Sunday 7 July 2013

सूरह हा मीम सजदा - ४१ (२)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

भारत के मुस्तकबिल करीब में मुसलामानों की हैसियत बहुत ही तशवीश नाक होने का अंदेशा है. अभी फ़िलहाल जो रवादारी बराए जम्हूरियत बक़रार है, बहुत दिन चलने वाली नहीं. इनकी हैसियत बरक़रार रखने में वह हस्तियाँ है जिनको इस्लाम मुसलमान मानता ही नहीं और उन पर मुल्ला फतवे की तीर चलाते रहते हैं. उनमे मिसाल के तौर पर डा. ए पी. जे अब्दुल  कलाम, तिजारत में अज़ीम प्रेम जी, सिप्ला के हमीद साहब वगैरा ,फ़िल्मी  दुन्या के ए. आर. रहमान, आमिर खान, शबाना आज़मी. और दिलीप कुमार, फ़नकारों में फ़िदा हुसैन, बिमिल्ला खान जैसे कुछ लोग हैं. आम आदमियों में सैनिक अब्दुल हमीद जैसी कुछ फौजी हस्तियाँ भी हैं जो इस्लाम को फूटी आँख भी नहीं भाते. मैंने अपने कालेज को एक क्लास रूम बनवा कर दिया तो कुछ इस्लाम ज़दा कहने लगे की यही पैसा किसी मस्जिद की तामीर में लगते तो क्या बात थी, वहीँ उस कालेज के एक टीचर ने कहा तुमने मुसलामानों को सुर्खुरू कर दिया, अब हम भी सर उठा कर बातें कर सकते है.
कौन है जो सेंध  लगा रहा है आम मुसलामानों के हुकूक़ पर?
कि सरकार को सोचना पड़ता  है कि इनको मुलाज़मत दें या न दें?
आर्मी को सोचना पड़ता है कि इनको कैसे परखा जाय?
कंपनियों को तलाश करना पड़ता कि इनमें कोई जदीद तालीम का बंदा है भी?
बनिए और बरहमन की मुलाजमत को इनके नाम से एलर्जी है.
इसकी वजेह इस्लाम है और इसके गद्दार एजेंट जो तालिबानी ज़ेहन्यत रखते हैं.
यह भी हमारी गलतियों से खता के शिकार हैं. 
हमारी गलती ये है कि हम भारत में मदरसों को फलने फूलने का अवसर दिए हुए है जहाँ वही पढाया जाता है जो कुरआन में है.


अब शुरू करिए शैतानुर्रज़ीम  के नाम से - - -    

सूरह हा मीम सजदा - ४१
(दूसरी क़िस्त)


"तुम अपने काले करतूत करते वक़्त ये तो न करते थे कि अपने कान आँख और खाल से अपनी हरकत छुपा सकते. लेकिन तुम ज़्यादः तर इस गुमान में रहे कि वह बहुत कुछ जो तुम करते रहे अल्लाह को मालूम नहीं."
सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (२२)

ए मुहम्मद तेरे अल्लाह ने शर्म से मुँह छुपा लिया था जब तू अपनी बहू जैनब के साथ काले करतूत कर रहा था  .

"और हम ने इसके लिए कुछ साथ रहने वाले शयातीन मुक़र्रर कर रखे थे सो इन्हों ने इनके अगले पिछले आमाल इनकी नज़र में मुस्तःसिन कर रखे थे और इनके लिए भी अल्लाह का कौल पूरा होके रहा.जो इनके पहले जिन और इंसान हो गुज़रे है बेशक वह भी ख़सारे में रहे."
सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (२५)

यह आयत मेरे कौल की सदाक़त बयान करती है कि अल्लाह और शैतान आपस में भाई भाई हैं और एक हैं. जब अल्लाह ही शैतान से काम कराता है तो इंसान दो तो तरफ़ा मार झेल रहा है.
मुहम्मद एक बेवकूफ साजिशी का नाम है, जिसे नादान मुसलमान समझ नहीं पाते.

"और   कहते हैं इस क़ुरआन को सुनो मत और इसके बीच ही शोर कर दिया करो. ऐसे काफ़िरों को हम बड़ा सख्त मज़ा चखाएंगे और उनके बुरे कामों का भर पूर सज़ा उनको देंगे,"
सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (२६-२७)

मुहम्मद की असली हालत ये सूरह बतला रही है कि किस क़दर लाखैरे और बेहया ज़ात थी उनकी. जाहिलों की पुश्त पनाही उसके बाद माले ग़नीमत की लालच से ये जिहालत की आयतें इबादत की बन गईं .

"और मिन जुमला इसकी निशानियों में एक ये है कि तू ज़मीन को देखता है कि दबी दबी पड़ी है, फिर जब हम पानी बरसाते हैं तो ये उभरती और फूलती है, हमने इस ज़मीन को ज़िंदा कर दिया वही मुर्दों को जिंदा करेगा. बे शक वह हर चीज़ पर क़ादिर है."
सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (२९)

ज़मीन का मुशाहिदा न किसानों के लिए किया न मज़दूरों के लिए, जिनका तअल्लुक़ ज़मीन से है. अपने लाल बुझककड़ी दिमाग से इंसानों की फ़सल ज़मीन से उगा रहे हैं.

"और ये बड़ी बा वक़अत किताब है जिसमें गैर वाकई बात न आगे से आ सकती है न इसके पीछे की तरफ़ से. ये अल्लाह हकीम महमूद की तरफ़ से नाज़िल किया गया है और अगर हम इसे अजमी कुरआन बनाते तो यूँ कहते कि इसकी आयतें साफ़ साफ़ क्यूँ बयान नहीं की गईं. ये क्या बात है कि अजमी कुरआन और अरबी रसूल ? आप कह दीजिए कि ये कुरआन ईमान वालों के लिए राह नुमा और शिफ़ा है. और जो ईमान नहीं लाते उनके लिए डाट लगा दी गई है."
सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (४१-४४) 

बार उम्मी अपना तकिया कलाम कुरआन में दोहराते हैं 
"न आगे से आ सकती है न इसके पीछे की तरफ़ से." 
अल्लाह का नया नाम किसी तालीम याफ़्ता ने सुझाया
 "अल्लाह हकीम महमूद" 
अस्ल में कुरआन तौरेत और यहूदियत की चोरी है मगर इसमें झूट और जिहालत की आमेज़िश कर दी गई.मालूम हो कि  जब उस्मान गनी कुरआन को तरतीब देने पर आए  तो इसके आगे से, पीछे ऊपर से और नीचे से ५०% आयतें निकल कर कूड़ेदान में डाल दी गईं थी. कि आप की आयतें इन्तेहाई दर्जे हिमाक़त की थी और कराहियत की भी थीं. अरबी और अजमी की बातें कितनी झोलदार हैं.
कितना मामूली फ़िक्र का रसूल है जो कहता है 
"जो ईमान नहीं लाते उनके लिए डाट लगा दी गई है."
"बहुत जल्द हम अपनी निशानियाँ उनके चारो तरफ़ दिखलाएँगे और खुद इनके अन्दर भी, यहाँ तक कि इनके लिए ये इक़रार किए बगैर कोई चारा न होगा कि ये कुरआन हक़ है. क्या तुम्हारे लिए ये काफ़ी नहीं कि तुम्हारा  परवर दिगार हर हर चीज़ पर खुद गवाह है . आगाह हो जाओ कि इसने हर चीज़ को अपने घेरे में ले रखा है."
सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ आयत  (५३-५४)  


पहली बार मुहम्मद डरा धमका नहीं रहे बल्कि आगाह कर रहे हैं मगर एक झूट के साथ. कुदरत की निशानियाँ तो चारो तरफ़ रौशन हैं जो इन्हें नज़र नहीं आतीं, नज़र कुछ आता है तो किज़्ब और मिथ्य.    


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. कौन है जो सेंध लगा रहा है आम मुसलामानों के हुकूक़ पर?
    कि सरकार को सोचना पड़ता है कि इनको मुलाज़मत दें या न दें?
    आर्मी को सोचना पड़ता है कि इनको कैसे परखा जाय?
    कंपनियों को तलाश करना पड़ता कि इनमें कोई जदीद तालीम का बंदा है भी?
    बनिए और बरहमन की मुलाजमत को इनके नाम से एलर्जी है.
    इसकी वजेह इस्लाम है और इसके गद्दार एजेंट जो तालिबानी ज़ेहन्यत रखते हैं.
    यह भी हमारी गलतियों से खता के शिकार हैं.
    हमारी गलती ये है कि हम भारत में मदरसों को फलने फूलने का अवसर दिए हुए है जहाँ वही पढाया जाता है जो कुरआन में है.

    Valid questions.

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