Sunday 10 June 2012

Soorah haj 22 (1-25)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह हज २२-१७ वाँ पारा 


''ऐ लोगो अपने रब से डरो यकीनन क़यामत का ज़लज़ला बहुत भारी चीज़ होगी.'' 
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१)
एक बार फिर आप को दावते-फ़िक्र दे रहा हूँ कि गौर करिए कि आपका अल्लाह कैसा होना चाहिए? बहुत ज़ालिम, बड़ा गुस्सैल, शेर की तरह कि ज़रा सी हरकत पर अप पर चढ़ बैठे? या आपके चचा और मामा की तरह आप को चाहने वाला, आपकी गलतियों को दरगुज़र करने वाला, कम से कम सज़ा देने वाले को तो आप पसंद नहीं ही करेगे. यह आप पर मुनहसर है कि आप जैसा अल्लाह चाहें अख्तियार करें. 
जी हाँ! यही तो इंसान का ज़ाती मुआमला हो जाता है कि वह अपने को किस पसंद दीदा दोस्त के हवाले करता है. दोस्त कोई ज़ात पाक भी हो सकता है, दोस्त कोई खयाले-नादिर भी हो सकता है. दोस्त आपकी महबूबा भी हो सकती है और आप का हुनर भी. दोस्त आप की पूजा भी हो सकती है और आपकी इबादते-लाहूत भी. दोस्त कैसा भी हो सकता है मगर क़ुरआनी अल्लाह को दोस्त बनाना किसी साजिश का शिकार हो जाना है.
ज़लज़ले और आताश फिशां निज़ाम कुदरत के तहत मुक़र्रर है जो किसी काफ़िर या मुस्लिम आबादी को देख कर नहीं आते न उनका उस टुकाची अल्लाह से कोई सरोकार है जो मुहम्मद ने गढ़े हैं. खुलकर ऐसे अल्लाह से बगावत कीजिए जो कौम को जुमूद में किए हुए है. 

''जिस रोज़ तुम इसको देखोगे, तमाम दूध पिलाने वालियाँ अपने बच्चों को दूध पिलाना भूल जाएँगी और तमाम हमल वालियाँ अपना हमल डाल देंगी और तुझको लोग नशे के आलम में दिखाई देंगे.हालांकि वह नशे में न होंगे मगर अल्लाह का अज़ाब है सख्त.'' 
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२-३)
कबीलाई बन्दे मुहम्मद तमाज़त और मेयार को ताक पर रख कर गुफ्तुगू कर रहे हैं. क़यामत का बद तरीन नज़ारा वह किस घटिया हरबे को इस्तेमाल कर, कर रहे है कि जिसमे औरत ज़ात रुसवा हो रही है. और मर्द शराब के नशे में बद मस्त अपनी औरतों की रुस्वाइयाँ देख रहे होगे. 

''हमने तुमको मिटटी से बनाया फिर. नुत्फे से, फिर खून के लोथड़े से फिर खून की बोटी से कि पूरी होती है और अधूरी भी , ताकि हम तुम्हारे सामने ज़ाहिर कर दें . हम गर्भ में जिसको चाहते हैं एक मुद्दत ए मुअय्यना तक ठहराए रखते हैं, फिर तुम को बच्चा बना कर हम बाहर लाते हैं. फिर ताकि तुम अपनी भरी जवानी तक पहुँच जाओ और बी अजे तुम में वह भी हैं जो निकम्मी उम्र तक पहुंचे जाते हैं. - - - और क़यामत आने वाली है , इसमें ज़रा शुबहा नहीं और अल्लाह कब्र वालों को दोबारह पैदा करेगा.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-५-७)
एक बार फिर मुहम्मदी अल्लाह अपने हुनर और हिकमत को दोहराता है कि उसने जो कुछ इंसानी वजूद की शुरूआत अपनी आँखों से मुश्तअमल होते हुए देखा है. यानी मुहम्मद अपना ज़ाती मुशाहिदा बयान करते हैं जो मेडिकल साइंस में जेहालत कही जायगी. इन्हीं पुर जेहल बातों को ओलिमा कुराने-हकीम की बातें कहते हैं. पुनर जन्म की फिलासफी एक कशिश तो रखती है मगर ये सदियों कब्र में पड़े रहना और उसके बाद उठाए जाना बड़ा बोरियत वाला अफसाना है. क्या मजाक है अल्लाह अपने कारनामों का यकीन ज़ोरदार तरीके से दिलाता है.
 
''जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जरी होंगी। हमेशा हमेशा इनमें रहें. ये बड़ी कामयाबी है, अल्लाह तअला जो इरादः करता है, कर गुज़रता है '' 
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१४)
मुसलामानों!
 अल्लाह तआला कोई इंसानी ज़ेहन का नहीं है, वह अगर कुछ है तो इन बातों से बाला तर होगा. वह बज़ाहिर लगता है बहुत बारीक, मगर है बहुत साफ.. हर जगह नज़र आता है मगर बिना किसी रंग रूप का . उसकी कोई जुबान नहीं है न उसका कोई कलाम. जुबान होती तो बोलता ही रहता , सिर्फ चौदह सौ साल पहले मुहम्मद से बात करने के बाद उसके मुँह को लकवा नहीं मार गया होता कि उनके बाद उसकी बोलती बंद है. बार बार मुहम्मद तुम से नहरों वाली जन्नत की बात करते हैं जो कि तुमको अगर मिल जाय तो घर घर न रह जाय बल्कि खेत और ताल बन जाय. 

'' जो शख्स इस बात का ख़याल रखता है कि अल्लाह तअला उसकी  आखरत में मदद न करेगा तो उसको चाहिए कि एक रस्सी आसमान तक तान ले और मौकूफ करा दे गौर करना चाहिए कि तदबीर उसकी न गवारी की चीज़ को मौकूफ कर सकती है और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१५-१६)
दिमाद मुहम्मद का, कलाम अल्लाह का, समझ बंदए-मुस्लिम का - - - बड़ा मुश्किल मुक़ाम है कि ऐसी आयतें कुरआन की क्या कहना चाहती हैं? आम मुस्लमान में जब कोई इस किस्म की बाते करता है तो सुनने वाले उसे कठमुल्ला कह कर मुस्कुराते है. मगर अगर उनको बतलाया जाय कि क़ुरआनी अल्लाह ही कठमुल्ला है, ये उसकी बातें हैं, तो कुछ देर के लिए कशमकश में पड़ जाता है? मगर मुसलमान ही बना रहना पसंद करता है , कुछ बगावत के साथ. भारतीय माहौल में वह जाय तो कहाँ जाय? मोमिन का रास्ता उसे टेढ़ा नज़र आता है, जो कि है बहुत सीधा.सितम ये कि बे शऊर अल्लाह कहता है'' और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,'' 

''और अल्लाह तअला उन लोगों को कि ईमान लाए और नेक काम किए ऐसे बागों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरें जरी होंगी. इनको वहाँ पर सोने के कंगन और मोती पहनाई जाएँगे और पोषक वहाँ रेशम की होगी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-23)
मुहम्मद को इतनी भी अक्ल नहीं है कि जहाँ सोने के घर द्वार हैं वहाँ सोने के कंगन पहना रहे हैं? वैसे भी सोने का जब तक ख़रीदार न हो उसकी कोई क़द्र व् कीमत नहीं. सोने और रेशम को मर्दों पर हराम करके दुन्या में तो कहीं का न छोड़ा, जहाँ इनकी जीनत थी. महरूम और मकरूज़ कौम. 

''बेशक जो लोग काफ़िर हुए अल्लाह के रस्ते से और मस्जिदे हराम (काबा ) से रोकते हैं जिसको हमने तमाम आदमियों के लिए मुक़र्रर किया है, कि इस में सब बराबर हैं। इसमें रहने वाले भी और बहार से आने वाले भी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२५)
कुरआन की यह आयत बहुत ही तवाज्जेह तलब है - - - आज काबे में कोई गैर मुस्लिम दाख़िल नहीं हो सकता है। काबा ही क्या शहर मक्का में भी मुसलामानों के अलावा किसी और के दाखिले पर पाबन्दी है। आज की हकीकत ये है जब कि ये आयतें उस वक्त कि हैं जब मुसलामानों पर काबे में दाखिले पर पाबन्दी थी. इसी कुरआन में आगे आप देखेंगे कि अल्लाह कैसे अपनी बातों से फिरता है. इनके ही जवाब में आज़ाद भारत में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ मुसलामानों के दाखिले पर पाबन्दी है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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