Sunday 11 March 2012

Soorah Bani Israeel -17

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं. 


पिछली किस्त पर अपने पाठक, खास कर धरम धारियों के कमेंट्स ने तो मेरे होश ही उड़ा दिए. किसी ने मुझे गालियाँ दीं और किसी ने शाबाशी. एक शरीफ ने तो मेरी माँ को नरेंद्र मोदी के साथ सुला दिया, तो दुसरे ने अनाम धारी की माँ को.
 अफ़सोस है कि क्या मैंने सत्य पथ का रास्ता   इन लोगों के लिए चुना है? दो एक को छोड़ कर बाकी सभी धर्म पथ पर नहीं बल्कि धर्म भरष्ट हैं. मेरी माँ अगर ज़िदा होती तो नरेद्र मोदी उसके छोटे बेटे के बराबर होते और वह भी उनको रास्ट्र धर्म को याद दिलाती.
मैं एक बहुत ही निर्धन परिवार का बेटा हूँ . अनथक मेहनत से अपने सम्पूर्ण परिवार को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया है, लाखों रुपए ईमानदारी के साथ इनकम टैक्स भरा है. माँ की बात चली है तो मैं इतने बचपन में उसे खो चुका हूँ कि मुझको उसकी शक्ल भी याद नहीं मगर उनको देखने के लिए अपने कालेज को उनके नाम से एक क्लास रूम बनवा कर दिया है. तालीम ही मेरी मंजिल है. मैं आज भी इसके लिए अपने आपको समर्पित रखता हूँ, ये इत्तेला है अपने नादान पाठकों के लिए जो मुझे बच्चों को पढ़ने का मशविरा दे रहेहै..
मेरे पास कोई बड़ी डिग्री नहीं, न ही ढंग का लेखन कर पता हूँ मगर धर्म गुरूओं का अध्यन किया है. फिर मुझे कबीर याद आता है, जो कहता है ''तुम जानौ कागद की लेखी, मैं जानूं आखन की देखी.'' मेरे तमाम आलोचक कागद की लेखी को आधार बना कर मुझे उन लेखो का आइना दिखलाते हैं, जिनको पढ़ कर वह उधारज्ञान अर्जित करते हैं. खेद है कि वह अपने दिलो-दिमाग और अपने ज़मीर को अपना साक्ष्य नहीं बनाते. मेरे लेख को कुरआन के उर्दू तर्जुमे से सीधे मीलान ''मौलाना शौकत अली थानवी'' के कुरान से कर लीजिए जो दुनया के सब से दिग्गज आलिम हैं और हदीसें ''बुखारी और मुस्लिम'' से मिला लीजिए. हाँ उस पर तबसरा मेरा है जो ज़्यादः किसी को गराँ गुज़रता हो, उनको ही मेरा मशविरा है कि वह ''कागत की लेखी'' पर न जाएं यह उधार का ज्ञान है. अगर आप की अपना कुछ अपने अन्दर बिसात और चेतन हो तो मेरी बात मने वर्ना हजारों ''बातिल ओलिमा'' हैं, उनपर अपनी तवानाई बर्बाद करें.
''दीन और ईमान'' ये दोनों लफ्ज़ बहुत ही मुकद्दस हैं और अरबी भाषा के हैं. इन शब्दों का पर्याय मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार किसी और भाषा में नहीं हैं, इस लिए इनका अर्थ भी समझा पाना मुश्किल हो रहा है. दीन लफ्ज़ बना है दयानत से जो कबीरी ''साँच'' है और ईमान का अर्थ लगभग ऐसा है जो किसी ''धर्म कांटे की नाप तौल'' हो.जो किसी दूसरे भाव के असर में न हो. इन दोनों शब्दों पर इस्लाम ने बिल जब्र इजारा कर लिया है. शब्द मुसलमान या हिन्दू नहीं होते मगर इजारादारी का मनहूस साया इन पर ज़रूर है. मैं अपनी अंतर आत्मा के अंतर गत ईमान दार मोमिन हूँ, और मेरा दीन है मानवता. मानवता ही मानव धर्म होना चाहिए. आपसे निवेदन है कि मुझे समझने की कोशिश करें. हो सके तो आप भी ''मोमिन'' हो जाएँ.
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सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५

(तीसरी किस्त)

''यह लोग आप से रूह के बारे में पूछते हैं. आप फ़रमा दीजिए कि रूह मेरे रब के हुक्म से बनी है और तुम को बहुत थोडा उम्र दिया है.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८५)
कहते हो कि यह कलामे-इलाही है. अल्लाह ने अरबी माहौल, अरबी ज़ुबान और अरब सभ्यता में इसको नाज़िल किया, तो क्या उसे अरबी तमाज़त भी नहीं आती थी ? वह कभी उम्मी मुहम्मद को आप जनाब करके बात करता है, कभी तुम कहता है तो कहीं पर तू कह कर मुखातिब करता है? क्या अल्लाह भी मुहम्मद की तरह ही उम्मी था ? इन्सान बहुत थोड़े वक़्त के दुन्या में आया है, जग जाहिर है, अल्लाह इसकी इत्तेला हम को देता है. क्या इसके कहने से हम मान जाएँगे कि रूह कोई बला होती है? जब कि अभी तक यह सिर्फ अफवाहों में गूँज रही है, अल्लाह बतलाता तो यूं बतलाता ''हाथ कंगन को आरसी क्या?''
रूहानियत के धंधे ने हमारे समाज को अँधा बनाए रक्खा है. ये बात क्यूं आलिमुल गैब की पकड़ में नहीं आती?
''और अगर हम चाहें तो जिस क़दर वह्यी (ईशवानी) आप पर भेजी है,सब सलब (ज़ब्त) कर लें, फिर इसके लिए हमारे मुक़ाबिले में कोई हिमायती न मिले. मगर आप के रब की रहमत है, बेशक आप पर उसका बड़ा फज़ल है.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८६)
देखें की अल्लाह किस तरह सियासत की बातें करता है. मुहम्मद को ब्लेक मेल कर रहा है, या फिर मुहम्मद इंसानों को ब्लेक मेल कर रहे हैं? दोस्तों अपने अक्ल पर पड़े अक़ीदत के भूत को उतर कर कुरआन की बातों को परखो. कोई गुनाह या अजाब तुम नाज़िल नहीं होगा. दर असल ये कुरआन ही कौम को अज़ाब की तरह पीछे किए हुए है.
आप फ़रमा दीजिए कि अगर इंसान और जिन्नात जमा हो जाएँ कि ऐसा कुरआन बना लावें, तब भी ऐसा न ला सकेंगे. अगर एक दूसरे के मददगार भी बन जाएँ.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८७-८८)
इंसानों की तरह जिन्नात भी कोई प्राणी होता है, इस बात को आज तक इस वैगानिक युग में कुरआन ही मुसलामानों से मनवाए हुए है. इस चैलंज को मुहम्मद कुरआन में बार बार दोहराते हैं. मुहम्मद शायर थे (मगर मुशायर) ये शायरों की ग़लत फ़हमी होती है कि उन्हों ने जो कहा लाजवाब है. यही शायराना फ़ितरत मुहम्मद बार बार इस जुमले को कहलाती है. उस वक़्त तथा कथित काफ़िर जवाबन मुहम्मद को ईश वाणी उनकी तरह ही नहीं बल्कि क़वायद को सुधार के मुहम्मद को मुँह पर मारते थे कि अपनी भाषा को संवारते हुए ऐसी आयते अपने अल्लाह से मंगाया करो, मगर मुहम्मद तो बस ''जो कह दिया सो कह दिया'' अल्लाह की भेजी हुई बात है. आज भी थोडा दीवानगी का आलम ला कर कुरआन जैसी बात कोई भी बडबडा सकता है.
''और हमने लोगों के लिए इस कुरआन में हर किस्म का उम्दा मज़मून तरह तरह से बयान किया है फिर भी अक्सर लोग बे इंकार किए न रहे.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८९)
कुरआन में कोई उम्दा बात जो कुरआन की अपनी हो, ढूंढें से नहीं पाओगे. बस कुरआन की तारीफ ही तारीफ बखानी गई है, किस बात की तारीफ है? नहीं मालूम जो मुल्ला बतला दें वही होगा इस धोके में मुसलमान अपनी ज़िद में अडिग है. पसे-पर्दा नहीं जाता कि तलाश करे फिर सामीक्ष करे दूसरों के उपदेश से.
''और ये लोग कहते हैं कि हम आप पर हरगिज़ ईमान न लाएँगे जब तक कि आप हमारे लिए ज़मीन से कोई चश्मा न जारी करदें या ख़ास आप के लिए खजूर या अंगूर का बाग़ न हो, फिर इस बाग़ में बीच बीच में जगह जगह बहुत सी नहरें न जारी कर दें, या आप जैसा कहा करते हैं - - - आप आसमान के टुकड़े न हम पर गिरा दें या आप अल्लाह और फरिश्तों को सामने न कर दें. या आप के पास सोने का बना हुवा घर न हो या आप आसमान पर मेरे सामने न चढ़ जाएँ. और हम तो आप के चढ़ने का भी यक़ीन नहीं करेंगे जब तक आप हमारे सामने एक नविश्ता (लिखा हुआ कुरआन) न लावें जिसको हम पढ़ भी लें. आप फ़रमा दीजिए कि सुबहान अल्लाह! बजुज़ इसके कि एक आदमी हूँ, पैगम्बर हूँ और क्या हूँ ? और जब उन लोगों के पास हिदायत पहुँच चुकी, उस वक़्त उनको ईमान लाने से बजुज़ इसके और कोई बात रूकावट न बनी कि उन्हों ने कहा अल्लाह तअला ने बशर को रसूल बना कर भेजा है. आप फ़रमा दीजिए कि अगर ज़मीन पर फ़रिश्ते होते कि उसनें चलते बसते तो अलबत्ता हम उन पर आसमान से फ़रिश्ते को रसूल बना कर भजते''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (९०-९५)
तहरीर पर गौर करिए, यह बाते अल्लाह से कहलवा रहे है मुहम्मद ? इनका रोना अल्लाह रो रहा है? या खुद मुहम्मद रो रहे है कुरआन में.
लोगों को मुहम्मद की बातों का कोई असर नहीं था, मुहम्मद जब मक्का में फेरी लगा लगा कर लोगों को पकड़ पकड़ कर क़ुरआनी आयतों का मन गढ़ंत झूट प्रचारित करते तब लोग उनसे इस तरह का परिहास करते. मज़ाकान कोई कहता है ''आप आसमान पर मेरे सामने न चढ़ जाएँ. और हम तो आप के चढ़ने का भी यक़ीन नहीं करेंगे जब तक आप हमारे सामने एक नविश्ता (लिखा हुआ) न लावें जिसको हम पढ़ भी लें.'' इस लिए कि आसमान की सैर कल्पनाओं में कर आए थे जिसको कुरआन में आगे किससए-मेराज बयान करेंगे.
''आप कह दीजिए कि अल्लाह तअला मेरे और तुम्हारे दरमियान काफ़ी गवाह है वह अपने बन्दों को खूब जनता है, खूब देखता है और जिसको वह बेराह करदे तो उसको खुदा के सिवा आप किसी को भी उन का मददगार न पाओगे. और हम क़यामत के रोज़ ऐसों को अँधा, गूंगा, बहरा बना कर मुँह के बल चला देंगे. ऐसों का ठिकाना दोजख है, वह जब ज़रा धीमी होने लगेगी, तब ही इन के लिए और ज़्यादः भड़का देंगे. यह है उनकी सज़ा इस लिए कि इन्हों ने हमारी आयतों का इंकार किया.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (९७-९८)
मुहम्मद ने अपने झूट को सच साबित करने के लिए अपने मुअय्यन और मुक़र्रर किए हुए अल्लाह को गवाह बनाया है, पूछा जा सकता है उस अल्लाह का गवाह कौन है? वह है भी या नहीं? देखी कि वह अपने अल्लाह को कौन सा रूप देकर बन्दों लिए स्थापित करते हैं कि वह खुद मासूम बन्दों को गुमराह करता है, उनको अँधा,गूंगा और बहरा बना देता है फिर मुँह के बल चलाता है .
एक सहाबा हसन बिन मालिक से हदीस है कि कोई अरबी इस आयत पर चुटकी लेते हुए मोहम्मद से पूछता है ''या रसूल्लिल्लाह क़यामत के दिन काफिरों को यह मुँह के बल चलाना क्या होता है? मुहम्मद फ़रमाते हैं जो अल्लाह पैरों के बल से इंसान को चला सकता है वह क्या मुँह के बल चलाने की कुदरत नहीं रखता?
(सही मुस्लिम शरअ नवी)
पूछने वाले का सवाल, जवाब तलब इसके बाद भी है कि कैसे? मगर किसी को मजाल न थी कि इस जवाब पर दोबारा सवाल करता क्यूंकि उस वक़्त हज़रात बज़रिए मार काट और लूट के, उरूज पर आ चुके थे.शायद इसी बात पर किसी ने झुंझलाहट में कहा कि फ़रिश्ते अपने पिछवाड़े से घोडा खोल सकते हैं.
गौर तलब है कि मोहम्मदी अल्लाह कितना कुरूर और ज़ालिम है कि दुन्या का संचार छोड़ कर दोज़ख की भाड़ झोंकता रहता है सिर्फ इस बात पर कि नोहम्मद की गाढ़ी आयतों को बन्दों ने मानने से इंकार किया. किन बुनयादों पर मुसलमानों का अक़ीदा खड़ा है? वह सोचते नहीं बल्कि जो सोचे उसकी माँ बहेन तौलने लगते है.
(पाँच आयातों में फिर मूसा और बनी इस्राईल का बेतुका हवाला है)
''और कुरआन में हमने जा बजा फसल (वक़फ़ा) रखा है ताकि आप लोगों के सामने ठहर ठहर कर पढ़ें और हम ने इसको उतरने भी तजरीदन (दर्जा बदर्जा) उतरा है. आप कह दीजिए कि तुम इस कुरआन पर ईमान लाओ या ईमान न लाओ जिन लोगों को इससे पहले दीन का इल्म दिया गया था ये जब उनके सामने पढ़ा जाता है तो वह ठुडडियों के बल सजदे में गिर पड़ते हैं और कहते हैं कि हमारा रब पाक है, बेशक हमारे रब का वादा ज़रूर पूरा ही होगा. और ठुडडियों के बल गिरते हैं, रोते हैं और ये उनका खुशु बढ़ा देता है. आप कह दीजिए ख्वाह आप अल्लाह कह कर पुकारो या रहमान कह कर पुकारो सो इसके बहुत अच्छे नाम हैं और अपनी नमाज़ में न बहुत पुकार कर पढ़िए और न बिलकुल चुपके चुपके ही पढ़िए, और दोनों के दरमियान एक तरीक़ा अखतियार कर लीजिए.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१०६-१०९)
कुरआन को पढने का तरीक़ा भी बतला दिया गया है जोकि ट्रेनिग द्वारा होती है, इसी कुरआन के गुणगान और कर्म कांड में ही मुसलमानों का वक़्त कटता है. मुहम्मद इसकी पब्लिसिटी करते हैं कि लोग इसे पढ़ कर मदहोश हो जाते हैं और इसका खुमार ऐसा उन पर होता है कि ठुडडियों के बल गिर गिर पड़ते हैं.आप समझ सकते हैं कि मोहम्मद किस कद्र झूठे और मक्र आलूद थे.
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मेरे भाइयो, बहनों ! मेरे बुजुगो!! नौ जवानों!!!
मेरे मिशन को समझने की कोशिश करो. मैं आप में से ही एक बेदार फ़र्द हूँ जो आने वाले वक़्त की भनक पा चुका है कि अगर तुम न जगे तो पामाल हो जाओगे. मैं कहाँ तुमको गुमराह कर रह हूँ ?तुम तो पहले से ही गुमराह हो, मैं तो तुम से ज़रा सी तब्दीली की बात कह रह हूँ कि मुस्लिम से मोमिन बन जाओ, सब कुछ तुम्हारा जहाँ का तहाँ रहेगा, बस बदल जाएगा सोचने का ढंग. जब तुम मोमिन हो जाओगे तो तुम्हारे पीछे तुम्हारीतक़लीद में होंगे गैर मुस्लिम भी और इस तरह एक पाकीज़ा कौम वजूद में आएगी, जिसको ज़माना सर उठा कर देखेगा कि यह मोमिन है, पार दर्शी है, अनोखा है.
सिकंदर दुन्या को फतह करते करते फ़ना हो गया, हिटलर ग़ालिब होते होते मग़लूब हो गया, इस्लाम अब इसी मुक़ाम पर आ पहुंचा है, अल्लाह के नाम पर मुहम्मद ने इंसानियत को बहुत नुक़सान पहुँचाया है, उसका खमयाज़ा आज एक बड़ा मानव समाज पूरी दुन्या में भुगत रहा है, जो तुम्हारी आँखों के सामने है. यह गुनेह गार ओलिमा और उनके एजेंट ग़लत प्रोपेगंडा करते हैं कि इस्लाम योरोप और अमरीका में मकबूल हो रहा है, यह इनकी रोटी रोज़ी का मामला है जिसके वह वफ़ा दार हैं मगर तुम्हारे लिए वह गद्दार हैं.
भूल कर मज़हब बदल कर हिन्दू, ईसाई या बहाई मत बन जाना , यह चूहेदानों की अदला बदली है. मज़हबी कट्टरता ही चूहे दान होती है मेरे जज़बा ए मोमिन को समझो . मोमिन का दीन ही तुहारा दीन होगा . आने वाले कल में मोमिन ही सुर्ख रूहोंगे.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

5 comments:

  1. आखिरी पंक्तियों में सब कुछ कह दिया है.

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  2. जिन लोगों को इससे पहले दीन का इल्म दिया गया था ये जब उनके सामने पढ़ा जाता है तो वह ठुडडियों के बल सजदे में गिर पड़ते हैं और कहते हैं कि हमारा रब पाक है, बेशक हमारे रब का वादा ज़रूर पूरा ही होगा. और ठुडडियों के बल गिरते हैं, रोते हैं और ये उनका खुशु बढ़ा देता है. आप कह दीजिए ख्वाह आप अल्लाह कह कर पुकारो या रहमान कह कर पुकारो सो इसके बहुत अच्छे नाम हैं jin logon ko deen ka ilm hai wo girte hain be ilm nahi

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  3. ''और हमने लोगों के लिए इस कुरआन में हर किस्म का उम्दा मज़मून तरह तरह से बयान किया है फिर भी अक्सर लोग बे इंकार किए न रहे.''
    सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८९
    Allah ne aap jaise logon ke bare me bataya hai ki inkaar karne wale hamesha honge to aaj jo kuch aap kar rahe wo koi hairani ki baat nahi hai, aap se pahle bahuton ne inkaar kiya to koi fark nahi pada ISLAM ki talimaat ko failne se koi rok nahi saka.AAJ DUNIYA KE SABSE TAQATWAR MULK KE KUCH BEWAQUF FAUJIYON NE QURAN KI BEHURMATI KI TO US TAQATWAR MULK KE SABSE BADE SARBRAAH KO USKE LIYE MAAFI MAANGNI PADI IS WAQYE PAR GAOUR KARO YE ISHARA KAFI HAI AGAR AAP KUCH SAMAJHNA CHAHO AGAR AAP SAMAJHDAAR HO TO YE ISHARA KAFI HAI AUR NASAMAJH HO TO FIR MERI ALLAH SE DUA HAI KI ALLAH AAP KO SAMAJH ATA FARMAYE

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  4. M A SIDDEEQI SAHAB !

    आप भी अपने अल्लाह की तरह ही मुज़ब्ज़ब भाषा बोल रहे हैं, जिस पर कोई दलील कायम नहीं होती. दुन्या की बड़ी ताक़त जो आपसे माफ़ी मांग रही है वह ईराक में दस लाख मुसलमानों को मौत के घाट उतर चुकी है. अफगानिस्तान और दुन्या के दूसरे मुल्कों में मुस्लिमों का क़त्ले आम हो रहा है.आप अहमकों की जन्नत में बैठ कर दुआ पढ़ते रहिए.

    जब से इस्लाम कायम हुवा है मुस्लमान मुसलसल कटते जा रहे हैं. आपको कुछ खबर है? आप तो अहमकों की जन्नत में बसते हैं, क्या खाक समझेंगे.

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  5. jeem sahab Allah koi muzbzab bhasha nahi bolta haan meri bhasha aap ko muzabzab lag sakti hai lekin mera aisa koi irada nahi hai ki main muzabzab bhasha ka prayog karun jahan tak dalil qayam karne ki baat hai ti main ne to aap ko sirf ek ishara kiya hai aur main aap ko bahut samajhdaar samajhta hun is liye main ne sirf us misaal ke tahat ki "samajhdaar ko ishara kafi hota hai" sirf ek taza treen haqiqat ki traf ishara kiya hai warna agar tareekh ki warq gardaani karen to beshumaar aisi misalen aap ko mil jayengi aur is silsile me jo aap ne IRAQ aur AFGHANISTAAN ka ishara kiya to wahan jo kuch hua agar aap usko ghair janibdarana taour par ghaour farmayen to uska jwab aap ko QURAAN me mil jayega aur uska tazkera aap ne apne tabsra me galat rang ka chasma laga kar kiya hai uska bhi ishara kar deta hun ki Allah ne musalmanon ko aagaah kiya hai ki agar tum Muslim wale kaam nahi karo ge to Allah tumhare upar aise zalim aur jabir baadshah ko musallat kar de ga us baat ki sachayi ki yah daleel hai ki saddaam ki apni zindagi aur wahan ke awaam ki jo zindagi guzar rahi thi uski saza ke taur par yah maamlaat pesh aaye hain

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