Sunday 21 April 2013

सूरह सफ्फ़ात -३७ (1ST )

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा  २३
(पहली क़िस्त) 

मुसलामानों को क़समें खाने की कुछ ज़्यादः ही आदत है जो कि इसे विरासत में इस्लाम से मिली है. मुहम्मदी अल्लाह भी क़स्में खाने में पेश पेश है और इसकी क़समें अजीबो गरीब है. उसके बन्दे उसकी क़सम खाते हैं, तो अल्लाह जवाब में इनकी क़समें खाता है, मजबूर है कि उससे बड़ा कोई है नहीं कि जिसकी क़समें खा कर वह अपने बन्दों को यकीन दिला सके, उसके कोई माँ बाप नहीं कि जिनको क़ुरबान कर सके. इस लिए वह अपने मखलूक और तख्लीक़ की क़समें खाता है. क़समें झूट के तराजू में पासांग (पसंघा) का कम करती हैं वर्ना ना का मतलब ना और हाँ का मतलब हाँ ही इंसान की कसमें होनी चाहिए. अल्लाह हर चीज़ का खालिक है, सब चीज़ें उसकी तखलीक है, जैसे कुम्हार की तखलीक माती के बने हांड़ी,कूंडे वगैरा हैं, अब ऐसे में कोई कुम्हार अगर अपनी हांड़ी और कूंडे की क़समें खाए तो कैसा लगेगा? और वह टूट जाएँ तो मुज़ाय्का  नहीं, कौन  इसकी सज़ा देने वाला है.
कुरआन माटी की हांड़ी से ज़्यादः है भी कुछ नहीं.
अब देखिए कि इस सूरह में मुहम्मद अल्लाह का रूप धारण करके क्या कहते हैं.

"क़सम है उन फरिश्तों की जो सफ़ बांधे खड़े रहते हैं. फिर उन फरितों की जो बंदिश करने वाले हैं. फिर उन फरिश्तों की जो ज़िक्र की तिलावत करने वाले हैं. कि तुम्हारा माबूद (साध्य) एक है. वह परवर दिगार है, आसमानों और ज़मीन का. और जो कुछ उसके दरमियान है.
और परवर दिगार का है,  तुलूअ करने वाले मवाके का,
हमीं ने रौनक दी है उस तरफ वाले आसमान को, एक अजीब आराइश के साथ और हिफाज़त भी की है, हर शरीर शैतान से.
 और शयातीन आलमे-बाला की तरफ कान भी नहीं लगा सकते और हर तरफ मार धक्याय जाते हैं और उनके लिए दायमी अज़ाब होगा.
मगर जो शैतान कुछ खबर ले ही भागते हैं तो एक दहकता हुवा शोला उन्हें उनके पीछे लग लेता है."
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१-१०)

क़ुरआन में कसमों का सिसिला शुरू हो गया है जो हैरत तक पहुँचेगा. अल्लाह उन फरिश्तों की क़समें खा रहा है जो नमाज़ियों की तरह सफ़ बांधे खड़े रहते हैं. या फिर उन फरिश्तों की की क़समें जो बंदिश करने में लगे हैं. मुहम्मदी अल्लाह ये नहीं बतलाता कि किन उमूर की बंदिश करते हैं, जब कि अल्लाह खुद हर काम को इशारों पर करने की तनहा कूवत रखता है.
अल्लाह उन मुकामों की क़सम भी खाता है जहाँ से उसके मुताबिक सूरज, चाँद सितारे निकलते हैं.
इन मुकामों को रौनक देने के एलान के साथ साथ, वह इनको महफूज़ रखने का दावा भी करता है. शैतान को ही अपने बाद कुदरत देने वाला अल्लाह इस से और इसके परिवार वालों से अपनी तख्लीकें बचाता भी रहता है.
ये आयतें आसमान पर तारे टूटते रहने के मंज़र को देख कर मुहम्मद ने गढ़ी है. इतने हिफाजती इंतेज़ाम होने के बाद भी शैतान अल्लाह की प्लानिग की ख़बरें उड़ा ही लेता है जिसके पीछे एक दहकता हुवा शोला लग जाता है फिर भी शैतान बच निकलने में कामयाब हो जाता है, आगे पारों में है कि वह ख़बरें शैतान जादू गरों को दे देता है.
     
"तो आप उन लोगों से पूछिए कि वह लोग बनावट में ज़्यादः सख्त हैं या हमारी पैदा की हुई ये चीजें? हमने इन लोगों को चिपकती हुई मिटटी से पैदा किया है बल्कि आप तअज्जुब करते हैं और ये लोग तमस्खुर करते हैं. और वह लोग ऐसे थे कि जब उन से कहा जाता था कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद ए बर  हक़  नहीं, तो तकब्बुर किया करते थे और कहा करते थे कि क्या हम अपने मबूदों को एक शायरे दीवाना की वजेह से छोड़ दें.
जो लोग खास किए हुए बन्दे हैं उनके लिए गिज़ाएँ और मेवे हैं और वह लोग बड़ी इज्ज़त से आराम के साथ बागों में तख्तों पर आमने सामने बैठे होंगे. इनके पास ऐसा जामे शाराब लाया जायगा जो बहती हुई शराब से भरा जायगा . सफेद होगी, पीने वालों को लज़ीज़ होगी . न इसमें दर्दे सर न अक़लों में फ़ितूर  आयगा.  और इनके पास नीची निगाह वाली बड़ी बड़ी आँखों वाली होंगी, गोया वह बैज़े हो जो छुपे हुए रखे हों."
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा  २३ आयत(११-४९)

अल्लाह बन्दों को चैलेज करता है कि वह उनसे बड़ा कारीगर है. बन्दे जवाब दें तो दे सकते है कि तूने ज़र्रात बनाए, हमने उनसे आइटम बम बनाया. जिससे सारी दुन्या को तवानाई मिलती है, तू क्या ऐसा कर सकता है? तूने दरख़्त बनाया हमने उनसे फर्नीचर बनाया, क्या तू ऐसा कर सकता है. हम इंसान आज हवा में उड़ रहे हैं जिसको ज़माना देखता है, तू, तेरे फ़रिश्ते, तेरे पैगम्बर कभी उड़ते हुए देखे गए हैं?
मेरी लड़ाई अल्लाह से नहीं है, वह है तो हुवा करे, जब कभी सामने आएगा देख लेंगे, मेरी लड़ाई उन लोगों से है जो अल्लाह के नाम का धंधा करते हैं.
एक और नया शोशा की हमने " इन लोगों को चिपकती हुई मिटटी से पैदा किया है" ऐसी बातों पर कौन  न हँसेगा?
मैं बर बर कहता आया हूँ कि मुहम्मद टूटी फूटी शायरी करते थे जिसका सुबूत ये कुरआन है, इसे बज़ोर तलवार अल्लाह का कलाम मनवा लिया गया.
जन्नती शराबी होंगे देखिए कि शायरे दीवाना को न शराब की तारीफ़ आती है, न पीने पिलाने का सलीका, बहती हुई नदियों से भरी जाएगी, दूध की तरह सफेद होगी.
अय्याशी के लिए बड़ी बड़ी आँखों वाली मगर निगाह नीची किए होंगी? तब क्या लुत्फ़ आएगा. (हूरें) होंगी जैसे चूजों की तरह जो अंडे से बहार निकलते हैं.
कई परिदों के चूजे तो घिनावने होते है.
अक्ल का बौड़म अल्लाह का रसूल.\

कलामे दीगराँ - - -
"नफ्स परस्त शख्स के अन्दर बियाबान में भी खुराफ़ात पैदा हो जाएँगी. घर में रहते हुए नफ्स पर काबू रखना एक जेहाद है. जो लोग भले काम करते हैं और अपने नफ्स पर क़ाबू रखते हैं उनके लिए घर ही इबादत गाह है."
'पदम् श्री खंड'
(हिन्दू धर्म) 
इसे कहते हैं कलामे पाक


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. आपका कहना वाजिब है, लोगों को इस विषय में सोचना चाहिये.

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