पाकिस्तानी उम्र क़ैद की सज़ा पाने वाला एक क़ैदी है. जहाँ पर कैदियों की ज़रा सी ज़बानी लगजिश भी खताए-अज़ीम होती है.
एक ईसाई बच्ची को इस बात पर सजा दे दी गई कि वह इस्लामी शरीअत की समझ नहीं रखती थी.
बुत शिकन मुसलमान हर खाम माल के बने बुतों को तोड़ने में बहादुरी की पहचान रखते हैं, मगर वही हवाके बने बुत अल्लाह से उनकी हवा खिसकती है.

खुद तो खुद किसी दूसरे के लिए भी वह साहिबे ईमान होते हैं कि उसके लिए भी हवा के बुत की बुराई उन्हें बर्दाश्त नहीं.

वहएक तरफ़ कहते है अल्लाह सब काहै मगर दूसरी तरफ बन्दा अपने अल्लाह पर एहतेजाज करता है तो वह उससे अपने थमाए हुए अल्लाह को छीन लेता हैं.
ऐसा मुल्क जहाँ आज इक्कीसवीं सदी में इंसानको इतना अख्तियार नहींकि वह अपने खलिक की तख्लीक़ है, वह अपने बाप को कुछ भी कह सकता है अगर उसकी हक तलफी हो रही हो.
दूसरी तरफ इनके ज़ेहनी दीवालिया पन देखिए कि "मिस्टर १०%के दलाल" कहे जाने वाले ज़रदारी कोअपने सर पर बिठाए हुएहैं . इनकी जिहादी फ़ौज अब भारत के हाथों रुसवा होने की बजाए पूरी दुन्या के हाथों ज़िल्लत उठाएगी.

छींक आनेपर नाक काटने वालेशरीअत के शैदाई नई क़द्रों के सामने नाक रगड़ेंगे मगर इनके गुनाहों की सजा कम न होगी.
अब वह वक़्त ज्यादः दूर नहीं कि इंसान का मज़हब इंसानियत होगा, सिर्फ इंसानियत.


मुहम्मदी शरीअत देखिए कि क्या कहती है - - -''और इसी तरह हम ने हर नबी के लिए दुश्मन बहुत से शैतान पैदा किए. कुछ आदमी, कुछ जिन्न, जिनमें से बअज़े दूसरे बअजों को चिकनी चुपड़ी बातों का वस्वुसा डालते रहते हैं ताकि उनको धोके में डाल दें और अगर तुम्हारा परवर दिगार चाहता तो वह यह काम हरगिज़ न कर सकते, सो इन लोगों को और जो लोग यह फितना अंदाजी करते हैं, इनको आप रहने दीजिए.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत ११३)
मुहम्मद अल्लाह के हुक्म को अव्वल मानते हैं जो बार बार उनकी तहरीक के खिलाफ असर रखता है, कहते हैं हर नबी के वास्ते अल्लाह शैतान पैदा करता है तो मतलब ये हुवा कि नबूवत उसको पसंद नहीं. जैसे इस आयत में वह जेहालत की बातें करते हैं, इस पर नादानों को ज़हीन समझाते हैं तो वह इसे चिकनी चुपड़ी बातों का वस्वुसा और फितना अंदाजी कहते हैं. मुसलमान बगैर जाने बूझे ऐसी बातों की ही नमाज़ पढ़ते हैं. अपने ब्लोग के खिलाफ एक अद्भुत एतराज़ आया है एक साहब कहते है कि यह निसार कुरआन के बारे में १००००००००००००००००००००००००००% झूट बकता है.भाई मैं कुरआन की बाते सब मुहम्मदी आल्लाह की बकी हुई आप को परोस रहा हूँ और मशहूर आलिम शौक़त अली थानवी की लिखी कुरानी तर्जुमे की नक्ल है. जिसे मैं ९०% इंसानियत दुश्मन मानता हूँ और आप तो मुझ से कई गुना ज्यादह. ऐसे ही नादान लोग अपने और कौम के दुश्मन हैं.

''आपने शैतानों को इंसानों को और जिनों को हर पैगम्बर का दुश्मन बना दिया था. वह धोका देने के लिए एक दूसरे के दिलों में मुलम्मे की बातें डालते थे और अगर तुम्हारा परवर दिगार चाहता तो ऐसा न होता.''सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत ११४)मुहमद की इन फित्तीनी बातों को समझने के बाद उन पर दिन में पांच बार लाहौल भेजने कि ज़रुरत है..


'' अली ने एक कौम को आग से जला डाला'' यह खबर इब्न ए अब्बास को भी मालूम हुई तो फ़रमाया - - -
अगर मैं होता तो इस कौम को अल्लाह की मानिंद (आग से जला कर) अज़ाब न देता जिस तरह कि हुज़ूर ( मुहम्मद) का हुक्म है किसी को अल्लाह के खास अज़ाब से अज़ाब न दिया जाए बल्कि जो शख्स अपना दीन बदल दे, उसको क़त्ल कर दिया जाए.''

(बुखारी १२४५)

मुसलमानों में दो वर्ग हैं शिया (मोहम्मद के रिश्तेदारों के समर्थक)
सुन्नी - - कलिमा गो आम मुसलमान.
शियों का कहना है कि पैगम्बरी अली के लिए आई थी फ़रिश्ते जिब्रील ने गलती की कि बड़े भाई मोहम्मद को थमा दी. शियों ने अली की शान में किताबों से लाइब्रेरियाँ भर दीं, वह इबारतें लिख और पढ़ लेते थे बस, कर्म उनके थे जो हदीस बतला रही है. मोहम्मद के ले पालक, हमेशा इक्तेदार के भूखे, एक अदना और मामूली इंसान, उजड, मौक़ा मिला तो बस्ती में एक कबीले को ज़िदा जला दिया, आज वह छोटे मोहम्मद बने मुसलामानों के लिए ''या अली'' बने हुए हैं. यह कौम है दमा दम मस्त कलंदर - -गाती है अली दा पहला नम्बर.



'' आप के रब का कलाम वाक़एअय्यत और एतदाल के एतबार से कामिल है. इसके कलाम का कोई बदलने वाला नहीं और वह खूब सुन रहे हैं, खूब जान रहे हैं.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत ११६)

जिन खुसूसयात का कुरआन से कोई वास्ता नहीं, उसका वह दावा कर रहा है. तमाम वाक़िए सुने सुनाए और बेशतर मुहम्मद के गढ़े हुए हें. जिनमें न सर न पैर. एतदाल का यह आलम है कि अभी अल्लाह जंग और जेहाद की बातें कर रह है, दूसरे लम्हे ही आ जाता है औरत को मर्द से कम तर बतलाने में ,तीसरे लम्हे दोज़ख की आग भडकाने लगता है. उसके कलाम को मुसलामानों की जेहालत और इनके साजिशी ओलिमा की चालें बदलने नहीं देतीं वर्ना इनमें रक्खा क्या है.


''सो जिस शख्स को अल्लाह ताला रस्ते पर डालना चाहते हैं उसके सीने को इस्लाम से कुशादा कर देते हैं और जिस को बे राह रखना चाहते हैं उसके सीने को तंग कर देते हैं जैसे कोई आसमान पर चढ़ना चाहता हो. इसी तरह अल्लाह ईमान न लाने वाले वाले परफिटकार डालता है.''

सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत १२६)

सच यह है कि जिनको मुहम्मदी अल्लाह ने गुम राह कर दिया है वह राहे रास्त नहीं पा रहे हैं और जो इसके फंदे में नहीं आए वह चाँद तारों पर सीढियाँ लगा रहे हैं.

मुहम्मदी अल्लाह इन पर अपनी ज़हरीली कुल्लियाँ कर रहा है जो कि नीचे गिर कर बिल आखीर मुसलामानों को पामाल कर रही हैं.




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 24 September 2011

सूरह अनआम ६-(आठवीं किस्त)

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह अनआम ६-


(आठवीं किस्त)


''आप जानदार चीज़ों को बेजान से निकल लेते हैं (बैज़े से चूजा) और बेजान चीज़ों को जानदार से निकल लरते है (परिदे से बैजा)'

'सूरह अन आम छटां - सातवां पारा(आयत ९६)

(जी हाँ ! यह बात मुहम्मद अल्लाह से कह रहे हैं और एलान है कि कुरआन मुहम्मद से अल्लाह की कही हुई बात है. मुहम्मद के कलाम को अल्लाह का कलाम माना जाता है . क्या खुदाए बरतर ऐसी नादानी कि बातें कर सकता है?)
अण्डों में जान होती है, इतनी सी बात को खुद को पुर हिकमत अल्लाह के पयंबर कहलाने वाले मुहम्मद नहीं जानते. उनका गाउदी अल्लाह कुरआन में बार बार इस बात को दोहराता है. इस्लामी ओलिमा ऐसी आयतों को मुस्लिम अवाम से पर्दा पोशी करते हैं और उनको अंध विशवास का ज़हर पिलाते रहते हैं.

''वह आसमानों और ज़मीन का मूजिद है, इसके औलाद कहाँ हो सकती है? हालाँकि इसकी कोई बीवी तो है नहीं. और अल्लाह ने हर चीज़ को पैदा किया है और हर चीज़ को जानता है.''

सूरह अन आम छटां - सातवां पारा (आयत १०२)

ईसाई, ईसा को खुदा का बेटा कहते हैं, उसकी मुखालिफ़त में तर्क हीन बाते करते हैं। मुहम्मद के मुताबिक कोई आविष्कारक बाप कैसे हो सकता है? फिर खुद ही कहते हैं- - - उसके पास कोई बीवी भी तो नहीं है, यह दूसरी जेहालत की दलील है. अव्वल तो यह कि ब्रह्मांड का रचैता उसका आविष्कारक कैसे हुआ? यह एक जाहिल जपट की बातें हैं. जब अल्लाह ने हर चीज़ को पैदा किया तो एक अदद बच्चा पैदा करना उसके लिए क्या मुश्किल था या उसकी जोरू नहीं है इसका इल्म मुहम्मद को कैसे है. मुहम्मद कुरआन में ही एक जगह अल्लाह से क़सम खिलवाते हैं

'' कसम है बाप की और औलाद की - - -''

गोया अल्लाह के बीवी बच्चे ही नहीं बाप भी है.

''और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो ये शिर्क न करते, और हम ने आप को इनका निगरान नहीं बनाया और न आप इन पर मुख़्तार हैं और गाली मत दो उनको जिनकी यह लोग अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हैं, फिर वह बराए जमल हद से गुज़र कर अल्लाह को गाली देंगे.''

सूरह अन आम छटां - सातवां पारा(आयत १०८+९)

अल्लाह को मंज़ूर है कि वह शिर्क करें, फिर आप अल्लाह की रज़ा में बाधा क्यूं बन रहे हैं ?आप कितने किस्म की बातें करते हैं? आप निगरान ही नहीं मुख़्तार ही नहीं बल्कि मौक़ा मिलते ही तलवार लेकर उनके सरों पर खड़े हो जाते हैं, घिज़वा (जंग) करते हैं और इंसानी खून बहाते हैं. अबू बकर आप के ससुर जब काफ़िर इरवा से कहते

''भाग जा अपने माबूद लात की शर्मगाह (लिंग) चूस''

(बुखारी ११४४)

जवाब सुन कर आपको होश आता है.

''और लोगों ने बड़ा ज़ोर लगा कर अल्लाह की क़सम खाई थी कि इन के पास कोई निशानी आ जाए तो वह ज़रूर ही इस पर ईमान लाएँगे. आप कह दीजिए निशानियाँ सब अल्लाह के कब्जे में हैं और तुम को क्या खबर कि वह निशानियाँ जिस वक़्त आ जाएंगी, यह लोग तब भी ईमान न लाएँगे और हम भी उनके दिलों को और निगाहों को फेर देंगे जैसाकि ये लोग इस पर पहली बार ईमान नहीं लाए और हम इनको इनकी सरकशी में हैरान रहने देंगे''

सूरह अन आम छटां - सातवां पारा(आयत १११०+११)

बाबा इब्राहीम के दो बेटे इसहाक और इस्माईल थे. इसहाक ब्याहता सारा से और इस्माईल सेविका हाजरा से. इसहाक का वंश यहूदी हैं जो कि श्रेष्ट माने जाते है और तमाम जाने माने कथित पैगम्बर इसी में हुए. लौड़ी जादे इस्माईलिए रश्क किया करते कि मेरे वंस में कोई पैगम्बर होता तो क्या बात थी, यह बात इस्माईलिए मुहम्मद का सपना बन गया और उन्होंने पुख्ता इरादा किया कि उनको इस्माईलियों का ईसा, मूसा की तरह ही बनना है. यहाँ इसी बात का इस्माईलियों को यह ताना दे रहे हैं. ईसा मूसा की तरह ही जब लोगों ने इनसे चमत्कार दिखलाने की बात करते हैं तो मियां कैसी कैसी कन्नी कटते नज़र आते हैं.


'' और अगर हम इन पर फ़रिश्ते भी उतर देते और मुर्दे भी इनसे गुफ्तुगू करने लगते और हर चीज़ को उनके सामने पेश कर देते तो भी ये ईमान लाने वाले न थे लेकिन अक्सर इनमें से लोग जेहालत की बातें करते हैं.''

सूरह अन आम छटां - सातवां पारा (आयत ११२)

जनाबे आली! अगर आप उनके सामने यह मुअज्ज़े पेश कर देते तो वह न सिर्फ ईमान लाते बल्कि ईमान के दरिया में बह जाते। यह जाहिल न थे बल्कि मुस्तनद जाहिल तो आप थे जो ऐसी गैर फितरी बातें उनको समझाते थे. मुस्लिम अवाम की बद किस्मती यह है कि वह आप के बके हुए कलाम में मानी, मतलब और मकसद ढूंढने के बजाए सवाब ढूंढ रही है, नतीजतन वह अज़ाब में मुब्तिला है.

मेरी बेदार लोगों से गुजारिश है कि उन भेड़ बकरियों को फिलहाल सवाब की घास चरने दें मगर आप हज़रात मेरी तहरीकमें शामिल हों.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 21 September 2011

सूरह अनआम ६-(सातवीं किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अनआम ६-

(सातवीं किस्त)


जेहनी ग़ुस्ल



ज़िन्दगी एक दूभर सफ़र है, यह तन इसका मुसाफ़िर है. आसमान के नीचे धूप, धूल और थकान के साथ साथ सफ़र करके हम बेहाल हो जाते हैं। मुसाफ़िर पसीने पसीने हो जाता है, लिबास से बदबू आने लगती है, तबीअत में बेज़ारी होने लगती है, ऐसे में किसी साएदार पेड़ को पाकर हम राहत महसूस करते है. कुछ देर के लिए इस मरहले पर सुस्ताते हैं, पानी मिलगया तो हाथ मुंह भी धो लेते हैं मगर यह पेड़ का साया सफ़र का मरहला होता है, हमें पूरी सेरी नहीं देता। हमें एक भरपूर स्नान कि ज़रुरत महसूस होती है। इस सफ़र में अगर कोई साफ़ सफ़फ़ाफ़ और महफूज़ गुस्ल खाना हमको मिल जाए तो हम अन्दर से सिटकिनी लगा कर, सारे कपडे उतार के फेंक देते हैं और मादर ज़ाद नंगे हो जाते हैं, फिर जिस्म को शावर के हवाले कर देते हैं. अन्दर से सिटकिनी लगी हुई है कोई खटका नहीं है. सामने कद्दे आदम आईना लगा हुआ है. इसमें बगैर किसी लिहाज़ के अपने पूरे जिस्म का जायज़ा लेते है, आखिर यह अपना ही तो है. बड़े प्यार से मल मल कर अपने बदन के हर हिस्से से गलाज़त छुडाते हैं. जब बिलकुल पवित्र हो जाते हैं तो खुश्क तौलिए से शारीर को हल्का करते हैं, इसके बाद धुले जोड़े पहेन कर संवारते हैं. इस तरह सफ़र के तकान से ताज़ा दम होकर हम अगली मंजिल की तरफ क़दम बढ़ाते हैं.
ठीक इसी तरह हमारा दिमाग भी सफ़र में है, सफ़र के तकान से बोझिल है। सफ़र के थकान ने इसे चूर चूर कर रखा है. जिस्म की तरह ही ज़ेहन को भी एक हम्माम की ज़रुरत है मगर इसके तकाज़े से आप बेखबर हैं जिसकी वजेह से ग़ुस्ल करने का एहसास आप नहीं कर पा रहे हैं। नमाज़ रोज़े पूजा पाठ और इबादत को ही हम ग़ुस्ल समझ बैठे हैं। यह तो सफ़र में मिलने वाले पेड़ नुमा मरहले जैसे हैं, हम्मामी मंज़िल की नई राह नहीं.

जेहनी ग़ुस्ल है इल्हाद, नास्तिकता जिसे की धर्म और मज़हब के सौदागरों ने गलत माने पहना रखा है, गालियों जैसा घिनावना.

बड़ी हिम्मत की ज़रुरत है कि आप अपने ज़ेहन को जो भी लिबास पहनाए हुए हैं, महसूस करें कि वह सदियों के सफ़र में मैले, गंदे और बदबूदार हो चुके हैं. इसको नए, फितरी, लौकिक ग़ुस्ल खाने में इन मज़हबी कपट के बोसीदा लिबास को उतार फेंकिए और एक दम उरियाँ हो जाइए, वैसे ही जैसे आपने अपने शारीर को प्यार और जतन से साफ़ किया थ, अपने जेहन को नास्तिकता और नए मानव मूल्यों के साबुन से मल मल क्र धोइए.

जदीद तरीन इंसानी क़दरों की सुगंध में नहाइए, जब आप तबदीली का ग़ुस्ल कर रहे होंगे कोई आप को देख नहीं रहा होगा, अन्दर से सिटकिनी लगी हुई होगी. शुरू कीजिए दिमागी ग़ुस्ल.

धर्मो मज़हब, ज़ात पात की मैल को खूब रगड़ रगड़ कर साफ़ कीजिए, हाथ में सिर्फ इंसानियत का कीम्याई साबुन हो. इस ग़ुस्ल से आप के दिमाग का एक एक गोशा पाक और साफ़ हो जाएगा. धुले जोड़ों को पहन कर बाहर निकलिए. अपनी शख्सियत को बैलौस, बे खौफ जसारत के जेवरात से सजाइए, इस तरह आप वह बन जाएँगे जो बनने का हक कुदरत ने आप को अता किया है.

याद रखें जिस्म की तरह ज़ेहन को भी ग़ुस्ल की ज़रुरत हुवा करती है। सदियों से आप धर्म ओ मज़हब का लिबास अपने ज़ेहन को पहनाए हुए हैं जो कि गूदड़ हो चुके हैं. इसे उतार के आग या फिर क़ब्र के हवाले कर दें ताकि इसके जरासीम किसी दूसरे को असर अंदाज़ न कर सकें. नए हौसले के साथ खुद को सिर्फ एक इंसान होने का एलान कर दें.अब मुहम्मदी अल्लाह की गैर फ़ितरी और इंसानियत सोज़ बाते सुनें - - -


''जब इब्राहीम ने अपने बाप आजार से फ़रमाया की क्या तू बुतों को माबूद करार देता है? बेशक मैं तुझको और तेरी सारी कौम को सरीह ग़लती में देखता हूँ.''

सूरह अनआम ७वां पारा आयत (७५)

इब्राहीम का बाप आजार एक मामूली और गरीब बुत तराश था, जो अपने बेटे को अक्सर समझाता रहता कि बेटे हिजरत कर, हिजरत में बरकत है . यहाँ कुछ न कर पाएगा. बाहर निकल तुझे दूध और शहेद की नदियों वाला देश मिलेगा. फ़रमा बरदार बेटे इब्राहीम ने अपनी जोरू सारा और भतीजे लूत को लेकर एक रोज़ बाहर की राह अख्तियार की जिसको मुहम्मदने गुस्ताखाना कहानी की शक्ल देकर अपना कुरआन बनाया है.

मुहक्म्मद ने अब्राहम के बाप तेराह (आजार) को बिला वजेह कुरआन में बार बार रुसवा किया है, ये मुहम्मद की मन गढ़ंत है. सच पूछिए तो वह ही इंसानी इतिहास के शुरुआत हैं.


''हमने ऐसे ही तौर पर इब्राहीम को आसमानों और ज़मीन की मख्लूकात (जीव) दिखलाईं और ताकि वह कामिल यक़ीन करने वाले बन जाएं फिर जब रात को तारीकी उन पर छा गई तो उन्हों ने एक सितारा देखा तो फ़रमाया ये हमारा रब है, फिर जब वह ग़ुरूब हो गया तो फ़रमाया मैं ग़ुरूब हो जाने वालों से मुहब्बत नहीं करता. फिर जब चाँद को चमकता हुवा देखा तो फ़रमाया ये मेरा रब है. सो जब वह ग़ुरूब हो गया तो फ़रमाया कि मेरा रब मुझ को हिदायत न करता रहे तो मैं गुमराह लोगों में शामिल हो जाऊं - - -''

सूरह अनआम ७वां पारा आयत (७६-७७-७८)

इब्राहीम, इस्माईल वगैरा का नाम भर यहूदियों और ईसाइयों से उम्मी मुहमद ने सुन रखे थे. इन पर किस्से गढ़ना इनकी जहनी इख्तेरा है. मुहम्मद की मंजिले मक़सूद थी ईसा मूसा की तरह मुकाम पाना जिसमें वह कामयाब रहे मगर इंसानी क़दरों में दागदार उनके पोशीदा पहलू उनको कभी मुआफ नहीं कर सकते. मुहम्मद के अन्दर छुपा हुआ शैतान उन्हें इंसानियत का मुजरिम करारठहराएगा.

जैसे जैसे इंसानियत बेदार होगी मुसलमानों के लिए बहुत बुरे दिन आने के इमकान है.



''और ये ऐसी किताब है जिसको हमने नाजिल किया है, जो बड़ी बरकत वाली है और पहले वाली किताबों की तस्दीक करने वाली है और ताकि आप मक्का वालों को और इस के आस पास रहने वालों को डरा सकें।''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (९३)जो शै डराए वह बरकत वाली कैसे हो सकती है? शैतान, भूत, परेत, सांप, दरिन्दे गुंडे, सब डराते हैं, यह सब मुफ़ीद कैसे हो सकते हैं?

मुहम्मद की जेहालत और उनका क़ुरआन दर असल कौम के लिए अज़ाब बन सकते हैं.


''और उस शख्स से ज़्यादः ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट तोहमत लगाए या यूं कहे की मुझ पर वही (ईश वाणी) आती है, हालाँकि उस के पास किसी बात की वही नहीं आती. और जो कहे जैसा कलाम अल्लाह ने नाज़िल किया है , इसी तरह का मैं भी लाता हूँ और अगर आप उस वक़्त देखें जब ज़ालिम लोग मौत की सख्तियों में होंगे और फ़रिश्ते अपने हाथ बढ़ा रहे होंगे - - - हाँ ! अपनी जानें निकालो. आज तुमको ज़िल्लत की सज़ा दी जाएगी, इस लिए की तुम अल्लाह के बारे में झूटी बातें बकते थे और तुम इस की आयात से तकब्बुर करते थे.''

सूरह अनआम ७वां पारा आयत (९४)मुहम्मद को पैगम्बरी का भूत सवार था वह गली कूचे सड़क खेत और खलियान में क़ुरआनी आयतें गाते फिरते और दावा करते कि अल्लाह की भेजी हुई इन वहियों के मुकाबिले में कोई एक आयत तो बना कर दिखलाए. लोग इनकी नकल में जब आयतें गढ़ते तो यह राहे फरार में इस किस्म की बकवास करते. इसे अपने अल्लाह की तरफ से नाज़िल बतलाते.

मुहम्मद ऐसे लोगों को ज़ालिम कहते जो इनकी नक़ल करते जब कि बज़ात खुद वह ज़ालिम नंबर एक थे

''और उस शख्स से ज़्यादः ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट तोहमत लगाए''

कौन बेवकूफ रहा होगा जो खालिक़े कायनात पर बोहतान जड़ता रहा होगा? मुहम्मद अपनी इन मक्र और बे शर्मी की बातों से अवाम को गुम राह कर रहे हैं.

मुहम्मद खुद उस पाक और बे नयाज़ जात को अपनी फूहड़ बातों से बदनाम कर रहे हैं.

कैसी अहमकाना बातें हैंकि जालिमों को मौत से डराते हैं जैसे खुद मौज उड़ाते हुए मरेंगे.


''ऐसा होगा क़यामत के दिन का मुसलामानों का काफिरों पर ताना. जन्नत सिर्फ़ मुसलामानों को ही मिलेगी, वह भी जो नेक आमाल के होंगे,

नेक आमाल नेक काम नहीं बल्कि मुहम्मद नमाज़ रोज़ा ज़कात और हज वगैरा में नेकी देखते हैं. ईसाई,यहूदी और सितारा परस्त के लिए तो जन्नत में जगह नहीं है, जिनकोकि मुहम्मद साहबे किताब मानते हैं, मगर काफिरों (मूर्ति-पूजक)के लिए तो दहेकती हुई दोज़ख धरी हुई है, भले ही खुद अनाथ मुहम्मद को पालने वाले दादा और चाचा ही क्यूं न हों.

उम्मी मुहम्मद को इस दलील से कोई वास्ता नहीं कि जिसने इस्लामी पैगाम सुना ही न हो या जो इस्लाम से पहले हुआ हो वह भला दोजखी क्यूं होगा??ऐसे हठ धर्म कुरआन को इस्लामी जंगजूओं ने माले ग़नीमत को जायज़ करार देने के बाद चौथाई दुन्या को पीट पीट कर तस्लीम कराया है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 16 September 2011

सूरह अनआम ६- (छटवीं किस्त)

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.




सूरह अनआम ६-(छटवीं किस्त)


अल्लाह के मुँह से कहलाई गई मुहम्मद की बातें कुरआन जानी जाती हैं और मुहम्मद के कौल और कथन हदीसें कहलाती हैं. मुहम्मद की ज़िन्दगी में ही हदीसें इतनी हो गई थीं कि उनको मुसलसल बोलते रहने के लिए हुज़ूर को सैकड़ों सालों की ज़िन्दगी चाहिए थी, गरज उनकी मौत के बाद हदीसों पर पाबन्दी लगा दी गई थी, उनके हवाले से बात करने वालों की खातिर कोड़ों से होती थी.

दो सौ साल बाद बुखारा में एक मूर्ति पूजक यहूदियत से मुतासिर बुड्ढा

''शरीफ मुहम्मद इब्ने इब्राहीम मुगीरा जअफ़ी बुखारी'' जो कि उर्फे आम में इमाम बुखारी के नाम से इस्लामी दुन्या में जाना जाता है, साठ साल की उम्र में इस्लाम कुबूल किया और दर पर्दा इस्लाम की चूलें हिला कर रख दिया. उसने मुहम्मद की तमाम ख़सलतें, झूट, मक्र, ज़ुल्म, ना इंसाफी, बे ईमानी और अय्याशियाँ खोल खोल कर बयान कीं हैं.

इमाम बुखारी ने किया है बहुत अज़ीम काम जिसे इस्लाम के ज़ुल्म के खिलाफ ''इंतकाम-ऐ-जारिया'' कहा जा सकता है. अंधे, बहरे और गूंगे मुसलमान उसकी हिकमत-ए-अमली को नहीं समझ पाएँगे, वह तो ख़त्म कुरआन की तर्ज़ पर ख़त्म बुखारी शरीफ के कोर्स बच्चों को करा के इंसानी जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहेहैं,

इस्लामी कुत्ते, ओलिमा. लिखते हैं कि इमाम बुखारी ने छ लाख हदीसों पर शोध किया और तीन लाख हदीसें कंठस्त कीं, इतना ही नहीं तीन तहज्जुद की रातों में एक कुरआन ख़त्म कर लिया करते थे और इफ्तार से पहले एक कुरआन. हर हदीस लिखने से पहले दो रेकत नमाज़ पढ़ते.

इस्लाम कुबूल करने के बाद पाई सिर्फ सोलह साल की उम्र, वह भी जईफी की. तीन लाख सही हदीसों के दावेदार लिखने पर आए तो सिर्फ २१५५ हदीसें लिखीं.

बुखारी लिखता है मुहम्मद के पास कुछ देहाती आए और पेट की बीमारी की शिकायत की. हुक्म हुआ कि इनको हमारे के ऊंटों के बाड़े में छोड़ दो, वहां यह ऊंटों का दूध और मूत पीकर ठीक हो जाएँगे.(गौर करें कि बुखारी मुहम्मदी हुक्म से पेशाब पीना जायज़ करार देने का इशारा किया है) कुछ दिनों बाद देहाती बाड़े के रखवाले को क़त्ल करके ऊंटों को लेकर फरार हो गए जिनको कि इस्लामी सिपाहियों ने जा घेरा. उनको सज़ा मुहम्मद ने इस तरह दी कि सब से पहले उनके बाजू कटवाए, फिर टागें कटवाई, उसके बाद आँखों में गर्म शीशा पिलवाया बाद में गारे हरा में फिकवा दिया जहाँ प्यास कीशिद्दत लिए वह तड़प तड़प कर मर गए.

(बुखरि१७०) (सही मुस्लिम - - - किताबुल क़सामत)

तो इस क़दर ज़ालिम थे मुहम्मद.


*अब देखिए मुहम्मद कि मक्र कुरआन के सफ़हात में - - -
कहते हैं की गेहूं के साथ घुन भी पिस्ता है मुसीबते और बीमारियाँ नेको बद को देख कर नहीं आतीं. मगर अक्ल का दुश्मन मुहम्मदी अल्लाह ज़रा देखिए तो मुहम्मद से क्या कहता है- - -


''आप कहिए कि यह बतलाओ अगर तुम पर अल्लाह का अज़ाब आन पड़े, ख्वाह बे खबरी में ख्वाह खबरदारी में तो क्या बजुज़ ज़ालिम लोगों के और कोई हलाक किया जाएगा?''

सूरह अनआम ७वां पारा आयत (४७)

एक रत्ती भर अक्ल रखने वाले के लिए कुरआन की यह आयत ही काफ़ी है कि वह मुहम्मद को परले दर्जे का बे वकूफ आँख बंद कर के कह दे और इस्लाम से बाहर निकल आए मगर ये हरामी आलिमान दीन अपने अल्कायदी गुंडों के साथ उनकी गर्दनों पर सवार जो हैं. इस से ज्यादह मज़हकः खेज़ बात और क्या हो सकती है कि जब कोई कुदरती आफत ज़लज़ला या तूफ़ान आए तो इस में काफ़िर ही तबाह हों और मुसलमान बच जाएं.


''आप कहिए कि न मैं यह कहता हूँ कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न मैं तमाम गैबों को जनता हूँ और न तुम से यह कहता हूँ कि मैं फ़रिश्ता हूँ. मैं तो सिर्फ मेरे पास जो वही आती है उसकी पैरवी करता हूँ. आप कहिए कि कहीं अँधा और आखों वाला बराबर हो सकता है? सो क्या तुम गौर नहीं करते?''

सूरह अनआम ७वां पारा आयत (५०)

यहाँ मुहम्मद ने खुद को आँखों वाला और दीगरों को अँधा साबित किया है, साथ साथ यह भी बतलाया है कि वह भविष्य की बातों को नहीं जानते. उनकी सैकड़ों ऐसी हदीसें हैं जो इस के बार अक्स हैं और पेशीन गोइयाँ करती है. विरोधा भास कुरआन और मुहम्मद की तकदीर बना हुवा है.


''और जब तू इन लोगों को देखे जो हमारी आयातों में ऐब जोई कर रहे हैं तो इन लोगों से कनारा कश हो जा, यहाँ तक कि वह किसी और बात में लग जाएं और अगर तुझे शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों में मत बैठ.''

सूरह अनआम ७वां पारा आयत (६८)

मुहम्मद ने मुसलामानों पर किस ज़ोर की लगाम लगाईं है कि उनकी इस्लाह माहौल के ज़रिए करना भी बहुत मुश्किल है.उनको माहौल बदल नहीं सकता. मुल्ला जैसे कट्टर मुसलमान जब आधुनिकता कीबातों वाली महफ़िल में होते हैं तो वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज़िक्र सुन कर बेजार होते हैं और दिल ही दिल में तौबा कर के महफ़िल से उठ जाते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह अनआम ६ (पांचवीं किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अनआम ६(पांचवीं किस्त)

पुर अम्न बस्ती, सुब्ह तडके का वक़्त, लोग अध् जगे, किसी नागहानी से बेखबर, खैबर वासियों के कानों में शोर व् गुल की आवाज़ आई तो उन्हें कुछ देर के लिए ख़्वाब सा लगा मगर नहीं यह तो हक़ीक़त थी. आवाज़ ए तकब्बुर एक बार नहीं, दो बार नहीं तीन बार आई '' खैबर बर्बाद हुवा ! क्यूं कि हम जब किसी कौम पर नाज़िल होते हैं तो इन की बर्बादी का सामान होता है''

यह आवाज़ किसी और की नहीं, सललल्लाहो अलैहे वसल्लम कहे जाने वाले मुहम्मद की थी. नवजवान मुकाबिला को तैयार होते, इस से पहले मौत के घाट उतार दिए गए। बेबस औरतें लौडियाँ बना ली गईं और बच्चे गुलाम कर लिए गए. बस्ती का सारा तन और धन इस्लाम का माले गनीमत बनचुका था।
एक जेहादी लु
टेरा वहीय क़ल्बी जो एक परी ज़ाद को देख कर फ़िदा हो जाता है, मुहम्मद के पास आता है और एक अदद बंदिनी की ख्वाहिश का इज़हार करता है जो उसे मुहम्मद अता कर देते हैं. वहीय के बाद एक दूसरा जेहादी दौड़ा दौड़ा आता है और इत्तेला देता है या रसूल अल्लाह सफ़िया बिन्त हई तो आप की मलिका बन्ने के लायक हसीन जमील है, वह बनी क़रीज़ा और बनी नसीर दोनों की सरदार थी.

मुहम्मद के मुंह में पानी आ जाता है,

क़ल्बी को बुलाया और कहा तू कोई और लौंडी चुन ले.

मुहम्मद की एक पुरानी मंजूरे नज़र उम्मे सलीम ने सफ़िया को दुल्हन बनाया मुहम्मद दूलह बने और दोनों का निकाह हुवा।
लुटे घर, फुंकी बस्ती में, बाप भाई और शौहर की लाशों पर सललल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सुहाग रात मनाई.

मुसलमान अपनी बेटियों के नाम मुहम्मद की बीवियों, लौंडियों और रखैलों के नाम पर रखते हैं,

यह सुवर ज़ाद ओलिमा के उलटे पाठ की पढाई की करामत है।

कुरआन में ''या बनी इसराइल'' के नाम से यहूदियों को मुहम्मदी अल्लाह मुखातिब करता है. अरब में बज़ोर तलवार बहुत सारे यहूदी मुसलमान हो गए हैं, उनकी ही कुछ शाखें हिंदुस्तान में है जो खुद को बनी इसराइल कहते हैं मगर मुहम्मद के फरेब में इतने मुब्तिला हैं कि उनकी तलवार लेकर मरनेमारने पर आमादः रहते हैं।
(बुखारी २३७)अब आइए कुरआन की ख़ुराफ़ात पर- - -


''तो आप को अगर ये कुदरत है कि ज़मीन में कोई सुरंग या आसमान में कोई सीढ़ी दूंढ़ लो फिर कोई मुअज्ज़ा लेकर आओ. अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो इन सब को राहे रास्त पर जमा कर देता, सो आप नादानों में मत हो जाएं."

सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३५)

मुहम्मद की इस जेहनी कारीगरी को क्या आम आदमी समझ नहीं सकता मगर मुसलमान आँख बंद किए, सर झुकाए इन सौदागरी बातों को समझ नहीं पा रहा है. इन बे सिर पैर की बातों का मज़ाक डेढ़ हज़ार साल पहले बन चुका था, अफ़सोस कि आज इबादत बना हुवा है. ज़हीन काफिर दीगर नबियों जैसा मुअज्ज़ा दिखने की फरमाइश जब मुहम्मद से करते हैं तो मुहम्मदी अल्लाह कहता है- - -


''अगर आप को इन काफिरों की रू गर्दानी गराँ गुज़रती है तो, फिर अगर आप को कुदरत है तो ज़मीन में कोई सुरंग या आसमान में कोई सीढ़ी दूंढ़ लो''

सूरह अनआम-६_७ वाँ पारा (आयत३७)

लीजिए अल्लाह अपने दुलारे रसूल से भी रूठ रहा है क्यूं कि वह ग़म ज़दः हो रहे हैं और धीरज नहीं रख पा रहे हैं, अल्लाह पहले बन्दों को ताने देकर बातें सुनाता है फिर मुहम्मद को. ये आलमे ख्वाहिशे पैगम्बरी में मुहम्मद की जेहनी कैफियत है जिसमे मक्र की बू आती है.


''और जितने किस्म के जानदार ज़मीन पर चलने वाले हैं और जितने किस्म के परिंदे हैं कि अपने दोनों बाजुओं से उड़ते हैं, इसमें कोई किस्म ऐसी नहीं जो तुम्हारी तरह के गिरोह न हों. हमने दफ्तर में कोई चीज़ नहीं छोड़ी फिर सब अपने परवर दिगार के पास जमा किए जाएंगे''

सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३८)

इन अर्थ और तर्क हीन बातों में मुल्लाओं ने खूब खूब अर्थ और तर्क पिरोया है. ज़रुरत है कि इसे नई तालीम की रौशनी में लाकर इनका पर्दा फाश किया जाए.


''अल्लाह जिसको चाहे बेराह कर दे - - -''

सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३९ )

अल्लाह शैतान का बड़ा भाई जो ठहरा.मुहम्मदी शैतान जो मुसलामानों को सदियों से गुमराह किए हुए 'है.

''मुहम्मद लोगों से पूछते हैं कि अगर कोई मुसीबत आन पड़े या क़यामत ही आ जाए तो अल्लाह के सिवा किसको पुकारोगे? जिससे लगता है कि उस वक़्त के लोग ईश शक्ति की बुनयादी ताक़त को न मान कर उसकी अलामतों को ही शक्ति मानते रहे होंगे. आज का आम मुसलमान भी यही समझता है, जब कि ख्वाजा अजमेरी को खुद अल्लाह कि मार्फ़त मानता है मगर अल्लाह नहीं. कुफ्र की दुश्मनी का ऐनक लगा कर ही हर मुआमले को देखता है.''

सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत४१)


''हमने और उम्मतों की तरफ भी जोकि आपसे पहले हो चुकी हैं पैगम्बर भेजे थे, सो हमने उनको तंग दस्ती और बीमारी में पकड़ा था ताकि वह ढीले पड़ जाएं''

''सो जब उन को हमारी सजाएं पहुची थीं तो वह ढीले क्यूं न पड़े? लेकिन उनके क्लूब (ह्रदय) तो सख्त ही रहे. और शैतान उनके आमाल को उनके ख़याल में आरास्ता करके दिखलाता है''

सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत४२-४३)

मुहम्मदी अल्लाह बड़ी बेशर्मी के साथ अपनी बद आमालियों के कारनामें बयान करते हुए मुहम्मद की पैगम्बरी में मदद गार हो रहा है. अपने मुकाबले में शैतान को खड़ा करके नूरा कुश्ती का खेल खेल रहा है, बालावस्था में पड़ा मुस्लिम समाज मुंह में उंगली दबाए अपने अल्लाह की करामातें देख रहा है.


''फिर जब वह लोग इन चीज़ों को भूले रहे जिनकी इनको नसीहत की जाती थी तो हमने इन पर हर चीज़ के दरवाज़े कुशादा कर दिए, यहाँ तक कि जब उन चीज़ों पर जो उनको मिली थीं, वह खूब इतरा गए तो हमने उनको अचानक पकड़ लिया, फिर तो वह हैरत ज़दः रह गए, फिर ज़ालिम लोगों की जड़ कट गई''

सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (aayat 44-45)
मुहम्मद एलान नबूवत के बाद अपनी फटीचर टुकड़ी को समझा रहे हैं कि उनके अल्लाह की ही देन है यह काफिरों की खुश हाली जो आरजी है। काश कि वह मेहनत और मशक्क़त का पैगाम देते जिस में कौमों की तरक्क़ी रूपोश है. इस्लाम का पैग़ाम तो क़त्ल ओ ग़ारत गरी और लूट पाट है

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 11 September 2011

सूरह अनआम ६-(चौथी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अनआम ६

(चौथी किस्त)


कोई देखे या न देखे अल्लाह देख रहा है


काश कि हम अल्लाह को इस क़दर करीब समझ कर ज़िन्दगी को जिएँ. मगर अल्लाह की गवाही का डर किसे है?
उसकी जगह अगर बन्दे दरोगा जी के बराबर भी डर हो तो इन्सान गुनाहों से बाज़ आ सकता है. कोई देखे या न देखे अल्लाह देख रहा है, की जगह यह बात एकदम सही होगी कि

" कोई देखे या न देखे मैं तो देख रहा हूँ."

दर अस्ल अल्लाह का कोई गवाह नहीं है, आलावा कुंद ज़ेहन मुसलमानों के जो लाउड स्पीकर से अजानें दिया करते कि

" मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई अल्लाह नहीं"

और

"मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उसके दूत हैं."

अल्लाह गैर मुस्तनद है, और मैं अपनी ज़ात को लेकर सनद रखता हूँ कि मैं हूँ.

इस लिए मेरा देखना अपने हर आमल को यकीनी है.

इसी को लेकर तबा ताबईन कहे जाने वाले मंसूर को सजाए मौत हुई,

उसने एलान किया था कि मैं खुदा हूँ (अनल हक)

इंसान अगर अपने अन्दर छिपे खुदा का तस्लीम करके जीवन जिए तो दुन्या बहुत बदल सकती है.
''यहाँ तक कि जब यह लोग आप के पास आते हैं तो आप से ख्वाह मख्वाह झ्गढ़ते हैं। यह लोग जो काफ़िर हैं वोह यूं कहते हैं यह तो कुछ भी नहीं सिर्फ बे सनद बातें हैं जो कि पहले से चली आ रही हैं और यह लोग इस से औरों को भी रोकते हैं और खुद भी इस से दूर रहते हैं और यह लोग अपने को ही तबाह करते है और कुछ खबर नहीं रखते.''

सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२६)

सोचने की बात यह है कि डेढ़ हज़ार साल उस वक़्त के लोग आज के कुंद ज़हनों से ज़्यादः समझदार थे. मूसा और ईसा के प्रचलित, किस्से दौर जहालत में अंध विशवास के रूप में रायज, थे जिसको चंट मुहम्मद ने रसूले-खुदा बन के सच साबित किया मगर बहर हाल झूट का अंजाम बुरा होता है जो आज दुन्या की एक बड़ी आबादी भुगत रही है.


''और अगर आप देखें जब ये दोज़ख के पास खड़े किए जाएँगे तो कहेंगे है कितनी अच्छी बात होती कि हम वापस भेज दिए जाएं और हम अपने रब की बातों को झूटा न बतलाएं और हम ईमान वालों में हो जाएं''

सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२7)

आगे ऐसी ही बचकानी बातें मुहम्मद करते हैं कि लोग इस पर यकीन कर के इस्लाम कुबूल करें. ऐसी बचकाना बातों पर जब तलवार की धारों से सैक़ल किया गया तो यह ईमान बनती चली गईं. तलवारें थकीं तो मरदूद आलिमों की ज़बान इसे धार देने लगीं.


''और मेरे पास ये कुरआन बतौर वही (ईश वाणी) भेजा गया है ताकि मैं इस कुरआन के ज़रीए तुम को और जिस जिस को ये कुरआन पहुंचे, इन सब को डराऊं''

सूरह अनआम-६-७वाँ पारा आयत(२८)

कुरआन बतौर वही नहीं बज़रीए वही कहें या रसूलल्लाह!

कुरआनी अल्लाह अपनी किताब कुरआन में न आगाह करता है न वाकिफ कराता है और न ख़बरदार करता है,

बस डराता रहता है.

ज़ाहिर है कि वह उम्मी है, उसके पास न तो अल्फाज़ के भंडार हैं, न ज़बान दानी के तौर तरीके. बच्चों को डराया जाता है, बड़ों को धमकाया जाता है, मुहम्मद को इस की तमाज़त नहीं. वह बड़े बूढों, औरत मर्द, गाऊदी और मुफक्किर, सब को अपने बनाए अल्लाह के बागड़ बिल्ले से डराते हैं.

मुसलमानों का तकिया कलाम बन गया है,

''अल्लाह से डरो''

भला बतलाइए कि क्यूँ ख्वाह मख्वाह अल्लाह से डरें? वह कोई साँप बिच्छू या भेडिया तो नहीं? डरना है तो अपनी बद आमालियों से डरो जिसका कि अंजाम बुरा होता है. आप की बद आमालियाँ वह हैं जो दूसरों को नुकसान पहुंचाएं.

इन कुंद ज़ेहन साहिबे ईमान मुसलामानों को कोई समझाए कि अरबों खरबों बरस से कायम इस कायनात का अगर कोई रचना कार है भी तो वह एक जाहिल जपट मुहम्मद से अपनी सहेलियों की तरह, अपने गम गुसारों की तरह, अपने महबूब की तरह बात करेगा? अगर तुम्हारा यकीन इतना ही कच्चा है तो कोई गम नहीं कि तुम इस नई दुन्या में सफा-ए- हस्ती से मिटा दिए जाओ और जगे हुए इंसानों के लिए जगह खाली करदो कि जो दो वक़्त की रोटी नहीं पा रहे हैं. हालांकि वह बेदार हैं और तुम अकीदत की नींद में डूबे हुए गुनाहगार ओलिमा को हलुवा पूरी खिला रहे हो.

मगर नहीं रुको मैं इतना और कह दूं कि मुहम्मद ने तो सिर्फ कुरैशियों की हलुवा पूरी को कायम करना चाहा था मगर यह बीमारी तो सारी दुन्या को लग गई? दुन्या को दुन्या जाने, मैं तो सिर्फ पंद्रह करोर हिदुस्तानी मुसलमानों को जगाना चाहता हूँ.


देखो कि ब्रह्माण्ड का रचैता एक धूर्त से कैसे बातें करता है - - -

''हम खूब जानते हैं कि आप को इनके अक़वाल मगमूम करते हैं, सो यह लोग आप को झूटा नहीं कहते, लेकिन यह जालिम अल्लाह ताला की आयातों का इनकार करते अनआम-६-७वाँ पारा आयत(३३)
मेरे भोले भाले मुसलमानों क्या यह अय्यारी की बातें तुम्हारे समझ में नहीं आतीं?



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 9 September 2011

सूरह अनआम ६- (तीसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -




क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।




नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.





सूरह अनआम ६-


(तीसरी किस्त)
हिदुस्तान का सितारा फ़ी वक़्त दिशा हीन और गर्दिश में है. अक्ल्लियत के मुट्ठी aaie भरa लोग हर तिमाही कुछ न कुछ धमाकेदार तोहफा मुल्क को अर्पित करते है. उनकी दहशत गर्दी उनके धर्म में मिले सबक से उन्हें मिलता है. कुरआन उनको जिहाद करने की हिदायत करता है, और वह अपनी जान की परवाह किए बगैर उस पर अमल करते हैं. जो क़ुरआनी तालीम उन्हें आतंक सिखलाती है, उसके तालीम के लिए सरकार उनके मुल्ला और मोलवियों का पालन सरकार करती है. हैरत का मुकाम है कि सीधे सीधे सरकार इनकी मदद करती है. मैं बार बार लिखता हूँ कि क़ुरआनी तालीम पर बंदिश लगाई जाय, मगर सियासत दानों को इसकी ज़रुरत है .
अभी ताज़ा मिसाल सामने आई है कि सफैद पोश जाल साज़ अमर सिंह जेल में गया कि अगले दिन अदालत में बम ब्लास्ट हुआ, लोगों का ध्यान मुजरिम से हट कर इस्लाम के नामर्दों पर आ टिका . सब भूल गए मुल्क एक बड़े दुश्मन को.
कुरआन पर पाबन्दी लगा देना कोई बड़ी बात नहीं है, मगर इसके सामानांतर मनु स्मृत जैसे हिन्दू धर्म ग्रन्थ पर पाबन्दी आयद करना. इससे तो तथा कथित गणतंत्र की मौत होगी.
सब ऐसे ही चलता रहेगा, जब तक सारे भारत वाशी धर्म ओ मज़हब के ज़हर को नहीं पहचानते.
अब आइए कुरआनी अल्लास कि जेहालत पर - - -


''और अगर हम कागज़ पर लिखा हुवा कोई नविश्ता आप पर नाज़िल फ़रमाते, फिर ये लोग इसको अपने हाथ से छू भी लेते, तब भी ये काफ़िर यही कहते, ये कुछ भी नहीं, सही जादू है और अगर हम इन को फ़रिश्ते तजवीज़ करते तो इसको आदमी ही बनाते . . . आप फ़रमा दीजिए ज़रा ज़मीन पर चलो फिरो देख लो कि तक्ज़ीब करने वालों का कैसा अंजाम हुवा.''


सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (11)


फिर मैं कुरआन के पाठकों को याद दिला दूं कि नाज़िल कोई प्रकोप ही होता है वरदान नहीं. जैसा कि मैं ने कुरआन की व्याख्या की शुरू में बतलाया था कि इस्लाम के प्रकोपित ओलिमा ने बहुत से लफ्जों के माने कुछ के कुछ कर दिए हैं. वैसे ही कुरआन वरदानित नहीं हुवा है बल्कि मुहम्मद पर प्रकोपित हुवा है. नाज़िल हुवा है. जिसे खुद वह गा बजा रहे हैं. कुरआन मुसलमानों पर मुहम्मदी अल्लाह का नज़ला है, नज़ला एक तरह की बीमारी है जो आधी बीमारियों कि जड़ होता है. जब तक मुसलमान इस नजला को नेमत समझता रहेगा उसका कल्याण कभी नहीं हो सकता. कुरआन किसी बरतर ताक़त का कलाम नहीं बल्कि एक चालाक अहमक की बतकही है.


"आप फरमा दीजिए कि मुझे ये हुक्म हुवा है कि सब से पहले मैं इस्लाम कुबूल करूँ और तुम इन मुशरिकीन में से हरगिज़ न होना. आप फरमा दीजिए कि अगर मैं अपने रब का कहना न मानूँ तो मैं एक बड़े दिन के अज़ाब से डरता हूँ.''


इन आयतों का तर्जुमा इस्लाम के मशहूर आलिम मौलाना शौकत अली थानवी का है. देखें कि उनका अल्लाह फूहड़ है या फिर उसका रसूल या फिर मौलाना का तर्जुमा. यह थानवी साहब वही हैं जो लड़कियों के तालीम के खिलाफ थे, क़ुरआन, हदीस, और अपनी गढ़ी हुई कठमुल्लाई किताबों (जैसे बेहिश्ती ज़ेवर) तक में उन्हों ने लड़कियों को एक सदी तक महदूद रखा. रसूल कैसा बच्चों को फुसला रहे है. अल्लाह जल्ले जलालहु उम्मी को आप फरमा दीजिए कह कर बात करता है, फिर अगली सांस में ही तुम पर उतर आता है. नाबालिग़ मुसलमान ऐसी पैगम्बरी की शान में नातें पढ़ रहे हैं.


अनआम -६-७वाँ पारा आयत (15)


क़ुरआन में मुस्म्मद ने जेहालत की दलीलें ऐसी फिट कीं हैं कि साहिबे इल्म अपना सर पीटे या उनका, मगर सदियों से यह दलीलें बेज़मीर ओलिमा सर झुकाए हुए बुजदिल कौम को समझा रहे हैं और उनके साथ हुकूमत की तलवारें आज भी उनके सरों पर झूल रही हैं, किसी इन्कलाब की आहट नहीं है. खुद को अल्लाह का रसूल और क़ुरआन को अल्लाह का कलाम साबित करने के लिए मुहम्मद अल्लाह की गवाही को काफी बतलाते हैं, बगैर किसी अदालत, मुक़दमा और वकील के, वही अल्लाह जिसको उन्हों से खुद गढा है. कहते हैं कि अगर अल्लाह ने कोई तकलीफ दिया है तो वही दूर करने वाला भी है.यह बात मुस्लिम समाज की इतनी दोहराई गई है कि गैर मुस्लिम भी यह गान गाने लगे हैं. मौत का मज़ा चखाने वाला भी यही ज़ालिम अल्लाह मुस्लिम समाज से है.अल्लाह मियाँ मुहम्मद से कहते हैं



''क्या तुम सचमुच गवाही दोगे कि अल्लाह के साथ और कोई देव भी हैं? आप कह दीजिए कि मैं तो गवाही नहीं देता. आप कह दीजिए कि वह तो बस एक ही माबूद है और बेशक मैं तुम्हारे शिर्क से बेजार हूँ"


उम्मी मुहम्मद की उम्मियत की इन जुमलों से बढ़ कर कोई गवाही नहीं हो सकती. इन मोहमिलात और अपनी पागलों कि सी बातों से खुद मुहम्मद परेशान हुए होंगे और इन बातों से पीछा छुडाते हुए इसे अल्लाह का कलाम करार दे दिया और इसकी तिलावत सवाब करार दे दी गई.'' जिन लोगों को हमने किताब दी वह लोग इसको इस तरह पहचानते हैं जिस तरह बेटों को पहचानते हैं.


हाँ! आलमे इंसानियत के लिए ना लायक़ और ना जायज़ बेटों की तरह.


'' जिन लोगों ने अपने आप को ज़ाया कर लिया वह ईमान न लाएंगे''


सच तो ये है वह ज़ाया हुवा जो उम्मी के नाक़बत अनदेशियों और उसकी जेहालत का शिकार हुवा.


फिर एक बार क़यामत में मुशरिकों पर मुक़दमे का सिलसिला शुरू होता है और उम्मी मुहम्मद की हठ धर्मी की गुफ्तुगू. हम इस मुसीबत की तफसील में जाना नहीं चाहते, अजीयत पसंद चाहें तो तर्जुमा पढ़ लें वर्ना वास्ते तिलावत टालें.''

सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (१६-२४)

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 7 September 2011

'सूरह अनआम -६-७वाँ पारा (दूसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -


क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अनआम ६-(दूसरी किस्त)



मुसलमानों!
क्या तुम को मालूम है कि इस वक्त दुन्या में और खास कर बर्रे सगीर हिंद (भारत उप महा द्वीप) में आप का सब से बड़ा दुश्मन कौन है?
कोई और नहीं आप को पीछे खडा आप का मज़हबी रहनुमा, आप का आलिमे दीन, मौलाना, मोलवी साहब और मुल्लाजी का गिरोह.
जी हाँ! चौंकिए मत यही हज़रात आप के अस्ल मुजरिम हैं, बजाहिर आप के खैर ख्वाह. ये मजबूरी में पेशेवर हैं क्यूं कि इनको इसमें ढाला गया है,और कोई जीविका इनके लिए नहीं है . इनका ज़रीया मुआश दीन है.मगर इनके लिए दीन कोई हकीक़त नहीं, जैसा कि आप समझते हैं. यह दीन के करीब तर रह कर इसको उरियाँ हालत में देख चुके हैं. अब इन लिए कुछ बचा नहीं जो देखना बाकी रह गया हो. अब तो इन्हें दीन की पर्दापोस्शी करनी है.इनको इनकी तालीमी वक्फे में यही सिखलाया गया है. यही ''पर्दापोस्शी".
यह
निन्नानवे फी सद आलिमे दीन गरीब, मुफ़लिस, मोहताज घरों के फाका कश बच्चे होते हैं. तालीम के नाम पर जो कुछ पाया है, इसी में फसल जोतना, बोना, सींचना और काटना है.
यह
पैदाइशी मुन्तक़िम (प्रति शोधक) होते हैं, इसकी वजह गुरबत के मारे, दूसरी वजह तालीमी विषय का इन पर गलत थोपन है.
ये
अव्वल दर्जे के अय्यार, परले दर्जे के ईमान फरोश होते हैं. ये अपने साथ की गई समाजी ना इंसाफी का बदला उस समाज से गिन गिन कर लेते है जिसने इनके साथ इंसाफी की है.
आप
अपने बच्चों को इनके से दूर रखिए क्यूंकि कुरआनी जन्नत में मिलने वाली हूरें और गुलामों की यौन सेवाएँ इन्हें जिंसी बे राह रवी का शिकार बना देती हैं. मस्जिद के हुजरे हों चाहे मदरसे की छत, ये हर जगह बाल शोषण करते हुए पकडे जाते हैं.
यह
दीन धरम के खुद साख्ता पैगम्बर और स्वयम्भू बने भगवान आज तक अपने विरोधी इन्सान को, इंसानियत को जी भर के कोसते काटते, गलियां, देते और तरह तरह की उपाधियाँ प्रदान करते चले आए हैं. हम कुछ नहीं कर सकते थे, कानून इनका संरक्षक था और है. हुकूमतें इनकी पुश्त पनाही में थीं और हैं. जनता इनके साथ में थी और है मगर शिक्षित,और जागृति जनता, बेदार अवाम अब सिर्फ हमारे साथ हैं.हम सुरक्षा महसूस कर रहे हैं. सदियों से ये हमें धिक्कारते चले रहे हैं अब हमारी बारी है इनकी पोल पट्टी खोलने की, एक बुद्दी जीवी हजारो भेड़ बकरियों पर भरी पड़ेगा. हम शुक्र गुज़र हैं गूगल आदि वेब साइड्स के, हम शुक्र गुज़र है ब्लॉग के उस मुकाम के अविष्कार के जहाँ कबीर का सच बोला जा सकेगा.अब सदाक़त धडाधड छपेगी और कोई कुछ बिगड़ पाएगा.
काश कि मुहम्मद एक अदना अरबी शायर ही होते कि उनके सर पर करोरो इंसानी खूनों का अजाब तो होता.तीन आयतें , , ऐसी ही मुहम्मद की जाहिलाना बकवास हैं.
''
उन्हों ने देखा नहीं हम उनके पहले कितनी जमाअतों को हलाक कर चुके हैं, जिनको हमने ज़मीन पर ऐसी कूवत दी थी कि तुम को वह कूवत नहीं दिया और हम ने उन पर खूब बारिश बरसाईं हम ने उनके नीचे से नहरें जारी कीं फिर हमने उनको उनके गुनाहों के सबब हलाक कर डाला''
सूरह
अनआम --७वाँ पारा आयत (6)
मुहम्मद
का रचा अहमक अल्लाह अपने जाल में आने वाले कैदियों को धमकता है कि तुम अगर मेरे जाल में गए तो ठीक है वर्ना मेरे ज़ुल्म का नमूना पेश है, देख लो. उस वक्त के लोगों ने तो खैर खुल कर इन पागल पन की बातों का मजाक उडाया था मगर जिहाद के माले-गनीमत की हांडी में पकते पकते आज ये पक्का ईमान बन गया है. यही अलकायदा और तल्बानियों का ईमान है. ये अपनी मौत खुद मरेंगे मगर आम बे गुनाह मुसलमान अगर वक़्त से पहले चेते तो गेहूं के साथ घुन की मिसाल बन जायगी.
''
और ये लोग कहते हैं कि इनके पास कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं भेजा गया और अगर हम कोई फ़रिश्ता भेज देते तो सारा किस्सा ही ख़त्म हो जाता, फिर इन को ज़रा भी मोहलत दी जाती.''
सूरह
अनआम --७वाँ पारा आयत (8)
यानी
फ़रिश्ता हुवा कोहे तूर पर झलकने वाली इलोही की झलक हुई कि उसके दिखते ही लोग खाक हो जाते. देखें कि एक हदीस में इसके बर अक्स मुहम्मद क्या कहते हैं---
''
मुहम्मद सहबियों की झुरमुट में बैठे थे कि एक शख्स आकर कुछ सवाल पूछता है - - -- ईमान क्या है? -इस्लाम क्या है? -एहसान क्या है? और क़यामत कब आएगी? मुहम्मद उसको अपनी जेहनी जेहालत से लबरेज़ बेतुके जवाब देते हैं. उसके जाने के बाद लोगों से पूछते हैं कि जानते हो यह कौन थे? लोगों ने कहा अल्लाह के रसूल ही बेहतर जानते हैं. फ़रमाया जिब्रील अलैहिस्सलाम थे दीन बतलाने आए थे.( बुखारी-४७)
ये है मुहम्मद का कुरआनी और हदीसी दो विरोधाभासी अवसर वादिता. यह मोह्सिने इंसानियत नहीं थे बल्कि इंसानियत कि जड़ों में मट्ठा डालने वाले नस्ल-ए-इंसानी के बड़े मुजरिम थे.
कुरआन में अल्लाह बार बार कहता है कि उसे तमस्खुर (हंसी-मज़ाक) पसंद नहीं. लोग तमस्खुर उसी शख्स से करते है जो बेवकूफी कि बातें करता है.खुद साख्ता बने अल्लाह के रसूल कुरआन में ऐसी ऐसी बे वज़्न और बेवकूफी की बातें करते हैं कि हंसी आना लाजिम है, इस पर तुर्रा ये कि ये अल्लाह की भेजी हुई आयतं हैं.हर दिन एक एक टुकडा अल्लाह की आयत बन कर नाजिल होता है. इस पर काफिर कहते हैं कि
'' क्यूं नहीं तुम्हारा अल्लाह यक मुश्त मुकम्मल किताब आसमान से सीढी लगा कर किसी फ़रिश्ते के मार्फ़त एक बार में ही भेज देता.'' देखिए कि बन्दों के इस माकूल सवाल का नामाकूल अल्लाह का जवाब - - -
''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (10)
और वाकई आप (खुद साख्ता पैगम्बर मुहम्मद को अल्लाह भी एह्तरामन आप कहता है. ये कमीनगी आलिमान दीन के क़लम का ज़ोर है) से पहले जो पैगम्बर हुए हैं उन के साथ भी इस्तेह्जा (मज़ाक) किया गया है फिर जिन लोगों न इन के साथ तमस्खुर (मज़ाक) किया उन को एक अजाब न आ घेरा जिसका वह मजाक उड़ा रहे थे''

ये
है मुहम्मद का कुरआनी और हदीसी दो विरोधाभासी अवसर वादिता. यह मोह्सिने इंसानियत नहीं थे बल्कि इंसानियत कि जड़ों में मट्ठा डालने वाले नस्ल--इंसानी के बड़े मुजरिम थे.कुरआन में अल्लाह बार बार कहता है कि उसे तमस्खुर (हंसी-मज़ाक) पसंद नहीं. लोग तमस्खुर उसी शख्स से करते है जो बेवकूफी कि बातें करता खुद.