Sunday 18 November 2012

Soorh Anquboot (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह अनकबूत -२९
(दूसरी क़िस्त) 
 
सूरह में इस्लाम के शुरूआती दौर के नव मुस्लिमों की ज़ेहनी कशमकश की तस्वीरें साफ़ नज़र आती हैं. लोग ख़ुद  साख़ता  रसूल की बातों में आ तो जाते हैं मगर बा असर कथित कफ़िरों का ग़लबा भी इनके ज़ेहन पर सवार रहता है. वह उनसे मिलते जुलते हैं, इनकी जायज़ बातों का एतराफ़ भी करते हैं जो ख़ुद साख़ता रसूल को पसंद नहीं, मुख़बिरों और चुग़ल खोरों  से इन बातों की ख़बर  बज़रीआ वह्यीय ख़ुद साख़ता रसूल को हो जाती है और खुद साख़ता रसूल कहते हैं

"अल्लाह ने इन्हें सारी ख़बर देदी है "
वह फिर से लोगों को पटरी पर लाने के लिए क़यामत से डराने लगते हैं, इस तरह कुरआन मुकम्मल होता रहता.
मुहम्मद, बुजुर्गों से सुने सुनाए क़िस्से  को क़ुरआनी आयतें गढ़ कर बका करते हैं. लोग मुस्लिम हुए लोगों को समझते कि ,
इनकी गढ़ी हुई क़यामत से खौफ़ खाने की कोई ज़रुरत नहीं. चलो तुमको अंजाम में मिलने वाले इसके गढ़े हुए अज़ाबों की ज़िम्मेदारी मैं अपने सर लेने का वादा करता हूँ, अगर तुम इसके जाल से निकलो"
माज़ी के इस पसे-मंज़र में डूब कर मैं पाता हूँ कि दौरे-हाज़िर के पीरो मुर्शिद, स्वामियों और स्वयंभू भगवानों की दूकानों को, जो बहुत क़रीब नज़र आती हैं और बहुत पास मिलते हैं, वह सादा लौह, गाऊदीयों, अय्यारों,मुसाहिबो और लाखैरों लाखैरों की भीड़.
मुरीदों के ये चेले. ऐसे ही लोग मुहम्मद के जाल में आते, जिनको समझा बुझा कर राहे-रास्त पर लाया जा सकता था.
मैं ख़ुद  साख़ता  रसूल की हुलिया का तसव्वुर करता हूँ . . .
नीम दीवाना, नीम होशियार, मगर गज़ब का ढीठ. झूट को सच साबित करने का अहेद बरदार, सौ सौ झूट बोल कर आखिर कार

" हज़रात मुहम्मद रसूल अल्लाह सललललाह अलैहे वसल्लम"
बन ही गया. वह अल्लाह जिसे खुद इसने गढ़ा, उसे मनवा कर, पसे पर्दा खुद अल्लाह बन बैठा. उसके झूट ने माना कि बहुत लम्बी उम्र पाई मगर अब और नहीं.. . 
मुहम्मद के गिर्द अधकचरे ज़ेहन के लोग हुवा करते जिन्हें सहाबाए-कराम कहा जाता है, जो एक गिरोह बनाने में कामयाब हो गए. गिरोह में बेरोजगारों की तादाद ज़्यादः थी. कुछ समाजी तौर पर मजलूम हुवा करते थे, कुछ मसलेहत पसंद और कुछ बेयारो मददगार. कुछ लोग तफ़रीहन  भी महफ़िल में शरीक हो जाते. कभी कभी कोई संजीदा भी जाइज़ा लेने की गरज़ से आकर खड़ा हो जाता और अपना ज़ेहनी ज़ाइका बिगाड़ कर आगे बढ़ जाता और लोगों को समझाता . . .
इसकी हैसियत देखो, इसकी तालीम देखो, इसका जहिलाना कलाम देखो, बात कहने की भी तमीज नहीं, जुमले में अलफ़ाज़ और क़वायद की कोताही देखो. इसकी चर्चा करके नाहक ही इसको तुम लोग मुक़ाम दे राहे हो, क्या ऐसे ही सिडी सौदाई को अल्लाह ने अपना पैगामबर चुना है?
बहरहाल इस वक़्त तक मुहम्मद ने तनाज़ामशग़ला और चर्चा के बदौलत मुआशरे में एक पहचान बना लिया था. एक बार मुहम्मद मक्का के पास एक मुकाम तायाफ़ के हाकिम की के पास अपनी रिसालत की पुड्या लेकर गए. उसको मुत्तला किया कि

"अल्लाह ने मुझे अपना रसूल मुक़रार किया है."
उसने इनको सर से पाँव तक देखा और थोड़ी गुफ्तुगू की और जो कुछ पाया उस पैराए में इनसे पूछा

" ये तो बताओ कि मक्का में अल्लाह को कोई ढंग का आदमी नहीं मिला कि एक अहमक को अपना रसूल बनाया? "
उसने धक्के देकर इन्हें बाहर निकाला और लोगों को माजरा बतलाया. लोगों ने लात घूसों से इनकी तवाज़ो किया, बच्चों ने पागल मुजरिम की तरह इनको पथराव करते हुए बस्ती से बहार किया. क़ुरआनी आयतें लाने वाले जिब्रील अलैहस्सलाम दुम दबा कर भागे, और अल्लाह आसमान पर बैठा ज़मीन पर अपने रसूल का तमाशा देखता रहा.
मगर साहब ! मुहम्मद अपनी मिटटी के ही बने हुए थे, न मायूस हुए न हार मानी. जेहाद की बरकत 'माले गनीमत' का फ़ार्मूला काम आया. फ़तह मक्का के बाद तो तायाफ़ के हुक्मरान जैसे उनके क़दमों में पड़े थे.

"अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को बड़ी मुनासिब तौर पर बनाया, ईमान वालों के लिए इसमें बड़ी दलील है."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४४)
मकड़ी का बोदा घर हो, ज़मीन और आसमानों की तकमील हो, पानी को चीरती हुई कश्तियाँ हों, ऊँट का बेढंगा डील डौल हो, या गधे की करीह आवाज़, जिनको कि आप कुरान में बघारते हैं, इन सब का तअल्लुक़ ईमान से क्या है? जिसकी शर्त पर आपकी पयंबरी कायम होती है. आपको तो इतना इल्म भी नहीं कि आसमान (कायनातसिर्फ़ एक है और इस कायनात में ज़मीनें अरबों है जिनको हमेशा आप उल्टा फरमाते हैं . . "आसमानों (जमा) ज़मीन (वाहिद)"

"जो किताब आप पर वह्यी की गई है उसे आप पढ़ा कीजिए और नमाज़ की पाबन्दी रखिए. बेशक नमाज़ बेहयाई और ना शाइस्ता कामों से रोक टोक करती हैं और अल्लाह की याद बहुत बड़ी चीज़ है और अल्लाह तुम्हारे सब कामों को जानता है."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४५)
ऐ अल्लाह! मुहम्मद नाख्वान्दा हैं, अनपढ़ हैं, कोई किताब कैसे पढ़ सकते हैं? उन्हें थोड़ी सी अक्ल दे कि सोच समझ कर बोला करें. 

"और हमने नूह को उनकी कौम की तरफ भेजा सो वह उनमें पचास बरस कम हज़ार साल रहे और कौम को समझाते रहे, इन को तूफ़ान ने आ दबाया और वह बड़े ज़ालिम लोग थे."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(१४)

अनपढ़ और गंवार मुहम्मदी अल्लाह पचास कम हज़ार हज़ार कहता है क्यूंकि वह नौ सौ पचास के हिन्दसे को नहीं कह  पाता. मुहम्मद का अल्लाह ग़लत बयानी कर रहा हैमाज़ी बईद में आज के मुकाबिले में उम्रें कम ही हुवा करती थीं, ये बात साइंसी इन्केशाफ़ है, वैसे भी पहले ज़िदगी दुश्वार गुज़ार हुवा करती थी, ये हादसात का शिकार हो जाती थी. नूह का वक़्त आजसे ५००० साल पहले का है अगर अल्लाह की बात पर यक़ीन किया जाए तो नूह की तरह लम्बी उम्र पाने वाली उनकी छटवीं पुश्त आज दुनिया में कहीं न कहीं मौजूद होती.
ऐसे ही हदीस में मुहम्मद एक जगह कहते हैं कि पहले इन्सान की लम्बाई साथ हाथ हुवा करती थी.
"और हमने आद और सुमूह को भी हलाक किया और ये हलाक होना तुमको उनके रहने के मकान से नज़र आ रहा है और शैतान ने उनके आमाल को उनकी नज़र में मुस्तःसिन कर रखा था और उनको राह से रोक रखा था और वह लोग होशियार थे. हमने कारून, फिरौन और हामान को भी हलाक किया और इनके पास मूसा खुली दलीलें लेकर आए थे, फिर ज़मीन पर इन्हों ने सरकशी की और भाग न सके. सो हमने हर एक को इसके गुनाह की सज़ा में पकड़ लिया. सो इनमें से बअज़ों पर तो हमने तुन्द हवा भेजी और इनमें से बअज़ों को हौलनाक आवाज़ ने आ दबाया और इनमें से बअज़ों को हमने ज़मीन में धँसा दिया और इनमे से बअज़ों को हमने डुबो दिया और अल्लाह ऐसा न था कि इन पर ज़ुल्म करता बल्कि यही लोग अपने ऊपर ज़ुल्म करते थे."
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(३८-४०)

ये है मुहम्मदी अल्लाह,
अल्लाह हलाकुल्लाह,
जिसके सजदे नादान मुसलमान करते हैं, इसके गुर्गों के बहकावे में आकर तालिबान बन जते हैं या हिजबुल्लाह के मुजाहेदीन जो अक्सर मुसलमानों का ही क़त्ले आम करते हैं.
क्या अल्लाह ने मुहम्मद को हलाक़ नहीं किया? उनकी नस्लों को नेस्त नाबूद नहीं किया?
नादान मुसलामानों! जागो, तुम मुहम्मदी अल्लाह के गुमराहों में बे यारो मददगार पड़े हुए हो. तुमको ये क़ुरआनी  जेहालत कहीं का भी नहीं रखेगी. अपनी नस्लों पर रहेम खाओ. जंग जद्दाल, खून खराबा, हलाक़त और तबाही के सिवा क़ुरआन में तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा.

''जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा कोई और साज़गार तजवीज़ कर रखे हैं उन लोगों की मिसाल मकड़ी की सी मिसाल है जिसने एक घर बनाया, और सब जानते हैं सब घरों में बोदा घर मकड़ी का घर होता है. अगर वह जानते तो. अल्लाह सब कुछ जानता है जिसको वह लोग अल्लाह के सिवा सोच रहे हैं और वह ज़बरदस्त हिकमत वाला है और इन मिसालों को लोगों के लिए बयान करते हैं और इन मिसालों को इल्म वाले ही समझते हैं.''
सूरह अनकबूत -२९ २० वाँ पारा आयत(४२-४३)

वाह वाह! अल्लाह के रसूल, कलाम आपका और बयान आपका. मकड़ी के इस कद्र मज़बूत और खूब सूरत जाल को कोई बेहिक्मत अल्लाह ही बोदा घर कह सकता है.उसके जाल को उसका घर समझे? रहती तो वह ज़मीन के अन्दर बिलों में. आपके समझ का जवाब नहीं. समझो और अपनी उम्मत को समझ दो कि मकड़ी के जाल सा बारीक धागा अगर स्टील का बने तो मकड़ी के जाल का मुकाबिला नहीं कर सकता. मामूली कीड़ा ज़बरदस्त दस्तकारी का मुजाहिरा करता है. आपकी तरह फूहड़ आयतों का नहीं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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