Sunday 12 January 2014

Soorah Munteha 60

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८

जिस तरह आप कभी कभी खुदाए बरतर की ज़ात में ग़र्क़ होकर कुछ जानने की कोशिश करते हैं, इसी तरह कभी मुहम्मद की ज़ात में ग़र्क़ होकर कुछ तलाश करने की कोशिश करें. अभी तक बहैसियत  मुसलमान होने क्र उनकी ज़ात में जो पाया है, वह सब दूसरों के मार्फ़त है. जबकि इनके कुरआन और इनकी हदीस में ही सब कुछ अयाँ है. आपके लिए मुहम्मद की पैरवी कल भी ज़हर थी और आज भी ज़हर है. इंसानियत की अदालत में आज सदियों बाद भी इन पर मुक़दमा चलाया जा सकता है, जिसमे बहेस मुबाहिए के लिए मुहज्ज़ब समाज के दानिशवरों को दावत दी जाय. इनका फैसला यही होगा की इस्लाम और कुरआन पर यकीन रखना काबिले जुर्म अमल होगा. आज न सही एक दिन ज़रूर ऐसा वक़्त आएगा कि मज़हबी ज़हन रखने वाले तमाम मजहबों के अनुनाइयों को सज़ा भुगतना होगा जिसमे पेश पेश होंगे मुसलमान.
धर्म व् मज़हब द्वारा निर्मित खुदा और भगवान दुर्गन्ध भरे झूट हैं, इसके विरोध में सच्चाई सुबूत लिए खड़ी है. मानव समाज अभी पूर्णतया बालिग़ नहीं हुवा है, अर्ध विकसित है, इसी लिए झूट का बोल बाला है और सत्य का मुँह काला है. जब तक ये उलटी बयार बहती रहेगी, मानव समाज सच्ची खुशियों से बंचित रहेगा.   

"ऐ ईमान वालो ! तुम मेरे दुश्मनों और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाओ कि इनकी दोस्ती का इज़हार करने लगो, हालाँकि तुम्हारे पास जो दीन ए हक़ आ चुका है, वह इसके मुनकिर है. रसूल को और तुमको इस बिना पर कि तुम अपने परवर दिगार पर ईमान ले आए, शहर बदर कर चुके हैं. अगर तुम मेरे रस्ते पर जेहाद करने की ग़रज़ से , मेरी रज़ामंदी ढूँढने की ग़रज़ से निकले हो. तुम इनसे चुपके चुपके बातें करते हो , हालाँकि मुझको हर चीज़ का इल्म है. तुम जो कुछ छिपा कर करते हो और जो ज़ाहिर करते हो. और तुम में से जो ऐसा करेगा, वह राहे रास्त से भटकेगा."
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१)

  मुहम्मद के साथ मक्का से मदीना हिजरत करके आए हुए लोगों को अपने खूनी रिश्तों से दूर रहने की सलाह अल्लाह के नबी बने मुहम्मद दे रहे हैं मुसलमानों का इनसे मेल जोल मुहम्मदी अल्लाह को पसंद नहीं. हर चुगल खोर की इत्तेला अल्लाह की आवाज़ का कम करती है. कुरआन खूनी रिश्तों को दर किनार करते हुए कहता है - - -
"अपने अजीजों से बे तअल्लुक़ ही नहीं, बल्कि उनके दुश्मन बन जाओ, और ऐसे दुश्मन कि उनको जेहाद करके क़त्ल कर दो."
इंसानियत के खिलाफ इस्लामी ज़हर को समझें. जिसे आप पिए हुए हैं.
मुहम्मद और इस्लामी काफिरों का एक समझौता हुवा था कि अगर कुरैश  में से कोई मुसलमान होकर मदीना चला जाए तो उसको मदीने के मुसलमान पनाह न दें, इसी तरह मदीने से कोई मुसलमान मुर्तिद होकर मक्का में पनाह चाहे तो उसे मदीना पनाह न दें. इस मुआह्दे के बाद एक कुरैश खातून जब मुसलमान होकर मदीना आती हैं तो मुहम्मदी अल्लाह फिर एक बार मुआहदा शिकनी करके उसे पनाह देदेता है. मुहम्मद फिर एक बार वह्यी का खेल खेलते हैं, अल्लाह कहता है कि अगर उसके शौहर ने उसका महर अदा किया हो तो वह उसे अपने शौहर को वापस करके मदीने में रह सकती है.
यह हुवा करती थी मुहम्मदी अल्लाह की ज़बान और पैमान.

"जो मुसलमान अपने बाल बच्चों को छोड़ कर मदीने आए हैं, अपनी काफ़िर बीवियों से तअल्लुक़ ख़त्म कर लें और मुसलमान बीवियाँ जो मक्का में फँसी हुई है, इनके शौहर का हर्ज खर्च देकर कुफ्फर इनको अपनी मिलकियत में लेलें और इसी तरह मुसलमान इनकी बीवियों का हर्जाना अदा करदें."
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१०)

गौर तलब है की मुहम्मद की नज़र में क्या क़द्र  ओ क़ीमत थी औरतों की ? मवेशियों की तरह उनकी ख़रीद फ़रोख्त करने की सलाह देते है सल्ललाहो अलैहे वसल्लम. कितना मजलूम और बेबस कर दिया था पैगम्बर बने मुहम्मद ने.
माज़ी में इंसान मजबूर और बेबस था ही, कोई इस्लाम ही जाबिर नहीं था, मगर वह माज़ी आज भी ईमान के नाम पर ज़िन्दा है. अरब में आज भी औरतों के दिन नहीं बहुरे हैं, सात परदे के अन्दर हरमों में मुक़य्यद यह खुदा की मखलूक पड़ी हुई है. झूठे और शैतान ओलिमा कहते हैं कि इस्लाम औरतों को बराबर के हुकूक देता है.
मुसलमान औरतें जो मक्का से आती हैं उनकी खासी छानबीन हुवा करती थी, कहीं वह काफ़िरों से हामला होकर तो मदीने में दाखिल नहीं हो रही?
 क्या होने वाला बच्चा भी काफ़िर ही पैदा होगा? ईमान लाई माँ की तरबियत क्या उसे काफ़िर बना देगी? मुहम्मद को इतनी भी अक्ल नहीं थी.
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत ( )

ये औरतें बोहतान की औलादें साथ में लेकर न आएंगी जिनको कि अपने हाथों और पाँव के दरमियान बना लें - - -
सूरह मुम्तहा ६० - पारा २८ आयत (१२)
यह है अल्लाह की बेहूदा जबान 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. मोमिन आप क्या कहना चाहते है इसके कुछ कुछ मायने समझ आ रहे है ! बेहतर कलम निगारी है ! शुक्रिया

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