Sunday 31 May 2020

खेद है कि यह वेद है (67)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (67)

हे वन स्वामी इंद्र 
जब तुमने तीन सौ भैसों का मांस खाया, 
सोम रस से भरे तीन पात्रों को पिया 
एवं वृत्र को मारा, 
तब सब देवों ने सोमरस से पूर्ण तृप्त इंद्र को 
उसी प्रकार बुलाया जैसे मालिक अपने दास को बुलाता है. 
पंचम मंडल सूक्त - 8 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
सभी देवता नशे में मद मस्त हो गए तो आदर सम्मान की मर्यादा खंडित थी. वह बक रहे हैं - - - 
अबे इंद्र !
इधर आ, सुनता नहीं ? 
दूं कंटाप पर एक ताँ कर !! 
सरे पूज्य देवों को पंडित ने हम्माम में नंगा कर दिया है.
सारे हिदू जन साधारण, इस वेद जाल में फंसे हुए हैं. कहते हैं वेद मन्त्रों को समझना हर एक के बस की बात नहीं. 
आप समझें कि आप कहाँ हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 30 May 2020

खेद है कि यह वेद है (66

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (66)

हे अग्नि ! 
तुम हमारे सामने आकर अनुकूल एवं कर्म साधक बनो. 
जिस प्रकार मित्र के सामने मित्र एवं संतान के प्रति माता पिता होते हैं. 
मनुष्य मनुष्य के द्रोही बने हैं. 
तुम हमारे विरोधी शत्रुओं को भस्म करो. 
हे अग्नि हमें हराने के इच्छुक शत्रुओं के बाधक बनो. 
हमारे शत्रु तुमको द्रव्य नहीं देते. 
उनकी इच्छा नष्ट करो. 
हे निवास देने वाले एवं कर्म ज्ञाता अग्नि ! 
यज्ञ कर्मों में मन न लगाने वालों को दुखी करो 
क्योकि तुम्हारी किरणें जरा रहित हैं.
त्रतीय मंडल  सूक्त 1 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
इन वेद मन्त्रों से ज़ाहिर होता है कि कुंठित वर्ग अग्नि से आग्रह कर रहा है 
कि वह उसके दुश्मनो का नाश करे. 
कौन थे इन मुफ्त खोरों के दुश्मन ? 
वही जो इनको दान दक्षिणा नहीं देते थे, न इनको टेते  थे. 
यही प्रवृति आज भी बनी हुई है. 
आज भी इस वर्ग को गवारा नहीं कि कोई इनसे आगे बढे. 
मंदिरों और मूर्तियों को गंगा जल से धोते हैं, 
यदि शुद्र या दलिद्र बना वर्ग इसमें प्रवेश कर जाए.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 29 May 2020

खेद है कि यह वेद है (65)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (65)

हे अग्नि ! जो यजमान स्रुज उठाकर तुम्हें प्रज्वलित करता है  
एवं दिन में तीन बार तुम्हें हव्य अन्न देता है, 
हे जातवेद ! 
वह तुम्हें संतुष्ट करने वाले ईंधन आदि से बढ़ते हुए 
तुम्हारे तेज को जानता हुवा 
धन द्वारा शत्रुओं को पूरी तरह हरावे. 
चतुर्थ मंडल सूक्त 12 -1 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
आज के युग में इन वेद मन्त्रों के शब्द गुत्थी को सुल्जना ही मुहाल है, 
इनके अर्थ मे जाना समय की बर्बादी. 
इन्हें पेशेवर पंडित और पुजारियों की स्म्मानित भिक्षा स्रोत कहा जा सकता है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 28 May 2020

खेद है कि यह वेद है (64)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (64)

परम सेवनीय अग्नि की उत्तम कृपा मनुष्यों में उसी प्रकार परम पूजनीय है , 
जिस प्रकार दूध की कामना करने वाले देवों के लिए 
गाय का शुद्ध, तरल एवं गरम दूध 
अथवा गाय मांगने वाले मनुष्य को दुधारू गाय.
चतुर्थ मंडल 
सूक्त 6 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
वेद कर्मी सदा ही लोभ से ओत-प्रोत रहते हैं. 
इनमें मर्यादा की कोई गरिमा कहीं नज़र नहीं आती. 
इनके देव भी लोभी और 
परम देव भी लोभी , 
एक कटोरा दूध के लिए इन देवों की राल टपकती रहती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 27 May 2020

खेद है कि यह वेद है (64)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (64)

परम सेवनीय अग्नि की उत्तम कृपा मनुष्यों में उसी प्रकार परम पूजनीय है , 
जिस प्रकार दूध की कामना करने वाले देवों के लिए 
गाय का शुद्ध, तरल एवं गरम दूध 
अथवा गाय मांगने वाले मनुष्य को दुधारू गाय.
चतुर्थ मंडल 
सूक्त 6 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
वेद कर्मी सदा ही लोभ से ओत-प्रोत रहते हैं. 
इनमें मर्यादा की कोई गरिमा कहीं नज़र नहीं आती. 
इनके देव भी लोभी और 
परम देव भी लोभी , 
एक कटोरा दूध के लिए इन देवों की राल टपकती रहती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 26 May 2020

खेद है कि यह वेद है (63)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (63)

महान अग्नि प्रातःकाल से प्रज्ज्वलित होकर ज्वाला के रूप में रहते हैं 
एवं अन्धकार से निकल कर अपने तेज के द्वारा यज्ञ स्थल पर जाते हैं. 
शोभन ज्वालाओं वाले एवं यज्ञ के लिए उत्पन्न अग्नि अपने अन्धकार नाशक तेज के द्वारा सभी यज्ञ गृहों को पूर्ण करते है.

दसवाँ मंडल 
सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
हिन्दू मानव डरपोक हो गया , जिसकी बड़ी वजेह है यह वेद पंक्तियाँ. मानव समाज की बड़ी दुश्मन है आग जो उसका सर्व नाश करती है. कहते हैं आग की तपिश वस्तु को शुद्ध कर देती है, मेरा मानना यह है कि यह शुद्धता और अशुद्धता, सब को समाप्त  कर देती है. वेद ने सब से बड़ा देव आग को माना है, हर दूसरा मन्त्र अग्नि देव को समर्पित है. डरपोक हिन्दू हज़ार साल तक इन्ही वेदों के कारण ग़ुलाम रहा.  

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 25 May 2020

खेद है कि यह वेद है (62)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (62)

हे सोम ! 
तुम्हें इंद्र के पीने के लिए निचोड़ा गया है. 
तुम अतिशय मादक 
और मादक धारा से निचड़ो

नवाँ मंडल सूक्त 1

(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
सोम के कई अर्थ हैं, मगर वेदों में इसके अर्थ शराब के सिवा और कुछ नहीं. 
चतुराई से वेद ज्ञाता अवाम को बहकते हैं कि सोम कोई और पवित्र चीज़ होती है. शराब सिर्फ इस्लाम में हराम है बाक़ी सभी धर्मों में पवित्र. ईसा शराब के नशे में हर समय टुन्न रहते. इंद्र भाब्वन भी सोम रस के बिना टुन्न कैसे रह सकते है. 
अतिशय मादक दारू उनको हव्य में दी जाती तभी तो सोलह हज़ार पत्नियों को रखते होंगे.
वेद निर्माता पंडित जी शराब के नशे में डूबे लबरेज़ पैमाने से वार्तालाप कर रहे हैं. पैमाने को मुखातिब कर रहे हैं और उसको हिदायत दे रहे है. पैमाने को क्या पता कि उसको कौन पिएगा, वह आगाह कर रहे हैं कि खबर दार तुमको राजा इन्दर ग्रहण करेगे. तुमको और नशीला होना पड़ेगा. नशे की लहर से निचड़ो.
कुछ लोग मुझे सलाह देते हैं कि वेद को समझने के किए तुम्हें राजा इन्दर की तरह टुन्न होना पड़ेगा वरना वेद तुमको ख़ाक समझ आएगा.
यही मशविरा मुस्लिम ओलिमा भी देते हैं कि क़ुरान समझने के लिए तुम्हें दिल और दिमाग़ चाहिए.
वेद कोई पुण्य पथ नहीं, वेदना है समाज के लिए. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 24 May 2020

खेद है कि यह वेद है (62)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (62)

हे सोम ! 
तुम्हें इंद्र के पीने के लिए निचोड़ा गया है. 
तुम अतिशय मादक 
और मादक धारा से निचड़ो

नवाँ मंडल सूक्त 1

(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
सोम के कई अर्थ हैं, मगर वेदों में इसके अर्थ शराब के सिवा और कुछ नहीं. 
चतुराई से वेद ज्ञाता अवाम को बहकते हैं कि सोम कोई और पवित्र चीज़ होती है. शराब सिर्फ इस्लाम में हराम है बाक़ी सभी धर्मों में पवित्र. ईसा शराब के नशे में हर समय टुन्न रहते. इंद्र भाब्वन भी सोम रस के बिना टुन्न कैसे रह सकते है. 
अतिशय मादक दारू उनको हव्य में दी जाती तभी तो सोलह हज़ार पत्नियों को रखते होंगे.
वेद निर्माता पंडित जी शराब के नशे में डूबे लबरेज़ पैमाने से वार्तालाप कर रहे हैं. पैमाने को मुखातिब कर रहे हैं और उसको हिदायत दे रहे है. पैमाने को क्या पता कि उसको कौन पिएगा, वह आगाह कर रहे हैं कि खबर दार तुमको राजा इन्दर ग्रहण करेगे. तुमको और नशीला होना पड़ेगा. नशे की लहर से निचड़ो.
कुछ लोग मुझे सलाह देते हैं कि वेद को समझने के किए तुम्हें राजा इन्दर की तरह टुन्न होना पड़ेगा वरना वेद तुमको ख़ाक समझ आएगा.
यही मशविरा मुस्लिम ओलिमा भी देते हैं कि क़ुरान समझने के लिए तुम्हें दिल और दिमाग़ चाहिए.
वेद कोई पुण्य पथ नहीं, वेदना है समाज के लिए. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 23 May 2020

खेद है कि यह वेद है (61)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (61)

हे मित्र स्तोताओ ! 
तुन इंद्र के अतरिक्त किसी की स्तुति मत करो. 
तुम क्षीण मत बनो.
सोम रस निचुड़ जाने पर एकत्र होकर 
अभिलाषा पूर्वक इंद्र की स्तुति करते हुए बार बार स्तोत्र बोलो 

आठवाँ मंडल 
सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
वेद में सैकड़ों देव है जिनकी स्तुति वेद कराता है. यहाँ पर सिर्फ इंद्र देव के अतरिक्त किसी दूसरे की स्तुति करने से रोकता है ? 
भक्त गण कान बंद करके मन्त्र को सुनते हैं और मंत्रमुघ्त होते हैं. 
शूद्रों को वेद मन्त्र सुनना वर्जित है , कारण ? सुन लें तो उनके कानों में पिघला हुवा शीशा पिलाने का हुक्म है. यह इस लिए कि अनपढ़ शूद्र इन मंत्रो को सुन कर पंडितों की मूर्खता पर क़हक़हे लगा सकता है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 22 May 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (71+72)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (71+72)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>सदैव मेरा चिंतन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो. इस प्रकार से तुम निश्चित रूप से पास आ जाओगे. मैं तुहें वचन देता हूँ, क्यों कि तुम मेरे परम प्रिय मित्र हो.
>>समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ. मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूंगा. डरो मत. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -  18 श्लोक 59- 63 
>जो व्यक्ति भक्तों को यह परम रहस्य बताता है, 
वह स्गुद्ध भक्ति को प्राप्त करेगा 
और अंत में वह मेरे पास वापस आएगा.
>>इस संसार में उसकी अपेक्षा कोई सेवक न तो मुझे अधिक प्रीय है और न कभी होगा.
>>>और मैं घोषित करता हूँ कि जो हमारे इस पवित्र संवाद का अध्ययन करता है, वह अपनी बुद्धि से मेरी पूजा करता है. 
>>>>और जो श्रद्धा समेत तथा द्वेष रहित होकर इसे सुनता है, 
वह सारे पापों से मुक्त हो जाता है 
और उन शुभ लोकों को प्राप्त होता है, जहाँ पुण्य आत्माएं निवास करती हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -  18 श्लोक 68-69-70-71 
*क्या आज आज़ाद भारत में जहाँ गरीबों को रेखाएं दबा रही हों, 
ऐसी तालीम देना जुर्म नहीं ? 
भोले भले आस्थावान नागरिकों को यह ब्लेक मेल नहीं करती ?

और क़ुरआन कहता है - - - 
>देखिए मुहम्मद के मुंह से अल्लाह को या अल्लाह के मुंह से मुहम्मद को, 
यह बैंकिंग प्रोग्राम पेश करते हैं 
जेहाद करो - - - अल्लाह के पास आपनी जान जमा करो , 
मर गए तो दूसरे रोज़ ही जन्नत में दाखला, 
मोती के महल, हूरे, शराब, कबाब, एशे लाफानी, 
अगर कामयाब हुए तो जीते जी माले गनीमत का अंबार 
और अगर क़त्ताल से जान चुराते हो का याद रखो 
लौट कर अल्लाह के पास ही जाना है, 
वहाँ खबर ली जाएगी. 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत २४४+२४५) 
कितनी मंसूबा बंद तरकीब है बे वकूफों के लिए 
 और अल्लाह कि राह में क़त्ताल करो. 
कौन शख्स है ऐसा जो अल्लाह को क़र्ज़ दिया 
और फिर अल्लाह उसे बढा कर बहुत से हिस्से कर दे 
और अल्लाह कमी करते हैं और फराखी करते हैं और तुम इसी तरफ ले जाए जाओगे" 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 21 May 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (69-70)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (70)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>यदि तुम मेरे निर्देशानुसार काम नहीं करते और युद्ध में प्रवृत नहीं होते हो तो तुम कुमार्ग पर जाओगे. तुम्हें अपने स्वभाव वश युद्ध में लगना चाहिए.
>>इस प्रकार मैंने तुम्हें गुह्यतर ज्ञान बतला दिया. इस पर पूरी तरह मनन करो.और तब जो चाहो करो. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -  18 श्लोक 59- 63 
*
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>मेरा शुद्ध भक्त मेरे मेरे संर क्ष ण में समस्त प्रकार के कार्यों में संलग्न रह कर भी मेरी कृपा से नित्य तथा अविनाशी धाम को प्राप्त होता है.
>>सारे कार्यों के लिए मुझ पर निर्भर रहो.और मेरे संर क्ष ण में सदा कर्म करो.ऐसी भक्ति में मेरे प्रति पूर्णतया सचेत रहो.
>>>लेकिन यदि तुम मिथ्या, अहंकार वश ऐसी चेन में काम नहीं करोगे और मेरी बात नहीं सुनोगे, तो तुम विनष्ट हो जाओगे. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -18    श्लोक 56-57 -58 
*

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 19 May 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (67 = 68)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (67+68)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>प्रत्येक उद्योग (प्रयास) किसी न किसी दोष से आवृत होता है, 
जिस प्रकार अग्नि धुंए से आवृत रहती है. 
अतएव हे कुंती पुत्र ! 
मनुष्य को चाहिए कि स्वाभाव से उत्पन्न कर्म को, 
भले ही वह दोष पूर्ण क्यों न हों, कभी त्यागे नहीं.
>>केवल भक्ति से मुझ भगवान् को यथा रूप में जाना जा सकता है. जब मनुष्य ऐसी भक्ति से मेरे पूर्ण भावनामृत में होता है, तो वह बैकुंठ जगत में प्रवेश करता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -18    श्लोक -48-55  
*
>हे परन्तप ! 
ब्राह्मणों, क्षत्रियो, वैश्यों तथा शूद्रों में प्रकृति के गुण के अनुसार उनके स्वभाव द्वारा उत्पन्न गुणों के द्वारा भेद किया जाता है. 
>>शांति प्रियता, आत्म संयम, तपश्या, पवित्रता, सहिष्णुता, सत्य निष्ठां, ज्ञान, विज्ञान तथा धार्मिकता --- यह सरे स्वभाव गुण हैं, जिनके द्वारा ब्राह्मण कर्म करते हैं.
>>>वीरता, शक्ति, संकल्प, द क्ष ता, युद्ध में धैर्य, उदारता तथा नेतृत्व --- क्ष त्रियों के स्वाभाविक गुण हैं .
>>>>कृषि करना, गो र क्षा तथा व्यापार वैश्यों के स्वाभाविक कर्मा हैं और शूद्रों का कर्म श्रम तथा अन्यों की सेवा करना.
अपने अपने कर्म के गुणों का पालन करते हुए प्रत्येक व्यक्ति सिद्ध हो सकता है. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -  18 श्लोक -41-42-43-44- 
*
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 18 May 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (66)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (66)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>जो कर्ता सदा शास्त्रों के आदेशों के विरुद्ध कार्य करता रहता है,
जो भौतिक वादी, हठी, कपटी तथा अन्यों का अपमान करने में पटु है 
तथा जो आलसी, सदैव खिन्न तथा काम करने में दीर्घ सूत्री है, 
वह तमोगुणी कहलाता है.  
>>इस लोक में, स्वर्ग लोकों में या देवताओं के मध्य में कोई भी ऐसा व्यक्ति विद्यमान नहीं है, जो प्रकृति के तीन गुणों से मुक्त हो.   
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -18   श्लोक -28 -40  
*हे मूरख भगवान !
तूने आखिर समस्त मानव को सतो गुणी ही क्यूँ न बनाया ? 
सब कुछ तो तेरे हाथ में था. तू चाहता तो मानव क्या, 
पशु को भी सतो गुणी बना देता, 
तमो गुणी और रजो गुणी मनुष्य बना कर गीता रचता है ? 
ताकि तेरा छलावरण का धंधा चलता रहे. 
तू अपनी लाठी से जनगण को हाकता रहे ?
 कब तक इंसान तेरी दासता को ओढ़ते और बिछाते रहेगे ?
प्रक्रति के केवल तीन गुण नहीं सैकड़ों गुण हैं, 
तेरा मस्तिष्क केवल तीन तक सीमित है. 
वैज्ञानिकों के एक गुण को भी तू नहीं जानता. 
और क़ुरआन कहता है - - - 
>देखिए कि अल्लाह अपने आदरणीय मुहम्मद को कैसे लिहाज़ के साथ मुखातिब करता है - - -
"क्या हमने आपकी खातिर आपका सीना कुशादा नहीं कर दिया,
और हमने आप पर से आपका बोझ उतार दिया,
जिसने आपकी कमर तोड़ रक्खी थी,
और हमने आप की खातिर आप की आवाज़ बुलंद किया,
सो बेशक मौजूदा मुश्किलात के साथ आसानी होने वाली है,
तो जब आप फारिग हो जाया करेंतो मेहनत करें,
और अपने रब की तरफ़ तवज्जो दें."
सूरह इन्शिराह ९४ - पारा ३० आयत(१-८)
नमाज़ियो!
धर्म और मज़हब का सबसे बड़ा बैर है नास्तिकों से जिन्हें इस्लाम दहेरया और मुल्हिद कहता है. वो इनके खुदाओं को न मानने वालों को अपनी गालियों का दंड भोगी और मुस्तहक समझते हैं. 
कोई धर्म भी नास्तिक को लम्हा भर नहीं झेल पाता. यह कमज़र्फ और खुद में बने मुजरिम, समझते हैं कि खुदा को न मानने वाला कोई भी पाप कर सकता है, क्यूंकि इनको किसी ताक़त का डर नहीं. ये कूप मंडूक नहीं जानते कि कोई शख्सियत नास्तिक बन्ने से पहले आस्तिक होता है और तमाम धर्मों का छंद विच्छेद करने के बाद ही क़याम पाती है. वह इनकी खरी बातों को जो फ़ितरी तकाज़ा होता हैं, उनको ग्रहण कर लेता है और थोथे कचरे को कूड़ेदान में डाल देता है. यही थोथी मान्यताएं होती हैं धर्मों की गिज़ा. नास्तिकता है धर्मो की कसौटी. पक्के धर्मी कच्चे इंसान होते हैं. नास्तिकता व्यक्तित्व का शिखर विन्दु है.
एक नास्तिक के आगे बड़े बड़े धर्म धुरंदर, आलिम फाजिल, ज्ञानी ध्यानी आंधी के आगे न टिक पाने वाले मच्छर बन जाते हैं. 
जागो मुसलामानों जागो.
 देखिए कि अल्लाह अपने आदरणीय मुहम्मद को कैसे लिहाज़ के साथ मुखातिब करता है - - -
"क्या हमने आपकी खातिर आपका सीना कुशादा नहीं कर दिया,
और हमने आप पर से आपका बोझ उतार दिया,
जिसने आपकी कमर तोड़ रक्खी थी,
और हमने आप की खातिर आप की आवाज़ बुलंद किया,
सो बेशक मौजूदा मुश्किलात के साथ आसानी होने वाली है,
तो जब आप फारिग हो जाया करेंतो मेहनत करें,
और अपने रब की तरफ़ तवज्जो दें."
सूरह इन्शिराह ९४ - पारा ३० आयत(१-८)
क्या क्या न सहे हमने सितम आप की खातिर
नमाज़ियो!
धर्म और मज़हब का सबसे बड़ा बैर है नास्तिकों से जिन्हें इस्लाम दहेरया और मुल्हिद कहता है. वो इनके खुदाओं को न मानने वालों को अपनी गालियों का दंड भोगी और मुस्तहक समझते हैं. कोई धर्म भी नास्तिक को लम्हा भर नहीं झेल पाता. यह कमज़र्फ और खुद में बने मुजरिम, समझते हैं कि खुदा को न मानने वाला कोई भी पाप कर सकता है, क्यूंकि इनको किसी ताक़त का डर नहीं. ये कूप मंडूक नहीं जानते कि कोई शख्सियत नास्तिक बन्ने से पहले आस्तिक होता है और तमाम धर्मों का छंद विच्छेद करने के बाद ही क़याम पाती है. वह इनकी खरी बातों को जो फ़ितरी तकाज़ा होता हैं, उनको ग्रहण कर लेता है और थोथे कचरे को कूड़ेदान में डाल देता है. यही थोथी मान्यताएं होती हैं धर्मों की गिज़ा. नास्तिकता है धर्मो की कसौटी. पक्के धर्मी कच्चे इंसान होते हैं. नास्तिकता व्यक्तित्व का शिखर विन्दु है.
एक नास्तिक के आगे बड़े बड़े धर्म धुरंदर, आलिम फाजिल, ज्ञानी ध्यानी आंधी के आगे न टिक पाने वाले मच्छर बन जाते हैं. 
पिछले दिनों कुछ टिकिया चोर धर्मान्ध्र नेताओं ने एलक्शन कमीशन श्री लिंग दोह पर इलज़ाम लगाया थ कि वह क्रिश्चेन हैं इस लिए सोनिया गाँधी का खास लिहाज़ रखते हैं. 
जवाब में श्री लिंगदोह ने कहा था,"मैं क्रिश्चेन नहीं एक नास्तिक हूँ और इलज़ाम लगाने वाले नास्तिक का मतलब भी नहीं जानते." 
बाद में मैंने अखबार में पढ़ा कि आलमी रिकार्ड में "आली जनाब लिंगदोह, दुन्या के बरतर तरीन इंसानों में पच्चीसवें नंबर पर शुमार किए गए हैं. ऐसे होते हैं नास्तिक.
फिर मैं दोहरा रहा हूँ कि दुन्या की ज़ालिम और जाबिर तरीन हस्तियाँ धर्म और मज़हब के कोख से ही जन्मी है. जितना खूनी नदियाँ इन धर्म और मज़ाहब ने बहाई हैं, उतना किसी दूसरी तहरीक ने नहीं. और इसके सरताज हैं मुहम्मद अरबी जिनकी इन थोथी आयतों में तुम उलझे हुए हो.
जागो मुसलामानों जागो.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 16 May 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (65)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (65)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
> हे महाबाहु अर्जुन ! 
वेदान्त के अनुसार समस्त कर्मों की पूर्ति के लिए पांच करण हैं --- 
अब तुम इसे मुझ से सुनो.
कर्म का स्थान (शरीर) 
कर्ता 
विभिन्न इन्द्रियाँ 
अनेक प्रकार की चेष्टाएँ
तथा परमात्मा.
यह पांच कर्म के करण हैं.
>>मनुष्य अपने शरीर मन या वाणी से जो भी उचित या अनुचित कर्म करता है, 
वह इन पांच कारणों के फल स्वरूप होता है.
>>>जो मिथ्या अहंकार से प्रेरित नहीं है, 
वह इस संसार में मनुष्य को मारता हुवा भी नहीं मारता. 
न ही वह अपने कर्मों से बंधा हुवा होता है.

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 18- श्लोक - 13-14-15-17  
*सृष्टि रचैता भगवान् कृष्ण का रूप लेकर एक मंद बुद्धि अर्जुन को सम्मान देता है, महा बाहुबली की उपाधि देता है, 
उसको पहाड़े रटाता, 
दो इक्कम दो, दो दूनी पांच, दो तिहाई सात - - - 
अर्जुन सदैव ऊहा पोह में रथ-बंधक बन कर उसकी ऊँट पटांग सुनता है, 
कभी कृष्ण से सवाल करने के बाद जवाब पर सवाल नहीं करता. 
पोंगा पंडित इंसानी फितरत को हमेशा तीन, पांच और दस आदि संख्यकी गगित में सीमित करता है. 
अपनी अल्प बुद्धि से गीता ज्ञान प्रसारित करता है. 
वह कहता है - - -
 "वह इस संसार में मनुष्य को मारता हुवा भी नहीं मारता."
है न - - -दो इक्कम दो, दो दूनी पांच, दो तिहाई सात - - - 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>देखिए कि अल्लाह कुछ बोलने के लिए बोलता है, 
यही बोल मुसलमानों से नमाज़ों में बुलवाता है - - -
"जब ज़मीन अपनी सख्त जुंबिश से हिलाई जाएगी,
और ज़मीन अपने बोझ बहार निकल फेंकेगी,
और आदमी कहेगा, क्या हुवा?
उस  रज अपनी सब ख़बरें बयान करने लगेंगे,
इस सबब से कि आप के रब का इसको हुक्म होगा उस रोज़ लोग मुख्तलिफ़ जमाअतें बना कर वापस होंगे ताकि अपने आमाल को देख लें.
सो जो ज़र्रा बराबर नेकी करेगा, वह इसको देख लेगा
और जो शख्स ज़र्रा बराबर बदी करेगा, वह इसे देख लेगा.
सूरह  ज़िल्ज़ाल ९९   - पारा ३० 
आयत (१-८)
नमाज़ियो!
ज़मीन हर वक़्त हिलती ही नहीं बल्कि बहुत तेज़ रफ़्तार से अपने मदार (ध्रुव) पर घूमती है. 
इतनी तेज़ कि जिसका तसव्वुर भी कुरानी अल्लाह नहीं कर सकता. 
अपने मदार पर घूमते हुए अपने कुल यानी सूरज का चक्कर भी लगती है 
अल्लाह को सिर्फ यही खबर है कि ज़मीन में मुर्दे ही दफ्न हैं जिन से वह बोझल है 
तेल. गैस और दीगर मदनियात से वह बे खबर है. 
क़यामत से पहले ही ज़मीन ने अपनी ख़बरें पेश कर दी है और पेश करती रहेगी मगर अल्लाह के आगे नहीं, साइंसदानों के सामने.
धर्म और मज़हब सच की ज़मीन और झूट के आसमान के दरमियाँ में मुअललक फार्मूले है.ये पायाए तकमील तक पहुँच नहीं सकते. नामुकम्मल सच और झूट के बुनियाद पर कायम मज़हब बिल आखिर गुमराहियाँ हैं. अर्ध सत्य वाले धर्म दर असल अधर्म है. इनकी शुरूआत होती है, ये फूलते फलते है, उरूज पाते है और ताक़त बन जाते है, फिर इसके बाद शुरू होता है इनका ज़वाल ये शेर से गीदड़ बन जाते है, फिर चूहे. ज़ालिम अपने अंजाम को पहुँच कर मजलूम बन जाता है. दुनया का आखीर मज़हब, मजहबे इंसानियत ही हो सकता है जिस पर तमाम कौमों को सर जड़ कर बैठने की ज़रुरत है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 15 May 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (64)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (64)

अर्जुन ने कहा - - -
> हे महाबाहु ! मैं त्याग का उद्देश्य जानने का इच्छुक हूँ  और 
हे  केशिनिषूदन !
हे हरिकेश !
मैं त्यागमय जीवन (संन्यास आश्रम) का भी उद्देश्य जानना चाहता हूँ.
>>भगवान् ने कहा --- भौतिक इच्छा पर आधारित कर्मों के परित्याग को विवान लोग संन्यास कहते हैं. और समस्त कर्मों के फल त्याग को बुद्धिमान लोग त्याग कहते हैं. 
>>>हे भारत श्रेष्ट ! अब त्याग के विषय में मेरा निर्णय सुनो.
हे नरशार्दूल !
शास्त्रों में त्याग तीन प्रकार का बतलाया गया है.
>>>यज्ञ दान तथा तपश्या के कर्मों का कभी परित्याग नहीं करना चाहिए, उन्हें आवश्य संपन्न करना चाहिए. निःसंदेह  य ज्ञ दान तथा तपश्या महात्माओं को भी शुद्द बनाते हैं. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -18   श्लोक -1-2-4\5-   
 *इन संदेशों से जनता जनार्दन को क्या सन्देश मिलता है, 
सिवाय महान आत्माओं के ? 
महान आत्माएं क्या मेहनत कश किसान और मज़दूर के बिना ज़िन्दा बच सकते हैं ? मगर जनता जनार्दन इन महानों के बिना जी सकते है, 
बल्कि बेहतर जी सकते है, 
इस लिए कि इनके मेहनत का फल उनके हिस्से में बिना मेहनत के चला जाता है.

***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 14 May 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (63)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (63)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -

> परमेश्वर, ब्राह्मणों, गुरु, माता पिता जैसे गुरु जनों की पूजा करना 
तथा पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा ही शारारिक तपश्या है. 
>> मनुष्य को चाहिए कि कर्म फल की इच्छा किए बिना विविध प्रकार के यज्ञ, तप तथा दान को 'तत्' शब्द कह कर संपन्न करे. 
ऐसी दिव्य क्रियाओं का उद्देश्य भव-बंधन से मुक्त होता है. 
>>> हे पार्थ ! श्रद्धा के बिना यज्ञ, दान, या तप के रूप में जो भी किया जाता है,
वह नश्वर है. वह 'असत्त' कहलाता है और इस जन्म और अगले जन्म --- 
दोनों में ही व्यर्थ जाता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 17  श्लोक - 14 - 25 -28  
गीता की गाथा को नए नज़रिए से परखने की ज़रुरत है.
*
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 13 May 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (62)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (62)

अर्जुन ने कहा - - -
>हे कृष्ण ! 
जो लोग शास्त्र का पालन न करके अपनी कल्पना के अनुसार पूजा करते हैं, 
उनकी स्थिति कौन सी है ?
वो सतोगुणी गुणी हैं, रजोगुणी हैं या तमोगुणी ? 
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>>सतो गुणी देवताओं को पूजते हैं, 
रजो गुणी यक्षो व् राक्षसों की पूजा करते हैं 
और तमोगुणी व्यक्ति भूत-प्रेतों को पूजते हैं.
>>>यज्ञों में वही यज्ञ सात्त्विक होता है, जो शास्त्रों निर्देशानुसार  कर्तव्य समझ कर लोगों द्वारा किया जाता है, जो फल की इच्छा नहीं करते. 
>>>> जो यज्ञ शास्त्रों के निर्देश की अवहेलना करके, प्रसाद वितरण किए बिना, पुरोहितों को दक्षिणा दिए बिना, तथा श्रद्धा के बिना संपन्न किया जाता है, वह तमसी माना जाता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -17   श्लोक -1-4- 11    
ब्रह्मनो द्वारा रचा गया माया जाल जो आज तक उनकी पीढ़ियों का उद्धार करता है और बाकियों का सर्व नाश 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 12 May 2020

खेद है कि यह वेद है (60)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (60)

यज्ञ के नेता ऋत्विज, दूर से दिखाई देने वाले, गृहपति एवं गति शाली अग्नि को हाथों की गति एवं उँगलियों की सहायता से अरणि से उत्पन्न करते हैं,

सातवाँ मंडल 
सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
नेता ऋत्विज कौन हैं और गृहपति कौन हैं ? 
कहीं यह अग्नि देव को मिली उपाधियाँ तो नहीं ?? 
जो भी हों इस युग में इनकी कोई उपयोगता नहीं. 
 हाथों की गति एवं उँगलियों की सहायता से अरणि (मथना) क्या उत्पन्न करते है?
अधूरी बात कहके पंडित जी महिमा मंडित होते है. 
इसी लिए वेदों का मंत्रोच्चार होता है , समझने की ज़हमत न करें.
ठीक ऐसा ही क़ुरान है जो तिलावत (पाठ) के लिए होता है ,
इसे समझने की इजाज़त मुल्ला कभी नहीं देता .

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (61)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (61)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>जो शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करता है 
और मनमाने ढ़ंग से काम करता है, 
उसे न तो सिद्धि, न सुख, न परम गति की प्राप्ति हो पती है. 
>>अतएव मनुष्य को यह जानना चाहिए कि 
शास्त्रों के विधान के अनुसार क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य है. 
उसे ऐसे विधि विधानों को जान कर कर्म करना चाहिए.
जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके.   
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -16   श्लोक -23-24   
* धर्म के आदेशों का तनिक भी अवहेलना किया तो, 
उसकी कल्पित मुक्ति आपके हाथों से फिसली. 
मानव का मन चाहा जीवन उसे गवारा नहीं. 
विडंबना है कि आज इक्कीसवीं सदी में भारत उप महाद्वीप की आधी से ज़्यादः आबादी इन की दासता को स्वीकार करती है, बाकियों में ज़्यादः हिस्सा लोग धर्म के छलावे को जानते हुए भी इसका संचालित किए हुए हैं, इस लिए कि इस में उनका स्वार्थ निहित है. यह लोग शिक्षित हैं मगर धर्मान्धता को कायम किए हुए है. अस्ल मुजरिम समाज के यही लोग है.
ठीक ही कहा है शास्त्र ने 
" ऐसे विधि विधानों को जान कर कर्म करना चाहिए.जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके" 
और सोए हुए लोग क्रमशः नीचे गिरते रहे .   

और क़ुरआन कहता है - - - 
>''जिस रोज़ तुम इसको देखोगे, तमाम दूध पिलाने वालियाँ अपने बच्चों को दूध पिलाना भूल जाएँगी और तमाम हमल वालियाँ अपना हमल डाल देंगी और तुझको लोग नशे के आलम में दिखाई देंगे.हालांकि वह नशे में न होंगे मगर अल्लाह का अज़ाब है सख्त.'' 
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२-३)
कबीलाई बन्दे मुहम्मद तमाज़त और मेयार को ताक पर रख कर गुफ्तुगू कर रहे हैं. क़यामत का बद तरीन नज़ारा वह किस घटिया हरबे को इस्तेमाल कर, कर रहे है कि जिसमे औरत ज़ात रुसवा हो रही है. और मर्द शराब के नशे में बद मस्त अपनी औरतों की रुस्वाइयाँ देख रहे होगे. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 11 May 2020

खेद है कि यह वेद है (60)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (60

यज्ञ के नेता ऋत्विज, दूर से दिखाई देने वाले, गृहपति एवं गति शाली अग्नि को हाथों की गति एवं उँगलियों की सहायता से अरणि से उत्पन्न करते हैं,

सातवाँ मंडल 
सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
नेता ऋत्विज कौन हैं और गृहपति कौन हैं ? 
कहीं यह अग्नि देव को मिली उपाधियाँ तो नहीं ?? 
जो भी हों इस युग में इनकी कोई उपयोगता नहीं. 
 हाथों की गति एवं उँगलियों की सहायता से अरणि (मथना) क्या उत्पन्न करते है?
अधूरी बात कहके पंडित जी महिमा मंडित होते है. 
इसी लिए वेदों का मंत्रोच्चार होता है , समझने की ज़हमत न करें.
ठीक ऐसा ही क़ुरान है जो तिलावत (पाठ) के लिए होता है ,
इसे समझने की इजाज़त मुल्ला कभी नहीं देता .

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 9 May 2020

खेद है कि यह वेद है (59)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (59)

हे अग्नि ! तुम देवों में श्रेष्ट हो. 
उनका मान तुम से संबध है 
हे दर्शनीय ! तुम ही इस यज्ञ में देवों को बुलाने वाले हो. 
हे कामवर्षी ! सभी शत्रुओं को पराजित करने के लिए तुम हमें अद्वतीय शक्ति दो.

छठां मंडल 
सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
कुरआन के अनुसार जो अग्नि काफिरों का जलाती है वही अग्नि काफिरों (हिन्दुओं) की पूजनीय बनी हुई है. 
धर्म व् मज़हब के तमाशे देखिए.
वेदों इन्हें देवों में श्रेष्ट मानते हैं तो कुरआन में इन्हें बद तरीन ?
आग वाक़ई दर्शनीय है, दूर से दिखाई देती है. बाक़ी देव अदर्शनीय ही होते हैं, 
धर्म ग्रन्थ उनका दर्शन नहीं करा सकते, उनके नाम पर ठगी कर सकते हैं.
कामवर्षी ? इन्दर देव ही हो सकते है.
ब्रह्म चारियों और योग्यों को चाहिए कि वह इन्दर देव की उपासना करे, 
उनका रोग शीग्र दूर हो जाएगा. जिंस ए लतीफ़ से आशना हो जाएँगे.
मठाधीश मैदान ए जंग में कभी भी नहीं आते बस देवों को बुलाया करते है.
महमूद गज़नवी 17 लुटेरों को साथ लेकर आया और सोम नाथ को लूट कर ले गया, वहां मौजूद सैकड़ों पुजारी ज़मीन पर औंधे मुंह पड़े सोमदेव को सहायता के लिए बुलाते रहे.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 8 May 2020

खेद है कि यह वेद है (58)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (58)

गाय के सामान आने वाली उषा के पश्चात् अध्वर्यु आदि की समिधाओं द्वारा अग्नि प्रज्वलित होते हैं. 
अग्नि की शिखाएं महान हैं. 
अग्नि विस्तृत शाखाओं वाले वृक्ष के सामान आकाश की ओर बढ़ते हैं .
पंचम मंडल 
सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
पोंगा पंडित की उपमा देखिए प्रातः काल के मद्धम आगमन को गाय के आगमन से जोड़ता है. इसके आने के बाद यज्ञ में जलने वाली लकड़ियाँ प्रज्वलित होती हैं.
आग की लपटें महान है ? 
कैसे??
यह लपटें विस्तृत शाखाओं वाले वृक्ष के सामान आकाश की ओर बढ़ती हैं .
बस मंत्र ख़त्म 
पैसा हजम 
हो गया मन्त्र पूरा.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 7 May 2020

खेद है कि यह वेद है (57)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (57)

हे शोभन धन के स्वामी अग्नि ! 
तुम यज्ञ में महान एवं संतान युक्त धन के स्वामी हो. 
हे बहुधन संपन्न अग्नि ! 
हमें अधिक मात्रा वाला, सुख कारक एवं कीर्ति दाता धन प्रदान करो.
तृतीय मंडल सूक्त 1 (6)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
पंडित जी देवों को मस्का मार रहे हैं, उनका गुनगान कर रहे हैं, अपने कल्पित देवों की महिमा उनको बतला रहे हैं. इसी तरह मुसलमान अपने तसव्वुर किए हुए अल्लाह को मुखातिब करता है, तू रहीम है, तू करीम है, तू हिकमत वाला है, तू मेरे लिए सब  कुछ कर सकता है. दोनों में फर्क इतना है कि यह सीधे अपने ख्याली अल्लाह से मुखातिब है  और वह देवों और मानव के दरमियाँ दलाल बैठाए हुए है. 
दोनों अपने कल्पित शक्ति से बगैर मेहनत का फल मांग रहे हैं. कुदरत के बख्शे हुए हाथों की सलामती और उसमे बल की दुआ कोई नहीं मांग रहा.
अग्नि साहिबे-औलाद ? अर्थात "संतान युक्त " 
कैसे हो सकता है कि आग के भी संतान हो ? 
पंडित जी "रूपी" लगा लगा कर सब को रूप वान कर देते हैं. 
न परिश्रम करते हैं न अपने नस्लों को परिश्रम की शिक्षा देते नज़र आते हैं. 
कपटी कुटिल मनुवाद इन

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 5 May 2020

खेद है कि यह वेद है (56)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (56)

हे शोभन धन के स्वामी अग्नि ! 
तुम यज्ञ में महान एवं संतान युक्त धन के स्वामी हो. 
हे बहुधन संपन्न अग्नि ! 
हमें अधिक मात्रा वाला, सुख कारक एवं कीर्ति दाता धन प्रदान करो.
तृतीय मंडल सूक्त 1 (6)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
पंडित जी देवों को मस्का मार रहे हैं, उनका गुनगान कर रहे हैं, अपने कल्पित देवों की महिमा उनको बतला रहे हैं. इसी तरह मुसलमान अपने तसव्वुर किए हुए अल्लाह को मुखातिब करता है, तू रहीम है, तू करीम है, तू हिकमत वाला है, तू मेरे लिए सब  कुछ कर सकता है. दोनों में फर्क इतना है कि यह सीधे अपने ख्याली अल्लाह से मुखातिब है  और वह देवों और मानव के दरमियाँ दलाल बैठाए हुए है. 
दोनों अपने कल्पित शक्ति से बगैर मेहनत का फल मांग रहे हैं. कुदरत के बख्शे हुए हाथों की सलामती और उसमे बल की दुआ कोई नहीं मांग रहा.
अग्नि साहिबे-औलाद ? अर्थात "संतान युक्त " 
कैसे हो सकता है कि आग के भी संतान हो ? 
पंडित जी "रूपी" लगा लगा कर सब को रूप वान कर देते हैं. 
न परिश्रम करते हैं न अपने नस्लों को परिश्रम की शिक्षा देते नज़र आते हैं. 
कपटी कुटिल मनुवाद इन

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 4 May 2020

खेद है कि यह वेद है (55)



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (55)
हे अग्नि ! 
विस्तीर्ण तेज द्वारा अत्यंत दीप्त,
 तुम हमारे शत्रुओं तथा रोग रहित राक्षसों का विनाश करो. 
मैं सुखदाता, महान एवं उत्तम आह्वान अग्नि की सुरक्षा में रहूँगा.  
तृतीय मंडल सूक्त 15 (1)
पंडित रोगी, रोग रहित राक्षसों का विनाश चाहता है. ईश्वर ने तो दोनों के कर्म को देख कर ही उन पर परिणाम थोप दिया है, अब इन मन्त्रों से तो ईश परिणाम बदलने से रहे. पंडित और मुल्ला खुद अपने दांतों से अपने नस्लों के लिए  कब्र खोदते हैं.  
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 3 May 2020

खेद है कि यह वेद है (54)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (54)

हे अग्नि ! 
अन्न और निर्माण करने वाली उषा तथा निशा तुम्हारे समीप जाती हैं. 
तुम भी वायु रूपी मार्ग से उनके समीप जाओ. 
क्योंकि ऋत्वज हवि द्वारा तुझ प्राचीन अग्नि को सीचते हैं. 
जुवे की तरह परस्पर मिली हुई उषा और निशा हमारी यज्ञ शाला में बराबर रहें.
तृतीय मंडल सूक्त 14 (2)

कहा इनका यह अपने आप समझें या खुदा समझे . 
मज़ा कहने का जब इक कहे और दूसरा समझे .
अगर हो सत्य वाणी , हर किसी के दिल को छूती है ,
पढ़े  मंतर जो अगर पंडित तो कोई चूतिया समझे .
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 2 May 2020

खेद है कि यह वेद है (53)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (53)

हे अग्नि ! 
हम हव्य दाताओं के लिए सुख कारक घर प्रदान करें, 
अग्नि के पास से धरती, आकाश और स्वर्ग का उत्तम धन हमारे पास आए.
तृतीय मंडल सूक्त 13(4)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

दोसतो ! मुनकिर बनो, अर्थात इनकार करना भी सीखो. स्वीकार करते करते तुमने इस ज़मीं को उततु कर दिया है. समाज को दिशाहीन कर दिया है. 21 वीं सदी में उट्ठक बैठक की नमाज़ें पढ़ रहे हैं. भंगेड़ी और चरसी भगवानों का घंटा हिला रहे हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 1 May 2020

खेद है कि यह वेद है (52)



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (52)

इस यज्ञ के साधन भूत सोमरस की प्रेरणा से 
मैं स्तोताओं के लिए सुख दाता  इंद्र और अग्नि का वरण करता हूँ. 
वह इस यज्ञ में सोम पी कर तृप्त हों. 
मैं शत्रु बाधक, वृत्र नाशक, विजयी, अपराजित एवं 
अधिक मात्रा में अन्न  देने वाले इंद्र एवं अग्नि को बुलाता हूँ.
  तृतीय मंडल सूक्त 12(3)
ऐसा लगता है सारे देव गण इन पुजारियों के चाकर हैं जिनके इशारे पर यह यजमान के घर दौड़े चले आते हैं. मुर्ख यजमान के टुकड़े पर पलने वाले यह धूर्त हजारों वर्षों से मूरखों का दोहन कर रहे है. कुछ पाठकों को मेरी इन बातों में छेद  ही छेद दिखाई देता है, दू सरे पाठक उनका छेद पाट देते हैं, उनको ऐसा जवाब देते हैं कि फिर मुझे बोलने की ज़रुरत नहीं पड़ती.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान