Sunday 17 February 2013

Soorah Ahzab 33 (3)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह अहज़ाब  - ३३- २१-वां पारा
(तीसरी क़िस्त)


कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैररत" कहा जा सकता है. यह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है. मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दागदार किया है, इसकी मिसाल बहैसियत एक  रहनुमा ,दुन्या में कहीं न मिल सकेगी. कारी हजरात (पाठक गण) से इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक दें,  फिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.

ज़ैद - एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -
एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा को , बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरों) ने अपहरण कर लिया,और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फ़रोख्त कर दिया. ज़ैद बिन हारसा  अच्छा बच्चा था, इस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम ख़दीजा ने उसे भरपूर प्यार दिया. उधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा था, वह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करता. उसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुंचा. मुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."
 ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दी, वह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गया, मगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया. 
"खाई मीठ कि माई" ? बदहाल माँ बाप का बेटा था. हारसा मायूस हुवा. मुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गई, मुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था, 
"आप सब के सामने मैं  अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"
ज़ैद अभी नाबालिग़ ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दिया. ऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि बचपन में वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.
आमिना चल बसी, मुहम्मद की देख भाल ऐमन ही करती, यहाँ  तक कि वह सिने बलूगत में आ गए. पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.
जी हाँ! आप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थी. ऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी न पहुँचा था, अन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.
ज़ैद के बालिग़ होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन  ज़ैनब से कर दी. खानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी ? मुहम्मद जवाब था, ज़ैद गुलाम नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है.
फिर हुआ ये, 
एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवा, देखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा है. उसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गई, घर से बाहर निकला तो घर का मुँह न देखा. हवस से जब मुहम्मद फ़ारिग़ हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगे, मगर वह न पसीजा. मुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने दे. तू था क्या? मैं ने तुझको क्या से क्या बना दिया, पैगम्बर का बेटा, हम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगा, मान जा,
ज़ैद न माना तो न माना, बोला तब मैं नादान था, ऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,
आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?
मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैली. औरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला  . 
अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया, 
एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी है, मेरा इसके साथ निकाह हुवा है, निकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,
अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लिया. उस वक़्त का समाज था ही क्या? रोटियों को मोहताज, उसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है. 
ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है, 
इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँ. दर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए.   .
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"किसी ईमान दार मर्द और किसी ईमान दार औरत को गुंजाइश नहीं है, जब कि अल्लाह और उसका रसूल किसी काम का हुक्म देदें कि इन कामों में कोई अख्तियार रहे और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल का कहना न मानेगा, वह सरीह गुमराही में पड़ा और जब आप इस शख्स से (ज़ैद बिन हारसा से) फ़रमा रहे थे जिस पर अल्लाह ने इनआम किया और आपने भी इनआम किया कि वह अपनी बीवी (जैनब) को अपनी ज़ौजियत में रहने दे और अल्लाह से डरे. और आप अपने दिल में छिपाए हुए थे जिसको अल्लाह ज़ाहिर करने वाला था. और आप लोगों के तअनो से अंदेशा करते थे, और डरना तो आपको अल्लाह से ही ज़्यादा सज़ावार है. फिर जब ज़ैद का इससे दिल भर गया, हम ने इससे आप का निकाह कर दिया ताकि मुसलामानों को अपने मुँह बोले बेटों की बीवियों से निकाह करने में कोई तंगी न रहे कि जब यह उनसे अपना जी भाई चुकें . अल्लाह का ये हुक्म होने ही वाला था."

सूरह अहज़ाब  - ३३- २२-वां पारा आयत (३६-३७)

देखिए कि किस ढिटाई के साथ उम्मी कह रहा है कि अपनी रखैल ज़ैनब की कहानी ज़ाहिर करने को था कि उसकी कोई तरकीब उसको नहीं सूझ रही थी, कि कैसे इसको ज़ाहिर करे. खुद को अल्लाह का हम सर कहते हुए दोनों के हुक्म को मानने की हिदायत दे रहा है. आयत कह रही है कि खुद को अल्लाह बतलाते हुए ज़ैद को धमकी दे चुका है.
इस्लाम इंसानी आज़ादी का खून करते हुए कह रहा है "किसी ईमान दार मर्द और किसी ईमान दार औरत को गुंजाइश नहीं है, जब कि अल्लाह और उसका रसूल किसी काम का हुक्म देदें कि इन कामों में कोई अख्तियार रहे" यानी इस्लाम में  हक और सदाक़त की कोई गुंजाइश ही नहीं है.
अय्यारों के सरताज ये तो बतलाइए कि कौन सा ये दूसरा मेराज आपका कब और किस तरह हुवा था? किस बुर्राक या लिल्ली घोड़ी पर सवार होकर, अपनी रखैल ज़ैनब को बाँहों में लेकर आप ने आसमान की सैर की थी? पहले मेराज में तो अल्लाह तअला ने आपको परदे के पीछे रह कर नमाज़ों का खज़ाना देकर रुखसत किया था, इस बार तो आमने सामने बैठ कर बाक़ायदा क़ाज़ी बन के आप का निकाह पढाया और जिब्रील मुजम्मम आपके सामने थे? आप तो ईसा मूसा सबसे आगे हो गए कि किसी ज़ानिया को लेकर अल्लाह के सामने थे, उसको देखा भी, उससे बात भी की. आप पर अल्लाह की मार.

"और इन पैगम्बरों के वास्ते अल्लाह तअला ने जो बात मुक़र्रर कर दी थी, इस नबी पर कोई इलज़ाम नहीं. अल्लाह तअला ने इनके हक में यही मामूल रखा है जो पहली हो गुज़रे हैं और अल्लाह का हुक्म तजवीज़ किया हुवा होता है."
सूरह अहज़ाब  - ३३- २२-वां पारा आयत (38)

उम्मी अपनी ज़बान ए जिहालत में कह रहा है कि इस तरह की कहानी है हर पैगम्बर की है, उसकी ही नहीं. वह अपनी ज़िम्मेदारी अल्लाह पर डालता है. उसके दीवाने उसकी इस बात से इत्तेफाक करते हुए कहा करते हैं कि रसूल तो मासूम हुवा करते हैं, उनके हर काम मिनजानिब अल्लाह होता है.

"ये सब पैगम्बरान-गुज़श्ता ऐसे ही थे कि अल्लाह का पैगाम पहुँचाया करते थे और इस बात में अल्लाह से डरते थे, अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते रहे. अल्लाह हिसाब लेने के लिए काफी है. मुहम्मद तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं लेकिन रसूल हैं, सब नबियों पर ख़त्म हैं."
सूरह अहज़ाब  - ३३- २२-वां पारा आयत (३९-४०)

जेहालत से भरपूर पयंबरी कहती है कि वह अल्लाह का आखरी रसूल है. उसके बाद इस धरती पर कोई दूसरा रसूल न आएगा. यानी वह अपनी जिहालत की आयतें हमेशा हमेशा के लिए मुसलमानों के लिए वक्फ कर रहा है. मुसलमान दुन्या के साथ रह कर चाहे जितनी बुलंदी पर चला जाए, इस्लाम में आकर वह खाईं की गहराई ही में गिर जाएगा,

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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