Tuesday 31 January 2017

Hindu Dharm Darsha 38

देह दान
दोसतो ! 
देह दान के विषय में मेरी कल की post पर बहुत से COMENTS आए, 
आप लोगों ने पसंद किया, अच्छा लगा. 
कुछ लोगों ने भावुक होकर मुझे सलाम, नमन और salute किया है, 
मुझे शर्म और संकोच का आभास हो रहा है. मै अति जन साधारण हूँ.
आप सभी लोग मेरी तरह हैं, कुछ मुझ से बेहतर भी होंगे. 
दर अस्ल हम लोग परिवेश को दासता करते हैं, 
माँ बाप और बुजुर्गों के असर में उनकी तरह ही सोचते हैं. 
इसी को मुनासिब मानते हैं. 
कुछ जात-पात और धर्म के शिकार बन जाते है,
तो कुछ सियासत के शिकार. 
यह मुनासिब नहीं है.आपकी आज़ादी का तक़ाज़ा है कि 
आप पहले अपने वजूद को पहचानिए, अपने निजता में आइए, 
तमाम बंधनों से मुक्त होकर खुद को पहचानिए. 
"आप्पो दोपो भवः" का मन्त्र जपिए , 
आपके सामने माक़ूलयत (वास्तु स्थिति) खड़ी होगी.
माँ बाप और बुज़ुरगों की सेवा और पालन पोषण फ़र्ज़ हैं 
न कि उनकी पौराणिकता को ढोना. 
जैसे कि इन्ही पोस्टों में अक़ील अंसारी एक नमूने हैं.
याद रखें खुद को पा जाने के बाद आपका जीवन भार हीन हो जाएगा.
तो देरी किस बात की ?
शुरुआत करिए 'देह दान' के शुभ काम से, 
आप की रूचि देखकर मैं आपका मार्ग दर्शन के लिए तैयार हूँ.  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 30 January 2017

Soorah hashr 59

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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मदीने से चार मील के फासले पर यहूदियों का एक खुश हाल क़बीला, नुज़ैर नाम का रहता था, जिसने मुहम्मद से समझौता कर रखा था कि मुसलामानों का मुक़ाबिला अगर काफ़िरों से हुवा तो वह मुसलामानों का साथ देंगे और दोनों आपस में दोस्त बन कर रहेंगे. इसी  सिलसिले में एक रोज़ यहूदियों ने मुहम्मद की, खैर शुगाली के जज़्बे के तहत  दावत की.
 बस्ती की खुशहाली देख कर मुहम्मद की आँखें खैरा हो गईं. उनके मन्तिकी ज़ेहन ने उसी वक़्त मंसूबा बंदी शुरू कर दी. अचानक ही बगैर खाए पिए उलटे पैर मदीना वापस हो गए और मदीना पहुँच कर यहूदियों पर इल्ज़ाम लगा दिया कि काफ़िरों से मिल कर ये मूसाई मेरा काम तमाम करना चाहते थे. वह एक पत्थर को छत के ऊपर से गिरा कर मुझे मार डालना चाहते थे. इस बात का सुबूत तो उनके पास कुछ भी न था मगर सब से बड़ा सुबूत उनका हथियार अल्लाह की वह्यी थी कि ऐन वक़्त पर उन पर नाज़िल हुई.
इस इलज़ाम तराशी को आड़ बना कर मुहहम्मद ने बनी नुज़ैर कबीले पर अपने लुटेरों को लेकर यलगार कर दिया. मुहम्मद के लुटेरों ने वहाँ ऐसी तबाही मचाई कि जान कर कलेजा मुंह में आता है. 
बस्ती के बाशिंदे इस अचानक हमले के लिए तैयार न थे, उन्हों ने बचाव के लिए अपने किले में पनाह ले लिया और यही पनाह गाह उनको तबाह गाह बन गई. 
खाली बस्ती को पाकर कल्लाश भूके नंगे मुहम्मदी लुटेरों ने बस्ती  का तिनका तिनका चुन लिया. उसके बाद इनकी तैयार फसलें जला दीं, यहाँ पर भी बअज न आए, उनकी बागों के पेड़ों को जड़ से काट डाला. फिर उन्हों ने किला में बंद यहूदियों को बहार निकला और उनके अपने हाथों से बस्ती में एक एक घर को आग के हवाले कराया.
तसव्वुर कर सकते हैं कि उन लोगो पर उस वक़्त क्या बीती होगी. इसकी मज़म्मत खुद मुसलमान के संजीदा अफराद ने की, तो वही वहियों का हथियार मुहम्मद ने इस्तेमाल किया. कि मुझे अल्लाह का हुक्म हुवा था. 
यहूदी यूँ ही मुस्लिम कश नहीं बने, इनके साथ मुहम्मदी जेहादियों ने बड़े मज़ालिम किए है. 

"वह ही है जिसने कुफ्फार अहले-किताब को उनके घरों से पहली बार इकठ्ठा करके निकाला. तुम्हारा गुमान भी न था कि वह अपने घरों से निकलेंगे और उन्हों ने ये गुमान कर रखा था कि इनके क़िले इनको अल्लाह से बचा लेंगे. सो इन पर अल्लाह ऐसी जगह से पहुँचा कि इनको गुमान भी न था, इनके दिलों में रोब डाल दिया था कि अपने घरों को खुद अपने हाथों से उजाड़ रहे थे,
सो ए दानिश मंदों! इबरत हासिल करो"
सूरह हश्र -५९ पारा २८ आयत (२)

"इन हाजत मंद मुहाजिरीन का हक है जो अपने घरों और अपने मालों से जुदा कर दिए गए. वह अल्लाह तअला के फज़ल और रज़ा मंदी के तालिब हैं और वह अल्लाह और उसके रसूल की मदद करते हैं.और यही लोग सच्चे हैं और इन लोगों का दारुस्सलाम में इन के क़ब्ल से क़रार पकडे हुए हैं. जो इनके पास हिजरत करके आता है, उससे ये लोग मुहब्बत करते हैं और मुहाजरीन को जो कुछ मिलता है, इससे ये अपने दिलों में कोई रश्क नहीं कर पाते और अपने से मुक़द्दम रखते हैं. अगरचे इन पर फाकः ही हो.और जो शख्स अपनी तबीयत की बुखल से महफूज़ रखा जावे, ऐसे ही लोग फलाह पाने वाले हैं. 
सूरह हश्र -५९ पारा २८ आयत (7-9)

" जो खजूर के दरख़्त तुम ने काट डाले या उनको जड़ों पर खड़ा रहने दिया सो अल्लाह के हुक्म के मुवाकिफ हैं ताकि काफ़िरों को ज़लील करे"
"जो कुछ अल्लाह ने अपने रसूल को दिलवाया सो तुमने उन पर न घोड़े दौडाए न ऊँट, लेकिन अल्लाह अपने रसूल को जिस पर चाहे मुसल्लत कर देता है और अल्लाह को हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत है कि जो अपने रसूल को दूसरी बस्तियों के लोगों से दिलवाए .  रसूल जो कुछ तुम्हें दें, ले लिया करो. और जिसको रोक  दें, रुक जाया करो, अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है."

"अगर हम इस कुरआन को पहाड़ नाज़िल करते तो तू इसको देखता कि अल्लाह के खौफ से डर जाता और फट जाता और इन मज़ामीन अजीब्या को हम लोगों के लिए बयान करते हैं ताकि  वह सोचें."
सूरह हश्र -५९ पारा २८ आयत (8-२१ )   

बस्ती बनी नुज़ैर की लूट पाट में मुहम्मद को पहली बार माली फ़ायदा हुवा है. माले-गनीमत को लेकर मदीने के लुटेरे मुहम्मद से काफी नाराज़ है कि उनको नज़र अंदाज़ किया जा रहा है. 
मुहम्मद उन्हें तअने दे रहे हैं कि
"तुमने उन पर न घोड़े दौडाए न ऊँट, लेकिन अल्लाह अपने रसूल को जिस पर चाहे मुसल्लत कर देता है " 
जो कुछ मिल रहा है, रख लो. 
रसूल के अल्लाह पर एक नज़र डालें, वह भी रसूल की तरह ही मौक़ा परस्त है 
"सो इन पर अल्लाह ऐसी जगह से पहुँचा कि इनको गुमान भी न था, इनके दिलों में रोब डाल दिया था कि अपने घरों को खुद अपने हाथों से उजाड़ रहे थे," 
मुहम्मद अपनी छल कपट से अल्लाह बन बैठे थे मगर मॉल-गनीमत के लालची सब कुछ समझते हुए भी खामोश रहते. अल्लाह को मानो चाहे मुहम्मद को मिलना चाहिए माल.
मुहम्मद ने अल्लाह की वहियाँ उतारते हुए और मुहाजिरों की हक अदाई का सहारा लेते हुए लूटे हुए तमाम मॉल को अपने हक में कर लिया. इतिहास कार कहते हैं कि उन्हों ने इस लड़ाई में मिले मॉल को अपने घरो के लिए रख लिया था और अपनी नौ बीवियों के नाम बनी नुज़ैर की तमाम जायदाद वक्फ़ कर दिया था.

 हरामी ओलिमा लिखते हैं कि

 ''सल्लल्हो अलैहे वासलं ने जब रेहलत की तो उनके खाते में कुल छ दरहम मिले. वहीँ दूसरी तरफ़ कहते हैं कि रसूल की बीवियाँ धन दौलत की आमद से ऐसी बेनयाज़ होतीं कि पलरों में अशर्फियाँ आतीं मगर उनको कोई खबर न होती कि वह सब गरीबों में तकसीम हो जातीं."

खुद साख्ता पैगम्बर मुहम्मद के ज़माने में इनकी क़ुरआनी बरकतों से मुतास्सिर होकर जो ईमान लाए वह अक़ली मैदान में निरा गधे थे, इन में जो शामिल नहीं, वह सियासत दान थे, चापलूस थे, मसलेहत पसंद गुडे या फिर गदागर थे.
 बाद में तो तलवार के से में सारा अरब इस्लाम का बे ईमान, ईमान वाला बन गया था. इस से इनका फायदा भी हुवा मगर सिर्फ माली फायदा. माले-गनीमत ने अरब को मालदार बना दिया. उनकी ये खुश हाली बहुत दिनों तक कायम न रही, हराम की कमाई हराम में गँवाई. मगर हाँ तेल की दौलत ने इन्हें गधा से घोडा ज़रूर बना दिया है. अफ़सोस गैर अरब के मुसलमानों पर है कि जो जेहादी असर के तहत या किसी और वजेह से क़ुरआनी अल्लाह और उसके रसूल पे ईमान लाए, वह गधे बाक़ी बचे न घोड़े बन पाए, सिर्फ़ खच्चर बन कर रह गए हैं जो गैर फितरी और गैर इंसानी निज़ामे मुस्तफा को ढो रहे हैं. तालीमी दुन्या में इनकी नस्ल अफज़ाई कभी भी नहीं हो सकती.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 28 January 2017

Hindu Dharm Darsha 37



ज़िंदगी क्या चीज़ थी और क्या समझा किए 

मैं आभारी हूँ उन तमाम पाठकों का जो सही मअनों में मुझे समझ सके हैं .
इस दुन्या को बहुत जल्दी एक नईं सोच की जरूरत है, 
बहुत जल्द मैं इस लिए लिख रहा हूँ कि सदियों से रेंगती हुई दुन्या में, 
बीसवीं सदी में वैज्ञानिक इन्कलाब आया है, 
सब कुछ बहुत तेज़ी से बदल रहा है. 
नए नए मानव मूल्य हर रोज़ वजूद में आ रहे हैं. 
मज़हब और धर्म के आधार पर जहाँ भी निज़ाम क़ायम रहेगा, 
नई सोच और बेहतर अनजाम से वहां लोग बंचित रहेगे. 
बंचित ही नहीं इनके बंधक और ग़ुलाम रहेंगे. 
जगी हुई दुन्या नए नए सय्यारों पर बसने लगेगी और हमारी नस्लें सजदों में पड़े रहेगे, या शंकर जी का घंटा बजाते रहेगे.
सदियों से रेंगती दुन्या 21 वीं सदी में नित नए स्वारूप ले रही है.
हमें धार्मिक आस्थाओं को कठोरता के साथ नकारना पड़ेगा. 
यही नहीं इतिहास को भी ताक़ पर रखना होगा,  
जब कभी इसकी टेक्नीकल ज़रुरत हो ताक़ से उतार कर देख लें.
हम पूरी ज़िन्दगी लड़ाई झगडे में इस लिए गुज़ार देते है कि तुम्हारे पूर्वजों ने हमारे पूर्वजों को मारा था,
मारा होगा, मारने की भी कुछ वजह रही होगी.
सब पुराने मुआमले हमें भूल जाना चाहिए. 
इसके बाद दुन्या का जो स्वारूप बनेगा वह ग़ैर ज़रूरी फुज़ूल के ख़ारजी मुआमलों से भार मुक्त होगा, जो वर्तमान को जिएगा और भविष्य को तलाश करेगा.
एक नया परिवेश आपके सामने होगा जहाँ अपनी धरती ही ईश्वर स्वरूप नजर आएगी जिसके अंश ही हम सब है. 
धरती को बचाना, इसे सजाना संवारना, इस पर बसी बनस्पति को सुलझाना, 
इस पर हर जीव से कुछ समझौते के साथ इन्साफ करना ही हमारा लक्ष होगा. 
हम अशरफ़ुल मख़लूक़ात इस लिए हैं 
कि इंसान ही ऐसी हसती है जिसे कुदरत ने मनन और चिंतन अता किया है 
जो अनजाम कार आज पेड़ों और गुफाओं से निकल कर दूसरे ग्रहों पे जा पहुंचा है. 
भैसें पागुर करते हुए वजूद में आई थीं, आज भी पागुर कर रही हैं.
आज दुन्या के लिए इस्लाम खंजर की तरह है 
मनुवाद खास कर भारत के लिए जोंक की तरह.
इस्लाम इंसान को क़त्ल व् गारत करके मिटा रहा है, 
मनुवाद अहिंसा प्रीय है, 
इंसान को मारता नहीं बल्कि पूरी उम्र उसका खून चूसता रहता है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 27 January 2017

Soorah Mujadala 58

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मुजादला ५८ पारा २८

इस्लामी इन्केलाब
आज कल इस्लामी दुन्या में तब्दीली की एक लहर आई हुई है. पुरानी बादशाहत, ख़िलाफ़त और सुल्तानी से मुसलामानों का दिल ऊब गया है. मिस्र में हुस्नी मुबारक को बहुत दिनों झेलने के बाद उन्हें गद्दी से अवाम ने हटा दिया है. हटा तो दिया इन्केलाब बरपा करके मगर अब ले आएं किसको? कोई जम्हूरी तहरीक तो वहाँ है नहीं तो आईन मुरत्तब कर रहे हैं कि देखिए क्या करेंगे. फिलहाल उन्हों ने अपने ऐवान से सदर हुस्नी मुबारक की तस्वीर हटा कर उस खाली जगह पर "अल्लाह" की तस्वीर लगा दी गई है. मुसलमानों का मुल्क है, ज़ाहिर है मुहम्मदी अल्लाह का इक्तेदार और निजाम आने वाला है.
हर इस्लामी मुल्क में अवाम लाशूरी तौर पर इस्लाम से बेज़ार है, मगर मुट्ठी भर इस्लामी जादूगर कामयाब हो जाते है, अवाम फिर उन्हें एक अरसे तक झेलने के लिए मजबूर हो जाती है. ये कोई गैर इस्लामी समाज नहीं है कि लोगों में पुर मानी इन्केलाब आने के कोई आसार हों, अवाम को नए सिरे से गुमराह किया जायगा नमाज़ रोज़ा हज और ज़कात जैसे अरकान में अफीमी नशे में और धकेला जाएगा. सददाम और गद्दाफी की औलादें नए सिरे से ऐश करने के लिए पैदा हो जाएंगी.
मदीना में मक्का के कुछ नव मुस्लिम, अपने कबीलाई खू में मुकामी लोगों के साथ साथ रह रहे हैं. रसूल के लिए दोनों को एक साथ संभालना ज़रा मुस्श्किल हो रहा है.कबीलाई पंचायतें होती रहती हैं. मुहम्मद की छुपी तौर पर मुखालिफत और बगावत होती रहती है, मुख्बिर मुहम्मद को हालात से से आगाह किए रहते हैं. उनकी ख़बरें जो मुहम्मद के लिए वह्यी के काम आती हैं,. लोग मुहम्मद के इस चाल को समझने लगे है, जिसका अंदाज़ा मुहम्मद को भी हो चुका है, मगर उनकी दबीज़ खाल पर ज़्यादा असर नहीं होता है, फिर भी शीराज़ा बिखरने का डर तो लगा ही रहता है.वह मुनाफिकों को तम्बीह करते रहते हैं मगर एहतियात के साथ.
लीजिए क़ुरआनी नाटक पेश है- - -  

"बेशक अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली जो अपने शौहर के मुआमले में झगडती थी और अल्लाह तअला से शिकायत करती थी और अल्लाह तअला तुम दोनों की गुफ्तुगू सुन रहा था, अल्लाह सब कुछ सुनने वाला है." (१)
सबसे पहले जुमले में अल्लाह की गोयाई लग्ज़िशें देखें, ज़मीर गायब और ज़मीर हाज़िर बयक वक़्त.
किसी गाँव कें मियाँ बीवी का झगडा इतना तूल, पकड़ गया था कि सारे गावँ में इसकी चर्चा थी और मुहम्मद तक भी ये बात पहुँची, फिर मक्र करते हुए  कहते हौं,"बेशक अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली " मोहम्मदी पैगम्बरी बगैर झूट बोले एक क़दम भी नहीं चल सकती.

"तुम में से जो लोग अपनी बीवियों से इज़हार करते हैं और कह देते हैं तू मेरी माँ जैसी है और वह उनकी माँ नहीं हो गई. इनकी माँ तो वही है जिसने इनको जना. वह लोग बिला शुबहा एक नामाक़ूल और झूट बात करते हैं."  (२-३)
दौर एत्दल में जिसे इस्लामी आलिम 'दौरे-जेहालत' कहा करते हैं, ज़ेहार करना, तलाक की तरह था. जिसके लिए कोई शौहर अपनी बीवी से कहे "तेरी पीठ मेरी माँ की तरह हुई या बहिन की तरह हुई" तो तलाक़ हो जाया करता था, आज भी लोग तैश में आ कर कह देते हैं तुम्हें हाथ लगाएँ तो अपनी - - -
कहते हैं कि कुरआन अल्लाह का कलाम है मगर फटीचर अल्लाह को अल्फाज़ नहीं सूझते कि उसके कलाम में सलीक़ा आए. हम बिस्तर होना, मिलन होना जैसे अलफ़ाज़ के लिए इज़हार करना कह रहे है. इसी  तरह पिछली सूरह में कहते हैं कि
"नब तुम औरत के रहम में मनी डालते हो"
कहीं पर
"दर्याए शीरीं और दर्याए शोर का मिलन खानदान बढ़ने के लिए"
मुबाश्रत जैसे  अल्फाज़ भी उम्मी को मयस्सर नहीं. किसी परिवार में ये मियाँ बीवी का झगड़ा जग जाहिर था जिसकी खबर कुरानी अल्लाह को कोई दूसरा अल्लाह देता है .दोनों अल्लाहों के एजेट मुहम्मद को इस माजरे का  इल्म होता है ,वह तलाक और हलाला का हल ढूँढ़ते है..

''और जो लोग अपनी बीवियों से "ज़ेहार" (तलाक़) करते हैं, फिर अपनी कही हुई बात की तलाफ़ी करना चाहते हैं तो इस के ज़िम्मे एक गुलाम या लौंडी को आज़ाद कराना है. या दो महीने रोज़ा या साथ मिसकीनों को खाना, क़ब्ल इसके कि दोनों जब इख्तेलात करें, इस से तुमको नसीहत की जाती है."
सूरह मुजादला ५८ पारा २८ पारा (१-४)
एक पैगम्बर पहले इस बात का जवाब दे कि उसने लौंडी और गुलाम का सिलसिला क्यूं कायम रहने दिया.
ज़ैद बिन हरसा को जैसे औलाद बना कर अंजाम तक पहुँचाया था कि मुँह बोली औलाद के बीवी के साथ ज़िना  कारी जायज़ है, उसी तरह  यहाँ  पर बद फेली को हलाल कर रहे हैं.

" कोई सरगोशी तीन की ऐसी नहीं होती जिसमें चौथा अल्लाह न हो, न पाँच की होती है जिसमें छटां अल्लाह न हो. और न इससे कम की होती है, न इससे ज्यादह की  - - -
" सूरह मुजादला ५८ पारा २८ पारा (७)
मुहम्मद मुसलमान हुए बागियों पर पाबन्दियाँ लगा रहे हैं. आयतों में अपनी हिमाक़तें बयान करते हैं. उनके खिलाफ़ जो सर गोशी करते हैं, उनको अल्लाह का खौफ नाज़िल कराते हैं.गौर तलब है कि अल्लाह दो लोगों की सरगोशी नहीं सुन सकता तीन होंगे तो वह, शैतान वन कर उनकी बातें सुन लेगा? अगर पाँच लोग आपस में काना फूसी करेगे तो भी उनमें उसके कान गड जाएँगे मगर "इससे कम की होती है, न इससे ज्यादह की" तो उसे कोई एतराज़ नहीं. मुहम्मद ने दो गिनती ही क्यूँ चुनी हैं? क्या ये बात कोई शिर्क नहीं है? जिसके खिलाफ ज़हर अफ़्शाई किया करते हैं.

""क्या आपने उन लोगों पर नज़र नहीं फ़रमाई जिनको सरगोशी  से मना कर दिया गया था, फिर वह वही कम करते हैं और गुनाह और ज़्यादती और रसूल की नाफरमानी की सरगोशी करते हैं"
सूरह मुजादला ५८ पारा २८ पारा (७)
इन आयातों से आप समझ सकते हैं कि उस वक़्त के लोगों का रवय्या किया हुवा करता था,
ऐसी आयतों पर जो मुहम्मद से बेज़ार हुवा करते थे.
मुसलमानों!आप इनको सुन कर क्यूँ खामोश हैं? आपको शर्म क्यूँ नहीं आती? या बुजदिली की चादर ओढ़े हुवे हैं?.

"ऐ  ईमान वालो अगर तुम रसूल से सरगोशी करो तो , इससे पहले कुछ खैरात कर दिया करो, अगर तुम इसके काबिल नहीं हो तो अल्लाह गफूररुर रहीम है. जिनको सरगोशी से मना कर दिया गया था,फिर वह वही कम करते हैं और गुनाह और ज्यादती और रसूल की ना फ़रमानी की."
"क्या आप ने ऐसे लोगों पर नज़र नहीं फ़रमाई जो ऐसे लोगों से दोस्ती रखते हैं जिन पर अल्लाह ने गज़ब किया है. ये लोग न पूरे तुम में हैं और न इन्हीं में हैं और झूट बात पर कसमें खा जाते हैं. उन्हों ने क़समों को सिपर बना रक्खा  है, फिर अल्लाह की राह से रोकते रहते हैं. ये बड़े झूठे लोग हैं .इन पर शैतान ने तसल्लुत कर लिया है. खूब समझ लो शैतान का गिरोह ज़रूर बर्बाद होने वाला है."
" ये लोग अल्लाह और उसके रसूल की मुखालिफ़त करते हैं, ये सख्त ज़लील लोगों में हैं.अल्लाह ने ये बात लिख दी है कि मैं और मेरे पैगम्बर ग़ालिब रहेंगे."
"आप इनको न देखेंगे कि ये ऐसे शख्सों से दोस्ती रखते हैं जो अल्लाह और उसके रसूल के बार खिलाफ हैं, गो ये उनके बाप या बेटे या भाई या कुहना ही क्यूं न हो. .उन लोगों के दिलों में अल्लाह ने ईमान सब्त कर दिया है.- - - अल्लाह तअला उन से राज़ी होगा न वह अल्लाह से राज़ी होंगे. ये लोग अल्लाह का गिरोह हैं, खूब सुन लो कि अल्लाह का गिरोह ही फ़लाह पाने वाला है."
सूरह मुजादला ५८ पारा २८ पारा (१२-२२)(१२-२२)
सूरह से मालूम होता है कि हालात ए पैगम्बरी बहुत पेचीदा चल रहे है, रसूल  की ये लअन तअन कुफ्फार ओ मुशरिकीन पर ही नहीं, बल्कि महफ़िल में इनके बीच बैठे सभी मुसलामानों पर है.. वह मुनाफ़िक़ हुए जा रहे हैं और मुर्तिद होने की दर पर हैं. वह रसूल की सखतियाँ और मक्र बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं मुहम्मद को ये बात गवारा नहीं कि ईमान लाने के बाद लोग अपने भाई, बाप, रिश्तेदार या दोस्त  ओ अहबाब से मिलें जो कि अभी तक उनपर ईमान नहीं लाए.
एक तरफ़ झूटी कसमें औए वह भी भरमार उनका अल्लाह कुरान में खाता है, दूसरी तरफ़ बन्दों को क़सम खाने पर तअने देता है. मुहम्मदी अल्लाह की पोल किस आसानी से कुरआन में खुलती है मगर नादान मुसलमानों की आँखें किसी सूरत से नहीं खुलतीं. अल्लाह बन्दों के खिलाफ अपना गिरोह बनाता है और अपनी कामयाबी पर यकीन रखता है. ऐसा कमज़ोर इंसानों जैसा अल्लाह.





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 24 January 2017

Hindu Dharm Darsha 36


वेद दर्शन (1)
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

बहुत शोर सुनते थे सीने में दिल का ,
जो चीरा तो इक क़तरा ए खून निकला .
वेदों के जानकर वेदी कहे जाते थे . 
एक वेद का ज्ञान रखने वाला वेदी हुवा करता था, 
दो वेदों के ज्ञाता को द्वेदी का प्रमाण पात्र मिलता था, 
तीन वेदों पर ज्ञान का अधिकार रखने वाला त्रिवेदी हुवा हुवा था, 
इसी तरह चारों वेदों का विद्वान चतुर्वेदी की उपाधि पाया करता था. 
वैदिक काल में यह डिग्रियां इम्तेआन पास करने के बाद ही मिलतीं. 
जैसे आज PHD करने वाले स्कालर को दी जाती हैं. 
मगर हिन्दू धर्म के राग माले ने सभी ऐरे गैरों को 
वेदी, द्वेदी, त्रिवेदी और चतुर्वेदी बना दिया है, जिनका कोई पूर्वज वेद ज्ञाता रहा हो. 
अगर ऐसा न होता तो आजकी दुन्या में,  
कोई योग्य पुरुष वेदों के ज्ञान को लेकर अज्ञानता को गले न लगगाता. 
आज के युग में वेद ज्ञान शून्य है, 
इससे बेहतर है कि एक कमज़ोर दिमाग़ का बच्चा हाई स्कूल पास कर ले. 
और किसी आफिस में चपरासी लग जाए.
वह कहते हैं कि पश्चिम हमारे वेदों से ज्ञान चुरा कर ले गए 
और इससे उनहोंने विज्ञान को जाना और समझा और उसका फायदा लिया. 
इसी तरह क़ुरआनी ढेंचू भी दावा करते हैं.
क़ुरआन और वेद में बड़ा फर्क इस बुन्याद पर ज़रूर है कि 
वेदों के रचैता भाषा के ज्ञानी हुवा करते थे, 
इसके बर अक्स क़ुरआन का रचैता परले दर्जे का अनपढ़ और जाहिल था.
इस बात को वह खुद अपने मुंह से कहता है कि 
हम अनपढ़ क्या जाने कि किस महीने में कितने दिन होते हैं. (एक हदीस)
मुसलमान जाहिल को Refine करते हुए मुहम्मद के लिए 
हिब्रू लफ्ज़ उम्मी का इस्तेमाल करते हैं. 
जिसका अस्ल मतलब है हिब्रू भाषा का ज्ञान न रखने वाला.
वेद में जीवन दायी तत्वों को एक जीवंत शक्ल दे दी गई है 
जोकि एक देव रूप रखता है, यह इस लिए किया कि उसको संबोधित कर सके. 
जैसे इस्लाम ने कुदरत को अल्लाह का रूप दे रखा है. 
इससे तत्व मानव जैसा कोई रूप बन गया है.
इससे संबोधन में जान पड जाती है.
वेद में सबसे ज्यादह जीवन दायी पानी हवा और अग्नि को महत्त्व दिया है, 
पानी को इंद्र देव बना दिया और इंद्र देव को मुखातिब करके  सूक्त गढे. 
*****


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah jadeed 57

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह जदीद - ५७  पारा  - २७

सूरह जदीद के बारे में मेरा इन्केशाफ़ और खुलासा ये है कि इसका रचैता मुहम्मदी अल्लाह नहीं है, बल्कि इसका बानी  कोई यहूदी है. इस सूरह में मुहम्मद की बडबड नहीं है. 
ये सूरह तौरेत के खालिस नज़रिए  पर आधारित है क्यूँकि क़यामत ऐन यहूदियत के मुताबिक है. मज़मून कहीं पर बहका नहीं है, बातों को पूरा करते हुए आगे बढ़ता है. इसमें तर्जुमान को कम से कम बैसाखी लगानी पड़ी है और सूरह में बहुत कम ब्रेकेट नज़र आते है. 
तूल कलामी और अल्लाह की झक तो कहीं है ही नहीं. तहरीर ज़बान और कवायद के जाब्ते में है जो खुद बयान करती है कि ये उम्मी मुहम्मद की बकवास नहीं है. 
इसके पहले भी इसी नौअय्यत की एक सूरह गुज़र चुकी है.
इसका मतलब ये भी नहीं है कि इन बातों में कोई सच्चाई हो.

"अल्लाह की पाकी बयान करते हैं, सब जो कुछ कि आसमानों और ज़मीन में है और वह ज़बरदस्त हिकमत वाला है. उसी की सल्तनत है आसमानों ज़मीन की. वही हयात देता है वही मौत भी देता है. और वही हर चीज़ पर कादिर है. वही पहले है, वही पीछे, वही ज़ाहिर है, वही मुख्फी. और वह हर चीज़ को खूब जानने वाला है. वह ऐसा है कि उसने आसमानों और ज़मीन को छ दिनों में पैदा किया , फिर तख़्त पर कायम हुवा. वह सब कुछ जानता है जो चीजें ज़मीन के अन्दर दखिल होती हैं और जो चीज़ इस में से निकलती हैं. और जो चीजें आसमान से उतरती हैं. और जो चीजें इसमें चढ़ती है. और तुम्हारे साथ साथ रहता है, ख्वाह तुम कहीं भी हो और तुम्हारे सब आमाल भी देखता है."
सूरह जदीद - ५७-पारा - २७ आयत (१-४)

इन आयातों में एक बात भी क़ाबिले एतराज़ नहीं. मज़हबी किताबों में जैसे मज़ामीन हुवा करते हैं, वैसे ही हैं. न कोई हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत न किसी नामाकूल किस्म की क़समें. तौरेत और बाइबिल की सोशनी में  आयतें है.
मुनाफ़िक़ लफ्ज़  का मतलब है दोगला जो बज़ाहिर कुछ हो और बबातिन कुछ. जैसे की आज के वक़्त  में मुनाफ़िक़ हर पार्टी और हर जमाअत में कसरत से पे जाते हैं. ये बदतर और दगाबाज़ दोस्त होते है जो मतलब गांठा करते है..
"कोई शख्स है कि जो अल्लाह तअला को क़र्ज़ के तौर पर दे, फिर अल्लाह इस शख्स के लिए बढ़ाता चला जाएऔर इस के लिए उज्र पसन्दीदा है. जिस रोज़ मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें मुसलामानों से कहेंगे अरे मुस्लिम भाइयो! हमें भी पार कराओ, हम तो पीछे रहे जा रहे हैं, आख़िर दुन्या में हम तुम मिल जुल कर रहा करते थे, दुन्या में हम तुम्हारे साथ न थे? जवाब होगा हाँ थे तो, तुमने अपने आप को गुमराही में फँसा रखा था. तुम मुन्तज़िर रहा करते थे, तुम शक रखते थे और तुम को तुम्हारी बेजा तमन्नाओं ने धोके में डाल रख्खा था तुम सब का ठिकाना दोज़ख है. पीछे रह गए हो तो पीछे से रौशनी भी तलाश करो. फिर इन फरीकैन के दरमियान में एक दीवार क़ायम कर दी जाएगी. इस में एक दरवाज़ा होगा, जिसकी अन्दुरूनी जानिब से रहमत होगी  और बैरूनी जानिब से अज़ाब."
सूरह जदीद - ५७-पारा २७ आयत (११-१३)

देखिए कि अल्लाह बन्दों से क्या तलब कर रहा है, कोई इशारा है? नमाज़, रोज़ा, ज़कात और जेहाद कुछ भी नहीं, गालिबन अपने बन्दों से नेक काम तलब कर रहा है. उसके पास नेकियाँ जमा करो, वह माय सूद ब्याज के दबा. इस तरह के झूट कडुवी सच्चाई से बेहतर है.
मेरा मुशाहिदा है कि इसी दुन्या में इंसान की नेकियों का बदला मिल जाता है, मगर कोई मज़हब इस के लिए कहता है तो इंसानों के हक में है कि इंसान नकियाँ करे. .
"पीछे रह गए हो तो पीछे से रौशनी भी तलाश करो"
क्या बलागत है इस जुमले में. इसे कहते है वह्यी औए ईश वानी. वक़्त के साथ न बदलने वालों के लिए ये उस मुफक्किर की सोलह आने ठीक राय है जो आज मुसलामानों के लिए मशाले राह है. उनको बदलना ही होगा और इतना बदलना होगा की कुरान की खुल कर मुखालिफत करे.
इस आयत में कुफ्फारों पर लअन तअन नहीं की गई है और न ईसाइयों पर दिल शिकन जुमले, बल्कि दोहरा सवाब, पहला ईसाइयत का दूसरा, इस्लाम का. जन्नत और दोज़ख में भी एत्दल है कि दोनों फ़रीक आपस में बज़रिए " इस में एक दरवाज़ा होगा" तअल्लुक़से एक डूसरे की हवा पहचानेंगे 

"ये दोजखी जन्नातियों  को पुकारेंगे, क्या हम तुम्हारे साथ न थे? जन्नती कहेंगे, हाँ थे तो सहीह लेकिन तुम को गुमराहियों ने फँसा रख्खा था कि तुम पर अल्लाह का हुक्म आ पहुँचा  और तुम को धोका देने वाले अल्लाह के साथ धोके में डाल रख्खा था, गरज़ आज तुम से न कोई मावज़ा लिया जायगा और न काफिरों से, तुम सब का ठिकाना दोज़ख है. वही तुम्हारा रफ़ीक है, और वह वाकई बुरा ठिकाना है."
कोई मुसीबत न दुन्या में आती है और न तुम्हारी जानों में मगर वह एक ख़ास किताब में लिखी है. क़ब्ल इसके कि हम उन जानों को पैदा करें, ये अल्लाह के नज़दीक आसान काम है, ताकि जो चीज़ तुम से जाती रहे, तुम इस पर रन्ज न करो और ताकि जो चीज़ तुमको अता फ़रमाई है, इस पर तुम इतराओ नहीं. अल्लाह तअला किसी इतराने वाले शेखी बाज़ को पसन्द नहीं करता."
सूरह जदीद - ५७-पारा२७ आयत (१४-२३)

काबिले कद्र बात मुफक्किर कहता है 
"जो चीज़ तुम से जाती रहे, तुम इस पर रन्ज न करो और ताकि जो चीज़ तुमको अता फ़रमाई है, इस पर तुम इतराओ नहीं." 
ये ज़िन्दगी का सूफियाना फ़लसफ़ा है
"वक़्त है अहले ईमान अपना दिल बदलें.  ऐसा न हो  कि अहले किताब की तरह माहौल ज़दा और सख्त दिल होकर काफ़िर जैसे हो जाएं. अल्लाह खुश्क ज़मीन को दोबारा जानदार बना देता  है ये एक नजीर है ताकि तुम समझो. सदक़ा देने वाले मर्द और औरत को अल्लाह पसंद करता है. जो लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं, ऐसे लोग अपने रब की नज़र में सिद्दीक और शहीद हैं. दिखावा लाह्व लअब है. औलाद ओ अमवाल पर फख्र बेजा है मगफिरत और जन्नत की तरफ दौड़ो जिसकी वोसअत ज़मीन ओ आसमान के बराबर है, उन लोगों के लिए तैयार की गई है जो अल्लाह और इसके रसूल पर ईमान रखते हैं.अल्लाह बड़ा फजल वाला है."
सूरह जदीद - ५७-पार - २७ आयत (१६-२१)

क्या ये दानाई और बीनाई उम्मी रसूल के बस की है. इसी लिए इस सूरह को जदीद कहा गया है
मगर ऐ मुसलमानों क्या अल्लाह भी क़दीम और जदीद हवा करता है? अल्लाह को तुम आयाते-कुरानी में नहीं पाओगे. अल्लाह तो सब को मुफ्त मयस्सर है, हर वावत तुम्हारे सामने रहता है. सच्चा ज़मीर ही अल्लाह तक पहुंचाता है.
मुझ तक अल्लाह यार है मेरा, मेरे संग संग रहता है,
तुम तक अल्लाह एक पहेली, बूझे और बुझाए हो.
  .
"जो ऐसे हैं खुद भी बुख्ल करते हैं और दूसरों को भी बुख्ल की तअलीम करते हैं और जो मुँह मोड़ेगा तो अल्लाह भी बे नयाज़ है और लायके हमद है. हम ने इस्लाह ए आखरत के लिए पैगम्बर को खुले खुले पैगाम देकर भेजा है. हमने उन के साथ किताब को और इन्साफ करने वाले को नाज़िल फ़रमाया ताकि लोग एतदाल पर क़ायम रहें,
हम ने नूह और इब्राहीम को पैगम्बर बना कर भेजा और हम ने उनकी औलादों में पैगम्बरी और किताब जारी रख्खी सो उन लोगों में बअजे तो हिदायत याफता हुए और बहुत से इनमें नाफ़रमान थे.फिर और रसूलों को एक के बाद दीगरे को भेजते रहे.
और इसके बाद ईसा बिन मरियम को भेजा और हम ने इनको इंजील दी और जिन लोगों ने इनकी पैरवी की, हमने उनके दिलों में शिफ्कात और तरह्हुम पैदा की. उन्हों ने रह्बानियत को खुद ईजाद कर लिया . हमने इसको इन पर वाजिब न किया था.
ए ईसा पर ईमान रखने वालो! तुम अल्लाह से डरो और इन पर ईमान लाओ. अल्लाह तअला तुमको अपनी रहमत से दो हिस्से देगा और तुमको ऐसा नूर इनायत करेगा कि यूं इसको लिए हुए चलते फिरते होगे और तुमको बख्श देगा. अल्लाह गफूरुर रहीम है.
सूरह जदीद - ५७-पार - २७ आयत (२४-२८)


मैंने  मज़कूरा बाला सूरह को सिर्फ इस नज़रिए से देखा, समझा और पेश किया है कि कुरआन सिर्फ उम्मी मुहम्मद ही नहीं, बल्कि इसमें दूसरों की मिलावट भी है,  इसके लिए मैं उस सलीक़े मंद और दूर अंदेश दानिश वर का शुक्र गुज़ार हूँ जिसने कुरआन की हकीकत से हमें रूशिनस कराया. अच्छा इंसान रहा होगा जो हालात का शिकार होकर मुसलमान हो गया होगा, मगर उसने मुनाफिकात को ओढ़ कर इंसानियत का हक अदा किया  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 21 January 2017

Hindu Dharm Darsha 35



कल्पनाओं की कथा और जन मानस की आस्था 

मैंने पढ़ा पंडित जी उपनिशध में लिखते हैं - - - 
समुद्र यहीं तक सीमित नहीं जो आप देखते और जानते हैं . खारे पानी के बाद , मीठे पानी का समुद्र इतना ही विशाल है जितना खारा . इसके बाद तीसरा समुद्र है दूध का ,फिर घी का , उसके बाद (आदि आदि) और अंत में अमृत का समुद्र है . इनकी संख्या सात है .
मैं कानपुर की तहसील वन्धना और बिठूर के दरमियान स्तिथ चिन्मय बृद्ध आश्रम में दो महीने रहा . यह आश्रम ठीक उसी जगह कायम किया गया जहाँ  किसी ज़माने में बाल्मीकि की शरण स्थली हुवा करती थी जब वह लूट मार किया करते थे . कहते है पहले यह जगह गंगा का डेल्टा हुवा करती थी और यह स्थल घने जंगलो से ढका हुवा करता था ., डाकुओं के लिए सुविधा जनक स्थान हुवा करता था .
एक दिन मुझे बिठूर जाने का अवसर मिला जहाँ कई ऐतिहासिक स्मारक हैं , उनमे एक स्मारक सीता रसोई भी है . एक जगह एक खूटी गाड़ी हुई मिली जिसे संसार का केंद्र विन्दु कहा जाता है .
स्थानी लोगों के बीच प्रचलित किं दन्तियाँ जोकि उनके पूर्वजों से उनको मिलीं , मुस्तनद सी लगती हैं , ऐसा लगा कि हम अतीत में सांस ले रहे हैं .
मेरे सात एक रिटायर्ड ग्रेजुएट अवस्ती जी भी थे . मैंने उनसे दरयाफ्त किया कि राम युग को कितने वर्ष हुए होंगे ? उन्हों ने बड़ी सरलता से कहा आठ लाख वर्ष हुए जब सत युग था .
मैं ने मनही मन सोचा अवस्थी जी की अवस्था कितनी सरल है कि वह सुनी सुनाई बातों को सच मानते हैं और अपने विवेक को कोई कष्ट नहीं देते। सीता रसोई को देख कर भी इस पर पुनर विचार नहीं करते की यह आठ लाख सालों से कैसे स्थिर है ?. यही होती है जन साधारण की मन स्तिथि .
आधुनिक इतिहास कारों का मानना है कि बाल्मीकि तेरहवीं सदी के आस पास हुए , इस बात को बिठूर के लोग भी साबित करते हैं कि उनकी यद् दाश्त में अपने बुजुर्गों की गाथा सीना बसीना महफूज़ है .
बारहवीं तेरहवीं सदी में दिल्ली का सुल्तान इल्तु तमाश हुवा करता था जिसकी बेटी रज़िया सुल्तान भारत कि प्रथम नारी शाशक हुई थी .
उस काल में बाल्मीकि ने रामायण लिखी जोकि लव कुश के के गुरु हुवा करते थे और सीता सन्यास लिए बिठूर में रहती थीं .
सवाल उठता है रज़िया सुल्तान काल में कोई राम , दशरथ या जनक का कहीं कोई नाम निशान नहीं मिलता , न अयोधिया में न काशी में . 
मगर बाल्मीकि थे , सीता थीं और लव कुश भी थे .
क्या सीता जी की विपदा पर मुग्ध होकर बाल्मीकि ने रामायण कथा का प्लाट नियोजित किया था जो लेखक की अफसानवी कल्पना से जन मानस की आस्था बन गई हो ??? 
बाल्मीकि की यह कथा जब पंडित के हाथ लगी तो एक समुद्र से सात समुद्र हो गई हो . तुलसी दास ने बाल्मीकि की रचना को हिंदी स्वरूप देकर इसे जन साधारण का धर्म स्थापित कर दिया ?
रामायण की भ्रमित लेखनी बतलाती है कि तुलसी दास सशरीर कुछ दिनों के  के लिए राम युग में रह कर वापस आए और रामायण तुलसी दास का आँखों देखा हाल है .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 20 January 2017

Soorah waqeaa 56 - 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७  (2)

आज क़ुरआनी बातों से क्या एक दस साल के बच्चे को भी बहलाया जा सकता है? 
मगर मुसलमानों का सानेहा है कि एक जवान से लेकर बूढ़े तक इसकी आयतों पर ईमान रखते हैं. 

वह झूट को झूट और सच को सच मान कर अपना ईमान कमज़ोर नहीं करना चाहते, 
वह कभी कभी माहौल और समाज को निभाने के लिए मुसलमान बने रहते  है. वह इन्हीं हालत में ज़िन्दगी बसर कर देना चाहते है. 
ये समझौत इनकी खुद गरजी है.
वह अपने नस्लों के साथ गुनाह कर रहे है, इतना भी नहीं समझ पाते.  
इनमें बस ज़रा सा सदाक़त की चिंगारी लगाने की ज़रुरत है. फिर झूट के बने इस फूस के महल में ऐसी आग लगेगी कि अल्लाह का जहन्नुम जल कर ख़ाक हो जाएगा.
देखिए अल्लाह क्या बकता है - - -

"फिर जमा होने के बाद तुमको, ए गुमराहो ! झुटलाने वालो! दरख़्त ज़कूम से खाना होगा,
 फिर इससे पेट को भरना होगा,
फिर इस पर खौलता हुवा पानी,
पीना भी प्यासे होंटों का सा, (ऐसे जुमलों की इस्लाह ओलिमा करते हैं)
इन लोगों की क़यामत के रोज़ दावत होगी."
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (५१-५६)

मुहम्मद अपने ईजाद किए हुए मज़हब को, जेहने इंसानी में अपने आला फ़ेल, का एक नमूना बना कर पेश करने की बजाए, इंसान को अपने ज़ेहन के फितूर से डराते हैं वह भी निहायत भद्दे तरीके से.
( ज़कूम दोज़ख का एक खारदार और बद ज़ायक़ा पेड़  मुहम्मदी अल्लाह खाने  को देगा मैदाने हश्र में.)

"अच्छा बताओ, जो औरतों के रहम में मनी पहुँचाते हो," 
( लाहौल वला कूवत )
इनको तुम आदमी बनाते हो या हम.? 
(एक मज़हबी किताब में इससे ज्यादह फूहड़ पन क्या हो सकता है. नमाज़ में इस बात को सोंच कर देखें)
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ -पारा आयत (५८-५९)

अच्छा बताओ जो कुछ तुम बोते हो, उसे तुम उगाते  हो या हम? 
( जब बोया हुवा क़हत की वजेह से उगता ही नहीं तो अकाल पद जाता है, कौन ज़िम्मेदार है ? ए कठ  मुल्लाह )
अच्छा फिर तुम ये बताओ कि जिस पानी को तुम पीते हो ,
उसको बादल से तुम बरसाते हो या की हम?अगर हम चाहें तो इसे कडुवा कर डालें, तो फिर तुम शुक्र अदा क्यूं नहीं करते"
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (६८-६९)

क्या इन बेहूदगियों में कोई जान है?
इसके जवाब में ऐसी ही बेहूदगी पेश करके मुहम्मद के भूत को शर्मसार किया जा सकता है.

अच्छा फिर बताओ कि जिस आग को तुम सुलगते हो इसके दरख़्त को तुम ने पैदा किया या हम ने?
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (७०-७२)

मुहम्मदी अल्लाह बतला कि बन्दे उसकी लकड़ी से खूब सूरत फर्नीचर बनाते हैं, क्या यह तेरे बस का है कि पेड़ में फर्नीचर फलें ?

"सो आप अज़ीम परवर दिगार के नाम की तस्बीह कीजिए."
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (८४)

सो परवर दिगार के बख्शे हुए दिमाग का मुसबत इस्तेमाल करो.
सो मैं क़सम खता हूँ सितारों की छिपने की,
और अगर तुम गौर करो तो ये एक बड़ी क़सम है की ते एक मुकर्रम कुरान है.
हम इस गौर करने पर अपना दिमाग नहीं खपाते, हम तो ये जानते हैं कि हमारे मुँह से निकली हुई हाँ और ना ही हमारी क़सम हैं. हमें किसी ज़ोरदार क़सम की कोई अहमियत नहीं है.
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (७५-७६)
सो क्या तुम कुरआन को सरसरी बात समझते हो और तकज़ीब  को अपनी गिज़ा? 

मुहम्मदी अल्लाह! तेरी सरसरी में कोई बरतत्री नहीं है, बल्कि झूट, बोग्ज़ और नफ़रत खुद तेरी गिज़ा है,
सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७ -आयत (८१-८२)

और जो शख्स दाहिने वालों में से होगा तो उससे कहा जाएगा तेरे लिए अमन अमान है कि तू दाहिने वालों में से है
और जो शख्स झुटलाने वालों, गुमराहों में होगा खौलते हुए पानी से इसकी दावत होगीऔर दोज़ख में दाखिल होना होगा. बे शक ये तह्कीकी और यक़ीनी है.
सूरह वाक़ेआ ५६ - २७ - पारा आयत (९०-९५)

ऐ इस्लामी! अल्लाह तू इंसानियत का सब से बड़ा और बद तरीन मुजरिम है, जितना इंसानी लहू तूने पिया है, उतना किसी दूसरी तहरीक ने नहीं. एक दिन इंसान की अदालत में तू पेश होगा फिर तेरा नाम लेवा कोई न होगा और सब तेरे नाम पर थूकेंगे.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 17 January 2017

Hindu Dharm Darsha 34


माता 

मैं मुस्लिम बाहुल्य और मुस्लिम शाशक कस्बे में पैदा हुवा, चार पाँच की उम्र से सामाजिक चेतना मुझ में जागने लगी थी माहौल के हिसाब से खुद को हिन्दुओं से बरतर समझने लगा था . सेवक लोग उस समय के प्रचलित अछूत हुवा करते थे जो शक्लन काले कलूटे मजलूम लगते . 
हिन्दू अकसर मुझे चेचक ज़दा चेहरे दिखते . बड़ों से मालूम हुवा कि चेचक एक बीमारी होती है जिसमें पूरे शरीर पर फोड़े निकल आते हैं , हिदू इसे माता कहते हैं और इलाज नहीं कराते . मेरे मन में शब्द माता घृणित बीमारी जैसा लगा .
बाज़ार में एक बनिए की दूकान में आग लग गई तो बानिन लोगों को आग बुझाने से रोक रही थीं कि अग्नि माता को मत बुझाव . 
इससे मेरी समझ में आया कि वाकई माता खतरनाक हुवा करती हैं .
मैं अपनी माँ के साथ बस द्वारा कानपुर आ रहा था कि शोरे सुना जय गंगा मय्या की , बस से झांक कर देखा तो पहली बार एक देखा एक विशाल नदी ठाठें मार रही थी , डर लगा . माँ से मालूम हुवा हिन्दू गंगा को माता कहते हैं .
अभी ताक माता बमानी माँ होती है, मैं नहीं जनता था , इस लिए हर खतरनाक बात को माता समझता था .
कस्बे में काली माई का मेला हुवा करता था जिसमे माताओं की खतरनाक तस्वीरें हुवा करती थीं , कोई खूनी ज़बान बलिशत भर की लपलपाती हुई होती , तो कोई नर मुंड का हार पहने दुर्गा माता हुवा करती थीं . 
माँ का तसव्वुर जेहन में घिनावना ही होता गया .
कस्बे में गाय का गोश्त एलांय कटता और बिकता . सुनने में आया कि हिन्दू गाय को भी  माता कहते हैं . 
माता ! माता !! अंततः मेरी झुंझलाहट को पता चला  कि माता के मानी माँ के हैं .
शऊर बेदार हुवा तो इस माता पर गौर किया , बहुत सी माताएं सुनने में आईं , धरती माता , सीता माता  लक्ष्मी माता , सरस्वती माता , सति माता , संतोषी माता से होते  हुए बात राधे माता (डांसर ) तक आ गई .
पिछले दिनों गऊ माता के सपूतों ने काफी ऊधम कटा और कई मानव जीव भी .
अब नए सिरे से सियासी भूत अवाम पर चढ़ाया जा रहा है " भारत माता " का .
खैर ! मैं सियासी फर्द नहीं समाजी चिन्तक हूँ . 
इन माताओं की भरमार में इंसान की असली माता पीछे कर दी गई है . 
सदियों से वह इतनी पीछे है कि उसका ठिकाना गंगा पुत्रो के शरण में है . 
उसकी किसी हिन्दू को परवाह नहीं कि 
अन्य कल्पित माताएं उन्हें दूध भी  दे रही हैं और कुर्सियां भी .
हिन्दू भाई अन्य समाज से खुद को नापें तौलें 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 16 January 2017

Soorah Vaqeaa 56 (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा  २७   (1)

वक़ेआ का मतलब है जो बात वाक़े (घटित ) हुई हो और वाक़ई (वास्तविक) हुई हो. इस कसौटी पर अल्लाह की एक बात भी सहीह नहीं उतरती. यहाँ वक़ेआ से मुराद क़यामत से है जोकि कोरी कल्पना है. 
वैसे पूरा का पूरा क़ुरआन ही क़यामत पर तकिया किए हुए है. सूरह में क़यामत का एक स्टेज बनाया गया है जिसके तीन बाज़ू हैं पहला  दाहिना बाज़ू और दूसरा बायाँ बाज़ू तीसरा आला दर्जा (?). 
दाएँ तरफ़ वाले माशा अल्लह, सब जन्नती होने वाले होते हैं 
और बाएँ जानिब वाले कम्बख्त दोज़खी.
मजमें की तादाद मक्का की आबादी  का कोई जुजवी हिस्सा लगती है जब कि क़यामत के रोज़ जब तमाम दुन्या की आबादी उठ खड़ी होगी तो ज़मीन पर इंसान के लिए खड़े होने की जगह नहीं होगी..
 बाएँ बाजू वाले की ख़ातिर अल्लाह खौलते हुए पानी से करता है .
इसके पहले अल्लाह ने जिस क़यामती इजलास का नक्शा पेश किया था, उसमें नामाए आमाल  दाएँ और बाएँ हाथों में बज़रीया फ़रिश्ता बटवाता है. ये क़यामत का बदला हुवा प्रोगराम है.
याद रहे कि अल्लाह किसी भी बाएँ पहलू को पसंद नहीं करता इसकी पैरवी में मुसलमान अपने ही जिस्म के बाएँ  हिस्से को सौतेला समझते हैं अपने ही बाएँ  हाथ को नज़र अन्दाज़ करते हैं यहाँ तक हाथ तो हाथ पैर को भी. मुल्ला जी कहते हैं मस्जिद में दाखिल हों तो पहला क़दम दाहिना हो.
अल्लाह को इस बात की खबर नहीं कि जिस्म की गाड़ी का इंजन दिल, बाएँ जानिब होता है. 
मुहम्मदी अल्लाह कानूने फितरत की कोई बारीकी नहीं जानता .

क़ुरआनी खुराफ़ातें पेश हैं - - -
"जब क़यामत वाके होगी,
जिसके वाके होने में कोई खिलाफ नहीं है, तो पस्त कर देगी, बुलंद कर देगी, (बुलंद कर देगी या पस्त ?)
जब ज़मीं पर सख्त ज़लज़ला आएगा और ये पहाड़ रेज़ा रेज़ा हो जाएगे. "
सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७ आयत (१-५)

जिन मुखालिफों और मुन्किरों के बीच मुहम्मद  अपने क़ुरआनी  तबलीग में लगे हुए है, वहीँ कहते हैं "जिसके वाके होने में कोई खिलाफ नहीं है,"
इन्हीं आयतों को लेकर मुसलमान हर कुदरती नागहानी पर कहने लगते हैं, क़यामत के आसार हैं, जब कि इंसानियत दोस्त इसका मुकाबिला करके इंसानों को बचाने में लग जाते हैं.

"और तुम तीन किस्म के हो जाओगे,
सो जो दाहिने वाले हैं, वह दाहिने वाले कितने अच्छे होगे,
जो बाएँ वाले हैं वह कितने बुरे लोग हैं,
जो आला दर्जे के हैं वह तो आला दर्जे के ही होंगे."
सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७ आयत (६-१०)

औघड़ मुहम्मद एक हदीस में कहते हैं कि हर इंसान की तक़दीर माँ के पेट में ही लिख दी जाती है, फिर नेक अमल और बद अमल का नुकसान या फायदा ? मुस्लिम ओ काफ़िर का हेर फेर क्यूं? तबदीली ए   मज़हब का  कि अगर तकदीर कुछ पहले ही दर्ज है?
क्या मुसलामानों की समझ में ये बात नहीं आती ?

"ये लोग आराम से बागों में होंगे,    
( बाग़ भी कोई रहने की जगह होती है?)
इनका एक बड़ा गिरोह तो अगले लोगों में होगा, और थोड़े से लोग पिछले लोगों में होंगे,  
(ऐसा क्यूं ? कोई खास वजह? इन सवालों के जवाब कठ मुल्ले तैयार कर सकते है.)
सोने के तारों से बने तख्तों पर तकिया लगाए आमने सामने बैठे होंगे,
 (सोने के तारों से बने तख़्त ? रसूल भूल जाते है कि उनकी बातों में झोल आ गया, जिसे मुतरज्जिम रफ़ू करता है, ब्रेकेट लगा के कि अल्लाह का मतलब है सोने के तारों से बने तकिए जो तख्तों पर होंगे.)
उनके पास ऐसे लड़के, जो हमेशा लड़के ही रहेंगे, ये चीजें लेकर हमेशा आमद ओ रफत करेगे,  
(जन्नती के परहेज़गार नमाज़ी वहां लड़के (लौंडे)बाज़ हो जावेंग? क्या इसी लिए होती है नमाज़ों की कसरत.)
आबखोरे और आफ़ताबे और ऐसा जाम जो बहती हुई शराब से भरा जाएगा,
 ( मुसलमानों! अगर जाम ओ सुबू चाहत  है तो इसी दुन्या में हाज़िर है बस कि मोमिन हो जाओ.)
बे खटके हो हयात तो जीना सवाब है,
बच्चों का हक़ अदा हो तो पीना सवाब है।
न इससे इनको सुरूर होगा न अक्ल में फितूर आएगा,  
(जिस जाम से सुरूर न हो वह जाम नहीं सरबत है.)
और मेवे जिनको पसंद करेंगे, और परिंदों का गोश्त जो इनको मरगूब होगा,  
(सब कुछ इसी दुन्या में मयस्सर है, बस तुम को बा ज़मीर मोमिन बनना है.)
और गोरी गोरी, बड़ी बड़ी आँखों वाली औरतें होंगी जैसे पोशीदा रख्खे हुए मोती, ये उनके ईमान के बदले में मिलेगा, 
(अय्याश पैगम्बर की अय्याश उम्मत !)
(अगर तुमको इन आयातों का यकीन है तो उसके पीछे तुम्हारी नीयतें वाबस्ता हैं. कुछ शर्म  हया तुम में बाक़ी है तो मोमिन की बातों पर आओ.)

और न वहाँ  कोई बक बक सुनेंगे न कोई बेहूदा बात, 
( खुद कुरान मुजस्सम बकबक है और बेहूदा भी, बेहूदगी देखने के लिए कहीं बाहर जाने की ज़रुरत नहीं.)
बस सलाम ही सलाम की आवाज़ आएगी,  
(आजिज़ हो जाओगे ऐसी जन्नत से जहाँ लोग हर वक़्त कहते रहेगे "अल्लाह तुमको सलामत रख्खे". ये सलाम तुम्हारी चिढ बन जाएगी,ये जज़बए खैर नहीं बल्कि जज़बए बद  नियती है.)
जो दाहिने वाले हैं, वह दाहिने वाले कितने अच्छे हैं, वह बागों में होंगे जहाँ बे खर (बिना कांटे की ) बेरियाँ होंगी, 
( एक इस्लामी हूर चड्ढी और बिकनी पहने इस जन्नत में बेर के पेड़ पर चढ़ी बीरें खा रही थी कि मोलवी साहब ने पूछा क्या हो रहा है?
 उसने जवाब दिया मुझे बस दो ही शौक़ है, अच्छा खाने का और अच्छा पहिनने का.)
बिना कांटे की बेरियाँ कब होती हैं? कांटे दार तो उसका पेड़ होता है. क्या बिना कांटे हे पेड़ की बेरियाँ अंगूर जैसी होती हैं?
मुहम्मद अपनी बक बक में दूर का अंदेशा नहीं रखते.  काफ़िरों को दूर की गुमराही का तअना ज़रूर देते हैं.
और तह बतह केले होगे, और लम्बा लम्बा साया होगा, और चलता हुवा पानी होगा, और कसरत से मेवे होंगे,  
(बागों में इनके सिवा और क्या होगा? कोई नई बात भी है?तह बतह केले की तरह.)
वह न ख़त्म होंगे और न कोई रोक टोक होगी, 
(पेटुओं की भूख जग रही होगी इस माले मुफ्त पर.)
और ऊंचे ऊंचे फर्श होगे,  
( वहां ऊंचे ऊंचे फर्श की क्या ज़रुरत होगी? क्या जन्नत में भी बाढ़ वगैरा आती है?)
हम ने औरतों को खास तौर पर बनाया है, यानी हम ने उनको ऐसा बनाया है कि जैसे कुँवारियाँ हों, महबूबा हैं हम उम्र में."
(मुसलामानों सुन लो वहाँ तुम्हारे लिए ऐसी हम उम्र औरतें बनाई जाएंगी? शर्त ये है कि तुम जवानी में ही उठ जाओ, क्यूंकि वह हम उम्र होगी. बूढ़े खूसट होकर मरे तो तुम्हारी हूरें पोपली बुढिया होंगी .
बकौल मुहम्मद दुन्या की ज्यादह हिस्सा औरतें जहन्नमी  होंगी, जहाँ तुम्हारी माँ, बहेन और बेटियाँ हैं, जिनको तुम जान से भी ज़्यादः अज़ीज़ समझते हो. इस लिए अल्लाह तुम्हारे अय्याशी के लिए सदा बहार  कुंवारियां पेश करता है.
सूरह वाक़ेआ ५६ - पारा २७ आयत (११-३७)
मुहम्मदी अल्लाह क़यामत बरपा करने का नज़ारा क़यामत आने से पहले ही मुसलामानों को दिखला रहा है, क्या ये बात सहीह लगती है?
कुरआन की बहुत सी बातें आज नए ज़माने ने झूट साबित कर दिया है फिर भी इन पर यकीन रखना मुसलामानों का ईमान है. इन्ही झूट और गुनहगारी को वास्ते इबादत नमाज़ों में दोहराते हैं. इन्हें पढ़ कर सलाम फेरते हैं और एक झूठे पर दरूद ओ सलाम भेजते हैं.
कुछ तो चेतो, कुछ तो जागो!!




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 13 January 2017

Soorah Rahmaan 55-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह रहमान ५५ -पारा २७   
(2)

सूरह रहमान को मेरी नानी बड़े ही दिलकश लहेन में पढ़ती थीं उनकी  नकल में मैं भी इसे गाता था. उनके हाफिज़ जी ने उनको बतलाया था कि इस सूरह में अल्लाह ने अपनी बख्शी हुई नेमतों का ज़िक्र  किया है .सूरह को अगर अरबी गीत कहीं तो उसका मुखड़ा यूँ था,
"फबेअय्या आलाय रबबोकमा तोकज्ज़ेबान " यानी
"सो जिन्न ओ इंसान तुम अपने रब के कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे"
जब तक मेरा शऊर बेदार नहीं हुवा था मैं अल्लाह की नेमतो का मुतमन्नी रहा कि उसने हमें अच्छे और लज़ीज़ खाने का वादा किया होगा, बेहतरीन कपड़ों  का, शानदार मकानों का और दर्जनों ऐशों का ख़याल दिल में आता बल्कि हर सहूलत का तसव्वुर ज़ेहन में आता कि अल्लाह के पास क्या कमी होगी जो हमें न नसीब होगा ? इसी लालच में मैंने नमाज़ें पढना शुरू कर दिया था.
जब मैंने दुन्या देखी और उसके बाद क़ुरआनी कीड़ा बन्ने की नौबत आई तो पाया की अल्लाह की बातों में मैं भी आ गया.
इस सूरह पर मेरा यही तबसरा है मगर आपसे गुज़ारिश है कि सूरह का पूरा तर्जुमा ज़रूर पढ़ें.

जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत३२}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इसी ने इंसान को जो ठीकरे की तरह बजती हैसे पैदा किया.
{नेमत३३}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"वह  मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, 
{नेमत३४}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, 
{नेमत३५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, 
{नेमत३६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, 
{नेमत३७}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत३८}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इसी ने इंसान को जो ठीकरे की तरह बजती हैसे पैदा किया. {नेमत३९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"वह  मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है,
{नेमत४०}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, 
{नेमत४१}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, 
{नेमत४२}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, 
{नेमत४३}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत४४}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इसी से सब आसमान और ज़मीन वाले मांगते हैं, वह हर वक़्त किसी न किसी कम में रहता है,
{नेमत४५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
" ऐ   जिन ओ इंसान! हम तुम्हारे लिए खली हुए जा रहे हैं, 
{नेमत४६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
ऐ गिरोह जिन ओ इन्स! अगर तुम को ये कुदरत है कि आसमान ओ ज़मीन के हुदूद से कहीं बाहर निकल जाओ तो निकलो, बदूं जोर के नहीं निकल सकते. 
{नेमत४७}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"तुम पर आग का शोला और धुवां छोड़ा जाएगा, फिर तुम हटा न सकोगे, {नेमत४८}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"गरज जब आसमान फट जाएगा और ऐसा सुर्ख हो जाएगा जैसे नारी, {नेमत४९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"तो उस दिन किसी इंसान या जिन से इसके जुर्म के मुता अल्लिक न पुछा जाएगा' 
{नेमत५०}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"मुजरिम लोग अपने हुलया से पहचाने जाएगे, , सो सर के बाल और पाँव पकडे जाएँगे, 
{नेमत५१}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"ये है वह जहन्नम मुजरिम लोग जिसको झुट्लाते थे. वह लोग दोज़ख के इर्द गिर्द खौलते  हुए पानी के दरमियान दौरा कर रहे होंगे, 
{नेमत५२}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"और जो शख्स अपने रब के सामने खड़े होने से डरता रहता हईसके लिए दो बाग़ होंगे, 
{नेमत५३}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"दोनों बाग़ कसीर शाख वाले होंगे, इन दोनों बागों में दो चश्में होंगे कि बहते चले जाएँगे, 
{नेमत५४}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"दोनों बागों में हर मेवे की दो किस्में होंगी, 
{नेमत५५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
" वह लोग तकिया लगे अपने फर्शों पर बैठे होंगे, जिनके अस्तर दबीज़ रेशम की होंगी और दोनों बागों का फल बहुत नज़दीक होगा, 
नेमत५६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इनमें नीची निगाहों वालियां होंगी कि इन लोगों से पहले इन पर न किसी आदमी ने तसर्रुफ़ किया होगौर न किसी जिन्न ने,सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
{नेमत५७}
गोया वह याकूत और मिरजान हैं, 
{नेमत५८}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"भला गायत और इता अत का बदला और कुछ हो सकता है? 
{नेमत५९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
और इन बागों से कम दर्जा कम दर्जा में दो बैग और होंगे, 
{नेमत६०}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"वह दोनों बाघ गहरे और सब्ज़ होंगे, 
{नेमत६१}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
उन दोनों बागों में दो चश्में होंगे जोश मारते हुए, 
{नेमत६२}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"उन दोनों बागों में मेवे खजूर और अनार होंगे, 
{नेमत६३}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इन में खूब सीरत खूब सूरत औरतें होंगी, 
{नेमत६४}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
वह औरतें गोरे रंगत की होंगी, खेमों में महफूज़ होंगी, 
{नेमत६५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इन लोगों से पहले इन पर न किसी आदमी ने तसर्रुफ़ किया होगा न किसी जिन्न ने, 
{नेमत६६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"वह लोग सब्ज़ और मुसज्जिर और अजीब खूब सूरत कपड़ों में तकिया लगे बैठे होंगे, 
{नेमत६७}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"बड़ा बरकत वाला नाम है आपके रब का जो अज़मत वाला और एहसान वाला है. 
{नेमत६८}
सूरह रहमान  ५५-पारा २७- आयत (१४-६८ )
मुसलमानों! 
तुम्हारे लिए मुहम्मदी अल्लाह का यही वरदान है जो सूरह रहमान में है. हिम्मत करके इस अनचाहे वरदान को कुबूल करने से इंकार कर दो,क्यूँक तुम्हारी नस्लें इस बात की मुन्तज़िर हैं कि  उनको इस वहशी अल्लाह से नजात मिले.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान