Sunday 15 September 2013

Soorqah ahqaaf 46 (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  
(2)

"हम ने तुम्हारे आस पास की और बस्तियाँ भी ग़ारत की हैं और हम ने बार बार अपनी निशानियाँ बतला दी थीं, ताकि वह बअज़ आएँ, सो जिन जिन चीजों को उन्हों ने अल्लाह का तक़र्रुब हासिल करने के लिए अपना माबूद बना रखा है, उन्हों ने इनकी मदद क्यूँ न कीं, बल्कि जब वह उनसे गायब हो गए और ये सब उनकी तराशी और गढ़ी हुई बात है."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (२७-२८)

ऐ मुसलमानों! क्या तुम इतने कुन्द ज़ेहन हो कि किसी मक्कार और चल बाज़ की बातों में आ जाओ? क्या तुम्हारा रुवाए ज़माना अल्लह इस क़दर ज़ालिम होगा कि बस्तियों को ग़ारत कर दे? उसकी नक्ल में अली मौला ने एक गाँव के लोगों को जिंदा जला के मार डाला. अगर तुम कट्टर मुसलमान अली मौला की तरह हो तो क्यूं न तुम को और तुम्हारे परिवार को जिंदा जला दिया जाय? अभी सवेरा है अपने ज़मीर की आवाज़ सुनो. तुहारे लिए एक ही हल है कि तरके-इस्लाम करके मोमिन होने का एलान करदो.

"और जब हम जिन्नात की एक जमाअत को आपके पास लेकर आए तो कुरआन सुनने लगे थे, गरज़ जब वह कुरआन के पास आए तो कहने लगे खामोश रहो, फिर जब कुरआन पढ़ा जा चुका तो वह अपनी कौम के पास खबर पहुँचाने के वास्ते गए. कहने लगे कि ऐ भाइयो! हम एक किताब सुन कर आए हैं जो मूसा के बाद नाज़िल हुई है, जो अपने से पहले की किताबों को तसदीक़ करती है हक़ और रहे रास्त की रहनुमाई करती है.. ऐ भाइयो! अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले का कहना मानो और इस पर ईमान ले आओ. अल्लाह तअला तुमको मुआफ़ कर देगा और तुमको अज़ाबे दर्द नाक से महफूज़ रख्खेगा."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (२९-३१)  

आयत पर गौर करो कि कितना बड़ा झूठा है तुम्हारा सल्ललाह ओ अलैहे वसल्लम. ड्रामे गढ़ता है और उसे किर्दगार ए कायनात के फ़रमान बतलाता है.

"जो शख्स अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले का कहना नहीं मानेगा वह ज़मीन में हरा नहीं सकता. और अल्लाह के सिवा कोई इसका हामी भी न होगा. ऐसे लोग सरीह गुमराही में हैं."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (३२)

एक जुमला भी सहीह न बोल पाने वाला उम्मी तुम्हें अपना मज़हब सिखलाता है, गौर करो " वह ज़मीन में हरा नहीं सकता." इसकी इस्लाह ओलिमा हराम जादे जाने जाने क्या क्या किया करते हैं,
 मुहम्मद बार बार कहते हैं कि उनका कलाम जादू का असर रखता है, ओलिमा कहते हैं नौज़ बिल्लाह जादू तो झूटा होता है अल्लाह के कहने का मतलब ये हा कि - - .

"क्या उन लोगों ने ये न जाना कि जिस अल्लाह ने ज़मीन और आसमान को पैदा किया और उनके पैदा करने में ज़रा भी नहीं थका, वह इस पर कुदरत रखता है कि मुरदों को ज़िंदा कर दे. क्यूँ न हो ? बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है. और जिस रोज़ वह काफ़िर दोज़ख के सामने ले जाएँगे. क्या वह दोज़ख अम्र वाक़ई नहीं है? वह कहेंगे हम को अपने परवर दिगार की क़सम ज़रूर अम्र वाक़ई है. इरशाद होगा अपने कुफ्र के बदले इस का मज़ा चख्खो."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (३४) 

देखिए कि गंवार अपने अल्लाह को कभी न थकने वाला मख्लूक़ बतलाता है, जैसे खुद था कि जिसे झूट गढ़ने से कभी कोई परहेज़ न था.
अम्र ए वाक़ई ? पढ़े लिखों की नक़ल जो करता था.

"तो आप सब्र करिए जैसा कि और हिम्मत वाले पैगम्बरों ने किया है और इन लोगों के वास्ते इंतेक़ाम की जल्दी न करिए. जिस रोज़ ये लोग इस चीज़ को देखेंगे जिसका वादा किया जाता है, तो गो ये दिन भर में एक घडी रहेगे, ये पहुँचा देना है, सो वह ही बर्बाद होंगे, जो नाफ़रमानी करेंगे."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (३५)  

शर्री रसूल के बाप को किसी ने नहीं मारा कि वह उससे इंतेक़ाम ले न दादा को. वह तो इस बात का बदला लेगा कि उसकी रिसालत को लोग नहीं मान रहे हैं जो कि किसी बच्चे के गले भी नहीं उतरती.
लाखों लोग उसके इंतेक़ाम के शिकार हो गए.
*क़ुरआन की लाखों झूटी तस्वीरें इस्लामी आलिमों ने दुन्या के सामने अब तक पेश की हैं. " हर्फ़ ए ग़लत" आप की ज़बान में गालबान पहली किताब है जो  उरियां सदाक़त के साथ आप के सामने एक बाईमान मोमिन लेकर आया है. इसके सामने कोई भी फ़ासिक़ लम्हा भर के लिए नहीं ठहर सकता.
क़ुरआनी अल्लाह के मुकाबिले में कोई भी कुफ़्र का देव और शिर्क के बुत बेहतर हैं कि अय्याराना कलाम तो नहीं बकते, डराते धमकाते तो नहीं, गरयाते भी नहीं, पूजो तो सकित न पूजो तो सकित, जिस तरह से चाहो  इनकी पूजा कर सकते हो, सुकून मिलेगा, बिना किसी डर के. इनकी न कोई सियासत है, न किसी से बैर और बुग्ज़.  इनके मानने वाले किसी दूसरे तबके, खित्ते और मुखालिफ पर ज़ोर ओ ज़ुल्म करके अपने माबूद को नहीं मनवाते. इस्लाम हर एक पर मुसल्लत होना अपना पैदायशी हक समझता है. जब तक इस्लाम अपने तालिबानी शक्ल में दुन्या पर क़ायम रहेगा, जवाब में अफ़गानिस्तान,इराक़ और चेचेनिया का हश्र  इसका नसीब बना रहेगा.
भारत में कट्टर हिन्दू तंजीमे इस्लाम की ही देन हैं. गुजरात जैसे फ़साद का भयानक अंजाम क़ुरआनी आयातों का ही जवाब हैं. ये बात कहने में कोई मुजायका नहीं कि जो मुकम्मल मुसलमान होता है वह किसी जम्हूरियत में रहने का मुस्तहक़ नहीं होता. मुसलामानों के लिए कोई भी रास्ता बाकी नहीं बचा है, सिवाय इसके कि तरके इस्लाम करके मजहबे इंसानियत क़ुबूल कर लें. कम अज़ कम हिदुस्तान में इनका ये अमल फाले नेक साबित होगा राद्दे अमल में कट्टर हिदू ज़हनियत वाले हिदू भी अपने आप को खंगालने पर आमादा हो जाएँगे. हो सकता है वह भी नए इंसानी समाज की पैरवी में आ जाएँ. तब बाबरी मस्जिद और राम मंदिर, दो बच्चों के बीच कटे हुए पतंग के फटे हुए कागज़ को लूटने की तरह माज़ी की कहानी बन जाए. तब दोनों बच्चे कटी फटी पतंग को और भी मस्ख करके ज़मीन पर फेंक कर क़हक़हा लगाएँगे. इंसान के दिलों में ये काली बलूगत को गायब करने की ज़रुरत है, और मासूम ज़हनों में लौट जाने की.       

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. कौन सुनता है ये सब।

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