Monday 27 June 2016

Soorah Qasas28-Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा
(दूसरी क़िस्त) 

कितनी बड़ी विडंबना है कि एक तरफ तो हम नफ़रत का पाठ पढाने वालों को सम्मान देकर सर आँखों पर बिठाते हैं, 
उनकी मदद सरकारी कोष से करते हैं, 
उनके हक में हमारा क़ानून भी है, 
मगर जब उनके पढे पाठों का रद्दे अमल होता है तो उनको अपराधी ठहराते हैं. ये हमारे मुल्क और क़ौम का दोहरा मेयार है. 
धर्म अड्डों और धर्म गुरुओं को खुली छूट कि वोह किसी भी अधर्मी और विधर्मी को एलान्या गालियाँ देता रहे, भले ही सामने वाला विशुद्ध मानव मात्र हो या योग्य कर्मठ पुरुष हो अथवा चिन्तक नास्तिक हो. 
इनको कोई अधिकार नहीं की यह अपनी मान हानि का दावा कर सकें. मगर उन मठाधिकारियों को अपने छल बल के साथ न्याय का संरक्षन मिला हुवा है. ऐसे संगठन, और संसथान धर्म के नाम पर लाखों के वारे न्यारे करते हैं, अय्याशियों के अड्डे होते हैं और अपने स्वार्थ के लिए देश को खोखला करते हैं.
इन्हीं के साथ साथ हमारे मुल्क में एक कौम है मुसलमानों की 
जिसको दुनयावी दौलत से ज़्यादः आसमानी दौलत की चाह है. 
यह बात उन के दिलो दिमाग में सदियों से इस्लामी ओलिमा (धर्म गुरु) भर रहे हैं, जिनका ज़रीआ मुआश (भरण-पोषण) इस्लाम प्रचार है. 
हिंदुत्व की तरह ये भी हैं. मगर इनका पुख्ता माफिया बना है. 
इनकी भेड़ें न सर उठा सकती हैं न कोई इन्हें चुरा सकता है. 
बागियों को फ़तवा  की तौक़ पहना कर बेयारो-मददगार कर दिया जाता है. कहने को हिदू बहु-संख्यक भारत में हैं मगर क्षमा करें, 
धन लोभ और धर्म पाखण्ड ने उनको कायर बना रखा है, 
१०% मुस्लमान उन पर भारी है, तभी तो गाँव गाँव, शहर शहर मदरसे खुले हुए हैं जहाँ तालिबानी की तलब और अलकायदा के कायदे बच्चों को पढाए जाते हैं. 
भारत में जहाँ एक ओर पाखंडियों, और लोभियों की खेती फल फूल रही है वहीँ दूसरी और तालिबानियों और अल्काय्दयों की फसल तैयार हो रही है..सियासत दान देश के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने में बद मस्त हैं. 
क्या दुन्या के मान चित्र पर कभी कोई भारत था? 
क्या आज कहीं को भारत है? 
धर्म और मज़हब की अफीम खाए हुए, लोभ और अमानवीय मूल्यों को मूल्य बनाए हुए क्या हम कहीं से देश भक्त भारतीय भी हैं? 
नकली नारे लगाते हुए, ढोंग का परिधान धारण किए हुए हम केवल स्वार्थी ''मैं'' हूँ. 
हम तो मलेशिया, इंडोनेशिया तक भारत थे, 
थाई लैंड, बर्मा, श्री लंका और काबुल कंधार तक भारत थे. 
कहाँ चला गया भारत? 
अगर यही हाल रहा तो पता नहीं कहाँ जाने वाला है भारत. 
भारत को भारत बनाना है तो अतीत को दफ़्न करके वर्तमान को संवारना होगा, धर्म और मज़हब की गलाज़त को कोडों से साफ़ करना होगा. 
मेहनत कश अवाम को भारत का हिस्सा देना होगा 
न कि गरीबी रेखा के पार रखना और कहते रहना कि  
रूपिए का पंद्रह पैसा ही गरीबों तक पहुँच पाता है.

सूरह क़सस मुहम्मद ने किसी पढ़े लिखे संजीदा शख्स  से लिखवाई है . इसे पढने के बाद आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है. हराम  ज़ादे  आलिमों को खूब पता है मगर उन्हों ने सच न बोल्लने की क़सम जो खा राखी है. न सच बोलेंगे, न सच सुनेंगे और न सच महसूस करेंगे.    

लीजिए महसूस कीजिए गैर अल्लाह के कुरआन को, मगर हाँ! क़ि इस मुजरिम ने मुहम्मद की उम्मियत की इस्लाह की है, कलम में मुहम्मद का हम सर ही है - - -   

मूसा सफ़र में था और रात का वक़्त कि इसने कोहे तूर पर एक रौशनी देखी, वह इसकी तरफ खिंच गया, अपने घर वालों से ये कहता हुवा कि तुम यहीं रुको मैं आग लेकर आता हूँ. वहीँ पर अल्लाह इसको अपना पैगम्बर चुन लेता है.
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-२५-३०)

इस मौक़े पर मुहाविरा है कि "मूसा गए आग लेने और मिल गई पैगम्बरी"
अल्लाह फिरौन की सरकूबी के लिए मूसा को दो मुअज्ज़े देता है, 
पहला उसकी लाठी का सांप बन जाना और 
दूसरा यदे-बैज़ा(हाथ की गदेली पर अंडे की शक्ल का निशान) और मूसा के इसरार पर उसके भाई हारुन को उसके साथ का देना क्यूंकि मूसा की ज़ुबान में लुक्नत (हकलाहट)  थी.
ये दोनों फिरौन के दरबार में पहुँच कर उसको हक की दावत देते हैं 
(यानी इस्लाम की) और अपने मुअज्ज़े दिखलाते हैं जिस से वह मुतासिर नहीं होता और कहता है यह तो निरा जादू के खेल है. 
फिर भी नए अल्लाह में कुछ दम पाता है. 
फिरौन अपने वजीर हामान को हुक्म देता है कि एक निहायत पुख्ता और बुलंद इमारत की तामीर की जाए कि इस पर चढ़ कर मूसा के इस नए (इस्लामी) अल्लाह की झलक देखी जाए.
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-३१-३८)

अल्लाह इसके आगे अपनी अजमत, ताक़त और हिकमत की बखान में किसी अहमक की तरह लग जाता है और अपने रसूल मुहम्मद की शहादत ओ गवाही में पड़ जाता है और मूसा के किससे को भूल जता है. आगे की आयतें कुरानी खिचड़ी वास्ते इबादत हैं.
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-३९-८८)

याद रहे कुरान किसी अल्लाह का कलाम नहीं है, 
मुहम्मद की वज्दानी कैफियत है, जेहालत है और खुराफाती बकवास है.
मैंने महसूस किया है कि कुरान की दो सूरतें किसी दूसरे ने लिखी है 
जो तालीम याफ्ता और संजीदा रहा होगा, 
मुहम्मद ने इसको कुरान में शामिल कर लिया. 
इस सिलसिले में सूरह क़सस पहली है, दूसरी आगे आएगी. 
इसे कारी आसानी से महसूस कर सकते हैं. किस्साए मूसा और किस्साए सुलेमान में आसानी से ये फर्क महसूस किया जा सकता है. 
इस सूरह में न क़वायद की लग्ज़िशें हैं न ख्याल की बेराह रवी.
देखें इस सूरह क़सस की कुछ आयतें जो खुद साबित करती है कि यह उम्मी मुहम्मद की नहीं, बल्कि किसी ख्वान्दा की हैं. - - -

"और हम रसूल न भी भेजते अगर ये बात न होती कि उन पर उनके किरदार के सबब कोई मुसीबत नाजिल हुई होती, तो ये कहने लगते ऐ हमारे परवर दिगार कि आपने हमारे पास कोई पैगम्बर क्यूं नहीं भेजा ताकि हम आप के एहकाम की पैरवी करते और ईमान लाने वालों में होते."
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-४७)

''सो जब हमारी तरफ से उन लोगों के पास अमर ऐ हक पहुँचा तो कहने लगे कि उनको ऐसी किताब क्यूँ न मिली जैसे मूसा को मिली थी. 
क्या जो किताब मूसा को मिली थी तो क्या उस वक़्त ये उनके मुनकिर नहीं हुए? ये लोग तो यूं ही कहते हैं दोनों जादू हैं. जो एक दूसरे के मुवाफिक हैं और यूँ भी कहते हैं कि हम दोनों में से किसी को नहीं मानते तो आप कह दीजिए कि तुम कोई और किताब अल्लाह के पास से ले आओ.
जो हिदायत करने वालों में इन से बेहतर हो, 
मैं उसी की पैरवी करने लगूँगा, अगर तुम सच्चे हुए"
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-४८-४९)



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 24 June 2016

Soorah qasas 28 Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा
(पहली क़िस्त)

*इस्लाम इसके सिवा और कुछ भी नहीं क़ि यह एक अनपढ़ मुहम्मद की जिहालत भरी, ज़ालिमाना तहरीक है.
*कुरआन सरापा बेहूदा और झूट का पुलिंदा है. इतिहास की बद तरीन रचना.
*मुहम्मद ने निहायत अय्यारी से कुरआन की रचना की है जिसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह पर रख कर खुद अलग बैठे तमाश बीन बने रहते हैं.
*मुहम्मद एक कठमुल्ले थे जिसका सुबूत उनकी हदीसें हैं.
*कुरआन की हर आयत मुसलामानों की शह रग पर चिपकी हुई,  जोंकों की तरह उनका खून चूस रही हैं.
*वह जब तक कुरआन से मुंह नहीं फेरता और उसके फ़रमान से बग़ावत  नहीं करता, इस दुनिया में पसमान्दा कौम के शक्ल में रहेगा और दीगर कौमो का सेवक बना रहेगा.
*कुरआन के फ़ायदे  मक्कार ओलिमा के गढ़े हुए हैं जो महेज़ इसके सहारे गुज़ारा करते हैं और आली जनाब भी बने रहते हैं..

*मुसलामानों!
इन ओलिमा से उतनी ही दूरी क़ायम करो जितनी दूरी सुवरों से रखते हो. यही तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन हैं.
सूरह क़सस मुहम्मद ने किसी पढ़े लिखे संजीदा शख्स से लिखवाई है. 
इसे पढने के बाद आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है. 
हराम ज़ादे  आलिमों को खूब पता है मगर उन्हों ने सच न बोलने की क़सम जो खा रक्खी  है. न सच बोलेंगे, न सच सुनेंगे और न सच महसूस करेंगे.

लीजिए क़ुरआनी खुराफ़ात हाज़िर है. - - -

"तासिम"
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-१)

ये लफ्ज़ मोह्मिल है अर्थात अर्थ हीन. इसका मतलब अल्लाह ही जनता है और हम जन साधारण क़ुरआनी अल्लाह को अब तक खूब जान चुके हैं. 
ये मुहम्मद का फरेब है.

"ये किताब की आयतें हैं"
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-२)

अल्लाह अपने ही फ़रमान में कहता है 
"ये किताब की आयतें हैं" 
जैसे किताब के बारे में कोई दूसरा बतला रहा हो. ये मुहम्मद ही है जो कुरआन में झूट बोल रहे हैं.
"हम आपको मूसा और फिरौन का कुछ क़िस्सा पढ़ कर सुनाते हैं. 
उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं."
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-३)

अल्लाह को भी क़िस्सा पढ़ कर सुनाने की ज़रुरत है क्या?
उसने जो देखा है या जो भी उसे याद है, क्या उसको ज़बानी नहीं बतला सकता? पढ़ कर तो कोई दूसरा ही सुनाएगा. अल्लाह कहाँ पढ़ कर सुना रहा है है?
मुहम्मद अनपढ़ हैं, वह पढ़ कर सुना नहीं सकते, इस आयत की हुलिया कहाँ बनी? ऐसी गैर फ़ितरी बात उम्मी मुहम्मद ही कह सकते है. 
कुरआन के हर जुमले फ़ितरी सच्चाई से परे हैं. 
मुहम्मद के झूट को आलिमों ने परदे में रखकर मुसलामानों को गुमराह किया है.
"फिरौन सर ज़मीन पर बहुत बढ़ चढ़ गया था और उसने वहां के बाशिंदों को मुख्तलिफ किस्में कर रखा था कि उसने एक जमाअत का ज़ोर घटा रक्खा था. उनके बेटों को ज़िबह कराता था और उनकी औरतों को ज़िन्दा  रहने देता था''
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-४)

सर ज़मीन, इस धरती के किसी मखसूस हिस्से को कहा जाता है, 
अपनी खासियत के साथ. मुहम्मद पढ़े लिखों की नक्ल करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं.
ये तौरेत की जग-जाहिर कहानी है जिसे उम्मियत में डूबे मुहम्मद अपने अल्लाह का कलाम बतला रहे हैं.
फिरौन के मज़ालिम बनी इस्राईल पर बढ़ते ही चले जा रहे थे. 
वह फिरौन के बंधक जैसे हो गए थे. किसी नजूमी की पेशीन गोई के तहत कि फिरौन को पामाल करने वाला कोई इस्राईली  बच्चा पैदा होने वाला है, वह तमाम इस्राईली बच्चों को जन्म लेते ही मरवा दिया करता था और लड़कियों को ज़िन्दा रहने दिया करता था. 
इन्ही हालत में मूसा पैदा हुआ. इसकी बेक़रार माँ को अल्लाह ने हुक्म दिया कि इसे दूध पिलाओ और जासूसों का ख़तरा महसूस करो, 
फिर बग़ैर खौफ़  ओ ख़तर इसे दर्याए नील में डाल दो. 
जब ख़तरा महसूस हुवा तो उसकी माँ ने दिल पर पत्थर रख कर मूसा को संदूक में डाल कर, उसे दर्याए नील के हवाले कर दिया. 
दूसरे दिन माँ बेचैन हुई और बेटे की खैर ओ खबर और सुराग लेने के लिए उसकी बहेन को आस पास भेजा
''संदूक में बच्चे की ख़बर फ़िरौन के जासूसों को लग चुकी है. 
बच्चा उठा कर महेल के हवाले कर दिया गया है. 
बादशाह की मलका आसिया को बच्चा बहुत अच्छा लगा और इसने इसकी जान बख्शुआ कर उसे अपना लिया. ''
"मूसा की बहेन ने अपनी माँ को आकर ये खुश ख़बर  दी. 
फ़िरौन  ने दूध पिलाइयों की बंदिश कर रखी थी, सो हुवा यूँ के मूसा की परवरिश के लिए ख़ादिम के तौर पर इसकी माँ ही मिली . 
इस तरह अल्लाह ने अपना वादा पूरा किया जो मूसा की माँ से किया था. इसकी आँखें मूसा को देखकर ठंडी हुईं. ग़रज़  ये कि मूसा की जान बची. शाही महेल की सहूलतों के साथ साथ उसे माँ की देख भाल मिली. 
अल्लाह ने मूसा को इल्म ओ हुनर से नवाज़ा था."
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-५-१४)

''मूसा जब जवानी की दहलीज़ पर पहुँचा तो एक रोज़ शहर से निकल कर पास की बस्ती में घूमता हुवा चला गया, रात का वक़्त था सब सो रहे थे, इसने देखा कि दो आदमी झगड़ रहे हैं जिसमें से एक इस्राईली था उसके ही कौम का, जिसने इससे मदद मांगी और दूसरा मिसरी था. 
मूसा ने अपने हमकौम की ऐसी मदद की कि एक ही घूँसे में मिसरी का काम तमाम हो गया. वह वहाँ से चुप चाप खिसक लिया मगर बाद में इसको इस बात का बड़ा रंज रहा. 
दूसरे दिन मूसा ने देखा वही इस्राईली बन्दा एक दूसरे मिसरी  से हाथा-पाई कर रहा था और मूसा को देख कर फिर मदद की गुहार लगाई.  
मूसा इसके पास पहुँचा तो, मगर घूँसा ताना इस्राईली पर. 
ये देखकर इस्राईली चीख पुकार करने लगा - - -"
''तू मुझे भी मार डालना चाहता है जैसे कल एक मिसरी को क़त्ल कर दिया था, तू अपनी ताक़त जमाना चाहता है, मेल मिलाप से नहीं रह सकता? "
इस तरह कल हुए क़त्ल के कातिल का पता लोगों को चल गया और इसकी खबर दरबार तक पहंच गई, बस कि मूसा की शामत आ गई.
एक शख्स मूसा के पास आया और खबर दी की भागो, मौत तुम्हारा पीछा कर रही है, दरबारी तुम्हें गिरफ्तार करने आ रहे हैं. मूसा सर पर पैर रख कर भागता है. 
भागते भागते वह मुदीन नाम की बस्ती तक पहुँच जाता है, 
गाँव के बाहर पेड़ के साए में बैठ कर वह अपनी सासें थामने लगता है. 
कुछ देर बाद देखता है कुछ लोग एक कुँए पर लोगों को पानी पिला रहे हैं और वहीँ दो लड़कियां अपनी बकरियों को पानी पिला ने के लिए इंतज़ार में खड़ी हुई हैं, वह उठता है और कुँए से पानी खींच कर बकरियों की प्यास बुझा देता है.
थका मांदा मूसा एक दरख़्त के से में बैठ जाता हैऔर अल्लाह से दुआ मांगता है - -
''ऐ अल्लाह जो नेमत भी तू मुझे भेज दे मैं इसका तलबगार हूँ."
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-१५-२४)

''मूसा की दुआ पलक झपकते ही कुबूल होती है. उसने जब आँखें खोलीं तो देखा कि एक नाज़ुक अंदाम दोशीजा सामने से खिरामाँ खिरामाँ चली आ रही है. ये उनमें से ही एक थी जिनकी बकरियों को मूसा ने पानी पिलाया था. करीब आकर उसने कहा - - -
अजनबी तुम से मेरे वालिद बुजुर्गवार मिलना चाहते हैं, अगर तुम मेरे साथ चलो?
मूसा लड़की के हमराह उसके बाप की खिदमत में पेश होता है. 
और उसको अपना हमदर्द पाकर पूरी रूदाद सुनाता है और (बुड्ढा बाप) कहता है. अच्छा हुआ तुम जालिमो से बच कर आ गए.
लड़की बाप को मशविरा देती है कि अब आप बूढ़े हो गए हैं, आपको एक ताक़त वर और अमानत दार इंसान की ज़रुरत है, बेहतर होगा कि आप मूसा को अपनी मुलाजमत में ले लें
लड़की का बूढा बाप उसकी बात मान जाता है और मूसा के सामने पेशकश रखता है कि वह इन दोनों बेटियों में से किसी एक के साथ शादी करले, इस शर्त के साथ कि वह दस साल तक घर जंवाई बन कर रहेगा, जिसे मूसा मान जाता है. वह तवील मुद्दत देखते ही देखते ख़त्म हो जाती है और वह वक़्त भी आ जाता है कि मूसा अपने बाल बच्चों को लेकर मिस्र के लिए कूच करता है .



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 20 June 2016

Soorah namal 27 Q3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नमल २७
किस्त 3 

मोमिन बनाम मुस्लिम 

मुसलामानों खुद को बदलो. 
बिना खुद को बदले तुम्हारी दुन्या नहीं बदल सकती. 
तुमको मुस्लिम से मोमिन बनना है. तुम अच्छे मुस्लिम तो ज़रूर हो सकते हो मगर मोमिन क़तई नहीं, 
इस बारीकी को समझने के बाद तुम्हारी कायनात बदल सकती है. 
मुस्लिम इस्लाम कुबूल करने के बाद ''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' यानी अल्लाह वाहिद के सिवा कोई अल्लाह नहीं और मुहम्मद उसके पयम्बर हैं. 
मोमिन फ़ितरी यानी कुदरती रद्दे अमल पर ईमान रखता है. 
ग़ैर फ़ितरी बातों पर वह यक़ीन नहीं रखता, 
मसलन इसका क्या सुबूत है कि मुहम्मद को अल्लाह ने अपना पयम्बर बना कर भेजा. इस वाकेए को न किसी ने देखा न अल्लाह को पयम्बर बनाते हुए सुना. जो ऐसी बातों पर यक़ीन या अक़ीदत रखते हैं वह मुस्लिम हो सकते हैं मगर मोमिन कभी भी नहीं. 
मुस्लमान खुद को साहिबे ईमान कह कर आम लोगों को धोका देता है कि लोग उसे लेन देन के बारे में ईमान दार समझें, उसका ईमान तो कुछ और ही होता है, वह होता है 
''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' 
इसी लिए वह हर बात पर इंशा अल्लाह कहता है. 
यह इंशा अल्लाह उसकी वादा खिलाफ़ी, बे ईमानी, धोखा धडी और हक़ तल्फ़ी में बहुत मदद गार साबित होता है. 
इस्लाम जो ज़ुल्म, ज़्यादती, जंग, जूनून, जेहाद, बे ईमानी, बद फेअली, बद अक़ली और बेजा जिसारती के साथ सर सब्ज़ हुवा था, उसी का फल चखते हुए अपनी रुसवाई को देख रहा है. 
ऐसा भी वक्त आ सकता है कि इस्लाम इस ज़मीन पर शजर-ए-मम्नूअ बन जाय और आप के बच्चों को साबित करना पड़े कि वह मुसलमान नहीं हैं. इससे पहले तरके इस्लाम करके साहिबे ईमान बन जाओ. 
वह ईमान जो २+२=४ की तरह हो, 
जो फूल में खुशबू की तरह हो, 
जो इंसानी दर्द को छू सके, जो इस धरती को आने वाली नस्लों के लिए जन्नत बना सके.
उस इस्लाम को खैरबाद करो जो ''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' जैसे वह्म में तुमको जकड़े हुए है. 
अब देखिए मुहम्मद के कुरानी अफ़साने कि कहानी के नाम पर वह क्या हाँक रहे है. - - - 
बादशाह की शान में आधीन देवों की गुस्ताखी मुलाहिजा हो - - -
"जिसके पास किताब का इल्म था उसने कहा मैं इसको तेरे सामने तेरी आँख झपकने से पहले लाकर खड़ा कर सकता हूँ." 
इसी तरह कुरआन के दीगर मुकालमों पर गौर करें और मानें कि यह एक अनपढ़ की तसनीफ़ है, किसी अल्लाह की नहीं.
कुरआन में अक्सर कुफ़फ़ार की अल्लाह से तकरार है, उनको सवालों पर अल्लाह का जवाब है, ज़ाहिर है इसके बाद वह जवाब पर सवाल करते होंगे, जिस बे ईमान अल्लाह कभी पेश नहीं करता. मुस्लमान अल्लाह के अर्ध-सत्य को ही पूरा सच मान लेता है. यह कुरआन की धांधली है और मुसलमानों का भोला पन. कुफ़फ़ार मक्का की एक मफ्रूज़ा तकरार पेश है.
रसूल :--" अच्छा बतलाओ ये बुत बेहतर हैं या वह जात जो तुमको खुश्की और दरया की तारीकी में रास्ता सुझाता है? जो हवाओं को बारिश से पहले भेजता है जो खुश कर देती हैं.?"
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (63)

कुफ्फार:-- हमारे ये पत्थर के बने बुत, यह तो हैं जो हमें राह दिखलाते हैं और बारिश लाते हैं, जब इनके सामने हम दुआएँ मांगते हैं.
रसूल :-- इसका सुबूत ?
कुफ्फार:-- सुबूत ? चलो ठीक है हम अपने बुतों को साथ लेकर आते हैं, तुम अपने अल्लाह को लेकर आओ , मिल जायगा सुबूत .
रसूल :-- आएं ! (बगलें झाकते हुए) "मेरा परवर दिगार तो आसमानों और ज़मीन का मालिक है, और (और और) बड़ा हिकमत वाला है और (और और) बड़ा ज़बरदस्त है और (और और) आप कह दीजिए कि जितनी मख्लूकात आसमानों और ज़मीन पर मौजूद हैं, कोई भी गैब की बात नहीं जनता बजुज़ अल्लाह के. इनको ये खबर नहीं कि वह दोबारा कब ज़िन्दा किए जाएँगे, बल्कि आखरत के बारे में इनका इल्म नेस्त हो गया है, बल्कि ये लोग इस शक में हैं , बल्कि ये लोग इससे अंधे बने हुए हैं," 
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (65-66) 

कुफ्फार :-ठीक है ठीक है हम लोग आधा घंटा तक अपने बुतों की इबादत करते हैं और तुम अपने अल्लाह की याद में गर्क हो जाओ, तब तक वह तुम्हारे पास ज़रूर आ जाएगा .
( कुफ्फर अपने बुतों के आगे ढोल, मजीरा और दीगर साज़ लेकर रक्से-मार्फ़त करने लगे, महवे-ज़ात-गैब हुए और फ़ना फिल्लाह हो गए, कुछ होश अपना रहा न दुन्या का, खून के क़तरे क़तरे में मारूफ़ियत दौड़ने लगी, आधा घंटा पल भर में बीत गया, खुद साख्ता रसूल ने उनको झकझोरते हुए कहा 
कमबख्तो! तुम पर अल्लाह की मार , वक़्त ख़त्म हवा .
कुफ्फार :- अल्लाह के रसूल! पकड़ में आया तुम्हारा अल्लाह?
रसूल :- क्या खाक पकड़ में आता तुम्हारे हंगामा आराई के आगे. मैं तो अपनी रकात भी न याद रख सका कि कितनी अदा की तुम्हारे शोर गुल के आगे .
" आप कह दीजिए कि तुम ज़मीन पर चल फिर कर देखो कि मुजरिमीन का अंजाम क्या हुवा और आप इन पर गम न कीजिए और जो कुछ ये शरारतें कर रहे हैं, इनपर तंग न होइए और ये लोग यूँ कहते हैं कि ये वादा ( क़यामत) कब आएगा? अगर तुम सच्चे हो ? आप कह दीजिए कि अजब नहीं कि जिस अज़ाब की तुम जल्दी मचा रहे हो, उसमें से कुछ तुम्हारे पास ही आ लगा हो."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पा रा- आयत (6-72)

कुफ्फार :- तो गारे हरा चलें? शायद वहां मिले अल्लाह?
"और आप का रब लोगों पर बड़ा फज़ल रखता है लेकिन अक्सर आदमी शुकर नहीं करते और आपके रब को सब खबर है जो कुछ इनके दिलों में मुख्फ़ी है और जिसको वह एलानिया करते हैं और आसमान और ज़मीन पर कोई मुख्फी चीज़ नहीं जो लौहे-महफूज़ में न हो."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (७४-७५)

छोडिए अल्लाह को, ऐ अल्लाह के फर्जी रसूल! जिब्रील अलैहिस सलाम को ही बुलाइए.
"ये कुफ्फार जब भी मुझको देखते हैं तो इनको तमस्खुर सूझता है.
अल्लाह ने छे दिन में दुन्या बनाई फिर सातवें दिन आसमान पर कायम हुआ.
वह नूर अला नूर है.
तुहें औंधे मुँह जहन्नम में डाल दिया जायगा और वह बुरी जगह है.
आप मुर्दों को नहीं सुना सकते, और न बहरों को अपनी आवाज़ सुना सकते हैं. जब वह पीठ फेर के चल दें और न आप अंधों को गुमराही से रास्ता दिखलाने वाले हैं. आप तो सिर्फ उन्हीं को सुना सकते हैं जो जो हमारी आयतों पर यकीन रखते हों. फिर वह मानते हैं और जब उन पर वादा पूरा होने का होगा तब उनके लिए हम ज़मीन से एक जानवर निकालेंगे वह इनसे बातें करेगा, कि लोग हमारी आयतों पर यकीन न लाते थे और जिस दिन हम हर उम्मत में से एक एक गिरोह उन लोगों का उन लोगों का जमा करेंगे जो हमारी आयतों को झुटलाया करते थे और उनको कहा जायगा यहाँ तक कि जब वह हाज़िर हो जाएँगे तो अल्लाह इरशाद फरमाएगा कि क्या तुमने हमारी आयतों को झुटलाया था, हालाँकि तुम उनको अपने अहाता ऐ इल्मी में भी नहीं लाए बल्कि और भी क्या क्या काम करते रहे "
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (७४-८० )

कुफ्फार:-- (क़हक़हा) 
"और तू पहाड़ों को देख रहा है, उनको ख़याल कर रहा है कि वह जुंबिश न करेंगे? हालां कि वह बाल की तरह उड़ते फिरेंगे . ये अल्लाह का काम है जिसने हर चीज़ को मज़बूत बनाये रखा है. यह यकीनी बात है कि अल्लाह तुम्हारे हर फेल की पूरी खबर रखता है."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (८८)

कुफ्फार :-- (क़हक़हा) 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 17 June 2016

Soorah Namal 27 Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह नमल २७

(दूसरी क़िस्त)

कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवानों को

पिछली पोस्टों में मैं निवेदन कर चुका हूँ कि टीका कार गाली गलौचऔर अभद्र भासा मेरे ब्लाग में न लाएं. ये  बातें जो पसंद करते हैं उनके ब्लॉग में जाएँ. कडुई और कठोर बातों से कोई फायदा नहीं होता, सिवाए  नुकसान के. कृप्या मेरा साथ दें और मेरे ही लबो-लहजे में तर्क संगत बातों से मुसलमानों को कौमी धारे में लाने का प्रयास करें. 
भारत के मुस्लमान कहे जाने वाले मानव प्राणी, मज़हबी चक्रांध के शिकंजे में फंसे हुए हैं जिनको मैं जगाना चाहता हूँ, क्यूंकि मैं उससे निकल चुका हूँ . मुसलमान सिर्फ एक 'पूज्य'अल्लाह को मानता है , हिदू समाज अनेक पूज्य रखता है. आप मेरे उदगारों से प्रभावित है तो बेहतर है कि आप उस  के लिए काम करें
एक सज्जन मुसलामानों के लिए निर्धारित शब्द कटुवा और कटुए की शब्दावली से मुसलामानों को संबोधित किया है , कट्टर हिन्दू पीठ पीछे मुसलामानों को इसी अंदाज़ से इंगित करते हैं, इनको खतने (लिंग की अग्र भाग की गैर ज़रूरी चमड़ी का काटना). का लाभ  नहीं मालूम कि ये क्रिया बहुत ही स्वाभाविक है, जैसे बच्चे कि नाड़ी काटना ज़रूरी होता है. खतने से कई लैंगिक बीमारियों का समाधान होता है जैसे  टीके से चेचक का और पोलिओ की दो बूँद से इन बीमारियों का निदान है. खतना बद्ध लिंग सदा साफ़ और दुर्गन्ध रहित होता है. इसका बड़ा लाभ ये है कि यौन-संबध में दोनों को संतुष्टि होती है.
इंसानी सभ्यता के प्रारंभ में ही मानव समाज ने इसके लाभ को स्वीकरा. चार हज़ार साल पहले बाबा इब्राहीम के खतने का ज़िक्र इतिहास में मिलता है जोकि निरा मानव थे. बाद में यहूदियों ने इसे अपने समाज के लिए अनिवार्य कर दिया और उन्हीं की पैरवी मुसलमान करते हैं जोकि विशुद्ध निदान संगत है . मैं भी कटुवा हूँ और अपने माँ-बाप का आभारी हूँ. बात मुखालिफत की है. "मुखालिफत बराय मुखालिफत" नहीं होना चाहिए कि मुसलमान अगर टोपी लगता है तो हमें टोपी नहीं लगनी चाहिए , भले ही पगड़ी और साफे की झंझट अपनाएँ. 

बिकीस के दूतों का अपमान करते हुए सुलेमान उन्हें वापस कर देता है - - - उसके बाद कहानी का सिलसिला मुलाहिजा हो  -  - -
बादशाह सुलेमान से मुहम्मद अपनी काबिलयत उगलवाते हैं - - -

"सो हम उन पर ऐसी फौजें भेजते हैं कि उन लोगों से उन का ज़रा मुकाबिला न हो सकेगा और हम वहाँ से उनको ज़लील करके निकाल देगे और वह मातहत हो जाएँगे. सुलेमान ने फ़रमाया ऐ अहले दरबार तुम में से कोई ऐसा है कि उस बिलकीस का तख़्त, क़ब्ल  इसके कि वह लोग मेरे पास आएँ, मती (आधीन) होकर आएँ, हाज़िर कर दे ?
 एक क़वी हैकल जिन ने जवाब में अर्ज़ किया, मैं इसको आप की खिदमत में हाज़िर कर दूंगा, क़ब्ल इसके कि आप इस इजलास से उठ्ठें. और मैं इसको लाने की ताक़त रखता हूँ. और अमानत दार भी हूँ. 
जिसके पास किताब का इल्म था उसने कहा मैं इसको तेरे सामने तेरी आँख झपकने से पहले लाकर खड़ा कर सकता हूँ.
पस जब सुलेमान अलैहिस्सलाम ने इसको अपने रूबरू देखा तो कहा ये भी मेरे परवर दिगार का एक फज़ल है. ताकि वह मेरी आज़माइश करे, मैं शुक्र करता हूँ. और जो शुक्र करता है अपने ही नफा के लिए करता है. और जो नाशुक्री करता है,(?) मेरा रब गनी है, करीम है. 
सुलेमान ने हुक्म दिया कि इसके लिए इस तख़्त की सूरत बदल दो हम देखें कि इसको इसका पता चलता है या इसका इन्हीं में शुमार है जिन को पता नहीं लगता .
 सो जब बिलकीस आई तो इस से कहा की क्या तुम्हारा तख़्त ऐसा ही है? 
बिलकीस ने कहा हाँ ऐसा ही है और हम को तो इस वाकेऐ की पहले ही तहकीक हो गई थी. और हम मती हो चुके हैं 
और इसको गैर अल्लाह की वबा ने रोक रख्खा था और वह काफ़िर कौम में की थी. 
बिलकीस से कहा गया कि तू इस महल में दाखिल हो, तो जब इसका सेहन देखा तो उसको पानी समझा और अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दीं. सुलेमान ने फ़रमाया यह तो एक महेल है जो शीशों से बनाया गया है. बिकीस कहने लगी ऐ मेरे परवर दिगार ! मैं ने अपने नफ़स पर ज़ुल्म किया था और अब मैं सुलेमान के साथ होकर रब्बुल आलमीन पर ईमान लाई."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (३७-४४).

इस सुलेमानी कहानी के बाद बिला दम लिए अल्लाह समूद और सालेह के बयान पर आ जाता है और इनकी दो एक बातें बतला कर लूत को पकड़ता है और लूत की इग्लाम बाज़ उम्मत को. फिर शुरू कर देता है कुफ्फर के साथ सवाल जवाब अजीब सूरत रखते हैं. कुफ्फर अल्लाह से बुनयादी सवाल करते हैं और अल्लाह उनको बे बुन्याद जवाब देता है.
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (४५-६४) 

सुलेमान की दास्तान मुहम्मद की अफसाना निगारी का एक नमूना है. 
हैरत होती है कि मुस्लमान इस अल्लाह की बद तरीन तसनीफ (रचना) पर किताब पर ईमान रखते हैं जिसको बात करने का सलीका भी नहीं है 
और जिसकी मदद बन्दों ने तर्जुमानी और लग्व तफ़सीर से की. क्या अल्लाह जलीलुल कद्र अपनी छीछा लेदर ऐसी दास्तान गोई से कराएगा जिसमें झूट और मक्र की भरमार है.
 जिन और परिंदों का लश्कर होना ? सुलेमान का हज़ारों परिंदों की हाज़री लेना? इनमें से किसी एक को गैर हाज़िर पाना ? सुलेमान के मुँह से ऐसे कलिमें अदा कराना 
" वह इसकी गैर हजिरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबाह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे"
दर असल  मुहम्मद अपनी फितरत के मुताबिक कुरआन की शक्ल पेश करते है. वह मिज़ाजन ऐसे थे , शुक्र है बुलबुल ने हुज्जत न करके बद खबरी दी कि कमबख्त बिलकीस एक औरत हो कर मर्दों पर हुक्मरानी  करती है? भला मुहम्मदी दीन में इसकी गुजाइश कहाँ? 
सुलेमान क़दीम बादशाहों में पहली हस्ती हैं जो आला दर्जे की शख्सियत था और अपने वक़्त कि जदीद तरीन तालीमों से लबरेज़ था.वह मुफक्किर था,  अच्छा शायर था, माहिरे नबातात (बनस्पति-ज्ञान)और माहिरे हयात्यात था. तामीरात में पहला अज़ीम आर्चितेक्ट हुआ है. उसकी तामीर को वालियान मुमल्कत देखने आया करते थे. 
घामड़  मुहम्मद ने सुलेमान के बारे में बेहूदा कहानी गढ़ी है  देखिए कि  देवों के देव , महादेव ने किस तरह मलकाए शीबा का तख़्त पलक झपकते ही सुलेमान के क़दमों पर रख दिया? 
अगर इसी कुरानी हालात में एक हिन्दू कहता है कि परबत को लेकर हनुमान जी उड़े तो मुसलमान हसेंगे और लाहौल पढेंगे. 
नकली रसूल के अल्लाह की कहानी आप नियत बाँध कर नमाज़ों में पढ़ते हैं.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 13 June 2016

Soorah Namal 27 Q-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह नमल २७
(पहली किस्त)

दीन के मअनी हैं दियानत दारी. 
इस्लाम को दीन कहा जाता है मगर इसमें कोई दियानत दारी नहीं है. अज़ानों में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल कहने वाले बद दयानती का ही मुज़ाहिरा करते हैं . वह अपने साथ तमाम मुसलमानों को गुमराह करते हैं, उन्हों ने अल्लाह को नहीं देखा कि वह मुहम्मद को अपना रसूल बनता हो , न अपनी आँखों से देखा और न अपने कानों से सुना, 
फिर अज़ानों में इस बे बुन्याद आकेए की गवाही दियानत दारीऔर सदाक़त कहाँ रही ? 
कुरान की हर आयत दियानत दारी की पामाली करती है जिसको अल्लाह का कलाम कह गया है. 
नई साइंसी तहकीक व् तमीज़ आज हर मौजूअ  को निज़ाम ए  कुदरत के मुताबिक सही या ग़लत साबित कर देती है. साइंसी तहकीक के सामने धर्म और मज़हब मज़ाक मालूम पड़ते हैं. 
बद दयानती को पूजना और उस पर ईमान रखना ही इंसानियत के खिलाफ एक साज़िश है. हम लाशऊरी तौर पर बद दयानती को अपनाए हुए हैं. जब तक बद दयानती को हम तर्क नहीं करते, इंसानियत की आला क़द्रें कायम नहीं हो सकतीं 
और तब तक यह दुन्या जन्नत नहीं बन सकती. 
आइए हम अपनी आने आली नस्लों के लिए इस दुन्या को जन्नत नुमा बनाएँ. इस धरती पर फ़ैली हुई धर्म व् मज़हब की गन्दगी को ख़त्म करें, अल्लाह है तो अच्छी बात है और नहीं है तो कोई बात नहीं. अल्लाह अगर है तो दयानत दारी और ईमान ए सालेह को ही पसंद करेंगा न कि इन साजिशी जालों को जो मुल्ला और पंडित फैलाए हुए हैं. 

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आइए देखें मुहम्मदी कुरान के जालों में बने हुए फन्दों को - - -
मुहम्मद ने इस सूरह में देव और पारी की कहानी गढ़ी है. 
इस्लामी बच्चे इस कहानी को अल्लाह के बयान किए हुए हक़ायक मानते हैं और इस पर इतना ईमान और यकीन रखते हैं कि वह बालिग़ ही नहीं होना  चाहते. ये कहानी मशहूर-ज़माना यहूदी बादशाह सोलेमन (सुलेमान) की है. इस कहानी की हकीकत के साथ साथ तारीखी सच्चाई तौरेत में तफसील के साथ बयान किया गया है, जिसे मुहम्मद ने पूरी तरह से बदल कर कुरआन बनाया है. 
मुहम्मद का तरीका ये रहा है कि उन्होंने हर यहूदी हस्ती को लिया और उसके नाम की कहानी ऐसी गढ़ी कि जिसका तौरेती हकीकत से कोई लेना देना नहीं. 
अपनी गढंत को अल्लाह से गवाही दिला दिया है और असली तौरेत और इंजील को नकली बतला दिया. इनके इस बदलाव में मज़मून में कोई सलीका होता तो भी मसलहतन माना जा सकता है, 
मगर देखिए  कि उनका जेहनी मेयार कितना पस्त है - - -

"तास" 
यह कोई इशारा है जिसे आज तक कोई नहीं समझ सका, बस अल्लाह ही बेहतर जाने, कह कर आलिमान आगे बढ़ लेते हैं, गोया मंतर है सूरह शुरू करने से पहले दोहराने का.
"ये आयतें हैं कुरआन की और एक वाज़ह किताब की. ये ईमान वालों के लिए हिदायत और खुश खबरी सुनाने वाली है."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (१).

ये आयतें हैं कुरआन की जो कि एक गैर वाज़ह किताब है और इस में सब कुछ मुज़ब्ज़ब है जिसमे अल्लाह के रसूल को बात कहने का सलीका तक नहीं है, आयातों में कोई दम नहीं है, जो कुछ है सब मुहम्मद का बका हुआ झूट है.ये किताब आज इक्कीसवीं सदी में भी लोगों को गुमराह किए हुए है. मुहम्मद की दी हुई तरबियत में कुछ लोग अवाम के सीने पर तालिबान बने खड़े हुए हैं.यही खुश खबरी है ऐ मजलूम मुसलमानों.  
"अल्लह मुसलमानों को इस्लाम पर चलने की ताक़ीद करता है और बदले में आखरत की तस्वीर दिखलाता है. अल्लाह मुहम्मद  को मूसा की याद दिलाता है जब वह अपने परिवार के साथ सफ़र में होते हैं - - - 
"मैंने एक आग देखी है मैं अभी वहाँ से कोई खबर लाता हूँ. तुम्हारे पास आग का शोला किसी लकड़ी वगैरा में लगा हुवा लाता हूँ ताकि तुम सेंको. सो जब इसके पास पहुंचे तो उनको आवाज़ दी गई कि जो इस आग के अन्दर हैं, उन पर भी बरकत हो और जो इसके पास है, उसपर भी बरकत हो, और रब्बुल आलमीन पाक है. ऐ मूसा बात ये है कि  मैं जो कलाम करता हूँ , अल्लाह हूँ ज़बरदस्त हिकमत वाला, और तुम अपना असा डाल दो सो जब उन्हों ने इसको इस तरह हरकत करते हुए देखा जैसे सांप हो तो पीठ फेर कर भागे और पीछे मुड कर भी न देखा. ऐ मूसा डरो नहीं हमारे हुज़ूर में पैगम्बर नहीं डरा करते.हाँ! मगर जिससे कुसूर हो जावे फिर नेक कम करे तो मैं मगफिरत करने वाला हूँ . - - -
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (३-१६).

कुरान के अल्लाह बने मुहम्मद इस वक़्त आयातों में वज्द की हालत में हैं, कुछ बोलना चाहते हैं और मुँह से निकल रहा है कुछ, 
तर्जुमे और तफ्सीर के कारीगर मौलानाओं ने इस में पच्चड लगा लगा कर इन मुह्मिलात में मअनी भरा दिया . 
अभी पिछले बाब में मूसा के बारे में जो बयान किया गया है, उसी को यहाँ पर दोहराया गया है, और आगे भी कई बार दोहराया जाएगा. 
मुसलामानों की नजात का एक ही इलाज है कि कुरआन इनको मार-बाँध कर सुनाया जाय, जब तक कि ये मुन्किरे-कुरान न हो जाएँ.
"हज़रात सुलेमान के पास बहुत बड़ी फ़ौज थी जिसमे आदमियों के अलावा जिन्न और परिंदों के दस्ते भी थे और कसरत से थे कि जिनको चलाने के लिए निजामत की जाती थी. लश्करे सुलेमानी जब चीटियों के मैदान में आया तो वह आपस में बातें करने लगीं कि अपने अपने बिलों में गुस जाओ.कि लश्करे-सुलेमानी तुमको कहीं कुचल न डाले. सुलेमान ये सुनकर मुस्कुरा पड़े."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (१७-१९).

कहते हैं मैजिक आई घुप अँधेरे में बड़ी खूबसूरत दिखाई पड़ती है, 
जैसे कि नादान और निरक्षर कौमों में जादूई करिश्में. 
मुहम्मद इन्हें सुलेमानी लश्कर में जिन्न और परिंदों के दस्ते शामिल बतला रहे हैं, मुसलमान इस पर यकीन करने पर मजबूर है. 
चीटियों की खामोश झुण्ड में मुहम्मद उनकी गुफ्तुगू सुनते हैं और सुलेमान को मुस्कुराते हुए लम्हे की गवाही देते हैं. 
यह तमाम गैर फ़ितरी बातें ही मुसलमानों की फितरत में शामिल हैं, इन्हें कैसे समझाया जाए? 

"एक बार यूँ हुआ कि सुलेमान ने परिंदों की हाजिरी ली, पाया कि हुद हुद गायब है. वह इसकी गैर हजिरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबाह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे. सो थोड़ी देर में वह आ गया और कहने लगा मैं ऐसी खबर लेकर आया हूँ जिसकी खबर आप को भी नहीं है, मैं कबीला-ए-सबा से एक तहकीक़ खबर लाया हूँ. मैं ने एक औरत को देखा कि वह लोगों पर हुकूमत कर रही है और इसके यहाँ अश्या-ए-ऐश मुहय्या है और उसके यहाँ एक बड़ा तख़्त है. मैंने देखा उसको और उसके कौम को कि अल्लाह की इबादत को छोड़ कर सूरज को सजदह कर रहे हैं. वह राहे-हक पर नहीं चलते, शैतान ने उन्हें रोक रक्खा है."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (२०-२४).

इसके बाद कुछ देर के लिए मुहम्मद की जुबान हुद हुद की चोंच में आ जाती है और वह करने लगती है तब्लिगे-इस्लाम - - -
"सुलेमान ने दास्तान सुन कर कहा, देख लेते है कि तू सच बोलता है या झूट तू मेरा एक ख़त दरबार में छोड़ कर, सुन कि वहां क्या सवाल जवाब होते हैं."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (२८).

(हुद हुद हुक्म बजाते हुए सुलेमान के ख़त को मलका ए बिलकीस के महल में डालकर रद्दे अमल का इंतज़ार करता है. बिलकीस ख़त उठाती है और इसे पढ़ कर दरबार तलब करती है.)
"ए लोगो! सुलेमान का यह ख़त आया है जिसमें सब से पहले लिखा है 'बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम' तुम लोग मेरे बारे में ज़्यादः तकब्बुर न करो और मती हो कर चले आओ. मलका ने अपने दरबारियों से पूछा कि तुम लोगों की क्या राय है? तुम लोगों के मशविरे के बगैर तो मैं कोई काम करती नहीं, बोलो कि हमें क्या करना चाहिए? दरबारी कहने लगे वैसे हम लोग बहादर हैं और बेहतर फौजी हैं मगर तुम्हारी मसलेहत क्या कहती है? फैसला करके हम को हुक्म दो. बिलकीस बोली वालियान मुल्क जब किसी बस्ती में दाखिल होते हैं तो इसे तहों-बाला कर देते है और इसमें रहने वाले इज्ज़त दार लोगों को ज़लील करते हैं और वह लोग भी ऐसा करेंगे. मैं उन लोगों के पास कुछ हदिया भेजती हूँ , फिर देखती हूँ कि वह फरिस्तादे क्या लाते है, सो वह फरिस्तादा जब सुलेमान के पास पहुंचा तो सुलेमान ने फ़रमाया क्या तुम लोग मॉल से मेरी इमदाद करना चाहते हो?  सो अल्लाह ने मुझे जो कुछ दे रक्खा है, वह इससे बहुत बेहतर है, हाँ तुम ही अपनी इस हदिया पर इतराते हो."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (२९-३६)

'बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम'
अल्लाह का ये नाम मुहम्मद का रखा हुआ है जिसको यहूदी बादशाह के मुंह से कहलाते हैं. किस कद्र झूट और मकर के पुतले थे ?
वह जिनको मुसलमान सल्लाल्हो-अलैहे-असल्लम कहते हैं.
(अगली किस्त में तौरेती सुलेमान की हकीकत होगी जिससे इस गढ़ंत का कोई ता अल्लुक नहीं.)


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 10 June 2016

Soorah Soera 26 Q-3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा 
किस्त 3 

पिछले बाब में आपने मूसा की गाथा मुहम्मद के ज़ुबानी सुनी जो कि मुसलामानों को बतलाया गया और जिस पर हर मुसलमान ईमान रखता है, यह बात और है कि ऐतिहासिक सच कुछ और ही है. 
इसके बाद मुहम्मद अब्राहम को पकड़ते हैं जो अपने बाप को एक ईश्वरीय नुक्ते को समझाता और धमकता है. 
बाप आज़र मशहूर संग तराश था जिसके वंशजों की मूर्ति रचनाएँ आज भी मिस्र की शान बनी हुई है, 
वह बाप एक चरवाहे की बात और डांट को सुनता है. 
जो कि अपने पोते यूसुफ़ की वजह से मशहूर हुवा (क्यूँकि  यूसुफ़ मिस्र के शाशक फिरौन का मंत्री बना). 
इब्राहीम बाप के लिए मुजस्सम मुहम्मद बन जाता है और उसके लिए मुक्ति की दुआ माँगता है जैसे मुहम्मद ने खुद अपने चचा के लिए दुआ माँगी थी.
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१०-६८)

इसके बाद नूह का नंबर आता है और अल्लाह उनका किस्सा एक बार फिर दोहराता है, फिर आद और हूद पर आता है और उनके नामों का जिक्रे-खास भर कर पाता है. 
मुहम्मदी अल्लाह ऊँची ऊँची इमारतों की तामीर को गुनाह ठहराते हुए मुसलमानों को ऐसा पाठ पढाता है कि आज भी तरक्की याफ्ता कौमों के सामने वह झुग्गियों में रहकर गुज़र बसर कर रहे हैं. 
मवेशी, बागबानी, और औलादों की बरकतों की फैजयाबी से मुसलामानों को नवाजते हुए मुहम्मद अपना दिमागी तवाजुन खो बैठते हैं और जो मुँह में आता है, बकते चले जाते हैं, जो ऐसे ही कुरआन बनता चला जाता है. अपने इर्द गिर्द के माहौल को दीवाने की तरह बडबडाते हुए कहते हैं
"वह लोग कहने लगे यूँ कि तुम पर तो किसी ने बड़ा जादू कर दिया है, तुम तो महेज़ हमारी तरह एक आदमी हो. और हम तो तुम पर झूठे लोगों का ख़याल करते हैं, सो अगर तुम सच्चे हो तो हम पर कोई आसमान का टुकड़ा गिरा दो."
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (६९-१७८)

"और ये कुरआन रब्बुल आलमीन का भेजा हुवा है. इसको अमानत दार फ़रिश्ता लेकर आया है, आपके क़ल्ब पर साफ़ अरबी जुबान में, ताकि आप मिनजुम्ला डराने वालों में हों और इसका ज़िक्र पहली उम्मतों की किताबों में ह. क्या इन लोगों के लिए ये बात दलील नहीं है कि इसको इन के ओलिमा बनी इस्राईल जानते हैं"
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१९१-९७)

रब्बुल आलमीन गर्म हवाओं का क़हर भेजता है, 
ठंडी हवाओं की लहर भेजता है, 
सैलाब और तूफ़ान भेजता है, 
साथ साथ खुश गवार सहर भेजता है. 
भूचाल और ज्वाला मुखी भेजता है, 
सूखा और बाढ़ भेजता है, 
सोने की खानें भेजता है, 
हासिल कर सकते हो तो करो. 
किताब कापी वह जानता भी नहीं न कोई भाषा और न कोई लिपि को वह समझता है. 
उसने एक निजाम बना कर अपने मख्लूक़ के लिए सिद्क़ और सदभाव की चुनौती दी है. उसने हर चीज़ को फ़ना होने का ठोस नियम भेजा है, उसके ज़हरों और नेमतों को समझो, मुकाबिला करो. 
इसी उसूल को मान कर मगरीबी दुन्या आज फल फूल रही है और मुसलमान क़ुरआनी जेहालातों में मुब्तिला है. 
मुहम्मद एक नाक़बत अंदेश का सन्देशा लेकर पैदा हुए और करोरों लोगों को गुमराह करने में कामयाब हुए.
"फिर वह उनके सामने पढ़ भी देता, ये लोग फिर भी इसको न मानते. हम ने इसी तरह इस ईमान न लाने वालों को, इन नाफ़र्मानों के दिलों में डाल रख्खा है, ये लोग इस पर ईमान न लाएँगे ,जब तक कि सख्त अज़ाब को न देख लेंगे, जो अचानक इन के सामने आ खड़ा होगा और इनको खबर न होगी."
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१९९-२०२)

मुहम्मद अनजाने में अपने अल्लाह को शैतान साबित कर रहे हैं जो इंसानों के दिलों में वुस्वसे पैदा करता है. किस कद्र बेवकूफ़ी की बातें करते है? क्या ये कोई पैगम्बर हो सकते है. 
अगर ये अल्लाह का कलाम है तो कोई दीवाना ही मुसलमानों का अल्लाह हो सकता है. 
जागो मुसलमानों! तुम क़ुरआनी इबारतों को समझो और अपने गुमराहों को रह दिखलाओ. 
"और जितनी बस्तियां हमने गारत की हैं, सब में नसीहत के वास्ते डराने वाले आए और हम ज़ालिम नहीं हैं और इसको शयातीन लेकर नहीं आए, और ये इनके मुनासिब भी नहीं, और वह इस पर क़ादिर भी नहीं, क्यूँकि वह शयातीन सुनने से रोक दिए गए हैं, सो तुम अल्लाह के साथ किसी और माबूद की इबादत न करना, कभी तुम को सज़ा होने लगे और आप अपने नज़दीक के कुनबे को डराइए "
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (२०९-२१४)

पूरे कुरआन में सिर्फ़ कुरआन की अज़्मतें बघारी गई हैं, 
कौन सी अज़्मतें है? 
इसको मुहम्मद बतला भी नहीं पा रहे. 
शैतान मियाँ को कुरआन ने अल्लाह मियाँ का सौतेला भाई बना रख्खा है. ताक़त में उन्नीस बीस का फर्क है. 
उम्मी के जेहनी भंडार में इतने शब्द भी नहीं की डराने के बजाए कोई इनके मकसद को छूता हुवा लफ्ज़ होता जिससे  इनकी बातें और भाषा में कमी न होती , बल्कि मुनासिबत होती.  
"और अगर ये लोग आपकी बात को न मानें तो कह दीजिए मैं आपके अफआल  से बेज़ार हूँ, और आप अल्लाह क़ादिर और रहीम पर तवक्कुल कीजिए "
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (२१६-१७)

उस वक़्त के ज़हीन लोगों से खुद मुहम्मद बेजार थे या उनका लाचार अल्लाह? जोकि रब्बुल आलमीन है. नाफरमान काफिरों से अल्लाह कैसे खिसया रहा है. सब मुहम्मद की कलाकारी है.
"और शायरों की रह तो बेराह लोग चला करते हैं और क्या तुमको मालूम नहीं शायर खयाली मज़ामीन के हर मैदान में हैरान फिरा करते हैं और ज़ुबान से वह बातें कहते हैं, जो करते नहीं. हाँ ! जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए और अपने अशआर में कसरत से अल्लाह का ज़िक्र किया."
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (२२४-२७)

मुहम्मद खुद उम्मी शायर थे. कुरआन उनकी ऐसी रचना है जो तुकान्तों में है, तुकबंदी करने में ही वह नाकाम रहे. अपनी शायरी में मानी ओ मतलब  पैदा करने में नाकाम रहे. लोग उनको शायरे-मजनू कहते थे. 
अपनी इस फूहड़ गाथा को अल्लाह का कलाम बतला कर अपनी एडी की गलाज़त को अल्लाह की एडी में लगा दिया. 
मुहम्मद उल्टा शायरों पर बेहूदा आयतें गढ़ते हैं ताकि इन पर मुता शायरी का इलज़ाम न आए.काश कि मुहम्मद पूरे शायर होते और साहिबे फ़िक्र भी. उनके कलाम में इतना दम होता कि ग़ालिब कह पड़ता - - -

देखना तक़रीर की लज्ज़त कि जो उसने कहा,
मैं ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है.




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 6 June 2016

Soorah shoera 26 Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा 
Part- 2

मुसलमानों के हाथों में खुद साख्ता रसूल के फ़रमूदात फ़क़त तौरेत की  कहानियों का सुना हुआ वक़ेओं को, मुहम्मद अपनी पैगम्बरी चमकाने के लिए  कुछ इस तरह गढ़ते हैं - - -
.''- - -  जब आप के रब ने मूसा को पुकारा - - -
रब्बुल आलमीन :--"तुम इन ज़ालिम लोगों यानी काफिरौं के पास जाओ, क्या वह लोग नहीं डरते?"
मूसा :--"ऐ मेरे परवर दिगार! मुझे ये अंदेशा है कि वह मुझको झुटलाने लगें औए मेरा दिल तंग होने लगता है और मेरी ज़बान भी नहीं चलती है , इस लिए हारून के पास भी वह्यी भेज दीजिए और मेरे जिम्मे उन लोगों का एक जुर्म भी है. सो मुझको अंदेशा है कि व लोग मुझे क़त्ल कर देंगे."
(वाजेह हो कि मूसा ने एक मिसरी का खून कर दिया था और मिस्र से फरार हो गए थे.)
रब्बुल आलमीन :-- "क्या मजाल है? तुम दोनों मेरा हुक्म लेकर जाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, सुनते हैं. कहो कि हम रब्बुल आलमीन के भेजे हुए हैं कि तू बनी इस्राईल को हमारे साथ जाने दे "
फिरऔन :-- "क्या बचपन में हमने तुम्हें पवारिश नहीं किया? 
और तुम अपनी उम्र में बरसों हम में रहा सहा किए, 
और तुम ने अपनी वह हरकत भी की थी, जो की थी, 
और तुम बड़े ना सिपास हो."
मूसा :-- " उस वक़्त वह हरकत कर बैठ था और  मुझ से गलती हो गई थी फिर जब मुझको डर लगा तो मैं तुम्हारे यहाँ से मफरुर हो गया था. फिर मुझको मेरे रब ने दानिश मंदी अता फ़रमाई और मुझको पैगम्बरों में शामिल कर दिया और वह ये नेमत है जिसका तू मेरे ऊपर एहसान रखता है कि तू ने बनी इस्राईल को सख्त ज़िल्लत में डाल रक्खा था."
फिरऔन : -- "रब्बुल आलमीन की हकीक़त क्या है? "
मूसा : -- "वह परवर दिगार है मशरिक और मगरिब का और जो कुछ इसके दरमियान है उसका. भी, अगर तुमको यकीन करना हो."
फिरऔन : -- "(अपने लोगों से कहा) तुम लोग सुनते हो ?
मूसा :-- "वह परवर दिगार है, तुम्हारा और तुम्हारे पहले बुजुर्गों का "
फिरऔन : --"ये जो तुम्हारा रसूल है, खुद साख्ता तुम्हारी तरफ़ रसूल बन कर आया है, मजनू है."
मूसा :-- "वह परवर दिगार है मशरिक और मगरिब का और जो कुछ इसके दरमियान है, उसका. भी, अगर तुमको अक्ल हो."
फिरऔन (झल्लाकर) : --"अगर तुम मेरे सिवा कोई और माबूद तस्लीम करोगे तो तुम को जेल खाने भेज दूंगा."
मूसा : -- "अगर मैं कोई सरीह दलील पेश करूँ तब भी. ?
फिरऔन : --"अच्छा तो दलील पेश करो, अगर तुम सच्चे हो ."
मूसा ने अपनी लाठी डाल दी तो वह एक नुमायाँ अज़दहा  बन गया और अपना हाथ बाहर निकाला तो दफअतन सब देखने वालों के रूबरू बहुत ही चमकता हुवा हो गया.
 फिरऔन:--( ने अहले-दरबार से जो उसके आसपास थे कहा) : -- "इसमें कोई शक नहीं की ये शख्स बड़ा माहिर जादूगर है, इसका मतलब ये है कि तुमको तुम्हारी सर ज़मीन से बाहर कर देगा तो तुम क्या मशविरह देते हो, "
दरबारियों ने कहा : -- "आप उनको और उनके भाई को मोहलत दीजिए. और शहरों में चपरासियों को भेज दीजिए कि वह सब जादूगरों को आप के पास हाज़िर करें"
(गोया फिरऔन बादशाह न था बल्कि किसी सरकारी आफिस का अफसर था जो चपरासियों से काम चलता था कि वह मिस्र के शहरों में जाकर बादशाह के हुक्म की इत्तेला अवाम तक पहुंचाते थे)
गरज वह सब जादूगर मुअय्यन दिन पर, खास वक़्त पर जमा किए गए और लोगों को इश्तेहार दिए गए कि क्या तुम जमा हो गए, ताकि अगर जादूगर ग़ालिब आ जावें तो हम उन्हीं की राह पर रहें .
फिर जब वह जादूगर आए तो फिरौन से कहने लगे अगर हम ग़ालिब हो गए तो क्या हमें कोई बड़ा सिलह मिलेगा?
फिरऔन : --"हाँ! तुम हमारे क़रीबी लोगों में दाखिल हो जाओगे "
मूसा : -- ( जादूगरों से )"तुम को जो कुछ डालना हो डालो"
चुनाँच उन्हों ने अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ  डालीं और कहने लगे की फिरौन के इकबाल की क़सम हम ही ग़ालिब होंगे.
मूसा ने अपना असा (लाठी) डाला सो असा के डालते ही उनके तमाम तर बने बनाए धंधे को निगलना शुरू कर दिया. जादूगर सब सजदे में गिर गए, और कहने लगे हम ईमान ले आए रब्बुल आलमीन पर जो मूसा और हारुन का भी रब है.
फिरऔन : -- "हाँ!तुम मूसा पर ईमान ले आए बगैर इसके कि मैं तुम को इसकी इजाज़त देता, ज़रूर ये तुम सब का उस्ताद है जिसने तुम को जादू सिखलाया है, सो अब तुम को हक़ीक़त मालूम हुई जाती है.  मैं तुम्हारे एक तरफ़ के हाथ और दूसरे तरफ़ के पैर काटूँगा ."
जादूगर :-- "कोई हर्ज नहीं हम अपने रब के पास जा पहुच जाएँगे. हम उम्मीद करंगे कि हमारे परवर दिगार हमारी खताओं को मुआफ़ कर दे, सो इस वजेह से कि हम सब से पहले ईमान ले आए ."
रब्बुल आलमीन :--और हमने मूसा को हुक्म भेजा कि मेरे इन बन्दों को रातो रात बाहर निकल ले जाओ .
फिरौन : -- "तुम लोगों का पीछा किया जाएगा, उसने पीछा करने के लिए शहरों में चपरासी दौड़ाए कि ये लोग थोड़ी सी जमाअत हैं और इन लोगों ने हमको बहुत गुस्सा दिलाया है और हम सब एक मुसल्लह जमाअत हैं''
रब्बुल आलमीन :--  ''गरज हम ने उनको बागों से और चश्मों से और खज़ानों से और उमदः मकानों से बाहर किया. और उसके बाद बनी इस्राईल को उनका मालिक बना दिया. गरज़ सूरज निकलने से पहले उनको जा लिया. फिर जब दोनों जमाअतें एक दूसरे को देखने लगीं तो मूसा के हमराही कहने लगे कि बस, हम तो हाथ आ गए ''
मूसा :-- "हरगिज़ नहीं ! क्यूं कि मेरे हमराह मेरा परवर दिगार है, वह मुझको अभी रास्ता बतला देगा "
रब्बुल आलमीन :--''फिर हमने हुक्म दिया कि अपने असा को दरिया में मारो, चुनाँच वह दरिया फट गया और हर हिस्सा इतना था जैसे बड़ा पहाड़. हमने दूसरे फरीक़ को भी मौके के करीब पहुँचा दिया और हम ने मूसा को और उनके साथ वालों को बचा लिया फिर दूसरे को ग़र्क़ कर दिया और इस वाकिए में बड़ी इबरत है और बावजूद इसके बहुत से लोग ईमान नहीं लाते और आप का रब बहुत ज़बरदस्त है और बड़ा मेहरबान है.
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१०-६८ )

मूसा की कहानी कई बार कुरआन में आती है, मुख्तलिफ़ अंदाज़ में. एक कहानी मैंने बतौर नमूना पेश किया आप के समझ में आए या न आए मगर है ये खालिस तर्जुमा, बगैर मुतरज्जिम की बैसाखियों के. कोई अल्लाह तो इतना बदजौक हो नहीं सकता कि अपनी बात को इस फूहड़ ढंग से कहे उसकी क्या मजबूरी हो सकती है? ये मजबूरी तो मुहम्मद की है कि उनको बात करने तमीज़ भी नहीं थी. ऐसी ही हर यहूदी हस्तियों की मुहम्मद ने दुर्गत की है. अल्लाह को जानिबदार, चालबाज़, झूठा और जालसाज़ हर कहानी में साबित किया गया है.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 3 June 2016

sOORAH sHOERA 26-q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा 
(1)
बजा कहे जिसे दुन्या उसे बजा कहिए, 
ज़बाने-खलक को नक्कारा ए खुदा कहिए.

बहुत मशहूर शेर है मगर बड़ा खयाले खाम से भर हुवा है. 
ज़बाने खलक की तरह फैली हुई यहूदियत के नककारा को तोड़ने वाला ईसा मसीह क्या मुजरिम थे ? 
इंसान को एक एक दाने को मोहताज किए हुए इस दुन्या पर छाई हुई सरमाया दारी, नादार मेहनत कशों के लिए नक्कारा ए खुदा थी? 
इसे पाश पाश करने वाला कार्ल मार्क्स क्या मुजरिम था?
३०-३५ लाख लोग हर साल काबा में शैतान को कन्कड़ी मरने जाते हैं, इसके पसे पर्दा अरबों को इमदाद और एहतराम बख्शना क्या नक्कारा ए खुदा है? 
कुम्भ के मेले में करोरों लोग गंगा में डुबकी लगा कर अपने पाप धोते है और हराम खोर पंडों को पालते हैं, नंग धुदंग नागा साधू बेशर्मी का मुजाहिरा करते हैं, क्या ये नक्कारा ए खुदा है? 
नहीं यह सब साजिशों पर आधारित बुराइयाँ है.
मैं इलाहबाद होते हुए कानपुर जा रहा था, इलाहबाद स्टेशन आते ही लट्ठ लिए हुए पण्डे हमारी बोगी में आ घुसे . कुम्भ का ज़माना था, ज्यादाः हिस्सा गंगा स्नान करने वाले बोगी में थे सब पर उन पंडों ने अपना अपना क़ब्ज़ा जमा लिया. 
एक फटे हल अधेड़ पर जिस पण्डे ने अपना क़ब्ज़ा जमाया था उसको टटोलने लगा, अधेड़ ने कहा मेरे पास तो कोई पैसा कौड़ी नहीं है आपको देने के लिए, पण्डे ने उसे धिक्कारते हुए कहा 
"तो क्या अपनी मय्या C दाने के लिए यहाँ आया है" 
सुनकर मेरा कलेजा फट गया . आखिर कब तक हमारे समाज में ये सब चलता रहेगा?
इन बुराइयों पर ईमान और अकीदा रखने वालों को मेरी तहरीर की नई नई परतें बेचैन कर रही होंगी. कुछ लोग मुझसे जवाब तलब होंगे कि 
आखिर इन पर्दा कुशाइयों  की ज़रुरत क्या है? 
इन इन्केशाफत से मेरी मुराद क्या है ? 
इसके बदले शोहरत, इज्ज़त या दौलत तो मिलने से रही, हाँ! ज़िल्लत, नफरत और मौत ज़रूर मिल सकती है. 
मुखालिफों की मददगार हुकूमत होगी, कानून होगा, 
यहाँ तक कि इस्लाम के दुश्मन दीगर धर्मावलम्बी भी होंगे. 
मेरे हमदर्द कहते है तुम मुनकिरे इस्लाम हो, हुवा करो, तुम्हारी तरह दरपर्दा बहुतेरे हैं. 
तुम नास्तिक हो हुवा करो, तुम्हारी तरह बहुत से हैं, तुम कोई अनोखे नहीं. अक्सर लम्हती तौर पर हर आदमी नास्तिक हो जाता है मगर फिर ज़माने से समझौता कर लेता है या अलग थलग पड कर जंग खाया करता है.
मेरे मुहब्बी ठीक ही कहते है जो कि मुहब्बत के मारे हुए हैं. हक कहाँ बोल सकते हैं, मुझे खोना नहीं चाहते.
आज़ादी के बाद बहुत से मुस्लमान मोमिन बशक्ले-नास्तिक पैदा हुए हैं. कुछ ऐसे मुसलमान हुए जो अपनी मिटटी सुपुर्दे-खाक न करके सुपुर्दे-आग किया है, करीम छागला, नायब सदर जम्हूर्या जस्टिस हिदायत उल्लाह, मशहूर उर्दू लेखिका अस्मत चुगताई वगैरा नामी गिरामी हस्तियाँ हैं. 
उनके लिए सवाल ये उठता है कि उन्हों ने इस्लाम के खिलाफ जीते जी आवाज़ क्यूँ नहीं बुलंद की? तो मैं  क्यूं मैदान में उतर रहे हूँ ?
ऐ लोगो! वह अपने आप में सीमित थे, वह सिर्फ अपने लिए थे. नास्तिक मोमिन थे मगर ज़मीनी हकीकत को सिर्फ अपने तक रक्खा. 
मैं नास्तिक मोमिन हूँ मगर एक धर्म के साथ जिसका धर्म है सदियों से महरूम, मजलूम और नादार मुसलमानों को जगाना.मजकूरह बाला लोग खुद अपने आपको मज़हब की तारीकी से निकल ले गए, इनके लिए यही काफी था. मैं इसे कोताही और खुद गरजी मानता हूँ. उनको रौशनी मिली मिली तो उन्हों ने इसे लोगों में तकसीम क्यूँ नहीं किया? क्यूं अपना ही भला करके चले गए?
मेरा इंसानी धर्म कहता है कि इंसानों को इस छाए हुए मज़हबी अँधेरे से निकालो, खुद निकल गए तो ये काफी नहीं है. मेरे अन्दर का इंसान सर पे कफ़न बाँध कर बाहर निकल पड़ा है, डर खौफ़, मसलेहत और रवा दारी मेरे लिए कोई मानी नहीं रखती, इंसानी क़दरों के सामने. मैं अपने आप में कभी कभी दुखी होता हूँ कि मैं भोले भाले अकीदत मंदों को ठेंस पहुंचा रहा हूँ मगर मेरी तहरीक एक आपरेशन है जिसमें अमल से पहले बेहोश करने का फामूला मेरे पास नहीं है, इस लिए आपरेशन होश ओ हवस के आलम में ही मुझे करना पद रहा है. इस मज़हबी नशे से नजात दिलाने के लिए सीधे सादे बन्दों को कुछ तकलीफ तो उठानी ही पड़ेगी. ताकि इन के दिमाग से इस्लामी कैंसर की गाँठ निकाली जा सके. इनकी नस्लों को जुनूनी क़ैद खानों से नजात मिले. इनकी नस्लें नई फिकरों से आशना हो सकें. मैं यह भी नहीं चाहता कि कौम आसमान से छूटे तो खजूर में अटके. मैं ये सोच भी नहीं सकता कि नस्लें इस्लाम से ख़ारिज होकर ईसाइयत, हिंदुत्व या और किसी धार्मिक जाल में फसें. ये सब एक ही थैली के चटते बट्टे हैं.
मैं मोमिन को इन सब से अलग और आगे इंसानियत की राह पर गामज़न करना चाहता हूँ जो आने वाले वक़्त में सफ़े अव्वल की नस्ल होगी. शायद ही कोई मुसलमान अपनी औलादों के लिए ऐसे ख्वाब देखता हो.
ऐ गाफिल मुसलामानों! अपनी नस्लों को आने वाले ज़वाल से बचाओ. इस्लाम अपने आने वाले अंजाम के साथ इन्हें ले डूबेगा. कोई इनका मदद गार न होगा सब तमाश बीन होंगे. ऊपर कुछ भी नहीं है, सब धोका धडी है. पत्थर और मिटटी के बने बुतों  की तरह अल्लाह भी एक हवा का खयाली बुत है. इससे डरने की कोई ज़रुरत नहीं है मगर सच्चा मोमिन बनना ऐन ज़रूरी है. 


ज़रा देखिए तो अल्लाह क्या कहता है - - -
"ये किताबे-वाज़ेह की आयतें हैं. शायद आप उनके ईमान न लाने पर अपनी जान दे देंगे. अगर हम चाहें तो उन पर आसमान से एक बड़ी किताब नाज़िल कर दें, फिर उनकी गर्दनें उस निशानी से पस्त हो जाएँ. और उन पर कोई ताजः फ़ह्माइश रहमान की तरफ़ से ऐसी नहीं आई जिससे ये बेरुखी न करते हो , सो उन्होंने झूठा बतला दिया, सो उनको अब अनक़रीब इस बात की हक़ीक़त मालूम हो जाएगी जिसके साथ यह मज़ाक़ किया करते थे."
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१-६) 

ये किताबे-मुज़ब्जाब आयतें हैं, ये किताबे-गुमराही की आयतें हैं. 
ये एक अनपढ़ और ख्वाहिश-पैगम्बरी की आयतें हैं जो तड़प रहा है कि  लोग उसको मूसा और ईसा की तरह मान लें. 
इसका अल्लाह भी इसे पसंद नहीं करता कि कोई करिश्मा दिखला सके. क़ुरआनी आयतें चौदह सौ सालों से एक बड़ी आबादी को नींद की अफीमी गोलियाँ खिलाए हुए है.

मुसलामानों कुरआन की इन आयातों पर गौर करो कि कहीं पर कोई दम है?
"क्या उन्हों ने ज़मीन को नहीं देखा कि हमने उस पर तरह तरह की उमदः उमदः बूटियाँ उगाई हैं? इसमें एक बड़ी निशानी है. और उनमें अक्सर लोग ईमान नहीं लाते , बिला शुबहा आप का रब ग़ालिब और रहीम है.
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (७-९)

मुहम्मद को कुदरत की बख्शी हुई नेमतों का बहुत ज़रा सा एहसास भर है. इन ज़राए पर रिसर्च करने और इसका फ़ायदा उठाने का काम दीगर कौमों ने किया जिनके हाथों में आज तमाम सनअतें हैं, और ज़मीन की ज़र्खेज़ी का फायदा भी उनके सामने हाथ बांधे खड़ा है, 
मुसलमानों के हाथों में खुद साख्ता रसूल के फ़रमूदात .


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान